जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी
सम्पादकीय
जल रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - । यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का उपयोग द्रव अवस्था के लिए प्रयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था और गैसीय अवस्था में भी पाया जाता है।
जल सामान्य तापमान और दबाव में एक फीका, बिना गंध वाला तरल है। जल और बर्फ़ का रंग बहुत ही हल्के नीला होता है, हालांकि जल कम मात्रा में रंगहीन लगता है। बर्फ भी रंगहीन लगती है और जल वाष्प मूलतः एक गैस के रूप में अदृश्य होता है
जल पारदर्शी होता है, इसलिए जलीय पौधे इसमे जीवित रह सकते हैं क्योंकि उन्हे सूर्य की रोशनी मिलती रहती है। केवल शक्तिशाली पराबैंगनी किरणों का ही कुछ हद तक यह अवशोषण कर पाता है।
पदार्थों के रूप में पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से सभी तीन अवस्थाओं में मिलते हैं। जल पृथ्वी पर कई अलग अलग रूपों में मिलता है: आसमान में जल वाष्प और बादल; समुद्र में समुद्री जल और कभी कभी हिमशैल; पहाड़ों में हिमनदऔर नदियां ; और तरल रूप में भूमि पर एक्वीफर के रूप में।
जल का उपयोग जब मानव करता है तो यह उसके लिये संसाधन हो जाता है। दैनिक कार्यों से लेकर कृषि में और विविध उद्द्योगों में जल का उपयोग होता है। जल मानव जीवन के लिये इतना महत्वपूर्ण संसाधन है कि यह मुहावरा ही प्रचलित है कि जल ही जीवन है।
कवियों के लिए जल विषय पर गहरी पकड़ बनीं हुई हैं अतः कवियों की रचनाएँ पेश करते हैं :-
क्रमांक - 01
हरियाली का मीत हैं नीर
- महेश गुप्ता जौनपुरी
गनापुर - उत्तर प्रदेश
आकाश से पाताल तक
नभ से अम्बर तक
सूर्य के किरण से
बादलों के शरण से
बूँद बनकर बरसती हैं
जल की फुहार बन
बूँद बूँद को तरसता हैं
पपीहा पानी इंतजार में
जीव वन्य झाड़ियों को
जल की जरूर हैं
पर्वत मरुस्थल धरातल तक
जल से उजागर धरा हैं
जल पर आश्रित जीव हैं
इसी से बँधा संसार का नींव
मानव जानवर पशु पक्षी सब
जल से करते जीवन यापन
भूमण्डल भी गतिमान हैं
जल की पावन धारा से
प्यास बुझाता जल का बूँद
हरियाली का मीत हैं नीर
सर्वशक्तिमान अमृत का घूँट हैं जल
जल ही जीवन हैं जीवो का
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क्रमांक - 02
इस संसार का जीवन है
- रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर - छत्तीसगढ़
कल-कल,झर-झर
मृदु स्वर निर्झर
शीतल,रजत सा पावन है
जल ही जीवन है
गंगाजल की खातिर
भागीरथ ने तप कई साल किए
जल तारे सारे पुरखों को,
जतन उन्होंने हजार किए
छल- छल बहता आया था तब,
गंगाजल छोड़ जटा शिव है
जल ही जीवन है।
प्राण रखा अन्न उपजाए
अन्नदाता की साख बचाए
व्याकुल तपन से जीव जंतु को
क्षण पल में राहत दिलवाए
धरा को हरा-भरा बनाए
हरीतिमा सब के मन भाए
जल ही से तो बर्फ बने
बह लाए वह मानुष मन है
जल ही जीवन है।
वाष्प,बयार है तुझ पर वारे
वरुण देव पर प्राण ने निसारे
सागर ने अपने हैं गर्भ में
जाने कितने रत्न सवारे
तू ने सब के महल बनाएं
ईट ईट तू ही जुड़वाए
तेरी महिमा गाते बीते
इस संसार का जीवन है
जल ही जीवन है
हां जल ही जीवन है।
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क्रमांक - 03
दो घूंट पानी
- सन्दीप तोमर
दिल्ली
मेरे अजदाद का हुनर तो देखो
बीरसे में क्या मिला बस पानी
मेरी दुनिया क्या हुई न पूछिए
पाकीजा ख्यालात भी हुए हैं पानी
तेरी आरजू, तेरा तसव्वुर बनिस्मत तेरी
शब्बे इंतजार भी हुई है पानी पानी
ये रिवायत हुस्न की है या
जज्बा-ए- दिल की
हर कोई हुआ शर्म से पानी पानी
उम्रे दराज़ कटी तेरे इंतजार में
आँख से बहता रहा बस पानी
परवाना करे बायं रुदाद कुछ यूँ
क्यों मर गया तेरी आँख का पानी
नज्जारा-ए - इश्क तो देखिये
ढूढता रहा हर बस पानी
कयामत के दिन भी पाले है ख्वाहिस
बस मिल जाये दो घूंट पानी
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क्रमांक - 04
प्रकृति को सहेजो
- वैष्णो खत्री
जबलपुर - मध्य प्रदेश
प्रकृति के सानिध्य से ही तुमको सुख प्राप्त हो पाएगा।
कृतसंकल्प होकर ही धरती को हरा भरा बना पाएगा।
पेड़-पौधों का अस्तित्व बनाए रखने का प्रण लेना होगा।
बनाना है जन्मदिन को चिरस्थायी तो वृक्ष लगाना होगा।
प्रकृति को बचाकर ही तुम इस परेशानी से उबर पाओगे
लगा कर पेड़ इसे बचा लो नहीं तो इतिहास बन जाओगे
प्रकृति की हमनेकी अवहेलना इसलिए सूरज आगबरसा रहा ।
बारिश का नामोनिशान नहीं है बादल को भी पवन उड़ा रहा।
वैज्ञानिकों की चेतावनी आगामी पीढ़ी पानी नहीं पाएगी भोग।
हर तरफ होगा हाहाकार करेंगे हमला भूख-प्यास और रोग।
वृक्षों की होती जीती जागती दुआ सारा विश्व मानता है।
हस्त उठा आकाश में वे करते दुआ संसार भी जानता है।
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क्रमांक - 05
जल सेवा है
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार " वीर "
बालाघाट - मध्यप्रदेश
जल से वन,
संसार विधमान,
वैर्थ न गंवा!
वर्षाकालीन,
जलों का संग्रह हो,
कुएं के रूप!
जल संकट,
महायुद्ध रोकने,
प्रेम जागृति!
जल सेवा है,
महादान फल है,
शरीर अंग!
पौधों को पानी,
जीवन दान दिया,
कर्मो का कर्ज!
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क्रमांक - 06
जल बिन हर काम अधूरा
- अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
जल ही जीवन है
जल ही अमृत है
जल बिन हर काम अधूरा
जल बिन है संसार अधूरा
जल बिन रहा न जाऐ
जल बिन जिया न जाऐ
नदी नाले तलाब बचाओ
व्यर्थ बहने बाला जल बचाओ
जल का अस्तित्व बचाना होगा
धरा व खेतों को हर्षाना होगा
व्यर्थ बहाकर करो न इसका अपमान
संचित कर जल को करो समम्मान
बाकी रहा न जल का अस्तित्व
कैसे बचाओगें जीवन अस्तित्व
जल के लिये होगी मारा मारी
लहू के बदले जल की मारा मारी
धन दौलत देकर भी न मिल पायेगा जल
अमीर वही कहलायेगा जिसके पास होगा जल
जल की रक्षा करनी होगी
नई क्रांति लौ जलानी होगी
हनन करेगे नेता नदियो के हक़ का
जल पर कब्बा होगा सरकारों का
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क्रमांक - 07
व्यर्थ न जल को बहाये
- गिरधारी लाल़ चौहान
जांजगीर- छत्तीसगढ़
आओ जल को बचायें ।
जल से कल को बचाये ।
जल से सबका जीवन।
सबको यह बात बताये ।
खाना जल से,पीना जल से ।
धोना जल से, नहाना जल से ।
समुचित उपयोग अपनाये ।
जहां बह रहा जल उसे रोके।
जो बहा रहा उसे टोके ।
बात मिलजुल कर यह सोचे ।
व्यर्थ न जल को बहाये ।
जल से अपना खेती ,जल से कारखाना ।
जल से अपना बिजली,जल सुखों का खजाना ।
गगन का जल हो या धरा का,यह पाठ पढ़ायें ।
जल का स्तर घट रहा ।
विचारणीय यह प्रश्न ।
इसके बिना सब असंभव ।
विफल सारे प्रयत्न ।
जल पर विचार सकारात्मक हो ।
कभी न मन नकारात्मक हो ।
जल तत्व है सबका सार ।
विचार सदा संरक्षात्मक हो
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क्रमांक - 08
बूँद बूँद से घट भरता है
- राजकुमारी रैकवार राज
जबलपुर - मध्यप्रदेश
पानी बचाओ और जीवन में सुरक्षा पाओ ।
अधिक पेड़ लगाओ धरती को जड़ों से पानी पहुँचाओ।
पानी को एकत्रित करने को सोकपिट बनवाओ ।
सूखे कुँए तालाबों की मरम्मत व्यवस्था कर वाओ।
धरती जो जल रही है भैय्या शीतलता दे पाओ ।
बूँद बूँद से घट भरता है जैसे पाई पाई से धन बढ़ता है
पानी है अनमोल पानी बचेगा तो आगे जीवन चलता है।
पानी व्यर्थ नहीं बहाओ बाल्टी में भर कर गाड़ी धुलवाओ ।
पानी है तो हरा भरा रहेगा धरती माँ का आँचल व हम सब
बारिस का जो पानी है उसे एकत्रित करना है हर हद तक।
तभी तो हरियाली रहेगी वसुन्धरा पर खुशहाल रहेगा देश।
हरियाली से वैश्विक ताप घटेगा और बदलेगा धरती का वेश ।
इसीलिए पानी की बूँद बूँद की कीमत जानो और बचाओ
पानी को बेकार न फेको जितना पीना है उतना ही लाओ ।
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क्रमांक - 09
नदी के तट रहे प्यासे
- शराफ़त अली ख़ान
बरेली - उत्तर प्रदेश
ताल-पोखर सब पट गये
उस पर बन रहे मकान
ये देख बौराया बगुला
हो रहा बहुत हलकान.
बदरा बरसे झूम के
रूकी नहीं इक बूंद
माटी प्यासी ही रही
व्यर्थ बह गई बूंद .
पनघट सब प्यासे हुए
नई सदी के संग
नल से जल व्यर्थ बह रहा
बिन टोंटी के अंग.
पानी बंद जब से बिका
ऊंच-नीच के संग
नदी-ताल का जल हुआ
निर्धनों के अंग.
नदी के तट रहे प्यासे
धरा की ओस है रोती
तड़प प्यासे हिरन की देख
नयन भर भर गये मोती.
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क्रमांक - 10
बिन जल नही जीवन कहीं
- डॉ.सरला सिंह
दिल्ली
जीवन है ये अमृत सा जल ,
अन्यथा तो हैं ग्रह अनेक ।
चिन्तन मनन गहन कर ले,
रे मानव तू जरा ठहर कर।
बिन जल नही जीवन कहीं,
मत कर इसका दुरूपयोग।
जीवन भी तेरा अनमोल है,
सब जलचर थलचर समान।
बिन जल नहीं अस्तित्व होगा,
होगा नहीं कलरव खगों का।
पशुओं का ना होगा आवागमन ,
वन ही नहीं होगे इस धरा पर ।
जल के बिना तो कुछ ना बचेगा ,
जल की शक्ति तो है अपरम्पार।
जीवन है बस इतना समझ लो ,
जल के बिना जीवन ही नहीं है।
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क्रमांक - 11
जल ही जीवन है का स्लोगन लगा रहे हैं
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
नेता जी बीच सड़क
जल ही जीवन है का
स्लोगन लगा रहे थे
उसी रास्ते मुझे आता देख
वे मन ही मन मुस्कुरा रहे थे
मैंने कहा ये क्या हैं?
नेता जी वोले लोगों में
जागरूकता फैला रहे हैं
जल ही जीवन है का
स्लोगन लगा रहे हैं
मैंने कहा ठीक है
कभी आपके घर आते हैं
देखते हैं आप कितना
जल बचाते हैं
वे वोले अफ्फ़कोस आइये
स्लोगन लगा रहा हूं
अभी तो जाइये
ठीक अगले ही दिन मैं
पहुंच गया उनके घर
उनके बच्चे पानी के अभाव में
टब में नहा रहे थे
मुझे देख नेता जी
मंद मंद मुस्कुरा रहे थे
वोले आइए आइए
आप तो अपने वादे के
पक्के हैं आपके सामने तो
हमहीं कच्चे हैं
टूटियों के कई नल खुले थे
पानी के धार अविरल
बह रहे थे।
मैंने कहा ये सब क्या है
वे वोले आप को आता देख
मेरे मन में ख्याल आया
ये तो गंदा पानी है
इसे नाले में बहा रहे हैं
स्वच्छ जल फ्रीज में है
पीने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है
एक बोतल निकाल कर
मेरे हाथ में पकड़ा दिए
आश्वासन देते हुए वोले
देखिए हम नेताओं के
मुख में हरदम राम रहते हैं
छुरी छुपा कर रखते हैं
वक्त जरूरत इस्तेमाल
करते हैं खून बहे या फिर
पानी एक ही बात है
मैं मौन हो गया
वे वोले कुछ तो बोलिए
अपना मुंह ज्यादा नहीं तो
थोड़ा ही खोलिए
मैं झेंप गया
शरमाते हुए बोला
सर अबके चुनाव में
पार्षद ही बनबा दिजिए
ऊपर कही सभी बातों पर
ठंडा पानी गिरा दिजिए
जाइए बात पक्की है
अगला पार्षद आप ही होंगे
जल ही जीवन है का
भूल से भी चर्चा न किजिए
मैं मंद मंद मुस्कुरा कर
अपनी राह चल दिया
जल ही जीवन का
किस्सा सुना दिया।
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क्रमांक - 12
पानी
- अमृता सिन्हा
पटना - बिहार
अगर खत्म हो गया ये पानी !
क्या धरती रह पायेगी सुहानी?
कंक्रीटो के जंगल में हम,
फिर कहाँ उगाएंगें हरियाली?
बरसेगा सूरज जब सर पे,
सूखेगी नदियों की रवानी !
खत्म हो जायेगा धरा पे जीवन
बचेगा तब ना कोई प्राणी !
सोचो आने वाली पीढ़ी
क्या माफ़ हमें कर पायेगी?
आओ संचित करके पानी
बचा लें हम उनकी ज़िंदगानी !
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क्रमांक - 13
बिन पानी पछतायेगा
- हरिन्दर सिंह गोगना
पटियाला - पंजाब
पानी से है जिंदगानी,
बिन पानी है सब बेमानी।
पानी से सुरक्षित कल,
पानी में न डालो मल।
माता धरती पिता पानी,
कहती है गुरूओं की वाणी।
मानव तूने कदन न जानी,
हर दिन करता है नादानी।
थोड़े में गुजारा होता,
काम भी जब सारा होता।
फिर भी अधिक बहाये पानी,
नहीं देख रहा तू हानि ।
एक दिन वो आयेगा,
बिन पानी पछतायेगा।
नई पीढियां कष्ट सहेंगी,
इसका दोषी तुम्हें कहेंगी।
अब भी वक्त है होश करो,
पानी जाया करने से डरो
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क्रमांक - 14
सब सहेजें अब बूँद,बूँद किंचित
- रजनी शर्मा
रायपुर - छत्तीसगढ़
विरक्त मन अब नीर रहित,
सलिला क्यों हो गई जल रहित।
मनु भी जिस सौंदर्य साम्राज्ञी
पर थे मोहित ,
उसका तट अब कैसा है
निर्जन,लोहित ।
कुशाग्रमति आर्य भी थे सुशोभित,
पर आज कर्तव्य विमूढ़ क्यों है
निर्लिप्त ।
बने श्रमतपा हों जल के लिये
संकल्पित ,
करे पूरे जम्बूदीप,रेवाखँडों को
तरोहित ।
'जल ही जीवन है'जब सर्वविदित
सब सहेजें अब बूँद,बूँद किंचित।
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क्रमांक - 15
सही है जल बिन जीवन नहीं
- नीतेश उपाध्याय
दमोह - मध्यप्रदेश
भोजन के बिन कुछ दिन जीवन है
किंतु जल के बिन जीवन नहीं
सभी पशु पक्षियों का तुम आधार
तुमसे ही मानव जीवन का उद्धार
ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं जिसने किया नमन नहीं
तुम बिन कोई वृक्ष नहीं रहता हरा भरा
सूखा सा हर एक पत्ता यहाँ पड़ा
सही है जल बिन जीवन नहीं
अनाज भी उत्पादित नहीं होगा
उपजी जमीन बंजर हो जाएगी
इससे महत्वपूर्ण तो धन नहीं
प्रकृति ,पर्यावरण में सौंदर्यता
सब है तुमसे ही
खिलखिलाएँ ऐसी कलियाँ
है तुम बिन कोई उपवन नहीं
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क्रमांक - 16
पानी रे पानी
- रूणा रश्मि
राँची - झारखंड
पानी रे पानी अजब तेरी कहानी
मिलती है तुझसे ही सबको जिंदगानी।
जल बिन है असंभव जीवन
कहता है धरती पर जन जन।
हर जीवन को आस है तेरी
जीव जन्तु को प्यास है तेरी।
तुझको पाकर सुकूं जो आया
लगा कि जैसे अमृत पाया।
पर तेरी जब बिगड़ी चाल
बुरा हो गया सबका हाल।
हो गया फिर जीना दुष्वार
और मच गया हाहाकार।
जल जब चहुँदिस भरने लगे
त्राहि त्राहि सब करने लगे।
घड़ी आ गई बड़ी विकट
जीवन पर आया संकट।
अमृत का जो रूप था तेरा
विष का क्यों अब स्वरूप हो गया।
दिखते हैं दो अलग रूप ये
पर तेरे ही हैं स्वरूप ये।
पालनहार का एक रूप है
संहारक दूजा स्वरूप है।
करो कभी नहीं संहार
बने रहो बस पालनहार।
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क्रमांक - 17
बस इतना कहना मान ले
- आचार्य मदन हिमाँचली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
पाँच तत्व मे जल जीवन है
भली भाँति यह जान लो -
पानी को मत व्यर्थ बहाओ
प्रतिज्ञा आज से ठान लो।।
लापरवाही करोगे यदि मानव!
