सावन के अवसर पर कवि सम्मेलन
जैमिनी अकादमी द्वारा ऑनलाइन कवि सम्मेलन इस बार " सावन " के अवसर पर फेसबुक पर रखा गया है । जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के कवियों ने भाग लिया है । विषय अनुकूल कविता के कवियों को सम्मानित करने का निर्णय लिया है । जो इस प्रकार हैं : -
बिन तुम्हारे सजन
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बिन तुम्हारे सजन,कुछ भी न भाए मन
सूना लगता सावन, मन को जला रहा।
कैसे मैं करूं सिंगार,घर नहीं भरतार
उनके बिना तो कुछ, मुझे नहीं भा रहा।
पड़ रही जो फुहार,कर रही तीखा वार,
पानी ये बरसता जो,तन दहका रहा।
बढ़ रही है अगन, घटती नहीं जलन
सावन पिया के बिन,सूना बीता जा रहा।
बिंदिया काजल लाली,चूड़ी और महावर
बिछुआ,पाजेब आदि,लगते बेकार अब।
है तनाव सीमा पर,आ रही यह खबर,
मन जाता डर डर, खुशहाल हो सब।
घर लौट आए प्यार,तभी करूं मैं सिंगार,
बस तेरा इंतजार,घर आओगे कब।
करूं प्रार्थना भजन,घर आ जाए सजन,
करवाइए मिलन,लौट आए प्यार रब।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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मनमोहक सावन
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रिमझिम बारिश है,
रस की फुहार है।
जल से ही जीवन है,
जल से संसार है।
बारिश के आने से ,
झूम रहा सावन है।
भिगो रहा तन-मन ,
यह मौसम अति पावन है ।
सावन की हरियाली ,
मोहक त्योहार है।
रिमझिम बारिश है,
रस की फुहार है।।
पेड़ों पे लग गये
फूलों के झूले हैं ।
ऊँची पेंग भरे मन,
सारे गम भूले हैं ।
दूर हुए दुख सारे ,
अब तो बहार है।
रिमझिम बारिश है,
रस की फुहार है।।
चलो सखी झूले का
मिलकर आनंद लें।
बारी-बारी झूलें हम,
पेंगें मंद-मंद लें।
फिर तो वही नून-तेल ,
वही घर-बार है।
रिमझिम बारिश है,
रस की फुहार है।।
झमाझम बारिश ने,
धरती को धो डाला।
धो डालें हम भी अब,
मन का कलुषित प्याला।
हम सबके अंदर फिर ,
प्यार, सिर्फ़ प्यार है।
रिमझिम बारिश है,
रस की फुहार है।
- गीता चौबे "गूँज"
राँची - झारखंड
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सावन
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भीगा तन भीगा मन
भीगा घर आँगन,
सावन की फुहारों में
भीगा धरती का कण-कण
मनभावन मनोहारी सावन.
मेघ-मल्हारी सावन
शिव की भक्ति का
और जयकारों का सावन
जाने कितने रंगों में रंगा है ये सावन
अल्हड़ नवयौवना के लिए तो
बस छतरी तले रोमांस है सावन,
वहीं बेफिक्र बचपन के लिए तो
पानी में तैरती कागज़ की नाव है सावन
जहाँ एक के लिए मेहँदी की
खुशबू में लिपटा उपहार है सावन,
वहीं दूजे के लिए विरह की
न खत्म होने वाली रात है सावन
एक किसान के लिए जहाँ ईश्वर का
अनमोल वरदान है सावन,
वहीं एक दिहाडी मज़दूर की सोचो
जिसके लिए अभिशाप है सावन...
क्योंकि यही सावन उसके
चूल्हे की आग ठंडी कर देता है
और उसी सावन को कोस-कोस
उसका बच्चा भूखा सोता है।
जीवन की तो यही रीति है,
एक ही पल कोई हँसता कोई रोता है,
दुर्लभ हैं यहाँ क्षण खुशी के
आओ इनको जी भर जी लें,
अबकी सावन तो सखियों संग
मिलकर के झूला झूलें !!!
- रश्मि सिंह
राँची - झारखंड
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आया सावन
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आया सावन,खुशी अपार,
गूंजे सुमधुर राग मल्हार।
छाए बदरा,झूले पड़ गए
प्यारे-प्यारे मेले सज गए
मन में उमड़ता प्यार
आया सावन.............
धरा पै बादल बरस रहे हैं
प्राणी मन में हर्ष रहे हैं
सजनी का इंतजार
आया सावन ............
मौसम का हो रहा इशारा
उर में समाया प्रेम तुम्हारा
मत करना इन्कार
आया सावन .........
नहीं मुझे मालूम है मंजिल
प्रेम के राही, प्यार भरा दिल
कर लेना स्वीकार
आया सावन ............
- डाॅ अरविंद श्रीवास्तव असीम
दतिया - मध्यप्रदेश
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सावन
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सजी धरती प्यारा मौसम,
अलबेला सावन आया रे।
भीगा सबका तन बदन है,
मनभावन सावन आया रे।
किया धरा ने सोलह श्रृंगार,
सौन्दर्य उसका निखरा है।
हरी चुनरी सजी गोटे से ,
आँचल उसका लहराया है।
भींगा सबका तन बदन है ..
प्यासी थी बहुत धरती ये,
सराबोर किया सावन ने।
बुझ गयी प्यास सबकी अब तो,
भर गये तालाब नदियाँ रे,
भीगा सबका ....
तन पे सजी हरी चुनरी है,
छुन छुन करे हरी चूड़ियाँ रे।
मेहंदी रची है हाथों में,
झूला झूलती सखियाँ रे,
भींगा सबका ....
