रेणु गुप्ता से साक्षात्कार

जन्मतिथि : 20 मार्च 1961
पति : श्री प्रदीप गुप्ता (रिटायर्ड सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर)
शैक्षणिक योग्यता : बी.एससी., एम.ए.(अंग्रेजी), सी.लिब., बी.एड.
लेखन विधा : लेख,  लघुकथा, कहानी, व्यंग्य, ब्लॉग
संप्रति : जयपुर के प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल में 17 वर्षों के कार्यकाल  के उपरांत प्रधानाध्यापिका  के पद से सेवानिवृत।

लेखन विधा : -
लेख,  लघुकथा, कहानी, व्यंग्य, ब्लॉग

विशेष -
- अनेक  पत्र पत्रिकाओं तथा प्रतिष्ठित समाचारपत्रों
में लघुकथाओं, कहानियों तथा लेखों का निरंतर प्रकाशन।
- प्रतिलिपि, स्टोरी मिरर, मातृभारती पर लघुकथाएँ एवं कहानियां प्रकाशित।
dusbus.com पर 120 से अधिक लेखों एवं कहानियों का  प्रकाशन।
- कुछ लघुकथा संकलनों यथा समय की दस्तक, बाल मन की लघुकथाएँ, स्वरांजली में कुछ लघुकथाएँ प्रकाशित।
-  कई वार्ताएं आकाशवाणी, गुवाहाटी से प्रसारित
- संगीत सुनना एवं लेखन

पता : जी-2, प्लाट नंबर - 61, रघु विहार, महारानी फार्म, दुर्गापुरा, जयपुर - राजस्थान

प्रश्न न.1 लघुकथा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है?

उत्तर - जितना मैं लघुकथा के विषय में समझ पाई हूं, लघुकथा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व है,लघुता के माध्यम से व्यापकता की ऐसी अभिव्यक्ति, जो अपनी लघुता में सिमटी संदर्भगत संवेदना की गहनता के दम पर मन के तारों को छू सके और उसे चिंतन के लिए झकझोर सके।


प्रश्न न.2 समकालीन लघुकथा साहित्य में कोई पांच नाम बताएं जिनकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है।

उत्तर - सम्मानीय बलराम अग्रवाल जी, सम्मानीय योगराज प्रभाकर जी, सम्मानीय सतीश राज पुष्करणा जी, सम्मानीय बीजेंद्र जैमिनी जी एवं सम्मानीया कांता राय जी ने साहित्य की इस विधा को समृद्ध करने में अपना अमूल्य योगदान दिया है। इस संदर्भ में मैं आदरणीया  कांता रॉयजी का नाम लेना चाहूंगी, जिन के सानिध्य में मैंने लघुकथा लेखन की राह पर पहला कदम रखा, और उनके मार्ग निर्देशन में सतत आगे बढ़ती गई। कांताजी लघुकथा के क्षेत्र में एक मूर्धन्य साहित्यसेवी हैं, जो इस विधा को समृद्ध करने की दिशा में तन मन धन से अपना बेशकीमती नि:स्वार्थ योगदान दे रही हैं।


प्रश्न न.3 लघुकथा की समीक्षा के कौन-कौन से मापदंड होने चाहिए?

उत्तर - मेरे मत से एक सार्थक लघुकथा वही है जिसके माध्यम से कहा जाने वाला कथ्य कथानक के अनुकूल हो। 

इसके अतिरिक्त समीक्षक द्वारा यह देखा जाना चाहिए कि पंच लाइन से निकला कथ्य स्पष्ट है या नहीं, और यह पाठकों के मन की माटी में चिंतन के बीज बो रहा है या नहीं। उन्हें सोचने के लिए झकझोर रहा है या नहीं। 

इसके साथ ही लघुकथा यथार्थ का परिचायक हो। इसकी पृष्ठभूमि में कोई अपवाद ना हो। समीक्षक को इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि लघुकथा एक इकहरे भाव को लेकर रची गई हो और न्यूनतम शब्दों में कोई गंभीर और गहरी बात कही गई हो। 


प्रश्न न.4 लघुकथा साहित्य में सोशल मीडिया के कौन कौन से प्लेटफार्म बहुत ही महत्वपूर्ण हैं?

उत्तर - विभिन्न ईपत्रिकाएँ, साहित्यिक पोर्टल, फेसबुक एवं व्हाट्सऐप , ब्लॉग


प्रश्न न.5 आज के साहित्यिक परिवेश में लघुकथा की क्या स्थिति है?

