डॉ. बीना राघव से साक्षात्कार

  पिता :    श्री सी.एस. शिशौदिया 
जन्म  :   ५ मई, १९७१ उत्तर प्रदेश 
शिक्षा  :   एम. ए., बी.एड. पी एच. डी. (हिंदी साहित्य)

शोधग्रंथ  : हरियाणवी एवं राजस्थानी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन 

कार्यक्षेत्र  : हिंदी अध्यापिका एवं लेखिका,सिनर्जी  व भाषा भारती पत्रिका का संपादन कार्य, इंद्रप्रस्थ लिट्रेचर फेस्टिवल की गुरुग्राम इकाई की अध्यक्ष, साहित्यिक सचिव एवं उप-संपादिका, हिंदुस्तानी भाषा अकादमी/ कार्यसमिति सदस्य,प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन/ गुरुग्राम महामंत्री, राष्ट्रीय महिला काव्य मंच गुरुग्राम।

अभिरुचि  : -

हिंदी कविताएँ, लेख, कहानी, नाटक एवं नुक्कड़  नाटक,
पटकथा इत्यादि लिखने में रुचि। सामाजिक कार्यों तथा बागवानी करने में भी रूचि, नारायण सेवा संस्थान की आजीवन सदस्या, आध्यात्मिक प्रवृत्ति। 

लेखन :   काव्य के सप्तरंग-काव्य संग्रह, सात साझा संग्रह (लघुकथा व कविता),  हिंदी  साहित्य   एवं   व्याकरण लेखन  (कक्षा एक  से बारहवीं  तक पाठ्य  पुस्तकों  में   बाल साहित्य), शोध-पत्र, कहानियाँ, लघुकथाएं, विविध  कविताएँ  एवं  लेख  आदि  भाषा भारती, नवपल्लव, शब्द सुमन,साहित्य कलश, सिनर्जी, जगमगदीप ज्योति, मधु
संबोध तथा साँझी सोच, दृष्टि आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित।  बाल एकांकी संग्रह, लघुकथा संग्रह प्रकाशाधीन,
संपादन : शब्दगाथा-2(समीक्षा पुस्तक)प्रकाशक-हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, कृति एवं एक्सीड प्रकाशन में विविध हिंदी पाठ्य पुस्तकों का संपादन एवं लेखन कार्य।     पिछले १२ वर्षों से  पत्रिका आदि का संपादन कार्य।   
सम्मान : -

आदर्श राष्ट्रभाषा शिक्षक पुरस्कार, राष्ट्रीय भाषा-भूषण पुरस्कार, हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, नई दिल्ली द्वारा समीक्षक और शब्द साधना काव्य प्रतिभा सम्मान, हिंदी की गूँज संस्था, नई दिल्ली द्वारा 2018 का हिंदी साहित्यकार सम्मान,शब्द सुमन साहित्यिक संस्था, बस्ती द्वारा हिंदी गौरव पुरस्कार, शब्द साहित्यिक संस्था, गुरुग्राम द्वारा लघुकथा स्वर्ण सम्मान एवं पुरस्कार आदि।

अनुवाद : भारतीय कला का इतिहास एवं सौंदर्य (अंग्रेजी से हिंदी में)

पता :     
आरडी सिटी, सैक्टर – 52
गुरुग्राम - हरियाणा 

प्रश्न न.1 - लघुकथा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है ? 
उत्तर - जैसे नाटक का लघु रूप एकांकी है, उपन्यास का कहानी, वैसे ही कथा का लघु किंतु विशिष्ट रूप ( एक पल को पाठक को हतप्रभ/ विस्मित कर दे और वह आश्चर्य/ हर्ष मिश्रित भाव से सोचने को विवश हो जाए) लघुकथा है| पाठकों की व्यस्तता या रुचियों का परिष्करण कह लीजिए, लघुकथा वर्तमान में न केवल प्रासंगिक बनी हुई है अपितु सर्वप्रिय भी है ।

प्रश्न न.2 - समकालीन लघुकथा साहित्य में कोई पाँच नाम बताओ, जिनकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है ? 
उत्तर - बहुत हैं यूँ तो मगर मैं जिनको जानती हूँ, पढ़ती हूँ उनमें सतीशराज पुष्करणा , डॉ कमल किशोर गोयनका, उमेश महादोषी, अशोक जैन आदि भी इस ओर उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं, हाँ आपको ( बीजेन्द्र जैमिनी ) कैसे भूल सकते हैं जो महा संकलन निकाल रहे हैं । नई व पुरानी पीढ़ी का सेतु बने हुए हैं ।

प्रश्न न.3 - लघुकथा की समीक्षा के कौन - कौन से मापदंड होने चाहिए ? 
उत्तर - लघुकथा बहुत बड़े परिदृश्य से एक पल को चित्रित कर देने का नाम है । कई  बार उसकी सहजता और विशिष्ट शैली पाठक को आनंदित कर देती है तो कई बार पाठक को भाव-सागर में गोता लगाकर सार्थक मोती खोज लाना पड़ता है यानि उसके भी बुद्धि कौशल का परीक्षण हो सकता है । लेखक की शैली पर भी निर्भर है कि वह बात को किस अंदाज में आगे पहुँचाना चाहता है, वह संवादात्मक, संवेगात्मक, चित्रात्मक या संकेतात्मक हो सकती है किंतु लघुता के फ्रेम में कथ्य तो अनूठे अंदाज में परोसा ही जाना चाहिए| जो लोग युगों से चली आ रही कथाओं को धो- पोंछकर परोस रहे हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि मौलिकता का धुरंधर कोई और है, आप तो बस प्रस्तुति दे रहे हैं ।

