क्या लघुकथा को शब्दों की सीमा में बाधा जा सकता है ?
लघुकथा का स्वरूप
कुछ लघुकथाकार लघुकथा को शब्दों की सीमा में बाधने का प्रयास कर रहें हैं । क्या लघुकथा को शब्दों की सीमा में बाधा जा सकता है । लघुकथा का आकर कथानक पर निर्भर करता है ।
बहुत से लघुकथाकार यानि अपने आप श्रेष्ठ साबित करने के लिए कुछ ना कुछ लघुकथा साहित्य के लिए नये नये मापदण्ड तैयार करते रहते है । जितने लघुकथा साहित्य में मापदण्ड तैयार किये गये हैं बाकी कथा साहित्य में ऐसा कुछ नहीं है । फिर भी लघुकथा को आगे बढने से कोई नहीं रोक सकता है ।
परिचर्चा के विषय के अनुकूल विचारों तक ही सीमित रहकर ही आगे बढते है। सबसे पहले आये विचारों को पेश करते हैं :-
लघुकथा को शब्दों में नहीं बाँधना चाहिए ।हालांकि वह अपने-आप में लघु रूप लिए हुए है । कथा को लघु किया जा सकता है, किन्तु उसका अपना सौंदर्य है जो शब्दों में बांधने से समाप्त हो सकता है । साहित्य सौंदर्य मूलक रहा है । लघुकथा केवल संदेश देने भर तक सीमित नहीं होनी चाहिए । साहित्य में भावी स्थापन के विषय में भी विचार करना चाहिए ।
- डॉ आशा सिंह सिकरवार
अहमदाबाद - गुजरात
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आज व्यस्तता का युग है । क्रिकेट तक 20 - 20 में सिमट गया है । एक दिन के मैच को एक दिन जैसा ही खेला जॉये तभी वह रुचिकर लगता है । साहित्य में लघुकथा के पाठक उड़ती नजर में कथ्य पकड़ लेते हैं , अतः लघुकथा में अनावश्यक विस्तार अनावश्यक है । उसके लिए अन्य विधाएं हैं । लघुकथा प्रायः फिलर , स्तम्भ, के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं , जो न्यूनतम शब्दों में ही बड़े मैसेज देने की क्षमता रखती हैं ।
- विवेक रंजन श्रीवास्तव
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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लघुकथा जैसा कि नाम से प्रतीत है कि आकार में लघु होनी चाहिए । लेकिन आकार कितना हो इस पर विचारकों में मतभेद है। एक या डेढ़ पेज तक ही लघुकथा मान्य है। इसे गढ़ते हुए एक बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिये कि इसके आकार को लघु करने के लिए आवश्यक कतर ब्योत कर ली जाए। अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए और आवश्यक वाक्य न छूटे, इसका विशेष ध्यान रखा जाए।
- डॉ अंजु दुआ जैमिनी
फरीदाबाद - हरियाणा
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लघुकथा एक घटना एक विचार एक सीख एक समय के लिये रची जाती है। लेखन विस्तृत होगा । उसके पात्र भी अधिक होगे । कथा भी एक से अधिक हो जायेगी जो उचित प्रतीत नहीं होता । मानव के विचार बदलते रहते है अपने मानवीय गुणों का भी समावेश होने की संभावना अधिक रहती है । मानवीयता के कारण जो शिक्षा प्रदान करना चाह रहे है उसकी पूर्ति नहीं हो पायेगी।
- गिरधारी लाल चौहान
जांजगीर - छत्तीसगढ़
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लघुकथा का अर्थ ही है, देखने में छोटी लगे, घाव करे गंभीर। अनावश्यक विस्तार लघुकथा को कहानी की ओर मोड़ देती है। सब स्थितियों को पूर्जा-पूर्जा खोल देना । इस विधा के लिए उचित नहीं। किसी एक भाव, एक कथ्य पर केंद्रित यह विधा अपनी लघुता के बावजूद संप्रेषण में सक्षम है। उसके परिवेश, कथानक को अधिक विस्तार की नहीं, अधिक कसावट की आवश्यकता होती है। लघुकथा जितने कम शब्दों में पूरी कसावट के साथ प्रकट होती है, उतनी ही अच्छी लघुकथा मानी जाती है। सब कुछ एक ही लघुकथा में कह देते हैं कुछ लेखक, जो उचित नहीं।
- अनिता रश्मि
रांची - झारखण्ड
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लघुकथा तो क्या किसी भी गद्य विधा को शब्द संख्या में बाँधना उचित नहीं है। शब्द संख्या में बाँधते ही उसकी नैसर्गिकता खत्म होने का डर बन जाता है। लघुकथा में शब्दो की न तो न्यूनतम सीमा निर्धारित है और न ही अधिकतम संख्या। यह कथानक, कथ्य और लेखकीय कौशल पर निर्भर करता है। लघुकथा का मूल तत्व होना चाहिए। घटना विशेष पर केंद्रित, भूमिका से दूरी, प्रवाहमय, न एक शब्द कम और न एक शब्द अधिक। कथानक स्वयं ही शब्द सीमा का चयन कर लेता है।
- मृणाल आशुतोष
समस्तीपुर - बिहार
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लघुकथा अपने कथ्य की वास्तविक प्रधानता, अनावश्यक पात्रों एवं दृश्य वर्णिति की उपस्थिति के भटकाव से दूर विस्मयता से परिपूरित कथानक, औचित्य से समाधानित सम्पूर्ण लघुकथा का प्रतिनिधित्व करता शीर्षक एवं अंत भी कथ्य के प्रतिपादन से युक्त पाठक की चेतना को जागृत एवं आन्दोलित करती एक अमित छाप छोड़ती है तो वह अपने आप में सफलतम है।
- डाँ. रेखा सक्सैना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
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लघुकथा वास्तव में अपने लघु आकार के कारण ही लघुकथा है ,वरना कहानी और लघुकथा में कोई सीमा रेखा नहीं रह जायेगी । लघुकथा आकर में लघु किंतु संवेदना से भरपूर तथा अपने तीखेपन से पूर्ण होनी चाहिए ।लघुकथा में लेखक को अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए ।परन्तु संक्षिप्तता के आग्रह में आवश्यक वाक्य विन्यास बाधित भी नहीं होना चाहिए ।
- अशोक दर्द
चम्बा - हिमाचल प्रदेश
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लघुकथा का मतलब ही है आकार में लघु लेकिन उसमें कथा तत्व का विद्यमान होना जरूरी है। लघुकथा ना ही ज्यादा और ना ही कम शब्दों की होनी चाहिये। क्योंकि इसमें रचनाकार को अपनी पूरी बात,अपना संदेश पारदर्शिता से कहना पड़ता है। इसलिये जितने शब्द जरूरी हो उतने ही शब्द होने चाहिये। लघुकथा में एक ही घटनाक्रम होता है। किसी बड़े परिदृश्य में से कोई एक विशेष क्षण को आकार देने का नाम है लघुकथा। इसलिए यह संक्षिप्त होती है लेकिन शब्द कितने होने चाहिये यह रचनाकार के लेखन पर निर्भर है। कोई लघु कथा बीस शब्दों में भी हो सकती है कोई दो सौ तो कोई पाँच सौ अथवा हजार शब्दों में बशर्ते कि वह उतने शब्दों में अपना संदेश, अपना मन्तव्य प्रेषित करने में सक्षम हो। कई बार हम अपनी बात कम से कम शब्दों में कह सकते हैं लेकिन कई बार किसी घटनाक्रम को कहने में कुछ ज्यादा शब्दों की आवश्यकता होती है। अतः लघुकथा को शब्द सीमा में बाँधना उचित नहीं है।
- अर्चना मिश्र
भोपाल - मध्यप्रदेश
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" गागर में सागर " वाली शैली ही अल्पावधि में पाठक को सुखानूभूति कराने में ज्यादा कारगर साबित होगी.
