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Showing posts from January, 2020

क्या गुस्से में दिमाग सहीं निर्णय ले पाता है ?

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गुस्से में कुछ भी हो सकता है । बड़े से बड़े अपराध हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में कोई भी निर्णय लेने से बचना चाहिए । यही सबके हित में होता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। देखते हैं आये विचारों को : - गुस्से में  दिमाग कभी भी सही निर्णय नहीं ले सकता ।गुस्सा एक तीव्र नकरात्मक उर्जा है ।यह व्यक्ति की सोचने समझने की शक्ति समाप्त कर देता है,इस अवस्था में सही निर्णय लेना सम्भव नहीं है ।यह मनुष्य का एक सामान्य अवगुण भी है ।कोई यह नहीं कह सकता कि उसे गुस्सा नहीं आता ।किसी में इसकी मात्रा थोड़ी होती है तो किसी में ज्यादा ।बेहतर यही यही होता है कि गुस्से हम कोई महत्वपूर्ण निर्णय न लें ,पहले खुद को शांत करें,फिर निर्णय ले।   - रंजना वर्मा रांची - झारखण्ड नही कदापि नहीं ग़ुस्सा विवेकहीन बना देता है कुछ समय के लिये मनुष्य अच्छाबुरा भूल जाता है ... क्रोध एक प्राकृतिक भावना है आधुनिक जीवनशैली किसी भी व्यक्ति को तनाव में धकेल सकती है। अब जबकि हजारों लोगों को अपने रोजगार और घरों से हाथ धोना पड़ रहा है और यहां तक कि सेवानिवृत्त लोगों की सुरक्षित राशियां भी बाजारी उथल

माँ की ममता

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" माँ की ममता " सबसे सुन्दर वाक्य है । इससे सुन्दर पूरी धरती  भी कुछ इंसान " माँ की ममता " को कुछ समझते नहीं है । यह इंसान की सबसे बडी भूल है । " मेरी दृष्टि में " कोई माँ के जागरण करवाता है । कोई तीर्थ पर जाता है ।पता नहीं ! क्या - क्या करते हैं । परन्तु माँ के चारणों में स्वर्ग मिलता है । यह पता नहीं है ।                                                 - बीजेन्द्र जैमिनी

हार जीत कोई पैमाना नहीं है कि आप सहीं है या गलत ?

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 जीत का अर्थ यह नहीं है कि आप सही है । ऐसा अक्सर देखा गया है कि जीत के लिए पैसा व ताकत का प्रयोग होता है । तब गलत भी अपनी जीत दर्ज करवा लेता है ।ऐसा ही उद्देश्य " आज की चर्चा " का है। आये विचारों को भी देखते हैं  : -  गलत व्यक्ति आज नहीं तो कल अवश्य हारेगा । जब व्यक्ति धर्म की राह पर सत्य के साथ चलता है तो वो अवश्य ही जीतता है । तात्कालिक रूप से भले ही हार जीत , सही गलत का पैमाना न हो किन्तु इसके दीर्घकालिक परिणाम जीत और हार अवश्य निर्धारित करते हैं । रावण पर श्रीराम की जीत अधर्म पर धर्म की जीत थी । इसी तरह कंस पर श्रीकृष्ण की जीत अन्याय पर न्याय की जीत थी ।श्रेष्ठ न्याय वही होता है जहाँ जीत सही व्यक्ति को मिलती है और हार का सामना गलत व्यक्ति करता है । कहा भी गया है भगवान के यहाँ देर है अंधेर नहीं । - छाया सक्सेना प्रभु जबलपुर - मध्यप्रदेश  हार जीत कोई पैमाना नहीं है, कि आप सही हैं या गलत ?  हार जीत कोई पैमाना नहीं है। लेकिन हार जीत का परिणाम मानव दुख और सुख के रूप में एहसास करता है। जो व्यक्ति को क्रिया के  नियम का पता रहता है तो कार्य सही होता है सही होने

सफल जीवन के चार नियम

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  सफल जीवन के चार नियम है :- 1. दुश्मन की चुनौतियों को चुनौती दे । 2. हर समस्या का समाधान अवश्य निकालें । 3. हर स्थिति में हँसना सिखें  4. हार मानने के बजाय संघर्ष करें ।

मौन का जीवन में क्या महत्व है ?

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मौन रहना कोई छोटा कार्य नहीं है। यह एक तरह की साधना है । जिससें हर कोई नहीं कर सकता है । फिर भी जीवन में मौन रहने के अनेक लाभ प्राप्त होते हैं । जीवन अपने आप में शुद्ध करने के लिए मौन का बहुत बड़ा योगदान होता है । यही " आज की चर्चा " का महत्त्वपूर्ण विषय है : - वार्तालाप भले ही बुद्धि को मूल्यवान बनाता हो, किन्तु मौन प्रतिभा की पाठशाला है। संसार में जितने भी तत्वज्ञानी हुए हैं, सभी मौन के साधक रहे हैं ।आचार्य विनोबा कहते थे -- "मौन और एकांत आत्मा के सर्वोपरि मित्र हैं ।" सामान्य जीवन में मौन का पालन करना संभव नहीं हो पाता, इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि जितना आवश्यक है , उतना ही बोलें ।बाकी सारा समय यथासंभव मन को शान्त रखें ।मौन रहने से हमारी वाणी की शक्ति का संचय होता है।मौन हमारे जीवन के बहुत से प्रश्नों का उत्तर है। मौन का अर्थ अन्दर और बाहर से चुप रहना है। आमतौर पर हम ‘मौन’ का अर्थ होंठों का ना चलना माना जाता है। यह बड़ा सीमित अर्थ है। कबीर ने कहा है:- कबीरा यह गत अटपटी, चटपट लखि न जाए। जब मन की खटपट मिटे, अधर भया ठहराय। अधर मतलब होंठ। होंठ वा