शारदीय नवरात्रि हिंदुओं का प्रमुख पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों के दौरान देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। वैसे तो नवरात्रि वर्ष में दो बार मनाये जातें है। चैत्र, अश्विन मास में प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और महाकाली के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिनके नाम शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी , चन्द्रघण्टा , कूष्माण्डा , स्कंदमाता , कात्यायनी , कालरात्रि , महागौरी , सिद्धिदात्री ।
जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।
भारत के साथ - साथ विदेशों में भी देवी के मन्दिर हैं । जिन में से कुछ को देने का प्रयास किया है :-
क्रमांक - 01
कनीना का मां शेरावाली मंदिर
कनीना में मंदिर की स्थापना करीब 12 वर्ष पूर्व हुई है। इसका निर्माण कार्य संजीत यादव की देखरेख में संपन्न हुआ है। इस मंदिर के चारों ओर द्वार एवं विशाल सीढिय़ां हैं। दूर से ही आकर्षित करता हुआ माता मंदिर वर्तमान में विख्यात है।
मूर्ति में है विशेष आकर्षण
मंदिर की भव्य मूर्ति 51 हजार रुपये में जयपुर के प्रसिद्ध कारीगरों द्वारा निर्मित करवाकर विधि विधान से इस मंदिर में स्थापित करवाई गई थी। करीब 61 फुट ऊंचे मंदिर है। शहर का यह एकमात्र मां शेरावालीं का मंदिर है। आकर्षण का कारण शहीद प्रतिमाओं के पास होना भी है। पार्कों से सुसज्जित इस मंदिर को दूर दराज से भी देखा जा सकता है। इस मंदिर की देखरेख का काम भी कनीना के संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ आश्रम पर रहने वाले संत ही करते हैं। पास में सामान्य बस स्टैंड स्थित है।
महेंद्रगढ़ के कनीना कस्बे तक रेल सेवा या बस सेवा से पहुंचा जा सकता है। रेलवे स्टेशन से महज दो किमी बस स्टैंड के पास ही यह भव्य मंदिर दिखाई पड़ता है। यहां पर कोई भी पुजारी नहीं रहता है। भक्तजन स्वयं यहां आकर धोक लगाकर अपने घरों को चले जाते हैं।
मंदिर कमेटी के अध्यक्ष मनोज कुमार का कहना है कि कनीना क्षेत्र में यह विशाल मंदिर है । वर्ष में दो बार आने वाले नवरात्रों पर भीड़ एक मेले का रूप ले लेती है। सुबह-शाम जोत जलती है और पूजा चलती है। भक्तजन भी यहां आकर जोत जलाते हैं। इस मंदिर में भक्तों का पूरे नवरात्रों में तांता लगा रहता है। दूर दराज से भक्त आते हें और पूजा करते हैं।
- होशियार सिंह यादव
करीना - महेन्द्रगढ़ - हरियाणा
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क्रमांक - 02
मां त्रिपुर सुंदरी का मंदिर
मां त्रिपुर सुंदरी देवी का मंदिर राजस्थान के बांसवाड़ा शहर से उन्नीस(19) किलोमीटर की दूरी पर उमराई गांव में स्थित है। मंदिर के आसपास तीन दुर्ग थे। शक्तिपुरी, शिवपुरी और विष्णुपुरी। इन तीनों में स्थित होने के कारण देवी का नाम त्रिपुर सुंदरी पड़ा। मां त्रिपुर सुंदरी महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी का संयुक्त स्वरुप हैं। इसलिये भी देवी का नाम त्रिपुर सुंदरी पड़ा।
यह स्थान कितना प्राचीन है? प्रमाणित नहीं है वैसे तो देवी मां की पीठ का अस्तित्व तीसरी सदी से पूर्व का माना गया है। गुजरात, मालवा और मारवाड़ के शासक त्रिपुर सुंदरी के उपासक थे। गुजरात के राजा सिद्धराज सोलंकी की इष्ट देवी भी रहीं हैं मां त्रिपुर सुंदरी। राजा मां की उपासना के बाद ही युद्ध हेतु प्रयाण करते थे।
