जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

सम्पादकीय
लघुकथा साहित्य में पहला कदम
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लघुकथा साहित्य में दिनों दिन विकास हो रहा है परन्तु हम कहीं ना कहीं कुछ भूलतें जा रहेंं हैं । जीवन की प्रथम लघुकथा । कहतें हैं कि लघुकथा कुछ नहीं है । मैं कहता हूँ कि हिन्दी साहित्य में सबसे अधिक पाठक लघुकथा साहित्य के ही हैं और लेखक भी लघुकथा साहित्य के ही हैं । जब इतना सब कुछ है फिर हम पीछे क्यों है ? वास्तविकता ये है कि लघुकथा साहित्य हर तरह से परिपूर्ण है ।
           आवश्यकता है सिर्फ अलग अलग ढंग से कार्य करने की है । इसको ध्यान में रखकर यह कार्य किया जा रहा है । उद्देश्य एकदम स्पष्ट है । फिर भी कोई भटकता है वह उस की सोच है। 
 मेरा उद्देश्य लीकं से हट कर कार्य करने की है । यह कार्य शोध के लिए भी है । इस कार्य के लिए सभी के सहयोग की आवश्यकता है । उम्मीद भी सही साबित हो रही है। सभी का  सहयोग मिल भी रहा है ।
            सम्पादक
          बीजेन्द्र जैमिनी
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क्रमांक -  001                                                               

जीवन परिचय
जन्म : 26 जनवरी 1941 दिल्ली
शिक्षा : डी एम ई आनर रुड़की
पहली लघुकथा मौलिक पुस्तक
2018 एक क़तरा सच
अन्य मौलिक पुस्तकें काव्य :-
1976 बैंजनी हवाओं में
1995 गुलाब कारख़ानों में बनते हैंं
2010 धूप में बैठी लड़की
2013 सिहरन साँसों की खंड काव्य
2013 अक्षर हो तुम
कहानी संग्रह -
1995 बड़े भाई
2003 वापसी
श्रेष्ठ कृति पुरस्कार
हरियाणा
1972 बैंजनी हवाओं में   व
2014 अक्षर हो तुम
तीन लघु शोध प्रबन्ध :-
1998 विष्णु सक्सेना व्यक्तित्व व कृतित्व
2004 कहानीकार विष्णु सक्सेना
2017 अक्षर हो तुम में मानवीय मूल्य
तीनों कुरूक्षेतर विश्व विद्यालय से 

सम्पर्क  :- एस जे 41 शास्त्री नगर ग़ाज़ियाबाद 201002
मो 9896888017
         विष्णु सक्सेना की प्रथम प्रकशित लघुकथा " संतोष " मई 1972 में सरस्वती साधना संगम ( भोपाल - मध्यप्रदेश ) की  पत्रिका मिनी अन्तर यात्रा - 3 में प्रकशित हुई है ।
 पेश है लघुकथा : - 
    संतोष 
           राघव की एक बचपन की मित्र है नाम है संतोष । वह उससे प्रेम करता है और वह भी राघव से । वह बहुत सीधी व सादगी पसंद है । एक दिन राघव ने उससे कहा “यह बीसवीं सदी है तुम भी बदलो” 
     वह मुसकराई बोली “यह मृगतृष्णा है” एक दिन राघव एक माल में घूम रहा था । तभी उसकी मुलाक़ात दया व कृपा से हुईं । उनकी आँखों में मादक आकर्षण व मौन निमंत्रण था । राघव तभी से उनमें आसक्त है । संतोष से चाहकर भी मिल नहीं पा रहा है  और संतोष धीरे धीरे उससे दूर होती जा रही है । 
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क्रमांक - 002                                                               
जीवन परिचय

 मूल नाम- मनोज कुमार कर्ण

उप नाम - मुन्ना जी, इस नाम से मैथिली मे लेखन

जन्म तिथि-01 जनवरी 1971 पुर्णियाँ ( बिहार )

शिक्षा - स्नातक प्रतिष्ठा ( मैथिली साहित्य )

अब तक किये रचना की संख्या- 106.  ( मैथिली मे 400से ज्यादा )

प्रकाशन - पहुँच ,कथादेश , दिनमान , सरिता साहित्य वार्षिकी , दैनिक भास्कर , दैनिक जागरण!

 पहली लघुकथा लेखन-1994/ प्रकाशन-1995

अपनी बात को छोटे फलक पर कसे हुए शिल्पों मे प्रेषित करने का साधन !

कोई पुरस्कार/ सम्मान नही

कविता /हाइकु प्रकाशित !( मैथिली मे बीहैनकथा( Seed Story)जिसे हिन्दी मे लघुकथा कहतें हैं को शुरू करने का श्रेय इन्हीं को है।

 सम्प्रति- अभिकर्ता- भारतीय जीवन बीना निगम . नई दिल्ली.

                मनोज कर्ण  की प्रथम प्रकशित लघुकथा " चयन "  22 जुलाई 1995 को हिन्दी दैनिक आज ( साहित्य दृष्टि पन्ना ) पटना - बिहार से प्रकाशित हुई है। 
पेश है लघुकथा :- 
                           
  चयन
           
     बारिश के कारण  पक्की सड़क टूट चुकी थी.सड़क पर बने गड्ढे मे पानी भरा देख मै बगल वाली गली से गुजरने लगा.गली मे घुसते ही नजर पडी़- " नारी शक्ति स्टोर्स ". और वो दुकान एक बुजुर्ग चला रहे थे.मन ही मन हँस पड़ा, आज भी नारी की शक्ति पुरूष ने स्टोर कर रखा है.

      दुसरे दिन फिर उस गली से ही गुजर रहा था कि वहाँ पहुँच कर कदम ठीठक से गए. दुकान पर एक दिव्यांग, सुन्दर सी युवती चुस्ती फुर्ती के साथ ग्राहकों को निबटाये जा रही थी.ग्राहकों की लाइन सी लगी थी.लेकिन नारी शक्ति देने के लिए केवल पुरूष ही सामने थे , नारी नदारद !

      मैं भी उस भीड़ का हिस्सा बनकर एक पेस्ट खरीद कर चलता बना. फिर दुसरे दिन....तीसरे दिन....और अब हर दिन आते या जाते समय कुछ खरीदने रूक जाया करता कि इस बहाने उसकी शक्ति बढ़ा पाउँ.

      क्रमश: मेरी नजरों से गुजरते हुए मेरे दिल की शक्ति बन गइ वह .मैं कायल होता गया उस के जज्बे का लेकिन मन कचोट जाता उसकी विकलांगता याद आते ही........!

      अपने  यात्रा मे निश्चय किया- "वापस जाकर उसे बता ही दूँ अपने मन का उद्गार !"
दो  दिन बाद  दुकान पर पहुँचते ही देखा दुकान का शटर गिरा हुआ था और उस पर लिखा था- " यह दुकान शिफ्ट हो गइ है, चिंकी की ससुराल मे "
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 क्रमांक - 003
जीवन परिचय
जन्म -      15.04.1976
जन्म स्थान -  गया ( बिहार )
शिक्षा -    विज्ञान स्नातक
पता   -  सी / 258 , रोड - 1सी
           अशोक नगर ,
           रांची - 834002  ( झारखंड)
मोबाइल   - 
प्रकाशित काव्यसंग्रह ---- 
" माँ और अन्य कविताएं " 2015
                                     
साझा संग्रहें ------
" नवरस नवरंग " 2013
"कविता अनवरत " (अयन प्रकाशन ) 2017
" लघुकथा अनवरत " ( अयन प्रकाशन ) 2017
" समकालीन हिंदी कविताएं "( सृजनलोक प्रकाशन) 2017
" स्त्री - पुरुष संबंधित लघुकथाएं " 2017
" दिलचस्प लम्हें " में प्रकाशित यात्रा संसमरण 2018
" कविता अभिराम - सत्र 2018 , भाग - 2 " में प्रकाशित कविताएं
" प्रेम सम्बंधित लघुकथाएं " 2018 में प्रकाशित लघुकथाएं
" कथादेश" , "कादम्बिनी " , " गृहशोभा" , " अनुगूंजन " , " सेवा सुरभि " , " ब्रह्मर्षि समाज दर्शन " , " प्रभात खबर " ,  आदि कई प्रतिष्ठित पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रचनाएँ
आकाशवाणी रांची एवं दूरदर्शन रांची से समय समय पर प्रसारित होती कविताएँ , कहानियाँ व नाटक
" नव सृजन साहित्य सम्मान 2017 " से सम्मानित
" शिक्षा साहित्य सेवा सम्मान 2017 " से सम्मानित
'मगसम , नई दिल्ली ' द्वारा " रचना शतकवीर सम्मान "
साहित्य संगम संस्थान , दिल्ली द्वारा " वीणापाणि सम्मान "
" कथादेश अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता 2017 " में नवां स्थान प्राप्त एवं " 2018 " में प्रथम बीस में चयनित
जैमिनी अकादमी द्वारा आयोजित " अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता 2018 " में तृतीय स्थान प्राप्त
      सारिका भूषण की प्रथम प्रकाशित लघुकथा " सहारा " हिन्दी दैनिक प्रभात खबर ( रांची - झारखंड ) में 10-7-2016 को प्रकाशित हुई ।
   पेश है लघुकथा :-
                
       
       सहारा              
             
       पाँव में दर्द आज कुछ ज़्यादा ही महसूस हो रहा था । शायद ठण्ड की दस्तक का असर था । बदन में सिहरन भी थी । बालकनी में बाहर निकल कर देखी तो रास्तों पर गाड़ियाँ भी कम ही दिख रही थी । सामने वाले पार्क में छोटे बच्चे दौड़ दौड़ कर खेल रहे थे । मानो बचपन बुढ़ापे को मुँह चिढ़ाता हुआ वक्त और उम्र का कोई खेल खेल रहा हो । पता नहीं क्यूँ उनका यूँ शोर मचा कर खेलना आज मुझे बहुत अच्छा लग रहा था । सुबह से फ़ोन पर सबकी तकलीफे और  खराब मौसम की दुहाई देकर काम पर न आने की दलीलें सुन कर थक चुकी थी । अस्त व्यस्त कमरें और गन्दी रसोई ने मेरे अंदर की नकारात्मक सोच को काफी बढ़ा दिया था । दर्द भी असहनीय प्रतीत होने लगा था । मगर बाहर निकलते ही ठंढी हवाओँ और बच्चों की हुल्लड़बाजी ने मानो रग रग में नए जोश का संचार कर दिया । यह मरहम मेरे किसी भी पेनकिलर दवा से ज़्यादा असरदार था ।
       मुझे तो लगता है असल दर्द तो मन का ही दर्द होता है जिसे अक्सर रिश्तों की मोह माया दिया करतें हैं । रिश्तों को आप जितना पकड़ेंगे शायद दर्द उतना ही ज़्यादा होगा । एक बार उसे सिर्फ महसूस करके देखिये , बिना कोई मोलभाव के ...... शायद आपकी अंतरात्मा आज़ादी को परिभाषित कर पाएगी ।
       शायद जैसा कि मैंने किया । जब लोगों की नज़रों  में , मैं पूर्णतया स्वस्थ्य थी तो काफी बन्धनों से जकड़ी हुई थी । पति और बच्चों का सहारा था पर खुद को बहुत बेसहारा महसूस करती थी । शरीर में कोई दर्द नहीं था । पर छोटी छोटी बातों पर मन बहुत दुखता था ।मेरी सारी कागज़ी डिग्रियाँ मुझे अनपढ़ होने का अहसास दिलाती रहती थी । बस खुद को कामवाली बाई बोल नहीं सकती थी वरना अंतर सिर्फ चंद उपहारों और बिस्तर का ही था शायद ।
         आज सभी दूर हो चुके हैं । बच्चे विदेश में और पति अपनी शौक में । मैं अकेली हूँ , पर अकेलापन नहीं लगता । दुनिया की नज़र में  शरीर से अस्वस्थ हूँ  पर दर्द नहीं होता , जिसे मैं दर्द मानती हूँ । और जो दर्द होता है वह शायद खुद की सोच मात्र है । मनुष्य अपने हर उस दर्द पर काबू पा सकता है जिसे वह दर्द  नहीं मानता या जब उसकी आंतरिक शक्तियाँ दर्द पर हावी हो जाती है । एक गहरी सांस लेकर मैंने दीवार के सहारे खड़े अपने सहारों को पकड़ा और काम निपटाने अंदर चल पड़ी । आज मुझे आगे बढ़ने के लिए बैसाखी का सहारा लेना पड़ता है मगर किसी पल भी खुद को बेसहारा महसूस नहीं करती । **
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जीवन परिचय
जन्मदिनांक-10.07.1955.बीजवाड़,चौहान,अलवर राज.
शिक्षा-एम.ए. , एम. एड.
प्रकशित पुस्तकें :-
अर्चना के उजाले (काव्य संग्रह)
रूप देवगुण की कहानियों में नारी के विभिन्न रूप
राजकुमार की शिक्षाप्रद जीवनोपयोगी सूक्तियाँ।
सम्पर्क : #1/258 मस्जिदवाली गली
तेलियान मोहल्ला, सिरसा,125055.
हरियाणा.
चलभाष-94145-37902
       ज्ञानप्रकाश ' पीयूष ' के अनुसार प्रथम लघुकथा " कन्या का सम्मान " हिन्दी दैनिक सीमा सन्देश ( श्रीगंगानगर - राजस्थान ) में 1989 में प्रकाशित हुई है परन्तु तारीख उपलब्ध नहीं है । यही लघुकथा अप्रैल -2018 में शुभ तारिक ( अम्बाला छावनी - हरियाणा ) के अंक में ' श्रद्धा सम्मान ' से सम्मानित हुई है ।
   पेश है लघुकथा :-
             
  कन्या का सम्मान
             
    आज कजरी का विरोध किसी ने भी नहीं किया,अपितु उसे सम्मान की दृष्टि से देखते हुए,उसके हाथ से बांटे जा रहे कन्या जन्म की बधाई के लड्डुओं को ख़ुशी-ख़ुशी सबने स्वीकार किया।
    लड़के के जन्म की भाँति ही थाली बजाई गई ,दीप जलाए गए,रंगीन गुब्बारे उड़ाए गए और ढेरों खुशियाँ मनाई गई।
     यह सब देख कर दादा जी के नेत्र ख़ुशी से छलछला आए।
वे कजरी से बोले , " बेटी! यह तेरे द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता अभियान- "कन्या को भी मिले पूरा सम्मान"  की प्रेरणा का सुपरिणाम है।
दादा जी द्वारा अपनी प्रशंसा सुनकर कजरी भाव विभोर हो गई। उसने तुरन्त आगे बढ़ कर दादा जी के चरण स्पर्श किए और कहा , " नहीं दादा जी!यह तो आपके आशीर्वाद का प्रताप है,आप अगर मेरे साथ खड़े नहीं होते,मेरी हिम्मत नहीं बढ़ाते तो मैं अकेली  इस अभियान में कैसे सफल हो पाती?"
   दादा जी,अपनी पोती के दिए लड्डू आदर-मान से खाने  लगे। **
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क्रमांक - 005
    
जीवन परिचय
संदीप तोमर का जन्म 07 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के जिला मुज़फ्फरनगर के गंगधाड़ी नामक गॉंव में हुआ। आपके पिता एक आदर्श अध्यापक रहे तो माताजी एक धर्म परायण स्त्री हैं। दोनो का ही प्रभाव आपके जीवन पर बराबर रहा है। चार भाई बहनों में सबसे छोटे सन्दीप तोमर ने शारीरिक अक्षमता के चलते सीधे पांचवी कक्षा में प्रवेश लिया और प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए। तत्पश्चात विज्ञान विषयों से स्नातक करके प्राथमिक शिक्षक के लिए दो वर्ष का प्रशिक्षण लिया। 
उत्तर प्रदेश में कुछ दिन अध्यापन करने के बाद नॉकरी छोड़ दिल्ली विश्वविद्यालय पढ़ने आ गए।
बी.एड, एम.एड के बाद एम्.एस सी(गणित) एम् ए (समाजशास्त्र व भूगोल) एम फिल(शिक्षाशास्त्र) की शिक्षा ग्रहण की।
दिल्ली विश्विद्यालय में पढ़ते हुए ही साहित्य का स्वाध्याय करते हुए लेखन में रुचि उत्पन्न हुई।
उन्होंने  कविता, कहानी, लघुकथा, आलोचना, नज़्म, ग़ज़ल के साथ साथ उपन्यास को अपनी विधा बनाया। पेशे से अध्यापक सन्दीप तोमर का  पहला कविता संग्रह  "सच के आस पास" 2003 में प्रकाशित हुआ।उसके बाद एक कहानी सँग्रह "टुकड़ा टुकड़ा परछाई" 2005 में आया।
शिक्षा और समाज(लेखों का संकलन शोध-प्रबंध) का प्रकाशन वर्ष 2010 था। इसी बीच लघुकथा सँग्रह "कामरेड संजय" 2011 में प्रकाशित हुआ।
"महक अभी बाकी है" नाम से कविता संकलन का संपादन भी किया। 2017 में प्रकाशित "थ्री गर्ल्सफ्रेंड्स" उपन्यास ने संदीप तोमर को चर्चित उपन्यासकार के रूप में स्थापित कर दिया। 2018 में आपकी आत्मकथा "एक अपाहिज की डायरी" का विमोचन नेपाल की धरती पर हुआ।
  सृजन व नई जंग त्रैमासिक पत्रिकाओं में बतौर सह-संपादक सहयोग करते रहे।
फिलहाल उनकी कई पुस्तकें प्रकाशन हेतु प्रकाशकों के पास गई है। जिनमे "परत दर परत" लघुकथा सँग्रह, "ये कैसा प्रायश्चित" तथा "दीपशिखा" उपन्यास के साथ "यंगर्स लव" कहानी संग्रह और "परमज्योति" कविता सँग्रह प्रमुख हैं।
हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा निबन्ध व कविता लेखन के लिए, "सच के आस पास" काव्य कृति के लिये "तुलसी स्मृति सम्मान" काव्य लेखन के लिए "युवा राष्ट्रीय प्रतिभा" सम्मान,  साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी द्वारा "साहित्य श्री" सम्मान,  अजय प्रकाशन रामनगर  वर्धा (महा.) द्वारा "साहित्य सृजन" सम्मान, मानव मैत्री मंच द्वारा काव्य लेखन के लिए सम्मान, सहित कई बड़ी संस्थाओं द्वारा समय- समय पर आपको सम्मानित किया गया है
2011-12 में स्कूल स्तर पर तत्कालीन विधायक के हाथों बेस्ट टीचर आवर्ड से सम्मानित।
2012 में प्राइवेट और सरकारी अध्यापक संघ के तत्वाधान में तत्कालीन संसदीय मन्त्री हरीश रावत के कर कमलों से दिल्ली के बेस्ट टीचर के लिए सम्मानित हो चुके हैं।
भारतीय समता समाज की ओर से आपको समता अवार्ड 2017 से सम्मानित किया गया।
आपको 2018 में कथा गौरव सम्मान से नवाजा गया। साथ ही 2018 में ही नव सृजन संस्था द्वारा हिन्दी रत्न सम्मान दिया गया।
      संदीप तोमर की प्रथम प्रकाशित लघुकथा " समझदार "  मई - 2003 में पत्रिका कथा संसार ( गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश ) में प्रकाशित हुई है ।
     
                         पेश है लघुकथा :-

   समझदार
                        
      प्रशासनिक सेवा में न जा पाने के कारण राजेश साहब बेहद परेशान थे। गुजारे के लिए साधारण सी नौकरी भी नहीं मिल पाई कारण उम्र की अधिकता। राजेश साहब अब उम्र के ढलान पर थे। उस दिन राजेश साहब को राहत मिली जब उन्हे नगर निगम में अध्यापक की नौकरी मिल गई।
अभी महोदय को एक माह के आस-पास ही सेवा में आए हुआ था कि इन्होंने अपने अफसरी अन्दाज बच्चों पर दिखाने शुरू कर दिये। शायद प्रशासनिक सेवा का भूत उतर जाने पर भी अंश अभी बाकी थे।
आज राजेश साहब अपने कमरे के बाहर कुर्सी डालकर दूसरी कुर्सी पर पैर पसारे बैठे हुए थे। दो-चार बच्चे गर्म सरसो के तेल की मालिस पैर और तलुओं पर कर रहे थे।
अचानक स्कूल में कुछ हड़बड़ाहट हुई। शायद स्कूल निरीक्षक महोदय का दौरा था। राजेश साहब को भी हड़बड़ाहट हुई थी लेकिन थोड़ी देर बाद संयत भी कर लिया था इन आधुनिक स्कूली कारखानों के कारीगर महोदय ने।
निरीक्षक महोदय की नज़र राजेश साहब पर पड़ चुकी थी। सीधे दफ्तर पहुँचे।
राजेश साहब को बुलाया गया। निरीक्षक महोदय ने प्रश्न किया—‘‘आप यहाँ अध्यापक हैं?’’
‘‘हाँ, साहब।’’
‘‘और ये सब क्या हो रहा था जो मैं अभी देखकर आ रहा हूँ।’’
कुछ छुपाने से कोई फायदा नहीं था। राजेश साहब ने थोड़ा बोलने का लहजा बदल डाला।
‘‘साहब क्या करूँ, बच्चे हैं कि मानते ही नहीं।’’
‘‘आज सुबह स्कूल आ रहा था, चोट लग गई। बच्चों ने देख लिया होगा। बस घर दौड़ गए और सरसों का गरम तेल ले आए। साहब क्या घरेलू नुक्शे सीखे हैं बच्चों ने। बोले-मास्टर जी मालिश करा ला, ठीक हो जा ओगे? अब बताओ साहब, बच्चों को कैसे मना करता?’’
‘‘हाँ, हाँ, ठीक है? कहाँ रहते हो?’’
‘‘सर, मॉडल टाउन।’’
‘‘अरे मॉडल टाउन, वाह! भई कमाल है। हम भी वहीं रहते है, कभी मुलाकात नहीं हुई।’’
‘‘जी साहब, बस मैं बाहर कम ही निकलता हूँ।’’
‘‘ऐसा है राजेश साहब, हमारी मुन्नी दसवीं में है, शाम को एक घण्टा घर आकर पढ़ा जाना मुन्नी को।’’
‘‘सर...वो...?’’
‘‘सर, सर क्या, भई स्कूल में रहना है ना, नौकरी करनी है ना...’’
‘‘सर, करनी तो है मगर...’’
‘‘फिर ठीक है, मैं आज के तुम्हारे जुर्म की रिटन एक्सप्लेनेशन नहीं मागूँगा। हाँ तो मिस्टर...आज शाम से ही आ रहे हो या...।’’
‘‘सर, बस आज से ही आ जाऊँगा।’’
‘‘समझदार मालूम होते हो। देखो भई, हम अफसर हैं तो क्या हुआ? हैं तो इंसान ही ना, फिर तुम्हारी परेशानी का ख्याल हम नहीं तो कौन रखेगा। और हाँ, सरसों के तेल की मालिस कराते रहिएगा, ठीक होने तक।’’ **
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक -006
जीवन परिचय
जन्मतिथि - 7 सितम्बर दमोह (मध्यप्रदेश )
मातृभाषा-  गुजराती
शिक्षा- एम. ए .इतिहास ,बी एड  . सागर वि.वि. , एम .ए.हिन्दी एस.एन.डी.टी.चर्चगेट मुंबई ।
प्रकाशन -विभिन्न पत्र पत्रिकाओं , तथा नवभारत, नवभारत टाइम्स ,जनसत्ता इत्यादि में लेख , अनुदित कहानी प्रकाशित । गुजराती से हिन्दी में किताबों का अनुवाद कार्य प्रकाशित ।
अलौकिक काव्य संग्रह प्रकाशित (2017 )
साझा संकलन-  
1) देश के प्रतिनिधि  सजलकार
2) सजल सप्तक -4
3)रुबरु जिंदगी से काव्य संग्रह प्रकाशित 2018 में
सम्मान पत्र - समय -समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा प्राप्त : -
1. कोंकण ग्राम विकास मंडल की ओर से 2017 का काव्य      लेखन पुरस्कार "अलौकिक" काव्य संग्रह के लिए
2. द्वितीय वार्षिक सजल महोत्सव 2018 वाराणसी  में "सजल गौरव सम्मान  प्रदान किया गया ।
3. विश्व मैत्री मंच एवं अग्नि शिखा मंच एवं कई हिंदी मंचों  दर्शाया सम्मानित किया गया मुंबई में ।
4. विश्व मैत्री मंच की ओर से इजिप्ट यात्रा 30 नवंबर  से 8 दिसंबर 2018
5. विश्व मैत्री मंच की ओर से सम्मान पत्र प्राप्त हुआ इजिप्ट में 1-12-2018 को
रुचियॉऺ - संगीत, नृत्य, बागवानी, पेंटिंग , बैडमिंटन, टेबल टेनिस में रुचि
विशेष- स्कूलों एवं एस .एन .डी.टी.चर्चगेट (मुंबई ) में अध्यापन कार्य ।
प्रवास - इंडोनेशिया (जकार्ता ) में (२००७ से २०१५ ) लेखन और सामाजिक संस्थाओं में सक्रिय ।
गतिविधियाँ- मुंबई आने पर विविध कार्यों में सक्रिय ।
11 वे विश्व हिंदी सम्मेलन मारिशस में सहभागिता
(18-8-2018  से  20-8-2018 )
सम्मान पत्र  एवं प्रतीक चिह्न  राष्ट्रभाषा प्रचार समिति छत्तीसगढ़ की ओर से मारिशस के कवि श्री हीरामन जी द्वारा मारिशस में प्राप्त हुआ।
सम्प्रति -स्वतंत्र लेखन
पता - साकेत काम्प्लेक्स ,बी-7/103
         ठाणे (पश्चिम ) महाराष्ट्र
         पिनकोड-400601
         मोबाइल नंबर-9869396731
       आभा दवे की प्रथम प्रकाशित लघुकथा " गुलाब का फूल और कांटे जुलाई - दिसम्बर 2018 में सृष्टि पत्रिका  गुड़गांव - हरियाणा से  प्रकाशित हुई है ।
                        पेश है लघुकथा :-
                       
                   गुलाब का फूल और कांटे
    
      मंद -मंद हवा चल रही थी। गुलाब का फूल अपने पूरे शबाब पर था । उसे अपने गुलाब का फूल होने पर गर्व हो रहा था ।
      तभी उसकी नजर कांटों पर गई जो खामोश हो कर गुलाब की मुस्कुराहट को निहार रहे थे । अपनी  ओर निहारते देख गुलाब ने कांटे से पूछा " तुम आज इतने उदास क्यों हो ?"
        कांटे ने बड़े दुखी मन से उत्तर दिया " तुम आज बहुत खुश नजर आ रहे हो । " मैं सोच रहा था कि - "काश  मैं भी तुम्हारे तरह  फूल होता और लोग मुझे भी पसंद करते ।"  यह कह कर कांटा चुप हो गया ।
        गुलाब के फूल ने बड़े ही प्यार से कांटों से कहा " तुम हो इस लिए तो मैं खुश हूं । तुम न रहते तो लोग मुझे खिलने के पहले ही तोड़ लेते  तुम सदा मेरी रक्षा करते हो तुम्हारे ही कारण मैं कुछ पल जी लेता हूं  । हम दोनो एक दूसरे के पूरक हैं ।" गुलाब के फूल की प्रेम भरी बातें सुनकर कांटे भी मुस्कुरा दिए । **
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जीवन परिचय
जन्म दिनांक-  26 जनवरी 1965
शिक्षा- 5 विषय में एम ए, पत्रकारिता, कहानी-कला, लेख-रचना, फ़ीचर एजेंसी का संचालन में पत्रोपाधि
व्यवसाय- सहायक शिक्षक
लेखन- बालकहानी, लघुकथा व कविता
संपादन- एक संग्रह का संपादन
प्रकाशित पुस्तकें- 1- लेखकोपयोगी सूत्र व 100 पत्रपत्रिकाएं* कहानी लेखन महा विद्यालय द्वारा प्रकाशित, 2- कुएं को बुखार
3- आसमानी आफत
4- कौन सा रंग अच्छा है ?
5- कांव-कांव का भूत

उपलब्धि- 111 बालकहानियों का 8 भाषा में प्रकाशन
इ-बुक-- 108 ebook प्रकाशित
पुरुस्कार- इंद्रदेवसिंह इंद्र बालसाहित्य सम्मान-2017,  स्वतंत्रता सैनानी ओंकारलाल शास्त्री सम्मान-2017 , बालशौरि रेड्डी बालसाहित्य सम्मान- 2015 ,
विकास खंड स्तरीय कहानी प्रतियोगिता में द्वितीय 2017 , लघुकथा में जयविजय सम्मान-2015 प्राप्त, काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान- 2017 प्राप्त, 26 जनवरी 2018 को नगर पंचायत रतनगढ़ द्वारा _वरिष्ठ साहित्यकार_ सम्मान 2018 , सोमवंशीय क्षत्रिय समाज इंदौर द्वारा _क्षत्रिय गौरव_ सम्मान 2018 , नेपाल में _वरिष्ठ साहित्य साधक_ सम्मान 2018 , मेघालय के राज्यपाल के हाथों _महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान_-2018 प्राप्त, बालसाहित्य संस्थान उत्तराखंड द्वारा अखिल भारतीय राजेंद्रसिंह विष्ट स्मृति सम्मान बालकहानी प्रतियोगिता 2018 में तृतीय स्थान का सम्मान प्राप्त
, नेपाल-भारत साहित्य सेतु सम्मान- २०१८, नेपाल-भारत अंतरराष्ट्रीय रत्न सम्मान- २०१८ (बीरगंज नेपाल )में प्राप्त .
पता- पोस्ट ऑफिस के पास , रतनगढ़ जिला-नीमच -458226 (मध्यप्रदेश)
मोबाइल- 09424079675
opkshatriya@gmail.com
       ओमप्रकाश क्षत्रिय ' प्रकाश ' के अनुसार  प्रथम प्रकशित लघुकथा *शार्टकट* शुभतारिका ( अम्बाला छावनी - हरियाणा )  में  मई 1992 में प्रकाशित हुई  है ।
      
                   पेश है लघुकथा :-
                  
         शार्टकट
छात्रों को तन्मयता से पढ़ाते हुए दिनेश को मालूम ही नहीं पड़ा कि उस के वरिष्ठ शिक्षक दीनदयाल जी कब आ गए .चौंक कर उस ने कहा, "आइए गुरुजी. बैठिए. कोर्स बहुत ज्यादा है इसलिए जल्दी-जल्दी पढ़ाना पड़ता है ध्यान लगाकर."
"कोई बात नहीं ,पढ़ाइए." उन्हों ने कहा और बच्चों को बैठने का इशारा करते हुए पुनः दिनेश से बोले, " ऐसा क्यों नहीं करते हो कि सब से कुंजी मंगवा लो . फिर उसी से बच्चे लिख लिया करेंगे. उन को याद करने में सहूलियत भी रहेगी और आप को ..."
"वह तो ठीक है लेकिन ये क्या सीख पाएंगे?"  दिनेश ने हिम्मत कीं. आखिर वह उस के बुजुर्ग और वरिष्ठ थे.
" अरे भाई ! तुम ही लोग कहते हो शॉर्टकट से चलना चाहिए", आगे के शब्द दिनेश को सुनाई नहीं दिए. सामने चरती भेड़े उस की निगाहों में घूमने लगी. **
---------------------------------------------------------------------- क्रमांक - 008
जीवन परिचय
जन्म----09/04/1956 , इन्दौर
शिक्षा---M.B.B.S.,D.C.H.
संप्रति--म.प्र.शासन मे मेडिकल आफिसर पद पर कार्यरत
प्रकाशन--देश की पत्र-पत्रिकाओं मे लघुकथाएँ,कविताएँ,बाल रचनाएँ,ग़ज़ल,हाईकु,तांका,आलेख आदि प्रकाशित।
कई साझा काव्य ,लघुकथा संकलनों मे भागीदारी
वर्तमान पता---296,कालानी नगर,एयरपोर्ट रोड़,इन्दौर 452005
      डाँ. अखिलेश शर्मा की प्रथम प्रकशित लघुकथा " आचरण " जुलाई - 1982 में  पत्रिका " लघु आघात " इन्दौर ( मध्यप्रदेश ) से प्रकाशित हुई है ।
     
                       पेश है लघुकथा :-
     
       "आचरण"
                                
  रात्रि के दो बजे नशे मे धुत्त लौटे बेटे से उसकी माँ ने कहा,"बेटा तेरी शादी के विषय मे मेरी सहेली कुसुम आज फिर 'बार' मे कह रही थी।उसकी बेटी के संबंध मे तूने क्या निर्णय लिया?"
       जुएँ मे ज्यादा रूपये हार जाने के कारण बेटे ने सामान्य से अधिक पी ली थी।उसने झल्लाकर कहा, "कल बुढ़िया को इन्कार कर देना ।उसकी बेटी का केरेक्टर
अच्छा नहीं है।" **
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक- 009
जीवन परिचय
जन्म- 04 अक्टूबर 1957
स्थान- देहरादून (उत्तराखंड)
शिक्षा- एम० ए०(हिंदी साहित्य), बीएड, डी फिल ( गद्यकार बच्चन:एक आलोचनात्मक अध्ययन )
प्रकाशित पुस्तकें :-
१- कविता का अरुणाचल( कविता संग्रह)१९८५
२- बच्चन साहित्य: अध्ययन का उपक्रम(आलोचना)१९९८
३-सृजन समीक्षा २०१८
४-उपहर (काव्य संग्रह)२०१८
५-रंगों के साथ ( काव्य संग्रह)२०१८
६-अंतर्मन की यात्राएँ (काव्य संग्रह)२०१८
७- आखर मीत (काव्य संग्रह)२०१८
८- अनुभूतियों के दंश (लघुकथा संग्रह)२०१८
९- पगडंडियों पर चलते हुए (लघुकथा संग्रह )२०१९
१०- कुछ रंग धूप के ( आलेख संग्रह)२०१९
साझा संग्रह :-
१- साझा कविता संग्रह- ३२
२- साझा लघुकथा संग्रह- ०७
३- साझा आलेख संग्रह- ०१
लगभग ७० पत्र-पत्रिकाओं, ई पत्रिका, ब्लॉग में रचनाएँ प्रकाशित।
पता : 95, ब्लॉक-  एच , दिव्य विहार, डांडा धर्मपुर
डाकघर- नेहरूग्राम ,देहरादून- 248001(उत्तराखंड)
       डाँ. भारती वर्मा बौड़ाई के अनुसार प्रथम प्रकाशित लघुकथा " लेडिज कंसेशन " जून 1983 में लघुकथा संग्रह " मानचित्र " ( सम्पादक : विक्रम सोनी ) महत्व प्रकाशन , इन्दौर - मध्यप्रदेश में प्रकशित हुई है ।
      
                         पेश है लघुकथा :-
                        
   लेडीज कंसेशन
      अचानक घर से टेलीग्राम मिला- “टेक लीव एंड रिटर्न होम, अर्जेंट वर्क।”
न जाने का प्रश्न ही नहीं था। अतः हेडमास्टर से जैसे-तैसे छुट्टी लेकर अरुणाचल एक्सप्रेस की थकने वाली यात्रा कर न्यू बोंगाईगाँव पहुँची जहाँ से तिनसुकिया मेल पकड़नी थी। एकाएक जाना होने से रिजर्वेशन भी नहीं हो सका था।
         साढ़े सात बजे ट्रेन लगने पर अटैची लिए चढ़ ही गई। टी टी ई को लोग घेरे हुए थे अपनी सीट पूछने के लिए या कुछ अधिक पैसे देकर रिजर्वेशन करवाने के लिए। मैं भी उन्हीं में सम्मिलित हो गई। देखा इक्कीस-इक्कीस रुपए की रसीद काट-काट कर तत्काल  रिजर्वेशन कर देने की मिन्नत करने लगी।
“अरे! इतना तो रिजर्वेशन चार्ज ही है, इतने से कैसे कम चलेगा?”
“ तब कितना लेंगे आप?”
“ लाइए पचास रुपए। परेशान कर देते हैं लोग भी।”
“ पचास तो बहुत हैं सर! कुछ कम कीजिए। आखिर लेडीज का कुछ तो ख्याल कीजिए।”
“कर दीजिए साहब! लेडीज हैं और अकेली हैं”....पास वाले सज्जन बोले।
“ अच्छा लाइए, चालीस दीजिए।आप लेडीज हैं इसलिए कंसेशन कर दिया। वरना मैं तो.....” कहते हुए चालीस रुपए रेलवे के दूसरे बोनस की ट्रक झपट कर इक्कीस रुपए की रसीद मेरे हाथ में थमा दी।
       मरती क्या न करती वाले भाव से अटैची उठा कर लेडीज कंपार्टमेंट में अपनी सीट पर लेट गई।
साथ के सहयात्रियों ने ‘ अब कोई नहीं आएगा’ के भाव से निश्चिंत होकर दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर दिया।
          पर यह क्या? ट्रेन चलनी ही शुरू हुई थी कि थोड़ी देर बाद जोर-जोर से दरवाजा पीटा जाने लगा।
“ उसकी हिम्मत कैसे हुई हमारी सीट किसी को देने की? यह हमारी सीट है। उठिए, उठिए! हम नहीं जानते कुछ, अपना सामान लेकर उतरिए।”
       एक तो अकेली, रिजर्वेशन मिला तो यह चक्कर। उधर मूँछों पर ताव दे-देकर घूरता बंगाली गुंडा। आँखों में आँसू भर आए। अटैची उठाकर बाहर आ टी टी ई को खोजने लगी कि दिखाई पड़े तो उसे आड़े हाथों लूँ। दो ‘आदि’ विद्यार्थियों के होने से असुरक्षित होने की भावना से तो निश्चिंत थी।
      टी टी ई ने दुबारा सीट दी तो फिर वही यह हमारी सीट है, यह कैसे आपको दे दी?
     फिर उसे जा घेरा..” आखिर आप कैसी सीट रिजर्व करते हैं! इधर से उधर, उधर से इधर। इससे तो अच्छा है आप हमारे पैसे वापस कर दीजिए। हमें नहीं चाहिए आपकी सीट। अजीब तमाशा बना दिया है। पैसे भी दो और परेशानी भी भुगतो।”
       जैसे-तैसे सीट मिली। निश्चिंतता की साँस ली। मगर तीन बार अटैची उठाए इधर से उधर पूरे कंपार्टमेंट में चक्कर कटने की प्रक्रिया से हुई परेशानी में लेडीज कंसेशन करा, कम यानी चालीस रुपए देकर मिली। इक्कीस रुपए की रसीद मानो बार-बार मेरा मुँह चिढ़ा कर कह रही थी कि रेल मंत्री की मार्फत मुझे प्रधानमंत्री के पास भेज दो। **
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक -010
जीवन परिचय 
जन्मतिथि : १० दिसंबर १९६७
जन्मस्थान : शाहदरा, दिल्ली ११००३२
शिक्षा : स्नातक
सम्प्रति : एक निजी कंपनी में कार्यरत
सम्पर्क : एफ-६२, फ्लैट न. ८, गली न. ७ , नियर मंगल बाज़ार, लक्ष्मी नगर, दिल्ली-११००९२
मोबाइल : +९१ ९८ १८ ६७ ५२ ०७
E-mail : v.mehta67@gmail.com
लघुकथा लेखन का प्रारम्भ : वर्ष २०१४ से विशेषतौर पर ‘लघुकथा लेखन’ प्रारम्भ किया।
समाज में दिखाई देने वाली विसंगतियों पर मन में उपजे भावों को शब्दों के रूप में ढालने का शौक कब लेखन में बदल गया, पता ही नही लगा ...... वर्तमान में फेस बुक सहित के विभिन्न समूहों सहित कई वेब-साइट्स पर सक्रिय तथा *फेसबुक समूह 'नया लेखन नए दस्तख़त' में सह एडमिन*

मुख्य सांझा संकलन :
बूँद बूँद सागर - (वनिका पब्लिकेशनस - 2016)
अपने अपने क्षितिज - (वनिका पब्लिकेशनस - 2017)
"लघुकथा अनवरत सत्र 2"
"आस पास से गुजरतें हुए"
"स्त्री पुरुषों की संबंध कथाएं'
(सभी - अयन प्रकाशन - 2017)
सहोदरी लघुकथ संकलन प्रथम - 2017 (संकलन में सह संपादक भी)
"कहानी प्रसंग" - (अंजुमन प्रकाशन - 2017)
मुख्य पुरस्कार :
हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच - 2017 (लघुकथा स्वर्ण पुरस्कार)
पहचान समूह (आद: कमल कपूर)  शंकुतला स्मृति लघुकथा प्रथम पुरस्कार।
विरेंदर 'वीर' मेहता के अनुसार प्रथम लघुकथा का प्रकाशन दो लघुकथाओं के रूप में हुआ है । 'दामन' व 'दर्द'  ( श्याम सुंदर अग्रवाल जी द्वारा पंजाबी में अनुवादित) संकलन 'किरदी जवानी' भाग 1 (पंजाबी) नवम्बर -2015 में  प्रेरणा पब्लिकेशन, अमृतसर से प्रकशित हुई है ।
                पेश हैं दोनों लघुकथाएं :-
               
                     1.  दामन ( पंजाबी में प्रकाशित )
"शाह जी आज़ तीन-चार पूड़े (पुड़िया) वादु (अधिक) देना।" महिन्द्रा दबी आवाज में बोला।
"क्यों ज्यादा किस लिये?" सर्फुल्ला कुछ आशंकित हो गया।
"ओ शाहजी, पिंड दे कोलेज विच वी थोड़े मुन्डे होर सैट किते ने, नशे लई।"(गाँव के काॅलेज में भी कुछ लड़के और तैयार किये है नशे के लिये) महिन्द्रा इधर उधर देखकर बोला।
सर्फुल्ला हॅस कर बोला। "ओ लैजा।लैजा। बस धंधा चालु रख, किसी को छोड़ना नहीं।"
"ना जी ना। पेला कंडा (पहला कांटा )ही स्टूडेंट युनियन दे प्रधान ते सुट्टया ऐ (फेका है)।" कहता हुआ महिन्द्रा जा चुका था।
और सर्फुल्ला के कानो में अपने बेटे की गूंजती आवाज उसके दामन तक पहुँचने वाली आग को महसूस करने लगी थी। "अब्बु। दो हजार काफी है, यूनियन लीडर हूँ आज पार्टी जमकर होगी।" **
                       2. " दर्द " ( पंजाबी में प्रकाशित )
                      
"दामादजी को छोड़ना चाहवे है, अरे! पति बिना भी कोई जगह होवे है औरत की।" पति को छोड़ मायके आयी बेटी को माँ समझाना चाह रही थी।
"माँ! मैं कोई भी काम कर अपनी बच्ची पाल लूँगीं लेकिन अब वापिस नही जाऊँगी।"
"ये क्या कह रही है तु छोरी, ऐसा आखिर क्या हो गया?"
बस माँ। मैं 'उस नशेबाज' को और बर्दाश्त नही कर सकती, सारा दिन बस पीना, हंगामा करना और.......।"
"तो क्या हुआ छोरी, तेरा बापू न पिये, मैंने तो न छोड़ दिया उसे।" माँ ने कुछ तमक कर बेटी की बात काट दी।
"हाँ माँ, नही छोड़ा तुने!" बेटी माँ की आँखो में झांकने लगी। "बस जलती रही... सुलगती रही..... राख के ढेर में कोयले की तरह।"
बेटी की आँखो में माँ के अतीत और अपने वर्तमान दोनो का दर्द झलकने लगा था। **
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क्रमांक - 011                   
जीवन परिचय
जन्मदिनाँक एवं स्थान --05/12 ,भिण्ड ,मध्य प्रदेश
शिक्षा -एम ए हिन्दी साहित्य ,
प्रकाशित पुस्तकें --
अनुभूति,अभिव्यक्ति,नवांकुर,हाइकु संग्रह,ताका संग्रह ,यथार्थ सृजन ,सभी साँझा संकलन
मेरी अनुभूतियाँ -एकल संग्रह
पता : W/0 पाँडे सुनील कुमार जैन (पूर्व पार्षद)
          वार्ड नं.11,राजेंद्र रोड सदर बाजार ,मेहगाँव
            जिला भिंड ,मध्य प्रदेश पिन --477557
       मनोरमा जैन 'पाखी' की पहली प्रकाशित लघुकथा " नील मनु " कुसुमबाई गर्ल्स डिग्री कालेज , भिण्ड की कालेज पत्रिका " कुसुम " में 1985 में प्रकशित हुई है ।
      
                  पेश है लघुकथा :-
                 
                         नीलमनु
          मनु ,रजनी दोनों बचपन से ही साथ पढ़ी थी। अतः बेहिचक एक दूजे के घर आती जाती रहती थी। कॉलेज.का पहला साल था ।कुछ दिन से मनु असहज महसूस कर रही थी। पर कारण न समझ पा रही थी।
"मनु आज मैं.कॉलेज नहीं जाऊँगी ,तू मुझे लौटते वक्त नोट्स देती जाना"रजनी ने.कहा
"क्यों क्या  हुआ?बात तो बता। नोट्स तो मैं दे जाऊँगी।"
"अरे ,मम्मी मामा जी के यहाँ जा रही।उनके बेटे की शादी की बात जो चल रही। अब जब तक न आती तब तक ।"
"ओहह,  ठीक है।पर...."कहते कहते मनु रुक गयी। कुछ अजीब सी फीलिंग फिर होने लगी।
कॉलेज से लौटते वक्त रजनी के घर की सीढियाँ चढते न जाने क्यों बैचेनी हो रही थी। दरवाजे पर हाथ रखा ही था कि दरवाजा खुल गया। मनु चौंक गयी।जैसे ही अंदर प्रवेश किया दरवाजा बंद हो गया।हतप्रभ सी एक.कदम आगे बढ़ी तो काँधे पर स्पर्श पा जल्दी से पीछे मुड़ी।देखा तो रजनी का भाई होठो पर मुस्कान लिए खड़ा था। मनु की आँखों में डर तैर गया। कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि नील ने हाथ जोडते हुए चुप रहने का इशारा किया। गौरवर्ण मनु का चेहरा डर,घबराहट से लाल पड़ गया।
"लीजिए,प्लीज।"कान के पास फुसफुसाती आवाज सुन काँप गयी मनु।
"कौन.है?भैया ... आप हो क्या दरवाजे पर?"आवाज के साथ पदचाप सुनाई दी ।नील ने जल्दी से उसके हाथों में कुछ थमाया और जल्दी से सीढ़ियाँ उतर गया।
"अरै तुम...!तुम कब आईं। दरवाजे किसने खोले।"कहते हुए रजनी ने सीढियों पर झाँका।
"पता नहीं।मुझे तो खुले मिले।"न जाने कैसे मनु के मुँह से झूठ निकल गया।
रजनी को नोट्स समझा ही रही थी कि नील सीटी बजाते कमरे में आया।
"ए रज्जो। चाय बना दे जरा। सर दर्द.हो रहा।"पास पड़े पलंग पर बैठते हुये नील ने कहा।
"मैं चलती हूँ रजनी ।नोट्स जल्दी लिख लेना। किसी को भेज शाम को मँगा लूँगी। मुझे भी लिखना है ना।"न जाने क्यों चेहरे पर गर्माहट महसूस हुई
"अरे रुको ना, ..।"नील की आवाज सुनाई पड़ी जो उसके चेहरे को गौर से देख रहा था।
"अरे रुक,तुझसे कुछ समझना भी था। इंगलिश में।बैठ दो मिनिट में आई।"कह कर रजनी कमरे से निकल गयी। मनु घबराहट महसूस करते हुये सिर झुकाये बैठ गयी। उसकेहाथ पाँव में अजीब सी कँपकँपी थी।
"थैंक यू मुझे बचाने  के लिए।"पास से सरगोशी सुनाई दी
"ज्ज्ई..।"चौंक गयी मनु ।और नजरें ऊपर उठ कर नील की आँखों से टकरा गयीं। उसके चेहरे पर शरारत और होठों.पर मुस्कान देख मनु शर्मा सी गयी।
अब कॉलेज आनेजाने.के समय नील से सामना रोज की बात हो गयी।
मनु डर रही थी कि सब क्या सोचेंगे उसके बारे में। बदचलन समझेंगे। आँटी इतना स्नेह करती है क्या सोचेंगी।
"कॉलेज.से आते समय एडवर्ड पार्क में मिलना।जरुरी बात बतानी है। "नील कहते हुए चला गया।
"क्यों बुलाया आपने"काँपते हुए पूछा मनु ने
"तुमसे बात करनी थी।घर पर मौका ही न मिलता।"मुस्कुराते हुये नील ने नीम के पेड के नीचे बैंच पर बैठते हुये उसे भी बैठने का इशारा किया।
"ज्जी   ।बताइये।"
"मेरे पत्र का जबाब अब तक न दिया। कितने दिन हो गये।"
"क्या जबाब दूँ?"कुछ गंभीर होते हुए बोली मनु
"वही जो तुम्हारे दिल में है। जो चेहरे पर दिख रहा ।"नील ने मोहक मुस्कान से कहा
"जी।आप जानते हैं मैं इज्जतदार घर की बेटी हूँ ।आप भी अच्छे परिवार से हैं। पर आपके हमारे इस रिश्ते को हमारे घरवाले मान्य करेंगे?क्या आपकी मम्मी मुझे बहू रुप में स्वीकार करेंगी। आज जिस स्नेह से देखती हैं।जिस विश्वास से घर आने देती है। हमारे बारे में पता लगते ही क्या उनकी नज़रें नहीं बदल जायेंगी। एक मिनिट नहीं लगेगा आपके घरवालों को मुझे बदचलन समझने में ।माफ कीजिए।
खुद को कंट्रोल करते हुए मनु ने गंभीर आवाज मे कहा और जल्दी से पार्क से निकल गयी। आँखों में छलछलाए आँसुओं को धीरे से पौंछ लिया। **
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक - 012                                                        
जीवन परिचय 
जन्म- 27/10/77
पिता  - श्री जवाहर लाल राय (पूर्वcmo)
माता - श्रीमति सरोज राय(समाजसेवी, नेत्री)
पति- दिलीप राय (पूर्व न पं अध्यक्ष भेडाघाट)
शिक्षा- बी एस सी  (bio)
रुचि - पठन पाठन और लेखन, चित्रकारी
              कविता, कहानी, लघुकथा, हाइकु, दोहे, क्षणिकाएं आदि का लेखन
                     