- रंजना वर्मा 'उन्मुक्त '
रांची - झारखंड
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रीम झीम सावन में
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सावन के झूले बुलाए हाय
जियरा भी डोले रे
टिप टिप बूँदें पत्तों पर साजे रे
बागों में नाचे मोर रे
सावन में सजना रे।
मेरे साजन तू आ भी जाओ
गाए कोयलीया मीठी बोल रे
बगिया भी झूमें है आ जा रे
सावन में सजना रे।
हरी हरी चूड़ियाँ बाजे खन खन
पग में पायल बोले है छन छन
जियरा में लगाए है अगन
सावन में संजना रे।
मेघों ने डाला है डेरा
कारे कारे घटा घनघोर रे।
बिजली चमके तो
जियरा धड़के धक धक रे।
सावन में संजना रे।
रीम झीम देखो बरखा की लड़ी।
तन मन में लगाए विरहा की झड़ी।
मैं हूँ सूखी पड़ी ,सावन में सजना रे।
लागे ना तुम बीन जिया सजना रे।
सावन में संजना रे।
भर गए ताल औ तलैया।
तू ना आया क्यों रे छलैया।
नाचे मोरनी औ गौरैया।
सावन में संजना रे…।
भीगी वसुधा की हरी हरी चुनरी।
तेरी वसुधा है क्यों कोरी।
तुम बिन भाए न कजरी।
सावन में सजना रे...।
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
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आया सावन मास
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भोलेशंकर को सदा, लगता है ये खास।
मनभावन सबको लगे, आया सावन मास।।
शीतलता ले आ गई, सावन मास फुहार।
बैठे सब चौपाल पर, गाते राग मल्हार।।
सखियाँ सब मिल बाग में, गाएँ कजरी गीत।
झूले बागों में पड़े, झूल रहे मनमीत।।
नभ में बादल छा गए, मचा रहे हैं शोर।
भू पर है बिखरी यहाँ, हरियाली चहुँओर।।
बैठी कोयल पेड़ पर, सुना रही है तान।
नाच मयूरा भी करे, इस रुत का सम्मान।।
आने से बरसात अब, धरा हुई संपन्न।
शुरू हो गई रोपनी, उपजेगा अब अन्न।।
- रूणा रश्मि "दीप्त"
राँची - झारखंड
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झील का किनारा और बारिश
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आज उसी झील के किनारे बैठा हूँ,
जहाँ हम मिला करते थे।
तुम,
मेरे कँधों पर सिर रखकर दुनिया जहाँ भूला देती थी।
.पूछती है मुझसे
यहाँ की हवाएं,
तुम्हारा पता....।
लौट कर वापस नहीं आये दिन
जो बातों बातों में चले गये थे;
किसी अनजानी ड़गर में।
जिन रास्तों से तुम गुजरी थी
वहाँ कुछ भी नहीं रहा
किनारे खड़े दरख्तों के अलावा।
झाड़ियोँ के पीछे सरसराती हवा ने,
बदल दी है दिशा;
थक कर जिन चट्टानों पर तुम बैठती थी;
खामोश है।
सब तरफ ढूंढ कर अनुत्तरित
लौट आती है;
मेरी आँखे।
इसी रास्ते पर पड़ता है एक नाला
जिसे पार किया था तुमने
बहते पानी ने मिटा दिये;
तुम्हारे पैरों के निशान।
जाने कितने दिन बीत गये उसे ढ़ूंढने में।
बताओ भला'
कोई इस तरह जाता है;
बीते दिनों की यादों की तरह।
आज भी उस झील के किनारे बैठा हूँ,
तुम्हारी तलाश में।
अचानक....एक टूटता हुआ तारा
.आकर..।
मेरे कानों में कह जाता है;
तुम नहीं हो..।तुम कहीं नहीं हो..।
बहुत पहले ही चली गयी हो;
हमेंशा के लिये।
झील के पानी में तुम्हारा अक्स नजर आता है;
मैं दौड़ पड़ता हूँ।
तुम्हारा चेहरा विलीन हो जाता है;
और....
मेरी आँखों से आँसूओं का कतरा
झील में गिर जाता है।
झील खामोश हो जाती है।
बारिश अब भी आती है,
और आती रहेगी....
झमाझम बरसती है,
और बरसती रहेगी...
पर,मैं अपने हिस्से की बारिश को,
सबसे दूर अंतस में छुपा लिया हूँ।
- महेश राजा
महासमुंद - छतीसगढ़
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रंगीला सावन
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तप्त धरती पर
पावस सुधा आज
फिर एक बार
झूम -झूम बरसी रे,
हरित धरा,
जैसे ओढ़
हरी चुनरिया
नयन से हुई तृप्ति रे।
सावन के झूले,
हम सब सखियाँ
मिल झूले,
प्यासा मन झूमे।
बाग- बगीचे
खेत- खलिहान
लहलहाते मानों
सावन का,
कर रहे सम्मान ।
बच्चे, बूढ़े और जवान
हर्ष -हर्षित सब
एक समान।
कितना पावन
यह सावन
शिव मंदिर में
लगे हैं मेले।
काॅवरिया जल
लेकर जाते,
शिव जी को
खूब ये भाते।
मनवांछित फल
हैं सब पाते।
हरा -भरा रहे
यूँ ही जीवन,
रिमझिम बरसे
यह रंगीला सावन।।।।
- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार
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रिमझिम जलाये
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अब ना सखी मोहे सावन सुहाए ।
अब तो सखी मोहे पिया बिसराये ।
अब तो सखी मोहे रिमझिम जलाये ।
अब तो सखी मोहे पिया बिसराये ।
अब नहीं करते पिया मीठी बतियाँ ।
अब नहीं सावन गाती हैं सखियां।
कोई उमंग सखी मन में ना आए।
अब ना सखी मोरा मन मचलाये ।
अब तो सखी मोहे पिया बिसराये ।
अब ना सखी मोहे सावन सुहाए ।
बिरहा की अग्नी में हियरा जले है
कब से ना उनसे नयना मिले हैं ।
कब से ना पिया मोहे गरवा लगाए।
नयनों की बरखा ने दामन भिगाये ।
अब तो सखी मोहे पिया बिसराये ।
अब ना सखी मोहे सावन सुहाए ।
मोरे पिया का ऐसा है मुखड़ा।
धरती पे आया हो चाँद का टुकड़ा।
जैसे अनंगों ने रूप सजाए।
अब तो सखी मोहे पिया बिसराये ।
अब ना सखी मोहे सावन सुहाए ।
अब तो सखी मोहे पिया बिसराये।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
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झमाझम बारिश में
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देखा किसान घर से निकलकर।
बादल गुपचुप कर रहे मिलकर।
पानी अब जोरो से बरसाना है।
धरती को हराभरा बनाना है।
झमाझम बारिश में।।
आए बादल घुमड़ घुमड़कर।
पानी बरसे पड़ पड़ सड़ सड़।
ओले जब पड़ने लगे तो
पेड़ टूटने लगे तड़ तड़।
झमाझम बारिश में।।
देर ना किया किसान भाई।
हल और लाठी साथ उठाई।
चला खेत की ओर भोर में।
पानी भरा हुआ हर छोर में।
झमाझम बारिश में।।
चले हल बैल हुई जुताई।
किसान ने किया बुआई।
फसल बहुत बढ़िया लहराई।
मुस्कान चेहरे पर आई।
झमाझम बारिश में।।
कुँए और तालाब लबालब
नदी और नहर गए है डूब।
हरे हो गए सूखे पेड़
दिखे प्रकृति का अनोखा रूप।
झमाझम बारिश में।।
स्वच्छ मंद सुगंध चली हवा
चलने लगी यो उड़ उड़ उड़।
भीग रहे पेड़ो पर बैठे पक्षी
पंख फड़फड़ा रहे फड़ फड़।
झमाझम बारिश में।।
हो गई कचरो की सफाई
साफ जगहों पर रौनक आई।
खिलने लगे मुरझाये फूल।
गायब हो गई धरती की धूल।
झमाझम बारिश में।।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
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सावन
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कहते हैं
झूमकर
सावन आया है .....
