विश्व हिन्दी दिवस पर फेसबुक कवि सम्मेलन

जैमिनी अकादमी द्वारा ब्लॉग पर  विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर फेसबुक कवि सम्मेलन का आयोजन रखा है । जिस का विषय " मन की आँखें " रखा गया है । 
विधिवत रूप से फेसबुक कवि सम्मेलन शुरू हुआ । जिसमें आई कविताओं में से विषय अनुकूल कविताओं को सम्मानित किया जा रहा है । जो इस प्रकार हैं : - 
              मन की आँखें 
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बोल जुबान से निकलें जब भी,
मन की आँखें मंजर देख लिया करती हैं,
इशारा इनका समझो तो,
कई विपदाओं से हम बच सकते हैं,
तन पर लगी आँखों का अपना दायरा है,
पर मन की आँखें सीमित कहां रहती हैं,
यहां से वहां इस पार से उस पार का,
सब तुरंत देखकर भांप लेती हैं,
इनसे भला कौन बच पाया है,
जो भी उलझा है इन्हीं में फंसा है,
शेष तो सारा ही छलावा लगता है,
इनकी सीमा निर्धारित कहां होती है,
ये सारा भार खुमार है सांसारिकता का,
मन की आँखें खुली तो जैसे,
सब भ्रम है यहां पर यहीं का।
                           - नरेश सिंह नयाल
                           देहरादून - उत्तराखंड
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             मन की आंखें खोलिये
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मन की आंखें खोलिये,
मिटा दो जगत के पाप,
परहित के काम खातिर
मन ही मन करो जाप।

मन की आंखें कह रही,
समझ बूझ से लो काम,
धर्म कर्म के काम करो,
होगा जन जन में नाम।

मन की आंखों ने कहा,
कुछ नहीं जाएगा साथ,
कर ले सेवा गरीब की,
बढ़ा ले नेक निज हाथ।

मन की आंखें खोलकर,
जन-जन को दो पैगाम,
धरती पर ही स्वर्ग बसे,
सारे मिले धरा पर धाम।

मन की आंखें सच कहे,
झूठा  होता यह संसार,
आपस में सहयोग करो,
बढ़ जाएगा जन में प्यार।

मन की आंखें यूं देखती,
बढ़ा है भाई-भाई में बैर,
आपसी कलह मिटा दो,
वरना नहीं है जग खैर।।
                      - डा.होशियार सिंह यादव
                            महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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               मन की आँखे खोल
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पग पग इस संसार में ,राहें हों सब गोल।
चलना संभल कर सभी, मन की आंखें खोल।।

दिल में खिलता प्यार जब, अपने बनते गैर।
ऐसे रहना साथ में ,मिट जाए सब बैर ।।
चलती रहती सांस ये, होती है अनमोल।
चलना संभल कर सभी, मन की आंखें खोल।।

सुखी रहें इंसान वह, रखता जब वह धीर।
कदमों में संसार हो ,सबसे बड़ा अमीर ।
पाये सबका साथ वो, मीठी जब हो बोल।
चलना संभल कर सभी, मन की आंखें खोल ।।

हाथों में इंसान के, होता उसका भाग्य ।
अथक निरंतर कर्म से, पाता वह सौभाग्य।।
चलता रहता वक्त यह, समझो इसका मोल।
चलना संभल कर सभी, मन की आंखें खोल।।
                             - रंजना वर्मा उन्मुक्त 
                                 रांची - झारखंड
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               मन
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मेरे ,
मार्ग द्रष्टा ,
बतला मुझे ,
यक्ष प्रश्न सन्मुख खड़ा है
साथ में संशय बड़ा है
उहपोह में मन पड़ा है,
हो समर्पित ,
बह जाऊँ ,
तुम्हारी धार में ।
कर निम्मजित स्वयं को
नदी के प्रवाह में ।

या फिर ,
तट पर ,
होकर तटस्थ ,
देखूं प्रवाह को
रह कर 
अस्पर्शित,
असंलग्नित,
' वट वृक्ष ' की
छांव में ।
                    - कनक हरलालका
                        धूबरी - असम
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            मन की आंखें करों
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लुट जाते हैं कुछ दीवाने-
खुद दिल के हाथों,
जालिम हो तुम!
मुख से निकली री मीठी बातों!

खोले रखो अरे मस्तानों!
सुंदर 'मन की आँखें',
उड़ो नेह-नभ में प्रफुलित हो-
खोलो रोमिल पांखें.

 होश संभालो जीवन में जब-
दिल के मालिक बन बैठो,
चलते रहो सुपथ पर निशदिन-
ज्ञान सरोवर में पैठो.

ठोकर लगे जब- 
संभलना भी सीखो,
खता जो कोई हो-
नतमस्तक दीखो.

तन को संभालो-
संयम धरो,
मानस में तोलो-
फिर,मन की करो.

मन की आँखों से -
देखे जो सबको,
जीवन को जाने-
पहचाने रब को. 

नियमों से चलती है-
जीवन की नौका,
तट पर पहुंचने का-
छोड़ो न मौका.

मचलना,फिसलना-
दिल की है फितरत,
धोखा जो खाए-
दिखा देती जन्नत.

मिटे दिल के हाथों-
समझ को परे कर,
कितने ही सरताज-
बुद्धि को खोकर.

दिल एक दरिया है-
बहना जरूरी,
जलज भावना के -
खिलते हैं नूरी .

