सुबह की बरसात पर कवि सम्मेलन

       आज सुबह पांच बजे से बरसात हो रही है। सैक्टर - 6 की  पुलिस चौकी तक पहुंचा ही था । छोटी - छोटी मामूली सी बुदा - बंदी शुरू हो गई । अतः ताऊ देवी लाल पार्क जाना रद्द कर दिया । और पुलिस चौकी रोड पर चक्कर लगाने लगा । एक चक्कर के बार दूसरे चक्कर पर महसूस हुआ कि बरसात कभी भी तेज हो सकती है । तुरंत फैसला लिया कि घर वापिस चला जाए । और वापिस घर की ओर चल दिया । घर कुछ कदम दूर ही था । बरसात तेज शुरू हो गई । भाग कर कर , घर का दरवाजा खोल कर अन्दर घुस गया । 
      अतः मन में आया कि " सुबह की बरसात " पर ऑनलाइन कवि सम्मेलन रखा जाए । और जैमिनी अकादमी द्वारा एपिसोड - 28 वाँ कवि सम्मेलन ब्लॉग के माध्यम से फेसबुक पर रखा गया । समय भी बार घण्टे का तय किया गया ।
विधिवत रूप से ऑनलाइन कवि सम्मेलन शुरू हुआ । जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के कवियों ने भाग लिया । विषय अनुकूल रचनाओं को सम्मानित करने का फैसला लिया है । जो इस प्रकार है : -
 सुबह की बरसात 
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आसमान में उड़ने बादलों के झुंड
इतरा इतरा कर इधर-उधर भागते 

खिड़की से दिखाई देती अलगनी पर लटकी बूँदे
और उनमें दिखाई देते सात  रंग सुंदर लगते 

पत्तों पर गिरती बूंदें  संगीत सुना रही थी
मेरा ध्यान बरबस अपनी ओर खींच रही थी  

हृदय में रोमांच सा भर गया  था 
हरियाली देखकर आँखो को सुकून  मिल रहा था

किन्त सुबह का अखबार पढ़ कर देखा तो लगा
सुबह की बरसात आई तो है लेकिन लाई है अलग अलग रंग 

कही प्रकृति चल रही है नटी की सी  चाल
 कहीं बंदा  सुकून से लुत्फ़ उठा रहा, तो कहीं हुआ बेहाल

- अर्विना गहलोत
नोएडा - उत्तर प्रदेश
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बरसात सुबह की पावन है
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तन तापित हो जब भी मनु का, बरसात सुबह की पावन है। 
पिक कूक रही द्रम डाल बसे, ऋतु ये लगती मनभावन है।। 
चहुँ ओर बहार पयोधर की, बरसे जल धार सुहावन है। 
उड़ता मन मोर हवा बनके, मनभावन मौसम सावन है।। 

ध्वनि दादुर भूतल में सु करे, पिक गीत भले अब गावत है। 
चहके यह अंबर भू सबहीं, बरसात धरा पर आवत है।। 
नदियाँ जल धार खिले सहरा, घन आँचल भूमि सजावत है।
लगती धरती यह मोहक सी, इसका मधु रंग लुभावत है।। 

बरसात झमाझम हो जब ही, मन में रहता रस प्यार भरा। 
धरती चहके महके खुशबू, कण में बहता सुर नीर झरा।। 
नभ से घनघोर घटा बरसे, हर कोण हुआ इस भूमि हरा। 
हर बार यही बरसात कहे, इस मौसम में सब मोद करा।। 

अति श्याम मनोहर मेघ छटा, प्रभु से जग को वरदान मिले। 
गरजे बरसे जब भू पर ये, वसुधा स्थल जीवन दान मिले।। 
अनमोल हुई जल बूँद अभी, जल संचय का अब मान मिले। 
प्रभु ने यह एकसमान दिया, जल से सबको नित प्रान मिले।। 

- सतेन्द्र शर्मा ' तरंग '
देहरादून - उत्तराखंड
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सुबह की बरसात 
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रोज मौसम बेईमानी करता है,
मेघों को मेरे आसमान पर लाकर,
बरसने को प्रेरित करता है,
बदरा भी जमघट लेकर चले आते हैं,
उमड़ घुमड़ कर बिजली को संग लेते हैं,
फिर जल बन सूरज संग,
धरा पर बरस जाते हैं,
उनसे कौन कहे क्या हम चाहते हैं,
सुबह की चाय संग सूरज का,
हम भरपूर साथ चाहते हैं,
खेल पर हमारे पानी फिर जाता है,
मैदानों में तो जैसे तालाब बन जाता है,
कर्म पर असर होता है हमारे,
पर दूजा अरमान खिल जाते हैं,
सुबह की चाय का प्याला लिए,
हम खिड़की पर बैठ जाते हैं,
द्वंद मन का लिए तब,
अभी बादलों से कभी बूंदों से,
बातें किया करते हैं,
पानी में उठे बने बुलबुलों से,
जीवन को जोड़ने लगते हैं,
बुलबुलों की कहानियों में,
न जाने कितनी ही बार,
खुद को डालने लगते हैं,
सुबह की बरसात में तब,
हम खुद को भूलने लगते हैं।

- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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मारें हैं खूब मस्ती 
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वाह जी क्या बात ,
 सुबह की बरसात ।
   किसी को छुट्टी या ,
     दुःख सुख सौगात ।

कामचोर आलसी ,
  छात्र हो प्रशिक्षकु ।
    चादर तान सोते हैं ,
      मारें हैं खूब मस्ती ।

कमा कर  जो खाते ,
  सोच में  पड़  जाते ।
    थम बादल भगवान ,
      यही है बड़ा बरदान ।

कमा कर  पैदा हुए ,
  दिन बना सुहावना ।
   लॉन्ग  ड्राइव जाना ,
     बाहर  ही  है खाना ।

जीवन तो  संघर्ष है ,
  ऊंच नीच विमर्श है ।
    प्रकृति  भगवान  है ,
      तो क्यूँ असमान है ।

किसी  को राहत है ,
  किसी की आफत है।
    जन-जन की बात है ,
     सुबह की बरसात है ।।

     - डॉ.रवीन्द्र कुमार ठाकुर
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 
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हरा-भरा कर देती
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बरसात 
भोर से लेकर 
संध्या तक 
बारिश बरसती रही ....
भीगती भी रही 
धरा.....
भीतर की पर्तें
मगर भीग न सकी......
काश !
ढाई बूंद 
बरस कर उसके 
तन-मन को 
हरा-भरा 
कर देती......
   - बसन्ती पंवार 
   जोधपुर - राजस्थान 
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सुबह की बारिश
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रिमझिम - रिमझिम मनभावन सी
पड़ने लगी फुहार ।
धरती अंबर एक दिखे जब
हरियाली बलिहार ।।

मध्यम- मध्यम सूर्य लालिमा
जिसका ओर न छोर ।
काली घटा घुमड़ कर आई
पंछी करें न शोर ।।

सुबह की बारिश तन मन शीतल
चुस्की लेकर चाय ।
आपस में वे पूछ रहे पर 
माने कभी न राय ।।

कर्म रुक गए सभी जरूरी
थमी हुई रफ़्तार ।
जल ही जीवन चलो सहेजें
कल- कल का संसार ।।

- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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सुबह की बरसात
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सुबह की बरसात होती है बड़ी सुहानी
काले-काले बादल नभ में उमड़ते-घुमड़ते
बहता मंद-मंद सुंदर और शीतल समीर
छतरी लेकर निकल पड़े हम भ्रमण को
मन हो जाता है प्रफुल्लित और प्रसन्न।

रिमझिम -रिमझिम बरसता है जब पानी,
जी चाहता है आज करें हम फिर आमनमानी।
छमछम करती पायल बजाती बरखा रानी,
मजा आ जाये यदि मिल जाये दिलवर जानी।

सुबह की बरसात लाती है नींद प्यारी,
काम धाम छोड़ सोना चाहे दुनिया सारी।
कोई चैन से सोये प्रियतम की बाहों में,
कहीं बरसात को कोसे विरहन बेचारी।

आकाश में गरजे जब बादल घनन घनन,
बारिश की बूंदे पड़े जब छनन छनन।
आगोश में आओ प्रिये कहे मेरा मन,
सुबह की बारिश देती है तब अपनापन।

रात भर की अगन से मिल जाती है राहत,
रोज सुबह की बारिश हो है अपनी चाहत।
मन मचले करना चाहे जी भर शरारत,
"दीनेश" सुबह की बरसात मिटाये  हरारत।

- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
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सुबह की बरसात 
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सुबह की 
बरसात ने 
तन भिगोया 
संग मन भिगोया,
गरजते 
घनघोर बादल
और चमकती दामिनी भी 
टप टपाटप बूँदों में 
छिड़ती जब 
वर्षा की रागिनी भी 
उस समय 
हुलस कर 
किलकते भीगना 
ताली की ताल पर थिरकना 
बच्चों और पिया संग ,
बाद में गर्मागर्म पकौड़े और 
अदरक वाली कड़कती 
चाय का स्वाद!
बदल गए 
वो दिन सभी अब 
स्मृतियों में हैं जमा सब 
उस पार की दुनिया में हम
सुबह की बरसात में 
बस स्मृतियों में भीगते हैं।

- डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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सुबह की बरसात
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सुबह की बरसात
लाई है अनेकों सौगात

आसमान में घने बादल
उस पर हल्की सूर्य की लालिमा
लालिमा से निकलते सतरंगी
इंद्रधनुष की किरणें

मन में है उत्साह और उमंगे
की हो रही है बरसात
कभी खुशी कभी गम
भीग रहे हैं दिल के साथ

वृक्षों पर बैठी है चिड़िया
बंद है उनका चहचहाना,
 गाना
पंखों का सिर्फ फड़फड़ाना
भीगे तन से जल को हटाना
सड़के है सूनी-सूनी
ठेलो वाले ने ओढ़ी सतरंगी छाते
निकल पड़े हैं करने अपने धंधे

सुबह की बरसात
लाई है अनेकों सौगात

बंद रहेंगे शिक्षण संस्थान
घर में काम वाली नहीं आएगी
पर ऑफिस जाने वाली की होगी जल्दी

- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
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सुबह की पहली बारिश
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छम छम छम दहलीज पर आई सुबह की बारिश।
सुबह की पहली बारिश गूंज उठी जैसे शहनाई।।

धरती मां की आंचल लहराया सारी दुनिया चहक उठी।
बूदो कि सरगोशी तो सोंधी मिट्टी महक उठी।।

मस्ती बनकर दिल में छाई सुबह की पहली बारिश।
रौनक तुझसे बाजारों में चहल-पहल गलियों में।।

फूलों में मुस्कान है और तबस्सुम कलियों में
पेड़ -परिंदे गर्मी से बेहाल थे कल तक
सब के ऊपर मेहरबान हुए सुबह की पहली बारिश।।

बच्चे भी आंगन के पानी में नाव चला रहे हैं।
छत से पानी टपक रहे हैं फिर भी मुस्कुरा रहे हैं।।

छम छम छम सुबह  की बारिश है
किसान के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई।।

- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
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सुबह की बरसात 
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जब भोर में  घटा छायी
 चमकती चंचला संग बूंदों ने ली अंगड़ाई,शीतल चली पुरवाई 
मन में उमंग भरी 
मैंने भी अपनी लेखनी उठाई 
कुछ रंग भरे कागज़ पर और 
पकौड़ो संग ,चाय और  घड़घड़ाहट करते मेघों को  
उतार लायी  अपने आंगन में ..........
पावस की पहली बूंद झरे ,
भीगा भीगा मेरे मन सहला गई 
शीतल चले बयार, महके माटी 
बदरिया संग दामिनी की चमक 
श्यामल मेघ का संदेश सुना गई
कोयल कूके ,मयूरी नाचे ,
पपिहा बोले पीहू पीहू 
कितनी निराली छटा छा गई
बूंदों में पुलकित  सारी धरा 
सावन की बूंदे कागज़ की कश्ती 
फिर बचपन की याद दिला गई।
- बबिता कंसल
 दिल्ली
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मौसम गजब हुआ रे
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भोर की बेला
दिन अलबेला
भाग मेरा जग गया रे
मौसम गजब हुआ रे

बूंदों की रिमझिम
यादें हो झिलमिल
मन बेसबब हुआ रे
मौसम गजब हुआ रे....

बाग बगीचे 
मेघों ने सींचे
रहम दिल वह रब हुआ रे
मौसम गजब हुआ रे....

मन का यह दरिया
उठती लहरिया
कैसे यह कब हुआ रे
मौसम गजब हुआ रे....

हरियल धरती
नर्तन करती
पुलकित ये नभ हुआ रे
मौसम गजब हुआ रे....

सखियों की टोली
गप्पे की ठिठोली
भू पर स्वर्ग हुआ रे
मौसम गजब हुआ रे....

ओ मेघा कारे
मोर पुकारे
खुशियों का ढब हुआ रे
मौसम गजब हुआ रे....

पकौड़ों की थाली
चाय की प्याली
स्वाद नया जग गया रे
मौसम गजब हुआ रे....

- डा. अंजु लता सिंह 'प्रियम'
नई दिल्ली
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बरसात 
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रात की कालिमा
के बाद सुबह- सुबह
होती घनघोर बरसात। 
किरणें उगने को व्याकुल, 
काले मेघ बरसने को आतुर।
कभी गरजती 
कभी कड़कती 
झमझम  करती 
मेघ बरसती।
किसी को भाये,
किसी का दिल घबराये
कहीं ये बारिश,
जम ना जाये।
रूत सुहानी हो गई 
जितनी उमस गर्मी 
सब खो गई। 
चहुंओर
 पानी -पानी हो गई।
चाय का प्याला और
खिड़की से दिखता,
बाहर का नज़ारा ।
हरी -भरी धरती
झूमती वृक्ष की शाखाएं
बूंदें टपकती
मानों अमृत बरसती।
प्यासी धरती
मानों अपनी
प्यास बुझाए।
कितना सुन्दर मनोरम
दृश्य का अवलोकन 
मन चाहे ए बारिश 
तू यूं ही बरसे
ना जाने मेरा मन
कब से तरसे।
  लोग कहते बारिश नहीं
यह तो खेत- खलिहान 
में सोना बरसे।
बड़े दिनों के बाद हैआइ,
ए बारिश तू जम के
बरसना।
भीगा देना धरती का
कोना -कोना,
भीगा देना धरती का 
कोना- कोना।

- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार 
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       सुबह की बरसात 
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जब घड़ी में  बजे थे  सात ।
धडा धड़ पड गई बरसात ।।

