मोनालिसा की ऑंखें

          कवि सम्मेलन

जैमिनी अकादमी द्वारा महाकुंभ मेला - 2025 में "वायरल  मोनालिसा " पर ऑनलाइन कवि सम्मेलन करवाने का निर्णय लिया है। जो बसंत पंचमी के अवसर पर " विषय : मोनालिसा की ऑंखें " रखा गया है। मोनालिसा को मां सरस्वती के रूप में दिखने का प्रयास किया है। जैसे हम नवरात्र के अवसर पर छोटी छोटी कन्याओं का पूजन करते हैं। ठीक वैसे ही प्रयास किया है। विषय के अनुरूप कवियों से मौलिक कविताओं की मांग की गई है। अधिकतर रूप से इस कार्यक्रम का स्वागत हुआ है। इसी बीच श्री निर्मल कुमार दे ने WhatsApp पर  मांग रखी कि मुझे इस पोस्ट को अपनी फेसबुक वाल पर डालने की अनुमति दे। मैंने किसी विरोध के अनुमति दे दी। फिर निर्मल जी ने फेसबुक वाल पर डालने यानि पोस्ट कर दी। डालते ही लगभग पांच ने विरोध करना शुरू कर दिया। मैने कुछ जबाब देना उचित नहीं समझा। परन्तु दो तीन बाद फिर निर्मल जी ने छोटे से लेख के रूप में पोस्ट डाली। जो इन्दौर से किसी अखबार में प्रकाशित हुआ है। पेश है : -

     स्थिति से अगवत करना 

            प्रमुख उद्देश्य

उक्त पोस्ट से स्पष्ट होता है कि निर्मल जी की स्थिति संतोषजनक नहीं है। क्योकि प्रथम कवि सम्मेलन के शीर्षक पर बहुत सारे साहित्यिक मित्रों को नागवार लगा। यह बात सिर्फ़ चार - पांच ने ही कहीं है। यहाँ पर बहुत सारे मित्रों का जिक्र करने का मतलब सिर्फ भ्रम फैलाना है। दुसरा थोड़ी चूक का जिक्र किया है। क्या किसी पर कवि सम्मेलन करना गलत है? " मेरी दृष्टि में " किसी भी स्तिथि में कवि सम्मेलन करना गलत नहीं होता है। जन्मदिन से लेकर मृत्यु के अवसर पर भी कवि सम्मेलन का आयोजन होता है। तीसरा नैतिकता की बात कही है। इसमें नैतिकता कहाँ खतरे में पड़ गई है? साफ सुथरी कविता करना गलत नहीं होता है। चौथा यानि अन्तिम पुनः पोस्ट डालने का प्रमुख कारण क्या है? लोगों से विचार हासिल करना यानि हंगामा खड़ा करना है। अतः निर्मल जी की नीयत में खौट है। अभी सूचना मिली है कि मोनालिसा को फिल्मों में काम मिल गया है। अतः जैमिनी अकादमी द्वारा कवि सम्मेलन की सार्थकता स्पष्ट हो गई है। पेश है कविता के साथ डिजिटल सम्मान : -

     मोनालिसा की आँखें


साधारण परिवार की युवती, 

सबकी चर्चा में आ गई है। 

कुदरत से मिले सुन्दर नयन, 

जमाने को अब भा गई है।। 


रोजी-रोटी की तलाश में वह, 

धार्मिक स्थलों पर जाती है। 

थैले में मालाएं रुद्राक्ष की, 

बेचकर वह पैसे कमाती है।।


मध्यप्रदेश के इन्दौर निवासी, 

अब प्रयागराज आई है। 

लेकिन महाकुंभ में उसके मन, 

कुछ निराशा भी आई है।। 


सामान तो बिकता नहीं है, 

फोटो विडियो लोग बनाते हैं। 

खरीददार तो कोई नहीं बस, 

बातें बहुत बनाते हैं।।


नीली -भूरी आँखें उसकी, 

सागर जैसी लगती हैं। 

हँस -हँस कर बातें करे जब,

अप्सरा कोई लगती है।। 


रूप अनोखा पाया उसने, 

आभार प्रभु का करती है। 

मिल जाए जीने का आसरा, 

यही दुआ वह करती है।। 

- शीला सिंह 

बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश

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       राष्ट्र कल्याण नयन 

 

