भारतीय संस्कृति में प्रेम विवाह की चुनौतियाँ

          विवाह ऐसा संस्कार है जो सिर्फ मनुष्य जाति में ही विधमान है । जो मनुष्य को जानवर होने से बचाती है ।
      जैमिनी अकादमी , पानीपत - हरियाणा ने  " भारतीय संस्कृति में प्रेम विवाह की चुनौतियाँ " परिचर्चा का आयोजन किया है । जो वर्तमान समय में बहुत ही विवादित विषय है । यहां पर कुछ विद्वानों के विचारों को देखा जाएं :-
                        
          बाड़मेर - राजस्थान से कुमार जितेन्द्र लिखते है कि वर्तमान परिस्थितियों में देखा जाए तो प्रेम विवाह को विरोध भावना, भारतीय संस्कृति के विपरीत दृष्टिकोण की नजर से देखा जा रहा है l जबकि प्रेम विवाह ..... दो आत्माओ के प्रेम के प्रतीक को मिलन करवाता है l तथा भविष्य की मुस्कराती जिंदगी को सही - गलत की राह दिखाता है l परन्तु वर्तमान में इसका घोर विरोध किया जा रहा है l क्या किसी से प्रेम करना गलत है... कोई किसी के साथ स्वतंत्रता से रह नहीं सकता है l... कब तक किसी को बाध्य करोंगे... रूढ़िवादी बेडियो से.... अब तो आजाद रहने दो... दो प्रेमी को...कोई कहता है प्रेम विवाह... अधिक समय तक टिक नहीं सकता है....अरे पहले प्रेम विवाह में सहयोग तो करो... फिर देखो.. कितना टिकता है......जहाँ देखो.. टेढ़ी नजर से देख रहे... अरे जब दो पंछी मिल गए हैं आजादी से... तो आजाद रहने दो.... क्यो बांध रहो... गुलामी की जंजीरों से.... कभी तो टूटने दो गुलामी की जंजीरों को.....आवाज जाने दो दूर - दूर तक.....✍🏻
         रायपुर-छत्तीसगढ़ से डाँ. इन्दिरा तिवारी लिखती है कि 
भारतीय संस्कृति में विवाह महत्व पूर्ण संस्कार है। इसमें दो परिवार एक रिश्ते में बंधते हैं।विवाह जाति की सीमा से बंधा हुआ है। ब्राह्मण कुल का विवाह ब्राह्मण कुल में ही सम्पन्न होता है। यही नियम हर जाति में है। आजकल देखा जा रहा है कि बच्चे अपने पसन्द की शादी कर रहे हैं। कई माता पिता स्वीकार कर लेते हैं पर कई माता पिता स्वीकार नहीं कर पाते । इसलिए परिवार बिखर जाता है। कभी कभी विवाह के बाद पति पत्नी में सामन्जस्य नहीं हो पाता,दोनों एक दूसरे के धर्म को स्वीकार नहीं कर पाते, एकदूसरे के माता पिता को सम्मान नहीं दे पाते, रिश्तों को सम्मान नहीं दे पाते तब तलाक की स्थिति आ जाती है।अभी समाज की विचार धारा भी प्रेम विवाह के प्रति संकुचित है।उन्हें वहाँ भी सम्मान नहीं मिलेगा।अतः मैं केवल इतना ही कह सकती हूँ कि अगर बच्चे विजातीय शादियाँ करना चाहते हैं तो काफी सोच विचार कर लें।एक दूसरे से खुल कर बात करें उसके पश्चात ही निर्णय करें क्योंकि प्रेम अंधा होता है। सही और गलत का निर्णय असम्भव हो जाता है।
          गनापुर - उत्तर प्रदेश से  महेश गुप्ता जौनपुरी लिखते है कि आज के सुवा पीढ़ी चाहते हैं कि हम सारे बन्धन को तोड़ कर प्रेम विवाह करें लेकिन वे अपने इस कदम पर अपने माँ बाप से विचार विमर्श करके ये कदम उठाये तो ज्यादा बढ़िया रहें | उनके इस विचार पर माँ बाप भी उनका साथ देगें और सामाज भी लेकिन ऐंसा सिर्फ 1 या 2 परसेन्ट देखने को मिलता हैं कि बच्चे अपने प्यार के बारे में माँ बाप को बताये आज कल युवा पीढ़ी में एक फैशन ही चल गया हैं किघर वाले शादी को लेकर कुछ बोले तो प्रेमी युगल जोड़े भाग कर शादी बना लेते हैं जिससे सामाज में माँ बाप को इनके किये का परिणाम भुगतना पड़ता हैं | और बाद में यही प्रेमी जोड़े आपस में झगड़ा करके अलग अलग रहने का फैसला करते हैं तब इनको फिर से माँ बाप को याद आता हैं | सिधे ये माँ बाप के घर पहुँच जाते हैं पनाह के लिए अगर कोई युवा पीढ़ि खुद से शादी का फैसला लेता हैं तो उसे कोई हक नहीं हैं माँ बाप के नाम को उछालने की वो अपने जीवन के सुख दु:ख का भागीदारी खुद हैं |  
       रांची - झारखण्ड से प्रतिमा त्रिपाठी लिखती है कि भारतीय सनातन संस्कृति में विवाह एक संस्कार है। जो दो व्यक्तियों के मध्य ही नही बल्कि दो परिवारों के मध्य का अटूट बंधन है। वैदिक काल में प्रेम विवाह को पूर्ण स्वतन्त्रा प्राप्त थी, और सम्मान की दृष्टि से भी देखा जाता। क्योकि तब समाज वर्ण व्यवस्था पर आधारित था। उस समय आत्मिक अनुबंध की महत्ता को गरिमा प्रदान थी। परंतु इस्लामिक एवं विदेशी आक्रमणों से मात्र हमारे देश की संपत्ति, भैगोलिक धरातल ही नही अतिक्रमित और परतंत्र हुआ, बल्कि हमारी उदार संस्कृति और सुगठित सामाजिक व्यवस्थाएं भी छिन्न- भिन्न और संक्रमित हुयी। आज भारतीय संस्कृति वैचारिक संक्रमण के दौर से गुजर रही है। प्रेम विवाह की स्थिति भी जातीय और धार्मिक द्वन्द में संघर्ष कर रही। हमारी सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप, विवाह अपने जाती और गोत्र के हिसाब से ही प्रतिपादित करना हर दृष्टिकोण से मान्य एवं सुरक्षित माना जाता है। चुकी अब समाज की सोच बहुत तेज गति से बदल रही। हमारे युवा इस् व्यवस्था और विचार को नकार अपने मन की करना चाहते है। जिन्हें बहुत सोच विचार कर अपने परिवार का सहयोग प्राप्त कर ही आगे बढ़ना चाहिए। और परिवार को भी अपने बच्चों की इच्छाओं और निर्णय का सम्मान करते हुए, उनका समुचित सहयोग करना चाहिए। आपसी समन्वय और सहयोग ही प्रेम विवाह को पुनः उसकी स्वतंत्रता और सनातन की उदार संस्कृति को गरिमा दिला सकती है।   
        सोलन - हिमाचल प्रदेश से आचार्य मदन हिमाचली लिखते है कि स्वयं वर भारत देश की प्राचीन परम्परा का हिस्सा है जो वर्तमान तक आते आते प्रेम विवाह बन गया है। विवाह का सीधा अर्थ दो आत्माओं का मिलन दो कुलो कि मिलन और जीवन भर के लिए एक दूसरे के प्रति समर्पित होना है। इसलिए प्रेम विवाह कोई  जघन्य अपराध नहीं अपितु पवित्र मिलन है। लेकिन इस आड मे लडकियों स विश्वास घात भी  हो रहे हैं। और  शादी के झासे देकर बलात्कार जेसी घटनाएं घट रही है।इस पर अँकुश लगना चाहिए। यदि युवा प्रेम विवाह करते हैं तो जीवन भर निभाने के सँकल्प के  साथ इसे स्वीकार करना होगा।
           देहरादून - उत्तराखण्ड से डाँ.भारती वर्मा बौड़ाई लिखती है कि  यदि शुद्ध भारतीय संस्कृति को समझा जाए तो प्रेम विवाह का कहीं भी विरोध नहीं है। हमारे साहित्य में प्राचीन काल से लेकर आज तक अनगिनत उदाहरण देखने को मिलते हैं, यही कारण है कि हमारे समाज ने विशेषकर मूल भारतीय समाज ने प्रेम विवाह को सदा से ही स्वीकार किया हुआ है। चुनौती है तो अंतर्जातिय विवाह की, वह भी भारत के कुछ हिस्सों जैसे मेरठ, हरियाणा, राजस्थान आदि जहाँ अॉनर किलिंग की घटनाएँ भी होती रहती हैं। देर-सबेर कानूनी दबाव और जागरूकता इन इलाकों में भी रूढ़ियों और कट्टर रिवाजों को समाप्त कर देंगे। जहाँ-जहाँ शिक्षा और समझदारी, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, उदारता आदि में वृद्धि हो रही है और चुनौतियाँ घटती जा रही है।
