पति क्यों डरता है पत्नी से : समस्या और समाधान
परिचर्चा का विषय इस बार हमारे एक साथी ने भेजा है । जो रोचक भी और एक खतरनाक भी है । कहतें हैं कि इस विषय पर कभी कोई काम नहीं हुआ है । फिर भी मेरा उद्देश्य विषय की गम्भीरता को देखते हुए कार्य करने की है । विद्वानों ने विषय के अनुकूल काफी गम्भीरता दिखाई है । परिचर्चा में प्रमुख विषय " पति " है । मैनें पत्रकार के रूप में अपने आस - पास , न्यायपालिका में , देश विदेश में " पति के रूप " में किसी को न्याय नहीं मिला है । विषय गम्भीर है और ये परिचर्चा है इसलिए विद्वानों के विचारों को पहलें देखते है :-
भोपाल - मध्यप्रदेश से गोकुल सोनी लिखते है कि मेरा अनुभव तो यह कहता है कि पति-पत्नी दोनों में परस्पर एक दूसरे से डरने जैसी कोई बात ही नहीं हैं। जब दोनों के बीच परस्पर प्रेम, त्याग और साहचर्य की भावना होती है तो उसकी अभिव्यक्ति एक दूसरे की आवश्यकताओं का ख्याल रखने और विचारों को सम्मान देने में होती है। दूसरे की उचित बात को मान लेना, डरना नहीं होता। कभी यदि हमपर प्राणों का संकट आन पड़े तो सबसे पहले पत्नी और बच्चों का खयाल आता है, की उनका क्या होगा। यदि व्यक्ति पत्नी से डरता तो ऐसा क्यों होता। तरह तरह के चुटकुले पत्नी पर बनाये जाते हैं। हँसने हंसाने के लिए तो ठीक है, पर वास्तविकता चुटकुलों जैसी नहीं होती। पत्नी ही वह प्राणी है जिससे हम ऐसे विषयों पर बात कर सकते हैं, जिनपर माँ-बाप से भी नहीं कर सकते। अंतिम अवस्था में तो पत्नी से बड़ा कोई मित्र नहीं होता। पत्नी माँ-बाप को छोड़कर आपकी गृहस्थी बसाने आती है और वह अपनी इच्छाओं को और स्वतंत्रता सीमित कर, कष्ट उठाकर बच्चों को और आपको समय से नाश्ता, खाना, धुले, प्रेस किये कपड़े समय पर उपलब्ध कराती है, बच्चों को अच्छे संस्कार देती है, आप यदि गलत मार्ग पर जाते हैं तो समझाती है, क्या यह डराना कहलायेगा।
हरिनारायण सिंह ' हरि ' लिखते हैं कि पति-पत्नी का संबंध तो परस्पर प्रेम और त्याग का है, एक -दूसरे के प्रति समर्पण का है ।हां, जबसे भारतीय सभ्यता, संस्कृति और संस्कार पर पश्चिमी सभ्यता, संस्कृति और संस्कार का अतिक्रमण हुआ है, तबसे पति और पत्नी अपने-अपने अधिकारों के लिए लड़ने लगे हैं, जैसे वे एक-दूसरे के पूरक नहीं, एक -दूसरे के हिस्सेदार या फिर पार्टनर बन गये हैं ।यहीं एक-दूसरे पर शक करने, एक -दूसरे के अधिकार में दखल देने और एक-दूसरे से डरने की भी बात शुरु हो गयी है । आयातित पश्चिमी सभ्यता में पले -बढ़े और संस्कारित हुए पति -पत्नी का एक -दूसरे विश्वास नहीं रहा, यौनिक स्वतंत्रता के विचार प्रबल होने के कारण अवैध संबंध भी इसके कारण हैं ।अगर आपसी समझदारी का विकास इन दोनों के बीच हो जाता है, तो कोई किसी से नहीं डरता ।
रतलाम - मध्यप्रदेश से इन्दु सिन्हा लिखती है कि डरने की कई वजह है,जिसमे से कुछ खास इस प्रकार है :-
(1) पत्नी स्वयं का एक छत्र राज चाहती है,परिवार के सदस्यों के साथ तालमेल नही बिठाती है,अगर पति बोलता है तो समस्या बढ़ने लगती है,आत्महत्या की धमकी तो देती ही है,पति को परिवार से अलग कर देती है !
