उत्तर प्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी
माताश्री : विद्या रानी जैन
पिताश्री : श्री सन्तोष कुमार जैन
पतिश्री : डाॅ0 विरेन्द्र कुमार अग्रवाल
विधा : कविता, कहानी, आलेख, वार्ता, गीत।
प्रकाशित पुस्तकें : दस संग्रह प्रकाशित एवं तीन सम्पादित।
पुरस्कार एवं सम्मान : -
- ‘पर्यावरण कितने जागरूक हैं हम’ पुस्तक पर महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा गृह मंत्रालय भारत सरकार के राजभाषा विभाग का ‘राजभाषा गौरव पुरस्कार’ 2015।
- उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भारतीय राजदूतावास काठमांडू एवं नेपाल-भारत मैत्री वीरांगना फाउंडेशन (नेपाल) द्वारा ‘लेखन प्रतिभा सम्मान’ 2018
विशेष : -
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय (भारत सरकार) के केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा उच्चतर शिक्षा हेतु दो पुस्तकों का चयन।
- वाणी अखिल भारतीय हिन्दी संस्थान नजीबाबाद द्वारा महिला साहित्यकारों को प्रोत्साहन एवं पर्यावरण प्रेमी
- आकाशवाणी केन्द्र, नजीबाबाद से प्रसारण
पता : वाणी अखिल भारतीय हिन्दी संस्थान
(संस्थापक-अध्यक्षा)
बालक राम स्ट्रीट, नजीबाबाद - 246763,
जिला - बिजनौर - उत्तर प्रदेश
1. वसीयत
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लम्बे समय पश्चात्... बचपन की सहेलियाँ... जब अचानक मिलीं, तब दोनों के पास मन हल्का करने की लम्बी-चैड़ी दास्तान थीं। पहले दोनों ने एक दूजे को जी भर कर देखा और बैठ गयीं... अपनी-अपनी राम कहानी सुनाने। पारुल के चेहरे पर गुलाबी रंगत स्पष्ट नज़र आ रही पर नीना का चेहरा तेल विहीन लग रहा था।
हाथों को दबाते नीना ने कहा, पारुल! ऐसा क्या मिल गया तुझे, जो तू...इतनी संतुष्ट नज़र आती है? मुझे देख... हर समय पैसे का अभाव... ससुर जी
अपनी धन-सम्पदा से फूटी कौड़ी भी नहीं देते... क्यों करूँ उनकी सेवा? सखी की बात सुनकर पारुल मुस्कुराती हुई... उसे समझाने लगी। नीना, ‘‘मेरे ससुर जी ने मुझे ऐसी दौलत दी है... जिसे मैं जितना खर्च करूँ, बढ़ती ही जाती
है। उनकी पहली दौलत कि जो मन में हो... वही व्यवहार में लाओ... यानि झूठा आवरण मत ओढ़ो...। दूसरी सम्पत्ति कि तुम्हारी थाली में जितना है, उसी में संतृप्त रहो... तीसरी सबसे बड़ी दौलत कि अपने सपनों, विचारों में ऐसी स्थिरता लाओ, जिससे स्वयं पर विश्वास व प्रत्येक परिस्थिति से जूझने की हिम्मत हो यानि स्वयं को स्वार्थवश परिवर्तित न करना पड़े... ये दौलत मिली है मुझे।
‘‘नीना! हम/तुम अपने बुजुर्गों की जमा-पूंजी ही क्यों चाहते हैं? क्या हम उनके अनुभवों या संस्कारों का मूल्य समझते हुए, उनके उसूलों पर नहीं चल सकते? क्या हम उनके बताये मार्गों व दिशा-निर्देशों की वसीयत अपने नाम नहीं करा सकते? पर क्यों??
नीना के तर्क से संतुष्ट... पारुल के मुहँ से निकल ही गया कि नीना... तू! पहले क्यों नहीं आई? ****
2.घरेलू औरत
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नीलू... गीतू से... अपनी बेटियों का परिचय करवाती हुई, बड़ी बेटी शालू की ओर इशारा करती बोली, ‘‘ये मेरी लता... सी0 ए0 कर रही, खूब कमा रही व मेरी तरह घूमना-पार्टियों में जाना... घर व बच्चों से बेफिक्र मस्ती से जीवन
यापन कर रही और ये छोटी इला... पढ़ाने का प्रयास किया पर इसने सुना नहीं, क्या करती? कर दिया विवाह और चली गई... घरेलू औरतों की तरह घर सँभालने ससुराल।
आज इला को माँ के शब्द शूल से चुभे और लावा फूट पड़ा। ‘‘माँ! घरेलू औरतें, बच्चे, पति व परिवार क्या होते हैं, आप क्या जानों? जिसने कभी बच्चों पर ममता की बौछार और वातसल्य लुटाया ही न हो। आप क्या जानों पति व बच्चे
क्या होते? सिर्फ पत्नी या माँ बनना काफी नहीं होता... जब तक इन रिश्तों के सुख-दुःख में आँसू न बहाये हों, ममता, स्नेह, दुलार न किया हो। माँ...
क्या आपने कभी ये जानने का प्रयास किया कि मैं आपसे संतुष्ट हूँ या नहीं
या आपसे क्या सीखा? आपकी अनुपस्थिति में पड़ौस की शिखा आन्टी से मुझे सान्निध्य मिला... वो आपसे कभी नहीं और सुसंस्कार व परिवार के प्रति कर्तव्य कैसे निभाये जाते... ये सब शिखा आन्टी से सीखा... जबकि ये सब
सिखाना... माँ की जिम्मेदारी होती है पर आप...?
‘घरेलू औरत’ की पद्वी पाकर बहुत प्रसन्न हूँ क्योंकि मेरा परिवार मुझसे संतुष्ट और मेरे बिना स्वयं को अधूरा समझता है। इसलिए माँ! वह नया माॅडल... जो आपके विचारों में है... आपको मुबारक हो... मैं ऐसा नया माॅडल
बनना ही नहीं चाहती, जिसमें ‘घरेलू औरत’ बनने के गुण ही न हों। ****
3.काला कोट
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मेरी अल्मारी से नोटो का बैग किसने उड़ाया... गुस्से से दनदनाते वकील साहब ने अपनी पत्नी से पूछा।
‘‘मैनें तो वहीं रखा था... अजय को आने दो... शायद उसने...।, ‘‘खून-पसीने की कमाई! अजय को किसने अधिकार दिया... उसे उठाने का? आने दो... आज
छोड़ूँगा नहीं।’’ तब ही अजय पिता के व्यंग वाण सुनता हुआ... वहीं आ गया और बोला, ‘‘मेहनत की कमाई... क्या ऐसी होती है पापा? आपने उस भ्रष्टाचारी व धोखेबाज व्यक्ति के झूठे केस को कैसे जीता, ये मैं भली-भाँति जानता हूँ? बस उसी झूठ की कमाई से मिला हिस्सा... जिसे रिश्वत कहो या प्रतिशत आपको मिला। पापा! ये वही धन था... जो मैंने उड़ा दिया। आप ही कहा करते हो ना कि
दादी ने आपको एक-एक पैसा जोड़कर वकील बनाया और आप उनकी अंतिम इच्छा, वो भी अनाथालय बनवाने की इस झूठ की कमाई से पूरी करना चाहते हो। आप वहाँ रहने
वाले बच्चों को कैसे सिखा पाओगे कि परिश्रम क्या होता है? सुसंस्कार कैसे होते हैं? मेहनत करके पेट भरना क्या व कैसे होता है और इन्साफ़ क्या होता है? पापा... दादी की अन्तिम इच्छा पूरी करना चाहते हो तो काला कोट पहनकर
सच को सच व झूठे को सजा दिलवाईये, तब ही दादी की आत्मा को शांति मिलेगी। आज पहली बार बेटे की बातें सुनकर वकील साहब अपनी दलीलें भूल चुके थे और
बेटे से नज़रें चुराते हुए... खूटी पर टंगे... उस काले कोट को देख रहे थे। ****
4.माँ का दर्द
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‘‘सोनू! चुप रह... हर समय, निठल्ला... दादी से चिपका रहता, इनकी खाँसी के किटाणु लगेंगे... तब पता चलेगा।’’ भड़ास निकालता रमन... कमरे में चला गया।
बेटे के हृदय में.... इतना जहर... ये आज जाना और स्वयं पर हँसती...शान्ती कमरे में आकर लेट गयी।
‘‘संजना बारह बज गये.... माँ कमरे से बाहर नहीं आयीं।’’ ‘‘भूख लगेगी, तब... तुम्हारी माँ बाहर आयेंगी.... कामचोर कहीं की।’’ पति पर भड़ास निकालती संजना... रसोई में चली गयी। खाँसी की तेज आवाज़ों ने... रमन को माँ के कमरे में जाने के लिए मजबूर कर ही दिया। हाँपती-काँपती शान्ती.... बेसुध पड़ी, इधर-उधर रक्त के कतरे... दवाई की शीशी... और एक्स रे... कहानी बयाँ कर रहे थे।
रमन ने... पहली बार... माँ को नज़रभर देखा.... सोचा... और फौरन डाॅ0 अवस्थी को बुला लिया। चैकअप करके... डाॅ0 अवस्थी ने बताया, ‘‘मि0 रमन...माताजी... पहले मेरे पास आई थीं, उन्हें सचेत किया कि तुरंत इलाज करवायें, टी.बी. है... वो भी अन्तिम अवस्था में.... पर उन्होंने ध्यान
नहीं दिया... विलम्ब हो चुका है... फिर भी दवाई लिख देता हूँ।’’ कहकर डाॅ0 चले गये।
माँ का सिर गोद में रखते... रमन के आँसू बह निकले, ‘‘माँ! माँ... क्यों छुपाया? आपको ज्ञात था..... फिर भी... दर्द सहती रहीं... क्यों माँ क्यों...? शान्ती का वर्षों का गुब्बार बाहर आ ही गया... खाँसी के शोर को
जबरन दबाती बोली, ‘‘बेटा!... कई बार प्रयास किया... दर्द बताऊँ पर तू!
माँ को कभी समझ ही नहीं पाया। खाँसी को जीभ का स्वाद और चटोरपन कहकर स्वयं को अलग कर लिया। बेटा! नौ माह गर्भ में... रक्त से सींचा, लम्बी आयु के लिए.... न जाने कितने मंदिरों के घंटे बजाये, कहाँ-कहाँ झोली फैलाई? पर ये सब माँ का धर्म था क्योंकि तू मेरा रक्त, अंश है ना... पर
एक बार.... सिर्फ एक बार, माँ से नज़रें मिलाई होतीं, बेटे की दृष्टि से देखा होता और घड़ी दो घड़ी पास बैठा होता, अरे कभी तो माँ की खाँसी को बीमारी समझा होता।’’ कहती शान्ती फूट-फूट कर रो पड़ी।
‘‘माँ... माँ अपराधी हूँ... जो चाहे सजा दे दो... ऊफ नहीं करूंगा पर आपको... मेरे व अपने पोते सोनू के लिए ठीक होना होगा।’’ कहता रमन माँ के सीने से जा लगा पर शान्ती की धड़कन मौन हो चुकी थीं... हमेशा-हमेशा के लिए। ***
5. मेरे पापा
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‘‘मेरी प्यारी मम्मा... आप कितनी अच्छी हो... आज मैं आपसे नई कहानी सुनुँगा....सुनाओगी ना।’’ हाँ बेटा, सुनाऊँगी.... अब मुझे काम करने दे।’’
‘‘अंश बेटा! हम भी तो आपके पापा हैं, आओ हमारी गोदी में बैठो.... हम तुम्हें... बड़ा सा घोड़ा लाकर देंगे।’’ ‘‘पापा... आप भी अच्छे हो पर थोड़े-थोड़े।’’ कहता हुआ अंश माँ की गोदी में जा बैठा।
दिन-प्रतिदिन... अंश की.... प्यारी-प्यारी बातें.... जीवन में मिठास घोलतीं.... मुस्कुराने के लिए पे्ररित करती रहती थीं। अंश को बाल्यावस्था से चित्रकारी का शौक था। वो चित्र बनाता, उसमें पहाड़ पर चढ़ता आदमी बनाता
और जब भी पहाड़ों पर जाते.... चढ़ने की ज़िद करता, कहता एक दिन हिमालय पर जाकर झण्डा फहराऊँगा। उच्च शिक्षा.... हेतु.... अंश को दिल्ली.... भेजा
कि शिक्षा के साथ-साथ ट्रैकिंग की ट्रेनिंग भी लेता रहेगा। दूर रहते भी
वो प्रत्येक ‘मदर्सडे’ पर... अपनी माँ को.... सुन्दर कार्ड के साथ फोन पर प्यार उड़ेलना न भूलता।
‘‘कमल! अंश दिल से प्यार करता है, तब ही प्रत्येक ‘मदर्सडे’ पर प्यार उड़ेल देता है।’’ ‘‘हाँ रीना! अच्छा बेटा बने... यही चाहता हूँ।’’ पर...
अंश के लिए... मैं रातों को जागा, स्कूल, काॅलेज प्रवेश के लिए भाग-दौड़ करता रहा.... सिर्फ माँ को याद करता है? सोचते कमल आफिस के लिए निकल पड़ा।
आफिस की गोल मेज पर... आकर्षक लिफाफा व फूल देखकर.... रहा न गया और उत्सुकतावश... खोलकर पढ़ लिया, ‘‘प्रिय पापा! प्रणाम... कुछ दिन पूर्व
ट्रैकिंग अभ्यास के लिए.... टूर के साथ पहाड़ी स्थान पर गया... चढ़ाई
प्रारम्भ की... घबराया, कि कैसे ऊपर जा पाऊँगा? अचानक आपके साथ शिमला जाने वाली सुखद घटना स्मरण आ गई, कि हठ करने पर आपने मेरा हाथ थामकर,
पहाड़ पर कदम बढ़ाना सिखाया था। बस उन्हीं यादों के साथ चढ़ता गया व प्रथम रहा। पापा! तब आभास हुआ कि कैसे पिता बेटे को जम़ीनी गतिविधियों से परिचित करवाता हुआ भविष्य के लिए परिपक्व व सबल बनाता है? पापा... आज/‘फादर्सडे’ है.... उन बीते 25 वर्षों में व्यतीत किये.... सभी सुखद पल...स्मरण करता हूँ, तब एहसास होता कि आप मेरे लिए... दुनिया के सबसे अच्छे पापा हो।
आपका बेटा
अंश
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6.नारी शक्ति
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लम्बे समय से बीमार माँ की सेवा कर रही... हाँफती-काँपती रजिया... कमरे में आते ही माँजी से हाथ जोड़कर... स्वयं को बचाने की गुहार लगा रही, तभी कुछ लड़के डन्डे-लठिया लेकर वहीं आ गये और रजिया को जबरन ले जाते आग उगल रहे थे।
माँजी! इसके शराबी पिता ने हमारी बहन पर बुरी नज़र डाली है। इसलिए हम उसकी बेटी को ले जाकर... सबक सिखाना चाहते हैं... कहते हुए वे दंगाई ‘रजिया’ को बेदर्दी से खींचने लगे। रक्त बहती कलाई व गुहार लगाती रजिया को देखकर... मैं जैसे ही आगे बढ़ा, तभी माँ चिल्लाई, ‘‘तुम लोग कौन हो, मैं नहीं जानती? पर तुम रजिया को नहीं ले जा सकते इसका अब अपने घर व पिता से कोई संबंध नहीं.... ये मेरी बहू, इस घर की इज्ज़त व मेरे बेटे की
जीवनसंगिनी है। इसलिए तुम... तुम इसे नहीं ले जा सकते... अपनी सलामती चाहते हो तो फौरन दफ़ा हो जाओ। माँ को आश्चर्य से घूरते.... वे लड़के चले गये और रजिया माँ से ऐसे लिपट गई जैसे तने से लता। मैं विस्मय से.... माँ को निहारता हुआ, सोच रहा ‘‘कि ये वही माँ है.... जिसे एक वर्ष से अपनी जाति-धर्म व उच्च घराने की लड़की की तलाश है, जिसे वो अपनी बहू का दर्जा दे सके.... पर आज थकी, हारी, बीमार माँ ने.... दंगाईयों के समक्ष घुटने न टेकते हुए ‘नर्स रजिया’ को अपनी बहू बनाकर, उस इंसानियत का परिचय दिया है... जो हमारे विचारों से दूर होती जा रही है। आज.... इस सत्य को, देख व समझ लिया कि नारी शक्ति को परिभाषित नहीं किया जा सकता। ****
7. माँ
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सोनू के पिता की मृत्यु हो गई थी। उसकी माँ... उसे मेहनत-मजदूरी करके पाल रही थी। वो घर-घर जाकर झाड़ू-पोचा लगाती फिर भी सोनू को पढ़ा-लिखा रही थी।
सोनू भी खूब मेहनत से पढ़ रहा था। उसने इन्टर की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली। सोनू ने शहर जाकर आगे की पढ़ाई करने के लिए अपनी माँ से कहा...
माँ के पास इतना पैसा नहीं था फिर भी उसने बेटे को शहर भेज दिया और सारी-सारी रात कागज़ की थैली बनाती, सिलाई करती ताकि बेटे की जरूरतें पूरी कर सके।
सोनू बड़ा आफिसर बनकर उसी शहर में नौकरी करने लगा, जब भी उसे आफिस से छुट्टी मिलती, वो माँ से मिलने आ जाता था। माँ, सोनू को तरह-तरह का खाना खिलाती व खूब प्यार करती। धीरे-धीरे सोनू के पास काम ज्यादा हो गया। इसलिए वो माँ के पास कम ही आ पाता, माँ, उसे देखने, उसकी आवाज़ सुनने को तरसती रहती थी। वो कभी-कभी सोनू को चिट्ठी भेजती, पर सोनू अपने सपनों में
ही खोया रहता और ऐशोआराम का जीवन जीते हुए, माँ के पास आना-जाना कम होने लगा।
एक दिन सोनू आफिस के काम से बाहर जा रहा था। अचानक एक गाँव क पास उसकी गाड़ी खराब हो गई। आसपास गाड़ी ठीक करने वाला भी नहीं था। सोनू परेशान सोच रहा कि अब क्या करें? रात होने वाली थी। तभी एक वृद्ध महिला जंगल से लकड़ियाँ बीन कर ला रही थी, उसने बड़ी सी गाड़ी व सोनू को देखा और वही रुक गई। उसने सोनू की परेशानी का कारण पूछा और उसे अपने घर ले गई। बूढ़ी माई ने पास के लड़के को साईकिल से भेजकर, गाड़ी ठीक करवाने वाले को बुला भेजा और सोनू की खूब खातिर की। सोनू बहुत खुश हुआ और जाते समय आभार व्यक्त करते... माई के चरण स्पर्श किये।
माई ने उसका हाथ प्यार से दबाते हुए कहा, ‘‘बेटा! धन्यवाद मेरा नही बल्कि उस माँ का करो, जिसने तुम्हें पैदा किया, बड़ा अफसर बनाया। बेटा! मैं भी दो बेटों की माँ हूँ और दोनों शहर में खूब पैसा कमा रहे हैं... जाओ और
अपनी माँ को देखो, कहीं वो भी मेरी तरह लकड़ियाँ न बीन रही हो। माई केगिरते हुए आँसुओं को चुमते, सोनू ने अपनी गलती की क्षमा मांगते हुए कहा,
‘‘माई! आपने मेरी आँखें खोल दीं... मैं पढ़लिख कर अपनी जन्म देने वाली माँ को ही भुला बैठा पर अब नहीं... माँ मेरे ही साथ रहेगी। ****
8.घृणा नहीं प्यार दो
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टीना सीधी-सादी व बड़ों का कहना मानने वाली बच्ची थी। उसे अपनी दादी से प्रतिदिन कहानी सुनना अच्छा लगता था। इसलिए वो उन्हीं के पास सोती पर दो-तीन दिन से वो दादी के पास सोने आती पर चुपचाप सो जाती। एक दिन दादी ने पूछ लिया ‘‘टीना! कहानी सुनोगी।’’ टीना चुप रही पर दादी के लाड़-प्यार से पूछने पर उसे बताना पड़ा। ‘‘दादी! मेरे साथ एक लड़की खेलती है, जिसकी एक
उंगुली कटी है, वो मुझसे दोस्ती करना चाहती, क्या मैं उससे दोस्ती करूं? दादी मेरी समझ नहीं आ रहा कि कटी व भद्दी उंगली वाली लड़की से मित्रता करनी चाहिए क्या?’’