कहा जाता है कि मालव नरेश जगदेश परमार ने मां के श्री चरणों में अपना शीश काटकर अर्पित कर दिया था। मां ने पुत्रवत जगदेश को पुनः जीवित कर दिया था।
मंदिर का जीर्णोद्धार तीसरी शती के आसपास चांदा भाई पंचाल ने करवाया था। मंदिर के समीप ही खाली स्थान है जहां पर किसी समय लोहे की खदान हुआ करती थी। किंवदंती के अनुसार एक दिन मां त्रिपुर सुंदरी खदान के द्वार पर पहुंची किंतु पांचालों ने उस तरफ ध्यान नहीं दिया। देवी ने खदान ध्वस्त कर दी जिससे कई लोग काल के ग्रास बने। देवी मां को प्रसन्न करने के लिए पांचालों ने मंदिर और तालाब बनवाया। इस मंदिर का सोलहवीं शती में जीर्णोद्धार करवाया। इस मंदिर की देखभाल आज भी पंचाल समाज करता है।
मां त्रिपुर सुंदरी का फोटों
51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ यह भी है क्योंकि यहां सती के शरीर का एक अंग गिरा था।
मां त्रिपुर सुंदरी के गर्भ गृह में देवी की विविध आयुध से युक्त 18 भुजाओं वाली श्यामवर्णीय भव्य और आकर्षक मूर्ति है इसके प्रभा मंडल में 9 से 10 छोटी मूर्तियां हैं जिन्हें दसमहाविद्या या नवदुर्गा कहा जाता है। मूर्ति के नीचे के भाग में संगमरमर की काले चमकीले पत्थर पर श्री यंत्र उत्कीर्ण हैं जिसका विशेष तांत्रिक महत्व है। सप्ताह के सातों दिन मां त्रिपुर सुंदरी को अलग-अलग रंग की पोशाकें पहनाई जाती हैं। नवरात्रि में प्रतिदिन मां त्रिपुर सुंदरी की नित नूतन श्रृंगार की मनोहारी झांकी बरबस मनमोह लेती है। नवरात्रि में मंदिर के प्रांगण में विशिष्ट कार्यक्रम होते हैं।
यहां देवी के सिद्ध उपासकों से चमत्कारों की गाथायें सुनने को मिलती हैं। चैत्र व शारदीय नवरात्रों पर भव्य दर्शन करने लाखों लोग आते हैं। नवरात्रों पर मेलों का आयोजन भी होता है।
दर्शन करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
नवरात्र की अष्टमी पर यहां दर्शनार्थ पहुंचने वालों में गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली और महाराष्ट्र के भी लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। बड़े -बड़े राजनेता अपना कार्य शुरु करने से पहले देवी के दर्शन करने आते हैं।
नवरात्रि की अष्टमी पर यज्ञ होते हैं। नवरात्रि में युवतियां और युवक आकर्षक परिधानों में चित्ताकर्षक गरबे खेलते हैं। शरद पूर्णिमा पर भी गरबे खेले जाते हैं। जगतजननी मां त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ के कारण यहां की लोकसत्ता प्राणवंत ऊर्जावान और शक्ति संपन्न है। एक ही दिन में मां सुबह की बेला में कुमारी दोपहर में योवना और शाम को प्रौढ़ रूप में दर्शन देती हैं।वर्तमान में
मां त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पुजारी निकुंज मोहन पंडया और प्रधान कांतिलाल पंचाल हैं।
- प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा - राजस्थान
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क्रमांक - 03
मां दुर्गा मन्दिर
मन्दिर के पण्डित बालमुकुंद शर्मा जी ने बताया कि मेरे पिता जी ने २५ वर्ष पूर्व रायपुर में आनंद नगर के तालाब के पास मां दुर्गा मन्दिर की स्थापना की थी ।
पुजारी जी की पत्नी सविता शर्मा बहुत सौम्य धर्य कर्तव्य निष्ठ स्वभाव की है । दान मिली गाय की सेवा करते हैं । इकलौते बेटे मनस्वी शर्मा कॉलेज छात्र होते हुए माता पिता का सहयोग करता है । आज के समय जो भी दान मिलता है। उसे ज़रूरत भिखारियों को सप्ताह के दो दिन नियमित अनाज वितरित कर सेवा करता है । पंडित परिवार की जीविकापार्जन आनंद नगर निवासियों संस्था के द्वारा प्रतिमाह निर्धारित वेतनमान दिया जाता है ।
