सम्प्रति : अवकाश प्राप्त, मुख्य टिकट निरीक्षक(पूर्व मध्य रेल) अप्रैल 2020 अवकाश प्राप्ति के पश्चात् स्वतंत्र लेखन
लेखन की विधाएं :कविता ,कहानी ,लघुकथा ,लेख ,चिंतन , बाल कविता ,भेंटवार्ता ,डायरीनामा और बाल कहानी
विशेष अभिरुचि :कलाकृति (रेखाचित्र)
सम्पर्क : सिद्धेश् सदन , अवसर प्रकाशन, किड्स कार्मल स्कूल के बाएं , पोस्ट :बीएससी, द्वारिकापुरी रोड नंबर: 2 हनुमाननगर ,कंकड़बाग ,पटना 800026 - बिहार
प्रश्न न.1 - लघुकथा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है ? सिद्धेश्वर : लघुकथा के क्या मापदंड होने चाहिए, इसका उल्लेख करने वाले लघुकथाकार, स्वयं उन मापदंडों को, अमल में नहीं ला रहे हैं l जबकि लघुकथा के जो महत्वपूर्ण तत्व है, वे तत्व ही, किसी भी रचना को लघुकथा बनाती है l लघुकथा के लिए , शब्दों की संख्या की गिनती भले ना हो, लेकिन उसके आकार को गंभीरता से लेनी चाहिए l कोई निश्चित आकार की वाध्यता ना होने के बावजूद, अधिक लंबी लघुकथा पाठकों द्वारा अस्वीकार कर दी जाती है l और छोटे आकार वाली लघुकथा के अपेक्षा, उसकी प्रासंगिकता और मारक क्षमता भी कम हो जाती है ।लघुकथा जितनी छोटे आकार की होगी, वह उतनी ही प्रभावकारी साबित होती है l मेरे ख्याल से एक पेज से अधिक लंबी लघुकथा प्रभावकारी नहीं होती है । लघुकथाकारों को कालदोष से भी बचना चाहिए l जबकि आज मुख्यधारा के कई लघुकथाकार, अपनी लघुकथाओं को, काल दोष से नहीं बचा पा रहे हैं l जबकि यही लघुकथा का मुख्य तत्व है l अपने समीक्षात्मक आलेख में बातें बड़ी-बड़ी करेंगे, किंतु वे स्वयं उस पर अमल नहीं करतें l कविता की तरह लघुकथा में अनावश्यक शब्दों का उपयोग, लघुकथा को कमजोर कर देती है, और अनावश्यक विस्तार की देती है l लघुकथा के लिए उपयुक्त शीर्षक होना भी बहुत जरूरी है l
प्रश्न न.2 - समकालीन लघुकथा साहित्य में कोई पांच नाम बताइए ? जिनकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है ?
सिद्धेश्वर : यदि आप इन बातों की सहमति दें कि इन पांच नामों में, अपने को उससे अलग ना करूं, तो मैं अपने अतिरिक्त 4 नाम लेना चाहूंगा, पूर्वाग्रहित से बाहर होकर - 01 - डॉ कमल चोपड़ा , 02 - डॉ सतीशराज पुष्करणा , 03 - रामयतन यादव , 04- नरेंद्र कौर छाबड़ा और 05 - पांचवा मैं स्वयं यानि सिद्धेश्वर l
प्रश्न न.3 - लघुकथा की समीक्षा के कौन - कौन से मापदंड होने चाहिए ?
सिद्धेश्वर : लघुकथा का शीर्षक सटीक है या नहीं ! लघुकथा का आकार एक पन्ने से अधिक तो अनावश्यक रूप से नहीं है ! लघुकथा में काल दोष तो नहीं ? लघुकथा का अंत लेखक की टिप्पणी के साथ या विश्लेषण के साथ तो नहीं हुआ है ? इन सारे मापदंडों के आधार पर ही किसी लघुकथा को सार्थक या श्रेष्ठ कहा जा सकता है l दुर्भाग्य से आज के आलोचक और समीक्षक इन बातों का ध्यान रखकर, लघुकथा किस लेखक ने लिखा है, इस पर अधिक ध्यान देते हैं !
प्रश्न न.4 - लघुकथा साहित्य में सोशल मीडिया के कौन - कौन से प्लेटफार्म की बहुत ही महत्वपूर्ण है ?