        टोहाना (फतेहाबाद) - हरियाणा से विनोद सिल्ला लिखते है कि प्रेम विवाह का प्रचलन इन्हीं दिनों नहीं हुआ| विगत में भी प्रेम विवाह होते रहे हैं| श्री कृष्ण व राधा के प्रेम-प्रसंग भजनों में गाए जाते हैं| कथाओं में सुनाए जाते हैं| कितनी दंत कथाएं व पौराणिक कथाएं प्रेम विवाह का बखान कर रही हैं| कितने शासकों व राजनेताओं ने अंतर्जातीय व धर्म-मजहब के दायरे तोड़ कर वैवाहिक संबंध स्थापित किए हैं| फिर सर्व-साधारण क्यों नहीं कर सकता प्रेम विवाह| प्रेम विवाह का विरोध 'महिला विरोधी, जातिवादी कुंठा से ग्रस्त लोग कर रहे हैं| जबकि प्रेम विवाह को भारतीय संविधान व धर्म-ग्रंथ अपनी सहमती दे रहे हैं| प्रेम विवाह ही भारत की लाईलाज बीमारी जातिवाद को उखाड़ सकता है | 
          इंदौर - मध्यप्रदेश से वन्दना पुणतांबेकर लिखती है कि हमारी सनातन पद्धति में विवाह एक ऐसा संस्कार है।जहाँ जीवन भर पति-पत्नी को साथ रहना पड़ता हैं।सांसारिक मान्यताओं के अनुसार यह सात जन्मों का बंधन रहता है।प्राचीन काल से ही पुराणों में स्वयंवर का प्रचलन देखा सुना और पढ़ा गया है।ऐसे में यदि हमारी भारतीय संस्कृति में आज भी कोई प्रेम विवाह करता है,तो उन्हें सहर्ष अनुमति नही मिलती है।तो ऐसे में चुनोतियाँ वही से शुरू होती है।आज के बदलते परिवेश में अंतरजातीय विवाह का प्रचलन अति शीघ्रता से  बढ़ रहा है।ऐसे में दो संस्कृति का एक होना समाजिक समरसता का प्रतीक है।परंतु एक दूसरे की संस्कृति को अपनाकर दो परिवारों के संस्कारों को आदर के साथ ग्रहण करना होता है।सिर्फ दो लोगों के मिलने से ही इतिश्री नही हो जाती है।आगे उन सम्बन्धो को पारिवारिक सदस्यों और मान्यताओं के साथ निभाना भी पड़ता है।आज की युवा पीढ़ी दिलो के जज्बातों को ही महत्व देती हैं।चारो ओर की परिधि पर नजर डाले तो बहुत सी चुनोतियाँ रहती हैं। उन चुनोतियो को वह स्वीकार करने में सक्षम नही रहते।आगे भविष्य में  दोनों परिवारों में ताल-मेल यदि सही ना हो तो पूरा जीवन चुनोतियाँ में ही गुजरता है। यदि आज के समय मे प्रेम विवाह पर परिवार की सहमति सहर्ष  मिल जाती हैं।उसकी कीमत आज की युवा पीढ़ी नही समझती हैं।उन्हें दोनों परिवारों के मान सम्मान,संस्कारों को सम्भाल कर रखना होता है, ऐसे में उन्हें हर परिस्थितियों में चुनोतियाँ का सामना तो करना ही पड़ता है ।
           बेगूसराय - बिहार से रामीनंद चौरसिया ' राकेश ' लिखते है कि हमारी समाज आज भी लाखों बुराईयों से  जूझ रहा हैं,वही में एक बुराई प्रेम विवाह भी हैं। जिससे कारण आज के युवाओं और युवतीओं के जीवन मे ढेरों समस्या के साथ जीवन व्यतीत करना पड़ती हैं। यहाँ तक कि वह अपने प्रेम के लिए जीवन को भी कुवां कर देते हैं, समाज को इसके लिए कुछ भी प्रवाह नहीं है। लेकिन "नव समाज" निर्माण के लिए आज के युवा पीढियों को जागुक होना चाहिए।
       पटना - बिहार से विभा रानी श्रीवास्तव लिखती है कि   जितने भी सफल प्रेम के उदाहरणों को दिया जाता है वे सब जुदाई की सफल कहानी है.. यानी जो सच्चा प्रेम करता है वह शादी नहीं कर सकता है... प्रेम कहानी पुरातन युग से चलती जा रही है... जटिलता और जुझारूपन लिए।
  बहुत पुरानी कहावत है *"पाँच डेग पर पानी बदले पाँच कोस पर वाणी"* इतने बदलाव में रहने के लिए समझ और समझौते की बेहद जरूरत पड़ती है। पहले जब शादी तय होती थी तो एक गाँव का दोनों परिवार नहीं होता था... अब तो कभी विदेशी बहू आ जाती है तो कभी अंतरधार्मिक ,अब ऐसे में विशेष चुनौती कन्या के हिस्से में आता है.. दो-दो प्रकार के भगवान से लेकर भोज्य प्रदार्थ...विभिन्न परिवेश विभिन्न संस्कृति.. कितना निभाये कितना ना निभाये... एक तरफ कुंआ तो दूजी ओर खाई... कभी रिश्ते में तो कभी जिंदगी
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश से शशांक मिश्र भारती लिखते है कि भारतीय संस्कृति में प्रेम विवाह की चुनौतियां सदैव से रहीं हैं । शकुंतला ,दुष्यंत , सुभद्रा अर्जुन ,संयोगिता पृथ्वीराज चौहान तक हुए हैं । पर आजकल की परिस्थितियों इनके लिए बनाये जाते समीकरण बहुत अलग हैं । मीडिया में निष्पक्षता के स्थान पर अपनी टीआरपी के लिए एक पक्षता अधिक दिखती है ।कई तरह के लोभ लालच पैदा किए जाते उन्माद आजकल के प्रेम विवाह के कारण अधिक हैं ।परिणामतः आजकल के अधिकांश प्रेम विवाह असफल हो रहे हैं बाद में अधिक नुकसान भी लडकी का ही  हो रहा है । अतः देश की चिंता करने वालों के साथ-साथ समाज की अग्रिम पंक्ति के लोगों को इस चुनौती पर गम्भीरता से ध्यान देना चाहिए ।
         मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश डाँ. रेखा सक्सेना लिखती है कि भारतीय संस्कृति जीवन के  प्रत्येक पहलू पर आदर्श से मर्यादित, लोक  -कल्याणकारी प्राचीन, पावन एवं पूज्य है।प्रेम विवाह दो व्यक्तियों (महिला पुरूष) के परस्पर प्रेम, परवाह, शारीरिक - मानसिक आकर्षण और कसमें वादे से हुए मेल को कहते हैं जो अधिकतर पाश्चात्य आधुनिक है। अब भारत में भी धर्म - जाति भेद की भावना से ऊपर उठकर प्रेम विवाह को समर्थन मिल रहा है पर हमारी संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी और मजबूत हैं कि 80% लोग अप्रचलित और बदनामी की नज़र से देखते हैं जहां राजनीतिक पारिवारिक संबंध आड़े आकर सामाजिक बहिष्कार जैसी चुनौतियों का सामना करने की कशमकश देखी जाती है पर जहां प्रेम विवाह स्नेह -प्रेम के इक साझा जीवन के आधार पर साथ ही व्यवस्थित हो तो इसे समझा जा सकता है।