महकाएं जग को-
कर्मों से अपने,
जमीं पर धरें पग-
सजें मीठे सपने.
                - डा.अंजु लता सिंह
                       दिल्ली
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                मन की आँखें चुपके चुपके
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मन की आँखें चुपके चुपके,
बुन लेती हैं कई सपन।
मन की आँखें सहज रूप से
पहचाने हैं अपनापन।।
मन की आँखें हैं अदृश्य,
पर सब कुछ इन्हें दिखाई दे।
क्षमता इनकी अद्भुत भाई,
सब कुछ इन्हें सुनाई दे।।
मन की आँखें तुला हैं ऐसी,
पल भर में जो लेतीं तोल।
कभी नहीं धोखा वह खाते,
जो इनको रखते हैं खोल।।
हर पल हर क्षण रहें सक्रिय,
कभी नहीं करतीं आराम।
मन की आँखों का आजीवन,
कार्य रहे चलता अविराम।।
                 -  डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल'
                       धामपुर -  उत्तर प्रदेश
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                   मन की आंखें 
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मन की आंखें अब भी झांक रही है
स्कूल की कक्षाओं में ।
कोई शिक्षिका पढ़ा रही है
हाथ में चाॅक लिए कुछ समझा रही है ।
घंटी बजी छुट्टी हुई
मैंने सोचा पूरी हो गई अब पढ़ाई ।

ज्ञान मिला कभी गुणे अभी
बुद्धि मिली कभी
विवेक जागा अभी ।

गुरू ने जो पाठ गंभीरता से हमें पढ़ाया
वो उस वक्त कब समझ में आया ।
जब गुरू की महिमा समझ पड़ी 
आदर से गुरू समक्ष
सिर बार - बार नवाया ।
                      - मीरा जगनानी
                  अहमदाबाद - गुजरात
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           मन की आँखे ने यह जाना है
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तुम हो तो मैं हूँ।
तुम नहीं तो कुछ भी नहीं।
मन की आँखों ने यह जाना है

   तुम हो तो पूजा है,वंदना है।
तुमसे ही जीवन उपवन है।

  तुम हो तो लेखन है।
वरना मैं अनपढ़,अनगढ़,
तुमसे ही तो जीवन में आल्हाद है।

   तुम हो तो सारे रंग ईद्रधनुषी है,
वरना तो जीवन सूना और कोरा कागज है।

   तुम से ही जीवन,तुम्हीं से ईहलौक है।
तुम हो तो जीवन अध्यात्मिक और पावन है।

तुम...बस!तुम... तुम्हीं तुम...
बाकी सारे रिश्ते सिफर और सपाट है।

  तुम जीवनदायिनी प्राण वायु,
तुम से हरा भरा संसार है।

सोचता हूँ, तुम न होती तो
यह जीवन कैसा होता..
शायद!जीवन होता ही नहीं।

तुम हो तो सबकुछ है।
और न कुछ भी चाहिये।
बस!तुम्हारा साथ,स्नेह
और तुम्हारी पवित्रता की जरुरत है।

तुम हो तो मैं हूँ...।
मन की आँखों ने यह जाना है।
                     - महेश राजा
               महासमुंद - छत्तीसगढ़
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                झाँक ले मन के भीतर 
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मन की आँखें खोल मनुआ
झाँक ले मन के भीतर 
तब बाहर की दुनिया 
लगेगी बेमानी
भैतिक दुनिया में कुछ नहीं रखा
सब कुछ बनावटी , दिखावा है 
इच्छाओं के रेगिस्तान में
प्यास कब किसी की बुझी है?
 धूप से चमकती रेत 
लगती बड़ी चमकीली है
माया महाठगिनी की मृगमरीचिका भी
इंद्रियों को मोह जाल में 
  जन -मन को फँसाती
भीतर की दुनिया ही 
  दिव्य अलौकिक होती  है
 ईश मिलन है कराती 
चौरासी योनियों के फेरों से 
मुक्ति कराती 
 सूर , मीरा , कबीर , तुलसी सम 
भव सागर पार लगाती है।
                              - डॉ मंजु गुप्ता 
                               मुंबई - महाराष्ट्र
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            सबके मन की आँखें 
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आँखें हमारी 
देखती हैं केवल 
उस सीमा तक 
जहाँ तक दृष्टि जा पाती है 
दिखता है बस 
बाहरी सौंदर्य हर वस्तु का 
जो कभी स्थायी नहीं होता 
खुली आँखों से 
भौतिकता में 
फँसा/उलझा रहता है मन 
वशीभूत  हुआ जाता है 
चित्त की उन प्रवृत्तियों में 
जो निश्चित ही 
कुमार्ग की ओर ले जाती हैं,
बहुत आवश्यक है 
मन की आँखों का 
हर पल खुले रहना 
वही तो बताती हैं 
क्षणभंगुरता  जीवन की 
सत्य-असत्य, धर्म-अधर्म 
जगाए रखती है विवेक,
इसी की शक्ति से 
आज धरती पर बची हुई है 
मानवता, परोपकार, नैतिकता,
करना प्रार्थना 
सब अपने-अपने ईश्वर से 
खुली रहें सदा 
सबके मन की आँखें 
ताकि मिट जाए धरती से 
अन्याय/अनाचार/अधर्म/असत्य 
लालच/ईर्ष्या/वासना/आसक्ति 
तभी बची रहेगी 
उम्मीदों का आँचल थामे हुए 
प्रेम उगाती हुई 
यह धरती।
                  - डा० भारती वर्मा बौड़ाई
                       देहरादून - उत्तराखंड
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                   हम गाँव वाले
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फुरसत मिले तो मन की आंखों से हमें दखो प्रिये------
इन पत्थरों के गाँव में हम मोम होते हैं!
हम से हरी हैं पत्तियाँ-
कलियों में कोमलता! 
भौंरों की गुन-गुन और-
तितली की भी चंचलता!! 
ये खेत और खलिहान-
धर्म और कर्म को अवदान हैं! 
सादगी-सौन्दर्य-शिष्टाचार के-
प्रतिमान हैं!! 
    वक्त पड़ने पर बता देंगे-
    तुम्हें ऐ--आसमां! 
    शोर्य अपना सूर्य सा-
    दिल सोम होते हैं!! 
इन पत्थरों के गाँव में हम मोम होते हैं!
    सम्पद-विपद में एक सा रहना-
    व सहना जीत-हार! 
    अपनों से पहले दूसरों की-
    कश्तियाँ करते हैं पार! 
 कृषक होकर अन्न के-
 भण्डार भरते हैं, 
बलिदान सीमाओं पे देकर-
 भी न मरते हैं! 
समर में संधान करते हैं सिरों का शत्रु के, 
हाँ, यज्ञ हो यदि प्रेम का तो होम होते हैं! 
इन पत्थरों के गाँव में हम मोम होते हैं!
    वसुधा है घर परिवार परिजन-
    हुए जड़-चेतन सभी! 
    भूले भुला न पाएगा मन-
    सजन संवेदन कभी! 
    श्रमशीलता से सिन्धु मथ दें-
    सेतु तक बन्धन करें!
    गिरिराज को नापें  व काला-
   कोयला कंचन करें!! 
सभ्यताओं के जनक-
संस्कार के ऋषि-आर्ष हम, 
श्रीराम हम-श्रीकृष्ण हम- हरिओ३म होते हैं! 
इन पत्थरों के गाँव में हम मोम होते हैं! 
    जितने पुरातन हैं सतत्-
   उतने ही अर्वाचीन हैं! 
   अलि की समझ से सुस्त लेकिन-
   हम सृजन तल्लीन हैं!! 
   बारहखड़ी की लड़ी से-
   भगवान गढ़ लेते हम, 
   मौन रह कर ज्ञान व विज्ञान-
   पढ़ लेते हैं हम!! 
ये जान कर माँ भारती के सफलतम श्रीमन्त हम, 
अभिभूत मन  है और पुलकित रोम होते हैं!! 
इन पत्थरों के गाँव में हम मोम होते हैं! 
फुरसत मिले तो मन की आंखों से हमें देखो प्रिये--
इन पत्थरों के गाँव में हम मोम होते हैं!! 
                            - आचार्य चिर आनन्द
                            नाहन - हिमाचल प्रदेश
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            मन को अयोध्या सा बना कर
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दर - दर क्यों भटक रहा है।
मंदिर मस्जिद क्यों घुम रहा है।
मन की आँखें खोल ऐ बंधु,
बैठा वहीं पर शांति का दूत है।

