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Showing posts from February, 2019

मैं और मेरा संसार

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जी. एस. के. शिष्ट विनोद पत्रिका

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               अनियतकालीन हास्य-व्यंग्य की साहित्यिक पत्रिका है जिसके सम्पादक अमेन्द्र कुमार सिंह है । सम्पादकीय में " शंकराचार्य के देश में " अन्तर्गत प्रकाशित किया गया है । जिसमें परिवार से लेकर मित्रता तक के परिवेश को स्पष्ट करने का प्रयास किया है । साथ ही डांक विभाग की कार्यशैली को भी पेश किया है जो पूर्ण भारत के डांक विभाग के डाकिया की स्थिति को स्पष्ट करता है । पत्रिका में हास्य - व्यंग्य  की रचनाएं होती है । सबसे अधिक काव्य की रचनाओं को स्थान मिलता है । सम्पादक / प्रकाशक जी. एस. के. शिष्ट विनोद पत्रिका पोस्ट बाक्स संख्या - 9645 बी -1 , जनकपुरी पोस्ट ओफिस नई दिल्ली - 110058 

लघुकथा वृत्त हिन्दी मासिक

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    लघुकथा वृत्त हिन्दी मासिक का सम्पादन कान्ता राँय कर रही है । जिस में लघुकथा साहित्य के हर प्रकार के समाचार होते हैं जैसे :- सम्मान समारोह , विमोचन समारोह , गोष्ठी आदि         लघुकथा से सम्बंधित विभिन्न घोषणाएं को भी प्रमुखता से स्थान दिया जाता है । साक्षात्कार , पुस्तक समीक्षा के साथ - साथ क्षेत्रीय भाषाओं की लघुकथाओं को भी स्थान दिया जाता है । इस में चारों ओर लघुकथा ही लघुकथा नजर आती है । हिन्दी मासिक के शीषर्क से स्पष्ट हो जाता है कि लघुकथा साहित्य को समर्पित है ।          यह अंक जनवरी -2019 का है जिस के  संपादकीय में श्रीमती कान्ता राँय ने लघुकथा की परिभाषा देने के साथ - साथ नकारात्मक लेखन का विरोध किया है । यह संपादकीय का दायित्व भी है । जो बेखूबी निभाया गया है ।         लघुकथाएँँ विदेश से शीर्षक के अन्तर्गत रूसी लेखक इवान तुर्गनेव के जीवन परिचय सहित तीन लघुकथाओं को प्रकाशित किया गया है । यह कार्य गोकुल सोनी ने पेश किया है । जबकि लघुकथाओं का अनुवाद श्री ललित कुमार व सुरेश पाण्डेय ने किया है । धरोहर के अन्तर्गत महिमा श्रीवास्तव ने स्व. डाँ. शंकर पुणतांबेकर का जीवन परिचय के सा

प्रेम शब्द के विभिन्न स्वरूप

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जैमिनी अकादमी द्वारा आयोजित परिचर्चा " प्रेम शब्द के विभिन्न स्वरूप " अपने आप में ही परम भक्ति का स्वरूप ही प्रेम है जो हर दिशा में हर क्षेत्रों में विधमान हैं । कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ प्रेम का अस्तित्व सम्भव ना हो....। फिर भी हम प्रेम की खोज में इधर उधर भटकते रहते है । और पूरा जीवन भटकते रहते है । ऐसे में हमें क्या करना चाहिए । यही परिचर्चा का उदेश्य है :-           मुम्बई - महाराष्ट्र से डाँ. अर्चना दुबे लिखती है कि विधाता की सृष्टि में प्रेम मूल तत्व है । सृष्टि का उद्भव और विकास प्रेम से ही हुआ है । प्रेम का आनन्द उसी प्रकार है जिस प्रकार मूक व्यक्ति गुड़ को अपने मुख में रखकर  भी उसका स्वाद नहीं बता सकता ।      प्रेम सौंदर्य का जनक है । वही जीवन और जगत के सम्बन्धों का नियामक है। प्रेम समाज और सृष्टि को गति देने वाला प्रमुख तत्व है । प्रेम का अर्थ 'प्रिय' का भाव अथवा 'प्रिय होना' आदि है । महात्मा गांधी जी के अनुसार "जहां प्रेम है वहां दया है, प्रेम में द्वेष की गुंजाइश ही नहीं, प्रेम में अहम भाव नहीं, प्रेम में भेद नहीं, प्रेम में अ

भारतीय सस्कृति में वैलेंटाइन डे की सीमाएं व उपयोगिता

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जैमिनी अकादमी द्वारा परिचर्चा " भारतीय सस्कृति में वैलेंटाइन डे की सीमाएं व उपयोगिता " विषय ही अपने आप में बहुत कुछ बोलता है ।इससे पहले कुछ जानकारी देना उचित समझता हूँ । 1260 में  'ऑरिया ऑफ जैकोबस डी वॉराजिन' नामक पुस्तक में सेंट वेलेंटाइन का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार रोम में तीसरी शताब्दी में सम्राट क्लॉडियस का शासन था। सम्राट क्लॉडियस के अनुसार विवाह करने से पुरुषों की शक्ति और बुद्धि कम होती है। सम्राट क्लॉडियस ने आज्ञाजारी की कि उसका कोई सैनिक या अधिकारी विवाह नहीं करेगा। संत वेलेंटाइन ने इस क्रूर आदेश का विरोध किया था । जिस के कारण से  अनेक सैनिकों और अधिकारियों ने विवाह किए। आखिर क्लॉडियस ने 14 फरवरी को संत वेलेंटाइन को फांसी पर चढ़वा दिया गया।  अतः सीधे परिचर्चा पर आये तो अधिक उचित रहेगा । सिवाना से लक्ष्मण कुमार लिखते है कि वैलेंटाइन एक अवकाश दिवस है, जिसे 14 फ़रवरी को अनेकों लोगों द्वारा दुनिया भर में मनाया जाता है। अंग्रेजी बोलने वाले देशों में, ये एक पारंपरिक दिवस है, जिसमें प्रेमी एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम का इजहार वैलेंटाइन कार्ड भेजकर, फू