तो बूँद -बूंद को तरसोगे
शुद्धजल तो दूर के सपने
पीने की बूँद को तरसोगे।
जैसे भी हो जल सँचित कर
कहना आज से मान लो।।
जल बिन सारा जग सूना
जल जीने की आस है
लापरवाही मत कर मानव!
जलबिन सर्वत्र विनाश है।
जीवन की लीला चली रहे
तथ्य आज यह जान ले।
जल की बूँदों के लिए
विश्वयुद्ध भी हो सकता है
सम्हल जा वक्त रहते ही
जल सूख भी सकता है ।
कूऐँ बावडी स्वच्छ बना ले
वर्षा जल को इकठ्ठा कर
व्यर्थ जल को बहाना छोडकर
नदी नालों को इकट्ठा कर।
पानी के लिए भटकाव नहो
बस इतना कहना मान ले।
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क्रमांक - 18
अमृत जल की बूँदे
- अर्विना गहलोत
प्रयागराज - उत्तर प्रदेश
जीवन दायिनी जल की बूँदे।
आसमान से आती अमृत बन कर ।
मेरे भी आंगन में नचाती छम छम।
हथेलियों को फैलाए समेटती हूँ।
यादें बचपन की नाव कागज की ।
सोचती हूँ तो ख्वाबों में नाचती बूँदे।
जल तेरी किसी ने भी कीमत न जानी ।
आज हम सब खरीदें है बोतल का पानी ।
जल तुझसे ही झूमे बागों में बहारें ।
जून में भी मिलती ठंड़ी बयारें ।
जल तू तो निर्मल हमनें इसमें गंदगी डाली है।
उसी पाप को गंगा में धोकर मैली कर ड़ाली।
पीने के जल को हम सभी तरसते।
आदतों से अपनी सुधर नहीं सकते।
फिर भी बात न हमने किसी की मानी है ।
जल ही जीवन है परिभाषा न जानी है।
उस दिन क्या होगा जब जल पेट्रोल से मंहगा होगा।
तू दिन भर पानी की लाइन में खड़ा होगा।
बूंद बूंद से घट भरता कब समझेंगा ।
जल को संरक्षित करना कब सीखेगा।
आने वाली पीढ़ी को क्या दे जायेगा।
जब साथ जल खुद दूषित कर जायेगा।
जल सौ एम एल की बोतल में बिकता पायेगा।
तू जीने के लिए पांच बूंद पानी की
ड्रापर से मुंह में गिरायेगा
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क्रमांक - 19
सबको बताइए
- ओम प्रकाश फुलारा प्रफुल्ल
गरुड़ बागेश्वर - उत्तराखंड
जल ही तो जीवन है
हर बूँद अनमोल
जल बिन सब सुना
यह जान जाइए।
पड़ी है तपन घोर
आग बरस रही है
शीतल जल की बूंद
सब को ही चाहिए।
पशु पक्षी सब लोग
व्याकुल हैं जल बिन
हो सके तो पानी तुम
सबको पिलाइए।
नदी नाले साफ रखो
स्वच्छ जल बनाइए
जल से ही जीवन है
सबको बताइए।
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क्रमांक - 20
जल से जुड़े सभी संस्कार
- डा.अंजु लता सिंह
दिल्ली
जल जीवन है जल अमृत है
नीर-क्षीर है हिम निस्सृत है
जल का भू पर यहां पसारा
जल-संकट क्यों बना विकट है?
नीर सभी को रोज चाहिये
जीवन की हर मौज चाहिये
जीवन-रेखा पर्वत नदियां-
भू पर जल की खोज चाहिये.
ककड़ी, खीरा और खरबूजा
कच्चा नारियल मस्त तरबूजा
कब तक काम चलेगा इनसे-
जल - विकल्प नहीं कोई दूजा.
कूप,ताल,दरिया हों जीवित
इनमें ही खुशियां हैं निहित
धरती मां के शुष्क ह्रदय को-
कर सकते मनु तुम ही प्रफुलित.
जल से जुड़े सभी संस्कार
बंधे हुए जीवन के तार
संरक्षण कर बूंद बूंद का
तन-मन का कर लो उद्धार.
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क्रमांक - 21
जल से ही है संसार
- जगदीश प्रसाद रघुवंशी
रायसेन - मध्यप्रदेश
है
हुआ
जीव के
जीवन का
है संचलित
जीवन विस्तार
जल ही है आधार
जल से ही है संसार
इसको खत्म न करना
इसका संरक्षण करना
यहा सब शून्य होगा वरना
केवल पृथ्वी पर जल होता है
इसी लिए यही पर जीवन होता है।
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क्रमांक - 22
मेघा रे
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
तब शिखर ने बाँधा ,
नभ का साफ़ा ...
जब क्षितिज पर छाता ,
भाष्कर भष्म होता ,
लगता मानो किसी
घरनी ने घरवाले के लिए ,
चिलम पर फूँक मार ,
आग की आँच तेज की है ....
घरनी को चूल्हे की भी है चिंता ,
जीवन की जंजाल बनी है ,
गीली जलावन ,जी जला रही है.....
लौटे परिंदों ने पता बता दी है ....
किसान ,किस्मत के खेतो में ,
खाद-पानी पटा घर लौट रहा है ....
बैलों के गले में बंधी घंटी ,
हलों के साथ सुर में सुर मिला
संदेसा भेज रहे हैं .... !!
मेघ अकसर उलझन में होता है
किस की बात सुने और माने
वो सिकुड़ा लाज से पानी पानी
कहीं जलावन गीली
कहीं कच्चे मिट्टी-बर्तन के गिले
साजन बिन सावन से गिला
तो मेघ को सब कोसे
बेचारा मेघ उसके हिस्से बस गिला
वो तो ऐसे ही है गीला ,गीला।
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क्रमांक -23
नदी की मनोव्यथा
- प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव "विदग्ध"
जबलपुर - मध्यप्रदेश
जो मीठा पावन जल देकर हमको सुस्वस्थ बनाती है
जिसकी घाटी और जलधारा हम सबके मन को भाती है
तीर्थ क्षेत्र जिसके तट पर हैं जिनकी होती है पूजा
वही नदी माँ दुखिया सी अपनी व्यथा सुनाती है
पूजा तो करते सब मेरी पर उच्छिष्ट बहाते हैं
कचरा पोलीथीन फेंक जाते हैं जो भी आते हैं
मैल मलिनता भरते मुझमें जो भी रोज नहाते हैं
गंदे परनाले नगरों के मुझमें ही डाले जाते हैं
जरा निहारो पड़ी गन्दगी मेरे तट और घाटों में
सैर सपाटे वाले यात्री ! खुश न रहो बस चाटों में
मन के श्रद्धा भाव तुम्हारे प्रकट नहीं व्यवहारों में
समाचार सब छपते रहते आये दिन अखबारों में
ऐसे इस वसुधा को पावन मैं कैसे कर पाउँगी ?
पापनाशिनी शक्ति गवाँकर विष से खुद मर जाउंगी
मेरी जो छबि बसी हुई है जन मानस के भावों में
धूमिल वह होती जाती अब दूर दूर तक गांवों में
प्रिय भारत में जहाँ कहीं भी दिखते साधक सन्यासी
वे मुझमें डुबकी , तर्पण ,पूजन ,आरति के हैं अभिलाषी
तुम सब मुझको माँ कहते , तो माँ को बेटों सा प्यार करो
घृणित मलिनता से उबार तुम मेरे सब दुख दर्द हरो
सही धर्म का अर्थ समझ यदि सब हितकर व्यवहार करें
तो न किसी को कठिनाई हो , कहीं न जलचर जीव मरें
छुद्र स्वार्थ नासमझी से जब आपस में टकराते हैं
इस धरती पर तभी अचानक विकट बवण्डर आते हैं
प्रकृति आज है घायल , मानव की बढ़ती मनमानी से
लोग कर रहे अहित स्वतः का , अपनी ही नादानी से
ले निर्मल जल , निज क्षमता भर अगर न मैं बह पाउंगी
नगर गांव, कृषि वन , जन मन को क्या खुश रख पाउँगी ?
प्रकृति चक्र की समझ क्रियायें ,परिपोषक व्यवहार करो
बुरी आदतें बदलो अपनी , जननी का श्रंगार करो
बाँटो सबको प्यार , स्वच्छता रखो , प्रकृति उद्धार करो
जहाँ जहाँ भी विकृति बढ़ी है बढ़कर वहाँ सुधार करो
गंगा यमुना सब नदियों की मुझ सी राम कहानी है
इसीलिये हो रहा कठिन अब मिलना सबको पानी है
समझो जीवन की परिभाषा , छोड़ो मन की नादानी
सबके मन से हटे प्रदूषण , तो हों सुखी सभी प्राणी !!
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क्रमांक - 24
जल केे बिना होती नही शान
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
जीवन का आधार ही जल है
और जड चेतन का प्राण ।
गहरा सागर वाष्प बनाकर
हिमगिरि पर देता दर्शन ।
वायुमंडल मे बादल भी
रिमझिम संग करता गर्जन ।
ताल तलैया घट पोखर की
जल केे बिना होती नही शान..
नदी नहर डल झील सरोवर
कल-कल का संगीत मनोहर ।
अन्न धन्य पुष्पित हरीतिमा
ऋषियों से हुई प्राप्त धरोहर ।
अपलक देख रेख कर ले
सबके सब जल के वरदान ...
कितना पावन अमृतमयी जल
देव- तपो का सुन्दर फल ।
जन्म मरण नित जीवन हित
संरक्षित कर गंगाजल ।
सुन ले बन्दे जल के बिना
जीवन होगा सबका श्मशान .
मछली ओ स्वाति पक्षी भी
जल के बिना होते बेजान
तप्त मरूस्थल थका बटोही
करता है जल का संधान ।
वृक्ष लगाकर दिशा बता दे
जल भी लेता है प्रतिदान...
जल ही जीवन जल ही धन
जल ही जीवो की जान .....
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क्रमांक - 25
जल है तो हम है
- अजय जयहरि कीर्तिप्रद
कोटा - राजस्थान
पानी के गये सब स्त्रोत सूख ;आँख हुई नम है
कंठ गया सूख मेरा ; निकल रहा दम है
हम ; हम न रहे अब यारों साँसें गई थम है
पानी का अनावश्यक उपयोग कर रहे हम है
पानी के गये सब स्त्रोत सूख ..........................
पीने योग्य पानी धरा पर बचा बहुत कम है
जो बचाहै थोड़ा बहुत; उसको गंदा कर रहे हम है
और दम नहीं अब किसी में ;ताकत बची कम है
मानव की नसों में लगे;बिनपानी,खून गया जम है
पानी के गये सब स्त्रोत सूख.........................
पानी का अनावश्यक उपयोग नहीं रहा थम है
पानी नहीं बचा धरा पर इसके जिम्मेदार हम है
और कम है जहाँ में पेड़; और मानव, एटम बम है
पशु पक्षी बिन पानी सारे; धरा पर, तोड़ रहे दम है
पानी के गये सब स्त्रोत सूख.........................
