संगीता गोविल से साक्षात्कार

जन्म तिथि - 12 जून 1964
माता - शशिप्रभा अग्रवाल 
पिता - स्व0 हीरा लाल अग्रवाल 
पति का नाम- श्री प्रभात कुमार गोविल 
शिक्षा - बी0 एस सी0, कंप्यूटर साईन्स, डी0सी0एच0
कार्य क्षेत्र - अपना विद्यालय का संचालन 

विधा - लघुकथा, कविता, हाइकु, आलेख 

साझा संकलन : -

मुट्ठी में आकाश

सृष्टि में प्रकाश 

लघुकथा साझा संकलन है 

 विशेष : -

- आ0 मधुकांत जी ने 'नमिता सिंह' की लघुकथा के साथ    

जुड़ना

 - आ0 बीजेन्द्र जैमिनी जी के विभिन्न ब्लॉग पन्नों पर विभिन्न विषयों पर लघुकथा देने का अवसर प्राप्त हुआ है। 

 - समाज में हिन्दी के उत्थान के लिए

 - गरीब बच्चों की पढ़ाई

 - सप्तरंग सेवा संस्थान का संचालन

 - लेख्य-मन्जूषा के अन्तर्गत हिन्दी को बढावा देना

पता : -

201,  महेश्वरीकुंज अपार्टमेंट ,रोड न0 6, 

पूर्वी पटेल नगर , पटना - 23 बिहार

प्रश्न न.1 -  लघुकथा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है ? 
उत्तर - लघुकथा में सबसे महत्वपूर्ण है उसका कथ्य, जो उसे प्रमाणित करता है। 

प्रश्न न.2 -  समकालीन लघुकथा साहित्य में कोई पांच नाम बताओं ? जिनकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है ? 
उत्तर - यूँ तो अनेकों साहित्यकार इस विधा का मान-सम्मान बढ़ाने में दिन-रात लगे हैं। परन्तु मेरी जानकारी में पाँच नाम हैं - 1) डॉ0 सतीशराज पुष्करणा 2) आ0 मधुदीप गुप्ता 3) आ0 बीजेन्द्र जैमिनी  4) सुकेश साहनी  5) कमल चोपड़ा 

प्रश्न न.3 - लघुकथा की समीक्षा के कौन - कौन से मापदंड होने चाहिए ? 
उत्तर - लघुकथा की समीक्षा के लिए मापदंड है - शीर्षक , कथ्य और संदेश का सम्प्रेषण। क्योंकि इस विधा में शब्दों के अर्थ गूढ़ता से सम्प्रेषित होते हैं। 

प्रश्न न.4 - लघुकथा साहित्य में सोशल मीडिया के कौन - कौन से प्लेटफार्म बहुत ही महत्वपूर्ण है ? 
उत्तर - साहित्य की किसी भी विधा के प्रचार-प्रसार में आज सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है। अब तो अनेकों प्लेटफॉर्म कार्यरत हैं । उनमें से - भारतीय लघुकथा विकास मंच, साहित्य संवेग, अखिल भारतीय लघुकथा मंच, लेख्य-मंजूषा आदि।

प्रश्न न.5 - आज के साहित्यिक परिवेश में लघुकथा की क्या स्थिति है ?
उत्तर - आज के परिवेश में लघुकथा हर विधा के साथ प्रतियोगिता कर रही है। यह  नई ऊँचाइयों को छूने के लिए बढ़ चली है।  यह ज्यादा आकर्षण का केंद्र बन रही है। साहित्य जगत में इस विधा को जानने समझने की रुचि बढ़ रही है।

प्रश्न न.6 - लघुकथा की वर्तमान स्थिति से क्या आप सतुष्ट हैं ?
उत्तर - नहीं, क्योंकि इसके जिस प्रारूप के लिए वरिष्ठ साहित्यकारों ने संघर्ष किया । वर्तमान में अभी तक उस रूप को नहीं अपनाया जा रहा है। काफी हद तक लेखनी चल रही है लेकिन वो संप्रेषण या तीर नजर नहीं आ रहा । जो समाज की बुराइयों पर प्रहार कर सके। मेरा मानना है कि लेखक इस विधा की गहराई को समझ नहीं पा रहे। 

प्रश्न न.7 - आप किस प्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें  किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उत्तर - मेरे परिवार में माता-पिता पढ़े-लिखे थे। उन्होंने सभी बेटियों को इंजीनियर , पायलट व शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाया। ससुराल में भी सभी पढ़े-लिखे हैं। इसलिए साहित्य के मर्म को समझते हैं। जहाँ तक मार्गदर्शन का सवाल है तो अभी मैं खुद ही विद्यार्थी हूँ। आ0 पुष्करणा जी और उनके बाद विभा रानी श्रीवास्तव हमारी गुरु हैं। जितना तक मेरी जानकारी है मैं सभी की मदद करना चाहती हूँ। मेरी भी इच्छा है कि साहित्य में अच्छी लघुकथाएँ आएँ ताकि समाज के नए रूप का उदय हो सके। सशक्त समाज का निर्माण हो।

प्रश्न न.8 - आप के लेखन में , आपके परिवार की भूमिका क्या है ? 
उत्तर - मेरे लेखन में मेरी बेटियाँ और बहनें प्रथम पाठक की भूमिका अदा करती हैं। लिखने में रुचि नहीं रखतीं परन्तु मेरे लेखन को ज्यादा उम्दा बनाने का प्रयास अवश्य करतीं है। सभी की सलाह लेने की मैं पूरी कोशिश करती हूँ।

प्रश्न न.9 - आप की आजीविका में , आपके लेखन की क्या स्थिति है ?
उत्तर - मेरी आजीविका तो नहीं, लेकिन मेरे कार्यक्षेत्र में लेखन का बहुत प्रभाव पड़ा है। शब्दों का ज्ञान, उनका सही उपयोग , सुस्पष्ट भाषा तथा अपने आचरण में बदलाव , मैं खुद महसूस करती हूँ। क्योंकि मैं एक विद्यालय की संचालिका हूँ तो इनसे होने वाले लाभ को मैं प्रत्यक्ष देखती हूँ।

प्रश्न न.10 - आपकी दृष्टि में लघुकथा का भविष्य कैसा होगा ? 
उत्तर - मैं खुद इस विधा की कायल हो गई हूँ। क्योंकि कोई जरूरी नहीं है कि हर व्यक्ति कहानी, कविता या दूसरी किसी भी विधा में कुशल हो। तो फिर उसे अपनी अभिव्यक्ति के कोई साधन नहीं दिखते सिवा लघुकथा के। बाकी विधाओं के लिए लंबे चिंतन की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन लघुकथा एक छोटी घटना में ही संदेश ढूंढ लेती है, जो आजकल आम रास्तों पर भी घटित होती है।

प्रश्न न.11 - लघुकथा साहित्य से आपको क्या प्राप्त हुआ है ?
उत्तर - मुख्य रूप से मैं लघुकथा की ही विद्यार्थी हूँ। साहित्य जगत से इतने कम दिनों में ही मुझे जो मान-सम्मान मिला है, वह मेरी अपनी पूँजी है। इसे कोई नहीं छीन सकता। हमारे व्यक्तित्व में निखार इसी ने दिया है। साथ ही पहचान जो हमारी अभिलाषा थी, इसी से मिली है। मंजिल तक पहुँचूँ या न पहुँचूँ कदम आगे ही बढ़ेंगे। आप सभी साहित्यकारों का धन्यवाद जिन्होंने पथ प्रशस्त किया है।

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