         महासमुंद - छत्तीसगढ़ से महेश राजा लिखते है कि परिवर्तन जीवन का एक अहम सत्य है।समय के साथ साथ मानवीय मूल्य और संस्कृति में आमूलचूल बदलाव आ रहा है। पहले के युग में घर के बुजुर्ग, माता पिता विवाह आदि  संबंध तय करते थे। विवाह योग्य लडका या लडकी इस बात को पूर्ण सम्मान देते थे। अब बच्चे आपस मे पढते है.बडे होने पर साथ साथ काम करते है।तब विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण एक सामान्य प्रक्रिया है। आज भी रूढिवादी विचारों के कारण परिवार की ज्यादती का शिकार क ई लोग हो जाते है।मन मार कर अपनी पसंद नापसन्द को नकार कर मां बाप जहां कहते है,वहां ईच्छा न होते हुए संबंध स्वीकार लेते है।जिसका परिणाम बाद दिनों मे विघटन के रूप मे सामने आता है। आज कल मिडिया,इन्टर नेट आदि के कारण ऐसी खबरें तुरंत वायरल हो जाती है।हाल ही में बरेली के एक प्रतिष्ठित परिवार के साथ यह घटना हुई है।लडका लडकी ने तो भाग कर शादी कर ली।पर,जातपांत की बात पर इस संबंध को कटघरे में खडा कर दिया है।आरोप प्रत्यारोप चल रहे है।पुलिस, कानून तक बात पहुंच गयी है। मेरा मानना है कि अब हमें स्वयं को बदलना होगा।लडका,या लडकी अगर योग्य हो संस्कार शील हो तो आपसी सहमति से मिल बैठ कर तय कर देना चाहिए।क्योंकि जैसा मानव स्वभाव है,हम नकारात्मक ता पर ज्यादा ध्यान देते है।समाज के कतिपय मठाधीश इसमें अपना दखल देकर विकट स्थिति खडी कर देते है।
 प्रेम विवाह के दोनों परिणाम हो सकते है।सब कुछ ठीक है तो नैया पर ।अन्यथा डूबने का भी खतरा रहता है। विवाह एक पवित्र संस्कार है।इसे भलीभांति समझ कर कदम उठाना चाहिए। हो सके तो परिवार के किसी सदस्य को साथ रख कर स्थिति का सिंहावलोकन करना चाहिये।फिर ठोस कदम उठाना चाहिए। इस तरह के मामलों में सबसे ज्यादा तकलीफ लडकी और उनके घरवालों को ही उठानी पडती है।ऐसी स्थिति न आये और सब कुछ सही हो तो कदम आगे बढाना चाहिए। क्योंकि ऐसे मामलों मे क ई बार लडके गंभीर नहीं होते.वे इसे टाईम पास समझते है।तब फिर दुष्परिणाम सामने आते है।युगो युगो से स्त्री पुरुष के संबंध में इस तरह की विपदाएं आयी है।दोनों परिवार को साथ बैठकर इसका सकारात्मक स्वरूप तय करना होगा।तभी हमारे समाज का विकास होगा।इस तरह की चुनौतियों को ठंडे दिमाग से आपस में तय कर आगे बढे तो निश्चित ही इसका सुखद परिणाम सामने आयेगा। परिवर्तन को समयानुसार स्वीकार लेना ही बुद्धिमता है।
      रांची - झारखण्ड से रेणु झा लिखती है कि भारतीय संस्कृति में प्रेम विवाह के साथ ही चुनौतियाँ शुरू हो जाती है ।ये विवाद जोड़े स्वतः ही तय करते हैं, जिसे परिवार स्वीकार नहीं करते , परिवार में ये विवाह मान्य नहीं उपेक्षित होती है ।परिवार की भावनाऐ इससे आहत होती हैं, इधर विवाहित जोड़ी भी खुद को ही अहमियत देते हैं ।ये पारिवारिक समाजिक मर्यादाओं से परे चलते हैं ।जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ते ही एक-दूसरे पर दोषारोपण शुरू कर देते हैं , और फिर विवाह से प्रेम लुप्तप्राय हो जाता है और विवाद विवादास्पद बन जाता है और स्थिति विवाह -विच्छेद तक आ जाती है ।परिवार से अलगाव के कारण पारिवारिक दबाव या लिहाज भी नहीं रह जाता है । धैर्य, विश्वास, लोक लिहाज, मर्यादा, प्रेम ये वैवाहिक जीवन के स्तम्भ हैं इनकी कमी रहती है क्योंकि यहाँ स्वयं और अहम की विशेष अहमियत होती है ।विधि व्यवस्था का भी कोई मोल नहीं है ।आज के परिवेश में प्रेम विवाह की उम्र बहुत कम हो चुकी है ।रीति रिवाज भी ताक पर रखकर खुद को बेहतरीन समझने की कोशिश करते हैं, मंत्रोच्चार, आशिर्वाद की कभी कोई जरूरत ही नहीं ।   
            दिल्ली से वीरेन्द्र ' वीर ' मैहता लिखते है कि भारतीय संस्कृति में प्रेम विवाह को मान्यता न हो, ऐसा तो कहीं शास्त्रों में दिखाई नहीं देता। लेकिन फिर भी, तात्कालिक सामाजिक और धार्मिक नियमों के उलंघन और उस स्थिति में उनके प्रतिकार के भी कई उद्धाहरण शास्त्रों में मिल जाते हैं। वस्तुतः भारतीय संस्कृति में प्रेम विवाह एक चुनौती था या नहीं, यह सोचने के स्थान पर वर्तमान स्थितियों में इसके स्वरूप और इसकी सार्थकता पर विचार करना चाहिए। प्रेम या भावनाओं पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। सिर्फ समझाया या धमकाया जा सकता है और कौन सा रास्ता कितना कारगर होगा, कोई नहीं जानता?  होने वाले प्रेम विवाह का परिणाम भी कितना सही और गलत होगा, यह भी केवल समय ही जानता है। 
तो वस्तुतः वर्तमान में जरूरत है संतान और माता-पिता के बीच, संस्कारी संबंधों और विश्वास की, जिसमें हमारा समाज निरंतर गिरावट की ओर है।  प्रेम विवाह के विरुद्ध झँडे फहराने की जगह पहले हमें समाज को जाति और धर्म की बजाय अच्छा और बुरे के रूप में मनुष्य को बांटने का निर्णय लेना होगा। उसके बाद समाज में गलत मापदंड निर्धारित करने वाले सोशल मीडिया,समाज, और फैशन एवं फ़िल्म संस्कृति पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। अपनी संतान को सही और सटीक निर्णय लेने के लिए शिक्षित और बौद्धिक स्तर पर मजबूत करना होगा, ताकि वह ऐसी परिस्थितियों में सही चुनाव कर सके। निःसन्देह वह सही चुनाव ही एक व्याक्ति और उसके परिवार के लिए सुरक्षित और सुखद होगा।
       पटना - बिहार से मिनाक्षी सिंह लिखती है कि दो परिवार विवाह करके एक रिश्ते में बंधते हैं। भारतीय संस्कृति में इसका अहम स्थान है। पुराने समय से ही विवाह माता-पिता या अभिभावकों द्वारा तय किया जाता रहा है। जिसमें कुल खानदान आदि देखने की परंपरा थी पर आजकल इन बातों को दरकिनार कर बच्चे अपनी पसंद से शादी कर रहे हैं। जिसमें कभी-कभी माता-पिता की सहमति मिलती है और कभी नहीं भी मिलती क्योंकि वह अपने संस्कारों से इस कदर बंधे हैं कि इतनी जल्दी उन्हें तोड़ने में हिचकते हैं। खुद से ज्यादा समाज का डर रहता है ।पर बच्चे इन बंधनों को तोड़कर प्रेम विवाह कर रहे हैं। ज्यादातर मामलों में इनका यह फैसला गलत साबित होता है क्योंकि ज्यादातर मामलों में शादियाँ भावनाओं में बहकर की जाती हैं सच्चाई के धरातल पर पांव रखते ही ये दोनों बिखर जाते हैं और फिर अलग हो वापिस घर आते हैं ।जिससे समाज में दोनों परिवारों की इज्जत खराब होती है इसलिए अगर ऐसी शादी करनी है तो परिवार को अपने विश्वास में लेकर ही करें। माता पिता को भी चाहिए के बच्चों का अगर निर्णय सही है तो उस में सहयोग करें पुरानी कुरीतियों को तोड़ने में उनका साथ दें।
           साहिबाबाद - उत्तर प्रदेश से सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा लिखते है कि बड़ा  विस्मयजनक विचार है कि विवाह की भी किसमें होती हैं । आत्मीय प्रेम के बिना भी कोई विवाह सम्भव है क्या । जो विवाह अपने सभी परिजनों की सहमति से   या किसी कारण वश उन्हें बताये बिना  सम्पन्न होते है और जिनमें दो अस्तित्व अपना सबकुछ एक - दूसरे को समर्पित करने का संकल्प ले लेते हैं , क्या उस संकल्प का निर्वहन  एक - दूसरे को बिना प्रेम के आधार के किया जा सकता है। 
