केसरी सिंह बारहठ स्मृति सम्मान -2025
यह बात मानने और समझने की है कि हम में से हरेक में कोई न कोई एक प्रतिभा तो होती ही है। जो इसे पहचान लेते हैं और फिर उसे निखारने का जतन करते हैं, वे सफल हो जाते हैं और जो अपने में इस छिपी प्रतिभा को नहीं जान पाते, वे इस दुनिया की भीड़ में खो जाते हैं। दुनिया में जितने भी प्रतिभावान हुए हैं, सभी अपनी एक विशिष्ट पहचान रखते हैं। अत: कहने का आशय यही कि दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति विशेष होता है।इसमें किसी धर्म, जाति, लिंग, वर्ग , रंग,रूप, अमीरी,गरीबी आदि से फर्क नहीं पड़ता। बस, प्रतिभा को पहचानना होता है और फिर जतन करके उसे निखारना होता है। यह मेहनत स्वयं को करनी होती है, बिना समय गंवाये। हौसला और हिम्मत के साथ। रुकावटें और बाधायें आती हैं, असफलता भी मिलती है। लेकिन न निराश होना है न हिम्मत हारना है। बस, अपने-आप को टूटने नहीं देना है और निरंतर जुटे रहना है। इसमें कोई गुंजाइश नहीं कि सफलता न मिले। इसलिए तो कहा गया कि नाम और पहचान बेशक छोटी क्यों न हो, परंतु अपने दम पर होनी चाहिए। अत: नर हो, न निराश करो मन को ... कथनानुसार सदैव अपने उद्देश्य को पूरा करने में निरंतर लगे रहना है। यही प्रतिभा पहचान बनेगी, सफलता दिलायेगी।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
नाम और पहचान भले ही छोटी क्यों न हो, पर यदि वह अपने परिश्रम, कर्म और सत्यनिष्ठा से अर्जित की गई है तो सबसे मूल्यवान होती है। विरासत में मिली या दूसरों के सहारे बनी पहचान तात्कालिक और अस्थिर होती है, जबकि स्वयं के प्रयासों से निर्मित पहचान व्यक्ति के आत्मसम्मान, आत्मविश्वास और व्यक्तित्व को मजबूती देती है। समाज में ऐसे असंख्य लोग हैं जिनका नाम बहुत बड़ा नहीं, पर उनके काम की चमक उन्हें विशिष्ट बनाती है। पहचान का महत्व उसके विस्तार में नहीं, बल्कि उसकी प्रामाणिकता में है—छोटी पहचान भी महान होती है यदि वह अपने दम पर खड़ी हो। यही आत्मनिर्भरता व्यक्ति को सम्मान दिलाती है और जीवन को सार्थक बनाती है। मनुष्य के जीवन का सबसे मूल्यवान पक्ष उसकी पहचान है। यह पहचान कितनी बड़ी है, कितनी प्रसिद्ध है, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं—महत्वपूर्ण यह है कि वह पहचान उसने स्वयं अर्जित की हो। अपने प्रयासों, संघर्षों, नैतिक मूल्यों और कर्मठता से कमाई गई पहचान ही स्थायी और सम्माननीय होती है। समाज में बड़े परिवर्तन अक्सर ऐसे ही लोगों ने किए हैं, जिनके नाम बहुत बड़े नहीं थे, पर उनके काम बहुत ऊँचे होते हैं। अपनी पहचान स्वयं बनाना आत्मनिर्भरता का सर्वोत्तम रूप है। जो व्यक्ति अपने दम पर आगे बढ़ता है, उसकी यात्रा भले कठिन हो, पर अमूल्य होती है। ऐसे व्यक्ति में निर्णय क्षमता मजबूत होती है,चरित्र का विकास होता है,और समाज में प्रेरणा प्रसारित होती । अपने लिए सम्मान तभी उत्पन्न होता है जब व्यक्ति अपने प्रयासों से कुछ हासिल करता है।दूसरों के सहारे बनी पहचान से आत्मसम्मान अधूरा रह जाता है। “मैं कौन हूँ?”—इस प्रश्न का उत्तर तभी पूर्ण होता है जब व्यक्ति खुद अपनी नींव रखता है। अंततः पहचान का आकार नहीं, बल्कि उसका स्रोत महत्वपूर्ण है। छोटी पहचान, यदि अपने परिश्रम पर खड़ी हो, तो किसी भी बड़ी, उधार ली हुई पहचान से बेहतर है। जीवन में वही लोग दीर्घकालिक सम्मान पाते हैं जो अपने कर्मों द्वारा अपने नाम का मूल्य सिद्ध करते हैं।