भागती-दौड़ती जिन्दगी में साहित्य का अनुरागी भी कम समय में स्वाध्याय द्वारा अधिक आनंद (पाठन-आस्वादन) पाना चाहता है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में " लघुकथा " विधा की बढ़ती लोकप्रियता का कारण भी यही है.
- डा.अंजु लता सिंह
दिल्ली
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पाठक के पास समय नहीं रहा। इसलिए कम से कम शब्दों में रहस्य पर से पर्दा हटाने की आवश्यकता पड़ी। जिस कला को लघुकथा का नाम दिया गया। लघुकथा सीधी बिंदु पर चोट करते हुए सफलता प्राप्त करती है। दूसरे शब्दों में यह गुरिला युद्ध की भांति सरलता से विजय प्राप्त कर अग्रसर हो रही है और पाठक के मन को भी प्रभावित कर रही है। जबकि पाठक के समय को भी बचा रही है।अतः लघुकथा परिवर्तित प्राकृतिक समय की मांग है। जिसमें कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक 'अर्थ' निकाल कर पाठक की अभिलाषा को तृप्त करना भी सम्मिलित है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
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मेरे विचार से लघुकथा को शब्द सीमा में नहीं बाँधा जाना चाहिए। लिखने वाला जब लघुकथा लिख रहा होता है तो उसके मस्तिष्क में यह स्पष्ट रहता है कि उसे अपनी कथा को लघु आकार में लिखना है, तो वह अपनी कथा को अनावश्यक विस्तार देगा ही नहीं। जहाँ उसकी कथा समाप्त होने लगेगी..कथ्य स्वयं समाप्त हो जाएगा और कथा लघुकथा का ही आकार लेगी।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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यह रचनाकार की कारीगरी पर निर्भर करता है । कितने शब्दों में अपनी बात को अच्छे से कह पाता है और यह बहुत ही आसान काम है । तीन सौ शब्द से ऊपर की रचना पढ़ने में थोड़ा समय लगता है और मोबाइल पर पढ़ना लोग थोड़ा कम पसंद करते हैं ।कोई भी एक या दो पढे़गा और फिर मोबाइल बंद कर देगा।वही दूसरी तरफ डेढ़ सौ से दो सौ शब्द वाली लघुकथा कोई पढ़ने बैठ जाए तो एक साथ दस - ग्यारह तो पढ़ ही लेता है। किसी भी रचनाकार का लघुकथा लिखने का मुख्य मकसद होता है कि यह लघुकथा लोगों तक ज्याद से ज्यादा पहुंँचे ।
- अलका जैन
मुम्बई - महाराष्ट्र
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आज इस भाग-दौड़ के जमाने में कहाँ किसी पाठक के पास इतनी फुर्सत है कि दो-तीन पेज की लघुकथा पढ़ने बैठे। मै स्वयं भी जब दो-तीन पेज की लघुकथा देखता हूँ, तो मुझे बोरियत महसूस होती है, इसलिए मै उसे नहीं पढ़ता।
मै खुद लघुकथाएं छोटी से छोटी एवं सरल,सहज भाषा में लिखता हूँ, ताकि पाठकों को बोरियत और लघुकथा को समझने में किसी प्रकार की कठिनाई महसूस न हो।
- राम मूरत 'राही'
इंदौर - मध्यप्रदेश
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शब्दों की संख्या कितनी हो ,ये लेखक और उसके पात्र पर निर्भर करता है ।अगर लेखक लघुकथा में अपनी लेखनी से उस पात्र और परिवेश को कम शब्दों में जीवन्त और सार्थक कर सकता है तो जरुरी नहीं "शब्द-संख्या" बढाई जाए ।
हमारे कई लघुकथाकार कम शब्दों में भी सटीक लघुकथा का लेखन कर रहें हैं।
- अनीता मिश्रा " सिद्धि "
पटना - बिहार
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हर विधा की अपनी एक मर्यादा होती है । मर्यादा में रहते हुए किसी भी सन्देश को पाठकों तक पहुंचाया जा सकता है । वही रचना सफल होती है जो उस विधा की शिल्प और मर्यादा का पालन कर लिखी जाए । कईं लघुकथाएँ मात्र साठ से सत्तर शब्दों में होने के बावजूद पाठकों को प्रभावित करती है । कुछ लघुकथाएँ इतना अधिक विस्तार ले लेती है कि वो कहानी की श्रेणी में आ जाती है । जो रचना *गागर में सागर* भर दे । वही लघुकथा की कही जा सकती है ।
- देवेन्द्रसिंह सिसौदिया
इन्दौर - मध्यप्रदेश
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“गागर में सागर” को यदि व्याख्या करने को कहा जाए सामान्य शब्दों मे तो अर्थ निकलेगा । समुद्र को एक घड़े मे
निश्चित ही मै कहना चाहूँगी । मेरे विचार से लघुकथाओं को बल देना आज के दौर मे सार्थक प्रयोग है|अपने अंतर्मन के सोच को कहानी के रुप में निर्थक बातों में पाठकों को न उलझा कर दो टूक शब्दों में प्रस्तुत करना बेहतर विकल्प है | यानि बिना लाग लपेट के भी अपनी क़लम को धारदार और रोचक बना सकते हैं | पाठकों के दिलों में बख़ूबी जगह बना सकते हैं ।
- सविता गुप्ता
रांची - झारखण्ड
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आचार्य रजनीश जी कि किताब "मिट्टी के दीए" धार्मिक लघुकथा संग्रह है। उसमें तीन सौ शब्द से लेकर एक हजार शब्द तक की धार्मिक लघुकथा है। वैसे ठीक ठीक याद नहीं है बीस साल पहले पढ़ी थी एक अनुमान भर। अब ऐसा तो है नहीं कि लेखक लघुकथा लिखने बैठते हैं तो शब्द के साथ साथ इंची टेप लेकर बैठते हैं जो लघुकथा नाप तौल कर लिखेंगे। मेरे विचार से लघुकथा कम से कम एक सौ पचास शब्द और अधिकतम तीन सौ से लेकर पांच सौ शब्दों की लघुकथा श्रेष्ठ होती है।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
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मेरे मतानुसार तो " लघुकथा इतनी कसी हुई होनी चाहिए कि उसमें से एक भी शब्द हटा दिया जाये तो पाठकों को तुरंत यह भान हो जाये कि कथित स्थान पर शब्दाभाव है. "
कोई भी लघुकथा किसी भी हालत मे पांचस सौ से अधिक शब्दों की नहीं होनी चाहिए यदि है तो उसे लघुकथा की श्रेणी मे रखना उचित नहीं होगा. मेरे द्वारा लिखित तीस - चालीस शब्दों की लघुकथाओ को भी पाठकों ने बेहद पसंद किया है.
