डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल से साक्षात्कार

जन्मतिथि : 04 मार्च 1956
शैक्षणिक योग्यता-एम. ए.,पी-एच.डी.
सम्प्रति :  पूर्व प्राचार्य, शासकीय निर्भयसिंह पटेल विज्ञान महाविद्यालय, इंदौर

लेखन : -

कहानियां, शोधपरक आलेख ,कविताएं ,व्यंग्य, बाल साहित्य तथा लघुकथा  

प्रकाशित : -

शपथयात्रा (लघुकथा संग्रह), किताबघर, दिल्ली से "लघुकथाओं का पिटारा" प्रकाशित तथा पुरस्कृत।

अनुवादित कृतियां : -

"शपथयात्रा" (100 लघु कथाएं मराठी में )
"लघुत्तम कथांचा गुलदस्ता"(112 लघुकथाएं मराठी में )
" कथांजलि:"(55 लघुकथाएं ,मूल पाठ सहित संस्कृत में )(संस्कृत में अनूदित पहला लघुकथा संग्रह)
"बदलते पैमाने"(117 लघुकथाएं उर्दू में अनूदित)(पाकिस्तान में पढ़ा जा रहा)
"सतरंगी लघुकथाएं"(72 लघुकथाएं सिंधी में )
"डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल दीयां मिन्नी कहाणीयां"(90 लघुकथाएं पंजाबी में )।

संपादन-
"समय का साथी"(काव्य संग्रह)
"समप्रभ"(लघु कथा संकलन)"दैनिक भास्कर",
"अंतरराष्ट्रीय मानस संगम", "वाग्धारा"(लघुकथा विशेषांक)
"रिसर्च 2000","हरिद्रा""काफला इंटरनेशनल"शोध-पत्रिकाओं का संपादन

सम्मान-

- 21वें अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन में " डॉ परमेश्वर गोयल लघुकथा शिखर सम्मान" से सम्मानित।
- साहित्य में अविस्मरणीय योगदान के लिए देश की अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित

विशेष : -
लगभग 35 वर्षों से साहित्य लेखन में सक्रिय
लगभग 625 लघुकथाएं प्रकाशित   

पता : 390, सुदामा नगर, अन्नपूर्णा मार्ग, ए सेक्टर, इंदौर, मध्य प्रदेश 452009

प्रश्न न.1 - लघुकथा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है ?

उत्तर - कथावस्तु। कथावस्तु के बिना कहानी अथवा लघुकथा की कल्पना नहीं की जा सकती। इसका स्थान सर्वोपरि है। कथाविन्यास पर ही तो लघुकथा निर्भर करती है। तथाकथित लेखकों ने बिना कथावस्तु के लिखने की कोशिश की है ,परंतु पाठकों ने उन रचनाओं को अधिक पसंद नहीं किया। कथावस्तु की सुसंबद्धता और कथ्य प्रभावान्विति होना जरूरी है। कथावस्तु मूलतः तीन प्रकार की मानी गई है-मौलिक ,उत्पाद्य और अनूदित। वैसे शोध (सत्य), बोध (कही गई बात) और क्रोध (व्यंग्य) का उचित मेल लघुकथा को श्रेष्ठता प्रदान करता है।


प्रश्न न.2 - समकालीन लघुकथा  साहित्य में कोई पांच नाम बताइए ? जिनकी भूमिका महत्वपूर्ण है।

उत्तर - वैसे तो लघुकथा की विकास यात्रा में अनेक लेखकों ने अपना योगदान दिया है । कुछ महत्वपूर्ण नाम निम्नानुसार हैं : - सतीशराज पुष्करणा जी, मधुदीप गुप्ता जी, योगराज प्रभाकर जी, सुकेश साहनी जी, बीजेन्द्र जैमिनी जी आदि।


प्रश्न न.3 - लघुकथा की समीक्षा के लिए कौन-कौन से मापदंड होने चाहिए?