उपलब्धियाँ- जबलपुर दैनिक अखबार में रचनाओं का प्रकाशन, शब्द अभिव्यक्ति पत्रिका में प्रकाशित कहानियाँ, ई- पत्रिका अविचल प्रवाह में रचनाओं का प्रकाशन, ब्लॉग पर  लघुकथा -2018 ( सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी )  लघुकथा संकलन में सम्मिलित
 
सम्मान - साहित्य संगम संस्थान से वीणा पाणी सम्मान, दैनिक श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान , नारी मंच संगम सुवास से दैनिक श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, संगम सुवास सम्मान।
फेसबुक समूह धर्म संसार द्वारा कहानी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान,
फेसबुक समूह आगाज द्वारा दैनिक श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान ( लघुकथा लेखन के लिए)
फेसबुक समूह उडान द्वारा दैनिक श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान।( लघुकथा लेखन के लिए)
पता - आदर्श होटल पंचवटी
         भेड़ाघाट जबलपुर म 0 प्र 0 , पिन - 483053
Email -archana.rai 1977@gmail.com
       अर्चना राय की प्रथम लघुकथा " भूख " ब्लॉग पर लघुकथा - 2018 ( सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी ) में शामिल हुई है ।
 पेश है लघुकथा 
   भूख
                                               
"लो बेटा लड्डू"
" तुम भी लो"- मंदिर के बाहर  भूख से रोते बच्चों को देखकर कविता ने कहा।
और लड्डू निकालकर बांटने लगी।
"अरे बहु कितनी बार कहा है, कि मंदिर आकर सबसे पहला भोग भगवान को लगाना चाहिए ।"
"बाद में दूसरों को ".....
पर तू है कि.............
यह आज की आधुनिक पीढ़ी, न रीति रिवाज से मतलब है न धर्म से, बात मानना तो इनको आता ही नहीं है ।
बड़बडाते हुए शारदा मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगी ।
"मां जी आपका अपमान करना मेरी मंशा नहीं है"पीछे आती कविता ने कहा।
भगवान तो सिर्फ श्रद्धा और भाव के भूखे हैं।
और वह आपके और मेरे पास बहुत है।
" और रहा सवाल भोग का तो ये  पाषाण प्रतिमा तो केवल भगवान का प्रतीक है"और
इनके लिए भोग लगाने हजारों लोग  मंदिर में लाइन लगाकर खड़े हैं। पर मंदिर के बाहर जो भूखे-प्यासे दीन ,दुखी लोग बैठे हैं। जिनके अंदर  भगवान का वास है।"
"जिन्हें सचमुच खाने की जरूरत है। उनके  बारे मे कितने लोग सोचते हैं "
वास्तव में भगवान प्राणी सेवा से प्रसन्न होते हैं, न कि भौतिक आडंबर से"
"मां जी दूसरे की सेवा ही सच्चा धर्म है"
और इसी से पुण्य और सुख  दोनों मिलते है। कहती हुई कविता मंदिर में भगवान के दर्शन करने लगी।
और शारदा अपनी आधुनिक बहू के विचार जानकर भाव विहल हो उठी। ००
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक -013                                                                 
                            जीवन परिचय                                                        जन्म तिथि            : 9   नवम्बर , 1 9 5 1                                                         
पिता                           :    स्वर्गीय  श्री मोहन लाल
माता                          :    स्वर्गीय  श्रीमति धर्मवन्ती
गुरुदेव                        :    स्वर्गीय  श्री सेवक वात्स्यायन  
                                      ( कानपुर विश्वविद्यालय )                                                                                                                                            
पत्नी                          :    श्रीमती  कृष्णा कुमारी 
जन्म -  स्थान            :     जगाधरी ( यमुना नगर - हरि. )
शिक्षा                         :     स्नातकोत्तर ( प्राणी - विज्ञान )
                                    कानपुर  ,
                                    बी . एड . ( हिसार - हरियाणा )
लेखन विधा                :    लघुकथा , कहानी , बाल  - कथा ,  कविता , बाल - कविता , पत्र - लेखन , डायरी - लेखन , सामयिक विषय आदि .
प्रकाशन  : -
    
1 .  देश की बहुत सी साहित्यिक पत्रिकाओं मे सभी विधाओं में  निरन्तर प्रकाशन
                                 
2.   आज़ादी ( लघुकथा – संगृह  ) , 1999      
                                   
3.    विष - कन्या   ( लघुकथा - संगृह ) , वर्ष -2008                    
                                   
4.  " तीसरा पैग "   ( लघुकथा - संगृह ) , वर्ष -2014                     
                                 
  5 . " उतरन "  लघुकथा संग्रह ( 2019 ) , वर्ष - 2019 ,
                                   
6 .  बन्धन - मुक्त तथा अन्य कहानियां  ( कहानी - संगृह ) , वर्ष - 2014
                                   
7 .   मेरे देश कि बात ( कविता - संगृह ) . वर्ष - 2014
                                   
8.   सपने और पेड़ से टूटे पत्ते  ( कविता संग्रह ) , वर्ष - 2019 ,
                                    
9 .   " बर्थ -  डे , नन्हें चाचा का ( बाल -  कथा - संगृह ) , वर्ष - 2014
                                    
10 .  " रुखसाना " ( ई - लघुकथा संग्रह )   अमेजॉन पर उपलब्ध - वर्जिन स्टुडिओ ) , वर्ष – 2018
                                   
    11 . “शंकर की वापसी “( ई - लघुकथा संग्रह )   अमेजॉन पर उपलब्ध - वर्जिन स्टुडिओ ) , वर्ष – 2018
सम्पादन       : 
                   
1 . " मृग मरीचिका " ( लघुकथा एवं काव्य पर आधारित अनियमित पत्रिका )
                  
2 .   तैरते - पत्थर  डूबते कागज़ " (   लघुकथा - संगृह ) ,       दीप प्रकाशन , साहिबाबाद
                   
3 . " दरकते किनारे " ,(   लघुकथा - संगृह )  ,  दीप प्रकाशन , साहिबाबाद
                  
4 .  अपूर्णा  तथा अन्य कहानियां  ( कहानी - संगृह ) , दीप प्रकाशन , साहिबाबाद
                   
5.  लघुकथा मंजूषा - २ ( ई - लघुकथा संग्रह - अमेजॉन पर उपलब्ध - वर्जिन स्टुडिओ ) , वर्ष - 2018
पुरूस्कार      :      
  1 . हिंदी - अकादमी ( दिल्ली ) , दैनिक हिंदुस्तान ( दिल्ली ) से  पुरुस्कृत
                                
2 . भगवती - प्रसाद न्यास , गाज़ियाबाद से कहानी बिटिया  पुरुस्कृत
                               
3 . " अनुराग सेवा संस्थान " लाल - सोट ( दौसा - राजस्थान ) द्वारा लघुकथा – संगृह ”विष – कन्या“  को वर्ष – 2009 में  स्वर्गीय गोपाल   प्रसाद पाखंला स्मृति -  साहित्य सम्मान
                             
   4. लघुकथा " शंकर की वापसी " दिनांक 11 जनवरी  2019 को पुरुस्कृत ( मातृभारती  . काम द्वारा )
आजीविका             :      
शिक्षा निदेशालय , दिल्ली के अंतर्गत 3 2 वर्ष तक जीव - विज्ञानं के प्रवक्ता पद पर कार्य करने के पश्चात  नवम्बर  2011 में  अवकाश – प्राप्ति                                          
सम्पर्क                  :  डी-184, श्याम आर्क एक्सटेंशन
                             साहिबाबाद, उत्तरप्रदेश- 201005 
                               मोबाइल 09911127277
                              
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा की प्रथम प्रकशित लघुकथा : " दृष्टिकोण " एवं " खुशहाली " , दोनों एक साथ 
                                       पत्रिका  प्रस्ताव ( कानपुर - उत्तर प्रदेश ) , अंक : अक्टूबर - दिसंबर - वर्ष : १९९७ में प्रकाशित हुई हैं ।
                                      
                      पेश हैं दोंनो लघुकथा :-
                     
                              1. दृष्टिकोण
                  
                    दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि से लेकर शिक्षा - दीक्षा और अब नौकरी भी लगभग एक समान थी . अब तक के समान नक्षत्रों के स्वामी दोनों मित्रों ने आगे के रास्ते अलग कर लिए थे . जीवन के प्रति प्रतिब्धता में दोनों के विचार जुदा - जुदा थे .ये बात अलग है कि दोनों को भगवान ने समान बौद्धिक स्तर दिया था.
                    पहला देश की सामाजिक और राजनितिक दुर्दशा को लेकर देश के भविष्य के प्रति सशंकित था , वहीं दूसरे को देश प्रगति की ओर अग्रसर , एक शक्तिशाली राष्ट्र दिखाई देता था . वह देश के उज्ज्वल भविष्य के प्रति पूरी तरह आश्वस्त था .
                    पहला देश के लिए बढ़ती हुई आबादी को गंभीर चुनौती मानता था , वहीं दूसरा इसमें भी देश का चौतरफा विकास देखता था . जितने सर , उतने पेट  और उतनी ही हर चीज की मांग . मांग होगी तो सप्लाई भी होगी .
                     पहले ने अपनी सोच के अनुरूप दो कन्याओं के पश्चात ही अपने बच्चों की संख्या पर अंकुश लगा दिया तो दूसरे ने पुत्र - प्राप्ति के लिए चार कन्याओं को जन्म देने वाली अपनी पत्नी को  इस नश्वर संसार से सदा के लिए विदा कर दिया .
                     पहले का निराशावाद जहां चार इकाईओं के परिवार की नैया को पार लगाने को ही भारी मान रहा था , वहीं दूसरा अपने भरे पेट के साथ सकारात्मक दृष्टिकोण के आलोक में  पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए एक और पत्नी को ले आया  .
                      समय की धारा के साथ पहले ने  गृहस्थी की अपनी नाव को किसी तरह पार लगाया , परन्तु दूसरा तो किसी जहाज पर सवार था और वह अपनी चार बेटिओं को ऊँचें घरों में ब्याह करने के साथ - साथ पुत्र रत्न प्राप्त करने भी सफल हो चुका था .
                      पहला उसकी सफलता के रहस्य को जीवन भर नहीं समझ पाया .
                      दूसरे ने अपनी सफलता का राज अपने अंत समय में खोलते हुए बताया , " अरे यह और कुछ नहीं , सिर्फ उसकी व्यवहार कुशलता का परिणाम था जो वह यह सबकुछ इतनी आसानी से कर पाया  . जिंदगी में जिस तरह का वातावरण मिले , उसी के अनुसार ढल जाओ . यही सफलता की गारंटी होती है . कोई ले रहा है तो उसे लेने दो और जब तुम्हें मौका मिले तो चूको मत  . "
                     
                                  **
                                                                      
                          2.  खुशहाली
                         
   मैं  एक अरसे बाद उससे  मिला था . पहले तो पहचान में ही नहीं आया . उसकी  वेशभूषा भले ही  उच्च कुल के किसी कुलीन का आभास नहीं दे रही थी , परन्तु ऐसी आवश्य थी जैसे किसी पुराने बक्से पर पेण्ट करके दर्शनीय बनाने का प्रयास किया गया था .
        मैंने उसका दिल रखने के लिए  पूछा , " बड़े चमक रहे हो ! कैसी चल रही है तुम्हारी रेल ? "
        " पूछो मत प्यारे भाई ! चल क्या रही है , फर्राटे ले रही है ."
         " लगता है , बड़े सेटिस्फाइड हो इस जॉब से ."
        " बेहद सेटिस्फाइड ! भाग्य चक्र पूरी तरह से साथ है ."
         " जरा डिटेल से समझा भाई . हमें भी दे कोई नुस्खा कि हम भी अपनी नौकरी का मजा उठायें ."
          " देख यार ! तुझसे क्या छुपाना . एक्सपोर्ट - इम्पोर्ट तो पब्लिक करती है पर वारे - न्यारे अपने हो जाते हैं ."
            " वो कैसे भाई ? "
            " यार ! तू तो जानता है कि बेहिसाब  आबादी से सना  अपना ये देश गरीबों और बेरोजगारों की फ़ौज ढो रहा है . इस देश में जितनी आबादी है , उतने ही नियम - क़ानून भी हैं . ये दोनों बाते अपनी फेवर में जाती हैं . "
             " वो कैसे भाई ?"
             " अरे यार कितना भी कहते रहो देश में कुछ लोग न तो आबादी का बढ़ना रोक रहे हैं और न हीं किसी भी नियम की पाबंदी की परवाह करते हैं ."
              " मतलब की बात कर , लम्बी मत हाँक ."
               " मतलब की बात ये कि उनके लिए  नियम होते हैं तोड़ने के लिए और मेरे लिए वहीं नियम बन जाते हैं मेरी यूनिफार्म की रंगत बढ़ाने  के लिए . वे नियम तोड़कर सामान एक शहर से दूसरे शहर ले जाते  हैं , जिसके लिए   मेरी रेल  मना करती है  पर मेरी यूनिफार्म को इस पर कोई एतराज नहीं होता और इससे मेरी खुशहाली का दौर शुरू हो जाता है ."
                 " मतलब तू उन्हें रोकता - टोकता नहीं है . पर  इससे तो तेरी रेल को नुक्सान होता है भाई ? "
           " छोड़ यार !  लोगों से देश बनता है . लोग खुशहाल होंगे तो देश भी  खुशहाल होगा . लोगों की खुशहाली में हम भी तो आते हैं या नहीं आते . "
      वो एक - टक उसकी खुशहाली को नापता रह गया . **
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक - 014                                                                 
जीवन परिचय 
मूल नाम :  रतन कुमार सिंह
जन्मतिथि: 14नवम्बर1963 , जयपुर - राजस्थान
योग्यता : विज्ञान स्नातक
व्यवसाय: राजस्थान सरकार में सहायक  लेखाधिकारी के पद पर जयपुर में कार्यरत।
वर्ष 1978 से लेखन कार्य शुरू किया एवं पहली कहानी "पत्र में तूफान" प्रसारित हुई। वर्ष 1992 तक आकाशवाणी,जयपुर के "युववाणी"  कार्यक्रम से जुड़कर  अनेक कहानियाँ "परोपकारी बाबा जी", "उपहार" आदि तथा कविताये प्रसारित। आकाशवाणी के  कार्यक्रम नव-तरँग एवं अनेक संगोष्ठी तथा परिचर्चाओं का संचालन किया एवं भाग लिया। वर्ष 2016 में FM आकशवाणी जयपुर से नाटक प्रसारित हुआ।
वर्ष 1992 से जयपुर रंगमंच से जुड़ा हुआ अनेक नाटकों में भाग लिया। नाट्य लेखन, निर्देशन और मंचन किया। राष्ट्रीय स्तर पर नागपुर(महाराष्ट्र), लखनऊ(उत्तर प्रदेश) आदि स्थानों पर मंचित नाटकों में भाग लिया। अनेक टीवी सीरियल्स, टीवी विज्ञापन और क्षेत्रीय एवं हिंदी फ़िल्मों में काम किया है जो सोनी(क्राईम पेट्रोल), ई टीवी राजस्थान(दास्ताने जुर्म), डी डी राजस्थान(ब्याव रो लाडू, कुँम कुँम रा पगलिया) व अन्य धारावाहिक आला-उदल, नानी बाई रो मायरो, प्रथा  आदि के अलावा 'ओ रब्बा अब क्या होगा' , 'ममता' राजस्थानी फ़िल्म में काम कर चुके है।
हिंदी चिल्ड्रन फ़िल्म "देख इंडियन सर्कस" वर्ष 2012 की बेस्ट इंडियन चिल्ड्रन फ़िल्म का अवार्ड भारत सरकार से मिला, कुल चार अवार्ड भारतीय और चार इण्टर नेशनल अवार्ड इस फ़िल्म को प्राप्त हुए है।
       अनेक लघुकथाओं एवं कविताओं, गीतों आदि को सोशल मीडिया पर श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में सम्मानित किया गया एवं अनेक राष्ट्रिय समाचार पत्रो में लघु कथाएं प्रकाशित हो चुकी है।
      
प्रकाशित पुस्तकें :-
वर्ष 2017 साझा लघुकथा संग्रह "अपने अपने क्षितिज" ; साझा काव्य संग्रह "काव्य सुरभि"
वर्ष 2018 लघुकथा संग्रह "सहमे से कदम" ; काव्य संग्रह "भाव मनोभाव"
प्राप्त सम्मान :-
"दृश्य-भारती" सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था, जयपुर द्वारा अभिनय के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया।
"वनिका पुब्लिकेशन्स" द्वारा उत्कृष्ट लेखन के लिए "लघुकथा लहरी सम्मान";
"मुंशी प्रेम चंद कथाकार 2016" सम्मान,
"साहित्य साधक सम्मान 2017",
"डॉ. महाराज कृष्ण जैन सम्मान 2018" माननीय श्री गंगाप्रसाद जी, राज्यपाल, शिलांग(मेघालय) द्वारा प्रदान किया गया।
अंतरराष्ट्रीय बोल हरियाणा चैनल पर प्रसारित लघुकथाएं:- 1. निदान 2. कॉकटेल
एफ.एम आकाशवाणी, जयपुर से कहानी "रिश्तों की सुगंध" प्रसारित
पता:- 1/1313, मालवीय नगर, जयपुर-302017
            मोबाइल:- 9887098115
           
   रतन राठौड़ की पहली प्रकशित लघुकथा 'क्रिया कर्म' राष्ट्रीय समाचार पत्र 'राजस्थान पत्रिका' जयपुर - राजस्थान में 1 नवम्बर 2015 को प्रकाशित हुई है ।
                         पेश है लघुकथा :-
                        
                            क्रिया-कर्म
                           
"आदमी बहुत अच्छा था।"
"सबसे मिल के चलता था, मिलनसार था।"
"और वो इनका पडोसी, जो मकान छोड़ के रहता था। बड़ा कुत्ता कमीना था।"
कुछ लोग आपस में बतिया रहे थे। कोई मोबाइल से चिपक हुआ था..और किसी ने कान से चिपका रखा था। एक ओर चिता की अग्नि  अपने यौवन पर थी।...कुछ देर बाद कपालक्रिया भी हो गई।...अब लोग इंतज़ार कर रहे थे कि कब यह संस्कार पूर्ण हो....और शमशान से निकले। कई लोग चिंतामग्न थे कि कार्य जल्दी निपटे तो जरुरी कार्य निबटाने जाऊं।......तभी आवाज़ आई, "सभी लोग अंतिम प्रणाम अंतिम श्रद्धाञ्जलि देवें"
बस फिर क्या था। चिता पर भीड़ लग गई। होड़ सी मच गई, शीघ्रातिशीघ्र निवृत होने की। ...फिर!!!
वेदनाएं , संवेदनाएं .....ख़ाक??
                      ***
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक - 015                                                            
जीवन परिचय
जन्मस्थल- जगदलपुर. छ.ग.
जन्म तारीख- 2.11.1960
शिक्षा- स्नातक
राष्ट्र स्तरीय की पत्र पत्रिकाओं मे लगभग पांच सौ लघुकथाओं का प्रकाशन -

कादंबिनी . हंस. नया ज्ञानोदय. गृह लक्ष्मी. अहा जिंदगी. मनोरमा.नव भारत. वनिता . माधुरी. द्वीप लहरी. साहित्य अमृत. कथादेश. मिन्नी. साहित्य गुंजन. भारत दर्शन ( न्यूजीलैंड ) ,सेतु ( कैलिफोर्निया ) नई दुनिया. दैनिक भास्कर. लोकमत. पत्रिका. अमर उजाला. हरिभूमि. प्रभात खबर.समाज्ञा . अपना बचपन. शाश्वत सृजन. मंगलयात्रा. वेद अमृत. मानस वंदन. सांझी सोच. देवपुत्र. बाल किलकारी. साहित्यसमीर.नंदन .साक्षात्कार. अक्षरा. शब्द प्रवाह. कंचन केसरी. ज्ञान सबेरा. दैनिक अग्नि पथ. अक्षर विश्व दैनिक अवंतिका आदि
अनेक लघुकथा  संग्रहो मे भी प्रकाशित :-
इंदौर तथा बोल हरियाणा बोल  रेडियो  से प्रसारण. लघुकथाओं का कई भाषाओं मे अनुवाद ।अब तक तीन लघुकथा किताबों का प्रकाशन. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय व छत्तीसगढ़ शासन द्वारा किताबों का क्रय लघुकथा संग्रह

" मीरा जैन की सौ लघुकथाएं" पर विक्रम वि.वि.उज्जैन द्वारा 2011 मे शोध कार्य .
दूसरे लघुकथा संग्रह को राष्ट्रीय स्तर पर शब्द प्रवाह द्वारा प्रथम पुरुस्कार.
अनेक लघुकथाएं राज्य व राष्ट्र स्तर पर पुरस्कृत
अब तक चार  लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके है
1.मीरा जैन की सौ लघुकथाएं
( इस किताब पर शोध कार्य चार संस्करण आ चुके हैं )
2. 101 लघुकथाएं.
( पत्रिका प्रकाशन से प्रकाशित तीन संस्करहथण आ चुके है )
3 . सम्यक लघुकथाएं
( बोधी प्रकाशन  )
4. मानव मीत लघुकथाएं
5. कविताएं मीरा जैन की
6.दीन बनाता है दिखावा. लेख संग्रह
7. श्रेष्ठ जीवन की संजीवनी. लेख संग्रह
8. हेल्थ हदसा . व्यंग्य संग्रह
पता : 516 , साँईनाथ कालोनी , सेठी नगर .उज्जैन. म.प्र.
           मोबाइल 09425918116
            Email - jainmeera02@gmail. com
     मीरा जैन की  प्रथम प्रकाशित लघुकथा  'सर्वश्रेष्ठ'  नई दुनिया ( इन्दौर - मध्यप्रदेश )समाचार पत्र  मे 22 जून 1996 जून को प्रकाशित हुई है ।
                  पेश है लघुकथा :-
                
                          " सर्वश्रेष्ठ "
                         
उत्साह एवं अति आतुरता के साथ लेडिस क्लब की सभी महिलाएं
परिणाम घोषित होने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी . कुछ समय
पश्चात निर्णायक मंडल की अध्यक्षा ने विजयी महिला का नाम
उद्घोषित किया .आशा के विपरीत परिणाम सुन कर सभी महिलाएं स्तब्ध रह गई. कुछ ने पक्षपात का आरोप लगाते हुए कहा -
' जिसे क्रीम, लिपिस्टिक, माश्चराइजर की ए बी सी डी तक नहीं आती उसने क्या खाक उत्तर दिया होगा ये सरासर नाइंसाफी है '
एक जिज्ञासु महिला ने खड़े होकर पूछा -
' माननीय अध्यक्षा महोदया ! आपने जिसे विजेता के रूप मे चुना है कम से कम उसके द्वारा लिखित उत्तर हमे बता दीजिए ?'
प्रश्न था-' किसी ऐसे सौंदर्य प्रसाधन का नाम लिखिये जिससे चेहरा हमेशा साफ सुथरा तथा कील मुहांसों से मुक्त रहता है ?'
मात्र एक शब्द मे उत्तर देते हुए विजेता महिला ने लिखा था- " चरित्र "
                     **
----------------------------------------------------------------------- क्रमांक - 016                                                            
जीवन परिचय
     सोशल एक्टिविस्ट रचनाकार /साहित्यकार
    
पति - श्री धमेन्द्र सिंह अपर जिलाधिकारी उ.प्र
स्थाई पता- आगरा 282001 उ.प्र
जन्म तिथि----13 अगस्त
शिक्षा--स्नातक /डिप्लोमा इन जर्नालिजम /मास कम्युनिकेशन/ मास्टर डिग्री ऑफ सोशल वर्क
*प्रकाशित* - शब्द संमदर, ई पत्रिका
नारीशक्ति सागर, हिन्दी सागर ,गीतगुंजन, काव्य रत्नावली,काव्य अंकुर,शब्दाजंलि,आदि
*अंतरराष्ट्रीय सम्मान*
1) *अंतरराष्ट्रीय नेशनल वूमेन एक्सीलेंस अर्वाड2010*
2)अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी दुबई,संयुक्त अरब अमारात
*अंतरराष्ट्रीय श्रेष्ठ साहित्यकार सम्मान2018*
3) केन्द्रीय हिन्दी विभाग काठमांडू नेपाल
*अंतरराष्ट्रीय साहित्यकार/समाजसेवा सम्मान*
4) *नगद पुरस्कार/सम्मान*
हिन्दी कश्मीरी संगम/स्टेला मॉरीश कॉलेज चेन्नई
*राज्यपाल से आचार्य अभिनव गुप्त साहित्य श्री (21000)का सम्मान*
*सम्मान विवरण*---
5) राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के उज्जैन मध्य प्रदेश *श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान*
6) भारत उत्थान न्यास कानपुर
*हिंदी साहित्यकार सम्मान*
7) विश्व लेखिका मंच दिल्ली
*नारी शक्ति सागर सम्मान*
8) विश्व हिन्दी रचाकार मंच दिल्ली
*हिन्दी सागर सम्मान*
9) साहित्य संगम संस्थान ,संगम सुवासःनारी मंच
  *श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान2017*
10) साहित्य संगम संस्थान ,संगम* सुवासःनारीमंच *श्रेष्ठ रचनाकार.सम्मान2018*
11) हिन्दी कश्मीरी संगम अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी द्वारा *योगनी लल्लेश्वरी साहित्य शारदा सम्मान*
12) अखिल भारतीय चिंतन.साहित्य परिषद,से
*राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान*
13) राष्ट्रीय अमृतधारा साहित्य ऑर्गनाइजेशन  जलगांव महाराष्ट्र- *"अमृतादित्य" साहित्य गौरव सम्मान*
14) काव्य रंगोली हिन्दी साहित्यिक पत्रिका - *साहित्य भूषण सम्मान*
15)केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय/मानव विकास मंत्रालय चेन्नई में हिन्दी के विशेष योगदान के लिए *श्रेष्ठ साहित्यकार सम्मान*
16मधुशाला साहित्यिक परिवार राजस्थान
*साहित्य रत्न  सम्मान* 2018
17)राष्ट्रीय कवि चौपल
,कवि चौपाल मनीषी सम्मान राजस्थान
18)के.बी हिन्दी साहित्य समिति बदायूँ
*अ.भा साहित्यकार काव्य श्री सम्मान 2018*
19) क्रान्तिधारा मेरठ साहित्यिक महाकुंभ
*साहित्य श्री सम्मान*
20) काव्य कुल संस्थान
  *अटल शब्द शिल्पी सम्मान२०१८*
20)अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान
    *साहित्य सारथी सम्मान२०१८*
22)हरियाणा उर्दू अकादमी पंजकूला सेमिनार द्वारा साहित्यकार सम्मान
विधा - आलेख कहानियां लघु कथाएं रचनाएं हाइकु आदि रचना़ओ और आलेखो को स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में स्थान मिल चुका है।लगभग साप्ताहिक समाचार पत्र सत्ता की बात लखनऊ से प्रकाशित 2009 सेअब तक मैं प्रकाशक/ संपादक
संस्थाओं से सम्बद्धता -
*विशेष--आशा किरण समृद्धि फाउंडेशन की अध्यक्ष/संस्थापिका*
2010अलग अलग उ.प्र के जनपदों में समान शिक्षा और पर्सनल हाइजीन,पर्यावरण पर काम कर रही है  कानपुर पर्यावरण सप्ताह चलाकर 1000 पौधे लगाएं  करती आ रही है अब तक कई जनपदों में २लाख कापीओं और 50हजार सीनेटरी
नैपकिन का निशुल्क वितरण कर चुकी है 98बच्चों का निशुल्क दाखिले करवाये विधवा /पेंशन और स्वास्थ्य शिविर लगाएं समाज सेवा के लिए सम्मान भी मिले
*आगमन- साहित्यिक/ सांस्कृतिक संस्था*
*राष्ट्रीय उपाध्यक्ष*
*प्रकृति पर्यावरण ट्रस्ट सचिव लखनऊ* 
  
वर्तमान पता --बी 19 सी एम ओ कम्पार्टमेंट पुलिस लाईन 
                      एटा 207001 उ.प्र
                       फोन नं 9897641452
                    ईमेल : rchnmishra782@gmail.com
     रचना सिंह 'रश्मि' के अनुसार प्रथम लघुकथा " आज की सावित्री " ई-पत्रिका " रचनाकार " में  27 - 8- 2018 को प्रकाशित हुई है ।
                        पेश है लघुकथा :-
                       
                      आज की सावित्री
              
        सत्तू के पेट में रात से ही बहुत तेज दर्द हो रहा था मुझे लगा शराब के लिए नाटक कर रहा है......
अब कुछ ज्यादा ही तड़प रहा था।
मै सत्तू को अस्पताल ले आई डॉक्टर साहब रात से ही पेट दर्द बता रहे कुछ खाया भी नही है रात से  डाक्टर सत्तू को पेट दबा कर देखने लगे कभी उसकी आंखें देखते हैं कभी उसकी जीभ देखते ऐसा लग रहा है जैसे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। सत्तू को डॉक्टर साहब ने बाहर भेज दिया।यह शराब पीता है । इसको इसको तुम बड़े अस्पताल ले जाओ मैंने हैरानी से देखा सब ठीक है न की तरफ देखा और पूछा डॉक्टर साहब सब सही तो है ना हां सब कुछ सही है यहां जाँच  नहीं हो सकती बड़ा अस्पताल है वहां पर
बडे डॉक्टर और जाँच मशीने भी है बड़े अस्पताल मे सत्तू की जांच से पता चला कि उसकी दोनों किडनी खराब हो चुकी है अब वह जी नहीं पाएगा।डाक्टर ने भर्ती करने.को कह दिया दो जिससे ईलाज शुरू हो सके अस्पताल वाले जो कहते गये.मै करती गयी सब बिक गया गाँव की जमीन का भी सौदा कर दिया सब कुछ बेच दिया कहाँ से लाऊ पैसा मै और सत्तू ही थे बस अगर उसे कुछ हो गया तो.........           भागदौड़ से थक गयी थी अचानक कब मेरी आँख लग गयी पता ही चला। सामने यमराज खड़े बोले मैं सत्तू को लेने आया हूँ सावित्री रोने लगी प्रभु ऐसा मत करो कैसे जी पाऊँगी लोग मुझे जीने नहीं देंगे नोच  खाएंगे। ये जैसे भी है मेरे पति हैं मै खुद  को बेचकर अपने पति का इलाज कराऊंगी उनको छोड़ दो प्रभु। बेटी  इतनी ही आयु है इसकी  इसने तुमको कभी कोई सुख नहीं दिया मै इसको नही छोड़ सकता वाकी तुम कुछ भी मांग लो प्रभु अभी आपने मुझे बेटी बोला
है तो क्या एक पिता अपनी बेटी को विधवा करेगें अभी तो मैने मातृत्व भी नहीं पाया मेरा सारा जीवन अंधकार में हो जाएगा। यदि आप सत्तू को ले जायेंगे
आपको मेरे प्राण भी लेने होगे यदि आप मेरे प्राण नहीं लेंगे तो मैं आत्महत्या करूंगी प्रभु आपको मेरी आत्म हत्या का पाप लगेगा प्रभु मैं इसकी अर्धांगिनी हूँ।इसके बिना अधूरी हूँ आप मेरे पति को छोड़ दे सावित्री अपनी बात पर अटल थी यमराज को सत्तू को छूने भी न दे रही थी।
आखिरकार यमराज को सावित्री की जिद के आगे हारना पड़ा....बोले बेटी तुमको अपनी आधी जिंदगी अपने पति को देनी होगी.मै तैयार हूँ आप मेरी पूरी जिंदगी लेले तथास्तु कहकर मन ही मन सोचते हुए सावित्री चाहे सतयुग की हो या कलयुग की हो सावित्री से हारना ही पडता है अंतरध्यान हो गये। सावित्री लगातार बोल रही थी मेरी जिंदगी लेलो तभी नर्स ने झकझोरा तुमको डा.साहब बुला रहे घबराते हुए उसने पहले सत्तु को देखा फिर डाक्टर के पास गयी। सावित्री तुम्हारे लिए अच्छी खबर है कल ही तुम्हारा और सत्तू को आपरेशन.है तुम्हारी किडनी मैच हो गयीं है तुम्हारा पति बच जाएगा सावित्री खुशी से उछल पड़ी । आखिर यमराज से आधी जिंदगी का सौदा जो गया था ।होश मे आने पर सावित्री ने डाक्टर को देखा डाक्टर ने कहा अब तुम और सत्तू दोनो ठीक हो मन ही मन यमराज को धन्यवाद दिया । **
----------------------------------------------------------------------क्रमांक - 017                                                       
जीवन परिचय
जन्म - 08 मई 1970 , बोकारो (झारखण्ड)
शिक्षा - स्नातकोत्तर(हिंदी)‚  नेट‚ संगनक विज्ञान में डिप्लोमा ।
प्रकाशित पुस्तक -
बहादुर दोस्त (बाल उपन्यास) ‚
काव्य संकलन - 'यह जो कड़ी है'
बिखरे हुए मनके'
कई संकलनों में रचनाएँ शामिल। सभी विधाओं में लेखन। शीघ्र अंग्रेज़ी बाल उपन्यास प्रकाशित।
पता - फुटलाही .पत्रालय - बिजुलिया
          वाया - चास ,जिला - बोकारो ,झारखण्ड -827013
              मो०-0930441301608873025842
       भोला नाथ सिंह की प्रथम प्रकाशित लघुकथा " बाज़ी " आनंदरेखा पत्रिका ( कोलकाता ) में जून -2000 को प्रकाशित हुई है ।
                      पेश है लघुकथा :-
                             बाज़ी
      बीच चौराहे पर एक नारी सज-सँवर कर खड़ी थी। अचानक एक व्यक्ति आया। वह सुंदर और स्वस्थ था। सादगी उसके अंग-अंग से छलक रही थी। परिधान उसके साधारण थे परंतु उसके चेहरे से दिव्य तेजोमय प्रकाश प्रस्फुटित हो रहा था।
उसने उस नारी से कहा-"मेरे घर चलोगी ? मैं तुम्हें अपनी पत्नी बनाऊँगा। पूरे मान-सम्मान के साथ रखूँगा।"
तभी दूसरी ओर से एक अन्य व्यक्ति आया। वह मोटर गाड़ी में सवार था। हेरा-फेरी कर वह मोटी रकम विदेशी बैंकों में जमा कर चुका था। मुँह से शराब की बदबू आ रही थी। कृशकाय वदन पर मलिन चेहरे की कुरूपता को ढकने के लिए उसने नानाविध साज-शृंगार कर रखा था। उसकी आँखों में वहशीपन था।
उसने उस नारी से कहा-"मेरे घर चलोगी ? मैं तुम्हें ऐश कराऊँगा‚ सारे सुख दूँगा। पर मैं तुम्हें पत्नी नहीं बना सकता‚ रखैल बनाकर रखूँगा।"
वह नारी थोड़ी देर तक सोचती रही। फिर लपककर मोटरगाड़ी में सवार हो गई। बेचारा सदाचारी टुकुर-टुकुर ताकता रह गया। **
----------------------------------------------------------------------- क्रमांक - 018                                                            
जीवन परिचय 
जन्म तिथि - 1 जनवरी 1966
जन्म स्थान - ग़ाज़ीपुर ( उ. प्र.)
शिक्षा - एम. एस-सी.; एम. एड्.; एम.ए.( हिंदी )
संप्रति - अध्यापन ( राजकीय सेवा ), बिहार सरकार।
लेखन - विगत बीस वर्षों से रचनात्मक लेखन में सक्रिय
प्रकाशित साझा संग्रह -
आधुनिक हिंदी साहित्य की चयनित लघुकथाएँ (बोधि प्रकाशन)
सहोदरी कथा - 1 (लघुकथा)
दीप देहरी पर (लघुकथा) - उदीप्त प्रकाशन
सहोदरी सोपान - 4 (काव्य संग्रह)
यादों के दरीचे ( संस्मरण)
परिंदो के दरमियाँ ( सं. - बलराम अग्रवाल)
कलमकार संकलन - 1, 2 - कलमकार मंच
साहित्य कलश (सं. - संजय सागर सूद)
प्रेम विषयक लघुकथाएँ ( अयन प्रकाशन)
नयी सदी की लघुकथाएँ (सं. - अनिल शूर आजाद)
अभिव्यक्ति के स्वर (लेख्य मंजूषा)
लघुकथा मंजूषा -2, 3 ( वर्जिन साहित्यपीठ)
चुनिंदा लघुकथाएँ (विचार प्रकाशन)
सम्मान -
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(1) अखिल भारतीय शब्द निष्ठा सम्मान - 2017 (राजस्थान)
(2) प्रेमनाथ खन्ना सम्मान - 2017 (पटना)
(3) प्रतिलिपि " सरगम " प्रतियोगिता में गीत चयनित।
(4) प्रतिलिपि कथा प्रतियोगिता में लघुकथा चयनित।
(5) भाषा सहोदरी सम्मान - 2017
(6) काव्यधारा प्रतियोगिता - 2017 में प्रथम पुरस्कार।
(7) मातृभारती सम्मान - 2018
(8) साहित्य भूषण सम्मान - 2018
(9)नवसृजन हिंदी रत्न सम्मान - 2018
संपर्क -
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विजयानंद सिंह
" आनंद निकेत "
बाजार समिति रोड
पो. - गजाधरगंज
बक्सर ( बिहार ) - 802103
मो. - 9934267166
ईमेल - vijayanandsingh62@gmail.com
विजयानंद विजय की पहली प्रकशित लघुकथा दैनिक समाचार पत्र " हिंदुस्तान " में " अंकल " शीर्षक से 4 जून 1998 को प्रकशित हुई है ।
                  पेश है लघुकथा :-
                 
                       अंकल
                 
    बोझिल मन से वह सड़क पर चला जा रहा था।
कॉलेज में सहकर्मियों के बीच सौंदर्य-बोध पर शुरू हुई चर्चा जब नारी-पुरूष के संबंधों तक पहुँची और अंत तक आते-आते श्लील-अश्लील की सीमा रेखा पार करने लगी, तो उसका मन उद्विग्न हो उठा था, और वह उठकर बाहर आ गया था।क्या समझेंगे ये सौंदर्य -बोध ? सौंदर्य-बोध तो कालिदास की कल्पना में था।
कॉलेज में वह हिंदी पढ़ाता रहा है।कालिदास से वह सर्वाधिक प्रभावित था।शायद इसीलिए शकुंतला की तलाश है अभी तक !
अपनी कॉलोनी में पहुँचकर, सड़क छोड़ वह तेज कदमों से पार्क की ओर मुड़ गया। कितनी शांति है प्रकृति की गोद में। रंग-बिरंगे फूल, पेड़-पौधे, हरे-भरे मैदान, सरोवर और चहचहाते पक्षियों को देख उसका सौंदर्य-बोध जागृत हो उठा।
सहसा दूर...सामने उसकी नजर जाती है। कोई लड़की चली आ रही थी। उसे देख उसकी चाल मद्धम हो गयी।समस्त ज्ञानेंद्रियों को समेटकर वह उसे देखने लगा।वह नजदीक आती जा रही थी।सुगठित काया, गोरा-दुधिया रंग, तीखे नैन-नक्श.... उसका कवि हृदय कल्पना लोक में विचरने लगा।वह अपलक उसे देखता  सम्मोहित, मंत्रमुग्ध-सा चला जा रहा था।
लड़की अचानक  ठीक उसके सामने आकर रूकती है - " अंकल, प्लीज़ बताएँगे, डॉ. सुधीर मल्होत्रा कहाँ रहते हैं ?"
" अंकल " - इस शब्द से अचानक उसका सम्मोहन टूटा।
उसका सौंदर्य-बोध काफ़ूर हो चुका था।
अचानक उसे लगा कि अब वह प्रौढ़ हो चला है। **
--------------------------------------------------------------------- क्रमांक - 019                                                          
जीवन परिचय 
      जन्म तिथि  - 01/01/1965
      स्थान  - गंगापुर सिटी,  स.मा. (राज.)322201
      शिक्षा  - एम.ए. बी.एड 
      प्रकाशित पुस्तकों का विवरण  -
      (1) कौन कहता है ... (काव्य-संग्रह)  2017
      (2) पाण्डे जी कहिन... (काव्य-संग्रह ) 2018
पता:-विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
         कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,
         जिला-सवाई माधोपुर (राज.)322201
          मोबाइल नंबर  - 9549165579
       E-mail : Vishwambharvyagra@gmail.com
        विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' की प्रथम प्रकशित लघुकथा " चबूतरे का नीम " दैनिक नवज्योति ( जयपुर - राजस्थान ) में 22 दिसम्बर 2013 को प्रकशित हुई है ।
                        पेश है लघुकथा :-
                       
                       *चबूतरे का नीम* 
            जब कान्ती बहू बनकर इस घर में आई,  तब उसकी सास ने बताया कि ये बाहर चबूतरे पर नीम का पौधा,  तेरे पति ने ही लगाया है । तब से कान्ती ने उसकी देख-रेख व सुरक्षा का जिम्मा ले रखा था । कान्ती बहू ,  अब कान्ती दादी का रूप ले चुकी थी । उसके पति भी इस दुनिया से कई वर्ष पहले जा चुके थे । कान्ती दादी अब सुबह से शाम तक चबूतरे के उस नीम के नीचे टाट बिछाकर बैठी रहती । शायद इस रहस्य को वो स्वयं कान्ती ही जानती थी कि उस नीम से उसका क्या रिश्ता है ?
              कुछ महीनों बाद कान्ती के बड़े पोते का विवाह होने वाला था । इस कारण घर में  एक चर्चा होने लगी कि नीम को कटवाकर चबूतरे पर एक बड़ा कमरा बनवा दिया जाये । ये चर्चा जब कान्ती के कानों तक पहुँची तो उसे धक्का लगा और वह उस दिन से अनमनी सी रहने लगी । कुछ दिनों बाद तो उसका खाना-पीना भी लगभग छूट गया । अचानक,  माँ की तबियत खराब देख, बेटे चिंतित होने लगे । उन्होंने उसे डाॅक्टरों को बताया पर उसकी बीमारी,  किसी के पकड़ में नहीं आ रही थी । एक दिन उसने,  अपने बेटों से कहा,  बेटों  ! "मुझे बाहर चबूतरे पर ले चलो, मैं कुछ पल वहाँ बिताना चाहती हूँ " बेटे-बहुओं ने उसकी खाट चबूतरे पर जाके रख दी और सब आश्चर्य से उसे देखने लगे । वो कान्ती दादी अपलक उस नीम को देखे जा रही थी । किसी को पता भी नहीं चला कि कब उसके प्राण पखेरू उड़ गये । **
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   क्रमांक - 020                                                                
जीवन परिचय
जन्म :.-17 जनवरी,1973 स्थान: सुचान ( सिरसा)
शिक्षा: एम. ए.( हिंदी, समाजशास्त्र, इतिहास),बी. एड. डी. एड,प्रभाकर
प्रकाशन:
सम्पादित पुस्तक-बहुआयामी व्यक्तित्व:रूप देवगुण,
विभिन्न राष्ट्रीय एवं स्थानीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं में लघुकथाएँ, कविताएँ, लेख, समीक्षा, बाल कविताएँ व बाल सामग्री प्रकाशित
       पता : बी-20/2958,गली न.7,प्रीत नगर, बेगू रोड, 
                 सिरसा-125055(हरियाणा)
  हरीश सेठी ' झिलमिल ' की प्रथम प्रकशित  लघुकथा दो है जो  नौकर व  भाषण (दोनों इकट्ठी) दैनिक ट्रिब्यून ( चंडीगढ़ ) में  11जुलाई 1993 को प्रकशित हुई हैं ।
                 पेश है दोनों लघुकथा :-
                        1. नौकर

     मालिक ने लिखाई का कार्य करने के बाद दवात जल्दी में फर्श पर ही छोड़ दी थी। नौकर रामू किसी काम से अंदर आया तो जल्दी में उसके पैर की ठोकर दवात पर लग गई।स्याही फ़र्श पर फैल गई। इतने में मालिक आ गये।रामू को डाँटते हुए बोले --"दिखाई नहीं देता तुम्हें, सुबह-सुबह सात रुपये का नुक्सान कर दिया,शर्म आनी चाहिए तुम्हें।स्याही के सारे पैसे तुम्हारी तनख्वाह में से काटूँगा।"रामू कुछ भी बोल नहीं पाया ।
       आज फिर जल्दबाजी में मालिक दवात फर्श पर ही भूल गये थे।कमरे के अंदर आते समय उनका पैर दवात से टकरा गया।स्याही फर्श पर फैल गई।तुरंत रामू को बुलाया और बोले --"आज फिर नुक्सान कर दिया, तुमने फर्श से दवात को उठाया क्यों नहीँ? दवात क्या मैं उठाऊंगा? शर्म आनी चाहिए तुम्हें।नुक्सान के सारे पैसे तुम्हारी तनख्वाह में से काटूँगा।" रामू आज भी सिर झुकाए मालिक की डाँट सुन रहा था । और सोच रहा था--' आखिर वह है तो नौकर ही ।'
      
                             ***
                             2. भाषण
     बस में बैठते ही वह फिर उस भाषण के बारे में सोचने लगा,जो उसने आज की सभा में देना था। वह 'रिश्वतखोरी' पर ऐसा भाषण देना चाहता था, जिससे लोग प्रभावित हों।उसके विचार भी बस की गति के साथ आगे बढ़ रहे थे।
          उसकी तन्द्रा तब टूटी जब कंडक्टर ने उसे झिंझोड़कर कहा--" टिकट ।" उसने दस का नोट कंडक्टर की ओर बढ़ाया।
  "दस रुपए और दो,टिकट के बीस रुपये लगते हैं।"कंडक्टर ने कहा तो वह बोला--"टिकट की जरूरत नहीं है।"
  कंडक्टर चुपचाप आगे बढ़ गया था।वह फिर अपने उसी भाषण के विचारों में खो गया जो उसने आज देना था।
 
                                ****
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क्रमांक - 021                                                                   
जीवन परिचय
जन्मतिथि – 16/10/1970 करनाल
माता का नाम – श्रीमती शान्ति देवी
पिता का नाम—श्री कर्म नारायण बब्बर
शिक्षा ---बी०ए०, हिन्दी में सृजनात्मक लेखन में डिप्लोमा, जर्नलिज्म में डिप्लोमा !