- डाॅ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
अपने दम पर बने कोई पहचान वास्तव में स्थाई होती है जबकि दूसरों के दम पर बनाई गई पहचान जोड़ जुगाड़ से बनाई गई पहचान अस्थाई होती है। इस संबंध में यह बात महत्वपूर्ण है कि जोड़ जुगाड़ से बिना योग्यता के बनी पहचान कुछ दिन बाद ऐसी धूमिल पड़ती है कि फिर स्वयं को भी पहचानना मुश्किल होता है। अपने दम पर पहचान बनाने के लिए श्रम,समर्पण और त्याग अति आवश्यक तत्व होते है, जिनसे मानवीय व्यक्तित्व का निर्माण होता है।जबकि बिना श्रम वाली पहचान में चल कपट दंभ की प्रचुरता रहती है जो। व्यक्तित्व को कमजोर बनाने वाले तत्व होते हैं। इसलिए नाम और पहचान बेशक छोटी सी क्यों न हो, अपने दम पर ही होनी चाहिए।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
हर इंसान जो धरती पर जन्म लेता है , वो अपने निज कार्य पूर्ण कर , धरती में विलीन हो जाता है ! नश्वर है जीवन व इंसान को मृत्यु पश्चात भुला दिया जाता है ! पहचान चाहे छोटी हो , पर अपने बलबूते पर , अपने दम पर होनी चाहिए ! मेरी व्यक्तिगत राय भी यही है कि दैनिक कार्य , कर्तव्य निभाते हुए , जब हमने नष्ट ही होना है , तो क्यों न हम अपने कर्मों द्वारा कुछ ऐसा कार्य करें , कि हमारी पहचान , हमारे कार्यों द्वारा हो ! दूसरे शब्दों में, हमें अपनी पहचान ऐसी बनानी चाहिए़ , कि मरणोपरांत भी लोग हमें याद रखें ! ऐसी पहचान जो अपने निज कार्यों द्वारा बनाई गई हो , बिना किसी की सहायता के !!
शरीर नश्वर है , नष्ट हो जाएगा ,
नाम अमर है , वही याद आएगा !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
नाम और पहचान अपने दम पर ही होना चाहिए. छोटी या बड़ी पहचान कोई मायने नहीं रखती है. छोटी पहचान से ही बड़ी पहचान की तरफ आदमी बढ़ता है. किसी कवि की रचना पहले छोटी पत्रिका में ही छपती हैं फिर बड़ी-बड़ी पत्रिकाओं में छपने लगती है. तब नाम व पहचान धीरे-धीरे-धीरे बढ़ने लगती है. नेता भी पहले स्थानीय रूप में ही नाम कमाते हैं और पहचान बनाते हैं. फिर उनके नाम बड़े और पहचान बड़ी होने लगती है. जीवन के हर क्षेत्र में यही बात लागू होती है. फिल्म जगत में भी जो कलाकार अपने दम पर नाम और पहचान बनाये हैं वही कायम रहे. जो अपने माँ-बाप के भरोसे रहे वो सदा के लिए गुमनाम हो गए या जाते हैं. इसलिए यह बात सत्य है कि नाम और पहचान बेशक छोटी क्यों न हो परंतु अपने दम पर होनी चाहिए.
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
बेशक, नाम और पहचान अपने दम पर होनी चाहिए...इसमें अपना स्वाभिमान भरा होता है। अपनी मेहनत से कमाई हुई चीज किसे प्यारी नहीं होती , इसमें अपनी खुद्दारी होती है। मेहनत ,संघर्ष हमे आत्म-निर्भर बनाता है। मेहनत और आत्म-निर्भरता की सफलता से नाम और पहचान अपने आप मिल जाती है ,जो अपने दम पर कमाई है। बहुत बड़ा नाम, पहचान ना हो किंतु अपनी दम पर कमाई नाम और पहचान की बात ही और है...