कुंभ मेला जहाँ हर प्रेम की गंगा बहती है 

शिव प्रेम प्रयाग की अलभ्य गंगा बहती है 

ये हुरू पड़ी कोई और नहीं सावली सलोनी है 

भारत की बेटी कर्तव्यों का निर्वाह जानती है 

आँखो की चमक मोनलालिसा की मुस्कान है 

जिविकापार्जन करती राहों की मुस्कान है 

 चाहे जितना समझ पढ़ ले गढ़ ले मुस्कान लाती है 

महाकुंभ प्रयाग मिलन नहा पवित्र हो जाती है 

माया में अद्भुत गुणो की ख़ान रूप बदली है 

इस धरा जन जन मन आकर्षित करती है 

 विपदाओं से बचाती राह प्रेम की दिखाती है 

राम नाम की वाणी अपनों का प्यार बढ़ाती है 

आवाहन भारतमाता का करती कुंभ स्नान हर पल प्रेम गंगा है राह प्रेम कीअलख जगाती है 

कृतज्ञता एहसास जन कल्याणी दुर्गे भवानी  है 

 जागृति (गंगा) (चेतना )यमुना आत्मबोध सरस्वती सच्चाई समर्पण है 

जीवन अनमोल पल जहाँ बहती प्रेम की गंगा है 

जहाँ सुखद भविष्य बसाती अमरप्रेम कहलाती हैं 

हर पल प्रेम निर्मात्री श्रद्धाभक्ति प्रेम जगाती है 

नवयुग नव निर्माण राह प्रेम अलख जगाती है 

जनमन विश्वास जगाती राग द्वेष से बचाती है 

अमरप्रेम वाणी सत्य निरूपित राह दिखाती है 

ज्ञान मानव मन प्रबोध का अनूठा संगम है !

उज्ज्वल त्तन मन निसार जीवन कराती है  !

- अनिता शरद झा

 रायपुर - छत्तीसगढ़ 

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    मोनालिसा की ऑंखें


 मोनालिसा के नयन, समा गये हर मन,

 चर्चा नयन की  हर, गुरु और चेले में।

 छोड़ छाड़ सब भजन, छोड़ छाड़ कीर्तन,

 ऑंखें देखें भक्त जन, महाकुंभ मेले में।

 मोनालिसा का दर्शन, करना चाहते मन,

 सोच रहे लोग करें,बात वो अकेले में।।

 मन मोहिनी मुसकान, निश्छल हर बयान,

 ऐसी खूबसूरती न देखी कहीं खेले में।

 

जीवन के कई रंग, मोनालिसा के संग,

 हर्ष संग नव उमंग,दिखी इन ऑंखों में।।

 सौन्दर्य है अनुपम, नैन नाचे छम छम,

 बतियाती सरगम ,दिखी इन ऑंखों में।

नहीं कुछ भी छुपाव, इनमें अनेक भाव,

 सागर में जैसे नाव, दिखी इन ऑंखों में।

सागर सी गहराई, हिरनी सी चतुराई,

जीवन की सच्चाई, दिखी इन ऑंखों में।।

  - डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल' 

    धामपुर -उत्तर प्रदेश 

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          लेते है सेल्फी


छा गई मोनालिसा

सोशल मीडिया पर 

नीली -नीली आँखों वाली

सादगी की मूर्ति है यह बाला 

कमसिन है भोली है

पर बड़ी समझदार है।

कुंभ मेले  गई है

माला बेचने;