हमनें भी
देखा तो है
झोंपड़ियों की
छत को
टपकते हुए ......
चूल्हे की आग को
बुझते हुए .....
भीगे
चीथड़ों में सिमट कर
बैठे हुए बच्चे .....
सावन
आया तो है
पर बरस रहा है
आंखों से .......
काश
इन सब के लिए भी
झूम कर
आता सावन......
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
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सावन में गौना की आस
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अबकी गवनवा की आस मन को रिझाई है।।
अबकी है गौना की आस सावन ऋतु आई है
कजरी गायन की प्यासकानों में गुनगुनाई है
झूला झूलन की प्यास तोहरे संग भरमाई है! 1!
एकौ अरज मेरी सुन लेना बदरी
सासर के गाँव चरण छू लेना बदरी
जईयो सजनवा के द्वार संदेसो मोर दे अईयो!2!
अबकी गवनवा की आस सुहागन बन आई है।।
भावत नाहीं मेला-ठेला सनीमा
हर पल पिया-पिया रटन है मनमा
आ भी जाओ भरतार सावन रति छाई है!3!
अबके गवनवा की आस सुहागन बन आई है!!
दादुर मोर पपीहा गावैं
शीतल बुँदियाँ अगन लगावैं
दिदिया की पाती जियरा जलावैं
भैय्या भी चले ससुराल
कि भौजी की अवाई है।।
आ भी जाओ भरतार सावन रुत आई है!4!
अबके गवनवा की आस सुहागन बन आई है।।
मैया बाबा की यही राजी खुशी है
तुलसी अँगनवा की बड़ी हरियाई है
सखि कुँवारी मन-मन मुस्काईं हैं
चुनरी पवन ले उड़ाई
सावन रुत आई है!
आ भी जाओ भरतार सावन रुत आई है! 5!
अबके गवनवा की आस सुहागन बन आई है।।
- हेमलता मिश्र "मानवी"
नागपुर - महाराष्ट्र
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सावन का सौंदर्य
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सावन में कल-कल निनाद करती नदियां,
नैनो को मनभावन व सुहावना है लगती।
हाथों में मेहंदी रच सजी-धजी युवतियां,
सोलह सिंगार में अद्भुत सौंदर्य बिखेरती।
खेतों की हरियाली पेड़ो की हरी पत्तियां,
बोझिल थके पथिक का पीड़ा हर लेती।
सावन में रिमझिम बूंदें झूमती डालियां,
मदमस्त हो नवजीवन का राग सुनाती।
खेतों में धान की रोपनी करती युवतियां,
लोक संगीत गुनगुना मधुर तान छेड़ती।
पपीहे की टेर व मोर का मनमोहक नृत्य,
हृदय तल को आनंद विभोर कर जाती।
मेघों की तेज गर्जन चमकती बिजलियां,
सुहानी वादियों में किलकारियां हैं भरती।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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सखी बदरा घिर - घिर आए
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कौन बचाए इनमें कौन समाए
सखी बदरा घिर - घिर आए
प्रीत - पपीहा झूम रहा है
चहुं दिशा मन घूम रहा है
हौले - हौले पवन है बहता
अधरों को ये चूम रहा है
हल्के- हल्के झूम - घूम कर
मन बगिया को ये सुलगाए
सखी बदरा घिर - घिर आए।
प्रीत की फिर से आस जगी है
मन उपवन में आग लगी है
उमड़ - घुमड़कर बदरा छाए
बरखा की अब झड़ी लगी है
चारों ओर भटक - अटक कर
मन प्रियतम से प्रीत लगाए
सखी बदरा घिर - घिर आए।
- प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा - गुजरात
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सावन आयो रे
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सावन ऋतु आयी सखी
घनघोर घटा छा गयी
चमकने लगी चंचला
बरसने लगें बदरा
पड़नें लगी फुहारें जल की
कली -कली खिल उठी
हो गयें पेड़ निहाल सखी
डाली -डाली कोकिल गाये
ले मीठी सी तान सखी
करती स्वागत सावन का
बोले प्रेम की बोली...
खिलने लगे प्रेम के फूल सखी
पिया मिलन की आस जगी
मन मे उमंग ,प्यार ...।
झोटे ले ले झूले सखी
गाये कोयल संग, ले मीठी सी तान
"कोयल गाये बागो मे सखी
सावन आयो रे "...।
- बबिता कंसल
दिल्ली
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सावन
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धरती प्यासी अंबर प्यासा
प्यासी चहुंओर बंजर जमीन।
बरसों रे सावन झड़ी लगाके
के शीतल हो तन मन की जलन। ।
सावन की बूँदें बन जब बरसोगी
तुम बारिश के मौसम में।
साथ अतिवृष्टि ना लाना तुम
झोपड़ी अन्न न बहाना बारिश में। ।
बनकर घटायें दिलों को शांत करना
धर्म जात की नफरत बहा ले जाना।
के सभी आदमी से इंसान बनें
सावन की ऋतु में खुशियाँ दे जाना। ।
अपनों की यादें उनके वादे
भिगोकर ना मिटाना सावन में।
जिंदगी में होते सहारे यही यादें
बातें ना भुलाना सावन में। ।
रे कारे घने बदरवा सावन में
ना बरसों हमारे अंगनवा।
जब बिदेस से आयें सजनवा
सावन में जोर से बरसो हमरे जीवनवा।।
- कवि डाॅ•मधुकर राव लारोकर
बेंगलोर - कर्नाटक
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सावन का त्यौहार
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आया सावन का त्यौहार
बन ठन निकली नार
डाल पेड़ों पर रस्सी
झूला झूले बारम्बार
नाचे गाए छाई बहार
सावन के गीत दे खुशी अपार
मायके से भाई लाए सिंधारा
मिठाई सुहाली और घेवर
मिल गाएँ गीत सखियाँ
सावन में रिमझिम पड़े फुहार
आया सावन का त्यौहार
पंछी करते कलरव मस्ती में
छाई चारों ओर हरियाली
मिलजुल कर सखियाँ झूला झूले
लगा मेंहदी कर सोलह श्रृंगार
आया सावन का त्यौहार
मिल सब सखियों संग
नीलम भी झूला झूले बारम्बार
आया सावन का त्यौहार
- नीलम नारंग
हिसार - हरियाणा
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बरसती बरसात
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अनवरत
बरसती बरसात ने
ढक दी है
पथरीली जमीन ,,,,
उसकी दरारें ,,,,
हरी चादर के
आँचल से ।।।
पर
कब तलक ??
तपते सूरज
की अगन...