शुद्ध ह्रदय से लौ जला कर।
मन को अयोध्या सा बना कर।
मिल जाएँगे प्रभु राम कण -कण में,
भर लो झोली स्नेह लुटा कर।

राग द्वेष सब रह जाएगा।
धन दौलत सब बह जाएगा।
कर लो नेक कर्म ऐ बंधु,
वैकुंठ यहीं पर मिल जाएगा।

तेरा मेरा छोड़ कर देखो।
छल कपट त्याग कर देखो।
निश्छल मन की आँखों से,
इंसानियत धर्म को मान कर देखो।
                            - सविता गुप्ता
                            राँची - झारखंड
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          मन की आँखें सब पहचाने 
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कभी ना ले विश्राम
मन की आँखों का 
अनवरत चलता रहे
ये सिलसिला ।
क्यूँ करे लोगों से हम 
शिकवा और गीला
जीवन है  बस,
एक बार जब मिला।
अन्दर बाहर सब
ये जाने।
मन की आँखें सब
पहचाने ।
आपस का बैर मिटा
एक दूसरे से क्यों 
होना खफ़ा।
चार दिनों की ज़िंदगी
मिली है ,
नववर्ष की फिर से
धूप खिली है।
मन की आँखों से
 एक बार तो देखो ।
तन सुन्दर मन सुन्दर
कहा गया  है भी,
सत्यम शिवम सुन्दरम।
खुशियां बांटो, 
खुशियां पाओ,
अब तो एक दूसरे से
दूरी मिटाओ। 
मन की आँखों से देखो
मिटे तिमिर तुम्हारा,
इंसान क्या जानवर
भी फिर लगे प्यारा।
                   - डॉ पूनम देवा
                     पटना - बिहार
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          मन की आंखों से जो दीदार होता है
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तन की आंखें भले बंद हों मगर
  मन की आंखों से जो दीदार होता है
 दुनिया में वही सच्चा प्यार होता है

      वक्त का दरिया बहता जाता
     इंसान उसमे डूबता कतराता
     कभी चलाएं उसे परिस्थितियान
    कभी परिस्थिति को वह चलाता

जीवन के इस घूमते चक्र में
कभी सूखा मन कभी रसधार होता है
मन की आंखों से जो दीदार होता है
       
       इंसान का जीवन तो जैसे
        चलता फिरता विश्व है एक
      कभी बनें हैं मित्र ही दुश्मन
       कभी मिलें हैं मित्र अनेक
कुदरत के इस क्रूर चक्र में
मिलता कहीं अनोखा कभी सब कुछ खोता है
मन की आंखों से जो दीदार होता है
                    - प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
                            गोधरा - गुजरात
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          मन की आँखें खोल कर 
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मन की आँखें खोल कर, नित्य करें वो कर्म।
नर तन का कल्याण हो, सदा करें सत्कर्म।।