(2)दूसरी वजह पत्नी का स्वछंद होना,कई पत्नियां ऐसी देखी गयी है,जो अपने प्रेमियों को साथ लेकर रहती है,उसी घर मे जिसमे पति के साथ वो रहती है, पति चाहकर भी कुछ नही कर पाता, जीवन नर्क बना देती है,पति पत्नी के हाथों मार खाता है !
(3) ये कहना बेमानी है वर्कर महिला ऐसे करती है उनका भी प्रतिशत है लेकिन हाउस वाइफ का प्रतिशत भी कम नही, दूध वाले पेपर वाले तक से र्रिलेशन बना लेती है, पति को पिटवा देती है!
(4) कई पत्नियां ऐसी देखी गयी है, शादी की पहली रात को पति और ससुराल वालों को दहेज ओर प्रताड़ना का इल्जाम लगाकर जेल की हवा खिला देती है ! पति हाथ पैर जोड़कर जीवन गुजारते है,!
इन सब समस्याओं का निवारण है कानून में तलाक की कार्यवाही आसान की जाए, जब गम्भीर कारण हो, समस्या हो, तलाक आसान किया जाए, इस प्रकार की पत्नियों को कानून गुजारा भत्ता भी नही दे !
क्यो की ये रिलेशन ऐसे है एक बार टूटने पर पूरा जीवन घुट घुट कर जीना पड़ता है बेहतर है, कि जिन रिश्तों को मंजिल तक लाना ना हो मुमकिन, एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा!
सीकर - राजस्थान से आचार्य अवस्थी लिखते है कि
यह समसामयिक प्रश्न भी है ,और भारतीय सामाजिक व्यवथाओं में विवाह,ग्रहस्थ आश्रम,, सुचिता के साथ,,अपनी पीढी और परम्पराओ को अपनी आध्यात्मिक सांस्कृतिक सामाजिक ढाँचे के साथ साथ देव पितृ ॠषि ॠणों से उॠण होने की सुद्रढ और मजबूत ब्यवस्था,,जो कि अनादि, वैदिक है,,चार आश्रमों से व्यवस्थित होकर सतत गतिशील है,,,
समय के साथ बहुत सारी ब्यवस्थायें रूढ़ि होते हुए शिथिल जजॅर विनष्ट हो रही है,,,बहुत सारी अनावश्यक है,,पृकृति भी पोंछती जा रही है::=
अब विन्दु,,::=पत्नी ग्रहिणी,घर की महारानी,,कितना उच्च पद है,,,उस आदशॅ ग्रहिणी राजलक्ष्मी को मात्र वासना पूति' का साधन,,भोग्या,,मान उपयोग शुरू कर देना,,,यानी विवाह एक बलात्कार का सुलभ जायज विवाह नामक ठप्पा लगा हुआ,,लाईसेन्स,,,????
यहाँ से ही,,घृणा ईष्याॅ द्वेषात्मक अहंकारी टकराहट शुरू होती है,,,?अर्द्धांगिनी,,,,महत्वपूणॅता में अपने अलावा स्वयम के अलावा किसी को भी किसी तरह से सहन नही कर सकती,,?
