सोशल मीडिया पर हिन्दी पत्रकारिता के विभिन्न आयाम
हिन्दी पत्रकारिता का स्वरूप समय के साथ परिवर्तित होता रहा है। कल तक जो पत्रकार छापेखानों में समाचारों की सुर्खियाँ गढ़ते थे, आज वे स्मार्टफोन के एक टच से लाखों पाठकों तक पहुँच बना लेते हैं। इस परिवर्तन का केंद्र सोशल मीडिया है।
सोशल मीडिया : नयी क्रॉंति का शुभारम्भ :-
सोशल मीडिया ने सूचना के आदान-प्रदान की परम्परागत धाराओं को तोड़ा है। फेसबुक, ट्विटर (अब एक्स), यूट्यूब, इॅंस्टाग्राम, व्हाट्सएप इत्यादि जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स ने हिन्दी पत्रकारों को न केवल व्यापक पहुँच दी, बल्कि स्वतन्त्रता, सशक्तता और तत्कालता का नया आयाम भी प्रदान किया है।अब पत्रकार किसी बड़े सॅंस्थान पर निर्भर नहीं; वह अपने मोबाइल कैमरे से सत्य को सीधे जन-जन तक पहुँचा सकता है।
सकारात्मक आयाम : -
1. लोकतन्त्रीकरण : सोशल मीडिया ने साधारण नागरिक (व्यक्ति) को भी 'जनपत्रकार' बना दिया है। अब गांवों के कोनों से भी ध्वनि उठ सकती है।
2. तत्काल रिपोर्टिंग: घटनास्थल से तुरन्त वीडियो, फोटो और विवरण प्रसारित किए जा सकते हैं।
3. वैकल्पिक मॅंच : पारम्परिक मीडिया के सीमित स्थानों और सेंसरशिप से परे यह एक खुला मॅंच है, जहाँ हिन्दी भाषी पत्रकार खुलकर अभिव्यक्ति कर सकते हैं।
4. युवाओं की भागीदारी : नई पीढ़ी, विशेष रूप से ग्रामीण व अर्ध-शहरी क्षेत्रों के युवा, अब पत्रकारिता से जुड़ रहे हैं।
चुनौतियाँ और प्रश्न : -
1. भ्रम और अफवाहें : बिना पुष्टि के समाचारों का प्रसार सोशल मीडिया का एक बड़ा दोष है। इससे पत्रकारिता की साख पर आघात होता है।
2. अभद्र भाषा और ट्रोलिंग: पत्रकारों को सत्य बोलने की कीमत गालियों, धमकियों और बहिष्कार के रूप में चुकानी पड़ती है।
3. विज्ञापन और प्रायोजित खबरें : कई बार सोशल मीडिया पत्रकारिता भी बिकाऊ होती नज़र आती है, जहाँ सच्चाई से अधिक प्रायोजक का हित महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
4. विधिक (कानूनी) अनभिज्ञता : कई बार सोशल मीडिया पत्रकार कानून, जैसे आई.टी. एक्ट, मानहानि कानून या प्रेस परिषद के निर्देशों से अनभिज्ञ रहते हैं।
समाधान की दिशा में :-
डिजिटल पत्रकारिता का प्रशिक्षण : हिन्दी पत्रकारों के लिए तकनीकी और विधिक प्रशिक्षण अति आवश्यक है।
स्व-नियमन : -
पत्रकारों को आत्मानुशासन और नैतिकता की मर्यादा में रहकर रिपोर्टिंग करनी चाहिए।विश्वसनीयता और प्रमाणिकता की पुनर्स्थापना : सत्य, तथ्य और निष्पक्षता पर आधारित सामग्री ही समाज में विश्वास जगा सकती है।
स्थानीयता पर ध्यान : -
हिन्दी पत्रकारिता को अपनी जड़ों से जुड़े रहना होगा — ग्रामीण, जनजातीय और हाशिये पर खड़े समाज की बुलन्द ध्वनि बनना होगा। सोशल मीडिया हिन्दी पत्रकारिता के लिए वरदान और चेतावनी भी है। यह एक ऐसा मॅंच है जो पत्रकार को 'किंगमेकर' भी बना सकता है और एक क्षण में उसकी साख भी ध्वस्त कर सकता है।हमें यह समझना होगा कि पत्रकारिता सिर्फ़ समाचार देना नहीं, बल्कि समाज के लिए एक सार्थक हस्तक्षेप भी है। सोशल मीडिया का विवेकपूर्ण उपयोग हिन्दी पत्रकारिता को जन-जन की पत्रकारिता बना सकता है।