नित्य नहीं संसार है, यह तो एक पड़ाव।
जाना है इक दिन वहाँ, सत्य यही है भाव।।

छल-बल से आगे बढ़े, देखे मन की आँख।
जग को धोखा दे भले, दिल का टूटा साख।।

मन की आँखे देखती, रखें साफ ईमान।
चार दिवस की जिन्दगी, करें सभी का मान।।

मीठी बोली से करें, गैरों को सम्मान।
दुआ करें जग-हित की, माने सभी समान।।
                            - पुष्पा पाण्डेय 
                             राँची - झारखंड
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           मन बनाता सबको शैतान
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मन बड़ा ही चंचल मन बनाता सबको शैतान। 
मन की आंखे लेती सब्र से सबका इम्तिहान।।
मन में जगते विचार छल कपट के नहीं होता भान। 
मन की आंखे करती सतर्क जो मानता बनता महान।।
मन की महिमा अपरम्पार देता मानव को निज का ज्ञान। 
खोलों मन की आंखे जीवन को बनाये सार्थक व महान।। 
मन से ही होता है अच्छे-बुरे व मुक्ति के लिए ईश्वरीय ज्ञान।
मन की आंखे खोलकर रखो नहीं होगा जीवन गलतान।।
मन में रखें सकारात्मक विचार बनायें अपना जीवन महान। 
मन की आंखे रहती जिसकी सजग कराती उसका गुणगान।। 
                   - हीरा सिंह कौशल 
                 मंडी -  हिमाचल प्रदेश 
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           मन की आंखें खोल मानव
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मन की आंखें खोल मानव...
देख बदलती दुनिया की  तस्वीर..
 हर तरफ बहुत भीड़ भाड़  ..
चारों ओर बहुत  शोर शराबा ..
फिर भी कुछ कहीं  मौन है..
जान कर  सभी अंजान क्यूं..
खामोशियों के शहर में रहने वाले..
बस अपने स्वार्थ के लिए जीने वाले..
मन की आवाज को सुन जरा..
कुछ पल ठहर नजरें उठा देख जरा. ..
सामना कर जिंदगी का ..
हौसला बढ़ा  जग की नई रीत..
ध्वस्त होती सभ्यता संस्कृति हमारी..
हर चौराहे पर आदमखोर भेड़िए..
हमारी  परंपराओं की  विरासत..
वेदों  शास्त्रों  का ज्ञान कहां रहा..
ऋषि मुनियों की तपोभूमि..
आज पाश्चात्य सभ्यता गोद ली..
भूले  सभी  अपने पूर्वजों के संस्कार..
आधुनिकता की चादर ओढ़..
ढ़ोंग बहुत किया तुमने मानव..
मन की आंखें खोल मानव..
  स्वच्छ क्षितिज का आगाज....!!
                     - आरती तिवारी सनत
                               दिल्ली
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           आँखों - आँखों में छुपा राज
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आँखों में झलकता है,
     मन मस्तिष्क में।
कुछ कहें अपनी बात, 
     कह नहीं पाते वह बात।
दूरियां बढ़ती गई,
      कहीं खुशी-कहीं गम।  
विचारधारा संकुचित थी,
       तेरी विशाल प्रतिमा में।
आगे शीश महल था,
       रास्ते में काटों की बोझार।
हम सोचते रह गये, 
      वह हमें समझ पाता।
अनजाने राही के साथ,
     आखों में घुल झोंक कर।
हमें अलविदा कह कर,
       मन ही मन में कैद।
समय बीतता गया, 
       तब तक तकलीफ।
जब समझ पाती,
       मन की आँख ही थी
              - आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
                           बालाघाट - मध्यप्रदेश
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          मन की आंखें बहुत गहरी
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मन की आंखें 
बहुत गहरी.....
बाहर....यहां-वहां
और मन के भीतर 
गहराई में उतर कर 
ढूंढती हैं कई
किस्से-कहानियां 
कई सुख-दुख के राज़ 
कई टूटे-बिखरे सपने 
कई दर्दीले अहसास .....
अपने-परायों की हकीकत 
सभी कुछ जानकर 
समझ कर भी 
कुछ नहीं कहतीं 
रहतीं हैं खामौश ..   
और कभी मुस्कराहटों का
मुखौटा लगाती तो 
कभी चुपके-चुपके 
बहा देतीं हैं सारे के सारे
दर्द .....सपने .....अहसास 
तो कभी खुशी.....
                  - बसन्ती पंवार 
             जोधपुर - राजस्थान
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           मन का हौसला ही जीवन है
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जीवन की राह को कठिन क्यूं समझे मन मेरे,
जीवन की विशालता को तनिक क्यूं समझे मन मेरे।
मंजिले स्वयं पुकारेंगी तुझे जीवन पथ पर मन मेरे, 
कोशिशें देंगी बुलन्दी तुझे जीवन पथ पर मन मेरे।। 

मन की आवाज, मन का हौसला ही जीवन है, 
इसे सुनने, परखने का फैसला ही जीवन है। 
जीवन में दुश्वारियां मात्र मृगतृष्णा समान हैं, 
बीच कांटों के खिले गुलाबों का गमला ही जीवन है।। 

लहर भी जब चलती है तो उतार-चढ़ाव लिए होती है, 
हवा भी जब चलती है तो मन्द-तीव्र भाव लिए होती है। 
जीवन के सफर में अनवरत लक्ष्य पर दृष्टि रखना, 
जिन्दगी पग-पग पर परिस्थितियों के घुमाव लिए होती है।। 

जीवन को जो दृढ़ संकल्पों से सींचते हैं अपने, 
मानव वही जो भीष्म बनकर प्रण पूरे करते हैं अपने। 
मन की आँखें दिखाएंगी सदा मार्ग तुझको मनुज, 
मन की आँखों से देखे ही पूरे होते हैं सदा सपने।। 
                            - सतेन्द्र शर्मा ' तरंग '
                            देहरादून - उत्तराखण्ड
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            मन की आँखें खोल कर
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मन की आँखें रहती सदा सजग 
 आँखें दुनिया की पहचानती रग रग

