आदरणीय मधुदीप गुप्ता को ऑनलाइन श्रद्धांजलि

वरिष्ठ लघुकथाकार , समीक्षक , सम्पादक व प्रकाशक आदरणीय मधुदीप गुप्ता जी , अभी हाल में हमसब को छोड़ कर दुनियां को अलविदा कर गये है । 
       फिलहाल " भारतीय लघुकथा विकास मंच " ने ऑनलाइन श्रद्धांजलि सभा का आयोजन फेसबुक पर  रखा  । विभिन्न शुभचिंतकों ने अपने विचारों के माध्यम से श्रद्धांजलि प्रदान की हैं । जिसकों यहां पेश किया है : -
कथाकार- उपन्यासकार- लघुकथाकार- संपादक - प्रकाशक मधुदीप को शब्दांजलि: अशोक जैन 
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प्रत्येक व्यक्ति का जीवन उसके अपने आदर्शों,संघर्ष, सद्कार्य  व नियम -कायदों के अधीन रहता है। कुछ को उसके कार्यों के लिए  याद किया जाता है, तो कुछ को उसके आदर्शों के लिए। दिल्ली से भाई महावीर गुप्ता उर्फ मधुदीप 11 जनवरी को प्रभात बेला में अपनी परमधाम की अनंत यात्रा पर चले गये, लेकिन उनके कार्यों व सिद्धांतों में वे सदा ज़िंदा रहेंगे। एक कर्मठ योद्धा की तरह सौ से अधिक दिनों तक एक क्रूर प्राणघातक बीमारी  से जूझते रहे। कभी-कभार ऐसा लगता रहा कि वे स्वस्थ होकर पुनः क्रियाशील होंगे। यद्यपि वे अस्पताल के बिस्तर से भी अपना कार्य करते रहे।6 जनवरी को मेजर सर्जरी के बाद कुछ  संभल रहे थे कि 8 तारीख को हृदयाघात की वजह से 72 घंटे के लिए  आई सी यू में वैंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिए गये। वहीं उन्होंने अपनी देह छोड़ी।
पिछले दो वर्षों में अपने परिवार के अन्य सदस्यों - माँ, छोटा भाई,पत्नी को खो देने के बाद भी परिश्रम के पर्याय बने रहे और स्वयं को हौसला देते हुए अपनी साहित्य साधना में लगे रहे। लघुकथा को लेकर उनका जुनून यद्यपि कुछ लोगों को अखरता भी रहा, और वे कहते: अब बस करो और पिछले कार्य का विश्लेषण करो; लेकिन कथाकार मधुदीप कथा की अन्य विधाओं को छोड़कर लघुकथा का दामन पकड़कर वहाँ तक पहुँचे , जहाँ तक असंभव सा लगता रहा था। अपने कुछ गिने चुने वरिष्ठ साथियों के साथ लघुकथा के लिए  ' पड़ाव और पड़ताल' ( श्रृंखला) के 32 खण्ड प्रकाशित किये, और फिर ' लघुकथा की पड़ताल-1' भी छापा। शेष दो खण्डों पर कार्यरत थे।एक योद्धा निरंतर लड़ते- जूझते अपने जीवन को विराम दे गया और पीछे छोड़कर गया वे स्मृतियाँ ,जो आगत पीढ़ी को प्रेरित करती रहेंगी।
दरअसल मेरे साथ उनकी मित्रता लगभग पाँच दशक पुरानी रही। 1977 में त्रिनगर में ही जगदीश सुपारीवाला की प्रतिभा प्रैस से प्रकाशित ' प्रतिभा ' पत्रिका के प्रवेशांक को उन्होंने ही संपादित किया था।उन दिनों मैं वहीं से प्रकाशित मासिक पत्रिका' कहाँ -क्या' का काव्य संपादक था। लेकिन अपने लेखन प्रवाह में अवरोध आने की वजह से मधुदीप  संपादन छोड़कर अपने लेखन पर पुनः एकाग्र हो गये। 1978 से मित्रता से शुरू हुए संबंध आते वर्षों में इतने प्रगाढ़ हो गये कि उनसे बड़े भाई जैसा स्नेह और शकुंतला भाभी से अन्नपूर्णा सा आशीष मिला। वे संबंध मित्रवत न रहकर पारिवारिक हो चुके थे। मेरे संघर्ष भरे दिनों में मुश्किलों से जूझने की प्रेरणा भी उनसे ही मिलती थी।
कहानी व उपन्यास लेखन से एकाएक वे लघुकथा की ओर मुड़े। फिर 1981 में ' दिशा प्रकाशन ' की नींव रखकर वे  प्रकाशन के क्षेत्र में कूद पड़े।  कई वर्षों तक ढेर सारी पुस्तकें छापने के पश्चात वे संपादन की ओर उन्मुख हुए। कथा व उपन्यास पीछे छूट गये ,और साँसों में आ बसी लघुकथा और केवल लघुकथा--। 1988 में हमारे सह मित्र राजा नरेन्द्र ( अब- कुमार नरेन्द्र) के साथ ' पड़ाव और पड़ताल ' की रूपरेखा तैयार की, और प्रथम खण्ड प्रकाशित किया। दशकों तक विभिन्न पुस्तकें प्रकाशित करते रहे, और फिर 2013 में पुनः 'पड़ाव और पड़ताल ' के खण्ड प्रकाशित करने शुरू किए, और 32 खण्ड प्रकाशित कर चुके। इन दिनों 33 वें खण्ड की रूपरेखा बना रहे थे कि ----11 जनवरी प्रातः 2-3 बजे के बीच अपनी इहलीला समाप्त कर अपनी परमधाम की यात्रा पर निकल गये।
                              - अशोक जैन
                                गुरुग्राम - हरियाणा
कथाकार- उपन्यासकार- लघुकथाकार- संपादक - प्रकाशक -गुरु सखा मधुदीप जी को शब्दांजलि : विभा रानी श्रीवास्तव, पटना
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मधु और दीप को परिभाषित करने के लिए मधुदीप जी से जुड़े लोगों के अनुभव सुनने- पढ़ने से आसान हो जाएगा। मधुदीप जी के स्वभाव में माधुर्य था तो उनका लघुकथा के प्रति समर्पण उसके लिए किया कार्य सदैव दीपक रहेगा व सूर्य ही रहेगा।  ना भूतों ना भविष्यति
बलराम अग्रवाल, दिल्ली के अनुसार :- शुरू में (समभवतः 1976 से) सन् 1988 तक, उसके बाद 2013 से मृत्युपर्यन्त। बाद की पारी उन्होंने धुआंधार खेली, हरियाणवी वीरू की तरह। लघुकथा पर 33 खण्डों के प्रकाशन का रिकॉर्ड भले ही कोई तोड़ दे, लेकिन उसके आविष्कर्ता के रूप में तो मधुदीप ही जाने जाते रहेंगे।
अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के 29 वाँ लघुकथा सम्मेलन में मधुदीप जी से मेरी पहली भेंट हुई थी। उस मंच से भी उनका 'लघुकथा' को अंग्रेजी में भी 'लघुकथा' कहा जाए क्योंकि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, लंदन में डॉ. इला ओलेरिया शर्मा द्वारा प्रस्तुत शोध प्रबंध 'द लघुकथा ए हिस्टोरिकल एंड लिटरेरी एनालायसिस ऑफ ए मॉर्डन हिन्दी पोजजेनर' (he Laghukatha , A Historical and Literary Analysis of a modern Hindi Prose Genre') में उन्होंने लघुकथा को storiette न लिखकर 'लघुकथा' (Laghukatha) ही लिखा है। कहना उनका लघुकथा से प्रीति परिभाषित करता रहा।
                               - विभा रानी श्रीवास्तव
                                      पटना - बिहार
मेरा उनका 2012 से परिचय है 
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समकालीन हिन्दी लघुकथा आज साहित्य की केंद्रीय विधा के तौर पर देखी जाने लगी है तो इसके पार्श्व में कुछ हस्तियों का अति महत्वपूर्ण योगदान है।
दिशा प्रकाशन ,'पड़ाव और पड़ताल'श्रृंखला के जरिये ,33 महत्वपूर्ण खंडों का प्रकाशन कर  लघुकथा को अपार शक्ति प्रदान करने वाले मधुदीप गुप्ता का अवसान लघुकथा ही नही समस्त साहित्यिक जगत के लिए  अपूरणीय क्षति है।
  लघुकथा सम्बन्धित  33 खंडों में से 15 को' पड़ाव और पड़ताल' के रूप में प्रकाशित कर एक वितान सा तान दिया था मधुदीपजी ने। लेखन की अपने दूसरी पारी में (2013 से) अपने अंदर के उपन्यासकार और कहानीकार को भी उन्होंने लघुकथा के लिए  समर्पित कर दिया था।हाल के दिनों में अस्पताल के वार्ड में बैठकर भी वे लघुकथा पर काम कर रहे थे, ऐसा लघुकथा तपस्वी विधा को कदाचित ही फिर प्राप्त हो। 
उनकी अपनी लिखी लघुकथाएँ पारिवारिक पृष्ठभूमि से निकलकर समाज ,राजनीति और बाज़ारवाद तक जातीं हैं।कथ्य और शिल्प के अलावा वे हिन्दी भाषा और व्याकरण पर भी पूरा ध्यान देते थे।कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी कि हिन्दी शब्द जाँचना हो तो दिशा प्रकाशन की पुस्तक सबसे अच्छा मापदण्ड है।
लघुकथा की परिधि को विराट बनाने में मधुदीपजी का अपार  योगदान है ,लघुकथा इससे कभी उऋण नही हो सकती। मेरा उनका 2012 से परिचय है ,जब वे उज्जैन आए थे।तबसे लगभग हर महीने उनसे बात हो जाती थी।उन्हें जब भी मेरा कोई आलेख या रचना पसंद आती तो फोन करके डाक से मंगवा लेते थे।'पड़ाव और पड़ताल'के पन्द्रहवें खण्ड में उन्होंने मेरी लघुकथाएँ शामिल की थीं इस हेतु उनका सदैव आभारी रहूंगा।अभी अगस्त '21 में दिल्ली गया था तो उनसे मिला था ।लगभग दो घण्टे बातचीत हुई ,उन्होंने स्वयं उठकर मेरे लिए चाय बनाई थी। सादर अश्रुपूरित नमन।
                                 - सन्तोष सुपेकर
                               उज्जैन - मध्यप्रदेश
लेकिन पिछले छह महीने से उनकी आवाज़ में थकान झलकने लगी थी
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कभी सोच ही नहीं पाया कि मधुदीप को इस तरह याद करना पड़ेगा। वो तो ऐसे साथी और मित्र थे जिसका कभी भी, किसी भी बात के लिए फ़ोन आ जाएगा, ये रहता था। लेकिन पिछले छह महीने से उनकी आवाज़ में थकान झलकने लगी थी। जब भाभीजी को याद करते तो मैं हमेशा यही कहता- मुझे देखिए, मैं भी तो तेरह साल से रह रहा हूं। कहते थे, अब कुछ भी हो जाए, लघुकथा के लिए जो काम कर लिया, वो आसानी से बेकार तो नहीं हो पाएगा। मैं कहता था कि आसानी क्या, मुश्किल से भी भुलाया नहीं जाएगा। मुझे कभी- कभी कहते थे, तुम लघुकथा को नुक़सान पहुंचा रहे हो, लिखते क्यों नहीं?
उन्होंने ज़िद करके पड़ाव और पड़ताल का खंड 8 मुझे संपादन करने के लिए दे दिया था। मैंने मना किया तो मुझे यह कह कर मनाया कि यह खंड केवल राजस्थान के लघुकथाकारों पर है, ये तो तुम्हें ही करना पड़ेगा। 
मेरे लिए तो हमेशा अलग सोचते थे। मेरी ग्यारह किताबें छापने के बाद भी उनका आग्रह यही रहता था कि मेरी किताब किसी और प्रकाशन में क्यों जा रही है!
अपने दूसरे प्रकाशन "दिल्ली प्रकाशन" की शुरुआत भी मेरी किताबों से ही की थी पर उसे बाद में बंद करना पड़ा क्योंकि दिल्ली प्रेस ने आपत्ति की थी।
मेरे बेटे की शादी में सपत्नीक आए थे तब कह रहे थे कि चलो, अब हमारी किताबें अमेरिका पहुंचनी शुरू हो जाएंगी। मेरी बहू से तो ये भी कह दिया- बेटा तुम लोग लिखोगे तो मैं अंग्रेज़ी में भी छाप दूंगा।
आखिरी बार जयपुर मेरे उपन्यास "जल तू जलाल तू" के लोकार्पण पर आए थे। पुस्तक मेले में हर बार बुलाते, बाकायदा नया सूचीपत्र भेज कर आमंत्रण देते थे। कहते थे- तुम्हारी भाभी बालसाहित्य की किताबें छापने के लिए कहती है पर मैं कहता हूं कि पहले ठीक हो जाओ। अब खुद भी चले गए। सादर श्रद्धांजलि!
                            - प्रबोध कुमार गोविल
                                 जयपुर - राजस्थान
दिशा प्रकाशन के निदेशक , वरिष्ठ लघुकथाकार, समीक्षक, संपादक मधुदीप जी जो सदैव मुस्कुराते रहे और अंत तक मुस्कुराते रहे कभी भुलाए नहीं जा सकते। 11 जनवरी, 2022 को सबको अलविदा कह गए। उनकी मुस्कान के पीछे छिपा था ढेर सा दर्द जब उनकी जीवनसंगिनी शकुन्त जी पिछले वर्ष उन्हें अलविदा कह गई। दो सितारों का ज़मीं पर मिलन हुआ जो अब आकाश में हो रहा है। वे प्रयोगधर्मी लघुकथाकार थे। 2018 में हिंदी भवन, दिल्ली में अयन प्रकाशन द्वारा आयोजित एक समारोह में उनसे भेंट हुई थी। मेरी लघुकथा भी उन्होंने अपने एक संकलन में ली थी।
उन्हें श्रद्धांजलि देने हेतु उनका रेखाचित्र बना पाई। वे साहित्य अनुरागियों के दिलों में सदैव वास करेंगे।
