दुनिया बहुत बड़ी है परन्तु जिंदगी बहुत छोटी है। फिर भी लोग एक-दूसरे से छुपते फिरते रहते हैं। कुछ लोग मिलने का कोई ना बहाने तैयार कर लेते हैं। यही जिंदादिली जिंदगी है। इसे ज़ीना आना चाहिए। यही कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का प्रमुख विषय है।अब आयें विचारों में से कुछ को पेश करते हैं:-
कौन-कौन मिलता है अपनों से किसी न किसी बहाने से—यह प्रश्न अपने भीतर पूरे जीवन का दर्शन छिपाए है। नवम्बर की सर्दियों में जब हवा हल्की-हल्की चुभन लिए बहती है, तो मन भी गर्माहट की तलाश में अपनों की ओर खिंच जाता है। कभी त्योहार का बहाना, कभी किसी का जन्मदिन, तो कभी बस यूँ ही चाय की प्याली पर यादों का हवाला—इन्हीं बहानों के सहारे रिश्ते फिर से जीवंत हो उठते हैं। कुछ लोग ऐसे भी मिलते हैं जो बरसों बाद सामने आकर भी अपनेपन की वही पहली-सी चमक लौटा लाते हैं। अपनों से मिलना दरअसल जीवन की उस ऊष्मा का संग है, जो ठंडी हवाओं में भी दिल को सुकून देती है, मानो रिश्ते ही मन का असली कंबल हों। ऐसे मिलन मनुष्य को यह एहसास कराते हैं कि दुनिया चाहे कितनी भी व्यस्त क्यों न हो जाए, अपनापन छोटे-छोटे बहानों के सहारे हमेशा अपने रास्ते ढूँढ़ ही लेता है।
- डाॅ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
सच तो यह है कि बहुत से लोग अपनों से केवल बहानों के सहारे ही मिलते हैं, परन्तु मेरा विश्वास इससे आगे है। मैं मानता हूँ कि सम्बन्ध बहानों पर नहीं, बल्कि स्नेह, समर्पण और सत्य पर टिके होने चाहिए। अपनों से मिलना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि एक-दूसरे के जीवन में प्रकाश जोड़ने का माध्यम होना चाहिए। हमारा मौलिक कर्तव्य है कि हम सच्चे रिश्तों को निभाएँ, बिना लालच, बिना स्वार्थ, केवल मानवीय संवेदना और राष्ट्रप्रेम के साथ।
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर
कौन कौन मिलता हैं अपनों से किसी ना किसी बहानों से हमें अपने प्रियजनों से जीवन में मिलते रहना चाहिए ! सुख दुख में सरिक होना चाहिए! चाहे वह किसी भी बहाने से हो। जो हमें जीवन की निश्चितता अनिश्चितता और अपनों से मिलने के महत्व को समझाती है। जिससे दिल खुशियों का पैग़ाम ला झूमें उठता है! हर रिश्तों को दिल से जोड़ता है
हर वर्ष अनोखा प्यार तोहफ़ा
हर अवसर मिलन आस जगाती
विभिन्न रंग पास रह अपना वजूद नही खोती , यादों ख्वाबों में रह जीवंत होती एक दूसरे से उत्साह जगा इस तरह अपनाओं वही जो आसान सर्वथा उचित हों कठिन समय मुश्किलों को सामना अपनों का साथ हों !त्याग तपस्या करुणा भाव जगेगा ।आपस में विश्वास जगेगा।अडिग सत्य कर्म पथ बनेगा ।भय से आतंकित मन ना होगा ।मानव मन संचार जागेगा । तन मन फिर उज्ज्वल होगा ।फिर कौन कौन मिलता हैं अपनों से किसी ना किसी बहानों से मन सदा प्रफुल्लित परिमार्जित रहेगा आशाओं के फुल खिलेंगे !घर मन मंदिर की क्यारी में हरियाली होगी !