शनैः शनैः ऐसी जालसाजिता फैलायी है,,,बचकर निकलना,,बहुत ही दुरूह है,,
पश्चात चुन चुन कर सारे बदले लेती है,,,
क्योकि:= वह पत्नी,,समझ चुकी है,,कि पति नामक जीव को वासना पूति'से मतलब रहा है,,,पुत्र/पुत्रियां आ गये,,दुघॅटना,,,यह पति तो मात्र पेशाबघर का कीङा ,,,चमङाकुटाऊ,,,है,,,
वह अपना पूरा बदला लेती है,,,बहुत सारे ढंग है,,,बदला लेने के,,,जिनमें पीटने भी एक है,,,,
इसीलिए,,साहित्यकार लेखक विचारक दाशॅनिक आध्यात्मिक नृत्य दशॅन कार संगीतकार,,,ये सब शादी विवाह से बचते रहते आये,,, क्योकि एक से शादी हो चुकी,,,अब शादी नही,,,,
पत्नी अपनी शौत कभी भी स्वीकार नही,,,लक्ष्मी और सरस्वती के वेमेल,,, जग-जाहिर है,,कारण यही,,,
भारत में पति को पत्नी/स्त्री चाहिए,,,
स्त्री को पुत्र/पुत्रियां चाहिए,,,
यही दोनों की मजबूरी है,,समस्या भी,,,सारे सांसारिक उपद्रवों की जङ यही बाते है।
दिल्ली से सुदर्शन खन्ना लिखते है कि जनाब क्या पूछ लिया? क्यों आग लगाते हो पानी में? कोई पति जवाब नहीं देगा। पत्नी से पूछने की हिम्मत नहीं। दूसरे की पत्नी से उगलवाने का अर्थ नहीं। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी हाथ खड़े कर दिये हैं। पत्नी को अगर दिया एटीएम कार्ड तो बैंक जिम्मेदार नहीं। भारतीय परिवारों की जीवन शैली का विश्लेषण किया जाये तो कुछ कुछ समझ आये। उन विवाहितों की बात करता हूँ जिनकी विवाहिता घरेलू है।
सुबह बैड पर बैठे बैठे चाय मिलना, फिर बाथरूम में तौलिया और अन्य आवश्यक अंग-वस्त्र अपनी जगह मिलना, साबुन-शैम्पू मिलना, बाल्टी और मग मिलना (ऐसे घरों में जहां फव्वारा नहीं है), नहा कर निकलो तो बाथरूम का साफ किया जाना, नहाने के बाद आफिस में पहन जाने लायक इस्त्री किये हुए कपड़े मिलना, जब तक तैयार हों तो गरम-गरम नाश्ता मिलना, जब तक नाश्ता कर लें तब तक ऑफिस में ले जाने के लिए लंच तैयार मिलना और लंच में ऐसे पकवान जिससे आॅफिस का बाॅस और साथी भी जल उठें और हाथ पसार कर मांगें। इन सब के लिए बाजार से सामान लाना।
घर से ऑफिस के लिए निकलते हुए मुस्कान बिखेरना, ऑफिस निकलते ही नाश्ता करने के बाद घर की साफ-सफाई करना या करवाना, कपड़े धोना या धुलवाने में बाई की मदद करना, दोपहर को बमुश्किल खाना खाने बैठो तो दरवाजे पर बजती हर घंटी पर उठना (उन घरों में जहां नौकरों की सुविधा नहीं है), शाम को पति घर से लौटें तो दरवाजा खोलने पर मुस्कुरा कर अभिनन्दन करना, फिर चाय परोसना, पकौड़े खिलाना, फिर डिनर की तैयारी पर लग जाना, पति महोदय तो टीवी देखने में मस्त हो जायें पर डिनर परोसने तक खुद किचन से कमरे तक आते जाते मात्र झलकियां देखना, इस पर तुर्रा यह कि पति भी पत्नी को यह कर तरसाते हैं कि आओ साथ बैठ कर डिनर करो, अगर साथ बैठ गईं तो डिनर कौन परोसे।
जनाब को अगर रात में दूध पीने की आदत है तो उसकी व्यवस्था करना, जनाब रात के खाने के बाद दोस्तों के साथ पान खाने जायें तो सायंकालीन वस्त्रों की व्यवस्था करना, सोने से पहले बिस्तरे को सलीके से लगाना, सर्दियों में लिहाफ और रजाइयां तैयार रखना जिन्हें सुबह उठते ही समेटना, जनाब तो रात को सो जायें पर इन्हें सारे बचे काम निपटाने के बाद सोना नसीब होना, सुबह जनाब से पहले उठना और फिर अगले दिन यही करना। कभी पत्नी बीमार हो जाये और डाॅक्टर बैड-रैस्ट दे दे तो पति पत्नी से भी ज्यादा बीमार नज़र आता है। सारी मस्ती निकल जाती है।