- डॉ. अंजु दुआ जैमिनी
फरीदाबाद - हरियाणा
कथाकार- उपन्यासकार- लघुकथाकार- संपादक - प्रकाशक मधुदीप गुप्ता जी को शब्दांजलि : शेख़ शहज़ाद उस्मानी
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 नये लेखकों के लिए कुछ नये परिचय ऐसी छाप छोड़ जाते हैं, जो उनके  साहित्यिक स्वाध्याय और लेखन क्षेत्र में एक विशिष्ट प्रोत्साहन का काम करती है। सहजता और सरलता से परिपूर्ण कुछ व्यक्तित्व बहुत ही महत्वपूर्ण बन जाते ह़ैं। ऐसा ही मेरा भी अनुभव रहा है  आदरणीय मधुदीप गुप्ता जी के साथ फ़ेसबुक पर और वाट्सएप प्लेटफॉर्म पर उनसे  आरंभिक आभासी परिचय के पश्चात ई-पत्राचार और दिशा प्रकाशन के विश्व हिंदी लघुकथाकार कोश में, लघुकथा संकलन  'नयी सदी की धमक'  और फ़िर ' नमिता सिंह : चरित्र चित्रण" विशेष संकलन में सहभागिता के दौरान। उसके बाद दिल्ली के विश्वपुस्तक मेले में दो बार उनके प्रकाशन की स्टॉल पर और फ़िर एक लघुकथा सम्मेलन में उनसे रूबरू भेंट का अवसर पाकर मैं धन्य हुआ।
विश्व पुस्तक मेले में आगंतुक पंजी में उपस्थिति दर्ज़ करने से लेकर उनकी स्टॉल पर आयोजित नुक्कड़ लघुकथा गोष्ठी में वरिष्ठ लघुकथाकारों की उपस्थिति और उनके लघुकथा पाठ व समीक्षात्मक वक्तव्य और स्वयं मधुदीप जी के वक्तव्य को सुनकर मैं लाभान्वित हुआ, धन्य हुआ। मुझे भी अपनी एक लघुकथा का पाठ करने का अमूल्य अवसर मिला आदरणीय डॉ. अशोक भाटिया जी, आदरणीय  सुभाष नीरव जी आदि के समीक्षात्मक वक्तव्य से आदरणीय मधुदीप जी के सान्निध्य में मुझे मार्गदर्शन मिल सका।
इन सब महत्वपूर्ण पलों में मैं उनके  आकर्षक प्रभावशाली व्यक्तित्व व उसूलों से वाक़िफ़ हो सका।  एक लघुकथा सम्मेलन में मेरे अपनी लघुकथा के पाठ के तुरंत पश्चात केवल उन्होंने स्वयं दर्शक दीर्घा में मुझे बुलाकर मेरी लघुकथा पर अपनी निजी समीक्षात्मक राय देकर मुझे जो मार्गदर्शन प्रदान किया था, वह मेरे लिये अविस्मरणीय रहेगा, महत्वपूर्ण रहेगा। फ़ेसबुक पर दीगर मुद्दों पर मेरी पोस्ट्स पर भी उनकी टिप्पणियाँ, हिदायतें मेरे लिए महत्वपूर्ण व मार्गदर्शक रहीं।
विश्व पुस्तक मेले में उनके दिशा प्रकाशन की स्टॉल से क्रय किये गये ऐतिहासिक लघुकथा दस्तावेज़ों, पड़ाव और पड़ताल के अंकों से हम सदा लाभान्वित होते रहेंगे। उस अवसर पर उन्होंने मुझे पत्रिका 'संरचना' का एक अंक भी भेंट स्वरूप दिया था और सहभागिता हेतु मार्गदर्शन दिया था प्रोत्साहित करते हुए।
दिशा प्रकाशन की उस स्टॉल पर उनकी धर्मपत्नी आदरणीया शकुन्त जी की सहृदयता, सरलता व प्रभावशाली आकर्षक व्यवहार भी मेरी मधुर स्मृतियों में सदा बना रहेगा।
संकलन 'नयी सदी की धमक' और  'नमिता सिंह : चरित्र चित्रण' सहित पड़ाव और पड़ताल के महत्वपूर्ण अंक, लघुकथाएं और आलेख हमारे लिए एक लाइव कार्यशाला की तरह मौजूद हैं हमारे साथ।
ऑनलाइन लघुकथा गोष्ठियों में उनकी कम किन्तु महत्वपूर्ण सहभागिता भी हमारे लिए महत्वपूर्ण रही है।
ऐसे कर्मठ साहित्यकार जनाब मधुदीप गुप्ता जी के प्रति मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
- शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
कैसे होता संघर्षों में जीवन जाना उनसे।
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     २०१९ के दिल्ली पुस्तक मेले में अनिल शूर जी से मिलने दिशा प्रकाशन के स्टॉल  पर पहुँची थी क्योंकि उन्हें वहीं आना था। वे तो आए नहीं, वहीं मधुदीप जी से मिलना हुआ था। लघुकथा के मजबूत स्तम्भ से मिलने की प्रसन्नता इतनी थी कि उनके साथ फोटो लेना ही भूल गई थी। लघुकथा लेखकों की निर्देशिका उन्होंने प्रकाशित की थी उसमें उन्होंने मुझे भी शामिल किया था। मेरे निवेदन पर अपनी पत्नी की स्मृति में लिखी पुस्तक तो भेजी ही, साथ ही दो पुस्तकें और भी भेजी थीं जो मुझ जैसे लघुकथा लेखन के विद्यार्थी के लिए बहुत महत्वपूर्ण और उपयोगी थी। फोन करके पुस्तक मिलने की जानकारी भी ली। फोन बेटे ने उठाया था तो उसे अपना प्यार/स्नेह कहने के लिए भी कहा था। वे बहुत अपने से, स्नेह बरसाने वाले थे। वे जितने अच्छे, समर्पित लघुकथाकार थे उतने ही अच्छे सहज, सरल और स्नेहिल व्यक्तित्व के संवेदनशील व्यक्ति थे। रिश्ते जोड़ने और उन्हें निभाने की कला में सिद्धहस्त थे। उनसे जो भी मिला किसी न किसी रिश्ते में बंध कर सदा के लिए उनका अपना बन गया।ऐसे लोग कम ही होते हैं जो अपने काम के साथ अपने स्नेहिल व्यवहार से सबके हृदयों में भी बस जाते हैं। लघुकथा साहित्य में उन्हें और उनके काम को एक संस्थान की तरह देखा जाएगा। अपने दिशा प्रकाशन के द्वारा लघुकथा साहित्य को पाठकों तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। मधुदीप जी और लघुकथा एक-दूसरे के पर्याय बन चुके थे। दोनों को अलग करके देखना कठिन ही नहीं असंभव है। लघुकथा के प्रति उनका समर्पण इतना था कि अपनी चिकित्सा के समय जब वे अस्पताल में थे तो अपने आराम के समय में वे अपनी पुस्तकों की पांडुलिपि को प्रकाशन के लिए सही रूप देने में लगे हुए थे।ईश्वर के इस निर्मम निर्णय ने एकदम स्तब्ध और निशब्द कर दिया है। उससे सदा शिकायत रहेगी कि जिनकी यहाँ सबसे अधिक आवश्यकता थी उन्हें अपने पास बुला कर क्यों सबको दुखी किया?
अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि आदरणीय मधुदीप जी। आपको कभी नहीं भूल पाएँगे।🙏🙏
- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
आदरणीय मधुदीप जी के कार्य लघुकथा साहित्य में प्ररेणा स्रोत हमेशा बने रहेंगे 
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     मैं प्रिंट मीडिया से रहा हूँ । मैंने प्रतिदिन संदेश , ऑलराउंडर पत्रिका , जैमिनी अकादमी आदि पत्र - पत्रिकाओं का सम्पादन किया है । कई लघुकथा विशेषांक निकले , साथ ही पच्चीस से अधिक वार्षिक लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन जैमिनी अकादमी के माध्यम से किया है । अनेंक संकलन का सम्पादन भी किया । साथ ही अनेंक मौलिक पुस्तकें लिखी और प्रकाशित भी हुई हैं ।
     नवम्बर 2012 के आसपास फेसबुक के माध्यम से सोशल मीडिया में कदम रखा । परन्तु सोशल मीडिया , प्रिंट मीडिया से एक दम अलग नज़र आया । मैं प्रिंट मीडिया का जाना - माना नाम ..... । कुछ प्रिंट मीडिया के साथी सोशल मीडिया पर अवश्य मिलें । कुछ ने बहुत स्वागत किया । परन्तु सोशल मीडिया मेरे लिए एक दम नया ...। ऐसे में फेसबुक पर आदरणीय मधुदीप गुप्ता से मुलाक़ात हो गई । फिर क्या ! फेसबुक के साथ - साथ पत्र व मोबाइल पर बातचीत होने लगी । इसी बीच पुस्तक मेलें में आने का निमंत्रण भी दिया । मैं गया भी , परन्तु अन्य प्रकाशन पर जाकर अटक गया । दो दिन बाद , मेरे घर से फोन आ गया तो तुरंत वापिस आना पड़ा । अतः मैं गुप्ता जी से मिलने में असफल रहा । जबकि दिल्ली आना - जाना होता रहता है । परन्तु मिलने का सहयोग नहीं बना । आखिर " विश्व हिन्दी लघुकथाकार कोश " ( 2018 )  में मेरे परिचय प्रकाशित किया । यह पुस्तक आदरणीय मधुदीप जी की मेहनत का परिणाम है । ऐसी पुस्तक कम से कम लघुकथा साहित्य में नहीं है । लघुकथा साहित्य में बहुत कार्य हुआ है । गुप्ता जी कहानी व उपन्यास के क्षेत्र से लघुकथा के क्षेत्र में आये हैं । परन्तु लघुकथा साहित्य में इन से अधिक कार्य , आज तक किसी ने नहीं किया है । मैं पुराने से पुराने लघुकथाकार के सम्पर्क में रहा हूँ । आदरणीय मधुदीप जी के कार्य लघुकथा साहित्य में प्ररेणा स्रोत हमेशा बने रहेंगे । विनम्र श्रद्धांजलि ।
                                       - बीजेन्द्र जैमिनी
                                       पानीपत - हरियाणा
स्थितियों पर अत्यन्त पैनी दृष्टि रख कर सृजन करने  वाले मधुदीप का जाना  मेरे लिए निजी क्षति है
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उपन्यासकार , कहानीकार और लघुकथा लेखक मधुदीप से मेरी  मित्रता वर्ष 1977--78 से है , जब वे निगम कार्यालय  राजौरी गार्डन नई दिल्ली में स्थान्तरित होकर् मेरे विभाग में आये थे। हमारी दोनों  की रुचि समान थी , अतः शीघ्र मित्रता भी हो गयी।   लघुकथा विधा  से यहीं से मेरा जुड़ाव हुआ।  उनके निवास त्रिनगर में अक्सर लघुकथा पर चर्चा होती।  हमारे साथ शामिल रहते थे कुमार नरेंद्र और अशोक जैनऔर सभी को
 नाश्ता  तथा अक्सर भोजन की व्यवस्था करती थीं  भाभी शकुन्त दीप।   मुझे यह कहने में अत्यंत गौरव का आभास होता है कि लघुकथा  में पड़ाव और पड़ताल के 33 खंडों के मार्फ़त  उन्हें सदैव याद रखा जायेगा।  उनका असमय बिछड़ना लघुकथा के लिए तो है ही, यह मेरी  व्यक्तिगत क्षति भी है।
- अशोक वर्मा
दिल्ली
लघुकथा उनका जीवन थी
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आदरणीय मधुदीप सर ..यानि कि मधुदीप गुप्ता.. हिंदी लघुकथा साहित्य का एक ऐसा मजबूत स्तम्भ जिसके सहारे खड़ा लघुकथा का वितान कभी धूमिल नहीं पड़ सकता। लघुकथा उनका जीवन थी। निरन्तर लघुकथा के प्रति पूर्ण रूप से समर्पण ही मानों उनके जीवन की साँसे थी ।मुझसे अक्सर कहते "तुम्हारी लघुकथाओं ने मुझे प्रभावित किया है इसे और परिमार्जित करने के लिए प्रयत्नशील रहो।" मेरे प्रथम लघुकथा संग्रह के लिए वे केवल उत्साहित ही न करते रहे बल्कि उन्होंने आगे बढ़ कर पूर्णतः सहयोग के साथ प्रेरणा स्वरूप उसे दिशा प्रकाशन से प्रकाशित भी किया। वे केवल लघुकथा ही नहीं बल्कि पूर्णतः साहित्य के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी को मानते थे। 1st. जनवरी को जब मेरी उनसे बात हुई तो मैंने उन्हें कहा था "सर अब तो मेरी आँखें और एक सपना देखने लगी हैं मेरी कविता की पुस्तक का प्रकाशन भी अगर दिशा प्रकाशन से हो जाए.." उन्होंने कहा"सपनों को उड़ने दो, उन्हें पंख दो, रोको मत। मैं तुम्हारी पुस्तक अवश्य प्रकाशित करूंगा। पर बस ऑपरेशन के बाद कम से कम दो महीने का समय तो तुम्हें मुझे देना पड़ेगा।" कर्मवीर के वे उत्साह पूर्ण शब्द अब केवल शब्दों की गूंज बन कर रह गए हैं। और सपनों की उड़ान के पंख बन्द हो गए हैं । यूँ त़ो हमेशा ही अपना नवीनतम प्रकाशन मुझे भेजते थे पर जाने के पूर्व भी अपनी नवीन कृति 'मधुदीप - लघुकथा सृजन के विविध आयाम' भी अपनी स्मृति के लिए ही दिशा निर्देश एवं आशीर्वाद स्वरूप भेज गए जो कि मुझे उनके प्रयाण वाले दिन ही मिली। मधुदीप सर की स्मृति को अश्रुपूरित नमन के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है अब देने के लिए। सर हमेशा स्मृतियों में रहेंगे..🙏🙏
- कनक हरलालका
धूबरी - असम
कथाकार - लघुकथाकार- संपादक - प्रकाशक मधुदीप को आदरांजलि: डॉ मंजु गुप्ता
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कर्मठ ,  अनुशासित , आदर्शवादी ,संघर्षशील व्यक्ति थे । काया से वह  जिंदा नहीं हैं , लेकिन हमारे बीच वे अपनों कामों ,  हिंदी साहित्य में  लघुकथाओं , उपन्यासों , कहानियों के द्वारा जिंदे हैं। उनकी  अविस्मरणीय यादें मेरे साथ जुड़ी हैं । सारे सोशल मीडिया पर 11 जनवरी को प्रभात बेला में उनके परमधाम चले जाने की खबर मिली । सभी साहित्यप्रेमियों , आत्मीयजनों का संसार शोकाकुल हो गया। मेरा परिचय टेलीफोन द्वारा 10 साल पुराना है। आत्मीयता से भरा परिचय हम दोनों को एक दूसरे  का मिला। उन्होंने कहा कि लघुकथा लिखने  की सारी जानकारी मेरी किताब से मिल जाएगी । उसे पढ़कर तुम भी श्रेष्ठ लिखना सीख जाओगी। एक बार भारत विश्व के लघुकथाकारों के नाम , पता कि किताब के बारे में फोन आया था , तब मैंने अपना फोटो , पता भेजा था। मुझे नहीं मालूम कि किताब बनी है । एक बार वे बहुत दुखी लगे , उनकी पत्नी बहुत बीमार थी । वे पति के रूप में सेवारत रहते थे। तन मन धन से उन्होंने अपनी पत्नी , माँ की सेवा की थी । दोनों उनके सामने  चले गए । वे सेवानिवृत हो जाने के बाद लघुकथा के साहित्य विधा को आगे बढ़ाने में अंतिम साँस तक प्रयासरत रहे । उन्होंने इस क्षेत्र को नए प्रयोगों , सोच से इस विधा को ऊँचाई दी। मृत्युलोक से हर जीव को जाना है।जन्म के साथ ही  मृत्यु का सिलसिला जारी रहता है । इंसान वही है  जो उसके जाने के बाद उसके कार्यों , व्यक्तित्व से समाज , राष्ट्र याद करे । उन मिलनसार मधुदीप भाई को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि है।