दादी ने टीना को बड़े प्यार से समझाया, क्यों नहीं? उसमें और तुममे क्या फर्क है? सुनो! मैं तुम्हें एक सच्ची कहानी सुनाती हूँ, तब तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा।
‘‘हमारे गाँव में एक भोलू नाम का बच्चा था। जिसका बचपन से ही एक हाथ खराब था। उसकी माँ उसे देखकर हर समय दुःखी रहती। पर वो लड़का कभी दुःखी दिखाई
नहीं देता, बल्कि अपनी माँ को भी समझाता और कहता देखना माँ! मैं एक दिन कुछ बनकर दिखलाऊंगा। वो रोज पैरों की उंगलियों से लिखने का अभ्यास करता और स्कूल भी जाता... वहाँ भी वो पैरों से ही लिखता था। बच्चे उसकी हंसी उड़ाते पर वो किसी की ओर न देखता, बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान देता था। उसने अपनी लगन व परिश्रम के बल पर पूरे जिले में सबसे अधिक अंक प्राप्त किये और जब अखबार में मोटी-मोटी लाईनों में छपा ‘कि पैर से लिखने वाला बच्चा भोलू पूरे जिले में प्रथम आया है, तब गाँव वाले खुशी से झूम उठे। जिलाधिकारी ने गाँव के पंचायत घर में गाँव के मुखिया, गाँव वालों व भोलू की माँ को बुलाया और सभी के सामने, उस बच्चे को हार पहनाकर सम्मानित
किया। भोलू की माँ का सिर गर्व से ऊँचा हो गया। अब गाँव के बच्चे जो उससे नफरत करते थे, उसे मित्र बनाने के लिए उसके आगे-पीछे घूमने लगे। टीना! इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि अगर शरीर का कोई अंग खराब हो
जाये तो उस कमजोरी को आगे बढ़ने का हथियार बनाना चाहिए और ऐसे बच्चों से मित्रता भी अवश्य करनी चाहिए, ताकि ऐसे साहसी बच्चों से अच्छा सीखने को मिले।’’ दादी से कहानी सुनकर... टीना की सारी उलझन दूर हो गयी और वो उस दिन से ऐसे बच्चों के प्रति घृणा नहीं बल्कि प्रेम भाव रखती हुई, उन्हीं को अपना मित्र बनाने लगी।
9.चिरविश्राम
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संगीत प्रेमी, मधुर कंठ का धनी, नेत्र विहीन मनोहर के साथ संगीत सीखती तरू....। दोनों माँ की ममता से वंचित... एक दूजे का सुख-दुःख बाँटते... समय व्यतीत कर रहे थे। अचानक सड़क दुर्घटना में तरू का एक पाँव क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण काटना पड़ा। वो रोई-चिल्लाई... जीवन से
शिकवे-शिकायत... पर क्या करे समझ नहीं पाती? ऐसे में मनोहर ने ऐसा मधुर संगीत छेड़ा कि वो अपना दुःख भूलकर उसकी ओर खिंचती चली गयी। तरू... ने
मनोहर के जीवन में उजाला लाने व उसे जीवन साथी बनाने का निश्चय किया और अपनी जमापुंजी खर्च कर उसकी आँखों का आॅपरेशन करवाया। पर मनोहर के दूर चले जाने के भय से कभी नहीं बताया कि उसका एक पैर नहीं है। पट्टी खुलने के दिन... मनोहर ने सबसे पहले तरू... को देखने की इच्छा जताई। उसे डाॅ0, नर्स, सब स्पष्ट नज़र आ रहे थे। दूर खड़ी तरू... भाव विभोर, कि जिसे उसने दिल से चाहा, वो दुनिया के रंग देख पायेगा और उसकी बैसाखी बन.. उसे
दुनिया दिखाएगा... सोचकर पुलकित हो रही थी और अपने सपनों को हकीकत में बदलने की प्रथम सीढ़ी, मनोहर से विवाह बंधन में बंधकर अपने सपनों को परवान चढ़ायेगी।
‘‘डाॅ0 साहब... तरू को बुला दीजिए... उसके कारण ही उजाले की किरण देख पाया हूँ आभार तो दे दूँ।’’ तब नर्स सहारा देती, तरू को पास लाई...। तरू!... ‘‘तुम्हारा ऋण कैसे चुकाऊँगा?’’ कहते हुए मनोहर... अपाहिज तरू
को... अपलक देख रहा था। पर उसके चेहरे पर तरू को साक्षात् देखने पर भी कोई भाव नहीं उमड़ रहा था कि जिसके कारण वो जीवन के अंधेरों से निकलकर
इन्द्रधनुषी रंग दे पाया है। अस्पताल से छुट्टी मिलने पर, तरू बन सँवरकर.. दिल के ज़ज्बात साझा करने..
मनोहर के समीप आयी और कपोलों पर लालिमा, खुले अधर पर वो कह न पाई.. दूरी बनाते.... मनोहर ने ही कह दिया, ‘‘तरू! तुम्हें जानकर हर्ष होगा, मैं एक धनाढ्य परिवार की खुबसूरत लड़की से... प्रेम विवाह कर रहा हूँ क्योंकि वो मेरे आकर्षक रंग-रूप पर काॅलिज के समय से ही फिदा थी पर बीमारी में आँख खराब हो जाने के कारण... कुछ समय के लिए दूर हो गयी थी। लेकिन अब
तुम्हारे कारण सब ठीक हो गया है। तुम चाहो तो तुम्हें उसके आफिस में छोटी-मोटी नौकरी दिलवा सकता हूँ। हाँ तरू... तुम्हें निमंत्रण नहीं दिया
क्योंकि वहाँ उच्च वर्ग होगा.. उनके मध्य तुम.....?’’ वाक्य पूरा होने से पूर्व.. तरू..जा चुकी थी माँ गंगा की गोद में चिर विश्राम के लिए। ****
10.नया जीवन
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‘‘माँ! अतिसुन्दर... घर के बने हैं। आपने अपनी अनूठी कला को छिपाकर रखा... आगे क्यों नहीं बढ़ाया?’’ माँ मुस्कुराई, रिया का हाथ... हाथ में लेकर बोली, ‘‘बेटी! विवाह के पश्चात् इतना सोचने का समय कहाँ मिला? पहले
तेरी शिक्षा, भविष्य... घर की जिम्मेदारियाँ... यही ओढ़ने-बिछाने में लगा रहता दिमाग। रिया माँ के चेहरे को पढ़ने का प्रयास कर रही कि क्या पति के पश्चात् प्रत्येक महिला की यही कहानी होती...?
आज आॅफिस जाते मैट्रो में एक अधेड़ महिला के साथ बैठी... वार्तालाप शुरू हो गया, ‘‘आंटी! आप... कहाँ जा रही हैं?’’ महिला ने मुस्कुराते उत्तर दिया, ‘‘बेटी! योगा क्लास लेने जा रही... आज पहला दिन है।’’
रिया... हैरान इस आयु में योगा क्लास...? रिया के पूछने से पहले... महिला ने सुना डाली दास्तान, ‘‘मेरी कहानी दर्दनाक है...। विवाह के पश्चात्... एक बेटा हो गया... वो खुशी मना न पायी कि पति परलोक सिधार गये। रह गयी
अकेली, बेसहारा... ऊपर से छोटा बच्चा... क्या करती? साथ ले जाकर... घर-घर काम करती, कपड़े सिलती, मेहनत करती... बेटे को पढ़ा रही थी। स्वास्थ्य अच्छा था क्योंकि बचपन से योगा करती थी। बेटे के परिश्रम व मेरी लगन रंग लायी... वो बड़ी कम्पनी में मैनेजर नियुक्त हो गया। तब उसने मुझे घर-घर जाकर काम करने को मना किया और योगा की पुस्तकें लाकर दीं और कहा, ‘‘माँ!
अपने पैरों पर खड़ा हूँ, आपके समर्पण ने मुझे व आपको नया जीवन दिया... आप ये पुस्तकें पढ़कर रिक्त समय... योगा सिखाया करिये।’’ और एक दिन...
बेटा... एक स्कूल में ले गया... पता चला... योगा शिक्षक की जगह रिक्त है, उसके लिए मुझे इन्टरव्यू देना है। डरते-डराते... प्रश्नों का सामना कर...
उत्तर देती रही। एक सप्ताह पश्चात्... नियुक्ति पत्र देते बेटे ने कहा,
‘‘माँ... आप योगा शिक्षिका के लिए चयनित की गयी हो। बेटी... आज मेरा पहला दिन... लग रहा... बेटे ने वह अवस्था लौटा दी... जिसके सपने देखा करती थी।’’ महिला का दमकता चेहरा... जिसने रिया को एक निर्णय लेने की प्रेरणा दी... और दो माह पश्चात्... वो माँ... व परिचितों के साथ... ‘गीता बूटीक सैन्टर’ के उद्घाटन के लिए... माँ के हाथ में... फूल पकड़ाती और रिबन कटवाती... कह रही थी, ‘‘माँ... आपकी अनूठी कला, सिलाई-कढ़ाई के लिए आपकी बेटी का उपहार।’’ ****
11.शहीद की बेटी
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एकमात्र सन्तान बेटी... को शिक्षित करने के लिए उसकी माँ ने घर गिरवीं रख दिया। स्नातक कर... बेटी ने घर में ही बुटीक खोल लिया ताकि... माँ के साथ रहकर... पिता के न होने के दुःख को कम कर सके। माँ-बेटी दिन-रात परिश्रम
करतीं, घर-घर और दुकान-दुकान जाकर आॅर्डर लातीं और दो सिलाई मशीन और दो अन्य लड़कियों के साथ... कपड़े तैयार करतीं। धीरे-धीरे उनके सपने ने आकार लेना प्रारम्भ कर दिया और आर्डर मिलने लगे। बड़े दुकानदार भी स्वयं गाँव आकर उनके काम से संतुष्ट होते और बड़ा आर्डर दे जाते थे। दोनों पाई-पाई जोड़ रही थीं क्योंकि घर के कागज़ छुड़ाने थे और एक दिन माँ का आशीर्वाद और खून-पसीने से जोड़ा पैसा लेकर... कागज़ लेने... जमींदार की
कोठी की ओर निकली।
माँ... बेटी के स्वागत को तैयार... घर की दहलीज़ पर आरते का थाल सजाए बैठी थी और अधीर हो रही कि साँझ ढलने वाली है... बेटी नहीं आई?
तब ही... कुछ गाँव वालों को घर की ओर आते देख, वो डरी-सहमी और पास आई...
देखते ही उसके होश उड़ गये... गाँव वाले बेटी को थामें खड़े थे। फटे वस्त्र, नुचा-खुचा शरीर और न जाने क्या-क्या? उसकी बर्बादी की दास्तान सुना रहे थे।
बेटी को गले लगाते माँ के आँसुओं की धार बह निकली। ये वही थी... युद्ध में शहीद फौजी की बेटी ‘लाली’।
जन्मतिथि : 25 मई 1975
जन्मस्थान : गांव पाकरडाँड़ ( बस्ती ) उत्तर प्रदेश
सम्प्रति - बेसिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश में शिक्षक।
लेखन : कहानियां, कविताएं एवं लघुकथाएं आदि
प्रकाशित कृति : -
बाल उपन्यास : मंतुरिया
सम्मान : -
डॉ. परशुराम शुक्ल पुरस्कार - 2018
विशेष : -
- जुलाई 1993 में भारतीय वायु सेना में शामिल मिल। 2012 में सेवा निवृत्त
- कथादेश राष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता 2019 में प्रथम पुरस्कार।
- कैनाडा हिंदी प्रचारिणी सभा द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता 2020 में प्रथम स्थान।
पता :
अपरा सिटी फेज - 4 ,ग्राम व पोस्ट - मिश्रौलिया ,जनपद - बस्ती - 272124 उत्तर प्रदेश
1. प्यादे उदास थे
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शतरंज के राजा बीच में थे। उनके दोनो तरफ सामन्त और ओहदेदार थे। हाथी सीधा और ऊँट तिरछा चलता था। घोड़े की चाल किसी को जल्दी समझ नही आती थी। मंत्री तो हरफनमौला था। जिधर दुश्मन दिखाई पड़ते, चल पड़ता। जहाँ पहुंचता तबाही मचा देता। लेकिन इन सबकी सुरक्षा के लिए एक अग्रिम पंक्ति थी - प्यादों की। जब तक प्यादे थे, किसी की जान को खतरा न था। बल्कि होता यह कि जब भी किसी क्षत्रप पर खतरा आता तो प्यादे सामने आ जाते। वे अपना जान देकर भी क्षत्रपों को बचाते। ऐसा करने से राजा और सामन्त से अधिक खुशी प्यादों को होता। प्यादे खानदानी स्वामिभक्त थे। वे इसी बात से खुश थे कि उनके महाराज उनपर भरोसा करते है। भले ही भरोसेमंद का मतलब कम लोग समझते हों, किन्तु प्यादे इसी में लहालोट थे।
युद्ध के मैदान में मोहरे अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे और मारकाट जारी था। विपक्षी ने कई महत्वपूर्ण सामन्तों को धराशायी कर दिया था। राजा मुश्किलों से घिरा था। प्यादे ही दौड़-भाग कर उसे बचा रहे थे। जैसा छोटा उनका पद था, वैसी ही धीमी चाल। फिर भी जब तक एक भी प्यादा बचा था, राजा सुरक्षित था। लेकिन जब राजा यह समझ रहा था कि उसका सब खत्म होने वाला है, तभी एक प्यादे ने कमाल कर दिया। वह दुश्मन की नजरों से बचता हुआ मैदान के सभी खाने पार कर गया और उसका इनाम राजा को मिला। राजा को अपने पक्ष के एक धराशायी योद्धा को जीवित करने का मौका मिला। राजा ने तुरंत मंत्री को बुला लिया। मंत्री के आते ही नजारा ही बदल गया। एक दूसरा प्यादा आखिरी खाने में पहुँचा तो राजा ने घोड़े को जीवित कर लिया। इस तरह से एक एककर कई सामन्त युद्ध क्षेत्र में वापस आ गये। परन्तु इस दौरान अधिकतर प्यादे बाहर हो गये। वे बहुत खुश थे कि उन्होंने हारी बाजी पलट दी थी। वे एकदूसरे को इसकी बधाई भी दे रहे थे कि हमेशा की तरह उन्होंने इस बार भी राजभक्ति (देशभक्ति) सिद्ध कर दी थी। उनकी नजर अपने बचे एक प्यादे पर थी। प्यादों ने कहा - अगर यह आखिरी खाने तक पहुंचा तो राजा इस बार हममे से किसी को वापस बुलाएंगे। अवश्य ही वे हम प्यादों को सम्मान देंगे।“ सब ने उसके साथ हामी भरी। वे आखिरी बचे प्यादे को प्रोत्साहित कर रहे थे। तालियां बजा रहे थे। जैसे-जैसे वह अंत के नजदीक पहुंच रहा था, उनकी धड़कन बढ़ती जा रही थी। सबको आशा थी कि राजा न जाने उनमें से किसको बुलाये! यह बहुत बड़ा सम्मान होगा। देखते देखते प्यादा आखिरी खाने में पहुंच गया। सबकी साँसे रुक गई। सब एकटक राजा को देखने लगे - सभी प्यादे तैयार थे। पर राजा ने उनकी तरफ देखा भी नही और हाथी को जीवित कर लिया। सारे प्यादे उदास हो गये। राजा ने मैदान मार लिया था। वह सामन्तों के साथ जश्न मना रहा था। प्यादे मंच के नीचे से उन्हे देख रहे थे। ***
2. काँटा
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बारहों महीने वे व्यस्त रहते। मै सुबह उन्हें खेत में जाते देखता और शाम को खेत से आते। कभी वे खुरपा-खुरपी, कभी हंसिया, कभी कुदाल, कभी फावड़ा आदि लेकर जाते। एक दिन मैने पूछ लिया -“कितना जोतते हैं?“
“पाँच... पांच बीघे,“ वे बोले।
“तब तो खाने की कमी नही होती होगी,“ मैने पूछा।
“हाँ, नही होती,“ वे बोले।
“बेचना पड़ता होगा?“ मैने पूछा।
“नही। बेचने भर का नही होता,“ वह सहजता से बोले।
लेकिन मैं चकित था। मैने पूछा -“पाँच बीघे का अनाज खा जाते हैं?“
वे बोले -“अरे गल्ले पर है। खेत मेरा नही है।“
“आपका कितना बीघा है?
उन्होंने ने हाथ से कुछ नही का इशारा किया। मैने पूछा-“भाई-पाटीदार के पास भी नही होगा?“
वे बोले -“नही, किसी के पास नही है।“
“लेकिन खेती सब करते हैं.... सब किसान हैं,“ मैने कहा।
वे मुस्कराए और बोले -“हाँ।“
“तब तो अनुदान-सहयता कुछ नही मिलता होगा?“
“कहाँ से मिलेगा? जब किसी के नाम पर एक धुर भी नही है।“
“दादा-परदादा से ही ऐसे...“
“हाँ। दादा-परदादा का भी खेत नही था।“
“लेकिन गाँव के दूसरे लोगो के पास तो पाँच-पाँच दस-दस बीघा है।“
“उन्हें भगवान ने दिया है।“
“मतलब आपको भगवान ने नही दिया?“
“हाँ, ऐसा ही है।“
मै उनको और खंगालने लगा। मैने पूछा -“भगवान ने आपको क्यों नही दिया?“
“अब नही दिया तो नही दिया। क्यो नही दिया ये वही जाने,“ वे मुस्कुरा कर बोले।
“अच्छा आपको लगता है कि भगवान ही सबको देता है? देता है तो भेदभाव क्यों?“ मैने उन्हे टटोला।
इस बार वे झल्लाये, “भगवान के नाम पर संतोष तो करने दीजिए...कहाँ सिर फोड़ लूँ...।“ मै समझ गया कि कांटा बहुत गहराई में है। ****
3.चाह
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रमई राम मजदूरी करके लौटा था। उसका पाँच साल का बेटा टीकू दौड़कर उससे लिपट गया। उसने जेब से दो टॉफियाँ निकालीं और टीकू की ओर बढ़ाईं। बेटे ने उसका हाथ दूर हटाते हुए कहा, “मुझे सेब खाना है।"
रमई बोला, “सेब...सेब, तो नहीं है...कल ले आऊँगा।"
“नहीं, मुझे तो अभी चाहिए।" टीकू फर्श पर लोट गया और रोने लगा। रमई उसे गोद में उठाकर घर के अंदर आ गया। बोला, “ बेटा, अब तो रात हो गई है। अभी सेब कहाँ मिलेगा? कल जरूर ले आऊँगा।"
उसने टीकू को फिर से टॉफी पकड़ाई। लेकिन इस बार भी बेटे ने उसका हाथ झटक दिया। टॉफियाँ फर्श पर बिखर गईं। रमई को गुस्सा आ गया। दाँत भींचते हुए ऊँची आवाज में बोला, “समझ में नहीं आता? बोल रहा हूँ कल ले आऊँगा तो..।"
टीकू सहम गया। ’ऊं-ऊं’ कर सुबकने लगा।
"आज दोपहर किसी को सेब खाते देखा है। तभी से सेब की रट लगाए है।" पत्नी बेटे के पास बैठकर उसे चुप कराने लगी।
अगली शाम लौटते हुए रमई बस स्टैंड की तरफ से निकला। फल के ठेले वहीं लगते हैं। एक ठेले वाले से पूछा, “सेब कैसे दिए?"
“दो सौ...एक सौ अस्सी...एक सौ पचास... असली कश्मीरी हैं। कौन-सा दूँ?" ठेले वाला बोला।
रमई का दिल बैठ गया। दो सौ रुपया किलो। बाप रे! कौन-सा अमरफल है! उसने हौले से साइकिल को पैडल मारा और चल दिया। ठेले वाले ने आवाज दी, “अरे, कितने लोगे? कुछ कम कर दूँगा।"
रमई ने जैसे सुना ही नहीं। उसने पलटकर नहीं देखा। आगे किराने की दुकान पर रुका। पूछा, “सेब वाली टॉफी है क्या?"