जिस मानव ने जब मन की आँखें खोली
दुनिया की समझ लेता झूठ कपट की बोली

पग पग पर मन की आंखें करें सावधान 
समझ ले मानव दुनिया का विधि-विधान 

झूठे प्यार, हमदर्दी  से दुनिया लेती लूट
पल भर में ही ऐसी कपटी प्रीत जाती टूट

मन की आँखें खोल कर जब भीतर झांका
मिट गई भटकन, जब मानुष जन्म को आंका

मेरी मेरी करता मोह माया में फंस जात
पानी केरा बुदबुदा अस मानस की जात"

प्रेम प्यार का दीपक जला कर चलो
मेरी तेरी को मन से मिटा कर चलो

मन की आँखें खोल कर चल रे मानव
पतझर में भी चारों ओर दिखे  सावन
                   - कैलाश ठाकुर 
                     नंगल - पंजाब
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मन की आंखें है एक दर्पण
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भला करें या बुरा
मन के दर्पण से भाग ना पाए

अच्छे कर्मों से मिली दुआ
बुरे कर्म बने एक शॉप
गलतफहमी भ्रम में रहे न कोई
किया अपराध अत्याचार
भुला दिया सब व्यवहार

मन की आंखों में
रहता है सब हिसाब
समय-समय पर दर्पण
दिखाकर कर देता बेचैन

मन की आंखों से
भाग न सके कोई
जग से भाग सके हैं सब
मन की आंखों से भाग न सके कोई
                   - कुमकुम वेद सेन
                         पटना - बिहार
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        मन की आंखें खोल
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मन की आंखें खोल 
ढूंढ रहा क्या चंहू ओर
सब तुमको मिल जाएगा देखें जो अपनी ओर 
मन की आंखें खोल। 
जग सारा एक तमाशा मदारी ना तुम इसका बनना
डमरु अपनी अपने हाथ में रखना  
अडिग रह पथ पर ना तू डोल 
मन की आंखें खोल।
हिम्मत न हारना तू 
जरूरतमंद को तारना तू
राह देख रही रस्ता तेरा 
चुप क्यों है कुछ बोल 
मन की आंखें खोल। 
कर्म तेरा तुमको करना है मिट्टी को सोना करना है 
तू अपनी ही जय बोल 
मन की आंखें खोल।
                           - मिनाक्षी सिंह
                           पटना - बिहार
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          जिसको देख मन हर्षित हुआ
          *********************

मन की आंखें खोल कर जब देखा,
जिसको देख मन हर्षित हुआ,
कभी इस गली तो कभी उस गली,
सभी ओर उसका ही शोर,
न जाने क्यों कहते लोग?
ये देखो क्या देहाती हैं ये लोग,
हंसी उड़ाते, मज़ाक बनाते,
न जाने क्या-क्या बातें हैं बनाते?
लेकिन हम अपनी धुन के हैं पक्के,
जयकारा करते, आवाज़ उठाते,
सबके बीच उसका मान बढ़ाते,
शान से कहते ये देखो हम भारतवासी हैं,
तो क्यों नहीं अपनी मातृभाषा अपनाते? 
                        - नूतन गर्ग 
                            दिल्ली
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           मन की आंखे 
           **********

चाहे कोसों दूर हो अपना प्रियतम।      
 खोज लेती हैं उसे यह मन कीआंखें।।

 लाख पहरे  हों भले  उस  राह पर।
मन से मन को मिलातीं मन की आंखे।।

लहकतीं हों तनकीआंखें जबकभी।
शुभाशुभ संकेत देतीं मन की आंखें ।।

प्रेम की रसधार में है विश्व मंगल।
 बस समर्पण चाहतीं मन की आंखे ।। 

सृजन से नव पुष्प होते हैं सुवासित।
 करुणासे जब छलछलाएं यहआंखे ।।

जो बनातीं  देवता और राक्षस भी।
 संकल्प विकल्प इस मन की आंखें।। 
                      -  डॉ. रेखा सक्सेना
                      मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
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          प्रतीक्षा मे भी मिलन की चाह सी 
          ***********************

सर्द गुलाबी  मौसम 
बसन्त फिर लौटा मेरे आँगना, 
 खिलें गुलाब मेरी वाटिका मे 
प्यार भरे मौसम मे तुम 
जब से खिले हो 
झकोरों से झाँकते से लगते हो ,
अँखिया ठहर जाती  तुम पर ..
कुछ कहते से लगते हो ,
तुम्हारी खुशबु महकाती तन मन ,
मन, आंगन मे धूप से 
खिले हो तुम ,
न जाने क्यों तुम्हारे मौन की गहनता मे प्रणय के भाव से...
प्रतीक्षा मे भी मिलन की चाह सी ..
अतृप्ति मे तृप्ति का बोध सा ..
निशा मे खोले पलक ,भोर सी ...
हर पल हर क्षण,प्रणय मुखर सा ..
मुझमे खुद को ,या खुद को
मुझमें  देखते हो ..
फिर भी दूरियाँ परस्पर ..
धरती ,आकाश सी ..
बसे है फिर भी एक दुजे में 
..तुम सुमन ,मै सुगंध सी..
कृष्ण मे राधा सी .......।
                       - बबिता कंसल 
                               दिल्ली
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             मन चंगा तो कठौती में गंगा
             ********************

मन की भी आँखें होतीं,
जो हमें हमेशा हकीकत से रूबरू करातीं, 
मन निर्मल हो तो, 
मन की आँखें, 
भविष्य का आभास करातीं, 
कहा भी जाता है-
“मन चंगा तो कठौती में गंगा,”
मन की आँखें शुभता,अशुभता को पहचानतीं,
मन की आँखें आभास करातीं, 
सही गलत का,
तभी तो दिल धड़कता जोरों से,
जब अनिष्ट होने वाला होता।
यही नहीं,
मन की आँखें सकारात्मकता को भी पहचानतीं,     
व्यक्ति को आभास होने लगता,
क्या अच्छा या बुरा होने वाला?
                     -  प्रज्ञा गुप्ता
                  बांसवाड़ा - राजस्थान
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          अभिव्यक्त करती मन की आंखें
           **********************