संस्था के निर्मला तिवारी व सुधा त्रिवेदी अध्यक्ष है सेवा के लिये महिलाओं का भजन कीर्तन बच्चों बूढ़े जवानों मनोरंजन का ध्यान रखा जाता है
पाठक परिवार दीपनान्तबोस , पुष्पा बेनर्जी सहायता के लिये तत्पर रहती है
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
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क्रमांक - 04
मां मंदिर बसई
जिला महेंद्रगढ़ में बसई गांव की पहाड़ी पर 10 वर्ष पूर्व भव्य मंदिर का निर्माण किया गया था जो आज दूरदराज भक्तों के लिए आस्था श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। प्रतिवर्ष हजारों भक्तों ने आकर मन्नत मांगते हैं। जब जब नवरात्रे आते हैं यहां पर मेले लगते हैं और मेलों में अपार भीड़ जुटती है। ऊंची पहाड़ी पर रमणीक स्थान पर मां का मंदिर है। पहाड़ों को काटकर वहां तक पहुंचने का मार्ग बना रखा है जहां से गुजरते वक्त शकुन का अहसास होता है।
स्थापना इस मंदिर की स्थापना 10 वर्ष पूर्व माता मंदिर की भोलाराम जोशी, महाबीर जोशी एवं उनके परिजनों ने की करवाई थी। परिवार ने मां चिंतपूर्णी हिमाचल की देवी से प्रेरणा लेकर मंदिर का निर्माण करवाया है। इस मंदिर का निर्माण विशेष प्रकार के पत्थर को काटकर बनवाया गया है। करोड़ों रुपए की लागत से इस मंदिर का निर्माण किया गया है। यही कारण है कि इस मंदिर को देखने के लिए दूरदराज से भक्तजन आते हैं। इस मंदिर के निर्माण में प्रयोग की गई सामग्री एवं निर्माण कला विशिष्ट है।
मंदिर की विशेषता-
माता मंदिर में प्रतिदिन भक्तों का ताता लगा रहता है किंतु वर्ष में दो बार नवरात्रों पर जहां भीड़ जुटती है वहीं मेले लगते हैं। भक्त मां दुर्गा का लेकर के तथा विभिन्न प्रकार का प्रसाद विशेष रूप से हलवा, चना, बूंदी आदि लेकर के पहुंचते हैं और माता के चरणों में अर्पित करके मन्नत मांगते हैं। माना जाता है कि उनकी मन्नत पूर्ण होती है। समय समय पर यहां भंडारे एवं हवन आयोजित होते हैं।
मंदिर पहुंचना---
माता मंदिर में पहुंचने के लिए दादरी-महेंद्रगढ़ रोड पर आकोदा उतरकर दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। बसई की पहाड़ी पर मंदिर बना हुआ है जो आकर्षण का केंद्र है। कनीना से 17 किलोमीटर दूर पड़ता है। यहां पहाड़ी की चोटी पर रमणीक स्थान है। वही भव्य मंदिर देखकर सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। भक्तों के ठहरने का विशेष प्रबंध किया गया है।
चंद्र प्रकाश वसई भक्त-
चंद्र प्रकाश बसई जो फिल्मी हीरों भी हैं, का कहना है कि जब से मंदिर बना है तब से वे इस मंदिर जा रहे हैं। प्रतिदिन माता के चरणों में धोक लगाते और मन्नत मांगते हैं जिसके चलते फिल्म इंडस्ट्रिी में भी उनका नाम है। माता ने उनकी सभी मन्नत पूर्ण की है। उनका कहना है कि माता आने वाले सभी भक्तों पर दया बरसाती रहती है।
गोविंदराम जोशी पुजारी-
गोविंदराम जोशी का कहना है कि वे सुबह शाम माता की पूजा करते हैं। सुबह जब भी समय लगता हवन करते हैं तथा मंदिर में ही रहते हैं साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखते हैं। यात्रियों के मान सम्मान को देने में कोई कसर नहीं हो छोड़ते। यहां भक्त यहां आकर सारे कष्ट भुला देते हैं। मां के दर्शन कर प्रसन्न हो जाते और मन्नत मांग कर अपने अपने घरों में चले जाते हैं। उनका मानना है कि यहां पर मांगी गई मन्नत पूर्ण होती है।
