Posts

Showing posts from February, 2021

क्या जीवन में आशा और निराशा धूप - छांव के समान होती है ?

Image
आशा और निराशा तो जीवन के दो पहलू है । जो धूप - छांव के समान साबित होते हैं । अक्सर हमें इन्हें समझ नहीं पाते हैं । यहीं जीवन की कठिनाई है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - हां जीवन में आशा और निराशा धूप छांव के समान ही होते हैं।सच तो यह है कि यदि ऐसा न होता तो शायद कोई बहुत अधिक दुखी और कोई बहुत अधिक सुखी होता।प्रकृति द्वारा निर्मित यह नियम बना ही ऐसा है कि दुख के बाद सुख और सुख के बाद दुख जीवन में एक शीतल लहर बनकर आता है। - डॉ० विभा जोशी   दिल्ली         प्रकृति का चक्र है कि कुछ भी स्थायी नहीं होता। परिवर्तन अवश्यंभावी है। समर्थ से समर्थ इन्सान भी जीवन में उतार-चढ़ाव अवश्य देखता है। यही उतार-चढ़ाव क्रमशः निराशा अथवा आशा को जन्म देते हैं। आशा में मन प्रकाशित होता है और निराशा में घने अंधकार से घिरा होने के समान हो जाता है।  यह सही है कि जीवन में आशा और निराशा धूप-छाँव के समान होती हैं। परन्तु यह इन्सान की जिजीविषा ही है कि वह निराशा रूपी छाँव पर विजय प्राप्त कर आशा की धूप अपने जीवन में

क्या कल किसी ने कभी देखा है ?

Image
कल आज तक नहीं आया है । जो कल का इतंजार करते हैं । वह जीवन में पीछे रहते हैं । ऐसा सभी कहते हैं । इसलिए आज पर विश्वास करना चाहिए । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -  काल करे सो आज कर, आज करे सो अब l  पल में प्रलये होयगी, बहुर करेगो कब ll    कल को किसी ने नहीं देखा है l कोई नहीं जनता है कि अगले ही पल हमारे साथ क्या घटने वाला है l अतः काम और समय की पाबंदी हमारा जीवन का लक्ष्य होना चाहिए l कल की नींव आज पर ही अवलम्बित है l अतः वर्तमान में जीना और कल को सुरक्षित करना ही श्रेष्ठ है l "हवा खुद हवा के खिलाफ है, आज दिये जलाओ कल के लिए l कल आइनों का जश्न हुआ था तमाम रात मगर कल के आग़ोश में लिपटे तमाशबीनों को पत्थर नहीं मिले ll             -----चलते चलते जिंदगी एक सफ़ऱ है सुहाना जहाँ कल क्या हो किसने जाना मुस्कराते हुए दिन बिताना यहाँ कल क्या हो किसने जाना l        - डॉ. छाया शर्मा अजमेर - राजस्थान विज्ञान तो 'कल' को देखने की शक्ति रखता ही है परन्तु बात यदि मानव मन की जाये तो य

भारतीय कलाकार संघ द्वारा प्रशस्ति प्रमाण पत्र से सम्मानित बीजेन्द्र जैमिनी

Image
                         बीजेन्द्र जैमिनी                          ========== जन्म : 03 जून 1965 शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्              फिल्म पत्रकारिता कोर्स              कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक                जैमिनी अकादमी , पानीपत                ( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रकाशित ) मौलिक :- मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989 प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990 त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991 नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998 इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001 धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001 सम्पादन :- चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990 पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998 शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001 प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001 बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001 बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001 संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002 रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002 हरियाणा साहित्यकार कोश ( प

क्या अपनी क्षमता को पहचानने वाले ही आगे बढ़ सकते हैं ?

Image
अपनी क्षमता को पहचानने वाले ही आगे बढने की सोच सकते हैं । जो क्षमता को पहचानने में असमर्थ रहता है । वह आगे बढने मे सफलता बहुत कम को प्राप्त होती है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -      प्राकृतिक क्षमता से जो शक्तिशाली  बनकर उभरता हैं, उसकी ही बुद्धिमान इच्छानुसार जीवन यापन कर जीवित अवस्था में पहुँचने में सफलता मिलती जाती हैं और कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखता हैं, जो उसकी  विवेकाधीन पर निर्भर करता हैं। जो दूसरों को कष्टदायक बनाते हुए अपनी क्षमता का परित्याग करते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता हैं, उसे भविष्य में असफलता का सामना करना पड़ता हैं, उसके समस्त प्रकार के कार्यों में बाधाएं आती जाती हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं और अंत में बुरी तरह से क्षमता विहीन हो जाता हैं और प्रायः वर्तमान परिदृश्य में  देखने को मिलते हैं। हमें सृजगता के सहारे जीवित अवस्था में पहुँचाने विफलताओं का सामना करना चाहिए? अपनी क्षमता को पहचानने वालें ही आगें बढ़ सकते हैं। नहीं तो पछताने फे क्या फायदा होगा? - आचार