बाथरुम तक जाना बन्द हुआ ।
सूरज का तेज भी मन्द हुआ ।।

कई दिन बाद ये अम्बर बरसा ।
बिना नीर हर जीव था तरसा ।।

खेत खलिआन पानी से रज गये ।
बादल भी अब बेरुखी तज गये ।।

पशु पक्षी भी मस्त हो के नाचें ।                 
पंडित भी नजर गडाये पत्ती बांचे।

नीर बहे ज्यूँ सारी सीमायें तोड 
पडी है ज्यूँ सागर मिलन की होड़ ।

मृदा की मदमस्त सुगंध  भा रही ।
सब तरफ मस्ती सी है छा  रही ।।

      - सुरेन्द्र मिन्हास   
       बिलासपुर - हिमाचल  
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सुबह की बरसात
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सुबह की बरसात..
अचानक काली घटा घिर आई..
काले काले मेघ घूमड़ते बादलों में..
ठंडी ठंडी मंद शीतल हवाएं..
मन में गीत गुनगुनाने लगते..
चलो  बरसात के पानी में भीगे..
छतरी ले निकल पड़े हम..
खूब भीगते बारिश में हम..
सामने कहीं दिख जाए ..
गरम गरम चाय का ठेला...
आनन्द बरसात का पानी..
 कुछ बचपन याद आने लगता..
कुछ पुराने जज्बात याद आते..
लौटकर वह समय आएगा नहीं..
आज बारिश का आनंद लें..
चलो आज ऑफिस की छुट्टी..
सुबह की बरसात और जीवन..
अत्यंत हर्षित करता है यह..
पुरानी यादों को लौटा देता..
आज मैं ही जीने को मन करता..
सुबह की बरसात खुशियों भरी..
ऊर्जावान बना देता हमको..
जीवन को रंगों से भर देता..
सुबह की बरसात खुशियों ..
का मेला सा लगता है..!!

- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
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जा रहा है छोड़कर सावन
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क्यों सुबह से रो रहा अम्बर
धरा हुई जलमग्न ।
अश्रु धारा तेज है  
वेग से यूँ बह रही 
क्या विदाई दे रहे है
जा रहा है सावन ॥
पेड़ पौधे है झुके
मन बहुत है पीड़ित
पुष्प भी झड़ कर गिरे 
अश्रुओं में बह रहे है । ।
क्यो आज सुबह - - - - -
वेदना का करूण पुकार
अम्बर बिजली बारम्बार
ये प्रकृति का रुदन
जा रहा है सावन
क्यों आज सुबह - - - 
जब तुम आये
अश्रु खुशी के
थे हमने छलकाये ।
तुम्हे देखकर ए सावन
मन ही मन हर्षाए । ।
हरियाली छायी धरती पर
प्रेम के झूले झूलाये
जा रहे हो हमे छोड़कर
अश्रु मेरे भर आये
क्यो आज सुबह से
रो रहा है अम्बर 
धरा हुई है जलमग्न
जा रहा है छोड़कर सावन ॥

- नीमा शर्मा ' हँसमुख '
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
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 सुबह की बरसात
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काले बादलों ने उमर-घुमर कर,
घनघोर घटाएं गरज-गरज कर।
बरसे मेघ झूम-झूम धरती पर,
खुशियां छाई हरियाली बनकर। 
 
सुबह की बारिश मन को भाए,
बोझिल मन आनंदित कर जाए। 
 उल्लासित करे फुहारे रिमझिम,
 नृत्य करते मोर मन को हर्षाये।
 
  सुबह प्रतीक बनी खुशी की,
  दुख मिटे सबके जीवन की।
   वरदान स्वरुप बरसात आई, 
 अंत सुहानी मन के तपिश की।

चहूंओर प्राकृतिक दृश्य सुहानी, 
पेड़-पौधे फसलें सब लगे सुहानी।
मुस्कुराए खुशी से  रंग-बिरंगे फूल,
इंद्रधनुष की छटा नभ में सुहानी।

   - सुनीता रानी राठौर
    ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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भोर की बरसात
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भोर हुई, नन्हीं बुंदियाँ पड़ी
सोंधी खुशबू लहराती चले l
तन-मन भीगे, माटी की गंध
छम छम बुंदियाँ, मन नर्तन करे ll

भोर का सूरज छिप गया
गर्जन तर्जन बदरा करते l
बिजुरिया चमक रही चम चम
आगोश में अपने बांधे रहे ll

प्रकृति मन गुलजार हुआ
चिहुँक उठा और गाने लगा l
एक एक बुँदिया तन पड़ती
है भीगी मधुर यादों में ll

प्रेम पगी मीठी बतियाँ
पंछी कलरव चहचाने लगा l
गायों की रुनझुन बजने लगी
यौवन का मद छलकाने लगा ll
   - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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सुबह की बरसात
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सुबह सवेरे उठी आज मैं, लेकर मन में आस।
दर्शन होंगे दिनकर के अब, पूरा था विश्वास।

रात चाँदनी से थी जगमग, हुई अभी है भोर।
उम्मीदों से भरे नयन से, देखा प्राची ओर।

घन ऐसे छाए थे नभ में, हुई लालिमा लुप्त।
ओट मेघ की लिए प्रभाकर, थे जैसे हो सुप्त।

गरज गरज कर घन ने जैसे, दे दी हो फटकार।
छुपे सूर्य यों लगता जैसे, बने हुए लाचार।

दमक रही दामिनी गगन में, हुई तेज बरसात।
कैसा दृश्य बना है देखो, आई है जब प्रात।

पशु पक्षी सब दुबके बैठे, घिरी घटा घनघोर।
सोच रहे क्यों आज न आई, है ये सोनिल भोर।

- रूणा रश्मि " दीप्त "
राँची - झारखंड
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सुबह की बरसात
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सुबह- सुबह की बारिस
लगती  है  सबको प्यारी,
सूरज ढँक जाता घन से 
नभ  की   सुषमा  न्यारी