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
नाम और पहचान चाहे छोटी ही क्यों न हो, यदि वह व्यक्ति के अपने परिश्रम, संघर्ष और सत्य के बल पर खड़ी हो, तो वही पहचान सबसे बड़ी और सबसे पवित्र होती है। किसी भी समाज में व्यक्ति का वास्तविक मूल्य पद, संपत्ति या बाहरी आडंबर से नहीं, बल्कि उसके अपने दम पर अर्जित किए गए चरित्र, साहस और सत्यनिष्ठा से तय होता है। उदाहरणार्थ जिस पहचान को कोई स्वयं अपने संघर्षों की आग में तपकर, संवैधानिक न्याय के मूल्यों पर टिककर, बिना झुके स्थापित करते हैं, वास्तव में वही पहचान स्थायी होती है, वही सम्मान के योग्य होती है, और वही राष्ट्र की आत्मा को सशक्त करती है। आज जब अनेक लोग शॉर्टकट्स, प्रभाव, सत्ता और दिखावे के सहारे पहचान बनाने की होड़ में लगे हैं, तब भी कुछ लोग ऐसे हैं जो सत्य, न्याय और संविधान के मूल्यों को अपना आधार बनाकर अपनी पहचान गढ़ते हैं। ऐसी पहचान छोटी नहीं होती है और यही राष्ट्र की उन्नति की नींव होती है। इसलिए मैं पुनः कहता हूँ कि नाम चाहे साधारण हो, लेकिन यदि वह ईमानदार संघर्ष और आत्मनिर्भरता से अर्जित है, तो वही सबसे प्रतिष्ठित और सबसे महान परिचय है। राष्ट्र ऐसे ही नागरिकों से आगे बढ़ता है जो अपनी पहचान किसी कृपा से नहीं, बल्कि अपने परिश्रम, सत्य और धैर्य से बनाते हैं। यही सच्चा देशभक्त चरित्र है और वे लोग भी महान होते हैं जो उक्त हवन में अपनी सेवा की आहुति देते हैं।
- डॉ इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर
नाम और पहचान अपने दम पर होनी चाहिए फिर चाहे व बड़ी हो या छोटी उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. फर्क इससे पड़ता है कि पहचान बनाई कैसे है! किसी दूसरे का या छल-कपट-राजनीति के दम पर बनाई गई पहचान कोई महत्व नहीं रखती. नाम और पहचान वही महत्वपूर्ण हैं जो अपने दम पर हैं. कहते भी हैं कि अपना हाथ जगन्नाथ. अपने दम पर की हुई पहचान ही सच्ची पहचान है. वैसाखियों से बनी हुई पहचान वैसाखी की तरह सीमित समय के लिए है.
- लीला तिवानी
सम्प्रति -ऑस्ट्रेलिया
हम अपने दम पर जीवन में जीते है तो नाम और पहचान का महत्व बढ़ जाता है। नहीं कई चापूकर करके पहुंते जरूर है, परन्तु उस तरह का प्रभाव नहीं हो पाता हमेशा दूसरों की निगाहों में अपना असर कम हो जाता है। नाम और पहचान बेशक छोटी क्यों न हो। परन्तु अपने दम पर होनी चाहिए। यह कटु सत्य है, जीवन तभी सुखद होता है, जब बार-बार गिरकर, आलोचनात्मक विचार धाराओं को सहन करते हुए प्रगति के सोपानों की ओर अग्रसारित होना। कई की प्रवृत्ति होती जल्दी से निराश हो जाते और जीवन का परित्याग करते है। जो जितना तपेगा उतना ही चमकेगा। अपने दम पर जीने की कला होना चाहिए......
