आप उन सब से कुछ अलग दिख रहे हैं : सिद्धेश्वर

📀 पत्रांक :2130/2021           दिनांक : 11/11/2021

  प्रिय भाई जैमिनी जी,,,,,
  हार्दिक आभार और यथा योग्य अभिवादन !
                  आपका हमारा संबंध वर्षों पुराना है ! लगभग 30 वर्ष पुराना ! जब मैं " अवसर " पत्रिका निकाला करता था! और आपसे अक्सर पत्र व्यवहार भी होता था l
          कई बार आपने हमें पुरस्कार और सम्मान पत्र भी भेजा था! हम आपके इस आत्मीयता  के प्रति सदा कृतज्ञ रहे हैं l
          आप निष्पक्ष और निर्भीक भाव से सिर्फ लघुकथा नहीं बल्कि पूरे साहित्य के लिए, आरंभ से ही समर्पित और जुझारू प्रवृत्ति के रहे हैं l  इसलिए भी आप हमारे स्मरण सदा बने रहते हैं l
           लेकिन इधर आप लघुकथा के लिए जो काम कर रहे हैं,  अविस्मरणीय है l  आपने  देश के प्रत्येक प्रांत से,  चुनिंदा लघुकथाकारों की  लघुकथाएं प्रस्तुत किया है l  वह काबिले तारीफ है .........।
           लघुकथा के कुछ मठाधीश लोग,  जो अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखवाना चाहते हैं,लघुकथा के इतिहास में,  उनकी लघुकथाएं कितनी कमजोर है, वह  कौन नहीं जानता ? लेकिन आज के समय में,  कुछ लोग गुट और समूह बनाकर,  अपने ही कुछ लोगों को उछालने  में अपना समय बर्बाद कर रहे हैं l  आप इन लोगों से कुछ अलग दिखते हैं l  शायद इसलिए आपकी नजर सब पर है ............  । जिस घेराबंदी में, लघुकथा  का दम घुट रहा है l
            कुछ लोगों का नाम लेकर मैं  विवाद पैदा करना नहीं चाहता l  लेकिन उन सभी लोगों को आप भी जानते हैं l  लघुकथा के विकास में किसकी कितनी उपादेयता और हाथ है,  इसे कितने दिनों तक दबाया जा सकता है ?
            लोग आगे बढ़ने के लिए, अपने सामने, अपनी लकीर  लंबा नहीं करना चाहते हैं, बल्कि बगल वाली लकीर मिटा देना चाहते हैं l
             एक दूसरे को आगे ढकेलने की, और लघुकथा का मसीहा घोषित करने की,  बेचैनी इतनी बढ़ गई है कि, लोग लघुकथा के  महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों  को अनदेखा करने लगे हैं l  ऐसे में श्रेष्ठ लघुकथाओं को सामने कैसे रखा जा सकता है ?
             आज जिनके पास पैसा है, प्रेस है और अपना प्रकाशन है,  पैरवी है, वे भले कमजोर या श्रेष्ठ  लघुकथाएं लिख रहे हों,  लेकिन उनकी नजर उन लघुकथाकारों के  ऊपर.खाश है,  जो एक दूसरे की पीठ थपथपाने में अपना समय गवां रहे हैं l  उनकी चिंता और श्रम श्रेष्ठ  लघुकथाओं को तलाश कर सामने लाना बिल्कुल नहीं है l
             ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखना ही,  लघुकथा के प्रति न्याय और साहित्य के प्रति ईमानदारी होगी l  वरना समय अच्छा, बुरा किसी भी चीजों को भुला नहीं पाताl  और इतिहास भी उसे कभी माफ नहीं करता l
           आप उन सब से कुछ अलग दिख रहे हैं l  इसलिए इतना कुछ कहने का साहस जुटा पाया हूं आपसे l  मुझे विश्वास है आप लघुकथा के इतिहास के प्रति तटस्थ  रहेंगे, ईमानदार रहेंगे और  समय सापेक्ष भी l
                                    आपका ही
                                       सिद्धेश्वर
          अध्यक्ष :भारतीय युवा साहित्यकार परिषद - पटना

                    ( WhatsApp से साभार )

http://bijendergemini.blogspot.com/2021/08/blog-post_29.html

                           

Comments

  1. अक्षरशः सत्य टिप्पणी की गयी है,धनवान व्यक्ति धन से इस कराल कलिकाल में सब कुछ खरीदकर ही महान बनना चाहता है, कमजोर कितना भी गुणवान हो,धनाभाव में वह आगे नही बढ़ पाता और मन मसोस कर ही भाग्य को कोसता है,कारण कि ईश्वर ने ही उसे बेचारा जो बना दिया है।।

    ReplyDelete
  2. मै सिददेशवर जी के कथन से पूर्णतया सहमत हूँ सहमत तो बहुत से लोग होगे शायद लिख ना पा रहे हो आपने स्पष्ट लिख दिया

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?