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क्रमांक - 26
आज फिर उदास हैं नदियाँ
- सत्या शर्मा ' कीर्ति '
रांची - झारखण्ड
गर्मियों की अनकही सी आहटें
और भयकम्पित होती नदियों का बजूद
आने वाले दिनों की एहसास मात्र से काँप जाती हैं
जैसे रुह निकल जाती हो
आँखों के रास्ते
कि कैसे पुनः सूख जाएँगे
जल स्तर
कि कैसे मर जाएगी
नदियों के गर्भ में पल रही
हजारों मछलियाँ
कि फिर अहले सुबह प्यास से मुरझाए चेहरे के साथ
कमर और सर पर
घड़े रख कर दूर से आएँगी स्त्रियाँ
और उदासी भरी आँखों से उसकी
सूखी छाती देख लौट जाएँगी
अपने कई दिनों से नहीं नहाए
तेज देह गन्ध के साथ
कि फिर नहीं सुनाई देगा
नाव के किनारे खड़े होकर
गाने वाले माँझी का वो करुण गीत
न परदेश में बसा मीत गीत सुन वापस लौट पाएगा
कि फिर नदियों किनारे के हजारों वृक्ष
हो जाएँगे निर्वसन और
उनके घोसलों में रहने वाले
पंछियों का खो जायेगा वो मधुर संगीत
इसलिए आज फिर उदास हैं नदियाँ कि
पर्यावरण का दंश झेलती
धरती के आँगन में लौट रहा है
दहकती अग्नि लिये गर्मियों का मौसम ।
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क्रमांक - 27
पावनता
- विनोद सिल्ला
टोहाना - हरियाणा
नहर का नीला पानी
लगा मुझे चिरयात्री
आया पहाड़ों से
चलता रहा है निर्बाध
थकान भी नहीं है
ऊबा भी नहीं सफर से
जाना भी है बहुत दूर
चला जा रहा है चुपचाप
गतिशीलता ने
रखी है महफूज
इसकी पावनता
अगर ये
कहीं ठहर जाता
किसी तालाब में
तो खो देता
अपनी पावनता
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क्रमांक - 28
निवेदन
- आभा दवे
मुम्बई - महाराष्ट्र
गर्मी के दिन आ गए
ले लू भरी बयार
पंछी तरसते पानी को
जानवर ढूंढते नदी या तालाब
कहीं बह रही पानी की धार
कहीं सूखे खेत और कुएं पड़े
बारिश की बूंदों का कर रहे
इंतजार
जल की कीमत जाने सभी
जल ही जीवन माने सभी
कर रहे *निवेदन* स्कूल के बच्चे
जो सीख रहे पानी का मोल
पानी तो बड़ा ही अनमोल
जन- जन ये बात पहुँचाना है
इस धरा को सूखे से बचाना है
आज गर नहीं किया पानी का मोल
भविष्य में हाहाकार मच जाएगा
सागर तो सदा से खारा है
मीठे जल को जग तरस जाएगा
करनी होगी सभी को प्रतिज्ञा
जल हमें बचाना है
आने वाले कल की खातिर
जल की हरेक बूँद को बचाना है
यही *निवेदन* करना सबसे
जल को व्यर्थ न बहाओ
अब संभल भी जाओ ।
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क्रमांक - 29
पानी की बूंद की कीमत समझो
- अनन्तराम चौबे अनन्त
जबलपुर - मध्यप्रदेश
पेड़ पौधे इन्सान सभी का
जल से ही सबका जीवन है ।
पशु पक्षी हो या हो जानवर
जल के बिना नही जीवन है ।
जल के बिना प्यास नहीं बुझती
पानी बिन कोई फसल न ऊगती ।
पेड़ पौधे हर जगह है ऊगते
जल के बिना न जीवित रहते ।
घर में जब कोई मेहमानआता है
पानी देकर ही स्वागत करते हैं ।
मेहमान को पानी मिले न पीने
जाने पर उन घर वालो को कोसते हैं ।
पानी की बूंद की कीमत समझो
चिड़ियाँ पानी बूंद बूंद पीती है
एक एक बूंद पानी पीकर ही
वह अपनी प्यास बुझाती है ।
पानी की कीमत को समझो
वेबजह रोड़ पर नहीं बहाओ ।
जिसको पानी नही मिलता है
कैसे वो प्यास बुझाता है ।
एक समय जब नल नही आते
घर में हाहाकार मच जाता है ।
पानी पीने जब नही मिलता है
पानी का मोल समझ आता है ।
जल से ही सबका जीवन है
जल की कीमत को पहचानों ।
जल के बिना न भोजन बनता है
जल से ही सबका जीवन चलता है ।
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क्रमांक - 30
नहीं जल तो पल में प्रलय
- राजकांता राज
पटना - बिहार
धरती की हरियाली जल
नहीं जल तो पल में प्रलय
ये धरती माँ का संचय धन
जल ही सबका है जीवन
सजीवों का ये है बल
जल बिना नहीं सुनहरे कल
जीव जन्तु पेड़ इन्सान
सब हो जाएगा त्राहिमाम
गंगा यमुना के दूषित पानी
हो रहा है जीवन हानि
बढ़ रहा है खुब आबादी
पानी को नहीं करो बर्बादी
बूँद बूँद से भरता सागर
संचय करें हम जल बचा कर
धरती की हरियाली जल
नहीं जल तो पल में प्रलय
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क्रमांक - 31
आदि से अंत तक अस्तित्व तुझसे है
- उदय बहादुर सिंह
जबलपुर - मध्यप्रदेश
ऐ आब, तुझसा न देखा कोई,
तेरा तो इक़ अलग सा ढंग है।
तू घुल जाए जिस रोगन के संग,
वही बन गया तेरा भी तो रंग है।
तुझसे ये जीवन है बढ़ता गया,
तेरे से ही तो ये सब उत्पन्न है।
चहुँ ओर देखूँ मैं तेरा ही साया,
तुझसे ही तो ये सृष्टि सम्पन्न है।।
हर इक़ बूँद तेरी इक़ मोती जैसी,
साफ दर्पण, चंचल तेरी सीरत है।
तुझसे है सबको जीवन मिल जाता,
अद्भुत तू अनमोल तेरी क़ीमत है।।
तू था कल और आज भी है तू,
तुझसे बावस्ता आने वाला कल है।
आदि से अंत तक अस्तित्व तुझसे है
निर्मल बहता जीवन देता, तू जल है।।
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क्रमांक - 48
अनमोल रत्न
- मिनाक्षी सिंह
पटना - बिहार
जल है तो जीवन है ।
यह नहीं सिर्फ एक कथन है।
जल पृथ्वी का अनमोल रतन है ।
इसके बगैर जीवन जीना सोचना व्यर्थ है।
संरक्षण का इसके करो उपाय।
इसके अभाव में अपनी धरती,
विधवा सी कहीं नजर ना आए।
धरती का सोलह श्रृंगार हरियाली,
बिंन जल कैसे यह आएगी।
फटा रहेगा धरती का सीना
हरे भरे खेतों की जगह,
बिम्बाईयाँ ही बिम्बाईयाँ नजर आएंगी।
पेङो को कटने से बचाएं,
बरसा पास बुलाने के लिए।
इसके खातिर हर मानव को,
दो-दो पेड़ लगाना होगा।
अपने घर के नल के जल को,
खुला न छोड़ो ध्यान रखो।
एक्वा आरो के पानी का,
संचयन का कुछ इंतजाम करो।
अगर ना सहेजे जल को तुम तो ,
भविष्य में कैसे अपने वंश की प्यास बुझा ओगे।
आने वाला कल तुम्हें खङा मिलेगा,
पानी के लिए राशन की कतारों में ।
अन्याय ना करें अपनों के भविष्य से,
सोच अपने बदलो तुम प्राणी ।
पानी की त्राहि त्राहि में,
अपनों का लहू बहने ना पाए।
अब हर जन को चेतना होगा,
जागो हे धरती के पुत्र तुम ।
एक अभियान चलाओ सब मिलकर।
संचित करो वर्षा के जल को
सब मिलकर खूब सारे पेड़ लगाओ,
धरती के अमूल्य धन को खत्म होने से बचाओ।
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क्रमांक - 58
नदिया की जु़बानी
- डा. चंद्रा सायता
इंदौर - मध्यप्रदेश
मनुपुत्र.के मानस को यूं देख विव्हल,
मौन खडी़ मैं मन ही मन अकुला रही।
खाली खाली अपना आंचल निहार,
' प्यास लगी है?' कहते भी सकुचा रही।
क्षीण जलधार से जैसे तैसे लिखी मैने,
खुरदुरे ज़मीनी कागज पर एक इबारत।
कभी न सोचा था, होगा यह अंजाम
मानव यूं प्रकृति से करेगा ऐसी शरारत।
मेरा गुनाह क्या था क्यों करनी पडी़?
विवश होकर मेरे ही किनारों को खुदकुशी।
गुलशन कहीं सेहरा बना , सीमाएं टूटी,
कहीं घर डूबे, कहीं प्यास रही अनबुझी।
तोड़ दी सभी सीमाएं ,मर्यादाएं उसने
अब कैसे मांग रहा वह मुझसे जल
भूल गया वह, प्रकृति को छला उसीने,
आड़े आ पड़ा है अब
उसी का छल ।
अब कर रहा हैं प्रेयर, प्रार्थना, इबादत,
दे रहा अपनों व जन जन की दुहाई।
लगता है गाड ,ईश्वर और अल्ला ने
सबक सिखाने की साज़िश है रचाई।
हो सके अब भी धर्म की आड़ छोड़ दे,
और इंसानियत को मजहब मान ले।
झूठे विश्वासों को चकनाचूर कर दे,
ज़मीर जो कहे उसीको फरमान मान ले
सिर्फ अपने या अपनों के लिए मत करना,
प्रार्थना, सर्वशक्तिमान से हे मानव तू।
कोई प्यासा न रहे,न कोई घर डूबे
मांगना सबके लिए जल का दान तू।
मत करो बर्बाद इसे कुछ भविष्य का सोचो
- मनोरमा जैन पाखी
भिण्ड - मध्यप्रदेश
जल से जीवन है और जीवन है अनमोल
जल है तो कल है ,जल बिन जीवन मुश्किल है ।
धरा संजोती अपने अंदर ,तब साँसें तुम ले पाते,
हरी भरी शस्य श्यामला,तब इसको तुम कह पाते।
जल से है जीवन और जीवन है अनमोल ।
जलचर थलचर सबकी जरुरत जल है
बढ रहा जमीन पर ताप ,जल ही तो हल है।
मत करो बर्बाद इसे कुछ भविष्य का सोचो
धरा पर कितना जल बचा मात्र इतना सोचो।
जल से है जीवन और जीवन है अनमोल ।
सागर संजोये सारी पृथ्वी का तीन हिस्सा जल
ग्लेशियर और बर्फ रूप में बचा हुआ है जल।
हाथ हमारे बस मुट्ठी भर ही तो जल है
प्रकृति का भी तो तुमने बदल दिया चक्र है।
जल सेहै जीवन और जीवन है अनमोल ।
एक बूंद में छत्तीस हजार जीव ,अब विज्ञान भी माना
व्यर्थ बहा कर जल उन सबको खत्म कर डाला
संचय करो जल ,भविष्य विकराल है
जल से है जीवन और जीवन है अनमोल ।
क्रमांक - 31
जल बिना संसार कैसा
- बीजेन्द्र जैमिनी
पानीपत - हरियाणा
जल से जीवन है
जीवन से संसार है
जल बिना संसार कैसा ?
जल से पेड़ है
पेड़ से जीवन है
पेड़ बिना संसार कैसा ?
जल से नदियां है
नदियों से जीवन है
नदियाँ बिना संसार कैसा ?
जल से खेती है
खेती से जीवन है
खेती बिना संसार कैसा ?
जल बिना
जीव जन्तु कैसे ?
फिर संसार कैसा ?
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क्रमांक - 32
पानी यूँ ही बहे नहीं
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
पानी कहे पुकार के
सुनो जरा गुहार ये
खुले नल दिखे जहाँ
बंद कर दीजिए
अपने सिवा भी कहीं
दूसरों का सोच कर
पानी बच जाए यहाँ
प्रण कर लीजिए
सूखी खेती सूखे नाले
इनको कौन संभाले
अपने साथ इनकी
सुध कर लीजिए
वर्षा जल जोड़ कर
नल धारा मोड़ कर
थोड़ा पानी ज़्यादा काम
यह ठान लीजिए
पानी पर युद्ध नहीं
पानी यूँ ही बहे नहीं
बने धरा हरी भरी
संकल्प ले लीजिए
स्वयं बचा कर पानी
समझाना औरों को भी
जीवन का मूल मंत्र
आज बना लीजिए
मच रहा हाहाकार
सूखते नदी पहाड़
इनकी विपदा बड़ी
यह जान लीजिए
प्रकृति कितना देगी
देते देते खाली होगी
अब बारी देने की है
आगे बढ़ दीजिए।
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क्रमांक - 33
जल, जी का जंजाल
- शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी - मध्यप्रदेश
जी का जंजाल
मायाजाल
जलस्रोत या मानव
नंगा तेरा पानी न अमृत
शुद्ध पेयजल विस्मृत!
जद्दोजहद करवा कर
यंत्र-तंत्र से रसायन मिश्रित
अशुद्ध पानी पिला-पिला कर
कर शुद्धता से कंगाल!
जल से जीवन
जीवन से जल
कल, आज और कल
संक्रमण काल जी का जंजाल
औद्योगिक मायाजाल!
मन चंगा कर
वन सम्पदा कृत
हो जल अमृत
जन-जन संकल्पित
प्रकृति का यौवन
जल ही जीवन!
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क्रमांक - 34
आज मानवता अर्थहीन हो गई
- अंकिता सिन्हा
जमेशदपुर - झारखण्ड
जल की बुंदे न बची
कैसे प्यास बुझाओगें
जल संग्रही देश के सिरोताज
होते है जलविहीन ,
जल्द ही देश मरता पाओगे
नयन से जल छलकता,
बेशर्मियों के आंखों में जल नहीं
आज मानवता अर्थहीन हो गई
खारा जल कैसे पी पाओगे?
वो दिन आ गया जल स्तर यूं ही नीचे गिर चुका है
शक्तिशाली नदियों के अधिकारों का होता हनन
सारे जल पर कब्जा बाहुबली मक्कारो का,
पक्षियों की और मानव जातियों की तृष्णा
कैसे मिटा पाओगे ?
जल की बर्बादी रोकनी होगी
जल की संग्रह संधि करनी होगी प्यासे को जल दो
दुष्ट को जलने दो
तभी तो जल संरक्षक कहलाओगे
जल मिलता नहीं
शरीर जल रहा
जल के अभाव में यह
धरती घर जल रहा
अगर ये हाल रहा
जल से स्वर्ग जीवन कैसे बनाओगे?
थरथराती,धरती ,
गगन की शोभा धूमिल हो रही
परिंदों की तृष्णा बढ़ रही चहचाहाट ,
स्वर लुप्त हो रही जलजला धरती का खतरनाक हो रहा
कैसे जल बिन जी पाओगे?
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क्रमांक - 35
पानी बिन धरा ना लगे सुहानी
- विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
गंगापुर सिटी - राजस्थान
पंचतत्व का अंग है पानी
पानी बिन धरा ना लगे सुहानी
पानी स्वत: चँढ़ता जब ऊपर
आपदाएं आती है भू पर
लहरें काल-ग्रास बन जाती
फिर सुनामी असर दिखाती
जब मर्यादा लांघे सागर
रक्षित ना रहे घर की गागर
सड़कें दरिया बन जाती है
सभी इमारत गिर जाती है
प्रभु बचाना इससे हमको
भूले ना हम पिछले ग़म को
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क्रमांक - 36
पानी बिन सूना जग है
- डॉ लता अग्रवाल
- भोपाल -मध्यप्रदेश
जब सूरज तपाए
कंठ हाहाकार मचाये
पानी ही बस
प्यास बुझाए
पानी जीवन का आधार
पानी बिन सूना है संसार।
चैत्र ,बैसाख में
धरती का जल रसातल को जाय
सूखी पपड़ाती मिट्टी में
पानी ही नमी लाए
पानी से ले मिट्टी आकार
पानी बिन सूना है संसार।
उम्र के बढ़ते पदचाप
चेहरे की रौनक
लूट ले जाए
देख कर दर्पण
मन करता स्मरण
हुआ करता था पानीदार
पानी बिन सूना है संसार।
बरसों की कमाई इज्जत
जब कौड़ी के दाम
लुट जाए
पानीदार आदमी को
चैन कहीं न आये
लगे यह जीवन असार
पानी बिन सूना है संसार।
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क्रमांक - 37
तीन चौथाई धरती पर पानी
- देवदत्त शर्मा
अजमेर - राजस्थान
पृथ्वी,आकाश,अग्नि,वायु और जल
पंच तत्वों से निर्मित है यह सृष्टि
कहती है - जल ही जीवन है ।।
जल बिन प्यासा रहता जीवन
जल बिन उजड़ जाता है विजन
कहता है- जल ही जीवन है ।।
तीन चौथाई धरती पर पानी
फिर भी प्यासा रहता है प्राणी
कहता है- जल ही जीवन है ।।
बूंद-बूंद पानी को तरसना,
बूंद-बूंद से घट भरना
कहता है- जल ही जीवन है ।।
तपती मरुधरा की मरीचिका
बताती है प्राणी का प्राण है पानी
कहती है- जल ही जीवन है ।।
क्षीर सागर है विष्णु का अयन
उसी में करते वे शयन
कहते हैं- जल ही जीवन है ।।
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क्रमांक - 38
कितना जल है पीने को
- अपर्ण गुप्ता
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
जन्म लिया है धरती पर
जीने को सामान मिला है
ओ रब तेरी कृपा हुई और देखो हर इंसान पला है
कितना कुछ है खाने को कितना जल है पीने को
धरती मां को नमन करो
जीवन मिला ये जीने को
जीने को जिन्दगी कम है
जो पानी की एक बूंद भी कम है ।
पानी नही होगा तो कैसै जियेंगे
प्यास अगर लगेगी तो क्या पियेंगें
हम तो जी भी लेंगे मगर जरा सोचो
हमारे बच्चे तब कैसे जियेंगे
पानी नही मिला तो प्यासे ही रहेंगे
कही ये नदियां सूख नही जाये
कही ये समन्दर रूठ नही जाये
बस करें इतना पानी बेवजह ना बहाये
पेडों की हरियाली हर राह में सजायें
बूंद बूंद पानी की हम हर तरह बचाये
आने वाली पीढ़ी कही प्यासी ना रह जायें
जल ही जीवन है चलो सबको याद दिलाये
बूंद बूंद पानी की हम सब बचायें
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क्रमांक - 39
पानी है अनमोल
- डॉ . विनोद नायक
नागपुर - महाराष्ट्र
पानी है अनमोल करो न , तुम इसकी बर्बादी
संकट बढ़ता पानी का , अब करो ना कुछ तो भाई
भूल गये गंगा और जमुना को हम कहते माता
कूड़ा कचरा फेंक-फेंक के खूब निभाया नाता
पानी है अनमोल करो न तुम इसकी बर्बादी
संकट बढता पानी का अब करो न कुछ तो भाई
पेड़ लगाओ धरती पर , तब होगी अच्छी बारिश
करे पुकार ये धरती , अब बादल हुए हैं खाली
पानी है अनमोल करो न , तुम इसकी बर्बादी
संकट बढ़ता पानी का अब करो न कुछ तो भाई
ताल तलैया और नदी को , कर लो अब संरक्षित
वरना जल के झेल सकेगे , एक पल भी सुरक्षित
पानी है अनमोल करो न, तुम इसकी बर्बादी
संकट बढ़ता पानी का अब करो न कुछ तो भाई
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क्रमांक - 40
सब की प्यास बुझाता पानी
- सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
धरती का जब मन टूटा तो
झरना बन कर बहता पानी
हृदय हिमालय का जब पिघला
नदिया बन कर बहता पानी।।
पेट की आग बुझावन हेतु
टप टप श्रम का झरता पानी
मन मे पीर समायी जब जब
आँसू बन कर बहता पानी।।
सूरज की गर्मी से उड़ कर
भाप बना बन रहता पानी
धूल कणों संग बाँध जाए
गगन मेघ रचता है पानी ।।
धरती के भीतर से आ कर
वर्षा बन कर गिरता पानी
धरती पर कलकल से बह कर
सब की प्यास बुझाता पानी ।।
धरती के भीतर से आ कर
चारों ओर फैलता पानी
कहीं झील कहीं बना सागर
सुंदर धरा बनाता पानी ।।
अपनी उदार वृत्ति से देखो
सबको जीवित रखता पानी
कहीं बखेरे हरियाली तो
अन्न और फूल उगाता पानी ।।
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क्रमांक - 41
इसके क्या प्राण बचेंगे
- हरिनारायण सिंह 'हरि'
समस्तीपुर - बिहार
जल जीवन है, बिन इसके क्या प्राण बचेंगे!