- मीरा जैन
उज्जैन - मध्यप्रदेश
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आज के दौड़ती भागती जिंदगी में किसी के पास इतना वक्त नहीं है कि वह लंबी बड़ी बड़ी कहानियों को हर रोज पढ़ सके। लघुकथा ”गागर में सागर” के समान है। यह लेखक के ऊपर निर्भर करता है कि वह अपनी कथा को कितने कम शब्दों में और सटीक पाठक तक पहुंचाता है। मेरे समझ से लघुकथा का अर्थ ही है अपने कथा को कम से कम शब्दों में लघु रूप प्रदान करना।
- मिनाक्षी सिंह
पटना - बिहार
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साहित्य में लघुकथा की विधा समय की बचत का ही विकल्प है। इसका ध्येय कम समय में मनोरंजन और ज्ञानवर्धन दोनों निभाने का है। यह हमें लिखने में तब आसान लगेगा जब हम अनुभूति को अभिव्यक्ति के लिये लालायित होंगे,क्योंकि तब हमारे सामने काल्पनिक दृश्य , संवाद सहित उपलब्ध होगा जिसे हमें सिर्फ वर्णन बतौर लिखना भर है। किंतु जब हम बिना अनुभूति के लिखने बैठते हैं तब हमारे पास वह दृश्य उपलब्ध नहीं होता,ऐसे में हमारा चित्रण विस्तारक भरा होता है। हमें इस तथ्य को समझना होगा। "लघुकथा "विधा साहित्य से समाज को जोड़ने के लिये इतना सहज,सरल और सरस माध्यम है,जो सीधे अंतर्मन को छूने और झकझोरने की सामर्थ्य रखता है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
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लघुकथा गद्य की एक ख़ास विधा है जिसका कलेवर निश्चित ही कहानी से अलग है। इसके शब्दों की मात्रा को हमें किसी हद में बाँधने की ज़रूरत ही न रहेगी यदि हम इसके बाकी मानकों का ख़याल रखेंगे। उनको साधते हुए चाहे लघुकथा दो पंक्तियों में अपनी बात कहे या ज़्यादा पंक्तियों में,वह यक़ीनन लघुकथा कहलाएगी।
- अंजलि ' सिफ़र '
अम्बाला - हरियाणा
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लघुकथा कोई नयी विधा नहीं है । प्राचीन काल से ही इसका अस्तित्व था। हां,इसे प्राचीन और नवीन रूप में बांटा जा सकता है। मेरे अनुसार लघुकथा गागर में सागर। सतस ईयां के दोहे की तरह देखन में छोटे लगे। घाव करें गंभीर।
आज परिस्थितियां विपरीत है । भौतिक वादी, सुख संपन्नता और सुविधावादी हो जाने के साथ साथ प्रतिस्पर्धा के इस युग में लोगो के पास समय का अभाव है।पठन चिंतन के लिये समय ही नहीं । पर शरीर की तरह मन की भी एक भूख होती है ज्ञान अर्जन। इसलिये पाठक कुछ ऐसा चाहता है कि चलते फिरते, उठते बैठते, या बातचीत करते भी वह बीच बीच में कुछ पढ सके। जो छोटा जरूर हो पर बहुत कुछ दे जाएं। इस कार्य में लघुकथा एकदम फीट बैठती है। पत्र - पत्रिकाओं ने भी इसे स्थान देकर सफलता पायी है। यह सम्प्रेषण का माध्यम भी रही है। हम इस विधा के माध्यम से कुरीति और अन्य विकारो को पेश कर समाज को एक संदेश देते है। हां, कालचक्र के अनुसार इसमें परिवर्तन जरूर हुआ है। मेरे अनुसार लघुकथा एक समय मे घटित घटना क्रम को बडी शालीनता एवम कुशलता से कसावट लिये पेश करने मे सक्षम विधा है। हां इसकी बुनावट के लिये सजग रहना है। मेरी यह हर हमेश प्रिय विघा रही है।लगातार लिख रहा हूँ।आलोचना समालोचना होती रहेगी।पर अगर हम आज के साहित्य को पभते रहे, खूब लिखे तो हम अच्छी लघुकथा लिख सकने मे सफल हो सकते है। मेरे अनुसार लघुकथा या लघुव्यंग्य कम शब्दों मे ही होना चाहिये।
- महेश राजा
महासमुंद - छतीसगढ़
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लघुकथा जिस मंच पर होती है वहाँ से लेकर आस पास ,के व्यक्ति , लम्बा सफर हो राहगीर हो, रिश्तेदार और फंला फंला व्यक्ति , कोई भी हो । शब्दों को लघुकथा में बांधना उचित है। जैसे :-
बिना शब्दों के कोई भी लेखन कार्य नहीं हो सकता शब्दों को माला की तरह पिरोना और सटीक शब्द व अर्थ भी सटीक होना जरूरी है। तभी कोई लघुकथा का सार उत्तम होगा ।
- राजकुमारी रैकवार राज
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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लघुकथा को शब्दों में बाँधना ज़रूरी है । लघुकथा जैसा नाम वैसा उद्देश्य । लघुकथा लिखने का जो मक़सद होता है उसमें उद्देश्य प्रधान होता है । हम थोड़े शब्दों में अपनी बात पाठकों तक पहुँचाना चाहते है और उसे ऐसे मोड़ पर छोड़ते है। जिससे पाठक के मनस पटल पर यह कथा उसका उद्देश्य , उससे मिलने वाली शिक्षा , पाठक की अपनी प्रतिक्रिया सब उसे कुछ समय के लिए उद्वेलित करती रहे।
- नीलम नारंग
हिसार - हरियाणा