सिद्धेश्वर ; बहुत सार्थक और सही सवाल किया है आपने ! दुर्भाग्य से आज अधिकांश सोशल मीडिया, सिर्फ अपने गुट के लेखकों को उछालने के पीछे परेशान हैं l कविता को लेकर तो कई सार्थक मंच है, लेकिन लघुकथा को लेकर, सोशल मीडिया वाले गंभीर नहीं दिख पड़ते l सोशल मीडिया के माध्यम से आप सार्थक और श्रम साध्य कार्य कर रहे हैं l लघुकथा के परिंदे और लघुकथा वृत, आरम्भ में सार्थक कार्य किया, किंतु बाद में अपने उद्देश्य से भटका हुआ महसूस हो रहा है l किसी भी मीडिया का एडमिन यदि खुद को लघुकथा का मसीहा बनाने के पीछे परेशान दिख पड़े, तो लघुकथा और लघुकथाकार का क्या होगा ? बलराम अग्रवाल का लघुकथा विश्वकोश जरूर कुछ सार्थक कार्य कर रहा है, क्योंकि यह खुला मंच है l किंतु कितना पारदर्शी है यह आने वाला वक्त बताएगा l कई वर्षों से सुकेश साहनी द्वारा चल रही लघुकथा डॉट कॉम को ही उदाहरण स्वरूप देख लीजिए l सोची समझी साजिश के तहत कुछ लघुकथाकारों को हाशिये पर ढकेल दिया गया है l पिछले 40 वर्ष से लगातार लघुकथा का सृजन करने वाला वरिष्ठ लघुकथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी का नाम खोज लीजिए l इस क्रम में मेरा नाम भी शायद ही मिले l मैं नाम लेना नहीं चाहूंगा आप खुद देख, लीजिये कई नाम बार-बार दोहराते हुए मिलेंगे l ये लोग सोशल मीडिया का बहुत गलत उपयोग कर रहे हैं l आने वाली पीढ़ी इन्हें कभी माफ नहीं करेंगे l वे जानते हैं कि इतिहास सच बोलता है तो, इतिहास झूठ भी बोलता है l सोशल मीडिया की ऐसी ही स्थिति देखकर, कोरोना काल के आरंभ से ही हमने, हर महीने लघुकथा सम्मेलं की शुरूआत किया, और नए- पुराने दोनों रचनाकारों को हमने खुला मंच दिया ! इतना ही नहीं, कई नए कवि को हमने लघुकथाकार भी बनाया l 14 अप्रैल 2020 को पहली बार सोशल मीडिया पर " हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन "का आयोजन कर हमने इतिहास रचा ! भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, फेसबुक के "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका "के पेज पर, यह सिलसिला आज भी जारी है l इसका आरंभ ही डॉ चित्रा मुद्गल जैसी लघुकथा लेखिका के आतिथ्य में हुआ l न खेमा, न किसी से परहेज ! पूरी तरह पारदर्शी ! लेकिन लघुकथा के उत्थान में, इस सार्थक कार्य का समर्थन कितने और किसने किया, यह विचारणीय प्रश्न है l कांता राय ने अपनी पत्रिका लघुकथा वृत में अवश्य इसका जिक्र करती रही हैं l जरूरत है कि कविता की तरह लघुकथा widha के लिए भी सोशल मीडिया पर व्यापक और सार्थक कार्य हो !
प्रश्न न.5 - आज के साहित्यिक परिवेश में लघुकथा की क्या स्थिति है ?
सिद्धेश्वर : साहित्यिक परिवेश में, मुक्तछंद की कविता तो बिल्कुल आम पाठकों से दूर होती जा रही है, और वह सिर्फ संपादकों, प्रकाशकों, समीक्षकों और आलोचकों के लिए ही रह गई है l ऐसी स्थिति में आम पाठकों की रुचि लघुकथा के प्रति लगातार बढ़ती जा रही है l, लघुकथा के विकाश के लिए यह अत्यंत सुखद स्थिति है l साहित्य की कोई भी विधा तभी टिक सकती है जब उसे आम पाठक अपनाएं l और यह बात आज की लघुकथा के लिए पूरी तरह कामयाब है l आज कविता से अधिक लघुकथा की पुस्तक पढ़ी जा रही है, साहित्य के बीच इसकी बेहतर स्थिति का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है ? बस अब जरूरत है, लघुकथा के मसीहा से ही लघुकथा को सुरक्षित करने की ! साहित्य का सर्वोत्तम विधा है लघुकथा !