उत्तर - आज के साहित्यिक परिवेश में यदि कहा जाए कि लघुकथा सम्मानजनक स्थिति में है, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी । आज की व्यस्त आपाधापी भरी जिंदगी में व्यस्त से व्यस्त व्यक्ति लघुकथाओं को अखबारों, पत्रिकाओं, ईपत्रिकाओं, फेसबुक, व्हाट्साऐप समूहों  में उनके छोटे आकार के कारण पढ़ लेता है, जबकि आज उसके पास कहानी, उपन्यास आदि को पढ़ने का समय ही नहीं होता। अतः वक्त के साथ इसकी लोकप्रियता का ग्राफ़ निरंतर बढ़ता जा रहा है।


प्रश्न न.6 लघुकथा की वर्तमान स्थिति से क्या आप संतुष्ट हैं?

उत्तर - आज आवश्यकता इस बात की है कि लघुकथाकार जिंदगी के अनछुए पहलुओं और सर्वकालिक विषयों पर भी अपनी लेखनी चलाएं, और ऐसी लघुकथा रचें जिनका कथानक अभिनव हो। यदि ऐसा हो, तभी अधिक से अधिक पाठक अपने रुझान के अनुरूप लघुकथाएं पढ़ने में अपना समय देंगे।


प्रश्न न.7 आप किस प्रकार की पृष्ठभूमि से आई हैं? बताएं किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाए हैं?

उत्तर - मैं एक ऐसे मध्यमवर्गीय परिवार मैं पली-बढ़ी हूं, जहां बच्चों के मानसिक विकास के लिए पुस्तकों को बहुत अहम माना जाता था। मेरे माता-पिता दोनों ने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि हम शुरुआती बचपन से स्तरीय साहित्य पढ़ें। मुझे याद नहीं, मेरे पिता कभी कोई हल्की पुस्तकें घर में लाए हों। मेरी किशोरावस्था और बचपन  शिवानी, प्रेमचंद, अमृता प्रीतम, भगवती चरण वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, आचार्य चतुरसेन, रबींद्र नाथ टैगोर, शरत चंद्र आदि  की रचनाओं  को पढ़ते बीता।


प्रश्न न.8 आपके लेखन में आपके परिवार की क्या भूमिका है?

उत्तर - मेरे लेखन में मेरे परिवार की महत  भूमिका रही है। विवाह से पूर्व माता-पिता ने लेखन के लिए भरपूर प्रोत्साहन दिया। मेरी मां मुझे लिखने पढ़ने में व्यस्त देखकर कभी कोई घरेलू काम नहीं बताती थीं। विवाह के बाद पति ने कभी लेखन की राह में किसी भी तरह की कोई बंदिश नहीं लगाई। उनके बेशर्त प्रोत्साहन और सहयोग की वजह से ही अब रिटायरमेंट के पश्चात मैं दिन भर में 5 से 8 घंटे रोज़ाना लेखन को दे पाती हूं। मेरी दो बेटियां भी मुझे लिखने के लिए सतत प्रेरित करती हैं। मेरे भाई बहन भी मेरी हर रचना को पढ़ते हैं, और उस पर चर्चा करते हैं ।


प्रश्न न.9 आपकी आजीविका में आपके लेखन की क्या स्थिति है?

 उत्तर - मात्र साहित्य सेवा ही मेरा उद्देश्य है।


प्रश्न न.10 आपकी दृष्टि में लघुकथा का भविष्य कैसा होगा?

 उत्तर - मेरी दृष्टि में लघुकथा का भविष्य बेहद उज्जवल है, क्योंकि आज की भागमभाग भरी जिंदगी में जब सोशल मीडिया के विभिन्न पक्षों जैसे टीवी, व्हाट्सऐप, फेसबुक, टि्वटर आदि ने लोगों के समय के एक बड़े हिस्से पर अपना कब्जा कर रखा है, लोगों का साहित्य पढ़ने का समय कम से कम होता जा रहा है। लेकिन वह फिर भी पत्र पत्रिकाएँ, फ़ेससबुक अथवा व्हाट्सऐप समूहों में लघुकथाएं पढ़ लेते हैं। इस तरह लघुकथा की पाठक संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है, जो इसके आशाजनक भविष्य का शुभ संकेत देती है। 


प्रश्न न.11 लघुकथा साहित्य से आपको क्या प्राप्त हुआ है?

उत्तर - लघुकथा साहित्य रचना से मुझे निरंतर नियमित रूप से लेखन कर पाने की खुशी और आत्मिक संतुष्टि हासिल हुई है।

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