सरकार की सार्थकता : गंठबंधन में या बहुमत में

         चुनाव का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है । हर कोई सरकार के बनने का इंतज़ार कर रहा है । सरकार बहुमत होगी या गठबंधन की .... ? वोट तो जनता देती है फिर बहुमत भी जनता की देने है । वैसे भी लोकतंत्र में जनता का निर्णय ही सरकार की सार्थकता स्पष्ट करता है । 
       देखते है जैमिनी अकादमी की परिचर्चा में कौन - कौन शामिल होते है :-
   
            नवी मुम्बई - महाराष्ट्र से अलका पाण्डेय लिखती है कि बहुमत वाली सरकार पर ही जनता भरोसा करती है !
गठबंधन वाली सरकार कभी भी गिराई जा सकती है ! 
बहुमत वाली सरकार अपने निर्णय ले सकती है आईये देखते है । बहुमत की सरकार के पास अपने प्रस्ताव पारित कराने के सबसे ज्यादा संभावनाएँ होती हैं, और इनके विधेयक कभी कभार ही सदन में हारते हैं।[1] इसकी तुलना में एक अल्पमत की सरकार को अपने विधेयक पारित कराने और अपनी बात मनवाने के लिये लगातार साथी और विरोधी दलों से मोल-भाव करते रहना पड़ता है। ऐसे में भ्रष्टाचार की संभावनाएँ बलवती हो जाती हैं।
        इन्दौर - मध्यप्रदेश से देवेन्द्रसिंह सिसौदिया लिखते है कि कईं बार देखने मे आता है कि गठबंधन के दल अपनी असंवैधानिक मांगों को मनवाने हेतु सरकार पर अनावश्यक दबाव डालती है । दबाव इतना बनाया जाता हैं कि मजबूर उनकी मांगों को मानने के सिवा कोई चारा नही होता है जबकि वो दीर्घवधि के लिए राष्ट्र हेतु नोक्सानदायक होती है । जहां यक क्षेत्र के विकास और समस्याओं की बात है वो उनके सदस्य संसद में उठाने के लिए स्वतंत्र होते हैं । जो मांगे सही होती है वो मानी भी जाती है । अतः मेरे विचार से राष्ट्र के हित में बहुमत वाली सरकार ही होती है ।
        कुरुक्षेत्र - हरियाणा से ममता बब्बर लिखती है कि गठबंधन सरकार दलों के राजनीतिक उदेश्यो को तो पूरा करती है किंतु देशहित  व जनता हित के कार्यों में अधिकतर असफल रहती है | गठबंधन सरकार की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया ने वर्ष 1922 में की और उसके बाद कई देशों ने इस प्रणाली से सरकार बनाई जबकि हमारे देश में इसकी शुरुआत 1989 में जनता दल द्वारा की गई जो आज भारतीय राजनीति  का प्रमुख कारक बन गया है | गठबंधन सरकार के सकारात्मक उदेश्यो का प्रभाव भी नकारात्मक होता है जबकि बहुमत की सरकार लोकतंत्र को मजबूत बनाती है |                                        
           बड़ौत - उत्तर प्रदेश से डाँ. साधना तोमर लिखती है कि सरकार की सार्थकता बहुमत में है गठबंधन में नहीं। गठबंधन में सरकार नहीं चला करती इसका अनुभव हम पहले भी कर चुके हैं। उसमें निजी स्वार्थों को लेकर  नेता झगड़ते रहते हैं ,समय से पहले सरकार गिर जाती हैं। देश के विकास में बाधा उत्पन्न होती है। अगर हम देश का विकास चाहते हैं तो हमें गठबंधन की सरकार को नहीं चुनना चाहिए।
          पटना - बिहार से श्रुत कीर्ति अग्रवाल लिखती है कि गठबंधन के माध्यम से छोटी राजनैतिक पार्टियां अपने सीमित परिप्रेक्ष्य से बाहर निकल कर पूरे देश के पटल पर स्वयं को प्रतिस्थापित करने की स्थिति में आ सकती हैं पर उसके बाद अपने सभी घटकों की संतुष्टि के लिए उनको सदैव संघर्षरत रहना होता है। उधर बहुमत की सरकार एक राष्ट्रव्यापी संगठन होता है जो कोई भी निर्णय लेने, कानून बनाने या संशोधित के लिए स्वतंत्र होता है पर वहाँ निरंकुशता की, गर्व और घमंड के मध्य स्थित उस बहुत महीन रेखा को पार कर लेने की, संभावना बहुत बढ़ जाती है। 
              जांलधर - पंजाब से डाँ. नीलम अरुण मित्तु लिखती है कि  सरकार गठबंधन की हो तो निजी स्वार्थों की खींचतान उसे अवांछित समझौते करने पर मजबूर कर देती है जो देशहित में क़तयी ठीक  नहीं। आज के दौर में जब विश्व में भारत एक सशक्त राष्ट्र के रूप में जाना जाता है तो और भी आवश्यक है की सरकार सशक्त हो। सशक्त सरकार कड़े निर्णय ले सकती है , बिना डरे महत्वपूर्ण सुधार कर सकती है तथा भ्रष्टाचार पर नकेल डाल सकती है। जबकि गठबंधन की सरकारें सहयोगियों के तुष्टिकरण में ही लगी रहती हैं।मजबूर सरकार सहयोगियों की नाराज़गी के डर से फ़ैसले भी नहीं ले पाती परिणाम स्वरूप कई बार देशहित के अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे बहस में उलझकर रह जाते हैं या मतभेद की भेंट चढ़ जाते हैं। आज के दौर में जब हम दो दो पड़ोसी देशों के निशाने पर हैं, आतंकवाद की समस्या से जूझ रहे हैं तो मजबूत सरकार का होना और भी ज़रूरी है- जो की बहुमत की सरकार ही हो सकती है। गठबंधन की सरकार में तो कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा वाली बात होती है जिसमें सब अपनी अपनी डफ़ली से अपना अपना राग बजाते रहते हैं और कोई ठोस निर्णय हो ही नहीं पाता ।