दुकानदार बोला, “नहीं जी, मैंगो वाली है।"
उसने टॉफियाँ ले लीं। सोचा टीकू अब तक तो सेब को भूल गया होगा। मैंगो टॉफी से खुश हो जाएगा।
टीकू को जैसे ही उसे पता चला कि आज भी सेब नहीं लाए, वह एड़ियाँ रगड़-रगड़कर रोने लगा।
पत्नी ने कहा, “ले आए होते। कितने दिनों बाद तो उसने कुछ माँगा है।"
वह हताशा से देखते हुए बोला, “दो सौ रुपये किलो था...।"
पत्नी बोली, "एक पाव ही ले लेते।"
रमई का दिल कचोटने लगा। उसके दिमाग में तो ये बात आई ही नहीं।
अगले दिन रमई ने भाव नहीं पूछा। आधा किलो सेब ले लिए। आज रमई बहुत खुश था। वह घर पहुँचा। रमई ने सेब बेटे के सामने रख दिये। टीकू ने सेब देखते ही मुँह बना लिया। बोला, “मुझे नहीं खाना।"
रमई प्यार से बोला, "अरे, अभी तक गुस्सा है बेटा!" वह उसे दुलारने लगा।
टीकू बोला, "मुझे केला चाहिए।"
"अरे, दो दिन से तुम कह रहे थे कि सेब चाहिए, और अब केला...।"
टीकू बोला, "हाँ, मुझे केला भी खाना है।"
रमई का माथा भन्ना गया। लेकिन उसने कुछ कहा नहीं।
अगले दिन वह केला लेकर आया। टीकू दौड़कर उससे लिपट गया।
रमई बोला, "आज तुम्हें सेब-केला दोनों खाना पड़ेगा। यह देखो...।" उसने बेटे को गोद में उठा लिया।
टीकू ने केले को देखा भी नहीं और हुलसकर बोला, "बाबा, आज तो मैंने खूब सारे झरबेरी खाए हैं। मुझे झरबेरी बहुत पसंद हैं।"
रमई थोड़े गुस्से से और थोड़ी हैरत से उसे देख रहा था। लेकिन दरवाजे पर खड़ी पत्नी के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी। रमई से भी बिना मुस्कराए रहा नहीं गया।****
4.हार
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जेठ की दुपहरी में बीच सड़क पर किसी के सैंडल का तल्ला निकला होगा तो मेरा कष्ट समझ सकता है। लेकिन मेरे साथ अच्छी बात यह थी कि मुझे दूसरी तरफ बैठा मोची दिख गया था। वह एक फल वाले ठेले के बगल में बैठ कर छांव ढूंढ़ने का प्रयास कर रहा था। मैने कहा - ‘‘इसे गोंद से चिपका दो।’’ उसने प्रश्न किया - ‘‘सिल दूँ?’’
मैने कहा, ‘‘नही भाई, लुक बिगड़ जायेगा।’’
उसने अंगुली से इशारा करते हुए कहा - ‘‘वहाँ चले जाइये। हो जायेगा।’’ मै तिलमिलाकर रह गया। जरा सा काम है। जब मै कह रहा हूँ कि चिपका दो तो वह सिलने पर आमादा है। ऐसी हालत में वहां जाना एक सजा था। मैने पूछा - ‘‘क्यों? तुम नही कर सकते?’’
उसने पुनः अंगुली दिखाया - ‘‘बता तो रहा हूँ कि वहाँ चिपक जायेगा।’’
मैने ध्यान से देखा। उसके पास दो पॉलिश की डिब्बी थी - एक काली, दूसरी लाल, एक निहाई, कैंची और कुछ चमरौधे बस। मैने प्रश्न किया -‘‘तुम्हारे पास गोंद नही है क्या?’’
उसने मुझे केवल देखा।
‘‘कितने में मिलेगा?’’
‘‘आप वहीं बनवा लीजिए।’’
‘‘ऐसे ही दुकान लगाए हो? जब सामान नही रहेगा ता कैसे कमाओगे। पचास रूपये में मिल जायेगा?’’
उसने हामी में सिर हिला दिया। मैने उसे पैसे दिए तो वह गोंद लेने चला गया। मेरे अंदर कई सवाल उठ रहे थे। गुस्सा भी आ रहा था। वह आया तो मैने पूछा - ‘‘कितना कमाये आज?’’
‘‘ उन्नीस रूपया।’’
‘‘इतने से घर चल जाता है?’’
‘‘हां।’’
‘‘अनाज कैसे खरीदते हो?’’
‘‘खरीदना नही पड़ता। राशन कार्ड पर मिल जाता है।’’
‘‘सब्जी तो खरीदना पड़ता होगा?’’
‘‘आलू दस रूपये किलो है। एक दिन लाता हूँ दो दिन चलता है।’’
‘बच्चों को पढ़ाते हो या नही? फीस कैसे देते हो?’’
‘‘फीस नही देना पड़ता। सरकारी में हैं। खाना भी मिलता है।’’
वह मुझे हर दांव पर पछाड़ रहा था। उसके पास जरा सा भी गुस्सा या असंतोष नही था। उसे देखकर मै झुंझला रहा था। मैने पूछा - ‘‘कभी फल वगैरह खाते हो?’’ इसबार मै जानता था कि उसका उत्तर नकारात्मक होगा। वह बोला - ‘‘फल तो भाई साहब रोज ही खिलाते हैं।’’ उसने फलवाले को देखा और उसने हामी भरी। उसने कहा - ‘‘हो गया,’’ और सैंडल आगे कर दिया।
वह शांत था और मै उद्विग्न। मैने पूछा - ‘‘कितना दूँ?’’
वह बोला - ‘‘जो मर्जी।’’
मुझे लगा उसने मुझे धोबी पाट दे मारा और मै चित्त था।****
5. उड़ान
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वह शाम को घर पहुंचकर कपड़े बदल रहा था। तभी पत्नी ने कहा -"एक अर्जेंट जरुरत आन पड़ी....चाय पत्ती एक भी चम्मच नही है।"
वह तमतमा गया -"यार समय से बता दिया करो। शाम तक थक जाता हूँ...अब फिर से जाऊँ...?"
तभी बेटी ने आकर कहा - -"पापा आप आराम कर लीजिए। मै ले आती हूँ।"
"अरे नही...तुम नही..।"
"आप थके हैं....आराम कर लेते।"
"अच्छा नही लगेगा...।"
"किसे....आपको?"
"नही...बहुत संकीर्ण विचार के लोग हैं..।"
"ये तो उनकी समस्या है। आप अपनी बताइये।"
"देखो इस लड़की को...," उसने पत्नी को देखा।
"ठीक तो कह रही है," पत्नी बोली।
"आयं...अच्छा जाओ।" उसने पैसे बढ़ाये और बेटी मुस्कराती हुई घर से निकली। पति-पत्नी ने बेटी को जाते हुए देखा तो दोनो वैसे ही खुश हुए जैसे चिड़िया अपने चूजे की पहली बार उड़ान पर खुश होती है।****
6.बाप
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पीं...ई...पीं... ईं! पी.. पी..पी..पी..!!
"रिक्शा हटा! क्या कर रहा है? देखता नही? सिग्नल ग्रीन हो गया!"
पुलिस कांस्टेबल ने डंडा खड़काया - " का रे ! तुझे कुछ दिखता नहीं?"
"चैन उतर गया साब। तुरन्त हटा रहा हूँ।"
"एक डंडा पीठ पर लगेगा, तो पैंट भी उतरेगा।"
सटाक!
रिक्शावान छटपटाता हुआ पीठ सहलाने लगा। सवारी को उसपर दया आई तो नीचे उतर गई। रिक्शावान कुछ बड़बड़ाता हुआ रिक्शे को लेकर बगल में चला गया। ट्रैफिक चली गई। रिक्शावान हाथ से पीठ सहला रहा था और कॉन्स्टेबल को देखे जा रहा था। तभी एक बड़ी सी महंगी गाड़ी वहीं रुक गई। शीशे उतारकर उसमें बैठा शख्श बात करने लगा। पुनः वही - पीं...ई...पीं... ईं! पी.. पी..पी..पी..!!
रिक्शावान पढ़ना नही जानता था। पर वह बहुत कुछ समझता था। उसमें किसी पार्टी का रुआबदार आदमी बैठा था। उसका दर्द मानो आनन्द में बदल गया। हाथ चमका कर कांस्टेबल से बोला - " तुम्हारे बाप हैं! जाओ ..जाओ..।" उसकी आंखें हँस रही थी; उसका सब दर्द चला गया था। लेकिन पुलिस कांस्टेबल नजरें चुराता हुआ दूसरी तरफ चहलकदमी करने लगा। ****
7.हूक
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धीरे धीरे गाड़ी उसके मायके के नजदीक आ रही थी। उसे वहाँ नही रुकना था। आज वह उधर से होकर कहीं और जा रही थी। वह खिड़की से चिपक गई। गर्दन उधर मुड़ गई। सबसे पहले दिखी - कबरी (गाय)। वह नीम के नीचे बैठी थी। बछिया उसके बगल में थी। माँ बेटी एक दूसरे को लाड़ कर रहे थी। तभी कहीं से झबरी कुतिया बीच में आ गई। उसकी नजर उस पर टिक गई। तीन पिल्ले दौड़े-दौड़े आये और लपककर दूध पीने लगे। झबरी उन्हें दूध पिलाने लगी। बाहर और कोई नजर नही आया। उसकी नजरें माँ-बापू और भाई-बहनों को खोज रही थी। वह ख्यालों में खो गई। कभी वह इसी तरह जब पढ़कर स्कूल बस से आती थी। जैसे ही उसका घर आने वाला होता उसकी सहेलियाँ एक साथ चिल्लाती -"रश्मि तुम्हारा घर...।" तब वह उठकर गेट पर आ जाती थी। वह सोंच में खोई थी कि तभी उसके कानों में पति की आवाज पड़ी। वो बेटी को कह रहे थे -"बबली देखो! तुम्हारे मामा का घर।"
उसके अंदर एक हूक सी उठी - उसका घर कहाँ गया!****
8. समानता का अधिकार
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छब्बीस जनवरी आई तो मालती काम से आते समय शाम को नैना के लिए एक झंडा लेती आई। कपड़े उसने पहले से ही साफ कर दिये थे। सुबह उसे जगाना नही पड़ा। बल्कि हुआ यूँ कि नैना ने ही उसे जगाया। बात यह था कि मैडम ने उसे क्लास का मॉनिटर बना दिया था। उसे ही प्रभात फेरी की अगुवाई करनी थी। नारे भी उसे ही बोलना था। दो भाषण उसने तैयार कर लिए थे। इसके अलावा, नृत्य, और वंदना में भी थी। सारांश यह कि पूरे कार्यक्रम के दौरान लोग नैना को टुकुर-टुकुर देखते रहेंगे। पूरे गांव में प्रभात फेरी निकलती है। ऐसे में सभी चाचा-चाची, दादा-दादी और अन्य उसे देखेंगे और मन ही मन कहेंगें, 'वाह नैना, वाह!' यही तमाम बातों के कारण वह बहुत उत्साहित थी।
छब्बीस जनवरी का कार्यक्रम पूरा हुआ। मिष्ठान वितरण में उसे पुरस्कार में कापियाँ और पेंसिल मिले। दो लड्डू भी मिले। वह घर पहुँची तो मम्मी नहीं थी। एक घण्टे बाद आई। उसे बहुत गुस्सा आया। लेकिन मम्मी ने जब उसे गले लगाया तो वह भूल गई। बोली,"मम्मी लड्डू लाई हूँ। एक आप खा लो।" मम्मी ने उसे चिपटा लिया, "नही, तुम खा लो। दो ही तो है।"
पर उसने मम्मी के मुँह में ठूस दिया। दोनो हँस पड़ी। नैना बोली- "मम्मी अब कहीं जाना नही है न?"
मम्मी बोली, "तुम खेलो। मै जाकर जल्दी आ जाऊँगी।"
नैना को रुलाई आ गई। बोली, "देखो मम्मी, आज मैडम ने एक बात बताया है। उन्होंने कहा- हम सब आजाद हैं। सबको समान अधिकार है। कोई किसी का गुलाम नही। उसपर आज तो छब्बीस जनवरी है। सबकी छुट्टी है। तुम तो संडे भी काम पर जाती हो।"
मम्मी बोली, "अभी दो दिन पहले जब बुखार हुआ था, तब छुट्टी ली थी न। रोज-रोज छुट्टी कौन देगा?" मम्मी ने नैना को गोद मे बिठा लिया।
मालती सोंचने लगी - 'कितनी झूठी है ये मैडम! भाषण कुछ देती है, घर मे कुछ कहती हैं।' उसे चिंता होने लगी कि मैडम ने उसे दोपहर में ही बुलाया था। बोली थी, "छब्बीस जनवरी को सुबह नही दोपहर में आ जाना।" जाना तो पड़ेगा, नही तो नाहक ही चिल्लाएंगी।'
वह धीरे-धीरे नैना को थपकी दिये जा रही थी। नैना हाथ में लड्डू लिए ही सो गई थी। ****
9. मंगलम
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उसने पूछा - "आपका नाम?"
"जी, मनोहरलाल।"
"केवल 'मनोहरलाल', या आगे पीछे भी कुछ?"
"जी , केवल मनोहरलाल।"
"पिता ?"
"श्री हरिहर प्रसाद।"
"उनके भी आगे पीछे कुछ नही?"
"जी, कुछ नही।"
"पिताजी क्या करते हैं?"
"जी खेतीबाड़ी।"
वह न जाने क्या जानना चाह रहा था। अभी भी उसकी अन्वेषी आंखे कुछ टटोल रही थी। अचानक उसे मेरी अंगूठी दिखी। उसने कहा- "क्या पहनें हो? दिखाओ।"
मैने दिखाया तो वह फिर निराश हो गया- "यह तो सादी है।"
मैन कहा - "जी मुझे आभूषणों में कोई रुचि नही। पत्नी ने जिद की तो एक सादी अंगूठी बनवा ली।"
"पत्नी का क्या नाम है?"
"जी परी।"
उसे उसमे भी कुछ नही मिला। उसने पूछा -"बच्चे?"
मैन कहा -"दो।"
उसे कुछ तसल्ली हुई, "एक बेटा , एक बेटी?"
"जी नही। दोनो बेटी ही हैं।"
उसकी आंखें चमक उठी। उसे एक काम की चीज पता चल गई, " एक विधि बताता हूँ। इसबार पुत्र रत्न पक्का।"
"अब हम दोनो की इच्छा नही।"
"वंश परम्परा के लिए बेटा जरूरी है। पिंडदान कौन करेगा? पूर्वजो का ऋण उतारना परम् कर्तव्य है।"
"अभी इस बारे में नही सोंचा।"
"तो अभी सोंचो। समय निकल जायेगा।"
"जी नही। मै बेटियों से ही खुश हूँ।"
उसकी भवें धीरे-धीरे तन रही थी। वह बोला "नरक में जाओगे।"
"धन्यवाद! मैं तो सुखी हूँ।"
"ये अंगूठी पहनो कल्याण होगा।" उसने अंगूठी बढ़ाया।
मैंने कहा - "सब मंगलमय चल रहा है।" मैं चल दिया।
वह चिल्लाया -" आगे भी मंगल होगा...।" ****
10. गोल्डी
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''ए गोल्डी, चल चाय दे। इधर-उधर मत झाँक।''
"जी।"
''ए छोकरे, इधर भी देख। नजर दौड़ा। एक ही जगह टेसू बनकर खड़ा मत रह।''
"जी।"
''अरे दौड़ ना। गादर बैल! वो देख साहब क्या माँग रहे हैं?"
"जी साहब बताएँ। क्या लेंगे?"
"अच्छा गोल्डी, सुन। एक काम कर। केतली में दो चाय डाल, दो बालूशाही और पकौड़े लेकर सीधा ऊपर साहब के कमरे पर धावा मार।"
"सेठ मैं कुछ खाकर जाऊँ?"
"कान के जड़ पर एक झन्नाटेदार पड़ेगा न, सब खाऊँ हवा हो जाएगी। चल दौड़।"
गोल्डी सचमुच दौड़ पड़ा।
"साब जी, चाय।"
"अरे गोल्डी, आ जा। केतली टेबल पर रख। ये ले स्टूल। बैठ जा।"
"नहीं साब, मैं जाऊँगा!"
"अरे बैठ। पहले एक कहानी सुना, कल की तरह। फिर जा। तेरे पास तो बहुत कहानियाँ हैं।"
"साब, वो सेठ चिल्लायेगा।"
" सेठ की ऐसी की तैसी। तू बैठ। जब तक मैं नाश्ता करता हूँ, तू कहानी सुना।"
गोल्डी कहानी सुनाने लगा, "एक लड़का था। वह रो रहा था..।"
"कहानी के शुरू में ही रोने लगा?"
"साब, वो क्या है.. कि उसे भूख लगी थी..।" ****
11. बौना
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जब से जंगल को पता चला कि अब पर्यावरण बचाने की मुहिम जोर पकड़ रही है और अब पेंडो को काटना अपराध हो गया है, उसने चैन की सांस ली। लेकिन एक दिन कुल्हाड़ी उधर आई। पेंड़ ने कहा -"अब तुम्हारी मनमानी नही चलेगी। कानून हमारे पक्ष में है।" कुल्हाड़ी ने एक कागज निकाल कर दिखाते हुए कहा -"कानून का एक भाग मेरे साथ है। इससे तुम्हारा कानून बौना हो जाता है। इसे परमिट कहते हैं -ये देखो!"