फिर उघाड़ जाएंगी ,
पथरीली जमीन भी...
उसकी दरारें भी...।।
- कनक हरलालका
धुमरी - असम
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आए नंद किशोर
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सावन आया- सावन आया
छाई घटा-घनघोर
सखी री- आए नंद किशोर।।
झूला डालें नदी- किनारे
ठंडी रिमझिम पड़ें फुहारें
बागों में मतवाले होकर,
मोर मचाएँ शोर -
सखी री- आए नंद किशोर।।
सपनों की उड़ती देख पतंगें
करवट हैं ले रही उमंगे
जबसे उस मनहर ने थामी,
इस जीवन की डोर-
सखी री -आए नंद किशोर।
आ ले आएँ लड्डू-कचौड़ी
घेवर, फिरनी, पेड़ा- पकौड़ी
भाए सब कुछ उस प्रियतम को
जो ..देवों के सिर मोर-
सखी री- आए नंद किशोर।।
आ मिल आएँ यमुना तीरे..
सखी झुलाएँ धीरे- धीरे
बहुत जल्द ही सावन बीता
बीती रजनी भोर-
सखी री- आए नंद किशोर।
सखी री- आए नंद किशोर।।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
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सावन का आगवन
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आज शाम जब बरसा सावन,
भींगा अपना तन मन सारा ।
रात सावन की, कोयल भी बोली,
पपीहा भी बोला, मैंने नहीं सुनी।
तुम्हारी कोयल की पुकार, तुमने पहचानी क्या?, मेरे पपीहा के भी गुहार?
रात सावन की, मन भावन की
कुहु-कुहु मैं कहां तुम कहां पी कहां !
आज शाम जब बरसा सावन
भिंगा अपना तन -मन - सारा ।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
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सावन
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मैने उनसठ सावन हैं देख लिये
पर हर इक सावन था इक जैसा ।
मस्ती मारी किया खूब धमाल
भरपूर आनन्द लिया बिन पैसा ।।
कीचड़ मेँ हम खूब उछले कूदे
टोली बना खूब हुडदंग मचाया ।
खुद भी खाए पके हुए आम
फैंक फैंक सबको स्वाद चखाया ।।
अन्जीर भी दोस्तों ने बहुतेरे खाए
अमरूद भुट्टे भी सबने खूब उड़ाये।
खा खा कर तोंद पर हाथ भी फेरा
कई गिलास फिर लस्सी गट्काये ।।
हर जीव में सावन है मस्ती लाता जीव झूमता गाता और इठलाता ।
सावन तो भाई सावन ही होता
हर इक हंसता हर कोई गाता ।।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
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सावन
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जेठ दुपहरी अगन लगाए
साजन मोहे सावन भाए,
क्या धरती, क्या अम्बर
चहुँ ओर हरियाली छाए,
वन में झूमझूम नाचे मोर
जब मेघा उमड़-घुमड़ आए,
बरसे जब रिमझिम पानी
तन-मन भीग-भीग जाए,
जेठ दुपहरी अगन लगाए
साजन मोहे सावन भाए,
मिले साथ तुम्हारा ऐसे में
मन मोरा मयूर बन जाए,
मन के आंगन में कोयल कूके
मधुर मिलन के गीत सुनाए,
अटखेलि करे पवन डालों से
सावन के झूले मोहे ललचाए,
ठंढी फुहारें परे जब गालों पर
चूमने को लट लिपट जाए,
जेठ-दुपहरी अगन लगाए
साजन मोहे सावन भाए ।
- पूनम झा
कोटा - राजस्थान
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सावन में पीहर
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कैसे जाँऊ मैं सावन में पीहर
चहूँ ओर फैला कोरोना का डर
रेल ,बस हैं बंद कैसे करें सफर
रहोगे सुरक्षित न छोड़ो अपना घर
अमिया की डार पै सखियों के संग
सावन की ऋतु में झूले सी उमंग
तालाबों में बालक करें हुड़दंग
छोटू न करेगा बुआजी को तंग
कोरोना काल मजबूर है बहना
भाई कहे न मन चाहे जो कहना
ई राखी वाट्सएप पर भेज देना
रहेगी ई राखी की चमक बहना
- निहाल चन्द्र शिवहरे
झांसी - उत्तर प्रदेश
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सावन
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सावन गीत
सखियों संग बाजे
पैंजनिया रे
पहने धानी
चुनरियाँ गोरियाँ
संग नाचे रे
मैना खोई
आम्र कुँज कोयल
मनुहार रे
मधु यामनी
रात सुहानी आई
मनमीत रे
सावन पड़े
झूले नाचें सखियाँ
नाचे मोर रे
अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
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सावन की तीज
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मेरा मन लोचे घेवर को ,
हरियाली तीज है आयी ।
आयी ऋतु सोलह श्रृंगार की ,
आयी सावन के फुहार की ,
आयी अरमान के बहार की ,
आयी तेरे मेरे प्यार की ।
मेरा मन लोचे चुनर को ,
मतवाली तीज है आयी ।
वेणी ने बालों को सजाया ,
सिंजारा पीहर से आया ,
टीका, साड़ी , नथनी लाया ,
माँग ने सिंदूर लगाया ।
मेरा मन लोचे महावर को ,
निराली तीज है आयी ।
पायल , बिछुए छन - छन करते ,
चूड़ियाँ , कंगन खन - खन करते ,
हुस्न के आज अंबार लगे ,
पिया संग ' मंजु ' गुलनार लगे ।
- डॉ . मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
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कैसे करूँ श्रंगार
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सावन आये, पिया नहीं आये
कैसे करूँ मैं श्रंगार, सखि रे l
उमड़ घुमड़ बदरा घिर आये
छम छमाछम बुँदिया है नाचे
नैनों में गंगा जमुना की धारा
कैसे करूँ में श्रंगार सजनवा l
रतिया अँधेरी मोहे डरावे
सेज पिया बिन मोहे न भावे
बीत गये दिन कटे न रैना
कैसे करूँ में श्रंगार सजनवा l
बिजुरी चमके मोहे डरावे
कोयल की पीहू पीहू रास न आवे
धड़क धड़क जावे मोरा जियरा
कैसे श्रंगार करूँ मैं सजनवा l
सावन की मल्हार मोहे न भावे
कोयल की पीहू पीहू रास न आवे
उठी रे जिया में दरदिया हो रामा
कैसे करूँ मैं श्रंगार सजनवा l
अमुवा की डाली पे सावन के झूले
पहरे लहरिया सखियां बुलावे
कैसे मैं खेलूँ कजरिया हो रामा
कैसे करूँ मैं श्रंगार सजनवा l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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सावन के झूले
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मायका से आया संदेश
आ जाओ अपने प्रदेश
सखी सहेली आई हैं
सावन में झूले लगाई हैं।
अमियाँ की ठंढी छांव
कौवा बोले जब कांव
झूला झूलन निकल पड़े
घर में टिकते नहीं पांव।
याद आएगी हर बात
वो सावन की बरसात
छप-छप करते नन्हें पांव
कागज की चलती नाव।
झूलन की वो रात
राधा की हर बात
कान्हा के मुरली की तान
कौन सुनाएगा अब गान।
सावन कट गया घर में
कोई झूला नहीं शहर में
लगे सावन में कैसे हिंडोला
कोरोना के इस कहर में।।
- प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र'
पटना - बिहार
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सावन होगा मनभावन
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प्यासी धरती मां की प्यास बुझाने, आता सावन है,
धरती मां का रूप बदलता, खिलता झूमता हर मन है !