           देहरादून - उत्तराखंड से डाँ. भारती वर्मा बौड़ाई लिखती है कि  बहुमत की मजबूत सरकार २०१४ में आई। अर्थव्यवस्था, भ्रष्टाचार पर प्रहार, कूटनैतिक सफलताएँ, नोटबंदी और जीएसटी जैसे कड़े फैसले सुर म्यांमार, चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर मजबूत प्रतिरोध ने हर भारतीय का सिर गर्व से ऊँचा किया।
      हमारा राष्ट्र सक्षम है। किसी भी पार्टी की सरकार हो, पूर्ण बहुमत के साथ होनी चाहिए। तब राष्ट्र स्वतः ही मजबूती से खड़ा हो जाएगा।
        रायगढ़ - छत्तीसगढ़ से डिग्री लाल जगत निर्भिक लिखते है कि बहुमत की सरकार के पास अपने प्रस्ताव पारित कराने के सबसे ज्यादा संभावनाएं होती हैं और इनके विधेयक कभी कभार ही सदन में हर आते हैं। इसकी तुलना में एक अल्पमत की सरकार को अपने विधेयक पारित कराने और अपनी वक्त मनवाने के लिए लगातार साथी और विरोधी दलों से मोलभाव करते रहना पड़ता है। ऐसे में भ्रष्टाचार की संभावना बलवती हो जाती है।
          सोलन - हिमाचल से आचार्य मदन हिमाँचली लिखते है कि विश्व मे दो प्रकार की व्यवस्था से शासकीय प्रणाली का संचालन किया जा है। एक है लोक ताँत्रिक दूसरी है सँघीय । लोकतांत्रिक व्यवस्था में दल का विशेष महत्व है।यदि एक दल सरकार का गठन करता है तो उसमे अनुशासन ऐवँ जबाब दही सुनिश्चित रहती है। लेकिन बहुदलीय व्यवस्था मे  सभी को  सन्तुष्ट करना कठिन होता है और गठबंधन वाली सरकार को टिकाऊ सरकार रखने मे भी प्रधानमंत्री को खासी परेशानी झेलनी पडती है। इसलिए एक दल की सरकार मजबूत सरकार तो हो सकती है लेकिन उसमें व्यक्ति विशेष की डिकटेटरशिप नहीं होनी चाहिए। सभी निर्णय लोकतांत्रिक व्यवस्था के अधार पर लेने तथा जनहित मे कार्य करने की क्षमता के साथ शासकीय व्यवस्था का सचांलन सुनिश्चित होना चाहिए।
            दिल्ली से सुदर्शन खन्ना लिखते है कि  राजनीति के बारे में कहना उचित होगा कि ऊँट किस करवट बैठ जाये कहा नहीं जा सकता. ऐसे स्थिति से बचने के लिए कुछ बड़े दलों द्वारा छोटे छोटे लोकप्रिय दलों से गठबंधन की शुरुआत होती है जो बढ़ते बढ़ते कुछ गिने चुने दलों को रूप धारण कर लेती है. ये तथाकथित गिने चुने दाल पासा पलटने की शक्ति रखते हैं. यहां खेल शुरू होता है गठबंधन का.  यूँ तो सत्तारूढ़ सरकार अपने बलबूते पर बहुमत हासिल करना चाहती है पर स्थिति की नाज़ुकता को देखते हुए कई जगह गठबंधन बनाने को मज़बूर हो जाती है.  उक्त दल भी गठबंधन बनाने से पहले पानी की गहराई जानकर ही हाथ मिलाते हैं जिनमें कुछ शर्ते भी होती हैं.  स्थिति को देखते हुए शर्तें मंज़ूर भी कर ली जाती हैं.  बहुमत में आने वाली पार्टी के सामने आती है गठबंधन में लिए दलों से किये गए वायदों को निभाने की मुश्किल.  वायदे न निभा पाने की स्थिति अप्रिय होती है. साथ छोड़ किया जाता है. बहुमत दल को झटका लगता है.  दोनों के प्रति जनता भी अपना रुख अगले चुनावों के लिए निश्चित करती है. यदि बहुमत वाली सरकार अपने कार्यकाल में जनता से किये वायदे बड़ी हद तक निभा पाती है तो जनता के रुख के चलते उसे गठबंधन की ज़रुरत महसूस नहीं होती.  ऐसे स्थिति में बहुमत दुबारा हासिल कर पाने की आशा बढ़ जाती है.  यह स्थिति जनता के पक्ष में भी रहती है. गठबंधन से जीते गए चुनाव का मोहभंग होने में देर नहीं लगती.  यह स्थिति स्वागत योग्य नहीं होती.  अतः अपने बलबूते पर बहुमत जीती सरकार की सार्थकता सर्वमान्य है.
           गाडरवारा - मध्यप्रदेश से नरेन्द्र श्रीवास्तव लिखते है कि  कई बार ऐसा भी होता है कि एक दल को बहुमत नहीं मिल पाता या बहुमत मिलने की संभावना कम होती है तब चुनाव के पूर्व या चुनाव परिणाम के बाद अन्य दलों के समर्थन को लेकर सरकार बनाई जाती है। इस स्थिति को समझौता वाली सरकार ही माना जायेगा। ऐसे में काम करने के तौर - तरीकों में वह स्वछंदता  अर्थात वो कौशलता नजर नहीं आयेगी ।कहीं न कहीं सरकार को सहयोगी दलों से सहमति और विमर्श करना ही पड़ेगा तब यह बात संभावित है कि वह कार्य उतना रुचिकर या मनमाफ़िक न हो।ऐसा भी अवसर आ सकता है जब कोई फैसला लेना चाहें और सहमति न बनने पर,न ले सकें। अतः सरकार की सार्थकता तो बहुमत मिलने पर ही है।