अंतर्मन की पीड़ा पढ़ती आंखें
हृदय अंतर्द्वंद्व को परखती आंखें।
भावों के अथाह सागर में डूबकर, 
अभिव्यक्त करती मन की आंखें।

 सुदूर कराहती आवाज सुन के,
मानवीयता जगती आह भर के। 
पढ़ लेते हृदय के संचरित भाव,
संवेदनशील पूर्ण मन की आंखें।

अबोध बच्चे पे भाव विह्वल होते,
हर कष्ट पीड़ा को अनुभूत करते।
वात्सल्य छलकाये मां का प्यार,
करुणामयी स्नेही मन की आंखें।

 मूक प्राणी के जो भावना समझे,
 भूख प्यास दरद महसूस करते।
पशुओं के आंख देख बहते आंसू,
संवेदनायें जगाती मन की आंखें ।
                     - सुनीता रानी राठौर
                    ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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       मन  की आंखें ने सब भुला दिया
       ***********************

तन की आंखों ने जो देखा था, 
मन की आंखों ने सब भुला दिया, 
चेहरा तो बहुत  साफ सुथरा था लेकिन मन को धुंधला गया। 
बात तो बहुत अच्छी थी
मगर दिल में न उत्साह दिया, 
सोचा था तन की भांति मन  भी सुंदर होगा, 
किन्तु मन की आंखों ने पर्दा हला दिया। 
बहुत मिलते हैं तन के सुन्दर
 मन के मैले सुदर्शन यह सब कुछ अजमा लिया। 
 तन की शोभा तो सब रखते हैं लेकिन मन को क्यों सब ने भटका दिया। 
देख रहा है प्रभु सब को तन और मन से फिर भी मनुष्य ने अपने आप को तबाह किया। 
 रख तन मन दोंनों सुन्दर
अगर आप ने यहां पनाह लिया, लेकिन कहां है यह आज के इंसान मे मुमकिन यह सुदर्शन ने अजमा लिया। 
              -   सुदर्शन कुमार शर्मा
                  जम्मू - जम्मू कश्मीर
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           पढ़ लेती हैं मन की आँखें 
            ******************

   मौन होठों की कहानियाँ
   बंद मुठ्ठियों का रहस्य
   कपकपाती ऊँगलियों की भाषा
    धीमे पड़ते पैरों की थाप
  पढ़ लेती हैं मन की आँखें ।

   घर , आँगन, शहर , गाँव
  हर पथ, गली मोड़ और चौराहे 
   पर पसरे सन्नाटे की आवाज
   गुमसुम बैठे रास्ते की चाह
    पढ़ लेती हैं मन की आँखें।

  बंद दरवाजों की कहानियाँ
  अधखुली खिड़कियों की सिसकियाँ
  सूने तुलसी चौरे की उदासियाँ
  पुरानी छत पर पड़ी बतियाँ
  पढ़ लेती हैं मन की आँखें।

  बगिया में सूखे पतों की बातें
  अधखिली कलियों की सुगबुगाहट
  टूटे कुचले फूलों की दबी आहें
  पातहीन शाखों की मौन दुआएं
  पढ़ लेती हैं मन की आँखें।

    सूनी धरा की अकथ कथा
   वृक्षहीन पर्वतों की मासूम चाह
   सूखे नदी -नालों की गीली आहें
    कटे पेड़ों को निहारते पाखियों की बातें
    पढ़ लेती हैं मन की आँखें।
                        -  ड़ा.नीना छिब्बर
                        जोधपुर - राजस्थान
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        मैं और मेरे मन की आंखें
        ******************

किसी के पास कुछ ना हो तो हंसती है दुनिया।
किसी के पास सब कुछ हो तो भी वह दुखी है ।
शुक्र है हमारे पास तो एक प्यारी सखी है। 

जिसके लिए तरसती है दुनिया हर सुबह को अपनी सांसों में रखो हर शाम को अपनी बाहों में रखो हर मंजिल है तुम्हारी,
बस निगाह उस पर ही रखो।
वह परिंदा जिस पर जिसका पंख टूट चुका है,
जिसका मन टूट चुका था उसका शरीर उसकी हिम्मत उसमें थी आज वह उड़ चला है आसमानों के रंग पर क्योंकि उसने अपनी तकदीर स्वयं लिखी थी। 
                  - उमा मिश्रा प्रीति
                जबलपुर - मध्यप्रदेश
=================================
          काश मन की आँखों से देख पाती
          ************************

आईना होती है मन की आँखें
काश मन के दर्पण में मैं झाँक पाती
काश खुद को मैं समझ पाती 
अपनी उलझन स्वयं सुलझाती !

हर राह हर डगर पथरीली थी 
पग पग धोखा खाकर भी
पथरीली राहों पर चलती थी मैं 
काश कोई ऐसा मिल जाता
 पगडंडी पर चल राह बताता !  

प्रेम सागर में गोते ले
 लहरों संग मचलती थी 
बीच भंवर में फंसने की 
दूरदृष्टि ना थी मुझमें !

काश मन की आँखों से देख पाती
    खुद को समझ पाती मैं 
अपनी उलझन स्वयं सुलझाती !

आसक्त हुआ ना प्रेम तुम्हारा  
साकी बन मैं पड़ी रही 
काश पतन की राह ना होती 
जीवन में उलझन ना होती !

