कुसुम पारीक से साक्षात्कार

जन्मस्थान : रतनगढ़ 
जन्मतिथि : 15 नवम्बर
शिक्षा : एम ए, बी एड बनस्थली विद्यापीठ
व्यवसाय : -
पति के व्यवसाय में सहयोग व गृह संचालन

विधाएं : -
लघुकथा,कहानी ,आलेख, संस्मरण इत्यादि

सम्मान : -

-  प्रतिलिपि द्वारा आयोजित ' प्रतिलिपि पर्यावरण सम्मान, में  रचना "अवलम्बन " को तृतीय पुरस्कार मिला।
- श्रीमती कांता रॉय जी द्वारा आयोजित लघुकथा अधिवेशन दिल्ली में " लघुकथा श्री " से नवाजा गया 
-  श्रीमति कृष्णा  स्मृति लघुकथा प्रतियोगिता में रचना " समर्पण " प्रथम स्थान के लिए पुरस्कृत हुई।
- सोशल मीडिया पर विभिन्न समूहों द्वारा आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में  कई बार विजेता।

विशेष : -

-  बीजेन्द्र जैमिनी जी द्वारा सम्पादित " हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार " ( ई - लघुकथा संकलन )  ऑनलाइन प्रकाशित 101 लघुकथाकारों की 1111 लघुकथाओं में 11 लघुकथाओं को स्थान प्राप्त।
-  राष्टीय स्तर समाचार पत्र- राजस्थान पत्रिका , दैनिक भास्कर। क्षेत्रिय- युग पक्ष, जनसंसार आदि
- ऑन लाइन पत्र पत्रिकाएं- एम पी मीडिया पोर्टल, चिकिर्षा, जय विजय , मुस्कान एक एहसास, प्रखर गूंज, रचनाकार ,सुदर्शनिका आदि
- -विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में ,कहानी ,आलेख व लघुकथाएं प्रकाशित  लघुकथा कलश ,अविराम साहित्यिकी,गृह स्वामिनी,शैक्षिक-दखल,  किस्सा कोताह,सहित्यनामा आदि प्रमुख हैं।

पता : बी 305 राजमोती 2 छरवाड़ा रोड
        पो.ओ.वापी जिला वलसाड - गुजरात
प्रश्न न.1 -  लघुकथा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है ? 
उत्तर - लघुकथा, शब्द सुनते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है क्योंकि यह वह विधा है जिसे लिखने की चाह हर लेखक की होती है और यह मेरी खुशनसीबी है कि लघुकथा लेखन  मेरी पसंदीदा विधा है। जब बात आती है इसके मुख्य तत्व की तो सबसे प्रमुख तत्व  'कथ्य' मानती हूँ। क्योंकि जब तक आपका कथ्य स्पष्ट नहीं होता आपका कथानक ,शीर्षक या पंचलाइन कोई भी मारक नहीं बन सकता। इसलिए लघुकथा को लिखने से पहले लेखक को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह कहना क्या चाहता है। जब यह उसके दिमाग मे स्पश्ग तौर पर अंकित होगा तब उसके कथानक चुनाव में आसानी होगी।

प्रश्न न.2 -  समकालीन लघुकथा साहित्य में कोई पांच नाम बताओं ? जिनकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है ? 
उत्तर - मेरे लिए  इतने कम नाम लेना मुश्किल काम होगा क्योंकि पिछले तीन सालों के लेखन में मैंने अनेकों उत्कृष्ट लेखकों को पढ़ा,समझा और उनसे सीखा है फिर भी जब नाम बताने है तो  श्री मधुदीप गुप्ता , योगराज जी प्रभाकर, बीजेन्द्र जैमिनी जी, कान्ता राय जी , सुकेश साहनी जी आदि ऐसे नाम हैं जो लघुकथा के पर्याय माने जा सकते हैं।