जंगल सिहर कर रह गया। ***
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क्रमांक - 03
जन्म स्थान :जगाधरी (यमुना नगर - हरियाणा )
पिता : स्वर्गीय श्री मोहन लाल
माता : स्वर्गीय श्रीमति धर्मवन्ती ( जमनी बाई )
गुरुदेव : स्वर्गीय श्री सेवक वात्स्यायन ( कानपुर विश्वविद्यालय )
पत्नी : श्रीमती कृष्णा कुमारी
शिक्षा : स्नातकोत्तर ( प्राणी - विज्ञान ) कानपुर
बी . एड . ( हिसार - हरियाणा )
लेखन विधा : -
लघुकथा , कहानी , बाल - कथा , कविता , बाल - कविता , पत्र - लेखन , डायरी - लेखन , सामयिक विषय आदि
आजीविका :
शिक्षा निदेशालय , दिल्ली के अंतर्गत 32 वर्ष तक जीव - विज्ञानं के प्रवक्ता पद पर कार्य करने के पश्चात नवम्बर 2013 में अवकाश प्राप्ति : (अब तक के लेखन से सन्तोष )
पुस्तकें : -
- आज़ादी ( लघुकथा - संगृह – 1999 )
- विष - कन्या ( लघुकथा – संगृह 2008 )
- तीसरा पैग ( लघुकथा – संगृह 2014)
- बन्धन - मुक्त तथा अन्य कहानियां ( कहानी – संगृह 2006)
- मेरे देश कि बात ( कविता - संगृह 2006)
- सपने और पेड़ से टूटे पत्ते ( कविता - संगृह 2019)
- बर्थ - डे , नन्हें चाचा का ( बाल - कथा - संगृह 2014) - उतरन ( लघुकथा – संगृह 2019 ) ,
- सफर एक यात्रा ( लघुकथा – संगृह 2020 )
- मुमताज तथा अन्य कहानियां ( कहानी – संगृह 2021) - रुखसाना ( इ - लघुकथा – संग्रह 2019 )
- शंकर की वापसी ( इ - लघुकथा – संग्रह 2019 )
सम्पादन पुस्तकें : -
- तैरते - पत्थर डूबते कागज़ (लघुकथा - संगृह - 2001)
- दरकते किनारे ( लघुकथा - संगृह – 2002 ) ,
- अपूर्णा तथा अन्य कहानियां ( कहानी - संगृह - 2004)
- इकरा एक संघर्ष ( लघुकथा - संगृह – 2021 )
पुरूस्कार : -
1 . हिंदी अकादमी ( दिल्ली ) , दैनिक हिंदुस्तान ( दिल्ली ) से पुरुस्कृत
2 . भगवती - प्रसाद न्यास , गाज़ियाबाद से कहानी बिटिया पुरुस्कृत
3 . " अनुराग सेवा संस्थान " लाल - सोट ( दौसा - राजस्थान ) द्वारा लघुकथा – संगृह ”विष कन्या“ को वर्ष – 2009 में सम्मान
4. स्वर्गीय गोपाल प्रसाद पाखंला स्मृति - साहित्य सम्मान
विशेष : -
- प्रथम प्रकाशित रचना : कहानी " लाखों रूपये " क्राईस चर्च कालेज पत्रिका - कानपुर ( वर्ष –1971 ) में प्रकाशित
- मृग मरीचिका ( लघुकथा एवं काव्य पर आधारित अनियमित पत्रिका वर्ष 2015 से सम्पादन )
पता : डी-184, श्याम आर्क एक्सटेंशन,
साहिबाबाद -201005 उत्तरप्रदेश
1.भटकाव******
" थोड़ी देर रुक कर जाना। " जैसे ही वो आफिस से निकलने को हुआ , कविता ने टोक दिया।
" मैं फ्री हो चुका हुँ , अब रुकने की क्या जरुरत है ? " फिर उसने कुछ सोचते हुए कहा , " आज कुछ काम है . मुझे थोड़ा जल्दी घर पहुंचना है ।"
" हाँ ! जानती हूँ , बड़ा काम है और तुम्हें जल्दी घर पहुंचना है , मैं भी फ़्री होने को हूँ , थोड़ा रुक जाते तो मैं भी तुम्हारे साथ हो लेती । रास्ते में ड्रॉप कर देना । " कविता के शब्दों में आग्रह से अधिक अधिकार का भाव था ।
वह उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने लगा। वहाँ शोखी के साथ आँखों में चंचलता भी थी ।
उसने मन ही मन सोचा ," इतने अधिकार से कह रही है । रख लेता हूँ इसकी बात ," ठीक है रूक जाता हूँ । गाड़ी तो है ही , रास्ते में छोड़ दूंगा . " वह स्वीकृति में अपना सिर हिलाना ही चाहता था कि उसके दिमाग में लगा उसके अनुभवों का बेरियर धीरे से उभर उठा , " उन शुरूआती दिनों को याद कर जब पहली बार सड़क पर आटो की इन्तजार में खड़ी कविता से अचानक मिला था और तेरा उससे ढंग का परिचय भी नहीं था , तब इंसानियत के नाते तपती दोपहरी में तूने कविता को लिफ्ट दे दी थी ।कविता के तेरी गाड़ी में बैठते ही तू अपने जाने - बूझे रास्तों को ही भूल गया था। उस भटकाव में तुझे यही नहीं सूझ रहा था कि आखिर जाना कहाँ है ? तब कविता ने कहा था , " जिस रास्ते पर चलना है , चलने से पहले उसकी पड़ताल तो कर लिया कीजिये। इस तरह भटकना तो अच्छी बात नहीं है ." इतना कहकर वह जोर से हँस पड़ी थी। उस दिन के बाद उसने कई बार कविता को लिफ्ट देने की मंशा जाहिर की पर कविता ने कभी बहाना बनाते हुए इंकार कर दिया तो कभी - कभी , लिफ्ट ले भी लेती थी । फिर आज अचानक उसी की ओर यह आग्रह ? "
इस उलझन में उसने कोई भी प्रतिक्रिया देने में स्वयं को असमर्थ पाया। उसकी जबान में शब्दों का अभाव हो गया ।
कुछ देर चुप रहने के बाद वह इतना ही कह पाया , " प्लीज कविता हठ न करो , और अधिक भटकाव अब मेरे लिए सम्भव नहीं है . मैं चलता हूँ .तुम ऑटो कर लेना ।" ***
2.डील
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" सर ! आज लिस्ट डिक्लेयर हो ही जायेगी । "
" हाँ ! मिठाई का डिब्बा तैयार रखो । "
" इसका मतलब उसमें मेरा नाम है । "
" सबकुछ खुल के नहीं बता सकता । "
" फिर तो पार्टी भी पक्की ।"
" सिर्फ पार्टी ? "
" नहीं ! आप चाहें तो कुछ और भी हो सकता है । इस बार मुझे अपना नाम हर हाल में लिस्ट में चाहिये । "
" वो तो ठीक है ! पर इतनी बेताबी क्यों ? "
" चित्रा बहुत भाव खाती है , प्रमोशन लेकर । इस बार मुझे उसे उसकी औकात दिखानी ही है । " उसने मन ही मन कहा पर प्रत्यक्ष बोली , " सर ! आपकी फेयर नेस पर पूरा भरोसा है मुझे ।"
" तो बताओ , पार्टी कब और कहाँ होगी ।"
" सर ! सब कुछ खोलने की क्या जरुरत है ? जब और जहाँ आपको अच्छा लगेगा वहीँ हो जाएगी । "
" गुड ।कल किसने देखा है । लिस्ट तो आती रहेगी , पार्टी आज ही रख लेते हैं । "
" सारी सर ! लिस्ट पहले तीन बार टल चुकी है । आज का काम कल पर नहीं । पहले लिस्ट फिर पार्टी ।"
" ठीक है । डील पक्की न । "
" सर , कह तो दिया ,जब और जैसी आप चाहें। "
उन्होंने अगला दिन तय कर दिया। ****
3. चॉकलेट
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उसने जब से होश संभाला उसका बाप जिसे वो बापू कहता था , उसके लिए हर शाम दफ्तर से लौटते हुए एक चॉकलेट लाता और उसे अपनी गोद में भरकर भरपूर प्यार करता ।
उसके बाद अपनी पतलून की जेब से दारू की बोतल निकालता , जो अक्सर अंग्रेजी होती और उसकी माँ को एक भद्दी सी गाली देते हुए पानी और गिलास मंगवाकर घर की बैठक में ही पीने बैठ जाता । माँ को हिदायत होती कि जब तक उसकी व्हिस्की की बोतल खत्म न हो जाय , वो वहां से हिलेगी नहीं ।
बीच - बीच में बापू माँ के गालों को थपियाता भी रहता ।
उसके प्यार करने का यही तरीका था । सोने से पहले बापू नाम का वो शख्स माँ को जेब से निकाल कर ढेर सारे नारंगी नोट देते हुए कहता , " बापू की मूरत से सजे ये नोट न होते तो न दारू की ये बोतल होती , न तेरा शबाब होता और न ही मेरा ये चॉकलेटी बेटा ही होता । "
माँ चुपचाप उसकी बातें सुनती और घिसे हुए गालों को सहला कर , उसके दिए हुए नोट अपने ब्लाउज के ऊपरी हिस्से में खोंच लेती ।
वो जब कुछ बड़ा हुआ तो उसकी समझ आने लगा कि बापू हरदिन इतने सारे नोट आखिर लाता कहाँ से है ।
समझने के बाद एक दिन वो बोला , " बापू मैं न तो तुम्हारा लाया चॉकलेट खाऊंगा और न ही माँ को तुम्हारे सामने बैठने दूँगा । तुम्हें जितनी भी दारू पीनी है ,पी लिया करो । "
जवान होते बेटे की बात सुन बापू का दिमाग ठनक गया ।
वो बोला , " अबे हराम की औलाद , तुझे चॉकलेट नहीं लेनी तो न ले पर ये औरत मेरी बीबी है , मैं इसे जहां चाहूं , बिठाऊँ । तू कौन होता है मेरी जिंदगी में दखल देने वाला ? "
बेटे ने कहा , " ये तुम्हार बीबी ही नहीं , मेरी माँ भी है । इसके साथ कोई जोर जबरदस्ती करे ,यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता । "
बापू ने अब तक बोतल खोलकर उसके कुछ हिस्से को खाली भी कर लिया था । उसने कहा , ऐसा मैं फ्री में नहीं करता ," गांधी जी की मूरत वाले नोट भी इसे हर रोज़ देता हूँ ।"
बेटा भी पूरी तैश में था , मैं जानता हूँ बापू , तू इन नोटों को किन लोगों की जेब से जबरन निकालता है । अब या तो वो नोट इस घर में आयेंगें या फिर तेरा इस घर में आना बन्द होगा । तेरा भला इसी में है कि तू कोई एक रास्ता चुन ले । "
" मैं ऐसा कुछ भी न करूं तो तू क्या कर लेगा ?" बोतल उसके सर चढ़ कर बोल रही थी ।
" करना क्या है , तुझसे वो सारे हक़ छीन लूंगा जिनके चलते तू मुझे चॉकलेट खिलाता है या मेरी माँ के गाल सहलाता है । " बेटे ने दो टूक कहा ।
उसने पाया कि वो औरत जो उसके लिए गिलास लाती थी और फिर देर तक वहीं बैठी रहती थी , अपने बेटे की छाया में सिमट कर खड़ी हो गयी । *****
4.आखिरी सफर
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तमतमाए चेहरे के साथ , वो धढ़धढ़ाता हुआ उनकी दरसील लाँघ गया । दोपहर होने की वजह वहां इक्का - दुक्का लोग ही थे । वो बेसब्री से इधर - उधर देखने लगा ।
तभी अन्दर खाने से ईदरीस मियां आते दिखाई दिये । उसने अपनी तैश पर बिना कोई लगाम लगाये सवाल किया , " मियां ! मौलवी साहब कहाँ हैं ? "
" अमां वक्त देख लो ? तीन बजे हैं । सुबह से यहीं थे , अभी थोड़ी देर पहले ही अपने आराम - गाह में गये हैं । आप चार बजे आइये ।"
" मुझे उनसे अभी मिलना है ।"
" ये क्या बचपना है ? सुबह पांच बजे जग जाते हैं उनको आराम की मोहलत का हक़ है या नहीं है । शाम की नमाज भी अता करवानी है । "
" मियां , मेरे भाईजान की जिंदगी और मौत का सवाल है । मेरा उनसे मिलना निहायत जरुरी है ।भाईजान को कुछ हो गया तो सिर्फ उनके चार - चार छोटे - छोटे बच्चे ही नहीं ,हम सब यतीम हो जायेंगें ।"
" तसल्ली के साथ ईमान पर यकीन रखो ,उन्हें कुछ नहीं होगा । इंशाअल्लाह बड़ी जल्दी ठीक हो जायेंगें । हैं तो डाक्टरों की निगरानी में ही न ? "
" डाक्टरों की निगरानी क्या करेगी ? मौलवी साहब ने आसमान की तरफ निगाहें फ़रमाकर जो तावीज दिया था ,भाईजान ने उसे अपनी बाहँ में मुक़्क़मल बाँध रखा है । तावीज देते वक्त उन्होंने कहा था कि ये तावीज उन्हें शैतान की हर नजर से बचा लेगा । अब किसी दवा की जरुरत नहीं है ,वो किसी डाक्टर के पास नहीं गए । भाईजान की हालत सुधरने की जगह आज बेहद बिगड़ गयी है ।"
" मियां ! आप तो बिला वजह घबरा रहे हैं। आपके भाई को कुछ नहीं होगा।बहरहाल अभी आप जाइये। तबियत न सुलझे तो शाम को आइये। "
"……………………. !" बातचीत का सिलसिला अभी चल ही रहा था कि एक बच्चा हांफता हुआ आया और रोता हुआ बोला " चाचू , । अम्मी बुला रही हैं ,अब्बू मर गए।"
" ये तो बहुत बुरा हुआ मियां।पर अल्लाह की मर्जी के आगे हम सब बेबस हैं। जाइये अपने भाई की मैयत के आखिरी सफर का इंतजाम कीजिये। जन्नत की तरफ उनका सफर आप सब को मुबारक। " ****
5.सफर
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" आपने लिखना बंद कर दिया है क्या ? "
" जी नहीं ! परन्तु आप कौन ? "
" एक पाठिका हूँ आपकी . बहुत अच्छा लिखते हैं आप . जब भी आपका लिखा पढ़ती हूँ तो लगता है , शब्दों में दर्द उतर आया हैं। लगता है जैसे वे घटनाएं नहीं हैं , खुद पर बीत रही आपबीती है। "
" नहीं ऐसा तो कुछ नहीं . बस कभी - कभी ऐसे किरदारों से सामना हो जाता है जो अपने आप शब्द बनकर पन्नो पर उभर आते हैं ! वैसे किस रचना की बात कर रहीं हैं आप ? "
" कोई एक हो तो बताऊँ . आपकी लगभग हर कहानी में भावनाओं की अभिव्यक्ति इतनी जीवंत होती है , संवाद इतने ह्रदयस्पर्शी होते हैं कि लगता है कल्पनाएं , किरदारों में समा गयी हैं। युवा ह्रदयों में हिलोरें लेती लहरों के विलोड़ने में तो महारत हासिल है आपको ! कैसे छू लेते हैं आप उनके मन में लहराती कोमल पंखुडिओं को ? "
" ऐसा कुछ भी नहीं है , मुझे नहीं लगता कि मैं ऐसा कुछ लिखता हूँ। "
" ये क्या कहा आपने . लेखक के रूप में परिचय तो हर बार आपका ही होता है ?"
" हाँ अनु जी ! मैं सच कह रहा हूँ। जब भी कुछ लिखने बैठता हूँ तो मुझे लगता है , मैं नहीं लिख रहा , कोई कहीं दूर बैठा है और वही , मुझसे लिखवा रहा है , मुझे कल्पनाएं वही देता है और उन कल्पनाओं को मैं तो बस शब्दों में पिरो देता हूँ। "
" आप तो यहां भी कविता करने लगे . वैसे बताएंगे कि कौन है वो जिसकी कल्पनाएं आपको शब्द देती हैं और क्या अब वो नहीं है , जो इतने दिनों से आपकी कल्पनाओं का कोई दर्द पढ़ने को नहीं मिला ? "
" क्या करेंगी जानकर . बस इतना जरूर कहूंगा कि जब भी उससे नई कल्पनाये कभी नसीब हुईं तो दर्द के नए फलसफे जरूर आएंगे आपके पास। "
" चलिए मान ली आपकी बात पर इतना याद रखियेगा कि सफर कभी खत्म नहीं होता . हम होते हैं सफर तब भी चलता है और हम किसी वजह से नहीं होते , तब भी सफर रूकता नहीं है , भले ही राही जरूर बदल जाते हों। "
" राही टकरने का यह मतलब नहीं होता कि हमसफर भी टकर जाय। साथ चलना सबके बस में नहीं होता। "
" कोशिश करने से तो वह भी हो हो ही जाता है। "
" ठीक है मैं फिर से लिखना शुरू कर देता हूँ , आप पढेंगीं उसे ? "
" सिर्फ पढूंगी ही नहीं , समझूंगी भी। आप लिखिए तो सही। "
उसकी कलम फिर से चल पड़ी। *****
6. बेस्ट फ्रेंड
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कार्तिक चलो बेटा , पहले खाना खा लो .बचा हुआ होम वर्क बाद में कर लेना। अपने पापा को भी बुला लो। मम्मी ने कार्तिक की नोट बुक को एक ओर खिसकाते हुए कहा , " अरे यह क्या , तूने अभी तक एक भी सम साल्व नहीं किया। मेरे जाते ही इस ड्राइंग को बनाने में मस्त हो गया। तेरी पढ़ाई हो या घर का कामकाज , सारी जिम्मेदारी मेरी ही है , तेरे पापा को तो आफिस से आकर लेपटॉप पर चेस खेलने में ही खो जाते हैं , कभी नहीं सोचते कि मैं भी तो सारा दिन आफिस में खटकर ही आती हूँ । यह क्या बात हुई कि तेरी पढ़ाई भी मेरे जिम्मे। कम से कम शाम को तो देख लिया करें। " अन्नू झुंझला भी रही थी और खाना परोसने की तैयारी भी करती जा रही थी।
" मम्मी प्लीज़ गुस्सा मत करो। पहले ये बताओ कि इसकी फ्राक में कौन सा रंग भरूं ? " कार्तिक ने जैसे मम्मी की कोई बात सुनी ही नहीं।
" बातें मत बना , चल पहले खाना खा ले . "
" खाना बाद मम्मी , पहले बताओ कि इस गुड़िया की फ्राक में कौन सा रंग अच्छा लगेगा ?" कार्तिक अपनी धुन में मस्त था।
" कोई भी भर दे . लाल , पीला , हरा , नीला कुछ भी। पर अब जल्दी से बाप - बेटा खाना खा लो तो मुझे भी फुर्सत मिले। "
" कोई भी कैसे ? नीति पर तो ऑरेंज कलर का फ्राक अच्छा लगता है। मैं तो वही भरूंगा। मम्मी आप तो यह बताइये की डार्क अच्छा लगेगा या लाइट ? " कार्तिक अपनी ड्राइंग को सम्भालते हुए बोला। अन्नू ने कार्तिक पर नजर डाली। वह ध्यान से अपनी बनाई हुई गुड़िया की ड्राइंग को बड़ी तन्मयता से देखे जा रहा था।
" यह नीति है कौन कानू ?" अन्नू , प्यार से कार्तिक को कानू बुलाती थी ।
" मम्मी ! नीति क्लास की मेरी बेस्ट फ्रेंड है। कल मैं उसे यह ड्राइंग गिफ्ट करूंगा। वो इसे देख कर बहुत खुश होगी। "
छोटी सी उम्र में बेटे से उसे , इस बड़प्पन की उम्मीद नहीं थी। उसने बेटे को दुलारते हुए कहा , " कल नीति का हैप्पी - बर्थ - डे है क्या ? "
कार्तिक ने मम्मी का हाथ पकड़ कर उसे लगभग चूमते हुए कहा , " मम्मी ! शायद आप भूल गयी . कल रक्षा - बन्धन है . टीचर कहती हैं , रक्षा बन्धन भाई - बहन के प्यार का सबसे बेस्ट त्यौहार होता है। इस अवसर पर हर भाई , अपनी बहन के हर सुख - दुःख में उसका साथ देने का वचन देता है। मेरी तो कोई बहन नहीं न मम्मी ? आप भगवान जी से मेरे लिए मेरी बहन लाये ही नहीं। इस बात को लेकर आदी हमेशा मेरी खिल्ली उडाता है। कल मैं उसका मुहँ हमेशा के लिए बन्द कर दूंगा। नीति को मैं यह ड्राइंग दूंगा और वो मुझे राखी बांधेगी। मम्मी , बेस्ट - फ्रेंड बहन भी तो हो सकती है न। "
अन्नू को लगा उसका बेटा बहुत बड़ा हो गया है। उसने बेटे को अपनी बाहों में भरते हुए कहा , " बेटे , वही रंग भरो जो नीति को पसन्द है . नीति को यहां हमसे मिलवाने अपने घर भी लेकर आना। मैं उसे ढेर सारा प्यार करूंगी। "
कार्तिक ने देखा , मम्मी की आँखें भीगी हुई थी . ****
7.कुछ भी
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" यह तूने अच्छा नहीं किया ."
" हो सकता है तू ठीक कहती हो पर मैं बेबस हो गयी थी . खुद को रोक नहीं पायी ."
" तू तो खुद को रोक नहीं पायी और अगले की जान पर बन आयी . वे किसी वीरान दुनिया का परिंदा बनने की तमन्ना रखने लगे है। उन्हें लगने लगा है कि उसका सब कुछ लूट गया है। वो जिंदगी के हर नूर से खाली हो गए है। "
" क्या कह रही है ? तुझे कैसे पता ? "
" तुझे कैसे पता की बच्ची आज उनका एक दोस्त , उन्हें मेरे क्लिनिक पर लेकर आया था। उनसे बात करने पर लगा कि वे सोचते है कि उनकी जिंदगी की हर कीमती चीज उनसे छिन चुकी है। उन्हें लगता है कि जो कुछ भी उनके पास है ,उसके कोई मायने नहीं हैं। यहां तक कि उनकी किताबें भी उनकी नहीं हैं। "
" मुझे उनकी इस दर्दनाक हालत का बेहद अफ़सोस है , शुक्रइस बात का है कि समय रहते मैंने अपने कदम पीछे खींच लिए . इससे पहले कि पानी सर से ऊपर चला जाता मैं और मेरी ग्रहस्थी भी बच गयी। "
" सिर्फ अपने बारे में सोचे जा रही है। तुझे अंदाजा नहीं है कि तेरी इस नादानी ने उनको कितना नुक्सान पहुंचाया है ? "
'' जानती हूँ पर अब मैं कुछ नहीं कर सकती। हाँ उनके लिए एक डर जरूर है कि वे भले ही मुझे माफ़ न करे पर कहीँ कोई उल्टा - सीधा कदम न उठा लें। "
" यह तो तब सोचती जब तू उनके इमोशन्स के साथ खेल रही थी। "
" क्या करूं यार , वो पहली नजर में ही इतने भा गए थे कि मैं सब कुछ भूल गयी। मैं आस्तिक को भूल गयी ,बेटा कार्तिक भी मेरी नजरों से ओझल हो गया। मुझे लगा मेरी जिदगी की हर कमी उनसे पूरी हो सकती है ."
" फिर वही बात कहूँगी कि उनके साथ तूने ठीक नहीं किया। "
" देख तू मेरी सबसे प्यारी सखी है , मेरे हर सुख , हर दुःख की हमराज भी है। प्लीज मेरी मद्दत कर। "
" तू कुछ भी कह . तेरी इस हरकत से मद्दत तो मैं उस शख्स की करना चाहती हूँ जिसे तूने वहां ले जा कर छोड़ दिया है , जहां से वापसी का कोई रास्ता नहीं होता ."