बिना प्राण के कैसे हम इतिहास रचेंगे ?
सूख रहे हैं कुएं-बावरी,पोखर नदियां,
कैसे बीतेंगी आगे की सारी सदियां?
बोतल में अब बंद चंद जल-पान करेंगे ।
जल जीवन है, बिन इसके क्या प्राण बचेंगे!
दूषित होते जाते जो भी जल थोड़े हैं,
सिस्टम अब सब फेल कि वे बौने कोरे हैं ।
दूषित जल पी न्योछावर हम प्राण करेंगे!
जल जीवन है, बिन इसके क्या प्राण बचेंगे!
वर्षा कम हो गयी कि मरुथल बढ़ते जाते,
बिकने लगे कि पानी जिससे प्यास बुझाते ।
नहीं मिलेंगे पानी ,राजस्थान लिखेंगे !
जल जीवन है, बिन इसके क्या प्राण बचेंगे!
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क्रमांक - 42
बूँद असमय की
- अनिता रश्मि
रांची - झारखण्ड
मासूम फूलों से पहले
चटकी कलियों ने देखा
फ़िजां में बारिश की पहली बूँद
रूई के कोमल फाहे सी
इधर - उधर अटकी पड़ी थी।
उस पहली बूँद के लिए
तृषित रहनेवाले होंठ
सुर्ख कलियों के
हँस न सके अभी जब
चुपके से बूँद ने कहा
उसके करीब आकर-
जगह दो मुझे
अपने प्रतीक्षारत होंठों पर
मेरे पीछे दौड़ीं आ रहीं
वर्षा की अनगिन बूँदें
तुम्हारी शरण में
तोड़ कर घमंड सूर्य का
और
कैद बादलों के कालेपन की,
झटक कर दीवारें
गदराए मेघों से भरे
नीले आकाश के परकोटे की।
तब इस बेमेल समय में
मेघों की इस मेहरबानी से
तृण, कलियों, फूलों का दिल
खिल न सका
झट मुर्झा गया।
जल कभी जल बन
कभी जलजला तो कभी
धरा पर फैले सूखे में ढल
कितना तरसाता है
जल बिन सारा जीवन
जल-जल जाता है
असमय आया जल भी तो
तड़पाता है।
=======================
क्रमांक - 43
खुशियों का संसार है
- रामकुमार पटेल
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जल ही जीवन है
जल ही तो कल है।
जल के बिना भाई
जीवन विकल है।
जल ही तो आन है
जल ही तो शान है।
जल ही तो जीवन में
सबसे महान है ।
जल ही तो जगत में
देता मुस्कान है ।
जल के बिना यह
धरती सुनसान है ।
जल ही तो सार है
जल ही आधार है ।
जल ही तो आज
खुशियों का संसार है।।
=====================
क्रमांक - 44
बिन पानी होगा मरूस्थल
- सीमा शिवहरे 'सुमन'
भोपाल - मध्यप्रदेश
पानी बहता कल -कल- कल।
बचालो मुझे कहता है जल।।
वक्त गुजरता पल -पल- पल ।
लोटेगा नही बीता हुआ कल।।
जीवों से भरा है ये जल -थल।
बिन पानी होगा मरूस्थल।।
फूलों का बिछोना वृक्षों के तल।
बिन जल तो बस बचेगा मल।।
प्यास से व्याकुल हिरणों के दल।
सोचे ! पृथ्वी छोड़, अन्य ग्रह चल।।
सुरभित कैसे हों कमल-दल।
सूखे सभी सरोवर तल।।
जल है अनमोल ओ मानव खल।
पैसा कमाने में ना लगा सारा बल।।
हर मुश्किल का निकलेगा हल।
कर तो दिमाग में कुछ हल-चल।।
जोर से बंद करो टपके ना नल।
पानी सहेजो हर प्रतिपल।।
अच्छे कार्य में लगे ना टल
बुध्दि से मिटा जीवन के सल।।
==========================
क्रमांक - 45
पानी ही तो प्राण हैं
- ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'
सिरसा - हरियाणा
जल जीवन का सार है
महिमा अगम अपार।
जल के बिन सूना जगत
यह जीवन आधार।।
पानी ही तो प्राण हैं
रखना इसका मान।
बिन प्राणी के जीव की
नहीं बचेगी जान।।
सलिल बहाना व्यर्थ में,
मानव का अपमान।
इसकी हर इक बून्द में,
बसते हैं भगवान।।
======================
क्रमांक - 46
जीवन का स्रोत जल
- रंजना वर्मा
राँची - झारखंड
जल ही जीवन का आधार
बिन इसके सुना जग संसार
जीवन का स्रोत जल
जीवन में भरता संचार जल
जल का नित जीवन बड़ा उपयोग
जल बिना चले न दुनिया का उद्योग
जन-जन ,कण-कण की चाहत जल
सबकी जरूरत,सबसे अनमोल जल
जीव-जन्तुओं की प्यास बुझाता
पेड़-पौधों,खलियान में हरियाली लाता
हर दिन की जरूरत है जल
सबसे किमती है ये जल
पर मनुष्य कर रहे धरा का दोहन
नहीं सुनते प्रकृति का रुदन
पेड़-पौधे ,पहाड़ सब काट रहे
सड़क और मकान सब बना रहे
चीर रहे धरा का सीना
उसके सारे गहनों को छिना
गुंज रही उसकी सिसकियाँ चारों ओर
जल चला गहरे रसातल की ओर
वक़्त है अभी भी ,जरा संभल जा
बहुत किया दोहन,अब ठहर जा
मत कर खिलवाड़ प्रकृति से इतना
दस गुणा लगा पेड़,काटा था जितना ...
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क्रमांक - 47 - उदय बहादुर सिंह
जबलपुर - मध्यप्रदेश
ऐ आब, तुझसा न देखा कोई,
तेरा तो इक़ अलग सा ढंग है।
तू घुल जाए जिस रोगन के संग,
वही बन गया तेरा भी तो रंग है।
तुझसे ये जीवन है बढ़ता गया,
तेरे से ही तो ये सब उत्पन्न है।
चहुँ ओर देखूँ मैं तेरा ही साया,
तुझसे ही तो ये सृष्टि सम्पन्न है।।
हर इक़ बूँद तेरी इक़ मोती जैसी,
साफ दर्पण, चंचल तेरी सीरत है।
तुझसे है सबको जीवन मिल जाता,
अद्भुत तू अनमोल तेरी क़ीमत है।।
तू था कल और आज भी है तू,
तुझसे बावस्ता आने वाला कल है।
आदि से अंत तक अस्तित्व तुझसे है
निर्मल बहता जीवन देता, तू जल है।।
==========================
क्रमांक - 48
एक भी बूँद बरबाद न हो जल
- शाईस्ता अंजुम
पटना - बिहार
आब है पानी
नायाब है पानी
पानी है तो जीवन है
पानी नही तो हम नही
पानी को बबार्द नही करना है
आनेवाले समय के लिए ज़रा सोचना है ?
पानी को बचाएगे
समझदार कहलायेंगे
पानी की जरूरत को समझो
बिन पानी हम कैसे रहेंगे
जीवन की रक्षा हम कैसे करेंगे
बादल मिठा जल है बरसाता
नदियां तलाबों को यह है भरता
बिन बरसात सावन को तरसे
जल के बिना होती नही हरियाली
मछली मेढक पानी मे रहते
जल के बिना ये सब तरसे
लेना है हम सब को यह प्रण
एक भी बूँद बरबाद न हो जल
जल ही जीवन ;जल ही जीवन
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क्रमांक - 49
अनमोल जल को बचाता नहीं
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जल ही जीवन है।
और
जीवन
एक गहरी अनसुलझी पहेली
जिसे
सुलझाने वाले ही
अधिक उलझाते हैं
जैसे
दांए हाथ की दो उंगलीयों में
सुलगते सिगरेट
को बांए हाथ की दो उंगलियों में दबाते हुए
भारतीय अधिकारियों द्वारा
आदेश पारित करना
कि
धूम्रपान 'निषेध' है।
उसी प्रकार
जल संसाधन मंत्रालय भी
जल संरक्षण के नाम पर
धन
पानी की भांति
बहाता है
मगर
अनमोल जल को
बचाता नहीं
इसलिए 'प्रश्न' है
यदि
जल जीवन है
तो क्या हम
अपने बच्चों के जीवन हेतु
जल बचा रहे हैं?
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क्रमांक - 50
एक एक बूँद कि क़ीमत जानो
- सविता गुप्ता
रांची - झारखण्ड
बादल बन कर बरसता
धरा को भिंगों छाती में समाता
टुकड़ों में बँटकर सागर से मिलता
लहलहाते फसल का क्षुदा मिटाता
पशु पक्षी हो या इंसान
वन उपवन रहते सब हम पर निर्भर
मुझ बीन न आस्तित्व होगा
मरते जीव ,बंजर धरती होगा
एक एक बूँद कि क़ीमत जानो
जल संचय का मूल्य पहचानो
व्यर्थ न गँवाओ ,अब जाग भी जाओ
कहीं देर न हो जाए ,बचा लो जल को।
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क्रमांक - 51
जल ही कल का जीवन है
- पम्मी सिंह ' तृप्ति '
दिल्ली
एहतियात जरूरी है,घर को बचाने के लिए।
पेड़-पौधे जरूरी है,ज़मीन को संवारने के लिए।।
कर दिया खाली ,जो ताल था कभी भरा ।
मौन धरा पुछ रही ,किसने ये सुख हरा।।
दरक रही धरती की मिट्टी, उजड़े सारे बाग।
त्राहि - त्राहि मचा रहा, छेड़ों अब नये राग।।
जल ही कल का जीवन है,कर लो इसका भान।
जो समय पर न चेते,खतरे में होगी अपनी जान।।
सोम सुधा बरसाता ,ये ताल तलैया हैं जिंदगी।
संरक्षित करों बूंद बूंद को,अब यहीं हैं बंदगी।========================
क्रमांक - 52
सिसकता पानी
- ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
आखों से सूखते
इन आसूओं से
सूखा पडा़ गली का
एक नल बोला
सुन मेरे भाई
मैं व्यर्थ गवायां जाता हूं
अब और ताकत
खुद में ना पाता हूं
मैं जो हो जाऊँ खत्म
कम से कम तुम तो
रहो इन्सानों के संग
गर रहूंगा ना मैं
तो
प्यासे मर जायेंगे
चलो तुम संग ही
अपनी प्यास बूझायेंगें
बहते बहते आंसुओं नें
बोली पते बात
पानी हो गया पानी,पानी
थाम लिया आसूओं का
पिघल कर हाथ
कैसै रूकूं मैं आखों में
जाती रही अब इनकी लाज
सरेआम उतरते कपडे़
औरत के
नंगी होती
दिन और रात
न तेरी ही कीमत है इनको
न मेरी ही कीमत भईया
बूंद बूंद को तरसेंगें
तब याद आयेगी माईया
उसी पल से आखों से
जाता रहा पानी
इन्सानों की करतुतों से
सिसक ,सिसक कर
मर गया
जल ,नीर और पानी
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क्रमांक - 53
सबको जागरूक बनाए
- रेणु झा
रांची - झारखण्ड
आओ, सब मिलकर जल
का सम्मान करें,
इसके एक एक बूंद
अमृत की धारा है ।
जल बिन धरती की
कल्पना भी व्यर्थ है,
मानव हो या पशु पक्षी
सबको बचाने, जीवंत बनाने
के लिए जलधारा जरूरी है ।
अन्न उगाने, हरियाली बचाने
वातावरण को निर्मल रखने
स्वच्छ सुंदर जीवन बिताने
रसोई में भोजन पकाने मेंं
जल संलग्न जरूरी है ।
सच, जल ही जीवन है।
अन्न बिन कुछ दिन
चले जीवन, जल बिन
घंटो मेंं तड़पे जीवन
जलधारा बिना कैसे चले जीवन ।
जल ही जीवन है,
चले, सभी अमृत समान जल का संरक्षक बने,
इसकी बर्बादी रोकने मेंं अपनी जिम्मेदारी निभाएं।
सबको जागरूक बनाए ,
जलधारा को बचाएं
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क्रमांक -54
जल है जीवन जान
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबाई - महाराष्ट्र
पेड़ काट के करे नर , धरा नीर बर्बाद ।
वेद मंत्र से बचाने , करे ढंग हम याद ।
विकास आरी से सभी , जंगल होते नाश ।
संकट पानी का लाय ,जीवन होय विनाश ।
सड़ा देय पर्यावरण धुआँ , धुंध समीर ।
उत्तराखंड त्रासदी , बहाती प्रलय नीर ।
नीर बचाने साल का , चार्ट करें तैयार ।
होय नीर संरक्षण फिर , नहीं होय बेकार ।
पर्यावरण न करा ठीक , होय खराब तस्वीर ।
नहीं रहेगा आशिया , रोएगी तकदीर ।
अबरोही मेघ न दिखें , न गजरता आकाश ।
वर्षा अब गिरे नहीं है , बुझे न जग की प्यास ।
करें संकल्प हम सभी , लगाएं पेड़ खूब ।
है जीवन का अस्तित्व ये , हरित रहे भू दूब ।
पुरखों ने लगाय पेड़ , उनके फल हम खाय ।
नई पीढ़ी के वास्ते , हम भी पेड़ उगाय ।
जन जल सुरक्षा अभी कर , जल है जीवन जान ।
पूजें पेड़ों नदी को , वैदिक संस्कृति मान ।
रौद्र रूप है मई का , नीर गया है सूख ।
शहर गाँव की बुझे , नहीं प्यास ओ भूख ।
कहीं पड़े नल बेकार , कहीं नीर न नसीब ।
जीव - जंतु मर रहे हैं , नीर संकट अजीब ।
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क्रमांक - 55
जल ही सुख का उपवन
- काजल खत्री
अजमेर - राजस्थान
जल से ही जीवन है
जल से ही हुआ सृष्टि का उद्भव,
जल पीकर ही जिंदा है
ये जल थल और अम्बर
शीतल,मधुर हर रस से पूर
जल है जीवन अमृत
जल से पोषित है
पशु पक्षी वृक्ष और नारी नर
जल बचाओ कल बचाओ
अब यही अपना लक्ष्य बनाओ
जल ही सुख का उपवन
आओ मिलकर करे जल की रक्षा
धरती मां का क़र्ज़ चुकाने
जल का जीवन बचाएं
क्योंकि जल से ही जीवन है
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क्रमांक - 56
पानी रे पानी
- डॉ.विभा रजंन ' कनक '
दिल्ली
कहता है धरती का मानव
जल बिना असंभव जीवन
समय है सावधान होने का
बिन पानी रे नहीं है जीवन
जल का अब हर एक बूंद
मानव से है विनय करता
मुझे न ब्यर्थ बहाओ तुम
रहूं प्रवाहित यह कहता
पानी की ताकत समझो
ब्यर्थ यदि मुझे बहाओगे
आने वाले युगों को तब
सूखा सागर दे जाओगे
हो जाऊं मैं लुप्त अगर
नहीं रहेगी कोई कहानी
विश्व में युद्व हो जायेगा
मिट जायेगी जिंदगानी
इस कारण हे मानव मैं
सबसे प्रार्थना करता हूं
संचित कर लो जल को
ब्यर्थ कहीं जो बहता हूं
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क्रमांक - 57
- मिनाक्षी सिंह
पटना - बिहार
जल है तो जीवन है ।
यह नहीं सिर्फ एक कथन है।
जल पृथ्वी का अनमोल रतन है ।
इसके बगैर जीवन जीना सोचना व्यर्थ है।
संरक्षण का इसके करो उपाय।
इसके अभाव में अपनी धरती,
विधवा सी कहीं नजर ना आए।
धरती का सोलह श्रृंगार हरियाली,
बिंन जल कैसे यह आएगी।
फटा रहेगा धरती का सीना
हरे भरे खेतों की जगह,
बिम्बाईयाँ ही बिम्बाईयाँ नजर आएंगी।
पेङो को कटने से बचाएं,
बरसा पास बुलाने के लिए।
इसके खातिर हर मानव को,
दो-दो पेड़ लगाना होगा।
अपने घर के नल के जल को,
खुला न छोड़ो ध्यान रखो।
एक्वा आरो के पानी का,
संचयन का कुछ इंतजाम करो।
अगर ना सहेजे जल को तुम तो ,
भविष्य में कैसे अपने वंश की प्यास बुझा ओगे।
आने वाला कल तुम्हें खङा मिलेगा,
पानी के लिए राशन की कतारों में ।
अन्याय ना करें अपनों के भविष्य से,
सोच अपने बदलो तुम प्राणी ।
पानी की त्राहि त्राहि में,
अपनों का लहू बहने ना पाए।
अब हर जन को चेतना होगा,
जागो हे धरती के पुत्र तुम ।
एक अभियान चलाओ सब मिलकर।
संचित करो वर्षा के जल को
सब मिलकर खूब सारे पेड़ लगाओ,
धरती के अमूल्य धन को खत्म होने से बचाओ।
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क्रमांक - 58
जल हम सब की जीवन रेखा है
- मंजुला भूतड़ा
इन्दौर - मध्यप्रदेश
मैंने पानी से रिश्ते बनते देखे हैं,
मैंने पानी से रूठे मनते देखे हैं।
मैंने देखा है पानी का मीठा कडवा खारा होना,
मैंने देखा है इस का सबमें सबके जैसा हो जाना।
घुलने मिलने आकार बदलने का गुण है,
कोई नहीं ऐसा जो इसके बिना मौन या चुप है।
यह हम सब की जीवन रेखा है,
क्या इस का भविष्य हमने कभी सोचा है।
क्यों नहीं दे पाते इसे कोई भाव,
क्यों नहीं रखते इसे बचाने का भाव।
एक दिन नहीं होने पर गृहयुद्ध छिड़ जाता है,
इस से हम सब का गहरा नाता है।
जल संरक्षण की बात प्रबल करनी होगी,
जल संवर्धन की तकनीक अमल करनी होगी।
तभी भविष्य- सुख सरल तरल हो पाएगा
यह जल का नहीं अपना भविष्य बनाएगा।
जो आज किया परिणाम वही फिर पाना है,
वरना पानी की बर्बादी पर पानी पानी हो जाना है।
बिन पानी क्या जीवन सम्भव हो पाना है
नई पीढ़ी के सम्मुख कैसे मुंह पर पानी रह पाना है।
करें जल संरक्षण और संवर्धन,
इसे बचाने का हर एक जतन।
आने वाली पीढ़ी को इससे अच्छा उपहार नहीं
जीवन जीने का सच्चा सार यही।
जियो और जीने की राह बनो,
पानी को व्यर्थ न बहने दो।
कुछ तो सोचो, पानी रोको।
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क्रमांक - 59
पानी की कीमत
- प्रेमलता सिंह
पटना - बिहार
जल ही जीवन हैं
जल नहीं तो हम नहीं।
नहीं करो पानी की बर्बादी
अगर नहीं रुका
पानी की बर्बादी
तब इस धरती पर
मानव जीवन की
कल्पना होगी बेईमानी
पानी के बिना
जीवन हो जायेगा सुना
मुश्किल होगा जीना
सूख जायेंगे
नदी, नाले
होगा भारी किल्लत
पानी की
हम सब अगर नहीं चेते
तो जो जाएगी
हमारी प्यारी
धरती वीरान
कैसे पियेंगे पानी
हमारे नौनिहाल
आने वाले नई पीढ़ी
हम सबको गाली देँगे
कितने स्वार्थी
थे हमारे पूर्वज
हमारे भविष्य के लिए
एक बार भी नही सोचा?