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मैं लघुकथा में शब्द सीमा का ध्यान कतई नहीं रखता। मेरी लघुकथा स्वयं अपना स्वरूप प्राप्त करती हैं । मैं शब्द सीमा की धारणा में विश्वास भी नहीं रखता। यह कोई सांचे में आइसक्रीम जमाने जैसा कार्य नहीं है कि, इससे बाहर कुछ भी नहीं होगा। हर लेखन अपना आकार स्वयं खोज लेता है । स्वाद की परिपूर्णता को बांधा नहीं जा सकता। इसलिए लघुकथा को हम शब्द सीमा में नहीं बांध सकते । उसका पूर्ण प्रभाव लघुकथा जैसा रहे , इस पर जरूर ध्यान दिया जाना चाहिए।
उपन्यास को लें ,अथवा कहानी को, उनमें आज तक कोई शब्द सीमा का निर्धारण नहीं हुआ है। फिर यह आग्रह लघुकथा के लिए भी नहीं होना चाहिए। दोहों के समान इसका कोई छान्दिक व्याकरण भी निर्धारित नहीं है और ना ही ऐसा होना चाहिए।
लघुकथा में कथ्य की जरूरत के अनुसार शब्दों का रचाव स्वयंमेव हो जाता है। उसका शिल्प अतिरिक्त भाषा को वैसे ही बाहर कर देता है और अधिकतम के लिए कहें कि वह अपने लघु रूप की स्थापना करते हुए ही समाप्त भी हो जाती है। अतः ऐसी कोई आदर्श लघुकथा की शब्द सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। लघुकथा के गठन का शिल्प ही इस तरह का है कि वह अपने कथ्य का संप्रेषण करते हुए उस लघु आकार में अपने आप समाप्त हो जाती है। लघुकथा का पाठक भी उसकी शब्द सीमा पर ध्यान नहीं देता अपितु उसके संप्रेषण पर ध्यान देता है और लघुकथा में उसका संप्रेषण ही महत्वपूर्ण होता है शब्द सीमा नहीं।
- सतीश राठी
इंदौर - मध्यप्रदेश
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साहित्य क्षेत्र में कदम रखे काफी वर्ष बीत गए । मैं कहानियां लिखा करती थी फिर लघुकथा के प्राँगण में उतरी । जिस समय हम लघुकथा लिखा करते थे उसका स्वरूप आज के लघुकथा से अलग था। उस समय लघुकथा अर्थात कहानी को संक्षिप्त में लिखना, अधिक विस्तार न होना पर , आज जिस प्रकार की लघुकथा हम लिख रहे हैं उसके नियम अलग हैं। खैर हमें बहुत अधिक विस्तार में नहीं जाना है क्योंकि मैं स्वयं अभी इस पाठशाला की छात्रा हूँ। अब तक मैने जो कुछ भी सीखा और समझा लघुकथा को शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता । क्योंकि एक लेखक अपने भावों को प्रस्तुत करने के लिए शब्दों की सीमा में नहीं बंध सकता । हाँ ! इतना अवश्य कहूँगी कि अधिक विस्तार भी नहीं होना चाहिए । प्रयास यही होना चाहिए कि कम से कम शब्दों में भावों को प्रस्तुत करें ताकि लघुकथा का सौंदर्य बना रहे।
- डॉ इन्दिरा तिवारी
रायपुर - छत्तीसगढ़
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कथा कथा होती हैं । किसी भी कथा को शब्द सीमा में नहीं बाँधा जा सकता हैं । वे अपनी शब्द सीमा स्वयं तय करती हैं । यह बात दूसरी हैं कि कथानक यह तय करता हैं कि वह लघुकथा के लायक हैं या कहानी के लायक । जैसा इस का नाम हैं- लघुकथा, वैसा ही इस का कथानक होता हैं । यह रचनाकार के ऊपर निर्भर करता हैं कि वह कथ्य का विकास किस तरह करें । कथ्य के विकास से ही शब्द सीमा तय होती हैं । कहानी को शब्द सीमा में समेट कर लघुकथा नहीं बनाया जा सकता हैं । दोनों के स्वरुप में अन्तर हैं। कहानी किसी समस्या का हल बताती हैं । लघुकथा निदान बता कर छोड़ देती हैं । कहानी की अपेक्षा लघुकथा का प्रभाव तीव्र और अपेक्षाकृत घनीभूत होता हैं । इस तरह हम कह सकते हैं कि लघुकथा को शब्द सीमा में नहीं बाँधा जा सकता हैं ।
- ओमप्रकाश क्षत्रिय ' प्रकाश '
रतनगढ़ - मध्यप्रदेश
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लघुकथा ने लम्बा मार्ग तय किया है, यह निविर्वाद है। अपनी इस दीर्घ यात्रा में लघुकथा विविध आयामों से होती हुई यहाँ तक पहुँची है तो इस यात्रा में नए-नए पड़ाव भी रहे हैं। विद्वानों के आपसी वाद-विवाद भी लघुकथा झेलती आई है। कोई कहता है कि लघुकथा आधे पृष्ठ की हो, तो दूसरा विद्वान उसे दो पृष्ठों तक विस्तार देना चाहता है। पर यह भी सत्य है कि अपने मापदण्ड भी इसने स्वयं ही तय किए हैं। फिर भी लघुकथा लघु न हुई तो फिर तो कथा ही हो गई। मात्र एक घटना, एक चुभता हुआ प्रश्न, जो व्यवस्था
को भीतर तक तिलमिलाकर रख दे, पाठक को कुछ सोचने को विवश करे, वही सार्थक लघुकथा होती है। हर दिन लघुकथा पर नई-नई बहसें आयोजित होती रहती हैं। कभी इसके कलेवर को लेकर तो कभी कथ्य को लेकर। कभी भाषा को लेकर तो कभी शब्द सीमा को लेकर। गरज़ ये कि लघुकथा हरदम, ताज़ादम है, बहस के लिए तैयार ।आजकल असगर वज़ाहत जी की लघुकथा ‘लिंचिंग’ चर्चा में है, मारक और अर्थवत्ता का गुण लिए लघुकथा। मुझे एक किस्सा याद आ गया। एक लड़का फारसी पढ़कर आया। ओछे स्वभाव के कारण सब पर रौब झाड़ता फिरता और
फारसी के शब्द बोलता जो दूसरों की समझ में नहीं आते तो वह खुद को श्रेष्ठ समझने लगता। इसी झोंक में वह घर गया। प्यास लगी तो माँ से कहने लगा ‘‘आब दे।’’ अब बेचारी अनपढ़ माँ को क्या पता कि आब क्या होता है। लड़के ने भी हठ ठान लिया कि या तो माँ मुझे आब दे या प्यासा ही रह जाऊँगा। अन्त में मारे प्यास के वह तड़ी कर मर गया। तब तक कोई फारसी जानने वाला आ गया। उसने अनपढ़ माँ को बताया कि आब पानी को कहा जाता है। यही कहना चाहती है असगर वज़ाहत की लघुकथा।