" मतलब ? "
" देख मैं एक डॉक्टर होने के साथ एक इंसान भी हूँ .उनसे बात करके मुझे लगा कि वे जिंदगी से भरपूर एक बेहद संजीदा इंसान है। ऐसे लोगों के कारण ही न जाने कितने लोगों को जिंदगी में जीने का सलीका मिलता है। मैं उनका इलाज करूंगी और तब तक करूंगी जब तक तेरे दिए हुए उनके घाव भर नहीं जाते। इसके लिए मैं वह सब करूंगीं जो कुछ भी मुझे करना पड़े। "
" कुछ भी मतलब ! "
" तू मेरी सखी है , समझ ले कि कुछ भी का मतलब सिर्फ और सिर्फ कुछ भी ही होता है। मैं एक जिंदादिल इंसान कि जिंदादिली को मरने नहीं दूंगीं। " ****
8. धोखा
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" हमें दो ही तरह के लोग याद रहते हैं .......एक वे जिन्होंने किसी भी कारण से हमारे साथ कभी कोई धोखा नहीं किया और दूसरे वे जिन्होंने अकारण न जाने क्यों हमें धोखा दिया। "
" लगता है किसी की किसी बात से परेशान हो। "
" नहीं ऐसा तो कुछ नहीं है। बस एक ख्याल आया तो कहे बिना रह नहीं पायी। "
" वही तो पूछ रहा हुँ कि ख्याल धोखा देने वाले का आया या उसका जिसने कभी धोखा नहीं दिया। "
" इस वक्त यह सब रहने दो , बस इतना ही कहूँगी कि कष्ट कारी दोनों ही होते हैं। "
" वह कैसे ? धोखा देने वाले की बात तो समझ में आती है पर न देने वाले कैसे कष्टकारी हो गए ?"
" उन पर तरस आता है कि इस फरेबी दुनिया में वे इतने भोले क्यों हैं ? उनके विशवास को जब कोई ठगेगा तो उन्हें कितना बुरा लगेगा ? वे उस तकलीफ से कैसे उबरेंगे ? "
उसकी इच्छा हुई कि उससे कुछ और पूछे पर उसकी हिम्मत नहीं हुई। उसे पता था कि कुछ और कहा तो वह रो देगी। वह असमंजस से बाहर आता कि उससे पहले ही वह अपनी जगह से उठी। उसके करीब आयी और उसमें लगभग सिमटते हुए बोली , " देखो मेरे साथ कुछ भी करना पर कभी मुझे धोखा मत देना। याद रखना , मैं सहन नहीं कर पाऊंगीं ." ****
9. ट्रेन
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" तू तो निखर आयी री ! "
" कमी तो तुझमें भी नहीं है , तुझ पर तो पहले भी कुदरत फ़िदा थी और अब तो पहले से भी ज्यादा भरी - भरी सी लग रही है। "
बहुत दिन बाद दोनों अचानक रेलवे के वेटिंग हाल में मिली तो उन्हें सुखद आश्चर्य हुआ। दोनों एक दूसरे पर वही पुराने आत्मीय कटाक्छ करने से नहीं चूकी।
" कहीं जा रही है या कहीं से आ रही है ?"
" हसबेंड नार्थ ईस्ट के ऑफिशियल टूर पर जा रहे हैं। इतने लम्बे समय तक मेरे बिना अकेले रहने के आदी नहीं है , बोले होमसिकनेस फील होगी साथ चली चलो। ट्रेन लेट है , तो वेट करने यहां आ गए। "
" तब तो वे भी ही होंगें। दिख तो रहे नहीं ? "
" बस केंटीन तक गए हैं , आते ही होंगें। "
" ओह तो वाईफ की सेवा में हैं। वैसे होमसिकनेस या वाइफ सिकनेस ? " उसने शरारत की।
" कुछ भी कह ले . हसबेंड की मर्जी है तो मना करना ठीक नहीं लगा। "
" वेरी लक्की .हाँ भई इतना लम्बा समय भला कैसे .... वो भी जब वाइफ इतनी सुंदर हो ?"
"तेरी शैतानी वाली आदते अभी गयी नहीं ! पर तू यहाँ कैसे ? तेरे मिस्टर भी कहीं जा रहे हैं क्या ? " वह प्रश्न के साथ मुस्कुराई।
" अरे कौन से मिस्टर ?" उसने बिना किसी झिझक के कहा।
" क्यों शादी तो की थी तूने भी ? "
" हाँ ! शादी ही तो की थी . हम जिंदगी में करते तो बहुत सारे काम हैं। तो क्या सारे काम पूरे भी करते हैं क्या ?"
" मतलब निभी नहीं। न निभने की वजह ? कोई ऐब - शेब या कोई चक्कर - शक्कर ?'
" बहुत सारे काम बेवजह भी होते हैं , पर मुझे कोई रन्ज नहीं। जिंदगी में आजादी से बढ़कर कोई मंजिल नहीं। "
" और ...और ..?
" और - वौर जाने दे यार ."
" उसके लिए सारा जहाँ है ."
" मतलब ............! "
" जो कुछ तुझे नसीब है , वही सब कुछ मेरे पास भी है सिर्फ एक फर्क के साथ। "
" वो क्या ?"
" तेरी मर्जी हो या न हो , तेरी मंजिल हर दिन एक ही होती है और मेरे साथ ऐसी कोई मजबूरी नहीं है। "
"................................................! " उसे ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी।
" मेरी ट्रेन आ गयी है। मुझे चलना चाहिए। मुझे हर हाल में हास्टल में रह रही अपनी बेटी से कल मिलना है . ओ. के . बाय . किस्मत ने मिलवाया तो फिर मिलेंगे ." ****
10. रुखसाना
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" सर ! आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं क्योंकि आप हमें बहुत अच्छे से पढ़ाते हैं। मन करता है आपका पीरियड कभी खत्म न हो। "
" थेंक्यु बेटा . मैं चाहता हूँ कि जिस लगन और मंशा से मैं आप सब बच्चों को पढ़ा रहा हूँ , मैं अपने उद्देश्य में सफल होऊं। इसके लिए जरूरी है कि आप बच्चे भी मुझे कॉपरेट करो , रेस्पॉन्ड करो। "
" जी सर . हम पूरी कोशिश करेंगे। यहां ही नही घर में भी पूरी मेहनत करेंगे ."
" मुझे आप बच्चों का यही डिवोशन चाहिए। मैं चाहता हूँ कि जीव विज्ञानं आपके रक्त - संचार का हिस्सा बन जाये और भविष्य में आपका कॅरियर भी बने। "
" सर !आपकी बातें सुनती हुँ तो तो मुझे अपने दादा जी की बहुत याद आती है क्योंकि आप बिलकुल मेरे दादा जी की तरह ही बात करते हैं और हर बात को समझाते भी हैं। सर मेरे सिर पर हाथ रखिये कि मैं आपकी उम्मीदों पर खरी उतरूं। "
" बड़ों का हाथ हमेशा , बच्चों के सिर पर होता है बिटिया। खासतौर से टीचर और माँ - बाप तो हमेशा अपने स्टूडेंट्स के अच्छे की ही सोचते है। क्या आपके दादा जी भी रिटायर हो चुके हैं ? " उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप अपना हाथ बढ़ाया।
" नहीं सर , उनका इंतकाल हुए चार साल हो चुके हैं। " लड़की के चेहरे पर मायूसी पसर गयी।
" और तुम्हारा नाम ? "
" मैं रुखसाना बी हूँ सर ! "
" उनका उठा हुआ हाथ रूक गया। नजरों में हिकारत आ गयी। मन में ख्याल आया उनके हाथ रुखसाना के लिए कैसे प्रार्थना कर सकते हैं ?
" क्या हुआ सर ? क्या मेरा नाम अच्छा नहीं है ? मेरे दादा जी तो बड़े प्यार से मेरा नाम पुकारा करते थे , उन्हें यह नाम बेहद पसन्द था। "
वे थोड़ी देर के लिए रुके। उन्हें अपनी रूबी याद आ गयी जिसे विधर्मी दरिंदों ने फुसलाकर बेइज्जत करने के बाद बेरहमी से मार डाला था।
" सर ! प्लीज़ , मुझे आशर्वाद दीजिये न सर। मैं अपना स्लेबस अच्छे से कवर करना चाहती हूँ। मैं इस सब्जेक्ट को अपना कॅरियर भी बनाऊंगी सर। मैं आपकी और अपने दादा जी दोनों की इच्छा पूरी करना चाहती हूँ , सर। " मासूमियत उनके सामने खड़ी थी।
" पल भर की ख़ामोशी में हुए उनके आत्ममंथन ने अपना निर्णय ले लिया था। उनकी आँखों की कोरे भीग चुकी थीं। उन्होंने रुखसाना के सिर पर अपना दायाँ हाथ रखते हुए मन ही मन कहा , " तुम्हारा हश्र मेरी रूबी जैसा कभी न हो बेटा। " प्रत्यक्ष वे इतना ही कह पाए , " बेटा जो भी काम अपने हाथ में लो , उसे पूरी शिद्दत से करो ,ख्याल रहे तुम्हारे उस काम से किसी का बेजा नुक्सान न हो। मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है। मुझे यकीन है कि जो वादा तुम मुझसे कर रही हो , उसे जरूर पूरा भी करोगी। "
उन्होंने पाया कि रुखसाना एक नए आत्मविश्वास से लबरेज थी . वह बोली , " थैक्यू दादा जी। " ****
11. प्रेम
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सांस ने दो - चार सीडियां चढ़ने के बाद ही फूलना शुरू कर दिया। उन्हें तबियत थोड़ी खराब सी लगी। पत्नी ने व्यंग भरा उलाहना दिया , " सारी उम्र दूसरों पर खर्च करते रहोगे। कभी खुद का भी ख्याल रख लिया करो। तुम्हे कुछ हो गया तो मैं मूरख कहीं की न रहूँगी। "
उनसे पत्नी की आँखों की नमीं सहन नहीं हुई वह शहर के बड़े अस्पताल में जा खड़े हुए। . रिसेप्शनिस्ट ने बताया ,'" आपको सामने के ओ. पी.डी .काउंटर से फीस की रसीद कटवानी होगी तभी आपको डाक्टर देख पायेंगें। " वह पीछे मुड़कर पत्नी को ढूंढने लगे। पत्नी अस्पताल परिसर में बने छोटे से मंदिर में प्रार्थना कर रही है। उन्होंने मन ही मन कहा ," लो ! इसने तो यहां भी अपने भगवान को ढूंढ लिया। " थोड़ी देर इन्तजार के बाद बोले , " अरे इधर आओ . देर हो रही है जल्दी से पर्ची बनवाओ। "
" आइये आप भी मत्था टेक लीजिये। " पत्नी ने उनकी बात पर ध्यान दिए बिना ही कहा।
वे सबके सामने पत्नी पर बिगड़ने की हिम्मत नहीं कर सके और उसने तेज कदमों से आकर अनमने ढंग से मूर्ति को प्रणाम कर दिया।
" अरे चप्पलें तो उतार लेते ! पत्नी बोली तो वे खीझ पड़े , ' टाइम कम है चलो पेमेंट करो और जल्दी से पर्ची बनवाओ ,कहीं डाक्टर साहब चले न जायें। "
डाक्टर के पास नंबर आया तो उन्होंने चेकअप किया। थोड़ी देर के लिए गंभीर हुए पर जल्द ही नार्मल होकर बोले , " मिस्टर आनंद !आपकी शुरूआती जांच से लगता है कि आपको ह्रदय से संबंधित रोग है जो गंभीर भी है। आपको चाहिए कि आप ऐंजिओग्राफी करवा लें जिससे मेरे अनुमान की कन्फर्मेशन हो सके। तभी आगे का इलाज हो सकेगा। " यह सुनते ही उसके पावों के तले से सब कुछ खिसकता सा लगने लगा . उसके माथे पर पसीने की बूंदें तैर गयीं . उन्हें लगा सब तरफ अँधेरा फ़ैल रहा है।
" ठीक है डाक्टर साहब ! क्या ऐंजिओग्राफी भी आज ही होगी ?" पत्नी के स्वर में कोई विचलन नहीं था।
" नहीं मैडम ! इसके लिए आपको कल सुबह मिस्टर आनंद को खाली पेट लेकर आना होगा। "
दोनों ने डाक्टर का धन्यवाद किया और उनके चेंबर से बाहर आ गये तो पत्नी बोली , " चलो घर चलें , कल सुबह जल्दी आना है। "
बाहर निकलने को ही थे कि दृष्टि फिर से छोटे से मंदिर पर जा पड़ी। वह पत्नी से बिना कुछ बोले वहीं रुक गए। चप्पल उतार कर एक तरफ रख दी और मंदिर में रखे भगवन जी के आगे सिर नवा दिया। पीछे खड़ी पत्नी आत्मीयतापूर्वक उन्हें देखती रही।
उसकी दृष्टि में प्रेम कम , वातसल्य अधिक था . ***
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क्रमांक - 04
जन्म : १८ सितंबर १९७३ , धामपुर - उत्तर प्रदेश
पिताजी : स्व० श्री सुखपाल सिंह
माता जी : श्रीमति गंगा देवी
पत्नी : श्रीमति निर्देश चौहान
पुत्री : डॉ स्वाति चौहान बी.ए.एम.एस (रूहेलखण्ड)
पुत्र : डॉ अनुज चौहान एम.बी.बी.एस
शिक्षा : एम. ए. (समाज शास्त्र, हिन्दी),
व्यवसायिक शिक्षा : एम. डी. इ.एच. आइरिडोलॉजिस्ट, डिप्लोमा मास्टर हर्बलिस्ट यू के, बी.एन.वाई.एस, सी.एक्यू
मेम्बर आफ ई.आर.डी.ओ (दिल्ली)
अभिरुचि : - औषधियों का बिज़नेस, अध्ययन, संगीत, साहित्य लेखन
साहित्यिक कृतियां - सुधियों की अनुगंध कविता संकलन , सत्यवादी हरिश्चंद्र गीतिका काव्य, अखिल जग में गीत गूंजे कविता संकलन
कलात्मक कार्य - सुन राधा सुन भजन टी सीरीज़, सारे जहां से अच्छा देशभक्ति गीत (गणपति सिने विजन),
साईं प्रकट भए भजन (श्री राम एन्टीटेनमैंट मुम्बई ), क्या पता क्या हो कल सी.डी. फ़िल्म
कार्य स्थल : १. स्वाति होम्यो स्टोर नूरपुर रोड जैतरा, धामपुर बिजनौर उ०प्र०
२. इलेक्ट्रो होम्योपैथिक (नॉन सर्जिकल हैल्थ केयर सेंटर) टीचर्स कालोनी, धामपुर, बिजनौर उ०प्र०)
विशेष उपलब्धि : - सी.एम.डी. यूथ एनर्जी हैल्थ मार्केटिंग प्रा०लि०
सम्मान: - अनेकानेक साहित्यिक, सामाजिक सम्मान
पता : २५७ शहीद शरद मार्ग, टीचर्स कालोनी, धामपुर बिजनौर - २४६७६१ उत्तर प्रदेश
१. क्या कहोगे
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बादलों की आवाजाही देखकर कोई नहीं कह रहा था कि बर्षा नहीं होगी । हाट का दिन था राजू ने सब्ज़ी ख़रीदने की योजना बनाई और साप्ताहिक हाट में चला गया लोग मौसम के मिज़ाज को देखते हुए ख़रीदारी करने में देर नहीं लगा रहे थे राजू हर बार की तरह बाद में दाम कम होंगे और ख़रीद लूँगा सोचकर भाव पूछता और आगे बढ़ जाता ऐसा करते हुए दो चक्कर लगा दिए ।
देखते ही देखते बर्षा शुरू हो गई गाँव वाले लोग चलने लगे । सस्ते के चक्कर में राजू ने कुछ नहीं ख़रीदा और बाद में मौसम ने कुछ ख़रीदने नहीं दिया ।
इसे मितव्ययिता, कंजूसी या लालच कहा जाए क्या कहोगे, ख़ाली हाथ छाता सिर पर लगा कर लौटना पड़ा वो भी शान से भीगते हुए । ****
२. माल पराया पेट तो अपना
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डिग्गी को काम हल्का मज़दूरी अधिक चाहिए थी किसी भी काम पर जाने से पहले मज़दूरी तय करना उसकी आदत में शुमार था वैवाहिक कार्यक्रम में काम करना उसे बहुत ही भाता था क्योंकि उसे खाने पीने का शौक़ था ऐसे में कम मज़दूरी भी ले लेता था । वैवाहिक कार्यक्रम में कारीगरों के साथ काम करने का शौक़ीन डिग्गी पास के गाँव में काम पर गया उसकी आदत को गाँव वाले सब जानते थे इसलिए नज़र भी रखते थे जब रात में काम ख़त्म हुआ तो सोने के लिए डिग्गी उस कमरे में लेट गया जिसमें मिठाई रखी गई थी डिग्गी डिग्गी कई आवाज़ लगाई डिग्गी न बोला
आख़िर उसे कौन जगा सकता है जो जानकर नींद का ढोंग कर रहा हो मौक़ा मिलते ही पेट भरकर मिठाई खाने के कारण पेट ख़राब हो गया सौ रूपये मज़दूरी मिली और ती सौ रुपये डाक्टर ने ले लिए माल पराया हो तो अपने पेट का तो ध्यान रखना ही पड़ेगा । ****
३. पानी
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सर्दी का मौसम आते ही दूध की माँग बढ़ने लगी दूधिया ने कहने पर भी पैसे नहीं बढ़ाए राजेश बड़ी परेशान थी सर्दी के कारण भैंस दूध कम देने लगी दस किलो से आठ किलो पर आ गई बड़ा परिवार, खर्च अधिक होने से पूर्ति मुश्किल रहती,
दूधिया ने कहा आज दूध पतला कैसे पानी मिला दिया क्या, नहीं तो कह राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा दुधिया ने सोचा पानी डालते हुए पकड़ लूँगा तो पैसे काट लूँगा लेकिन राजेश भी कुछ कम न थी साइकिल के टियूव में पानी भरकर भैंस के पेट पर चढ़ा देती और सर्दी की बात कहकर उपर से झूल डाल देती दूध निकालते वक़्त बॉल्व बोड़ी को ढीला कर के पानी बाल्टी में दूध में मिला देती, बहुत दिन बाद चालाकी पकड़ी गई दूधिया ने कहा तो राजेश ने साफ कह दिया इस रेट में तो यही मिलेगा, तुम रेट तो पानी के भी नहीं देते मैं तो दूध देती हूँ लेना लो ना लेना मत लो दूधिया को मजबूर होकर रेट बढ़ाने पड़े ****
४. तू तू मैं मैं
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वैक्सीन लगवाने को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई थी वैक्सीन लगवाए या न लगवाए गाँव में चुनाव हुआ ही था अभी लोग पक्ष विपक्ष में बंटे हुए थे विजयी पक्ष ने सरकार की नीतियों का समर्थन करते हुए वैक्सीन लगवा ली विपक्ष ने विरोध प्रदर्शन किया परन्तु विरोध में ये भी भूल गए कि रोग पक्ष विपक्ष दोनों को बराबर मारता है एक गाँव में रहना है ख़तरा तभी टल सकता है जब वैक्सीन लगवाए इस बात को लेकर तू तू मैं मैं हो गई विपक्ष को मनमानी छोड़कर रोग को हार जीत के दायरे से बाहर रख कर सोचना पड़ा, आँखों से न दिखाई देने वाला अपनी पहचान छुपाने वाला वायरस किसी को पहचानता नही है ये भय तू तू मैं मैं से बहुत बड़ा था । ****
५. जूते की कील
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झबरे का जीवन सादा था और विचार ऊँचे सात्विक वह बहुत सादगी से जीवन यापन करता अपने कार्य को पूजा की तरह संयम व नियम के साथ बड़े मन से करता बाज़ार में नीचे बैठकर जूते चप्पल सीलने का काम करके जो मज़दूरी मिलती उससे परिवार का पालन करता एक दिन दरोग़ा का जूता उखड़ गया उस दिन का पहला ग्राहक झबरे ने एक कील ठोंक कर कहा पांच रूपया
तभी एक बच्चे ने कहा अंकल मेरी चप्पल जोड़ दो झबरे ने दो कील ठोंक कर बच्चे को दे दी और पैसे भी नहीं माँगे दरोग़ा ने कहा ऐसा क्यूँ मुझसे एक कील के पाँच रूपये और बच्चे से दो कील का कुछ नही । हाँ साहब पैसे कील के नही जूते उठाने के लेता हूँ वैसे भी बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं । दरोग़ा जी की समझ में आ गया अपनी सेवा देकर पहले ग्राहक से पाँच रूपये लेकर झबरे ने बोनी कर ली । ****
६. पसीना