अम्बर की  छवि  देख
मयूर  नृत्य  हैं   करते,
हरे  भरे  वन  उपवन 
लोगों के मन को हरते।

घनघोर  घटा मड़राई
अम्बर में बादल छाए, 
करते हैं आँखमिचौनी
जब इधर उधर को धाएं।

बादल की आँख मिचौनी
अब देख धरा हरषाए,
वारिद मिलने को आतुर
बन अम्बु नीर बरषाएं।

भीगे अवनी का कण कण
तुरत  नहाए  बाला  सी, 
जग  में  छायी  हरियाली 
हरित  मेखला  माला  सी।

जल कण तरु के पातों पर
मोती  सा  शोभा  पाते,
बारिश रुकते ही नभ में 
खग पक्षी   दल  मड़राते।

धरती का  कोना -कोना
हरियाली  से सज जाता, 
पुलकित हो बादल नभ से 
अवनी की प्यास बुझाता।

बहुत दिनों प्यासी  धरती
देखे  अम्बर प्रियतम को, 
व्यथा न सह पाए जब नभ
जल बरसा हरता मन को।।

धरती की प्यास बुझाकर
फिर नीर सिन्धु को धाता,
रवि किरणों से वाष्पित हो
घन  बन अम्बर में छाता।

नीरद  नभ  नीर  धरा का
चलता यह काम अविराम, 
यदि नभ घन वायु सिंधु है 
तो सिन्धु सरिता जल धाम।

- महेन्द्र सिंह राज 
मेढ़े चन्दौली - उत्तर प्रदेश
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सुबह की बरसात
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सुबह की बरसात, बदले सब हालात,
पानी ही पानी हुआ, दिन की हुई रात,
आज जमकर बरसेगा, कह रहे थे तात,
अच्छी पैदावार होगी, बोली मेरी मात।

गर्मी से राहत मिली,सुबह की बरसात,
पेड़ों पर खुशियां आई, हरे भरे हैं पात,
कभी नहीं दुख पाना,मन हो जाये खुश,
बुरे दिन अब बीते हैं, अच्छे हो हालात।

सुबह की बरसात, दादुर गा रहे हैं गीत,
पपीहा पुकारता ,जंगल से मोर की प्रीत,
देखे वहीं शोर मचा, आये  बादल काले,
बारिश में भीगे तन,बह रहे जल के नाले।

सुबह की बरसात, रबी फसल लहलहाई,
खरीफ फसल कटी, पैदावार ही रंग लाई,
किसानों के चेहरे खुश, ठंडी चलती हवा,
नाच उठा है जन मन,हो चले हैं वो जवां।

सुबह की बरसात, कोयल  कर रही पुकार,
बागों में फूल खिले, मन करता है हो प्यार,
अंगड़ाई ले बादल आये, घटा मची घनघोर,
छुप छुपकर मिल रहे, देखो आज चितचोर।।

- होशियार सिंह यादव
 महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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बारिश की नन्हीं -नन्हीं बूँदें
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सुबह से बरस रही है अमृत बूँदे अनवरत।
चुपचाप!जैसे कोई शरारती बच्चा मचलता है।
मासूमियत लिये,बूँदों की चँचल हसीन लड़की।
अपने नन्हें कदम छिड़कते हुए
मौसम पर कहर ढा रही है।
ऐसे में,तुम्हारी रेशमी यादें भी तो
जेहन में हौले से उभर आती हैं।
मन मयूर प्रफुल्लित हो जाता है।
तुम्हारी इंद्र धनुषी यादों से
तन-मन पुलकित हो जाता है।
ऐसे में,अगर तुम आ पाती
तो
चाय के गरम प्यालों के साथ
हम तरह-तरह की बातें करते।
सुबह से अनवरत बरस रही है,
बारिश की नन्हीं -नन्हीं बूँदें।

- महेश राजा
महासमुंद - छत्तीसगढ़
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बरसात
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काले काले बदरा 
घुमरा- घुमरा  घिरा
बारिश में जब धरा ,
छायी खुशहाली है। 

हरी भरी  सुनहरी,
मन भाती दुपहरी,
जहां देखो चाहूॖॅं हरी
पायी हरियाली है। 

बूंद बूंद बोले रहे,
मन मन झूमी  बहे
सावन सजनी कहे 
कजरी निराली है।

सूरज खेले मिचौली ,
इंद्रधनुष से  भली
आँगन मन की थाली
 सावन की  पाली है।
 
- उमा मिश्रा प्रीति 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
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बरसात में 
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ॠतु परिवर्तित हो गई,
 सावन की,
   रिमझिम बारिश,
    बारिश रह गयी,
     वे आनंद के पल,
       कल्पनाओं में,
         रह गयें!
           अब वह,
             बरसात भादों में,
               पितरों के तर्पण के साथ ही,
                 बरसात का आनंद,
                   लीजिये?