क्या फर्क पड़ता है कि उसमें शब्द कितने हैं? कहने का अर्थ कि लघुकथा मारक और प्रभावशाली हो तो शब्द संख्या के कोई अर्थ नहीं रहते। वह जब तक अपना लक्ष्य पूरा न करले तब तक उसे चलना ही है। यह भी सत्य है कि कहानी हो या लघुकथा, वह अपना लक्ष्य स्वयं निर्धारित करती है। इसीलिए, बस इसीलिए लघुकथा को उसके हाल पर छोड़ देना चाहिए।
- आशा शैली
नैनीताल- उत्तराखण्ड
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मेरी राय में एक लघुकथा में किसी एक घटना या कोई क्षण या कोई एक याद का ही तानाबाना होता है। अतः कसावट के साथ पूर्णता लेते हुए शब्दों का चयन उत्कृष्ट लघुकथा की विशेषता होनी चाहिए। शब्दों की गिनती की सीमा में न उलझ , कथानक को पूरा होना जरूरी है। कई शब्दों के बदले एक शब्द... ऐसे शब्दों का प्रयोग लघुकथा को सशक्त बनाता है।
- गीता चौबे
रांची - झारखंड
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प्रत्येक विधा का अपना रचना शास्त्र होता है और यही उसकी पहचान होता है। वर्तमान में लघुकथा विधा ने पाठकों से अधिक लेखकों को प्रभावित किया है। परिणाम बहुतायत में लघुकथा पर लेखन हो रहा है । पर इस लिए कहूँगी की प्रत्येक लघुकथा लघुकथा है इस पर संदेह है । लघुकथा का जन्म ही इस उद्देश्य को लेकर हुआ था कि कम से कम शब्दों में प्रभाव के साथ सार्थक बात पाठकों तक पहुंच जाय। किन्तु आज लघुकथा के साथ जो कुछ घट रहा है मुझे लगता है शायद ही मिसि विधा के साथ ऐसा हुआ हो। रबर की तरह खींचकर इसकी मौलिक पहचान को नष्ट किया जा रहा है। उसके स्थान पर अलग अलग लोगों द्वारा अपने अनुरूप उसकी परिभाषा गढ़ी जा रही है । कभी शब्द संख्या के नाम पर कभी कथा की मांग की ओट लेकर इसका स्वरूप विकृत किया जा रहा है। जबकि सत्य यही है।
- डॉ लता अग्रवाल
भोपाल - मध्यप्रदेश
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लघुकथा अपने शब्द और कथ्य की कसावट के कारण हीं अचछी लगती है । लघुकथा " छोटा पैकेट बड़ा धमाल " की क्षमता रखती है । मेरे विचार से अनावश्यक आडम्बर वाले भूमिका से परे ,जब सीमित शब्दों के साथ जब पाठक को लघुकथा अपनी ओर आकर्षित करती है तो खुद_ ब_खुद सार्थक हो जाती है । आजकल इंस्टेंट का जमाना है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
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साहित्य की गद्य विधा में शब्द संख्या का कोई मानक नहीं होता है। विशेषकर लघुकथा का आकार शब्द संख्या से कहीं ज्यादा कलेवर की पुष्टता, प्रभावोत्पादकता और सौंद्रय बोधता पर आधारित रहता है। इसके अलावा यह भी शर्त जुड़ी हुई रहती हैं कि समस्त विशेषताओं को समेटने के बावजूद भी शब्द संख्या का इतना विस्तार नहीं होना चाहिए कि वह कहानी लगने लगे। वहीं पर उसकी बुनावट इतनी कसी हुई होनी चाहिए कि एक वाक्य/ उपवाक्य को हटाने पर उसमें अधूरापन महसूस होने लगे। लघुकथा दो तीन वाक्यों की भी हो सकती है और दो पृष्ठों की भी। उसकी लंबाई विषयवस्तु तथा लघुकथाकार के कौशल पर निर्भर करती है।
- डा. चंद्रा सायता
इंदौर - मध्यप्रदेश
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जैसा कि शब्द " लघुकथा " से ही स्पष्ट है । एक लघुकथा का आकार छोटा होना तो अनिवार्य है किन्तु उसे शब्द सीमा में जबर्दस्ती बाँधना अवश्य अनुचित है। लेखक को बस इतना ध्यान रखना चाहिए कि वो कम से कम शब्दों में अपनी भावनाओं को स्पष्ट कर सके। साथ ही साथ कथा की आखिरी पंक्ति तक वो पाठकों को बाँधे रखने में सक्षम हो। शब्दों की संख्या तो कथा के विषय वस्तु और पात्रों के आधार पर कम या ज्यादा हो सकती है। हाँ ! व्यर्थ के विवरण और विस्तार से अवश्य बचना चाहिए।
- रूणा रश्मि
राँची - झारखंड
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लघुकथा को शब्द सीमा में बांधना भले ही अनिवार्य न हो परंतु लघुकथा का लघु होना आवश्यक है। यदि कथानक को लघुकथाकार लघुता में नहीं कह पाया तो वह लघुकथाकार कैसा? यदि वह कहानी की भांति विस्तार से बच नहीं पाया तो उस रचना को लघुकथा कैसे कहेंगे ? एक समय ऐसा था जब कहानी किसी उपन्यास के आगे आठ दस पन्नों में पसर कर भी छोटी लगती थी और लघुकथा दो अढ़ाई में सिमट कर लघु दिखती लेकिन वर्तमान परस्थितियों को देखते हुए लघुकथाकार को लघुकथा बचाने के लिए लघुता की ओर विशेष ध्यान देना अनिवार्य होगा ।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चण्डीगढ़