विवाह तो समाज द्वारा स्थापित और संवर्धित वह संस्था है जो टिकी ही प्रेम नामक संवेग पर है । कोई भी विवाह  प्रेम को  समर्पित भावना के बिना सफल या सम्भव ही  नहीं है । भारतीय संस्क्रति ही नहीं व्रहद भारतीय समाज में विवाह का आधार प्रेम होता है । प्रेम अर्थात अपने अस्तित्व के साथ अपनी  आशाओं - आकांछाओं को अपने जीवन साथी के अस्तित्व - आशाओं - आकांक्षाओं में विलीन कर देना ।  विवाह का मूल तत्व ही प्रेम है । शरीर तो उसका अगला पड़ाव है और समय के साथ शारीरिक आकर्षण भले ही धूमिल पड़ जाए परन्तु अगर विवाह की नींव प्रेम है  तो समय के साथ इस आबन्ध को  तो प्रगाढ़ होना ही है ।  इसलिए  विवाह की सफलता केवल प्रेम के अधीन है । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि  पति - पत्नी के बीच वो प्रेम - भाव विवाह से पहले शुरू हुआ है या विवाह के बाद ।जहां पति - पत्नी अपने - अपने स्वार्थ को कोई महत्व नहीं देते वे एक - दूसरे की सफलता - असफलता को अपनी सफलता - असफलता मानकर एक - दूसरे के पूरक बन जाते हैं तब वह विवाह , मात्र विवाह रह जाता , एक नैसर्गिक आबन्ध बन जाता है । वे दोनों समझते हैं कि  इस धरा पर पूर्ण तो कोई होता नहीं है और वे एक दूसरे के पूरक बन जाते हैं । यही उनका प्रेम है और यही उनके विवाह का बन्ध है । 
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे आपस में एक दूसरे के सम्पर्क में आये किस माध्यम से हैं । जहां प्रथम परिचय किसी मानवीय सवार्थ की आपूर्ति के आवेग में होता है वहां प्रेम का कोई स्थान नहीं होता और वह विवाह नहीं , स्वार्थ से घिरा हुआ सांसारिक समझौता होता है जो अक्सर टूट जाता है । आज तथाकथित प्रेम विवाहों की असफलता का एक महत्वपूर्ण कारक यह भी है ।
          मुम्बई - महाराष्ट्र से अलका पाण्डेय लिखती है कि प्रेम विवाह चुनौतियों से भरा है। प्यार या कहिए या  प्रेम घर-परिवार में तो कायम रहता है, मगर वैवाहिक जिंदगी में पति-पत्नी के प्रेम में उतार-चढ़ाव बनता-बिगड़ता रहता है। ये बात नहीं है कि केवल प्रेम विवाह में विवाह के बाद प्रेम में खटास आने लगती है, बल्कि पारम्परिक विवाह में भी ऐसा होना अपवादस्वरूप मौजूद है। लेकिन तय किए हुए विवाह में पति-पत्नी में प्रेम में खटास होने का प्रतिशत बहुत कम होता है जबकि प्रेम विवाह या लव मैरेज के केस  में लगभग 85 प्रतिशत से भी ज्यादा जोड़ों के प्रेम में दरार आ जाती है।। लव मैरेज इंटरकास्ट या विजातीय युगल में होता है जबकि तय विवाह सजातीय युगल में होता है।
 प्रेम विवाह- 
 वास्तविकता के धरातल पर प्रेम विवाह में प्रेम का कहीं से कहीं तक स्थान नजर इसलिए नहीं आता, क्योंकि चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात । प्यार जब हक़ीक़त का जामा पहनता है तब प्यार प्यार ना रह कर  एक चुनौती बन जाता है सारि की सारी कल्पनाएं सारे अरमान धरे रह जाते हैं ।वास्तविकता दिखाई देती है ।तब से शुरू होता है मनमुटाव लड़ाई झगड़े और नौबत आती है तलाक़ तक।
प्रेम विवाह में बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है 
पहले तो प्रेम विवाह में परिवार को मनाना बहुत कठिन होता है। जब प्रेम विवाह का प्रस्ताव लड़के और लड़की द्वारा अपने-अपने माता-पिता के समक्ष रखा जाता है तो अधिकतर मामलों में उन्हें इस पर विरोध का सामना करना पड़ता है जीवन चलाने के लिए आर्थिक पूंजी भी जुटाना  पड़ती है और उसके लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ती है
सबका तिरस्कार सहना पड़ता है और सब  के  सहयोग  के बिना जीवन चलाना कठिन होता हैमुहब्बत को पूंजी मानकर जिंदगी शुरू करने के थोड़े ही समय बाद ऊबन, दर्द और खीझ का आलम छा जाता है । मां-बाप, समाज और संस्कृति को धत्ता बताते हुए ये लोग विवाह-सूत्र में  तो बंधजाते है पर अधिक समय तक या बंधन को निभा नहीं पाते हैं।पाँच छह साल के अंदर ही उनके चेहरे पर बे रंग परतें  चढ़ जाती है और वो जीवन से निराश और हताश दिखाई देने लगते हैं । एक दूसरे से प्यार तो दूर आप आपस में नफ़रत और कड़वाहट ही कड़वाहट नज़र आने लगती है
। प्रेम से  बात करना तो दूर ये लोग बात बात में काटने  को दौड़ते  हैं। एक-दूसरे को समझना और जिंदगी की गाडी सही तरह से चलाना प्रेम विवाह या अरेंज्ड विवाह में पति-पत्नी एक-दूसरे को समझने का प्रयास भी करते हैं और समझ भी लेते हैं। लेकिन ये समझदारी रोजी-रोटी या परिवार चलाने के दौरान अलग-अलग स्थिति पैदा कर देती है। फिर भी अरेंज या तय विवाह में इसका किसी न किसी प्रकार से समाधान निकल जाता है, जबकि प्रेम विवाह में इसके विपरीत होता है। पति-पत्नी में अलगाव पैदा होने लगता है। प्रेम विवाह के बाद विवाहित जोड़ा जब परिवार और समाज से जुड़ता है तो परिवार और समाज के तानों से रूबरू होना पड़ता है जिसका सामना करना बेहद कठिन होता है। शादी स्वर्ग में तय नहीं होती, बल्कि हम ही इसे स्वर्ग और नरक में तब्दील कर देते हैं। चाहे प्रेम विवाह हो या तयशुदा विवाह। परिवार के यदि सभी सदस्य समझदार और शिक्षित होते हैं तो प्रेम विवाह भी सफल हो जाते हैं। 
प्रेम विवाह में समझदारी क्या बलिदान और एक दूसरे को समझने की बहु ज़रूरत होती है यदि पति पत्नी आपस में एक दूसरे के मनों भावों को समझकर उन्हें एक दूसरे के विचारों का सम्मान करें तो प्यार की  शादी  भी सफल हो सकती है वरना प्रेम  विवाह अक्सर असफल होते हैं देखे गए हैं ।
       सिवान - बिहार से लक्ष्मण कुमार लिखते है कि समाज और संस्कृति के हिसाब से प्रेम विवाह करना गलत है इसके विरोध में हर एक लोग आवाज उठा सकते हैं । ये जरूरी नहीं कि प्रेम विवाह में ही प्रेम में कमी आने लगती है। कई बार अरेंज्ड विवाह में भी ऐसा होता है लेकिन पारिवारिक और सामाजिक स्थिति के कारण ऐसा बहुत कम होता है। एक-दूसरे को समझना और जिंदगी की स्थिति प्रेम विवाह या अरेंज्ड विवाह में पति-पत्नी एक-दूसरे को समझने का प्रयास भी करते हैं और समझ भी लेते हैं। लेकिन ये समझदारी रोजी-रोटी या परिवार चलाने के दौरान अलग-अलग स्थिति पैदा कर देती है। फिर भी अरेंज या तय विवाह में इसका किसी न किसी प्रकार से समाधान निकल जाता है, जबकि प्रेम विवाह में इसके विपरीत होता है। पति-पत्नी में अलगाव पैदा होने लगता है। प्रेम विवाह के बाद विवाहित जोड़ा जब परिवार और समाज से जुड़ता है तो परिवार और समाज के तानों से रूबरू होना पड़ता है जिसका सामना करना बेहद कठिन होता है।