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
     बालाघाट - मध्यप्रदेश
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रिमझिम थी बरसात 
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भोर भई और नयन खुले तो रिमझिम थी बरसात 
घूम आऊँ  मन में  चाह  थी, बनी ना लेकिन बात 

पल दो पल को रूककर बूँदों ने मुझको उकसाया 
निकल पड़ा मैं निडर सड़क पर तनिक न घबराया 
कुछ पग चला ठिठकते पग से सील गया सब गात 

मैं लेकर छाता जाता तो, कुछ मित्रों से मिल लेता 
शीतल मंद पवन झोंके बर्षा की, खूब बधाई देता 
मौसम बदल रहा, रहो चौकस सबसे कहता तात 

सब अपने अपने लक्ष्य की जन करते तैयारी देखे 
सबके निश्चित कार्य  कौन जागता किसके लेखे 
श्राद्ध भोग पितरों का करती  कुछ  यूँ  देखी मात 

- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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सुबह की बरसात
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सुबह की बरसात,की होती निराली बात,
तन मन को नवीन,उर्जा से देती भर।
रिमझिम सी फुहार,पड़े जब घर द्वार,
माटी वाली सौंधी गंध,महका देती घर।।
झूम झूम उठे पौधे, पंछी भी चहक उठे,
फूलों के सुंदर रंग,और जाते निखर।
बारिश में नहाकर,चाय-पकोड़े खाकर
घर से निकलकर,शुरु करें सफर।।

- डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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बरसात
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    वीरानियों में लाखों बहारें
लेकर आयी है यह बरसात। 
झील सी जिंदगी में जब
डुबकी लगाता है आसमान। 
तब मन मयूरा थिरकता है 
आँगन में लेकर अपनी मोरनी
का साथ...............।

चाँद भी हँसी-ठिठोली करता है
मिलकर तन्हाइयों के साथ.....।

पहाड़ भी अब झुकने लगा है
लेकर यादों की बारात........।
 काली घटाएं घिर-घिर कर
देती रहती है पल-पल दस्तक। 

जी जलाने का मुकम्मल इंतजाम
सोधी महक लेकर बहारें आई हैं। 
धूल-धूसरित हुआ है आसमान
फीकी सी चाँदनी की अब
 चुनरी क्यूँ  दिखती है.....।

बादलों के उमड़ते हैं जब ख्वाब
तब प्रीत की अरगनी पर अटकते हैं। 
छम-छम पायलों की छनकती आवाज़। 
 नयनों में चलता रहे, दिन-रात बस 
अब यही रहतें हैं सुनहरे ख्वाब।

ढलती हुई रात भी खामोशियों को
जीवित कर देती है जब यह राग...।
रंग-बिरंगी कूचियों से अब कुछ-कुछ 
रंग भरने लगे हैं मृत होते हुए ख्वाब...।

पढ़ती हूँ तुम्हें, लिखती हूँ तुम्हें,
तुम्हीं हो अब मेरी किताबों के
हर पन्ने का साज-सम्भाल.......।
वीरानियों में भी लाखों बहारें लेकर 
आयी है यह बरसात........ ।। 

- डाॅ. क्षमा सिसोदिया
 उज्जैन - मध्यप्रदेश
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कुल्हड़ में चाय
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सुबह सुबह बरसात में
गिरिष पार्क के नुक्कड़ में
शर्मा जी का लगता है ठेला
भीड़ लगी होती है ऐसे
लगता  है जैसे हो कोई मेला !

सुबह देखा जाकर नुक्कड़ पे
सौंधी सौंधी मिट्टी की खुश्बु
संग अदरक इलायची की सुगंध
 चाय पी रहे सब कुल्हड़ में !

सुबह की बरसात  में
ठण्ड से कुछ गर्मी पाकर
शर्मा जी के पास आकर
कहते,चार कप मसालेदार
  चाय और दे दो यार !

सुबह की चाय मसालेदार
    देती है आनंद अपार
दिमाग की बत्ती खुल जाये
जो मिल जाये एक प्याली चाय!

कुल्हड़ का प्रचार प्रसार  भी
   शर्मा जी का अनूठा था
बारिश में देश की मिट्टी की खुश्बू 
    गरम मसालेदार चाय संग
       कुल्हड़ में फ्री लो !

होती है मीठी कुल्हड़ की चाय
कुल्हड़ बनता कुंभार की आय
शहर के इस नुक्कड़ में रहकर भी
सबको बांधे रखता है गांव से !

होता नहीं प्रदुषण इससे
सुनाये है अपने किस्से
चाक से आ मैं आग में तपता
 कुंदन बन बाहर आता !

लेमन टी,ग्रीन टी,ब्लेक टी पीते
  सुंदर कांच के कप में डाल
   काया की खूबसूरती लेती
   इन विदेशी आदतों को पाल !

लेकिन ,असली मजा तब आता ,
चाय देख कुल्हड़ में कहते आहा    

     सुबह की बरसात में 
       पकौड़े के साथ 
गरमा गरम चाय कुल्हड़ में पीकर   
मुख से निकले है वाह वाह !