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यह कहानी की अपेक्षा उपन्यास के अधिक निकट है । उसके जैसी सभी चीजों को अत्यंत संक्षेप में लघुकथा में देखा जाता है । लघुकथा शब्द संख्या में बांधना उचित ही है ।अच्छी प्रभावी व सशक्त लघुकथा एक डेढ़ मिनट से अधिक की नहीं होती है । अनेक लघुकथाकार संक्षिप्तता लघुकथा की महत्वपूर्ण विशेषता मानते हैं । अधिक विस्तार से न लघुकथा रह जाती है और न कहानी ही बन पाती है । अत : लघुकथा छोटी से छोटी प्रभावपूर्ण ढंग से लिखी जानी चाहिए । जिसमें आरम्भ , मध्य और समापन स्पष्ट तथा उद्देश्य को पूर्ण करने वाला हो।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
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लघुकथा जैसा कि नाम से स्पष्ट हो जाता है कि कथानक छोटी होनी चाहिए। यह गागर में सागर भरने की कला है । लेखक को कथा कहने के लिये शब्द सीमा में बांधना नहीं चाहिए। और लेखक को भी पता होना चाहिए कि, यह लघुकथा है, जिसमें कम एवं सार्थक शब्दों का प्रयोग करना है जिससे कथा स्पष्ट एवं रोचक बन जाय।
- डॉ.विभा रजंन " कनक "
दिल्ली
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लघुकथा के वाक्यों एवं शब्दों की संख्या को तय करना उचित नहीं होगा। लघुकथा दो वाक्यों की भी हो सकती है या फिर उससे ज्यादा की भी। सीमित शब्दों में बिना लाग-लपेट के पाठकों तक अपनी बात पहुंचा देना ही लघुकथा का उद्देश्य होना चाहिए।
- प्रतिभा सिंह
रांची - झारखंड
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लघु आकार में कथा- तत्वों से परिपूर्ण रचना ही लघुकथा है जिसमें कम शब्दों में भावाभिव्यक्ति होती है। आज पाठक के पास इतना समय नहीं कि वह लम्बी कहानियों को पढ़ें। लघुकथा उसका अच्छा विकल्प है। अभिव्यक्ति प्रदान करने की कला ही लघुकथा है।
- डाँ. साधना तोमर
बड़ौत - उत्तर प्रदेश
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जब हम 'लघुकथा' शब्द का प्रयोग करते हैं तो केवल 'कथा 'न कह कर 'लघुकथा' कहते है। अतः लघु विशेषण से युक्त होने के कारण उसका स्वरूप लघु होना आवश्यक है। अगर विधा की दृष्टि से भी देखें तो लघुकथा एक विशेष क्षण में एवं एक विशेष परिस्थिति में उत्पन्न होने वाली विचार प्रक्रिया का प्रस्फुटन है। अगर एक क्षण की हथौड़े वाली विचार प्रक्रिया का विचार करें तो हथौड़े की एक जोरदार चोट जितनी मर्माहत करती है उतनी बार बार धीरे से लगी चोट आघात करने में सक्षम नहीं होती है।
गहरी और गम्भीर बात कम शब्दों में अधिक प्रभाव उत्पन्न करने में सक्षम हो तभी लघुकथा की विधा का पूरा निर्वाहन हो सकता है। अनावश्यक विस्तार से कथा का पूरा विवरण प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है ।
- कनक हरलालका
धुबरी - असम
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लघुकथा का नाम सार्थक तभी है जब वह लघु है वरना वह कहानी हो जायेगी, वास्तव में लघुकथा को लिखना किसी ख़ास घटना से या किसी भाव से सम्बन्धित होता है, जब कभी कोई बात हमारे मन को छू जाती है तो वह लघुकथा का रूप लेती है ।
- सुदेश मोदगिल नूर
यू एस
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लघुकथाकार की पैनी नजर कम से कम शब्दों में पाठक को कितना अधिक दे सकती है,इस कारण लघुकथा की शक्ति और सीमा को पहचानना होगा। यह एक बडी चुनौती है।लघुकथा जीवन के विराट सत्य की बारीक बुनावट है।फ्रांसीसी लेखक के अनुसार यह "स्लाइस आंफ लाइफ" है।जीवन की एक अनमोल फांक। मनोज श्रीवास्तव जी ने ठीक ही कहा है "उपंयास यदि सर्च लाइट है, कहानी स्पांट लाइट है, तो लघुकथा लेसर लाइट है। आकार में छोटी होकर भी वह अपनी ताकत दूर तक फैलाती है। लघुकथा में वर्णात्मकता की कोई गुंजाइश नहीं है,न ही स्पष्टीकरण की आवश्यकता है। सांकेतिकता इसकी बडी ताकत है। यह लघु होकर भी इतनी घनीभूत होती है कि अन्य विधाओं से साफ तौर पर अलग दिखाई देती है। इसमें एक दो पंच हों तो इसकी खूबसूरती और भी बढ जाती है,अतः कहा जा सकता है कि लघुकथा को शब्द संख्या में बांधना उचित नहीं है ।
- डां अँजुल कंसल " कनुप्रिया "
इन्दौर - मध्यप्रदेश
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आज इक्कीसवीं सदी को लघुकथा की सदी कहूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । संक्षिप्ता की प्रवृति इस समय की जरूरत है । क्योंकि ये समृद्ध कथा जीवन से जुड़ी हुई जीवंत हैं । जिनको लघुकथाकारों के प्रयासों ने लघुकथों के साहित्य को समृद्ध किया । जो हमारे आसपास ही बिखरी हुई घटनाओं , सामाजिक विसंगतियों , रूढ़ियों , नारी विमर्श , समस्याओं असमानताओं , लैंगिक भेदभाव , अनुभव को कथ्य , तथ्य , व्यंग्य , आदि से संवेदनशील रचनाकार बड़ी चतुराई से कम शब्दों से उसमें जान डाल देता है । गागर में सागर भर देता है । पाठक को ऐसा लगता है कि यह किरदार हम में से किसी का है । मेरे विचार में शब्द सीमा न हो । शब्दों का , कथ्य का दोहराव न हो । शब्दों की कंजूसी करते हुए कम शब्दों में अधिक से अधिक बात पाठक तक पहुँच जाए । आज लघुकथाएँ हमारे लिए प्रासंगिक हैं और इनका महत्त्व बना हुआ है ।