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घर में बड़ी शान्ति, पड़ोसी कहते आपके यहाँ कितनी शान्ति है कोई बोलता तक नहीं है आपके घर से आवाज़ तक नहीं निकलती, हाँ सब बड़े हैं छोटे बच्चे होते हैं तो शोर मचाते रहते हैं ऐसा कह कर मालती बात पूरा कर देती । ये बात पड़ोसियों को हज़म न होती आख़िर कब तक राज राज रहता शारदा ने घर में जाने का निर्णय लिया और किसी बहाने से घर आकर बैठ गई । अपने लक्ष्य पर अडिग शारदा देखती रही कि कुछ अता पता मिले, संयोग से किसी का मौन न टूटा बेचारी निराशा से भरी शारदा लौट गई पड़ोसी महिलाओं में जब शाम को टहलते हुए पुनः चर्चा हुई तो शारदा के मुँह से एक ही बात निकली कि मौन ही घर की शान्ति का रहस्य है जहाँ मौन है वहाँ शान्ति है पसीना बहाना है तो मौन होकर बहाओ तब पता चलेगा की मौन कितना कठिन है बोलने में मेहनत नहीं मेहनत तो चुप रहने में है ।****
७. सुई
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हर चीज़ का अपना महत्व होता है बड़ा अपना और छोटा अपना महत्व रखता है तलवार और सुई में बहस हो गई तलवार बोली मैं बड़ी हूँ लोगों का गला काट सकती हूँ सुई ने कहा आपसे ज़्यादा ज़रूरत लोगों को मेरी पड़ती है मैं अच्छे अच्छे कपड़े सिल देती हूँ और तो और तुम्हारे द्वारा काटा हुआ गला भी सिल सकती हूँ तुम काट तो सकती पर जोड़ नहीं सकती, तलवार निरुत्तर मौन रह गई । ****
८. सिंचोगे किसान
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अचानक बरसात समय से पहले शुरू हो गई किसी को अनुमान न था कि बाढ़ इतनी जल्दी आ सकती है हर बार तो ये समय बरसात से बचने की तैयारी शुरू करने का था हर साल की तरह जयचंद जोशी अपना ज्योतिषी अनुमान बताकर कि *सींचोगे किसान* रटा रटाया वाक्य कह कर फसलाना ले गया था पिछले कई सालो से अनुमान सही माना जाता था गर्मी देर तक रही तो किसान खेत में पानी की सिंचाई करते जयचंद ग्रह नक्षत्रों की बात बताकर अपनी योग्यता का बखान करने से नहीं थकता लेकिन इस बार भविष्यवाणी ग़लत रही किसान नाराज़ हुए किसानों द्वारा दी हुई भेंट अधिक होने से गाँव में पुनः लेने के लिए आना पड़ा किसानों ने पूछा जोशी जी आपका पत्रा फेल हो गया इस बार जयचंद ने कहा नही मैंने कहा था सींचोगे किसान अब आप घर में पानी सींच रहे हो ।बरसात जल्दी होगी या देर से ये मेरे बस में कहाँ । किसान चुप रह गए सच यही है घरों में भी पानी सींचा जाता आख़िर छप्पर व छतों के टपकने से भी तो पानी सींचने जैसी स्थिति रहती है ।****
९. आटा चक्की
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घर में आटा पीसने की चक्की का रोज चलना और उसके साथ शान्ति का गीत गुनगुनाना ‘ताज़ा पीस पीस कर खाऊँगी बालम’ ये शान्ति के स्वास्थ्य का राज था शायद ही कोई जाने । जबसे गाँव में बिजली से चलने वाली आधुनिक चक्की लग गई थी ज़्यादातर लोग वही गेहूं पिसवाने लगे थे लेकिन शान्ति के पास पिसाई के पैसे न रहते तो हाथ से पीसने की मजबूरी । धीरे-धीरे आधुनिक चक्की का आटा खाने से लोगों के पेट का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा बिगड़ता भी क्यूँ ना आधुनिक चक्की में कृत्रिम पाट प्लास्टिक के बने होते हैं पत्थर जल्दी घिसता है जिससे आटा किरकिरा हो जाता है ।
पास पड़ोस की महिलाएँ शान्ति से एक ही बात पूछती तू इतनी स्वस्थ कैसे है शान्ति मुस्कुराते हुए कहती बहन ताज़ा ताज़ा खाओ । किसी को अनुमान न था आटा चक्की हाथ से चलाने से स्वास्थ्य का सीधा सम्बन्ध है । ****
१०. कीचड़ और विपक्ष
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चुनाव के बाद भी गाँव का रास्ता जैसा था वैसा ही रहा मोहल्ले के ठेकेदार ने जिसे वोट देने की अपील की थी वो हार गया था जीतने वाले ग्राम प्रधान ने साफ़ कह दिया कि जब आपने वोट ही नहीं दिए तो मैं क्या कर सकता हूँ कीचड़ आपने की है अब आप ही साफ़ भी करो । ये बात सुनकर मोहल्ले के ठेकेदार ने गाँव प्रधान के ख़िलाफ़ दरखास्त लगा दी और कुछ ऐसा लिख दिया, सेवा में श्रीमान महोदय राज बदला है पर लोग नहीं बदले मुझे छूना तो दूर लोग मेरी ओर देखना भी नहीं चाहते जबकि मैंने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा अतः आपसे निवेदन है कि मेरी सुध लेकर छुआ-छूत से छुटकारा दिलाएँ । सबके चरणों की दासी कीचड़ । अधिकारी ने दरखास्त पढ़ी और तुरंत जाँच के लिए आदेश कर दिए । सूचना गाँव प्रधान को दी गई गाँव प्रधान ने अधिकारी के आने के डर से कीचड़ साफ़ करके रास्ता बना दिया । पक्ष को बात समझ नहीं आई विपक्ष ठेकेदार की चतुराई को मान गया । ****
११. मूल्य
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गन्ने की खेती किसानों के मन भा गई मेहनत कम मुनाफ़ा ज़्यादा और जोखिम बहुत कम । ये देखते हुए गोविंद ने अपनी सारी ज़मीन में गन्ना ही बो दिया गेहूं धान या अन्य कोई भी फसल बिलकुल न बोई, गाँव के लगभग सभी किसानों ने ऐसा ही किया इस बार गर्मी अधिक होने के कारण सिंचाई खाद खुदाई की लागत अधिक लगानी पड़ी । गन्ने की पकी फसल घर में रखकर कुछ दिन बाद नहीं बिक सकती, अन्य फसलों का भंडारण संभव है ये किसानों ने सोचा तक नहीं, वैसे भी भूख पेट से ज़्यादा पैसे की दिमाग में रहती है आख़िर मूल्य दिमाग़ ही तो बढ़ाता घटाता है।
सरकारी चुनाव न होने और मिल की क्षमता कम होने से मूल्य वृद्धि भी न हुई जिसके कारण मुनाफ़ा घाटे में बदल गया और तो और मूल्य तब पता लगा जब गेहूं मोल लेना पड़ा इस बार किशन ने मर्ज़ी के रेटों पर गेहूँ चावल को चढ़ते मूल्य में बेच कर गन्ने को घाटे का सौदा सिद्ध कर दिया । ****
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क्रमांक - 05
जन्म तिथि : 18 मई 1971
जन्म स्थान :पटना - बिहार
माता : स्वर्गीय शकुंतला वर्मा
पिता : श्री अर्जुन कुमार वर्मा
शिक्षा : स्नातक प्रतिष्ठा- दर्शनशास्त्र ,पटना विश्वविद्यालय
स्नातकोत्तर हिन्दी , पूना विश्वविद्यालय, N.T.T B.Ed
व्यवसाय : (सेवानिवृत्त अध्यापिका)
रूचि : साहित्य लेखन, अध्ययन, अध्यापन, सिलाई प्रशिक्षण व समस्त गृह कार्य
विधा : कविता, कहानी, लघुकथा , संस्मरण, संवाद लेखन, निबंध,समसामयिक विचार आदि
संस्थाओ से सम्पर्क : -
- साहित्य संगम संस्थान समस्त इकाई,
- जैमिनी अकादमी (कविता, लघुकथा, समसामयिक विचार)
- नवकृति काव्य मंच,
- साहित्य रचना,
- साहित्य आजकल,
- साहित्यिक मित्र मंडल जबलपुर मध्य प्रदेश
सम्मान : -
- गुरु रविंद्र नाथ टैगोर सम्मान,
- उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान,
- तिरंगा सम्मान,
- शिक्षक उत्थान रत्न सम्मान,
- आजाद-ए- हिंद सम्मान,
- गोस्वामी तुलसीदास सम्मान,
- कवि रत्न सम्मान,
- काव्य गौरव सम्मान,
- शहीद भगत सिंह सम्मान,
- डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन सम्मान इत्यादि
विशेष : -
- काव्य संग्रह दिल से -फेसबुक पेज, ब्लॉग
- पटना आकाशवाणी केंद्र से विविध कार्यक्रम की प्रस्तुति (सन्1985-88तक)
- एयर फोर्स स्टेशन के अंतर्गत सांस्कृतिक कार्यक्रमों में विविध कार्यक्रमों में सहभागिता
पता : फ्लैट नं : डी - 101 , श्री साईं हेरिटेज,छपरौला ,
गौतम बुद्ध नगर - 201009 उत्तर प्रदेश
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बचपन में ही मां के गुजर जाने के कारण मीनू के पिताजी ने दूसरी शादी कर ली थी। पिताजी पर सौतेली मां का दबदबा था। मीनू की सौतेली मां सारा दिन घर का काम कराती। दूसरे बच्चे को स्कूल जाते देख मीनू को भी बहुत पढ़ने का मन करता पर उसे स्कूल भेजने के नाम पर मां तरह तरह का बहाना बना देती। इसे पढ़ कर क्या करना, आखिर जाना तो है दूसरे घर में, वहां पर भी घर ही संभालना है वगैरह-वगैरह।
समाजसेविकायें उन्हें साक्षरता के महत्व को बताते हुए बच्ची को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करती पर वह किसी का नहीं सुनती।
बहुत कम उम्र में ही मीनू की शादी कर दी गयी। मीनू के ससुराल वाले अच्छे नहीं थे। पति भी शराब पीकर पीटा करता। मीनू असहाय लाचार चुपचाप काम में लगी रहती। इसके दर्द और पीड़ा को देखकर के पड़ोसी बोलते-- तुम अपने पैरों पर खड़ी हो जा। क्यों इतना अत्याचार सहती हो?
पर मीनू जानती थी कि मैं तो पढ़ी लिखी नहीं हूं मैं क्या कर सकती हूं?
उसके दर्द को देखकर उसके पिताजी को भी तरस आने लगा था और उन्हें भी अब बहुत अपने आप पर ग्लानी महसूस होने लगी थी।
वे दुखी थे यह सोच कर कि अगर मैं अपनी बिटिया को साक्षर किया होता तो आज इतना अत्याचार नहीं सहना पड़ता। बचपन में सौतेली मां का अत्याचार झेली और अब अपने ससुराल वालों का।आज अगर यह साक्षर होती तो खुद अपने पैरों पर खड़ी हो सकती थी। काश! मैं समय पर साक्षरता का महत्व समझ पाया होता। ****
2.आत्मरक्षा
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मनीषा अपने गांव से चार किलोमीटर दूर सरकारी विद्यालय में पढ़ने जाया करती थी। गांव की अधिकांश लड़कियां दसवीं पास करने के बाद विद्यालय जाना बंद कर दी थी पर मनीषा के हृदय में पढ़ने के प्रति तीव्र ललक थी जिसके कारण वह पढ़ाई जारी रखी।
उसकी दो सहेलियां मीनू और संध्या ने नियमित रूप से विद्यालय नहीं जाती थी। इस कारण मनीषा को अधिकांश अकेले ही विद्यालय जाना पड़ता था। बीच रास्ते में मनचले उसे छेड़ने का प्रयास करते, पर वह हिम्मत से काम लेती। प्रत्युत्तर देते हुए अपने मंजिल तक पहुंचती।
एक दिन लड़कों ने सुनसान जगह देख छेड़खानी शुरू कर दी। मनीषा अकेले हीं उन लड़कों से भिड़ गई।
मनीषा कराटे के प्रशिक्षण के दौरान आत्मरक्षा का गुढ़ ज्ञान प्राप्त कर ली थी। आज सही समय पर इस्तेमाल करते हुए लड़कों के छक्के छुड़ा दिए। लड़के दुम दबाकर भाग गए।
मनीषा अपनी रक्षा करते हुए विद्यालय पहुंची और अपने शिक्षक और अपनी सहेलियों को घटना के बारे में बताई।
सभी लोग उसकी वीरता की कहानी सुनकर भूरी भूरी प्रशंसा करने लगे। वह भी बहुत ही उत्साहित हो रही थी क्योंकि उसका मनोबल दुगुना बढ़ गया था। वह जान गयी थी कि अब अपनी आत्मरक्षा खुद कर सकती है।****
3.मूलभूत शिक्षा
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प्रखर के माता-पिता ने प्रखर को उच्च शिक्षा देकर योग्य इंसान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। प्रखर पढ़ाई खत्म कर एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर आसीन हो गया था।
अच्छा वेतन, अच्छी सुविधाएं पाते हीं प्रखर के व्यक्तित्व में परिवर्तन आना शुरू हो गया। माता- पिता ने पढ़ाई के साथ-साथ दैनिक दिनचर्या के जो स्वास्थ्यवर्धक मूलभूत दैनिक शिक्षा प्रदान की थी वह प्रखर की अमीरी ने उसके जीवन से धीरे-धीरे विलुप्त कर दिए।
किताबी पढ़ाई के माध्यम से वह अच्छी नौकरी तो पा चुका था पर माता-पिता के द्वारा दिए गए ज्ञानवर्धक शिक्षा को नजरअंदाज कर दिया था। नौकर-चाकर रईसी ठाठ ने मन को स्वच्छंद बना दिया---जिसका नतीजा यह हुआ कि वह धीरे-धीरे अस्वस्थ होने लगा जिसका प्रभाव उसके दफ्तर के कार्यों पर भी पड़ने लगा।
जिस कंपनी के अधिकारी उसके कार्य की प्रशंसा करते नहींं अघाते थे उन्हीं अधिकारियों से अब हर कार्य पर डांट खानी पड़ रही थी। नौकरी छूटने की नौबत आ गई।
अब प्रखर को अपनी गलतियों का आभास होने लगा था। किताबी पढ़ाई के साथ-साथ अनुभवी बड़े बुजुर्गों द्वारा दी गई स्वास्थ्यवर्धक मूलभूत दैनिक शिक्षा जीवन के लिए कितना अहम है--यह गूढ़ मंत्र अच्छी तरह उसके पल्ले पड़ गई थी। ****
4.बदलाव
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माधवपुर गांव में लड़कियों को पढ़ाने में विशेषकर उच्च शिक्षा दिलवाने में ग्रामीण रुचि नहीं दिखाते थे--- कारण-- वहां पर स्कूल- कॉलेज की सुविधा नहीं थी। दूर शहर में लड़कियों को पढ़ने के लिए अकेले भेजना लोग ठीक नहीं समझते थे।
सुमन पहली लड़की थी जिसके पापा ने दूर शहर में होस्टल में रखवा कर मेडिकल की पढ़ाई करवाई थी। सुमन अपने डिग्री का सदुपयोग करते हुए डॉक्टर बनकर अपने गांव-ज्वार में ही लोगों का इलाज करना शुरू कर दिया।
सुमन को डॉक्टर बने हुए देखकर गांव की लड़कियों में भी पढ़ने की जिज्ञासा जाग उठी और उनके अभिभावकों में भी लड़कियों को पढ़ा-लिखा कर आगे बढ़ाने का जज्बा जाग उठा।
एक दूसरे को देख कर धीरे-धीरे लोग अपनी बच्चियों को बेटों की तरह दूर शहर में हॉस्टल या पी.जी में रखकर पढ़ाना शुरू कर दिया।
लड़कियां लड़कों की अपेक्षा अपने काम के प्रति ज्यादा मेहनती और परिश्रमी होती हैं-- यह बात सच साबित हो गई।
लड़कियां सुनहरा अवसर प्राप्त होते हीं उच्च शिक्षा प्राप्त कर अलग-अलग पदों पर कार्यरत होकर अपने अभिभावकों और गांव का नाम रोशन करने लगीं।
लोगों के जीवन में और विचारों में बदलाव आ चुका था। ग्रामीण संकीर्ण विचारों को त्याग कर अपने बच्चियों का भविष्य सुनहरा बनाने के लिए उत्सुकता दिखाने लगे थे। माधवपुर गांव शिक्षित गांव के रूप में भी प्रसिद्ध हो चुका था। ****
5.समय बड़ा बलवान
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शर्मा जी का इकलौता लड़का संदीप अपने घर का बहुत ही लाडला था। शर्मा जी अपने पैसे के घमंड में बहुत अभिमान में रहते थे।
सबसे कहते फिरते अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलवाकर डॉक्टर बनाऊंगा पर संदीप पढ़ाई में मन नहीं लगाता फिर भी वे अहंकार में उसकी तारीफ के पुल बांधते हुए विशेष रूप से अपने पड़ोसी गुप्ता जी को ताना कसने के अंदाज में कुछ न कुछ सुनाया करते।
गुप्ता जी चुपचाप उनकी बात सुन लिया करते कभी जवाब नहीं देते। गुप्ता जी के चार बच्चे थे। उनकी आमदनी कम थी। इस कारण वे अच्छे प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चों को न पढ़ाकर सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे थे।
गुप्ता जी के बच्चे बहुत ही मेहनती और होनहार थे। हरेक परीक्षा में अच्छे नंबर लाते। बड़े होकर वे सभी प्रतियोगिता की तैयारी करने लगे जबकि शर्मा जी का बेटा संदीप ज्यादा लाड़-प्यार के कारण बिगड़ता चला गया, पढ़ाई से भी विमुख हो गया।
गुप्ता जी के बच्चे पढ़-लिख कर उच्च पद पर आसीन हो गए जबकि संदीप पथ भ्रमित हो गलत रास्ते पर चला गया।
अब गुप्ता जी सभी के सामने अपने बच्चों के संबंध में गर्व से सीना तान कर चर्चा करते और शर्मा जी वहां से नजरें झुका कर चुपचाप खिसक जाते।
अब उन्हें पता कि समय बहुत बलवान होता है कभी अपने धन-दौलत का अभिमान करते हुए किसी के दिल को ठेस नहीं पहुंचाना चाहिए। ****
6. पछतावा
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यह घटना कुछ वर्ष पूर्व उस समय की है जब मैं विद्यालय में कक्षाध्यापिका के रूप में परिणाम पत्र बना रही थी। आये दिन विद्यालय में अध्यापकों द्वारा छात्र छात्राओं के साथ पक्षपात पूर्ण रवैया के समाचार सुनने को मिलते हैं। मैं भी इस स्थिति से गुजरी हूं।
मेरी प्रतिभावान छात्रा जो प्रथम स्थान की हकदार थी, उसे गणित और विज्ञान के अध्यापकों के मिलीभगत द्वारा जानबूझकर Oral Test में कम नंबर देकर तीसरे स्थान पर पहुंचाया गया और तीसरे स्थान की छात्रा को प्रथम स्थान पर। क्यों? क्योंकि वो बच्ची उनसे ट्यूशन नहीं पढ़ती थी।
मैं पूरी हकीकत जानते हुए भी आवाज बुलंद नहीं कर पाई क्योंकि वे दोनों अध्यापक प्रधानाध्यापक के विश्वासपात्र थे और उन्हीं के क्षेत्र के रहने वाले थे।
मैं उस विधालय में नयी थी। मेरी बातों पर कोई विश्वास नहीं करेगा यह सोच कर मैं चुप रह गई। उसी दौरान साजिश के तहत मेरे जरूरी पेपर गायब कर मुझे प्रधानाध्यापक के नज़र में भी हल्का कर दिया गया था। इस वजह से भी अप्सेट होने के वजह से मैं आवाज बुलंद नहीं कर पायी।जिसका आज भी मुझे अफसोस है।
उस बच्ची के साथ हुए अन्याय का दोषी मानकर मैं खुद को अपराध मुक्त नहीं कर पायी। और आज भी वो अफसोस टीस बनकर मेरे मन को सालते रहता है। ****
7. सच्चा रिश्ता कौन-सा?