कार्य क्षेत्र -- स्वतंत्र लेखन

रचनाएं --- 31 वर्षों से निरंतर लेखन ! कहानी, लघुकथा, कविताएं, लेख, फीचर, साक्षात्कार, व्यंग्य लेख व आकाशवाणी व मंच हेतू नाटक लेखन व रचनाओं का प्रसारण!

राष्टीय स्तर की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित!
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आयोजित ' बेटी बचाओ बेटी पढाओ ' अभियान हेतू हिसार दूरदर्शन में आयोजित कवि सम्मेलन में भाग लिया !

-- यू ट्यूब काव्य सागर चैनल पर एक वर्ष से मेरी रचनाएं प्रसारित हो रही हैं !

पुरस्कार व सम्मान --
-दैनिक ट्रिब्यून द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार!
--  शब्द साहित्यिक संस्था गुड़गांव द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार !
--  ज्ञानोदय संस्था हरिद्वार द्वारा कहानी ‘ अपना घर ‘ को दीपशिखा सम्मान!
---  हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित कहानी  प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार !

वर्तमान पता -- नीरू तनेजा /पत्नी /श्री ज्ञान चंद तनेजा,
                   405/3, रेलवे रोड, समालखा,
                   हरियाणा – 132101
मोबाइल ----7082437332
ईमेल --- neerutaneja16@gmail.com
     नीरू तनेजा की प्रथम प्रकाशित लघुकथा " पैसे की दीवार " नीरू बब्बर के नाम से जुलाई 1990 में विश्वमानव ( करनाल ) में प्रकाशित हुई है ।
    
                      पेश है लघुकथा :-
                    
                       पैसे की दीवार
                    
            मैं  अपने भतीजे को लेने उसके स्कूल पहुंची! छुट्टी में अभी कुछ देर थी अत: मैं वहीं गेट के पास छाया में खड़ी हो गई ! वहां देखा कि सड़क पर एक औरत कड़कती धूप में बैठी ईंटे तोड़ रही थी और एक पुरुष उसी कड़कती धूप में ईंटे आदि उठाकर एक तरफ रख रहा था! बच्चा पास में ही खेल रहा था ! तभी वहां मालिक आया, आते ही चिल्लाने लगा - "ये सब यहां से उठाकर वहां रखो ! पहले मेरी बात सुन लो , इतनी धूप में मुझसे खड़ा नही हुआ जाता! गर्मी खाए जा रही है!" फिर जल्दी से आदेश देकर चला गया! उसी धूप में वे फिर मग्न हो गए!
        मैं सोच रही थी कि क्या ये धूप सिर्फ अमीरों को ही काटती है गरीबों को नही! लेकिन जवाब सिर्फ ' पैसे की दीवार ' था  **
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 क्रमांक - 022
जीवन परिचय

जन्म : 03 जून 1965
शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्
             फिल्म पत्रकारिता कोर्स
            
कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक
               जैमिनी अकादमी , पानीपत
               ( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रकाशित )
मौलिक :-
मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989
प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990
त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991
नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998
इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001
धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001
सम्पादन :-
चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990
पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998
शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001
प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001
बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001
बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001
संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002
रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002
हरियाणा साहित्यकार कोश ( परिचय संकलन ) - 2003
राजभाषा : वर्तमान में हिन्दी या अग्रेजी ? ( परिचर्चा संकलन ) - 2003
लघुकथा - 2018  (लघुकथा संकलन) blog पर
बीजेन्द्र जैमिनी पर विभिन्न शोध कार्य :-
1994 में कु. सुखप्रीत ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लालचंद गुप्त मंगल के निदेशन में " पानीपत नगर : समकालीन हिन्दी साहित्य का अनुशीलन " शोध में शामिल
1995 में श्री अशोक खजूरिया ने जम्मू विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजकुमार शर्मा के निदेशन " लघु कहानियों में जीवन का बहुआयामी एवं बहुपक्षीय समस्याओं का चित्रण " शोध में शामिल
1999 में श्री मदन लाल सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के निदेशन में " पानीपत के लघु पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रंबधन व वितरण " शोध में शामिल
2003 में श्री सुभाष सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. रामपत यादव के निदेशन में " हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण एवं मूल्यांकन " शोध में शामिल
2003 में कु. अनिता छाबड़ा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लाल चन्द गुप्त मंगल के निदेशन में " हरियाणा का हिन्दी लघुकथा साहित्य कथ्य एवम् शिल्प " शोध में शामिल
2013 में आशारानी बी.पी ने केरल विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. के. मणिकणठन नायर के निदेशन में " हिन्दी साहित्य के विकास में हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं का योगदान " शोध में शामिल
2018 में सुशील बिजला ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , धारवाड़ ( कर्नाटक ) के अधीन डाँ. राजकुमार नायक के निदेशन में " 1947 के बाद हिन्दी के विकास में हिन्दी प्रचार संस्थाओं का योगदान " शोध में शामिल
सम्मान / पुरस्कार
15 अक्टूबर 1995 को  विक्रमशिला हिन्दी विद्मापीठ , गांधी नगर ,ईशीपुर ( भागलपुर ) बिहार ने विद्मावाचस्पति ( पी.एच.डी ) की मानद उपाधि से सम्मानित किया ।
13 दिसम्बर 1999 को महानुभाव विश्वभारती , अमरावती - महाराष्ट्र द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी की पुस्तक प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) को महानुभाव ग्रंथोत्तेजक पुरस्कार प्रदान किया गया ।
14 दिसम्बर 2002 को सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी , खण्डवा - मध्यप्रदेश द्वारा इक्कीस हजार रुपए का आचार्य सत्यपुरी नाहनवी पुरस्कार से सम्मानित
14 सितम्बर 2012 को साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा - राजस्थान द्वारा " सम्पादक - रत्न " उपाधि से सम्मानित
14 सितम्बर 2014 को हरियाणा प्रदेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा के क्षेत्र में इक्कीस सौ रुपए का श्री रमेशचन्द्र शलिहास स्मृति सम्मान से सम्मानित
14 सितम्बर 2016 को मीडिया क्लब , पानीपत - हरियाणा द्वारा हिन्दी दिवस समारोह में नेपाल , भूटान व बांग्लादेश सहित 14 हिन्दी सेवीयों को सम्मानित किया । जिनमें से बीजेन्द्र जैमिनी भी एक है ।
18 दिसम्बर 2016 को हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा सेवी सम्मान से सम्मानित
अभिनन्दन प्रकाशित :-
डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी ( 25 मई 1999)
डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : अभिनन्दन मंजूषा
सम्पादक : लाल चंद भोला ( 14 सितम्बर 2000)
विशेष उल्लेख :-
1. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन
2. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन
3. हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ , पश्चिमी बंगाल आदि की पंचास से अधिक संस्थाओं से सम्मानित
4. बीजेन्द्र जैमिनी की अनेंक लघुकथाओं का उर्दू , गुजराती , तमिल व पंजाबी में अनुवाद हुआ है । अयूब सौर बाजाखी द्वारा उर्दू में रंग में भंग , गवाही , पार्टी वर्क , शादी का खर्च , चाची से शादी , शर्म , आदि का अनुवाद हुआ है । डाँ. कमल पुंजाणी द्वारा गुजराती में इन्टरव्यू का अनुवाद हुआ है । डाँ. ह. दुर्रस्वामी द्वारा तमिल में गवाही , पार्टी वर्क , आर्दशवाद , प्रमाण-पत्र , भाषणों तक सीमित , पहला वेतन आदि का अनुवाद हुआ है । सतपाल साहलोन द्वारा पंजाबी में कंलक का विरोध , रिश्वत का अनुवाद हुआ है ।
पता : हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6 ,
          पानीपत - 132103 हरियाणा
          ईमेल : bijender1965@gmail.com
          WhatsApp Mobile No. 9355003609

बीजेन्द्र जैमिनी की प्रथम प्रकशित लघुकथा " दु:ख और मजबुरी " 01 दिसम्बर 1987 को पथ - बन्धु ( सहारनपुर - उत्तर प्रदेश ) पाक्षिक में प्रकशित हुई है ।

                   पेश है लघुकथा :-
                   
                                दुःख और मजबुरी

         फटेहाल युवती को भीख माँगते देखकर दो मनचले लड़के उसके पास आये और बीस रूपय का नोट दिखा कर बोले- लेगी ?
       युवती ललचाई निगाहों से रूपये देखकर बोली- इत्ते रूपये
         बोले- कम है ?
दोनों उसकी ओर घूर रहे थे। वह बोली- चलो ! मेरे साथ ।
         थोड़ी दुर चलने के बाद वे एक टूटे – फूटे मकान में घुसे तो खाट पर पडे बूढे़ की ओर इशारा करती बोली-
        मेरे बाप को पाँच सालों से टी बी है और मैं खुद एडस से पीडि़त हूँ। यही दुःख और मजबुरी भीख मगंवाती है। 
         वह सिसक उठी ! नंजर उठाई तो दोनों मनचले गायब थे। ****
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक - 023                 
जीवन परिचय
            
जन्म व जन्म स्थान:19.11.1957,फरीदाबाद
शिक्षा:एम.एससी, एल.एलबी,एम.एच.एम(होम्योपैथी)
सम्प्रति:सेवानिवृत्त जिला मलेरिया अधिकारी,
           स्वास्थ्य विभाग, हरियाणा।
प्रकाशित पुस्तकें :
                      कुल 23 : मौलिक:16, सम्पादित5,  
                                    अनुवादित:2
कहानी -संग्रह :महक रिश्तों की , एक सच यह भी
लघुकथा -संग्रह : उसी पगडण्डी पर पाँव, कभीभी कुछ भी
कविता -संग्रह : दूर होते हम, कविता से पूछो, कचरे के ढेर पर जिंदगी,कब चुप होती है चिडि़या, खिडक़ी से झाँकते ही
बालकहानी -संग्रह: बचपन के आईने से व धूप का जादू
अनुवादित पुस्तकें: कदै वी कुझ वी व इक सच ऐ वी
आलोचना व समीक्षात्मक पुस्तकें: हरियाणा की महिला रचनाकार : विविध आयाम, मधुकांत की कहानी यात्रा, रूप देवगुण की कहानियों में सामाजिक संदर्भ ,
सम्पादित पुस्तकें: सिरसा जनपद की काव्य सम्पदा, सिरसा जनपद की लघुकथा सम्पदा, सिरसा लघुकथा का स्वर्णिम इतिहास, बहुआयामी व्यक्तित्व रूप देवगुण,भावुक मन की लघुकथाएं।
सम्मान व पुरस्कार: हरियाणा साहित्य अकादमीद्वारा श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान व लघुकथा -संग्रह कभी भी -कुछ भी को श्रेष्ठ कृति पुरस्कार सहित देश भर की प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा 30 से भी अधिक सम्मान  व पुरस्कार प्राप्त
साहित्य की विभिन्न विधाओं यथा कहानी, कविता
लघुकथा में चार एम.फिल.व एक पी.एच डी संपन्न व दो पर पी.एचडी जारी।

प्रज्ञा राष्ट्रीय चैनल पर एक घंटे का साहित्यकार डा.शील कौशिक पर फोकस कार्यक्रम प्रसारित
पता : मेजर हाउस-17,सेक्टर -20,हुडा, पार्ट-1,
         सिरसा-125056 (हरियाणा)
             मोबाइल : 9416847107
          इमेल:-sheelshakti80@gmail.com
        
                डाँ. शील कौशिक की प्रथम प्रकशित लघुकथा " एफआईआर " 25 मार्च 2003 को जैमिनी अकादमी ( पानीपत - हरियाणा ) समाचार पत्र में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                         एफ आई आर
                        
    सुबह जब अंकित सो कर उठा तो अपने पड़ोसी गुप्ता जी के यहाँ मातम जैसा माहौल देख कर हैरत में पड़ गया," क्या हुआ गुप्ता जी सब खैर-खबर तो है?"
"हमारे यहाँ रात को चोरी हो गई।चोर नकदी व आभूषण ले उड़े। काफी नुकसान हो गया ,"गुप्ता जी रुआंसे होकर बोले।
अंकित के मुँह  से निकला-" लगता है आजकल चोरों का कोई गैंग शहर में आया हुआ है, तभी शहर में आए दिन चोरियां हो रही हैं। पुलिस हाथ पे हाथ धरे बैठी है।"
गुप्ता जी ने रिपोर्ट लिखवाई। पुलिस वाले आए, मुआयना किया, उंगलियों के निशान लिए और चले गए।
दो-तीन दिन तक भी जब कोई सूचना उन्हें न मिली तो गुप्ता जी अंकित के साथ थाने में गए।
थानेदार ने पूछा,"आपको किसी पर कोई शक-शुबहा?"
"नहीं जी...मुझे... " कहते हुए गुप्ताजी की नजर थानेदार की कलाई पर पड़ी... वे भोचक्क रह गए। अंकित को एक ओर ले जाकर उन्होंने कहा,
" थानेदार की कलाई पर जो सोने की घड़ी बंधी है ,यह मेरी ही है।" **
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क्रमांक - 024                                                          
जीवन परिचय
पिता : श्री ओम प्रकाश शर्मा
माता :  श्रीमती स्नेह लता शर्मा
जन्म : 19-09-1970, चंदौसी ,मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
शिक्षा : स्नातक
              कहानी-लेखन महाविद्यालय, अम्बाला छावनी से ‘लेख व फीचर लेखन’ का कोर्स।
विधाएं : हास्य-व्यंग्य, कहानी, लेख, लघुकथा, कविता, संस्मरण, समीक्षा इत्यादि
पुरस्कार :  
हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला से लघुकथा संग्रह ‘सिर्फ तुम’ हेतु सहायतानुदान।
पुस्तक ‘सिर्फ तुम’ (लघुकथा संग्रह) को हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला से ‘श्रेष्ठ कृति     पुरस्कार’, राशि 21000/- रुपए।
‘साहित्य समर्था’, त्रैमासिक साहित्यक पत्रिका, जयपुर द्वारा ‘अखिल भारतीय डॉ. कुमुद टिक्कू कहानी एवं लघुकथा प्रतियोगिता’ में श्रेष्ठ लघुकथा पुरस्कार (जनवरी, 2016)

‘हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला’ द्वारा वर्ष 2014-15 के लिए (दिसंबर, 2016 में घोषित) पुस्तक ‘वह लड़की’ के लिए सहायतानुदान। पुस्तक प्रकाशित। 
सम्मान :  -
‘पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी’, शिलांग द्वारा ‘श्रेष्ठ प्रतिभा सम्मान’, शिलांग शिविर-2010 में। 
    
‘यूएसएम पत्रिका एवं राष्ट्रभाषा स्वाभिमान न्यास (भारत)’, गाज़ियाबाद द्वारा ‘राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान- 2010’ प्राप्त।
‘हम सब साथ साथ’, नई दिल्ली द्वारा ‘युवा लघुकथाकार सम्मान’।
‘पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी’, शिलांग द्वारा ‘श्री जीवनराम मुंगीदेवी गोयनका स्मृति सम्मान’।
‘साहित्य सभा’, कैथल (हरियाणा) द्वारा ‘बाबू जगदीश राम स्मृति साहित्य सम्मान 2015’ प्राप्त।
भारत विकास परिषद्, अम्बाला द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन (26.11.2016) में सम्मानित।
‘हरियाणा प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मलेन, सिरसा’ द्वारा संचालित ‘हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच’ के तत्वाधान में ‘लघुकथा सेवी सम्मान, वर्ष-2016’ से सम्मानित।
प्रकाशित पुस्तकें: 
1. सिर्फ तुम (लघुकथा संग्रह)
2. डोर (लघुकथा संग्रह)
3. वह लड़की (कहानी संग्रह) 
4. मुफ्त बातों के मुफ्तलाल (व्यंग्य संग्रह)
प्रसारित   : आकाशवाणी कुरुक्षेत्र, रोहतक एवं शिलांग से रचनायें प्रसारित।
सम्प्रति : सेवारत रेल विभाग
संपर्क     : 19, सैनिक विहार, सामने विकास पब्लिक स्कूल, जंडली, अम्बाला शहर–134005 (हरियाणा)।
               मोबाइल : 09416860445      
         ई मेल :  sharma.pankaj254@gmail.com
        पंकज शर्मा की प्रथम प्रकशित लघुकथा  'थप्पड़' कहानी लेखन महाविद्यालय,शास्त्री कॉलोनी, अम्बाला छावनी की मासिक पत्रिका 'शुभ तारिका' के जनवरी, 2007 अंक में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                               थप्पड़
          
“क्या हुआ बेटा, इतना रो क्यों रहे हो? और..., और यह तुम्हारा गाल लाल क्योँ है?”
“पापा, अभी जब मैं स्कूल से वापिस आ रहा था, तो रास्ते में दो आदमियों ने मुझे पकड़ लिया और जोर से थप्पड़ मारा। वे कह रहे थे कि यह उसी साले, हरामी का बेटा है न जिसने हमसे पैसे ले कर हमारा काम किया था।”
मुझे लगा कि जैसे यह थप्पड़ मेरे अपने गाल पर पड़ा है। **
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जीवन परिचय
जन्म- ३/२/१९६७,पन्तनगर (नैनीताल)
शिक्षा- एम.ए.(हिंदी), पी-एच. डी.,डी.लिट्.
प्रकाशित पुस्तकें :-
1.कवि शान्ति स्वरूप कुसुम :व्यक्तित्व और कृतित्व
2.जीवन है गीत(गीत-संग्रह)
3.साधना-सतसई(दोहा -संग्रह)
सम्प्रत्ति :एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग
जनता वैदिक कालेज बड़ौत (बागपत) उत्तर प्रदेश
पता:   गली नंबर-०२, मधुबन कालोनी, कैनाल रोड़, 
           बडौ़त(बागपत) 250611 उत्तर प्रदेश
     डाँ. साधना तोमर  की  पहली लघुकथा " आशा की किरण " फेशबुक के ' लघुकथा के परिंदे ' पर सितम्बर -  2018 को प्रसरित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                       आशा की किरण
       सीमा आज अनमनी सी बैठी थी,मन बहुत उदास था पिताजी ने उसकी शादी तय कर दी थी।अभी बारहवी कक्षा मे पढ रही थी।माँ बीमार रहती थी पिता जी ने बडी
बहन की शादी भी जल्दी कर दी थी।उन्हें चिंता रहती थी कि कहीं उसकी माँ को कुछ न हो जाये, इसलिए जल्दी से जल्दी सीमा के हाथ पीले करना चाहते थे।सीमा पढना चाहती थी पर क्या करती पिता की इच्छा के आगे मजबूर थी।मन मे अन्तर्दृन्दृ चल रहा था कि क्या होगा  उसकी पढाई का,पता नही आगे कोई पढाएगा या नही। पिता ने जो लडका देखा था वह इन्टर कालेज मे शिक्षक था।सीमा ने तो उसे देखा भी नही था। नियत तिथि मे विवाह सम्पन्न हुआ,सीमा ससुराल पहुँची तो देखा कि पति को छोड़कर सभी बहुत कम पढे लिखे थे।सोलह साल की उम्र मे  नया माहौल, नये लोग,डरी सी सहमी, सी बैठी थी,सोच मे डूबी थी - क्या होगा मेरी पढाई का? सास ननद बिल्कुल अनपढ है क्या ये मुझे पढने देगी? शाम को खाने के बाद सास ,ननदे ,पति सब बैठे थे ननद बोली-" भाई !भाभी तो बडी गुमसुम सी है, तुम ही पूछो क्या हुआ?'"यह कहकर वे सब पति को छोडकर बाहर चली गई।
     सुमित पास आये और बोले,"क्या बात है सीमा तुम इतनी गुमसुम क्यों हो,मुझे बताओ क्या परेशानी है,क्या किसी ने कुछ कहा है? "  " नही ऐसी कोई बात नही है,मुझे तो बस एक चिंता है कि मै आगे  पढ पाउँगी या नही।" सीमा  ने कहा ।
      सुमित हँसने लगा और बोला,"बस इतनी  सी बात ,सीमा तुम चिंता मत करो मै तुम्हे पढाउँगा जितना तुम चाहोगी,मुझसे भी ज्यादा, अगर मेरे घरवाले मना करेंगे तो भी पढाउँगा।तुम्हारी पढाई के लिए घरवालों की नाराजगी भी सहनी पडे तो कोई  बात नहीं।"
      "धन्यवाद सुमित तुमने मेरे मन का बोझ हल्का कर दिया, मेरे जीवन मे आशा की किरण जगा दी, मै बहुत खुश हूँ। **
----------------------------------------------------------------------क्रमांक - 026                                                         
जीवन परिचय
जन्म :२६ जुलाई १९७३ ,शाहजहांपुर , उत्तर प्रदेश
मातृभाषा  : हिन्दी बोली कन्नौजी
शिक्षा : एमए हिन्दी संस्कृत भूगोल ,बीएड सीआईजी 
              पीएचडी मानद
प्रकाशित पुस्तकें :-
हमबच्चे बालगीत संग्रह २००१
पर्यावरण की कविताएं २००४
बिना विचारे का फल २००६व २०१८
आओ मिलकर गाएं २०११
क्यों बोलते हैं बच्चे झूठ २००८ व २०१८
मुखिया का चुनाव २०१० व २०१८
दैनिक प्रार्थना २०१३
माध्यमिक शिक्षा और मैं २०१५ व २०१८
स्मारिका सत्यप्रेमी जी पर २०१८
स्कूल का दादा २०१८

अन्य भाषा में पुस्तक :-

मुखिया का चुनाव उड़िया भाषा में अनुवाद डा जुगल किशोर सारंगी २०१८
प्रसारण फीबा वाटिकन सत्यस्वर जापान आकाशवाणी पटियाला रेडियो से
परिशिष्ट शुभतारिका मा अप्रैल २०१० सम्मान पुरस्कार नागरी लिपि परिषद एबीआई अमेरिका पर्यावरण शिक्षा संस्थान हमसबसाथसाथ भारतीय वाग्मयपीठ कोलकाता आईएनए कोलकाता हिन्दी भाषा सम्मेलन पटियाला बालकन जी वारी इन्टरनेशनल दिल्ली सहित १०० से अधिक संस्थाओं संगठनों द्वारा
सहभागिता राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में जयपुर दिल्ली प्रतापगढ़ इलाहाबाद देहरादून अल्मोड़ा भीमताल झांसी पिथौरागढ़ भागलपुर मसूरी ग्वालियर पटियाला अयोध्या आदि में
विशेष :-
नागरी लिपि परिषद राजघाट दिल्ली द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वरिष्ठ वर्ग निबंध प्रतियोगिता१९९६ में तृतीय स्थान
जैमिनी अकादमी पानीपत हरियाणा द्वारा आयोजित तीसरी अखिल भारतीय हिन्दी हाइकु प्रतियोगिता -२००३ में प्रथम स्थान
हमसब साथ द्वारा नई दिल्ली द्वारा युवा लघुकथा प्रतियोगिता २००८ में सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति सम्मान
सामाजिक आक्रोश पाक्षिक  सहारनपुर द्वारा अ .भा. लघुकथा आयोजन २००९ में सराहनीय पुरस्कार
प्रेरणा अंशु पत्रिका द्वारा अभा लघुकथा आयोजन २०११ में सराहनीय पुरस्कार
सामाजिक आक्रोश पा सहारनपुर द्वारा आयोजित अ.भा लघुकथा आयोजन २०१२ में सराहनीय पुरस्कार
जैमिनी अकादमी पानीपत द्वारा १६ वीं अ.भा हाइकु प्रतियोगिता२०१२ में सांत्वना पुरस्कार
जैमिनी अकादमी पानीपत हरियाणा द्वारा आयोजित २४वीं अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता २०१८ में सांत्वना पुरस्कार
सम्प्रति :  प्रवक्ता संस्कृत राधे हरि राइका टनकपुर चम्पावत उत्तराखंड
पता : हिन्दी सदन बड़ागांव, शाहजहांपुर , उत्तर प्रदेश
        मोबाइल - ९४१०९८५०४८ / ९६३४६२४१५०
     ईमेल :Shashank.misra73@Rediffmail.com
       शशांक मिश्र भारती की प्रथम प्रकाशित लघुकथा "सबसे सुन्दर दृश्य " लोकबोध पाक्षिक (वाराणसी - उत्तर प्रदेश ) एक मार्च १९९२ को प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                          सबसे सुन्दर दृश्य
                         
बहुत दिनों से फोटोग्राफर के मन में बस एक ही धुन सवार थी वह अपने कैमरे में सबसे सुन्दर दृश्य उतारना चाहता था यूँ तो उसने कई रमणीय दृश्यों को अपने कैमरे में बन्द कर रखा था फिर भी उसका मन और सुंदर दृश्य की खोज में व्याकुल था अपनी इस खोज के लिए इसबार उसने बनारस के एक प्रसिद्ध मंदिर को चुना सुबह होते ही सीढ़ियों पर जाकर खड़ा हो गया दर्शनों के लिए आते भक्त आते रहे और उसकी निगाहें प्रत्येक को तोलती रहीं।
    पर ज्यों-ज्यों समय बीतता जा रहा था वह निराश होता जा रहा था ।तभी वहां एक अधेड़ आयु के सज्जन सफेद कुर्ता और धोती पहने हुए कार से उतरे ।चेहरे से सौम्यता झलक रही थी ।साफ सुथरे कपड़ों को देखकर फोटोग्राफर ने उनकी सादगी और सज्जनता का अनुमान लगाया ।उनके पीछे एक बूढ़ा प्रसाद की थाली लेकर चल रहा था ।देखने में वह उनका नौकर लग रहा था ।
   करीब पांच छ मिनट वह देवप्रतिमा के सामने स्तुति करते रहे ।फिर एक एक कर प्रसाद बांटने लगे ।सहसा उनकी दृष्टि एक मैले कुचैले कपड़ों में लिपटे एक भिखारी पर पड़ी जो याचना भरी दृष्टि से हाथ उनकी ओर बढ़ाये हुए था ।
   उसे देखते ही उनका हाथ ऊपर ही रुक गया और घृणा भरी दृष्टि से उसको देखते हुए प्रसाद उसके हाथ में डाल दिया तथा राम-राम करते हुए अपनी कार की ओर बढ़ गये ।
एक बार फिर फोटोग्राफर का मन निराशा से भर गया ।तभी उसे सड़क पर भीड़ दिखाई दी ।वह तुरंत वहां जा पहुंचा ।उसने देखा कि एक आठ दस साल का बच्चे का एक्सीडेंट उन्हीं सज्जन की कार से हो गया है ।बच्चे के दोनों पैर कुचल गये हैं ।वह सड़क के बीचों-बीच पड़ा है ।कोई उसे उठाने वाला नहीं है बल्कि सभी तमाशा देख रहे हैं ।तभी भीड़ को चीरता हुआ वही भिखारी आया और उस बच्चे को उठाकर गोद में लेते हुए सभी तमाशा देखने वालों से कहा
शर्म की बात है तुम लोगों के लिए जो खड़े खड़े तमाशा देख रहे होॽ बच्चे के मरने जीने की कोई परवाह नहीं तुम लोगों में दया नाम की कोई चीज है जो मनुष्य होकर भी मनुष्य की सेवा करना नहीं जानता ।
    तुम इसके कौन हो ॽ जो इसकी मदद कर बेवजह संकट में पड़ना चाहते हो भीड़ में से एक ने कहा ।
  भिखारी बोला मैं एक इंसान हूं और यह भी एक इंसान है मनुष्य की सेवा करना ही मनुष्य का धर्म एवं मानवता है ।तभी फोटोग्राफर के मन में विचार किया कि इससे सुंदर और रमणीय दृश्य कौन सा होगा और उसने अपने कैमरे को ठीक कर उस दृश्य को सदैव के लिए अपने कैमरे में बन्द कर लिया । **
  ---------------------------------------------------------------------क्रमांक - 0 27                                                          
जीवन परिचय
 जन्म : 21 जून 1968 , फतेहाबाद (हरियाणा) 

शिक्षा : एम ए , बीएड , एल एल बी 

सम्प्रति : प्राईवेट स्कूल में अध्यापिका 

पता :  147/7 ,गली न० 7 
              जवाहर नगर , हिसार ( हरियाणा )

      नीलम नांरग की  पहली प्रकशित लघुकथा " समाज "   अमर उजाला की रूपायण पत्रिका में जुलाई  2018 के प्रथम शुक्रवार को प्रकाशित हुई है ।

पेश है लघुकथा :-

                             समाज
                             
कमला बाई को घर में क़दम रखते ही एहसास हो गया कि आज कुछ न कुछ गड़बड़ है। उसकी मालकिन तो रोज़ सवेरे बड़ी जल्दी ही उठ जाती है लेकिन आज घर में कुछ हलचल दिखाई नहीं दे रही थी । वैसे आज कमला भी कुछ अनमनी सी थी उसने अनमने ढंग से सिर को झटका और फुरती से अपने रोज़मर्रा के कामों में लग गई। थोड़ी देर बाद जब मालकिन बाहतो उनके चेहरे को देखते ही कमला बिना बताए ही दोनो एक दूसरे हालत को समझ गई । फ़र्क़ इतना था कि कमला ने अपने पति के अत्याचार की कहानी बिना किसी लाग लपेट के सुना दी थी और मालकिन को अपनी चोट के निशान बताने के लिए कई झूठे बहाने बनाने पड़े । कमलाबाई के जाने के बाद उज्जवला को एहसास हुआ कि कितनी आसानी से कमला अपने दिल की बात कह गई । वह तो अपनी हाई सोसायटी , समाज की इज़्ज़तदार और पढ़ी लिखी औरत होने के नाते अपने दुख का बयान भी नहीं कर सकती । **
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    क्रमांक - 028                                                       
जीवन परिचय
जन्म दिनांक व स्थान - ६ दिसम्बर , बाँदा
शिक्षा - स्नातक ( महिला विद्यालय लखनऊ )
प्रकाशित  विवरण - 
स्वतंत्र लेखन, प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक ,पाक्षिक ,मासिक पत्र-पत्रिकाओं में पत्र ,लघुकथाएं ,कहानी ,कविताएं,बाल पहेलियाँ , बाल कहानियाँ एवं बाल कविताएं , क्षणिका , प्रकाशित एवं ७-८ पुरस्कृत।

साझा पुस्तकें :-
    लघुकथाएं ,काव्य - हाइकु ,ताँका - सेदोका,क्षणिका ,मुक्तक,वर्ण पिरामिड ,क्षणिका ,बाल कवित,बाल कहानी एवं एक सड़सठ लेखकों का साझा उपन्यास प्रकाशित।
   
पता :  द्वारा वी के शर्मा
         ५६/४ ,ऑफिसर्स एनक्लेव
          एयर फोर्स स्टेशन हलवारा ( ए डी )
           लुधिआना - पँजाब - १४१ १०६
            मोबाइल न. -९४०३२८५३०१
           ईमेल -,mnjs64@gmail.com
मंजू शर्मा की प्रथम प्रकशित लघुकथा  " नारकीय स्वर्ग "
१९८६ को  में दहेज़ दानव पाक्षिक( लखनऊ - उत्तर प्रदेश ) से प्रकशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                          नारकीय स्वर्ग
    वह किसी तरह हाँफती -गिरती पड़ती घर के दरवाजे पर पहुँची। सबसे पहले बाप की नज़र उस  पड़ी ,देखते ही वह बोला  --  "अरे अभागिन तू क्यों आ गयी...... अब तू मर गयी हमारे लिए .... जा अब ये दरवाजे तेरे लिए हमेशा के लिए बंद हो गये हैं " कोलाहल सुनकर चारों भाई और माँ भी बाहर आ गयीं। माँ उसे देखते ही रोने लगी। भाई बोले -
  " क्यों रो रही है माँ ..... बापू ठीक ही तो कह रहा है  .... अब हम इसे घर में रख लेंगें तो कितनी बदनामी हो जायेगी ये यहाँ रह गयी तो हम किसी को मुँह भी नहीं दिखा पायेंगें। " कह कर उन्होंने दरवाजे बंद कर लिए। वो विश्वास न कर सकी कि मेरे बाप और भाई ही ऐसा कह रहे हैं। वो रोई गिड़गिड़ाई लेकिन वे लोग जरा भी न पिघले। अंत में दुःख ,निराशा व क्षोभ से भरे दिल को लेकर वापस उसी नारकीय स्वर्ग में लौट गयी। उसका दोष सिर्फ इतना था कि वह गुण्डों द्वारा अपहृत कर ली गयी थी ,लेकिन वह जान पर खेल कर सही सलामत पाक दामन लिए वापस आयी भी तो घर भर की दुलारी इकलौती लाज को उन्हीं घर वालों ने अपनाने से ही इंकार कर दिया था। अब मजबूर होकर वह उन्हीं गुण्डों रूपी देवताओं के पास नरक लेकिन अब स्वर्ग लगने वाले अड्डे पर चल पड़ी। **
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जीवन परिचय
जन्म स्थानः ग्राम- बाँसगाड़ी थाना- चंदनकियारी      (बोकारो)झारखंड
जन्मतिथिः 09 /04/ 1973
शिक्षाः एम.ए. ( हिन्दी , इतिहास )
मेरी बहुत-सी लघुकथाएं एवं कविताएं पुनर्नवा (दैनिक जागरण), कथाबिंब (मुंबई), मधुमती (उदयपुर), क्षितिज (इंदौर), दृष्टि (गुरुग्राम), पुष्पगंधा (अंबाला),  लघुकथा कलश (पटियाला), अविराम साहित्यिकी (हरिद्वार), लघुकथा डॉट कॉम (वेब पत्रिका),  अक्षर पर्व (रायपुर), लहक (कोलकाता), परिकथा (नई दिल्ली), कथादेश (नई दिल्ली) एवं हंस में छपी हैं। कई साझा संकलनो में भी मेरी लघुकथाएं  आई हैं। साथ ही, मैंने कई बार अपनी रचनाओं का आकाशवाणी रांची से प्रसारण भी किया है।
पता : सेंट्रल पुल कॉलोनी (बेलचढ़ी)
          पोस्ट+थाना--निरसा जिला--धनबाद (झारखंड)
          पिन--828205
          मोबाइल--9931544366
       चित्त रंजन गोप की  पहली प्रकशित लघुकथा  " अकाल जन्म " दैनिक जागरण के राष्ट्रीय पृष्ठ 'सप्तरंग' की *साहित्यिक पुनर्नवा* में 3 दिसंबर 2012  को प्रकाशित हुई है।
      
पेश है लघुकथा :-
                           अकाल जन्म
        
"अरे,यह कहानी सुनने-सुनाने का समय है क्या?"
"हां दादा जी, सुबह का समय शुभ होता है। सुनाइए न।"
     बच्चों की जिद को दादा जी नकार न सके। महाभारत की कहानी सुनाने लगे। कद्रु और विनता की कहानी।
        कद्रु के सारे अंडों से बच्चे निकल आए थे। परंतु उसकी सौत विनता के दोनों अंडे ज्यों के त्यों पड़े थे। ईर्ष्या की चिंगारी भड़क उठी। वह ज्योतिषी के पास गई और शुभ दिन देखकर एक अंडा फोड़ डाला।
     "मां, मां, तूने यह क्या किया?"  चिल्लाता हुआ बच्चा अंडे से बाहर निकला। वह ठंड से कांप रहा था।
" मां, मैं दुनिया का सबसे बड़ा शक्तिमान होता। पर हाय, तेरी वजह से अधूरा रह गया। मां, मुझे ठंड बर्दाश्त नहीं हो रही है। मैं जा रहा हूं।" और वह उड़ता हुआ सूर्य देवता के पास चला गया। उनके आगे बैठ गया और उनका सारथी बन गया।
" आगे क्या हुआ दादा जी?" जाते-जाते वह बच्चा एक बात कह गया-- "मां दूसरे अंडे को मत..."  फट से दादाजी के माथे पर अखबार पड़ा। उनकी कहानी छिन्न-भिन्न हो गई।
  "दादाजी, दूसरे अंडे का क्या हुआ?"
" अभी नहीं, बाद में।"
"बाद में कब ?"
"कहानी सुनाने के उचित समय पर।"  कहते हुए दादाजी ने अखबार उठा लिया। अखबार के मुख पृष्ठ पर मुख्य समाचार था-- 11-11-11 के शुभ काल में बहुत सी माताओं ने अकाल जन्म दिया अपने बच्चों को। ऑपरेशन के द्वारा जन्मे ये बच्चे। ***
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              क्रमांक - 030                                                         
जीवन परिचय
पूरा नाम : विनोद शंभूदयाल नायक
पिताश्री - श्री शंभूदयाल बैजनाथप्रसाद नायक
जन्मतिथि - 30.08.1975 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
शिक्षा - M.Sc. Maths , B.ed. PGDRP(आकाशवाणी भोपाल)
सम्प्रति- उच्च श्रेणी शिक्षक
प्रकाशित साहित्य -
परीक्षा दर्पण ( गणित मार्गदर्शिका ), सन्‌ 1999 , 2000 व 2001 में प्रकाशित
लक्ष्य नाट्य संग्रह हिन्दी साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद भोपाल व्दारा अनुदानित, 2011
समृद्धि नाट्य संग्रह प्रकाशित
वापसी उपन्यास प्रकाशित
निष्ठा कहानी संग्रह प्रकाशित

दूरदर्शन केंद्र भोपाल से निरंतर नाटकों का प्रसारण
आकाशवाणी नागपुर से लघुकथा , वार्ता , गीत , कविता व गजल प्रसारित
उपलब्धियाँ -
भारत भवन भोपाल थियटर के 200 नाटकों में अभिनय
गीत व नाटक प्रभाग , नईदिल्ली द्वारा आयोजित महानाटक शतरुपा में अभिनय
श्री सांईं शिर्डी भजन प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार
अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास नईदिल्ली द्वारा आयोजित लेखन प्रतियोगिता में लगातार नाट्य लेखन में प्रथम पुरस्कार , सन 2014, 2015 , 2016 , 2017 व 2018 तथा कहानी लेखन में प्रोत्साहन पुरस्कार सन् 2015 व 2016
मुख्याध्यापक संघ नागपुर द्वारा सन् 2011 में अभिनंदन
हिंदी अध्यापक मण्डल नागपुर द्वारा अभिनन्दन
उज्जैन महाकुंभ 2016 ,अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में सम्मान पत्र
नाट्य संग्रह लक्ष्य को युवा समूह प्रकाशन व इंडियन टेलीफिल्म वर्धा द्वारा आर्दश पुस्तक पुरस्कार
विक्रमशिला विद्यापीठ भागलपुर बिहार द्वारा साहित्य रत्न सम्मान
विक्रमशिला विद्यापीठ भागलपुर बिहार द्वारा विद्यावाचस्पति उपाधि
हिन्दी निदेशालय नई दिल्ली द्वारा हिंदी सेवा प्रचारक
सम्मान 2017-18
पता :  77- बी, श्री हनुमान मंदिर , पानी की टंकी के पास ,
         खरवी रोड़ , शक्तिमाता नगर ,
         नागपुर महाराष्ट्र भारत - 440024
           मोबाइल  नं. 8605651583
    डाँ. विनोद नायक की प्रथम प्रकाशित लघुकथा " सलामी " 20 अगस्त 2005 को दैनिक भास्कर ( नागपुर - महाराष्ट्र ) की मधुरिमा में प्रकशित हुई है ।
          
पेश है लघुकथा :-
                            " सलामी"
      राजा मोहल्ले का गुंडा था। लूट , हत्या , डराना - धमकाना आदि ना जाने कितने केस अदालत में चल रहे थे। आज चौदह वर्ष का कारावास काटकर जेल से रिहा हुआ।
      घर पहुँचा तो माँ  ने सीने से लगा लिया। राजा ने रुआँसे गले से कहा - " माँ , आज तक आप मुझे जेल में मिलने क्यों नहीं अाई ? "
   माँ ने पल्लू से आँसू पोंछते हुए कहा - "बेटा, किस के साथ आती ? घर में माँ - बेटी अौर मैं कितने अकेले हो गए थे । मत पूछ , हम कैसे जिए ? "
      तभी पत्नी ने तिलक कर स्वागत किया , तो राजा ने पत्नी से पूछ‍ा - " तुझे , कभी मेरी याद नही आई । "  मोहल्ले के लोगों  की बातचीत अौर ढ़ोल के स्वर तीव्र हो गए थे । मोहल्ले के लोग राजा के चरण छू रहे थे । राजा मन ही मन सोच रहा था लोग मेरे भय के कारण चरण छू रहे हैं । नाच - गा रहे हेें अभी भी मेरा खौफ़  है। परंतु समझ में नही आ रहा था घर बदला हुआ , जगह वही , पर मकान कच्चे से पक्का  अौर सुसज्जित  । आचनक ध्यान टूटा  तो बोला - " माँ , दीपाली कहाँ है ? बड़ी हो गई होगी शायद मुझे पहचान भी ना । " माँ कुछ बोलती , तभी पुलिस की गाड़ी आकर घर के सामने रूकी । चार सिपाही अौर एस. पी. मैडम ने राजा को घेर लिया । राजा के होंश उड़ गये।
      राजा ने काँपते हुए कहा - एस. पी. मैडम , अब क्या हुआ ? मेरा क्या गुनाह है ? मैंने सब छोड़ दिया है । मैं बच्ची के खातिर जीना चाहता हूँ।  मैं सचमुच बदल गया हूँ।" अौर हाथ जोडकर आँसूअों को रोक न सका।
इतना सुनते ही एस. पी. मैडम की आँखों से आँसू बहने लगे , रोते हुए कहा - " पापा , काश आप पहले बदल ज‍ाते तो हम सड़- सड़ के जिंदगी  न जीते ।" राजा के हाथ- पॉव जूझने लगे , उसे समझ में आ गया था कि -
  लोग मेरे डर के कारण नही बल्कि मेरी बेटी की कड़ी मेहनत , पढाई व अोहदे के कारण मेरे पैर छू रहे हैं । राजा का मस्तक बेटी के चरणों को  पखार रहा था ।
दीपाली ने कहा - " पापा , अगर हो सके तो मुझे मेरे वो चौदह वर्ष लौटा दो। राजा फफक के रो पड़ा ।
   जिस पुलिस ने राजा को हथकड़ी  डालकर जेल ले गई थी , वही पुलिस आज राजा को सलामी देकर लौट गई । **
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जीवन परिचय
जन्मतिथि -12-12-1955
स्थान -गांव  भाकली, जिला -रेवाडी, हरियाणा
शिक्षा - एम ए,बी  एड
प्रकशित  पुस्तकों के  नाम  :-
1 अमूल्य धरोहर (लघुकथा)
2 भोर होने तक  (लघुकथा)
3 दोस्ती की मिसाल  (बालकथा)
4 मीठे बोल  (बाल कविता )
5 चेतना के रंग  (लघुकथा)
6 मुस्काता  चल  (बाल कविता )
7 मन में खिला वसंत  (दोहा)
8 फायदे गरीबी के  (व्यंग्य)
9 पतझङ में मधुमास  (लघुकथा)
10 पशु एकता जिंदाबाद  (बालकथा)
11 जिया है धूप को  (लघु कविता)
पता : 1746, सैक्टर 10 ए ,गुरुग्राम - 122001 हरियाणा
          मोबाइल  - 9811642789
    कृष्णलता यादव के अनुसार प्रथम प्रकशित लघुकथा " अमूल्य धरोहर " सितम्बर - 1994 में दैनिक पंजाब कैसरी , जालंधर - पंजाब से प्रकशित हुई है ।
         
पेश है लघुकथा :-
                         अमूल्य धरोहर
                        
           बस में  यात्रा कर रहे सूरतसिं ह ने अपने  पास बैठे  यात्री  से कहा, दो नम्बर  सीट पर बैठी महिला  की  गोद में  बैठे  बच्चे को  देखो-कंकालमात्र,पीला चेहरा, धंसी   आखें  और तन पर झीना  कपडा। बेचारा  क्या  करेगा  ऐसी जिंदगी  जी कर?
          सहयात्री  बोला, भाई  मेरे, उसे  बेचारा  मत कहो।बडा भाग्यशाली है  वह, उसके  पास  एक अमूल्य धरोहर है -मा  की गोद । **
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क्रमांक - 032
                            जीवन परिचय
जन्म : 5 जुलाई इलाहाबाद में हुआ था।
शिक्षा : स्नातक तक शिक्षा बिलासपुर म.प्र.में हुई।
कार्य क्षेत्र : भारतीय स्टेट बैंक में कार्यरत रह अपने लेखन   को और निखारने का प्रयास किया।