- डॉ . मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
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वैसे तो लेखन की किसी भी विधा को शब्द संख्या में बांधना उचित नहीं है । लेकिन फिर भी कुछ हद तक सीमाओं का निर्धारण आवश्यक है और जब बात लघुकथा की आती है तो इसका आकार, इसके प्रकार पर निर्भर करता है । कथानक के हिसाब से ये अपना आकार स्वयं निर्धारित कर लेती है । मुख्य बात यह है कि यह इस प्रकार लिखी जाए कि इसमें से एक भी अतिरिक्त शब्द जोड़ने अथवा घटाने की गुंजाइश न रहे ।
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
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लघुकथा क्षण-विशेष मेंं उपजे भाव, घटना विचार के कथ्य स्वरूप को लघुकथा कहते हैं। इसमें शब्दों की कूंची और शिल्पी से तराशी गई अभिव्यक्ति की प्रधानता होती है। लघुकथा जीवन खंड के किसी विशेष क्षण की तात्विक अभिव्यक्ति है। क्षण विशेष में छिपे जीवन,समाज के विरद्, विराट प्रभाव को दर्शाती विधा है। इस विधा के मूल तत्व कथ्य,पात्र,चरित्र-चित्रण ही संवाद है। लघुकथाओं में गज़ल,दोहे जैसी बारीक ख्याल विषय के अनुरूप हो तो यह और निखर जाती है,जो शब्द के विशालकाय स्वरूप को दर्शाने में सक्षम है। समापन बिंदु इस कथा की ताकत है। लघुकथा एक झील की तरह अपनी सीमाओं में रह शांत, शिथिल दिखाई देती है,बिना अपनी गहराई का अहसास करायें।
- पम्मी सिंह ' तृप्ति '
दिल्ली
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कम शब्दों में कथा का सार लिखना ही उचित हैं। लघुकथा में अपनी बात को सार्थकता के साथ कहना चाहिए। इससे लघुकथा का रूप विकृत नही होता।इससे पाठको को पढ़ने में रुचि रहती है।
- वंदना पुणतांबेकर
इन्दौर - मध्यप्रदेश
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आज की भागती - दौड़ती जिंदगी में लघुकथा का महत्त्व बढ़ गया है. लघुकथा किसी घटना /लम्हे से प्रेरित होकर लिखी जाती है. जो बहुत ही सरल, सहज, सुपाठ्य ह्रदय -स्पर्शी होती है और समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाती है.
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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"लघुकथा एक भाव है,एक विचार है, जो स्वत: ही किसी घटना को देख, सुन, या सोचने से प्रस्फुटित होता है।" किसी भाव को कागज़ पर, 'विधिवत उकेरना' रचनाकार के लेखन-कौशल पर निर्भर करता है।जहाँ तक प्रश्न लघुकथा की शब्द सीमा में बाँधने का है, तो यह कहना अनुचित ही होगा कि लघुकथा ही नहीं गद्य- साहित्य की किसी भी विधा को शब्द-सीमा में बाँधा जाए। हाँ 'लघुकथा' "जैसा कि इसके नाम से ही पता चल जाता है कि यह कोई कसे हुए शब्दों में, लघु-कलेवर की रचना है।" फिर भी भावों के प्रस्फुन में "आवश्यक शब्दों" का होना मैं जरूरी समझता हूँ, अन्यथा भाव-विकृति का अंदेशा बना रहेगा। हाँ मैं ये जरूर कहूंगा कि,"अनर्गल आलाप और अनापेक्षित शब्दावली की लघुकथा में कतई गुंज़ाईश नहीं है।" अत: लघुकथा को "शब्द-रूपी पिंजरे में कैद करना इस विधा के साथ अन्याय होगा।"
- एल.आर.राघव " तरुण "
फरीदाबाद - हरियाणा
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जिसका उद्देश्य ही है "गागर में सागर" भरना। मेरा मानना है कि ये रचनाकार की योग्यता पर निर्भर करता की कितने कम शब्दों में एक कसी हुई कथा की बुनावट कर सकता है। जो सीधे पाठक के मर्म को छुए । शब्दों को सीमाओं में बाँधना उचित नही है। इसका निर्णय रचनाकार के ऊपर ही छोड़ देना उचित होगा। रचनाकार लघुकथा की मर्यादा और मानकों के हिसाब से स्वंग ही शब्दों में अवश्यकता अनुसार कतर व्योंत कर लेगा।
- प्रतिमा त्रिपाठी
राँची - झारखण्ड
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आज लोगों की अभिरुचि किताबों से दूर होती जा रही है अथवा यूं कह सकते हैं की वे साहित्य से दूर होते जा रहे हैं!
उसका कारण है आज की व्यस्त जिंदगी! समयाभाव होने से वह उपन्यास, कहानियो का लुत्फ नहीं उठा सकता ! लोग कम समय में कैसे अधिक आनंद प्राप्त कर सकते हैं यही ढूंढते हैं! अत: लोग साहित्य से जुड़े रहें इसके लिए लघुकथा वाली विधा बहुत ही उत्तम है! वैसे भी हम लघुकथा के लिए गागर में सागर वाली बात कहते हैं! कथा यदि लघु होकर भी कम शब्दों में पुरअसर तरीके से अपनी बात कहती है तो कथा को विस्तार देने की जरुरत नहीं है!