- अनिता शरद झा
रायपुर -छत्तीसगढ़
आज के जमाने में कौन अपना है,कौन नहीं है। समझ नहीं पाते। कई बार ऐसा भी होता है कि हम जिसे अपना समझते हैं,वह हमें अपना समझता है कि नहीं या वह हमें अपना समझ रहा है परंतु हम उसे अपनापन दे पा रहे हैं कि नहीं यह संशय रहता है और इस संशय में अपनापन अकेला रह जाता है। एक बात और है आज की व्यस्त जिंदगी में अपना दूर सा हो गया है। जब हमें समय होता है तब उनके पास नहीं होता और जब उनके पास होता है तब हमारे पास नहीं होता। कोई कार्यक्रम या आयोजन ही एक अच्छा विकल्प होता है जिसकी वजह से मिलना हो जाता है और अपनों से जीभर के मिलना हो जाता है। पहले छुट्टियों में अक्सर एक-दूसरे के यहाँ जाकर मेहमानी कर आते थे और सारी कसर निकाल लेते थे। छुट्टियों के अलावा पहले चिट्ठी- पत्री का दौर होता था तब उस माध्यम से दिल की बातें कर लेते थे। अब मोबाइल है तो और सुविधा हो गई है। परंतु जो मजा मिलने में आता है,वह मोबाइल से नहीं। स्थानीय जो अपने होते हैं, या जिनसे आत्मीयता होती है , जब भी समय होता है, मिल लेते हैं। इसके लिए न कोई औपचारिकतारें, न कोई समयबद्धता। कोई व्यस्ता है भी तो यथासंभव सहयोग कर दिया या चुपचाप बैठे हैं तब भी कोई दिक्कत नहीं। इस तरह जिंदगी में अपनों और अपनेपन की कहानी चल रही है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
इस जीवन में कुछ भी अकारण नहीं होता फ़िर वो किसी से मिलना ही क्यों न हो। हमारे जीवन में आने वाले हमारे रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त, पति-पत्नी, बच्चे यूँ ही अकारण हमारे जीवन में नहीं आ जाते।हमारा उनसे किसी ना किसी जीवन का कोई लेन-देन, अदान-प्रदान, कुछ कर्मों का लेखा-जोखा होता है जो पूरा करने के लिए ही हम सभी एक दूसरे के जीवन में आते व जीवन से जाते हैं। खून का रिश्ता ना होने के बावजूद भी कुछ लोग जीवन में ऐसे मिलते हैं जैसे अपनों से भी अधिक अपने और वहीं कुछ लोग अपने होकर भी बेगानों से बदतर। कुछ लोगों से पहली बार मिलने पर भी अपनापन व सकून मिलता है। हर मिलने वाले की हमारे जीवन में कोई ना कोई भूमिका अवश्य होती है। मिलने का तो बहाना मात्र होता है।
- रेनू चौहान
नई दिल्ली
आईये आज का रूख अपनों की तरफ करते हैं कि अपनों से कौन कौन मिलता है किसी न किसी बहाने,मेरा ख्याल में अपनों से किसी न किसी बहाने से मिलने की बात एक भावनात्मक और दार्शनिक बिषय है जिसका अर्थ विभिन्न प्रकार के रिश्तों और मुलाकातों से हो सकता है मेरे ख्याल में रूहानी और सच्चे रिश्ते व दिल से जुड़े लोग ही आपस में मिलते हैं इसके साथ साथ अच्छे व सच्चे दोस्त और परिवार मिलते रहते हैं मतलब अपनों से मिलना किसी व्यक्ति से नहीं उन गुणों और उन लोगों से है जो जीवन में आपका साथ देते हैं और आपके भरोसेमंद होते हैं लेकिन अगर गहराई से सोचा जाए कि जीवन में आपके साथ कौन मिलेगा यह समय तय करता है,जीवन में आप किस से मिलोगे यह आपका दिल तय करता है परंतु जीवन में आप किस किस के दिल में बने रहोगे यह आपका व्यवहार तय करेगा।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
आजकल की दुनियां में लोग अपनी व्यक्तिगत जीवन में, व भौतिकता की दौड़ में इतने अधिक व्यस्त हैं , कि किसी को किसी से मिलने का समय नहीं मिलता और कोई किसी से मिलता भी नहीं ! वाट्सअप , स्टेटस से ही काम चला लेते हैं !! मिलना तो अब बहानो से होता है , जैसे जन्म , मृत्यु , समारोह , विवाह आदि !
बीता हुआ ज़माना भी कितना खुशगवार था , जिसमें सबको सबके लिए समय था , सब एक दूसरे की परवाह करते थे!!
अपनों के पास अपनों के लिए समय था , प्यार था !!
आज की दुनियां मैं तो मृत्यु के समय भी , लोग अपनों के साथ नहीं खड़े क्योंकि सात समंदर पार से आना कठिन हो जाता है !!
बहानो से भी नहीं मिलते लोग ,
लगा है सबको , पैसों का रोग !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
एक समय वह भी था जब टेलीफोन भी नहीं होते थे और अतिथि बिना बताए आ जाते थे. अगर घर में मिल गए तो उनकी पूरी आवभगत होती थी, नहीं मिले तो कभी उनके घर जाकर मिलते थे या कहीं मिल गए तो न मिल पाने का खेद व्यक्त करते थे. कभी-कभी पड़ोसी ही उनकी पूरी आवभगत कर देते थे और घर आने पर सूचित भी करते थे. आज कल मिलने का रिवाज ही नहीं रहा है. मोबाइल से एक मैसेज कर दो और हो गया काम पूरा! अपनों से न मिलने के सौ बहाने होते हैं. मोबाइल तो है, कह दो हम घर पर नहीं हैं, हो गया काम! अभी भी कुछ लोग इतने स्नेह से सराबोर होते हैं कि अपनों से मिलने के लिए किसी-न-किसी बहाने से मिल ही लेते हैं. अपनों से मिलने की खुशी ही अलग होती है और मन संतुष्ट भी रहता है. पहल कौन करे के चक्कर में अपनों से न मिलने के बहानों से स्नेह-का सागर सूख जाता है. न मिलने के बहानों से हटकर मिलने के बहानों से नाता जोड़िए, संसार ही स्वर्ग बन जाएगा.