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं - जम्मू और कश्मीर
21वीं शताब्दी के आगमन के साथ ही दुनिया मछुआरे के जाल सी सिमट गई, और जाल में भरी मछलियां बिकने के लिए बाजार में उतर गई, नैटवर्क ने जो कर दिखाया वह तो किसी ने महज तीस साल पहले तक सोचा तक नहीं होगा, हर वैज्ञानिक आविष्कार कुछ अच्छे कुछ बुरे प्रभाव दिखाता है तो नैटवर्क ने भी संसार पर दोनों तरह के प्रभाव बखूबी डाले और ऐसे कि इन प्रभावों से सारा ही संसार प्रभावित हुआ है, जन जन को अपनी चपेट में लेने वाली डिजिटल सुविधा ने मजदूर से लेकर हर मजबून को अपने प्रभाव से अछूता नहीं छोड़ा है तो हिंदी पत्रकारिता कैसे अछूती रह सकती है, जबकि हिंदी साहित्य और हिंदी में काम करने वाली मिडिया की हमारे भारत में भरमार है क्योंकि हिंदी हमारी राजभाषा है और यदा कदा लोगों को राष्ट्रभाषा का सपना भी दिखा देती है तो आज हम हिंदी पत्रकारिता पर नैटवर्क के अंतर्गत काम करने वाले स्मार्टफोन के जरिए बन चुकी सोशल मिडिया पर हिंदी पत्रकारिता पर जो जैसे प्रभाव पड़े हैं उनका अध्ययन निम्न शीर्षकों के अंतर्गत करते हैं:
1.सस्ते में सब जानकारी : -
सोशल मीडिया पर अनेकानेक एप प्रचार प्रसार का काम कर रहें हैं, फेसबुक से लेकर यूट्यूब तक बीच के सभी एप ट्विटर हो, इंस्टाग्राम हो, या वाट्स एप, प्रचार प्रसार का सभी सशक्त माध्यम हैं, मिनटों में ही नहीं सैकिंडो में कोई समाचार कोई घटना-दुर्घटना बहुत दूर तक पहुंच जाती है जो सोशल मीडिया से पहले सम्भव थी ही नहीं ।
हर समाचार पत्र, हर पत्रिका ( साहित्यिक -धार्मिक-वैज्ञानिक-औषधिय-सामुदायिक) के अपने एप, अपने पोर्टल हैं जिनका लोग अपनी अपनी पसंद के अनुसार उपयोग करते हैं बिना किसी अतिरिक्त खर्च के, यह सुविधा हर सुविधा पर भारी पड़ रही है ।
2. वाट्स एप और फेसबुक आदि के जरिए एक देश से दूसरे देश तक बिना खर्च बातचीत और परस्पर अपनी अपनी स्थिति की जानकारी शेयर करके मिनटों में प्रसारित कर दी जाती है, न सिम बदलने की जरूरत, न अतिरिक्त खर्च ।
3. भाषा-शैली पर प्रभाव:-
सोशल मीडिया के कारण हिन्दी भाषा सबसे अधिक प्रभावित हुई है क्योंकि सोशल मीडिया उपयोग कर्ता हिंदी को धड़ल्ले से रोमन लिपि में लिख रहे हैं, जो हिंदी और देवनागरी लिपि के लिए खतरे की घंटी बजा रहा है ।
4. झूठ का प्रसार :-
लिंक काॅपी की सुविधा ने सभी को ज्ञानवान-बुद्धिमान-दोहाकार-गजलकार-लघुकथाकार आदि साहित्यिक चीजें चोरी करनी सिखा दी, बड़ी आसानी से लोग ग्रुप ज्वाइन करके दो चार दस दिन में पूरी पुस्तक का मसौदा तैयार कर देते हैं, कौन जानता है किस प्रकाशन ने किसे कब प्रकाशित कर दिया, जहाँ पुस्तकों की गिनती की बात आती है तो साहित्यिक चोर सब, अग्रिम पंक्ति में खड़े मिलते हैं ।
विडियो एडिटिंग, मसौदा एडिटिंग न जाने किस लेख आलेख को किस विडियो को कौन सा रूप प्रदान कर दे, यह एडिटर के कौशल चातुर्य पर निर्भर है जैसे पत्रकार भाई स्याह को सफेद करने में चतुराई से काम लेते हैं उससे सौ गुना बढ़कर सोशल मीडिया पर चतुराई काम आ रही है जो हर क्षेत्र के लिए घातक है और दिन दूर नहीं कि इसके दुष्परिणाम निर्दोष लोगों को भी भुगतने पड़ेंगे ।