इन्हीं हालातों के चलते यदि पत्नी सर्जिकल स्ट्राइक कर दे और घर के काम पति महोदय को निभाने पड़ जायें तो कचूमर निकल जाये। अभी तो सामाजिक परिस्थितियां भी हैं। घर में पत्नी को कभी पोस्टमैन, कभी कोरियर, कभी आॅन-लाइन शाॅपिंग की डिलीवरी करने वाले को अटैंड करना, कभी कबाड़ी वाले को बुलाकर कबाड़ बेचना, पुराने कपड़े देकर बर्तन खरीदना, त्योहारों के आने पर सारी जिम्मेदारियां निभाना, शादी-ब्याहों में सारी रस्में निभाना, सर्दी की शादियों में जनाब तो दो-दो स्वेटर और कोट पहनें पर पत्नी सुन्दर दिखे इसलिए कम से कम वस्त्रों में सुन्दर दिखने का ठिठुरते हुए प्रयत्न करना, दूसरों की अलग-अलग निगाहों से तारीफ को सहना।
जहां विवाहित और विवाहिता दोनों ही काम पर जाते हैं तो स्थिति कुछ अलग होती है। काम वाली बाई रख ली जाती है पर फिर भी काफी काम पत्नी के हिस्से में आते हैं। यह स्थिति तब बदल जाती है यदि घर में नन्हा-मुन्ना दस्तक दे दे। चूंकि दोनों आर्थिक रूप से शक्तिशाली होते हैं दोनों के पास ब्रह्मास्त्र होते हैं। पता नहीं कब कौन सा छोड़ दे। पत्नी की सुनी जायेगी क्योंकि उसके पास सबसे ताकतवर हथियार है उसके आँसू जो कभी पति को नसीब नहीं हुए। उपरोक्त गिनाई गई सभी सुविधाओं से यदि पति वंचित कर दिया जाये तो पति पत्नी से डरे या डरने का ढोंग करे यह तो पति-पति पर निर्भर करता है।
जबलपुर - मध्यप्रदेश से अनन्तराम चौबे अनन्त लिखते है कि जीवन में पति पत्नी काअटूट रिश्ता है पति न पत्नी से डरता है न पत्नी पति से डरती है हाँ कुछ किस्से जरूर सुनने देखने को मिलते है मगर न के बराबर है
दोनों में कुछ कमियाँ रहती है जिससे जीवन को सफल बनाने में असुविधा हो जाती है कुछ पति गलत रास्ते पर चल पढते जिससे पत्नियों को घर गृहस्थी चलाने में परेशानी होती है।ऐसी स्थिति में पति पत्नि में तनाव बढ जाता आपस में विवाद बढ जाते है । बच्चे देखते है उन पर बुरा असर पढता है ।ऐसे में पति पत्नी के रिश्ते विगड़ जाते रिशते टूट गये तो दोनों का जीवन दूभर हो जाता है ।इसका यही समाधान है दोनो को सही रास्ते पर चलना चाहिये हर मुशीवत का मिलकर सामना करना चाहिये जिससे पति पत्नी के रिश्तों में समानता बनी रहे जीवन की गाड़ी सही और सफल चलती रहे ।
गनापुर - उत्तर प्रदेश से महेश गुप्ता जौनपुरी लिखते है कि पति पत्नी का रिश्ता दुनिया में सबसे प्यारा कहा जाता हैं | जो एक दुसरे का आदर करते हैं उन्हें डरने की जरुरत नहीं पड़ती बल्कि वे अपने आप को अनुशासित दिखाते हैं | शादी के बाद पत्नी को अपना कमजोरी बताने से पत्नी उसे हथियार बना लेती हैं और उसी हथियार से पति पर राज करती हैं | जो मुर्ख पत्नी होती हैं उनको खुद की और पति की इज्ज़त का परवाह नहीं होता वो कहीं भी हंगामा करने लगती हैं इसलिए पति डरता हैं कि जो भी शर्त हैं पत्नी का मान लिया जाये इसी में भलाई हैं | लेकिन उस मुर्ख पत्नी को ये नहीं मालूम रहता कि अगर मैं अपने पति को एक आदर्श पति का दर्जा दुँगी तो मैं खुद भी एक आदर्श पति की पत्नी बन जाऊँगी | आज कल ऐसा मामला बहुत देखने को मिलता हैं कि पत्नी को उसके मनमानी करने से रोकने पर पत्नी फांसी लगाने की, अपने आप को जलाने की, दहेज प्रथा की धमकी दे डालती हैं | जिससे पति बेचारा को पत्नी से डरना पड़ता हैं एवं उसके सारे शर्त को मानना पड़ता हैं क्योंकि उसे सामाज में रहना हैं इसलिए पति कभी पलट कर वार नहीं करता हैं |
