हरिवंश राय बच्चन स्मृति सम्मान -2025

      जीत का कोई पैमाना नहीं होता है। जीत तो जीत होती है। मन से जीत का आनंद ही बहुत बड़ा होता है। फिर भी जीत के लिए कर्म बहुत महत्व रखता है। यही कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का प्रमुख विषय है अब आयें विचारों में से कुछ को पेश करते हैं :-
     यह बात ठीक है अगर व्यक्ति बहुत अधिक मानसिक और शारीरिक रूप से परिश्रम करते हुए सदा अपने लक्ष्य के प्रति आशावादी रहता है तो जीवन के हर क्षेत्र में उसकी जीत निश्चित ही होती है। यहां यह भी कहा जा रहा है कि व्यक्ति यदि हारता है तो उसके पूर्व जन्म के दुष्कर्मों का अभिशापित परिणाम होता हैं। जिस प्रकार से हमारे अतीत के कर्मों से वर्तमान और वर्तमान के कर्मों से भविष्य प्रभावित होता है। इसी प्रकार यह माना जा सकता है की 84 लाख योनियों को हम अपने शुभ अशुभ कर्मों के कारण ही भोगते हैंऔर इसी प्रारब्ध के आधार पर हमारे जीवन की हार और जीत निश्चित होती है। अतः मनुष्य का जीवन सर्वश्रेष्ठ है। सदैव जीवन पर्यन्त समस्त प्राणियों और प्रकृति के प्रति शुभ ही सोचें और शुभ कर्म ही करें ।

- डाॅ.रेखा सक्सेना

मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश 

       मन के हारे, हार है मन के जीते जीत। यह कहावत बुजुर्ग लोग सदियों से कहते आये हैं। व्यक्ति विशेष का मनोबल यह  कहावत बढ़ाती आई है। वास्तव में असंभव शब्द नालायक लोगों की डिक्शनरी में होता है। जिनमें कुछ कर गुजरने का जज्बा होता है। उनके शब्दकोश में संभव शब्द ही होता है। वास्तव में दुनियां का कोई ऐसा काम नहीं है, जो किया नहीं जा सकता। केवल दृढ़ संकल्प, इच्छा शक्ति और अथक मेहनत जैसे तत्व उस जज्बे में सम्मिलित होने चाहिए। जो व्यक्ति इस इच्छा शक्ति से योजना के अनुसार किसी भी काम को क्रियान्वित करने के लिए उतरता है। उसका जीतना निश्चित होता है। लेकिन किसी कार्य में असफल हो जाना और यह मान लेना कि यह पूर्व जन्मों का कोई हमारा कर्म होगा। जिस कारण असफलता हाथ लगी, यह सोच भी निराधार और निरर्थक होती है। ऐसा मानने वाले लोग भी उसी श्रेणी से संबंधित होते हैं, जो कुछ करने से पहले ही हथियार डाल देते हैं। या असफल होने पर हार मान लेते हैं। मैं तो मानता हूं की हर सफलता की सीढ़ी के पीछे असफलता होती है। जिस व्यक्ति ने असफलता नहीं देखी शायद ही वह सफलताओं की सर्वोच्च मंजिल तक पहुंच पाता हो। इसलिए आपकी सोच यानी इच्छा शक्ति और अथक मेहनत ही आपकी सफलता सुनिश्चित करते हैं। यदि हार भी जाएं तो उस हार को सफलता की सीढ़ी बनाया जा सकता है और मंजिल आसानी से पाई जा सकती है । मैं नहीं मानता कि ऐसे लोगों के शब्दकोश में हार शब्द होता है।