पता : अमलतास परिसर ,मनीषा मार्केट के पास,
            शाहपुरा ,भोपाल -  462039 मध्यप्रदेश
      अर्चना मिश्रा की प्रथम लघुकथा  ' माँ ' भारतीय स्टेट बैंक की राजभाषा मास , भोपाल - मध्यप्रदेश की विशेष पत्रिका में द्वितीय पुरस्कार प्राप्त कर सितंबर-अक्टूबर  2013 के अंक में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                                 माँ
          ' महाप्रबंधक ' की कुर्सी पर बैठा वह शान से बता रहा था। मेरी 'दो' माँ है। एक मेरी नौकरी और एक जन्मदात्री ।
     आज नौकरी से उसे सब मिल रहा है, जो उसने चाहा था। नौकरी के कारण अब  गाँव जाना भी नहीं हो पाता । अब तो माँ-बाप का चेहरा भी धुंधलाने  लगा है । वह ऐसे कह रहा था जैसे अति सामान्य बात का जिक्र।
       उसकी माँ ,बरसात में मकान की छत से टपकते पानी को जगह-जगह बर्तन रख जी रही है। इस उम्मीद में ,  कि बेटा जल्दी घर आयेगा।
      अभी भी हर गर्मी के मौसम में वह उसके लिये मीठे आम के 'अमावट ' बना इंतज़ार करती है। बेटे को 'अमावट' बहुत पसंद है, और कैसे वह चोरी कर  खाता था, बताते-बताते भले ही उसका तन काँप जाये,  पर आँखें चमक जाती हैं। जिसे उसने ना जाने कितनी बार अपने हाथों 'कौर' बना खिलाया था, वह आज नौकरी को उसका पर्याय  बना बैठा है। माँ से ज्यादा  उसकी  ज़ुबान पर  अपनी विदेश पोस्टिंग का बखान था।
     उसके 'ओहदे का बिंब' उसके चेहरे पर साफ़ झलक रहा था।
        यह सब देख-सुन, मैं पुराने अख़बार में लिपटे 'अमावट' को देने का साहस नहीं कर पायी। जो उसकी माँ ने मुझसे भिजवाया था।     
        मन बुझ गया ।
    मैं सोच रही थी, वापिस जाकर उसकी माँ को कैसे बता पाऊँगी कि   "उसके बेटे ने माँ की नई परिभाषा गढ़ ली है।"
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक - 033
जीवन परिचय 
उम्र-------66 वर्ष
संप्रति ----शिक्षिका (सेवा निवृत्त) 
रुचि------साहित्य लेखन और पठन-पाठन
उपलब्धियां ----
1. काव्य करुणा सम्मान उदीप्त  प्रकाशन द्वारा
2. अग्निशिखा गौरव रत्न सम्मान अग्निशिखा जनिकाज काव्यमंच द्वारा
3. काव्य संध्या सम्मान कवि कालिदास प्रतियोगिता द्वारा
4. काव्य साधक सम्मान उदीप्त प्रकाशन द्वारा 
 प्रकाशित कृतियां :-
1  अभिव्यक्ति साझा काव्य संग्रह में  3 कविता प्रकाशित
2  काव्य करुणा साझा काव्य संग्रह में 3  कविता प्रकाशित  3  भाषा सहोदरी -हिंदी में  4 कविता प्रकाशित
4  जीवन मूल्य  संरक्षक न्यूज पत्रिका में कविता  और कहानी प्रकाशित 
पता : 501, महावीर दर्शन सोसायटी ,प्लॉट नं---11सी , सेक्टर--20 ,खारघर , नवीमुंबई - 410210 महाराष्ट्र
             मोबाइल न. 8108383964
       चन्दिका भूपेन्द्र व्यास की प्रथम प्रकशित  लघुकथा "स्वाभिमान " जैमिनी अकादमी , पानीपत - हरियाणा में अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता - 2018 में 25 नवम्बर 2018 को प्रकशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                                 स्वाभिमान 
विनय ने अपना  सारा कारोबार पुत्र अंकित के नाम कर निवृति ले ली थी!
अंकित सारा कारोबार समेटकर अमेरिका अपने परिवार के साथ चला गया!
 एक दिन विनय कुछ सामान लेकर , थैला उठाकर, जो शायद उनके ताकत से ज्यादा भारी था, आ रहे थे! तभी पड़ोस का लड़का अनिल गाड़ी रोक कर कहने लगा .....अंकल गाड़ी में आ जाइये ! गाड़ी में अनिल ने कहा अंकल अब आपको आराम करना चाहिये!
  विनय ने कहा बेटा जरुरत आदमी को लाचार बना देती है या आत्मबल देती है! रो रोकर....याचना और यातना के साथ जीने से अच्छा है.....संघर्ष कर स्वाभिमान के साथ जीना !
मैं 75 साल का हूं , फिर भी युवानों की तरह काम करता हूं!
लाचारी में आदमी अपनी लायकाती पर चलता है अथवा मनोबल से! दुनिया स्वार्थी है किसे दोष दें!
अंकल आप अपने बेटे के पास चले जाइये! 
उसी समय वर्षों बाद उनके पुत्र अंकित का फोन आता है!
पिताजी रुपयों की जरुरत है... 
विनय का स्वाभिमान जाग बोल उठा.... 'बेटा मै फिसल गया हूं अभी गिरा नहीं ' !!!
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक - 034
जीवन परिचय
जन्म तिथि - 25 जून 1971
जन्म स्थान -शेखपुरा , खजूरी, नौबतपुर, पटना
शिक्षा- स्नातकोत्तर (त्रय) दर्शन, मागधी, हिंदी
प्रकाशित पुस्तकें-
तीन लघुकथा-संग्रह,
नौ नाटक , दस कहानी- संग्रह,
दो शेरो-शायरी-संग्रह ,
एक हाइकु -संग्रह ,
एक कविता - संग्रह ,
नौ शिक्षा जगत् की पाठ्य एवं सहायक पाठ्यपुस्तकें
स्थाई पता- शेखपुरा, खजूरी,नौबतपुर ,पटना-801109.
वर्तमान पता-धर्मेंन्द्र सिंह ,प्रगति नगर, सिपारा ,पटना -800020.
                  मोबाइल नंबर-9334884520.
        ईमेल-writervirendrabhardwaj@gmail.com
डाँ वीरेंद्र कुमार भारद्वाज की प्रथम प्रकशित लघुकथा " पापी देवता " दैनिक हिन्दुस्तान , पटना - बिहार से 12 जुलाई 1997 को प्रकशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                            पापी देवता
विभा के बाद जब बुधिया भी गर्भवती हो गई ,तब कविता अपने डॉक्टर पति पर आकर बरस पड़ी," खाक है  तुम्हारा मेडिकल साइंस । जांच की थी न हरदीश की और कहा था कि तुम पितृत्व सुख नहीं प्राप्त कर सकते । विभा के पति को भी ऐसा ही कहा था।"
         "मैंने पितृत्व की बात कही थी , मातृत्व की नहीं ।" डॉक्टर रोष में आ गया ।
          "तुम उन लोगों पर लांछन लगा रहे हो । यह सब धर्मू बाबा देवता के 'भभूत' का आशीर्वाद है ।"
         "ओह  नो कविता ,नो...., तुम समझती क्यों नहीं ,पढ़ -लिख कर भी ऐसी बात करती हो । हरीश और रामदीन  में पौरूष शक्ति नहीं है । वे कभी बाप नहीं बन सकते ।" डॉक्टर काफी टेंशन में आ गया था ।
     "तुम्हारी दवा भले उन्हें बाप न बना सके, देवता का भभूत यह सौभाग्य अवश्य प्राप्त करवा देगा । तुम खुद को भी वैसा ही कहते हो , मगर देखना यह हुर्मत(रूत्वा) तुम्हें भी अवश्य प्राप्त होगा।"
     कविता जब धर्मू बाबा के आश्रम से लौटी तब डॉक्टर के पैरों पर गिरकर सिर धुनने लगी," मुझे जान से मार दो गौतम, जान से मार दो । तेरी कविता लूट चुकी । वह देवता नहीं 'पापी देवता' है । उसने बेहोश कर मेरी इज्जत लूट ली ।" डॉक्टर ने कविता को प्रेम से उठाकर सीने से लगा लिया," मत रोओ कविता, मत रोओ । तुमने ऐसा कहकर और नासमझ औरतों को उस पापी देवता के कुकृत्यों से मुक्ति दिलवाई है । मैं उसे जरूर सजा दिलवाऊंगा ।"
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जीवन परिचय
जन्मतिथि....7/8/55
जन्मस्थान ...दिल्ली
शिक्षा.... एम.ए( हिंदी. अंग्रेजी)
                  बी.एड़
                 पी.एच.ड़ी हिंदी
पुस्तकें :-
1,आकांक्षा की ओर  ।एकल काव्य संग्रह
2 हिंदी के मनोवैज्ञानिक उपन्यासों में असामान्य पात्र।शोधप्रबंध
साझा लघुकथा संग्रंह :-
1.खिड़कियों में टंगे हुए लोग।
2 किस को पुकारू।कन्या भ्रूण हत्या पर
3 एक सौ इक्कीस लघुकथाए
4 दीप देहरी पर
5 समकालीन प्रेम विषयक लघुकथाए
6वर्जिन साहित्य लघुकथा मंजुषा 2
7.दास्ताने किन्नर
7सहोदरी लघुकथा संग्रह 3/4
8.दृष्टि महिला लघुकथा संग्रह
साझा काव्य संग्रह :-
1शब्दों की अदालत में।
2परदे के पीछे की बैखौफ आवाजें
.3सहोदरी काव्य 3/4
4शब्द शब्द महक
5 अविरल धारा
6अविराम कविता खंड 1
7काव्य रत्नावली
सम्मान :-

1   लघुकथा श्री  सम्मान ।उदीप्त प्रकाशन
2काव्ऐ भूषण सम्मान। उदीप्त प्रकाशन।
3,भाषा सहोदरी हिंदी।राष्ट्रीय हिदी अधिवेशन।
4काव्य रंगोली मातृत्व सम्मान 2018
5.काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान 2017
6.हरियाणा स्वर्ण उत्सव 2017 हिंदी साहित्य सेवा सम्मान।
7 कमल की कलम  द्वारा कविता आमंत्रण में श्रेष्ठ कविताओ़ में बेटियाँ कविता चयनित।
8 आन लाईन विराट कवि सम्मेलन द्वारा ऐरावत अलंकरण  सम्मान।
9गहमरी साहित्यकु सम्मेलन ,2018साहित्य सरोऐ लघुकथा प्रतियोगिता  लघुकथा चक्की को तृतीय स्थान।
10 शुभसंकल्प संस्था इंदौर कहानी प्रतियोगिता बुलंद तालियाँ। प्रोत्साहन  पुरस्कार
11 अमृतादित्य साहित्य गौरव 2018 जलगाँव ।
12 राजस्थान साहित्य अकादमी व अंतरप्रांतीय कुमार साहितय परिषद जोधपुर द्वारा जिलि स्तरीय साहित्यकार सम्मेलन प्रमाणपत्र।
13 जैमिनी अकादमी  अखिल भारतीय हिंदी लघुकथा प्रतियोगिता - 2018 प्रथम स्थान
14 कथादेश अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता - 2017 पाँचवा स्थानः टच स्क्रीन
पता : 17/ 653 ,चौपासनी हाऊसिंग बोर्ड,
  जोधपुर - 342008 राजस्थान
       .          डाँ. नीना छिब्बर की प्रथम प्रकशित लघुकथा " गठरी " 2009 में " खिड़कियों पर टंगे लोग " साझा लघुकथा संग्रह , सम्पादक : अशोक लव  तथा प्रकशन एस.एन पब्लिकेशन ,7/12श्री राम कालोनी , नांगलोई ,दिल्ली - 110041 द्वारा प्रकशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                               गठरी
नीरू मोहिनी मौसी को बसमें बिठाकर वापस लौट रही थी। मौसी के साथ बिताए कुछ सप्ताह माँ की कमी को और जीवंत कर गए थे।अनपढ़ बूढ़ी मौसी भी कैसी गूढ बाते करती थी। उम्र के अनुभव की एक गठरी वह नीरजा के पास छोड गई थी।नीरजा ने विज्ञान की कक्षा में पढ़ा था कि लाल लिटमस पेपर को रसायन में डालन पर उसका रंग नीला हो जाता है।शायद उसी तरह हर अदृश्य पोटली पर जो बाहर लिखा है, वह भीतर की तह खोलने पर कुछ और हो सक है।
    पहली पोटली की चिट पर ,कंजूसी, लिखा था उसके भीतर आत्म सुरक्षा के लिए धन संभालने की चाह थी क्योंकि बुढापे में पैसा होने पर ही सब पूछते हैं।जिस पोटली पर ,बहू प्रशंसा लिखा था,उसके भीतर पुत्री के घर आने पर प्रतिबंध न लगने कीचाह व भय था ।जिस पर ,धार्मिक लिखा था उस के भीतर अकेलेपन की टीस थी।
जिस पर ,सादा भोजन, लिखा था उस पर बच्चों की मनमानी व शासन लिखा था।जिस पोटली पर ,गहनों की लोभी लालची ,लिखा था उसके भीतर पूर्व के दबे छिपे अधूरे सपने थे जो अपनी ही संचित कमाई से मनमाफिक बच्चों कोउपार एवं पुराने संस्कारों व यादों में बसने की चाह थी।
       नीरजा ने घबरा कर गठरी की पोटलियों को दूर छिटक दिया।पर उसे ऐसा महसूस हुआ कि विक्रम वेताल की कहानी की तरह वह पीठ पर विराजमान हो गई है।
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क्रमांक - 036                                                                       
जीवन परिचय
जन्म तिथि -16 जून , 1973
सम्प्रति: गणित अध्यापिका
प्रकाशन -विभिन्न क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं  और साझा संकलनों में लघुकथाएं , कविताएं एवं ग़ज़लें प्रकाशित
पता :  666/11 , न्यू कैलाश नगर ,  मॉडल टाऊन ,  
          अम्बाला शहर-134003 हरियाणा
     ई मेल पता -anjaliguptawritings@gmail. com
                 मोबाइल -9896795434
      अंजलि 'सिफ़र ' की प्रथम प्रकाशित लघुकथा  "गूँज" युवराज प्रकाशन  ,पंजलासा ,हरियाणा से अर्पित अनाम जी के सम्पादन में  'प्रतिबिम्ब' में  2017 में प्रकाशित हुई है ।
लघुकथा है लघुकथा :-
                                   गूंज
"स्वाति के ससुराल वालों ने मना कर दिया है उसे भेजने को", मालती ने फ़ोन रखते हुए अशोक को बताया। 
" क्या ? , क्या मतलब कि मना कर दिया। भई लड़की विदा की है , कोई रिश्ता तो नहीं खत्म हो गया।"
"कह रहे हैं कि अभी पिछले महीने ही तो आयी थी रहने । इस तरह रोज़ रोज़ नहीं भेज सकते", मालती ने एक आह भरते हुए कहा।
गुस्से से फ़ट पड़े अशोक। " अरे ! महीने में एक बार आना रोज़ रोज़ कैसे हुआ भला ? खुद की कोई बेटी नहीं है ना इसीलिये ऐसा कह रहे हैं। अपनी बेटी होती तो पता चलता"।
"बिल्कुल सही । तभी तो शायद आज आप भी ये बात कह रहे हैं। वरना कभी आपने भी माँ-बाबू जी से यही कहा था  कि ........."
इतना कहकर मालती तो चुप हो गयी मगर अशोक को बरसों पहले अपने ही कहे शब्दों की गूंज साफ सुनाई देने लगी थी, " हम मालती को साल में एक-दो बार से ज़्यादा नहीं भेज सकते। इससे इतना ही प्यार है तो आप इसे घर पर ही रख लीजिए ........।"
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क्रमांक - 037
जीवन परिचय
जन्म :23 फरवरी 1956 को इंदौर में जन्म।
शिक्षा: एम काम, एल.एल.बी ।
लेखन: लघुकथा ,कविता ,हाइकु ,तांका, व्यंग्य, कहानी, निबंध आदि विधाओं में समान रूप से निरंतर लेखन । देशभर की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन।
सम्पादन: क्षितिज संस्था इंदौर के लिए लघुकथा वार्षिकी 'क्षितिज' का वर्ष 1983 से निरंतर संपादन । इसके अतिरिक्त बैंक कर्मियों के साहित्यिक संगठन प्राची के लिए 'सरोकार' एवं 'लकीर' पत्रिका का संपादन।
प्रकाशन पुस्तकें  :-
शब्द साक्षी हैं (निजी लघुकथा संग्रह),
पिघलती आंखों का सच (निजी कविता संग्रह )।
संपादित पुस्तकें :-
तीसरा क्षितिज(लघुकथा संकलन),
मनोबल(लघुकथा संकलन),
जरिए नजरिए (मध्य प्रदेश के व्यंग्य लेखन का प्रतिनिधि संकलन)
साझा संकलन :-
समक्ष (मध्य प्रदेश के पांच लघुकथाकारों की 100 लघुकथाओं का साझा संकलन)
कृति आकृति(लघुकथाओं का साझा संकलन, रेखांकनों सहित),
क्षिप्रा से गंगा तक(बांग्ला भाषा में अनुदित साझा संकलन),
अनुवाद : -
निबंधों का अंग्रेजी, मराठी एवं बंगला भाषा में अनुवाद ।लघुकथाएं मराठी, कन्नड़ ,पंजाबी, गुजराती,बांग्ला एवम  नेपाली भाषा में अनुवादित । बांग्ला भाषा का साझा लघुकथा संकलन 'शिप्रा से गंगा तक 'वर्ष 2018 में प्रकाशित।
शोध :-
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में एमफिल में मेरे लघुकथा लेखन पर शोध प्रबंध प्रस्तुत ।
कुछ पीएचडी के शोध प्रबंध  में  विशेष रूप  से शामिल ।
पुरस्कार सम्मान: -
साहित्य कलश इंदौर के द्वारा लघुकथा संग्रह' शब्द साक्षी हैं' पर राज्यस्तरीय ईश्वर पार्वती स्मृति सम्मान वर्ष 2006 में प्राप्त। लघुकथा साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए मां शरबती देवी स्मृति सम्मान 2012 मिन्नी पत्रिका एवं पंजाबी साहित्य अकादमी से बनीखेत में वर्ष 2012 में प्राप्त ।
सम्प्रति:-
भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर इंदौर शहर में निवास, और लघुकथाओं के लिए सतत कार्यरत।
पता :  त्रिपुर ,आर- 451, महालक्ष्मी नगर, इंदौर  
           मध्यप्रदेश-452010
           मोबाइल नंबर 94250 67204
           लैंडलाइन नंबर 0731 4959 451
Email : rathisatish1955@gmail.com
     सतीश राठी की प्रथम लघुकथा "समाजवाद " रचना काल 1 मार्च 1978 है । जो लघु आघात पत्रिका में अप्रैल - जून 1981 के अकं में प्रकशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                             समाजवाद
" समाजवाद रेल में बैठकर आ रहा है।"- किसी ने कहा।
"नहीं! रेलवे बहुत लेट चल रही है ।उसे हम बस में बैठा कर लाएंगे।"- दूसरा बोला।
" बसों के एक्सीडेंट बहुत होते हैं ,कहीं वह घायल हो गया तो।"- तीसरे ने शंका प्रकट की ।
"नहीं! वह पैदल चलकर आएगा।"- चौथा बहुत धीमी पर दृढ़ आवाज में बोला।
" समाजवाद बहुत नाजुक है। पैदल चलने से थक जाएगा और बेहोश होकर कहीं रास्ते में भी गिर सकता है। उसे तो वायुयान से ही लाना चाहिए।"- पांचवा भाषण देने के अंदाज में बोला।
तभी वातावरण में ढेर सारी चीखें  उभरी और जनता की आवाज आई," हम कब तक फिरौती में वोट देते रहेंगे । अपहृत समाजवाद को अपनी कैद से चाहे मत छोड़ो मगर उसकी एक झलक तो दिखा दो ।"
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जीवन परिचय
शिक्षा :-- विधि स्नातक , स्नातकोत्तर ( समाजशास्त्र )
सम्प्रति :-- स्वतंत्र लेखन
लेखन विधा :-- लघुकथा , हाइकु , चोका , क्षणिका , पिरामिड, समीक्षा , छंदमुक्त कविताएँ ,    लेख, कहानी आदि।
प्रकाशित  पुस्तकें :--
साझा लघुकथा संग्रह :-
लघुकथा अनवरत ,
नई सदी की लघुकथाएँ ,
श्रेष्ठ समकालीन लघुकथाएँ ,
परिंदों के दरमियां ,
चुनिंदा लघुकथाएँ,
स्त्री - पुरुष सम्बन्धो की लघुकथाएं ,
महानगर की लघुकथाएं
लघुकथा कलश , क्षितिज ,
पड़ाव एवं पड़ताल खण्ड 30 ,
समकालीन प्रेम विषयक लघुकथाएं,
अभिव्यक्ति के स्वर ,
सहोदरी कथा ।
मंथन ,
साझा काव्य संग्रह :-
कविता अनवरत ,
कविता अभिराम ,
समकालीन हिंदी कविता ,
शब्दों के रंग ,
भावों के मोती ,
खनक आखर की ,
काव्य गंगा ,
आधी आबादी का सम्पूर्ण राग ,
सत्यम प्रभात ।
एवं विभिन्न राष्ट्रीय - अन्तराष्ट्रीय पत्र - पत्रिकाओं , ई- मैगजीन में निरन्तर प्रकाशित ।
पता : डी - 2 , सेकेण्ड फ्लोर , महाराणा अपार्टमेंट
          पी .पी .कम्पाउंड ,रांची - 834001 झारखण्ड
          ईमेल  :satyaranchi732@gmail.com
             मोबाइल - 7717765690
    सत्या शर्मा ' कीर्ति ' के अनुसार प्रथम प्रकशित लघुकथा " फटी चुन्नी "  पत्रिका शोध दिशा में अक्टू - दिस 2016 में प्रकशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                            फटी चुन्नी
सीमा जो मात्र 14 साल की  है ,बैठ कर सिल रही है अपनी इज्जत की चुन्नी को आँसुओं की धागा और बेबसी की सुई से ।
कल ही लौटी है बुआ के घर से ।वहाँ जाते वक्त सुरमई - सा कौमार्य को ओढ़ कर गयी थी , पर आते वक्त सब कुछ बिखर गया था ।
बड़े मान से बुआ ने बुलाया था । प्रसव के दिन नजदीक आ रहे थे ।बुआ फिर से माँ बनने बाली थी ।पहले से वह इक प्यारी - सी तीन साल की बिटिया की माँ थी ।
वहाँ वह हँसती- खिलखिलाती  बुआ का सारा काम करती ,फूफा जी भी बात - बेबात उसे प्यार करते रहते ।
सीमा खुश हो जाती ।पिता - तुल्य वात्सल्य से भरा प्यार ! पर कभी- कभी चौंक जाती , पापा तो ऐसे प्यार  नहीं करते ।ऐसे नहीं छूते ।
धीरे - धीरे हँसी खोने लगी ,उदासी की परत चढ़ने लगी उसकी मासूमियत पर ।
बुआ पूछती- " क्या हुआ , मन नहीं लग रहा है ? देखो फूफा जी कितना मानते हैं जाओ साथ में कहीं घूम के आ जाओ ।"
पर सीमा बूआ को कभी उस " मरदाना प्यार " के बारे में नहीं बता पाई ।
कभी - कभी सोचती , चीख -चीख कर बता दे सब को पर बुआ की गृहस्थी का क्या होगा , जो फिर एक और बेटी माँ बन लोगों के ताने झेल रही है ।
कौन उठाएगा बुआ और उनके दोनों बेटियों का बोझ ।
माँ तो अनाथ बुआ को देखना तक नही चाहती ।
और वह बहुत शिद्द्त से सिलने लगती है अपनी फटी चुन्नी ।
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक -039                                                                        
जीवन परिचय 
जन्मतिथि:5।9।1970
शिक्षा: एम ए समाज शास्त्र,फेशन डिजाइनिंग, सितार आई म्यूज.
सामाजिक गतिविधियां :-
सेवा भारती से जुड़ी हु।
लेखन विधा :-

कहानियां, कविता,हाइकू कविता,लघुकथाएं

प्रकाशित रचनाये: -
भरोसा, सलाम, पसीने की बूंद,गौरैया जब मुझसे मिली,आस,आदि।
प्रकाशन हेतु गईं बड़ी कहानियां बिमला बुआ,प्रायश्चित, ढलती शाम ,परिवर्तन, साहस की आँधी आदि।
लेखनी का उद्देश्य:-
रचनात्मक लेखन कार्य मे रुचि एवं भवनात्मक कहानियों द्वारा महिला मन की व्यथा को कहानी के रूप में जन, जन तक पहुँचाना ।
अभिरुचि:-
लेखन,गायन।
प्रेरणा पुंज: - मुंशी प्रेमचंद जी,महादेवी वर्मा जी।
वर्तमान पता:  हॉउस न0 63 सिल्वर स्प्रिंग बाय पास रोड फेज- 1, इंदौर -452020 मध्य प्रदेश
            
                       वन्दना पुणतांबेकर जी की प्रथम प्रकशित लघुकथा " भरोसा " मार्च 2018 में प्रकशित पुस्तक "द राईजिंग स्टेप" इन्दौर - मध्यप्रदेश से प्रकशित हुई है ।
                      
पेश है लघुकथा :-
                               भरोसा
                              
सूबेदार साहब का तबादला अभी 2 महीने पहले ही एक भी बीहड़ गाँव में हुआ था।वह फॉरेस्ट ऑफीसर थे।अकेले ही रहते थे, परिवार शहर में था। वह रोज सुबह सैर पर जाते तो सुबह 5:30 बजे एक 10 साल की छोटी सी लड़की रोज उन्हें हैंडपंप के नीचे नहाती नजर आती।आखिर एक दिन रुककर उन्होंने पूछ ही लिया..,"ए लड़की इतनी सुबह- सुबह रोज क्यों नहाती हो, सर्द हवाएं हैं, बीमार पड़ जायेगी, पढ़ने जाती हो क्या..? पहले तो वह सूबेदार साहब को देखकर घबराई, "बोली नहीं साब राम मंदिर जाती हूं। इसीलिए नहाकर जाती हूं। मंदिर ही जाना है तो शाम को चली जाए कर इतनी सुबह ही क्यों..? सुबह ही जाना पड़ता है,साब घर में सिर्फ मां है, वह भी बीमार बापू चल बसा, भाई शहर भाग गया।अब अम्मा को भी संभालना है, ना साब। "तेरे मंदिर जाने से भगवान तेरी मां को ठीक कर देगा क्या..? नहीं साब वो मेरी रोजी रोटी है,में मालन हूं फूल दोनी बेचती हूं,मंदिर खुलते ही भक्त लोग आने लगते हैं ,इसीलिए नहा कर जाती हूं।"अरे बिना नहाए भी तो  फूल बेच सकती हो, सूबेदार साहब बोले। "क्या बात करते हो साब दुनिया से झूठ बोलूं पर भगवान से नहीं उनकी नजरें तो हमें देखती रहती है ना, वैसे ही बहुत मुसीबत रहती हैं,ऊपर से गलत काम आप तो शहरी हो साब, हमें गलत बात मत बताओ।.."तुझे क्या लगता है, भगवान तुझे देख रहा है...। "हां साब,उसी ने संभाला है हमें, तीन साल से फूल बेच रही हूं, कभी बीमार नहीं पड़ी,जाड़े में भी नहा कर जाती हूं पूरा भरोसा है मुझे मेरे भगवान पर,कुछ नहीं होने देगा। सूबेदार साहब ने अपनी पूरी जिंदगी में इतनी सच्ची बातें कही नहीं सुनी। एक छोटी सी मालन से यह बात सुनकर उस मालन को देवी का रूप मानकर उसे प्रणाम अपने गतंव्य की ओर  चल पड़े।
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जीवन परिचय
जन्मतिथि:5जून1973
शिक्षा:एम.ए,हिंदी साहित्य,समाज शास्त्र,राजस्थानी साहित्य बी.एड
कार्यक्षेत्र: अध्यापक
साहित्य लेखन:-
कहानी,लघुकथा, पत्र,यात्रावृत्तांत
देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में रचना प्रकाशित
पुरस्कार :-
1:मगसम दिल्ली द्वारा शतकवीर सम्मान
2-टोक आस्कर द्वारा डा़ं़दुर्गालाल सोमानी अवार्ड 2018
3.मेघालय के राज्यपाल महोदय द्वारा डाँ.महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान.2018
4क्ष्रींबख्तावर सिंह राजपुरोहित राजस्थानी कहाणी प्रतियोगिता का सांत्वना पुरस्कार 2018
5.राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता.. गुरू की पाती शिष्य के नाम का प्रथम पुरस्कार2019
6.उपखंड वपंचायत समिति स्तर पर क्षेष्ठ शिक्षक सम्मान
7:विभिन्नसमाज सेवी संस्थाओं द्वारा सम्मानित
पता : 15 दिव्याशांलय , राजपुरा रोड ,सुन्दर कालोनी ,
केकडी - 305404 जिला - अजमेर  , राजस्थान
विमला नागला की  प्रथम प्रकशित  लघुकथा " मंगलसूत्र " नवम्बर 2017 में सोच विचार पत्रिका ( वाराणसी - उत्तर प्रदेश ) में प्रकशित हुई है ।

पेश है लघुकथा :-
             मंगलसूत्र
            
"हैलो... हैलो.. हाँ...है...लौ..!" 
तेज आवाज से चौंक सी गई थी मैं।
यह आवाज मेरी मकान मालकिन की बहू संजना की थी।लगता है अपनी माँ से बात कर रही है ,वो जरा ऊँचा सुनती है।
बात करने की गरज से वह मेरे पार्शन की बालकनी में आ गई।शायद घरवालों से छिपकर बात करना चाहती हो,और मेरी उपस्थिति से भी वह अनभिज्ञ थी क्योंकि मैं भी कल रात ही पीहर से लौटी थी।
  माँ..माँ..सुन तो..उसके बात करने से लग रहा था जैसे दुनिया की सारी खुशियाँ उसके दामन में समा गई होऔर मुँह से प्रसन्नता के फूल झड़ रहे हो।
माँ..आज तो मैं जीत ही गई।सब कुछ जीत लिया मैंनें और विजयी मुद्रा में जोरदार ठहाके  लगाने लगी।
  हाँ माँ...उस बुढ़िया ने सब कुछ तो दे दिया पर अपने आठ तोला वजनी मंगलसूत्र पर तो कुंडली मारे बैठी रही।मैंनें भी आज मौका देख जोर जबरदस्ती से वो छीन लिया.. फिर जोरदार ठहाका।
   "तू चिंता मत कर माँ....तेरे कंवर साहब तो आठ-दस दिनों के लिए टूर पर गये है।'
बड़ी देर तक रोई,गिड़गिड़ाई......कहने लगी..."बहू मेरे पति की अन्तिम निशानी मत छीनों,मैं जीते जी मर जाऊँगी. पति को मरे दस  बरस हो गये,बड़ी आई उसकी यादों का रोना रोने........और नही तो क्या माँ।अक्सर स्मृतियों में उसे सीने से लगा रोती रहती है..आज तो मैंने सारी नौटंकी ही समाप्त कर दी.....फिर ठहाके दार हँसी ।
    मैं अब अपना रानीहार बना लूँगी माँ...ठीक है रखती हूँ।विचारों की इस पोटली को थामे मै भी अपनी ड्यूटी पर चल दी।
  शाम को घर आते ही मैं भी हतप्रभ... घर के भीतर से दहाड़े मारकर रोने की आवाजें आ रही थी।
अरे !मेरे मांजी सा..संजना की तीव्र आवाज़ थी।
  आप अचानक हमें छोड़कर कैसे जा सकती हो।अरे... नहीं रे..सन्तोष देवी की लाश के पास बैठी संजना की नौटंकी देखकर मैं दंग रह गई।औरतें आदर्श बहू को ढांढस बंधा रही थीं।तरह -तरह से समझा रही थी।
     पर मैं जानती थी मौत का असली कारण..."पति की आखिरी निशानी मंगलसूत्र थीं।जब वही नही रही ,तो ईश्वर ने साक्षात पति मिलन हेतु ही निमंत्रण दे डाला।
   वाह रे......दुनिया।
------------------------------------------------------------------------/  क्रमांक -  041                           
जीवन परिचय
मूल नाम- राममूरत चौधरी
जन्म -- 08/10/1959 बस्ती, उत्तर प्रदेश
लेखन -- लघुकथाए, गज़लें, कविताएं एवं बाल कहानियां।
प्रकाशन ; --

मालव समाचार, स्वदेश, दैनिक भास्कर, नईदुनिया, समाजवादी दृष्टि,शुभ विचार,दैनिक जागरण,विद्युत संवाद, पाखी,माहीधारा ,सूचक, क्षितिज, लघुकथा कलश आदि।
पुरस्कार -- दूरदर्शन भोपाल, पत्र लेखक मंच जावरा (मप्र)
संप्रति : म.प्र. विद्युत वितरण कंपनी से अति.कार्या.सहा.--दो के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त।
संपर्क : -- 168- बी, सूर्यदेव नगर, पो.आ-- सुदामा नगर,
                इंदौर--452009 मध्यप्रदेश
                मोबाइल नं.-- 094245-94873
                email --rammooratrahi@gmail.com
     राममूरत राही की प्रथम प्रकशित लघुकथा " अंतर बीमारी का " 10-06-84 को  मालव समाचार ,इंदौर - मध्यप्रदेश में प्रकशित हुई है ।
         
पेश हैं लघुकथा :-
                       अंतर बीमारी का
जैसे ही बेटा आॅफिस से आया और अपने कमरे की ओर जाने लगा, तभी बूढ़ी माँ ने पेट दर्द से कराहते हुए कहा -''बेटा, मुझे किसी डाॅक्टर के पास ले चल। मेरे पेट में जोरों का दर्द हो रहा है।"
बेटे ने रुककर गुस्से में कहा -"क्या माँ ! मुझे आॅफिस से आते देर भी नहीं हुई और तुम अपना दुखड़ा लेकर बैठ गई हो।"
बेटे की बात सुनकर माँ उदास हो गई।
बेटा जब अपने कमरे में गया, तब उसने देखा उसकी पत्नी पलंग पर लेटी हुई थी। उसे देखकर वह उठ बैठी । पत्नी को उदास देख उसने पूछा -"क्यों क्या बात है, जो तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ है?"
"सिर में दर्द हो रहा है।" पत्नी ने जवाब दिया ।
"तुमने कोई दवा नहीं ली क्या ?"
"ली थी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।"
"तो चलो तैयार हो जाओ, डाॅक्टर के पास चलते है।"
"लेकिन आप अभी-अभी आॅफिस से आएं है।"
"अरे ! तुम फिक्र मत करो, चलो चलते है।"
थोड़ी देर बाद बेटे-बहू को बाहर जाते हुए बूढ़ी माँ निर्विकार आँखों से अपनी कोख से जन्मे बेटे को अपलक निहारती रह गई। **
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक - 042                                                                     
जीवन परिचय
जन्म दिनांक- २० जूलाई, १९६९  कोलकाता
शिक्षा- बी. ए.
लेखन की विधाएँ-लघुकथा, कहानी, गीत-गज़ल-कविता और आलोचना
सम्प्रति : प्रशासनिक अधिकारी, मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, हिंदी भवन भोपाल।
सहयोगी सम्पादक : अक्षरा
अध्यक्ष : लघुकथा शोध-केंद्र भोपाल, मध्यप्रदेश
हिंदी लेखिका संघ, मध्यप्रदेश (वेवसाईट विभाग की जिम्मेदारी)
ट्रस्टी और सचिव- श्री कृष्णकृपा मालती महावर बसंत परमार्थ न्यास।
पूर्व सामाचार सम्पादक: सत्य की मशाल (राष्ट्रीय मासिक पत्रिका)
प्रधान सम्पादक: लघुकथा वृत्त /टाइम्स
संस्थापक : अपना प्रकाशन
इंदौर ‘क्षितिज़’ संस्था की भोपाल प्रतिनिधी
कलामंदिर कला परिषद संस्थान में कार्यकारिणी सदस्य
पुस्तक प्रकाशन : -
घाट पर ठहराव कहाँ (एकल लघुकथा संग्रह),
पथ का चुनाव (एकल लघुकथा संग्रह),
सम्पादन :
चलें नीड़ की  ओर (लघुकथा संकलन)
सहोदरी लघुकथा-(लघुकथा संकलन)
सीप में समुद्र-(लघुकथा संकलन)
बालमन की लघुकथा (लघुकथा संकलन)
अतिथि संपादक-दृष्टि(अर्धवार्षिक लघुकथा पत्रिका, महिला लघुकथाकारों का अंक),
साहित्य कलश (पटियाला से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका का लघुकथा विशेषांक)
विशेष :-
एकल लघुकथा-पाठ : निराला सृजन पीठ, भारत भवन, भोपाल।
आकाशवाणी भोपाल से कहानी, लघुकथाएँ प्रसारित, दूरदर्शन से कविताओं का प्रसारण.
निर्णायक की भूमिका में : सेतु हिंदी द्वारा प्रायोजित लघुकथा प्रतियोगिता में|
राज्य स्तरीय कहानी प्रतियोगिता, मध्यप्रदेश

लघुकथा कार्यशाला में प्रमुख वक्ता : -

1. ग्लोबल लिटरेरी फेस्टिवल फिल्म सिटी नोयडा, उ.प्र. में लघुकथा वर्कशॉप में |
2. लघुकथा कार्यशाला करवाया : हिन्दी लेखिका संघ मध्यप्रदेश भोपाल में 2016 |
3. दून फिल्म फेस्टिवल कहानी सत्र में अतिथि वक्ता के तौर पर सहभगिता।
4. अभिव्यक्ति विश्वम, लखनऊ के तहत ‘एक दिन कान्ता रॉय के साथ’ –2018(लघुकथा कार्यशाला)

सम्मान :-
साहित्य शिरोमणि सम्मान, भोपाल।
इमिनेंट राईटर एंड सोशल एक्टिविस्ट, दिल्ली।
श्रीमती धनवती देवी पूरनचन्द्र स्मृति सम्मान,भोपाल।
लघुकथा-सम्मान (अखिल भारतीय प्रगतिशील मंच,पटना)
क्षितिज लघुकथा सम्मान 2018
तथागत सृजन सम्मान, सिद्धार्थ नगर, उ.प्र.
वागवाधीश सम्मान, अशोक नगर,गुना।
गणेश शंकर पत्रकारिता सम्मान.भोपाल।
शब्द-शक्ति सम्मान,भोपाल।
श्रीमती महादेवी कौशिक सम्मान (पथ का चुनाव, एकल लघुकथा संग्रह) प्रथम पुरस्कार सिरसा,
राष्ट्रीय गौरव सम्मान चित्तौड़गढ़
श्री आशीष चन्द्र शुल्क (हिंदी मित्र) सम्मान, गहमर, तेजस्विनी सम्मान,गहमर.  
डॉ.मनुमुक्त 'मानव' लघुकथा गौरव सम्मान
साहित्य शिरोमणि पंजाब कला साहित्य अकादमी सम्मान
क्षितिज लघुकथा समग्र सम्मान 2019

'लघुकथा के परिंदे' मंच की संचालिका।
कोलकाता में अपने छात्र जीवन के दौरान कई सांस्कृतिक संस्था से जुड़ी रही। महाजाति सदन, रविन्द्र भारती, श्री शिक्षा यतन हाॅल में मैने कई स्टेज शो किये है।

पता : मकान नम्बर-21,सेक्टर-सी सुभाष कालोनी, नियर हाई टेंशन लाइन,गोविंदपूरा, भोपाल- 462023,
       मोबाइल : 9575465147
       ई मेल - roy.kanta69@gmail.com
       कान्ता राँय की प्रथम प्रकशित लघुकथा " खुशी " सितम्बर - 2014 में  राजस्थान पत्रिका ( जयपुर ) में  प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                                 खुशी
                                
कुसुम खुशी-खुशी सीमित साधनों के साथ सुखी जीवन जी रही थी।घर के पास वाली बाजार से  जरूरत की वस्तु खरीदा करती थी लेकिन जाने कैसे आज बच्चे जिद पर अड़ गए कि उन्हें माॅल जाना है और  वहीं से कपड़े खरीदने हैं।
आखिर वह क्या करती। बेमन  से ही  सही, बच्चों को लेकर पहुँच गई माॅल। इतना बडाss  महल... ये दुकान है....!
हिचकिचाहट से भरी, कैसे अंदर जाये? बच्चे हाथ खींचकर अंदर ले आये। सिर चकरा रहा था। हर तरफ सजे हुए दुकानों में रंग- बिरंगे कपड़े टंगे थे।
एक से बढ़ कर एक कपड़े। बच्चों ने शायद मॉल पर पूरा शोध कर लिया था। इसलिए वे बेफिक्र हो कपड़ों को एक के बाद एक अपने पर आजमा रहे थे।
मोनू अपने लिए सुंदर सा जींस लिया और एक टी-शर्ट। पहन कर सामने आया। खूब  जँच रहा था। कुसुम एक टक निहारती रही। तभी पिंकी लाल फ्राक पहन सामने आई तो लगा जैसे परी आसमान से उतरी हो।
"चलो अच्छा ही हुआ जो इनके कहने पर आ गई।"  देर तक  दुकानों में इधर-उधर देखने के बाद वह बच्चों के साथ कपड़े लेकर बिल बनवाने के लिए लाईन में लग गई। अपनी बारी का इंतज़ार करती अकबकाई कभी इधर कभी उधर देखती रही।
करीब आधे घंटे में उसकी बारी आई। कर्मचारी ने कम्प्यूटर से बिल निकाल कर कुसुम के हाथ में दिया। बिल पर नज़र पड़ते ही  गश खाकर गिरते-गिरते बची।
"सिर्फ दो कपड़ों का इतना भारी बिल! अब क्या करूं? ये तो पूरे  महीने भर की आमदनी के बराबर है!"
कर्मचारी पेमेंट में देरी होते देख  कुसुम को टोका।
जैसे-तैसे  हिम्मत जुटा कुसुम ने जवाब दिया "मेरे पास तो इतने रूपये नहीं हैं।"
सुनते ही कर्मचारी बौखला गया।भीड़ की निगाहें अपनी ओर  देखकर झेंप  गयी।  बहुत कहने -सुनने के बाद बिल कैंसिल हुआ। बच्चों के चेहरे उतरे हुए थे।
कुसुम पीला-सा चेहरा लेकर घर लौट आई। पति का कमाया हुआ धन अचानक से कम लगने लगा था।
आज तक जिस मान-गुमान से वो जीती आई थी,सब माॅल में जैसे गिरवी रख आई।  बच्चों के सामने गुनहगार, थोड़े से में खुश रहने वाली कुसुम की  जिंदगी बदल चुकी थी। **
----------------------------------------------------------------------- . क्रमांक - 043                                                                  
जीवन परिचय
जन्म तिथि:26/2/1958 गुजरात
शिक्षा:बी.एस.सी.।एम.ए.साहित्य एवम मनोविज्ञान
रिटायर्ड जनसंपर्क अधिकारी बीएसएनएल
लेखन :-
1983से कविता, फिर कहानियां 1987 से लघुकथा एवम लघुव्यंग लेखन।

प्रकाशित कृतियां: -
1- बगुला भगतःलघुकथा संग्रहः1995.
2- नमस्कार प्रजातंत्र :लघुकथा संग्रहः2003
विशेष :-
कुछ रचनाओं का अन्य भाषाओं मे अनुवाद।
55लघुकथा ओ को रविशंकर विश्व विद्यालय के लघुकथा शोधप्रबंध मे शामिल।वसुधा,कनाडा से सतत प्रकाशन।
लघुकथा ओ के लिये कुछ छोटे पुरस्कार।
पता : वसंत 51,महावीर कालोनी।कालेज रोड महासमुंद।छत्तीसगढ़।493445.
          मो.नंबर 9425201544.
      महेश राजा के अनुसार  प्रथम प्रकशित लघुकथा "कान्वेन्ट कल्चर" 1987 मे अमृत संदेश रविवार ( रायपुर - छत्तीसगढ़ )मे प्रकाशित में प्रकशित हुई है :-
पेश है लघुकथा: -
                     कान्वेंट कल्चर
                    
कान्वेन्ट स्कूल मे नौंवी कक्षा के छात्र ने आठवीं कक्षा की एक छात्रा को प्रेमपत्र लिखा,छात्रा ने इसकी शिकायत स्कूल के फादर को की।
फादर ने छात्र को बुलाया और तुरन्त पचास रूपये जुर्माना करते हुए ताकीद की,"कान्वेन्ट मे पढते हो.... पत्र अंग्रेज़ी में लिखा करो।"
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक - 044                                                                      
 
जीवन परिचय
पूर्वाश्रमी नाम- पुष्पा वाधवाणी
जन्मदिन- 5 मई  1953
जन्म स्थान - कोटा (राजस्थान)   
मातृभाषा - सिंधी
शिक्षा - स्नातक, बी.एड., स्नातकोत्तर पूर्वार्द्ध (अर्थशास्त्र)
विशेष कथ्य - रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा नामक नेत्ररोग
                 लेखन सहायिका की मदद से सतत लेखन
विधा  - लघुकथा, कहानी, संस्मरण, कविता, बालकथा,विचारोत्तेजक लेख
             स्तंभकार
प्रकाशित रचना संख्या - छह सौ से अधिक
प्रकाशित रचनाएँ - धर्मयुग, सा.हिन्दुस्तान, कादम्बिनी, दै.नवज्योति(कोटा), मधुरिमा(दै.भास्कर) ,नायिका(नईदुनिया) , साक्षात्कार, साहित्य अमृत, अक्षरा , शुभतारिका इत्यादि
प्रकाशित पुस्तकें -
(1) नेह की बूदँ (काव्य संग्रह ) 2012
(2) नयननीर(दृष्टिबाधिता पर आधारित लघुकथाएँ)2013 (3) शब्दों के तोरण (काव्य संग्रह)2014
(4) क़दम - क़दम पर (संस्मरणात्मक लघुकथाएँ) 2015
(5) यादों का दस्तावेज 2016

अ.भा. साझा संकलन -
(1) शब्द सागर (काव्य संग्रह)2013 (शब्द प्रवाह
                                   मंच, उज्जैन)
  (2) काव्य सुगंध: भाग दो(2014) (अनुराधा प्रकाशन , दिल्ली )
  (3) गंगाजली (2014) सोनभद्र
(4) ,सृजन सागर - भाग -दो (गद्य)2015 (अनुराधा प्र.,दिल्ली)
(5) लघुत्तम- महत्त्म 2018
(6) सहोदरी लघुकथा भाग- एक (2018)
(7) सहोदरी लघुकथा भाग - दो (2018)
(8) सहोदरी सोपान - 5(काव्य ) 2018 ,
(9) संरचना
संप्रति - सतत लेखन ,काव्य गोष्ठियों एवं आयोजनों में सहभाग
अनुवाद - सिंधी, मराठी, मालवी भाषा में कविताओं /लघुकथाओं का अनुवाद

सम्मान / पुरस्कार -  
(1) सरल सम्मान 2016 : सरल काव्यांजलि साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था ,उज्जैन
(2) डॉ. कमला चौबे स्मृति लेखिका सम्मान 2015 : मध्यप्रदेश लेखक संघ भोपाल
(3) शब्द साधिका सम्मान 2015: अखिल भारतीय साहित्य परिषद् , मालवा प्रांत इकाई
  (4) शब्द प्रवाह अ.भा.साहित्य सम्मान 2015 : शब्द प्रवाह साहित्य मंच , उज्जैन
  (5) विशिष्ट हिंदी सेवा सम्मनोपाधि 2015 अनुराधा प्रकाशन दिल्ली
   (6) राष्ट्रभाषा रत्न सम्मनोपाधि 2015 अनुराधा प्रकाशन दिल्ली
   (7)  कृति कुसुम सम्मान 2014 शासकीय अहिल्या केन्द्रीय पुस्तकालय, इंदौर
   (8) -दै.अग्निपथ वरिष्ठ कवयित्री साहित्यकार सम्मान 2012
    (9) श्रीमती केसरदेवी जानी स्मृति सम्मान 2017 ,साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा (राज.)
  (10) डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान 2017
                  पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी ,शिलांग (मेघालय)
  (11) सिंधु प्रतिभा सम्मान 2017 , सिंधु जागृत समाज एवं सिंधी साहित्य अकादेमी ,भोपाल द्वारा संयुक्त
  (12) सैयद मीर अली मीर पुरस्कार 2018 ,
               मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, भोपाल
  (13) मानसश्री सम्मान 2018 , श्री मौनतीर्थ पीठ ,उज्जैन
                   
संपर्क -
            ' शिवनंदन ' , 595 , वैशालीनगर (सेठीनगर)
              उज्जैन -4456010(म.प्र.)
               दूरभाष -(0734)2525277
              चलभाष / वाट्सएप - 9424014477
ई- मेल : komalwadhwani.prerna@gmail.com
       कोमल वाधवानी 'प्रेरणा' की प्रथम प्रकशित लघुकथा ' मैं दुनियादार हूँ '  दैनिक नवज्योति( कोटा - राजस्थान) में 20 फरवरी 1985 को प्रकशित हुई है ।
   पेश है  लघुकथा : - 
                              मैं दुनियादार हूँ
                             
