चन्द्रकान्ता अग्निहोत्री से साक्षात्कार

पति का नाम : श्री केवल कृष्ण अग्निहोत्री
जन्मतिथि : 30.अक्टूबर 1945
जन्म स्थान : लायल पुर

सम्प्रति : –

सेवा-निवृत ऐसोशिएट प्रोफेसर व पूर्वाध्यक्ष हिंदी –विभाग ,राजकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय।

प्रकाशित पुस्तकें –

ओशो दर्पण (ओशो –साहित्य पर आधारित )
वान्या –काव्य संग्रह 
सच्ची बात –लघुकथा संग्रह 
गुनगुनी धूप के साये  -- दूसरा काव्य संग्रह

विशेष : -

1973 से किया लघुकथा लेखन का प्रारंभ।सबसे पहली लघुकथा  दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित हुई---"औरत होने का अर्थ"।
स्तभ लेखन भी

सम्मान : -

हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत (कहानी –अकेली )

सांझा संग्रह : -

गीतिका लोक-सांझा काव्य –संग्रह  में गीतिकायें प्रकाशित  
साहित्य -त्रिवेणी कलकत्ता में छन्दों पर आधारित लेख
दोहा -दोहा नर्मदा सांझा संकलन में दोहे प्रकाशित 

पता : -
#404,सेक्टर----6 पंचकूला (हरियाणा)134109
प्रश्न न.1 - लघुकथा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है?
उत्तर - यूं तो लघुकथा में सभी तत्व अपने अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं  लेकिन  संवाद से प्रारंभ होने वाली  लघुकथा श्रेष्ठ मानी जा सकती है। इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि संवाद भी पात्र , परिस्थिति और वातावरण के  अनुकूल होने  चाहिए ।

प्रश्न न. 2 - समकालीन लघुकथा साहित्य में कोई पांच नाम बताएं जिनकी भूमिका महत्वपूर्ण है ?
उत्तर - अगर प्राचीन काल के साहित्यकारों का नाम लिया जाए तो उनमें प्रेमचंद ,उपेंद्रनाथ अश्क और अमृतलाल नागर आदि का नाम लिया जा सकता है| लेकिन समकालीन लघुकथा साहित्य में राजेंद्र  यादव, महाराज कृष्ण जैन,  रमेश बत्रा , बीजेन्द्र जैमिनी ,  सुकेश साहनी  आदि के नाम लिए जा सकते हैं। बीजेन्द्र जैमिनी जी ने लघुकथा के विकास में बहुत ही सराहनीय योगदान दिया है ।

प्रश्न न.3 - लघुकथा की समीक्षा के कौन-कौन से मापदंड होने चाहिए?
उत्तर - लघुकथा का प्रारंभ पंचतंत्र की कहानियों से हुआ लेकिन वे  उपदेश परक कहानियां थीं  इसलिए उन कहानियों के कथ्य समकालीन सामाजिक यथार्थ  को प्रस्तुत नहीं कर पाए| लघुकथा की संरचना ऐसे ही साहित्यिक आंदोलनों के बीच हुई। इन लघुकथाओं में समाज के अंतर्द्वंद, मानव मूल्य और सभी वर्गों के चरित्र- उनका वर्गीकरण विकास  व   पतन इत्यादि को प्रस्तुत किया गया । अतः लघुकथा कथ्य और शिल्प की दृष्टि से  उत्तम होनी  चाहिए । किसी छोटे से अनुभव को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करना ही लघुकथा की विशेषता हो सकती है और मेरे विचार में एक सही मापदंड भी  यही है । लघुकथा की सफलता इस बात में निहित है कि   उसकी यह छोटी सी दुनिया पाठक के हृदय तक पहुंच जाए और एक नया एहसास  दे।

प्रश्न न. 4 - लघुकथा साहित्य में सोशल मीडिया के कौन कौन से प्लेटफार्म की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है?
उत्तर - मीडिया की समाज के प्रति देश के प्रति एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है क्योंकि मीडिया आम जनता की आवाज को श्रोता या पाठक तक पहुंचाता है लेकिन आजकल मीडिया  पूर्णतया स्वतंत्र है  और  कई बार तो वह अपनी स्वतंत्रता का  लाभ भी उठाता है । लेकिन सभी मीडिया कर्मी एक जैसे नहीं है । वे समाज के उत्थान में अपना योगदान दे रहे हैं  और जन सरोकार की खबरें जनता तक पहुंचाते हैं । और  कोरोना  काल में  मीडिया की भूमिका अहम रही है मीडिया ने शिक्षा जागरूकता आदि के मामले में बड़ी विश्वसनीय भूमिका निभाई है| आज के दौर में व्हाट्सएप और फेसबुक भी किसी से पीछे नहीं है ।