- डॉ. रवीन्द्र कुमार   ठाकुर

बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश

     यह वाक्य मानव जीवन के दो गहरे आयामों—स्व-बल और कर्मफल—को एक साथ जोड़ता है। खुद से हारना यानी अपने साहस, इच्छाशक्ति, लक्ष्य और धैर्य से समझौता कर लेना।परिस्थितियाँ कठिन हों, संसाधन सीमित हों—फिर भी जो व्यक्ति अपने मनोबल को अक्षुण्ण रखता है, वह वास्तव में हारता नहीं। बाहरी पराजय क्षणिक होती है, लेकिन आंतरिक पराजय व्यक्ति को भीतर से तोड़ देती है।यदि हम अपने आदर्शों, अनुशासन और संकल्प को नहीं छोड़ते, तो देर-सबेर सफलता हमारे पक्ष में आती है। हम जब निरंतर प्रयास करते हैं, हर विफलता से सीखते हैं और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहते हैं, तो परिस्थितियाँ स्वयं अनुकूल होने लगती हैं। प्रकृति उन लोगों का साथ देती है जिनमें अविराम कर्म की ऊर्जा होती है। आत्मविश्वास सफलता का बीज है, और लगातार कर्म उसका जल। इसलिए खुद से न हारना—जीत का आधा मार्ग पार कर लेना है। भारतीय दर्शन कहता है कि हर परिणाम—चाहे सुख हो या दुख—वर्तमान कर्म + पूर्व कर्मों का संयुक्त फल होता है।कभी-कभी हम पूरी मेहनत करते हैं, फिर भी परिणाम वैसा नहीं मिलता जैसा चाहा था। यह वह समय है जब कर्मफल सिद्धांत हमारे सामने आता है। पूर्व जन्म या पूर्व के किए हुए कर्म कभी-कभी हमारी प्रगति में बाधा या परीक्षा के रूप में उपस्थित होते हैं। यह समझ हमें निराश नहीं करती, बल्कि धैर्य का पाठ पढ़ाती है। कर्मफल का सिद्धांत हमें यह सिखाता है कि—हर प्रयास व्यर्थ नहीं जाता, हर कर्म का फल निश्चित है, हर बाधा अस्थायी है और उचित समय आने पर सफलता अवश्य मिलती है। कर्म करना हमारे हाथ में है, फल का समय तय करना ईश्वर/प्रकृति के हाथ में। खुद से न हारना ही सच्ची विजय का मार्ग है।और यदि कभी हार हो भी जाए, तो उसे भाग्य की विफलता नहीं—पूर्व कर्मों की परीक्षा समझकर आगे बढ़ना चाहिए। ऐसी सोच इंसान को विनम्र भी बनाती है,मजबूत भी बनाती है और निरंतर कर्मशील भी।

 - डाॅ.छाया शर्मा

 अजमेर -राजस्थान

      मेरी राय के अनुसार, मेरा मानना यह है कि मनुष्यों की सबसे बड़ी शक्ति उनका मनोबल एवं उनकी आंतरिक दृढ़ता और स्वयं पर विश्वास होती है। उक्त सकारात्मक शक्ति कहती है कि यदि मानव स्वयं के भीतर हार मानने से इन्कार कर दें, तो संसार की कोई भी विपत्ति, बाधा या विरोध हमारी विजयश्री को रोक नहीं सकती है। इतिहास साक्षी है कि जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी अपने मन को पराजित नहीं होने दिया, वही अन्ततः विजयी हुए हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि यदि जीवन-पथ पर कभी हार का अनुभव हो भी जाए, तो वह पराजय भी सदैव नहीं होती बल्कि हमारे पूर्व कर्मों का परिणाम होती है जिसे ऐसी क्षणिक परीक्षा मानें, जो हमें और अधिक सशक्त, परिपक्व तथा सजग बनाने के लिए आती है।हार का अर्थ केवल इतना है कि हमें अपने प्रयासों, दृष्टिकोण और संकल्प को और दृढ़ बनाना है। अतः सत्यता यह है कि मन की हार ही वास्तविक पराजय नहीं है बल्कि मन की जीत ही वास्तविक विजय होती है। इसलिए जो अपने संकल्प को अडिग रखता है, वह परिस्थिति चाहे जितनी प्रतिकूल क्यों न हो, अंततः जीत को अपने सम्मुख खड़ा देखता है। विजय केवल भाग्य का प्रसाद नहीं है क्योंकि विजय उस व्यक्ति का अधिकार है जिसने स्वयं को हराने से मना कर दिया हो। अतः जिस दिन हम अपने भीतर के भय, निराशा और संदेह पर विजय पा लेते हैं, उसी क्षण से हमारी सफलता निश्चित हो जाती है। यही आत्मबल, साहस और मनोविजय राष्ट्र के निर्माण और न्याय की स्थापना का आधार है और यही आधार राष्ट्रीय सॅंरक्षक का चेतना बिन्दु है। 