महासमुंद - छत्तीसगढ़ से महेश राजा लिखते है कि पहले यह समझ लेना जरूरी है कि पति पत्नी दोनो एक दूसरे के पूरक है और जीवन चलाने के लिये सामंजस्य जरूरी है।
मेरा मानना है यह ईतना पवित्र रिश्ता है कि डर वाली भावना की तो गुंजाइश ही नहीं है।
फिर भी जीवन काल मे परिस्थिति गत ऐसे मोड भी आते है,जब दोनो के बीच लडाई या सैद्धांतिक दूरी खडी हो जाती है।
मैने कई कपल देखे है जिसमे पत्नी बहुत डरती है,अपने पति से।
पर,विषय है पति क्यों डरता है,तो मेरे हिसाब से इस बात मे सबसे पहले स्वभाव की बात आती है।
कई बार महिला ए उचित वातावरण न मिल पाने के कारण चिडचिडी या गुस्सैल हो जाती है।उस समय पति घर गृहस्थी को बचाने के चक्कर मे चुप रहता है।समाज मे बदनामी न हो।बच्चों पर दुष्प्रभाव न पडे।वगैरह वगैरह।
आज कल यह मान्यता है कि पुरूष या तो शराबी हो या अन्य गलत काम मे हो या उसके बाहर अनैतिक संबंध हो।तब वह अपनी कमजोरी छिपाने के लिए पत्नी से डरने लगता है। या पत्नी किसी धनाढ्य परिवार से आयी हो,तब भी वह पत्नी पर हुकूमत करना चाहती है।
किसी न किसी कमजोर रग के रहते पति चुप रहने लगता है या घर से भागता है।
फिर आज समाज मे स्त्री पुरूष बराबर है।यह मनोवैज्ञानिक पहलू भी काम करता है।
सभी जीवन मे सुख शांति चाहते है।अतः इसे डर का नाम न देकर मूक समझोता कहना उचित होगा।
आजकल के जटिल युग मे,भागाभागी मे,दोनो वर्किंग रहते है।तो भी आपस मे भेद भाव आ जाते है।
नारी मे तो सहनशीलता होती ही है।पर पुरूष भी शांति ही चाहता है।
आजकल लेखन मे व्यंग्य का चलन है तो कुछ व्यंग्य कारो ने पत्नी प्रधान रचनाए लिख कर इसे शह दी है।
मेरा तो यह मानना है कि एक सीमा तक दोनो को एट दूसरे से थोडा थोडा डरना ही चाहिए।यह परिवार के सुखचैन के लिये आवश्यक भी है।
और समझोता कर,पूर्ण सहनशीलता से जीवन जीया जाये तो किसी को किसी से डरने की जरुरत ही नहीं।
हां.एक अटल सत्य कोई सभ्य पत्नी कभी नहीं चाहेगी कि उसका पति उससे डर कर रहे और बच्चों पर गलत मैसेज पहुंचे।
मिलजुलकर ही इस मौहब्बत भरे रिश्ते को ईंद्रधनुषी बनाया जा सकता है।
सिवान से लक्ष्मण कुमार लिखते है कि आज के समय में हर पति पत्नी की यही ख्वाहिश होती है कि शादी होने के बाद कोई ऐसी स्थिति ना खड़ी हो जाए जिसकी वजह से घर में झगड़ा हो इसी कारण पति हमेशा डरता है और यही चाहता है कि अपने पत्नी को हमेशा खुश रखो और हर प्रकार की उसकी इच्छा पूरी करो क्योंकि घर के काम पत्नी के बिना नहीं हो सकता है