नन्हीं नन्हीं बूंदे, हरी हुई बेलों पर मोती हार पिरोती हैं,
धूल ग्रसित धरती मां के आंचल को फव्वारें धोती हैं !
निखरे निखरे पेड़ पौधे मस्ती में मस्त हो झूमते हैं,
हिल हिल मिलते एक दूजे को,और प्यार से चूमते हैं !
आओ सीखें सावन से,कैसे जग खुशहाल बनाऐं हम,
धरती मां का शोषण रोकें, पोषक सब बन जाऐं हम!
सावन का तब साथ मिलेगा, पोषक होगा सारे जग का,
वरणा कुपित वरुण देवता, विनाश करेंगे सारे जग का!!
- सुभाष भाटिया
पानीपत - हरियाणा
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आया सावन
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आया सावन झूम के देखो
सबके मन को भाया।
दसों दिशाओं में घर-आंगन
सबके मन हरषाया।
सरिताओं के यौवन से
पुलिन पार जल आया।
कलरव करते पंछी बोले
झूमों सावन आया।
सुंदर सुरभित सुमनों से
बसुधा भी सज आई।
डाल-डाल पर कोयल गाए
सावन की ऋतु आई।
बरखा की बूँदें हों मानों
मोती-सी गिरती हैं।
झूल-झूल सखियाँ झूले में
खूब ठिठोली करती हैं।
- गजेंद्र कुमार घोगरे
वाशिम - महाराष्ट्र
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पीया की नगरी
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बरसाओ मेघा घुमड़ घुमड क्यूं भरमाये बदरा
तपन बड़ी है जल बिन सब मुरझाए बदरा
चित भी है आकुल व्याकुल प्यासा तन मन मेरा
हरी भरी हरियाली होगी मन गाये बन पपीहरा
बूंद बूंद लड़ियां बरसेगी मन हो जायेगा वावरा
सोंधी सोंधी खुशबू महकी,बरसी रिमझिम धारा
मन मोर हुआ चितवन, हुक उठी दिल की नगरी
बरसो मेघा आज झमाझम मेरे पीया की नगरी
हलधर भी गाए राग मलहार देख खेतों की हरियाली
सावन में सजनी भी डोले साजन
बिन मतवाली
नैनो से कहती सारी बतिया प्रीत हुई मनमानी
सखियां सारी गाये कजरी ओढ़ चुनरिया धानी।
- सपना चन्द्रा
भागलपुर - बिहार
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ये मौसम
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आया सावन का मौसम
हरियाली ले आया ये मौसम
सखियों की याद दिलाता ये मौसम
विरह गीत सुनाता ये मौसम
पिय संग लुभाता ये मौसम
पर्व का प्रारंभ कराता ये मौसम
हर रिश्तों के पर्व को सजाता ये मौसम
तन मन सराबोर कराता ये मौसम
प्रकृति का श्रृंगार कराता ये मौसम
रिम झिम फुहार झड़ी लगाता ये मौसम
धरती माँ को नीर से आनंदित कराता ये मौसम
घटा बदरा बिजली की तान सुनाता ये मौसम
मन को उत्साहित प्रफुल्लित कर गुदगुदाता ये मौसम
हर रस को जीवन में लाता ये मौसम
अपनी छटा बिखराता ये सावन
अपनी गोद में सुलाता ये मौसम
सावन तेरी छटा अजब है निराली
इस ऋतु के आने से आती जीवन में हरियाली
इसके आने से आती हरियाली......
- मंजुला ठाकुर
भोपाल - मध्यप्रदेश
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कारे बदरा
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उमड़ घुमड़ के वर्षा ला रे कारे कारे बदरा।
पिया मिलन की आस में लगाऊँगी कजरा।।
प्यास से व्याकुल धरा को तृप्त कर जा रे कारे बदरा।
ज्येष्ठ आषाढ़ के घाम से झुलसी धरा पे बहा सावन धारा।।
वरसात से अच्छी फसल साहूकार के कर्ज से होगा छुटकारा।
सूखे पेड़ पौधे खुशनुमा नव कोंपलें देंगीं नया नजारा।।
पशु पक्षी कलरव करके महका देगें जग सारा।
प्रेयसी प्रेमी के मिलन की आस में गुजारेगी वक्त सारा।।
कारे बदरा तेरे ना बरसने से होता मायूस जग सारा।
सूखे नदी नाले पोखर बच जाये पानी वाला जीव सारा।।
तेरे झमाझम बरसने से टपकेगा मधुर संगीत सारा।
हर जन में खुशी समायेगी जग लगने लगेगा दुल्हन सा सारा।।।
- हीरा सिंह कौशल
मंडी - हिमाचल प्रदेश
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सावन में
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सावन में जब काले बादल
झूम झूम आतें हैं
मन की वीणा के असंख्य
तार झनझनाते हैं
बरसती हुई बूंदे जब
तन को छू जाती है
सर से पांव तक तेरी
खूशबू में नहाते हैं
ऐसे में जब पी तेरी
याद सताती है
गीली हथेली पर तेरा नाम
लिखते और मिटाते है
हरियाली का चूनर ओढ़े
धरती मुस्काती है
भींगीं कलियों को देख
भंवरे गीत गाते है
गाँव गाँव सावन के
जब मेले लग जाते हैं
बागों में आम डाली
झूले लग जाते हैं
तीज और राखी के
पावन त्योहार मनाते हैं
मंदिरों में शिवभक्तों के
मेले लग जाते हैं
सावन में जब काले बादल
झूम झूम आते हैं
मन की वीणा के असंख्य
तार झनझनाते हैं
*स्वरचित मौलिक रचना*
- संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
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सावन आया
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सावन की रिमझिम और फुहार,
सकल जगत होता निहाल,
चहूँ ओर बिखरी प्रकृति में हरियाली,
संपूर्ण प्रकृति ने मानो हरी चुनर ओढ़ी,
देख ये मनोरम दृश्य,
कह उठते सब के सब,
सावन आया,सावन आया,
राखी का त्योहार है लाया,
शिव अर्चन का भाव बढ़ाता,
मंदिरों में जमघट लगता,
पेड़ों पर पड़ गये झूले,
बहनों का मन ले रहा हिलोरें
सावन में पिकनिक होती है,
सैर सपाटे की धुन होती है,
सावन पूर्णिमा को आता है,
राखी का विरला त्योहार,
मेहंदी सजती बहनों के हाथ
तिलक लगा भाई के माथ,
बहन बांधती रक्षासूत्र,
स्नेह प्रेम से मनता त्यौहार।
- प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा - राजस्थान
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सावन
*****
बरसात की फुहारें हैं,
चारों तरफ हरियाली,
धरा मानो सोना उगल रही,
वृक्ष भी लदे हैं फलहारी,
फूलों ने छटा बिखेरी है,
इंद्र धनुष ने अपने रंग,
नदियां झरने सब बड़ गए,
बड़ गई अब मानव की मुसीबत,
प्रलय का रूप लिए ,
दरक रहे हैं पर्वत खूब,
आते जाते वाहनों पर,
नजर लगी रहती सभी की,
सुरक्षित हो सफर ,
बस भीगने का आनंद ले,
निकल पड़ते सब बाहर,
सावन के रंग हैं निराले,
सब देखने केवल पहाड़ों की,
दौड़ लगाए पड़े हैं मानव,
देखो सावन आया फिर से,
बरसात के बादलों को पकड़।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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मनभावन सावन आयो रे
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मनभावन सावन आयो रे,
विचार खाये हिंडोले म्यारो रे।
मन उमंग से झूल उठा जाय रे,
चलो कुछ गुनगुनाएँ रे ।।
मनभावन………..
