मां वैष्णो देवी की यात्रा
मेरी बेटी
जीवन में यात्रा बहुत सी की है । सभी में कुछ ना कुछ यादगार बन जाता है । मैं यहां पर एक परिवारिक वह धार्मिक यात्रा का उल्लेख कर रहा हूं । 20 अक्टूबर 1997 को मां वैष्णो देवी के दरबार की चढ़ाई कर रहे हैं । हमने एक पीठू कर रखा है । पीठू के पास हमारी बेटी लोहिनी है जो चार साल की भी नहीं है । बेटा उमेश बहुत ही छोटा है । जो पत्नी संगीता रानी के पास है । मेरे पास सामना है । चढ़ाई पर चलते जा रहें हैं । अचानक पीठू खाई की ओर गिर जाता है । पीठू के पैर दो पत्थरों के बीच फंस जाते है । मैं भागता हूं । पीठू मुझे बेटी देता है । मैं बेटी लोहिनी को सड़क की ओर खड़ा कर देता हूं । फिर पीठू को निकालता हूं । फिर सारी चढ़ाई मेरी बेटी मेरे कंधों पर रहीं । परन्तु आज भी मेरी समझ से बाहर है । ये मेरी बेटी लोहिनी आज इंजीनियर है ।
" मेरी दृष्टि में " आज भी ये घटना पहेली है । ऐसा बचना असम्भव है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
@bijender65
जीवन में यात्रा बहुत सी की है । सभी में कुछ ना कुछ यादगार बन जाता है । मैं यहां पर एक परिवारिक वह धार्मिक यात्रा का उल्लेख कर रहा हूं । 20 अक्टूबर 1997 को मां वैष्णो देवी के दरबार की चढ़ाई कर रहे हैं । हमने एक पीठू कर रखा है । पीठू के पास हमारी बेटी लोहिनी है जो चार साल की भी नहीं है । बेटा उमेश बहुत ही छोटा है । जो पत्नी संगीता रानी के पास है । मेरे पास सामना है । चढ़ाई पर चलते जा रहें हैं । अचानक पीठू खाई की ओर गिर जाता है । पीठू के पैर दो पत्थरों के बीच फंस जाते है । मैं भागता हूं । पीठू मुझे बेटी देता है । मैं बेटी लोहिनी को सड़क की ओर खड़ा कर देता हूं । फिर पीठू को निकालता हूं । फिर सारी चढ़ाई मेरी बेटी मेरे कंधों पर रहीं । परन्तु आज भी मेरी समझ से बाहर है । ये मेरी बेटी लोहिनी आज इंजीनियर है ।
" मेरी दृष्टि में " आज भी ये घटना पहेली है । ऐसा बचना असम्भव है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
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