     रांची - झारखण्ड से रूणा रश्मि लिखती है कि हमारी संस्कृति में विवाह एक ऐसा संस्कार है जो दो व्यक्तियों को ही नहीं दो परिवारों को भी आपस में जोड़ता है। समान जाति और धर्म के मध्य ही वैवाहिक संबंध स्थापित करना हमारी परंपरा रही है। किन्तु आजकल इस परंपरा में कुछ परिवर्तन आ गया है । क्योंकि आज हमारे समाज में प्रेम विवाह का प्रचलन अत्यधिक बढ़ गया है। पहले तो इक्के-दुक्के ही सुनने को मिलते थे । उन्हें भी अपने परिवार और समाज के साथ अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता था। अपनी वैवाहिक मान्यता के लिए। कभी-कभी तो उन्हें परिवार से निष्कासित भी कर दिया जाता था। किन्तु आजकल प्रेम विवाह का प्रचलन इतना अधिक बढ़ गया है कि विरोध के स्वर अब धीमे होते जा रहे हैं। पारिवारिक और सामाजिक मान्यता तो मिल जाती है किन्तु दो विभिन्न संप्रदाय और संस्कृति के होने के कारण कभी कभी सामंजस्य स्थापित करना कठिन प्रतीत होता है और अंततः संबंध विच्छेद की नौबत आ जाती है।वैसे कुछ प्रेम विवाह सफल और दीर्घकालिक भी होते हैं किन्तु चुनौतियाँ भी बहुत होती हैं। जब जीवन में विषम परिस्थितियों का सामना होता है तब प्रेम लुप्तप्राय होने लगता है। इस स्थिति से बचने के लिए प्रेम विवाह में भी एक दूसरे की अच्छी तरह जाँच परख कर लेनी चाहिए तथा धैर्य और सूझबूझ के साथ परिवार की सहमति के बाद ही वैवाहिक संबंध स्थापित करना चाहिए ताकि कठिन परिस्थितियों में अपनों का सहारा प्राप्त हो सके।                           
           जम्मू - जम्मू कश्मीर से इंदु भूषण बाली लिखते है कि  प्रेम विवाह की चुनौतियों से पहले यदि प्रेम शब्द पर चर्चा करें , तो इस घृणित तथाकथित सभ्य समाज में 'प्रेम शब्द' भी एक चुनौती है। इतिहास ही नहीं बल्कि हिंदु ग्रंथ भी मीराँ इत्यादि के रूप में साक्षी हैं। क्योंकि सर्वविदित है कि श्रीकृष्ण से प्रेम करने पर मीराँ को दण्ड स्वरूप जहर दे दिया गया था। प्रेम विवाह को भूत और वर्तमान समय में तुछ माना गया है। जबकि संविधान में इसे स्वीकार किया गया है। किंतु संविधान स्वयं आगे आकर सहायता नहीं करता और समाज के ठेकेदार कनून के प्रकट होने से पहले प्रेम विवाह बंधन में बंधे जोड़े को अमानवता,क्रूरता से इतनी यातनाएँ दे देते हैं कि वह मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं या पतिधर्म-पत्नीधर्म निभाने के योग्य ही नहीं रहते। प्रेम विवाह के सफल होने पर पंडितों द्वारा मंत्रोच्चारण से कराई गई असफल शादियों का भी भंडाफोड़ होना तय है। इसलिए पंडित भी प्रेम विवाह का विरोध ही करते हैं। हालांकि मंत्रोचारण से कराई गई अधिकांश शादियों का विवाह-विछेद (तलाक) न्यायालयों में संविधान के अंतर्गत हो रहे हैं। जिन पर धर्म के ठेकेदार पंडित एवम तथाकथित सभ्य समाज चुप्पी साधे हुए हैं।  
        नवादा - बिहार से डाँ. राशि सिन्हा लिखती है कि सारे धर्मों का सार प्रेम जो मनुष्य के अंतस में बसा एक ऐसा कोमल भाव जो म्रदुलता का संचार कर मनुष्यों को एकत्व भाव से जोड़े रखने की नींव कहलाता है , भारतीय संस्क्रति की विविधता में एकता के आधार का प्रतिनिधित्व करता है,किंतु बात जब युगल जोड़े के द्वारा लिये गये प्रेम विवाह की आती है तब यही प्रेम सामाजिक संकीर्णता में फंसकर चुनौतियों का सामना करता प्रतीत होता है.भारत जैसे स्नेह,नेह,प्रेम संचारित देश में प्रेम विवाह कोई नई बात नहीं बल्कि अति प्राचीनतम् बात है यहां तक कि हमारे हिंदू धर्म में भी प्रेम विवाह की पूर्ण चर्चा है  और उसका अत्यंत विस्त्रत वर्णन भी व्याप्त है ,आश्चर्य की बात है कि वर्तमान युग में  प्रेम विवाह एक अलग ही सामाजिक प्रताड़ना का शिकार होकर रह गया है.भारतीय संस्क्रति में परिवार नामक संस्था में आज भी  विवाह जैसे निर्णयों  को भगवान या दैवीय निर्देशित आदेश मानकर उनका पालन किया जाता है ,ऐसे में युगल जोड़ों द्वारा लिया गया निर्णय कहीं- न- कहीं परिवारवाद की मान्यताओं को चुनौती देता नजर आता है फलत: युगल जोड़ों को सबसे पहली चुनौती का जो सामना करना पड़ता है उसकी शुरुआत अपने ही परिवार की जकड़ी मानसिकता से युक्त संबंधियों से करनी पड़ती है.सिर्फ यही नहीं बल्कि भारतीय परिवार में संस्क्रति की आड़ में निर्णय थोपने की जो परंपरा है उस परंपरा से बंधे माता पिता या बड़े बुजुर्ग युवाओं के निर्णय को स्वीकार नहीं कर पाते, उन्हें कहीं न कहीं परिवार में परिवार के मामलों में उनका वर्चस्व कम महसूस होने लगता है.उनके दखलअंदाजी की नीति को यह बात कतई सहनीय नहीं लगती और फिर युगल जोड़े का प्रेम परिवार से निकलकर समुदाय की चुनौतियों के हत्थे चढ़ जाता है जहां जातीय समीकरण के दलदल में फंसकर उनका प्रेम सामुदायिक विरोध का सामना करने को विवश हो जाता है.परिणामत: जिस प्रेम की बुनियाद परस्पर आलिंगनबद्ध होकर जीवन की छाॉंव तले जीवन गुजारने को प्रतिबद्ध होते हैं ,एकदुसरे का संबल बनकर साथ निभाने की कसमें खानेवाले युगल जोड़ों को  संसार के इस कुत्सित ,जकड़े अवधारणा के आगे असहाय और बेबसी की अनुभूतियों तले जीवन जीने को बाध्य होना पड़ता है.प्रेम विवाह यदि जातीगत् हो और यदि परिवार में उन्हें स्वीकार भी कर लिया गया हो तो आये दिन घर के सदस्यों द्वारा उनके कुचरित्र होने के ताने दिये जाते हैं सामान्य रुप से वह घर में सबसे अलग थलग बस एक वस्तु के समान बनकर रह जाते हैं. भारतीय समाज में प्रेम विवाह यदि अंतरजातीय हो तो उन्हें चारों तरफ से मार झेलनी पड़ती है .समाज में व्याप्त जातीय अहंकार की भावना से जीवन भर वर या वधू को जाती सूचक ताने सहने पड़ते हैं तो वहीं दूसरी ओर समुदाय में पनपता अहंकार का यह विष बीज ऑनर कीलिंग जैसे मामलों तक को अंजाम देता नजर आता है.समुदाय अपने जातीय अहंकार में गैरकानूनी तरीरे से खाप पंचायत द्वारा प्रेमी जोड़े के विरुद्ध घातक फैसले भी लेते नजर आते हैं.यह सच में एक चिंतन का विषय है कि जिस देश के स्नेहिल और उदात्त होने की मिसाल हम पूरे विश्व में देते आ रहें हैं,जिस देश में हम वैश्विक स्तर पर बंधुत्व की बात के लिये जाने जाते हैं आज उसी देश के भीतर प्रेम जैसे कोमल भावों के प्रति इतने कठोर और दोहरे रवैये अपनाये जाते हैं.आज भी जकड़ी मानसिकता ने प्रेम विवाह की अवधारणा को सामाजिक रुप से निषेध कर रखा है.हां,शिक्षा द्वारा आयी जागरुकता से समाज ने अब इसे धीरे धीरे स्वीकार करना तो शुरु कर दिया है किंतु अंतस में व्याप्त विरोधों के साथ.आत्माओं के इस बंधन में यदि देह आधारित आकर्षण न होकर मजबूत भावनाओं का बंधन हो तो जातीय समीकरण और गोत्र व्यवस्था और दखलंदाजी की नीतियों से ऊपर उठकर युगल जोड़ों से मित्रवत् व्यवहार कर उनको अच्छा बुरा समझाते हुए उनके आगे प्रेम विवाह के विकल्प खुले रखने होंगे.