प्रश्न न.6 - लघुकथा की वर्तमान स्थिति से क्या आप सतुष्ट हैं ?
सिद्धेश्वर: इस बात का जवाब ऊपर हमने दे दिया है ? संतुष्ट हूं मगर पूरी तरह नहीं l क्योंकि कविता की तरह लघुकथा में भी कुछ अराजक तत्व घुस आए हैं, jinse लघुकथा और लघुकथाकार, दोनों को बचाना बेहद जरूरी है और हमारे लिए चुनौतीपूर्ण उत्तरदायित्व भी l मनमाने ढंग से लघुकथा के इतिहास लिखने वालों के प्रति हमें सचेत रहने की जरूरत है l कमजोर लघुकथाओं को श्रेष्ठ की श्रेणी में लाने वाले संपादकों प्रकाशकों , एडमिन से भी हमें सावधान रहना होगा l जिनके पास दौलत है, वे अपने दौलत के बलबूते पर, लघुकथा का मसीहा बनने और बनाने के पीछे परेशान दिख रहे हैं ! लघुकथा को भी बाजार में उतार दिया गया है, और खरीद बिक्री खूब हो रही है ! लेकिन आने वाला समय बताएगा की लघुकथा ऐसे माहौल में कितनी खरी उतर पाती है !
प्रश्न न.7 - आप किस प्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
सिद्धेश्वर : 1978 में जब हमने साहित्यिक संस्था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद की स्थापना किया था, उस समय साहित्य का वातावरण बहुत ही उतार चढ़ाव पर था और नई प्रतिभाओं को उपेक्षित की जाती थी l युवा प्रतिभाओं को एक मंच देने के ख्याल सही हमने इस संस्था की स्थापना किया था, जो आज तक निरंतर जारी है और हम अपने उद्देश्य में एक हद तक सफल भी है l उस वक्त लघुकथा आंदोलन शीर्ष पर था, और डॉ सतीशराज पुष्करणा के नेतृत्व में भगवती प्रसाद द्विवेदी, रामयतन यादव, तस्नीम, डॉ कमल चोपड़ा, विक्रम सोनी, श्याम शर्मा, मिथिलेश कुमारी मिश्रा आदि तमाम लघुकथाकार अपनी सक्रिय भूमिका में थे l हमने उस वक्त बिहार के लघुकथाकारों की पहली पुस्तक "आदमीनामा " का संपादन भी किया था, मित्र तस्नीम के साथ मिलकर ! बिहार में पहली बार लघुकथा पर पोस्टर प्रदर्शनी भी हमने 1978 में लगाया था ! लघुकथा की पहली हस्तलिखित पत्रिका " लघुकथा संसार " का भी हमने संपादन किया था ! लघुकथा पाठ का पहली बार आयोजन भी हमारी संस्था के माध्यम से पटना मैं हुआ था, आगे चलकर पूरे देश भर में लघुकथा पाठ आरंभ हुआ ! ऑनलाइन लघुकथा पाठ का पहला आयोजन भी हमने विश्व में पहली बार अपने मंच अपने संस्था एवं मंच अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के माध्यम से फेसबुक पेज पर किया था, जिस के मुख्य अतिथि थे चित्रा मुद्गल और अध्यक्षता किया था डॉ कमल चोपड़ा नेl इन बातों को, पैसों के बल पर लघुकथा का झंडा गाड़ने वाले लोगों ने हाशिये पर ढकेल दिया l हलाकि इन बातों को लघुकथा आंदोलन के जनक डॉ सतीशराज पुष्करणा भैया ने अपने आलेख में जिक्र भी किया है l उन्होंने कहा था कि आप अपना काम इमानदारी से करते रहिए इतिहास आपको कदापि अनदेखा नहीं करेंगा, अपने पृष्ठों में समेट लेगा l हमारे इस प्रयास में यदि किसी ने सहयोग किया तो एकमात्र वे ही थे l लघुकथा के विकास के इस राह पर आज उनके गुजर जाने पर काफी अकेलापन का अनुभव कर रहा हूं l
प्रश्न न.8 - आप के लेखन में , आपके परिवार की भूमिका क्या है ?