जज़्बात पीछे छोड़ो रे,
समय का आनंद उठाओ रे।
झूला झूलो पिया संग रे,
प्रफुल्लित हुआ मन म्यारा रे।।
मनभावन…………
हल्की-हल्की बुँदिया की फुआर रे,
करती बेचैन मन म्यारो रे।
सब्र का बाँध टूटा जाय रे,
कहती रिमझिम की फुआर रे।।
मनभावन……….
- नूतन गर्ग
दिल्ली
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सावन
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तन तापित हो जब भी मनु का, बरसात लगे तब सावन है।
पिक कूक रही द्रम डाल बसे, ऋतु ये लगती मनभावन है।।
चहुँ ओर बहार पयोधर की, बरसे जल धार सुहावन है।
उड़ता मन मोर हवा बनके, मनभावन मौसम सावन है।।
ध्वनि दादुर भूतल में सु करे, पिक गीत भले अब गावत है।
चहके यह अंबर भू सबहीं, बरसात धरा पर आवत है।।
नदियाँ जल धार खिले सहरा, घन आँचल भूमि सजावत है।
लगती धरती यह सावन सी, इसका मधु रंग लुभावत है।।
बरसात झमाझम हो जब ही, मन में रहता रस प्यार भरा।
धरती चहके महके खुशबू, कण में बहता सुर नीर झरा।।
नभ से घनघोर घटा बरसे, हर कोण हुआ इस भूमि हरा।
हर बार यही बरसात कहे, इस सावन में सब मोद करा।।
अति श्याम मनोहर मेघ छटा, प्रभु से जग को वरदान मिले।
गरजे बरसे जब भू पर ये, वसुधा स्थल जीवन दान मिले।।
अनमोल हुई जल बूँद अभी, जल संचय का अब मान मिले।
प्रभु ने यह एकसमान दिया, जल से सबको नित प्रान मिले।।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखंड
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सावन
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सावन रंगीला आया
सावन सजीला आया
सावन में भीग भीग
मन को हर्षाइए
सावन में भीगी धरा
सावन को देखो जरा
सावन में बूँद बूँद
निहारते जाइए
सावन की रिमझिम
सावन की रुनझुन
आनंद लेने भीगने
निकल ही जाइए
सावनी मेहंदी रची
पिया जी के मन बसी
सजनी करे नृत्य आज
आनंद मनाइए।
- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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सावन में चलो
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झूला दो माई श्याम परे पालना में।
झूला दो रघुवीर पालने री।
झूला डालो कदम की डाली में।
झूला डालो कदंब की डाली में।
झूला डारो सखी मंदिर में।
झूला पड़ गयो रे आंगन में।
झूला डालो रे मोरे अंगना में।
पार्वती के पुत्र गजानन पालने में झूल रहे।
सखी चले चलो चले दर्शन में खोए।
हरे रामा आज बिरज में श्याम झूला झूले।
हरे रामा श्याम झूला झूले राधा संग।
सावन हरे रामा लागो सावन को महीना।
सावन को महीनों में कोई झूला नहीं डालो रे।
काए सखी झूला झूले सावन में चलो।
सावन की रिमझिम फुहार झूला झूले सखी हम तुम मिलकर।
- उमा मिश्रा "प्रीति"
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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सावन श्रृंगार
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साल के होते बारह महीने हर महीने के मायने होते
यूं तो सारे महत्तवपूर्ण पर सावन के सब दीवाने होते
जो होता सावन का आगमन सारा आलम खिल खिल जाता
जीत देखो उत हरियाली जिसे देख मन हर्षित हो जाता
सात रंग की सात बाहारे सावन में ही तो दिखती
इंद्रधनुषीय सप्त धाराएं अम्बर का श्रृंगार करती
सावन में इस कुदरत की छटा अदभुत ही निखरती
जैसे कोई राजकुमारी सज संवर इठलाती मचलती
शिव शंकर का भी तो सावन में अति अदभुत होता श्रृंगार
नाग पंचमी नाग पुजाते राखी भाई बहन का त्योहार
हरियाली और तीज महोत्सव महिलाओं के लिए विशेष ही होते
क्योंकि इसी वक़्त हम सज संवर कर मायके को प्रस्थान करती
सावन आया उमड़ घुमड़ कर करते हम सब इससे प्यार
प्रकृति ने किया अनोखा श्रृंगार हरियाली बनी प्रेम भरी रसधार
- शुभा शुक्ला निशा
रायपुर - छ्तीसगढ़
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सावन मनभावन
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मौसम के बदले नजारों में हम ।
सावन की रिमझिम फुहारों में हम ।।
गर्मी की तपती दुपहरी सही ।
अपनों से मिलने की जल्दी रही ।।
नीले गगन के सितारों में हम ।
सावन की रिमझिम फुहारों में हम ।।
खुशियों को सारी समेटे चलो ।
साजन के सपनों में बहते चलो ।।
बहती नदी के किनारों में हम ।
सावन की रिमझिम फुहारों में हम ।।
गुलशन की रौनक बन के रहो।
फूलों की खुश्बू से महके रहो ।।
यूँ ठंडी हवा की बयारों में हम ।।
सावन की रिमझिम फुहारों में हम ।।
चञ्चल सी चितवन सूरत लगे ।
दर्शन में भगवन की मूरत लगे ।।
सबको लगे कि बहारों में हम ।।
सावन की रिमझिम फुहारों में हम ।।
मौसम के बदले नजारों में हम ।
सावन की रिमझिम फुहारों में हम ।।
छाया सक्सेना ' प्रभु '
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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सावन आया री
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कोयल कूहुके बुलबुल गाये
दादुर ताल लगाए सावन आया री ।
गगन घटा रिमझिम बरसाए
मयूरी मोर मन भाए सावन आया री ।।
अद्भुत महिमा सावन तेरी
हरियाली चहुँओर बिखेरी
सूखी शाख़ें जर्जर काया
बूढ़े तन पर यौवन छाया
वृक्षों के सिर चढ़ इठलाएँ
हो गयीं हरी लताएँ सावन आया री ....