पर उसका नैसर्गिक सौंदर्य

बन गया जंजाल 

उसके लिए

लोग माला छोड़

लेते है सेल्फी

उसके साथ

भीड़ लगी रहती है

पर कोई नहीं  खरीद रहा

माला ,पवित्र हाथों की।

सार्थक हो कुंभ मेला

खरीदो कुछ मालाएंँ

बेच रही जो मोनालिसा

परिवार की खुशहाली के लिए।


   - निर्मल कुमार दे

 जमशेदपुर - झारखंड 


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सोशल मीडिया पागल हुआ


नैना मोनालिसा के 

कुंभ में लग गए,

अध्यात्म की नगरी में

लोग उनकी आँखों में फंस गए,

लग गई लाइन दर्शन को

हुई वायरल जो मोनालिसा,

कुछ नैन जुल्म ढा गए 

कुछ मीडिया वाले काम कर गए,

कुंभ नगरी में तो जैसे

वायरल नैन आतंक मचा गए,

बेचती माला वो फिर रही थी

मध्य प्रदेश से आकर यहां,

उसने भी कहां सोचा होगा

इतनी प्रसिद्ध हो जाएगी यहां,

उसका कुंभ तो सार्थक हुआ

स्नान के संग रूप रंग प्रचलित हुआ,

लोग देख रहे टक टकी लगाए

सोशल मीडिया पागल हुआ,

खबरों में वो छाई रही 

नाम उसका चलता रहा,

प्रयागराज के संगम में

नैनों ने मानो कब्जा किया,

इत्र सी महकी नगरी

कुंभ जैसे चकाचौंध हुआ,

इन नयनों के चक्कर में

प्रयागराज फिर पागल हुआ।


- नरेश सिंह नयाल 

देहरादून - उत्तराखंड

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    टिमटिमाती हुई आँखें


चेहरे की खुशी को वयां करती हैं, 

यह खूबसूरत सी आँखें ,

पलकों की छाया में  दिखती हैं 

बहूत अजीब सी यह छलकती हुई आँखें।  

 