5. पाठकों की भागीदारी:-
सोशल मीडिया का प्रयोग आजकल हर शिक्षित ही नहीं अल्प शिक्षित व्यक्ति भी कर रहा है, कोई भी लेख आलेख सोशल मीडिया पर अधिकांश लोग पढ़ते हैं, जो आॅफलाइन पाठकों की संख्या से हजार गुना ज्यादा होता है, हाथ में मोबाइल है, बस या रेल के सफर में हर व्यक्ति मोबाइल चला रहा होता है, कुछ न कुछ पढ़ रहा होता है ।
समाचार उत्पादन और वितरण की दिशा में तो अद्भुत प्रर्दशन किया है सोशल मीडिया ने पत्रकारों को समाचार इकट्ठा करने, प्रसारित करने और दर्शकों के साथ जुड़ने के नए तरीके प्रदान किए हैं। यह पत्रकारों को अपने स्रोतों से जुड़ने, जानकारी इकट्ठा करने और समाचार को तेजी से प्रसारित करने में मदद करता है।
भाषा और संचार: सोशल मीडिया ने हिंदी भाषा और संचार के तरीकों पर भी प्रभाव डाला है। यह लोगों को अपनी बात कहने और विचारों को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करता है, जिससे भाषा और संचार के नए रूप सामने आए हैं।
सकारात्मक प्रभाव: -
1.समाचार को तेजी से प्रसारित करने की क्षमता
2.दर्शकों के साथ जुड़ने के नए तरीके
3.विचारों और जानकारी को साझा करने के लिए एक मंच
नकारात्मक प्रभाव: -
1.फर्जी खबरों का प्रसार
2.भाषा और संचार के तरीकों में बदलाव ।
3.समाचार की गुणवत्ता में कमी
4.देवनागरी लिपि की उपेक्षा
कुल मिलाकर, सोशल मीडिया ने हिंदी पत्रकारिता को नए अवसर और चुनौतियाँ प्रदान की हैं। पत्रकारों और समाचार संगठनों को इन चुनौतियों का सामना करने और सोशल मीडिया का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए नए तरीकों और रणनीतियों को विकसित करना होगा, लिंक काॅपी की सुविधा को रोककर अधिकतर फर्जीवाड़ा रोका जा सकता है । वरना वह दिन दूर नहीं जब हर ज्ञान वान सोशल मीडिया से कट जायेगा ।
- सरोज दहिया 'सरोज'
सोनीपत - हरियाणा
पिछले एक दशक में सोशल मीडिया ने संवाद और सूचना के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। यह परिवर्तन हिंदी पत्रकारिता को भी अछूता नहीं रहा। एक समय था जब समाचार पत्र और टेलीविजन ही जनसूचना के प्रमुख स्रोत थे, लेकिन आज फेसबुक, ट्विटर , इंस्टाग्राम, यूट्यूब और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म्स ने न केवल समाचारों के प्रचार-प्रसार को सहज और त्वरित बनाया है, बल्कि पत्रकारिता के स्वरूप, उद्देश्य और दायरे को भी नया आयाम दिया है। अब कोई भी घटना घटने के कुछ सेकेंड बाद ही जन-जन के बीच आ जाती है।
सोशल मीडिया ने पत्रकारिता को एक सीमित वर्ग की बपौती से निकाल कर जन-जन की भागीदारी वाला माध्यम बना दिया है।अब किसी आम नागरिक के पास भी मोबाइल फोन उपलब्ध होता है। और उसके पास भी इंटरनेट के सहारे घटना का साक्ष्य, विश्लेषण और रिपोर्ट साझा करने की क्षमता होती है।
"अब हर हाथ में कैमरा है,
अब हर आँख है पत्रकार,
कभी वायरल सच का चेहरा,
कभी अफवाहों की मार।"
हिंदी पत्रकारिता ने सोशल मीडिया की तात्कालिकता को आत्मसात कर लिया है। अब टीवी पर आने से पहले खबर ट्विटर या फेसबुक पर होती है। पत्रकार 'ब्रेकिंग न्यूज' के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे हैं — लाइव रिपोर्टिंग, वीडियो स्टोरीज, और इन्फोग्राफिक्स से यह और आकर्षक बनती जा रही है। सोशल मीडिया पर पत्रकार अपनी बात बिना संपादकीय दबाव के रख सकता है। स्वतंत्र पत्रकारिता और विचार विमर्श को इससे नया मंच मिला है। खासतौर पर ग्रामीण या उपेक्षित मुद्दों को भी अब आवाज मिलने लगी है।