सिद्धेश्वर : आकाश में उड़ान भर रहे पतंग को जो हवा का विरोध करना सहना पड़ता है, हमारे परिवार के सदस्यों के द्वारा भी ऐसा ही हुआ है ! एकमात्र सहायमें सहयोगी बनी है हमारी पत्नी बीना गुप्ता, जिनके समय को मैं अक्सर चुराता रहा हूं l हमारे परिवार में एक मात्र साहित्यिक अभिरुचि के हमारे बड़े भाई भी रहें, तो वे भी अभिमान फिल्म की तरह हमेशा हमारे विरोध में खड़े रहें l लघुकथा की राह में आगे बढ़ने और चलने की दिशा में मैं निहत्था अकेला ही रहा हूं, साथ और सहयोगी रहे हैं तो वे हमारे साहित्यिक मित्र, परिवार के सदस्य नहीं !
प्रश्न न.9 - आप की आजीविका में , आपके लेखन की क्या स्थिति है ?
सिद्धेश्वर: लेखन मेरे लिए जीविका का साधन कभी नहीं रहा, और आज के समय में अक्सर ऐसा हो भी नहीं सकता l इसलिए मेरी जीविका का साधन रहा, रेलवे में प्राप्त मेरी सरकारी नौकरी ! यह सच है कि नौकरी की व्यस्तता में मैं लेखक के प्रति पूरी तरह ईमानदार नहीं रह सका ! लेकिन मैं धनाढ्य परिवार का नहीं ! यदि नौकरी नहीं होती तो, जितनी लघुकथाऐं , कविताएं, कहानियां आदि जो मैं लिख सका हूं, वह कदापि नहीं लिख पाता l घर परिवार के जुगाड़ में ही समय तनावग्रस्त रहता l कुछ लोगों को, लेखन के लिए समय का बहाना चाहिए l मैंने नौकरी करते हुए इसी व्यस्तता में समय निकालता रहा और खूब लिखा-पढ़ा ! साहित्य सृजन के प्रति तनी अभिरुचि रही कि मैं पढ़ाई में सामान्य रहा l हां पिछले वर्ष, रेलवे की नौकरी से सेवानिवृत्त हुआ, तब अधिक समय मिला और अब मैं साहित्य के लिए पूरी तरह समर्पित हो गया हूं l लेकिन इस समर्पण के पीछे, सामाजिक सेवा भी रही है l मेरा मानना है कि अपने लिए तो सभी लोग कुछ न कुछ करते हैं l जो दूसरों के लिए भी कुछ करें, तभी जीवन सार्थक होता है l सबके साथ, सबका विकास, हमारा उद्देश्य रहा है l और इसी उद्देश्य के तहत, मैं स्वयं भी लिखता-पढ़ता हूं और दूसरों को भी अध्ययन और सृजन के लिए प्रेरित करता हूं "अपने मित्रों को भी आगे बढ़ने का रास्ता देता हूं, रास्ता रोकता तो कदापि नहीं !
प्रश्न न.10 - आपकी दृष्टि में लघुकथा का भविष्य कैसा होगा ?
सिद्धेश्वर : लघुकथा का भविष्य कल भी अच्छा था, आज भी अच्छा है और कल भी अच्छा रहेगा l बल्कि आने वाले समय में साहित्य की सबसे अधिक पठनीय विधा लघुकथा ही रहेगी ! क्योंकि लघुकथा आज, पहले से और बेहतर लिखी जा रही है और आने वाले समय में इसकी प्रासंगिकता और बढ़ जाएगी ! लंबी लंबी कहानियां और उपन्यास के दिन अब लद गए हैं, और उसका स्थान छोटी छोटी कविताएं और लघुकथाएं ले रही है l गीत, गजल को छोड़कर सपाटबयानी कविताओं से आम पाठक भाग रहे हैं ! ऐसी स्थिति में लघुकथा अपने आप में संपूर्ण और पठनिय होती जा रही हैं l टीवी, मोबाइल से जुड़े आम लोगों को अब छोटी-छोटी साहित्यिक रचनाओं के प्रति रुचि जाग रही है, और लगाव बढ़ता जा रहा है l यही कारण है कि हाशिये में लघुकथाओं को प्रकाशित करने वाली पत्र -पर पत्रिकाएं भी अब लघुकथा पर विशेषांक निकाल रही है और लघुकथा को प्रमुखता से प्रकाशित कर रही है l लघुकथा भी, कविता की तरह आम पाठकों में अपनी लोकप्रियता न खो दे, इसकी जिम्मेदारी आज के संपादक प्रकाशक पर अधिक है, जो लघुकथा के अपेक्षा लघुकथाकार के नाम और पद को अधिक वरीयता दे रहे हैं, गुटबाजी और भाई भतीजावाद कर रहे हैं l लघुकथा को इन सब से बचाना होगा !