दो मित्र सदैव साथ रहते , घूमते और खाते - पीते थे। नियमपूर्वक प्रातः सैर को अवश्य निकलते । अन्य दिनों की अपेक्षा आज वे तय दूरी से काफी आगे आ गए तो दूसरे मित्र ने पहले मित्र का ध्यान आकर्षित करते कहा , ' मित्र , आज हम बहुत आगे निकल आए हैं। '
    'कोई बात नहीं चलते रहो । '
कुछ दूरी और तय करने के पश्चात दूसरे मित्र ने फिर दोहराया , ' दोस्त लगता है यह रास्ता ठीक नहीं ,हमें लौटना चाहिए । '
' तो तुम कौन से अकेले हो ।मैं भी तो साथ हूँ ।आज इस रास्ते को भी देख लें , हमेशा आधे रास्ते तक आ कर लौट जाते है।
यह सुन दूसरा मित्र अनमने मन से चलता रहा। और आगे निकल जाने पर रास्ता पगडन्डी में बदल गया । पगडंडी के साथ बह रही थी एक जलधारा  । पहले मित्र के पास चलने के लिए पगडंडी थी , तो दूसरे के पैरों के नीचे जलधारा
  ' हम गलत रास्ते पर आ गए है ।मित्र !देखो ,  मेरे पैरों के नीचे जलधारा बह रही है।
'कोई बात नहीं , तुम्हारे पैरों तले ही तो है । लापरवाही से पहले मित्र ने उत्तर दिया ।
कुछ समय बीता , आगे बढ़ते - बढ़ते पानी का प्रवाह और तीव्र हो उठा ।पानी दूसरे मित्र के घुटनों तक बढ़ गया । यह देख दूसरे मित्र ने पहले से आग्रह किया , मित्र ,लौट चलो ।'
पहले मित्र का आश्वासन भरा स्वर उभरा , ' मित्र भयभीत न हो। मैं तुम्हारे साथ हूँ। '
आश्वस्त स्वर से दूसरे मित्र का भय थोड़ा कम हुआ और थोड़ी दूरी तय करने पर पानी का प्रवाह और तेज हो उठा ।पानी घुटनों को लाँघकर कमर को भी डुबो गया ।
आशंकित हो दूसरे मित्र ने कहा, ' पानी का प्रवाह थमने का नाम नहीं ले रहा और मेरी कमर तक चढ़ आया है।अब और आगे मैं नहीं चल सकता । ' विश्वासपात्र मित्र को शंकित दृष्टि से देखते हुए उसने याचना की लौट चलो ।
' तुम बहुत डरपोक हो ।इतने पानी से घबरा रहे हो । पानी सिर्फ़ कमर तक ही तो है अभी कम हो जाएगा ,फिर मैं जो हूँ तुम्हारे साथ । '
कुछ कदम आगे चलने के बाद पानी कमर को लाँघकर कंधों तक पहुँच गया ।अब दूसरे मित्र से न रहा गया । तेज जलधारा को गले तक पहुँचते देख वह जोर से चिल्लाया , ' मित्र , अब मैं पूरा डूब चुका हूँ।मुझे बचा लो ।तुम मेरे सच्चे मित्र हो ,जरा जल्दी करो ।'
उसके कातर स्वर को अनसुना कर पहला मित्र निष्क्रिय खड़ा उसे देखता रहा, जलधारा ने जब गले को भी पार कर लिया , तब दूसरे मित्र ने स्वयं को बचाने की अंतिम कोशिश करते पहले मित्र से कहा , कैसे मित्र हो ? मैं पूरी तरह डूब चुका हूँ और तुम किनारे पर चुपचाप खड़े हो? '
पहला मित्र हँसा और बोला , ' तुम कैसे मित्र हो ,खु़द तो डुब ही चुके हो ।अपने साथ मुझे भी डुबोना चाहते हो ।क्षमा करना मित्र ,मैं तुम्हें नहीं बचा सकता ,क्योंकि मैं दुनियादार हूँ ।
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क्रमांक - 045                                                           
जीवन परिचय
जन्मतिथि:20-02-1969
प्रकाशित पुस्तकें:
1. लघुकथा-समीक्षा (1987)
2.लघुकथा:रचना और समीक्षा दृष्टि (1993)
3.लघुकथा के आयाम (2015)
4.आँखें बोलती हैं-कहानी संग्रह (1993)
5.सेल्फ एसेसमेंट-अंग्रेजी (2000)
पुरस्कार: हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित 'कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार एवं दैनिक ट्रिब्यून द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार।हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, गुरूग्राम, सिरसा एवं जिला प्रशासन, गुरूग्राम द्वारा सम्मानित।
अनेक भाषाओं में अनुदित।दूरदर्शन केन्द्रों, आकाशवाणी केन्द्रों, निजी टीवी चैनल्स, एफएम रेडियो द्वारा प्रसारित।
रचना-कर्म पर शोधार्थी द्वारा एम.फिल.।
'नवभारत टाइम्स' से पत्रकारिता की शुरुआत करके दो प्रमुख अखबारों में डेस्क पर काम करने के बाद पत्रकारिता को बाय-बाय।
लघुकथा विधा पर :-
सर्वश्री हरिशंकर परसाई, विष्णु प्रभाकर, रावी,रामनारायण उपाध्याय, अवधनारायण मुदगल, डॉ.कमलकिशोर गोयनका, डॉ हरिश्चन्द्र वर्मा, विक्रम सोनी आदि विद्वानों के लघुकथा पर आधारित साक्षात्कार लेने का सौभाग्य।हरिशंकर परसाई और रावी के ये लघुकथा पर केन्द्रित एकमात्र साक्षात्कार हैं।
वर्ष 1986 से 1988 तक रेवाड़ी से लघुकथा पर केन्द्रित लघु-पत्रिका 'राही' का सम्पादन/प्रकाशन।1987 में 'राही' द्वारा लघुकथा की समीक्षा पर आधारित पहला विशेषांक निकालने का और 1987 में लघुकथा के समीक्षा पक्ष पर केन्द्रित पहली पुस्तक निकालने का विनम्र प्रयास।
सम्प्रति: - उपभोक्ता अदालत में अर्द्ध न्यायिक सदस्य के रूप में कार्य करने के उपरांत फिलहाल ऑर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के सदस्य के रूप में व्यस्तता।
पता : म.नं 142, पार्ट छह,सेक्टर पाँच,अर्बन एस्टेट, गुरूग्राम(हरियाणा)-122006
         फोन नं.: 9810022312
          मेल: mukeshsharma69@gmail.com
     मुकेश शर्मा के अनुसार उपलब्ध प्रथम प्रकशित  लघुकथा 'खुशखबरी' गुड़गाँव के स्थानीय अखबार 'किसान की आह' में 19 जुलाई,1984 को प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा: -
                               खुशखबरी
          
"साहेब,हमार गाँव मा सूखा पड़ गया है, साहेब।" नौकर ने लगभग रोते हुए नेताजी को बताया।
" अरे वाह।यह तो बहुत अच्छी खबर सुनाई।यह ले दस रुपये।"
" मगर साहेब, सूखे की चपेट मा आकर हमार बूढ़ा माँ,बाप मर जाएगा, साहेब।" कहते हुए नौकर रोने लगा।
मगर नेताजी ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वे सूखाग्रस्त क्षेत्र में हवाई-दौरा करने की तैयारी कर रहे थे।
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 क्रमांक - 046
जीवन परिचय
जन्मदिन- 1/6/73 , इलाहाबाद
पिता का नाम...श्री शेषमणि तिवारी (रिटायर्ड डिप्टी एसपी)
माता का नाम ...स्वर्गीय श्रीमती हीरा देवी (गृहणी)
पति का नाम.. श्री देवेन्द्र नाथ मिश्रा (पुलिस निरीक्षक)
शिक्षा - बैचलर आफ आर्ट ...इलाहाबाद विश्वविधालय  (हिंदी ,रजिनिती शास्त्र, इतिहास)
सम्प्रति- स्वतन्त्र लेखन (गृहणी) 
लेखन की विधाएँ - लेख, लघुकथा, व्यंग्य, समीक्षा, संस्मरण, कहानी तथा हायकु-चोका और छंद मुक्त रचनाएँ |
प्रकाशन विवरण ...पैतालीस के लगभग विभिन्न विधाओं में साझा-संग्रहों में
प्रकाशित रचनाएँ :-

बेब पत्रिका एवं साइट-- - अवधि समाचार, परिंदे, अम्स्टेल गंगा, जय विजय, रचनाकर, सहित्यसुधा, साहित्यकुंज, साहित्यपीडिया, साहित्य कलश, साहित्य शिल्पी, प्रतिलिपि, स्टोरी मिरर, मातृभारती, लघुकथा.कॉम, काव्य-मंजूषा, लिट्रेचर-प्वाइंट,प्रयास, हिंदी रचना संसार, सम्पर्क भाषा भारती, अमर उजाला, उत्तर प्रदेश जागरण, हिंदी हायकु वर्डप्रेस, हिंदी हाइगा, ब्लॉग बुलेटिन, ओबीओ, साहित्य लाइव, हिंदी की गूंज, अनवरत, सहज साहित्य,  तुलसी अतुल्य पत्रिका, सच का हौसला,  राजस्थान पत्रिका, साहित्यपीडिया, सेतु आदि |
लघुकथा लिखना कब से शुरु किया- अप्रैल २०१४ से लघुकथा लेखन की शुरुआत |
लघुकथा आप का प्रिय विधा क्यों है? जवाब  दो पंक्तियों में --
कम शब्दों में करें अधिक प्रहार,
पाठक पर छोड़े चिंतन का भार।
लघुकथा के क्षेत्र में उपलब्धियां संक्षेप में - "शब्द निष्ठा व्यंग्य और लघुकथा" सम्मान 2017
जय-विजय  वेबसाइट द्वारा  लघुकथा विधा में 'जय विजय रचनाकार सम्मान' लखनऊ(२०१६)
बोल हरयाणा पर प्रस्तुत "परिवेश" लघुकथा 2017।
कथादेश प्रतियोगिता 2018 में 20 में अपनी लघुकथा का चुनाव।
   विशेष उपलब्धियां -
   ब्लाग - मन का गुबार एवं दिल की गहराइयों से |
अब तक  300 से भी ज्यादा लघुकथाएं लिखीं
  
लघुकथा के इतर आपका साहित्यिक  योगदान- "शब्द निष्ठा व्यंग्य  सम्मान 2018। कलमकार कहानी सांत्वना पुरस्कार 2018। "आगमन समूह" की आगरा जनपद की उपाध्यक्ष ।   "महक साहित्यिक सभा" पानीपत में २०१४ को चीफगेस्ट के रूप में भागीदारी |  "हिन्दुस्तानी भाषा  साहित्य समीक्षा सम्मान" हिंदुस्तान भाषा अकादमी (१/२०१८)बोल हरयाणा पर प्रस्तुत ‘परिवेश’ नामक कथा, "आगमन समूह" की आगरा जनपद की उपाध्यक्ष, गहमर, गाजीपुर में 'पंडित कपिल देव द्विवेदी स्मृति' सम्मान से सम्मानित |
सम्पर्क - फ़्लैट नंबर -३०२ ,हिल हॉउस / खंदारी अपार्टमेंट / आगरा  २८२००२ उत्तर प्रदेश
             फोन नं/वाटस एप नं/ 09411418621
           ई मेल..2012.savita.mishra@gmail.com 
      सविता मिश्रा 'अक्षजा' की प्रथम प्रकाशित लघुकथा " संस्कार " सितम्बर -2014 में  पुुष्पवाटिका पत्रिका पटना - बिहार ) से प्रकशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
संस्कार-
खबर लगते ही सुमन बदहवास-सी घटना स्थल पर पहुंची। अपने बेटे प्रणव की हालत देख वह बिलख रही ही थी कि भीड़ से आती फुसफुसाहटें सुनकर सन्न रह गयी। एक नवयुवती की आवाज सुमन के कानों में तीर-सी जा चुभी- "अंडे से बाहर आए नहीं कि लड़की छेड़नी  शुरू कर दी।"
एक आवाज और छूटी तो सीधे हथोड़े-सी सुमन के दिल पर जा पड़ी - "नालायक! सरेआम लड़की छेड़ रहा था। सबने अच्छे से कुटाई की इसकी ।"
सुर-से-सुर मिलाती सर्र से एक और आवाज आकर सुमन के कान से टकराई - "अच्छा हुआ पिटा। कैसा जमाना आ गया है भाइयों के साथ भी लड़की सुरक्षित नहीं चल सकती..|" सब सुनकर  शर्म से जमीन में धँसी जा रही थी सुमन।
"अरे नहीं, 'भाई नहीं थे |' वो सारे तो इस लड़के की धुनाई करके भाग गए। लेकिन देखो वह लड़की अब भी खड़ी हो सुबक रही है ।" बगल में ही खड़ी बुजुर्ग महिला बोली तो सुमन का खून खौल उठा |
वह घायल हुए प्रणव पर ही बरस पड़ी- "हमने तुझे क्या ऐसे 'संस्कार' दिए थे करमजले! बहन-बेटी की सुरक्षा की शिक्षा दी थी मैंने और तू ..! अच्छा हुआ जो तेरी कोई बहन नहीं है ।
प्रणव - "मम्मी! सुनो तो ! मैंने ....!"
सुमन बड़बड़ाती हुई उस लड़की की तरफ जाकर बोली - "बेटी! माफ़ करना, ऐसा नहीं है वह। बस संगत आजकल गलत हो गयी है उसकी, मैं बहुत शर्मिंदा .."
"नहीं ! नहीं! आंटी जी, इसकी कोई गलती नहीं है। वह तो मुझे बचा रहा था उन दरिंदो से। इसके साथ जो लड़के थे, उन्होंने ही आपके बेटे की यह हालत की है। इसने तो उनसे मेरा बचाव करना चाहा था। सब भीड़ देख भाग खड़े हुए वर्ना न जाने क्या होता...!" लड़की सुबकते हुए बोली |
सुनकर अचानक सुमन को गर्व हो आया अपने बेटे पर |
"हमें माफ़ कर देना मेरे बच्चे, हमने कैसे समझ लिया कि मेरा बेटा ऐसा कुछ कर सकता है।" बेटे के पास जा उसका सिर गोद में रख बिलखते हुए बोली। अब भीड़ भी उसको कोसने के बजाय हमदर्दी में आसपास जुट गई थी।
प्रणव दर्द से कराहते हुए हँसकर बोला - "मम्मी ! मैंने आपके दिए संस्कारो की रक्षा..,आह..! अब तो आपको नाज है न अपने बेटे पर।"अब उसकी आँखों में क्रोध से उपजा धकधकता अँगार नहीं बल्कि ममता का सागर उफ़ान ले रहा था। 
"तुझे समझाती थी न कि संगत अच्छी रख, देखा तूने ! कोई अम्बुलेंस बुलाओ |" चीखने लगी सुमन | **
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 क्रमांक - 047
जीवन परिचय
जन्म तिथि :-02-03-1954.
जन्म स्थान :-बहरौला जिला पलवल (हरियाणा)
शिक्षा :-एम. ए. (हिन्दी, अंग्रेजी) बी. एड.,प्रभाकर
प्रकाशित पुस्तकें :-
1."आंखिन देखी लघुकथाऐं"
2. "रुको तो सही एक बार" काव्य संग्रह ।
3. "आगाज" गजल संग्रह प्रकाशनाधीन
पता : स्टार फोटो स्टुडियो,
राजीव कॉलोनी (पूर्व) होली चौक,
समय पुर -रोड, सैक्टर-56ए,
बल्लबगढ -121004, फरीदाबाद, (हरियाणा)
मोबाइल - 9891708548
       लज्जा राम राधव "तरुण " की प्रथम प्रकशित लघुकथा "वे बिल" मार्च -1988 को "प्राच्य ज्ञान दर्पण "कल्याण भवन, आदर्श नगर, रतन गढ (चूरू) राजस्थान से प्रकशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                वे बिल
               
        सांयकालीन अन्तिम बस में काफी भीड थी । यात्री एक दूसरे से सटे खडे थे ।बस में पैर टिकाने की भी जगह नहीं थी परन्तु इतने पर भी कंडक्टर अपने काम में पूरी चुस्ती दिखा रहा था ।यात्रियों से किराया लेता और आगे बढ़ जाता ।
        यदि कोई यात्री टिकट मांगता तो!.... "आगे दूंगा,... जरा भीड़ तो छंटने दे ।"
        बस पूरी रफ्तार से भागी जा रही थी, अचानक ही बस के ब्रेक चरमराए और बस एक निर्जन स्थान पर रुक गई तभी बस की दोनों खिड़कियों से इन्सपैक्टर बस में घुस गये ।घुसते ही उनमें से एक ने रौबीली आवाज़ में कहा, "वे बिल दो"?
कंडक्टर ने "वे बिैल दिया,....दोनों   के हाथ मिले,.......! टिकटें चैक की गयीं ।
दोनों ने बस से उतर कर "साहब" को रिपोर्ट दी,......... "सर गाडी ओ0 के0 है ।
कंडक्टर मन्द-मन्द मुस्करा रहा था । **
-----------------------------------------------------------------------क्रमांक - 048                                                              
जीवन परिचय
शिक्षा-बी.एससी,बी.एड.
कार्य-गृहणी,स्वतंत्र लेखन
लेखन काल-अप्रैल 2016से शुरू किया
प्रकाशन- सांझा संकलन-  
सपने बुनते हुए,उद्गार लघुकथा संकलन,नई सदी की धमक,आस-पास गुजरते हुए,खंड खंड जिन्दगी, लाल चुटकी, आधुनिक साहित्य,क्षितिज लघुकथा विशेषांक,प्रतिमान (पंजाबी पत्रिका),लघुत्तम महत्तम लघुकथा संग्रह, अनुगुंजन लघुकथा अंक,लघुकथा कलश प्रथम,लघुकथा कलश द्वितीय, स्वाभिमान लघुकथा संग्रह,
समकालीन प्रेम विषयक लघुकथाएँ, साहित्य कलश,घर को सजाती संवारती लघुकथाएं,मित्रता -एक संबंल,किन्नर ए दास्तान,शब्द शिल्पी।
पता-593 संजीवनी नगर जबलपुर (म.प्र.)482003
          ईमेल :madhuneer1958@gmail.com
            मोबाइल : 9407182120
           