- लीला तिवानी
सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया
कौन-कौन मिलता है अपनों से, किसी ना किसी बहानों से.....यह सच है, आज के समय में अपनों से मिलने के लिए भी लोग बहाने ढूंढते हैं। आज की इस भाग-दौड़ वाली जिंदगी में किसके पास समय है। अपने घर में ही बेटे को माता पिता से बात करने का समय नहीं मिलता.. रिश्तेदारों से मिलने की तो बात दूर की है। अब तो फोन से बात हो जाती है। कितना अपनत्व था आपस में। हम एक दूसरे के घर जाया करते थे, अपने सुख-दुख की बातें बता आपस में बांटा करते थे किंतु आज वह बात कहां? जरुरत पड़ने पर मिलने का बहाना बनाते हैं। मतलब की दुनिया है। सबसे ज्यादा वृद्धों को इसकी जरूरत महसूस होती है। उनके पास समय ही समय है किंतु अपनी बात कहने के लिए कोई नहीं होता , इसलिए वे अपनों से मिलने का अथवा फोन से ही बात कर मिलने का बहाना बनाते हैं...कम्प्यूटर, फोन, और इस सोशल मिडिया ने हमें, हमारे बच्चों को अपनों से दूर कर दिया है। इससे मिलने जैसा तो हो जाता है किंतु रूबरु मिलने जैसा अहसास नहीं होता।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
सूर्योदय से प्रारंभ होती है प्रतिदिन की दिनचर्या जहाँ अपने अपनत्वों से मिलने की क्रमबद्धानुसार सुख-दुख का हाल चाल पूछने का रहता है। यह सच है कौन-कौन मिलता है अपनों से किसी ना किसी बहानों से.....! सम सामयिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक समारोह किसी न किसी से रुप में आयोजित होते हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अधिकांशत: पर्व पर किसी ना किसी रुप में लघु या वृहद में आयोजन की परम्परा चल पड़ी है। जिसमें कुछ न कुछ निष्कर्ष, सौहार्दपूर्ण वातावरण में चर्चा होती जरुर है।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
"कौन-कौन मिलता है अपनों से किसी न किसी बहानों से' पर चर्चा का यह विषय आज की बदलती जीवन शैली में बहुत कुछ सोचने पर विवश करता है, क्योंकि अपने तो हमेशा अपने ही होते हैं और जीवन पर्यंत अपने ही रहते हैं। भले ही स्वार्थ वश विचारों में मतभेद हो लेकिन रक्त संबंध तो ऐसे हैं , जिसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता। माना जा सकता है कि आज के दौर में खून सफेद हो गए हैं। उन सब के पीछे यही कारण है कि आज भौतिकवादी युग अत्यधिक सुख सम्पन्नता और विलासिता से पूर्ण लोग जीवन जीना चाहते हैं । निस्वार्थ सेवा परोपकार की भावनाएं तिरोहित हो रही हैं। बड़ों का आदर मान सम्मान सब कुछ बदलता जा रहा है। देखा जाता है अगर कोई परिवार का व्यक्ति बहुत अधिक ऊंचे पद पर या अधिक धनवान हो जाता है तब तो लोग उससे संबंध रखते हैं और मिलना जुलना बनाए रखकर अपना काम निकालते हैं और यदि इसके विपरीत कोई अधिक गरीब है तो फिर लोग उससे मिलना तो दूर, रक्त संबंध बताने तक से कन्नी काटने लगते हैं। संबंध विच्छेद कर लेते हैं, भाई-भाई नहीं रहता। माता-पिता भी मन मिलने के कारण अपनों की नजरों से वृद्ध आश्रमों में शरण को विवश हो रहे हैं। वास्तव में यह सब बेहद दुखद स्थितियां हैं ।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " अपने तो अपने होते हैं। सिर्फ अपनापन साथ होना चाहिए। बाकि तो जिंदगी चलती रहती है। परन्तु अपनों का संसार, एक दम अलग होता है। जो जीवन को स्वर्ग जैसा बना सकता है। सब कुछ अपनों से है।
- बीजेन्द्र जैमिनी
(संचालन व संपादन)
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