काश मन की आँखों से देख पाती
काश खुद को मैं समझ पाती 
अपनी उलझन स्वयं सुलझाती !!

साथ तुम्हारा जब होता था 
कांटो से भरी राहों में भी
गुलाब सी खिल जाती थी
 मैंने चाहा क्या था तुमसे ?
केवल ,प्रेम तुम्हारा !

निर्मोही कुछ तो समझ पाते मुझको                           
मेरी उलझन को सुलझाते 

आक्रांतक था प्रेम तुम्हारा 
विष से भरी कटु वाणी
 क्या देखा था मैंने 
मदिरा से भरे उस प्याले में ?

देख अश्विनी सा रूप तुम्हारा 
अनुराग की गगरी छलकी थी 
भीगे मन को लाख समेटा
दिल को हल्के से टटोला  
समझ ना पाई थी तब मैं 
दिल से निकले घंटनाद को 
काश समझ पाती तब मैं 
क्षणिक प्रेम के इस प्रवाह को 
जीवन में उलझन ना होती !

काश मन की आँखों से देख पाती 
काश खुद को मैं समझ पाती 
अपनी उलझन स्वयं सुलझाती !!

अतृप्त प्रेम की चाह लिए 
काया मेरी ढल गई 
सूर्योदय से अस्तांचल का
 भेद मैं समझ गई !

मन की आँखो से देखा जब
निर्लिप्त हुआ अब मेरा मन 
प्रभु भक्ति में रम गई 
दर्शन की अभिलाषी जोगन
 मीरा बन खो गई !

 भक्तों संग सत्संग करती
मैं कृष्ण दीवानी कहलाती हूं 
प्रेम का प्याला पीते पीते
प्रभु संग , मैं आगे बढ़ती जाती हूं !! 
                     - चंद्रिका व्यास
                       मुंबई - महाराष्ट्र
=================================
           मन की आंखे अगर खोले
           ******************

मन की आंखे अगर खोले
सब कुछ उसमें नहीं दिखता
मन जो कुछ कहता वोभी
सच हैकि झूठ कह नहीं सकते
मन की आंखे सदा खुली रहे 
आप हम कह नहीं सकते
मन की आंखे सोच बदलती है
जो मन कहे वो ही करना चाहती
सदा सच को बतलाती
मै आप सब मन की आंखों को
सदा खोलकर रखते
पर कईबार अंदर ही बात को अंदर रखते
सच में हमें कभी कभी
मन की आंखे खोलकर
मन की आंखों से देखना चाहिए
                      - दीपा परिहार 'दीप्ति '
                         जोधपुर - राजस्थान
=================================
            मन की आंखें खोल ले
            ****************

बोले वाणी और है, करता तन कुछ और।
जो मन काबू कर लिया, सुंदर जग हर ठौर।।१।।

आँखों देखी जो कभी, झूठी ही कहलाय।
मन की आंखें खोल ले, सही राह दिखलाय।।२।।

सारा जग है एक सा, आंँखें देखें भेद।
अपने अंतस झाँक ले, सम रक्त और स्वेद।।३।।

पल पल बदले रूप जो, ऐसा है संसार।
जो मन से देखे सदा, हो भवसागर पार।।४‌‌।।

मानव जीवन जो मिला, नेकी करना कर्म।
क्यों अभिमानी बन मनुज, छोड़े मानव धर्म।।५।।

करता शोषण प्रकृति का, लोभ मोह में डूब।
नेह भरी रहे फिर भी, भरे संपदा खूब।।६।।

साल माह बीते दिवस, बीते दिन औ रात।
आँखें मन की खोल अब, बन जाएगी बात।।७।।
                         - शर्मिला चौहान
                            ठाणे - महाराष्ट्र
================================
           पहचान कर लेती हैं  मन की आंखें
           *************************

देख नहीं पाती जो साधारण आंखें,
देख लेती है उसको मन की आंखें।

क्या अच्छा है क्या बुरा है हमारे लिए,
 पहचान कर लेती हैं  मन की आंखें।

जो अकल्पनीय होता है हम सबको,
उसकी कल्पना करतीं मन की आंखें।

जैसे ही कोई भाव आते हमारे मन में,
 चित्रित करती हैं उसको मन की आंखें।

प्रभु दर्शन हम सोचते रह जाते सदा ,
पर उनको भी देख लेतीं मन की आंखें।

याद करते जब हम किसी को बेइंतेहा ,
तुरंत दिखा देती उसको मन की आंखें।

नेत्रहीन नहीं देख पाते साधारणतः वस्तु को,
वह भी 'सक्षम' दिखला देतीं मन की आंखें।
                      - गायत्री ठाकुर सक्षम
                       नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
=================================
           मन की आंखें खोल
           **************

 पूरी करते हुए हम
 संघर्ष की पुकार
 जाना जीवन है अनमोल
 मन की आंखें खोल

 एक अलग संसार दिखेगा
 अपने पराए से हटकर
 परोपकार भी दिखेगा
 मन की आंखें खोल

 नश्वर है जीवन
 हर सरकता क्षण
 कुछ बोल रहा प्रतिक्षण
 मन की आंखें खोल

 इस नश्वर देह का
 बहुत बड़ा है  मॉल
 सत कर्मों को तोल
 मन की आंखें खोल
                  -  नंदिता  बाली
                 सोलन - हिमाचल प्रदेश
================================
         ब्रह्मांड में जाती है बिखर
         ******************