पत्नी के बिना खाना कौन बनाएगा घर में पूछा कौन लगाएगा घर में बूढ़ी मां पिता को कौन देखभाल करेगा इसी कारण पति अपनी पत्नी से डरता है और यही सोचता है कि घर में उनकी चले पत्नी को खुश रखना मेरा परम कर्तव्य होगा यही सोचकर पत्ती पत्नी से झगड़ा नहीं करता है और सोचता है कि घर में कोई ऐसी झगड़ा ना हो जिससे घर में द्वेष पैदा हो और कोई मेहमान आए तो यह ना कहे कि आपका पति अच्छा नहीं है झगड़ा करता रहता है गांव वाले भी देखे तो समझे कि हम आपस में मिलजुल रहता है और यही हर एक पति सोचते हैं घर में जब छोटे-छोटे बच्चे पैदा होंगे तो जब हम लोग झगड़े करेंगे तो वह भी हम को देख कर के झगड़े करेंगे इसी कारण पति हमेशा मौन रहता है और अपने पत्नी की हर एक छोटी छोटी गलतियों पर भी मुस्कुराता रहता है उसे डांटता नहीं है
मंडला - मध्यप्रदेश से प्रो. शरद नारायण खरे लिखते है कि पति पत्नी से इसलिए डरता है, क्योंकि वह घर में शांति चाहता है। सामान्यत: पति पत्नी से बड़ी उम्र का होता है, इसलिए वह तुलनात्मक रूप में अधिक समझदार होता है। यह बात और है कि प्राय: चुप रहने वाले व समझौतावादी रुख अपनाने पति दब्बू कहे जाते हैं,पर ऐसा कदापि भी नहीं है। वैसे भी यह नारी- मुक्ति व नारी-स्वतंत्रता का काल है। कानून-प्रशासन भी नारी के पक्ष में है, अतएव पति के व्दारा सावधानी बरती जाना व पत्नी से डरते रहना उचित ही है। इस समय की पत्नी शिक्षित, अधिकारसम्पन्न, आर्थिक आत्मनिर्भर व बोल्ड है। वह हठी व निडर है, ऐसे में यदि पति उससे डरकर रहता है, तो क्या ग़लत करता है। इस समय पत्नी पति झूठे आरोप लगाने में भी कदापि पीछे नहीं है।समय व हालातों की भी यही माग है।
विमला नागला लिखती है कि वैसे पति हो या पत्नी दोनो गृहस्थी की समान धूरी होते है। दोनों में वैचारिक विषमताओं पर टकराव होना स्वाभाविक है।मुख्य कारण पतियों के डरने का अपनी प्रतिष्ठा कायम रखना है,वो पत्नी के निश्छल पूर्ण समर्पण को खोना नही चाहता, पत्नी के त्याग से परिवार की समस्त खुशियाँ अवलम्बित होती है वो उन्हें किसी कीमत पर खोना नही चाहता।दूसरा पहलू अपनी स्वयं की खामियां भी हो सकता है ।जहां सामाजिक मान्यताओं के विपरीत उसका आचरण, धोखेबाजी,अपने कर्तव्यों की अनदेखी, जिम्मेदारी न निभा पाना,नशाखोरी, चारित्रिक कमजोरी.....।
इनका समाधान बहुत सरल और सहज है।ईश्वर ने प्रकृति से ही नारी को कोमल ह्रदयवान बनाया है।वो पति द्वारा किसी भी प्रकार की गई गलतियों को सिर्फ जरा से प्रेमपूर्वक सच्चाई व समर्पण से ही उसके लाख गुनाहों को माफ करने की शक्ति रखती है।
गुडगांव - हरियाणा से भुवनेश्वर चौरसिया "मुनेश" लिखते है कि मेरे विचार से बहुत कम ऐसे लोग होते हैं, जो कि अपनी पत्नी से डरते हैं।डरने का मुख्य कारण या वजह पति या पत्नी के बीच बातें छुपाई जाती हो। यदि मैं या आप अपने पत्नी के बीच मधुर संबंध रखेंगे, प्रेम भाव बनाए रखेंगे तो दोनों में से किसी को भी डरने की आवश्यकता नहीं होती है।जो डरते हैं वे अक्सर किसी न किसी गलती के शिकार होते हैं वे आपस में एक-दूसरे से बातों को छुपाते है ।
