आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय स्मृति सम्मान - 2025
आप अपना तन,मन,धन सब कुछ दे दो और बदले में इनाम के रूप में आपको मिलेगी खूब सारी गालियां,अपमान, ज़लालत। न तो यह पूर्णतः सत्य है और न हि हममें से कोई इसे झुठला सकता। लोग सत्य बोलने या लिखने से या तो डरते हैं या फिर घबराते हैं क्योंकि अड़ोस पड़ोस अर्थात् हम समाज में जो रहते हैं। बहुत उदाहरण नहीं देना चाहूंगी।आप और कई मुझ जैसे बांटते तो सुख,आशीर्वाद व खुशियां ही हैं पर पता नहीं कौन से कर्म पीछा कर रहे होते हैं जो बदले में सिवाय घृणा या अपमान के कुछ नहीं मिलता। ऐसे में कलम भी नहीं चल पाती। चलचित्र की भांति सभी दृश्य एक-एक कर आंँखों के सामने जो आ जाते हैं। कम से कम मुझे तो विश्वास के बदले विश्वासघात, प्यार के बदले नफ़रत बहुत ज्यादा मिली। अच्छाई, निःस्वार्थ भाव से किया गया काम आजकल ये सब बहुत कम देखने को मिलता है।
- मधु गोयल मधुल
कैथल - हरियाणा
ईश्वर सर्वशक्तिमान तो है ही, उन्होंने हमें भी चमत्कारिक शक्तियाँ दी हैं। उसमें से एक यह भी है कि हम जो बांटेंगे, वह हमारे पास बढ़ता रहेगा। आशय यह कि आप उदार बनें, परोपकारी बनें,दानी बनें, स्नेही बनें। इसे सीधी और सरल भाषा में समझें तो आशय यह कि हम जब जरूरतमंद की निस्वार्थ भाव से सहायता करेंगे तो उससे हमारे कोष में कमी नहीं आने वाली। वह किसी अन्य माध्यम से हमारे पास वापिस भी आएगी और हमारे कोष को बढ़ाएगी भी। यह तो सकारात्मक पक्ष हुआ। इसके विपरीत यदि हम किसी को नुकसान पहुंचाते हैं,दुख पहुंचाते हैं, दिल दिखाते हैं, अहित करते हैं, छल करते हैं, तो बदले में यही हमारे पास वापिस भी होगा और अतिरिक्त भी होगा। " जो जस करहिं सो तस फल चाखा। ", " जैसी करनी, वैसी भरनी। " " जैसे कर्म करेगा, वैसा फल देगा भगवान। " आदि इसी संदर्भ में हमारे लिए सीख भरे कथन है। जो यही सिखाते और जताते हैं कि हम जो करेंगे, जो बांटेंगे, वह सूद समेत वापिस होगा। हमने यह भी सुना है, " ईंट का जबाब पत्थर से। " यानी जो दिया, उससे बड़े रूप में वापिस। अत: हमें जीवन की इन व्यवहारिक कथ्यों और तथ्यों के मर्म को समझना चाहिए और उनसे सीख लेकर सकारात्मक पक्ष को अपनाना चाहिए और इस संबंध में अन्य को भी जागरूक करना चाहिए।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कहावत है कि "एक हाथ दे और एक हाथ ले" जो भी हम बाटंते हैं वही हमारे पास वापस किसी न किसी रूप में आता है, इसलिए हमें किस तरह जीवन जीना है और किस तरह के काम करना है वह हमें सोचना है ,हम जो भी करेंगे अच्छा या बुरा वही हमारी झोली मे गिरेगा , हम किसी का बुरा करते हैं बद् दुआएं देते हैं तो हमारे साथ भी बुरा होता है इसीलिए हमेशा यह ध्यान दें कि हम समाज को क्या लौटा रहे हैं हम जो समाज को लौटा रहे है, वहीं कभी ना कभी हमें वापस मिलेगा इस बात को ध्यान रखना चाहिए ,और उसी के अनुसार अपने कामों को करना चाहिए
- अलका पांडेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
बांटने से बढ़ता है यह एक कहावत है। कहावतें अनुभवो के आधार पर प्रचलन में आती है। कुछ जिस चींजे जैसे ज्ञान खुशियां प्रेम दूसरों के के साथ बैठते हैं वह और अधिक बढ़कर आपको प्राप्त होती है। बांटने से बढ़ती है कहावत दर्शाती है कि किसी चीज को दूसरों के साथ साझा करने से वह चीज कम होने के बजाय और विकसित होकर हमें प्राप्त होती है। ज्ञान -एक ऐसी चीज है जो बांटने से बढ़ती है, जब आप अपना ज्ञान दूसरों से साझा करते हैं तो वह इससे सीखना है और वह इसे भी आगे साझा करता है या कर सकता है जिस ज्ञान का प्रसार होता है। खुशी -खुशी बांटने से बढ़ती है। जब हम अपनी खुशियां दूसरों के साथ साझा करते हैं तो या खुशी ना केवल हमें और अधिक खुशी देती है बल्कि यह दूसरे के जीवन में भी खुशी लाती है। प्रेम -प्रेम बांटने से प्रेम बढ़ता है। प्रेम ऐसी भावना है जो बांटने से बढ़ती है, जब हम दूसरों के प्रति प्रेम और स्नेह दिखाते हैं तो यह प्रेम और स्नेह हमारे जीवन में भी लौट कर आता है। दया सहानुभूति और सहयोग जैसी वस्तुएं भी बांटने से बढ़ती है। अंत में पूर्ण स्वीकार करते हुए लिखता हूं कि जो भी आप बाटते हैं वही आपके पास बढ़ता है।।
