वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?
वृद्धाश्रमों की आवश्यकता दिनों दिन बढती जा रही है । जो चिंता का विषय है । परिवार दिनों दिन टूट रहे हैं । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - भारत की सनातन भारतीय संस्कृति संयुक्त परिवार की है । समाज में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से देश में परिवर्तन आया है । संयुक्त परिवार एकल परिवार में बदल गए । परिवार में बड़े , बूढ़ों की अवेहलना होने लगी और उनकी अहमियत शनैःशनैः खत्म होने लगी । मानव में मूल्यों , संस्कारों का ह्रास होने लगा । माता -पिता जिन्होंने संतान को स्वाबलंबी , आत्मनिर्भर बनाया । उन्हीं की औलाद अपने माता -पिता को बोझ मानते हैं । वे अपने संग रखना पसंद नहीं करते हैं । बुढापे में बच्चों की सेवा की जरूरत होती है तो वे बच्चे सेवा करना पसंद नहीं करते है । सन्तान को उनकी बात भी बुरी लगती है । माता - पिता की सेवा न करने से सन्तान आजाद रहना चाहती है इसलिए उन्हीं की संतान उन्हें वृद्धाश्रम में रखना पसंद करते हैं । समाज में यही नकारकात्मक भाव प...
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ReplyDeleteसभी विजेताओं को पुरस्कार राशि का बैंक चैक सहित प्रमाण पत्र भेज जा रहे हैं ।
ReplyDeleteआदरणीय मित्र,
ReplyDeleteजय हिन्दी ! जय भारत !
आशा है स्वस्थचित्त होंगे । कृपया निम्न जानकारी WhatsApp No. पर शीध्र भेजें : -
1. आपकी प्रथम लघुकथा (नाम भी दीजिए) किस पत्र/पत्रिका/पुस्तक में तथा कब प्रकाशित हुई?
2. आप अपना जीवन परिचय ( नाम , जन्म दिनांक व स्थान , शिक्षा , प्रकाशित पुस्तकों का विवरण आदि ) तथा एक फोटों
कृपया उपरोक्त समस्त जानकारी टाइप कर के भेजें। केवल WhatsApp के माध्यम से शीघ्र भेज दीजिए।
इस एकत्रित सामग्री का उपयोग समयानुसार blog पर प्रसारित किया जाऐगा ।
निवेदन
बीजेन्द्र जैमिनी
निदेशक
जैमिनी अकादमी
पानीपत
WhatsApp Mobile No 9355003609
आदरणीय भाई बिजेंद्र जी
ReplyDeleteसादर नमन ।
मैं अजनबी लेखिका 2017 में आपकी लघुकथा प्रतियोगिता के माध्यम से जुड़ी थी । श्रद्धाजंलि को प्रथम पुरस्कार मिला था । खुशियाँ होना स्वाभिक था । मग्सम ने अहसास लघुकथा को द्वितीय पुरस्कार
से सम्मानित किया ।
कलम की धार ने ही देश - विदेश से जोड़ दिया । इस तरह आपके साथ लेखन का सिलसिला बढ़ता चला गया ।
आपकी सोच ने जीवन की प्रथम लघुकथा से देश , विदेश के अभी तक हिंदी साहित्य जगत के हस्ताक्षर 70 साहित्यकारों इस मच सेजोड दिया ।
सभी की लघुकथा समाज का वास्तविक आईना है ।
हर इंसान के अँधेरे जीवन में उजियारे की किरण है ।
आपकी सकारात्मक सोच ने इन दस्तावेजों को संग्रहहित करके दिव्य
भव्य साहित्य विरासत को नयी नस्ल को सौंप रहे हो ।
यह मिसाल , मील का पत्थर बन विश्व साहित्य जगत को राह दिखाएगा ।
मुझे खुशी भी है कि नयी पौध को हम सब उन्हें साहित्य , संस्कार दे रहें हैं ।
हमारे पूर्वजों ने भी हमें दिया । जिनसे हर कोई लाभवांवित होता है ।
अगर आप इन दस्तावेजों को कृति का रूप दें दे तो सोने में सुहागा होगा ।
दिल से धन्यवाद 69 क्रमांक मेरी कलम को स्थान दिया ।
डॉ मंजु गुप्ता
वाशी , नवी मुंबई