उत्तर - दरअसल लघुकथा, कहानी का छोटा रूप है। बस थोड़े अलग तेवर वाली विधा है। इसमें घटना का वह रूप सामने आता है ,जो कहानी अथवा उपन्यास में नहीं उभर पाता। छोटा फलक होने पर भी ,यह अपने भीतर एक बड़े फलक को छिपाए रखती है। जो लघुकथा अपने अंदर जितना बड़ा फलक छिपाए रखती है, वह उतनी ही श्रेष्ठ मानी जाती है अतः इस बिंदु पर भी ध्यान देना चाहिए। लघुकथा के क्षेत्र में नए नए विचार, कथ्य, शिल्प, प्रयोग होते रहते हैं। उन पर विशेष ध्यान देकर समीक्षा की जानी चाहिए। वैसे इसके तात्विक विवेचन में औत्सुक्य, भाव, वस्तु, शब्द तत्वों को महत्व दिया गया है। नए-नए प्रयोगों के कारण इसमें प्रयोग तत्व को भी जोड़ा गया है।


प्रश्न न.4 - लघुकथा साहित्य में सोशल मीडिया के कौन कौन से प्लेटफार्म बहुत महत्वपूर्ण हैं?

उत्तर - टेक्नोलॉजी के संदर्भ में पिछड़ा हुआ हूं। अधिक नहीं जानता। चार, पांच व्हाट्सएप ग्रुप से अवश्य जुड़ा हूं इसलिए मैं इसका परिपूर्ण उत्तर नहीं दे पाऊंगा।


प्रश्न न.5 - आज के साहित्यिक परिवेश में लघुकथा की क्या स्थिति है?

उत्तर - यह आज सर्वाधिक लोकप्रिय विधा है। सर्वाधिक पाठक होने के कारण इसे प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाएं, सम्मान के साथ प्रकाशित कर रही हैं। वह पाठको के साथ तादात्म्य स्थापित कर रही हैं। वह पाठकों के जख्मों में मरहम लगाने का काम कर रही है । उन्हें सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर रही है।

   इस प्रश्न के उत्तर के लिए यदि हम गहराई में जाते हैं तो पाते हैं कि आज तीन प्रकार की लघुकथाएं दृष्टिगोचर हो रही हैं। एक तो वे लघुकथाकार है ,जो इसके लेखन को बहुत आसान मानकर, इसे वह फैशन की तरह ले रहे हैं। सपाट लेखन कर रहे हैं। वे रिपोर्ताज और लघुकथा  के अंतर को नहीं समझ पा रहे हैं। नए-नए प्रयोगों पर उनका जरा भी विश्वास नहीं है। ना हीं वे लघुकथा के शिल्प पर ध्यान दे रहे हैं और ना हीं लघुकथा की गंभीरता पर। दूसरे प्रकार के लेखक वे हैं जो इनोवेशन के नाम पर विदेशी साहित्य का अंधानुकरण कर लघुकथा के शिल्प को इतना जटिल बना रहे हैं कि आमजन को उसे समझ पाना बहुत कठिन हो रहा है। दरअसल वे अपनी क्लिष्ट रचनाओं से आमजन को लघुकथा से दूर करने का काम कर रहे हैं। उनकी रचनाओं में थोपे गए शिल्प से संप्रेषणीयता को क्षति पहुंच रही। ऐसे लेखक सिर्फ विद्वानों के लिए ही लिख रहे हैं, आमजन से उनका कोई लेना देना नहीं है। वे या तो पुरस्कारों के लिए लिख रहे हैं या अपनी विद्वत्ता के प्रदर्शन के लिए अथवा समूह विशेष को खुश करने के लिए लिख रहे हैं। वे यह समझना ही नहीं चाहते कि साहित्य की रचना जीवन और समाज की रक्षा के लिए की जाती है, लोक कल्याण की भावना को केंद्र में रखकर साहित्य रचा जाता है। मेरा मानना है कि समाज की जरूरत और मांग के आधार पर साहित्य रचा जाता रहा है, तभी साहित्य का अभीष्ट पूरा होता है। आज समाज हमसे सकारात्मक सोच, प्रेरणादाई, संप्रेषणीय  रचनाएं मांग रहा है और तथाकथित लेखक उसे मानसिक व्यायाम करने वाली रचनाएं दे रहे। ऐसे लघुकथाकारों  की तुलना में नीरो से करता हूं। रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजाने में लगा था। तीसरे वे लघुकथा लेखक हैं, जो सरल भाषा में गहराई वाली बात कर रहे हैं। लघुकथा को गंभीरता से ले रहे हैं। वे लघुकथा को समाज की बुराईयों को दूर करने का वाला अस्त्र-शस्त्र मान रहे हैं। वे संप्रेषणीयता  को ध्यान में रखकर , जनजागृति का लक्ष्य लेकर लेखन कर रहे हैं। वह नए-नए समसामयिक विषय तलाश रहे हैं। नए-नए प्रयोग भी कर रहे हैं। जनता जनार्दन को जगाने, उसे प्रेरणा देने का उद्देश्य रखकर लिख रहे हैं। अपनी लघुकथाओं के माध्यम से समाज में वे राष्ट्रीयता का भाव पैदा कर रहे हैं। वे बधाई के पात्र हैं। मेरा आशय यह कदापि नहीं कि हम शिल्प पर ध्यान ही नहीं दें या नए नए प्रयोग  ना करें। आशय यह है कि आमजन को लक्ष्य कर रचनाएं लिखें ,ताकि उनके लिए रचना बौद्धिक व्यायाम सिद्ध न हो सके। संसार में जितने भी महान लेखक हुए हैं उन्होंने आमजन को जगाने के लिए सहज शिल्प का सहारा लिया है। उन्होंने भी इनोवेशन पर ध्यान दिया है। उन्होंने सिर्फ पुरस्कारों के लिए नहीं लिखा और ना ही सिर्फ बुद्धिजीवियों के लिए लिखा। मुंशी प्रेमचंद, टॉलस्टॉय, शेक्सपियर, ईब्शन, थॉमस हार्डी, ओ हेनरी, जेन ऑस्टन, आर के नारायण आदि के नाम सहज ही दिमाग में आ जाते हैं। हमें इन लेखकों को अपना आदर्श बनाना होगा तभी साहित्य के उद्देश्य की पूर्ति होगी और जनता में राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न होगी।