प्रश्न न.11 - लघुकथा साहित्य से आपको क्या प्राप्त हुआ है ?
सिद्धेश्वर : लघुकथा के माध्यम से समाज, परिवार, जीवन, हमारे परिवेश की विसंगतियों को निकट से महसूस करने का अवसर मिला ! अपने आप को समझने मैं सफलता मिली ! लघुकथा के सृजन के प्रति जागरूकता बढ़ी ! यदि लघुकथा विधा नहीं होती तो शायद मैं इतना कुछ नहीं लिख -पढ़ नहीं पाता, जो अब तक लिखा और पढ़ा है l लघुकथा ने हमारी एक नई पहचान दी है साहित्य जगत में, इस बात को मैं जीवन भर भूल नहीं सकता l क्योंकि कथा और कविता के क्षेत्र में साहित्य के असंख्य रचनाकार जुटे हुए हैं, जबकि लघुकथा विधा के प्रति समर्पित रचनाकारों की संख्या उसके अपेक्षा कम है l हमें इस बात से संतुष्टि है कि लघुकथा के क्षेत्र में हमारी एक पहचान बनी है जैसा कि लोग कहते हैंl किंतु अभी लघुकथा के लिए ढेर सारे काम करने बाकी है l और यह सिलसिला जीवन भर चलता ही रहेगा l लघुकथा विधा के माध्यम से जितने अधिक रचनाकारों से जुड़ सका हूं मैं, शायद नहीं जुड़ पाता l इतने ढेर सारे पाठकों का संपर्क हमसे नहीं हो पाता, और उनसे इतना प्यार और सम्मान मुझे नहीं मिल पाता है l मैं सचमुच लघुकथा विधा का ऋणी हूं और रहूंगा l
प्रश्न न. 12 - आप नए लघुकथाकारों को क्या संदेश देना चाहेंगे ?
सिद्धेश्वर : मैं अभी स्वयं इस दिशा में और आगे बढ़ने के लिए अध्ययन और श्रम कर रहा हूं l फिर भी अपने चालीस साल के अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि किसी भी विधा में सृजन के पहले उस विधा की अच्छी रचनाओं का अध्ययन अवश्य करना चाहिए, खूब करना चाहिए, और लगातार उस विधा के प्रति अभ्यास भी करते रहना चाहिए l क्योकि लगातार अध्ययन और अभ्यास का सिलसिला ही हमें सफल बनाता है, श्रेष्ठ सृजन में आगे बढ़ाता है l झूठी वाहवाही, और मान सम्मान, हमारे विवेक को भोथर कर देता है और सृजनात्मक शक्ति को कमजोर कर देता l आलोचकों समीक्षकों और संपादकों से अधिक आम पाठकों पर विश्वास रखना चाहिए और एक बार स्वयं की रचना का स्वयं समीक्षा भी करनी चाहिए l खुद की रचना के लिए खुद से बेहतर पाठक और कौन हो सकता है, बशर्ते कि हम खुद में दूसरे पाठक की छवि देख सकें l ऊंची उड़ान भरने के लिए सीढ़ियों का सहारा लेना चाहिए, लंबी छलांग लगाने या वैशाखियों के सहारे आगे बढ़ने का कदापि नहीं l शुद्ध रचना लिखना बेहतर है, किंतु उससे ज्यादा बेहतर है श्रेष्ठ सृजन करना ! क्योंकि कमजोर रचनाओं की भाषा सुधार कर भी हम उस रचना को भाषा के स्तर पर बेहतर बना सकते हैं लेकिन, विषय वस्तु के हिसाब से श्रेष्ठ नहीं बना सकते l एक श्रेष्ठ रचना के लिए दोनों ही जरूरी है lगलत लोग और गलत संगत में कदापि ना रहे l आगे बढ़ने के लिए अपनी सृजनात्मक पर विश्वास रखें l क्योंकि साहित्य का सर्वोत्तम विधा है लघुकथा l
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