              गनापुर - उत्तर प्रदेश से महेश गुप्ता जौनपुरी लिखते है कि सरकार की सार्थकता बहुमत में ही हैं बहुमत की सरकार बनती हैं तो देश में विकास होने का संभावना अधिक रहता हैं और प्रधानमंत्री को कोई भी निर्णय लेने में आसानी होती हैं जिससे विश्व बैठक में भारत को सम्मान एवं अहमियत मिलता हैं | बहुमत की सरकार होने से विश्व अस्तर पर अपने बातो को अच्छे ढंग से रख सकता हैं बिना किसी का इंतजार किये | पूर्ण बहुमत की सरकार के बहुत से फायदे हैं जो जनता को सीधे तौर पर मुहैया कराया जा सकता हैं | जनता भी अपने बीत को बखुबी सरकार से मनवा सकती हैं जबकि गठबंधन की सरकार में लोग एक दूसरे पर आश्रित हो जाते हैं और निर्णय लेने में नेता एक दूसरे का मुंह देखने लगते हैं | गठबन्धन सरकार में जनता को गुमराह भी बहुत किया जाता हैं जनता भी परेशान हो जाती हैं जनता चाहती हैं सरकार बने पूर्ण बहुमत वाली जिससे देश का विकास हो सके और नेता तक अपनी शिकायत को जनता सुचारु रुप से दर्ज करा सके ।
रायगढ़ - छत्तीसगढ़ से उर्मिला सिदार लिखती है कि बंधन सरकार में अनेक विचारधारा के मंत्री गण पहुंचे हुए होते हैं ।विचार एक ना होने से मंत्रिमंडल में तनाव की स्थिति होता है ।तनाव से देश की विकास में बधाएँ और विरोध उत्पन्न होता है,अतएव अगर गठबंधन सरकार की सार्थकता को देखें तो देश की विकास के लिए एक होना होगा ,तभी सरकार की सार्थकता गठबंधन में है ।दूसरी बात सरकार की सार्थकता बहुमत में हो यह विचार तो अच्छी है ,लेकिन बहुमत पार्टी की दृष्टिकोण कैसी है ,उसे देखना होगा पार्टी स्तर पर है या सरकार की कार्य व्यवहार पर ,मानव समाज के हित में है तो बहुमत सरकार ठीक है वर्तमान में देखने से यह पता चलता है कि बहुमत  सरकार होने के बावजूद भी, सरकार जनता की समस्याओं को सुलझा ने में अक्षम रहती है। जिससे समाज में असंतुष्ट का वातावरण बना रहता है ।ऐसी स्थिति तब आती है जब सरकार समाज के विकास पर ध्यान कम, और निजी स्वार्थ पर ध्यान अधिक देती है ।ऐसी स्थिति पर जनता में विरोध उत्पन्न होती है। सरकार की सार्थकता तभी होगी जब देश की जनता में शिक्षा के माध्यम से जागरूकता पैदा कर विकास क्षेत्र में जनता का सहयोग की भावना हो, क्योंकि सरकार जो भी देश की व्यवस्था बनाए रखने के लिए विधि नियम बनाती है ,उसे जनता निर्वाह करती है और व्यवस्था बनाने में अपना भागीदारी निर्वहन करती है। सरकार और जनता एक दूसरे के पूरक हैं अतः सरकार की सार्थकता देश के विकास में जनता के सुख समृद्धि के अर्थ में कार्य करें ,चाहे वह गठबंधन सरकार हो ,चाहे बहुमत सरकार सरकार की सार्थकता तो देश के हित के लिए ही सार्थक है।
            इन्दौर - मध्यप्रदेश से वंदना पुणतांबेकर लिखती है कि  मेरे विचारों से तो बहुमत ही होना चाहिए,क्योकि गठबंधन का जोड़  तो इतना मजबूत नही रह सकता जो पांच सालो तक टिक सके।हम सब लोगो को मिलकर अपने देश के लिए एक अच्छे नागरिक होने का फर्ज निभाना चाहिए। और बहुमत पर जोर देते हुए। हमे एक सक्षम सरकार जिसने बीते पांच सालों से देश को नई ऊंचाइयों ओर आयामो तक  पहुँचाया है, बहूमत पर जोर देकर एक स्वर्णिम भारत बनाने में अपना योगदान जरूर देना चाहिए।
                गुरुग्राम - हरियाणा से डाँ. बीना राघव लिखती है कि "कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा,  भानुमती ने कुनवा जोड़ा " तो भाई विपक्ष का तो यही हाल है।  सत्तर दल तो सत्तर रस्साकसी। इनमें एका कहाँ से होगा?  यदि इनको कीमती वोट दे दिया जाए तो क्या गारंटी है कि ये आपस में सिरफुटौवल नहीं करेंगे प्रधानमंत्री बनने के लिए?  क्या गारंटी है कि ये छद्म धर्मनिरपेक्षता का चोला नहीं उतार फेंकेंगे? क्या गारंटी है कि वोट की खातिर एक खास कौम को ही नहीं पटाएंगे भले ही उसके विकृत मानसिकता वाले कुछ लोग देश में आतंकवाद ही न पनपा दे?? जिस थाली में खाएँगे,  उसी में छेद करेंगे। वर्तमान आवश्यकता के अनुसार भले ही देश में सुविधा कम जुटा पाए कम समय में मगर ऐसे दल को सशक्त बनाना सही रहेगा जो स्थिर सरकार दे सके और विश्व में भारत का नाम सुदृढ़ करे। धन कमाने के लालची लोग आसानी से पहचाने जाते हैं। कृपया, ऐसे लोगों को संवैधानिक पदों पर स्थित न करें जिनसे भ्रष्टाचार बढ़ जाए।  मेहनती,  राष्ट्रवादी और ईमानदार नेता भी अलग से पहचान में आते हैं जैसे मनोहर पर्रिकर जी।  ऐसे कर्तव्यनिष्ठ नेताओं को ही वोट मिलना चाहिए।  भ्रष्ट और अपरिपक्व लोगों को राजनीति से दूर रहना चाहिए।  देश पहले,  भाई-भतीजावाद बाद में। 
              उज्जैन - मध्यप्रदेश से मीरा जैन लिखती है कि   सरकार तो हमेशा बहुमत वाली ही होनी चाहिए ताकि वे दबाव मुक्त निर्भिक हो कार्य कर सके  गठबंधन सरकार अनेक दलों से मिलकर बनती है और सभी के अपनी अपनी नितियाँ व स्वार्थ निहित होते है और हर दल को संतुष्ट करना संभव नहीं है परिणामत: दबाव और बात नहीं बनी तो असमय सरकार का गिरना और देश फिर चुनाव का भारी खर्च. पूर्व मे भी इस तरह के उदाहरण  हमारे समक्ष है एक समर्थ प्रधानमंत्री मंत्री श्री अटलजी की सरकार एक बार 13 दिन तथा दूसरी बार 13 माह मे ही गिर गई थी . अतः हर दृष्टि से बहुमत वाली सरकार उपयुक्त है. देश और जनता दोनों का हित बहुमत वाली सरकार मे ही निहित है.