- होशियार सिंह यादव
करीना - महेन्द्रगढ़ - हरियाणा
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मां काली का प्राचीन मंदिर
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ऐतिहासिक नाहन शहर के मंदिर भी प्राचीन हैं। अधिकतर मंदिरों का निर्माण रियासतकाल के वक्त ही हुआ। पिछले तीन दशक की बात करें तो कुछ नए मंदिर भी बने हैं। हैरिटेज टाउन के उत्तर-पूर्व में काली का मंदिर है। इस प्राचीन मंदिर को कालीस्थान भी कहा जाने लगा है।
क्षत्रियों में काली को युद्ध की देवी माना गया है। इस कारण भी हर जगह पूजा की जाती है। शहर में काली के मंदिर का निर्माण 1830 में राजा विजय प्रकाश ने करवाया था। इस मंदिर की मूर्ति को कुमाऊं वाली रानी साहिबा ही कुमाऊं से लेकर आई थी। इसके बाद ही राजा विजय प्रकाश ने मंदिर के निर्माण का फैसला लिया था।
मंदिर में पूजा के लिए जोगीनाथ महंत को गद्दी सौंपी गई थी। मंदिर परिसर में ही 24 भुजा देवी मंदिर का निर्माण राजा फतेह प्रकाश ने करवाया था। इसे आज श्रद्धालु बाला सुंदरी माता कहकर भी पूजते हैं। 24 भुजा वाली देवी के मंदिर के पहले महंत बाबा भृडंग नाथ कनफटा योगी थे। इसके बाद आमनाथ, फिर तोपनाथ महंत बने। इसके बाद ज्वाला नाथ व वीरनाथ ने भी गद्दी को संभाला।
महंत जगन्नाथ की मृत्यु के बाद उनका चेला कार्यवाहक के रूप मेें भी कार्य करता रहा। स्वभाव सही न होने की वजह से राजा ने उसे महंत नियुक्त नहीं किया था। राजा ने उन शक्तियों को मोतीनाथ नामक साधु को दे दिया, जो संस्कृत भाषा का ज्ञान भी रखता था। बताते हैं कि सिरमौर रियासत के शासकों द्वारा मंदिरों व धार्मिक अनुष्ठानों में गहरी रूचि ली जाती थी।
मां बाला सुंदरी माता त्रिलोकपुर का हूबहू मंदिर आज भी शाही महल में है।
- शबनम शर्मा
नाहन - हिमाचल प्रदेश
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क्रमांक - 06
जागृत श्री साबाई माता मन्दिर
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यह देवी मंदिर नवी मुंबई खारघर में है ! यहाँ के पंडित जी सोरेन शर्मा जी का कहना है पैंतिस वर्ष पूर्व यह ठेट गाँव था ! सभी किसानी करते थे ! किसी पाटिल के खेत से यह मूर्ति मिली !यह स्वयं -भू है ! जिसके एक हाथ में कलश और दूसरे हाथ में कमंडल था जिससे लगातार पानी बह रहा था जो पांडव-कणा से आ रहा था ! पांडव-कणा जलप्रपात है ! देवी देवताओं की मूर्ति विसर्जन पहले वहीं होती थी किंतु खतरा बढ़ जाने से महाराष्ट्र सरकार ने चारों तरफ से जाली लगा बंद कर दिया है ! काफी रमणीय स्थल है !
वर्तमान में मंदिर जागृत श्री साबाई माता के नाम से जाना जाता है ! ऐसा मानना है खारघर(गाँव) पर देवी मांँ की असीम कृपा है !
जय मातादी
- चंद्रिका व्यास
खारघर - मुंबई - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 07
माता सन्तोषी का मंदिर
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वीर शिवा जी वॉर्ड खमतराई में वर्षों पुराना माता सन्तोषी का मंदिर है। जिसे बनाने के लिए यहां की माल गुजारीन स्व. गिरजा विनायक ठाकुर जी द्वारा जमीन दी गई जिसमें यह मंदिर बना हुआ है। कई मायने में यह मंदिर हमारी भक्ति और आस्था के साथ सशक्तिकरण का केंद्र बनता जा रहा है। कुछ बातें जो माता सन्तोषी के मंदिर को विशिष्टता प्रदान करती है....