 - डॉ. इंदु भूषण बाली 

ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर

      कहा जाता है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत. यह सच भी है, मन मजबूत होता है तो जीतने की प्रेरणा मिलती है और प्रोत्साहन भी! प्रेरणा और प्रोत्साहन के साथ साहस खुद ही चला आता है. जहाँ प्रेरणा, प्रोत्साहन और साहस का संगम हो, वहाँ हार का क्या काम! अगर खुद से नहीं हारे हैं तो जीत निश्चित है. अगर हारें तो निश्चित ही पूर्व कर्मों का परिणाम होता है. पूर्व कर्मों का दुष्परिणाम से न तो प्रेरणा, प्रोत्साहन और साहस का संगम हो पाएगा, न ही जीत हो पाएगी. वैसे भी असफलता को सफलता की सीढ़ी माना जाता है. अक्सर बड़े-बड़े सफल लोगों की सफलता से पहले अनेक बार असफलता आती देखी गई है. इसलिए जीत निश्चित करनी है तो खुद से नहीं हारना भी निश्चित करना होगा.  

- लीला तिवानी 

सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया

     कहा गया है - मन के सारे हार है,मन के जीते जीत। सच जब मन हार जाता है,हम हार जाते हैं तब ही हार होती है। यदि खुद न हारें,मन न हारें निरंतर बार बार प्रयास करें तो जीत सुनिश्चित होती है। दीवार पर चढ़ने वाली चींटी का उदाहरण सब जानते हैं।लेकिन कभी कभी सबकुछ सही होने, हिम्मत होने और खुद के नहीं हारने,मन से लड़ने के बाद भी हार मिले तो इसे अपने पूर्व कर्मों का परिणाम ही कह सकते हैं।जब भीष्म पितामह को महाभारत युद्ध में शर शैय्या पर रहना पड़ा और उन्होंने इस कष्ट का कारण जानना चाहा तो एक गिरगिट को झाड़ियों में कांटों पर डालने के पूर्व कर्मों का यह परिणाम है, बताया गया था। हमरे अथक श्रम के साथ पूर्व कर्मों का फल भी सहायक होता है।

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'

धामपुर - उत्तर प्रदेश 

     अगर खुद से नहीं हारे तो जीत निश्चित है, हारे तो पूर्व कर्मों का परिणाम है.... यह कही गई उक्ति हमारे जीवन के महान सत्य को बताती है। हमारे जीवन में अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियां आती रहती हैं...प्रतिकूल  परिस्थितियों का सामना हमें अपने-आप को, अपने मन को  दृढ़ रख निडरता,और धैर्य के साथ करना चाहिए, जीत अवश्य मिलेगी...वह कहते हैं ना... "मन के हारे हार है, मन के जीते जीत"।  वास्तव में हार और जीत दोनों सापेक्ष शब्द हैं। हार जीत तो होती रहती है किंतु जो मन से सशक्त होता है, जिसे खुद पर विश्वास होता है, वह हारकर भी निश्चिंत हो नहीं बैठता, वह सतत प्रयास करते रहता है और अपनी हार को जीत में बदल देता है। वही हार उसकी प्रेरणा श्रोत बन जाती है...किंतु फिर भी यदि हार जाता है तो यह उसके पूर्व कर्मों का परिणाम है... व्यवहारिक जीवन में हम कहते हैं ना कि "जैसा बोओगे वैसा काटोगे" ... यह कहावत एकदम खरी उतरती है। जैसा कर्म करेंगे फल भी तो वैसा ही मिलेगा। किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अगर हम गलत मार्ग अपनाते हैं जिसमें हमारा विवेक काम नहीं कर रहा तो हार तो होनी ही है। यह हार  हमारे बुरे कर्म का ही परिणाम है।