प्रश्न न.3 - लघुकथा की समीक्षा के कौन - कौन से मापदंड होने चाहिए ? 
उत्तर - बात समीक्षा की आए तब सबसे पहली नजर जाती है ,कथ्य पर , कथ्य को प्रस्तुत करने के लिए कथानक का चुनाव कितना सही है कितना गलत।यह बात लघुकथा को बहुत मजबूत या कमजोर बना सकती है। कथानक  स्पष्ट है तब इसमें पंच लाइन को देखना चाहिए कि वह किस प्रकार प्रयुक्त हुई है जिससे कथ्य स्पष्ट हो और कथानक प्रभावशाली बने। इन सबके बाद शीर्षक को देखना चाहिए कि उस शीर्षक में इस कथा का सार है या नहीं। शीर्षक ही ऐसा होता है जो कई बार पूरी कथा का सार कह जाता है। इन सबकी मजबूती से कथा प्रभावोत्पादक बनती है जिन्हें हर समीक्षक को ध्यान में रखना चाहिए लघुकथा जनसामान्य को उद्देलित करने में सक्षम है या केवल खाना पूर्ति ही हुई है क्योंकि कई बार लेखक अपने मन की भड़ास निकालने के लिए लघुकथा लेखन करते है लेकिन वह केवल ब्लॉग साबित होकर रह जाती है।  कुछ लघुकथाएं  ऐसी घटनाएं होती हैं जो अक्षरशः घटित हुई वैसे ही लिख दी जाती है। यह सब लघुकथा लेखन का हिस्सा नही बनना चाहिए इसलिए समीक्षक की जिम्मेदारी बनती है कि जब उसके आगे लघुकथा आए तब उसे सहज सरल व ग्राह्य रूप से आम या विशिष्ट पाठक को गहराई तक सोचने पर मजबूर करती हों ऐसी कथाओं को प्रोत्साहन देना चाहिए।


प्रश्न न.4 - लघुकथा साहित्य में सोशल मीडिया के कौन - कौन से प्लेटफार्म जो बहुत ही महत्वपूर्ण है ? 
उत्तर - बीजेंद्र जैमिनी जी का ब्लॉग , लघुकथा के परिंदे आदि ऐसे नाम हैं जो हर लेखक को लिखने का सुकून देने के साथ पढ़ने में भी रुचि जागृत करते हैं।

प्रश्न न.5 - आज के साहित्यिक परिवेश में लघुकथा की क्या स्थिति है ?
उत्तर - साहित्य समय अनुसार हमेशा खुद में बदलाव लाता हुआ आगे बढ़ा है और ऐसे ही परिवर्तन की लहर के साथ बढ़ता रहेगा। आज के दौर में देखे तो सच में लघुकथा ने अपनी एक विशिष्ट जगह बना ली है। आज का व्यक्ति इतना व्यस्त हो चुका है कि कहानी या उपन्यास पढ़ने का उसके पास समय नही होता लेकिन  लघुकथा को वह अनदेखा करके कभी नहीं निकलता। चाहे वह एक सरसरी नजर से ही उसे पढ़े , पढ़ता अवश्य है और जब लघुकथा मारक होती है तब वह उसी में डूब जाता है।  दैनिक जीवन मे हम पाते है कि काफी लघुकथाएं ऐसी होती हैं जो जनमानस को उनके जीवन से जुड़ी हुई लगती हैं। 
विसंगतियों से भरी हुई लघुकथाएं हर व्यक्ति को सोचने पर मजबूर करती हैं। समाज मे फैली विद्रूपता को भी वह दर्शाती प्रतीत होती हैं लेकिन आदर्शवादी लघुकथाओं को कमी खलती है।  उन्हें बोधकथाओ का रूप दे दिया जाता है। क्या सच में समाज को आदर्शवाद व नैतिकता की आवश्यकता नहीं रह गई है?   जब हम बड़े मूल्य स्थापित करने वाली लघुकथाओं को लिखे तो यह कह कर नकार दी जाती हैं कि यह वास्तविकता से दूर है या ऐसा होना सम्भव नहीं है। इस सोच में बदलाव की आवश्यकता है।
फिर भी बहुत सी  लघुकथाएं इतनी मारक क्षमता वाली होती हैं कि हर व्यक्ति उन्हें खुद की जिंदगी से जोड़ता हुआ महसूस करता है व काफी दिनों तक उसी में डूबा रहता है। इसलिए मेरा मानना है कि लघुकथा एक ऊंचाई को प्राप्त करती जा रही है। यदि सभी मिलजुलकर काम करें तो लघुकथा बहुत आगे जाएगी।