कितना होता है अद्भूत दृश्य
जब देखती हैं चहूं ओर
मन की आंखें।
किसी ने कुछ कह दिया
आप कर देते हो अनदेखा
दुनिया में सबसे हो अलग
अन्तर्मन से हो जुड़े।
साथ साथ चलते हो
सुनते हो सब की
छायी है इक खामोशी़
खुशी चेहरे पर है झलकती
रिश्ते सींच रहे‌ हो‌ प्यार मुहब्बत के
लेकिन बंधन नहीं
एक अद्भुत प्रकार की
स्वतन्त्रता से हो‌ वशीभूत।
लोग कहते हैं पागल है
हर बात पर हंसता है
हम जानते हैं 
पाया है खज़ाना हमने
दौलत रूपये पैसे
यह रह जाने हैं सब यहां।
जाना है तो वह
जो दिल में छुपा है
किसी ने नहीं देखा
मैंने महसूस किया है।
वह देता है साथ
जब आप होते हो तन्हा
वह ऊंचा उठाता है आपको।
लोगों के बीच रहते हुए भी 
आप कोहिनूर हीरे जैसे
हो चमकते बेहिसाब
आंखें जब खुलती हैं मन की
रोशनी में उसकी
सब हो जाता ‌है गुम
यह जाता है तो‌ बस
एक ही स्वर
ऊं की गुंजन
ब्रह्मांड में जाती है बिखर
मेरा मुझसे होता ‌है‌
परिचय ‌पहली बार।
                 -  डा. अंजली ‌दीवान
                    पानीपत - हरियाणा
=================================
                 भीतर- भीतर मन मुस्काए
                 *******************

मन की आँखें खोल ज़रा ।
मुख से कुछ तो बोल जरा।। 

मन की आँखें झूठ न कहती। 
भीतर  पावन  गंगा  बहती ।।

तन का नहीं है कोई हिसाब।
मन ना देता गलत जवाब।।

मन की दुनिया कितनी सुंदर। 
लगती जैसे कोई मंदिर ।।

तन कभी  'संतोष'  न पाए ।
भीतर- भीतर मन मुस्काए।।
                         - संतोष गर्ग
                       मोहाली - पंजाब
 ===============================
         ये मन की आंखें
         ************

तेरी मेरी कहानी कह जाती हैं
ये मन की आंखें
ना दिखा इस क़दर इन आँखों की नज़ाकत,
 मन बेचैन होता है
देख इन्हे दिल और भी बेताब होता है |

इतना गहरा नशा इन नैनों मेंसमाया हैं
मन बावरा हो जाता है।।
मेरी मन की आंखों से तेरे दिल मे झांकती हूं 
और सारी दुनिया पा जाती हूं।।

आप की नज़रें संगमरमरी सुरूर चढ़ा जाती हैं,
मौसम का मिजाज़ भी देख इन्हें बदल जाता है।।
मन की आंखों से मैं तुम्हें पढ़ जाती हूं
मन की आंखें ही तो सब बयां कर जाती हैं ।।
जो मैं ना कहना चाहूं वह भी कह जाती हैं  
ज़ालिम है तू, बेरहम, बेहया, बेदर्द है,ये मन 
दिल को तुझ बिन वो सब बेस्वाद लगता है,
मन से मन का दीदार करने दे मन से मन को करार आने 

फँस के इन नजरों के जाल में आशिक़ बर्बाद होता है |
ना दिखा इस क़दर इन आँखों की नज़ाकत,
देख इन्हे दिल और भी बेताब होता है |
मन की आंखों से तेरे जज्बात पड़ जाती हूं
मन की आंखें ही तो है जो वह सब भेद जानती हैं जो कोई कह नहीं सकता कोई जान नहीं सकता ।।

मेरे मन की आंखें सारी कहानी कह जाती हैं
 तेरे मेरे राज बयां कर जाती हैं।  
                    - अलका पाण्डेय 
                     मुम्बई - महाराष्ट्र
=================================
          वो है हमारा अंतर्मन
          **************

देखने के लिए आँख चाहिए, 
सुनने के लिए कान चाहिए, 
बोलने के लिए जबान चाहिए, 
चलने के लिए पांव चाहिए, 
कार्य करने के लिए हाथ चाहिए,
समझने के लिए बुद्धि चाहिए, 
संसार में जीने के लिए ये जरूरी है,
बिना इसके जीना बस मजबूरी है,
मगर ये सब भौतिकता के लिए है,
संसार में सांसारिक होने के लिए है,
जो बाह्य है,
कुछ बातें हमारे अंदर है,
जो देख सकती है,सुन सकती है,
बोल सकती है, समझ सकती है,
वो है हमारा अंतर्मन, 
जिसे सत्य-असत्य का पूरा ज्ञान है,
मानव चाहे लाख कोशिश कर ले,
अपने हर कर्म को छुपाने की,
पर मन की आँखों से छुपा नहीं सकता,
कोई कुछ बोले न बोले 
मन की आँखें सब बोल देती है।
                   - पूनम झा
                   कोटा - राजस्थान 
=================================
नये साल का प्रथम सम्मान



Comments

  1. मन की आँखें खोल ज़रा।
    मुख से कुछ तो बोल ज़रा ।।

    मन की आँखें झूठ न कहती।
    भीतर पावन गंगा बहती ।।

    तन का नहीं है कोई हिसाब ।
    मन न देता गलत जवाब ।।

    मन की दुनिया कितनी सुंदर।
    लगती जैसे कोई मंदिर ।।

    तन कभी 'संतोष' न पाए ।
    भीतर भीतर मन मुस्काए।।
    ******

    रचनाकार:-
    संतोष गर्ग,
    मोहाली (चंडीगढ़)

    ReplyDelete
  2. Bijender Gemini Bahut bahut dbanyavad Gemini ji...ye samman ka silsila 2001 se shuru hua aapkay Saujanya se aur main saubhagyashalee hun ki aaj 2022 tak zaree hai !ye alag baat hai ki sammanon k naam va swaroop badalay !!
    _ Nandita Bali
    ( By Facebook )

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