बचपन के सपनों की हकीकत
बचपन के सपनों की हकीकत
मैनें कभी सपनें में भी नहीं सोचा था कि परिवार को चलाने के लिए दुकानदारी करनी पड़ेगीं और शौकिया तौर पर पत्रकारिता व लेखन के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बन जाऐगी ।
" मेरी दृष्टि में " बचपन के सपनें बहुत कम लोगों के पूरे होते हैं यानि ये कहें कि किस्मत से पूरे होते हैं । फिर भी किसी को निराश नहीं होना चाहिए । कर्म पर विश्वास कर के हर स्थिति में आगे बढना चाहिए । यही कर्म का फल है ।
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