प्रश्न न.6 - लघुकथा की वर्तमान स्थिति से क्या आप सतुष्ट हैं ?
उत्तर - आज के परिवेश में लघुकथा अपने पूरे शबाव पर है। 
इस सोशल मीडिया ने हर किसी को कलम चलाने के लिए प्रेरित किया है। मैं यह नहीं कह रही कि सभी अच्छे लेखक या लेखिकाएं ही हैं लेकिन उस भीड़ में भी कई बहुत ही प्रतिभावान लेखक लेखिकाएं  उभर कर आएं हैं जिनकी लघुकथाएं समाज की विअंगतियो पर जबरदस्त प्रहार करती हुई हैं और उन्ही में से कोई न कोई कालजयी रचना भी निकल आती है। दूसरी ओर जगह जगह समूह राजनीति के शिकार लोगो से लघुकथा लेखन को हानि हो रही है।  नवोदित लेखक , जिसने बहुत उत्कृष्ट रचना रची हो लेकिन उसकी कथाओं पर टिप्पणी करने कोई भी प्रतिष्ठित साहित्यकार नहीं आते। या तो उनकी हेठी होती है या वह किसी का अच्छा लेखन बर्दाश्त नहीं कर सकते। कम से कम साहित्य को  इस समूहबाजी व चापलूसी से दूर रखना चाहिए।
 
प्रश्न न.7 - आप किस प्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें  किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उत्तर - मैं एक ऐसे मध्यमवर्गीय परिवार से हूं जहाँ केवल जरूरतें पूरी की जाती थीं लेकिन किताबो पर हमेशा पैसा खर्च किया जाता था। हमारे घर में पापा के लाये ही उपन्यास मैंने बचपन से ही पढ़ने शुरू कर दिए थे फिर कॉलेज तक यह सिलसिला चलता रहा। मैं और मेरे भाई ने देवकीनंदन खत्री के उपन्यास रात रात भर जागकर  पढ़े थे। मैंने धार्मिक पुस्तकें ज़्यादा पढ़ी है जिनका असर कभी- कभार मेरे लेखन में भी दिख जाता है। आज भी पापा के घर में मेरे दादाजी के नाम से ही कल्याण आता है।

प्रश्न न.8 - आप के लेखन में , आपके परिवार की भूमिका क्या है ? 
उत्तर - मेरे परिवार से मुझे उत्साह और ऊर्जा दोनों मिलती है। मेरी बेटी जो अभी कॉलेज में है वह मुझमें जुझारूपन पैदा करती है और सभी अन्य सदस्य मुझे प्रेरित करते हैं।
मेरे पति को साहित्य का शौक नहीं है लेकिन मेरी हर उपलब्धि पर खुश  होते हैं।

प्रश्न न.9 - आप की आजीविका में , आपके लेखन की क्या स्थिति है ?
उत्तर - कोई भूमिका नहीं है।

प्रश्न न.10 - आपकी दृष्टि में लघुकथा का भविष्य कैसा होगा ? 
उत्तर - उत्कृष्ट व उज्ज्वल भविष्य होगा क्योंकि लघुकथा का जन्म विसंगतियों से होता है और समाज से न कभी विसंगतियां खत्म होंगी और न ही लघुकथा लेखन।
 हर समाज,देश, काल के बहुत सारे मुद्दे स्थायी होते है जिन्हें नए नए कथ्य कथानक के माध्यम से पाठकों के सामने लाने की कला केवल लघुकथा में ही है इसलिए यह भविष्य में लेखन में शीर्ष स्थान पर होगी।
 
प्रश्न न.11 - लघुकथा साहित्य से आपको क्या प्राप्त हुआ है ?
उत्तर - सबसे पहली चीज  'खुशी' इसके साथ-साथ विद्जनो से मिलना,सीखना,सम्मान अत्मविश्वास,  आत्मसंतुष्टि की ओर अग्रसर ,शानदार मित्रगण ऐसी कई चीजें हैं जो मुझे लघुकथा लेखन दे रहा है।

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