- चंद्रिका व्यास 

 मुंबई - महाराष्ट्र 

       जीवन प्रसंग एक सुहावना रहता है। उतार-चढ़ाव जब तक न आयें, जीवन जीनें में मजा नहीं आता है। जिस तरह से ऋतुएं परिवर्तित होती है, उसी प्रकार दुख-सुख की सहभागिता भी जरुरी है। अगर खुद से नहीं हारें तो जीत निश्चित है, हारें तो पूर्व कर्मों का परिणाम होता है। यह सच है जीवन के खेल में हम सोचते है किसी के सामने झुकना न पड़े, किन्तु परिस्थितियां समय आने पर सब करवा देती, कभी-कभी हार भी स्वीकार करनी पड़ती, जिससे हम सोचने बैठ जाते है, हम पूर्व कर्मों के आधार पर हारे, लेकिन यह सोचते हुए, जिना सीखे तो जीवन जिय भी नहीं सकते। हार के उपरान्त ही स्थिति स्थिर होती है और हम अपनी क्षमता को मजबूत बनाकर हमारी जीत निश्चित होती है.....

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

      बालाघाट - मध्यप्रदेश

       कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं होता , एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो। दुष्यंत कुमार की लिखी यह दो  पंक्तियां जीवन की सफलता का जज़्बा समझा देती हैं। अर्थात कोई कार्य कठिन अथवा असंभव नहीं हैं बशर्ते उसके लिए हमारे  मन में सच्ची लगन होनी चाहिए। किसी ने सच कहा है, मन के हारे  हार है, मन के जीते जीत। यदि हमने जीतने का निर्णय ले ही लिया है तो दुनिया की कोई शक्ति हमें हरा नहीं सकती। क्योंकि निर्णय से ही हमारी इच्छा शक्ति बनती है। यही इच्छा शक्ति हमारे  मन-मस्तिष्क व तन को हमारी मंज़िल, हमारे गतव्य की ओर, सफलता की ओर ले जाती है। मंजिल कितनी  ही पास क्यों न हो, रास्ते कितने  ही सुगम क्यों न हो यदि मन दुर्बल है, इच्छा शक्ति दुर्बल है तो सारे रास्ते, सारे  कार्य अत्यंत कठिन लगने लगते हैं और प्रयास करने से पहले ही हम हार मान जाते हैं फिर दुनिया की कोई शक्ति हमें सफलता नहीं दे सकती। हम हारेंगे, असफल होंगे और उसका सारा दोष आस-पास के लोगों, परिस्थितियों, अपने कर्मों व  ईश्वर को दे कर हाथ  झाड लेंगे।शायद अपने गिरेबान में झांकने, अपनी कमजोरी व ताकत को पहचानने का प्रयल ही नहीं करेंगे क्योंकि हमने अपनी हार को खुली बांहों से स्वीकार कर लिया है।समझने की बात यह है कि हमारे प्रयास हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों को भी बदल सकते हैं।

 - रेनू चौहान 

नई दिल्ली

    जीवन में सफलता की प्रथम सीढ़ी परिश्रम तो है और इसके लिए दृढ़ संकल्प एवं आत्मविश्वास से परिपूर्ण होना भी आवश्यक है। क्योंकि परिश्रम के करते अन्य बाधाएं और रुकावटें भी आती ही हैं। उपहास भी झेलना पड़ता है। असफल भी होते हैं। जोखिम भी उठाने पड़ते हैं। ऐसी स्थिति और मन:स्थिति में यदि न विचलित नहीं हुए, न निराश, न हताश और धैर्यपूर्वक संघर्ष किया यानी खुद से नहीं हारे तो  जीत निश्चित ही होती है।जीवन में कठिनाईयां, परीक्षा की घड़ी  होतीं हैं, इनमें अडिग रहते हुए डटकर सामना करना हमारा कर्म है परंतु परिणाम  के पीछे हमारे पूर्व कर्मों का भी योग होता है। अत: आत्मविश्वास के साथ हमें अपने उद्देश्य में रत रहना चाहिए। परिणाम  ईश्वर की इच्छा पर छोड़ देना चाहिए। 