"वो मुद्दे जो दबा दिए गए,
अब ट्रेंड में आते हैं,
सत्ता की नींद चुराने को,
हैशटैग जागते हैं।"
वर्तमान में अनेक हिंदी पत्रकार अपने व्यक्तिगत यूट्यूब चैनल्स और ब्लॉग्स चला रहे हैं। इससे मुख्यधारा मीडिया के विकल्प के रूप में एक 'डिजिटल हिंदी पत्रकारिता' का उदय हुआ है, जो न केवल विचारशील है, बल्कि गहराई में जाकर मुद्दों की पड़ताल करती है। सोशल मीडिया ने हिंदी पत्रकारिता को भाषाई और भौगोलिक सीमाओं से बाहर निकाल दिया है। अब ग्रामीण भारत भी संवाद का हिस्सा है।पारंपरिक मीडिया जहाँ शहरी केन्द्रित रहा, वहीं सोशल मीडिया पर गांवों से जुड़े मुद्दे, स्थानीय पत्रकारों की रिपोर्टिंग, और जन-आंदोलनों को स्थान मिल रहा है।जहाँ सोशल मीडिया ने सूचना को सशक्त बनाया है, वहीं फेक न्यूज, आधी-अधूरी रिपोर्टिंग और सनसनीखेजता इसकी गंभीर चुनौतियाँ हैं। इसके चलते पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हुए हैं।
"सूचनाओ की भीड़ में,
अब सच कहीं खो जाता है,
कभी झूठ सच्चा लगता है,
जब ट्रेंड बन जाता है।"
सोशल मीडिया पर हिंदी पत्रकारों को विचार व्यक्त करने पर ट्रोलिंग, दुष्प्रचार, और ऑनलाइन हमलों का भी सामना करना पड़ता है,विशेषकर महिला पत्रकारों को जगह-जगह पर बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।अब पत्रकार सिर्फ खबर नहीं देते, वे स्वयं एक ब्रांड बन जाते हैं रवीश कुमार, अजीत अंजुम, अंशुमान तिवारी,और कई अन्य पत्रकारों की डिजिटल उपस्थिति उनके व्यक्तिगत दृष्टिकोण और रिपोर्टिंग शैली को एक अलग पहचान देती है। अंत में हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि सोशल मीडिया ने हिंदी पत्रकारिता को एक नई ऊर्जा, व्यापकता और सजगता दी है। अब पत्रकारिता सिर्फ अखबारों या स्टूडियो की मोहताज नहीं, बल्कि जनता के हाथों में है। हालांकि इसके साथ अनेक चुनौतियाँ भी आई हैं, परन्तु अगर संतुलन, सत्यता और जिम्मेदारी के साथ इसका उपयोग किया जाए, तो सोशल मीडिया हिंदी पत्रकारिता को जनजागरण और जनसरोकार का प्रभावशाली माध्यम बना सकता है।
"कलम की स्याही अब
मोबाइल की स्क्रीन पर बहती है,
जहाँ जन की आवाज़ अब
हर पोस्ट में कहती है।"
- सीमा रानी
पटना - बिहार
सदियों से पत्रकारिता का सामाजिक सरोकार से विशेष जुड़ाव रहा है। पत्रकार आज भी लोगों का विश्वास पात्र हैं। लोगों को विश्वास है कि जन समस्याओं को अगर सच्चे अर्थों में कोई सरकार अथवा प्रशासन तक पहूंचाने में सेतु की भूमिका यदि कोई निभा सकता है तो वह पत्रकार हैं। पत्रकारिता की वर्तमान तक की यात्रा तक क ई मूल भूत परिवर्तन आए हैं। आज पत्रकारिता डिजिटल युग में प्रवेश कर चुकी हैं। जिसके परिणाम त्वरित गति से प्राप्त हो रहे हैं।