गाडरवारा - मध्यप्रदेश से नरेन्द्र श्रीवास्तव लिखते है कि पति ये बखूबी जानता है कि पत्नी घर की लक्ष्मी होती है और लक्ष्मी नाराज हो जाये तो समझ लो सारे संसार में वह अकेला पड़ जायेगा। अकेला याने कि हर काम को खुद ही करना है।सुबह उठकर चाय से लेकर रात के खाने तक की व्यवस्था। फिर झाड़ू-बुहारी लगाना।कपड़े,बर्तन धोना। कैसे कर पाऊंगा मैं ?नहीं...नहीं मुझसे नहीं हो पायेगा,ये सब। पत्नी का काम, पत्नी पर छोड़ो।उसे नाराज क्यों करें?आखिर वह मेरी जीवनसंगिनी है।सात फेरे लिये हैं... और सात वचन भी तो लिये हैं,उसके साथ।क्या हुआ ?उसने कुछ कह दिया तो।वह मेरी और घर की इतनी देखभाल करती है तो इतना हक तो बनता है उसका कि मुझसे जो जी में आये कह ले।आखिर अबला नारी मुझसे नहीं कहेगी तो किससे कहेगी। एक मात्र मैं ही तो हूं उसका सहारा और मैं ही उससे लड़ने लगूं तो फिर घर,घर नहीं रह जायेगा... नरक बन जायेगा।भला ये भी कोई बात।दोनों मुंह फुलाये बैठे हैं,एक इस कमरे में,एक उस कमरे में।नहीं,अच्छा नहीं लगेगा।इसीलिये भैया,अपनी खैर मनाओ।दुनिया का क्या?समझती है तो समझती रहे,कहती है तो कहती रहे कि " मैं पत्नी से डरता हूं ।" ये तो मैं समझता हूं कि हकीक़त क्या है।मैं पत्नी से डरता नहीं,समझौता करता हूं।वह घर संभाले,मुझे संभाले ,जो कहना है कह ले ... चिल्लाना चाहे चिल्ला ले,बदले में मेरी तरफ से मिलेगा प्यार... मौन।जिससे घर में सुख-शांति रहेगी और कोई गतिरोध भी नहीं आयेगा ।
सोनीपत - हरियाणा से डाँ. अशोक बैरागी लिखते है कि आज के पुरुष ने यह पूरी तरह मान लिया है कि औरत चाहे किसी भी रूप में हो वह ज्ञान के किसी भी क्षेत्र में कमतर नहीं हैं |पत्नी की इच्छा अनुसार प्रत्येक काम करना डर नहीं बल्कि उसके ज्ञान और कौशल का सम्मान है | और यदि आपकी बात मान भी लें तो इसके भी पर्याप्त कारण हैं |एक तो हमारी कानून व्यवस्था जरा सी बात पर राई का पहाड़ बना देती है |वास्तविक तथ्यों को जाने बिना बेचारे पति को अपराधी बना देती है |इसके साथ समाज में कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जिनकी मानसिकता कलुषित है |और वे सामाजिक रिश्तों और मान मर्यादाओं से ऊपर अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को रखती हैं | मुझे कुछ न करना पड़े और अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए भी पुरुष हर काम में पत्नी को ही आगे रखता है ताकि कल कोई निर्णय उल्टा पड़ जाए तो उसका श्रेय भी पत्नी को ही मिले | मेरे विचार से इस समस्या से निपटने के लिए पति -पत्नी दोनों की सूझबूझ, विवेकशीलता, प्रेम, विश्वास और सहयोग आवश्यक है |दोनों ही पूरी निष्ठा से अपनी -अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करें तो डर वाली स्थिति आएगी ही नहीं ।
गंगापुर सिटी - राजस्थान से विश्वभर पाण्डेय ' व्यग्र ' लिखते है कि अगर पति बाहर की दुनियां का राजा तो पत्नी घर की रानी होती है । घर हमारा आश्रय व सुरक्षा कवच होता है जिसकी मालकिन पत्नी ही होती है। नारी फूलों सी कोमल भी होती है पर बिगड़ जाये तो पत्थर सी कठोर भी हो जाती है । नारी को शक्ति का अवतार भी माना गया है । अतः घर में संतुलन बना रहे , घर की नैया डूबे नहीं, घर की व्यवस्थाएँ यथावत चलाने के लिए पति को पत्नी से डरना भी पड़ता है । पत्नी का सम्मान करना हमारी संस्कृति का अंग भी है - "यत्र नार्यस्तु पुज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:..