 - नरेन्द्र श्रीवास्तव

गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

       अगर ख़ुद से नहीं हारे तो जीत निश्चित है ! हम कहते मन के हारे हार है मन के जीते जीत इसका मतलब जब इंसान का आत्म विश्वास टूटता है ! तब हताश हो उस काम को छोड़ता नही ,बल्कि दुगने उत्साह से आत्मविश्लेषण कर आगे बढ़ने सक्षम हो जीत सुनिश्चित करता है ! प्रेरणा गहन विचार सत्यता के साथ स्थाई बने अपने आप हारने नहीं देते हैं, तो हमारा आत्मविश्वास होता है निश्चित रूप से हम जीत जाएंगे। निरंतर प्रयास और मेहनत से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। जब हम अपनी नाकामियों से निरंतर हारते है ! दोष दूसरो को देने में लग जाते हैं जिसका मूल्यांकन इंसान ख़ुद करता हैं अंततः जब सच्चाई का सामना होता हैं छुटकारा पाने हम कहते है ये हमारे पूर्व जन्म का परिणाम है जीवन का सच्चा अर्थ आत्म-विकास और आत्म-विश्वास में है।जिसे सीखना और आगे बढ़ना जीवन का महत्वपूर्ण पहलू है।हम अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। हारे तो पूर्व कर्मों परिणाम होता है ऐसा बिल्कुल नहीं ! माँ की बात याद आती है ! जवानी की ओर अग्रसर हो रहे मेरी इस बात को ज़रूर याद रखना अच्छा करोगे तो अपने लिए बुरा करोगे तो भी अपने लिए तुम सभी को अपने अपने जीवन जीने की पूर्ण आजादी है आत्मनिर्भर बन जाओगे कभी रोकूँगी टोकूँगी नहीं ! कामयाबी का सेहरा तुम्हारा ख़ुद का आत्मविश्वास होगा ! ये चार लाइन अपने बच्चों भी बताना ! पहल करना ना करना आपको मर्ज़ी ? 

- अनिता शरद झा

रायपुर - छत्तीसगढ़ 

।     मन के हारे हार है  मन के जीते जीत, कहे कबीर हरी पाईये मन की ही परतीत, इस दोहे से यही ज्ञान  मिलता है कि खुद के हारने से हार निश्चित है और अपने मन  में अगर कुछ पाने का संकल्प दृढ है तो कोई हमें हरा नहीं सकता यहां तक की  मन में इच्छा और प्रेम  से हम हरि को भी पा सकते हैं तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि  खुद से नहीं हारने से जीत पक्की है अगर हारें तो हमारे किए गए कर्मों का  परिणाम होता है, यह अटल सत्य है कि शक्ति,आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच के साथ हम जीवन की किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं इसलिए हमें कभी भी अपने मन  को हारने नहीं देना चाहिए, और हमेशा आशावादी रहना चाहिए तभी हम सच्चे अर्थों में जीत सकते हैं कहने का भाव हमारी जीत या हार  का कारण हमारे  मानसिक दृष्टिकोण  से होता है,हमें चुनौतियों का सामना करना आना चाहिए और अपने लक्ष्य को ध्यान में रख कर हर कार्य को करना चाहिए क्योंकि सफलता व्यक्ति के दृढ़ प्रयास और मनोबल पर निर्भर करती है कहने का मतलब मन की इच्छा शक्ति ही हमें कार्य करने के लिए प्रेरित करती है,यहां तक हार का सबाल है कर्म सिदांत के अनुसार हार हमारे पूर्व जन्मों के अधूरे या बुरे कर्मों का परिणाम भी हो सकता है कहने का भाव हर विचार शब्द और कर्म एक संस्कार या छाप छोड जाता है और हमारे भविष्य का आकार देता है, अन्त में  यही कहुंगा की कर्म सिदांत के अनुसार हमारे भाग्य को निधार्रित करते हैं और वर्तमान  में किए गए कर्मों से हमारे भविष्य को सुधारा जा सकता है इसलिए हम जो कुछ भी करते हैं उसमें विकल्प हमेशा उपलब्ध होता है जो हमारी उम्मीद और सौभाग्य को बनाता है इसलिए हमें कभी भी हार न मानते हुए अपने कर्मों को सही दिशा में करना चाहिए ताकि हमारी जीत निश्चित रहे।

- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

जम्मू, - जम्मू व कश्मीर 

          इस एक पंक्ति के भीतर ज़िंदगी का लगभग पूरा दर्शन छुपा है। अक्सर लोग जीत‐हार को बाहरी दुनिया से जोड़कर देखते हैं लेकिन असली बात तो यह है कि इंसान सबसे ज्यादा अपने ही ख़यालों, अपने डर, अपनी झिझक से हारता है। बाहर की दुनिया तो बाद में आती है, पहले लड़ाई भीतर की होती है।हम कभी सोचते नहीं, पर जीवन में जितनी भी बड़ी जीतें मिली हैं, वे तब मिलीं जब हमने अपने मन की हार मानने से इनकार कर दिया। जब हम थक कर बैठने वाले थे, पर किसी अंदर की आवाज़ ने कहा-“बस एक बार और कोशिश कर।” यही पल असली मोड़ होते हैं। जो इंसान खुद से नहीं हारता, उसकी जीत को कोई नहीं रोक सकता। रास्ता लंबा हो सकता है, पड़ाव मुश्किल हो सकते हैं, मगर मंज़िल आखिर पकड़ में आ ही जाती है। और अगर कभी हार मिल भी जाता है तो इसका मतलब यह नहीं कि हमारी कोशिश बेकार थी। कई बार यह सिर्फ हमारे पूर्व कर्मों का परिणाम होता है। कुछ चीज़ें हमारी पकड़ से बाहर होती हैं, कुछ फैसलों की छाया आगे तक चलती है। असल में, जीत और हार दोनों ज़िंदगी की भाषा हैं। जीत कहती है-“तुम सही राह पर थे।”हार कहती है-“थोड़ा और गहराई से समझो।”पर दोनों का संदेश एक ही है,खुद से मत हारो।क्योंकि जो खुद से नहीं हारता, उसे जीवन कभी खाली हाथ नहीं लौटाता।  

  - सीमा रानी    

   पटना - बिहार 

        अगर इंसान मन में ठान ले कि उसने जीतना है , व उसके लिए वह यथासंभव प्रयास करें, तौ जीत निश्चित होती है ! ये अलग बात है कि जीत के लिए समय लग सकता है , व कई बार हारना भी पड़ता है , पर जीत निश्चित होती है ! हार यदि पूर्व जन्म का फल भी है तौ इंसान उस हार को जीत मैं परिवर्तित कर सकता है , सतत प्रयास वो घोर परिश्रम से ! पूर्व जन्म का फल मानकर इंसान को बैठना नहीं चाहिए अपितु उठकर नए सिरे से प्रयास करने चाहिए , जीत निश्चित होगी ! मेरा अनुभव कहता है कि अपने लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए , इंसान को मेहनत करते रहना चाहिए, जीत निश्चित है !! मन के हारे हार है , मन के जीते , जीत !! 

- नंदिता बाली 

सोलन - हिमाचल प्रदेश

       हौसला, उम्मीद और प्रयास विजय के तीन हीं तो तत्व हैं जो किसी भी असम्भव जीत को विजय में परिवर्तित करते है l यही वे तत्व हैं जो तूफानों, में झंझओ में, किसी भी आपदा में मनुष्य के अंतस में यदि मजबूती के साथ उभरे रहे तो किसी भी असम्भव  को सम्भव में बदलने की ताकत रखते है l   लेकिन इन तत्वों से भी चार कदम आगे एक और तत्व है जिसे ब्रह्माण्ड संचालित करता है वह है समय l यही वह तत्व है जो पूर्व जन्म के कर्म फल को सामने ला कर खड़ा कर देता है तब  जीत के तीनों तत्वो के होते हुए भी जीत हार में परिवर्तित हों जाती है l यही नियति है l यही ब्रह्माण्ड की पूर्व सुनियोजित योजना का फल जो पात्र को स्वीकार करना हीं पड़ता है l

- सुशीला जोशी, विद्योत्तमा 

मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश 

" मेरी दृष्टि में " जीत के लिए निरंतर कर्म बहुत ही आवश्यक होता है। अगर हार होती है। यह पूर्व कर्मों का परिणाम है।‌ जिससे बचना असम्भव रहता है या कर्म अधूरा रहता है। जो हार को जीतने में कामयाब नहीं हो पाता है। बाकि तो सब कुछ कर्म पर आधारित है। कर्म से बाहर कोई नहीं है।‌

              - बीजेन्द्र जैमिनी 

           (संचालन व संपादन)

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