पानी के लिए जब युद्व
छिड़ेगा धरती पर
एक दूसरे के
खून के प्यासे होंगें।
बूँद -बूँद पानी के लिए
तरसेंगे हमारे नौनिहाल
तब तड़पेगा
हम सभी का आत्मा
तब मरकर भी ना
हम चैन नहीं पाएंगे।
एक निवेदन :-
हमारी मानो।
नहीं करो
पानी की बर्बादी।
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क्रमांक - 60
जल का विकल्प नही
- प्रतिभा श्रीवास्तव अंश
भोपाल - मध्यप्रदेश
घटता पानी,बढ़ते लोग,
करो कोशिस,मिले पानी,
आने वाली पीढ़ी को,
जल का नही विकल्प कोई
हरा-भरा मध्यप्रदेश हमारा,
मनोहारी शहर भोपाल हमारा
झीलों की नगरी कहलाता,
सुंदरता पर खूब इठलाता
वृक्षों की हुई जो खूब कटाई,
हरियाली भी रूठ गई
ताल-तलैया बावड़ियां सारे,
सब के सब अब सूख रहे,
हे मानव अब तो सुधरो!!
प्रकृति का संरक्षण करो
जल और वृक्ष के बिना,
जीवन कहाँ सम्भव होता है
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क्रमांक - 61
जल संकट को दूर भगाएँ
- मनोरमा चन्द्रा
रायपुर - छत्तीसगढ़
जल से मिलता है जीवन,
जीव जंतुओं के प्यास बुझाता।
बूंद - बूंद कीमती हैं उसके,
हर तन को ठंडक पहुँचाता।।
वृक्ष - लताओं में उमंगें,
जल सिंचन से हैं आते।
तरुवर इससे भोजन बना,
नित हरा - भरा हो जाते।।
जल बिना कल नहीं,
सारे जगत में अनमोल होता।
मानव जीवन के लिए,
न कोई उसका तुल्य होता।।
कृषि कार्य, निर्माणों में,
अहम भूमिकायें निभाता।
कूप, नदी, तालाब संग्रहित हो,
सबका काम खूब है आता।।
मिलजुल कर इसको सहेजें,
जल संकट को दूर भगाएँ।
जरूरतें सबकी पूरी हो इससे,
उपक्रम हम ऐसा कर जाएँ।।
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क्रमांक - 62
जल अनमोल
- ईशानी सरकार
पटना - बिहार
तपती धरती देख रही है
आसमान की ओर
कहीं कोई मनचला बादल दिख जाए
थोड़ा फिकरे ही कस जाए
बूंद - बूंद को तरस रही है
हरियाली धरती की
सूख गए सब शाख - तरूवर
ताल - तलैया खग-पखेरू
तेज अट्ठहास सूरज के
जल रहे सब मानव धरती के
कुछ पल को ही आ
तेज हवा और बरखा ला
अपने कलश तू भर ला
थोड़ा तो छलका
पल - पल समझ रहे है
धरती वाले तेरा मोल
जल ही जीवन है जल अनमोल
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क्रमांक - 63
जन-जीवन का यह विधाता
- प्रतिभा सिंह
राँची - झारखंड
सचेत हो जा अब जरा
नहीं तो लेगा रूप भयावह
समय रहते न सोचा तो
बूंद-बूंद को तरसोगे ।
पानी से है सबका नाता
जन-जीवन का यह विधाता
जल जीवन है भाषण देते
इसका कोई प्रमाण नहीं
यथार्थ के धरातल पर उतारो
तभी होगा समाधान सही ।
पेड़-पौधों को मत काट
भरते तुझमें प्राण यही
इस संकट का एक निवारण
सब ओर हो जल-संचयन
तालाब, पोखर हो पुनर्जीवित
जनमानस का हो कल्याण
तंद्रा से अब तू जाग
व्यर्थ समय सोच मे न गवां
समय रहते विमर्श न किया
तो बूंद-बूंद को तरसोगे।
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क्रमांक - 64
ये कैसी आधुनिकता की भूख
- श्रुत कीर्ति अग्रवाल
पटना - बिहार
अमिय समाहित बूँद बूँद में,
प्रकृति का आशीर्वाद है जल।
जिंदगी का मूल, धरती की संपदा,
जीवन का अप्रतिम स्वाद है जल।
कभी वरदानों सा बरसे नभ से,
कहीं नदी जलाशय नयनभिराम।
पक्षी पौधे हर जीव आश्रित,
बिन जल के कहाँ बचेंगें प्रान?
अंधाधुंध कट रहे पेड़ हैं,
नदियों में जहर, नल गए हैं सूख।
कचरा भर दिया समुन्दर में,
ये कैसी आधुनिकता की भूख?
हर बूँद कीमती इसे बचाएँ,
जल संरक्षण का अब हो संस्कार,
न दूषित हो न बरबाद करें,
अपने भविष्य को दें ये उपहार।।
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क्रमांक - 65
सुन लो मेरी पुकार
- मंजुला ठाकुर
भोपाल - मध्यप्रदेश
जल ने लिख दिया है, आनेवाला कल।
एक एक बूंद,बचाओ कोई न हो विफल।
पानी का मोल सब जानो।
इसकी कीमत सब पहचानो।
जल है तो जीवन है।
जल है तो कल है।
यह बात हम सबने है जानी।
बड़े घरों में रहनेवाले करते हैं मनमानी।
क्यो वो बनते अज्ञानी।
गली मोहल्ले गाँव शहर।
पानी न पहुंचे वहा है कहर।
क्यों किसी की हाय लेते हो
पाइप से पौधे,घर, धोते हो।
पाइपों से है गाड़ी धुलती।
जहां सूखा है, वहा सांसें है ढलती।
ये सब देख दिल दहलता है।
मेरे देश के लोगों एक एक बूंद से
पशु पक्षी जनमानस है पलता।
कब तक देंगे साथ
ताल तलैया नदी कुएं सरोवर।
पानी न होगा तो हो जाएगा सब नश्वर
हो जाएगा सब नश्वर।
एक एक बूँद बचाना होगा।
जल संरक्षण मुहिम चलाना होगा।
सब जनों से है विनती मेरी
जल बचाओ,न बनाओ बंजर खनती।
न बनाओ बंजर खनती।
देशवासियों से करती हूँ ये गुहार।
अमल में लाओ सुन लो मेरी पुकार।
सुन लो मेरी पुकार।
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क्रमांक - 66
ये प्रकृति का उपहार
- डाॅ सुरिन्दर कौर नीलम
रांची - झारखंड
धरती माँ की छाती का
पावन अमृत है जल,
जिंदा रहते जीव ग्रहण कर
माँ का अमृत जल।
जल ही तो जीवन है
पर्यावरण का अधार,
सम्मान करो दिल से
ये प्रकृति का उपहार।
जिनको मिलता भरपूर पानी
वे बेफिजूल बहाते,
न बच्चों को रोकें वे
न खुद ही पानी बचाते।
कोसों दूर से जल ढोतीं
जो ग्रामीण बालाएं,
वे समझें कीमत पानी की
बूंद -बूंद बचाएं।
पानी हेतु लंबी कतारें
बाल्टी, डेकची, हंडे ,
पानी खातिर होते झगड़े
चलते लाठी डंडे।
इससे ही खेती हरियाली
धरती उगले सोना,
प्यास बुझाता, जीवन दाता
बिन इसके है रोना।
सदुपयोग करें पानी का
नाहक न बहाएं,
परंपरागत जल सरंक्षण
के उपाय अपनाएं।
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क्रमांक - 67
कहीं नहीं है मीठा पानी
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
जल जीवन है, जीवन ही जल है
जल की कीमत समझो प्यारों
अमृत की बूंदे ही न होगी
तो मृत्यु निश्चित है यारों !
जल का दुरुपयोग करोगे
प्यासे ही रह जाओगे
जैसे तडपे जल बिन मछली
तडपकर रह जाओगे !
सृष्टी की रचना तो देखो
इस धरा पर दृष्टी तो फेंको
तीन भाग में खारा जल फैला
कहीं नहीं है मीठा पानी!
नमकीन नीर को मीठा कर
सबकी प्यास बुझाये
अथक प्रयास मानव तुम्हारा
व्यर्थ न जाने पाये !
रसातल तक जाकर
खोद नीर हम पाते हैं
मानव प्यास बुझाने खातिर
बेजान हुई धरा बेचारी !
भौतिक सुख की लौलुपता में
सरोवर को ही पाट दिया
सपनों का महल बना
जंगल को हमने साफ किया !
अब तो ,
दिनकर के रौद्र रुप से
धरा भी धूं धूं करती है
नीर भरे अब मेघ न बनते
रसा भी अब वंध्य हुई !
रूपयों से जल न मिलेगा
होगी जल की पहरेदारी
चुल्लू भर पानी में डूबी
मतलब की सब रिश्तेदारी !
जल की महत्ता को समझे
व्यर्थ न हम उसे गवांये
जीवन ही है ,जल की बूंदे
आओ अपनी और
औरों की प्यास बुझायें !
============================
क्रमांक -68 नदिया की जु़बानी
- डा. चंद्रा सायता
इंदौर - मध्यप्रदेश
मनुपुत्र.के मानस को यूं देख विव्हल,
मौन खडी़ मैं मन ही मन अकुला रही।
खाली खाली अपना आंचल निहार,
' प्यास लगी है?' कहते भी सकुचा रही।
क्षीण जलधार से जैसे तैसे लिखी मैने,
खुरदुरे ज़मीनी कागज पर एक इबारत।
कभी न सोचा था, होगा यह अंजाम
मानव यूं प्रकृति से करेगा ऐसी शरारत।
मेरा गुनाह क्या था क्यों करनी पडी़?
विवश होकर मेरे ही किनारों को खुदकुशी।
गुलशन कहीं सेहरा बना , सीमाएं टूटी,
कहीं घर डूबे, कहीं प्यास रही अनबुझी।
तोड़ दी सभी सीमाएं ,मर्यादाएं उसने
अब कैसे मांग रहा वह मुझसे जल
भूल गया वह, प्रकृति को छला उसीने,
आड़े आ पड़ा है अब
उसी का छल ।
अब कर रहा हैं प्रेयर, प्रार्थना, इबादत,
दे रहा अपनों व जन जन की दुहाई।
लगता है गाड ,ईश्वर और अल्ला ने
सबक सिखाने की साज़िश है रचाई।
हो सके अब भी धर्म की आड़ छोड़ दे,
और इंसानियत को मजहब मान ले।
झूठे विश्वासों को चकनाचूर कर दे,
ज़मीर जो कहे उसीको फरमान मान ले
सिर्फ अपने या अपनों के लिए मत करना,
प्रार्थना, सर्वशक्तिमान से हे मानव तू।
कोई प्यासा न रहे,न कोई घर डूबे
मांगना सबके लिए जल का दान तू।
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क्रमांक -69
जीवन का अमृत
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
जल जीवन का
अमृत है ,
इसका उपयोग
विस्तृत है ,
जल बिना जीवन,
संभव नहीं ,
इसका कोई भी ,
विकल्प नहीं ,
जीवन का है ,
यह आधार ,
इस बिन जीवन ,
है निराधार ,
घूँट घूँट से भरना ,
होगा हर घट ,
संरक्षण की पुकार ,
सृष्टि की निष्कपट ,
तभी जियेगी सृष्टि सारी ,
मंगलकामना यही हमारी !!
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क्रमांक - 70
बूंद री महिमा सब ने सुणांवां बूंद
- सरोज कंवर
जयपुर - राजस्थान
सुणज्यो सखी थाने बात बतावां,एक बूंद री महिमा गावां,
बूंद री महिमा सब ने सुणांवां, बूंद री कीमत सब ने बतावां,
बूंद ने तरस्या रूंख भी सूख्या, बूंद मिली जद हुया हरया,
सीप में बूंद मोती बणी ज्यूं,इण मोती रो म्हे भाव करावां।
बूंद बिना धरती है प्यासी,तरसे अखियां रहे उदासी,
चातक बूंद ने चकवा तरसे, बूंद सू म्हारी प्रीत जतावां।
बैसाखां री तपती धरती,जेठ महीना में आग जळावे,
आसोजां में आसा लागी,आस हिया री और जगावां।
आयो महीनो सुख रो सावन,अब धरती रो हियो हरसावे,
काळा मेघ रिमझिम बरसे, बूंद बूंद सू रूंख लगावां।
सुणज्यो सखी थाने बात बतावां, एक बूंद री महिमा गावां,
बूंद री महिमा सब ने सुणांवां बूंद, री कीमत सब ने बतावां।
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क्रमांक -71
वसुंधरा
- मिन्नी मिश्रा
पटना - बिहार
तू ही वारि, तू ही जल
तू ही तोय, तू ही नीर |
बिन तेरे क्या है जीना !
तू नहीं, तो ये जग है सु ना !
है, तुझपर नदियों का थिरकना ,
विटप, पुष्प और भौरों का मचलना |
तुझे देख, बौराती है नदियाँ,
समंदर से मिलने को आतुर, हो जाती है नदियाँ |
पाषाण हृदय बन, जब तू न बरसता ,
किसानों की टोलियां, हाय!...
तुझसे मिलने को तरसता |
देख, उधर, तेरे आस में कैसे टकटकी लगाये ,
बिलख रही है, ये खड़ी, कोमल...
खेतों की बालियाँ |
इस क्रन्दन के कोलाहल से ...
आखिर, तेरा पाषाण हृदय भी कभी पिघल जाता ,
तब, धरा धन्य हो जाती है ,
चहुँओर बसंत लहलहाता है ,
पावक पवन भरमाता है |
बस..एक आरजू है, अब तुझसे..
