डॉ. इन्दु प्रकाश पाण्डेय स्मृति सम्मान - 2025
"सब रोगों का इलाज है, शक का नहीं निदान, शक से हो पीड़ा बड़ी, शक है विष समान" आजकल के जमाने में विश्वास कि कमी देखने को मिल रही है, यहाँ तक की खून के रिश्ते भी एक दुसरे पर विश्वास नहीं करते नजर आ रहे हैं हरेक को शक की नजर से देखा जा रहा है, चाहे लेन देन का मामला हो भाईचारे की बात हो, रिश्ते करबाने या निभाने की बात हो, हर जगह शक, संदेह, आशंका पैदा होती नजर आ रही है, और यही शक सदेंह से ही बहुत सारे अपराध जन्म ले रहे हैं, आपसी विश्वास, भाईचारा, मेलजोल सब का सब कम होता नजर आ रहा है जिसका मुख्य कारण किसी को किसी पर यकीन न होना, और हरेक को शक की नजर से देखना, अगर गंभीरता से सोचा जाए शक एक बीमारी का रूप धारण कर चुका है जिसका कोई इलाज अपने सिवा नहीं है, यह विमारी जिसके अन्दर भी है उसके पास दुखों का समन्दर भरा पड़ा है क्योंकि यह एक मन की बीमारी बन चुका है और जब तक शक मन में रहता है तब तक हरेक को संदेह के रूप में देखने लगता है चाहे माँ बेटे का रिश्ता ही क्यों न हो, क्योंकि जब भी किसी के मन में किसी के प्रति नाकारात्मका आने लगती है तो शक का भ्रम पैदा होने लगता है, जिससे रिश्ते टूटने के कगार पर चले जाते हैं क्योंकि शीशे और रिश्ते दोनों नाजुक होते हैं फर्क सिर्फ इतना है कि शीशा गलती से टूटता है और रिश्ता शक से, अक्सर देखा गया है शक बेबुनियाद होते हैं क्योंकि यह एक मनोवैज्ञानिक अवस्था है और सीधा संवाद न हो पाने से , स्पष्टता और विश्वास की कमी के कारण जन्म लेती है और लाइलाज मानसिक बीमारी बन जाती है जिसको दिमाग का भ्रम भी कह सकते हैं, इससे असंतोष, अस्थिरता और असफलता हाथ लगती है जिससे नाकारात्मक भावना जाग्रत होने लगती है और मन के विचार शक की सुई दोड़ाते हुए कई गलतियों को जन्म देते हैं यहाँ तक की केई लड़ाई झगड़े उतपन्न होकर बहुत भारी नुकसान पहुंचा देते हैं, इसका संदेह हमेशा नकारात्मक परिणाम देता है जैसे रिश्तों में तनाव, गलतफहमी का शिकार और यहाँ तक की मानसिक बीमारी का शिकार हो जाना मुमकिन है जिससे बहुत से अपराध घटित हो जाते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं कि जब तक हम एक दुसरे के प्रति प्रेम भावना, मेलजोल व एकत्रित हो कर एक दुसरे की बात पर यकीन नहीं करेंगे तो शक की सुई कभी नहीं रूकेगी, इसके मुख्य कारण रिश्तों में कमी होना, आपसी मेलजोल न होना, भाई, भाई का रिश्ता न होना , भाई बहन का रिश्ता खत्म होना , बुआ, चाचे जैसे रिश्तों का अभाव होना इत्यादि आता है हरेक अकेले ही अपने आप को महान समझ रहा है कोई छोट बड़ा नहीं दिखता सिर्फ अपना पन होने से एक दुसरे के प्रति शक का भाव बड़ने लगता है जिससे रहा सहा भाई चारा खत्म हो रहा है और हरेक एक दुसरे को शक की नजर से देख रहा है और अकेलेपन में मानसिक बीमारी का शिकार होकर कई उलझनों को जन्म दे रहा है जिससे कई अपराध जन्म लेते नजर आ रहै हैं क्योंकि मोबाइल ही आजकल भाई, बहन बन कर रह गया है, आपसी मेल जोल के अभाव से अकेले मन में कई गलत विचार उतपन्न हो रहे हैं जिससे एक दुसरे के प्रति शक की डोर जोरों पर सबार है जो रिश्तों नातों में भ्रम पैदा करके तू, तू मैं, मैं पर आ कर अपराध तक का रास्ता अपना रहे हैं, अन्त में यही कहुँगा कि हमें आपसी भाईचारे को अपना कर शक की बीमारी से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए नहीं तो, इसका कोई ईलाज नहीं है, शक ने कई आपसी संबधों को तोड़ दिया है और कई टूटने के कगार पर हैं और आपसी मेल न होने से कई अपराध जन्म ले रहे हैं, हाँ अगर थोड़ा बहुत, शक का वहम हो भी तो उसे बैठ कर ही खत्म किया जा सकता है अन्यथा बहम का कोई इलाज नहीं है, तभी तो कहा है, रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़यो,चटकाये, टूटे से फिर न मिले, मिले गाँठ पड़ जाए।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