             समस्तीपुर - बिहार से हरिनारायण सिंह ' हरि ' लिखते है कि लोकतंत्र में सत्ता का कोई सर्वोच्च शिखर नहीं होना चाहिए, बल्कि सत्ता के कई समान ऊंचाई वाले शिखर होने चाहिए, तभी लोकतंत्र की परिकल्पना अपना सही आकार ले सकती है ।जैसे आजादी के पूर्व और आजादी के बाद पटेल की मृत्यु से पूर्व कांग्रेस में कई लगभग समान ऊंचाई के कई शिखर हुआ करते थे ।इससे पार्टी  अधिनायकवाद से बच जाती थी और निर्णय मात्र कोई एक शिखर नहीं, बल्कि सारे शिखरों की  समहति से ली जाती थी । पटेल के निधन के बाद कांग्रेस में एकमात्र शिखर पुरुष नेहरू बचे ।बाद में चलकर कमोबेश इस प्रवृत्ति के शिकार भारत की लगभग सारी पार्टियां हो गयीं ।कई तो पाकेट पार्टियां बन गयी, मात्र एक परिवार की पार्टी भी बन गयी ।आलाकमान का उदय हो गया और उससे असहमति मात्र जताना अपने को जोखिम में डालने जैसा हो गया ।हां, जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री और सोनिया जी अध्यक्ष बनी तो भारत के केन्द्रीय सरकार के दो शिखर अवश्य बने, भले ही एक शिखर थोड़ा कमजोर था ।लेकिन सरकारी निर्णय लेने के लिए दोनों की सहमति आवश्यक हो गयी थी ।और यही लोकतंत्र का तकाजा है ।हां आरएसएस की अनौपचारिक ही सही  ,सहमति के बिना भाजपा के प्रधानमंत्री भी निर्णय लेने में हिचकिचाहट महसूस करते हैं, अतः यहां लोकतंत्र की एक शर्त पूरी होती है ।गठबंधन की सरकार मेरे ख्याल से निर्णय लेने में चेक एण्ड बैलेंस का कारगर हथियार साबित होता है, इसलिए गठबंधन की सरकारी लोकतांत्रिक होती है ।
            शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश से इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी सरकार की सार्थकता केवल और केवल बहुमत में है।यह कोई सामान्य बात नहीं है ।देश ने जनता पार्टी संयुक्त मोर्चा उसके बाद चन्द्रशेखर एचडी देवैगौडा और इन्द्रकुमार गुजराल जी की सरकारें वहीं वाजपेयी जी की गठबन्धन सरकार देखी।एकमत से गिरने वाली सरकार भी दूसरी ओर इन्दिरा और मोदी जी की सरकार भी देखी है ।कोई भी राजनीतिज्ञ या विश्लेषक इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि यह दोनों सरकारें या सरकार के नेतृत्व कर्ता गठबन्धन या अन्य सरकारों से हर तरह से अधिक सार्थक ही नहीं अधिक और अपेक्षित परिणाम देने वाले भी रहे हैं ।यह बात मैं नहीं कह रहा पूरा देश कह रहा है ।समाज और विश्व कह रहा है ।स्वीकार्यता भी है ।आगामी लोकसभा चुनाव में भी मेरी देश की जनता से अपेक्षा है कि पूर्ण बहुमत वाली सरकार चुनकर अपने मत को सफल तथा सपनों को साकार करें।
          गुडगांव - हरियाणा से भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश "  लिखते है कि सरकार तो गठबंधन वाली ही सही रहेगी है कम से कम यदि सरकार ग़लत क़दम उठाती है तब समर्थन में साथ चलने वाले तुरंत टांग खींचने की जुगत में लग जाते हैं इससे डरी सहमी सरकार सही फैसले लेने के लिए बाध्य रहती है।कभी कभी यह नुकसान देह भी साबित होता है जैसे समर्थन से बनी हुई सरकार के ऊपर खतरा मंडराता रहता है। समर्थन वापस लेते ही एक बार पुनः नुकसान उठाते हुए चुनाव के लिए आम जनता को बाध्य होना पड़ता है। सरकार बहुमत की हो या गठबंधन की वर्तमान में दोनों ही ठीक है। सरकार किसी की भी बने आम जनता के हाथ कुछ नहीं लगता वे सिर्फ अपना मत देने के अधिकारी होते हैं। चुनाव के बाद कोई नेता किसी भी आम जनता का कोई खोज-खबर नहीं रखते।
              रतनगढ़ - मध्यप्रदेश से ओमप्रकाश क्षत्रिय " प्रकाश " लिखते है कि बहुमत से ही सरकार किसी बात का निर्णय कर पाती है. गठबंधन वाली सरकार लंगड़ी सरकार होती है. उसे निर्णय के लिए सहारे की जरूरत होती है. इसलिए वह बहुमत के आधार पर कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाती है. जब सरकार के पास बहुमत होताहै तब वह अपने निर्णय पूर्णरूपेण ले पाती है. इस की जवाबदार भी वह स्वयं होती है. गठबंधन की सरकार में अनिर्णय की स्थिति घातक रूप तक बढ़ जाती है. जब निर्णय गलत होता है तो वे एकदूसरे पर निर्णय थोप देते है. मगर, जब बहुमत की सरकार होती है तो वह उस निर्णय के लिए पूर्णत जवाबदार होती है. इस कारण सरकार की सार्थकता पूर्णत बहुमत में है.
       नवी मुम्बई - महाराष्ट्र से डाँ. मंजु गुप्ता लिखती है कि भारत में चुनाव को लोकतंत्र शासन पद्धति का रीढ़ कहा है । जनता का मत जनादेश से ही पता लगता है ।जन , जन द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शासन व्यवस्था  का संचालन करते हैं । जिस  दल , या गठबंधनदलों  का बहुमत होता  है । उसी दल का नेता प्रधानमंत्री होता है ।