हर पल दिखाती हैं चेहरे की मुस्कान 

मोनोलिसा की  मुस्कराती हुई आँखें। 


अलग सी पहचान दिखाती हैं, 

यह झील में कमल की तरह आँखें, 


माना की रंग काला नहीं है 

आँखों का  मगर व्राउन 

रंग में भी झिलमिलाती हैं

यह अजीब सी आँखें। 


निखारती हैं हर पल चेहरे

की रौनक को, यह बड़ी, 

बड़ी, कोमल सी आँखें। 


हर पल मन्द मन्द मुस्कान, 

हर किसी  के मन का आकर्षण बन जाती हैं 

यह अजीब सी आँखें। 


नहीं मिलती किसी अमीर को 

खरीदने पर भी  ऐसी

हसीन सी आँखें। 



रंक को राजा बना देती हैं

ऐसी खूबसूरत, टिमटिमाती हुई आँखें। 


देख कर लगता है कि खुदा, 

ने  चन्द  चेहरें को भेंट कि हैं 

ऐसी कमल सी खिलती हुई आँखें। 


अमीर, गरीब का सवाल  नहीं, 

भगवान के दिल में

उठता कभी सुदर्शन, 

दे, देता है, 

हजारों की नेमत  जिस किसी को चाहता है

 सँवारना ऐसी आँखें।

 - डा  सुदर्शन कुमार शर्मा

जम्मू - जम्मू व कश्मीर

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       कुंभ का मेला ऐसा


महाकुंभ में मैं गया ।

देखा संगम रह गया दंग 

दो आंखें देख रही थी ।

मेले का अजब रंग 


हुए दीवाने सब 

लड़की हो गई तंग 


एक तरफ महाकुंभ का मेला

एक तरफ था लड़की का जमेला 


लिए रुद्राक्ष हाथ में घूम रही थी।

 नज़रें सब उसको चूम रही थी।


नागिन सी वह  रही थी, घूम।

सबके होश किये उसने ,गुम 


नज़रें सबकी चुभने लगी।

वह भी अब समझने लगी। 

क्या चाहती है भीड़ 


फिर भी हिम्मत करके बोली ।


फोटो खिंचवा लो भैया एक 

पर माला लेलों एक 


कर्जा लेकर आई हूं। 

बिकी नहीं माला तो 

कर्जा कैसे चुकाऊंगी।

मैं तो ब्याज भी दे नहीं पाऊंगी। 


गरीब के घर जन्म लिया। 

कोई कहता सोनाक्षी जैसी आंखें हैं।

पर किस्मत मै कहां से लाऊं।

मैं कैसे सोनाक्षी बनजाऊं।


भोली लड़की समझ ना पाई 

इस मेले में वह क्यों आई


घर वालों को जब नजदीक न पाया

दिल उसका घबराया 


दो कदम वह चल नहीं पा रही थी ।

भीड़ उसके आगे पीछे आ रही थी।


वह घबराई ,देखें चारों ओर

 वह भागी अपने तब्बू की ओर


मोनालिसा घबराई 

 भाई से बोली 


गांव में मैं जाऊंगी 

फिर कभी मेले में 

नहीं आऊंगी।


- डॉ.लीला दीवान 

जोधपुर - राजस्थान

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    आज की मोनालिसा


प्रयाग महाकुम्भ में

एक मोनालिसा छाई

उससे कहीं अधिक

आंखों में गहराई,

सोशल मीडिया में

चर्चा ही चर्चा

भारत के हृदय राज्य

स्वच्छतम नगर

इन्दौर की बेटी

थी तो माला बेचने आई,

पर उसकी आँखों ने

अपने अप्रतिम सौंदर्य

जनमन तक प्रसिद्ध

हर हाथ पहुंचाई,

याद चित्रकार

निहालचंद की जिनसे

बनी ठनी कला

कभी मोनालिसा

थी कहाई,

विश्व इतिहास में

कई मोनालिसा

भोजपुरी अभिनेत्री

तो एक पढाई लिखाई

से दूर व्यापार हित

अपनी न्यारी आकर्षक

आंखों से आज

आम से असाधारण

बनकर हर हृदय

पहुंच बनाई,

बस यह पहचान

कहीं खो न जाए

इसको इसका

अस्तित्व से

व्यकित्व की ओर

जाने का अवसर

मिले,

जितनी आंखों के

सौंदर्य की गहराई

उतनी ही अधिक

जीवन के हर क्षेत्र में

सफलता की

ऊंचाई मिले,

सार्थकता होगी

तभी आजकल

की वायरल

संस्कृति मीडिया

माध्यम

साध्य साधन और साधना की

आज की मोनालिसा की।


- शशांक मिश्र भारती 

शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश

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   मोनालिसा की आँखें 


टी आर पी की संस्कृति 

दृष्टि की विकृति। 

मोक्ष को भूल कर 

नज़रें सौंदर्य के आसपास, 

गए थे हरि-भजन को 

ओटन लगे कपास। 

स्मरण न रही गंगा की धार 

भूल गए जमुना के संस्कार।

हृदय में सौ बातें 

आत्मा भी हुई जंगम, 

नगण्य हुआ आध्यात्म 

गौण हुआ संगम!

बुद्धि के चक्षुओं में,

वासना की गर्म सलाखें!

विस्मृत हुआ कुम्भ 

याद रही 

मोनालिसा की आँखें!

- राजेन्द्र पुरोहित

 जोधपुर - राजस्थान

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      मोनालिसा के नयन 


नयना मोनालिसा के, हुए इतने मशहूर ।

जो दर्शन श्रवण करे, वर्णन को मजबूर ॥१॥

संत समागम कुंभ है, महा भीड़ जग रूप । 

नयना नयना खोजते, मोना रूप अनूप ॥२॥

मनका माला बेचती, मनोहारी मुस्कान ।

मृगनयनी भोली बड़ी, सबको दे सम्मान ॥३॥ 

बंजारन निर्धन सुता, ख़बरों में दिन रात ।

अँखियाँ मोनालिसा की, हुई विश्व विख्यात ॥४॥

स्वादू साधु संत जन, जीते योग वियोग ।

महाकुंभ प्रयाग में, भाँति भाँति के लोग ॥५॥

- डॉ भूपेन्द्र कुमार 

धामपुर - उत्तर प्रदेश

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     मोनालिसा की आँखें


मोनालिसा की आँखें

बयान करती हैं सच्चाई

जिसने दुनियां है भरमाई

केवल है उनमें सच्चाई !!


मोनालिसा की आँखें 

माध्यम वर्ग की कथा

पेट पालने की व्यथा

मुस्कुराहट की अदा !!


मोनालिसा की आँखें

नहीं चाहती कुछ

न ही मांगती ये कुछ

कृत्रिम चीजें हैं तुच्छ !!


मोनालिसा की आँखें

कर रही ये फरियाद

रहने दो इन्हें आबाद 

कर दो इन्हें आजाद

- नंदिता बाली

सोलन - हिमाचल प्रदेश

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           यूं ही बैठे ठाले


  एक लड़की भोली -भाली

  सबसे अलग  वो  निराली

  कजरारी  उसकी आंखें

  दिल  की नहीं वो काली

         सबने तमाशा बनाया

         चली गई  वह गांव!


