क्या व्यक्ति की अभिव्यक्ति देश से ऊपर है ?
देश के खिलाफ कोई भी अभिव्यक्ति कभी भी स्वीकार नहीं हो सकती है । व्यक्ति स्वतन्त्रण अवश्य है । परन्तु देश के खिलाफ अभिव्यक्ति को देशद्रोह के अंर्तगत आता है । यही हम सब को समझना चाहिए । " आज की चर्चा " में आये पेश हैं :-
व्यक्ति- व्यक्ति से देश बनता है न कि किसी एक विशेष व्यक्ति से। देश हमें सब कुछ देता है। व्यक्ति की अभिव्यक्ति देश से ऊपर कैसे हो सकती है? हां यदि उसके विचार संपूर्ण देश के हित में हैं तो उन महत्वपूर्ण विचारों पर अवश्य अमल होना चाहिए परंतु दुर्भाग्य है हमारे देश का जिसमें भ्रष्टाचार,रिश्वतखोरी व स्वार्थपन कूट- कूट के भरा पड़ा है।
- संतोष गर्ग, मोहाली (चंडीगढ़)
जन्म के साथ ही व्यक्ति , एक नागरिक भी बन जाता है। जो उसे जीवनयापन की स्वतंत्रता तो देता हैं, साथ ही नागरिक होने के अधिकार देते हुये उसे देश के तय किये हुये संवेधानिक नियमों और मूल्यों के दायरे में रहने की हिदायतें और दायित्वों को शुचिता से निर्वहन करने को बाध्य भी करता है। तात्पर्य यह है कि पहचान के लिये वह व्यक्ति बाद में है, पहले नागरिक है। अतः उसके सारे क्रियाकलाप व्यक्ति के रूप में उसके नागरिक होने तक ही स्वतंत्र हैं। अतः कहा जा सकता है कि व्यक्ति की अभिव्यक्ति देश से ऊपर नहीं है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव गाडरवारा, म.प्र.
व्यक्ति की अभिव्यक्ति देशहित में तो हो सकती है परन्तु देश से ऊपर कभी भी नहीं हो सकती । क्योंकि देश की मातृभूमि माँ के समान होती है और माँ से बढ़कर तो स्वयं भगवान् भी नहीं है ।
-- बसन्ती पंवार
जोधपुर ( राजस्थान )
अपने देश से उपर तो कुछ है ही नहीं देश है तो सब है ।हम हैं हमारी अभिव्यक्ति भी है ।हम देश के लिए खुद को समर्पित कर सकते हैं, अभिव्यक्ति के लिए नहीं इसलिए सर्वोपरि हमारा देश है ।
- रेणु झा
बहुत गंभीर विषय है, जन जीवन को अभिव्यक्ति समर्पित करने का वक्त है ।परिस्थितियां बहुत विपरीत है ।एक बहुत बडा सच ये भी है कि मानवतावादी दृष्टि विश्व को समर्पित होती है ।लेकिन जब देश और इंसान की जान संकट में हो तो सबसे पहले देश की सुरक्षा महत्वपूर्ण हो जाती है
- डॉ आशा सिंह सिकरवार
देश से ऊपर तो कभी भी कुछ भी नहीं हो सकता। चाहे वो किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति हो या व्यवहार। हमारे संविधान ने हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अवश्य दी है, किन्तु प्रत्येक व्यक्ति का ये कर्त्तव्य है कि वो अपने इस अधिकार का उपयोग सर्वदा देशहित में ही करे। निजी स्वार्थ में आकर कभी भी देशहित के विपरीत अभिव्यक्ति नहीं दे और न ही ऐसे व्यवहार को बढ़ावा दे या ऐसा करनेवाले व्यक्ति को प्रोत्साहित करे।
- रूणा रश्मि
राँची - झारखंड
देश सर्वोच्च है उससे बढ़कर कुछ नहीं पर कुछ प्रतिशत लोग देश को दूसरे तीसरे नंबर पर रखते हैं इसलिए समाज में अपराध और देश के प्रति धोखाधड़ी नहीं रोक पा रहे हैं ।समाज ने सारी जिम्मेदारी सरकार और कानून पर डाल दी है ।शिक्षा नैतिक मूल्यों से हट चुकी है ।वहाँ बाजार वाद हावी है
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
व्यक्ति विशेष की कोई खास अभिव्यक्ति देशहित के मद्देनजर हो सकती है,,,लेकिन देश के ऊपर नहीं ।देश उसे मान ही ले ऐसा भी जरुरी नहीं । हमारा देश सर्वप्रथम था , है,और रहेगा ।
- डॉ पूनम देवा
पटना, बिहार
Twitter पर भी " आज की चर्चा " में विचार आये हैं । पढ़ने के लिए लिंक को क्लिक करें :-
https://twitter.com/bijender65/status/1200602698329935872?s=19
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