यदि प्रधानमंत्री चुनने का अधिकार सीधे जनता को मिल जाए तो देश को योग्य  सजग , बुद्धिजीवी प्रधानमंत्री  मिल सकता है । लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा । 
  वर्तमान में राजनीति का स्तर  गिरा है ।  नेताओं  की अपशब्दों में बयानबाजी के  जुमले संकुचित मानसिकता  को दर्शाते हैं । लाल फीताशाही , भ्रष्ट राजनीति , निहित स्वार्थ का बोलबाला है  ।
             इन्दौर - मध्यप्रदेश से सतीश राठी लिखते है कि  गठबंधन सिर्फ और सिर्फ समसामयिक स्वार्थ पूर्ति के लिए तैयार किया गया है, और यह गठबंधन यदि सत्ता में आ जाता है तो, सत्ता में आने के बाद उनके वैचारिक मतभेद पूरी तरह से उभरकर सामने आएंगे, और देश को पुनः एक मध्यावधि चुनाव का सामना करना पड़ेगा , जिसका भार इस देश की अर्थव्यवस्था  पर पड़ेगा। वर्तमान में जितने भी सर्वे आ रहे हैं, वह सर्वे जिस  भी पार्टी को सबसे अधिक सीट मिल रही बता रहे है , उस पार्टी को  अब बहुमत की आवश्यक सीटों तक पहुंचाना जनता की जवाबदारी है। यदि जनता ऐसा नहीं करती है तो पुनः एक मध्यावधि चुनाव जनता को झेलना पड़ेगा और उसका आर्थिक भार भी जनता पर ही पड़ेगा, क्योंकि गठबंधन कहीं पर भी हो वह गठबंधन अंततः टूटता ही है। यहां पर तो' भिन्ने भिन्ने मतिरमुंडा' की स्थिति है, इस लिए वैचारिक सामंजस्य जहां पर है वहां पर यदि कोई गठबंधन  है तो वह सफल हो सकता है, अन्यथा नहीं । समय की जरूरत देश की सार्थकता भी इसी बात में है कि पूर्ण बहुमत की सरकार बने ।
             मुजफ्फरपुर - बिहार से विजयानंद विजय लिखते है कि न जाने इस देश के प्रजातंत्र का कैसा चरित्र है कि विजयी होने के बाद सत्तासुख पाते ही राजनीतिक दल सारे वादे और आश्वासन भूल जाता है और  एसी कमरों में बैठकर जनता की बातें कर, जनता का हितैषी तो बनता है, लेकिन जनता का काम करने के लिए जनता को ही छलता है, धोखा देता है, लूटता है। ये सत्ता का अहंकार है जो उसे जनता से ही दूर कर देता है।शायद सत्ता का चरित्र ही ऐसा है।तभी तो जनता-जनार्दन उसे पलकों से जमीन पर उतारने में भी देर नहीं करती।                   
            राष्ट्रहित मेंं नीति-निर्धारण, नियम, अधिनियम बनाने के लिए संख्याबल अपेक्षित होता है। मगर ऐसा अक्सर देखने में आता है कि बहुमत की सरकारें मजबूत और स्थिर तो होती हैं, मगर समय के साथ उन्हें अपनी प्रबल शक्ति का अहसास और दंभ होने लगता है, वे खुद को अपराजेय और अपरिमेय समझने लगती हैं, सही-गलत से परे उठ जाती हैं।यही आत्ममुग्धता उन्हें निरंकुश भी बना सकती है, जो कहीं-न-कहीं प्रजातंत्र के लिए घातक है।
          इन्दौर - मध्यप्रदेश से डाँ. चंद्रा सायता लिखती है कि सरकार की सार्थकता निश्चित रूप से बहुमत में है। अर्थात किसी एक  राजनीतिक दल  की सरकार का होना अति उतम  स्थिति  होती है। गठबंधन वाली सरकार मेंदेश हित में लिए जाने वाले निर्णय भी व्यक्तिगत स्वार्थ की अग्नि  में भस्म हो जाते हैं।गुटों की राजनीति  देश के विकास में बहुत बड़ी  बाधा बन जाती है। यदि देश को सर्वोपरि  माना जाय तो  बहुमत में ही  सरकार की सार्थकता है ।
             जबलपुर - मध्यप्रदेश से अनन्तराम चौबे अनन्त लिखते है कि मेरी समझ से बहुमत की सरकार स्थाई बिना किसी दबाव के व कोई भी नर्णय करने में सक्षम समर्थ होती है और निधारित समय तक अपना कार्य करती है ।तथा पाँच साल तक बिना किसी बाधा के चलती है । वहीं गठबंधन की भी सरकार चलती है परंतु उसका कोई भरोसा नही रहता है  कितने दिन चलेगी कब गिर जायेगी गठबंधन वालों का अक्सर दबाव रहता  मंत्रियों के विभागों के बटवारे में खींचतान होती है जिस दल से गठबंधन करो उसी को मंत्री का पद चाहिये मुंह माँगा विभाग भी चाहिये ।
     देश प्रदेश के हित में निर्णय करने में दबाव रहता है
स्वातंत्र होकर निर्णय करना मुश्किल होता है ।प्रदेश की सरकार हो तो मुख्य मंत्री पर दबाव देश की सरकार हो तो प्रधान मंत्री पर दबाव रहता है । गठबंधन की सरकार मजबूरी में बनाकर चलाना पड़ती है । चल भी जाती है नही भी चलती है । अर्थात बहुमत की सरकार स्वातंत्र स्थाई और निर्णय करने में सक्षम होती है ।
              शिवपुरी - मध्यप्रदेश से शेख़ शहज़ाद उस्मानी लिखते है कि यह सच है कि मतैक्य/स्वार्थ/भ्रष्टाचार/विधायक/सांसद ख़रीद-फ़रोख़्त  के विकास के मद्देनज़र बहुमत वाली सरकार की नितांत आवश्यकता व सार्थकता है, लेकिन देश के लोकतंत्र को कमज़ोर होने या मिटने से बचाने के लिए  जागरूक मतदाता दलगत उम्मीदवार के बजाय योग्य उम्मीदवार को ही अपना अमूल्य वोट इस बार देंगे देशहित में, संविधान हित में, जनतंत्र हितार्थ! 