प्रिय, रूठ न जाना कभी हमसे ,
तेरे बिन उपवन मरघट हो जायेगा ,
ये किलकारियाँ, सिसकी बन...
इतिहास में फिर से दफन हो जायेंगी !
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क्रमांक - 72 - मनोरमा जैन पाखी
भिण्ड - मध्यप्रदेश
जल से जीवन है और जीवन है अनमोल
जल है तो कल है ,जल बिन जीवन मुश्किल है ।
धरा संजोती अपने अंदर ,तब साँसें तुम ले पाते,
हरी भरी शस्य श्यामला,तब इसको तुम कह पाते।
जल से है जीवन और जीवन है अनमोल ।
जलचर थलचर सबकी जरुरत जल है
बढ रहा जमीन पर ताप ,जल ही तो हल है।
मत करो बर्बाद इसे कुछ भविष्य का सोचो
धरा पर कितना जल बचा मात्र इतना सोचो।
जल से है जीवन और जीवन है अनमोल ।
सागर संजोये सारी पृथ्वी का तीन हिस्सा जल
ग्लेशियर और बर्फ रूप में बचा हुआ है जल।
हाथ हमारे बस मुट्ठी भर ही तो जल है
प्रकृति का भी तो तुमने बदल दिया चक्र है।
जल सेहै जीवन और जीवन है अनमोल ।
एक बूंद में छत्तीस हजार जीव ,अब विज्ञान भी माना
व्यर्थ बहा कर जल उन सबको खत्म कर डाला
संचय करो जल ,भविष्य विकराल है
जल से है जीवन और जीवन है अनमोल ।
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क्रमांक - 73
जल बिन सूना है जीवन
- रीतु देवी
दरभंगा - बिहार
वन-बाग हैं सूखे, खेत -खलिहान सूखे
त्रस्त हैं भूखे-प्यासे चेहरे, सब नयनों नीर बहे
कृषक मेहनत पर फिर गए पानी,
सूखे फसलें रह-रह पुकारें वर्षा रानी,
त्राहिमाम मच गया है धरा पर,
टिके हैं चक्षु काले घने बदरा पर,
दुख के बादल मंडराए जीवों सर,
दुआऐं हो गए हैं सब बेअसर।
अपनी करनी पर पछताए मानव,
न करते जल संरक्षण, प्रगति की थम गए नाव
दर-दर भटके बुझाने प्यास,
स्वचछ जल न रहा धरा पास।
जागो मानव ,करो संरक्षण पानी की
प्रदूषण मुक्त करो वसुंधरा सुनो बात नानी की
जल बिन सूना है जीवन ,
करें जल समास्या समाधान हो प्रस्फुटित नव किरण।
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क्रमांक -74
समझ जाओ जल का मोल
- शालिनी खरे
भोपाल - मध्यप्रदेश
बूँद -बूँद में प्राण बसे
जल बिन रहना हैं मुश्किल
जल है तो जीवन है
कहना आज और कल।
नहीं खोलकर रखें नल
बहुत मूल्यवान है जल
बिन इसके पेड़ मुरझाये
पानी पाने होते विकल ।
सूख गए जो ताल-तलैया
कैसे करोगे ता-ता थैया
समझ जाओ जल का मोल
जीवन होगा सुखमय भैया।
उपयोग करो न मनमानी से
लो जितना तुम्हें जरूरी
बिन इसके होली पर
महसूस करोगे मजबूरी ।।
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क्रमांक - 75
जल संरक्षण, जल प्रबंधन
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
- जल -जीवन
- बरखा की इक बूँद को तरसे
- प्यासी धरती, घर -घर रोये
- कितना कहा कल हमने तुमसे
- जल ही जीवन, न व्यर्थ बहाओ
- बूँद -बूँद गागर भरती है
- जागो, जागो जल को बचाओ
- वृक्ष लगाओ, प्रेम जगाओ
- प्रकृति को तुम अपना बनाओ
- अब भी समय है, वर्षा का जल
- एकत्र करो और जीवन पाओ
- शरबती रंग घोलने वाला
- अमृत तुल्य जल तुम पा जाओ
- जल संरक्षण, जल प्रबंधन
- बोधिउत्तरदायित्व निभाओ
- वक़्त की माँग, समय की पुकार
- संकट -बादल दूर भगाओ
- जल पर आश्रित ये जग सारा
- जल की पावन धार बहाओ
- यमुना तट कान्हा की बंशी
- राधा संग मिल रास रचाओ
- पनघट का जल, कान्हा का संग
- प्रेम से जीवन रास रचाओ
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क्रमांक - 76
मन उपवन खिल जाय
- सीता राम चौहान पथिक
दिल्ली
जल जीवन सऺगीत है जल जीवन आधार ।
जल चर नभ चर प्राणी सब प्रकट करें आभार।
जल अपव्यय जो नर करें, सदा मूर्ख कहलाय।
जल सऺचय परहित करें, बुद्धिमान कहलाए ।
जलधर बरसे उमड़ कर,हलधर हिय खिल जाय ।
फसल देख कर दौगुनी,मोदक फूटा जाय ।
जल दूषित क्यों कर रहे, क्यों करते हो पाप ।
पशु पक्षी प्राणी सभी, दें गे मिल अभिशाप
पथिक कहै हित की सदा,जल संचय की बात
जल जीवन है अमृतम, मन उपवन खिल जाय ।
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क्रमांक - 77
क्रमांक - 81
जल के लिए मचा दंगा
- मधुरेश नारायण
पटना - बिहार
जल ही जीवन है,कहता है हर मन
प्रकृति से मिला है सभी को ये धन
नदियों का जाल बिछा है,
जिस से मिलता है पानी।
नदियाँ जीवनदायिनी है,
रखना है इनका भी पानी।
पानी का संचय धर्म हैं,करना मनन।
अनंत काल से बह रही
धरा पर निर्मल सरिता।
प्यास मिटाती, खेतों को
सींचती ये ही सरिता।
अविरल प्रवाह का,करते हनन।
दूषित कर रखा है स्वार्थ में
नदी,तालाब,पोखरों को
शुद्ध जल के लिए जन, उठा रहे,
चंद लोगो के नखरों को।
बुद्धि मिले,रब का करे सुमिरन।
सुख रही हैं ताल,तलैया,
रूठ गयी हैं माँ गंगा
त्राहिमाम-त्राहिमाम है,
जल के लिए मचा दंगा।
भगीरथ को लेना है अवतरण।
==========================
क्रमांक - 82
अपने परायो की प्यास बुझाना यार
- अलका जैन
इन्दौर - मध्यप्रदेश
प्यास बुझाने को व्याकुल सावन की बुंदे
समंदर में जज्बा कहा प्यास बुझाने का यार रिश्तेदारो
बुंदे बुंदे बारिश की बूंदों
बूंदों को बदोलत जीवन की सोगात पाई हमने
ज़मीं पर जल जीवन लिया यार रिश्तेदारो
आस्मां के बुलावे पर जब जब
श्वेत वस्त्र धारण कर उपर पहुची
दुनिया पूकार उठी बादल बादल
याद सताने लगी यार की बुंदों को
मशाल जला तब देखा बुंदों ने निचे
चोंच खोल पक्षी तलाश रहे बुंदों को
पशू भटक रहे बुंदों की खोज में
और जब देखा बूंदों ने हाय किसन
अपने आश्को से खेत सींचने का
असफल प्रयास करते हुए रोते
छोड़ साथ आसमान का दोडी
भागी धरा पर आ पहुंची बुंदे
बुन्दे बुंदे सावन की बुंदे बरसी
समंदर बनो नब नो यार दोस्तों
आपकी मर्जी या आपकी किस्मत
बुंदेलखंड बनना मत बिसार देना
अपने परायो की प्यास बुझाना यार
अंजुली में भर कर जब बुंदे मारी
सजनी पर साजन ने अमर प्रेम की तब उपजी बहुतेरी जमाने में
दुनिया की हवा लग गई बुन्दो पर
सामुहिक रूप से हत्यारी बनी हाय
गांव शहर हर जगह मोत बाटी बुंदों ने हाय बुंदों ने राम बुंदों ने
बाड बाड दुनिया पुकारा करी
दो बुंदे आंखों से न टपके दुआ करना
बूंदों को सहेज रखना तरकिब से
बुंदे बुंदे बारिश की बुंदे हाय बुंदे
क्रमांक - 77
पानी की महिमा
- लीना बाजपेयी
भोपाल - मध्यप्रदेश
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा़......
खून में रवानी और दिल में जवानी जैसा....
पानी ना हो तो जीवन में हो जाये सब सून...
पानी बिन किस काम के मोती, मानुस ,चून....
पानी से आये बागों में हरियाली...
पानी लेकर आएं घटायें काली काली.....
पानी को शिव ने अपने सिर पर धारा...
भागीरथ के तप ने धरती पे उतारा...
पानी का रुतबा है ऐसा...
तारों बिच चंदा है जैसा...
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क्रमांक -78
जल बिन कैसा जीवन
- सुनीता अग्रवाल
राँची - झारखण्ड
करूण पुकार माटी की सुन,
देख वेदना धरती की।
सुख रहा कंठ उस का
हलक से निकलती आवाज नहीँ।
हरियाली होती तो माँ भी,
हरी- भरी हंसती खिलती होती।।
मर्म ना जाने क्यू हम वसुंधरा का
चीख-चीख पुकारना चाह रही।।
अपने स्वार्थ के खातिर नित्य
जंगल को हम काट रहे।
आधुनिकता की झूठी होड़ मे
जीवन दूभर हम बना रहे।।
जल बिन कैसा जीवन?
हरियाली को तरसे मन
सुखे कुएं, सुखे झरने,
चहुँ ओर बंजर सी दिखे वसुधा।।
जल का संचयन करना होगा,
जल से ही संभव जीवन,
'जल है तो कल है' का संदेश
हर एक तक पहुंचाना है।।
पाप, अत्याचार के बोझ से,
दबी, कुंठित,व्यथित है धरती माँ,
स्नेह',दया,ममता खुशियों के
बादल को भी बरसाना होगा।।
=============================
क्रमांक - 79
बून्द-बून्द का संग्रह करे
- वन्दना पुणतांबेकर
इंदौर - मध्यप्रदेश
इस अनमोल रत्न का जानो तुम।
जल का उपकार मानो तुम।
जीवन ही चलता जल से है।
जल के गुणों को पहचानो तुम।
बून्द-बून्द जल की अनमोल धरोहर।
संरक्षण कर जल को बचालो तुम।
नव पीढ़ी निर्माण में आयेगा ये काम।
सोच समझकर खर्च करो तुम।
जीवन जल बिन नही चलेगा।
इसको अब जानो तुम।
मन ही मन मे ठानो तुम।
जल ही तो जीवन हैं।
जल बिन जीवन का मोल नही।
तपती धरा,प्यासी घरा।
जीव जंतु हाहाकर करे।
जल बचाकर हम सबको अब तृप्त करे।
इस सृष्टि ने हमे अनमोल जीवन दिया।
पंच तत्वों का एक तत्व जल।
इसका हम संरक्षण करे।
बून्द-बून्द का संग्रह करे।
यही संकल्प बारम्बार करे।
जल बचाये,जल बचाये।
===========================
क्रमांक - 80
प्यासी धरणी
- सुषमा ठाकुर
रांची - झारखण्ड
ऐ मेघ, तू बरसा नेह- जल,
प्यासी धरती तृप्ति को विकल।in
धरणी हूँ मैं, पर तू ही मेरा संबल
तेरे जीवन-धार से सिक्त हो,
उपजाए मैंने वन,उपवन औ' फसल।
तरू- वल्लरियाँ करते मेरा श्रृंगार
और सोख लेते थे तेरा अमृत-धार
ताल-तलैया, पोखर प्यारा
अतिवृष्टि थामे, अनावृष्टि में बने सहारा।
विकास की भेंट, यह सब चढ़ रहा
अपनी ही कब्र इंसान गढ़ रहा।
कंक्रीट- जंगल नित नये हो रहे तैयार
प्राकृतिक- जंगलों की आहुति भी इसे स्वीकार।
सूखे हैं ताल-तलैया,
सूखे कुँए, सूखी बावरियाँ
देखो न, मेरे शरीर पर भी पड़ी दरारें
कष्ट दे रही ये बिवाइयाँ।
क्यूँकर तू हो मेरी ओर आकर्षित?
मैं जो हो रही श्री विहीन!
कैसे बरसाए तू अपना नेह-जल
प्यासी धरती हो रही विकल।
प्यासी धरती हो रही विकल।
========================क्रमांक - 81
- मधुरेश नारायण
पटना - बिहार
जल ही जीवन है,कहता है हर मन
प्रकृति से मिला है सभी को ये धन
नदियों का जाल बिछा है,
जिस से मिलता है पानी।
नदियाँ जीवनदायिनी है,
रखना है इनका भी पानी।
पानी का संचय धर्म हैं,करना मनन।
अनंत काल से बह रही
धरा पर निर्मल सरिता।
प्यास मिटाती, खेतों को
सींचती ये ही सरिता।
अविरल प्रवाह का,करते हनन।
दूषित कर रखा है स्वार्थ में
नदी,तालाब,पोखरों को
शुद्ध जल के लिए जन, उठा रहे,
चंद लोगो के नखरों को।
बुद्धि मिले,रब का करे सुमिरन।
सुख रही हैं ताल,तलैया,
रूठ गयी हैं माँ गंगा
त्राहिमाम-त्राहिमाम है,
जल के लिए मचा दंगा।
भगीरथ को लेना है अवतरण।
==========================
क्रमांक - 82
संकल्प ले नीर बचाने का
- प्रतिमा त्रिपाठी
रांची - झारखण्ड
जल धरा का अमृत है
पृथ्वी की मृदुता इससे
बूँद बूँद से जीवन सिंचित
जल संरक्षण में ही हित है।
अपनी सुबिधा स्वार्थ हेतु
तूने छीना हरित वस्त्र
आच्छादित थे तरु मुझपर
मेघों का झरता था नेह।
याद करो महाराष्ट्र को
लातूर का सूखा कंठ
बीड और मराठवाड़ा का
विभक्त धरा की खंडित देह।
खेत खेत पसरा संताप
कुएं घाट कर रहे विलाप
हल की नोक भी पथराई
अन्न दाने से खाली भंडार।
सोचो यदि कल नीर ना हो
तो कैसा भयावह दृश्य होगा
सूखे मिलेंगे तरु-तृण पात सब
विहँग रहित आकाश होगा।
निर्जल आँखे पूछ रही
किसकी करनी का है फल
किसने स्वाद चखा है सुधा का
हमने तो अमृत माना जल को।
वृक्षों के आकर्षण में बंध
हर्षित हो प्रेम घटायें बन
वृष्टि बन बरसते बादल
अवनि का सिंचित होता मन।
सजल होंगें कैसे नैना
बरसेंगें उससे अंगार जब
कामना रिक्त कामिनी होगी
प्रस्फुटित न होगी अनुराग तब।
प्रेम अंकुरित होता है तब
जहाँ सम्बेदना होती नम
बूँद बूँद के संग्रह से ही।
सृष्टि बनेगी फिर उपवन।
आओ हमसब मिलकर
संकल्प ले नीर बचाने का
विरासत स्वरूप भावी पीढ़ी को
दे जाय सम्पदा प्रचुर जल की।।
अब भी समय है चेते
ऐसे ना व्यर्थ बहाए
हम बूँद बूँद सहेजे जल
जीवन अभियान बनायें।
==========================
क्रमांक - 83
यदि होता मैं जल की धारा
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
यदि होता मैं जल की धारा
नित प्रति बहता जाता
लहरों हिलोरें ले-लेकर
अपने पथ पर बढता जाता
पेड़ पौधे और शहर गांव को
मैं अपने जल से हरषाता
सबकी विषादता लेकर के
मैं सागर तक बहकर जाता
धर्म पंथ सम्प्रदाय किसी का
न मुझसे कोई नाता होता
जाति पांति और धर्मवाद का
न कोई मुझपर पासा सेता
मैं चहुंओर हरियाली करता
न बूंद बूंद के लिए तरसाता
यदि मैं होता जल की धारा
नितप्रति बहकर बढता जाता ।
============================
क्रमांक - 84 - अलका जैन
इन्दौर - मध्यप्रदेश
प्यास बुझाने को व्याकुल सावन की बुंदे
समंदर में जज्बा कहा प्यास बुझाने का यार रिश्तेदारो
बुंदे बुंदे बारिश की बूंदों
बूंदों को बदोलत जीवन की सोगात पाई हमने
ज़मीं पर जल जीवन लिया यार रिश्तेदारो
आस्मां के बुलावे पर जब जब
श्वेत वस्त्र धारण कर उपर पहुची
दुनिया पूकार उठी बादल बादल
याद सताने लगी यार की बुंदों को
मशाल जला तब देखा बुंदों ने निचे
चोंच खोल पक्षी तलाश रहे बुंदों को
पशू भटक रहे बुंदों की खोज में
और जब देखा बूंदों ने हाय किसन
अपने आश्को से खेत सींचने का
असफल प्रयास करते हुए रोते
छोड़ साथ आसमान का दोडी
भागी धरा पर आ पहुंची बुंदे
बुन्दे बुंदे सावन की बुंदे बरसी
समंदर बनो नब नो यार दोस्तों
आपकी मर्जी या आपकी किस्मत
बुंदेलखंड बनना मत बिसार देना
अपने परायो की प्यास बुझाना यार
अंजुली में भर कर जब बुंदे मारी
सजनी पर साजन ने अमर प्रेम की तब उपजी बहुतेरी जमाने में
दुनिया की हवा लग गई बुन्दो पर
सामुहिक रूप से हत्यारी बनी हाय
गांव शहर हर जगह मोत बाटी बुंदों ने हाय बुंदों ने राम बुंदों ने
बाड बाड दुनिया पुकारा करी
दो बुंदे आंखों से न टपके दुआ करना
बूंदों को सहेज रखना तरकिब से
बुंदे बुंदे बारिश की बुंदे हाय बुंदे
==============================
क्रमांक - 85
क्रमांक - 85
गर जल न होता तो
- डॉ विनीता राहुरिकर
भोपाल - मध्यप्रदेश
धरा पर जीवन
सबसे पहले
जल में ही तो उत्पन्न हुआ
माँ की कोख में भी
वो जल ही तो है
जो सुरक्षित रखता है
जीवन को और
पोसता है नन्ही जिंदगी को
तब तक जब तक कि
वो पूर्णतः मजबूत न हो जाये
धरा पर जन्म लेने के लिए
गर जल न होता तो
सृष्टि में जीवन भी न होता....