- रविंद्र जैन रूपम
धार - मध्यप्रदेश
ये कुदरत की बहुत बड़ी सच्चाई है कि जो हम बांटते है , वो हमें बढ़कर मिलता है !! ये मैं व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कह रही हूं !! धन बांटोगे जरूरतमंद में , तो कई गुना बढ़कर मिलेगा , प्यार बांटोगे तो प्यार मिलेगा , नफरत बांटोगे तो नफरत मिलेगी , विश्वास बांटोगे तो विश्वास मिलेगा , दुआ बांटोगे तो दुआएं मिलेंगी , बद्दुआएं बांटोगे तो बद्दुआएं मिलेंगी !!इस नियम की खास बात ये है कि ये सब हमें बड़ी ही मात्रा मैं मिलेंगी !!किसी गरीब को सौ रुपए देकर देखिए , निश्चय ही आपको उसके बदले एक हजार मिलेंगे , आज नहीं तो कल और किसी ऐसे स्त्रोत से मिलेंगे जहां से मिलने की कोई उम्मीद न हो !! भगवान की तकडी में सब तुल रहा है !! अच्छे कर्म करते रहिए , उनका फल गुणा होकर मिलता है !! बांटना यदि सकारात्मक है तो फल भी सकारात्मक ही होंगे !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
यह पूरी तरह सत्य है। हम सभी यह जानते हैं फिर भी किसी की मदद करने को जल्दी तैयार नहीं होते। बहुत लोगों का कहना है कि पहले अपने घर में दिया जलाओ, फिर मंदिर जाना। पर सभी लोग ऐसा नहीं सोचते। बहुत कम लोग होते है। जिनके पास दो रोटी हो और उसमें किसी भूखे को देखकर अपनी रोटी दे देते हैं. ऐसा कार्य कोई बिरला ही कर पाता है।जो यह कार्य करते हैं उसका फल उन्हें मिलता है, देर सबेर ही सही। अगर आपने यह सोचकर किया है कि हमको पुण्य मिलेगा यह सही नहीं है आपके मन की बात ईश्वर अच्छी तरह जानता है और फिर लोग कहते हैं,हमने तो बहुत किया उसका और भगवान ने हमें क्या दिया।अगर सच्चे मन से आप देतें हैं तो आपको जरूर अच्छा मिलेगा और उससे बेहतर। यह मेरा अपना सच्चा अनुभव है।
- अर्चना मिश्र
भोपाल - मध्य प्रदेश
किसी की ओर मुस्करा कर देखिए, प्रत्युत्तर में मुस्कराहट ही मिलेगी और इस प्रतिक्रिया से हमारे अंतस की मुस्कान दोगुनी हो जायेगी। मैं समझता हूँ कि आज की परिचर्चा के विषय को व्यवहार में लाने हेतु किसी को कुछ कठिनाई नहीं हो सकती। यह तो सामान्य व्यवहार की आवश्यकता है कि हम सदैव सकारात्मक रहते हुए अपने निकट के व्यक्तियों और निकटतम क्षेत्र में अपने व्यवहार से सकारात्मकता का प्रसार-प्रवाह करें। भौतिकता के इस युग में जब धन ही प्रधान हो गया है तब अपने मन-मस्तिष्क को प्रसन्न वही व्यक्ति रख सकता है जो परिवार-समाज के अन्य व्यक्तियों के लिए उनके विपरीत समय में किसी-न-किसी रूप में सहारा बन सके, उनको संबल दे सके। हो सकता है हमारी क्षमता इतनी न हो कि हम किसी के दुख को सम्पूर्ण रूप से समाप्त कर सकें परन्तु यदि हम किसी को सांत्वना के दो शब्द और यथाशक्ति सहयोग प्रदान करेंगे तो निश्चित रूप से उसके मन-मस्तिष्क को सुख मिलेगा जिससे हमारे सुखों में भी निश्चित रूप से वृद्धि होगी। और यह तो यथार्थ है कि किसी भी मनुष्य का समय सदैव एक-सा नहीं रहता। दु:ख-सुख, उतार-चढ़ाव मानव जीवन का हिस्सा है। इसलिए आज हम जो दूसरों को देंगे, उससे कहीं अधिक एक-न-एक दिन उसी रूप में हमें वापिस मिलेगा। अर्थात् हम सहयोगी होंगे तो हमारी सहयोग शक्ति बढ़ेगी जिससे हमारे आत्म-विश्वास में वृद्धि होगी। इसीलिए कहता हूँ कि.......