                जोधपुर - राजस्थान से बसन्ती पंवार लिखती है कि भारतीय संस्कृति  में  प्रेम विवाह  सदियों  से  चली  आ रही  परिपाटी  है  । धार्मिक  से लेकर  ऐतिहासिक  और  राजा- महाराजाओं  की  कथा- कहानियों  में  प्रेम  विवाह  का वर्णन  मिलता  है  । जहां तक  प्रेम  विवाह  के  समक्ष  चुनौतियों  का  प्रश्न  है,  हमारे  समाज  में- ' सबसे  बड़ा  रोग,  क्या  कहेंगे  लोग ' वाली  उक्ति  चरितार्थ  होती  है  । प्रेम  विवाह  के  समय  लड़का एवं  लड़की को  मुख्य रूप  से  दो  प्रकार  की  चुनौतियों  का  सामना  करना पड़ता  है-
1 सामाजिक 
2 व्यक्तिगत 
1 सामाजिक-- परंपराएं,  जाति, ऊंच- नीच, अमीरी- गरीबी का गणित,  समाज  से  बहिष्कृत  होने  का  भय, लोगों  के तानें, रूढ़ीवादी  विचारधारा  आदि  प्रमुख  हैं  । 
2 व्यक्तिगत--कम उम्र  में  लिया  गया  निर्णय  गलत भी  साबित  हो  सकता  है  । कभी-कभी  सिर्फ  आकर्षण  हावी रहता  है  । दोनों  एक दूसरे  को कितना  जानते  हैं,  समझते  हैं  ? आजीवन  एक  दूसरे  को  अच्छाईयों  और  कमियों  के  निभा सकते  हैं  अथवा  नहीं  ? आपसी  बातचीत  का मुद्दा ? एक दूसरे  के  प्रति  सम्मान  की भावना  । दुराव- छुपाव । विचारों  का टकराव  अथवा  सामंजस्य ?  भूतकाल  की  गई गलतियों  को  स्वीकारने की क्षमता  । एक दूसरे की पारिवारिक  स्थिति  की जानकारी  । रोजगार,  आवास,  बच्चे,  ख्वाहिशें और  उनकी  पूर्ति  के  साधन, लोगों  की  फब्तियां  सुनने की ताकत,  पूरा जीवन  एक  साथ  बिताने  का  धैर्य  आदि  अनेक  चुनौतियां  हैं,  जिनका  सामना  प्रेम  विवाह  करने  वालों  को  करना  पड़ता है  । वर्ना  अंकुश  के अभाव  में  तलाक  आम बात  है  ।    
         मुम्बई - महाराष्ट्र से डाँ. मंजु गुप्ता लिखती है कि सदियों से लेकर  आज भी भारतीय सभ्यता , संस्कृति में विवाह को  हमारी संस्कृति में  सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना जाता है .  जो आध्यात्मिक कार्य है  , जिसमें दो आत्माओं यानी स्त्री पुरुष का मिलन होता है जिसे  पवित्र संस्कार माना जाता है . भारतीय  मान्यताओं के अनुसार  विवाह धर्म, परिवार समाज का जरूरी अंग है . पाश्चात्य तथा भारतीय संस्कृतियों ने भी माना है कि युगल अर्थात स्त्री पुरुष की जोड़ी यानी उनका विवाह संबंध स्वर्ग से धरा पर बन कर  आता है . ईश्वर के द्वारा ही लड़के लड़कियों की जोड़ी निश्चित और निर्धारित होती है . समाजशास्त्रियों ने विवाह को सामाजिक संस्था सामाजिक बंधन और सामाजिक समझोता माना है . ताकि समाज में योनाचार अराजकता न व्याप्त हो . विवाह कुल वंश की संतति बढ़ाने का माध्यम है . सन्तति के खून के संबंध शुद्ध बने रहें . जिससे  परिवार को स्वस्थ आकार दिया जा सके . 
आज भारतीय समाज में मुख्य रूप से दो प्रकार के विवाह प्रचलित हैं :-
1 अरेंज मैरिज यानी सर्वसम्मति या माता पिता की   सहमती से तय  किया लड़के या लड़की का विवाह  .
२  लव मैरिज यानि प्रेम विवाह अर्थात लड़का या लड़की अपने जीवन साथी का खुद चुनाव करते हैं। 
    वक्त के परिदृश्य में मैं तो प्रेम विवाह की पक्षधर हूँ। शताब्दी दर  शताब्दी  विकास करती मानवता आज इक्कीसवीं सदी की दहलीज पर आ खड़ी हुई है।  आज के  परिवेश में  समाज बहुत सी सामाजिक कुरीतियों जैसे दहेज़ प्रथा ,  स्वार्थ  लालच , संकीर्ण मानसिकता, , रूढ़ियों और दोषों से भरा हुआ है।  ऐसे में   प्रेम विवाह  इक्कीसवीं सदी की दहलीज पर पाँव पसार रहा है।  दहेज की उछाल लहरें आकाश को छूने लगी हैं। माता - पिता को दहेज न देना पड़े  इस के कारण अपने मन पसंद अपने प्यार करनेवाले जीवन साथी से  प्रेम विवाह की बाढ़ आ गई है।   वर्तमान हालात में माता- पिता द्वारा तय किया गया रिश्ता अनुपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। दहेज की लालच में कितनी लड़कियों को अपनी आत्महत्या करनी पड़ रही हैं , कितनों को मारा जा रहा है। उनका शोषण उत्पीड़न हो रहा है।   अखवार दूरदर्शन इन वारदातों से पटा  पड़ा है।  ऐसे में माता - पिता अपनी बेटी को अपने घर वापस बुलाते भी नहीं हैं। उनकी अर्थी ही वापस आती है।  मानव में स्वार्थ लोलुपता के कारण  मानवीय आदर्शों के मूल्य ख़त्म हो रहे हैं वर पक्ष के लिए विवाह व्यापार बन गया है।  लड़का एक बैंक ड्राफ्ट होता है। एक लॉटरी होता है।  शादी के समय केश कराया जाता है।  वर पक्ष कन्या पक्ष से यही उम्मीद रखता है कि शादी के बाद समय  समय पर सब मांगें उसकी पूरी होती रहें। इन घिनौनी प्रथा से छुटकारा पाने के लिएप्रेम विवाह सार्थक  है।    
आज तकनीकी हाई टेक  युग में पढ़े -  लिखे आत्म निर्भर युवक - युवतियां में सकारात्मक बदलाव आए हैं।समाज की  इन शोषण की रूढ़ियों को तोड़ दिया है।   अपनी पंसद से अपने जीवन साथी का खुद चुनाव कर लेते हैं और शादी से पहले  आपस में एक दूसरे की मानसिकता , गुण , अवगुण को समझ लेते हैं।  आपसी पसंद ,  नापसंद , रुचियों  को  जान  लेते हैं. समाज की दकियानूसी मान्यताओं को तोड़कर  प्रेम विवाह कर लेते हैं। जग में कोई भी विवाह हो उसका आधार प्रेम ही होता है।  प्रेम तो जोड़ता है ना कि तोड़ता।  विश्वामित्र और मेनका का प्यार से ही शकुंतला हुई। शकुंतला ने अपने प्यारे दुष्यंत को दिल दे कर प्रेम विवाह किया था।   मुग़ल  काल में अकबर और जोधा।  तुलसी का अमर प्रेम पत्नी से  मिलने रस्सी का सहारा लिया।  श्री कृष्ण रुक्मणी का प्रेम कौन नहीं जानता है। आधुनिक संदर्भ में राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी  प्रेम विवाह की मिसाल हैं।  अतः प्रेम विवाह एक ऐसी संजीवनी बूटी  है जिससे विकास - सृजन होता है ,मन - वचन कर्म से प्रेममय जीवन जीता है।  सारा  संसार  सत - चित -  आनंद और सत्यम - शिवम - सुंदरम लगता है। 
मेरी नजर में प्रेम विवाह चुनौती नहीं है . बल्कि आसान तरीका है . जिसमें माँ - पिता को  लडकी  के लिए  वर खोजने में चप्पल नहीं घिसनी पड़ती है . घर बैठे ही  वर मिल जाता है .  