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मानसी एक सामान्य घरेलू महिला जो पढ़ाई लिखाई में बहुत अधिक रूचि रखती थी। पर समयानुसार पढ़ाई की सुविधा न मिलने के कारण और पारिवारिक जिम्मेदारियों के आ जाने के कारण उसकी इच्छाओं पर पानी फिर गया।
अब वह खुद को नए वातावरण में ढालकर घर के नित्य काम में तन्मयता से लोगों की सेवा करती। लोगों की प्रशंसा सुनने की चाहत में और ज्यादा से ज्यादा मेहनत करती रहती।
समय के साथ-साथ थोड़ी जिम्मेदारियों का बोझ कम होते ही उसने अपनी ख्वाहिशे पूरी करनी शुरू कर दी।
खुद पढ़ती और बच्चों को पढ़ाती। घर के नित्य कार्य के साथ सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, बेकरी आदि घरेलू उद्योग भी शुरू कर ली थी।
ब्यूटीशियन का कोर्स कर समय निकाल कर पार्लर का काम भी करती।
अपने बच्चों के बड़े होते हीं उसने विद्यालय जाकर बच्चों को पढ़ाना भी शुरू कर दिया। साथ ही साहित्यिक रचनाएं लिख कर अपने मनोभावों को ब्यां कर अपनी अधूरी इच्छाएं पूर्ण करने लगी।
पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ अपनी इच्छाएं पूर्ण करना ज्यों ही शुरू किया उसे आभास होने लगा कि जितना वो अपनों को अपना समझती थी वह दिल से उसे अपना नहीं समझते थे।
जब उसे अपनों की जरूरत महसूस हुई तब अपने दूरियां बनाने लगे। उसके कार्यों को अनदेखा करने लगे।वह समझ नहीं पा रही थी कि अपने इतने बेगाने-सा व्यवहार क्यों कर रहे हैं?
पराये तारीफ करके अपना-सा व्यवहार करते पर अपनों का व्यवहार पराया-सा महसूस होता।
जीवन की यह कड़वी अनुभूति उसके मन को सालते रहता।
वह सोचने को विवश हो जाती कि वास्तव में रिश्ते कौन से अपने हैं और कौन से पराये?
प्यार से बंधे रिश्ते या खून के रिश्ते?
असली रिश्ते जहां उसे शाबाशी मिलने की उम्मीद थी--वहां पर चुप्पी और शांति छा गई। जहां से उम्मीद नहीं थी वहां से शाबाशी मिलने लगी। आखिर हकीकत में सच्चा रिश्ता कौन-सा?
अपनों का या परायों का।
रिश्तो की पहचान भी समय ही करवाता है --यह बात मानसी अब समझ चुकी थी। ****
8.बुजुर्गों की खामोशी
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अनीता अपने पिता से बहुत प्यार करती थी पर अपनी शादीशुदा जिंदगी को ध्यान में रखते हुए अपने पिता को पूर्ण रूप से मदद नहीं कर पाती थी, मायके में अपने विचारों द्वारा हस्तक्षेप करना भी अच्छा नहीं मानती थी।
पिता जी का भाईयों से किसी बात पर अनबन होता तब भी वह उन्हें ही समझा बुझाकर चुप करा देती। वह खुल कर दिल की बात करना चाहते थे पर वह सुनने के लिए धैर्य नहीं रखती।
आज के परिवेश का उदाहरण देकर हर पल उन्हें ही बदलने का उपदेश देते रहती ताकि वह दुःखी न रहकर खुश रहें।
पिता जी जीवनसंगिनी के गुजर जाने के कारण भी खोए-खोए से और चुप से रहने लगे थे। मन की बात मन में ही दबा रह जाने के कारण घाव अंदर ही अंदर नासूर बन गये। शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से इतना कमजोर होगा --कोई महसूस नहीं कर पाया था।
बुजुर्ग बच्चों की हल्की पीड़ा से तड़प उठते हैं पर बच्चे बुजुर्गों की खामोशी में छुपे दर्द को महसूस नहीं कर पाते।
अचानक एक दिन पिताजी चलते-चलते बैठ गये-- हृदय गति रुक जाने के कारण दुनिया छोड़ दिए। न हीं अपनी तड़प न ही अपनी मन की बात कहे।
अब उनकी खामोशी बच्चों को विशेष कर अनीता को जीवन भर के लिए मन की टीस के रूप में मिल गयी थी। पछताने के सिवा कुछ नहीं बचा था। ****
9. चुनौती
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सरिता के पति का अचानक कार दुर्घटना में देहांत हो जाने के कारण दो छोटे बच्चे और बुजुर्ग सास-ससुर की जिम्मेदारी उसके सिर पर आ गई।
पति का प्राइवेट नौकरी होने के कारण न कोई पेंशन का सहारा था और न ही पुश्तैनी जमीन जायदाद उसके पास थी।
सरिता के जीवन में अचानक आई मुसीबत एक चुनौती बन गई थी। शादी के पहले सिलाई-बुनाई का जो काम वो स्वेच्छा से शौक पूरा करने के लिए करती थी,वहीं अब एक आमदनी का जरिया नजर आ रहा था।
उसने अडिग निर्णय के साथ फैसला लिया कि वह अपने पैरों पर खड़ी होगी और उसने कुछ सालों में कर दिखाया। एक सिलाई मशीन पर सिलाई कार्य शुरू करते हुए धीरे-धीरे कुछ और सिलाई मशीन उसने खरीद ली और लड़कियों को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया।
उसके बाद उन्हीं लड़कियों के साथ मिलकर सिलाई का बड़े स्तर पर बिजनेस स्टार्ट किया और उसने एक नामी-गिरामी समाज में अपना अस्तित्व को कायम करने में सफलता हासिल कर ली। जीवन में आई चुनौती का सामना उसने डटकर किया जिसके कारण आज वह अपने परिवार को सक्षम बनाते हुए आगे बढ़ने में कामयाब हो पायी। ****
10. अमूल्य दहेज
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रमा देवी खोई-खोई उदास सी रहती थी क्योंकि बेटे की शादी में दहेज नहीं मिला था। बहु साधारण घर से आई थी । सुशिक्षित और सर्वगुण संपन्न थी पर दहेज की कमी उन्हें खटकती रहती।
पड़ोसन जब अपने बहुओं के मायके से लाए हुए चीजों की तारीफ करती तब वह चुप हो जातीं।
रमा देवी के पति समझाने का प्रयास करते तुम्हारी बहू कोहिनूर है पर उनकी समझ में बात नहीं आती।
बहू रीना प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी। घर के कामों में भी हाथ बटाती और अपनी पढ़ाई भी करती जबकि पड़ोसन की बहूएं रईस घराने की होने के कारण सिर्फ फैशन कर इधर- उधर घूमने और पार्टी करने में अपना समय व्यतीत करतीं। घर के कामों में भी हाथ नहीं बटातीं।
रमा देवी को अचानक एक दिन फोन आया --आपका बेटा रमेश का एक्सीडेंट हो गया है।
रमा देवी सुनते हीं बेहोश हो गईं । बहू रीना ने हालात को समझते हुए हिम्मत से काम लिया।
उसने स्कूटी स्टार्ट कर घटनास्थल पर पहुंचकर फटाफट एंबुलेंस बुलाई और तुरंत रमेश को लेकर अस्पताल पहुंची। तत्काल उपचार मिलने के कारण रमेश की जान बच गई।
डॉक्टर ने तत्परता से अस्पताल पहुंचाने के लिए रीना के समझदारी की भूरी-भूरी प्रशंसा की।
रीना दिलों जान से रमेश और घरवालों की भी सेवा-सुश्रुषा करती। अपने सदव्यवहारों से सास के दिल में भी जगह बनाने लगी थी।
कुछ महीने बाद रीना की अच्छी-सी जॉब लग गई । सफल गृहिणी और साथ ही जॉब करने वाली बहू -- सोने पर सुहागा।
उसके ससुर जी तारीफ करते नहीं थकते। अपनी पत्नी को समझाते--देखो! तुम्हारी बहू कोहिनूर निकली।
अपने पड़ोसियों से जाकर कहना --मेरी बहू हीरा है हीरा।अमूल्य दहेज है-- पढ़ी-लिखी समझदार और सफल गृहिणी। बड़ों का मान-सम्मान बनाए हुए घर-बाहर सभी को कुशलतापूर्ण भाव से समेट कर आगे बढ़ रही है। ****
11. चापलूसी
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मधु अपनी मृदुभाषी आवाज से ऑफिस के सीनियर अधिकारियों के साथ-साथ घर परिवार में भी सबकी चहेती थी। वह अपनी मीठी बातों से हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेती।
सहयोगी अपने निजी कार्य और मन के भाव को भी मधु से नि:संकोच साझा करते। वह घर में भी सास, देवरानी, जेठानी के साथ ऐसा ही माहौल बनाकर रखा करती। मीठा बनकर वह सभी के व्यक्तिगत विचार और अंतर्मन की बातों को जान लेती।
उसके मृदुल स्वभाव के कारण कभी किसी को शक नहीं होता। परंतु धीरे-धीरे ऑफिस के सहयोगियों का प्रमोशन में अड़चन आने लगा जबकि उसके साथ ऐसा नहीं हुआ।
घर में भी वह लोगों को तरह-तरह के तोहफे देकर प्रसन्न रखती जबकि घर के कार्य में बिल्कुल हाथ नहीं बटाती। परिवार में कुछ दिन बाद ऊपरी प्यार रहते हुए भी आपसी अंदरूनी दूरियां बढ़ने लगी। धीरे-धीरे लोगों को अहसास होने लगा कि मधु दूसरे के व्यक्तिगत विचार को और आगामी योजनाओं को चापलूसी करने के चक्कर में एक दूसरे तक 'मिर्च मसाला लगाकर' पहुंचाती है।
दफ्तर में भी सहयोगियों की बातों को उच्च अधिकारियों तक पहुंचाने वाली धूर्त महिला मधु ही है।
अधिकारियों को भी उसके धूर्त व्यवहार का आभास हो चुका था। अविश्वासी इंसान को वह भी महत्वपूर्ण काम नहीं देते थे। सभी के समक्ष उसकी असलियत मीठी वाणी में छुपी चापलूसी और धूर्तता का पता चल गया था।
घर परिवार में भी उसके धूर्त व्यवहार को सभी लोग महसूस करने लगे थे। इधर की बात उधर कर चापलूसी करते हुए घर में झगड़ा लगवाने वाली मंथरा मधु ही हैं ।
वह सबकी नजरों में छोटी और ओच्छी हो चुकी थी। उसका व्यक्तित्व घर-परिवार से लेकर दफ्तर तक बौना हो चुका था।
चापलूस व्यक्ति घर-परिवार में हो, राजनीति में हो या दफ्तर में एक न एक दिन औंधे मुंह जरूर गिरता है। ****
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क्रमांक - 06
जन्मतिथि : २७ नवम्बर १९७६
जन्मस्थान : गोपालपुर )फैज़ाबाद ) उत्तर प्रदेश
पिता : स्व श्री इन्द्र स्वरूप खरे
माता : श्रीमती विभा खरे
पत्नी : श्रीमती आरती खरे
पुत्री : शांभवी खरे
शिक्षा : एम ए राजनीति, समाजशास्त्र,अंग्रेजी, एल एल बी, डिप्लोमा इन जर्नलिजम, डिप्लोमा इन कंप्यूटर अकाउंटेंसी एंड फाइनेंस एक्जीक्यूटिव
सम्प्रति : विधि व्यवसाय और फिल्म लेखन तथा साहित्य साधना
विधा : गद्य एवम् पद्य
प्रकाशित कृति : -
कारवां लफ्जो का सच का सामना ( काव्य संग्रह )
जीवन के रंग ( काव्य संग्रह )
विशेष : -
- तीस से अधिक सहयोगी संकलन में रचना प्रकाशित
- एसोसिएट मेंबर भाभा इंस्टीट्यूट मैनेजमेंट साइंस उदयपुर - एसोसिएट मेंबर स्क्रीन राइटर एसोसिएशन मुंबई
पता : आद्या वास , ९४६, मोहल्ला सुन गढ़ी , पीलीभीत - २६३००१ उत्तर प्रदेश
1.फादर्स डे
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आज सुबह से ही शर्मा जी तैयार होकर बैठे हुए थे।बार-बार दरवाजे की तरफ देखते कभी दीवार घड़ी की तरफ बेचैनी से देखते,चश्मा साफ करके चेहरे पर हाथ फेरते..ऐसा करते काफी देर हो गई तो रामजी ने पूछा.."अरे शर्मा जी क्या बात है, आज बड़ी बेचैनी दिख रही है चेहरे पे..किसका इंतजार है?"
शर्मा जी ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा.."आज बेटा आने वाला है न..वही तो अकेला सहारा है मेरा..आज के दिन जरूर आता है मुझसे मिलने..."।
रामजी ने आश्चर्य से कहा..."आज उसका जन्मदिन है क्या या आपका?"
"नहीं.. नहीं, जन्मदिन नहीं.. आज फादर्स डे है न तो विश करने हर साल आता है और देखना" ...बात हलक में रह गयी और शर्मा जी तेजी से आगे बढ़े। मेन गेट पर एक बड़ी सी कार रूकी और एक युवा के साथ फलों की टोकरी लिए हुए दो लोग उतरे।शर्मा जी ने युवक का कंधा थपथपाया और आँखें साफ करके कुशल क्षेम पूछी।
फलों की टोकरी प्रबंधक को देकर युवक बोला..."मैनेजर साहब, कई सोशल एक्टिविटी में बिजी रहने के कारण आज के दिन यहाँ आ पाना काफी मुश्किल हो जाता है,इसलिए पिताजी को इंटरनेट कनेक्शन के साथ ये लैपटॉप दे जा रहा हूँ जिससे आगे से वीडियो चैट के थ्रू बात करता रहूँगा और इस वृद्धाश्रम के लिए दान सामग्री मेरे सहयोगी दे जाया करेंगे।"
मैनेजर के कमरे से बाहर निकल कर वह शर्मा जी के पास गया,गले मिला और हैप्पी फादर्स डे पापा बोलकर गाड़ी से धूल उड़ाता चला गया। ****
2. ईद
***
करीब चार साल का राहुल अपनी बीमार माँ के साथ अस्पताल के बेड पर बैठकर खिड़की से सफेद कुर्ता पायजामा और सफेद टोपी पहने तमाम लोगों को जाते हुए देख रहा था। बालसुलभ जिज्ञासा में पूछ बैठा.."मम्मी ये लोग कहाँ जा रहे हैं?"
"बेटा इज ईद है और ये लोग नमाज पढ़ने जा रहे हैं"।माँ ने समझाया और सब कुछ समझकर वह भी हठ कर बैठा "मुझे भी ईद मनानी है ...मैं भी नमाज पढ़ने जाऊँगा"।।
सब यह सुनकर हँसने लगे,राहुल झेंप गया।तभी एक बुजुर्ग तीमारदार खान साहब बोले"बेटा,ईद और नमाज हम मुसलमानों का काम है ..आप तो हिंदू हैं..आप न ईद मना सकते हैं और न ही नमाज पढ़ सकते हैं।"
थोड़ी देर की खामोशी के बाद राहुल बोला .."क्या भगवान भी अलग होते हैं जो हम सब अलग हैं"? फिर तमाम कोशिशों कुछ बाद उस बच्चे की आवाज फिलहाल दब गई।लेकिन ईद मनाने की कसक जो दिल में उठी वह न दब सकी।
उम्र बढ़ती रही और वक्त के साथ धर्म-मजहब के नाम पर तमाम खून पानी हो गया और राहुल एक सफल कारोबारी बन चुका था।वक्त ने आज फिर शायद करवट ली थी।
ईद के दिन वह अपनी दुकान पर बैठा था।एक मुस्लिम महिला युवती कुछ खरीदारी करनेआयी और अचानक बेहोश होकर गिर पड़ी।अचानक ऐसी हालत में राहुल घबरा गया ...ध्यान से उसे देखा तो लगा शायद वह गर्भवती है।अंजान महिला, बेहोशी का आलम ,जमाने का खौफ ...ये सब अचानक गायब हो गए,जब राहुल ने अपने स्टाफ से गाड़ी मंगवा कर उस युवती को अस्पताल ले जाने का निश्चय किया।
अस्पताल में डाक्टर की पूछताछ पर उसने सारी बात बताई।डाक्टर ने बताया कि शायद प्रसव का समय नजदीक है और इसे खून की जरूरत है।आप इनके किसी परिवार वाले को बुला कर लाइये या यहाँ से ले जाइये।
राहुल ने बहुत समझाया कि वह.इस महिला को या उसके परिवार को नहीं जानता है।लेकिन इसका इलाज बहुत जरूरी है..जो भी खर्चा होगा वह खुद दे देगा।लेकिन कानूनी पचड़े समझाकर डाक्टर ने इलाज से मना कर दिया।तब राहुल बोला..."डाक्टर साहब क्या आप मेरी बहन का इलाज कर सकते हैं?"
"हाँ..बिल्कुल,"
तो इसे आप मेरी बहन समझकर इलाज कीजिए सारा खर्च और खून मैं दूँगा...अब तो आपको कोई आपत्ति नहीं है।" डाक्टर ने कागजी कार्यवाही के बाद उसका इलाज शुरू किया।इसी बीच किसी ने उस युवती को पहचान कर उसके घर सूचित कर दिया।घर वाले जबतक अस्पताल पहुंचे,राहुल का खून उस अंजान युवती की नसों में उतर चुका था और वह युवती लेबर रुम से बाहर एक सुंदर बच्चे के साथ स्ट्रेचर पर आ रही थी।अपनी बहू को पोते के साथ देखकर खुदा का शुक्राना अदा करके खान साहब उस फरिश्ते से मिलने गये,जिसकी बदौलत आज उनके घर का चिराग बच सका था। वेटिंग रूम में बैठे राहुल के पास पहुंचे खानसाहब और उनके परिवार ने राहुल का धन्यवाद दिया...बेटा आज तुमने हमारी ईद सही मायने में मुबारक बना दी...कहो ईदी का क्या तोहफा दें।
राहुल ने ध्यान से उनका चेहरा देखा,मुस्कुराया और बोला..."अंकल ईदी तो मुझे मिल गयी और ईद भी मेरी हो गयी"।
"मतलब"..
अंकल मैंने आपको अभी पहचाना पर शायद आपने नहीं... बरसों पहले आपने हिन्दू होने के कारण मुझे ईद मनाने से मना किया था लेकिन आपकी बहू को बचाकर मैंने अपनी ईद आज मना ही ली और एक बहन को उसके बच्चे के साथ सही सलामत पाकर ईदी भी हासिल कर ली..."
अचानक खानसाहब की आंखों में एक चमक उभरी बोले तुम वो ...अस्पताल... या अल्लाह वो बच्चा आज इतना बड़ा हो गया।बेटा हमें माफ कर दो तुम्हारे सवाल का जवाब आज तुमने खुद ही दे दिया।सही मायने में ईद और इबादत का मतलब आज ही हमें मालूम हुआ है ...बेटा आज तुमने हमें हमारी ईदी और एक सबक दोनों ही दिये हैं",कहकर खानसाहब ने राहुल को गले से लगा लिया। ****
3.नसीहत
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रीमा बड़े ध्यान से टी.वी.पर प्रखर समाजसेवी टंडन जी का इंटरव्यू सुन रही थी।देशहित, नारीचिंतन,समाज हित हर विषय पर क्या गजब की पकड़ थी ..वह इसी में इतनी मग्न हो गयी कि कुछ औरसोचने का ध्यान ही नहीं रहा।तभी उसका नौ साल का बेटा किचन से चीखता हुआ आया..."मम्मा आपने दूध जला दिया..."!
वह भाग कर किचन में गयी और गैस बंद करके वापस आयी,टी.वी.पर नजर डाली।इंटरव्यू के स्थान पर कोई ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी।उसके पैर जड़वत हो गये और दिमाग सुन्न हो गया।जब उसने ब्रेकिंग न्यूज की हेडलाइन देखी....."बच्चों की तस्करी के आरोप में समाजसेवी टंडन गिरफ्तार..."।
" ऐसा नहीं हो सकता ..",रीमा स्वयं से बोली। तभी उसका बेटा बोला ..."हा मम्मा! ये अंकल परसों चार बच्चों को अपनी कार में ले गये थे।" ****
4. आश्वासन
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मंत्री जी के कार्यालय में करीब दो घंटे बाद अपना नंबर आने पर हैदर साहब ने मंत्री जी को सलाम किया और बताया जनाब मुहल्ले के शोहदों ने मेरे घर पर एक साल पहले कब्जा किया था और शिकायत करने पर भी कोई अधिकारी सुनवाई करने को तैयार नहीं है।अब इस उम्र में मैं कहाँ जाऊँ सर छुपाने...आपके नाम पर ही मेरा ऐतबार रह गया है चुनाव के वक्त आपने मदद का भरोसा दिया था और मैंने भी...बात अधूरी रह गयी। सेक्रेटरी बोला ओ चचा दख्वास्त दे दो मंत्री जी दिखवा लेंगे ज्यादा वक्त नहीं है तुम्हारी गाथा सुनने का..।अचानक मंत्री जी उठे हैदर साहब के कंधे पर हाथ रखा,हौले से बोले...मियाँ सियासत के तरीके आप नहीं समझेंगे....आपकी दरख्वास्त हमने जाँच के लिए भेज दी है।आप इत्मीनान रखकर आराम से घर जायें..।"इतनी देर में अगला फरियादी हाजिर था और हैदर मियाँ आँखें मलते बाहर निकल पड़े।बाहर आते ही उनकी विकलांग बेटी बोली.."अब्बा क्या हुआ?"