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
हर कोई व्यक्ति अपने नाम और पहचान को अपनी जाति धर्म गुण और व्यक्तित्व के लक्षणों के आधार पर ही अपने आप को परिभाषित करता है इसके साथ उसकी निजी भावना समाज और संस्कृति में भी उसको नाम देकर पहचाना जा सकता है। बचपन से लेकर पूरे जीवन में नाम कमाने की एक प्रक्रिया चलती रहती है। यह सब तो ठीक है परंतु कभी-कभी व्यक्ति में अपनी हेयता या अहंकार के कारण अपना ऊंचा पद ,प्रतिष्ठा, सम्मान पाने के लिए दूसरों के लेवल से अपने को नामांकित कर देता है। गुणी ना होने पर भी या नामी ग्रामी बहुत ऊंचा अच्छा शो करने के लिए चोरी छिपे समाज के सामने अपने को बहुत बड़ी हस्ती होने का दिखावा करता है। यह स्थिति (बहुत कुछ झूठा)जीवन के सभी क्षेत्रों में और विशेष करआजकल सोशल मीडिया के दौर में बहुत ही फलीभूत हो रही है पर इस स्थिति में झूठी प्रशंसा पाने के लिए अपना नामांकन या पहचान बनाना क्षणिक लाभ है स्थाई नहीं । सब कुछ सही हो तो SiR की आवश्यकता ही क्यों पड़े? यदि सब ईमानदारी से जीवन जिएं ।भले ही अपना नाम पहचान छोटा पर अपने दम पर अपनी शक्ति और सामर्थ्य के हिसाब से तो है ,सन्तुष्ट होना चाहिए। शास्त्र भी कहते हैं सत्यम वद, धर्मम चर ।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
बड़ी पुरानी कहावत है कि "" नाम में क्या रक्खा है" लेकिन सच कहें तो नाम में ही अपना भूत भविष्य वर्तमान छिपा होता है। सच हो सकता कि इंसान का काम बोलता है लेकिन आपका नाम छिपा रह जाये और आपके काम का श्रेय किसी और को मिल जाये - - - तो निःसंदेह आपको बुरा लगेगा ही। इसलिये नाम और पहचान तो होनी ही चाहिए।लेकिन हाँ यह नाम और पहचान अपने दम पर होनी चाहिये। किसी और की मेहनत और काम को छीन कर कोई बड़ा नहीं बन सकता---बल्कि आपका ह्दय कचोटता रहेगा। मन की अशांति और मन का धिक्कार आपकी बेचैनियों को बढाता रहेगा। मानसिक रूप से बीमार कर देगा।इसलिये उचित है कि किसी और का क्रेडिट कभी न लें ना अपने कार्य का श्रेय किसी और को दें - - - आप पायेंगे कि मन की शांति जीवन की राहों को आसान कर देंगी।
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
नाम और पहचान बेशक छोटा क्यों न हों पर पहचान अपने दम पर ही होनी चाहिए आज भी किसको नकारा नही जा सकता पहचान पिता माता से होती हैं! फिर कर्मक्षेत्र उसके स्वयं के कर्म से इज्जत शोहरत कामयाबी मिलती हैं जिसे वर्तमान भूत भविष्य याद किया जाता है जिसके साथ उसके परिवार खानदान का नाम सामाजिक आर्थिक राजनैतिक धार्मिक आस्थाओं के जुड़ाव हो उसे पहचान अपने दम पर मिलती है जो समाज में उसके क़द क्रद को बढ़ाता है और गिराता है ! जो संस्कार संस्कृति जीवंत बनाते है संतुष्टि असंतुष्टि के नाम पर गिने गिनाए जाते हैं ! देश विदेश गांव राज्य विश्व में सौहार्द सोहरत नाम का डंका बजता बजवाते है असफल होने पर गुमनामी के अंधेरीं में जाते है पर इन नामों को भुलाया नहीं जाता है युवा बीत जाए पर महाभारत रामायण के पात्र कुपात्र नाम भुलाया नही जाता है ! मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है नाम बेशक छोटा या बड़ा हो पर कर्म से भुलाया नहीं जा सकता जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान ये चरितार्थ है पर इसके लिए जिम्मेदार
इंसान के कर्म नाम न्याय है!