             राँची - झारखंड से डाॅ सुरिन्दर कौर नीलम लिखती है कि सृष्टि का सबसे खूबसूरत शब्द और अहसास प्रेम है। विवाह का आधार भी प्रेम और विश्वास होता है। कहते हैं कि प्रेम हो जाता है परंतु इस नये दौर में फायदा और नुकसान देख कर प्यार होता है और फिर टूटने में भी देर नहीं लगती। आई लव यू कहना कितना सरल हो गया है, भले ही दिल में इसके भाव के फूल खिले हों या नहीं। विवाह तो एक समझौता है जिसमें पूरे परिवार के साथ संयम और धैर्य के साथ निर्वाह करना होता है, फिर चाहे वो प्रेम विवाह हो या माता पिता के द्वारा तय किया गया। आजकल बच्चे ही अभिभावक हैं अतः माँ बाप भी उनके प्यार को अनमने भाव से स्वीकार कर लेते हैं। जब जीवन संघर्ष से उनका पाला पड़ता है तो प्रेम की खुमारी टूटने लगती है। ऐसे में यदि अहं बीच में आ जाए तो रिश्तों की नाजुक डोर टूट जाती है। समझदारी से ही वैवाहिक जीवन की चुनौतियों को जीता जा सकता है, फिर चाहे वो प्रेम विवाह हो या अरेंजड। बहुत बार तयशुदा शादियाँ भी असफल होती हैं तो बच्चे अभिभावकों को दोष देने लगते हैं कि आप ही ने ढूंढा है रिश्ता! इसलिए आज कल बच्चों की पसंद पर मोहर लगानी पड़ती है। अटूट प्रेम होगा तो हर चुनौती आसान होगी। 
             मंडला - मध्यप्रदेश से पं० आभा अनामिका लिखती है कि विवाह हमारी संस्कृति का पवित्र महत्वपूर्ण अंग है ।समाज में विवाहित दम्पत्ति  को आदर से देखा जाता है।आज के दौर में विवाह "मजाक बन गया है।"जब जिससे मन चाहा प्रेम विवाह कर लिया । प्रेम में विवाह कर लेना ही प्रेम की शर्त नहीं  होती ,प्रेम मनुष्य को त्याग ,दया ,करूणा सिखाता है । अपरिपक्वता खुली मानसिकता  ,घर -परिवार में बडे -बुजुर्गों से दूरी ,एकल परिवार ,अन्तर जाति विवाह एंव प्रेम विवाह के मुख्यकारक हैं ।माता- पिता संतान को अपना ख्वाब मानते हैं और चाहते हैं जो हम नही कर पाऐ वो हमारी संताने पूरा करें।इस दौड-धूप में बच्चों को सही मार्गदर्शन नही मिल पाता ।भारतीय सिनेमा से लेकर धारावाहिक में भी प्रेम विवाह को इतनी खूबसूरती से परोसा जाता है की कोमल मन पर किसी की नजदीकी प्रेम लगने लगती है।हमारे समाज में प्रेम विवाह के आकडे सामाजिक रीती- रिवाज के विवाह से ज्यादा हैं। प्रेम विवाह न्यायसंगत नहीं हैं पर प्रेम में पड़ कर अपनी संस्कृति मर्यादा भूल जाने के कारण दुष्परिणाम भी सामने आते है। हर संस्कार की एक उम्र सीमा तय की ग्ई है जो सामाजिक मापदण्डों के अनुरूप है । लेकिन प्रेम की ज्योति दिल में जलते ही माता पिता समाज खानदान को ताक में रखकर घर से भाग कर प्रेम विवाह करना पूरी तरह असुरक्षित है ।जिस खुशी में हमारे अपने न हो उनका आशीर्वाद न हो हम  कैसे खुश रह सकते हैं । प्रेम विवाह एक रोग है जो प्रेम विवाह के कुछ समय उपरान्त युगल जोडे़ को लड़ने -झगड़ने पर मजबूर कर देता है । परिणाम स्वरूप अलगाव या तलाक । कुछ प्रेम विवाह तो महज आकर्षण में पड़ कर तय कर लिये जाते है ।प्रेम विवाह रोग तो है पर ऐसा भी नही की उसे दूर न किया जाये । हमारी संस्कृति को बचाने के लिये प्रत्येक परिवार को अपने बच्चों को समाज से जोड़ना होगा।हमारे रीती रिवाज हमारी परम्पराओं का सम्मान करना होगा ।ऐसा नहीं की सिर्फ प्रेम विवाह ही सफल या असफल होते हैं । सामाजिक रीती- रीवाजों से हुऐ विवाह भी सफल या असफल होते हैं । उनके पीछे दहेज जैसा कारण सबसे बडा कलंक है समाज के लिये ।विवाह करे ,विवाह एक पवित्र बंधन हैं ।कोई गुड्डे -गुडि़यों का खेल नही जब चाहा कर लिया जब जी चाहा तोड़ दिया ।प्रेम विवाह और समाजिक प्रेम विवाह में एक सबसे बडा अन्तर ये है कि जब आप प्रेम विवाह परिवार से विमुख होकर करते है तब आप अकेले होते है । आप का परिवार और समाज दोनो को आप से कोई लेना देना नही होता ।आप अपने सुख दुख में खुद को अकेला पाते है ।और हमेशा आपको कई बार अपमानजनक बातों का सामना भी करना पड़ता है ।ठीक इसके विपरीत समाजिक विवाह बंधन होता है ।जहां आप समाज परिवार का एक अंग होते हैं ।आप के सुख -दुख में  सब आप के साथ होते है ।अतः अंत में  बस इतना कहूँगी की विवाह की अनिवार्यता पवित्रता का ध्यान रखते हुऐ आज की पीढी़ चाहे प्रेम विवाह करे या समाजिक तौर से बंधन में बधे ।अपने बेहतर भविष्य कुल खानदान के महत्व को समझे ।पूर्ण सहमति से हंसी खुशी बंधन में बंधे ।क्योकि प्रेम पहले हो या बाद मे रिश्तें मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । लेकिन अपने प्रेम से पहले उस प्रेम के बारे में एक बार अवश्य सोचे ।जिसने आप को इतना बडा़ किया । प्रेम सिर्फ प्रेमी या प्रेमिका बनकर न करे ।हर नागरिक समाज की बुनियाद रखता है प्रत्येक व्यक्ति  अपनी संस्कृति के विकास  की सीढी़ है और " विकास की इस सीढी़ में ऐसे पद़ चिन्ह छोडे़ जिससे सभ्यता , संस्कृति और संस्कार का विकास  हो न कि हास ।"
            हिसार - हरियाणा से नीलम नारंग लिखती है कि मै  हिसार हरियाणा की रहने वाली हूँ । जहाँ आज भी प्रेम विवाह को मान्यता नही मिलती । प्रेम विवाह करने वाले को इज़्ज़त के नाम पर बली चढ़ा दिया जाता है। जबकि भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही प्रेम को मान्यता मिली है। चाहे राधा कृष्ण का प्रेम हो या नल दमयनती का । सदियाँ बीत जाने के बाद भी राधा कृष्ण के प्रेम को पवित्र माना जाता है । हर व्यक्त को प्यार करने मनपसंद जीवनसाथी चुनने का अधिकार है । समाज को इस तरह से हुए विवाह को मान्यता प्यार और सम्मान देना चाहिए ।
             पटना - बिहार से  अनीता मिश्रा 'सिद्धि' लिखती है कि प्रेम-विवाह हमारे संस्कृति का एक अँग है,पुरातन काल से इस विवाह को मान्यता मिली हैं। पर आज प्रेम कम और स्वार्थ ज्यादा हो गया है इस रिश्ते को लोग कलुषित कर रहें हैं।
अंतर -जातीय प्रेम विवाह में मुश्किलें है क्योंकि एक आपस में भिन्नता होती है विचारों की रीति-रिवाजों की ।
अभी भी कई घरों में इस रिश्ते को आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता है। मगर हमे अपने विचार बदलकर इसका स्वागत करना चाहिए। दहेज को जड़ से मिटाने के लिए भी प्रेम-विवाह जरुरी है।
          यू एस से सुदेश मोदगिल नूर लिखती है कि प्रेम शब्द केवल ढाई अक्षर का है लेकिन बहुत गहरा अर्थ है इसका, प्रेम में समर्पण होता है अगर प्रेम विवाह में भी समर्पण की भावना होगी तो बहुत सफल विवाह होगा लेकिन आजकल तो केवल देह आकर्षण को ही प्रेम कह दिया जाता है, चौथे दिन तलाक़ की तैयारी हो जाती है, प्रेम विवाह गुणों के आकर्षण में होगा तो ही सफल होगा, भारतीय संस्कृति मे प्रेम विवाह में बहुत सी चुनौतियाँ है, माता पिता के पुराने विचार, जाति का बंधन, धर्म का बंधन, लेकिन बदलते वक़्त के साथ लोगों की सोच बदल रही है, लड़कियां भी लड़कों के बराबर हर क्षेत्र में काम कर रही है, विवाह की उम्र भी बड़ गई है, दोनों अपने अनुभव के आधार पर विवाह करना चाहते है, माता पिता भी कुछ फलेकसीबल हो गये है, दहेज प्रथा से छुटकारा भी हो रहा है, लडकी क़ाबिल है तो वह ख़ुद ही उम्र भर का दहेज है, अंत मे यही कहना चाहूँगी “ गुणों से प्रेम करके विवाह करें और समर्पण का भाव रखे तभी विवाह सफल होगा”
             मुम्बई - महाराष्ट्र से चंद्रिका व्यास लिखती है कि प्रेम शब्द पवित्रता के साथ बंधा हुआ है !प्रेम विवाह कोई आज के लिए चर्चा का विषय नहीं है!पौराणिक काल में भी प्रेम विवाह का जिक्र है ! दुष्यंत शकुन्तला ,कृष्ण रुखमणि आदि आदि ...किंतु आज प्रेम की परिभाषा ही भिन्न है ! विपरित देह आकर्षण को ही प्रेम की संज्ञा दी जाती है जोकि क्षणिक होता है ! वैसे भी हमारी भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह महत्त्वपूर्ण संस्कार है !विवाह का जातीय और धर्म से गहरा संबंध है किंतु प्रेम तो जाति धर्म नहीं देखता और यहीं चुनौतियां माता पिता और प्रेमी युगल के मध्य आ खड़ी होती है !अत: परिस्थिति को देखते हुए दोनों पक्ष को समझदारी से फैसला लेना चाहिये ! आज समाज का दूषित वातावरण , नारी का दैहिक शोषण , पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण (लिव इन रिलेशनशिप ) इन सभी कारणों की वजह से ही प्रेम विवाह ने एक चुनौति का रुप अख्तियार कर लिया है ! यदि वैवाहिक जीवन सफल करना है तो पति पत्नी का आपस में तालमेल होना चाहिए ! यानि दोनों एक दूसरे की आदत ,स्वभाव,व्यवहार ,पसंद ना पसंद को स्वीकार करें और एक मत हों और उनकी कमजोरी की अवगणना कर आपस में सामन्जस्यता की भावना लेकर रहते हैं एवं एक दूसरे के प्रति अटूट विश्वास  हो तो अवश्य उनका वैवाहिक जीवन सुखद होता है फिर वह अरेंज हो या प्रेम विवाह !!!
