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Showing posts from March, 2021

क्या मर्यादा का पालने करने से व्यक्ति महान बनता है ?

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मर्यादा में रह कर इंसान अपनी विशेष पहचान बनता है । जो समाज व देश में ख्याति प्राप्त करता है । ऐसा इतिहास में भी देखा जा सकता है ।जैसे आयोध्या के श्री राम ऐसा ही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -  मर्यादा यानी एक सीमा रेखा !सीमा रेखा से बाहर जाने पर नियम भंग तो होगा ही... किसी भी चीज में अतिशयोक्ति ठीक नहीं और यह नियम मनुष्य या प्राणी मात्र ही नहीं अपितु हर वस्तु विशेष के लिए भी प्रतिस्पारित है!  बचपन से ही हमें मर्यादा में रहने की शिक्षा दी जाती है!  मर्यादा कोई कानून अथवा पाप पुण्य की परिभाषा पर आधारित आचार संहिता भी नहीं * पारस्परिक संबंधों में कलह क्लेश की स्थिति पैदा होने से रोकने , कार्य को सुचारू रूप से चलाने , तथा समाज में तालमेल सामंजस्य स्नेह और व्यवस्था बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है!   सभी के लिए मर्यादा का पालन करना सहज नहीं है !  मर्यादा भंग होने से ही अनुशासन टूटता है एवं  प्रशासन भी बिखर जाता है ऐसे वक्त पर विद्वान और समझदार व्यक्ति  मर्यादा में चलकर  दूसरे के लिए प्रेरणाश्रोत बन

क्या आप पर हँसने वाले कल तालियां भी बजाएंगे ?

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जो व्यक्ति कर्म पर विश्वास करता है । वह हँसने वालों की कोई परवाह नहीं करता है । सफलता में समय और संधर्ष अवश्य लगता है । तभी सफलता हाथ लगती है । और हँसने वालें तालियां बजाते हैं । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। अब आये  विचारों को भी देखते हैं : -         यह समाज है। जो अंधा-बहरा और लंगड़ा होने के साथ-साथ मनोरोगी भी है। इसकी विशेषता है कि यह जिनपर पहले हँसता है बाद में उनकी सफलता प्राप्ति पर तालियां भी बजाता है। इसलिए आत्मनिर्भर कर्मठ व्यक्ति कभी हौंसला नहीं गंवाते और साहसी बन कर अपनी मंजिल की ओर यात्रा जारी रखते हैं। क्योंकि उन्हें ज्ञान होता है कि मंजिल पर वही पहुंचते हैं जो चलते रहते हैं।        इतिहास साक्षी है कि प्रत्येक सफल व्यक्ति समाज की हँसी के साथ-साथ सामाजिक घृणा का पात्र भी बनता है। वह सफल व्यक्ति चाहे किसी भी क्षेत्र से संबंधित क्यों न हो?         धार्मिक क्षेत्र की बात करें तो मीरां और धन्ना जाट की भांति कई नाम सामाजिक हँसी के पात्र बने और प्रभु की प्राप्ति के बाद उन्हें उसी समाज द्वारा सादर अपनाया भी गया।

जयशंकर प्रसाद की स्मृति में कवि सम्मेलन

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जैमिनी अकादमी द्वारा साप्ताहिक कवि सम्मेलन इस बार " उपकार "  विषय पर  रखा गया है । जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के कवियों ने भाग लिया है । विषय अनुकूल कविता के कवियों को सम्मानित करने का निर्णय लिया है । सम्मान साहित्यकार जयशंकर प्रसाद के नाम से रखा गया है ।  जयशंकर प्रसाद जी का जन्म 30जनवरी 1889 को काशी के सरायगोवर्धन में हुआ। इनके पितामह बाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे । जो कलाकारों का आदर करने के लिये विख्यात थे। इनका काशी में बड़ा सम्मान था और काशी की जनता काशी नरेश के बाद 'हर हर महादेव' से बाबू देवीप्रसाद का ही स्वागत करती थी।  प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कालेज में हुई, किंतु बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ संस्कृत, हिंदी, उर्दू, तथा फारसी का अध्ययन  किया। किशोरावस्था के पूर्व ही माता और बड़े भाई का देहावसान हो जाने के कारण 17 वर्ष की उम्र में ही प्रसाद जी पर आपदाओं का पहाड़ ही टूट पड़ा। कच्ची गृहस्थी, घर में सहारे के रूप में केवल विधवा भाभी, कुटुबिंयों, परिवार से संबद्ध अन्य लोगों का संपत्ति हड़पन