- चन्द्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
मेरे विचार में लघुकथा को शब्द संख्या में बांधना उचित नहीं। किसी भी रचना को शब्दों में बांध देने का अर्थ है उसके पंख कतर देना। लघुकथा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। लघु अर्थात छोटा और कथा अर्थात लघुकथा में कथा होनी आवश्यक है। परंतु लघुकथा को कहानी का संक्षिप्तिकरण तो कदापि नहीं कहा जा सकता। लघुकथा को यदि लघुकथा की विशेषताओं के साथ लिखा जाए तो लघुकथा बड़ी हो ही नहीं सकती। लघुकथा में घनीभूत संवेदना, यथार्थपरकता, प्रखरता सूक्ष्मता, व्यंग्यात्मक व उद्देश्यपूर्ण सटीक अभिव्यक्ति, तीव्र संप्रेषणीयता, किसी एक क्षण, घटना या अनुभूति का मार्मिक निरूपण आदि के कारण लघुकथा अपना रूप व आकार स्वयं निर्धारित कर लेती है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रत्येक लघु रचना लघुकथा है। लोकोक्तियां, सूक्तियां, चुटकुले , पौराणिक संदर्भ, नीति कथाएं, बोध कथाएं, संस्मरण, लघु कहानियां, प्रेरक प्रसंग, व्यंग्य आदि लघुकथा कदापि नहीं हो सकते। लघुकथा लिखना एक गंभीर रचना कर्म है, जिसमें मनोरंजन न होकर सामाजिक सौद्देश्यता उपस्थित रहती है। हां लघुकथा में शब्दों की मितव्यता जरूरी है। अधिकांश लघुकथाएं पर्ल्स माइनस 500 शब्दों तक ही पाई जाती हैं।
मेरे विचार से लघुकथा को शब्दों की सीमा में बांधना उचित नहीं क्योंकि यह तो लघुकथाकार की कुशलता पर निर्भर करता है कि वह कथानक को लघुता का अर्थ समझते हुए किस तरह अभिव्यक्ति देता है।
मेरे मतानुसार लघुकथा होम्योपैथिक दवा की उस बूंद के समान है जिसका प्रभाव स्थाई और दूरगामी है। होम्योपैथिक की बूंद की विशेषता है कि वह स्वयं रोग का निवारण न करके रोगी में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर दूषित कीटाणुओं से लड़ने के लिए तैयार करती है। ठीक ऐसे ही लघुकथा भी वर्तमान समाज में फैली दुष्वृतियों, विडंबनाओं पर सीधा वार न करके पाठक में मानसिक उद्वेलन पैदा कर इन परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार करती है।
- डा.शील कौशिक
सिरसा - हरियाण
निष्कर्ष :-
" मेरी दृष्टि में " कोई भी लेखक निश्चित शब्द सख्या कर के कभी भी लघुकथा नहीं लिख सकता है । हाँ ! लेखक अपनी कुशलता से छोटी से छोटी लघुकथा लिखने में कामयाब होते रहते हैं । ऐसे सफल लेखक ही लघुकथाकार कहलाते हैं । अभी हाल में कुछ बड़ी - बड़ी लघुकथाएँ आने लगी है । और छोटी - छोटी लघुकथाओं को नकारा जाने लगा । जिसके कारण से छोटी और बड़ीं लघुकथाओं में बहस शुरू हो गई है । बड़ीं लघुकथाओं को लघु कहानी कहने के लिए कुछ आलोचक आगे भी आ गये हैं । जिसके कारण से स्थिति और भी भयानक हो गई हैं । ऐसी स्थिति में इस परिचर्चा का आयोजन रखा गया है ।
फिर भी लघुकथा के अपने नियम है । सभी नियमों का पालन सभी लघुकथाओं में सम्भव नहीं होता है । यही ही नहीं , बड़े - बड़े आलोचक भी इन नियमों का पालन अपनी लघुकथा में नहीं कर पाते हैं । ऐसी स्थिति म़े निश्चित शब्द सख्या सीमा में लघुकथा लिखना सम्भव है ? किसी भी तरह से सम्भव नहीं है । जो कहतें हैं सम्भव है वह लेखन की हत्या कर रहें हैं । इससें अधिक मैं कुछ नहीं कहँ सकता हूँ ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
( आलेख व सम्पादन )
नोट :- जिन्होंने के विचार अभी तक शामिल नहीं हुये हैं वे भी विचार भेज सकते हैं ।
ReplyDelete==========
लघुकथा को शब्द सख्या में बाधना उचित है या नहीं ?
अगर उचित है तो क्यों ?
उपरोक्त परिचर्चा पर अपने विचार , अपना पता व अपना एक फोटों शीध्र ही नीचें दिये गये WhatsApp मोबाइल पर लिखकर भेजने का कष्ट करें । विचारों को ब्लॉग bijendergemini.blogspot.com पर प्रसारित किया जाऐगा ।
निवेदन
बीजेन्द्र जैमिनी
भारतीय लघुकथा विकास मंच
पानीपत
WhatsApp Mobile No.
9355003609
यूँ तो जहाँ विवाद होता है वहाँ मूक दर्शक/श्रोता रहना पसंद है क्योंकि विवाद में यह तय नहीं होता कि क्या सही है क्या गलत है.. तय होता है कौन सही है कौन गलत है.. विमर्श में तय होता है क्या सही है क्या गलत है...
ReplyDeleteजिस तरह से सौ साल गुजर जाने के बाद भी हाइकु में यह तय है कि 5,7,5 वर्ण यानी तीन पंक्तियों में 17 वर्ण ही लेखन होगा वैसा लघुकथा में पंक्ति और शब्द निर्धारित नहीं मिलता किसी के लेखन में तो यह तय नहीं कि कितने शब्दों में एक क्षण के अनुभव को या कालखंड दोष का निवारण करते हुए अतीत को शामिल किया जा सके... फिर भी लघु तो अनिवार्य शर्त है ही...
- विभा रानी श्रीवास्तव
( फेसबुक से साभार )
इस परिचर्चा के लिए सभी का हार्दिक धन्यवाद जिन्होंने अपना अमूल्य समय देते हुए अपने विचारों से अवगत कराया कि वे लघुकथा विधा के संबंध में क्या सोचते हैं? लघुकथा कितने शब्दों की होनी चाहिए परिचर्चा में मुझे सबसे अच्छी टिप्पणी मीरा जैन जी की लगी उन्हें इसके लिए हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय बिजेंद्र जैमिनी जी 🙏आप बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं इससे नए पुराने प्रत्येक लघुकथाकार को समता के स्तर पर अनुभूतियों को व्यक्त करने का विशेष स्थान मिल रहा है। बहुत से ऐसे रचनाकार भी हैं जो यहाँ तक पहुंच ही नहीं पाते परंतु व्हाट्स अप के माध्यम से
ReplyDeleteआपने इसे सरल कर दिया है। आपके परिश्रम से हमारी बात राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचेगी। सधन्यवाद :- 🙏😊
- संतोष गर्ग
मोहाली - चण्डीगढ़
( WhatsApp से साभार )
आपके शब्द ही आपकी master key h
ReplyDeleteये दिलो के दरवाजे खोल भी सकती हैं
और सबके मुह पर ताले भी लगा सकती हैं।
सूर्येदय अभिवादन🌹🌹🙏🙏🙏❤❤
- प्रतिमा त्रिपाठी
रांची - झारखण्ड
( WhatsApp से साभार )
जहाँ तक, लघुकथा में शब्दों संख्या की बात पूछी जाये तो उसका उत्तर देना जरुरी है. यह सच है की कथ्य, सम्प्रेषण. रचनातमकता और अंत की खूबसूरती बनी रहे इसके लिए कोई सीमा नहीं हो सकती पर जब " लघु " शब्द है तो उसका आकार भी तय होना चाहिए. छोटी से छोटी कितनी भी हो मेरे विचार से 300-350. शब्द सीमा एक आदर्श नहीं तो. एक औसत मानी जा सकती है. नये लेखकों के लिए आसन हो जायेगा लिखना. थोड़ा कम ज़्यादा हो कोई समस्या नहीं. बस कहानी का मंतव्य और आकर्षण बना रहे .
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteमहिमा शुक्ला. इंदौर
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