- डॉ. मंजु गुप्ता
मुम्बई - महाराष्ट्र
छोटे साहित्यकारों को भी उनका अपार स्नेह मिलता था
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स्व. आ. मधुदीप गुप्ता  जी के लिए स्वतः ही हृदय श्रद्धांजलि देने को प्रस्तुत हो उठा। मैंने तीन-चार वर्ष पूर्व ही साहित्य में कदम रखा। मेरा प्रथम रूझान काव्य की तरफ था। दो वर्ष पूर्व आ. कांता राय जी के लघुकथा के परिंदे मंच से जुड़ी तो लघुकथा की तरफ आकर्षित होती गयी। धीरे-धीरे लघुकथा की बारीकियों को सीखने का प्रयास कर रही हूँ। लघुकथा के पुरोधाओं के बारे में जानकारियाँ मिलती गयीं। उन्हीं में आ मधुदीप गुप्ता जी के बारे में जानने का अवसर मिला। उनके  व्यक्तित्व की विशालता और लघुकथा के प्रति जुनून की जानकारी भी फेसबुक मंच पर ही मिली। उनके बारे में और जानने तथा लघुकथा को करीब से देखने की मंशा से मैंने उन्हें फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजा। उनकी विनम्रता की पराकाष्ठा देखकर मैं श्रद्धा से भर उठी। उन्होंने मेरा रिक्वेस्ट स्वीकार कर लिया। पिछले साल अपनी धर्मपत्नी के निधन से काफी आहत तो थे ही, किंतु इसका प्रभाव उनकी कार्य क्षमता को शिथिल न कर पाया; बल्कि और अधिक सक्रियता से उनकी याद में बहुत-से कार्य शुरू करने की बात की जिनमें नवांकुर साहित्यकारों के स्तरीय रचनाओं के प्रकाशन की बात भी की। छोटे साहित्यकारों को भी उनका अपार स्नेह मिलता था। हालाँकि मेरा कभी प्रत्यक्ष साक्षात्कार नहीं हुआ कभी, किंतु उनके पोस्ट और लघुकथा के लिए उनकी योजनाएँ पढ़ते हुए हमेशा निकटता का अहसास होता रहा। बहुत अफसोस के साथ मन को समझाने की कोशिश कर रही हूँ। अफसोस इस बात का कि उनके निधन से लघुकथा के क्षेत्र में हुई क्षति की भरपाई होनी मुश्किल है। उनकी रचनाओं को पढ़ना और लघुकथा से जुड़े रहना ही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
      - गीता चौबे गूँज
           राँची - झारखंड
साहित्यजगत के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है
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परम आदरणीय मधुदीप सर से मेरा कोई परिचय नहीं था। किंतु एक महान साहित्यकार का यूँ चले जाना अर्थात साहित्याकाश के एक चमकते सितारे का अस्त हो जाना। साहित्यजगत के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है। एक समर्पित लघुकथाकार के साथ एक संवेदनशील व्यक्तित्व के स्वामी भी वे थे।  साहित्यिक प्रतिभा में भावुकता का समावेश अर्थात सोने में सुहागा। उनकी प्रेरणा ने कई नवागतों के सपनों को उड़ान दी। अब उनके द्वारा अधूरे छोड़े कार्यों को पूरा करना है। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। ॐ शांति।
शब्दाजंलि
जाने वाले फ़िर नहीं आते
उनकी बातें याद आती है
कुछ लोग कर जाते काम ऐसा
छोड़ जाते हैं स्मृतियाँ ऐसी
कि वे रह रह के याद आते हैं
उनकी स्मृति सदा अमिट रहे
अगली पीढ़ी भी उन्हें याद करे
करें उनके नाम कुछ यादगार
अनुपम आयोजन सब मिलकर
बिखेरें अंजुरी भर शब्दपुष्प
आदरणीय मधुदीप जी को
शत शत नमन
सरला मेहता
इंदौर - मध्यप्रदेश
अपने अंतिम दिनों तक लघुकथा के लिए ही काम करते रहे
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आदरणीय मधुदीप सर, एक वरिष्ठ लघुकथा कार, कहानीकार, समीक्षक , संपादक एवं प्रकाशक।‌ बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व को सादर नमन।
आज आदरणीय मधुदीप सर के बारे में मन की बात कहने का अवसर मिला है। हृदय से निकले उद्गार, इस महान व्यक्तित्व के कृतित्व को भावपूर्ण श्रद्धांजलि है।
लघुकथा के क्षेत्र में नई होने के कारण, किसी से ज्यादा परिचय नहीं था। लघुकथा आयोजन 2020 में मेरी लघुकथा सोंधी महक को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ और बतौर पुरस्कार धनराशि के साथ पड़ाव एवं पड़ताल के तीन खंड, मधुदीप की नमिता सिंह और 66 laghukatha by Madhudeep पुस्तकें प्राप्त हुईं। 
इन पुस्तकों में सर का लघुकथा के प्रति समर्पण और प्रयोगधर्मिता का गुण दिखाई दिया। "लघुकथा आयोजन, एक समग्र प्रयास" पुस्तक पढ़कर हर ने प्रथम स्थान प्राप्त मेरी लघुकथा की प्रशंसा में कुछ शब्द लिखे, जो उसी लघुकथा पर दुबारा मिलने वाला, पुरस्कार था।
एक नए लेखक को और अच्छा लिखने की प्रेरणा देने वाले मधुदीप सर ने, मेरी एक लघुकथा को पड़ाव और पड़ताल 32 के लिए चयनित किया। मेरी लघुकथा "लघुकथा के परिंदे" पर पढ़कर सर ने अस्पताल से उसकी कुछ कमियाँ बताईं और फिर मैसेंजर में बात हुई हमारी।  एक प्रेरक व्यक्तित्व, जिन्होंने पूरे दिल से लघुकथा को जीवन में अपनाया, अपने अंतिम दिनों तक लघुकथा के लिए ही काम करते रहे। जुझारू, स्पष्टवादी और आत्मीय संबंध बना लेने वाले आदरणीय मधुदीप सर को भावपूर्ण नमन। आपके बताए मार्ग पर चलने का प्रयास करते रहना ही आपको सही अर्थों में श्रद्धांजलि अर्पित करना है। ईश्वर आपको सपत्नीक शांति प्रदान करें।🙏
- शर्मिला चौहान
ठाणे (महाराष्ट्र)
अब सिर्फ श्रद्धांजलि ही दी जा सकती है
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मधुदीप जी अस्पताल से ही बतियाते रहे। बोले कि 1876 से 2020 तक की 132 लघुकथाओं पर भूमिका के 180 पेज प्रूफ के लिए भेजे थे,अब तभी वापस भेजिएगा,जब घर लौट आऊं। नियति चक्र ,....अब किस घर भेजूं। इसमें 2000 - 2020 तक के 66 लघुकथाकारों की रचनाएं  भी शामिल। अंतिम समय तक लघुकथा को जीने वाला यह मिशन
अब सिर्फ श्रद्धांजलि ही दी जा सकती है।
- बी . एल . आच्छा