आज बहुत बड़ा उत्तरदायित्व पत्रकारों पर आ चुका है कि जहां एक ओर जनसमस्याओं को सुलझाने के लिए जूझना है तो वहीं दूसरी ओर अपनी स्वच्छ छवि तथा स्वतंत्र पत्रकारिता की गरिमा को भी कायम रखने के प्रयास जारी रखने हैं। यह तभी सम्भव है जब आप केवल पत्रकार होंगे यदि आप विज्ञापनो की भीख माऺगना शुरू कर देते हैं तो आप श्रेष्ठ पत्रकारिता से दूर हो जाएंगे।
आज़ ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है। पत्रकारिता एक धन कमाने का जरिया बनता जा रहा है। प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया व्यापारियों के हाथ में जा चुका है जिनका काम मात्र धन कमाना है। इससे श्रेष्ठ पत्रकारिता को ग्रहण लगना स्वाभाविक है। आज़ बहुत से नाम भारतीय पत्रकारिता को मिलने लगें हैं जैसे गोदी मीडिया बिकाऊ मीडिया इत्यादि ऐसा तब हुआ है जब मीडिया और पत्रकार या तो धनाढ्यों के या राजनैतिक लोगो के चरणों में बैठकर स्तुति गान और चाटूकारिता के लिए समर्पित हो चुकें हैं। आप सभी साक्षी है की पत्रकारिता की दशा और दिशा में गिरावट आई है। अभी भी समय है । पुराने पत्रकारों के आशीर्वाद और अनुभवों का दोहन करते हुए युवा पत्रकार पत्रकारिता की अस्मिता को मजबूत बनाएं।
- मदन हिमाचली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
सूचनाओं के इस तेज़ तर्रार युग में सोशल मीडिया हिन्दी पत्रकारिता के लिए केवल एक माध्यम नहीं, बल्कि एक क्रांति बन चुका है। यह मंच पत्रकारिता को एक नई परिभाषा देता है—जहाँ शब्द केवल समाचार नहीं, संवेदनाएँ बन जाते हैं; और पाठक मात्र दर्शक नहीं, संवाददाता बन जाता है। यह अभिव्यक्ति और सूचना दोनों का लोकतांत्रिक संगम है।
मुख्य बिंदु और विश्लेषण
1. समाचार का लोकतंत्रीकरण: -
पहले पत्रकारिता कुछ चुनिंदा हाथों तक सीमित थी, लेकिन सोशल मीडिया ने इसे आम नागरिक के हाथ में सौंप दिया है। व्हाट्सएप, एक्स (पूर्व ट्विटर), इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे मंचों ने *जन पत्रकारिता* को प्रोत्साहन दिया है — जहाँ गाँव की गली से लेकर संसद के गलियारे तक की खबरें सीधे लोगों तक पहुँचती हैं।
2. तत्कालता बनाम विश्वसनीयता:-
समाचार अब एक क्लिक दूर हैं — पर कभी-कभी इतनी तेजी में सत्य पीछे छूट जाता है। 'वायरल' होने की होड़ में कुछ सामग्री बिना पुष्टि के ही फैलती है, जिससे पत्रकारिता की *नैतिकता और सटीकता* पर प्रश्न उठता है।
3. हिन्दी भाषा का पुनर्जागरण:-
सोशल मीडिया ने हिन्दी पत्रकारिता को अभूतपूर्व विस्तार दिया है। जहाँ पहले अंग्रेज़ी का प्रभुत्व था, वहाँ अब हिन्दी ब्लॉग्स, यूट्यूब चैनल्स, व्लॉग्स और शॉर्ट वीडियोज़ ने अपनी खास पहचान बनाई है। यह *भाषाई सशक्तिकरण* हिन्दी भाषी जनमानस को नई ऊर्जा देता है।
4. फेंक न्यूज़ और नैतिक संकट:-
सोशल मीडिया की ताक़त जितनी सकारात्मक है, उसका नकारात्मक पक्ष उतना ही खतरनाक है। असत्य या भ्रामक खबरें, संवेदनशील विषयों पर अफवाहें — ये सब लोकतंत्र की नींव को चुनौती देते हैं। ऐसे में *पत्रकार की भूमिका* एक फिल्टर, एक मार्गदर्शक की हो जाती है।
5. संवाद और सहभागिता का नया प्रारूप:-
अब पाठक न केवल प्रतिक्रिया देते हैं, बल्कि खबरों की दिशा भी तय करते हैं। टिप्पणियाँ, लाइव चर्चा, पोल्स और साझा अनुभवों से समाचार का उपभोक्ता *सह-निर्माता* बन गया है। यह *सक्रिय सहभागिता* पत्रकारिता को अधिक पारदर्शी और समावेशी बनाती है।