प्रश्न न.5 - आज के साहित्यिक परिवेश में लघु कथा की क्या स्थिति है?
उत्तर - आज का लेखक लघुकथा लेखन में लगभग सभी प्रकार की शैलियों को  अपनाता है । और इसमें कुछ भी गलत नहीं है लेकिन  किसी भी शैली में अपने कथ्य को ले जाते हुए इस बात का ध्यान रखना परम आवश्यक है  कि उसके लेखन में  लेखक की  उपस्थिति  प्रतीत नहीं होनी चाहिए बेशक परोक्ष रूप से लेखक  उपस्थित तो रहता ही है । लेकिन प्रत्यक्ष रूप से उसे कोई सुझाव इत्यादि देने की कोई आवश्यकता नहीं| लघुकथा ऐसी भी नहीं होनी चाहिए कि वह  संस्मरण जैसी प्रतीत हो । लघुकथा का संवेदनात्मक व विचारात्मक प्रभाव पाठक पर अवश्य पढ़ना चाहिए| लघु कथा ऐसी हो कि पढ़ने के बाद  पाठक के मुंह से या तो आह निकले या वाह ।

प्रश्न न.6 -  लघुकथा की वर्तमान स्थिति से क्या आप संतुष्ट हैं?
उत्तर - हर विधा का प्रत्येक युग में क्रमिक विकास होता रहता है । हम यह नहीं कह सकते कि हमने  साहित्य की  मांग को पूरा कर दिया है । हर युग की परिस्थिति अलग होती है इसलिए  परिस्थितियों के अनुरूप ही  साहित्य का निर्माण होता है ?  कमियां भी होती  हैं  और विकास भी । हम यह नहीं कह सकते कि सारा लघुकथा साहित्य  उत्कृष्ट है हां वह अपने विकास की ओर अग्रसर है और आगे भी  इसकी संभावनाओं का विकास होता रहेगा । ऐसी मेरी प्रतीति है।

प्रश्न न. 7 - आप किस प्रकार की पृष्ठभूमि से आए? बताएं किस प्रकार के मार्गदर्शक  बन पाए हैं ?
उत्तर - मेरे परिवार में मेरे नाना जी ने श्रीमद्भागवत का चौपाइयों में अनुवाद किया था ।मेरे भाई डॉ बृज लाल गोस्वामी जी जो पहले राजकीय महाविद्यालय लुधियाना में प्राचार्य थे जब पंजाब का बंटवारा नहीं हुआ था। बाद में यहां चंडीगढ़ शिक्षा विभाग में निदेशक भी रहे। उन्होंने छंद शास्त्र व काव्य शास्त्र पर कई पुस्तकें लिखीं जो आज भी पंजाब यूनिवर्सिटी में उपलब्ध हैं। मैं  राजकीय  स्नातकोत्तर  कन्या महाविद्यालय में  प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थी । अतः मैं साहित्य पृष्ठभूमि से ही आई हूं । साहित्य की अन्य विधाओं में भी मेरी भरपूर दिलचस्पी है। लेकिन लघुकथा लेखन  का प्रारंभ मैंने शुभ तारिका के संपादक डॉक्टर महाराज कृष्ण जैन जी के  निर्देशन में किया । सतीशराज पुष्करणा, रमेश बत्रा इत्यादि लेखक मेरे समकालीन लेखक थे| उन दिनों मेरी बहुत सी लघुकथाएं प्रकाशित हुई और सराही भी गई । लेकिन कुछ समय के लिए मेरा लेखन जैसे बंद हो गया । मैंने फिर लिखना शुरू किया ।  तो पाठक जब किसी की रचना पढ़ता है तो  वह  ही यह अनुमान लगा सकता है कि लेखक कहां तक सफल हुआ है ? लेखक के लेखन में ही उसका मार्गदर्शन छिपा हुआ है ।

प्रश्न न. 8 - आपके लेखन में आपके परिवार की क्या भूमिका है?
उत्तर - मेरे परिवार ने मुझे हमेशा ही उत्साहित किया है|  परिवार की क्षमता के अनुसार  हर प्रकार का   सहयोग प्राप्त हुआ ।

प्रश्न न.9 - आपकी आजीविका में आपके लेखन की क्या स्थिति  है?
उत्तर - लेखन मेरी  जरूरत रहा  आजीविका का माध्यम बिल्कुल नहीं ।

प्रश्न न.10 - आपकी दृष्टि में लघुकथा का भविष्य कैसा होगा?
उत्तर - लघुकथा सभी साहित्यिक विधाओं से आगे निकलती हुई प्रतीत हो रही है । बड़े-बड़े कथा लेखक भी  लघुकथा लेखन में  रुचि ले रहे हैं । अतः निश्चित है  कि लघुकथा अपने पथ पर तीव्र गति से अग्रसर हो रही है ।

प्रश्न न.11 - लघुकथा साहित्य से आपको क्या प्राप्त हुआ है ।
उत्तर - कथा लेखन के साथ-साथ लघु कथा लेखन में भी मेरी रुचि समान रूप से रही है । लघु कथा लेखन  से मुझे  सटीक दिशा निर्देश प्राप्त होते रहे हैं । और मैं अपने भावों  को अभिव्यक्त  करने में सफल रही हूँ । पाठक तक अपने भावों को पहुंचाना ही मेरा उद्देश्य और मेरी संतुष्टि का माध्यम रहा है और यही मेरा  प्राप्य  है ।

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