              

प्रश्न न.6 - लघुकथा की वर्तमान स्थिति से क्या आप संतुष्ट हैं?

उत्तर - मेरा मानना है कि समाज को जगाने का जो कार्य स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में कविता ने किया था, आज बिगड़ते जा रहे समाज को सुधारने का वही कार्य लघुकथा कर सकती है। आज कविता, चुटकुलेबाजी और अति बौद्धिकता में फंस गई है। इस कारण सर्वप्रिय होने के कारण यह जिम्मेदारी लघुकथा पर आ गई है। लेखकों को केवल पश्चिम देशों से आए आयातित विचारों को त्याग कर, भारतीय संस्कृति के व्यापक तत्वों को स्वीकारना चाहिए। ऐसा ना हो जाए कि शब्द हमारे हों और आत्मा विदेशी।।! तथाकथित लेखकों ने  अपना अपना समूह बना लिया है जिससे लघुकथा विधा को क्षति पहुंच रही है। लेखक समूह और आत्मश्लाघा  में फंसे हुए नजर आ रहे हैं। राजनीति की तरह वे जीते जी खुद की मूर्ति बनवा कर ,खुद को स्थापित करने में लगे हुए हैं। समीक्षा का हाल यह है कि मैं आपकी प्रशंसा करूं और आप मेरी। लघुकथा को अच्छे समीक्षकों की दरकार है। तथाकथित लेखक प्रयोगों के नाम पर अनर्गल लिख रहे हैं। कुछ ऐसे भी लेखक हैं जो अपनी लघुकथाओं में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग ज़बरदस्ती कर रहे हैं ,जबकि हिंदी एक समृद्ध भाषा है। हां, जिन विदेशी शब्दों को हमने अपना लिया ,उनकी बात अलग है। यूं तो लघुकथाएं बहुत लिखी जा रही हैैं परंतु उनमें जो राष्ट्र की आत्मा नजर आनी चाहिए, वह  नजर नहीं आ रही। यदि लेखक  थोड़ा सावधान हो जाए तो निश्चित तौर पर लघुकथा, कला के उच्च आयामों को स्पर्श करेगी और समाज में स्वस्थ तथा व्यापक मूल्यों को भी स्थापित करेगी।


प्रश्न न.7 - आप किस प्रकार की पृष्ठभूमि से आए हैं? किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाए हैं?

उत्तर -  मैं मध्यमवर्गीय परिवार से रहा। महाविद्यालय में 'वार्षिक पत्रिका' का संपादन किया। बहुत सारे विद्यार्थियों को साहित्य से जोड़ने की कोशिश की। अनेक विद्यार्थियों को सृजन की प्रेरणा दी ,उनका मार्गदर्शन किया। नए लेखकों को प्रोत्साहन दिया। बहुत सारे साहित्यकारों की पुस्तकों में भूमिका या टिप्पणी लिखी। 30 - 35 वर्षों में ढेरों पुस्तकों का लोकार्पण किया। राष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त साहित्यकारों के अभिनंदन ग्रंथ अथवा स्मारिकाओं का संपादन किया। दैनिक भास्कर अखबार में साहित्य संपादन किया। साहित्य कलश मध्य प्रदेश, साहित्यिक  संस्था में महासचिव रहा । तब प्रदेश स्तर का " ईश्वर पार्वती सम्मान "मध्य प्रदेश के लघुकथाकारों की प्रविष्ठियां बुलाकर, समिति द्वारा चयन होने पर, प्रतिवर्ष एक लघुकथाकार को यह सम्मान प्रदान किया। देश के ख्यात 16 लघुकथाकारों की लघुलघुकथाओं का संकलन "समप्रभ" का संपादन किया। अनेक शोध पत्रिकाओं का संपादन किया।


प्रश्न न.8 - आपके लेखन में परिवार की भूमिका क्या है?