इस समय देश में किसी भी बड़े दल के पास सुयोग्य, अनुभवी, देशभक्त व टिकाऊ विश्वसनीय युवा नेता नहीं है, यह एक कड़वा व हास्यास्पद सत्य है।
            इन्दौर - मध्यप्रदेश से राममूरत ' राही ' लिखते है कि सरकार की सार्थकता गठबंधन में नहीं बहुमत में है। क्योंकि गठबंधन में अलग-अलग विचार धारा के लोग होते है,जो अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए एक दूसरे की टाँगे खीचते है और जरुरत पड़ने पर वे ब्लेकमेल करने से भी नहीं चूकते। जितने ज्यादा दलों का गठबंधन होगा उतनी ही कमजोर सरकार होगी। इसलिए केंद्र में एक बहुमत की सरकार होनी चाहिए। जो देश के हित में बहुत जरूरी है।
               जबलपुर - मध्यप्रदेश से विवेक रंजन श्रीवास्तव लिखते है कि लोकतांत्रिक सरकार की निर्णय क्षमता उसके बहुमत में ही संनहित है , अतः स्पष्ट जनादेश बेहद जरूरी है . गठबंधन स्वार्थ तथा तुष्टीकरण की राजनीति का पोषक होता है . यह वोटर का दायित्व है कि किसी नारे या राजनैतिक हवा में न बहकर भी राष्ट्र के व्यापक हित में राजनैतिक दलो की विवेचना कर बहुमत की सरकार बनाने के लिये ही मतदान करे . देश में  युवाओ की जनसंख्या बहुतायत में है . हमारी संस्कृति में घर परिवार में भी  पगड़ी बंधन की रस्म की जाती है जो पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी को जबाबदारी के अहसास की हममें रची बसी प्रक्रिया है . इसी वजह से भाजपा ने तो शायद युवाओ , विद्यार्थियो से सीधे संवाद के आयोजन ही किये हैं , अन्य दल भी युवाओ से संबंधित मुद्दो को जब तब उछालते रहते हैं .वोटर महिलायें ,  युवा अब कम्प्यूटर साक्षर है , सबके हाथो में मोबाईल है , वोटर देश की नब्ज पर हाथ रखे हुये है और वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति के साथ ही देश में रोजगार , आरक्षण , शिक्षा , स्वास्थ्य , सुरक्षा , विकास जैसे मुद्दो पर सरकार के कामो की मार्कशीट मन ही मन तैयार कर रहा है ,  वोटर से ही भविष्य की सरकार बनेगी यह तय है .