  कुंभ  मेले  में  वो आई

  सोचा होगी कुछ कमाई

  माला एक से एक सुंदर 

  नहीं कलुष उसके अंदर

         भीड़ ने उसे भरमाया

         चली गई वह गांव!

  

  माला की  वह सौदागर

  पेट भरती खुद कमाकर

  उसको न किसी से लेना

  मासूम  उसका  चेहरा

         न  जाने  कोई  दांव

         चली गई वह गांव!


  सेलीब्रिटी उसे बनाया

  पैसा भी खूब कमाया

  युवकों का दिल ललचाया 

  वह ना जाने दंद-फंद

          छोड़ कर अपनी ठांव

          चली गई  वह गांव!

  

  घबराई वह हरिणी सी

  एकाकी एक रमणी सी

  इधर-उधर को वह ताके

  कोई  तो संभाले  आके

        मिली नहीं कहीं छांव

        चली गई वह गांव।

-  विजया गुप्ता 

मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश

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    प्रयागराज में मोनालिसा

चटक मटक  अलबेली  सी माला दिखाये,

हस अखीयन  नीले पाबडे  बाला बिछाये|

पावन संगम मेला बेला, त्रिवेनी सी लुभाये,

रोज़ी-रोटी की बेसबरी से  जो कर दिखाये|

त्रेता युग में साकेत हुए से  बने हो  सिधारे,

कलियुग में पाप पुण्य करते  बन   पधारे।

रावण अनगिनत भरे हुए धरा पे   यहाँ रे,

जलकर भी ये मरे  दोष जान ये  कहाँ रे।

बीमार सोच  हर  मानव  पे दख़ल बनाये,

ले दिल अश्लील सोच   तस्वीर उभर आए।

हालात वासना और नेहे  बन भरा सा छाये,

युवा कन्या छोड़ मन विक्रय मे जौ मुस्काए।

भूल माला  वो संवाद से ही तो  खिली जाए,

घिरी भीड़ में लगती  जैसे नायिका कहलाये।

बातों से जैसे उसकी  जेब भरती नज़र आए,

मासूम अबला धोखे से  तभी जो हड़बड़ाये।

हर बार उसकी आँखों पर हर   बात आए,

असहाय हो परेशानी में छुप सी भाग जाए।

इस धरा से जन्मी हूँ मात पिता की जाई,

कह चुकाना क़र्ज़ मुझे यूँ घर ले घबराई।

प्रयागराज में मोनालिसा   धन कमाने आई

सुंदर आँखो वाली मन हर थो वो  लुभाई।

 - रेखा मोहन 

पटियाला - पंजाब

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 ‌‌     मृगनयनी मोनालिसा   


 महाकुम्भ में इक मृगनयनी  

नाम है  मोनालिसा  ।

 रूप रागिनी स्वप्न माधुरी ,

 जग में छाया  किस्सा ।

श्रमजीवी है  संस्कारी  है ,

 सीधी सादी  गुड़िया ।

आकर्षण का केंद्र बनी है 

वह जादू की पुड़िया ।

नव यौवन की नवल राह पर,

नवल स्वप्न की कलिका ।

नव्य नवेली  नयन नशीली ,

नीरज मुख की मलिका ।

गज गामिनि वह दर्प दामिनी ,

कल कल करती सरिता ।

निर्झरिणी सी झर झर झरती ,

वह  कविवर की कविता ।

कोमल किसलय कुमकुम जैसी ,

कनक कामिनी वनिता ।

कोकिल कंठी कमल आननी,

वह प्रभात की सविता ।

मृगनयनी वह मधुर भाषिणी ,

पुष्पगुच्छ की लतिका ।

कुंचित  कृष्ण केश हैं कुसुमित

 कृष्ण नाग की माणिका ।

रूपरश्मि  वह राग रागिनी ,

रमणी रजनीगन्धा  ।

राधा रिद्धिमा रंग रँगीली ,

रति है वह या रम्भा ।

शिवांगी  सी सुंदर सूरति,

सरस्वती सी शुचिता ।

श्वेत वस्त्र में   सुघड़ सलोनी  ,

सरल  हृदय  ज्यौं  अनिका ।


 - सुषमा दीक्षित शुक्ला

 लखनऊ - उत्तर प्रदेश

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https://youtu.be/8K-8ga-dI6U?si=P-avm_Qp2BZzvPox


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