6. पत्रकारिता और बाजारवाद का द्वंद्व:-
सोशल मीडिया पर ध्यान, 'लाइक' और 'शेयर' की पूँजी बन गई है। ऐसे में कभी-कभी गहराई से ज़्यादा 'क्लिकबेट' प्राथमिकता बन जाता है। *क्या हम केवल ध्यान आकर्षण चाहते हैं या अर्थपूर्ण संवाद?* यह प्रश्न पत्रकारिता के मूल स्वभाव के पुनर्मूल्यांकन की ओर इशारा करता है।
सोशल मीडिया हिन्दी पत्रकारिता के लिए एक अवसर है—अभिव्यक्ति का, जुड़ाव का, और नवाचार का। पर यह अवसर *उत्तरदायित्व* के साथ आता है। अगर कलम लोकतंत्र की आत्मा है, तो सोशल मीडिया उस आत्मा की आवाज़ बन चुका है। जरूरत है, इस आवाज़ को दिशा देने की—जहाँ सच केवल "शेयर" न हो, बल्कि समझा भी जाए।
- मनोरमा जैन पाखी
भिण्ड - मध्यप्रदेश
हिंदी पत्रकारिता एक बहु आयामी क्षेत्र है इसमें विभिन्न लेखन शैलियां मीडिया शामिल है समाचारों की प्रस्तुति उनकी व्याख्या एक प्रक्रिया है जो सूचना को चारों तरफ वितरित करने का और संपादित करने का काम पत्रकार पत्रिकारीता के माध्यम से होती है वर्तमान समय की घटनाओं को तुरंत रिपोर्ट करना और उसे दिलचस्प बनाना
फोटोग्राफी के जरिए कुछ घटनाओं को विस्तार देना उन्हें रोचक बनाना होता है ।आजकल ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से भी हिंदी पत्रकारिता को काफी सराय जा रहा हैं ।आजकल यू ट्यूब चेनल के माध्यम से भी खबरें प्रसारित हो रही है । यह सामाजिक मुद्दों को उजागर कर समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए पत्रकारिता बहुत काम करती है पत्रकारिता विभिन्न आयाम से काम करती है । पत्रकारिता का माध्यम में जैसे प्रिंट ,प्रसारण डिजिटल मीडिया यू ट्यूब चेनल, ऑनलाइन टीवी न्यूज चैनल पर भी आधारित है पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य जनता को सूचित करना शिक्षित करना और मनोरंजन करना है। आज पत्रकारिता कई माध्यम के द्वारा संचालित है ।
- अलका पांडेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
सभी संदेशों का सशक्त माध्यम पत्रकारिता है। वर्तमान मानव जीवन में पल-पल के हाल-चाल का समाचार और सूचना एकत्र करके जागरूकता एवं निष्पक्षता के साथ प्रसार प्रचार करना पत्रकारिता का बहुत बड़ा प्लेटफार्म है। जिसमें समाचार और सूचना, संपादकीय लेख, रिपोर्ट, प्रिंट ,इलेक्ट्रॉनिक, फोटो, कार्टून, रिपोर्ट प्रसारण, ट्वीट, यूट्यूब एवं ब्लॉग के द्वारा आज सोशल मीडिया तेजी से नए-नए रूप में अपने पांव पसार रहा है। अब टेलीविजन में सिटिंग ऑपरेशन का रूप बहुत सामने आ रहा है ,जो कि भ्रष्टाचार की व्यापकता को उजागर करता है। ऐसे ही संसद, न्यायालय ,आर्थिक क्षेत्र ,विज्ञान, अपराध, फैशन और फिल्म जगत से जोड़ती बहुमुखी पत्रकारिता है। आज देखा जाए तो कोई क्षेत्र अछूता नहीं है, जहां सोशल मीडिया लोगों को जानकर बनाकर लोकतंत्र को भी मजबूत कर रहा है।
- डाॅ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