चेन्नई - तमिलनाडू
पूरा साहित्य जगत शोकाकुल है
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दिशा प्रकाशन के पूर्व निर्देशक और लघुकथा का एक बहुत जाना-माना लोकप्रिय नाम मधुदीप गुप्ता ग्यारह जनवरी को अंतिम यात्रा पर निकल पड़े।
मधुदीप गुप्ता जी लघुकथा के पर्याय थे। लघुकथा के क्षेत्र में इनका योगदान अनुपम है। इनकी कमी हमेशा खलती रहेगी। साहित्यिक गगन का एक सितारा डूब गया। अपने पीछे अनेक अनुयाइयों को बिलखते छोड़ चले गये। पूरा साहित्य जगत शोकाकुल है।
   मधुदीप जी की एक-दो लघुकथा ही हमें पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। ' हिस्से का दूध ' और 'पुत्रमोह' । दोनों लघुकथाएँ मार्मिक है। उन कथाओं के बारे में लिखने के लिये उपयुक्त शब्द नहीं मिल रहे हैं। शायद ही ऐसी लघुकथा पढ़ने को मिले।
'हिस्से का दूध ' लघुकथा जहाँ आर्थिक स्थिति को दर्शाती है, वहीं एक परिवार में किस तरह समर्पण का भाव है, वो भी हमें देखने को मिलता है। नारी परिवार की धुरी है। नायिका एक सफल माँ और एक सफल पत्नी की भूमिका के साथ एक कुशल गृहिणी भी है।पति स्वयं भूखे रहकर पत्नी की तरफ दूध खिसका देता है। एक पंक्ति में पूरे जीवन की कथा कह डाली।
वहीं 'पुत्रमोह' में एक बुजूर्ग  पिता अपनी मोह का परिणाम भुगत रहा था और अंतिम समय में अपने दोस्त के याद कर रहा है। यह कथा एक चिट्ठी के रूप में  लिखी गयी है।
         मधुदीप गुप्ता जी का पार्थिव शरीर भले ही नहीं रहा, लेकिन वो युगान्तर तक अमर रहेंगे। साहित्य जगत उनकी देन को भूल नहीं सकता है। भगवान उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें। ऊँ शान्ति ।
                               - पुष्पा पाण्डेय 
                                राँची - झारखंड
वे नवागत रचनाकारों के प्रेरणास्रोत रहे
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परम आदरणीय मधुदीप जी का यूँ परमात्मा में विलीन होना,लघुकथा साहित्य के लिये अपूरणीय क्षति है।शान्त,सौम्य व्यक्तित्व के धनी मधुदीप सर का लघुकथा में अनुपम योगदान रहा। उनकी लघुकथा "हिस्से का दूध" मन में बस गई है। उसे भूलना सम्म्भव नहीं है।पारिवारिक प्रेम और समर्पण की अद्वितीय लघुकथा है वह। हालाँकि सर से प्रत्यक्ष तो कभी मिलना हुआ नहीं,लेकिन उनकी लघुकथा पढ़कर उनके करीब पहुँचने का अवसर मिला। बहुत ही सम्वेदनशील व्यक्तित्व रहा उनका। वे सम्पादक,प्रकाशक,समीक्षक,लघुकथा कार थे। वे नवागत रचनाकारों के प्रेरणास्रोत रहे।बहुत कुछ उनसे लघुकथा के सम्बंध में सीखा।हम जैसे नये साहित्य कारो के लिये भी उनके मन प्रेम,स्नेह रहा।एक बार ही मैने उनसे फोन पर सम्पर्क किया,विश्वास नहीं हुआ कि इतने बड़े साहित्यकार से मैं प्रश्न कर रही हूँ।उन्होने बहुत अच्छे से लघुकथा के बारे में मेरी शन्काओं का समाधान किया। लघुकथा के लिये पूर्ण रूपेण समर्पित साधक,मधुदीप सर का संसार से विदा ले लेना, हम सभी के लिये दुखद स्तिथि है। ईश्वर उन्हे अपने श्री चरणों में स्थान दे। ओम शान्ति 🙏🌹
                                 - सुनीता मिश्रा
                                भोपाल - मध्यप्रदेश
वे लघुकथा ही नहीं साहित्य जगत के मजबूत स्तंभ थे 
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मधुदीप सर का इस तरह चले जाना नि: संदेह साहित्य जगत की बहुत बड़ी क्षति है।लेखन क्षेत्र में विगत दो वर्षों से ही जुड़ी हूं और अपने अकाउंट पर ही लिखती थी । साहित्य जगत के दिग्गज साहित्यकारों से इतना परिचय न था । भारतीय लघुकथा विकास मंच से जुड़ने के बाद कई मूर्द्धन्य साहित्यकारों से  परिचय हुआ और मधुदीप सर को भी इन्हीं दिनों पहचानने लगी । उनके बारे में यही जाना और समझा की वे लघुकथा ही नहीं साहित्य जगत के मजबूत स्तंभ थे और अंतिम समय तक भी लघुकथा विधा ही नहीं साहित्य जगत को अपनी अप्रतिम सेवाएं प्रदान कर एक नई दिशा दी और यह प्रेरणा दी की मनुष्य को अंतिम समय तक कर्मठ और अपने कार्य के प्रति जागरूक और उत्साहित रहना चाहिए। मधुदीप सर को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि🙏🙏🙏
                       - डॉ. संगीता शर्मा
                    हैदराबाद - तेलंगाना
ऑनलाइन श्रद्धांजलि मधुदीप गुप्ता जी को
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आदरणीय मधुदीप गुप्ता जी से व्यक्तिगत रूप से तो मैं बहुत अधिक नहीं मिला या मिल पाया। बल्कि यह कहूँ तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि किसी से भी मैं बहुत अधिक नहीं मिल पाता, या संपर्क रख पाता। कारण कई हैं, परंतु फ़िलहाल बात मधुदीप जी की हो रही है तो उन्हीं पर केंद्रित रहना चाहूंगा। मधुदीप जी से मेरी आमने सामने कभी मुलाकात नहीं हुई, परंतु फोन पर कई बार बात हुई। कुछ लघुकथाओं को लेकर, कुछ शुभ तारिका पत्रिका को लेकर, और कुछ दिशा प्रकाशन एवं भविष्य की उनकी योजनाओं को लेकर। साहित्य को लेकर कभी वे बहुत उत्साहित नज़र आते, तो कभी उन्हें यह भी लगता कि वे जो कर रहे हैं, पता नहीं कहाँ तक सार्थक और सही है। भविष्य को लेकर उनकी कई योजनाएं अभी भी थीं, हालांकि उन्होंने लघुकथा के क्षेत्र में बहुत काम कर भी लिया था। उनकी असली चिंता थी- पाठक। उन्होंने कहा भी कि आजकल पाठक धीरे धीरे कम होते जा रहे हैं। ऐसे में साहित्य पढ़ेगा कौन, तो लिखा किसके लिए जाएगा, और प्रकाशित क्यों और कितना किया जाएगा? मेरा एक ही उत्तर था, "सामर्थ्य अनुसार, अथवा जैसा आपका मन करे। बाकी मूल्यांकन तो समय आने पर ही होता है, और वह समय कब आएगा, आएगा भी या नहीं, कुछ पता नहीं।" और वह करते गए, जितना सामर्थ्य था, जितनी इच्छा थी, आखिरी दम तक। मैं अन्य साहित्यकारों के उनसे संपर्क, बातचीत, पोस्टों इत्यादि से ही अधिकतर उनके संपर्क में रहा, जैसा अन्य सभी के साथ हूं, उनसे भी जिनसे मेरी घनिष्ठता है। अर्थात मेरी मुलाकात मधुदीप जी से शारिरिक कम, आत्मीय अधिक थी, बेशक संपर्क कम था। मधुदीप जी कई ऐसे कार्य कर गए हैं, जिनके कारण उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा, इस बात के अतिरिक्त कि वह एक जिंदादिल, हँसमुख, संवेदनशील और कर्मठ इंसान थे। एक प्रश्न यह भी है कि अब उनकी विरासत यानी दिशा प्रकाशन को कौन संभालेगा?