पाना है तुमको अगर, जीवन में सम्मान।
दया-क्षमा मन में रखो, करो प्रेम का दान।।
करो प्रेम का दान, खुशी बाँटो जन-जन में।
द्रवित करे परपीर, भाव करुणा हो मन में।।
सुख बाँटों या दु:ख, लौटकर वापस आना।
करना सदा विचार, चाहते क्या तुम पाना।।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखंड
जो भी आप बाटेंते है वही आप के पास बढ़ता है ! प्रकृति ने संसार में जीव जंतु पशुपक्षी सभी प्राणियों को प्यार असीमित दिया है! जिसे बाँटने में पशु पक्षी भी निः स्वार्थ भावना से सेवा का वफ़ादार कहलाते है! इंसान को ईश्वर बुद्धि ज्ञान असीमित दिया जिसका उपयोग इंसान कर ज्ञान बाँटता है ! जिसका आधुनिक युग में भारतीय सभ्यता संस्कृति वेद ,विज्ञान चाणक्य चरक रामानुजम देश विदेश में ज्ञान बाँट ख्याति अर्जित की है !वही आपको जितना दोगें उससे बढ़ कर मिलता हैं ! ये बाते इंसानी स्लोगन में अच्छी लगती है , यथार्थ में इंसान स्वार्थी होता है ! बिना मतलब के प्यार निः स्वार्थ भाव से मिल ही नही सकता इंसान विश्वनीयता बहुत तीव्र गति से खोते जा रहा है ! कारण पहले ना झूला घर ना वृद्ध आश्रम ना पेट हाउस थे ! तो इंसान की भावना सर्वोपरि हो जितना मिलता दुगना अर्थ व्यवहार रूप में दुगना कर देता आज भी कुछ लोग निर्वाह करते है ! पर अब इंसान मय के वशीभूत लोकाचार व्यवहार पड़ोसी धर्म सभी भूलते जा रहा है !इंसान ज्ञानी होते जहाँ प्यार बाँट दुगाना देना कर्म रूप में करना । चाहता है ,वही सशंकित भय के घेरे में रह घर की चार दिवारी में रह ,चाह कर भी बाँट नहीं सकता! वही खुले दिल वाले दिन दुनिया से बेख़बर जो उनके मन में आता है प्यार लेकर देकर हिसाब चुकता करते है !जितना मिला उससे कुछ हिस्सा दान करो ये वस्तु अर्थ की बाते है जो जन सामान्य को व्यर्थ लगाती है ! ज़्यादा साधु संत ढोंगी ,बाबा ,बैरागी, नेता अभिनेता रिश्ते ,रिश्तेदार ,सवाल ये उठता है उसकी कद्र कितनी करते है !प्यार स्नेह आत्मीयता सीख कर्म कर्तव्य स्वाभाविक क्रिया अनुभव वो चीज बाटने से बढ़ती है ज्ञान प्यार सयोंग लौकिक गुणों की ख़ान है ! विद्या ज्यो खर्चे त्यो त्यो बढ़े , साईं इतना दीजिये जामें वसुद्धेव कुटुंब समाए बाकी आप देखें आप क्या बाँट रहे है ! जीवन सुकून से कट जाए!