आज के युग में सोशल मीडिया एक बहुत बड़ा मंच बन गया है लोगों को अपनी बात अभिव्यक्त करने की, संप्रेषित करने की l इसमें व्यक्ति स्वतंत्र होता है उसके मन में जो भी बातें होती हैं वह इस मंच के द्वारा अभिव्यक्त करता है l इस मंच के द्वारा खबरें जल्दी पहुंचती हैं तथा तेजी से फैलती हैं l और पत्रकार भी तेजी से जुड़ते हैं l यह मंच विभिन्न प्रकार के लोगों को जोड़ता है l इस मंच के द्वारा वक्ता और श्रोता दोनों के बीच संवाद स्थापित होता है l इसमें चर्चा -परिचर्चाएं भी होती हैं l सबसे खास बात इसकी यह है कि श्रोता या दर्शक इसमें अपनी प्रतिक्रियाएं भी देते हैं l प्रत्येक व्यक्ति इसमें स्वतंत्र होता है अपनी बात रखने की l सुदूर बैठे लोगों तक यह मंच हर प्रकार की खबर पहुँचाता है l यह मंच पत्रकारिता के लिए अत्यधिक उपयोगी है इस बात को हम अस्वीकार नहीं कर सकते हैं।
- प्रियंका कुमारी
छपरा - बिहार
यूं तो पत्रकारिता का इतिहास लगभग दो सौ वर्षों भी अधिक पुराना है।मासिक,साप्ताहिक,पाक्षिक,वार्षिक तथा दैनिक समाचार पत्रों से होती हुई विभिन्न कलेवरों की पत्रकारिता हमें दूरदर्शन पर भी दिखाई दी।समाज के विभिन्न घटनक्रमों और सूचनाओं को समेकित कर एक ही परिशिष्ट में भिन्न भिन्न कॉलम से होती हुई पत्रकारिता का वर्गीकरणआर्थिक,सामाजिक,राजनीतिक,खेल,फिल्मी,खोजी पत्रकारिता के नाम पर सनसनी फैलाने वाले आधुनिक समाचार चैनलों पर मेज पर मुक्का मार कर कैमरे के सामने भागते हुए माइक पर चिल्लाते हुए अपनी बात कहने वाले पत्रकारों के इस युग से कुछ पहले "स्टिंग ऑपरेशन"नाम की भी पत्रकारिता देखने को मिली और समाज का एक बड़ा वर्ग जो शांत,सौम्य भाव से समाचार पढ़ने वाले वाचकों के वाचन शैली का मुरीद था अब उसे केवल पुराने रिकॉर्ड कैसेट में ही वह गंभीरता देखने को मिलेगी।
निसंदेह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग हम सोशल मीडिया पर नए कलेवर की पत्रकारिता के रूप में आज के डिजिटल युग में देख रहे हैं जो पुरातन पत्रकारिता की अपेक्षा कई गुना अधिक तेज है,तीखी है और ताजी है
यूट्यूब,इंस्टाग्राम,फेसबुक,ट्विटर,व्हाट्सएप और एक्स जैसे अन्य तमाम प्लेटफार्म पर हम राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर की त्वरित सूचनाओं से अवगत होते है।जहां प्रिंट मीडिया हमें सूचनाओं को पहुंचाने में धीमी गति का परिचय देती है वहीं पलक झपकते ही हर मिनट नई खबर सोशल मीडिया पर हाजिर रहती है।
कई बड़े भ्रष्टाचार के मामले हों या संवेदनशील सामाजिक मुद्दों से जुड़ा कोई विषय हो आज के युग में हम सोशल मीडिया के महत्व को उपेक्षित नही कर सकते हैं। पत्रकारिता के मामले में सोशल मीडिया को अभी और सतर्क और संवेदनशील होने की आवश्यकता है।जहां एक ओर प्रशिक्षित पत्रकार संगठन किसी समाचार को तथ्यों के आधार पर जांच परख कर और उन्हें अधिकतम त्रुटि रहित पुष्ट करने हेतु संपादन की जटिल प्रक्रिया के बाद समाज के सामने एक समाचार के रूप में किसी प्रकरण को प्रकट करते हैं वहीं सोशल मीडिया पर संपादन का अभाव होने और तथ्यों की पुष्टि के स्थान पर कॉपी पेस्ट कर किसी भी सूचना को समाचार के रूप प्रसारित कर देने की प्रक्रिया और आदत के कारण सोशल मीडिया के पत्रकारों की विश्वसनीयता भी उस समय संदिग्ध हो जाती है जब किसी आधिकारिक स्तर से उस सूचना को समर्थित न करते हुए संबंधित तथ्य को किसी निहित उद्देश्य पूर्ति हेतु एक साधन के रूप में प्रयोग किया जाना पाया जाता है। ऐसी विषम परिस्थिति से बचते हुए यदि सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर पत्रकारिता की जाए तो वह अधिक विश्वसनीय होगी।
