डॉ. अशोक बैरागी से साक्षात्कार

नाम : अशोक कुमार
साहित्यिक नाम : अशोक बैरागी
जन्म तिथि : 06 मई 1979
स्थान : ढुराना (सोनीपत) हरियाणा
शिक्षा : एम. ए. हिन्दी, बी. एड, प्रभाकर, नेट/ जेआरएफ - जून 2007।
पी. एच. डी. : "हिन्दी पत्रकारिता को अज्ञेय का अवदान" विषय पर गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार

सम्पर्ति : हिंदी प्राध्यापक
राजकीय कन्या उच्च विद्यालय, हाबड़ी -  जिला कैथल हरियाणा

लेखन : कविता, कहानी, लघुकथाएंँ, समीक्षा, संस्मरण, आलेख आदि
                  
पत्र-पत्रिकाएँ : --
    हंस, हरिगंधा, साहित्य अमृत, शीराज़ा, स्रवन्ति, मधुमती, न्यामती, जन आकांक्षा, सप्तसिन्धु, सोच विचार, वैष्णव सेवक, संयोग साहित्य, शैल-सूत्र, दैनिक ध्वज, अक्षर पर्व, संरचना, युद्धरत आम आदमी, लघुकथा कलश, शुभ तारिका, बालभारती और बालवाटिका। आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, लघुकथाएंँ, समीक्षा, संस्मरण, आलेख, पत्र और साक्षात्कार प्रकाशित।
                  
पता :  ग्राम व डाकघर ढुराना, तहसील -गोहाना, जिला सोनीपत - 131306 हरियाणा

प्रश्न न.1 -  लघुकथा में महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है?

उत्तर - लघुकथा की महत्ता इसके अलग-अलग अंशों में नहीं बल्कि इसकी समग्रता में है। फिर भी कथानक, सरल भाषा, सुगठित शैली, पात्र और घटना, कथारस या जिज्ञासा तत्व और उद्देश्य पूर्ण अंत आदि अनेक तत्व हैं। मेरे विचार से कथानक की बुनावट और कसावट बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व है।

प्रश्न न.2 - समकालीन लघु साहित्य में कोई पांच नाम बताओ ? जिनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है?
उत्तर - लघुकथा के विकास में अनेकानेक रचनाकारों, संपादकों, प्रकाशकों और समीक्षकों की भूमिका है। फिर भी कान्ता राय  मधुदीप गुप्ता , बीजेन्द्र जैमिनी , रामकुमार आत्रेय , रूप देवगुण आदि की भूमिकाएँ  रेखांकित करने योग्य हैं।

प्रश्न नं 3 - लघुकथा की समीक्षा में कौन-कौन से  मापदंड होने चाहिए?
उत्तर - लघुकथा की समीक्षा वैसे तो समीक्षक की विचार दृष्टि पर निर्भर करती है फिर भी कुछ मानक मापदंड है जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए। जैसे रचना का लघुआकार, सरल व सरल भाषा, सामासिक शैली, संक्षिप्त और जीवंत संवाद और बड़ा उद्देश्य। 'देखन में छोटे लगें, घाव करे अति गंभीर।' वाली उक्ति चरितार्थ होनी चाहिए। इसके साथ ही कोई भी रचना व्यक्ति और समाज को सही दिशा देकर उसे नकारात्मक विचारों से बचाए, यही रचना सबसे बड़ी उपलब्धि है।

प्रश्न न.4 - लघुकथा साहित्य में सोशल मीडिया के कौन - कौन से प्लेटफार्म की बहुत ही महत्वपूर्ण है?
उत्तर - फेसबुक, यूट्यूब, ब्लॉग , इंस्टाग्राम और वेब पेज  लिंक आदि सभी प्लेटफार्मों से लघुकथा निरंतर फल-फूल रही है।

प्रश्न न. 5 - आज के साहित्यिक परिवेश में लघुकथा की
क्या स्थिति है?
उत्तर - आज के दौर में लघुकथा कथा साहित्य में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप कर रही है। बड़ी-बड़ी साहित्यिक पत्रिकाएँ अब लघुकथा के विशेषांक प्रकाशित कर रही हैं। इसके अतिरिक्त देश-विदेश की अनेक ऑनलाइन और ऑफलाइन पत्रिकाएँ लघुकथा को ससम्मान प्रकाशित कर रही हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, दिनकर, प्रेमचंद और विष्णु प्रभाकर जैसे बड़े-बड़े दिग्गज एवं ख्याति प्राप्त साहित्यकारों के साहित्य में लघु कथा के चित्र- प्रसंग ढूँढ-ढूँढ कर सामने लाए जा रहे हैं ताकि इसकी पूर्व की भूमिका और प्रारंभिक स्वरूप को नए पाठकों के सामने लाया जा सके। लघुकथा एक बहुआयामी और परिवर्तनशील विधा है और यह समय व समाज की नब्ज को परखने में योग्य है। सबसे बड़ी बात साहित्य का जो उद्देश्य या प्रयोजन होता है उसे सहृदयों तक संप्रेषित करने में पूर्ण सक्षम है। कह सकते हैं की वर्तमान में लघुकथा की स्थिति बहुत ही सम्मानित और सशक्त है।