                परिचर्चा के अन्त में स्पष्ट करना चाहूँगा कि गठबंधन दो तरह के होते है । एक तो चुनाव से पहले गठबंधन , दूसरा चुनाव के बाद का गठबंधन होता है । दोनों मे स्थिति में स्थिर सरकार की सभावना बहुत ही कम होती है तथा  गठबंधन की सरकार देश को कभी विकास नहीं दे सकती है । बहुमत की सरकार में सिर्फ एक ही कमी नज़र आती है वह है तानाशाही । अगर प्रधानमंत्री सकरात्मक सोच का पढा लिखा हो तो देश विकास अवश्य कर सकता है । अतःगठबंधन मजबूरी का परिणाम है ।  गठबंधन की सरकार देश के विकास में बाध्य है । सिर्फ बहुमत की सरकार ही देश को विकास दे सकती है ।
                                     - बीजेन्द्र जैमिनी
                                  ( आलेख व सम्पादन )


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  2. इस ज्वलंत व समसामयिक जन-जागरूकता विषय पर विचार-मंथन-मंच उपलब्ध कराने व मेरे विचारों को सम्मिलित करने हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया।

    मेरे आपके मिशन हेतु सुझाव हैं कि

    (1)

    कट्टरपन के "नकारात्मक और सकारात्मक पहलुओं"