यहां एक तथ्य और स्पष्ट करना आवश्यक है कि प्रायः हम किसी भी सूचना के साथ ब्रेकिंग न्यूज़ शब्द का प्रयोग सोशल मीडिया पर देखते हैं जो उचित नहीं है। प्रत्येक सूचना न तो समाचार होती है और न ही प्रत्येक खबर ब्रेकिंग न्यूज होती है। हर सूचनादाता भी पत्रकार नही होता है।आज की युवा पीढ़ी को उत्साह और उत्तेजना के साथ ही पत्रकारिता के मूल तत्व और उसके गांभीर्य घटक को भी समझना अनिवार्य है। केवल सनसनी फैलाने अथवा गली मोहल्ले की आम बातों को ब्रेकिंग न्यूज के रूप में बिना उचित शब्दों के चयन और तथ्यों की गंभीरता,सत्यता और उसके प्रकट होने पर प्राप्त होने वाले संभावित परिणाम को भी एक जानना एक सजग पत्रकारिता का आवश्यक तत्व है और इस तत्व को सोशल मीडिया के पत्रकारों द्वारा भी उपेक्षित नही किया जा सकता है।यदि समेकित रूप से देखा जाए तो कुछ आधारभूत तत्वों में सुधार होने पर सोशल मीडिया पर पत्रकारिता भी अभिव्यक्ति का एक मजबूत स्तंभ सिद्ध हो सकती है।
- पी. एस. खरे "आकाश"
पीलीभीत - उत्तर प्रदेश
वरदान सही उपयोग से सोशल मीडिया पर पत्रकारिता के विविध आयाम है । सारे सोशल मंच जैसे व्हाट्सएप, फेसबुक , इंस्टाग्राम , यूट्यूब , ऑडियो , पॉडकास्तत आदि यह साधन है जिन्हें पाठक , दर्शक इन पर सूचना, खबरों को सपने समय के अनुसार पढ़कर जानकारी , सूचनाबद्ध तरीके से ज्ञान प्राप्त कर सकता है। अब पत्रकारिता लेखन में बदलाव आया है। वैचारिकी, टिप्पणियों, संपादकीय, फोटो , कार्टून भी घटनाओं से प्रेरित होते हैं । तथ्य , कथ्य ,सटीकता , यथार्थ , कभी अफवाहों का भी बोलवाला होता है। वर्च्युअल चर्चा परिचर्चा , ऑनलाइन ई पेपर का उपलब्ध होना अपने आप में श्रेष्ठ तकनीकी क्रांति का कदम है। अब तो एआई ने स्वर्गवासी रिश्तेदारों को कहीं भी , आयोजन में जीवित कर देता है। पत्रकारों को परिश्रम , समय बचाता है। पहले की तरह उसे घटना स्थल पर जाना नहीं पड़ता है। सोशल मीडिया का लाभ उठा लेता है।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुम्बई - महाराष्ट्र
पत्रकारिता हमें समाज, शहर, दुनिया की घटनाओं, व्यक्तिओं तथा विषयों के बारे में जानकारी देती है। सच कहें तो पत्रकारिता हमारी आँखें और कान है, इसके बिना हमारा जीवन ही मुश्किल है, पत्रकारिता हमारे जीवन के हर पहलु को प्रभावित करती है यहाँ तक कि राजनीति संस्कृति को भी प्रभावित करती है, इसमें सत्यता निष्पक्षता सटीकता होना बहुत ज़रूरी है, पत्रकारिता जनता की सेवा का माध्यम है, इसका मूल उद्देश्य सूचना देना, शिक्षित करना , मनोरंजन करना है, यह लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है,हम सब नागरिकों को जागरूक करती है, इसके विभिन्न साधन है आकाशवाणी, दूरदर्शन, समाचार पत्र, इंटरनेट आदि। साहित्यिक सूचनायें भी हमें मिलती रहती हैं, जितना भी लिखूँगी वह कम ही लगेगा इसलिए यही विराम दे रही हूँ ।
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