                            - पंकज शर्मा
                             अम्बाला - हरियाणा
मधुदीप  : लघुकथा की दुनिया का एक चमकता सितारा
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     मधुदीप ने अपना सारा जीवन लघुकथा को समर्पित होकर जीया  । बेशक वे एक प्रकाशक थे एक सफल प्रकाशक लेकिन उन्होंने प्रकाशन के क्षेत्र में कभी लघुकथा को लेकर समझौता नहीं किया । प्रकाशन उनका व्यवसाय था और लघुकथा उनकी पूजा थी । वे लघुकथा के , देश के मर्मज्ञ लोगों में से एक जाने जाते थे । उनकी एक बहुत पुरानी लघुकथा मुझे याद है जिसमें उस लघुकथा के दो पात्र आत्महत्या करने के बजाय वे कहते हैं ...." हम आत्महत्या क्यों करें... चलो हम जिंदगी से लड़कर मरते हैं ।" इससे शानदार बात और कुछ नहीं हो सकती जो लघुकथा के माध्यम से कहीं जा सके । लघुकथा को कितना पैना बनाया जा सकता है यह मधुदीप की  लघुकथाओं से सीखा जा सकता है । मुझे पाँच वर्ष पहले हरियाणा ग्रंथ अकादमी की तरफ से एक संकलन का संपादन करने का अवसर मिला था । हालांकि वह बाद में अन्य कारणों से सिरे नहीं चढ़ पाया था  लेकिन उन्होंने अपनी पाँच लघुकथाएं मुझे भेज दीं । मैं यह तय नहीं कर पाया कि इसमें से दो लघुकथाएं कौन सी छाँटूं । मैंने बार-बार उन लघुकथाओं को पढ़ा । हर कोने से पढ़ा , हर दृष्टि से पढ़ा लेकिन उनमें से कौन सी दो लघुकथाएं लूं और कौन सी छोड़ूँ , यह मेरे लिए कठिन था । मैंने फैसला किया कि मैं पाँचों लघुकथाएं छापूंगा । यह था उनकी लघुकथा का स्तर  जो सभी को प्रभावित करता था । नए लघुकथाकारों को उन्होंने पर्याप्त स्थान दिया और जिनके भीतर लघुकथा क्षमता थी उस क्षमता का उन्होंने अपने प्रकाशन के लिए , लघुकथा के लिए खूब उपयोग किया । सोने को कैसे चमकाया जा सकता है वे इस बात से भलि भांति परिचित थे । हर बार जब वह लघुकथा के बारे में कुछ कहते हैं तो निसंदेह वह सब मौलिक ही होता था । एक नई बात होती थी जिसका अनुसरण करने के लिए हर कोई लालायित रहता था । मधुदीप ने लघुकथा में कई नए प्रयोग किए । उन्होंने मेरी 11 लघुकथाएं अपने एक संकलन में प्रकाशित कीं । मैंने उसमें अन्य लघुकथाकारों की रचनाएं भी पढ़ीं । कहीं से भी उनकी लघुकथाएं उन्नीस नहीं थी , इक्कीस ही थी । संपादन में वे लघुकथा के प्रति इतने निर्मम थे कि केवल अच्छी और बढ़िया रचना छांटना उन्हें बखूबी आता था । इसके लिए वह कभी किसी के साथ समझौता नहीं करते थे । और लघुकथा की दुनिया में यह एक बहुत बड़ा चमत्कार है कि उन्होंने संकलन पर संकलन दिए और पड़ाव और पड़ताल के रूप में संकलनों की इतनी बड़ी एक श्रृंखला खड़ी कर दी । वैसी श्रंखला लघुकथा के इतिहास में आज तक कोई नहीं बना पाया है । उनका ध्यान केवल लघुकथा पर होता था । फिर भी उन्होंने कहानियाँ भी लिखीं और उपन्यास भी लिखे । मैं समझता हूँ जो व्यक्ति एक अच्छी लघुकथा लिख सकता है वह व्यक्ति , वह लेखक  उपन्यास लिख सकता है , कहानी लिख सकता है क्योंकि यह तीनों विधाएं कथा विद्या की लोकप्रिय उपविधाएं हैं । 
     वे यूँ अचानक ही चले जाएंगे यह उम्मीद नहीं थी । जब भाई बलराम अग्रवाल ने अपने फेसबुक ग्रुप में उनका चित्र देकर 1 मई 1950 -- 11 जनवरी 2022 की एक पोस्ट लगाकर सूचना दी तो मैं बड़े गौर से उसको देखता रहा । मधुदीप के लिए 1 मई 1950 -- 11 जनवरी 2022 , किसलिए ? मेरा मन नहीं माना । मैं देर तक उस पर मंथन करता रहा । मुझे उस पर विश्वास नहीं हुआ । मैंने बलराम अग्रवाल को फोन मिलाया और फोन मिलते ही मैंने कहा , " यह कैसे हो गया अचानक ...यह क्यों हो गया ? " तब उन्होंने विस्तार से जीवन से जूझ रहे उस महान लेखक के बारे में बताया कि किस तरह वे एक गंभीर बीमारी से परेशान थे । उनका ऑपरेशन हुआ था लेकिन अंततः वे हमारे बीच से उठकर चले गए । कभी ना आने के लिए । ऐसे महान लघुकथा पुरुष को मैं प्रणाम करता हूँ और उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ । 
                               - राजकुमार निजात 
                                सिरसा - हरियाणा
लघुकथा के लिए स्मर्पित ही उन्होंनें अपने जीवन का लक्ष्य बनाया हुआ था
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आदरणीय मधुदीप सर... दिशा प्रकाश के निदेशक,वरिष्ट लघुकथाकार, समीक्षक,संपादक लघुकथा साहित्य के ऐसे स्तम्भ जिनका लघुकथा साहित्य में योगदान कभी भुलाया नही जा सकता ।लघुकथा के लिए स्मर्पित ही उन्होंनें अपने जीवन का लक्ष्य बनाया हुआ था। उन का लघुकथा के लिए कहना था कि से"लघुकथाकार की दृष्टि में वे पल ही महत्वपूर्ण होते है जो कहानीकार उपन्यासकार  से उपेक्षित रह जाते हैं। उन पलों की कथा ही लघुकथा होती हैं ।और गुण -धर्म इस विधा को  विशिष्ट भी बनाता है और अन्यविधाओं से अलग भी बनाता हैं "। फ़ेसबुक पर उन  की  चुनिन्दा लघुकथा" नमिता सिंह" को पढकर उन की चुनिन्दा लघुकथा की पुस्तक मंगवायी थी। तब  सर से बात की थी ..उस समय उन का स्वास्थ्य ठीक ना होनें पर भी  जल्दी ही पुस्तक भेज दी..  एक सप्ताह में ही पुस्तक मेरे हाथों में थी ।  उन की सभी लघुकथा को पढनें पर यही बात समझ में आती हैं कि उनकी हर लघुकथा की सुक्ष्म से सुक्ष्म बात पाठक को संवेदनां के साथ मन तक पहुचती हैं।एक वर्ष पहले जब उनकी जीवन संगिनी उन्हें अलविदा कह गयी थी ।तब से फेस बुक पर उनके मुस्कुराते चेहरे के पीछे छिपा दर्द उन के शब्दों में लिखा होता था।सर से पुस्तक मेले में मिलना हुआ था ।उस से पहले मैं उन से परिचित नही थी । लघुकथाकार, समीक्षक, संपादक ,लघुकथा के पुरोधा मधुदीप सर को सादर श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ ।लघुकथा साहित्य मेंउन के जाने से हुई क्षति को कम नही किया जा सकता वो सभी साहित्य अनुरागिंयों की हमेशा स्मृति में रहेंगे।🙏🏿🙏🏿
                                     - बबिता कंसल
                                          दिल्ली
कई  बेहतरीन लघुकथाकारों  से 2019 से मिलने क़ी तमन्ना संजोये हैँ 
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आदरणीय  मधुदीप  गुप्ता जी क़ी अकस्मात मृत्यु से लघुकथा  जगत में एक बहुत  ही बेहतरीन लिखारी क़ी कमी खलती  रहेगी 
सादर नमन...