तभी तो जलविहीन धरती
उसके विरह में
सूख कर तिड़क जाती है
और हरियाती है
सावन में भीग कर
नवजीवन के साथ....
धरा पर जब तक
जल है बस तभी तक
जीवन भी है....
=======================
क्रमांक - 86
क्रमांक -87
बचाओ कण-कण जल का
- लज्जा राम राघव 'तरुण'
फरीदाबाद - हरियाणा
जल का संरक्षण करो, बूंद बूंद अनमोल।
जल ही जीवन रेख है, मान बड़ों के बोल।
मान बड़ों के बोल, व्यर्थ मत इसे बहाना। अब भी जाओ चेत, पड़ेगा फिर पछताना।
कहे 'तरुण' कविराय, बिना जल जीवन पल का।
जन-जीवन की डोर, बचाओ कण-कण जल का।
जल से जीवन जीव का, जल ही प्राणाधार।
जल से जग में चेतना, जल बिन हाहाकार।
जल बिन हाहाकार, पेड़ मुरझाए लगते।
होती जब बरसात, सभी के रूप निखरते।
कहे 'तरुण' कविराय, मिटें सब संकट थल के।
जल का है जो काम, चलेगा वो तो जल से ।
==========================
क्रमांक - 91
बचाने का हम करें गहराई से विचार
- गीता चौबे
रांची - झारखण्ड
पानी रे पानी! तेरी महिमा अपरंपार
तुझ बिन प्यासा रहे ये जग - संसार
तू तो एक अनमोल खज़ाना है जिसे
बचाने का हम करें गहराई से विचार
तेरी महिमा का मैं करूँ क्या बयान
न कोई रूप, न रंग फिर भी है महान
विधाता ने भी एक भाग ही थल और
तीन भाग जल का दिया है हमे दान
तेरी हर कशिश मैंने शिद्दत से जानी है
तेरी हर शक्ति को भी खूब पहचानी है
हर परिस्थिति में खुद को ढाल लेती है
पात्र के अनुसार आकार बना लेती है
नारी और पानी की स्थिति एक जैसी है
हर रूप में ढलने की क्षमता भी एक जैसी है
कभी ' हया ' तो कभी मुख का ' पानी ' बनी
'पानी' सी बहते रहना नारी की जिंदगानी बनी
=================================
क्रमांक - 92
जल चक्र
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
इक दिन बेटे ने माँ से पूछा
ये पानी कहाँ से आता है ।
गले लगा माँ ने समझाया
सूरज की गर्मी पड़ती जल पर
पानी बन भाप उड़ जाता है ।
जुट-जुट कर सब नील गगन में
रिमझिम बूँदें धरती पर लाता
मिटती प्यास वसुंधरा की
भू की कोख से अँकुर फूटे
निरख -निरख कृषक हर्षाता है ।
हरी-भरी हो जाती वसुधा
सोने से लगते खलिहान
उदर हमारा भरता दाने से
जल से जीवन आगे जाता
प्रकृति चक्र है चलता रहता
हमें जो नहीं मिले जल की बूँद
हम सब प्यासे मर जायेंगे
नहीं रहेगा जीवन धरती पर
पानी ही जीवन दाता है
माँ ने पुत्र को बात बताई
प्यासे कौए की कथा सुनाई
व्यर्थ न जाने पाये ये उपहार
तुम करना जल का संरक्षण
लौटाना प्रकृति का उपकार ॥
==========================
क्रमांक - 93
नीर से प्रकृति
- डां अंजुल कंसल"कनुप्रिया"
इंदौर - मध्यप्रदेश
हां
जल
ही श्वास
बूंद बूंद
जल की आस
जीवनदायिनी
जल बुझाए प्यास
जीवन का आधार
मानव ने जल
नहीं संभाला
है विकट
अमूल्य
नीर
है
रे
जल
बचाओ
न बहाओ
बूंद बूंद का
संरक्षण करो
साथ ही संवर्द्धन
जल से जंगल है
नीर से प्रकृति
जल जीवन
सरोवर
शीतल
कल
है
===============
क्रमांक - 94
जीवन की यही कहानी
- सीमा स्मृति
दिल्ली
बिन जल,मछली ही नहीं
मर रहे हैं सभी प्राणी
सुबह चार बजे उठ,
जल भर रही नानी
दर्द बुढापे का नहीं ,बिन जल
क्या होगी दुनिया, सुनाती कहानी।
साउथ अफ्रीका की ही नहीं
दिल्ली की भी होगी, वही कहानी।
जल के नाम लगेंगे इन्क्रीमेंट
मिलेगी सब्सिडी,
सरकारें भी गिर सकती हैं, भाई!!
गूगल कहता
सब से ज्यादा गाये पीती है,पानी
लोग कहेंगे, क्यों ना काटी जाये?
ऊंट ! कछुआ !चूहा!
पूजे जायेगा, जो जल बचाये।
जीवन की यही कहानी
जियेगा वही ,जो जल बचाये।
=======================
क्रमांक - 95
क्रमांक - 86
दिखेंगे चारों ओर रेत
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
एक बूंद के लिए किसान तकता आसमान है।
श्यामल नीरद घनघोर देख पुलकित ब्रह्मांड है ।
नभ से बही निर्झरी , भिगोती सब का मन है।
नित्य क्रिया की पूर्ति, नहीं संभव बिना जल है ।
धरा भर आँचल में अमृत, बाँटे नदी सरोवर।
घड़े-नाद भरे, पशु-पक्षी विचरते तृप्त हो कर।
बचे जल जमा होते , प्यास बुझाते जन-जन की।
जल वह अमृत है, जो देता तृप्ति अनंत जीवन की।
नहीं मिले नभ को बादल, आये नहीं हरियाली।
सूखा आँचल धरा का, बाँटे कैसे अमृत आली।
वक्ष धरा का रीता, कहाँ से पाओगे जीवन।
प्यासी दुनिया, प्यासे खग-मृग, प्यासा है मन।
किसान बरबाद होगा, जल जाएंगे जब खेत।
मर जाएंगे अरण्य, दिखेंगे चारों ओर रेत।
वायु काली हो जाएगी , नली होगी अवरुद्ध ।
जीना दुश्वार होगा, दाने -दाने को होगा युद्ध ।
अस्त-व्यस्त जीवन होगा, फटा धरती का अंतर्मन ।
बचा कर एक बूंद जल, महसूस करोगे परिवर्तन।
===========================क्रमांक -87
सब बीमारियों को न्यौता
- डॉ .आशा सिंह सिकरवार
अहमदाबाद - गुजरात
जल है भारी संकटग्रस्त
व्यर्थ पदार्थ
वाहित मल
औधोगिक अपशिष्ट
कीटनाशी पदार्थ
उवर्शकों के रासायनिक तत्व
पट्रोलियम पदार्थ
जिनसे जल जीवन की रक्षा
होती है वे ही आज मृत्यु का कारण बन बैठा
देता टाइफायड, पीलिया हैजा
पेचिश, पेट के कीड़े, मलेरिया
सब बीमारियों को न्यौता
गोमती का विषाक्त जल हो या
गंगा हो यमुना
कहीं मर रही है मछलियाँ
कहीं औधोगिक अपशिष्ट के वजह से
दूषित हो गई हैं सब्जियां
क्या अनाज और क्या फल हैं शुद्ध
अति दूषित
मनुष्य जीवन ख़तरे में
हर घड़ी बढ़ रहा है
जल में लैड प्लास्टिक के छोटे-कण
इस तरह शामिल हैं
नहीं हो पा रहा है किसी भी मशीन से जल शुद्ध
अब तो सोचो !
क्या विकास किया हमने
क्या पाया
क्या खोया हमने ?
==========================
क्रमांक - 88
जल ही जीवन प्राण हमारा
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
मानव अब तू क्यों पछताए
अम्बर से जल मिल ना पाए
तूने अत्याचार किया है
प्रकृति का संहार किया है ।
सागर पाटे, जंगल काटे
नदियों में विष फैलाया है
कैसे आए वर्षा रानी
प्रदूषण का ताण्डव छाया है ।
ताल तलैया सूख रहे हैं
नर, प्राणी सब बिलख रहे हैं
बूँद बूँद जल की खातिर अब
त्राहि-त्राहि कर विचर रहे हैं ।
ओ मानव तुम वृक्ष लगाओ
धरती पर हरियाली लाओ
फिर देखो तुम वर्षा होगी
प्रकृति भी तब झूम उठेगी ।
ताल तलैया भर जाएँगे
प्राणीजन सब सुख पाएँगे
जल ही जीवन प्राण हमारा
बूँद बूँद है इसे बचाना।
========================
क्रमांक - 89
ये जीवन आधार
- प्रियंका श्रीवास्तव "शुभ्र"
पटना - बिहार
नदी को मैला न करो, करो नदी से प्यार।
धरा पे जीवन इससे, ये जीवन आधार।।
जल का हाल बुरा दिखा, टैंकर से ये जाय।
सर सरोवर सूख रहे, पानी बेचत खाय।।
नल से जल बहता रहे, रुके नहीं ये धार।
बंद करो नल को जरा, यही वचन का सार।।
प्यार मिले जो नीर को, गिरे नयन न नीर।
मोल उसका जो समझे,उसे नहीं है पीर।।
नदी मलिन नित हो रही, नहीं दिया जो ध्यान।
आँख खुले जो आज भी, हो जाए कल्याण।।
कलमकार की कलम से, निकले जल गुणगान।
जो समझे गुणगान को, वो नर होत महान।।
=====================
क्रमांक - 90
- लज्जा राम राघव 'तरुण'
फरीदाबाद - हरियाणा
जल का संरक्षण करो, बूंद बूंद अनमोल।
जल ही जीवन रेख है, मान बड़ों के बोल।
मान बड़ों के बोल, व्यर्थ मत इसे बहाना। अब भी जाओ चेत, पड़ेगा फिर पछताना।
कहे 'तरुण' कविराय, बिना जल जीवन पल का।
जन-जीवन की डोर, बचाओ कण-कण जल का।
जल से जीवन जीव का, जल ही प्राणाधार।
जल से जग में चेतना, जल बिन हाहाकार।
जल बिन हाहाकार, पेड़ मुरझाए लगते।
होती जब बरसात, सभी के रूप निखरते।
कहे 'तरुण' कविराय, मिटें सब संकट थल के।
जल का है जो काम, चलेगा वो तो जल से ।
==========================
क्रमांक - 91
- गीता चौबे
रांची - झारखण्ड
पानी रे पानी! तेरी महिमा अपरंपार
तुझ बिन प्यासा रहे ये जग - संसार
तू तो एक अनमोल खज़ाना है जिसे
बचाने का हम करें गहराई से विचार
तेरी महिमा का मैं करूँ क्या बयान
न कोई रूप, न रंग फिर भी है महान
विधाता ने भी एक भाग ही थल और
तीन भाग जल का दिया है हमे दान
तेरी हर कशिश मैंने शिद्दत से जानी है
तेरी हर शक्ति को भी खूब पहचानी है
हर परिस्थिति में खुद को ढाल लेती है
पात्र के अनुसार आकार बना लेती है
नारी और पानी की स्थिति एक जैसी है
हर रूप में ढलने की क्षमता भी एक जैसी है
कभी ' हया ' तो कभी मुख का ' पानी ' बनी
'पानी' सी बहते रहना नारी की जिंदगानी बनी
=================================
क्रमांक - 92
जल चक्र
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
इक दिन बेटे ने माँ से पूछा
ये पानी कहाँ से आता है ।
गले लगा माँ ने समझाया
सूरज की गर्मी पड़ती जल पर
पानी बन भाप उड़ जाता है ।
जुट-जुट कर सब नील गगन में
रिमझिम बूँदें धरती पर लाता
मिटती प्यास वसुंधरा की
भू की कोख से अँकुर फूटे
निरख -निरख कृषक हर्षाता है ।
हरी-भरी हो जाती वसुधा
सोने से लगते खलिहान
उदर हमारा भरता दाने से
जल से जीवन आगे जाता
प्रकृति चक्र है चलता रहता
हमें जो नहीं मिले जल की बूँद
हम सब प्यासे मर जायेंगे
नहीं रहेगा जीवन धरती पर
पानी ही जीवन दाता है
माँ ने पुत्र को बात बताई
प्यासे कौए की कथा सुनाई
व्यर्थ न जाने पाये ये उपहार
तुम करना जल का संरक्षण
लौटाना प्रकृति का उपकार ॥
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क्रमांक - 93
- डां अंजुल कंसल"कनुप्रिया"
इंदौर - मध्यप्रदेश
हां
जल
ही श्वास
बूंद बूंद
जल की आस
जीवनदायिनी
जल बुझाए प्यास
जीवन का आधार
मानव ने जल
नहीं संभाला
है विकट
अमूल्य
नीर
है
रे
जल
बचाओ
न बहाओ
बूंद बूंद का
संरक्षण करो
साथ ही संवर्द्धन
जल से जंगल है
नीर से प्रकृति
जल जीवन
सरोवर
शीतल
कल
है
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क्रमांक - 94
जीवन की यही कहानी
- सीमा स्मृति
दिल्ली
बिन जल,मछली ही नहीं
मर रहे हैं सभी प्राणी
सुबह चार बजे उठ,
जल भर रही नानी
दर्द बुढापे का नहीं ,बिन जल
क्या होगी दुनिया, सुनाती कहानी।
साउथ अफ्रीका की ही नहीं
दिल्ली की भी होगी, वही कहानी।
जल के नाम लगेंगे इन्क्रीमेंट
मिलेगी सब्सिडी,
सरकारें भी गिर सकती हैं, भाई!!
गूगल कहता
सब से ज्यादा गाये पीती है,पानी
लोग कहेंगे, क्यों ना काटी जाये?
ऊंट ! कछुआ !चूहा!