"बेटा मंत्री जी ने आश्वासन दिया है"।
क्या अब्बा तीसरी बार भी आश्वासन..?
हैदर मियाँ हल्के से मुस्कराकर बोले...हाँ पता है ..आखिर अनदेखीकिस्मत भी तो हमें आश्वासन ही देती है और हम अनदेखे रास्तों पर चलते रहते हैं...फिर ये तो मंत्रीजी हैं...सियासत के कायदे हम कहाँ समझ सकेंगे फिर वो चाहे तकदीर की सियासत हो या इंसानी...चल अब सराय चलते हैं। ****
5. देवी - पूजा
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देवी माँ की झाँकी यात्रा लेकर देवधर पूरे परिवार के साथ श्रद्धापूर्वक मंदिर गये थे।ढोल नगाड़े और जोरदार संगीत के बीच कानों पड़ी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी।
माता की भेटें गाकर प्रसाद वितरण के समय किसी ने पूछा..पूजा कहाँ है?सब चौंक पड़े।किसी ने कहा,"अभी तो यहीं थी"।तो किसी ने कहा,"बच्ची है कहीं खेल रही होगी"।थोड़ी देर के बाद फिर पूजा की तलाश शुरू हुई।पूजा एक नौ साल की बच्ची थी।
तभी एक सात वर्षीय लड़का बोला ..दीदी उधर बगिया में थी।सब उधर भागे,देखा..एक कोने में पूजा की चप्पलें और थोड़ी दूर पर उसका हेयरबैन्ड पड़ा था।घबराहट बढ़ती गयी..आशंकायें शक्ल बदलती रहीं...अचानक सब शांत हो गया।
एक गहरा सन्नाटा जो आसमां को चीर दे ..ऐसा धारदार सन्नाटा था।पूजा एक कोने में लगभग बेहोश पेड़ के तने से टिकी पड़ी थी और उसके कुछ कपड़े कोई जंगली जानवर शायद धोखे से छोड़ गया था।
पूजा की माँ ने उसे देखा..फिर मंदिर के ऊपर तने त्रिशूल को और सिर्फ दो शब्द उसके मुँह से निकले..."देवी....पूजा",और वह बेहोश हो गई। ****
6. तुलसी
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गेस्ट हाउस में आज चौहान साहब के कोई खास मेहमान ठहरे हुए थे,जिनकी आवभगत की तैयारी सुबह से चल रही थी।
निश्चित समय पर भोजन शुरू हुआ।पहले निवाले से आखिरी निवाले तक हर व्यंजन पर आगंतुक की प्रशंसा ने थमने का नाम ही नहीं लिया।
"वाह मित्र वाह ..आज तो भोजन में अमृत जैसा स्वाद मिल गया ...आत्मा तृप्त हो गयी ..ओम..",लंबी डकार के कारण बात अधूरी रह गई।
चौहान साहब के चेहरे पर संतुष्ट मुस्कान दिखाई देने लगी।आगंतुक ने बड़ा आग्रह किया -"भाई जिसने यह भोजन बनाया है हम उसके दर्शन जरूर करना चाहेंगे।"
अतिथि का आग्रह सर माथे पर..चौहान साहब ने इशारा किया।उनकी पत्नी कुछ ही क्षणों में एक युवती के साथ उपस्थित हुयीं।
आगंतुक ने देखते ही पूछा..बेटा,क्या नाम है तुम्हारा?अमृत जैसा रस तुम्हारे हाथों से बनाये भोजन में मिला ...आहाहह...कुछ शब्द नहीं मिल रहे हैं प्रशंसा को..खैर तुम्हारा नाम क्या है?"
'तुलसी',सुनकर आगंतुक चौंक उठे।उन्होंने ध्यान से तुलसी का चेहरा देखा और झटके से खड़े हो गये..."राम..राम..तू कुलटा..अछूत ..हे भगवान अनर्थ हो गया ..छीछीछी..।
चौहान साहब ने बड़ी धैर्यता से पूछा .."मित्र क्या हुआ?"
"अरे पूछो क्या नही हुआ?ये किसे अपनी रसोई में रखा है...।जीवन नरक हो गया ...जानते हो ये अछूत है..नीच जाति की..हमने ही इसे अपनी सोसायटी से निकाला था ..और आज...राम राम।
शांत मित्र शांत!अभी तो आप इस अनदेखी नीच अछूत कुलटा के बनाये भोजन को अमृत तुल्य बता रहे थे,आपकी आत्मा तृप्त हो गयी थी और अब.इसे देखते ही अमृत विष बन गया और तृप्ति का स्थान क्लेश ने कैसे ले लिया।
अतिथि ने कहा-सच कहा मित्र,तुलसी तो सदा.पवित्र होती.है चाहे वह जमीन पर हो या प्रसाद में पड़ी हो।तुलसी को कोई तूफान ही धूल में मिलाता है...मुझे क्षमा कर दो...तुलसी और आगंतुक के हाथ क्षमा मुद्रा में जुड़ गये।****
7.अभिलाषा
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वर्षों की प्रतीक्षा और अथक प्रयासों के बाद पहली संतान और वह भी पुत्ररत्न के पहले जन्मोत्सव को बड़े धूमधाम से राय साहब अपनी पत्नी के साथ मना रहे थे।
इसी अनुक्रम में राय साहब अपनी पत्नी और पुत्र के साथ पुराने मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों को भोजन बाँटने आये थे। स्वादिष्ट पकवान पाकर भिखारियों ने जी भर कर दुआयें लुटानी शुरु कर दीं।
अचिनक एक भिखारिन को भोजन पकड़ाते हुए राय साहब का शरीर काँपने लगा और वह लड़खड़ा कर वहीं भिखारिन के पास पैरों पर गिर पड़े...हडकंप मच गया।लोगों ने झुककर देखा रायसाहब बुदबुदा रहे थे .."अम्मा हमें माफ कर दो",और भिखारिन के काँपते हाथ उनके सिर पर रेंग रहे थे। ****
8. ट्रेनिंग
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राज्य में नयी नवेली सरकार के मुखिया ने आज पहली बार जनता दरबार लगाकर राज्य के युवा बेरोजगारों को रोजगार देने का ऐलान किया था।ऐलान सुनते ही डेंगू के मच्छर से तमाम बेरोजगार अपने हाथों में दरख्वास्त का पुलिंदा लिए लाइन में आकर लग गये।कानों की फुसफुसाहट भी शोर लग रही थी।सब को एक ही चिंता थी कहीं यह मौका हाथ से निकल जाये इसलिए सब जुगाड़ में लगे थे कि किसी तरह मेरा नम्बर पहले आ जाये।इस भीड़ में कुछ तो ऐसे भी थे जिनकी मौजूदगी भी घर के आँगन को बोझ लगती थी वे लोग दो दिन पहले ही डेरा डालकर मुखिया के हवेली की दीवार से टिक गये थे।
खैर, शुभमुहूर्त पर मुखिया जी प्रकट हुए अपने लावलश्कर के साथ...।मुखिया जी जिंदाबाद... मुखिया जी अमर रहें ...हमारा नेता कैसा हो.. मुखिया जी जैसा हो...तमाम नारेबाजी के बीच मुखिया जी ने हाथ जोड़े और माइक से घोषणा की.... "मेरे बेरोजगार युवा साथियों आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है, मैं भी पहले आपकी ही तरह बेरोजगार था लेकिन आप लोगों ने मुझे रोजगार दिया है तो मेरा फर्ज बनता है कि आप लोगों के लिए सरकार कुछ करे।आप लोग शिक्षित और अशिक्षित अलग अलग भाग में हो जाइए.. मेरा वादा है कि मैं आप सबको अभी और इसी वक्त यहीं रोजगार और प्रमाण दोनों देकर विदा करूंगा।
फिर जोर से सिंहनाद हुआ.... मुखिया जी जिंदाबाद.. और फिर शिक्षित, अशिक्षित का झुंड बँट गया।
थोड़ी देर लिखापढ़ी के बाद शिक्षित वर्ग के बेरोजगारों को बैंड बाजे का सामान और अशिक्षित वर्ग को पाँच फिट की लाठियाँ बाँटी जाने लगीं।लोगों ने पूछा यह क्या है तो मुखिया जी के कारिंदे बोले भई यही तो आपका रोजगार...शिक्षित बैंड बाजा बजाए धुन सीखकर और अशिक्षित जानवर चराये लाठी पकड़कर....हेंहेंहें...अभी उनकी खींसे अंदर भी नहीं हुयीं थीं कि फटाक की आवाज़ हुयी उनके पीछे और दिन में तारे नजर आने लगे।बेरोजगारों ने अपने प्रमाण पत्र का उपयोग शुरू कर दिया था लाठियां इधर उधर बरसने लगीं और बैंड बाजा वाले एक युवक ने माइक पकड़कर कहा...हम तो सरकार को आभार व्यक्त कर रहे हैंऔर बताना चाहते हैं कि हम जानवरों को चराना और नचाना दोनों भली भाँति जानते हैं और अब इन लाठियों का इस्तेमाल हम उन जानवरों को चराने के लिए करेंगे जो जनता के नाम पर जनता को चरने आयेंगे।
थोड़ी ही देर में न मुखिया थे और न उनके कारिंदे.. बचे तो सिर्फ नाच गाकर अपना भ्रम रखते कुछ साये और उनकी रखवाली में बैठे कुछ लाठीवाले। ****
9.बादल-बदली
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लगभग पंद्रह से अधिक लड़कियाँ युव शक्ति केंद्र में रहकर पढ़ रहीं थीं..और न जाने कितनी यौवन की फुहारों से भीगती हुई अपने परिवारों को सींच रहीं थीं।।
कोई परिचित नहीं..फिर भी एक अनगढ़ संबंध था सबके मध्य...सब राधेजी की बेटियाँ थीं।एक समानता के साथ कि या तो वे बेटियाँ अनाथ थीं या फिर अपने माता पिता की त्याज्य मुसीबतें।ये सभी बेटियाँ राधेजी की मुस्कुराहट का कारण थीं।
उम्र के छठे दशक से साँतवें दशक की ओर बढ़ते हुए भी वह चालीस वय के प्रौढ़ को चुनौती देते प्रतीत होते थे और खुद के स्वालंबन से केंद्र चला रहे थे।
आज केंद्र पर बड़ी चहल पहल थी।तमाम लोग आये थे।
एक युवा उत्साही पत्रकार ने पूछा,"राधेजी,आपके केंद्र में सिर्फ बेटियाँ ही क्यों...बेटे क्यों नहीं..जबकि आप का अपना कोई परिवार नहीं है"?
स्वाभाविक प्रश्न था,सन्नाटा छा गया।
राधेजी की गंभीर आवाज गूँजी.."अच्छी फसल के लिए अच्छी बारिश और अच्छी नस्ल के लिए अच्छी औरत जरुरी होती है।..बेटे उड़ते बादल से बड़े सुहाने लगते हैं,जबकि बेटियाँ घनी बदली सी जमकर बरसती हैं और कड़ी धूप में छाँव भी देतीं हैं...बशर्ते कोई हवा का छोंका उन्हें उड़ा न ले जाये।अब आप क्या संभालते हैं..यह आप सोचिए..। ****
10 .अकिनचन
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कोर्ट रूम फरियादियों और वकीलों से भरा हुआ था। जज साहब एक एक कर मुकदमों की आवाज लगाकर सुनवाई कर रहे थे। अचानक एक युवा अधिवक्ता सामने आया और बोला.." हुजूर इस गरीब की भी सुनवाई हो जाए तो दया हो जाए"।
जज साहब ने नजर उठाकर देखा कि करीब 70 वर्ष का बूढ़ा कमर झुकाए खड़ा था। जज साहब ने वकील से पूछा-" क्या केस है "?
"सर आकिंचन वाद है सरकारी वकील साहब को जिरह करनी है और इसके बाद यह अकिंचन है या नहीं तय हो जाएगा।"
जज साहब मुस्कुराते हुए बोले "पहले और केस सुन ले फिर देखते हैं। अकिंच न वाद तो एक अकिंचनन की ही तरह चलेगा" और फाइल एक तरफ रख दी।
शाम तक वह अकिंचान अपनी बारी का इंतजार करता रहा और फिर वह चार बजे दो अंगुल की पर्ची पर अगली तारीख लेकर चला गया। ****
11.दुआ
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उसने फकीर के कटोरे में दस रुपए का नोट डाला फकीर ने हाथ उठाकर सलाम किया और आगे बढ़ने लगा। "अरे बाबा! दस रुपए के बदले दुआ भी नहीं दोगे" जैसे ही यह शब्द उसके कानों में पड़े वह ठहर गया।हल्की सी आवाज में बोला- "साहब दुआ अगर इतनी ही ताकतवर होती तो अपने बेगाने ना होते",कहकर उसने दस रुपए का नोट वापस उसके हाथ में रख दिया और चला गया। वह दस रुपए का नोट अपलक देखते हुए सोचने लगा सच है दुआ का कोई मोल नहीं हो सकता है। ****
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क्रमांक - 07
जन्म : 03 जून 1965
शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्
फिल्म पत्रकारिता कोर्स
कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक
जैमिनी अकादमी , पानीपत
( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रसारण )
मौलिक :-
मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989
प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990
त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991
नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998
इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001
धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001
सम्पादन :-
चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990
पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998
शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001
प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001
बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001
बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001
संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002
रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002
हरियाणा साहित्यकार कोश ( परिचय संकलन ) - 2003
राजभाषा : वर्तमान में हिन्दी या अग्रेजी ? ( परिचर्चा संकलन ) - 2003
ई - बुक : -
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लघुकथा - 2018 (लघुकथा संकलन)
लघुकथा - 2019 ( लघुकथा संकलन )
नारी के विभिन्न रूप ( लघुकथा संकलन ) - जून - 2019
लोकतंत्र का चुनाव ( लघुकथा संकलन ) अप्रैल -2019
मां ( लघुकथा संकलन ) मार्च - 2019
जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन ) जनवरी - 2019
जय माता दी ( काव्य संकलन ) अप्रैल - 2019
मतदान ( काव्य संकलन ) अप्रैल - 2019
जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) मई - 2019
भारत की शान : नरेन्द्र मोदी के नाम ( काव्य संकलन ) मई - 2019
लघुकथा - 2020 ( लघुकथा का संकलन ) का सम्पादन - 2020
कोरोना ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2020
कोरोना वायरस का लॉकडाउन ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन-2020
पशु पक्षी ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन- 2020
मन की भाषा हिन्दी ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2021
स्वामी विवेकानंद जयंती ( काव्य संकलन )का सम्पादन - 2021
होली (लघुकथा संकलन ) का सम्पादन - 2021
मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - 2021
हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार (ई - लघुकथा संकलन ) -
2021
मुम्बई के प्रमुख हिन्दी महिला लघुकथाकार (ई लघुकथा संकलन ) - 2021
दिल्ली के प्रमुख लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) - 2021
बीजेन्द्र जैमिनी पर विभिन्न शोध कार्य :-
1994 में कु. सुखप्रीत ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लालचंद गुप्त मंगल के निदेशन में " पानीपत नगर : समकालीन हिन्दी साहित्य का अनुशीलन " शोध में शामिल
1995 में श्री अशोक खजूरिया ने जम्मू विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजकुमार शर्मा के निदेशन " लघु कहानियों में जीवन का बहुआयामी एवं बहुपक्षीय समस्याओं का चित्रण " शोध में शामिल
1999 में श्री मदन लाल सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के निदेशन में " पानीपत के लघु पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रंबधन व वितरण " शोध में शामिल
2003 में श्री सुभाष सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. रामपत यादव के निदेशन में " हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण एवं मूल्यांकन " शोध में शामिल
2003 में कु. अनिता छाबड़ा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लाल चन्द गुप्त मंगल के निदेशन में " हरियाणा का हिन्दी लघुकथा साहित्य कथ्य एवम् शिल्प " शोध में शामिल
2013 में आशारानी बी.पी ने केरल विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. के. मणिकणठन नायर के निदेशन में " हिन्दी साहित्य के विकास में हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं का योगदान " शोध में शामिल
2018 में सुशील बिजला ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , धारवाड़ ( कर्नाटक ) के अधीन डाँ. राजकुमार नायक के निदेशन में " 1947 के बाद हिन्दी के विकास में हिन्दी प्रचार संस्थाओं का योगदान " शोध में शामिल
सम्मान / पुरस्कार
15 अक्टूबर 1995 को विक्रमशिला हिन्दी विद्मापीठ , गांधी नगर ,ईशीपुर ( भागलपुर ) बिहार ने विद्मावाचस्पति ( पी.एच.डी ) की मानद उपाधि से सम्मानित किया ।
13 दिसम्बर 1999 को महानुभाव विश्वभारती , अमरावती - महाराष्ट्र द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी की पुस्तक प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) को महानुभाव ग्रंथोत्तेजक पुरस्कार प्रदान किया गया ।
14 दिसम्बर 2002 को सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी , खण्डवा - मध्यप्रदेश द्वारा इक्कीस हजार रुपए का आचार्य सत्यपुरी नाहनवी पुरस्कार से सम्मानित
14 सितम्बर 2012 को साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा - राजस्थान द्वारा " सम्पादक - रत्न " उपाधि से सम्मानित
14 सितम्बर 2014 को हरियाणा प्रदेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा के क्षेत्र में इक्कीस सौ रुपए का श्री रमेशचन्द्र शलिहास स्मृति सम्मान से सम्मानित
14 सितम्बर 2016 को मीडिया क्लब , पानीपत - हरियाणा द्वारा हिन्दी दिवस समारोह में नेपाल , भूटान व बांग्लादेश सहित 14 हिन्दी सेवीयों को सम्मानित किया । जिनमें से बीजेन्द्र जैमिनी भी एक है ।
18 दिसम्बर 2016 को हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा सेवी सम्मान से सम्मानित
अभिनन्दन प्रकाशित :-
डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी ( 25 मई 1999)
डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : अभिनन्दन मंजूषा
सम्पादक : लाल चंद भोला ( 14 सितम्बर 2000)
विशेष उल्लेख :-
1. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन
2. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन । फिलहाल ये प्रतियोगिता बन्द कर दी गई है ।
3. हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ , पश्चिमी बंगाल आदि की पंचास से अधिक संस्थाओं से सम्मानित
4. बीजेन्द्र जैमिनी की अनेंक लघुकथाओं का उर्दू , गुजराती , तमिल व पंजाबी में अनुवाद हुआ है । अयूब सौर बाजाखी द्वारा उर्दू में रंग में भंग , गवाही , पार्टी वर्क , शादी का खर्च , चाची से शादी , शर्म , आदि का अनुवाद हुआ है । डाँ. कमल पुंजाणी द्वारा गुजराती में इन्टरव्यू का अनुवाद हुआ है । डाँ. ह. दुर्रस्वामी द्वारा तमिल में गवाही , पार्टी वर्क , आर्दशवाद , प्रमाण-पत्र , भाषणों तक सीमित , पहला वेतन आदि का अनुवाद हुआ है । सतपाल साहलोन द्वारा पंजाबी में कंलक का विरोध , रिश्वत का अनुवाद हुआ है ।
5. blog पर विशेष :-
शुभ दिन - 365 दिन प्रसारित
" आज की चर्चा " प्रतिदिन 22 सितंबर 2019 से प्रसारित हो रहा है ।
6. भारतीय कलाकार संघ का स्टार प्रचारक
7. महाभारत : आज का प्रश्न ( संचालन व सम्पादन )
8. ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यक्रम : कवि सम्मेलन व लघुकथा उत्सव ( संचालन व सम्पादन )
9. भारतीय लघुकथा विकास मंच के माध्यम से लघुकथा मैराथन - 2020 का आयोजन
10. #SixWorldStories की एक सौ एक किस्तों के रचनाकार ( फेसबुक व blog पर आज भी सुरक्षित )
11. स्तभ : इनसे मिलिए ( दो सौ से अधिक किस्तें प्रकाशित )
स्तभ : मेरी दृष्टि में ( दो सौ से अधिक किस्तें प्रकशित )
पता : हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6 ,
पानीपत - 132103 हरियाणा
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