    और

    (2)

    अपने गिरेबां में ही झांकते हुए हमारे बच्चों के लिए विद्यालयीन "सार्थक उपयुक्त व्यक्तित्व-चरित्रमूलक शैक्षणिक पाठ्यक्रमों "और "स्वरोज़गारमूलक पाठ्यक्रमों" तथा विद्यालयीन " कुल शैक्षणिक कार्य दिवस संख्या 320/365 " होने और नव शिक्षा-सत्र "नव-संवत्सर दिवस से शुरू कर या जनवरी से शुरू कर दिसम्बर तक" रखने के बारे में भी परिचर्चा आयोजित की जाये। सादर।

    - शेख़ शहज़ाद उस्मानी
    शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
    (26-03-2019)

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    1. आपके विचारों पर ध्यान दिया जाऐगा । सधन्यवाद ।

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  3. आद उस्मानी सर से सहमत हूँ ।आज बहुत व्यापक समस्याएँ देश में अपनी पैठ बना चुकी हैं।उनपर सार्थक चर्चा और निराकरण अवश्य हो ।
    मनोरमा जैन पाखी
    मेहगाँव ,भिंड म.प्र.

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  4. गठबंधन के बारे में अगर सोचूँ तो मुझे वह कहानी याद आती है जिसमें दो बिल्लियाँ एक रोटी को बराबर दो हिस्सेमे बाटने के चक्कर में थोड़ा थोड़ा खाकर पूरी रोटी हज़म कर लेती है।
    यही हाल गठबंधन की सरकार का हो रहा है और होइगा। यह बात निश्चित है । साउथ में हम देख चुके है कि कैसे अपने स्वार्थ के लिए एक दूसरे की टाँग खिच रह है नेता लोग । देश को प्रगति के रास्ते पर लाना है,आतंकवाद मिटाना है, सम्पूर्ण विकास करना है, काले धन को मूल से हटाना है,करोड़ों के घोटाले करने वालों को जेल का रास्ता दिखाना है, तो एक सुदृढ़ व सुलझी हुई सरकार का होना बहुत ज़रूरू है ।इसलिए के लिए बहुमत द्वारा साधन में आइ एक ही सरकार ओसाका विकल्प है ।नहीं तो देश की हालत अपनी अपनी ढपली व अपना अपना राग की तर्ज़ पर चलने लगेगा ।
    शारदा गुप्ता
    ( WhatsApp Mobile से साभार )

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  5. सरकार की सार्थकता गठबंधन में नहीं, बल्कि पूर्ण बहुमत मैं है क्योंकि गठबंधन की सरकार में कई सत्ता केंद्र होते हैं, और सभी सत्ता केंद्रों को एकजुट करना आसान नहीं होता ।हर सत्ता केंद्र की विचारधारा अलग होती है। हर सत्ता केंद्र के अपने अपने स्वार्थ होते हैं। जिन की पूर्ति करना हर सत्ता केंद्र का प्रथम लक्ष्य बन जाता है।जिसके कारण सार्वजनिक हित दब कर रह जाते हैं ।गठबंधन की सरकार केवल और केवल स्वार्थ पूर्ति के लिए बनाई जाती है। उससे निर्णय करने में या कोई ठोस कदम उठाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। दूसरे किसी भी महत्वपूर्ण विषय पर सभी सत्ता शिखरों का एकजुट होना आवश्यक नहीं। देश हित में सख्त निर्णय लेने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। तथा जवाबदेही किसी के ऊपर नहीं होती। यदि कोई निर्णय किसी भी प्रकार से देश के हित में ना हो तो उसका ठीकरा एक दूसरे के सिर फोड़ने में लग जाते हैं। फलस्वरूप देश के समुचित विकास के लिए तथा एक जवाब देह सरकार बनाने के लिए बहुमत का होना नितान्त आवश्यक है। जो लोकतंत्र के हित में है तथा देशहित में भी ।
    लज्जा राम राघव "तरुण"
    बल्लबगढ, फरीदाबाद (हरियाणा)
    ( WhatsApp Mobile से साभार )

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  6. वर्तमान में जो हालात हैं देश मेंबहुत जरुरी है बहुमत में आना सरकार का। सरकार को उसकी नीतियों का क्रियान्वयन करना है तो बहुमत आवश्यक है अन्यथा सहयोगी दल निजी स्वार्थ के चलते कोई नीति क्रियान्वित ही न होने देंगे । अगर गठबंधन सरकार है तो स्थानीय हितों को यानी जनता के हितों को बढ़ावा मिलता है। पर्याप्त सौदेबाजी होती है। सरकार को सभी सहयोगी दल को साथ लेकर चलना होता है।अत : दलगत राजनीति के मापदंड समाप्त हो बहुमत नीति सबको साथ लेकर सरकार की सफलता,उद्देश्यों के लिए आवश्यक है।

    - मनोरमा जैन पाखी
    मेहगाँव ,जिला भिंड,म.प्र.
    ( WhatsApp Mobile से साभार )

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