             - चंद्रिका व्यास
          खारघर नवी मुंबई - महाराष्ट्र
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सुबह की बरसात
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ठंढ़ी की एहसास होती
सुबह की बरसात
मीठी मीठी नींद होती 
सुबह की बरसात
कड़क चाय की प्याली होती
सुबह की बरसात
धरती की स्नान होती 
सुबह की बरसात 
धरती की हरियाली होती
सुबह की बरसात
कृषक की खुशहाली होती 
सुबह की बरसात 
जन-जन की अभिलषा होती
सुबह की बरसात।

- राजकान्ता राज
पटना - बिहार
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आ गयी वर्षा रानी
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वर्षा रानी से डरा , हुआ शांत रवि ताप।
क्रोधी लू  है छिप गई , लखकर मेघ प्रताप ।।
लखकर मेघ प्रताप , उमस धरती से भागी ।
हुई सुबह बरसात ,धरा की किस्मत जागी ।।
रहे कृषक हर्षाय , देख खेतों में पानी।
हुआ जगत  खुशहाल , आ गयी वर्षा रानी।।

- डॉ. मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
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भोर किरण-संग सतरंगी बरखा
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सुबह की बरखा प्रकृति का
संदेशा थामे धरा गगन
 हरियाली से जुड़ता नाता
माटी-बूँद सौगात नमन।।

हरित वसन धारिणी धरा  
बनी सुहासिनी चिरसुहागन 
अँचरा बाँधे अंकुर किसलय
कण-कण अन्न अभिनंदन

दादुर मोर पपीहा बोले 
बरखा रानी सुनो जी पावन 
सूरज की नाराजी को भी
 गाँठ बाँधकर धरो सुहावन

ओस बूँद को पर्ण पुकारे
ओ बरखा तनि ठहरो बैरन
बूंदाबांदी सोचे पुजारी 
मंदिर जाउँ निहार लूँ भगवन।।

अँगना भीगे छपरा निचुडे़
टपकी बूँद निगोड़ी टपकन
भीग बिछौना मुआ जलावै
चूल्हे की बुझ जाए अगरावन

बरखा बरसो चाहे जितना
 दुपहरिया भर तुम्हें सुगुंजन
भोर ठौर ना हमरे आइयो
निंदिया मोरी करे यही वंदन।।

सतरंगी यह भोर की बरखा
इंद्रधनुष भी संग लै आवन 
बीर-बहूटी सी शुभ ललना
अगले बरस सबके मन भावन।। 

- हेमलता मिश्र " मानवी "
नागपुर - महाराष्ट्र
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सवेरे की बूंदे 
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बरसातें सुबह की भिगो देती हैं
धरती को - घास को।
नहीं बजाते हैं उस दिन स्कूल जाते हुए बच्चे,
एनसीसी की कदम ताल।
अपने उछलते पैरों की मासूमियत से
गा लेते हैं वे राग छपाक।
अल सुबह सूरज की जिम्मेदारी भी हो जाती है कम,
सोए हुए पँछियों को जगाने की।
अपने गर्भ में धान को पा
गीली धरती हो जाती है धन्य।
घनी होती है घास भी और
छिपा देती है कभी मेंढक की उछाल,
तो कभी झरती घास से हो पानी-पानी-
घुस जाता है शम्बूक खोल में।

वो बात और है कि उस दिन पा कर सवेरे की ये बूंदे,
सब भूल जाते हैं, 
हर सवेरे की बूंदे - ओस।

- डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी
   उदयपुर - राजस्थान
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रिमझिम फुहार
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उनींदी सी आँखो से देखा,
खिड़की के, उस पार, चुपके से
रिमझिम- रिमझिम बूंदों ने किया,
सुबह की बरसात का इज़हार मुझसे।

झूम रहे पत्ते- पत्ते, झुक गई डाली- डाली,
हवा के झोंको ने जो अपनी 
झिलमिल चुनरिया लहराई।

धरा जो भीगे स्निग्ध फुहारों से,
फैले खुश्बू हौले- हौले, मन के गलियारों में।
सुनकर जलतरंग गिरती बूंदों की ,
नाच उठा मन मयूरा, ली अंगड़ाई खुशियों ने।

सूरज की स्वर्णिम किरणों की आभा,
पड़ गई फ़िकी कारी मेघ शिलाओं से
बन ठन कर, शृंगार किए दमकी जो दामिनी,
छुईमुई बन हुए ओट लता- पत, विहंग कई।

अलसाई सी सुबह बरसात की,
आँखों मे भर गई सपने हज़ार।
देखूँ अंखियाँ मूंदे जिन्हें बारम्बार
वो है इंद्रधनुषी रंगों की सौगात
        इंद्रधनुषी रंगों की सौगात !!

- श्रीमती मधुलिका सिन्हा
कोलकाता  - पश्चिम बंगाल 
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सुबह की बरसात 
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आया है धरा पर पावस ऋतु का सौगात, 
लाया है साथ-साथ रिमझिम का फुहार। 
सावन का मास सुहाना सुबह की बरसात, 
सरोबर हो बुझ रही है धरती का प्यास।

जल जीव हर्षित हो तैर रहे हैं ताल, 
मस्त हो गा रहे हैं झींगुर जी मल्हार। 
कृषकों की खेतों पर लहरा रहे हैं धान, 
प्यासी फसलों में बारिश से आया जान। 

झर-झर बह रही है झरने कल-कल प्रवाहित सरिता, 
उफन-उफन बह रही है सदा वाहिनी नदियाँ। 
प्रातःकालीन का बरसात लाया है सौगात, 
बारिश बूंदों का त्यौहार हरियाली का बहार।। 

- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़ 
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बरसात कृष्ण कन्हाई 
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 बड़े अच्छे लगते है 
बाल सखा संग कृष्ण कन्हाई है 
इंद्रधनुषी रँगो से सजा आसमान है 
बारिस बचपन बालसखा संग 
खेले कृष्ण कन्हाई है । 
बारिस बचपन संग शोर मचाते 
बारिस बुँदो संग बचपन जीते 
ग़ुब्बारों संग आसमाँ पर उन्हें उड़ाते है 
ताल तलियाँ डुबकी लगाते 
बाल सखा संग आते कृष्ण कन्हाई है
उमड़ घुमड़ कर आये बदरा 
बरसात की झड़ी लगी  है ।
बादल बिजली खेली अटखेलियाँ 
देख मुस्कानें कृष्ण कन्हाई है ।
बाल सखा संग भागे दौड़े 
कृष्ण आये कृष्ण कन्हाई है ।
मुँह खोल धरा समाहित 
खेल दिखाते कृष्ण कन्हाई है 
इंद्रधनुषी रँग सज बाल सखा 
संग रूप बदल आये कृष्ण कन्हाई है ।
बाल सखा संग भागे दौड़े करते चोरी माखन कृष्ण कन्हाई है । 
कान पकड़ वो कहते मैया मोरी मैंने ही माखन खायों !
ले लो मेरी लकुटि कमरिया मैंने ही शोर मचाओं 
बारिस की लहरों में बाल सखा संग मैंने
नाच दिखायो।
रंग बिरंगी उड़ती चुनरियाँ वृक्षो की हरियाली 
में बाल सखा संग मैंने नाच दिखाओ ! 

- अनिता शरद झा 
रायपुर - छत्तीसगढ़
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सुबह की बरसात 
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भोर ने जब पलकें खोली
मेघ ने ली अंगडाई।

रिमझिम - रिमझिम बरखा नें ।
पायल सी है  छनकाई

 आज धरा ने मुद्दतों की प्यास  है बुझाई ।
छप - छप्पाक कर बच्चों ने 
कागज की नाव बनाई 

कुसुम बेल पर वर्षा ने
मोतियों की माला पिरोई
दरख़्तों पर लताओं ने
बाहें है फैलाई।

सुबह-सुबह की बरखा नें 
महफ़िल है सजाई 
अभिवादन करने 
मस्त मलगं हवाएं हैं 
महकाई।

- ज्योति वधवा "रंजना "
बीकानेर - राजस्थान
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बरसात की पहली बूँद 
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जब भी भर जाती हो गुब्बार से 
दब जाती  हो  अपने ही बोझ से 
बरस के खुद को  हलका कर लेती हो

गिर के धरती पर बन दूसरे की खुशी 
बन पानी समा जाती हो धरती में 
बन बूंद कभी खुद को सीप कर लेती हो 

पैदा कर देती हो चमक आंखों में 
लहलहाती फसल देखकर 
बन बूंद किसान को  खुश कर लेती हो 

देखकर तुझे हर्ष  उठता है  प्रेमी 
साहस मिलता है  प्रणय निवेदन का 
बन खुशी प्रेयसी की  आखें नम कर लेती हो

- नीलम नारंग
हिसार - हरियाणा
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सुबह की बरसात  
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 सुबह की बरसात में  चितेरे भाव मन में आने लगे हैं ।
 हरियाली   देख   धरा की  अतरंगी से  बहुरंगी भाव ।।
पिया   मिलन की इन्द्रधनुषी   आस  जगाने   लगे  हैं ।
परदेश में हैं पिया   संदेशा मेरा पहुँचे उन तक  कैसे ।।
अनुरक्ति- विरक्ति  के   मध्य   अवरोह-आरोह    राग  ।
अस्ताचल से   उदयाचल तक अनुराग से विराग की ।।
भावना जगा   नूतन से पुरातन  अनुकूल से प्रतिकूल ।
सूर्य की किरणों   की विक्षेपण  कथा सुनाने लगे हैं ।।
अजन्ता एलोरा  से खजुराहो तक   यात्रा के वृतान्त ।
 हे सखि!  मुझे एक बार फिर   से गुदगुदाने लगे हैं ।।

- निहाल चन्द्र शिवहरे
 झांसी - उत्तर प्रदेश
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बरसता भोर
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आई बरखा रानी आँगन में,
छाई खुशियाँ खेतों के आँचल में।
डूबा ठेला  ग़म के बादल में।
श्यामल फाहे भोर के काजल में।

टिप टिप बूँदें अगन लगाए।
सुबह की बरखा बड़ा सताए।
लगती जैसे जलती फुहारें।
बरसती आँखें टपकता छत हमारे।

आँखें गीली ,गीला मन।
कैसे जाएँ कमाने धन।
बुझा चूल्हा ख़ाली है पेट।
बारिश ने किया मटियामेट।

मेघों ने सुबह सुबह डाला लंगर।
छुप गया दिनकर दुबककर।
काम धंधा सब हुआ चौपट,
शहर बन गया देखो समंदर।

- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
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