उत्तर - परिवार में पिता जी तथा बड़ी बहन एम.ए.हिंदी थे। यद्यपि पिताजी और दीदी ने सृजन तो नहीं किया । परंतु वे अच्छे पाठक जरूर रहे। घर में साहित्यिक पत्र-पत्रिकाएं आती थी। उनसे प्रेरणा पाकर , मैं सृजन करने लगा।


प्रश्न न.9 - आपकी आजीविका में आपके लेखन की क्या स्थिति है?

उत्तर - महाविद्यालय में हिंदी का प्राध्यापक रहा, प्राचार्य रहा। बुद्धिजीवियों के बीच रहा इसलिए साहित्य सृजन में रत रहने के कारण मुझे उनसे खूब प्रोत्साहन और सम्मान मिला।


प्रश्न न.10 -  आपकी दृष्टि में लघुकथा का भविष्य कैसा होगा?

उत्तर -  उज्ज्वल। बस लेखकों से सावधानी अपेक्षित है कि वह अपनी रचनाओं को अति बौद्धिकता या सपाट पन से बचाएं। नए नए प्रयोग करें लेकिन उसे जटिलता से मुक्त रखें अन्यथा जैसे आज कविता चारदीवारी में बंद होकर केवल बुद्धिजीवियों के लिए बौद्धिक विलास बन गई है, वही स्थिति लघुकथा की भी हो जाएगी। लेखकों से निवेदन है कि वे देश की सभ्यता, संस्कृति ,रीति नीतियों, श्रेष्ठ परंपराओं, भावों और विचारों का प्रतिनिधित्व करने वाली लघुकथाओं का सृजन करें ताकि समाज में बदलाव आए और साहित्य के उद्देश्य की पूर्ति हो सके।


प्रश्न न.11- लघुकथा साहित्य से आपको क्या प्राप्त हुआ है?

उत्तर - मैंने लोक कल्याण की भावनाओं को ध्यान में रखकर लघु कथाएं लिखने की कोशिश की है। विद्वानों या किसी समूह विशेष को प्रसन्न करने या पुरस्कारों का लक्ष्य लेकर साहित्य नहीं रचा। यश भी प्राप्त हुआ। अनुवादकोंं को मुझे खोजना नहीं पड़ा ,उन्होंने आगे बढ़कर रुचि दिखाई। परिणामस्वरूप मराठी, उर्दू, संस्कृत, सिंधी ,पंजाबी भाषाओं में 6 अनुवादित कृतियां प्रकाशित हुईं। गुजराती और अंग्रेजी में भी अनुवाद का कार्य चल रहा है।

      "किताबघर" दिल्ली जैसे प्रकाशन ने पांडुलिपि मांग कर प्रकाशित की। "अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच" ने " लघुकथाओं का पिटारा " कृति पुरस्कृत की। मंच ने " डॉ परमेश्वर गोयल लघुकथा शिखर सम्मान " से सम्मानित किया। ईश्वर की कृपा से जो मिला , उससे संतुष्ट हूं।

Comments

  1. आपका सुंदर सार्थक विस्तृत तर्कपूर्ण विचार पढ़कर अच्छा लगा।
    आपका स्पष्ट विचार प्रेरक और उत्साहवर्धक है।
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏🌹🙏

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  2. बहुत ही उत्तम तर्कपूर्ण, विचारणीय,विस्तृत साक्षात्कार पढ़ बहुत अच्छा लगा। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं शुक्ल जी को 💐🙏🙏 और बिजेंद्र जैमिनी जी को बहुत बहुत साधुवाद उनके लघुकथा- साहित्य के प्रचार-प्रसार में सार्थक प्रयासों के लिए 💐🙏🙏

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  3. बहुत ही प्रेरक, विस्तृत, तर्कपूर्ण, सुंदर साक्षात्कार पढ़ने को मिला। आपको बहुत बहुत बधाई ।. रेणु चन्द्रा माथुर

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