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
सरस्वती के भंडार की बड़ी अपुर्व बात ज्यों ज्यों, खर्चे त्यों , त्यों, बढ़े बिना,खर्चे घटि जात, इस दोहे में शिक्षा रूपी धन की बात कही गई है, कि यह एक ऐसा दान है, कि जितने बाँटते जाओ इतना बढ़ता है, कहने का भाव कि शिक्षा देने में कभी परहेज नहीं करना चाहिए क्योंकि जब हम किसी को शिक्षा देने का प्रयास करते हैं वोही शिक्षा पहले से ज्यादा उभर कर हमारे दिमाग में पनपती है, और रही सही कमी पूर्ण हो जाती है, इसी तरह से अगर कोई धन का, रोटी कपड़े का, या अन्य वस्तु का दान करता है है तो उससे कभी कमी नहीं आती उल्टा बढ़ौतरी ही होती है, इसलिए दान करते वक्त कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि मेरे पास कमी हो जायेगी, क्योंकि दान किसी भी चीज का हो अगर अपने शुद्ध तन मन से किया जाए तो यह बढ़ता ही है, इसकी घटत तब महसूस होती है जब हम दान कम करते हैं सोचते ज्यादा हैं और दान लेने वाले से उल्टा कुछ न कुछ लेने का भाव रखते हैं, सच कहा है, "दान दिया और दुख माना, मन में उसके कष्ट हुआ, वो दानी क्या सब दिया दिलाया नष्ट हुआ" इसलिए जब भी हम किसी की कोई भी मदद करना चाहते हैं तो पुरे तन मन से करनी चाहिए और उससे कुछ लेने की तमन्ना कभी नहीं करनी चाहिए क्योंकि किसी को दिया हुआ दुगुना लौट कर आता है , हाँ उसी समय तो नहीं लौटेगा मगर किसी न किसी तरह से बढ़ौतरी ही मिलती है, दान फलता फूलता है बशर्ते साफ दिल से किया गया हो, अगर सबसे ज्यादा बढ़ता है तो ज्ञान ही बढ़ता, फलता फूलता है, और जिसको ज्ञान दिया जाता है वो खुद भी फलता फूलता है और आगे जा कर दुसरों को वाँटने की कोशिश करेगा और इस तरह से फैलता जायेगा, अगर दुसरी तरफ झूठी बात भी फैलती जाती है, जिससे पाप की बढ़ौतरी होती है, कहने का भाव अच्छाई हो या बुराई, पाप हो या पुण्य फैलाने से ज्यादा फैलता है, लेकिन झूठ के पाँव नहीं होते कुछ देर तक ही फैलता है, अक्सर जीत अच्छाई की होती है, अक्सर देखने को मिलता है कि अगर कोई कुकर्मी है, वो जितनी बुराई करेगा इतना ही खुंखार बनता जायेगा दुसरी तरफ भलाई करने वाले का यश बढ़ता ही जायेगा, अन्त में यही कहुँगा कि विद्या रूपी धन, ज्ञान, परोपकार, पुण्य जैसी चीजें बाँटने से फलती, फूलती हैं और इनका कभी अन्त नहीं होता और दुसरी तरफ बुराई, लड़ाई, झगड़ा, दुश्मनी जैसी चीजें भी बढती हैं लेकिन इनका अन्त जल्दी ही हो जाता है और इनका फल भी दुखदायी होता है, इसलिए हम सब को अगर बाँटना हो तो ज्ञान, विद्या, पुण्य, सत्य के ज्ञान, जैसी चीजों को अधिक से अधिक बाँटने का प्रयास करना चाहिए जिससे, यश, नाम, कर्म, व भाग्य की बढ़ौतरी होती रहती है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है और कभी रूकने का नाम नहीं लेती बशर्ते बाँटने वाला अपना तन मन, व भाव शुद्ध रखें, सत्य कहा है, "कबीरा संगत साधू की ज्यों गंधी की बास, जो कुछ गंधी दे नहीं तो भी बास सुबास" ।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
" मेरी दृष्टि में " जो भी आप दुनिया को देते हैं। वहीं आप के पास वापसी आता है। फिर हम दुनिया को क्या दे रहे हो .......? इस पर सभी को विचार करना चाहिए। तभी आप का जीवन और दुनियां एक दिशा में चल सकतीं हैं। बाकी तो अपनी - अपनी सोच का खेल है।
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