यहां रैन बसेरा है जिसमे निराश्रितों के रुकने की व्यवस्था है यहां हम मोहल्ले की महिलाएं एकत्रित होकर विविध कार्यक्रम आयोजित करती हैं।
मैं सोमवार से शुक्रवार सुबह महिलाओं तथा बालिकाओं को मुफ्त योगाभ्यास करवाती हूं।
हम सभी सखियों द्वारा श्रीमती लक्ष्मी वर्मा जी के नेतृत्व में विभिन्न रोजगारपरक योजनाओं के क्रियान्वयन भी चल रही है।
हमारी अग्रज समाजसेविका श्रीमती स्नेहलता झा जी की कार्यशाला का आयोजन करवाकर हमने घर पर ही विभीन तरह के साबुन, हैंडवाश, पीताम्बरी इत्यादि ढेरों गृह उपयोग सामग्री के निर्माण का प्रशिक्षण दिया गया।
साथ ही महादेव की स्थापना भी की गई है। अभी अभी वहां दुर्गा माता की भी स्थापना हुई है । नवरात्र में गरबा भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
नीता झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
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क्रमांक - 08
बाजारी माता मंदिर
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तहसील मुख्यालय दुगूकोदल से लगभग 5 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा पखांजूर मार्ग में आदिशक्ति बाजारी माता मंदिर स्थित है जो भी मन्नतें मांगते हैं पुरी होती है किंवदंती के अनुसार माता हिंगलाजी आपने वाहन पर सवार होकर उस मार्ग से गुजर रही थी तभी माता जी का वाहन वाह फंस गया जिसे देखकर सभी देवता माता जी का उपहास करने हंस पढ जिससे रुष्ठ होकर माता वहीं विराजमान हो गई कालान्तर में उस स्थल का नाम हाहालद्ददी हुआ ऐसा क्षेत्र के बुजुर्ग का मानना है हाहालददी में प्राचीन काल में माता हिंगलाजी नाराज हो गई और बाघिन का रुप धारण की और गांवों में आतंक माचने लगी और मावेशियो को अपना शिकार बनाने लगी जिससे क्षेत्र के लोग दहशत में व्याप्त हो गए। गांव के लोगो ने इससे निजात पाने परहदेव के पास जाकर समस्या बाताई और निजात दिलाने की मन्नतें की । परहदेव ने जानकारी दी की देवी हिंगलाजन को एक संकरी के रूप में बाहर निकल गया है । पललामारी में इसे ले जाकर ग्रामीणों ने विचार किया कि यहां जीवकसा की बंजर भूमि पाया गया इस लिए इसे माता बाजारी देवी के नाम से स्थापित करने का निर्णय लिया गया। एक घांस-फूस का एक झोपड़ी नुमा मंदिर बनाकर सकल हिंगलाजीन और मामा एवं बाकी में घोड़े की प्रतिमा स्थापित की गई इसे माता बाजारी देवी नाम दिया गया।इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली है जन श्रुति के अनुसार वहीं इस क्षेत्र में हाहालदद्दी, गढ़ परलकोट, गढ़ प्रातापपुर, के आस पास के आबुझमाड क्षेत्र पहाड़ीयो में बांस अधिक पाया जाता था जो कि आज भी गढ़ परलकोट, गढ़ प्रातापपुर के क्षेत्र के अबूझमाड़ पहाड़ीयों में है। इस झोपड़ी नुमा मंदिर के पास स्व श्री चम्पा लाल चोपड़ा ग्राम मुल्ला तहसील भानुप्रतापपुर जिला उत्तर बस्तर कांकेर के ड्राइवर लाल संसार का वाहन बांस परिवाहन करते समय रोज सुखी जमीन पर वाहन के चारों पहिए ठस जाते थे ।
इसके चलते बाजारी देवी मंदिर का निर्माण सन् 1972 में ईंट सीमेंट से करवाया गया। गांव के गायता बोधीराम तुलवी ,चेतन प्रसाद पाठक ने आदिशक्ति बाजारी देवी की मूर्ति स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा की ।उस समय चम्पा लाल चोपड़ा बांस बल्ली की ठेकेदारी करते थे , गढ़ प्रातापपुर, गढ़ परलकोट ,मन्हाकाल के सनतराई , झोपड़ी नुमा मंदिर का ईंट सीमेंट से निर्माण करवाया,हांहालद्द्दी में चैतनवरात्रि पर्व 1993 में पहली बार मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित की गई ।वह भी गुप्त रूप से तीन महादेवीयों के नाम से मंदिर समिति के द्वारा जलाया गया। मंदिर समिति, भक्तों, ग्रामीणों के समति से हाहालद्द्दी स्थित सुमेर पर्वत में 24 माई 2004 को आदिशक्ति पहाड़ा वाली बाजारी देवी की प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा की गई। माता बाजारी देवी के साथ यहां भागवान शिव की प्रतिमा स्थापित कि गाई है कमकापाठ, पाताल गंगा , गढ़ मावली माता मंदिर को भी स्थापना किया गया । यहां जिले के अलावा अन्य राज्यों से लोग ज्योति प्रज्ज्वलित करते हैं , यहां मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, झरखाड, दिल्ली, उत्तराखाण्ड, कलकत्ता,आन्धाप्रदेश, तेलंगाना, सहित अन्य प्रदेश के लोग माता के श्रध्दा ज्योति प्रज्ज्वलित करते हैं यहां , इस पहाड़ में लौह अयस्क एवं अन्य खनिज संपदा से परिपूर्ण है । वार्तमान में हाहालद्द्दी एवं दोडदे के ग्राम गायता श्री नोहर सिंह तुलावी है श्री श्याम लाल सिन्हा बाजारी माता पुजारी हैं, नवीन यादव बाजारी माता पुजारी पहाड़ीवाली के है, उल्लेखनीय है कि इस एतिहासिक व धार्मिक स्थल में पर्यटकों को मौन निमंत्रण है।
- तिजू राम बघेल
अन्तागढ़ - छत्तीसगढ़
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क्रमांक - 09
पटियाला का भव्य काली माता का मंदिर
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मां काली का मंदिर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश पर्यटकों के दर्शन का केंद्र है. लोग दूर-दूर से माता के दर्शन करने आते आते हैं.