मधु जैन की पहली प्रकाशित लघुकथा "संस्कार" हैं जो  दृष्टि  ( ग्रुरुग्राम - हरियाणा ) के पारिवारिक विशेषांक में जून 2016 में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                             संस्कार
"उठ मेरा राजा बेटा आज तेरा जन्मदिन है,बहुत बहुत बधाई जन्मदिन की । "
"थेंक्यू दादी ।"
"बस थेंक्यू"
"नहीं पैर छूकर आशीर्वाद लेना है ।"
"खुश रहो,एक अच्छा इंसान बनो।"
"दादी इस बार भी आपके वाला बर्थ डे मनाऊँगा ,जैसा पिछले साल मनाया था ।"
"तुझे याद है ।"
"हां याद है ।"
"तो बता कैसे मनाया था ।"
"पहले नहाकर मंदिर गये थे वहां भगवान से बोला था. .....
"भूल गया न।"
"नहीं भूला,भगवान से बोला था कि मुझे सदबुद्धि देना,स्वस्थ जीवन देना और अच्छा इंसान बनाना ।"
"फिर "
"घर आकर आपने मुझे पाटे बैठाकर आरती उतारी, टीका लगाया मिठाई खिलाई,मैने सबके पैर छुए ।"
"बस"
"उसके बाद वहां गये जहां बहुत सारे दादा दादी रहते हैं उन्हें खाना खिलाया, सबने मुझे बहुत प्यार किया, मुझे बहुत अच्छा लगा था ।"
"तो फिर जल्दी से नहाकर आ।"
"मम्मा मेरी नई ड्रेस निकालो नहाकर आता हूँ "
"देखा बहू पिछले साल जो बीज बोया था अंकुरित हो गया,अब इसे मुरझाने नहीं देना है।"
"जी माँ जी इसे वृक्ष बनाने की जिम्मेदारी मेरी। " **
----------------------------------------------------------------------क्रमांक - 049                                                              
जीवन परिचय 
जन्म- 2 मई 1953, कोटा - राजस्थान
रचना संसार-
नौ कहानी-संग्रह- नैहर् छूटो जाए,रिश्तों के रंग ,छाँव, नीम अब भी हरा है, अम्मा का चश्मा,प्रेम सम्बंधों की कहानियाँ,  कदम्ब की छाँव, हीरे की कनी,  धनक का आठवाँ रंग ।
मराठी कहानी संग्रह -
आपली  लेकी सारखी
तीन लघुकथा संग्रह -
आस्था के फूल,  हरी-सुनहरी पत्तियाँ, आँगन आँगन हरसिंगार
पांच कवित-संग्रह -
ज़िन्दगी के मोड़, गुलमोहर हंस उठे , वह एक पल, भीगी चाँदनी,  भोर की पलकें
बाल गीत संग्रह-
झिलमिल तारे
उपन्यास -
वह एक नदी थी
अन्य-
शताधिक संकलनों में सहभागिता, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में  प्रकाशन, " शेष -अशेष " स्मृति ग्रंथ संपादन, 
पुरस्कार/सम्मान -
हरियाणा साहित्य अकादमी -हरियाणा की सर्वश्रेष्ठ  महिला रचनाकार सम्मान  , 3 कथा कृतियों को वर्ष की श्रेष्ठ कृति का प्रथम पुरस्कार , 3बार  कहानी प्रतियोगिता विजेता
राष्ट्र धर्म लखनऊ -
~~~~~~~~~~
"नीम अब भी हरा है " को अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम पुरस्कार ।3 कहानियाँ पुरस्कृत
राजस्थान साहित्य अकादमी -
~~~~~~~~~~~~ से प्रभा खैतान प्रवासी साहित्य सम्मान
राजभाषा इलाहाबाद
~~~~~~~~~~~
से 2 बार सम्मानित
यू एस एम संस्थान से  सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान
कमलेश्वर स्मृति सम्मान
~~~~~~~~~~
कहानी " न भूतो न भविष्यति" को
इनके अतिरिक्त 10 राज्यों से 50 से अधिक सम्मान
सम्पत्ति -
~~~~
अध्यक्ष -नारी अभिव्यक्ति मंच " पहचान ", संपादक ' पत्रिका पहचान,  प्रदेश अध्यक्ष - साक्षी फाउंडेशन दिल्ली। परामर्श दाता-नई दिशाएं
विशिष्ट-
~~~~•
अनेक छात्रों द्वारा  साहित्य पर पी एच डी एवं एम फिल् शोध
विदेश -यात्रा -
~~~~~~~
अमेरिका,  इंग्लैंड एवं मैक्सिको
पता : 2144/9सेक्टर , फरीदाबाद -121006 हरियाणा  
         मोबाइल -09873967455
कमल कपूर के अनुसार  प्रथम प्रकशित  लघुकथा " सहारे " दैनिक भास्कर की  2005 में  ' मधुरिमा ' में प्रकाशित हुई है

पेश है लघुकथा :-
                             सहारे
    वह मेज पर धरे उस बड़े से पार्सल को निर्लिप्त दृष्टि से देख रही थी, जो उसके बेटे ने अपने एक प्रवासी मित्र के हाथ भेजा था।दरअसल लगभग दो महीने पहले उसने उसे खत लिखा था •••' प्रिय रोहित बेटा!
   तुम बिदेस चले गये और तुम्हारे पापा सांचे देस।रह गई इतने बड़े घर में मैं अकेली जान।बेटे ! अब ये पहाड़ से भारी दिन - रात नहीं कटते इसलिए या तो तुम लौट आओ या मुझे वहीं बुला लो। मुझे तुम्हारे सहारे की सख्त जरूरत है।
तम्हारी माँ•••'
याद कर माँ ने एक ठंडी साँस ली और पार्सल उठाया•••साथ में एक खत भी था। भीगे नयनों से उसने खत पढ़ा•••
' मेरी अच्छी माँ !
   मेरा अब लौट कर आना किसी भी तरह मुमकिन नहीं। बड़ी मेहनत से मैंने यहाँ पाँच जमाए हैं।बच्चों का भविष्य भी यहीं पर है।कैसे आ जाएं हम सब छोड़ कर और रही बात आपको बुलाने की तो माँ! आप यहाँ की जीवन-शैली में फिट नहीं हो सकतीं। और माँ ! भला मैं क्या सहारा दे सकता हूँ आपको। कुछ सामान भेज रहा हूँ। और भी जब जो चाहिए हो बता दें।
•••आपका रोहित
  माँ ने कांपते हाथों से पार्सल खोला।अब उसके सामने थे•••एक फोल्डिंग छड़ी , महंगी घड़ी , सुनहरे फ्रेम का चश्मा , एक मखमली कोट , बेटे की पत्नी और बच्चों के साथ ढेर  -सी रंगीन तस्वीरें और चंद डाॅलर•••ये वो सहारे थे , जिनके सहारे उसे अपनी ज़िन्दगी के बचे हुए पहाड़ से भारी दिन और समंदर  -सी लंबी रातें गुज़ारनी थीं।
  ----------------------------------------------------------------------क्रमांक - 050                                                               
जीवन परिचय
जन्म तिथि - 15 फरवरी 2002
जन्म स्थान - बीजवाड़     चौहान, अलवर(राजस्थान)
शिक्षा - बी•ए स्नातक वर्ष में अध्ययनरत।
प्रकाशित रचनाए  -
"शब्द सरोकार", "शुभ तारिका", "लघुकथा कलश", "जगमग दीप ज्योति", "रचनाकार", "प्रतिलिपि" मे प्रकाशित रचनाएँ ।
पता :नेहा शर्मा D/Oकृष्ण कुमार शर्मा
       वीपीओ बिजवाड़ चौहान तहसील मुंडावर
      जिला अलवर राजस्थान पिन कोड 301401
       Mob No - 9571364626
      E - mail - sharmaneha7832@gmail.com 

नेहा शर्मा की प्रथम प्रकाशित लघुकथा "अंतरात्मा की आवाज" अक्टूबर - दिसम्बर 2016 "शब्द सरोकार" त्रैमासिक पत्रिका ( पटियाला - पंजाब ) के अंक में प्रकाशित हुई है ।
                लघुकथा पेश है :-
                    "अंतरात्मा की आवाज"
श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में मिस्टर शर्मा अकेले रहते थे। उनका कोई परिवार नहीं था और वे एक विद्यालय में शिक्षक की नौकरी करते थे। मिस्टर शर्मा ने जब से होश संभाला है तब से भी अपने आराध्य श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन है। वे सुबह शाम श्रीकृष्ण मंदिर जाते हैं और घंटों तक उनके सामने बैठे रहते हैं। अब तो उनका एक ही स्वप्न है कि उन्हें उनके आराध्य श्रीकृष्ण के दर्शन मिल जाएं। कई दिन व्यतीत हो गए और मिस्टर शर्मा की कृष्ण दर्शन की चाह और भी प्रबल होती चली गई। एक समय ऐसा आया जब मिस्टर शर्मा ने अपने आराध्य के दर्शन की हट पकड़ ली। लेकिन तब भी उन्हें श्रीकृष्ण के दर्शन प्राप्त नहीं हुए। अब मिस्टर शर्मा श्रीकृष्ण का दर्शन पाने के लिए अपने शरीर को कष्ट पहुंचाने लगे। अपने भक्तों को कष्ट में देखकर श्रीकृष्ण से रहा नहीं गया। जब मिस्टर शर्मा संध्याकालीन आरती के लिए मंदिर गए और आरती समाप्त होने के बाद श्रीकृष्ण को सिर झुकाकर प्रणाम करते हुए जाने लगे तभी उन्हें श्रीकृष्ण की प्रतिमा में से एक तेज निकलता हुआ दिखाई दिया। और उसमे से आवाज आई - "मिस्टर शर्मा तुम यह क्या कर रहे हो? मेरा दर्शन पाने की चाह में तुम अपने शरीर को कष्ट पहुंचा रहे हो? क्या यह सब कुछ करने से तुम्हें मेरे दर्शन प्राप्त हो जाएंगे? जब तुम अपने शरीर को कष्ट पहुंचाते हो तो सबसे ज्यादा कष्ट मुझे ही प्राप्त होता है। क्या तुम्हे याद है कि जब तुम सीढियों  से फिसल गए थे और तुम्हारा पैर टूट गया था तो तुम्हारे माता-पिता को कितना अधिक कष्ट हुआ था तुम्हारा टूटा हुआ पैर देखकर। हुआ था ऐसा या नहीं मिस्टर शर्मा?"           मिस्टर शर्मा ने अपना सिर हिलाया। फिर आराध्य ने कहा - "तुम्हें अपने शरीर को कष्ट देते हुए देखकर मुझे दुख नहीं होगा क्या? अगर तुम्हे मेरा दर्शन पाना है तो तुम स्वयं को कष्ट मत पहुंचाओ। जितना तुम से हो सके उतना  दूसरों का कष्ट कम करो तो तुम पाओगे कि मैं तुम्हारे पास हूं। मैं तो प्रत्येक मनुष्य की अंतरात्मा में बसा हुआ हूं तो तुम मुझे यहां-वहां क्यों खोजते फिरते हो। जिस दिन तुमने मेरे रूप को पहचान लिया उस दिन तुम्हें यह कहने की आवश्यकता ही नहीं की भगवान हमें दर्शन दो, क्योंकि उस समय तुम्हें पता होगा कि भगवान तो हमेशा आपके साथ हैं।" वह तेज अदृश्य हो गया। अब मिस्टर शर्मा की आंखें खुल गई थी और उसने अपने ईश्वर दर्शन की चाह के मार्ग को बदल दिया था। **
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जीवन परिचय
पति -श्री कृष्ण कुमार चौबे
जन्म स्थान -दमोह
योग्यता -ऍम .ए. जी  ऐन ऍम नर्सिंग पद-जिला चिकित्सालय में स्टाफ नर्स के पद पर पदस्थ
लेखन -कविता, गीत ,लघुकथा ,व्यंग्य लेख  ,गजल व संस्मरण
प्रकाशन एवं  उपलब्धि
1- बुन्देल खण्ड साहित्य कार सूची में शामिल
2-विभिन्न पत्र पत्रिकाओ में राष्टीय स्तर पर रचनाये प्रकाशित
3-न्यू ऋतम्भरा साहित्य समिति दिल्ली से सम्मानित
5-महिमा प्रकाशन से 2008 में साहित्य श्री से सम्मानित
6-हिंदी लेखिका संघ से साहित्य श्री  सम्मान प्राप्त
7-क्रांतिबोल में लगातार रचनाये प्रकाशित
8-अयन प्रकाशन द्वारा फेसबुक कबियो के संग्रह में रचनाये प्रकाशित
8-लोकजंग भोपाल में प्रकाशित
9-मधुरिमा दैनिक भास्कर में रचनाये का  प्रकाशित बुंदेली अर्चन पत्रिका, सुरम्या पत्रिका ,विप्र वाणी पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित,पत्रिका परिवार में रचनाएं प्रकाशित
10-विप्र समाज दमोह द्वारा सम्मानित
11-"मोहे ले चल हरसिध्दि माँ  के द्वारे "व् "मैया की बोले पायलिया" भक्ति गीत के एलबम में गीतकार के रूप में पहचान
12-ॐ टीवी जबलपुर व दमोह से रचनाओ का प्रसारण
प्रकाशन।
1 काव्य संग्रह :  गोरैया तेरे रंग हजार
2 लघुकथा सँग्रह : मुझे चाँद नही चाहिये
पता - मांगज वार्ड न 3 , स्टेशन के पास,दमोह - मधयप्रदेश
         मोबाइल - 9644075809
नाम -श्रीमती बबिता चौबे "शक्ति" के अनुसार  प्रथम प्रकाशित लघुकथा " नैतिकता " दैनिक भास्कर की 2016 में मधुरिमा में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                             नैतिकता
"पैर ऊपर कीजिये अंकल आंटी आप भी"जमीन पर खिसकते हुए मुस्कुरातें चेहरे के साथ वह बोला।
"अरे जा यहाँ से ।"एक भद्र महिला ने कहा।
"अरे आंटी ट्रेन हमारी रोजी रोटी है आपने कचरा पटक कर अपना काम कर दिया है अब मुझे अपना काम करने दीजिए।"फुर्ती से तीनो बर्थ के आसपास का कचरा कपड़े में समेटकर उसने नन्ही हथेली फैला दी।
सभी भद्र लोग नजर फेरकर इधर उधर देखने लगे।
"अरे सामान चेक कर लो सफाई के बहाने सामान चुरा लेते है ये लोग!"लेकिन वह बच्चा बिना शिकन के मुस्कुरातें हुए आगे बढ़ गया। **
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क्रमांक - 052
                                   जीवन परिचय     
   
पूरा नाम : शेख़ शहज़ाद उल्लाह उस्मानी   
पिता का नाम : श्री शेख़ रहमतुल्लाह उस्मानी (सेवानिवृत्त सहायक यंत्री)
माता का नाम : स्व. इफ़्तिख़ारुन्निशा उस्मानी
जन्म दिनांक : 05 अगस्त, 1968
जन्म स्थान : दमोह (मध्यप्रदेश)
शिक्षा :  बी. एससी. (गणित विज्ञान), एम.ए. (अंग्रेज़ी साहित्य), बी.एड., एप्टेक संस्थान से कम्प्यूटर-डिप्लोमा 'पी.जी.डी.आइ.एस.एम.'।
सम्प्रति : अशासकीय शिक्षक (व्याख्याता) एवं आकाशवाणी (आँँल इंडिया रेडियो) शिवपुरी (मध्यप्रदेश) केंद्र में  अक्टूबर 1992 से नैमित्तिक रूप में सेवारत। कार्यक्रम 'युववाणी' में अंतर्वार्ताकार (कॉम्पिअर) के बाद  1999 से नैमित्तिक उद्घोषक के रूप में सेवारत। आकाशवाणी से वाणी प्रमाणपत्र प्राप्त  व रेडियो नाट्य-स्वर परीक्षा उत्तीर्ण।
आत्मकथ्य :
छात्र जीवन से ही हिंदी व अंग्रेज़ी साहित्य पढ़ने का शौक रहा। उर्दू से लगाव रहा। डायरी लेखन से आकाशवाणी में कहानी व चिंतन आलेख लेखन तक; अम्मी-अब्बूजान व दोस्तों और शिक्षकगण से हासिल हौसला अफ़ज़ाई से लेकर 'फेसबुक लघुकथा समूहों' और 'ओपनबुक्सऑनलाइनडॉटकॉम' - साहित्य-पत्रिका-वेबसाइट  में लघुकथा लेखन अभ्यास तक लेखनी अपने अनुभवों को शाब्दिक करती रही।
साहित्य लेखन विधायें : हिंदी गद्य में मुख्य रूप से लघुकथा विधा।  साथ ही व्यंग्य, कहानी  व बाल-साहित्य लेखन। हिंदी काव्य में  कविता, अतुकांत,  हाइकू, वर्ण-पिरामिड-जसाला-पिरामिड, छंद-अभ्यास आदि।
शिवपुरी (मध्यप्रदेश) से प्रकाशित डीएवीपी से पंजीकृत स्थानीय साप्ताहिक समाचार पत्र "चेतना की आवाज़" में 1996 से1998 तक "सम्पादक" के रूप में  कार्य किया।
प्रकाशित पुस्तकें : -
- दिशा प्रकाशन, नई दिल्ली,  मधुदीप गुप्ता जी व बलराम अग्रवाल जी के संयुक्त सम्पादन में " विश्व हिंदी लघुकथाकार कोश" में  नामांकित किया जा चुका है।
- विभा रानी श्रीवास्तव जी के संपादन में 2016 में  'साझा संग्रह- शत हाइकुकार- साल शताब्दी'  व 'अथ से इति - वर्ण-स्तंभ-वर्ण-पिरामिड-साझा संग्रह' प्रकाशित।
- प्रदीप कुमार दाश जी के संपादन में हाइकू संकलन ' झांकता चांद' में और विश्व के पहले रेंगा संकलन 'कस्तूरी की तलाश' में व 'हाइकु मंजूषा समसामयिक संचयन' में रचनायें प्रकाशित।
- मधुदीप गुप्ता जी के संपादन में लघुकथा संकलन ' नई सदी की धमक' में,
-  ज्योत्सना कपिल जी और  उपमा शर्मा जी के संयुक्त संपादन में लघुकथा संकलन 'आसपास से गुजरते हुए'  में,
-  अयन प्रकाशन की ज्योत्सना कपिल जी  द्वारा सम्पादित  'प्रेम विषयक लघुकथा संकलन'  में लघुकथाएं प्रकाशित।
  -  भाषा सहोदरी के लघुकथा संकलन "सहोदरी लघुकथा'  में  चार लघुकथाएं प्रकाशित हुई हैं।
-  भाषा सहोदरी हिंदी के काव्य संकलन 'सोपान 5' में  काव्य रचनायें प्रकाशित  हुई हैं।
-  अनिल शूर जी के संपादन में लघुकथा संकलन ' नई सदी की लघुकथायें'  में,
-  विभा रानी श्रीवास्तव जी के संपादन में लघुकथा संकलन 'यथार्थ सृजन' में,
-   ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' जी के संपादन में 'श्रेष्ठ लघुकथायें' में मौलिक लघुकथायें प्रकाशित हो चुकी हैं।
अन्य : आकाशवाणी शिवपुरी केंद्र से कहानी 'विकल्प' व चिंतन- लघुवार्तायें प्रसारित एवं रेडियो रूपकों/नाटकों में स्वराभिनय किया।
स्थायी पैतृक पता :  379/28, फिज़ीकल पुलिस थाने के सामने,  मदीना मस्जिद गली में,  इन्दिरा कॉलोनी, फ़िज़ीकल कॉलेज रोड,शिवपुरी (मध्यप्रदेश) 473551
वर्तमान पूरा पता : संतुष्टि अपार्टमेंट्स,विंग बी-2 (टॉप फ़्लोर, पेंटहाउस) ,कत्था-मिल हेपिडेज़ स्कूल के पास,
ग्वालियर एबी रोड,शिवपुरी (मध्यप्रदेश)473551(भारत)
               वाट्सएप नंबर - 08717910089
अन्य - 09406589589/ 07987465975
ई-मेल : shahzad.usmani.writes@gmail.com
    शेख़ शहज़ाद उस्मानी  की पहली लघुकथा 'मुखाग्नि' का कथानक व‌ कथ्य प्रेरणा  एक सच्ची घटना पर आधारित समाचार से हासिल हुआ है। साहित्यिक वेबसाइट पत्रिका - ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम पर 21 सितंबर, 2015 को प्रसारित है। इसी वेबसाइट की स्मारिका में नवंबर 2015 में प्रकाशित है तथा भोपाल (मध्यप्रदेश) से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'सत्य की मशाल' के 5 फ़रवरी, 2016 के अंक में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा : -
                               'मुखाग्नि'
आज सुबह उस चाय की गुमटी पर गरमा गरम चाय पीते-पीते कुछ मुखों से शब्दों के अग्नि-बाण से निकल रहे थे।
"अरे सुना तुमने, मज़हब की बंदिशें तोड़ ग़रीब दोस्त संतोष को मुस्लिम युवक रज़्ज़ाक ने कल मुखाग्नि दी !"
यह सुनकर एक पंडित जी बड़बड़ाने लगे - "सारा अंतिम संस्कार अपवित्र हो गया, पता नहीं आत्मा को कैसे शान्ति मिलेगी ?"
इस पर एक शिक्षित युवक बोला - "अरे ये सब वो धर्मान्तरित मुसलमान हैं जो आज भी अपने मूल धार्मिक कर्मकांड गर्व से करते हैं।"
तभी एक दाढ़ी वाले ने दाढ़ी पर हाथ फेरते हुये धीरे से कहा - "सही कहते हैं हमारे चच्चाजान, इस्लाम संकट में है !"
एक छिछौरे ने चुटकी लेते हुए कहा - "अरे, मुझे तो लगता है उसकी पत्नी से पहले से कोई यारी रही होगी !"
इन बातों को सुनकर चाय वाला बोला - "छोड़ो भी, रात गई, बात गई, आप तो चाय पियो। मेन बात तो समझ नईं रये, मूंह चलाये जा रये !"
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जीवन परिचय
जन्म तिथि और स्थान – 5 फरवरी 1961 ,राजस्थान - भारत
शिक्षा – स्नातक संगीत
कार्य क्षेत्र – साहित्य, संगीत, अध्यात्म और समाज सेवा
विधा – लघुकथा
प्रकाशित कृतियाँ –
लघुकथा संकलन में –
नई सदी की धमक,
अपने-अपने क्षितिज,
सफर संवेदनाओं का,

सहोदरी लघुकथा- प्रथम एवं द्वितीय अंक ,आस-पास से गुजरते हुए, लघुत्तम महत्तम, अभिव्यक्ति के स्वर, साहित्य कलश-लघुकथा विशेषांक, परिंदों के दरमियां, दृष्टि-मानवेतर लघुकथा अंक, लघुकथा कलश- प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय महाविशेषांक, संरचना, अविराम साहित्यिकी, समकालीन प्रेम-विषयक लघुकथाएँ ।

पत्र पत्रिकाओं में – ‘नईदुनिया’ की ‘नायिका’ एवं ‘अमर उजाला की ‘रूपायन’ में, शैल सूत्र, नव पल्लव, सत्य की मशाल इत्यादि।
ई पत्रिका में – अभिव्यक्ति-अनुभूति, हस्ताक्षर वेब पत्रिका, अन्तरा-शब्दशक्ति, अचिन्त साहित्य इत्यादि ।
सम्मान व पुरस्कार – गायन मंच पर
संप्रति – स्वतंत्र लेखन
स्थाई पता – प्रेरणा गुप्ता
C/O,  एस. के. टेक्सटाइल, 
50/28, नौघड़ा,
कानपुर- (यू.पी)
पिन कोड – 208001
ईमेल – prernaomm@gmail.com
मोबाइल नम्बर – 9793800751, 8299872841
प्रेरणा गुप्ता  की प्रथम प्रकशित लघुकथा " बसंती चावल " 28 जनवरी 2017 को इंदौर से निकलने वाली 'नई दुनिया' की 'नायिका' पत्रिका में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                       *बसंती चावल*
सात फेरों के तुरंत बाद वीणा को ससुराल में विदा होकर आए अभी दो घंटे भी नहीं बीते थे कि बुआ जी की टन्नाकेदार आवाज सुनाई दी, ”भाभी, ओ भाभी ! आज अपनी बहुरिया से रोटी-छुआई की रसम जरूर करवा लेना | कल तो हम चले जायेंगे, जरा हम भी तो चखें, बहुरिया खाना कैसा पकाती है?”
सासू माँ की आवाज गले में फँसने लगी, ”अरे जिज्जी ... वो अभी तो ...आई है, रात भर की जगी हुई ... |
अरे भाभी, क्या इतनी नाजुक है तुम्हारी बहुरिया ! हम तो बारह बरिस की ब्याह कर गये थे, जाते ही सास ने चूल्हे में झोंक दिया था | इतनी भी हिम्मत ना थी कि चूँ-चपड़ करते और देखो पहले मीठे बसंती चावल ही बनवाना, क्योंकि आज बसंत पंचमी है न | 
वीणा सासू माँ का मुँह देखने लगी और धीरे से डरते-डरते बोली, ”माँ, मुझे बसंती चावल बनाने नहीं आते, कहें तो मैं बसन्ती रंग डाल कर खीर बना दूँ |"
बुआ जी की त्योरियाँ सातवें आसमान पर चढ़ गईं, ”वाह भाभी वाह ! तुम तो अपनी बहुरिया का बड़ा बखान करती थीं कि साक्षात् सरस्वती है, पढ़ी-लिक्खी आई है | इतनी उमर में, अपनी अम्मा से कुछ तो सीखा होगा?”
इतने में आनन्द बूंदी के लड्डुओं का डिब्बा लेकर ख़ुशी से लहराता हुआ आया और सबसे पहले उसने अपनी नई नवेली दुल्हन का मुँह मीठा किया, फिर हँसते हुए बोला, ”अरे बुआ जी, बधाई हो बधाई ! आपकी बहुरिया सचमुच साक्षात् सरस्वती है | देखिये, आज ही इसकी एक पुस्तक छपकर आई है |” बुआ जी लड्डू न खाने के लिए अपना मुँह बंद किये, लाल-पीली होती, ऊं-ऊं किये जा रही थीं और आनन्द बसंती रंग का लड्डू उनके मुँह में खिलाने के लिए ठूँसता जा रहा था ... |
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क्रमांक -054

जीवन परिचय
जन्म-1/7/1955
शिक्षा-विज्ञान स्नातक

प्रकाशित पुस्तकें-

1.अपनी ढपली;अपना राग
हास्य-व्यंग्य काव्य संग्रह
2.चिड़िया बनी शंकुतला
बाल उपन्यास
3.लिखते रहना है
कविता संग्रह
4.बातों बातों में
फिल्मी हास्य व्यंग्यिकाएं
5.इतने लोगों में
लघु कथा संग्रह
6.उथल-पुथल
हास्य-व्यंग्य काव्य संग्रह
7.ये मेरी तरफ से
कविता संग्रह
8.लाइन में आइए
हास्य-व्यंग्य संग्रह
9.बारहमासी
बाल कवितायें
10.ऐसा भी...
लघु कथा संग्रह
11.फिल्मी पटखनी
फिल्मी हास्य व्यंग्यिकाएं
12.मटियामेट
हास्य-व्यंग्य काव्य संग्रह
13.ऐसा तो नहीं
ग़ज़ल एवं दोहे
14.किसी के हिस्से में
ग़ज़ल-गीत संग्रह
15.हाल-ए-दिल
शे'र एवं रुबाई
16.तनक हँस बोल लइंयें
क्षेत्रीय भाषा में कविता संग्रह
17.तिकड़म
हास्य-व्यंग्य काव्य संग्रह
18.शब्द बोलते हैं
हाइकु संग्रह
19.ये और बात है
कविता संग्रह
अन्य पुस्तिकाएं
1.बोल अनमोल
विद्युत संबंधी संदेश
2.बिजली चालीसा
बिजली स्तुति
संपादन
विद्युत वाणी पत्रिका

सम्मान/पुरस्कार-

म.प्र.साहित्य अकादमी, भोपाल द्वारा'ज़हूर बख़्स 'पुरस्कार-2015,बालकृति 'बारहमासी' पर।
तुलसी साहित्य अकादमी, भोपाल द्वारा'तुलसी साहित्य सम्मान-2017'
हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी, नई दिल्ली द्वारा 'हिन्दुस्तानी भाषा काव्य प्रतिभा सम्मान'
जैमिनी अकादमी,पानीपत द्वारा 'मध्य प्रदेश रत्न-2015'
श्री गोविंद साहित्य समिति, मुरादाबाद,उ.प्र.द्वारा'हिन्दी भाषा रत्न एवं 'साहित्य वाचस्पति सम्मान'
सलिला साहित्य संस्थान, 
सलूंबर,राजस्थान द्वारा,' स्वतंत्रता सैनानी श्री'औंकारलाल शास्त्री स्मृति पुरस्कार'
बटोही सामाजिक एवं साहित्यिक संस्था, कानपुर से हाइकु संग्रह'शब्द बोलते हैं' के परिप्रेक्ष्य में 'बटोही सारस्वत सम्मान-2018',मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच,दिल्ली द्वारा 'लाल बहादुर शास्त्री रत्न सम्मान'
हिन्दी सेवा समिति,जबलपुर, म.प्र.द्वारा 'साहित्य शिरोमणि सम्मान'

पता : पलोटन गंज , गाडरवारा - मध्यप्रदेश

नरेन्द्र श्रीवास्तव की प्रथम प्रकशित लघुकथा "शोक"
जबलपुर,म.प्र. से प्रकाशित "नवीन दुनिया" दैनिक समाचार पत्र में 21 फरवरी 1986 को प्रकाशित हुई है।

पेश है लघुकथा :- 

                                  शोक
                                  
शहर में टी.व्ही.रेंज नहीं थी।
व्यापारियों द्वारा डिस्क कनेक्शन दिये गये थे।
उस रोज.बुधवार था याने सभी को चित्रहार की प्रतीक्षा।
अचानक उसी रोज एक प्रमुख नेता का देहावसान हो गया और दूरदर्शन से दिखलाये जाने वाले सारे कार्यक्रम रद्द हो गये।
दर्शक परेशान होने के साथ-साथ दुःखी भी हो गये।
सब डिस्क वाले व्यापारी के यहाँ एकत्रित होकर याचना करने लगे-भाई!आज बड़ी बोरियत है।आऑफिस बंद है।बाजार बंद है।सिनेमा बंद है।टी.व्ही. और रेडियो से कहीं कोई मनोरंजन की आशा नहीं।आप ही कोई फिल्म दिखलाइये न?और फिर तब...सब डिस्क से प्रसारिय होने वाली कोई फिल्म देख रहे थे।
आकाशवाणी से समाचार प्रकाशित हो रहा था-हमारे वयोवृद्ध नेताजी के आकस्मिक निधन से सारा राष्ट्र शोकमग्न है।
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क्रमांक -055


जीवन परिचय
जन्मतिथि: १७ जून १९७३
शिक्षा: इंजीनियर(इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकॉम)
निवास स्थान: गुरगाँव
रुचि: लेखन, चित्रकारी
प्रकाशित उपन्यास-
१. बजीराव बल्लाळ: एक अद्वितीय योद्धा
२. राम का जीवन या जीवन मे राम
३. अश्वत्थामा: यातना का अमरत्व
४. Bajirao Peshwa: The Insurmountable Warrior
५. यशोधरा: ओजस्विनी का वीतराग(प्रकाशन प्रक्रिया में)
लघुकथा: लघुकथा लेखन आरम्भ जुलाई २०१७
प्रकाशित लघुकथाएँ:
ईपत्रिका-कथादेश, अम्स्टलगंगा,
ईपेपर: समाज्ञा, साहित्य सृजन
लघुकथा कलश, परिन्दे पूछते हैं, परिंदों के दरम्यान, कलमकार, मातृभारती, आधुनिक साहित्य, दृष्टि,

  समकालीन प्रेम विषयक लघुकथाएँ,
  किस्सा कोताह, क्षितिज,
   पड़ाव और पड़ताल (11 लघुकथाएँ खण्ड 29)
पुरस्कार, सम्मान:
प्रथम उपन्यास 'बजीराव...' को प्रशस्ती पत्र अम्बिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार,
क्षितिज लघुकथा सम्मान (कला)
नारीअभिव्यक्ति मंच लघुकथा प्रतियोगिता- द्वितीय पुरस्कार
पता: 32/4, प्रिमरोज़, वाटिका सिटी,
       सोहना रोड, सेक्टर - 49, गुरगाँव -122018 हरियाणा
         मो. 9654517813
      अनघा जोगलेकर की प्रथम प्रकाशित लघुकथा " गहरे रंग "  २० दिसम्बर २०१७ को समाज्ञा (कलकत्ता - प. बगाल ) से प्रकशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                              'गहरे रंग'
     "कितना सुंदर रंग है आपके स्वेटर का। इससे तो आपके चेहरे की रंगत और बढ़ गई है।" आज मैंने कह ही दिया।
      वे रोज सुंदर गहरे रंग के स्वेटर पहनकर पार्क आया करती थीं। उन रंगों में, उनका जीवन से भरपूर खुशमिजाज व्यक्तित्व, और खिल उठता था।
       वो पार्क मेरी भी पसंदीदा जगह थी। वहाँ पेड़ों पर बहुरंगी पत्त्तियाँ लगा करती थीं । बिल्कुल उनके चेहरे की रंगत की तरह, जो कभी फीकी नही पड़ती थी बल्कि दिन-ब-दिन और गहरी ही होती जाती थीं।
      मेरी की हुई तारीफ से वे मुस्कुराती हुई बोलीं, "इस पेड़ की पत्त्तियाँ इतनी रंगीन क्यों होतीं हैं, जानती हो?"
       "स्वेटर के रंग का इन पत्त्तियों से क्या सम्बन्ध?" मैंने मन-ही-मन सोचा।
         मेरे चेहरे पर उलझन देख वे बोलीं, "जब मौसम बदलता है तो उस बदलाव के कारण इन पेड़ों को बहुत पीड़ा होती है। उस दर्द को सहने के लिए इनमें जो रासायनिक परिवर्तन होते हैं, उस से ही इन पत्त्तियों के रंग बदल जाते हैं। जिनती गहरी पीड़ा, उतना गहरा रंग। देखने में कितने सुंदर दिखते हैं न ये पत्ते लेकिन अंदर-ही-अंदर......."
         उनकी भर आईं आँखों से, उनके हँसते चेहरे के पीछे छुपा कोई अनकहा दर्द, मुझे बहुत करीब से महसूस होने लगा।
         मैंने हौले से उनका हाथ दबाया। उन्होंने झट से अपना हाथ हटाते हुए मुस्कुराकर कहा, "जैसे ही मौसम बदलेगा, पत्त्तियाँ फिर हरी हो जायेंगी।"
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क्रमांक -056

जीवन परिचय
शिक्षा - बी एस सी, एम ए,  एल एल बी.
पंजाब नैशनल बैंक में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए दिसंबर 2013 में प्रबंधक के पद से सेवा निवृत हुए।
वर्तमान में लघुकथा विधा का विधार्थी हूँ एवं साथियों के साथ विधा को सीखने, समझने का प्रयास कर रहा हूँ।
विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिकाओं एवं सांझा संकलनों में प्रकाशित।
पता  -  593 संजीवनी नगर,
          जबलपुर म़ प्र 482003
      jainpawan9954@gmail.com
       9425324978
       पवन जैन की प्रथम प्रकाशित लघुकथा  'शगुन'   'साहित्य अमृत' पत्रिका ( दिल्ली ) लघुकथा विशेषांक जनवरी 2017 में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                                  शगुन
वह सफाई करने मुंह अंधेरे ही आ गई थी।बंगले के सामने वाली  सड़क पर फैला कचरा बता रहा है कि रात में जमकर आतिशबाजी हुई। क्यों न हो, लाला की इकलौती बेटी की शादी जो है। झाडू लगाते- लगाते कुछ अटका। झुकी यह तो चेन है। उठा कर देखा यह तो सोने की चेन है बिल्कुल नई, वजनदार भी है। मन ही मन बुदबुदाने लगी : "चलो अच्छा हुआ, जल्दी आने का इनाम मिल गया।"
"नहीं, किसी बाराती की होगी, दे देनी चाहिए।"
"क्या फर्क पड़ता है इन लोगों को ,गिर गई तो गिर गई, कोई खोजने भी नहीं आया होगा।"
"क्या करेंगे इसका, हमारे किस काम की,न पहन सकते और न ही बेच सकते।" "रख ले, काम आयेगी, सोने की है। पडी़ मिली है, कोई चुराई तो नही है।"
"नहीं- नहीं, अपनी नीयत खराब नहीं करनी, चलो लाला को दिए देते हैं।"
कदम  दरवाजे की ओर बढ़ते जा रहे। देखते ही लाला जोर से चिल्लाए: "काम- धाम कुछ किया नहीं, सुबह से ही मांगने चली आई।"
" नहीं लाला, मैं मांगने नहीं, कुछ देने आई हूँ।"
"अरे वाह, शगुन देने आई है, रिश्तेदारों में नाम लिख लूँ।"
"लाला क्यों मजाक उड़ाते हो,हम गरीबों का "
चेन दिखाते हुए वह बोली: "यह बाहर कचरे में मिली।"
"अरे, यह तो कुंवर सा को द्वारचार में पहनाई थी।"
"यह लीजिये, और पहना दीजिए उन्हें। गहरी सांस लेते हुए उसने कहा: " मेरा चैन मेरे पास वापस।"
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क्रमांक -057


जीवन परिचय
जन्म :-     15 अगस्त 1955
शिक्षा :-     स्नातकोत्तर हिन्दी , कलकत्ता
विधा :-      लघुकथा , ग़ज़ल , कविता , निबन्ध
२०१५ से लघुकथा लेखन शुरू किया है ।
  कुछ लघुकथाएं कई पत्रिकाओं में ,  'सफर संवेदना का '  में , योगराज प्रभाकर जी की ' साहित्य कलश ' में , सतीश राठी जी की ' क्षितिज' में प्रकाशित हुई हैं । इसके अतिरिक्त अविराम साहित्यिक , व अन्य कई पत्रिकाओं में स्थान मिला है ।मातृभारती . कॉम की 'स्वाभिमान'की पुरुस्कृत रचनाओं में भी स्थान मिला है ।
मधुदीप गुप्ता जी की 'पड़ाव और पड़ताल ' के खण्ड 29 व खण्ड 30  में भी प्रकाशित होने का सौभाग्य मिला है ।
संपर्क :-    Harlalka Building ,H. N. Road,Dhubri
              Assam -783301
              Mobile  :-. 9706265667
               Email :-harlalkakanak@gmail.com
कनक हरलालका की प्रथम प्रकाशित लघुकथा 'घुटन'   वनिका पब्लिकेशन के प्रकाशन में डॉ 0 जीतेन्द्र जीतू  एवं डॉ0 नीरज सुधांशू के सम्पादन में ' सफर संवेदनाओं का ' लघुकथा संकलन में जनवरी -2017 में प्रकशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                            घुटन
        ऑटो रिक्शा चलाता था वह । आज चार दिन बाद वह रिक्शा ले कर निकला था । एक दर्द सीने में बार बार मरोड़ लेकर उठता था । कई दिनों से वह लगातार भाग दौड़ कर रहा था ।उसके इकलौते लाडले बेटे राजू को डेंगू हो गया था । उषका सपना था वह उसके जीवन का सार । आज चार दिन हो गये थे राजू उसे छोड़ कर चला गया था । डेंगू ने उसकी जान ले ली थी ।
      रिक्शे मालिक से एडवांस लेकर उसने राजू के इलाज में कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी थी 
  आज उसे निकलना ही पड़ा । पेट भी चलाना था , मालिक को चार सौ रोज देने पड़ते थे । ऊपर से एडवांस भी चुकाना ही था ।
  उसका मन कर रहा था आज अपना दुख किसी से बांट सके तो कुछ मानसिक सुकून मिले ।
       " रिक्शा , मिशन रोड चलोगे ? 
 उसने सवारी बैठा ली । मन फिर अनमना हो आया ।
" अरे ,अरे ! देख कर चलाओ । ध्यान कहाँ है तुम्हारा । एक्सिडेंट करोगे क्या ।" 
उसने मुड़ कर सवारी को देखा , दिल के आंसू आंख धुंधला कर गए ।
" वो क्या है न साहब ,मेरा दस बरस का बेटा राजू चार दिन हुए डेंगू से मर गया.... इसीलिए.....,,,,,।"
" अच्छा ,अच्छा ,जरा बांए लगा देना.. मुझे यहीं उतरना है .., कितना हुआ ..।"
 "अरे .रिक्शाआआआ , रुको रुको..।" एक महिला अपने दस बरस के लड़के को स्कूल छोड़ने जा रही थी । उसे राजू याद आ गया ।
" बड़ा प्यारा बच्चा है । क्या नाम है बेटा तुम्हारा । कौन सी क्लास में पढ़ते हो । " 
   "  अरे रिक्शा वाले भाई । आप जरा ध्यान देकर जल्दी पंहुचाओ न । बात बाद में कर लेना । पहले ही स्कूल में देर हो गई है । शॉर्ट कट ले लो । " " बेटा तुम्हारा पाठ याद है न । चलो ,एक बार दोहरा लो , मैं सुनती हूं ।"
  स्कूल पंहुचा कर वह किनारे खड़ा हो गया ।ऑफिस टाइम .। सभी व्यस्त । तभी दो बिजनेस मैन से लोग रिक्शा पर चढ़े । वे लोग सारे रस्ते माल , डिलीवरी ,पैसा आदि आदि बात करते रहे । उन्हें रिक्शेवाले से कोई मतलब ही नहीं था । बातों के बीच ही पैसे दिए और चले गए ।
    चौथी सवारी अपने मोबाईल में ही लगी रही ।
     रिक्शेवाले का दर्द उसके सीने में ही घुटता रहा । कोई नहीं था जिससे रोकर वह हल्का हो सकता । घर पर पत्नी का दुख तो उससे कहीं ज्यादा था । उसके सामने वह रोए तो कैसे ? 
    अब वह और नहीं चला सकता था । उसने एक गली में कुछ सुनसान सी जगह पर रिक्शा पार्क की । शायद कुछ देर भीड़ से अलग शान्ति पा सके ।
      उसने अपने टिफिन बॉक्स को देखा ,रोटियां निकाली । गले से निवाला तो क्या उतरता । देखा तीन चार आवारा कुत्ते गली में दोपहर का आराम फरमा रहे थे ।उसने रोटियां टुकड़े टुकड़े कर कुत्तों के सामने डालनी शुरू की , " लो ,तुम लोग ही खा लो , आज मुझे भूख नहीं है । मुझसे नहीं खाया जाएगा । मेरा राजू ,मेरा बेटा ,मेरा सपना आज चार दिन हुये डेंगू बुखार से मर गया है .......।"
 और वह फफक फफक कर रो उठा  !!!!!
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क्रमांक -058

जीवन परिचय
जन्म: 28 अगस्त,1958 (अजमेर- राज.)
सम्प्रति : प्रमुख मुख्य चिकित्सा अधिकारी (PCMO)
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र,सरवाड़ (अजमेर)
प्रकशित पुस्तकें :-
लघुकथा संग्रह- 'पीर पराई' 2017 में प्रकाशित
*कहानी संग्रह*:-
-'मन के रिश्ते' (1986)
-'सूर्योदय से सूर्यास्त' तक' (1987)
-'चाहत के रंग' (1998)
-'आखिर मन ही तो है' (2015)
-'डस्टबिन एवं अन्य कहानियाँ' (2018)
*उपन्यास* :
-'पराये आँसुओं का दर्द' (1996)
*किशोर उपन्यास*:
-'आँखों का तारा' (1991)
*कविता संग्रह* :
-'भरी दुपहरी में चाँद की तलाश' (2012)
-'कविता बन कर कह दूँ' (2017)
*नाटक* :
-'बेड़ियां' (2012)
*विविध विषयों पर पुस्तकें'* :
-''Easy English Learning' (1999)
-'ABC of 100 Common Drugs' (1999)
-'ताकि स्वस्थ रहें' (2000 व 2001)
-'कड़वे घूंट,मीठा सच' (2010)
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स्थायी निवास: 'कला रत्न भवन',
पाल बिचला,अजमेर(राज.)305007
मोबाइल: 9610540526
       डाँ. अखिलेश पालरिया के अनुसार प्रथम प्रकशित लघुकथा 'रिश्ते' 1987 में 'दैनिक नवज्योति' में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा : -
*रिश्ते*
मैं काॅलोनी में नया नया आया था।यह काॅलोनी स्वच्छता एवं भव्यता की दृष्टि से काफी अच्छी थी किन्तु शहर से दूर पड़ती थी।
काॅलोनी में एक छोटा किन्तु आकर्षक शाॅपिंग सेन्टर था,जिसमें परचूनी सामान की तीन दुकानें थीं,एक दूसरे से सटी हुईं।
आवश्यक घरेलू सामान के क्रय हेतु मैं प्रथम बार इन तीन दुकानों में से पहली में गया और दुकानदार को सामान की लिस्ट पकड़ा दी।
'इतनी बड़ी काॅलोनी में केवल ये तीन ही परचूनी की दुकानें हैं?'मैंने पूछा।
'हूं,' दुकानदार ने मुझे नया जानकर ऊपर से नीचे तक घूरा और रहस्योद्घाटन कर कहा,'साहब,बाकी दोनों तो चोर हैं।आप सामान यहीं से खरीदा करें।'
'बहुत अच्छा।' मैंने हां में हां मिलाई और घर लौट आया।
अगली बार जैसे ही पहली दुकान में घुसने को हुआ, दूसरी दुकान के मालिक ने संकेत से मुझे आमंत्रित किया।बिना सोचे समझे मैं दूसरी दुकान में प्रवेश कर गया।
अपना मत प्रकट कर वह बोला,'बाबूजी,अच्छा ही हुआ जो आप उधर न गए,वरना...'
' वरना..?' मुझे सकपकाया देख उसने सफाई दी,'आजू-बाजू वाले दोनों धूर्त हैं!अधिक दाम लेकर कम तोलने वाले लोग हैं ये।'
अगले महीने मैं घर से सोच कर निकला था कि इस बार सीधे तीसरी दुकान में ही जाऊंगा।न जाने क्यों,तीसरे की प्रतिक्रिया भी जानने की उत्सुकता बनी हुई थी।
प्रथम दोनों दुकानदारों के संकेतों से आकृष्ट हुए बिना मैं तीसरी दुकान में प्रविष्ट हुआ व सामान की लिस्ट आगे कर दी।दुकान मालिक ने बगैर कुछ कहे-सुने सामान पैक कर मुझे थमा दिया तो उसकी इस सरलता पर मुझे झुंझलाहट हुई।
मैंने बात छेड़ी,'अन्य दो दुकानों से आपकी दुकान अपेक्षाकृत बड़ी है!'
'साहब,वे दुकानें भी अपनी ही समझियेगा।' उसने प्रसन्नता व्यक्त कर कहा,'वे दोनों भाई जो हैं।'
अचंभित सा मैं दुकान के बाहर निकल आया।
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क्रमांक - 059

जीवन परिचय
जन्म तिथि: 24 अगस्त
शैक्षिक योग्यता:एम एस सी (रसायन विज्ञान), एम एड, पी जी डी एच ई, डिप्लोमा इन उर्दू, एम ए ह्यूमन राइट्स (मानवाधिकार), एम ए हिन्दी, पी एच डी
सम्प्रति: प्राचार्य (HES II) Govt. Sr. Sec School, Faridabad, previously Lecturer Chemistry
अनेक राज्यों की प्रतिष्ठा लब्ध संस्थाओं द्वारा श्रेष्ठ पुस्तक एवं कहानियां पुरस्कृत एवं साहित्यिक योगदान हेतु सम्मानित।
हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकुला द्वारा अनेक दफा कहानियां तृतीय दिव्तीय प्रथम पुरस्कृत। कहानी आप या मैं का नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा द्वारा मंचन। 2015 में कथा संग्रह तुम सुन रहे हो न हरसिंगा श्रेष्ठ कृति राज्य स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित।
विमल स्मृति कहानी प्रतियोगिता वडोदरा 2005, 2006 तथा 2009 में कहानियां प्रथम पुरस्कृत। नारी अस्मिता बड़ौदा दर्शाया सम्मानित। 2014, 2015, 2016, में साहित्य समर्था जयपुर द्वारा लघुकथा, कहानियां प्रथम पुरस्कृत 2018 में श्रेष्ठ कहानी पुरस्कृत। कादम्बिनी जबलपुर द्वारा लघुकथा संग्रह भविष्य से साक्षात्कार, श्रेष्ठ कृति पुरस्कृत। तनिमा उदयपुर शब्द प्रवाह संस्था उज्जैन द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान।
हरियाणा पंजाबी अकादमी पंचकुला द्वारा 2009, 2010, 2011 में लगातार पंजाबी कहानियां प्रथम पुरस्कृत।2010 में पंजाबी कविता संग्रह मुड़ परते दरिया राज्य स्तरीय श्रेष्ठ कृति सम्मान से मुख्यमन्त्री द्वारा
सम्मानित।
2011 में उर्दू कथा संग्रह धूप के रुपहले टुकड़े श्रेष्ठ कृति सम्मान से मुख्यमंत्री दर्शाया सम्मानित।
जगमग दीप ज्योति अलवर द्वारा 2016 में ,  शब्द शक्ति गुरुग्राम दर्शाया 2016 में पुनः 2018 में लघुकथाएं पुरस्कृत
अक्टूबर 2018 को कैथल में साहित्य सभा कैथल द्वारा सम्मानित।
जनवरी 2013 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर माननीय राज्यपाल हरियाणा श्री पहाड़िया जी द्वारा सम्मानित। 15 अगस्त 2014 में माननीय मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित।
रक्त दान हेतु तथा नेत्र दान अंगदान पर्यावरण संरक्षण नारी उज्जागरण एवं सशक्तिकरण  कन्या भ्रूण हत्या मानवाधिकार तम्बाकू निषेध AIDS क्षेत्रो में काम व सामाजिक कार्य में सक्रिय योगदान व उत्कृष्ट सेवाओं हेतु जिला प्रशासन एवं जिला उपायुक्त द्वारा अनेक दफा सम्मानित।
प्रकाशन: हाइकु संग्रह। शबनम उदास है
लघुकथा संग्रह भविष्य से साक्षात्कार, सुनहरे फ्रेम, सुनी- अनसुनी, रिश्ता मिट्टी दा
काव्य संग्रह   भोर का पैगाम, मुड़  परते दरिया,  बिखरे रंग (बाल कविताएं और गीत)
कथा/कहानी संग्रह   मैं क्या कहूं,
स्वागत जिंदगी, समन्दर से लौटती नदी, चीस, धूप के रुपहले टुकड़े, सुनहरा क़फ़स, महक मिट्टी दी, अमृत्या अधूरी नहीं, तुम सुन रहे हो न हरसिंगा, तमाशा, किकू दा घर
कुछ साहित्यकारों की पुस्तकों का पंजाबी अनुवाद मसलन डॉ रश्मि मल्होत्रा के काव्य संग्रह का व उपन्यास सलोनी का तथा आदरणीय मधुकांत के लघुकथा संग्रह अन्ही दौड़ का पंजाबी अनुवाद।
संकलनों में
हरियाणा महिला लघुकथा लेखन परिदृश्य में छः लघुकथाएं सम्मिलित
आधुनिक हिंदी लघुकथाएं में 2 लघुकथाएं शामिल
भावुक मन की लघुकथाएं में
पता : 348/14 ,फरीदाबाद-121007हरियाणा
          मो 9871084402
           Email: guptaindoo@yahoo.com
     डॉ इन्दु गुप्ता की प्रथम प्रकशित लघुकथा 'अनुभूति दर्द की ' दैनिक जागरण के साहित्यिक परिशिष्ट में 02 अगस्त 2004 को प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
अनुभूति दर्द की
अखबार में 'मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड' का 'तीन तलाक़' को हतोत्साहित करने के फैसले का विचार पढ़कर दिल में उठी हूक उसे अतीत में ले गई।
उसने नफीसा, ज़फर और सैफ़ को खाना खिलाकर सुला दिया था। अनवर रोज़ाना की तरह देर रात नशे में धुत्त होकर लौटा था। और फिर कुछ देर बाद उसने विस्फोट किया, "कल मैं अजरा से निकाह कर रहा हूं।" वह मुंह उठाए बहुत देर तक उसे फटी  आंखों से बस देखती रही थी फिर हो‌श पलटने पर बहुत रोई, चिल्लाई, रिरियाई भी....। आखिर में उस पर हिकारत भरी नज़र डालता हुआ अनवर चीखा था, "अरी जे क्या मातम की नौटंकी कर रई है तू, एक तो तुझे बतला के कर रिआ हूं फिर तुझे साथ ही रख रिआ हूं... वरना मुझे तो तीन दफे 'तलाक' बोलना है।"
पैसे की किल्लत, छोटे भाई-बहनों से भरे अपने मायके, अब्बू-अम्मी के चेहरों की बेबसी भरी लकीरों में तीन बार 'तलाक' लफ़्ज़ दोहराने की धमकी दहशत का कहर बरपा गई... और अनवर अजरा का शौहर हो गया।
अनवर की जांअजीज़ नफीसा का निकाह खाते-पीते शमीम से हुए करीबन डेढ़ बरस हुए थे जब अचानक ही अनवर ने अपने तीसरे निकाह का ऐलान किया।वह तो पहले ही पत्थर हो चुकी थी परन्तु अजरा खूब रोई-चिल्लाई, झगड़ी फिर अनवर की उम्र और अपने बच्चों का वास्ता देकर मिन्नतें भी कीं परन्तु तीन बार तलाक-तलाक दोहराने की धमकी ने उसे भी खामोश कर दिया था।
चार रोज़ बाद सुबह अनवर अपनी उम्र को खिजाब के मुलम्मे में छिपाने की कोशिश में मसरूफ था कि अचानक बदहवास हालत में रोते हुए नफीसा घर में दाखिल हुई फिर अनवर के कई पुचकार कर पूछने पर उसने बताया, "अब्बू! शमीम दूजा निकाह कर आए हैं, मैंने ऐतराज किया तो तलाक- तलाक़-तलाक कहकर तलाक़ दे दिया, अब मैं....."
"क्या...तलाक़... ऐसे कैसे....? अनवर सर थामकर धम्म से बैठ गया।
अचानक उसके दर्द की अनुभूति में उसकी उम्र गहरा कर झलकने लगी।
आह! लगता है आज इन धर्म के ठेकेदारों को भी आज ऐसी ही कोई अनुभूति हुई है। काश! यह बहुत पहले हो जाती।
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क्रमांक -060

जीवन परिचय
जन्मः-ः 2 अगस्त 1942
जन्मस्थानः-ः‘अस्मान खट्टड़’ (रावलपिण्डी, अविभाजित भारत)
मातृभाषाः-ःपंजाबी
शिक्षा ः-ललित महिला विद्यालय हल्द्वानी से हाईस्कूल, प्रयाग महिलाविद्यापीठ से विद्याविनोदिनी, कहानी
लेखन महाविद्यालय अम्बाला छावनी से कहानी लेखन और पत्राकारिता महाविद्यालय दिल्ली से पत्राकारिता।
लेखन विधाः-ः कविता, कहानी, गीत, ग़ज़ल, शोधलेख, लघुकथा, समीक्षा, व्यंग्य, उपन्यास, नाटक एवं अनुवाद
भाषाः-ःहिन्दी, उर्दू, पंजाबी, पहाड़ी (महासवी एवं डोगरी) एवं ओड़िया।
प्रकाशित पुस्तकेंः-1.काँटों का नीड़ (काव्य संग्रह), प्रथम संस्करण 1992, द्वितीय 1994, तृतीय 1997
2.एक और द्रौपदी ;काव्य संग्रह 1993द्ध
3.सागर से पर्वत तक ;ओड़िया से हिन्दी में काव्यानुवादद्ध प्रकाशन वर्ष ;2001द्ध
4.शजर-ए-तन्हा ;उर्दू ग़ज़ल संग्रह-2001द्ध
5.एक और द्रौपदी का बांग्ला में अनुवाद ;अरु एक द्रौपदी नाम से 2001द्ध,
6.प्रभात की उर्मियाँ ;लघुकथा संग्रह-2005द्ध
7.दादी कहो कहानी ;लोककथा संग्रह, प्रथम संस्करण-2006, द्वितीय संस्करण-2009द्ध,
8.गर्द के नीचे ;हिमाचल के स्वतन्त्रता सेनानियों की जीवनियाँ, प्रथम संस्करण-2007, द्वितीय संस्करण-2014द्ध,
9.हमारी लोक कथाएँ, भाग एक -2007द्ध
10.हमारी लोक कथाएँ, भाग दो -2007द्ध
11.हमारी लोक कथाएँ, भाग तीन -2007द्ध
12.हमारी लोक कथाएँ, भाग चार -2007द्ध
13.हमारी लोक कथाएँ, भाग पाँच -2007द्ध
14.हमारी लोक कथाएँ, भाग छः -2007द्ध
15.हिमाचल बोलता है ;हिमाचल कला-संस्ड्डति पर लेख-2009द्ध
16.सूरज चाचा ;बाल कविता संकलन-2010द्ध
17.पीर पर्वत ;गीत संग्रह-2011द्ध
18.आध्ुनिक नारी कहाँ जीती कहाँ हारी ;नारी विषयक लेख-2011द्ध
19.ढलते सूरज की उदासियाँ ;कहानी संग्रह-2013द्ध
20.छाया देवदार की ;उपन्यास-2014द्ध
21.द्वन्द्व के शिखर, ;कहानी संग्रह 2016द्ध
22. ‘हण मैं लिक्खा करनी’ पहाड़ी कविता संग्रह ;2017द्ध
23.चीड़ के वनों में लगी आग ;संस्मरण-2018द्ध उपन्यास छाया देवदार की अमेज़न पर।
उपलब्धियाँः-देश-विदेश की पत्रिकाओं में रचनाएँ निरंतर प्रकाशित, 1974 से आकाशवाणी एवं 1982 से दूरदर्शन के विभिन्न केन्द्रों से निरंतर  प्रसारण, भारत के विभिन्न प्रान्तों के साहित्य मंचों से निरंतर काव्यपाठ, विचार मंचों द्वारा संचालित विचार गोष्ठियों में प्रतिभागिता।
सम्मानः-उत्तराखण्ड सरकार का सम्मानित तीलू रौतेली पुरस्कार ;2016