प्रश्न न. 6 - लघुकथा की वर्तमान स्थिति से क्या आप संतुष्ट हैं?
उत्तर - हाँ, लघुकथा सही दिशा में आगे बढ़ रही है लेकिन यह अंत नहीं है। जैसा कि मैंने पहले कहा लघुकथा एक बहुआयामी और परिवर्तनशील विधा है और यह नित नया कलेवर और शैली ग्रहण कर रही है। लघुकथा गहन अंधकार में भी उजाले को टटोल रही है और इसमें अभी बहुत सी संभावनाएँ शेष हैं।

प्रश्न न.7 - आप किस प्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें  किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उत्तर - मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि संसाधनों के अभाव में निरंतर जी तोड़ श्रम करने वाले किसानी परिवार की है। पिताजी अनुशासन और स्वभाव के बहुत सख्त हैं। डर के कारण क्या मजाल कभी पिताजी से कभी दस पैसे की स्याही की पुड़िया के पैसे मांगे हों। एक-एक रोशनाई और पेंसिल के लिए कई-कई दिनों तक माँ के आगे-पीछे चक्कर काटने पड़ते थे। पिताजी अपने जमाने के मैट्रिक पास किसान थे और शिक्षा का महत्व बखूबी समझते थे इसीलिए हम भाइयों को कभी कोई काम नहीं बताया न ही करने दिया। विशेषकर जब हम पढ़ रहे होते थे।
रही बात मार्गदर्शक बनने की, तो आज के इस घोर भौतिकवादी और भागमभाग के दौर में कौन किसका मार्गदर्शन लेता है और कौन मार्गदर्शन दे सकता है। समय और खुद अपने आप से अच्छा कोई मार्गदर्शक हो ही नहीं सकता।

प्रश्न न.8 - आपके लेखन में आपके परिवार की क्या भूमिका है?
उत्तर - मेरे लेखन में परिवार की भूमिका बहुत प्रोत्साहन देने वाली या उत्प्रेरक नहीं रही। पिताजी -दादाजी और कई पीढ़ियों पीछे तक कोई साहित्यिक संस्कार नहीं रहे। जितना भी सीखा स्वाध्याय और बड़ों के सानिध्य से ही सीखा। रोजगार और कैरियर की चिंता परिवार में हमेशा बनी रहती थी। अब राजकीय सेवा में आने और अनेक जगह छपने के बाद स्थिति कुछ सुधरी है।

प्रश्न न.9 - आपकी आजीविका में आपके लेखन की क्या
स्थिति है?
उत्तर - माफ करना! मैं जीविका चलाने के लिए लेखन नहीं करता। मैं आत्मसंतोष के लिए लिखता हूँ। समाज की विसंगतियाँ और अव्यवस्थाएँ जब तन-मन में खलबली मचाती हैं तब कलम उठा लेता हूँ। हाँ, मेरी रचनाएंँ पढ़कर किसी को खुशी या सही दिशा मिलती है तो मेरे लिए यही सबसे बड़ा संबल है। बाकी आत्मिक खुशी से बढ़कर कोई धन-सुख प्राप्ति नहीं है।

प्रश्न न.10 - आपकी दृष्टि में लघुकथा का  भविष्य कैसा
होगा?
उत्तर - लघुकथा वर्तमान समय में प्रासंगिक और समय की मांग है। आजकल ट्वेंटी-ट्वेंटी का जमाना है और बड़ी रचनाएँ पढ़ने का समय कम ही लोगों के पास है। जैसे-जैसे हमारे संस्कार, विचार और परिवेश सिकुड़ता जा रहा है, ठीक वैसे ही हमारी आदतें, स्वभाव और जीवनशैली बनती जा रही है। मुझे लगता है लघुकथा का भविष्य बहुत ही उज्जवल है और यह अभी फले-फूलेगी। 

प्रश्न न.11 - लघुकथा साहित्य में आपको क्या प्राप्त हुआ है?
उत्तर - लघुकथा साहित्य से वैश्विक जीवनशैली में हो रहे परिवर्तनों का सम्यक ज्ञान होता है और लेखन के संस्कार भी मिलते हैं। इसके अध्ययन से संवेदना, जिज्ञासा और रुचि का परिष्कार और विस्तार भी होता है। चिंतन का दायरा बढ़ता है जिससे हमारा मन कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित होता है।



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