भोर भई उठ कक्ष बुहारे
भीगा आंगन गगन निहारे
दुल्हन घर में सोचती घूमें
पुरूवाई झोकों संग झूमें
काग मुँडेरी शोर मचाए
पिया संदेशा लाए सावन आया री....
मिलके सखी करें तैयारी
बर्रही पटरी हल्की भारी
चुनके डाल आम की डाली
बारी बारी फिर मतवाली
पाँव जोड़कर झूल झुलाए
लम्बी पेंग बढ़ाये सावन आया री....
नयनों में जो स्वप्न सलोने
बनके विचर रहे मृग छौने
आशा और निराशा घेरे
कब आओगे प्रियतम मेरे
याद हृदय की पीड़ बढ़ाएँ
विरहन कंत बुलाए सावन आया री....
कोरोना के दुखद समय पर
प्रिय मित्र की बात मानकर
शब्द अर्थ उलझा सुलझाया
काव्य कर्म का धर्म निभाया
अनाड़ी गीत अंतस ने जाए
निष्ठुर जान न पाए सावन आया री....
- डॉ भूपेन्द्र कुमार
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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आया सावन मन को भाया
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पावन परम सुहावन भावन , राखी का त्यौहार ।
इससे भाई बहन का प्यार ।।
आया सावन मन को भाया ।
रिमझिम बूंद मेघ बरसाया ।।
झूला झूले सखी सहेली , खुशियाँ बड़ी अपार ।
इसमें भाई बहन का प्यार ।...................१
श्याम श्वेत मेघा है छाये ।
मोर मयूरी अति हरषाये ।।
नृत्य करें नित आनन्दित हो , हरा भरा संसार ।
इसमें भाई बहन का प्यार ।...................२
सब रक्षा का वचन निभाना ।
राग मल्हार का गाओ गाना ।।
कजरी सावन गीत मनोहर , होय साज झंकार ।
इसमें भाई बहन का प्यार । ....................३
मेंहदी हाथ रचा रही गोरी ।
निर्मल मन हृदय की भोरी ।।
मक्खन मेवा माल पुवा संग , मीठा मिले अचार ।
इसमें भाई बहन का प्यार ।...................४
राजेश तिवारी "मक्खन"
झांसी - उत्तर प्रदेश
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सावन की यह ऋतु सुहानी
*********************
कारी कारी घिर आई बदरिया..
बरखा की रुत आई सुहानी..
चम चम चमके बिजुरी रानी..
मन मयूर होकर नाच उठा मेरा..
सखियों के संग नाचू मैं तो..
याद पिया की आने लगी..
पिया गये परदेश हैं मेरे ..
कोई उनको संदेशा पहुंचाए..
विरहन बरखा अगन लगाये...
सावन की यह ऋतु सुहानी..
पुरवाई सन सन बहे...
कैसे मनवा को समझाएं..
सब सखियां मिलकर झूला..
झोटा देतीं कजरी गाती..
पीहर से संदेशा आए..
भैया बहना को लेने आए..
बरखा की रुत आई सुहानी..
चारों छाई हरियाली..
मनवा मोरा उड़ उड़ जाए..
पिया की याद सताये बैरी..
मंद मंद बहती ठंडी पुरवाई..!!
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
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सावन आया
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सावन आया ,सावन आया
मिलने की सौगातें लाया
कारे-कारे मेघा छाए
रिमझिम बूंदें मन को भाये
धरा सुहानी लगती सारी
झूला झूले सखियाँ सारी
सावन सबके मन को भाया ।
मोर-पपीहा शोर मचाए
बाग़ में कलियां मुस्काए
बिजली चमक से जी घबराए
सावन सभी त्यौहारें लाया।।
- अनीता सिद्धि
पटना - बिहार
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सावन पर दोहे
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सावन बादल आय है,पानी लाये साथ।
धरा ने स्वागत के लिए,बढ़ा लिए है हाथ।।
काले बादल छा गये, पवन करत है शोर।
धरती स्वागत के लिए बढ़ा रही है हाथ।।
शहर से भैया आ रहे सावन में इस बार।
बहिना स्वागत के लिए, सजा रही घर द्वार।।
- राजीव नामदेव "राना लिधौरी"
टीकमगढ़ - मध्यप्रदेश
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सावन फिर जब भी आए
********************
यह बैरी सावन जिया तड़फाए
भीतर बाहर कहीं चैन न पाए
कभी कभी सोचू ये मेघ न बरसे
तो मन पिया मिलन को न तरसे
पर ये बरखा तन में आग लगाए
मनवा बिन भीगे ही भीगा जाए
न ही सावन के झूले अब मुझे भाए
न हरी चूनर मन को आज लुभाए
तुम बिन लगता फीका सावन
मन को कभी न भाया फागुन
बंजर धरती ने भी ओढ़ी चादर हरी
इस विरहन की अब तक न गागर भरी
बाहर की अगन तो बरखा बुझाए
भीतर की अग्नि को कैसे बुझाए
अब यह सावन फिर जब भी आए
मेरे साजन को अपने साथ में लाए
- मधु जैन
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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बूंदों का मौसम
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हुई विदा अब ग्रीष्मा रानी
रिमझिम आई ऋतु सुहानी
हर्षित धरती का कोना कोना
टिप टिप बरस रहा है पानी
लुभा रहा ये महिना सावन
खुशियों से भर जाते दामन
उत्सवों से भरा माह यह
सज जाते हैं हर घर आँगन
बरखा रानी की अगुवाई
मोर पपीहों की शहनाई
कारे बदरा थिरक रहे हैं
करती चपलाएँ रोशनाई
हलधर खेतों को धाए हैं
गोरी मुन्नू भी संग आए हैं
झोली में बीज भर लाए हैं
हाँ,मोती ज्यों बिखराए हैं
चारों ओर हरियाली छाई
बाली भुट्टों ने ली अँगड़ाई
ताल नदी भी झूम रहे हैं
नौकाविहार की बारी आई
नहरें बनी गाँव की गलियाँ
चुन्नू मुन्नू रानी व मुनिया
छप छप करते हैं तैराते
कागज की रंगीन कश्तियां
दूर देस से बिटिया आई है
बाबुल की दुनिया आई हैं
राखी के रेशमी बंधनों में