पत्रकारिता द्वारा दलित गतिविधियों के लिए अ.भा. दलित साहित्य अकादमी द्वारा अम्बेदकर फैलोशिप ;1992 साहित्य शिक्षा कला संस्कृति अकादमी परियाँवां ;प्रतापगढ़द्ध द्वारा साहित्यश्री’ ;1994 अ.भा. दलित साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा अम्बेदकर ‘विशिष्ट सेवा पुरस्कार’ ;1994 शिक्षा साहित्य कला विकास समिति बहराइच द्वारा ‘काव्य श्री’, कजरा इण्टरनेशनल फ़िल्मस् गोंडा द्वारा ‘कलाश्री ;1996 काव्यधारा रामपुर द्वारा ‘सारस्वत’ उपाधि ;1996 अखिल भारतीय गीता मेला कानपुर द्वारा ‘काव्यश्री’ के साथ रजत पदक ;1996 बाल कल्याण परिषद द्वारा सारस्वत सम्मान ;1996 भाषा साहित्य सम्मेलन भोपाल द्वारा ‘साहित्यश्री’ ;1996 पानीपत साहित्य अकादमी द्वारा आचार्य की उपाधि ;1997  साहित्य कला संस्थान आरा-बिहार से साहित्य रत्नाकर  की उपाधि ;1998, युवा साहित्य मण्डल गा़ज़ियाबाद से ‘साहित्य मनीषी’ की मानद उपाधि ;1998, साहित्य शिक्षा कला संस्ड्डति अकादमी परियाँवां से आचार्य ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी’ सम्मान ;1998 ‘काव्य किरीट’ खजनी गोरखपुर से ;1998, दुर्गावती पफैलोशिप’, अ.भ. लेखक मंच शाहपुर ;जयपुर से ;1999, ‘डाकण’ कहानी पर दिशा साहित्य मंच पठानकोट से ;1999 विशेष सम्मान, हब्बा खातून सम्मान ग़ज़ल लेखन के लिए टैगोर मंच रायबरेली से ;2000। पंकस ;पंजाब कला संस्ड्डतिद्ध अकादमी जालंध्र द्वारा कविता सम्मान ;2000द्ध अनोखा विश्वास, इन्दौर से भाषा साहित्य रत्नाकर सम्मान ;2006द्ध। बाल साहित्य हेतु अभिव्यंजना सम्मान फर्रुखाबाद से ;2006द्ध, वाग्विदाम्बरा सम्मान हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से ;2006द्ध, हिन्दी भाषा भूषण सम्मान श्रीनाथद्वारा ;राज.2006द्ध, बाल साहित्यश्री खटीमा उत्तरांचल ;2006द्ध, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा महादेवी वर्मा सम्मान, ;2007द्ध में। हिन्दी भाषा सम्मेलन पटियाला द्वारा हज़ारी प्रसाद द्विवेदी सम्मान ;2008द्ध, साहित्य मण्डल श्रीनाथद्वारा ;राजद्ध सम्पादक रत्न ;2009द्ध, दादी कहो कहानी पुस्तक पर पं. हरिप्रसाद पाठक सम्मान ;मथुराद्ध, नारद सम्मान-हल्द्वानी जिला नैनीताल द्वारा ;2010द्ध, स्वतंत्रता सेनानी दादा श्याम बिहारी चौबे स्मृति सम्मान ;भोपालद्ध म.प्रदेश. तुलसी साहित्य अकादमी द्वारा ;2010द्ध। विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ द्वारा भारतीय भाषा रत्न ;2011द्ध, उत्तराखण्ड भाषा संस्थान द्वारा सम्मान ;2011द्ध, अखिल भारतीय पत्रकारिता संगठन पानीपत द्वारा पं. युगलकिशोर शुकुल पत्रकारिता सम्मान ;2012द्ध, ;हल्द्वानीद्ध स्व. भगवती देवी प्रजापति हास्य-रत्न सम्मान ;2012द्ध साहित्य सरिता, म. प्र. पत्रलेखक मंच बेतूल। भारतेंदु हरिश्चन्द्र समिति कोटा से साहित्यश्री सम्मान ;2013द्ध, महाराणा प्रताप संग्रहालय हल्दीघाटी से साहित्य रत्न सम्मान ;2013द्ध, विक्रमशिला विद्यापीठ द्वारा राष्ट्रगौरव सम्मान ;2013द्ध आशा शैली के काव्य का अनुशीलन ;लघुशोध, शोधार्थी मंजु शर्मा, निदेशक डॉ. प्रभा पंत-2014द्ध, उत्तराखण्ड बाल कल्याण साहित्य संस्थान, खटीमा ;जिल ऊधमसिंह नगरद्ध द्वारा ‘सम्पादक रत्न’ ;2014द्ध, हिमाक्षरा ;वर्धद्ध द्वारा उपन्यास ‘छाया देवदार की’ के लिए ‘सृजन सम्मान अलंकरण’ ;2014द्ध, अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन भोपाल से सुमन चतुर्वेदी सम्मान, उपन्यास ‘छाया देवदार की’ के लिए ;2015द्ध, हिमाचल गौरव सम्मान बुशहर हलचल एवं बेटियाँ फाउण्डेशन रामपुर बुशहर ;हिमाचल प्रदेशद्ध द्वारा ;2015द्ध तीलू रौतेली ;उत्तराखण्ड राज्य पुरस्कार-2016द्ध, महिला महाशक्ति सम्मान, नया उजाला कल्याण समिति हल्द्वानी द्वारा ;2016द्ध, ग्लोबल लिटरेरी सम्मान, मरवाहा फिल्मस् नोयडा ;दिल्ली 2016द्ध, साहित्य महारथी सम्मान अ.भा.आध्यात्मिक संस्था काव्यधारा रामपुर ;उ.प्र. 2017द्ध डॉ. परमार पुरस्कार, सिरमौर कला संगम द्वारा ;2017द्ध, देहदानी सम्मान वैश्य महिला सम्मिति हल्द्वानी एवं नगर पंचायत लालकुआँ-2017। कान्ता शर्मा राज्य स्तरीय सम्मान ;हिमाचल प्रदेश-2017द्ध अ. भा. सृजन सरिता परिषद् हिमाचल प्रदेश। स्वयंसि(ा सम्मान, बूईंग वीमन फलक देहरादून द्वारा ;2018द्ध, सरस्वती स्मृति सम्मान ;20018द्ध   
सम्प्रतिः-आरती प्रकाशन की गतिविधियों में संलग्न,
प्रधान सम्पादक, हिन्दी पत्रिका शैलसूत्र

वर्तमान पताः-साहित्य सदन, इंदिरा नगर-2, पो. ऑ. लालकुआँ, जिला नैनीताल ;उत्तराखण्ड -262402
मो.9456717150, 08958110859, 7055336168,

आशा शैली के अनुसार 1983 - 84 में प्रकशित प्रथम लघुकथा नया चित्र है ।
पेश है लघुकथा :-
                             नया चित्र
स्कूल की कापियों पर हर रोज एक नया चित्र बना देख टीचर कापियाँ गन्दी करने के अपराध में उंगलियों में पेन्सिल रख कर दबा देती। माँ भी कापियाँ देखने से बाज न आती और उसकी इस करतूत से खीज कर चिमटे से उंगलियों की सिंकाई करती। दसवीं तक पहुँचते-पहुँचते उसके चित्रों की प्रशंसा होने लगी थी।
घर में जिक्र करने का न तो उसमें साहस था और न ही कोई मार्ग, फिर भी बात उड़ते-उड़ते घर तक पहुँच ही गई, सो कालेज में दाख़िले के समय माँ ने स्पष्ट चेतावनी दे दी कि कालेज में फ़िजूल बातों का ख्याल छोड़ कर पढ़ाई में ध्यान देना होगा, किन्तु वह कभी-कभार एकाध चित्र बना कर सहपाठियों के हवाले कर ही देती।
इंग्लिश के प्रोफेसर स्वयं अच्छे कलाकार थे। वे स्वयं भी चित्रकला में काफी दख़ल रखते थे अतः उन्होंने एक प्रदर्शनी का आयोजन कर डाला।
प्रथम पुरस्कार स्वरूप चाँदी का कप ले कर घर पहुँचने पर एक हंगामा खड़ा हो गया। माँ को अनुभव हुआ कि यह तो उनकी स्पष्ट अवज्ञा है। क्रोध में कप छीन कर माँ ने उसके मुँह पर दे मारा।
माथे पर घाव लिए जब दूसरे दिन वह कालेज पहुँची तो सहपाठियों ने उसे घेर लिया।
‘‘क्या हुआ? ’’
‘‘चोट कैसे लग आई?’’
‘‘एक्सीडेन्ट हो गया क्या? चोट कैसे लग गई?’’ प्रश्नों की बौछार के बीच मुस्कराती हुई वह धीरे से बोली,
‘‘नया चित्रा बना है न?’’
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क्रमांक - 061

जीवन परिचय
जन्म तिथि- 5 फरवरी, 1969, लुधियाना
शिक्षा- स्नातकोत्तर हिन्दी
लेखन की विधाएँ - गद्य और पद्य दोनों में /अनेक पत्र/पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन
पुरस्कार- "शुभ तारिका" पत्रिका द्वारा मेरी कहानी "सात वचन" को 2017 में प्रकाशित कहानियों में तृतीय पुरस्कार
प्रकाशित पुस्तकें - सांझा संग्रह_ संदल सुगंध, लम्हों से लफ्ज़ों तक (काव्य संग्रह), लघुकथा कलश, सफर संवेदनाओं का,आसपास से गुजरते हुए, समकालीन प्रेम विषयक लघुकथाएँ (लघुकथा संग्रह)
Address : 445,New Kidwai Nagar,
                  Street No.Zero
                   Bhatia Flour Mills
                   Ludhiana 141008, Punjab
     सीमा भाटिया की प्रथम प्रकाशित लघुकथा "अहिल्या का सौंदर्य ' संतुष्टि सेवा मासिक पत्रिका ( पानीपत - हरियाणा ) मई 2017 में प्रकाशित हुई है ।
    
पेश है लघुकथा :-
अहिल्या का सौंदर्य
रीतिका के आने की खुशी में सारा घर चहक रहा था। आज पूरे एक महीने बाद आ रही थी। शादी के दो दिन बाद ही तो यूरोप चली गई थी हितेश के साथ हनीमून पर। रीतिका आई भी और सबसे खुशी खुशी मिली भी। हितेश उसे छोड़कर चला गया था कि शाम को दफ्तर के बाद लेने आ जाएगा। पर ऊर्मि को कुछ सही नही लग रहा था। रीतिका की मुस्कान के पीछे छिपी उदासी माँ की नजरों से नही छिपी थी। तो दोपहर के खाने के बाद जरा सा एकांत पाते ही पूछ लिया,"और खुश तो है न हितेश के साथ? कब से ज्वायन कर रही है तू? तेरी छुट्टी भी तो खत्म हो गई होगी?"
" नही मम्मी, सोच रही हूँ कि अब नौकरी न ही करूँ। वैसे भी हितेश का परिवार आर्थिक रूप से पूरी तरह सक्षम है, फिर फालतू में टेंशन क्यों लेनी?" रीतिका ने बनावटी मुस्कुराहट के साथ कहा।
" यह क्या बात हुई? शादी से पहले तो तू नौकरी छोड़ना ही नही चाहती थी कि इयनी पढ़ाई लिखाई का क्या फायदा जब घर ही बैठना? अब अचानक क्या हुआ? हितेश और उसके परिवार को भी शादी के समय तेरी नौकरी से कोई एतराज नही था।"ऊर्मि को तसल्ली नही हुई थी शायद बेटी के जवाब से।
"मम्मी सच बताऊँ तो हितेश शुरू से ही लड़कियों की नौकरी के खिलाफ हैं। शादी के लिए मेरी हामी भरवाने के लिए उन लोगों ने कोई एतराज नहीं किया।"
"पर यह क्या बात हुई?"
" मम्मी हितेश कहते कि लड़कियों का शादी के बाद नौकरी करना मतलब घर में कलह क्लेश को न्योता देना। और खासतौर पर खूबसूरत लड़कियों के पीछे तो सारा स्टाफ पागल रहता और ऐसे में कहीं न कहीं नाजायज रिश्तों की भी सम्भावना रहती। ऐसी सोच पहले ही है तो मेरे कमाए पैसे का क्या फायदा?"
ऊर्मि अवाक सी अपनी खूबसूरत बेटी का चेहरा देख रही थी जिस पर बेबसी के भाव साफ नज़र आ रहे थे। **
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क्रमांक 062

जीवन परिचय

जन्मतिथि     :     9 अप्रैल
शिक्षा   : एम०ए०बीएड०
संप्रति   : हिंदी विभागाध्यक्ष'ज्ञानविहार स्कूल'

जीवन उद्देश्य :-

जीवन को सकारात्मक सोच के साथ जिया जाकर सामाजिक सरोकारों को जीवन मे उतारकर हर शख्स के चेहरे पर मुस्कान लायी जाये।

सहभागिता:-
* दूरदर्शन व टी०वी० चैनल व आकाशवाणी में समय-समय पे वार्ता,काव्य पाठ
* राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय समाचार-पत्रों में लेख व कविता लेखन
* समाचार-पत्र व हिंदी पत्रिका संपादन कार्य

* प्रदेश समन्वयक: सम्पर्क संस्थान(रजि०)
* सह सचिव - राजस्थान लेखिका साहित्य संस्थान, जयपुर
* महासचिव:आल इंडिया सोशल मिडिया    यूजर्स फोरम(महिला शाखा)
*सक्रिय सदस्य-स्पंदन महिला साहित्यिक एवं शैक्षणिक संस्था,जयपुर
* सक्रिय सदस्य: पालनहार फाउंडेशन, जयपुर
प्रकशित काव्य :- 

*अनकहे शब्द  (एकल काव्य संग्रह)
* शब्द मुखर है (संपादन)
*तेरे मेरे शब्द (संपादन)
*सम्यक   (साझा काव्य संग्रह)
*अनुभूति  (साझा काव्य संग्रह)
*काव्य कुंजसाझा काव्य संग्रह
*अल्फाज़ के गुँचे  (साझा काव्य संग्रह)
*मुक्ताकाश  (साझा काव्य संग्रह)

सम्मान :- 
*साहित्य कर्मश्री अवार्ड 2018
*Wotfa अवार्ड 2018
*अपराजित सम्मान
*एक्सीलेंट अवार्ड
*अंतरराष्ट्रीय समरसता शिक्षक श्री अवार्ड
* राष्ट्रीय रतन अवार्ड
* नारी तुझे सलाम
* मातृ भाषा सम्मान
*  आदर्श राष्ट्रभाषा शिक्षक पुरुस्कार
* हिंदी लेखक सम्मान
* हुंकार सम्मान
* प्लस अचीवमेंट अवार्ड
सिंपली जयपुर प्रिंसिपल-टीचर अवार्ड
राष्ट्रीय महिला सम्मान 8 मार्च 2018
* आइडियल वीमेन अचीवमेंट अवार्डस        
*कर्मश्री अवॉर्ड 2018

पता : 

रेनू शर्मा 'शब्द मुखर ' की प्रथम प्रकशित लघुकथा दैनिक जागरण  में  03 फरवरी 2019 को प्रकाशित हुई है।


पेश है लघुकथा :-

                       सच्ची पड़ोसन 

अरे भाभी जी बहू की डिलीवरी सही से निबट जाए उसके बाद ही मैं चैन की नींद सोऊंगी।ज्यों-ज्यों नीता की डिलिवरी डेट करीब आती जा रही थी त्यों-त्यों जीतू की मम्मी परेशान लग रही थी।
  सच ही तो कह रही थी।घर पर काम करने वाली वह अकेली ही थी और वह भी पैरों से लाचार। घिसट-घिसट कर सारा काम करती थी।
 सारे रिश्तेदारों से मिन्नत कर चुकी थी कि बहू की डिलीवरी के लिए आ जाए, हॉस्पिटल में दो-चार दिन रह जाए पर सब ने बच्चों के एग्जाम, स्कूल,ऑफिस कुछ ना कुछ काम बता कर कन्नी काट ली थी।
 ठीक है भगवान के ऊपर डाल जीतू की माँ ने सोच लिया  ईश्वर जो करेंगे अच्छा ही होगा। अब किसी से जबरदस्ती तो कर नहीं सकती।
आज वह दिन भी आ गया ।जीतू रात 11:00 बजे घबराया हुआ आया कि आंटी मम्मी का ध्यान रखना ।मैं नीता को हॉस्पिटल ले जा रहा हूं उसके पेट में दर्द हो रहा है। कड़ाके की दिसम्बर की सर्दी और दोनों बच्चे अकेले। मैंने कहा कि रुक मैं भी चलती हूं ।तू अकेला क्या क्या करेगा नीता मेरी बहू नहीं क्या,मैं तेरी आंटी हूं, मैं रहूंगी अस्पताल में।तू चिंता ना कर कभी कभी खून के रिश्ते से बढ़कर दिल के रिश्ते होते हैं।
 खैर हम जल्दी ही अस्पताल पहुँच गए।डॉ०नीता को लेबर रूम में लेकर गए।
1 घंटे बाद प्यारी सी गुड़िया को कपड़े में लपेटे हुए मुझे लाकर गोद दिया कि बधाई हो। लक्ष्मी आई है। आप दादी बन गई।
 सच उस पल को मैं बयां नहीं कर सकती कि मुझे जो खुशी हुई ।मुझे लगा कि मैं सच  मेरे घर लक्ष्मी आ गई है।
 मैंने जल्दी से जीतू की मम्मी को फोन करके खुशखबरी दी कि वो एक परी की दादी बन गई है।जीतू की मम्मी आनंद से भर उठी उसने कहा कि आज से उस परी की 2 दादी हमेशा रहेंगी एक मैं और एक तुम ।
 सच भाभी जी आपने सच्ची पड़ोसन होने का फर्ज निभा दिया।
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क्रमांक -063

जीवन परिचय
जन्मतिथि - 05 फरवरी
जन्म स्थान - उत्तर प्रदेश
शिक्षा  - एम.ए., पीएच-डी
कार्यक्षेत्र  - शिक्षिका, लेखन कार्य (गद्य व पद्य विधा पर )
प्रकाशन संग्रह - चार साझा काव्य संग्रह
सम्मान- कई मंच द्वारा पुरस्कार व सम्मान प्राप्त ।
समाज सेवा - कई संस्थाओं से जुड़कर सामाजिक कार्य ।
* दर्जनों से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रपत्र वाचन ।
* लगभग सैकड़ों से ऊपर लेख व कविताए प्रकाशित ।
* 'मेट्रो दिनांक' हिंदी अखबार में         सह सम्पादक का कार्य ।
* कई पोर्टल साइड पर कविता, गजल, लेख, कहानी, लघुकथा प्रकाशित ।
पता : रुम नम्बर-102, ओम साई शांती अपार्टमेंट्स 'बी'
         गाला नगर, शिर्डी नगर, नीयर- क्रिस्तराज स्कूल,
        आचोले रोड,नालासोपारा (पूर्व)
        जिला- पालघर - 401209 
         मुंबई (महाराष्ट्र )
         मोबाइल - 9665168727
          ईमेल -drarchanadubey51@gmail.com
डॉ. अर्चना दुबे की प्रथम प्रकाशित लघुकथा "जानवर और इंसान" 'दिनप्रतिदिन' हिंदी समाचार अखबार अम्बाला - हरियाणा से 01 फरवरी 2019 में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
         *जानवर और इंसान*
      अरे साहब !  जानवर कह देने से कोई जानवर नहीं हो जाता है । आप लगता है कि इस बात को दिल से लगा लिये है । खैर छोड़िये..... हमें तो इंसानों में ही सब बुराई दिखाई देती है । जानवर तो बस नाम के जानवर है, उनके अंदर तो फिर भी अपने मालिक के प्रति वफादारी कूट कूट कर भरी हुई है । कुत्ता जैसा जानवर भी.....जिस घर का नमक खाता है, उस मालिक के प्रति वफादारी दिखाता है । इंसान में तो वफादारी नाम की कोई बात ही नहीं है । स्वार्थ में लिपटे पड़े हैं । अपने - अपनों के सुख को भी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं । जो प्रगति पथ पर है उससे द्वेष रखते हैं, चुगली और बुराई करते हैं । एक दूसरे की आड़ में खिंचाई करते है । मदत की भावना भी स्वार्थ भाव से करते हैं । इंसान इंसान को ही मारने को तैयार है । अधिक सुख वैभव, धन की चाह में भाई - भाई के दुश्मन है ।
भ्र्।ष्टाचार व रिश्वत सबके मन में समा गये है.....घोटाले पर घोटाला होता जा रहा है...... किसके द्वारा ? इंसानों के ।
        अब आइये......'जानवर' तो हम इंसानो से लाख गुना  अच्छे हैं । उनके अंदर रिश्वत, भ्र्ष्टाचार, चुगली और ईष्या की भावना तो नही है । एक दूसरे के सुख दुःख में वो एक जुट होकर अपने सुख दुःख का सांझा करते हैं । हम इंसानों से तो जानवर ही बेहतर जीवन जी रहे हैं । कम से कम  एकता का भाव तो उनके अन्दर है। वे जानवर जरूर है पर उनके अन्दर इंसानों जैसी दरिंदगी नहीं है । इंसानी समाज में बलात्कार जैसी घिनौनी घटनाएं दिन - प्रति दिन बढ़ती जा रही है । बहन बेटी को कोई पहचान नहीं पा रहा है । जानवर से भी बद्तर महिलाओं को नोचा जा रहा है । फिर भी वे इंसान हैं.....।
      नौकर द्वारा ऐसी समझदारी पूर्ण बातें सुनकर साहब ! चुप्पी साध लेते हैं । शायद उन्हें इंसानों व जानवर के बीच का अंतर समझ में आ गया हो ।  **
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क्रमांक -064

जीवन परिचय
नाम : कृष्ण बल्लभ राय,  साहित्यिक नाम : कृष्ण मनु , जन्मदिन : 04जून 1953, बरहमोरिया(बिहार),
शिक्षा : यांत्रिक  अभियंत्रण
प्रकाशित एकल लघुकथ संग्रह : -
पांचवां सत्यवादी
कहानी संग्रह : -
1.कोहरा छंटने के बाद
2. आसपास के  लोग
बाल कहानी संग्रह  :-
1. बीसवीं सदी का गदहा
2. प्रीति की वापसी
  3. बीरू की वीरता
 
सम्पादित लघुकथा संग्रह :-
हम हैं, यहाँ है
पता : पोद्दार हार्डवेयर स्टोर के पीछे ,मटकुरिया ,
         कतरास रोड ,धनबाद -826001 (झारखंड)
कृष्ण मनु की प्रथम प्रकशित लघुकथा 'मृगतृष्णा' गाजियाबाद संदेश में 1976 में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                      'मृगतृष्णा'
उसकी बगल में दबे मुड़े-तुड़े, फटे-बिखरे प्रमाण पत्र इस बात के प्रमाण थे कि वह कई वर्षों से दफ्तर-दर-दफ्तर दौड़ लगाता आ रहा था, पर नौकरी ऐसे 'रद्दी कागज' दिखाने से क्यों मिलने लगी जबकि उसके पास कोई 'जैक' न हो। हां,  उसे जब-तब आश्वासन जरूर मिल जाते थे जिस कारण उसके लड़खड़ाते पैरों में पुनः उत्साह भरा रक्त संचार होने लगता था और फिर वह दुगुने उत्साह से दौड़ लगाने लगता था। लेकिन ....
एकदिन स्थानीय  अखबार मेें उस युवक की मृत्यु का समाचार छपा,  साथ में यह पत्र भी कि किसलिए वह आत्महत्या करने को मजबूर हुआ।
उसके पत्र से कुछ नेताओं की अच्छी छीछालेदर हुई। जनता में रोष फैलने लगा ।
स्थिति को बिगड़ते देख स्थानीय एम एल ए द्वारा एक शोक सभा का आयोजन किया गया। सभा में कई राजनीतिक दलों ने इस घटना को दुखद बताया । एम एल ए भी बोले-" भाईयों, हमें इस युवक की मृत्यु पर खेद है। हम इस मृतक के परिवार की सहायता की भरपूर कोशिश करेंगे। इसलिए हमने एक समिति का गठन किया  है। जो कुछ भी धन एकत्र होगा, उससे युवक के परिवार को सहारा मिला सकेगा ।"
पता नहीं उस चंदे का क्या हुआ?  उस युवक की पत्नी व बच्चों को आज भी सड़कों पर भीख मांगते हुए देखा जा सकता है।#
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क्रमांक -065

जीवन परिचय
जन्म दिनांक व स्थान : 7 अक्तूबर, कपूरथला (पंजाब)

विधा : तुकांत , अतुकांत , हाइकु, वर्ण पिरामिड और लघुकथाएँ ।

शिक्षा : B.Com, PGDMM, MBA, M.A.(English), B.Ed

साँझा कविता संग्रह : -

सत्यम प्रभात, 
अनकहे जज्बात, 
मुसाफिर, 
स्त्री का आकाश, 
प्यारी बेटियाँ ।


सम्मान :-

 युग सुरभि सम्मान, 
 काव्य सागर सम्मान, 
 हिंदी सेवी सम्मान, 
 जय विजय रचनाकार सम्मान,
  काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान 

पता : 875 , सैक्टर - 9 & 11, इडस्ट्रीकल एरिया ,
          हिसार - हरियाणा

        अंजु गुप्ता की प्रथम लघुकथा " शिक्षा " ई - पत्रिका- लोकतंत्र की बुनियाद, जनवरी 2018 में प्रकाशित हुई है ।


 पेश है लघुकथा : -
                                  शिक्षा

लक्ष्मण बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि का था और बारहवीं कक्षा में पूरे जिले में प्रथम आया था । 

गाँव के मास्टर जी ने उसके माँ बाप से कहा -"बच्चा बहुत ही होनहार है । इसे आगे पढ़ाओ। ये तुम्हारा नाम रौशन करेगा । "

निरक्षर पर समझदार माँ - बाप ने जी भी अपना सब कुछ दाँव पर लगा कर उसे उच्च शिक्षा के लिए शहर भेज दिया। 

इधर शहर पहुँचते ही लक्ष्मण पर शहरी हवा का असर होने लगा। होनहार, हीरो के माफिक दिखने वाला लक्ष्मण, जल्द ही लक्की कहलाने लगा । 

काफी दिनों तक उसकी खबर न आने से परेशान, उसके बूढ़े माँ - बाप उसे मिलने उसके कॉलेज पहुँच गये। उनको देखते ही लक्की का रंग फक्क हो गया । दोस्तों के पूछने पर बोला - "दे आर ऑवर सर्वेन्टस। "
उसकी फ़र्राटेदार अँग्रेजी सुन माँ- बाप का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था । 

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क्रमांक - 066
जीवन परिचय
जन्मतिथि- 01 सितम्बर, 1946
जन्म स्थान- इटावा (ननिहाल) उ.प्र.
पिता- प्रो. आई.डी. दुबे
माता- श्रीमती माधवी दुबे
शिक्षा- एम.ए. हिन्दी (प्रथम श्रेणी), एम.ए. संस्कृत (प्रथम श्रेणी), पीएचडी
सम्बद्धता- अनेक संस्थाओं-संस्थानों की संरक्षक, ट्रस्टी, अध्यक्ष, सचिव, महासचिव, परामर्शक, आजीवन सदस्य, अनेक पत्र-पत्रिकाओं की संरक्षक, परामर्शक एवं आजीवन सदस्य.
प्रकाशन-
1. निबन्ध, समीक्षा, सन्दर्भ, कोश, साक्षात्कार, काव्य आदि से सम्बन्धित पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित एवं अनेक प्रकाशनाधीन.
2. पाँच हज़ार से अधिक लेख, निबन्ध, कविताएँ, साक्षात्कार आदि राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित.
3. अनेक पुस्तकों का भूमिकाएँ एवं समीक्षाएँ प्रकाशित.
4. अनेक राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सन्दर्भ-ग्रन्थों, इतिहास-ग्रन्थों, कोश ग्रन्थों में परिचय प्रकाशित.
स्वयं पर समीक्षात्मक-शोधात्मक कार्य-
1. डॉ. मिथिलेश दीक्षित की हाइकु रचनाधर्मिता को समर्पित ‘हाइकु भारती’ विशेषांक- 2001.
2. डॉ. दीक्षित की रचनाधर्मिता पर विभिन्न विद्वानों द्वारा आठ ग्रन्थ प्रकाशित.
पत्रकारिता-
1. ‘हाइकु लोक’ का सम्पादन.
2. 'अभिनव इमरोज़', ‘सुचिन्तन’ के विशेषांकों का अतिथि सम्पादन.
3. ऋता, ध्वनिता, मेधाविनी आदि का पूर्व सम्पादन.
शोधकार्य- डॉ. मिथिलेश जी के हाइकु साहित्य एवं क्षणिका साहित्य पर कतिपय शोधकार्य सम्पन्न. आकाशवाणी एवं वेबसाइट पर रचनाएँ प्रसारित/प्रकाशित.
सम्मान- पचास से अधिक सम्मान.
पता : जी-91, सी, संजयगान्धीपुरम्,
             लखनऊ (उ.प्र.) -226016
               मो - 9412549904
             ईमेल- mithileshdixit01@gmail.com
        डॉ. मिथिलेश दीक्षित के अनुसार प्रकाशित प्रथम लघुकथा 'बेचारा अन्धा ' 1985 में आगरा (उ प्र) से निकलने वाली पत्रिका 'शिक्षण संस्था ' में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                         'बेचारा अन्धा '
                        
मीरा  अप भाई-भाभी और  सहेली  के  साथ  फिल्म  देखने  गयी  थी ।फिल्म  शुरू
होने से  पहले  हॉल  में  कुछ
अँधेरा हो  गया ।तभी तीन-चार
लड़के  गेट के  अन्दर  आये  और उसी  ओर  बढ़ने  लगे । एक  लड़का  मीरा  की सीट  पर  ही  बैठने  लगा ।मीरा चिल्ला उठी । उसके  भाई  ने  उस  लड़के  को  पकड़ कर
पीटना शुरू  कर  दिया ।उस
लड़के  के  साथी  हाथ  जोड़कर माफ़ी  माँगने  लगे।
एक  कहने  लगा-"माफ़  कर दो,भाई  साहब  । इससे  गलती  हो  गयी। देख  नहीं  सका ।यह बेचारा  अन्धा  है  ।
जन्म से  ही  अन्धा है बेचारा ।
मीरा  को  तरस  आगया  उस
पर  ।उसने भाई  को  रोक  दिया । वे  लड़के  आगे बढ़ कर बैठ  गये ।फिल्म  शुरू  हो
गयी ।  सब  तल्लीनता  से  देखने  लगे  ।अचानक  मीरा  को कुछ ध्यान  आया  और  वह  भाभी  से  कह उठी-"अन्धा !  बेचारा  अन्धा  है,तो  फिल्म  देखने क्यों  आया !"
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क्रमांक - 067
जीवन परिचय
जन्मतिथि व स्थान- 13/01/1964, उज्जैन (मध्यप्रदेश)
शिक्षा- एम. एससी., एम. फिल., पीएच. डी. (गणित)
कार्यालय- प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष :गणित विभाग
शासकीय कालिदास कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, उज्जैन
परिचय:-  मैं गणित जैसे दुरूह विषय की विद्यार्थी एवं प्राध्यापिका रही हूँ। अंकों में उलझते हुए भी शब्दों से खेलते हुए सुकून की तलाश हमेशा रही है। लेखन, खालीपन में शौक के रूप में और किसी की पीड़ा से व्यथित हो मजबूरी के रूप में उभरा है। बचपन से ही मनोभावों को डायरी के पन्नों में छुपाने की आदत रही है, कविताओं के रूप में.. प्रकृति से राग और अपनों से अनुराग के कुछ पल, मानवीय संवेदनाओं में डूबा मन कभी खुश होता, कभी उदास.. कभी प्रेम में डूबा तो कभी अलगाव की पीड़ा से बेचैन.. जिंदगी के कई पहलुओं को नजदीक से जाना तो कुछ आज तक अनछुए ही रहे.. जीवन की संगति और विसंगति से उपजी रचनाओं में खुशी, उदासी, प्रेम, पर्व, अलगाव, संस्कार और अपनत्व जैसे जिंदगी के रंग भरने का प्रयास रहता है... !
प्रकाशन.. 1. काव्य संग्रह 'खुद की तलाश में'
               2. कथा संग्रह 'बर्फ में दबी आग'
सम्मान- 1. शर्मा 'नवीन' जयंती समारोह में मध्यप्रदेश साहित्य परिषद द्वारा काव्यपाठ हेतु पुरस्कृत।
2.पिट्सबर्ग से ऑनलाइन प्रकाशित अंतर्राष्ट्रीय द्वैभाषिक पत्रिका सेतु द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रतियोगिता 2016 में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ है।
3. विभिन्न साहित्यिक समूहों में साहित्यिक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
4. अखिल भारतीय स्तर पर साहित्य सारथी सम्मान 2018।
5. मातृभाषा उन्नयन सम्मान 2019।
6. अंतरा शब्दशक्ति सम्मान 2019।
पता :  22, निर्माण नगर, दशहरा मैदान, उज्जैन -मध्यप्रदेश
           ईमेल- drvg1964@gmail.com
           मोबाइल- 9827535043
डॉ वन्दना गुप्ता की  प्रथम प्रकाशित लघुकथा "स्फूमैटो" अर्द्धवार्षिक पत्रिका लघुकथा कलश के तृतीय महाविशेषांक जनवरी-जून 2019 में प्रकाशित हुई है।
पेश है लघुकथा :-
                  स्फूमैटो
       "सुनो! तुम्हें बारिश में भीगना पसन्द है न?"
"नहीं, मुझे बारिश में भीगना पसन्द था।" था शब्द उसने कुछ जोर देकर कहा और मैं खुद को उसका अपराधी महसूस करने लगा।

मेरी नज़र ड्राइंग रूम में लगी मोनालिसा की तस्वीर पर ठहर गयी। वह पहले मुस्कुरायी, फिर मुस्कान फीकी हुई और फिर हँसी गायब और चेहरे पर उदासी छा गयी। न जाने क्यों, मुझे अंशु और मोनालिसा के चेहरे में साम्य प्रतीत हुआ। शादी के चार साल तक अंशु के चेहरे पर मुस्कान खिली रहती थी। धीरे धीरे वह फीकी होती गयी।
"इस बार हम कपल गरबा खेलने चलेंगे।"
अंशु की बात को मैंने नकार दिया था "ये सब बकवास मुझे पसन्द नहीं।"
"किन्तु.. शादी के पहले तो आप.." उसके चेहरे पर उत्साह का रंग आश्चर्य और निराशा में बदल गया।
"मेरी भोली अंशु! तुम पहले प्रेमिका थीं अब पत्नी हो, और फिर तुमने कभी सुना कि मछली पकड़ने के बाद मछुआरे ने उसे गोली खिलायी?" कहीं सुना हुआ चुटकुला उछालकर खुद को विद्वान समझने की भूल में उसके चेहरे के बदलते रंगों पर मैंने ध्यान ही नहीं दिया था, या शायद अनदेखा कर दिया था।

अंशु.. उत्साह से लबरेज़ और जिंदगी को खुलकर जीने वाली, कब मेरी नज़रों से दिल में उतरती चली गयी, और उसे पाने के जुनून में खुद को भूलकर मैं उसके रंग में रंगता गया, कभी जान ही नहीं पाया। शादी के बाद मैंने अपना मुखौटा उतार फैंका। अब वह मुझे भारी लगता था, लेकिन मैं अंशु के चेहरे पर चढ़ते मुखौटे को देख नहीं पाया।
हम दोनों एक थे, किन्तु अलग अलग रंग में रंगे हुए। अंशु को पाना मेरा लक्ष्य था, पूरा हो गया। उसे खुश भी रखना था, भूल गया। क्या इसी अंशु से मैंने प्यार किया था? वह बदल गयी थी, इसका कसूरवार मैं था। मैंने उसे जो सब्जबाग दिखाए थे, उन्हें सूखता देख वह भी मुरझाने लगी थी।

"सुनो! मुझे तुम्हारे साथ बारिश में भीगना पसन्द है।" मैं अंशु का हाथ पकड़कर बाहर ले आया। हम दोनों हाथों में हाथ लिए रेन डांस कर रहे थे.. उसके चेहरे पर उदासी का रंग पानी में घुलकर बह रहा था.. उसके अंदर से वही पुरानी अंशु झाँक रही थी.. मैंने देखा एक नया रंग.. प्यार का, विश्वास का, उल्लास का....

........और फिर लियोनार्दो दा विंची को स्फूमैटो कौशल के लिए धन्यवाद देकर मैं अंशु के साथ उसी में खो गया..।
                       
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क्रमांक - 068
 
              जीवन परिचय
पिता: श्री रतन लाल
माता: श्रीमती पार्वती देवी
जन्म: 30-03-1974
शिक्षा: बीए ऑनर्स (प्रभाकर), कहानी लेखन महाविद्यालय, अंबाला छावनी से लेखन व पत्रकारिता के कोर्स।
सम्प्रति: सह-संपादक हिंदी पत्रिका 'शुभ तारिका' (मासिक), अंबाला छावनी व्यवस्थापक/प्रबंधक, 'कहानी लेखन महाविद्यालय', अंबाला छावनी
अभिरुचियाँ: पर्यटन, फोटोग्राफी, मित्रता, अध्ययन-मनन, नेक कार्यों में रुचि
लेखन: देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
विधाएं: लघुकथा, लेख, अन्य।
संपादन: -
1. शुभ तारिका (मासिक), सह संपादक।
2.   हर वर्ष प्रकाशित होने वाली 'पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलांग (मेघालय) की पत्रिका 'पूर्वोत्तर वार्ता' में स्मारिका का प्रबंध संपादक।
विशेष: विकिपीडिया पर वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियन द ग्रेट खली या दिलीप सिंह राणा पर एक लेख 'महाबली खली ने मचाई खलबली'।
सहभागिता: हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के 65वें अधिवेशन: विश्व भारती, शांति निकेतन (पश्चिम बंगाल) दिनांक 16 से 18 मार्च, 2013 को सक्रिय रूप से भाग लिया।
सम्मान: हिमालय और हिंदुस्तान फाउंडेशन, ऋषिकेश (उत्तराखंड) द्वारा पत्रकारिता एवं लेखन में उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मान- 2010
पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलांग (मेघालय) द्वारा 'केशरदेव गिनिया देवी बजाज स्मृति सम्मान- 2013
भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ, उत्तर प्रदेश की जिला सहारनपुर इकाई द्वारा आयोजित जिला सम्मेलन एवं संगोष्ठी के अवसर पर सम्मान- 2014
पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलांग (मेघालय) द्वारा 'श्री जीवनराम मुंगीदेवी गोयनका स्मृति सम्मान- 2015'
पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलांग (मेघालय) द्वारा 'अनूप बजाज युवा लेखक सम्मान- 2018'
सखी साहित्य परिवार, गुवाहाटी (असम) की ओर से साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए सम्मान।
प्रसारण: आकाशवाणी, शिलांग (मेघालय) से रचनाएं प्रसारित।
संपर्क: 103-सी, अशोक नगर (नजदीक शिव मंदिर), 
           अंबाला छावनी- 133001 (हरियाणा)
             मोबाइल: 09813130512
             ई-मेल: urmi.klm@gmail.com
       विजय कुमार की प्रथम प्रकशित लघुकथा " जन्मदिन " शुभ तारिका मासिक , अम्बाला छावनी - हरियाणा से फरवरी - 2008 में प्रकशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                        जन्मदिन

आज अमित का जन्मदिन था।
अमित के जन्मदिन की खुशी में उसके माता-पिता ने घर में कीर्तन रखा हुआ था। कीर्तन दोपहर को शुरू होकर शाम तक चला। शाम को अमित ने अपने पिता को केक लाने के लिए कहा। वह अपने दोस्तों के बीच अपने जन्मदिन का केक काटना चाहता था।
इससे पहले कि उसके पिता केक लेने जाते, घर आए हुए मेहमानों में से कुछ लोगों ने अमित के पिता को रोक दिया, "आज के दिन केक नहीं लाते।"
जब अमित ने यह सुना तो वह केक लाने की जिद करने लगा। तब मेहमानों ने उसे समझाया, "बेटा, घर में आज कीर्तन हुआ है। सभी लोगों ने भगवान का प्रसाद खाया हुआ है। केक में अंडा होता है। इसलिए केक नहीं खाना चाहिए।"
रात को खाने के समय बहुत से लोग खाने के साथ साथ मदिरा का सेवन भी कर रहे थे और नशे में झूम रहे थे। सभी नाच गाने में व्यस्त थे और मस्ती कर रहे थे, किंतु अमित दुखी मन से अपने पिता के साथ बैठा यह सब देख रहा था। ये वही लोग थे जिन्होंने अभी कुछ घंटे पहले केक में अंडा होने की बात कहकर अमित के पिता को केक लाने से मना कर दिया था।
अमित ने बड़ी मासूमियत से अपने पिता से पूछा, "पापा, क्या भगवान शराब के लिए मना नहीं करते?"
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क्रमांक - 069

जीवन परिचय
जन्मदिन   : 21 . 12 1953  
जन्मस्थान : ऋषिकेश , उत्तराखंड , भारत 
 शिक्षा : एम.ए     ( राजनीति शास्त्र ) , बी.एड
संप्रति : सेवा निवृत  हिंदी शिक्षिका, जयपुरियार सीबीएससी हाईस्कूल, सानपाड़ा नवीमुंबई ,
 मुख्याध्यापिका : श्री राम है स्कूल , नेरुल ,नवी मुम्बई . 
लेखन : लघुकथा लिखना २०१२ से शुरू किया .
लघुकथा प्रिय विधा है क्योंकि यह  भूमिका विहीन , एकहरी  विधा  जो कालखंड दोष से मुक्त होती है. 
मुम्बई , नविमुम्बई की लघुकथा गोष्ठी में इन कथाओं को सराहना   , मुम्बई  के स्कूलों में हिन्दी दिवस पर जज बनके जाती हैं तब कविताओं और लघुकथाओं से छात्रों को प्रेरित करती हैं. यही अपनी उपलब्धी मानती है
 अब तक ३० से ज्यादा लघुकथाएं लिखीं हैं 
विशेष उपलब्धी - अखिल भारतीय स्तर पर जैमिनी अकादमी द्वारा अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता मे  मेरी लघुकथा  " श्रद्धांजलि "को प्रथम स्थान मिला . ११०० रूपये चेक के साथ .वेब  पत्रिकाओं , पत्रिकाओं में , आकाशवाणी मुम्बई से साहित्यिक योगदान दे रही हूँ . 
कृतियाँ :प्रांतपर्वपयोधि (काव्य) ,दीपक ( नैतिक कहानियाँ),सृष्टि (खंडकाव्य),संगम (काव्य)   अलबम (नैतिक कहानियाँ) , भारत महान (बालगीत) सार (निबंध),(परिवर्तन ) सामाजिक प्रेरणाप्रद कहानियाँ।
पता : 19 ,द्वारका ,प्लाट - 31 , सेक्टर 9 A , वाशी ,
         नवी मुंबई  पिन कोड  - 400703
         फोन - 09833960213
          ईमेल : writermanju@gmail.com
         
       
      मंजु गुप्ता  के अनुसार  प्रथम प्रकशित लघुकथा " नवेली बहू की पहली होली " जनवरी - मार्च 2017 में  मरु नवकिरण , बीकानेर - राजस्थान से  प्रकाशित हुई है ।
         
पेश है लघुकथा :-
             नवेली बहू की पहली होली
' काश इन रंगों में मिलावट न होती बुदबुदाते रंजन ने रंजना के गाल  पर मरहम लगाते सहलाने में मगन हो गया ! '
गुजिया ,नमकीन , मिठाई , शक्करपारे आदि पकवानों की महक से सेठ उमेश का बंगला  ' उमा निकेतन ' महक रहा था। पसीना पोंछके सेठानी उमा ने नौकरानी के हाथ सेठ जी को सारे पकवान चखाने के लिए भेजे। हमेशा की तरह सेठ जी ने उमा के स्वादिष्ट पकवानों के तारीफों के पुल बाँध दिए। 
इस बार सेठ जी के बेटे रंजन बहू रंजना की शादी की पहली ,  विशेष  प्रेम के रंगीन सपनों की   होली थी। नवेली  बहू होली की रस्म जाने माता श्री के कहे अनुसार मायके से आयी मिठाई , नमकीन , बड़े - बड़े गुजे ( गुजिया ) जिनमें मावा - मेवा के साथ चांदी के सिक्के भरे थे। लाल साड़ी पहन सोलह श्रृंगार कर रंजना पूजा की तैयारी में जुट गई। सभी जने आम की लकड़ियों पर समिधा डाल हवन कर गुजे को होलिका की अग्नि में समर्पित कर ,चने की बाले भून कर यानी बुराई के अंकुर , असत्य वृति की होलिका को जला केऔर  पवित्र पंचामृत  का आचमन लेकर नयी नवेली  बहू रंजना ने सभी बड़ों के पैर छू ' दूधो नहाओ पूतो फलो ' का आशीर्वाद लिया। 
दूसरी ओर मैदान में नौकर अलग - अलग बड़े कढ़ाहों में मेहँदी  , टेसू , गैंदा , गुलाब , गुलमोहर ,, गुड़हल,  हार सिंगार के फूलों को उबाल , छान के रंगींन पानी में चंदन , केवड़ा , केसर , गुलाबजल मिलाके होली खेलने के लिए प्राकृतिक फूल - पत्तों के    रंगों से  भीना - भीना सुगन्धित रंगीन पानी  तैयार करने में जुटे हुए थे। कुदरती  रंगों की ,  गुलाल की भीनी - भीनी खुशबू आने - जाने वालों को, परिवेश को महका रही थी।
बच्चे ,रिश्तेदार , पड़ोसी , दोस्त ,दुश्मन भी भेदभाव , ऊँच - नीच ,अमीरी - गरीबी ,  मनमुटाव को  मिटा के एक दूसरे पर कुदरती रंगों के गुलाल , रंगीन सुगंधित धारों की प्रेम फुहारों से जमकर मस्ती से बौछारें कर रहे थे , साथ में पकवानों का आनंद ले रहे थे।
मधुरता - सरसता , समरसता की होली खेल सभी अपने घर चले गए । तभी रंजन - रंजना  उत्साहित कदमों से अपने हमउम्र दोस्तों के घर  लाल ,नीले , पीले हर्बल रंगों पाउडर की थैलियाँ ले के पहली  होली खेलने गए , तो रास्तों में रसायनिक रंगों की बौछारें , गुब्बारों की मार खाते , बचते - बचाते कैसे तैसे पहुंचे। दोस्तों ने एक दूसरे को होली की शुभ कामना दे गले लगाकर रंग लगाए। तभी रंजना के गुलाबी गाल पर मिलावटी रंगों से जलने लगे और एलर्जी से दाने - दाने उभर आए।
 रंग में भंग हो गया। 
ये मिलावटी , हानिकारक  नकली रंग होली मिलन को  विकृत कर रहे थे।
' काश इन रंगों में मिलावट न होती बुदबुदाते हुए रंजन ने रंजना के गाल पर मरहम लगाते सहलाने में मगन हो गया ! '
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क्रमांक - 070
जीवन परिचय
निवास - लंदन, यू.के.
स्थायी निवास - दिल्ली , भारत
जन्मतिथि -3 अप्रैल 1983 , कासगंज उत्तर प्रदेश
प्रकाशित पुस्तकें व पत्रिकाएँ - मंथन (साझा संग्रह ) , आस पास से गुज़रते हुए , नई सदी की धमक , पड़ावपड़ताल खंड ३०, लघुकथा कलश , पुरवाई , हिंदी चेतना व अन्य कई अख़बारों व पत्रिकाओं में लघकथाएँ प्रकाशित हुई हैं ।
वर्तमान पता - Flat 5, Central House ,
                    3 Lampton Road , Hounslow
                    TW31HY , London UK
                    Email -usha.chauhan@gmail.com
                    Mobile - +447459946476
स्थायी पता - 315 D पॉकेट C ,मयूर विहार , फ़ेज़ 2
                   नई दिल्ली 110091
                  
       ऊषा भदौरिया की प्रथम प्रकशित लघुकथा " विश्वास " 14  जनवरी 2017 को " दैनिक हमारा मेट्रो " नॉएडा -उत्तर प्रदेश से प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                              विश्वास
चार दिनो से वह वेन्टिलेटर पर थी। डॉक्टर्स हर सम्भव कोशिश कर रहे थे , पर सब बेकार जा रहा था। आई सी यू के बाहर उसके पति व रिश्तेदार परेशान चेहरे के साथ आते जाते डॉक्टर्स से हर सेकण्ड का हाल पूछने को तत्पर थे ।पर एक ही जवाब मिलता ,” अभी कुछ नहीं कह सकते।”
पास खड़ा आठ वर्षीय बेटा चिराग डॉक्टर के हाथ पकड़ कर रोता हुआ बोला, “ डॉक्टर अंकल, मम्मा को बोलिये चिराग भूखा है, देखना झट से वह उठ जायेगी। सोती हुयी मम्मा को मै ऐसे ही जगाता हूं हमेशा।”
सबकी आंखे नम थी।
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क्रमांक -071
जीवन परिचय
जन्म दिनांक व स्थान: 29-01-1974 उदयपुर (राजस्थान)
शिक्षा: पीएच.डी. (कंप्यूटर विज्ञान) 
सम्प्रति: सहायक आचार्य (कंप्यूटर विज्ञान)
यू आर एल:  http://chandreshkumar.wikifoundry.com
लेखन: लघुकथा, कविता, ग़ज़ल, गीत, कहानियाँ, बालकथा, बोधकथा, लेख, पत्र
प्रकशित :-
मधुमति (राजस्थान साहित्य अकादमी की मासिक पत्रिका), लघुकथा पर आधारित “पड़ाव और पड़ताल” के खंड 26 में लेखक, लघुकथा अनवरत (साझा लघुकथा संग्रह), लाल चुटकी (रक्तदान विषय पर साझा लघुकथा संग्रह), नयी सदी की धमक  (साझा लघुकथा संग्रह),  अपने अपने क्षितिज (साझा लघुकथा संग्रह), सपने बुनते हुए (साझा लघुकथा संग्रह), अभिव्यक्ति के स्वर (साझा लघुकथा संग्रह), स्वाभिमान (साझा लघुकथा संग्रह),
पता: 3 प 46, प्रभात नगर, सेक्टर-5, हिरण मगरी,
         उदयपुर (राजस्थान) – 313 002
         फ़ोन: 9928544749
        ईमेल:  chandresh.chhatlani@gmail.com
डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी के अनुसार प्रथम प्रकशित लघुकथा "  काले धन का मसीहा " राजस्थान पत्रिका ( जयपुर - राजस्थान ) वर्ष 2014  में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                        काले धन का मसीहा
दवाई की दुकान पर एक दर्द निवारक गोली खरीदते हुए रोहन बड़े फक्र से कह रहा था, “सुना शेखर, देश के प्रधानमंत्री किस बढ़िया तरीके से काला धन बाहर निकलवा रहे हैं। वो तो मसीहा हैं, इन सब ब्लैकमनी वालों को तो जेल में बंद कर देना चाहिए और सारा का सारा रुपया गरीबों में बाँट देना चाहिए।”
“बिलकुल सही, उन्होंने यह आव्हान भी किया है कि कुछ भी खरीदो उसका बिल ज़रूर लो, नहीं तो ये दुकानदार ब्लैक मनी कमा लेते हैं।” शेखर ने प्रत्युत्तर दिया।
“हाँ सही कहा, तो भैया जी आप भी बिल दे दो।”, रोहन बड़ी सजींदगी से दुकानदार से मुखातिब हुआ।
दुकानदार ने अगले ही क्षण कहा, “बिलकुल सर, लेकिन टैक्स अलग से लगेगा वो आपको देना होगा।”
“अरे नहीं! तो फिर रहने दो, फालतू पैसा नहीं है मेरे पास।” उस वक्त रोहन के दोनों हाथ उसकी पेंट की जेब में थे।
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  क्रमांक - 072
जीवन परिचय
जन्म : 19 जनवरी 1968, स्थान – बाग, जिला – धार ( म.प्र )
शिक्षा : एम.फिल, एल.एल.बी
व्यंग्यकार , लेखक , कवि , टिप्पणीकार, विश्लेषक एवं समीक्षक
आकाशवाणी – इन्दौर से कविताओं और बाल कथाओं एवं व्यंग्य वार्ताओं का नियमित प्रसारण
इन्दौर इंश्योरेंस इंस्टिट्यूट के द्वारा हीरक जयंति पर आयोजित निबन्ध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त ।
सम्मान : नई शिक्षा नीति हेतु आमंत्रित सुझावों में प्रथम पुरस्कार प्राप्त । मध्य प्रदेश शासन के तकनीकि मंत्री श्री दीपक जोशीजी के द्वारा सम्मानित
व्यंग्य संग्रह -- व्यंग्य बत्तीसी, नए नवेले व्यंग्य संग्रह में व्यंग्य प्रकाशित
पैशा : भारतीय जीवन बीमा निगम में प्रशासनिक अधिकारी
ब्लॉग - http://devendrasinghsisodiya.blogspot.in/
पता – 18 एवहर शाइन कॉलोनी,   नर्मदा आश्रम के सामने
        न्यू अग्रवाल नगर, बिचौली मर्दाना – इन्दौर ( म.प्र)
        मो . 91 94254-78044, 8839783636
           देवेन्द्रसिंह सिसौदिया की प्रथम प्रकाशित लघुकथा " शुभ मुहुत " 14 नवम्बर 2015 को दैनिक भास्कर की मधुरिमा में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                        शुभ मुहूर्त
        देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं ? दीपेन्द्र ने घर में घुसते ही बेटी पलक को आवाज लगाई। ‘पहले आंखे बंद करो, अब हाथ आगे लाओ।’ पलक ने ज्यों ही आंखे खोली देखा एक जोड़ सुंदर इयरिंग्स रखे हुए थे।
‘वाऊ पापा, मेरे लिए बर्थ डे गिफ्ट ? कितने सुंदर इयरिंग्स है।’कहकर वह मेरे गले से लिपट गई।
‘अच्छे लगे ना, चलो अब दादी से शुभ मुहूर्त पूछ कर पहन लेना इन्हें।’
‘अरे पापा,आपके इस प्यार से बढ़कर कोई और मुहूर्त हो सकता है भला? मैं इन्हे अभी तुरंत  पहनूंगी।’ कहकर उसने पुराने इयरिंग्स उतार कर उन्हें पहन लिए।
‘देखो पापा कितने प्यारे लग रहे है, है ना?’ मैं कुछ कहूं उसके पहले ही वह फुदकती हुई अपनी मां को इयरिंग्स  दिखाने चली गई। मेरी आंखो में अश्रु धारा छोड़ कर।
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क्रमांक -073
जीवन परिचय
 जन्म : 20 अक्टूबर 1967                                      
पिता : श्री कृष्ण कुमार                                                  
माता : श्रीमती प्रेमलता
शिक्षा : एम.ए. ( हिन्दी , अग्रेंजी , जनसंचार ) , पीएचडी हिन्दी
प्रकाशित पुस्तकें :-
कहानी संग्रह :-
रिसते रिश्ते
एक महाभारत और
तल्खियाँ
साहब का कुत्ता
कविता संग्रह :-
अहसासों की आँच
मैं फिर लौटूँगा
बड़ी होती लड़की
लघुकथा :-
सारांश
लघुदंश
लघुकथा हरियाणा
विशेष :-
1. हरियाणा साहित्य अकादमी
2. हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी सहित अनेक सस्थाओं से सम्मानित
3. आकाशवाणी व दूरदर्शन से रचना पाठ
4. सन्त निरंकारी मिशन से ब्रह्मज्ञान प्राप्ति
पता : कृष्ण-प्रेम , 508 , सैक्टर - 20 , शहरी सम्पदा
          कैथल - 136027 हरियाणा
          मोबाइल : 9812091069 / 8708897906
       डाँ. प्रधुम्न भल्ला के अनुसार प्रथम प्रकाशित लघुकथा " जवाब " 1988 मे साप्ताहिक पत्र पींग ( रोहतक - हरियाणा  ) से प्रकाशित हुई है :-
पेश है लघुकथा :-
                       जवाब
बस खचाखच भरी हुई थी। पांव रखने तक की जगह नहीं थी। मैं बड़ी मुश्किल से एक सीट ले पाया था।
"हटो, हटो, सभी पीछे हट जाओ, देखते नहीं साहब आ रहे हैं ?"
एक सिपाही लोगों को हटाता हुआ बस के पास आया। उसे दरवाजे की ओर बढ़ते देख दरवाजे पर खड़े लोग पीछे हट गए।
एक दो नीचे भी उतर गए। सिपाही ने बस के अंदर घुसकर पूरी बस का मुआयना किया। उसकी नजर एक बूढ़े पर जाकर ठहर गई। तीनों सीटों पर बूढ़ा, उसका लड़का और उसकी घरवाली बैठे हुए थे।
"चल बे, सीट छोड़ दे , यहां साहब बैठेंगे" । वह बूढ़े से बोला।
"बेटा, मैं बूढ़ा आदमी भला?
"अबे सुना नहीं , साहब बैठेंगे, जल्दी खड़ा हो"। सिपाही गुराया।
"क्यों साहब, हमने भी तो टिकट ली है?" अब की बार उसका लड़का बोला।
"अच्छा, अबे तेरी तो---" पुलिस वाले ने डंडे वाला हाथ लहरा कर उसकी तरफ बढ़ाया और किसी ने पीछे से उसकी पूरी ताकत से पकड़ ली, "बस साहब, हाथ आगे बढ़ाया तो हाथ तोड़ कर रख दूंगा, अपने हक के लिए लड़ना और ज्यादतियों के लिए हम पर उठे हाथ को तोड़ना हमें अच्छी तरह आता है"।
पुलिस वाले ने पीछे मुड़कर देखा तो कुछ लोग कमीजों की आसतीनें  ऊपर चढ़ा रहे थे। पुलिस वाला चुपचाप नीचे उतर गया।
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                              क्रमांक -074
जीवन परिचय
      जन्मतिथि - 07 - 07 - 1955
      स्थान - उरई (उ.प्र.)
      शिक्षा - एम.ए.(राजनीति शास्त्र, समाज शास्त्र), एम.एड.
       साझा काव्य संग्रहों एवं साझा लघुकथा संग्रहों में प्रकाशन ।
पता : 71, पीडब्ल्यूडी हाउसिंग सोसायटी, सहकार नगर ,  
         रावतपुर गाँव , कानपुर - 208019  उ.प्र.
          मो. 9936421567
         
          रेखा श्रीवास्तव की प्रथम प्रकाशित लघुकथा 'श्राद्ध' इंदौर से प्रकाशित पत्र 'नई दुनियाँ' की पत्रिका 'नायिका' में  17 सितम्बर 2016  में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                                 श्राद्ध
                                
        पंडित जी श्राद्ध करवा रहे थे कि जजमान के बड़े भाई का नौकर आया और बोला - " पंडित जी साहब बुलाए हैं। "
"अभै आउत हैं , जा श्राद्ध तो पूरो करवाय दें।"
    पंडित जी आश्चर्य से - 'आज तक तो कभी बड़े भैया ने कथा वार्ता भी न करी,  आज अचानक कौन सौ काम आ गयो।'
           पंडित जी उनके परिवार में जमाने से पूजा पाठ करते चले आ रहे हैं । सब जानते हैं कि छोटे भाई और बड़े भाई दोनों विरोधाभासी है। एक सरकारी मुलाजिम गाड़ी बंगले वाला और अमीर घराने की पत्नी वाला। दूसरा अपने काम धंधे वाला सादा रहन-सहन , साधारण घर की पत्नी थी । सास-ससुर के साथ रही और उनका बुढ़ापा सँवार दिया । उन दोनों में कोई मेल नहीं।
         पंडित जी पहुंचे तो साहब ऑफिस के लिए तैयार थे - "पंडित जी अब आए हैं आप , मुझे ऑफिस की जल्दी है।"
' श्राद्ध छोड़ कर तो आय नईं सकत ते हाँ खाना छोड़कर आ गये ।"