शक एक ऐसी बीमारी है जिसका कोई इलाज नहीं !! शक का कीड़ा इतना जहरीला है कि इसके जहर से बचना बहुत कठिन है ....इससे रिश्ते , घर परिवार , राज पाट , सब तबाह हो जाते हैं !शक से ग्रसित व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को हानि पहुंचाने की कोशिश करता है , जिसने कोई अपराध किया ही नहीं !इसी प्रकार कई अपराधों का जन्म होता है जैसे मानसिक आघात , जान मॉल की हानि या बर्बादी की कहानी !!अक्सर शक का आधार किसी की कही बातपर आधारित पैदा की गई गलतफहमी होती है !! जब तक प्रत्यक्ष न देखो , किसी के भी बहकावे में न आओ व स्वयं स्थिति को परखो तो अनेकों अपराधों से बचा जा सकता है जो शक से जा लेते हैं !! जब तक असलियत का पता चलता है , नुकसान हो चुका होता है !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
शक ऐसी लाइलाज बीमारी है जो एक बार लग जाये तो बड़ी मुश्किल से पीछा छोड़ती है। हमने किसी के बारे में कुछ गलत सुना या कभी किसी को कुछ गलत करते देखा तो उसके प्रति शक हमारे मन में घर करने लगता है। हम उसी शक के घेरे में घिरने लगते हैं, उससे बाहर आ नही पाते। शक की अपनी बीमारी का इलाज हम स्वयं ही कर सकते हैं। अपने शक पर यकीन करने से पहले उसकी अच्छी तरह जाँच कर लें, जाँच में यदि कुछ गड़बड़ी नजर आये तो उसका तुरंत इलाज करें। इलाज यह है कि जिसपर हमें शक है उससे बात करें, उसके गलत करने के पीछे की वजह जानने का प्रयास करें, उसे समझाएँ, सही राह दिखाएँ, उसे सुधरने का मौका दें। पैर में कांटा घुसा हो तो चलना कठिन होता है, वैसे ही मन में किसी के प्रति शक का कांटा घुसा हो तो उसके साथ चलना, उससे रिश्ता निभाना मुश्किल होने लग जाता है। यह शक रूपी दानव हमें चैन से रहने नहीं देता, शक की राह कभी कभी हमें पछतावे की मंजिल तक भी ले जाती है, इसकी आग में खुद हम ही जलते हैं। अपने को इस शक की आदत से बचाकर अपने रिश्तों को बचाएंँ और मन को शांत करें।
- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
शक का कोई इलाज नही होता ,शक कैसा ,जीवन सारा संशय में बीत जिंदगी का सफ़र नर्क बन जाता है आपकी की क़सम जिंदगी के सफ़र में “”” वो फिर नहीं आते ऐसे बहुत से मुकाम होते रिश्ते उलझ कर रह जाते है । सुकून और शक़ में एक अक्षर दो मात्राओं का अंतर है वजूद रख कामयाब को जीवन को सफल बनाते है !सबंध चाहे पति पत्नी बाप बेटे पिता पुत्र माँ बेटा बेटी भाई बहन अड़ोसी पड़ोसी चाहे किसी भी रिश्ते में हो शक की बुनियाद पर खड़ी दीवारों का ध्वस्त होना जरूरी है ! शक के दायरे से जब तक उबरते है जीवन नर्क बन जाते तब फिर एक सच्चे साथी दोस्त की जरूरत होती है जो सही राह दिखा समस्याओं का निराकरण करे नहीं फिर वही शक की दीवार खड़ी हो उसी जगह पहुँच जाएँगे जहाँ थे ! दोनों के लिए समझ इंसानियत भरोसा जरूरी है! नहीं तो इंसानी फ़ितरत का क्षणिक आवेश जघन्य अपराध कर माता पिता की आबरू मिट्टी में मिला देते है ! इस तरह शक में बहुत अपराध होते है ! समय की बाध्यता को ध्यान रख युवा होते बच्चों को पर्याप्त समय देना जरूरी है ! वो किसी मानसिक विसाद विकार में ना पड़े सयंश की राह ना पकड़े जहाँ से निकलना निकलना मुश्किल हो ! जहाँ शक हो वहाँ विश्वास जरूरी है उम्मीदों की महफ़िल में एतिहात कर बिना माँगे सलाह देना भी जरूरी है सुगमता सहजता सरलता वाणी की मधुरता जरूरी है