मैडम  अंजू खरबन्दा जी क़ी पोस्ट्स पे अक्सर उनका जिक्र नज़र आता  था . कोरोना के बिगाड़े हालात  के चलते कई  बेहतरीन लघुकथाकारों  से 2019 से मिलने क़ी तमन्ना संजोये हैँ जिनमे से मधुदीप  गुप्ता जी से भी शायद मिलने का कुछ सीखने का अवसर मिलता.
                                - रमेश सेठी
                               रोपड़ - पंजाब
हमने एक नेक दिल इनसान को खोया है
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आदरणीय मधुदीप जी ने लघुकथा विधा के लिए सबसे हटकर कार्य किया.हम सब अपने नाम के लिए काम करते परन्तु मधुदीप जी ने दूसरे लघुकथाकारों के नाम के लिए काम किया. उन्होंने वरिष्ठ लघुकथाकारों की लघुकथाओं पर संग्रह निकाले वहीं हम जैसे नौसिखिया को भी आगे बढने का मौका दिया. उन्होंने अपनी धर्मपत्नी की याद में एक प्रतियोगिता के माध्यम से किसी एक लेखक की  श्रेष्ठ लघुकथाओं पर भी संग्रह निकाला. वे लघुकथा को अपनी बेटी मानते थे. अर्थात वे इस विधा के प्रति पूरी तरह समर्पित थे. उनके जाने से  जहाँ लघुकथा विधा को एक बडी़ क्षति हुई वहीं हमने एक नेक दिल इनसान को खोया है.
                               - राधेश्याम भारतीय
                                करनाल - हरियाणा
मार्गदर्शक अब मार्गदर्शन नहीं कराएगा
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लघुकथा से  परिचय होने के लगभग साथ ही साथ मधुदीप सर से परिचय हुआ था मेरा, कि लंबी-लंबी कहानियाँ लिखने की आदी थी मैं तो और जो लघुकथा का फॉर्मेट देखा तो लगा यह तो बड़ी आसान विधा है। छोटी सी घटना भी लिख दो तो हो गई लघुकथा!  मेरी सहेली जो आज इस क्षेत्र की स्थापित शख्सियत है, मेरी बातें सुनकर मुस्कुरा ही रही होगी उस समय, और फिर उसने मुझे मधुदीप सर से परिचित करा दिया। फिर तो ढेर सारी आत्मीयता के साथ जब उन्होंने लघुकथा के कितने ही आयामों से मेरा परिचय कराना शुरू किया  तो लगा, इनसे मैं पहली बार बात कर रही हूँ क्या?  आश्चर्यचकित भी थी कि मेरे कहे बिना ही मेरी इतनी सारी गलतफहमियों को भला कैसे जान गए थे वह?
बहुत दिन बाद, अचानक एक दिन फोन आया उनका... पहली बात तो यह, कि मैं अभी भी याद थी उन्हें और जब उन्होंने कहा, "परिंदे पर तुम्हारी रचना देखी। अच्छा लिखने लगी हो।" तो मेरा आत्मविश्वास अचानक हिलोरे मारने लगा। सर ने कहा, "अब तुम कुछ प्रयोगवादी कथाएँ लिखकर मुझे भेजो।" ...फटाफट लिख कर भेज दी। मैं तो अब सर के द्वारा मान्यताप्राप्त लेखिका थी! थोड़े दिन बाद फिर फोन आया, "इसमें प्रयोग कहाँ है? छोड़ो, तुमसे नहीं हो पाएगा।" बात खट् से लगी! ... "नहीं सर! मैं फिर से भेजती हूँ।" समझ गई कि मेहनत करनी पड़ेगी। ऐसे ही सर को खुश नहीं कर पाऊँगी।
हथेलियाँ खाली हैं! मार्गदर्शक अब मार्गदर्शन नहीं कराएगा। मन पूछने को आतुर है, ईश्वर अच्छे लोगों की इतनी परीक्षा क्यों लेते है? सादर नमन सर, आप हमारे दिल में हमेशा प्रतिस्थापित रहेंगे। 
                            - श्रुत कीर्ति अग्रवाल 
                                 पटना - बिहार
लघुकथा की आकाशगंगा में वे ध्रुव तारे के समान सदा दीप्तिमान रहेंगे 
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जब जब लघुकथा का जिक्र होगा मधुदीप सर का नाम बड़े अदब से लिया जाएगा । पड़ाव और पड़ताल के 32 खंड प्रकाशित कर उन्होंने एक अभूतपूर्व कार्य किया । लघुकथा विधा के वे मशाल वाहक थे । लघुकथा इतिहास के पन्नों पर वे अपना नाम अमर कर गए । चाहकर भी वो खुद को लघुकथा से जुदा नहीं कर सके । लघुकथा विधा में उन्होंने गुरु महिमा का सदा खंडन किया । वो हमेशा कहा करते थे कि " गुरु मानियो ग्रन्थ "  उन्होंने हमेशा पुस्तकों से पढ़कर सीखने पर बल दिया ।लघुकथा की आकाशगंगा में वे ध्रुव तारे के समान सदा दीप्तिमान रहेंगे । उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को मेरा सादर नमन । विनम्र श्रद्धांजलि ।
                                  - कुणाल शर्मा
                                अम्बाला शहर - हरियाणा
उनका लेखन बहुत ही उच्च स्तर का है
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मधुदीप गुप्ता जी उन गिने चुने लोगों में से एक थे, जिन्होंने अपना तन - मन - धन या कहें सर्वस्व साहित्य विशेष रूप से लघुकथा के लिए समर्पित कर दिया था। 
यूँ तो मैं छुटपुट तौर पर 1995 से लघुकथा लिख रहा था, परंतु 2012 में मधुदीप गुप्ता जी से मिलने और उनकी पड़ाव और पड़ताल श्रृंखला की पुस्तकें पढ़ने के बाद मुझमें लघुकथा की समझ आई और मैं भी इस विधा में अधिकारपूर्वक लिखने लगा हूँ। 
गुप्ता जी बहुत अच्छे साहित्यकार ही नहीं बहुत हीअच्छे इंसान भी थे। लगभग हर चार - छह महीने में उनसे बात हो ही जाती थी। वे हमेशा बेटा कहकर ही संबोधित किया करते थे। उनका लेखन बहुत ही उच्च स्तर का है।
उनकी स्मृति को सादर नमन। विनम्र श्रद्धांजलि।
                           - डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
                             रायपुर - छत्तीसगढ़


 







Comments

  1. कृपया मेरी प्रविष्टि में :

    अंतिम अनुच्छेद में ये पंक्तियाँ भी जोड़ दीजिएगा :

    उनके 'दिशा प्रकाशन' के 'विश्व हिंदी लघुकथाकार कोश' के सृजन को सदा विशेष सम्मान से याद किया जायेगा। पड़ाव और पड़ताल शृंखला की तरह कोश तैयार करने का उनका समर्पण और जुनून और नये लघुकथा लेखकों को सम्मिलित कर उन्हें कोश में स्थान देकर अविस्मरणीय प्रोत्साहन प्रदान करना भी लघुकथा साहित्य जगत में सदा याद किया जायेगा। मुझे इस विश्व कोश में व इसके बाद इसके निदेशिका प्रारूप के प्रकाशन में स्थान दिया जाना लघुकथा विधा में अभ्यास करते रहने व लघुकथा लेखन में निरंतरता बनाये रखने में अद्भुत प्रोत्साहक रहा है। मुझ जैसे नवलेखकों के लिये एक दीप है उनका यह विशेष सृजन।

    - शेख़ शहज़ाद उस्मानी
    शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
    (20-01-2021)
    sheikh.shahzad.usmani.lekhani@gmail.com

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