बहना, प्यार समेट लाई है
गली गली गाँव की सारी
सखियों ने जो महकाई हैं
डाल डाल पर झूले लटके
गीतों ने धूम खूब मचाई है
सोमवार को सजे शिवाला
पंचमी को नाग निवाला
कान्हा भी है आने वाला
हर यशोदा चाहे इक लाला
सावन ने जो झड़ी लगाई
पिया की याद बहुत आई
हे मेघा तू परदेस जाकर
सन्देसा मेरा तू पहुँचा देना
निशदिन बरसे हैं मेरे नैना
- सरला मेहता
इंदौर - मध्यप्रदेश
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सावन कजरे की धार रे
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सावन के बदरा छाये,
रिमझिम पड़े फुहार रे।
पड़ गये झूले,नीम तले
चले ठंडी ठंडी बयार रे।
प्रियतम परदेस बसे
नैना पथ रहे निहार रे।
शीतल बूँदे,तन आग लगे,
साजन आय बुझाव रे।
जिस तन लागे वो जाने
या जाने विरही नार रे।
पात पात डाल की गावे
कजरी,मंगलाचार रे।
बदरी सन्देसा दे दे
जा बाबुल के गाँव रे।
बिटिया जोगन भयी
सावन कजरे की धार रे ।
- सुनीता मिश्रा
भोपाल - मध्यप्रदेश
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उमड़ घुमड़ कर आये बदरवा
नैनन नींद चुराए बदरवा ।।
टप टप टपके टूटी छपरिया
झर झर भीगे मोरी चुनरिया
रैन दिवस झर जाए बदरवा ।
बरखा बूंदे झमाझम बरसे
मतवाली हरियाली सरसे
धरती देख लुभाय बदरवा।।
दादुर मोर पपीहा बोले
नेह पीर दरवाजे खोले
उर में अगन लगाए बदरवा।।
चमचम दामिनी चमक दिखावे
बादल गर्जन हिया हियरावे
अति उपहास करावे बदरवा ।।
- सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर -उत्तर प्रदेश
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सावन की रुत निराली
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देखो सावन की रुत आई..
उड़ी उड़ी जाओ का रे बदरवा..
मोरे साजन के देश में...
सजनी का संदेशा पहुंचा दो..
सावन की रूत आई सुहानी..
खेतों में लहराए हरियाली.. ..
नदी तालाब पोखर सब..
शोर करे चहुं ओर हो..
हरी हरी चूड़ियां भाने लगी मुझे..
सखियों का संग भाने लगा...
अमवा की डाली पर झूला झूलूं..
लहरिया साड़ी तन पे सोहे..
घेवर और रंग बिरंगी मिठाई..
पीहर की याद आने लगी..
मेहंदी महावर सोलह सिंगार..
कर इंतजार करूं साजन का..
उड़ी उड़ी जाओ बदरवा..
साजन को संदेश पहुंचा दो..
सजनी घर बुलाए बालम..
आन अब परदेश से..
बरखा की रुत आई सुहानी..
भाने लगी मोहे धानी चुनरिया..
पहन पिया संग जाऊं मैं तो..
सावन मेला देखन को...!!
- प्रीति हर्ष
नागपुर - महाराष्ट्र
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सावन की रिमझिम फुहार
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आई सावन की रिमझिम फुहार
चलो सखी झूलन चलें
चली बगिया में ठंडी बयार
चलो सखी झूलन चलें।
पहनी लहरिया हरी- हरी चुनर
बालों में गजरा कानों में झूमर
अपने साजन को ले लें साथ
चलो सखी झूलन चलें।
अंबुआ की डाली पड़ गए झूले
गोप गोपियां रल-मिल में झूलें
कान्हा छेड़े मुरलिया की तान
चलो सखी झूलन चलें।
भीगे चुनर भीगी चोली
बांध पैंजनियां नाचे गोरी
बाजे ढोल, मृदंग, खड़ताल
चलो सखी झूलन चलें।
अंबुवा की डाली कोयल बोले
और पपीहा पीहू पीहू गाए
नाचे लोग लुगैयां दे दे ताल
चलो सखी झूलन चलें।
आई सावन की रिमझिम फुहार
चलो सखी झूलन चलें।
सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
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ReplyDelete🌺🙏जय माँ शारदे🙏🌺
🌺🙏नमन समृद्ध एवं सम्मानित पटल #जैमिनी अकादमी, पानीपत।
#सावन के अवसर पर कवि सम्मेलन।
#दिनाँक :- 25/07/2021
#विधा- सवैया (संख्या-५ )
#विषय- सावन
#विधान - दुर्मिल सवैया
#रचनाकार :- *सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'*
देहरादून।
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** सावन **
तन तापित हो जब भी मनु का, बरसात लगे तब सावन है।
पिक कूक रही द्रम डाल बसे, ऋतु ये लगती मनभावन है।।
चहुँ ओर बहार पयोधर की, बरसे जल धार सुहावन है।
उड़ता मन मोर हवा बनके, मनभावन मौसम सावन है।।
ध्वनि दादुर भूतल में सु करे, पिक गीत भले अब गावत है।
चहके यह अंबर भू सबहीं, बरसात धरा पर आवत है।।
नदियाँ जल धार खिले सहरा, घन आँचल भूमि सजावत है।
लगती धरती यह सावन सी, इसका मधु रंग लुभावत है।।
बरसात झमाझम हो जब ही, मन में रहता रस प्यार भरा।
धरती चहके महके खुशबू, कण में बहता सुर नीर झरा।।
नभ से घनघोर घटा बरसे, हर कोण हुआ इस भूमि हरा।
हर बार यही बरसात कहे, इस सावन में सब मोद करा।।
अति श्याम मनोहर मेघ छटा, प्रभु से जग को वरदान मिले।
गरजे बरसे जब भू पर ये, वसुधा स्थल जीवन दान मिले।।
अनमोल हुई जल बूँद अभी, जल संचय का अब मान मिले।
प्रभु ने यह एकसमान दिया, जल से सबको नित प्रान मिले।।
*सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून (उत्तराखंड)
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बहुत ही प्यारी प्यारी कविताएँ एक साथ पढ़ने को मिली
ReplyDeleteबिजेनदर जी के सराहनीय प्रयास को नमन
हृदय से आभार आपका आदरणीय 🙏🇮🇳🙏
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