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
व्यक्तिगत जीवन में शक की अवधारणा दिलो-दिमाग के लिए जीर्ण-क्षीर्ण करने वाली प्रक्रिया है, जिससे अच्छा खासा जीवन चरमरा जाता है और सब कुछ उलट-पुलट जाता है। इसके प्रारंभ होते ही निदान कर लेना चाहिए। संकोच, शर्म, झिझक, मर्यादा, इनकी परवाह किए बगैर शाँत मन से , क्रोध और आवेश को नियंत्रित करते हुए खुलकर अपनी शंकाओं का निवारण किया जाना, दोनों पक्ष के लिए उचित होगा। शक का जन्म यूँ ही नहीं होता। जब भी कोई असमान्य स्थिति नजर आती है, तब शक का जन्म होता है और फिर ऐसी स्थितियाँ निरंतर जब बढ़ती चलती हैं, तब शक का बीज भी पौधे का रूप लेकर बड़ा होता चलता है। मेरे मतानुसार शक, असत्य भी हो सकता है और सत्य भी। इसलिए इसका निदान बहुत आवश्यक और महत्वपूर्ण होता है। इसका समय पर समाधान नहीं हुआ तो निश्चित ही इसके अंजाम भयावह होते हैं। शक को लेकर अनेक फिल्मों के माध्यम से समाज को सजग करने के प्रयास भी हुए हैं। कहानियों से भी प्रयास किए जाते हैं। ऐसा कहना और मानना कि शक नहीं करना चाहिए, शत-प्रतिशत उचित या न्यायिक नहीं है। एक मुहावरा है ' चिंदी का सांप 'बनाना। इसमें सांप भले ही न बनाया जावे परंतु चिंदी तो है। शक में भी हमें इसी चिंदी को न केवल समझना होगा,बल्कि यह चिंदी ही है, इसके तह तक जाना होगा। संक्षिप्त: शक का निदान घुटते रहने और एक पक्षीय निर्णय से नहीं हो सकता और न ही टकराव के रास्ते से। इसका निदान दोनों पक्ष के विमर्श से है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरववारा - मध्यप्रदेश
सकारात्मक और नकारात्मक दो मनोदशा होती हैं। सकारात्मक मनोदशा से कोई परेशानी नहीं होती है लेकिन नकारात्मकता मनोदशा के कारण मस्तिष्क स्वाभाविक रूप से सबसे बुरी स्थिति की कल्पना करने के लिए प्रवृत्त होता है, जिससे तर्कहीन व्यवहार और नाटकीय सोच पैदा हो सकती है। इस प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप अक्सर अनावश्यक तनाव और चिन्ता होती है। बेकार विचारों और उसके अनुसार व्यवहारों जो दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य के समस्याओं का कारण भी बन जाते हैं। अस्वस्थ्य मानसिक स्थिति के कारण ही शक पैदा होता है और सभी ग़लत ही ग़लत लगता है, (नकारात्मक मनोवृति के कारण दूसरों को हर वक्त तौलने वाले ख़ुद बड़े हल्के होते हैं-) परिणाम स्वरूप अनेकों अपराध कर लिया जाता है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
" मेरी दृष्टि में " बिना आधार का शक हमेशा अपराध साबित होता है। इसलिए शक को प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए । वैसे सब की सोच अलग - अलग होती है। फिर भी सिर्फ शक पर कोई विशेष धारणा नहीं बनानीं चाहिए।
कहावत है कि शक अथवा वहम का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं मिलता।
ReplyDeleteशक एक ऐसा ज़हरीला कीड़ा है जो रिश्ते, दोस्ती, परिवार सभी को दीमक की भांति चाट जाता है। ऐसे एक नहीं अनेकों ज्वलंत उदाहरण हैं कि जब केवल शक के कारण बहुत बड़े बड़े अपराध किए गए।
✍️ संजीव "दीपक"
धामपुर
( WhatsApp ग्रुप से साभार )
शक एक लाइलाज बीमारी होती है, एक मानसिक विकार होता है, उसका उन्मूलन पूरी तरह संभव है ही नहीं क्योंकि बिना बात लोग शक की वजह खोज ही लेता है। जरूरी नहीं कि शक बेबुनियाद हो, कई बार शक की वजह सच भी हो सकती है। ये जरूरी नहीं कि ये पति-पत्नी के बीच ही हो। ये मां बेटे, बाप बेटे, भाई बहन और मित्र मित्र के बीच भी हो सकता है।
ReplyDelete- रेखा श्रीवास्तव
कानपुर - उत्तर प्रदेश
(WhatsApp ग्रुप से साभार)