             रतलाम - मध्यप्रदेश से इन्दु सिन्हा लिखती है कि पहली बात तो भारतीय सँस्कृति की बात करेंगे, दिशा ही बदल जाएगी ! भारतीय सँस्कृति अधिकांश दोहरी मानसिकता से भरी है ! उसमें भी अंतरजातीय प्रेम विवाह ,समाज के ठेकेदार ऐसे खड़े हो जाते है,मानो अब तक अंतरजातीय विवाह हुए ही नही ! झूठी शान,दिखावा,रूढ़ियों, में पहले भी राह आसान नही थी,अब भी नही ! लेकिन समाज जागरूक है,समझदार है,अंतरजातीय विवाह हो रहे है सफल भी है,! अपवाद सभी दूर है ! कही कही प्रेमी जोड़े भी नासमझी दिखाते है,बचकाने ओर बेवकूफी के निर्णय ले लेते है ! जिसके कारण तकलीफ में आ जाते है ! माता पिता भी साथ देते है ,! लेकिन झूठा अहम  आड़े आता है ! जो उनको भी दुःख देता है ! वर्तमान सरकार भी अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहन दे रही है ! "मन्दिर के दीये ओर मजार के दीये में फर्क नही,आँसू की कोई जाति नही,फूलों की खुशबू की कोई जाति नही,पानी की कोई जाति नही ,भेद हो तो बताओ ?
            रांची - झारखण्ड से संगीता सहाय लिखती है कि विवाह सिर्फ दो व्यक्तियों का नही बल्कि दो परिवारों का मेल होता है।आजकल प्रेम विवाह का चलन तेजी से बढ़ रहा है,और परिवार की सहमति भी मिल रही है।अंतर जातीय विवाह को तो परिवार और समाज सहमति दे देते हैं किन्तु अंतर धर्मीय विवाह को अभी भी सहमति मिलना बहुत कठिन है।अभी भी ऐसे जोड़ों को परिवार और समाज आसानी से नहीं अपनाता है।अंतर जातीय विवाह को भी सहमति तो मिलने लगी है किन्तु अलग परिवेश एवं संस्कृति में ढलने में कभी कभी लोगों को दिक्कत आती है और बहुत बार संभंध टूटने की नौबत आ जाती है।कोशिश ये होनी चाहिए कि पहले एक दूसरे को अच्छे से समझलें, पारिवारिके  परिवेश  और संस्कृति को जान लें तभी शादी का फैसला लें।वैसे अंतरजातीय विवाह का सबसे सकरात्मक पहलू है दहेज प्रथा में कमी आना।एक तरफ सजातीय विवाह में जहां दहेज दिन पर दिन बढ़ती जा रही है है वहां अंतर जातीय विवाह में दहेज प्रथा का वजूद नगण्य है।                     
           जबलपुर - मध्यप्रदेश से राजकुमारी रैकवार राज लिखती है कि भारतीय  संस्कृति एक  परम्परा  से  बँधी  है  !परम्परा  के  विपरीत  कोई  कार्य  करना  बहुत  बड़ी  चुनौती  का सामना  करना  पड़ता  है  यही कारण  है कि  भारतीय  संस्कृति  में  प्रेमविवाह चुनौती  नहीं  बड़ी  चुनौती  है !यदि  किसी  लड़के  का  प्रेम  किसी  मुस्लिम  लड़की से  हो  जाये  तो  उसे  मुस्लिम  रीति  रिवाज  से  विवाह  करना  जरूरी  हो जाता  है और  घर  परिवार छोड़ना  पड़  जाता है ! या  और  क्रिश्चन में  कोई लड़का प्रेम विवाह करे  तो किसी  क्रिशचन  लड़की  से   तो  ये  बड़ी चुनौती  हो  जाती  है  क्यों  कि  खान पान  अलग  अलग हो  जाता  है  जाति  धर्म  अलग अलग ! कुछ  दिन  तो  चलता  है  सब  ठीक  ठाक  बाद  में  अपने  अपने  धर्म  अपनी  परंपरा  पर  मन मुटाव  बढ़ने  लगता  है  माँ पिता छूट  जाते  हैं  या  वो  मान  सम्मान नहीं  मिलता  जो मिलना  चाहिए यही  कारण है कि मेल  जोल  न  होने के कारण  भारतीय  संस्कृति  में प्रेम विवाह  एक बड़ी  चुनौती  है     
       दिल्ली से अंजू खरबंदा लिखती है कि प्रेम भगवान का दिया सबसे अनमोल उपहार है और ये तो मन को जोड़ने का एक प्यारा सा बन्धन है । प्रेम विवाह आज की दें नहीं ये तो युगों युगों से चली आ रही एक रीत है । हीर राँझा, लैला मजनूँ , शिरी फरहाद जाने कितने अनगिनत नाम प्रेम से जुडे हुए हैं । आधुनिक युग में प्रेम विवाह की मान्यता को लेकर कुछ बदला है तो वह है इसका रुप । कुछ लोगो की कुत्सित भावना ने निश्चल प्रेम के रुप को बदल दिया है । अब तो मानो प्रेम का भी बाजारीकरण हो गया है । इसके पीछे गलती किसकी है! देश, समाज, लोग.... हर कोई अपनी विचार धारा के साथ जी रहा है । कहने में कुछ और करने में कुछ । विचारों की एकरूपता, बच्चों में सही निर्णय लेने की बोद्धिक क्षमता, घर का वातावरण, माता पिता की सूझ बूझ और पारिवारिक जीवन मूल्य ही समाज की नींव होते हैं । प्रेम विवाह को खुशी खुशी परिवार की रजामंदी मिल जाती है अगर बच्चे परिवार व माता पिता को विश्वास में साथ लेकर चलें ।

          परिचर्चा ने अन्त में स्पष्ट करना चाहता हूँ कि प्रेम कोई अपराध नहीं है परन्तु समाज और मां - पिता की दृष्टि में अपराध से कम भी नहीं है । 
       " मेरी दृष्टि में " समाज को शिक्षित करने की आवश्यकता है । शिक्षा ही समाज में जागरूक कर सकती है । कहीं कहीं तो शिक्षित परिवार भी फेल नंजर आते हैं । फिर भी इस समस्या का समाधान शिक्षा ही है ।
                                        - बीजेन्द्र जैमिनी
                                       ( आलेख व सम्पादन )




Comments

  1. बहुत सुंदर व देश के ताजा सामाजिक हालात पर अच्छी परिचर्चा है ।कई मित्रों ने अच्छा लिखा है ।बधाई

    ReplyDelete
  2. सुन्दर आलेखों की। उपयोगी श्रंखला

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया और उपयोगी विचार धाराओं का बहुत सुन्दर रूप लिए बेहतरीन परिचर्चा.. बधाई इस प्रस्तुतिकरण के लिए..।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?