नवोदित रचनाकारों के लिए लघुकथा गोष्ठी की प्रथम पाठशाला

      पटना -  " संवादहीनता की स्थिति हमारे उग्र विचारों को खुली हवा नहीं दे पाती  और हमारा लेखन खुली हवा में सांस लेने के लिए व्यग्र हो उठता  है l साहित्यिक गोष्ठियों में नए-पुराने हर तरह के रचनाकार शामिल होते हैं, सिर्फ एक विचारधारा के लोग नहीं जुटते l पक्ष - विपक्ष में कई बातें नई सोच को एक नई राह देने में समर्थ हो जाती हैंl "
     भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका " के पेज पर  ऑनलाइन आयोजित " हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किये !
       " सृजनात्मक लेखन में लघुकथा गोष्ठी की  उपादेयता " विषय पर विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि -" जिस प्रकार गुरु हमें अज्ञान के बंधन से मुक्त करवाकर ज्ञान के मार्ग पर ले जाता है, ठीक उसी प्रकार श्रेष्ठ साहित्य हमें समाज की कुरीतियों से निकालकर प्रगति और सद्भाव के मार्ग पर ले जाता है, जो साहित्यिक गोष्ठियों के बगैर संभव नहीं l खासकर  नवोदित लघुकथाकारों  के लिए ऐसी लघुकथा गोष्ठी,  लघुकथा की प्रथम पाठशाला होती है l"
        संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ लघुकथाकार संतोष सुपेकर (उज्जैन) ने कहा कि -"  छोटी-छोटी ऐसी लघुकथा गोष्ठियों  के माध्यम से ही  हमने कई प्रयोगात्मक लघुकथाएं लिखी हैं l  ढेर सारे नए लघुकथाकार  ऐसी लघुकथा गोष्ठियों की ही देन हैं l  इस बात के लिए पिछले दो साल से लगातार ऑनलाइन  सिद्धेश्वर द्वारा संचालित " हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन "  को उदाहरण के रूप में रखा जा सकता है, जिसके माध्यम से कई  युवा रचनाकारों ने लघुकथा के सृजन में  सार्थक भूमिका का निर्वाह किया है! लघुकथा  गोष्ठी की उपादेयता को इतिहास कभी अनदेखा नहीं कर सकता l"
     प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र ने कहा कि -"  सिद्धेश्वर जी इन गोष्ठियों  के माध्यम से लघुकथा के सृजन के लिए हमें प्रेरित करते रहे हैं l  देश भर में आयोजित ढेर सारी लघुकथा गोष्ठियों ने  लघुकथा को देश-विदेश तक पहुंचाने में काफी मदद की है, क्योंकि बढ़ती हुई व्यस्तताओं के बीच, ऐसी  साहित्यिक गोष्ठियां  हमें साहित्य से जोड़ कर रखती हैं और हमारी विचारधारा को परिष्कृत भी करती रहती हैं l  विचारों का आदान-प्रदान होने से लघुकथा के सृजनात्मक विकास में मदद मिलती है, और इससे समाज को भी लाभ मिलता है l  साहित्य की अन्य  विधाओं की गोष्ठियों की  भी यही  उपादेयता है l "
      इस ऑनलाइन लघुकथा सम्मेलन में  डॉ. कमल चोपड़ा( नई दिल्ली ) ने "इतनी दूर "/ भगवती प्रसाद द्विवेदी ने " एक और बलात्कार "/ संतोष सुपेकर ( उज्जैन) ने " लाइक माइंडेड"/ सिद्धेश्वर एवं नीतू कुमारी सुदीप्ति ने " बुढ़ापे की लाठी "/ डॉ. शरद नारायण खरे (म. प्र. ) ने " कपूत "/ पुष्प रंजन (सुपौल ) ने " बिन काम की रोटी " /रामनारायण यादव (सुपौल ) ने -"  सुयोग्य उम्मीदवार "/ नम्रता कुमारी ने-" मानस पुत्र"/ जवाहरलाल सिंह ( जमशेदपुर ) ने "संस्कारी बहू "/ मीना कुमारी परिहार ने " अंगूठी में नगीना "/ डॉ. योगेंद्र नाथ शुक्ल ने " जुड़ाव "/  रशीद गौरी (राज.) ने -" बोझ "/ प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र ने -" निर्धारण "/  गजानन पांडेय (हैदराबाद ) ने -" इंतजार "/ डॉ. रमेश चंद्र ने -" आश्वासनों की दुकान "/ राज प्रिया रानी ने "औकात"  शीर्षक से समकालीन लघुकथाओं का पाठ किया l  इसके अतिरिक्त कार्यक्रम में कालजयी लघुकथा के अंतर्गत  प्रेमचंद की " देवी " और कमलेश्वर की " बुढ़ापे की लाठी " लघुकथा  का वीडियो भी प्रस्तुत किया गया l
       लगभग दो घंटे तक चले इस ऑनलाइन लघुकथा सम्मेलन में  खुशबू मिश्रा, उमाकांत भट्ट, नम्रता,  मधुबाला कुमारी,  दुर्गेश मोहन. डॉ सुनील कुमार उपाध्याय, डॉ. राम नारायण यादव, संजय रॉय, डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना, अनिरुद्ध झा दिवाकर, बीना गुप्ता, स्वास्तिका,  पूनम कटरियार, अभिषेक श्रीवास्तव आदि की भी भागीदारी रही !

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