रायगढ़ - छत्तीसगढ़ से उर्मिला सिदार लिखती है कि महिला दिवस पर विशेष चर्चा पति क्यों डरता है पत्नी से समस्या पर विचार पति पत्नी का संबंध क्या है क्यों है कैसा है पति पत्नी का संबंध का प्रयोजन क्या है ना समझ पाने के कारण पति पत्नी से डरता है दूसरा पति स्वयं अमानवीय व्यवहार से प्रवृति रहने के कारण डरता है तीसरा पत्नी की अनावश्यक खर्चा है । जो समधी के कारण होता है उसकी पूर्ति न कर पाने से डरता है समाधान पहला पति पत्नी का प्रायोजन समझना दूसरा मानवीयता में जीना तीसरा अनावश्यक खर्चों पर नियंत्रण
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश से शशांक मिश्र भारती लिखते है कि भारतीय समाज में विशेषकर पत्नी और पति एक दूसरे के पूरक हैं ।गृहस्थी रूपी गाड़ी को चलाने के लिए समाज में भागीदारी देश को योगदान के लिए सही बात को स्वीकारना डरना नहीं है ।कुछ इनीगिनी और जल्दबाजी में निर्णय से लोभ लालच से बने सम्बन्धों में हो रही हैं तो कौन क्या कर सकता है ।
नवी मुंबई - महाराष्ट्र से चन्द्रिका व्यास लिखती है कि पति पत्नी का संबंध बहुत ही मधुर, सुंदर, आनंददायी और प्रेम से लबालब भरा होता है! दोनों का एक दूसरे पर अटूट विश्वास होता है
यहां डरने का सवाल केवल पति का पत्नी से है !यह इक्कीसवी सदी है! हम कहते हैं नारी को समान अधिकार देना चाहिये और दिया भी है किंतु आज भी हमारा समाज पुरुष प्रधान है और अहं रुपी हथियार को अपना वाहन समझकर चलता है!
आज जब महिलायें पुरुष से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है तब एैसी स्थिति में पति अपनी पत्नी से हर बात में श्रेष्ठ हो वैसी उसकी सोच बन जाती है! यदि पति पत्नी दोनों ही कार्यरत हैं और पति की पगार पत्नी से कम है तो पति में हीन भावना आ जाती है और एैसी स्थिति में पति अपनी पत्नी से दबता है डरता है अथवा उनके वैवाहिक जीवन में तनाव आ जाता है और इससे उनका एक दूसरे पर जो विश्वास होता है वह टूट जाता है!
दोनों एक दूसरे को समय नहीं दे पाते हैं! नजदिकियां दूरियों में तबदील हो जाती है! जातीय सुख जो हमारे संबंध को प्रगाढ और विश्वास की बेल की तरह बढाती है टूटकर सुख जाती है औरोक्स पत्नी दोनों ही इस बेल को हरी बनाने के चक्कर में, प्यार की चाहत में भटक अमरबेल की तरह दूसरे का सहारा ले एक दूसरे को लांछन देते हैं!
पति पत्नी से तब भी डरता है जब उसका कुछ भूत हो अथवा जातीय सुख देने में असमर्थ हो तो वह दबता है या डरता है!
नारी हमेशा से ही सहनशील संस्कारी दया ममता करुणा लिये प्रेममयी मूर्ति होती है! क्षमादायिनी होना उसकी सबसे बडी कमजोरी है !
वैवाहिक जीवन में यदि पति पत्नी का आपस में ताल मेल हो, विश्वास हो, जातीय सुख प्राप्त होता हो, प्रेम हो, एक दूसरे के प्रति आदरभाव हो और पति दिल फेंक ना हो यानिकी पत्नी का होकर रहता है तो किसी पति को पत्नी से डरने की जरुरत ही नहीं है!
नारी जितनी कोमल और सौम्य है उतना ही उसका रौद्र रुप भयानक है और इसी रुप को याद कर सभी पति पत्नी से डरते हैं ।
परिचर्चा को समाप्त करने से पहले एक जिक्र करना उचित समझता हूँ कि रामायण में राजा दशरथ की पत्नी कैकेयी से सभी परिचित है । जिसने राजा दशरथ जैसे उच्च वर्गीय परिवार को धूल चटा दी थी । जबकि राजा दशरथ का कोई अपराध नहीं था । रानी कैकेयी के कारण परिवार की स्थिति क्या हो गई थी । ये आज भी सब जानते है । आज घर - घर में कैकेयी नजर आ रही है । कहते हैं कि कानून सब का न्याय करता है । परन्तु पति को न्याय देने में सफल नहीं होता है । अगर पति की हत्या होती है तो पत्नी को सजा मिल सकती है । इसके अतिरिक्त किसी भी मामले में सजा मिलने की कोई सम्भावना नहीं है ।
" मेरी दृष्टि में " तलाक किसी समस्या का समाधान नहीं है बल्कि पति के शोषण का हथियार का साघन है । क्योंकि तलाक के बाद भी सम्पत्ति तथा आय का बहुत बड़ा भाग पत्नी को उम्र भर देना पड़ता है । अतः तलाक की स्थिति मे भी पति का शोषण होता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
( आलेख व सम्पादन )
आजकल भारतीय समाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा बधाई
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