नाम में ही सब कुछ रखा है
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
व्यक्ति के खुद का 'कर्म 'हीं सब कुछ होता है। उसी के आधार पर भूत, वर्तमान, और भविष्य निर्धारित होता है।नाम और पहचान व्यक्ति का सब कुछ उसके खुद के कर्म पर आधारित और निर्भर करता है। नाम और पहचान से ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति के कृत्य पर है वह भी अपने दम पर यानी खुद का किया हुआ हो ना कि किसी दूसरे फैक्टर पर निर्भर करता है।अतः जो व्यक्ति अपने दम पर जो सृजन करता है उसी से वस्तुत: उसकी पहचान भी होती है।
- डॉ. पूनम देवा
पटना - बिहार
बहुत से लोग अपनी पहचान अपने बुजुर्गों व पूर्वजों का नाम व उनके कार्यों को दिखाकर बताते हैं जबकि वो खुद इतने काबिल कार नहीं होते की उनकी पहचान ही उनके नाम को रोशन कर सके क्योंकि नाम और पहचान अपमे दम पर होना ही काबिलयत की निशानी है,तो आज हम इसी चर्चा को बढाने का प्रयास करते हैं कि नाम और पहचान चाहे छोटी क्यों न हो मगर अपने दम पर होनी चाहिए, यह अटूट सत्य है कि किसी व्यक्ति को अपनी उपलब्धियों और चरित्र के कारण पहचाना जाना चाहिए न कि अपमे पारिवारिक संबंधों के कारण कहने का मतलब अपनी पहचान अपनें प्रयासों,गुणों और कर्मों का मोहताज होती है किसी की पहचान बता कर अपने आपको व्यां करना कोई मायने नहीं रखता क्योंकि अपनी पहचान अपनी मेहनत और व्यक्तिगत मुल्यों का प्रतिविंब होनी चाहिए जिसके लिए व्यक्तिगत उपलब्धि, चरित्र और ईमानदारी जैसे गुणों की जरूरत होती है,यही नहीं अपनी पहचान खुद बनाने के लिए खुद का आत्मविश्वास बढता है ,यह भी सत्य है कि हर आदमी अपनी पहचान का खुद मालिक होता है बशर्ते की वो एक सकारात्मक रवैया अपनाये और अपने प्रयासों को जारी रखे ताकि उसकी पहचान अलग से हो सके इसके लिए हमें अपमा मूल्यकांन करना आना चाहिए, अपने जीवन का लक्ष्य धारण करके हर कार्य को करना चाहिए इसके साथ साथ सभी का सम्मान, अच्छा व्यवहार, विनम्रता जैसे गुण अधिक प्रभावशाली बनाते हैं इसके अतिरिक्त असफलताओं से सीख लेकर,आत्मविश्वास को बढावा देकर कुछ ऐसा करने की जरूरत होती है जिससे दुसरों का विश्वास जीता जा सके और दुसरों को प्रेरणा मिल सके ताकि जो हम ने करके दिखाया है उससे दुसरों का भला हो सके और हमें देख कर दुसरे भी हमारी राह पकड़ें तभी जा कर हम अपनी पहचान को पक्का कर सकते हैं और अपने दम पर जाने जा सकते हैं।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
नाम और पहचान वही मायने रखती है जो आपने स्व्य, अर्जित की है, जिसके आप असल हकदार हैं। ख़रीदे हुए ईनाम, ज़बरदस्ती की पहचान ना सुख देती है और ना सकूँ। न ही जीवन मूल्यों को बढ़ाती है , अपितु जीवन में खोखलापन व अवसाद पैदा करती है। कोई जाने न जाने हम जानते हैं कि जो भी ईनाम, नाम, पहचान , प्रसिद्धि हमें मिली है वह सच में हमारे ही कार्यों, उपलब्धियों द्वारा हमें मिली है अथवा मिली तो है परंतु हम उसके असली हक़दार नहीं हैं। इस प्रकार का नाम व पहचान हमारे चरित्र के पतन को दर्शाता है और हमें कभी भी ख़ुशी नहीं दे सकता, अपितु अपराधबोध वह पश्चत्ताप दे सकता है। नाम व पहचान बेशक़ छोटी ही क्यों न हो पर जो भी हो अपने दम- खम पर ही होनी चाहिए ।
- रेनू चौहान
नई दिल्ली
" मेरी दृष्टि में " पहचान तो सभी को चाहिए। परन्तु अंहकार के कारण ऐसा कोई कर्म करना पसंद नहीं करते हैं कि सार्थक कार्य से पहचान सम्भव हो सकें । अतः कर्म से ही पहचान बनती है। कर्म में ऐसी ताकत होनी चाहिए। जो देश, समाज व दुनियां में पहचान का मोहताज नहीं रहें।
बहुत बहुत आभार जैमिनी अकादमी। जैमिनी अकादमी द्वारा प्रतिदिन अति उत्तम एवं वैचारिक विषय पर विचार आमंत्रित किये जाते हैं। जिसमें पूरे देश भर से विद्वत-जन अपने विचार प्रकट करते हैं। मैं भी प्रायः प्रतिदिन ही अपने विचार प्रेषित करती हूँ - - और आप सब लोगों की स्नेहिल शुभाकाँक्षा से आज मेरे विचारों का चयन किया गया 🙏और केसरी सिंह बारहठ स्मृति सम्मान से मुझे गौरवान्वित किया गया है। धन्यवाद जैमिनी अकादमी 🙏🙏और आप सभी जैमिनी अकादमी के विचारकों का हार्दिक आभार।
ReplyDelete- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
( फेसबुक से साभार)