        "पंडित जी मैं भी श्राद्ध करवाना चाहता हूं, उसके लिए क्या करना होगा? रोज रोज नहीं सब एक साथ हो जाए ।"
  " जजमान श्राद्ध कराओ नईं जात खुद करने पड़त है और जा साल तो हो नहीं सकत काय के जा साल बाबूजी की तिथि तो आजई हती।"
      " अगले साल पंडित जी ऐसा काम करना कि दोनों की एक साथ हो जाय और मुझे रोज रोज छुट्टी भी ना लेनी पड़े ।"
        " देखो जजमान अमावस को दिन ऐसो होत है कि सब पुरखन की हो सकत है ।"
        "सब पुरखों की एक साथ हो जाती है तो आप उसी दिन करवा देना । पंडित जी मैं भी ऐसा ही चाहता हूं।"
           "लेकिन वा उनके लाने होत है जिन्हें अपने पुरखन की तिथि पता नहीं होत।"
        "अरे एक ही दिन में निबटा दीजिए ना, ऑफिस वाले पूछने लगे हैं कि साहब आपके यहाँ श्राद्ध नहीं होती है ?  वैसे मैं इन सब चीजों में विश्वास नहीं रखता , लेकिन दिखावे के लिए भी कुछ करना पड़ता है । "
" देखो जजमान पुरखन में 15 दिन पानी दओ जात है और  नियम धर्म कौ पालन करने पड़त हैं । अगर कर सको तो अगले साल करवाई ।"  
       "देखो पंडित मेरे पास समय नहीं रहता और ना ही मेरी पत्नी के पास।  इसीलिए अम्मा बाबू छोटे के पास रहे और छोटे ने उनकी देखभाल की । मैं छोटे की तरह नहीं कर सकता था और न मेरी पत्नी ।"
        "जजमान तुम तो वई काम करत हो जो पुरखा कह गए - 'जियत न दीने कौरा ,  मरे उठाए चौरा'                             "इसका मतलब ?"
"कछु नहीं , अब अगले साल करियो तो सब रे प्रसन्न हो जैहे।"
   "वही तो मैं शॉर्टकट कह रहा था कि पुरखे भी प्रसन्न हो जाए और ज्यादा ढोंग ढम्पाड़ भी ना करना पड़े । अच्छा पंडित जी अब चलता हूं , अगले साल आपको बुला लूंगा ।"
         पंडित जी मन ही मन मुस्कराए कि अगर ऐसी सब औलादें हो जायें तो पुरखन को कोऊ नाम लेवा न बचे ।
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क्रमांक - 075

जीवन परिचय
जन्म         : 15.03.1963
जन्म स्थान: मिर्ज़ापुर, उत्तर प्रदेश
शिक्षा         : स्नातक विज्ञान
पहली रचना मनोरमा अप्रैल प्रथम 1994 में और पहली कहानी मनोरमा के ही जुलाई प्रथम 1994  में छपी है ।इसके  पश्चात  सरिता, गृहलक्ष्मी, मेरी सहेली, वनिता, गृहदेवी आदि पत्रिकाओं में 2004-05 तक कई कहानियां छपीं है ।फिर कतिपय निजी कारणों से लेखन जारी नहीं रह सका है ।
2017 में लघुकथा के परिंदे के साथ जुड़ने के बाद लघुकथा लेखन में पुनः रुचि जागृत हुई है ।   लघुकथा के परिंदे, प्रतिलिपि, स्टोरी मिरर इत्यादि ग्रुप में लगातार सक्रिय है ।
लघुकथा संग्रह में प्रकाशित : -
नई सदी की धमक
दृष्टि
सहोदरी सोपान - 5
पता : अचल, जस्टिस नारायण पथ , नागेश्वर कालोनी,  
         बोरिंग रोड , पटना- 800001 बिहार
          मोबाइल     : 9334111164,
          ईमेल : shrutipatna6@gmail.com
             श्रुत कीर्ति अग्रवाल की  प्रथम प्रकाशित लघुकथा " कौआ मुँडेर पर " 2018 में दिशा प्रकाशन दिल्ली से " नई सदी की धमक' ( लघुकथा संकलन : मधुदीप ) में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                          कौआ मुँडेर पर
मुँडेर पर कौआ काँए काँए किये जा रहा था। मन अनसा गया उनका..... चुप हो जा नासपीटे, अब नहीं अच्छा लगता किसी का आना-जाना। आज कल तो वो अपनी जिंदगी का लेखा-जोखा ले कर बैठी हुइ हैं कि क्या ठीक किया और क्या गलतियों कीं। छोटी उमर में ब्याह कर आईं और जान लगाकर सास ससुर , नन्द देवर की सेवा में जुट गईं। जो अपने आप को कभी कोई अहमियत नहीं दी तो भगवान ने भी बड़ाई प्रशंसा देने में कभी कोई कसर नहीं रखी।
फिर समय बदला कि धीरे धीरे वो घर के लोग रिश्तेदार में बदल गए और अपने दो बेटे जवान होने लगे। फिर एक वो भी दौर था कि पति , जिनको वो हमेशा राजा बाबू पुकारती थीं, हमेशा दोस्त यारों से घिरे रहते, हर समय लोगों का आना जाना लगा रहता..... और वो रोज नये नये व्यंजन बना कर सबके सामने पेश करती रहतीं और लोगों के मुँह उनकी बड़ाई करते न थकते। पैसों को तो राजा बाबू ने कभी अहमियत दी ही नहीं... सबकी मदद भी खूब की और नाम भी खूब कमाया। ऐसे शानोशौकत वाले अपवे राजा बाबू को वो भला कुछ करने से क्यों रोकतीं ? उन दिनों कोई उन्हे अन्नपूर्णा पुकारता था तो कोई शारदे माँ....
इतना सारा प्यार , स्नेह , आदर मान कमाने के बावजूद आज अपना आँचल खाली खाली सा क्यों लगने लगा है? कैसी करवट ली समय ने इसबार कि कोठी बेचकर यहाँ नये शहर में आकर रहना पड़ा..कि दोनों बेटे पढ-लिख कर बाहर रहने लगे और अब किसी के पास बूढे-बुढिया के लिये समय नहीं है.... कि पिछले दिनों राजाबाबू को पैरालिसिस की बीमारी हो गई और इन नई परिस्थितियों में न वह डाक्टर अस्पताल सँभाल पा रही हैं न रूपये पैसों का हिसाब किताब उनकी समझ में आता है। जिस पति ने कभी उनकी आँख में एक आँसू बर्दाश्त नहीं किया अब निष्ठुर हो कर सुबह शाम रूला रहा है।
......लगता है आज कौए ने झूठ नहीं बोला था .... ये कौन नई उमर की दुबलीपतली सी लड़की दरवाजे से अंदर आई है..... "मैं झुमकी हूँ रानी सा .... पहचानिये मुझे । जगदम्बा बाबू की बेटी। आप एक बार मेरे लिये जयपुर से पायल की जोड़ी ले कर आई थीं... आपने मुझे घेवर बनाना भी सिखाया था।"..... याद आ गया उनको। इन जगदम्बा लाल को राजा बाबू ने तीन बार पैसे दे देकर व्यापार शुरू कराया था पर कभी उनका काम नहीं जमा। फिर बेटी की पढाई लिखाई के चक्कर में वो लोग गाँव छोड़ कर पता नहीं कहाँ चले गये थे। वो बोले जा रही थी....
"हम लोग गाँव गये तो वहाँ कक्का की हालत के बारे में पता चला। मैंने डाक्टरी की है रानी सा.... मैं अगर इसी शहर में ट्रांसफर ले लूँ तो क्या आप मुझे अपने घर में रखेंगीं?" ....... और वो अवाक् सी कभी उस लड़की को तो कभी उसका संदेशा लाने वाले कागा को देखे जा रही थीं।
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क्रमांक - 076

जीवन परिचय
जन्मदिन – २६ नवम्बर
जन्म स्थान – शोलापुर महाराष्ट्र
शिक्षा – एम.ए. हिंदी , अर्थशास्त्र ,एम.एड., पी-एचडी.
सम्प्रति – प्राचार्य निजी महाविद्यालय
लेखन : लेखन तो १९८७ से शुरू हो गया । तब कोलेज की पत्रिका ‘संचयिका’ में एक छोटी सी कथा प्रकाशित हुई थी जिसे हमारे सर ने लघुकथा बताया था (यद्यपि उस समय मैं लघुकथा से परिचित नहीं थी ) ‘आशा भली न निराशा’ आज के दौर में कहें तो वह मानवेत्तर लघुकथा कही जायगी
उद्देश्य :  मुझे लगता है आज सभी के पास समय का अभाव है और तात्कालिक बढती विसंगतियों को लघुकथा के पैमाने में ढालकर बेहतर तरीके से पाठकों तक पहुंचाया जा सकता है | अन्य विधाओं में भी मेरा लेखन समकक्ष है |
लगभग ३८० पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं ।जिनमें प्रकाशित – ज्ञानोदय , समावर्तन, आधुनिक साहित्य , साहित्य अमृत , शुभ-तारिका , लघुकथा कलश , साँझा बाती, सम्भावना सुरभि ,क्षितिज , अमेस्टेल गंगा (न्यूजीलेंड ) सेतु (पिट्सबर्ग अमेरिका ) संरचना (चीन ) परिंदों के दरमियाँ, मिन्नी , गोसाई, आदि प्रमुख है । कई लघुकथाओं का पंजाबी भाषा में भी अनुवाद प्रकाशित हुआ है |
लघुकथा क्षेत्र में उपलब्धियां –
• राष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता में मेरी लघुकथा पुरस्कृत |
• लगभग २० से २२ लघुकथाओं को श्रेष्ठ लघुकथा के रूप में प्रशस्ति पत्र तथा कई स्थानों पर समान राशि प्रदान |
• बाल मनोविज्ञान पर आधारित लघुकथा संग्रह ‘ तितली फिर आएगी,  को राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ कृति के रूप में पुरस्कृत |
• लघुकथा संग्रह प्रकाशित -
मूल्यहीनता का संत्रास (स्त्री विमर्श )
बाल मनोविज्ञान पर : तितली फिर आएगी
लकी हैं हम
• पौराणिक सन्दर्भों महाभारत पर लघुकथा संग्रह “गांधारी नहीं हूँ मैं” प्रकाशनार्थ )
• देश के १8 लब्ध लघुकथाकारों का साक्षात्कार अलग- अलग प्रश्नों के साथ (२५8 प्रश्न) विभिन्न पत्रिकाओं में सतत प्रकाशित |
• लघुकथा पर कई लेख एवं व्याख्यान दिए एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित |
• लघुकथा पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी पूना महाविद्यालय में शोध छात्र-छात्रों को लघुकथा सम्बन्धी जानकारी और बतौर स्तर अध्यक्षता की भूमिका |
• विशेष उपलब्धि –प्रथम कृति ‘मैं बरगद’ को गोल्डन बुक ऑफ़ रिकोर्ड में स्थान | ३ अंतराष्ट्रीय सम्मान  एवं  २९ राष्ट्रीय व राज्यस्तरीय सम्मान |
• शिक्षा व साहित्य की अन्य विधाओं पर लगभग ५० पुस्तकों का लेखन |
सम्पर्क :  ७३ यश विला , भवानी धाम फेस-१ , नरेला शंकरी , भोपाल -४६२०४१ मध्यप्रदेश
           मोबाईल – ९९२६४८१८७८
       डॉ लता अग्रवाल की प्रथम प्रकाशित लघुकथा  ‘आशा भली न निराशा’  शासकीय कला एवम वाणिज्य महाविद्यालय ( हरदा - मध्यप्रदेश ) की पत्रिका ‘प्रत्यंचा’ में 1987 में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                      ‘आशा भली न निराशा ’ 
“ क्या हुआ तुम दोनों बहुत दु:खी दिखाई दे रही हो ? कौन हो तुम ? यहाँ कैसे आई ?” कर्म ने कालेज की बेंच पर बैठी दो युवतियों को व्यथित बैठे देख कर पूछा |
“सर मेरा नाम निराशा है | मैंने इसी कालेज से स्नातक की डिग्री ली है | मुझे हर बात / काम में निराशा खोजने और भरने की लत है |”
“तो ?”
“तो ..., क्या कहूँ सर, जब जीवन क्षेत्र में प्रवेश किया तो मेरी इस लत को सभी ने सिरे से ख़ारिज कर दिया ...और मुझे दुत्कारते हुए अपने जीवन और कार्य क्षेत्र से बाहर निकाल फेंका |”
“हुम्म !!!..और तुम ...तुम अपना परिचय दो , तुम किसी बात पर दुखी हो , यहाँ क्यूँ बैठी हो ?”
“सर ! हम दोनों पक्की सहेलियाँ हैं , इसी कालेज में एक साथ पढ़े हैं | मेरा नाम आशा है |”
“अरे ! फिर तो तुम्हें दु:खी नहीं होना चाहिए , निराशा का दुखी होना समझ आया किन्तु तुम ...!”
“सर ! मैं शुरू से बहुत अधिक उत्साहित रही हूँ , मैं निराशा में भी आशा का दामन नहीं छोड़ती |”
“फिर क्या परेशानी है ?”
“सर , कुछ लोग जो बहुत निराशा से घिरे थे , उनकी सफलता के सारे रास्ते बंद हो गये थे , मैं फिर भी उन्हें आशा की सीढ़ियाँ चढाती रही परिणाम वे गिर गये और जो चोट लगी उससे वे कभी नहीं उभरे | सो उनके परिजन ने मुझे बहुत अपमानित कर निकाल दिया |”
“इसीलिए कहते हैं न आशा भली न निराशा |” (एक लम्बी साँस छोड़ते हुए ) कर्म अपने पथ पर बढ़ गया |
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क्रमांक - 077

जीवन परिचय
पिता  :    श्री सी.एस. शिशौदिया 
जन्म  :   ५ मई, १९७१ उत्तर प्रदेश 
शिक्षा  :   एम. ए., बी.एड. पी एच. डी. (हिंदी साहित्य)
शोधग्रंथ  : हरियाणवी एवं राजस्थानी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन 
कार्यक्षेत्र  : हिंदी अध्यापिका एवं लेखिका,सिनर्जी  व भाषा भारती पत्रिका का संपादन कार्य, इंद्रप्रस्थ लिट्रेचर फेस्टिवल की गुरुग्राम इकाई की अध्यक्ष, साहित्यिक सचिव एवं उप-संपादिका, हिंदुस्तानी भाषा अकादमी/ कार्यसमिति सदस्य,प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन/ गुरुग्राम महामंत्री, राष्ट्रीय महिला काव्य मंच गुरुग्राम।

लेखन :   काव्य के सप्तरंग-काव्य संग्रह, सात साझा संग्रह (लघुकथा व कविता),  हिंदी  साहित्य   एवं   व्याकरण लेखन  (कक्षा एक  से बारहवीं  तक पाठ्य  पुस्तकों  में   बाल साहित्य), शोध-पत्र, कहानियाँ, लघुकथाएं, विविध  कविताएँ  एवं  लेख  आदि    बाल एकांकी संग्रह, लघुकथा संग्रह प्रकाशाधीन,
संपादन : शब्दगाथा-2(समीक्षा पुस्तक)प्रकाशक-हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, कृति एवं एक्सीड प्रकाशन में विविध हिंदी पाठ्य पुस्तकों का संपादन एवं लेखन कार्य।     पिछले १२ वर्षों से  पत्रिका आदि का संपादन कार्य।   
सम्मान : आदर्श राष्ट्रभाषा शिक्षक पुरस्कार, राष्ट्रीय भाषा-भूषण पुरस्कार, हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, नई दिल्ली द्वारा समीक्षक और शब्द साधना काव्य प्रतिभा सम्मान, हिंदी की गूँज संस्था, नई दिल्ली द्वारा 2018 का हिंदी साहित्यकार सम्मान,शब्द सुमन साहित्यिक संस्था, बस्ती द्वारा हिंदी गौरव पुरस्कार, शब्द
साहित्यिक संस्था, गुरुग्राम द्वारा लघुकथा स्वर्ण सम्मान एवं पुरस्कार आदि।
अनुवाद : भारतीय कला का इतिहास एवं सौंदर्य (अंग्रेजी से हिंदी में)
पता :     आरडी सिटी, सैक्टर – 52गुरुग्राम (हरियाणा )
             दूरभाष - 9810723610
             ई-मेल – rbeena2012@gmail.com 
       डॉ. बीना राघव की प्रथम प्रकाशित लघुकथा " मासूम सबक " 2017 में  साहित्यकलश ( पटियाला - पंजाब ) में प्रकाशित हुई है ।
      
पेश है लघुकथा :-
                          मासूम सबक
                         
आज फिर सब खाने की मेज़ पर इकट्ठा थे। उनका छोटा सा परिवार था। पति-पत्नी के अलावा घर में दो लोग और थे- उनका बेटा राहुल तथा दादा जी। राहुल दस वर्ष का बालक था। वे यूँ तो खुशहाल परिवार में ही आते थे , किसी बात की कमी नहीं थी किंतु कहीं न कहीं दिल की संवेदनाएंँ कमजो़र पड़ रहीं थीं।
" ओहो पापा जी! आप कैसे खाना खाते हो? आज फिर गिरा दिया। समीर देखो न।"  सुरभि लगभग चिल्लाकर बोली। समीर ने उखड़ी निगाहों से दादाजी को देखा। दादाजी ने खुद को कंपकपाते हाथों से संभालने की बहुत कोशिश की मगर बुढ़ापे का शरीर... लाचारी का नाम है...बूढ़ा बाप जो किसी समय अच्छा खासा नौजवान हुआ करता था, आज बुढ़ापे से हार गया था। हाथ से खाना छूट जाता था, चलते समय लड़खड़ाते पैर लाठी का आसरा तकते..। एक ज़माने में कितनों की चाहतों का आस रहा आज वो ही चेहरा झुर्रियों से आच्छादित था।
"यह तो समीर रोज- रोज की बात हो गई है मैं कहाँ तक सफाई करूँ?" दादाजी के बूढ़े हाथों से सुरभि बहू की आवाज़ से आतंकित हो पूरी थाली छूट गई। वो जैसे सहम कर सिमट गए। वे उठकर जाने लगे। " पापाजी! कुछ तो ख्याल करो।"  समीर बहू के साथ घिनियाते हुए बोला।
"सुनो जी, क्यों न इन्हें अलग ही कमरे में खाने को दे दिया करें।"- सुरभि ने लगभग फैसला सुनाते हुए कहा। बेटे ने भी सिर इस तरह हिला दिया जैसे सहमति दे दी हो। राहुल बड़े ध्यान से यह देख रहा था। उसे दादाजी के साथ जो हो रहा था शायद अच्छा नहीं लग रहा था।
रात्रि को पिता का भोजन उनके कमरे के एक कोने में नीचे रख दिया गया। सब अपने खाने की मेज़ पर चले गए। ऑफिस से थका मांदा समीर खाने पर टूट पड़ा। बहू भी खाने में मगन हो गई थी मगर राहुल नहीं खा रहा था। वह उठकर दादाजी के पास चला गया। पीछे-पीछे सुरभि भी आ गई। "चलो तुम यहाँ क्या कर रहे हो? अपना खाना खाओ।" उसने राहुल से कहा। राहुल बड़ी ही मासूमियत से बोला, " मैं देख रहा हूँ कि बड़ों के साथ कैसा बर्ताब किया जाता है। जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तो आपके साथ भी ऐसे ही करूँगा। ठीक है मॉम- डैड! आप अकेले खाना खाना और खबरदार कुछ गिराया तो.."
बच्चे के मुख से ऐसे बोल सुनकर बेटा-बहू के हाथों के तोते उड़ गए। तुरंत उसे गले लगाकर बोले -"न मेरे राजा बाबू ये तो दादाजी की मर्जी थी, हम थोड़े ही न इन्हें कुछ कह रहें हैं।"  बेटे ने फटाफट अपने पिता को आदर देते हुए उठाया और प्यार से खाने की मेज पर ले गया। सुरभि पिता के लिए पानी लाने दौड़ गई। वह इस जुगत में तत्पर हो गई कि अब दादा जी को कोई तकलीफ़ न हो।
मासूम सबक  सिखा रहा था कि माँ-बाप से बढ़कर कोई पूँजी नहीं है।  जो आप कर रहे हैं यदि वही आपके साथ हो तो.......।
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क्रमांक -078
जीवन परिचय
जन्म दिनांक-2/4/1964
स्थान - इंदौर
शिक्षा- B.cs, M.A.,
प्रकाशित पुस्तक :-
लम्हों की गाथा (लघुकथा-संग्रह)

पता : 201, संगम अपार्टमेंट ,माधव नगर,
         ग्वालियर -474009 मध्यप्रदेश
सीमा जैन की प्रथम प्रकाशित लघुकथा " मूक - विद्रोह " 01 सितम्बर 2016 को " अविराम सहित्यिकी " ( रुड़की - उतराखंड )में प्रकाशित हुई है ।
  पेश है लघुकथा :-
                         मूक-विद्रोह

बारिश बहुत तेज हो रही थी; फिर भी सोचा--कोई बात नहीं। पिंकी बेबी से वादा था--आज समोसे बनाकर खिलाने का। साल में एक बार ही तो आ पाती है बिटिया ! जिसे बचपन से ही इन हाथों ने खिलाया-पिलाया हो, उसमें और अपने बच्चे में कैसा फर्क? सो निकल पड़ी।
आज पोती को भी साथ ले जाना पड़ा। बहू अस्पताल  गई है अपनी माँ के पास।
एक हाथ में 3 साल की पोती और दूसरे हाथ में खुली छतरी को थामे मैं कोठी के दरवाजे पर पहुँची। भीतर बैठी मेमसाहब मुझे देखते ही बोलीं,  "अरे शीला, थोड़ा बाहर खड़ी हो जा, चौका गीला हो जायेगा !"
कैसी सोच है!  हम दोनों को भीगा देखकर कोई तौलिया-चादर पकड़ाने या एक कप चाय का कहने की बजाय…!! चलो छोड़ो, इनका तो स्वभाव ही ... अम्मा-बाबा और बच्चों से लगाव के कारण ...नहीं तो छुट्टी के दिन, वह भी इतनी तेज़ बारिश में, कौन आता?
"अरे शीला, अपनी पोती को बोलो, एक तरफ बैठे। वो बाहर, उस फूलदान को छू  रही थी। पिंकी उसे लाई है, अमेरिका से। बहुत कीमती है।"
मन तो खट्टा हो गया, पर ...। हम इनके बच्चे के लिए जो करें वो प्यार हम तो ऐसे ही सोचते है ये उसे 'चापलूसी' समझते है क्या?  और ये हमारे बच्चे के साथ..! इतने फालतू भी नहीं हैं हम और हमारे बच्चे !
इतने में, कुछ गिरने की आवाज आई और उसी के साथ बहुत ज़ोर से चिल्लाने की भी, "कर दिया न नुकसान!  तोड़ दिया ...!!"
बाहर गईं तो देखा--पिंकी बेबी की बिल्ली ने वही फूलदान...!
मै अपनी पोती का हाथ थामे चौके के दरवाज़े से ही सब देख रही थी।
मेमसाहब अब पिंकी बेबी पर नाराज़ हो रही थीं।

अब मेरा मन खट्टा हो गया। मैं बोली, "कहीं इस बच्ची के हाथों से कोई नुकसान न हो जाये। मैं घर जा रहीं हूँ मेमसाहब, समौसे कल बना दूँगी।“
अब उनका जवाब सुनने की मुझे ज़रूरत नहीं थी। मैंने पोती को गोद में उठाया और एक बार फिर तेज बारिश में ही बाहर की ओर निकल पड़ी।
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   क्रमांक - 079                 
जीवन परिचय
जन्मतिथि –   21 जून 1949
जन्म स्थान - बरहन - जिला आगरा
व्यवसाय - सेवा निवृत  सरकारी अधिकारी
शिक्षा -           बी ॰ एस ॰ सी॰(जीव विज्ञान),एम ॰ ए॰(समाज शास्त्र),पी ॰ जी॰ डिप्लोमा(पर्सनल मैनेजमैंट), प्रकाशित पुस्तकें -  साँझे लघुकथा संकलन - 
1 -  बूंद बूंद सागर- (2016)
                                   
2 - अपने अपने क्षितिज – (2017)
                                   
3 - सफ़र संवेदनाओं का – (2018)
                                   
4-  आस पास से गुजरते हुए – (2018) 
                                                                                 5 -    लघुकथा कलश - तीन अंक - (2018 -19)                                  
                                  
6 - लघुत्तम मह त्तम - (2018)
                                                                            7  7 -   स्वाभिमान (2019)
                                     
8 - समकालीन प्रेम विषयक लघुकथायें (2019)
निजी लघुकथा संग्रह - 
                 
श्रंखला (लघुकथा संग्रह)  - (2019)
वर्तमान आवासीय पता - फ़्लैट नंबर – 1102/03,
                                 बिल्डिंग - सी - 1, मार्गोसा हाइट्स,
                                  मुहम्मद वाड़ी, पुणे, महाराष्ट्र,
                                   411060
स्थाई आवासीय पता - 588, बसंत बिहार,   
                               कोटा-324009, राजस्थान
                 ईमेल – tejveersingh49@gmail.com
                 मोबाइल नंबर -  08208824253
       तेज वीर सिंह " तेज " की  प्रथम लिखित एवम प्रसारित लघुकथा "जन्म दिन का केक" है । यह ओ बी ओ  पर 13.07.2015 को प्रसारित हुई है ।
      
       पेश है लघुकथा :-
                         जन्मदिन का केक
शंभू सिंह्जी  पत्नी के देहांत के बाद,  बेटे ब्रिगेडियर बाबू सिंह के साथ रहने लगे थे! ब्रिगेडियर साहब के बंगले पर रात को पार्टी चल रही थी!
आउट हाउस में शंभू सिंह जी  रात के खाने का इंतज़ार कर रहे थे! पार्टी के कारण किसी को शंभू सिंह को खाना देने की  याद ही नहीं रही !
शंभू सिंह जी की, लेटे लेटे ,  कब आंख लग गयी ,पता ही नहीं चला!
सुबह ब्रिगेडियर  साहब का अर्दली चाय लेकर आया तो शंभू सिंह जी पूछ बैठे,"रात को किस बात की पार्टी थी"!
"जन्म दिन की"!
शंभू सिंह जी ने देखा कि चाय के साथ केक भी  है, फ़िर सोचने लगे कि कल किस का जन्म दिन था!बहुत ज़ोर डालने पर भी याद नहीं आरहा था!
फ़िर अचानक याद आया,अरे कल तो खुद उनका अपना ही जन्म दिन था!बेटे पर गर्व महसूस होने लगा!खुशी में, रात को खाना ना मिलने की बात भी भूल गये!
केक का टुकडा  मुंह मे रखा,"बडा स्वादिष्ट है, किसने बनाया"!
"साहब टॉमी (कुत्ते) के जन्म दिन पर  सबसे अच्छी बेकरी “ बेकवैल” से ही केक मंगवाते हैं"!
अचानक शंभू सिंह जी को केक कडुआ लगने लगा, जैसे, किसी ने  ज़बरन, उनके मुंह में , नीम की निंबोडियां   डाल दी हों!
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क्रमांक -080
जीवन परिचय
जन्म स्थल-एरौत(महाकवि श्री आरसी प्रसाद सिंह की पुण्य भूमि),समस्तीपुर(बिहार)।
जन्म तिथि- 27 अगस्त 1981
शिक्षा-एम बी ए (मार्केटिंग) एम डी यूनिवर्सिटी रोहतक, एम ए(इतिहास) इग्नू यूनिवर्सिटी।
अभी तक कोई एकल संग्रह प्रकाशित नहीं हुई है।
प्रतिष्ठित लघुकथाकार श्री योगराज प्रभाकर के सम्पादन में लघुकथा कलश महाविशेषांक, विश्व हिन्दी सम्मेलन 2018, मॉरीशस में विमोचित आधुनिक साहित्य महाविशेषांक सहित अनेक पत्र-पत्रिका में प्रकाशित।
पता : द्वारा- श्री तृप्ति नारायण झा ,ग्राम+पोस्ट- एरौत
          भाया-रोसड़ा ,जिला-समस्तीपुर ,बिहार-848210
         मोबाइल:91-8010814932, 9811324545
          ईमेल: mrinalashutosh9@gmail.com
       मृणाल आशुतोष के अनुसार प्रथम प्रकाशित लघुकथा "  रिजल्ट " फरवरी 2017 में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                             "रिजल्ट"
बारहवीं का रिजल्ट आने वाला था। जितनी बेचैनी सुरभि के मन में थी, उससे कहीं अधिक उसके पिता के मन में चल रही थी। दंगे की आशंका के कारण इंटरनेट पर प्रशासन ने रोक लगा रखा था। अख़बार वाला भी दो-तीन से नहीं आ रहा था। सब इस बात की प्रतीक्षा में थे कि शहर से किसी का फ़ोन आये ।
सुरभि चाह रही थी कि किसी तरह अपने स्कूल में टॉप कर जाये ताकि माँ और पिताजी उसे शहर के किसी अच्छे कॉलेज में नाम लिखा दें। पति को चिंतित देख कर मुक्ता खुश थी। गांव में कौन अपनी बेटी के बारे में इतना सोचता है।
इधर प्रभाकर जी के मन में कुछ और ही चल रहा था। उनको विश्वास था कि बिटिया टॉप जरूर करेगी। किन्तु वह चाहते नहीं थे कि बिटिया टॉप करे। कैसे अपने बिटिया को बताए कि वो इस हालत में नही है कि उसको पढ़ने के लिये शहर भेज सकें। इस प्राइवेट नौकरी में ये असंभव सा ही तो है। ऊपर से माता-पिता की बीमारी ने तो जीना ही मुहाल कर रखा है।
अचानक मिश्राजी मिठाई का डिब्बा लेकर आ गये। प्रभाकर जी, मुंह मीठा कीजिये। बिटिया, स्कूल में टॉप की है। सुरभि ख़ुशी से चहक उठी और सबको प्रणाम करने लगी। बधाइयों का ताँता लग गया।
पिता की चेहरे पर तैरते खुशियो के पीछे छुपे गम को पढ़ने में सुरभि को ज्यादा समय नही लगा। उनको पुकारा, "पिताजी।"
प्रभाकर जी मुड़े।
"आप चिंता न करें। मैं प्राइवेट से ही ग्रेजुएशन कर लुंगी। घर से ही प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करूँगी। साथ में बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाऊंगी। आपकी परेशानियों को मैं नही समझूँगी तो कौन समझेगा। अब मैं बड़ी हो गयी हूँ।" बिटिया के इन शब्दों ने पिता को निःशब्द कर दिया। गले से लगा कर रोने लगे। पर ये ख़ुशी के आँसू थे।
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क्रमांक - 081
जीवन परिचय
जन्मस्थान:-  सख्खर सिंध(अखंड भारत वर्तमान पाकिस्तान)
जन्म दिनांक:- 10.07.1947
शिक्षा:- स्नातकोत्तर ( समाजशास्त्र, हिंदी साहित्य तथा अंग्रेजी साहित्य), विधि स्नातक,पीएचडी.डी( अनुवाद प्रक्रिया :-एक शास्त्रीय अध्ययन)
सेवाऐं:-प्राध्यापक, अन्वेषक(गृह मंत्रालय, भारत सरकार का जनगणना विभाग) तथा सहायक निदेशक ( राज भाषा) 
लेखन विधाएं:- काव्य, लघुकथा, आलेख, अनुवाद (अं-हि.  ,हिंदी. अंतिम)
प्रकाशन:-
काव्य संग्रह (परिचय, कलरव,मन की रेखाएं)
लघु कथा संग्रह ( गिरहें)
काव्य संकलन( ज्योतिका,काव्य सुरभि, यशधारा
लघुकथा सप्तक, आदि ।
                 
पुरस्कार/सम्मान:-
भारतीय अनुवाद परिषद ,नई दिल्ली
से 'नातालि'सम्मान तथा अन्य स्थानीय राज.                          राज्यस्तरीय तथा राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं                          से सम्मान ।
विदेश भ्रमण:-- अमेरिका, ब्रिटेन, दुबई, थाई्लेडं, पाकिस्तानरूस नेपाल आदि।
पता: सायता सदन ,  १९ श्रीनगश्र कालोनी( मेंन)
        इंदौर-४५२०१८ , मध्यप्रदेश
        मो.   ०९३२९६३१६१९
        ई-मेलchandrasayata@yahoo.in
ड़ॉ  चंद्रा स्स्यता की प्रथम प्रकाशित लघुकथा " सौदा " फरवरी - 1990 में शनिवार दर्पण , इन्दौर - मध्यप्रदेश से प्रकाशित हुई है ।

पेश है लघुकथा :-
                         सौदा
                        
शालू का राजनीति शास्त्र एम. ए. पूर्वार्ध में रिजल्ट केवल 33 प्रतिशत ही रहा। प्रो. सक्सेना ने उससे वायदा किया था कि फाइनल में उसे सैकेण्ड क्लास मिल जाएगा।
55 प्रतिशत से अंकों वाले सभी विद्यार्थियों को प्रोजेक्ट रिपोर्ट  का विकल्प था।   चार  लड़कियों को प्रोजेक्ट रिपोर्ट का पेपर लिया।  गाइड थे -प्रो. सक्सेना।अक्सर उन्हें
उनके गाइडेंस के लिए   जाना पड़ता था।एक दिन हमेशा के विपरीत  निशा को उनके यहाँ शोध के काम से अकेले ही जाना पड़ा। दरवाज़ा भिड़ा हुआ था। ज़रा से धक्के से खुल गया।   बैठक खाली देख वह अन्दर वाले कमरे की ओर बढ़ी।अचानक  उसने देखा की सक्सेना साहब और शालू एक ही कम्बल में बैठे थे। निशा  ने हल्की सी आहट की।सक्सेना साहब खडे होते-होते बोले-आओ-आओ भई निशा।आज अकेले कैसे? तुम्हारी भाभी आज मायके गई हुई है।शालू घबराई हुई थी। फिर भी किसी तरह बता पाई-एक चैप्टर समझ में नहीं आया था,इसलिए••••।
बात आई गई हो गई।
रिजल्ट के दिन भी आ गये।सभी अपने-अपने रिजल्ट से बहुत अधिक खुश तो नहीं, लेकिन संतुष्ट अवश्य थे। एक ने पुछा-शालू का क्या हुआ?34 प्रतिशत ही रहा,बेचारी का। वह कॉमन रुम में  बैठी रो रही थी।अनिता ने बताया। निशा मन ही मन तिलमिला उठी।कितना घिनौना सौदा था,वह।
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क्रमांक - 082
जीवन परिचय
पूरा नाम : गोकुल प्रसाद सोनी 
पिता- स्व. श्री हीरालाल सोनी,  
माता- स्व.श्रीमती लक्ष्मी देवी सोनी.
जन्म  दिनांक- १६ मई १९५५.
स्थान- ग्राम-खिमलासा  , जि-सागर , मध्यप्रदेश
शिक्षा- बी.एस सी. , एल.एल.बी. ,
          सी.ए.आई.आई.बी.(बैंकिंग )
सम्प्रति- से.नि.प्रबंधक : भारतीय स्टेट बैंक.
पू.अध्यक्ष-‘इन्द्रधनुष’  साहित्यिक संस्था, बैरसिया.
पू.अध्यक्ष- मध्य प्रदेश लेखक संघ,जिला इकाई,विदिशा.
पू. अध्यक्ष- सार्वदेशिक सत्य समाज, जिला भोपाल.
पू.संरक्षक- स्वर्णकार समाज, विदिशा.
पू.सचिव- नगर राष्ट्रभाषा कार्यान्वयन विकास समिति, जिला विदिशा. (गृह मंत्रालय दिल्ली से नियुक्ति)
नवभारत अखवार के साप्ताहिक व्यंग्य कालम “ख़बरों पर निशाना” के पूर्व स्तंभकार,
संपादन-“स्वर्ण शिखा” (पत्रिका),
उप-संपादक –इन्द्रधनुष-१ (पत्रिका),
वर्तमान- उप-सम्पादक :   लघुकथा-वृत्त
सम्पादन सहयोग  “देवभारती” (त्रि-मासिक पत्रिका) भोपाल.
सम्मान
(१) गिरधर गोपाल गट्टानी स्मृति सम्मान.
(२) ‘शांति-गया’ स्मॄति सम्मान
(3) व्यंग्यश्री सम्मान
(4) अमित-रमेश शर्मा स्मॄति मंचीय कवि   सम्मान.
अलंकरण-
(1) मनु श्री
(2) सत्य श्री.
(3)  भावना भूषण
सचिव- ‘कलामंदिर’ साहित्यिक एवं सांस्कृतिक  संस्था, भोपाल, 
कार्य कारिणी सदस्य- म.प्र. लेखक संघ प्रांतीय समिति
विधा- गीत, मुक्तक, हास्य-व्यंग्य, कविता, लघु-कथा, लेख, समीक्षा, कहानियाँ, एवम मंच संचालन आदि   प्रकाशित कृतियाँ- (१) “छींटे और बौछार” (कविताओं का फोल्डर
(२) सारे बगुले संत हो गये (व्यंग्य-कविता-संग्रह)
(3) कठघरे मे हम सब (कहानी-संग्रह)
आकाशवाणी, दूरदर्शन पर प्रकाशित-प्रसारित
पता- ए-४, पैलेस आर्चर्ड, फेस-१, अमरनाथ कालोनी के पास. कोलार रोड-भोपाल. म.प्र.
मेल- gokulsoni16@gmail.com    
मोबा. 74157331309755331831
गोकुल सोनी की प्रथम प्रकाशित लघुकथा "समझदारी वफादारी" भारतीय स्टेट बैंक द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका "प्रवाह" में  सितंबर-दिसम्बर , 2014 में प्रकाशित हुई है ।
पेश है लघुकथा :-
                        समझदारी  वफादारी
     अभी कुछ दिन पूर्व ही सरकार बदली थी. सत्तारूढ़ पार्टी बदली, शासन के तौर-तरीके बदले, नयी फिजां में सभी खुश. सभी “फील-गुड” का अनुभव कर रहे थे. सच कहा जाये तो ‘जयंत’ को भी अच्छा ही लग रहा था. परन्तु जैसे ही उसने कल यह खबर सुनी, कि उसका स्थानान्तरण फिर से नक्सलवादी क्षेत्र में किया जा रहा है, उसके “पैरों तले की जमीन” खिसक गई. पहले भी लम्बे समय तक वह ऐसे ही क्षेत्र में रह चुका था. उसने व उसके परिवार ने कैसे ‘भय’ और ‘तनाव’ में वे दिन गुजारे, वह कैसे भूल सकता है? यह तो वही जानता है, कि कितनी मुश्किल से, हाँथ-पाँव जोडकर, बड़े अधिकारियों की ‘चिरौरी’ करके, और “हर तरह का तरीका” अपनाकर पिछले साल वह कैसे स्थानांतरित होकर  राजधानी में आ पाया था. अब फिर स्थानांतर! कारण उसकी समझ से परे था. बिलकुल “निजी व गोपनीय” सूत्रों से उसे मुश्किल  से पता चल पाया कि उसके स्थानांतर के विशेष निर्देश गृह पुलिस-विभाग से आये हैं. अब तो उच्चाधिकारियों से मिलने में भी कोई लाभ नहीं था. निश्चित था कि सभी सहानुभूति व्यक्त करेंगे पर स्थानान्तर कोई नहीं रुकवा पायेगा.
     बहत सोच-विचार के बाद उसने निश्चित किया कि जो भी हो, वह मंत्री जी से अवश्य मिलेगा. मंत्री जी के ‘वेटिंग-हाल’ में घंटों अपनी बारी का इन्तजार करते-करते वह ऊब गया. पहली बार उसे उन लोगों की पीड़ा का अनुभव हुआ जिनको वह कई घंटों तक ‘थाने’ में बिठाकर रखता था.
     मंत्री जी उसे देखते ही व्यंग्य से हँस कर बोले- आ ही गया ‘ऊंट पहाड़ के नीचे’ पिछले साल तो हमारी पार्टी ने जब ‘विधान सभा’ के सामने प्रदर्शन किया था, तब तो निर्दयता पूर्वक उनको डंडे बरसाने में सबसे आगे तुम्हीं थे न? अब जाओ, अपनी वीरता नक्सलवादी क्षेत्रों में दिखाना. वहाँ तुम जैसे बहादुरों की विशेष आवश्यकता है. तुरंत “अचानक स्थानांतर” का कारण उसकी समझ में आ गया. अपनी ड्यूटी का ईमानदारी से निर्वाह करते हुए उसने यह कभी नहीं सोचा था कि यह समय परिवर्तित भी हो सकता है और राजनैतिक वातावरण बदल भी सकता है. उसकी “त्वरित बुद्धि” ने तपाक से निर्णय ले लिया. हाथ जोड़कर बोला- आदरणीय, हम तो हुक्म के गुलाम हैं. अपनी ड्यूटी से बंधे हुए हैं. निश्चित है इस साल अब दूसरी पार्टी भी धरना-प्रदर्शन करेगी. उस समय आप देखिएगा, यदि दुगुनी ताकत से डंडे ना बरसाऊ तो नाम बदल दीजियेगा.
     कहना ना होगा कि उसकी “समझदारी और वफादारी” से मंत्री जी आश्वस्त हो गए थे और उसकी गर्दन से ट्रांसफर की तलवार हट चुकी थी.
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क्रमांक - 83

                             जीवन परिचय

जन्म - 1958, राँची में
शिक्षा  - विज्ञान स्नातिका, राँची महिला महाविद्यालय।
विधा - लघुकथा, उपन्यास, कहानी, कविता, यात्रा वृत्तान्त आदि
लघुकथा आंदोलन के समय लघुकथा लेखन की शुरुआत शुभ तारिका से। कई लघु पत्रिकाओं में प्रकाशन।
फिर फिलर की तरह लघुकथा का उपयोग होने पर कुछ दिन चुप्पी। बाद में इसकी ताकत पहचान पुनः शुरूआत।
नवतारा  (संपादक - भारत यायावर) के लघुकथा विशेषांक, लघु आघात, राष्ट्रीय सहारा, कथाक्रम, जनसत्ता, प्रभात खबर, हिंदुस्तान, राँची एक्सप्रेस, आज, दै. भास्कर, सृजन पक्ष, जागरण पुनर्नवा , जनसत्ता, lekhni. net सहित अन्य पत्र-पत्रिकाओं में लघुकथाएँ प्रकाशित।
लघुकथा पोस्टर प्रदर्शनी में एक लघुकथा शामिल।
लघुकथा पर साक्षात्कार
' कचोट ' लघुकथा संकलन।
विविध विधा में कई पुस्तकें। स्वतंत्र लेखन ।
पता : 1 सी, डी ब्लाॅक, सत्यभामा ग्रैंड, पुराने एस बी आई के पास, कुसई बस्ती, डोरंडा, राँची, झारखण्ड -834002
ईमेल - anitarashmi2@gmail.com
अनिता रश्मि की प्रथम प्रकाशित लघुकथा " नियति स्वीकार " फरवरी -1979 में तारिका पत्रिका ( अम्बाला छावनी - हरियाणा ) में प्रकाशित हुईं है । पेश है लघुकथा :-

                         नियति स्वीकार

- नहीं।... नहीं। कह दिया ना, नहीं खाना है।
- खा ले बेटा, जिद नहीं करते।
- नहीं बापू। दूसरे निठल्ले मलाई मारा करते हैं और हम किसान इतना खटकर भी.....।
.... क्या करेगा, हमारा किस्मत ही ऐसा है।
- किस्मत को मत दोस दो बापू। वे हमको लूटते हैं, हम अब उनको लूटेंगे।
आज तीसरा दिन है। वह बुखार से पस्त। अवस भाव से देखा माँ-बापू ने। मिर्च, प्याज, रोटी सामने पड़ी है। दूसरे के लिए ईख की मिठास पैदा करनेवाला खुद तीखी मिर्च के साथ...। साहुकार सारा अन्न ले गया । छोड़ गया बाजरे का आटा और हरी मिर्च ।मिर्च हरी हो या लाल, किसी की तबियत हरी नहीं कर सकती।
भिक्खू उसी रात साहुकार के दरवाजे पर जा, अंदर की आहट लेने लगा।
अंदर की आवाज़ थी- दे दो बाबू, खाने को दे दो। मेरा भईया बड़ा बीमार है। कुछ अन्न दे दो। बदले में सारा बाजरा ले लेना।
बहन चरकी की आवाज़ से चौंका भिक्खू।
- इसी से कह रहा हूँ, मेरी बात मान ले। मैं तुम्हें अन्न भी दूँगा, पैसे भी।
- बदमाश!....हमको का समझ रहा है।... मेरे में भी दम है।
साहुकार टूट पड़ता कि सहुआइन की खाँसी से घबराकर बोला - जा, अभी जा।
भिक्खू के लिए अँधेरा रात की कालिख बन गया। चरकी से पहले वह घर की ओर दौड़ पड़ा। चरकी आहट लेती हुई घर में घुसी। अँधेरे में घुसते ही भाई से टकरा गई।
आँखें अभ्यस्त हुई तो देखा, भाई वैसे ही सूखी रोटी का बड़ा-बड़ा कौर भकोस रहा है। गले से हिचकी निकल रही है. ... वह न तो मिर्च को देख रहा, न पानी को।
और... और न ही चरकी को। ***
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Comments

  1. आदरणीय मित्र,
    जय हिन्दी ! जय भारत !

    आशा है स्वस्थचित्त होंगे । कृपया निम्न जानकारी WhatsApp No. पर शीध्र भेजें : -

    1. आपकी प्रथम लघुकथा (नाम भी दीजिए) किस पत्र/पत्रिका/पुस्तक में तथा कब प्रकाशित हुई?

    2. आप अपना जीवन परिचय ( नाम , जन्म दिनांक व स्थान , शिक्षा , प्रकाशित पुस्तकों का विवरण आदि ) तथा एक फोटों

    3. प्रथम प्रकाशित लघुकथा भी भेजें ।

    कृपया उपरोक्त समस्त जानकारी टाइप कर के ही भेजें। केवल WhatsApp के माध्यम से शीघ्र भेज दीजिए।
    इस एकत्रित सामग्री का उपयोग समयानुसार blog पर प्रसारित किया जाऐगा ।

    निवेदन
    बीजेन्द्र जैमिनी
    निदेशक : जैमिनी अकादमी ,पानीपत - हरियाणा
    WhatsApp Mobile No 9355003609

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    1. लघुकथा के लिए बहुत सुंदर प्रयास निश्चय प्रोत्साहन के साथ साहित्य के संवर्धन का कार्य भी करेगा ।

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  2. बहुत सुंदर महत्वपूर्ण कार्य। बधाई।

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    1. धन्यवाद ! आपकी लघुकथा को भी अति शीध्र स्थान दिया जाऐगा ।

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  3. बहुत सुंदर है मनोरमा जैन पाखी जी आपकी कहानी, 👌👌👌👌 लिखते रहिये हम आपको पड़ते राहेंगें

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  4. बहुत सुंदर है मनोरमा जैन पाखी जी आपकी कहानी, 👌👌👌👌 लिखते रहिये हम आपको पड़ते राहेंगें

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  5. आदरणीय जैमिनी जी,
    सप्रेम नमस्ते !
    'जीवन की प्रथम लघुकथा' शीर्षक से का आपका प्रयास काफी सराहनीय है। प्रथम अंक में ही काफी समृद्ध लोगों की रचनाएं प्रकाशित की हैं। मैं भी 34वें स्थान पर हूं। कारवां तो बढ़ेगा ही, पर मैं समझता हूं कि इस शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित हो, तो वह लघुकथा-जगत् हेतु अद्वितीय होगी। इतिहास से लेकर शोध तक में नायाब होगी। मुझे भी शामिल करने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद/आभार!-भारद्वाज

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    1. डाँ वीरेंद्र कुमार भारद्वाज जी ,
      आप का बहुत बहुत धन्यवाद। आपके सुझाव पर विचार किया जाएगा । पुनः धन्यवाद !

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  6. सूचनाएँ जुटाने में आपने तो कमाल ही किया हुआ है।
    मुझे लगता है कि अब लघुकथा बहुत आगे जा चुकी है।प्रथम लघुकथा से शोधकर्ताओं का उद्देश्य तो पूरा होगा,किंतु पाठकों को इससे कोई स्तरीय सामग्री मिलने के आसार कम ही हैं।
    किंतु फिर भी, यह अलग हटकर एक काम तो है ही।शुभ-कामनाएँ।
    - मुकेश शर्मा

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  7. आदरणीय जैमिनी जी,
    नमस्कार ,
    जीवन की प्रथम लघुकथा' शीर्षक से का आपका प्रयास सराहनीय है। प्रथम अंक में ही काफी समृद्ध लोगों की रचनाएं प्रकाशित की गयीं हैं। मैं भी उन्तीसवें स्थान पर हूं। मुझे भी शामिल करने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद साथ ही मैं आदरणीय डाँ वीरेंद्र कुमार भारद्वाज जी के सुझाव --- " मैं समझता हूं कि इस शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित हो, तो वह लघुकथा-जगत् हेतु अद्वितीय होगी। इतिहास से लेकर शोध तक में नायाब होगी।" का अनुमोदन करती हूँ।

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  8. अच्छा व स्तुत्य प्रयास है बधाई एक पुस्तक भी परकाशित हो जाए तो श्रम सारथक व ज़्यादा लोगों तक बात पहुँच पाती चाहे तो सहयोगी आधार पर ही हो जाए

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  9. आदाब। एक पंथ कई काज।
    "जीवन की पहली प्रकाशित लघुकथा" चरण : शोधकर्ताओं हेतु संकलन और हमें लेखनियों के तेवर, जेवर, कलेवर, फ़्लेवर और फ़ेवर से रूबरू कराने का बेहतरीन सुगम ज़रिया।
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

    शेख़ शहज़ाद उस्मानी
    शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
    [03-02-2019)

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  10. किसी लघुकथाकार की पहली लघुकथा प्रस्तुत करने के माध्यम से आप उसके सृजन के प्रारंभ को प्रस्तुत कर रहे हैं और साथ में कितने लघुकथाकार इस विधा को योगदान प्रदान कर रहे हैं वह जानकारी भी सामने आ रही है ।अलग-अलग समय में किस तरह की लघुकथा लिखी जा रही है वह भी पाठक तक पहुंच रही है ।इससे विधा का क्रमिक विकास समझने में शोधार्थियों को सहायता मिलेगी ।धन्यवाद और आभार।

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  11. *जीवन की प्रथम लघुकथा* यह संकलन सहज ही सुंदर और अद्वितीय बना है। न केवल ज्ञान बल्कि पाठकीय दृष्टि से भी यह उत्कृष्ट बना है। इस प्रयास के लिए आदरणीय बिजेंद्र जैमिनी सर सहित इस से जुड़े सभी मित्र बधाई के पात्र हैं।
    मुझे खुशी है कि मैं भी इस अंक का हिस्सा बन सका हूँ।
    सादर। 💐💐🙏🏻

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  12. आदरणीय, आपका यह प्रयास अत्यंत अनूठा है, और मैं अपने आप को बड़ा अनुग्रहीत महसूस कर रहा हूँ कि मैं इसमें शामिल हूँ।
    सादर।

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  13. आदरणीय बिजेंद्र जैमिनी जी द्वारा जीवन की प्रथम लघुकथा का स्मरण कराना एक ऐसा एहसास था जैसे युवाकाल में प्रथम प्यार का एहसास! वैसे एक साहित्यकार के लिए उसकी रचना किसी प्रेम से कम नहीं होती! फिर प्रथम रचना या प्यार तो आजीवन भुलाए नही भूलती! हमारी उसी रचना को सामने लाकर हमें युवामन की ओर ले गए सर! धन्यवाद

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  14. आदाब।
    वसंतोत्सव पर आप सभी को तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और शुभकामनाएं। इस शुभ अवसर पर मेरी रचना भी यहां स्थापित की गई। इस हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद । आशा है हम सभी लघुकथा विधा क्षेत्र में अपना-अपना सर्वोत्तम साहित्यिक कर्म इसी तरह करते रहेंगे। आमीन।
    -शेख़ शहज़ाद उस्मानी
    शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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  15. विजेन्द्र जैमिनी जी का प्रथम लघुकथा संकलन का प्रयास निसंदेह एक प्रशंसनीय प्रयास है।मैं विजेन्द्र जी की मेहनत ,लगन एवं डेडीकेशन को प्रणाम करती हूं।

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    1. यह लघुकथा संकलन के सम्पादन का प्रथम प्रयास नहीं है । इससे पहले भी सम्पादन कर चुका हूं :-
      चांद की चादनी
      बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं
      लघुकथा - 2018

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  16. सराहनीय कदम।

    सबकी लघुकथाएँ पढ़कर बहुत अच्छा लगा।

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  17. अभिनव प्रयास का सर्वत्र स्वागत होना चाहिए । मैं भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूं ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  18. Bijender Gemini Sir , बहुत बहुत धन्यवाद आपका ! यह एक महत्वपूर्ण कार्य है । पहली लघुकथा हमेशा यादगार रहती है । बहुत सारे पसंदीदा रचनाकारों को पढ़ने का मौक़ा मिलेगा इस महत्वपूर्ण डॉक्युमेंट में ।

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  19. मैं लघुकथा लेखन में एकदम नवोदित हूँ। पहली लघुकथा लिखने का प्रयास तब किया था जब इसकी परिभाषा भी ठीक प्रकार से नहीं समझी थी। सीखने और लिखने की प्रक्रिया में इसकी बारीकियाँ जानने का प्रयास आज भी जारी है। इस ब्लॉग को पढ़कर काफी कुछ जानने समझने का मौका मिल रहा है और यह प्रयास निश्चित ही लघुकथा पर शोध करने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है.. मेरी पहली प्रकाशित लघुकथा को स्थान मिलना मेरे लिए खुशी की बात है, जेमिनी सर के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ। समय के साथ विभिन्न लेखकों और उनकी लेखन शैली में परिवर्तन को रेखांकित करता हुआ यह ब्लॉग बहुत अच्छा लगा।

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  20. आदरणीय जयहिंद,
    अपने कारवाँ में जोड़ने के लिए हृदय से आभार । आपने ये अविस्मरणीय एवं बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य किया है । हम तो भूल ही जाते कि पहली लघुकथा कब ,कहाँ और कौनसी प्रकाशित हुई थी । आपने इसे दस्तावेज बना दिया । एक बार पुनः धन्यवाद 💐💐

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  21. बहुत बढिया प्रयास बधाई सवीकारें
    इसे पुस्तक का रूप दें तो सबके पास संगृहनीय हो जाएगा चाहे तो सहयोगी आधार पर

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  22. इस महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक कार्य के लिए
    आपको बहुत-बहुत बधाई ।

    - डा मिथिलेश दीक्षित
    लखनऊ -226016 (उ प्र)
    दिनांक : 16 फरवरी - 2019
    (WhatsApp से साभार )

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  23. सराहनीय प्रयास

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  24. वाह, बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया है आपने भाई बिजेंद्र जैमिनी जी।
    आप को हार्दिक बधाई। साधुवाद।
    क्या इसकेे लिए अभी भी लघुकथा व विवरण भेजा जा सकता है ?

    आप का ही
    डॉ दिनेश पाठक शशि मथुरा

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  25. लघुकथाकारो की प्रथम लघुकथा का संकलन दुर्लभ एवं प्रशंसनीय कार्य है आपका बधाई।

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  26. Pushp guchh se aachchhadit manbhavan lghukathayen . congrats

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  27. आदरणीय बीजेंद्र जी! आपके इस साहित्यिक योगदान को, त्याग- तपस्या को राष्ट्र का इतिहास कभी नहीं भुला पाएगा ✍
    संतोष गर्ग (वरिष्ठ कवयित्री, लघुकथाकार, बाल उपन्यासकार)
    अध्यक्षा- राष्ट्रीय कवि संगम, चंडीगढ़
    उपाध्यक्षा- अ. भा. साहित्य परिषद, हरियाणा प्रांत

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