प्रश्न न.4 - लघुकथा साहित्य में सोशल मीडिया के कौन - कौन से प्लेटफार्म की बहुत ही महत्वपूर्ण है ? 
उत्तर - आज अनेकोनेक अंतर्जाल ब्लाग ( ई पत्रिका , ई पुस्तक ) प्रचलन में हैं, वहीं फेसबुक, व्हाट्सएप व दूसरे संचार साधनों की धूम है, बस डर इतना है कि बेचारी छोटी - सी, दुलारी- सी  हमारी लघुकथा इनमें दब न जाए| जब बहुत ज्यादा मात्रा में सामान उपलब्ध होने लगे तो गुणवत्ता भी अपनी खोज को पूछने लगती है। 

प्रश्न न.5 - आज के साहित्यिक परिवेश में लघुकथा की क्या स्थिति है ?
उत्तर - स्थिति बहुत अच्छी भी है और कुछ संदर्भों में चिंतन करने की गुंजाइश भी है । आज मुलम्मे उतर रहे हैं और नये जामा पहनाए जा रहे हैं पर लघुकथा तो अपने पुरातन कलेवर को ही और चमकाकर शोभायमान है । अब पत्रिकाओं में लघुकथा खूब छपती है । अब लघुकथाओं का वर्गीकरण भी हो रहा है शैली के आधार पर यानि विविधरंगी है यह परी..।

प्रश्न न.6 - लघुकथा की वर्तमान स्थिति से क्या आप सतुष्ट हैं ?
उत्तर - इस ओर जो भी काम कर रहे हैं  साधुवाद तो उनको बनता ही है बस घटना या कल्पना को जबरन बुनना वो भी ढीले फंदों के साथ तो मजा नहीं । कथ्य की कसावट होनी चाहिए वो वास्तविकता या सहजता के धरातल पर , कुछेक मठाधीशों की चुनौतियाँ हैं तो कुछेक को रचना कौशल निखारने का अभ्यास और निरंतर करना होगा । घटना ही लघुकथा नहीं है जैसे हम कोई सूचना दे रहे हों । अपने आस- पास और परिवार से बाहर भी विषयवस्तु प्रतीक्षा में है... जिज्ञासा और दूरदृष्टि होना भी लघुकथाकार के लिए सहायक मापदंड है । मैं स्वयं भी उसी ओर प्रयासरत हूँ ।

प्रश्न न.7 - आप किस प्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बताएँ कि  किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उत्तर - यह मैं नहीं निर्धारित करूँगी बल्कि पाठक ही करेंगे । समीक्षक ही बता सकेंगे कि लघुकथा के पथ पर मेरी लेखनी की मंज़िल क्या है और पड़ाव क्या होंगे, अभी तो प्रयास जारी हैं। समाज में जो देखा और अनुभव की कसौटी पर जो कसा, वही बुना पर कार्य जारी है। अभी तो मात्र 60 के करीब ही लघुकथाएँ लिखी हैं । जागरूक पाठक बनने और लेखन के क्षेत्र में आगे बढ़ने को प्रयासरत हूँ ।

प्रश्न न.8 - आप के लेखन में , आपके परिवार की भूमिका क्या है? 
उत्तर - माता- पिता की कहानियों में रुचि होना ।  हम पाँचों भाई- बहन बिना कहानी सुने सोते नहीं थे । हमने बचपन में दादाजी से और मम्मी- पिताजी से अब तक बहुत कथाओं का रसपान किया है । यह साहित्यिक रुचियों की नींव कही जा सकती है । पिताजी उस समय के ( 60-70 वें दशक) उच्च शिक्षित व्यक्ति थे जिन्हें उर्दू का भी  ज्ञान था| नंदन, हंस, कादंबिनी, साधन, सरिता, पंजाब केसरी आदि पत्र- पत्रिकाएँ घर आती थीं जो मेरी पठन क्षुधा को तृप्त करती थीं ।

प्रश्न न.9 - आप की आजीविका में , आपके लेखन की क्या स्थिति है?
उत्तर - कुछ लिखती हूँ तो कुछ मुक्तावस्था जो प्रसन्नता देती सी लगती है, नयी ऊर्जा का संचार भी अपने अंदर पाती हूँ । हरिगंधा में जब नाटक छपा और उसके कुछ रुपये भी मिले तो कार्य का संतोष भी हुआ था। संप्रति शिक्षण और लेखन ही आजीविका हैं ।

प्रश्न न.10 - आपकी दृष्टि में लघुकथा का भविष्य कैसा होगा ? 
उत्तर - बेहतर होगा और आयाम भी बनेंगे । पलक झपकते द्रुतगामी ऐप आपको ढेरों पठन सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं, आगे और भी सुगमता होगी ।

प्रश्न न.11 - लघुकथा साहित्य से आपको क्या प्राप्त हुआ है ?
उत्तर - आत्म संतोष और साहित्यिक दृष्टिकोण मिला है। समाज का आइना हैं लघुकथाएँ तो सोच व समझ आकार लेती है । श्रेष्ठ लघुकथाकारों से इसके जरिये न सिर्फ पढ़ना हुआ बल्कि उन्हें जाना भी । सार्थक परिचय- विस्तार हुआ ।

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