पूजे जायेगा, जो जल बचाये।
जीवन की यही कहानी
जियेगा वही ,जो जल बचाये।
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क्रमांक - 95
हम बेहाल
- मिथिलेश दीक्षित
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
जीवन मिला
सूखे सरोवर में
अंबुज खिला ।
हम बेहाल
सभी प्रदूषित हैं
कुएँ-तालाब ।
मृग-तृष्णा को
लगता मरुथल
जल ही जल ।
गंगा को दिये
एक दिन तो दिये
फिर कचरे ।
बारिश आयी
रेशमी फुहार से
पृथ्वी नहायी ।
जल चलता
चंचल लहरों की
हलचल में ।
गंदा बेनामों
रूढ़ियों की तरह
ठहरा पानी ।
माने न हार
आगे ही बढ जाती
जल की धार ।
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क्रमांक - 96
हरा भरा करती संसार
- सविता चड्ढा
दिल्ली
जल की महिमा अपरमपार
जल के बिना न होता जीवन
कैसे हम पाते विस्तार।
आंखों में यदि नमी न होती
कभी न बहती जल की धार
कैसा होता ये संसार।
वर्षा में हम सबकी खुशियों
हरा भरा करती संसार
जल ही है जीवन आधार।
गंगा - यमुना की जलधार
ये ही अपना अंतिम धाम
सबको देती अमृतधार।
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क्रमांक - 97
युगों युगों से बहता निर्मल
- राधे ज्योति महत्ता
हांसी - हरियाणा
सूखा, सूखा हर और समाएगा,
ग़र तू मुझे यूं ही व्यर्थ बहाएगा।
कहाँ काम नहीं आता हूँ मैं,
जाऊँ मकान ओर खेतों में मैं।
बूंद बूँद से प्यास बुझाता,
हर वक़्त तेरे हूँ काम मैं आता।
युगों युगों से बहता निर्मल,
कचरा पाकर हो गया विफल।
बिन मेरे जीवन ना कट पाएगा,
तू मिट्टी में ही मिल जाएगा।
क्यूँ भविष्य से अपने खेल रहा,
और जीवन भी नर्क कर रहा।
करो प्रण ना व्यर्थ बहाओगे,
अपना जीवन साथी बनाओगे।
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क्रमांक - 98
क्रमांक - 100
जल है तो है सृष्टि सारी
- वीना वर्मा राधे
हांसी - हरियाणा
तुझसे ही जीवन है
तुझसे ही अस्तित्व सबका,
जो तू मिले तो जी उठे
हर कण कण इस प्रकृति का,
तुझ पर ही है आश्रित सब
तुझ से ही है जान,
जल बिन जीवन ऐसे लगे
जैसे हो बंजर धरती
और लगे सब वीरान,
फिर भी बहाते है सब
करते है यूँ व्यर्थ इसे,
एक एक बूंद है कीमती इसकी
ना करो इसे यूँ ही व्यय,
जल है तो है सृष्टि सारी
जल बिन ना हो प्राण,
एक बूंद से ही जी जायेगा
हर कण जो है निष्प्राण।।
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क्रमांक - 101
पानी बहुत अमूल्य धरोहर
- दीप संदीप
पन्ना - मध्यप्रदेश
व्यर्थ न फेंको जल को लोगो, है अमृत की धारा।
जिसके कारण हर एक प्राणी, जीवन जीता सारा।।
प्राणी का जल ही जीवन, पहला आधार हमारा।
इसके बिन जग में हर एक जन, फिरेगा मारा - मारा।।
पानी की एक -एक बूंदों में, दिखता जीवन का रूप।
जल की पूजा करें देव गण, ऋषी मुनि नर भूप।।
जल से प्रथ्वी लगती सुन्दर, हरा भरा स्वरूप।
करो बचत पानी की सबमिल, भरे रहें नल कूप।।
पानी से ही खेती होती, सुन्दर खिलता उपवन।
पानी बहुत अमूल्य धरोहर, साफ़ स्वच्छ है पावन।।
जल भू तल की प्यास बुझाए, है जन जन का जीवन।
जल से चहुंदिश हरियाली है, जल से छाए सावन।।
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क्रमांक - 102
क्रमांक - 98
पनघट
- नवीन कुमार तिवारी
दुर्ग - छत्तीसगढ़
मटकी लेके जा रही , ये कल की थी बात ।
पानी भरती कौन है , देती जो सौगात ।।
लटके झटके झूमते , चलती कलि कचनार ।
पनघट देखे रूकती , सूखी तलछट सार ।।
पनघट प्यासी हो रही ,कुंतल लटके गाल ।
खेले कबसे मोहनी ,रक्तिम होती भाल ।।
सूनी आँखे खोजती , मिलते मोहन सार ।
पनघट कैसे भूलती, खेले संग अपार ।।
राधा मोहन खेलते , पनघट सोचे आज ।
बॉटल पानी दीखते , कैसे बजते साज ।।
मटकी पायल भीगते , बहते थे मंझधार ।
बहती नदिया खोजती , तिरछे नैनो वार ।।
धारा बहती साथ में , पानी छूते पाट ।
कलकल करती बढ़ चली ,छूटे कितने घाट ।।
बहती नदिया धार से , हटते तब अवरोध ।
खंडित होते सोचिये , पाषाण करे शोध ।।
बहते पानी रोकते, बोलो इसको बांध ।
करते गंदे जब सभी, फैले कीचड़ सांध ।।
गंगा जमुना मिलते ,मधुरम संगम देख ।
गुप्त बहती सरस्वती , तीर्थ राज संलेख ।।
मानव जब भी डूबकते ,निकले पाप अनेक ।
मैली काया चमकते , बहती गंगा नेक ।।
छाँव तपते सूरज देखिये, जलते कितने पांव।
पादप सुरक्षा कीजिये, मिल जाता तब छाँव ।।
मानव कितना ढीठ है, छोड़े खाली गाँव ।
वन उपवन सुखते, रोते सियार गाँव ।।
पानी संकट बढ़ चला,तरुवर सूखे गांव ।
प्यासे मानस खोजते,कैसे गायब छाँव।।
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क्रमांक - 99
बून्द बून्द जल की यूँ बचाओ
- सरला मेहता
इन्दौर - मध्यप्रदेश
जल बचाओ,जीवन बचाओ
टोटियां नल की,ठीक कराओ
बून्द बून्द जल की यूँ बचाओ
रसोई जल से,सब्ज़ी उगाओ
गीले कचरे से खाद बनाओ
कचरा प्रबंधन सहज बनाओ
बाल्टीमग का उपयोग बढाओ
नल को भी आराम पंहुचाओ
अपना जीवन सहज बनाओ
======================क्रमांक - 100
- वीना वर्मा राधे
हांसी - हरियाणा
तुझसे ही जीवन है
तुझसे ही अस्तित्व सबका,
जो तू मिले तो जी उठे
हर कण कण इस प्रकृति का,
तुझ पर ही है आश्रित सब
तुझ से ही है जान,
जल बिन जीवन ऐसे लगे
जैसे हो बंजर धरती
और लगे सब वीरान,
फिर भी बहाते है सब
करते है यूँ व्यर्थ इसे,
एक एक बूंद है कीमती इसकी
ना करो इसे यूँ ही व्यय,
जल है तो है सृष्टि सारी
जल बिन ना हो प्राण,
एक बूंद से ही जी जायेगा
हर कण जो है निष्प्राण।।
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क्रमांक - 101
- दीप संदीप
पन्ना - मध्यप्रदेश
व्यर्थ न फेंको जल को लोगो, है अमृत की धारा।
जिसके कारण हर एक प्राणी, जीवन जीता सारा।।
प्राणी का जल ही जीवन, पहला आधार हमारा।
इसके बिन जग में हर एक जन, फिरेगा मारा - मारा।।
पानी की एक -एक बूंदों में, दिखता जीवन का रूप।
जल की पूजा करें देव गण, ऋषी मुनि नर भूप।।
जल से प्रथ्वी लगती सुन्दर, हरा भरा स्वरूप।
करो बचत पानी की सबमिल, भरे रहें नल कूप।।
पानी से ही खेती होती, सुन्दर खिलता उपवन।
पानी बहुत अमूल्य धरोहर, साफ़ स्वच्छ है पावन।।
जल भू तल की प्यास बुझाए, है जन जन का जीवन।
जल से चहुंदिश हरियाली है, जल से छाए सावन।।
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क्रमांक - 102
करता जग की प्यास शांत
- डा. विनीता अशित जैन
अजमेर - राजस्थान
टप -टप , टिप-टिप, टुप-टुप,
डब-डब, डिब-डिब, डुब-डुब,
जल करता कल-कल,
छलकता छल-छल
बहता बेकल,
जीवनदायी जल,
निर्झर, निर्मल,
स्वच्छ जल,
करता निनाद झर-झर-झर-झर,
गिरता , बहता पल, प्रतिपल,
जल करता क्रीड़ा
उचक-उचक कर,
उछल-उछल कर,
कूद-फाँद कर,
मचल-मचल कर,
उठती गिरती, चपल लहरों सा बन,
आवेग में आता लहराता,
कभी शांत मृदु तरंग सा बहता,
कभी आनंदित हृदय हिलोर सा गाता,
कभी तैश में आता , उफनता, गरजता,
कभी उन्मादी, रौद्र रूप
धारण कर बरसता,
कभी बहता कल-कल,
करता संवाद,
गाता रसगान,
करता जग की प्यास शांत,
जल बिन जीवन ना है मुमकिन,
जल, वारि, नीर, अंबु, तीय,
जल, निर्मल, जल।
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क्रमांक - 103
बिन पानी के
डाँ. राजकुमार निजात
सिरसा - हरियाणा
खेत सूख गए हैं
जमीन बंजर हो गई है
बिन बारिश के
खेत में डालें बीज से
नहीं उग पाए हैं
हरे अंकुर
गाँव - गाँव में सन्नाटा है
घर घर में अभाव का भय है
फसलें नहीं उगी तो
लोग टूट जाएंगे
ढोर डंगर भी
जी नहीं पाएंगे
आसमान बिन बादल के
सूना हो गया है
कुदरत का यह
कैसा कहर है
बिन पानी के
फैल गया यह
कैसा ज़हर है
कुदरत खुद को मार रही है
अपना गुस्सा
खुद पर उतार रही है
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क्रमांक - 104
छुप जाएगी हरियाली
- डा. वर्षा चौबे
भोपाल - मध्यप्रदेश
कितना सुंदर चित्र बना है
हरियाली ही हरियाली।
लेकिन सोचो बचा न जल
तो कहां पाएंगे हरियाली।
अभी तलक तो हम चित्रों
में देख बनाते हरियाली।
लेकिन रहा प्रदूषण ऐसा
बस चित्रों में मिलेगी हरियाली।
पेड़ पौधे सब रूठ जाएंगे
रूठ जाएगी हरियाली।
सूरज आंख दिखाएगा
छुप जाएगी हरियाली।
कोयल, मोर, पपीहा सब
तरस जाएंगे हरियाली।
सूखा सूखा जंगल होगा
छांव मिले न हरियाली।
सब जन चेतन हो जाएं
मिलके बची रहे हरियाली।
खूब लगाएं पेड़ पौधे
धरती मुस्काए हरियाली।
खूब गिरे झमाझम पानी
छाए हरियाली ही हरियाली।
कोई प्रदेश न सूखा हो
सबके घर में हो हरियाली।
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क्रमांक - 106
पावनजल
- मदन मोहन ' मोहन '
पानीपत - हरियाणा
युगों - युगों से चली आ रही,
गंगा - यमुना - सरस्वती पानी माता
नर - नारी जल से पावन होते
महिमा इस की अपरम पार ।
गंगा - यमुना की जलधारा बल खाती
खेतों - गांव - नगऱों को धरा तृप्त करती
जहाँ - जहाँ गंगा - यमुना - सरस्वती
पावन जल धरा अपनी सभ्यता संजो रही ।
इन्द्र प्रस्त - मथुरा प्रयागराज ,
जल तंरग संगीत ध्वनी पर
मानव ने गंगा - यमुना पावन जल को
दुषित जल से गंगा - यमुना दुषित कर
मानव ने अपना जीवन मलिन कर दिया ।
पावन जल - धारा का संगम होकर
मानव जीव प्राणीयों के जीवन कल्याण किया ।
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बहुत बहुत आभार आदरणीय श्री जैमिनी जी का की वह "जल ही जीवन है" अभियान के माध्यम से साहित्य को एक नया आया प्रदान कर रहे हैं। इसी विषय के सम्पादकीय के अंतर्गत उन्होंने मेरी रचना को भी स्थान प्रदान किया। फिर से बहुत बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय पहला स्थान प्रदान करने के लिए मैं आपका आभारी हूँ | भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि इसी तरह साहित्य के प्रति समर्पित रहें और साहित्य में अतुल्य योगदान देते रहे |
ReplyDelete- महेश गुप्ता जौनपुरी
( WhatsApp से साभार )
बहुत आभार आपका आगे भी हमें ऐसे मौके देते रहिएगा 🙏
Deleteबहुत बढ़िया। हार्दिक बधाई। मेरी रचना अवलोकनार्थ प्रेषित वाट्सएप पर।
ReplyDeleteसाहित्य के माध्यम से जन जागरण का यह कार्य अत्यंत प्रशंसनीय है। इस अभियान में मेरी रचना भी शामिल करने के लिए सादर आभार ।
ReplyDeleteकविता को अपने ब्लाग पोस्ट में स्थान देने के लिए आत्मिक आभार । साहित्य संजोने का सराहनीय कार्य की ओर रत है आप । नमन आपकी इस लग्न को ।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार सर्, आप बड़ों का आशीर्वाद युहीं हम पर बना रहे, एवं लेखन हेतु मार्गदर्शन मिलते रहे।
ReplyDelete- उदय बहादुर सिंह
जबलपुर - मध्यप्रदेश
( WhatsApp से साभार )
बहुत ही अच्छा काम आप कर रहे हैं, विषय केन्द्रित रचनाओं को एक साथ प्रकाशित कर ।इस बहाने कई अच्छी रचनाएं लिखबा भी रहे हैं ।बहुत -बहुत धन्यवाद एवं शुभकामना जैमिनी जी!
ReplyDeleteहरिनारायण सिंह ' हरि '
समस्तीपुर - बिहार
( WhatsApp से साभार )
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ReplyDeleteआदरणीय जेमिनी जी आपने बहुत अच्छी पहल की है ,पानी विषय पर कविताएं आमंत्रित करके जिसके बिन जीवन संभव ही नहीं।
Deleteमेरी कविता शामिल करने के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद।
सीमा शिवहरे "सुमन "भोपाल मध्यप्रदेश
जल ही जीवन है... बहुत ही ज्वलंत विषय है।साहित्य के माध्यम से इस पर चर्चा हो रही है । इस सराहनीय प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteआदरणीय सर ,जय हिन्द, जय हिंदी आपसे हमें संबल मिला ,तहे दिल से आभारी हूँ ,कविता का चयन किया .आपका भगीरथ प्रयास हमें एक साथ एक मंच पर ले आया .
ReplyDeleteछाया शर्मा ,अजमेर
Deleteमेरी कविता को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार, जय हिंद ।
ReplyDeleteजैमिनी जी नमस्कार, आपका प्रयास सराहनीय है। सामयिक ज्वलंत विषयों पर रचनाएं लिखने हेतु प्रोत्साहित करने, उन्हें अपने ब्लाॅग पर स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। अपनी रचना की खुशी और अन्य रचनाकारों की लेखनी से परिचित होना सुखद लगता है। बहुत बहुत शुक्रिया।
ReplyDelete- डाँ. सुरिन्दर कौर नीलम
रांची - झारखण्ड
( WhatsApp से साभार )
ज्वलंत विषय पर सार्थक संयोजन, सामयिक भी।
ReplyDeleteजल की, प्यास की बातें कभी खत्म नहीं हो सकती अतः जल संरक्षण की भी बड़ी आवश्यकता है आज ताकि भविष्य सुधरे। सुंदर अंक। धन्यवाद
- अनिता रश्मि
रांची - झारखण्ड
( WhatsApp से साभार )
जी आभार सर 🙏🙏
ReplyDeleteइस तरह आप मुझे जानते भी नहीं आपने मेरी कविता शामिल की मैं आपके बडप्पन की तारिफ करूं उसके लिए हर शब्द छोटा है सर बस नतमस्तक हूं
इस तरह हम जैसे अज्ञानी को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा आभार सर🙏🙏🙏🙏🙏🙏
- ज्योति वधवा ' रंजना '
बीकानेर - राजस्थान
( WhatsApp से साभार )
वर्तमान में सर्वाधिक प्रासंगिक व उपादेय विषय जल पर यह आयोजन बड़ा ही महत्वपूर्ण है साथ ही लगभग एक सौ कविताएं वह भी जल पर पढकर हृदय आनंद से भर जाता है ।सभी को बहुत बहुत बधाई व यशस्वी जीवन के लिए अनंत शुभकामनाएं
ReplyDeleteशशांक मिश्र भारती संपादक देवसुधा हिन्दी सदन बड़ागांव शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश
जल ही जीवन है के माद्यम से आदरणीय जैमिनी जी ने साहित्यकारों ,रचनाकारो की चिंता को आज एक नया आयाम देकर सुधि पथको तक पहुचने का सुंदर कार्य किया है,इससे रचनाकारो की रचनाये कई सदियों तक अमित र्,यादगार रहेंगी।
Deleteसादर नमन
हृदय से धन्यवाद
नावीन कुमार तिवारी💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐🎇🎇🎇💐🎇🎇💐💐
क्रमांक55पर मेरी कविता है
ReplyDeleteआपका बहुत शुक्रिया कविता को स्थान देने के लिए