पुरातन काल में अमृतसर पटियाला पंजाब के प्रमुख रियासत रही हैं. पटियाला रियासत का 1763 से 1765 तक पहला महाराजा बाबा आला सिंह थे. पटियाला पेप्सू की राजधानी रही है. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पटियाला रियासत के 10 वारिस हैं
पटियाला अपनी संस्कृति और भाईचारे के लिए सदाचार का पालन करता रहा है. इनका भवन निर्माण और वास्तुकला शैली स्थानीय और परंपराओं पर आधारित है. पटियाले का किला मुबारक सुंदरता की खास मिसाल है.
कर्म सिंह बंगाल से काली माता की प्रतिमा और ज्योति अपने कंधे पर रख लाए थे यह उनकी प्रेम और सहनशीलता और सहनशीलता की भावना थी मंदिर में जाट और मुगल शैली कमीशन मिश्रण नया रूप दिया गया है मंदिर का इतिहास 200 वर्ष पुराना है
माता काली माता मंदिर की आधारशिला महाराजा भूपेंद्र सिंह ने रखी थी और माता की मूर्ति 6 फुट ऊंची और ज्योति नदी नजदीक प्रज्वलित रहती है यह निर्माण जिंदादिलीसबूत है काली माता मंदिर के सामनेबारादरी और पीछे गौरी माता मंदिर है जहां शहर के लोग शनिवार के दिन नंगे पांव माथा टेकने आते हैं काली माता का मंदिर 1936 में किसकी स्थापना हुई थी. यह उत्तम कलाकार उत्तम नमूना है. दृश्य मन में भक्ति भाव और संस्कारों को भरने वाला है.
मंदिर में हर सुविधा का ध्यान रखा गया है. मंदिर में माता की रसोई और गरीबों के लिए लंगर, गायों के लिए गौशालाओं का स्थान सुरक्षित बनाया गया है. यात्रियों के लिएधर्मशाला का प्रबंध है. मंदिर में धार्मिक अन्य प्रोग्रामों के लिए विशाल ऑल प्रबंध है. यहां मंदिर में एक छोटी सी लाइब्रेरी भी है.
माता के मंदिर में हलवे का प्रचार प्रसाद लगता है. मंदिर की व्यवस्था का पूर्ण रुप से ध्यान रखने के लिए बहुत से लोग काम करते हैं और पूजा का समाज मंदिर के बाहर दुकानों पर उपलब्ध है.
मां काली के बारे में विश्वास है की मां निर्माण विनाश की शक्ति है काली देवी को को समर्पित मंदिर परिसर जहां मालाओ और रंग बिरंगी मूर्तियां हैं. वहां एक सरोवर भी है भी है.
काली कालिका या महाकाली हिंदू धर्म की कालरात्रि के रूप में नवरात्रों में पूजी जाती है जो दुश्मनों का नाश दुष्टों का नाश दूसरों को लोगों में अच्छी भावना का प्रचार करती है. काली माता का मंदिर बंगाल, उड़ीसा और आसाम में भी बहुत पूज्य है पूजनीय है. पटियाला , कालका और शिमला के काली माता के मंदिर लोगों में श्रद्धा से स्थल हैं. हम माता के चरणों में नमन करते हुए सब की खुशहाली और पटियाला की कामयाबी की आशा करते हैं.
- रेखा मोहन
पटियाला - पंजाब
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क्रमांक - 10
500 वर्ष पुराना ऐतिहासिक मां महाकाली मंदिर
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गोधरा गुजरात में स्थित महाकाली माताजी का 500 वर्ष पुराना एक ऐतिहासिक मंदिर है, जिसकी इस पूरे इलाके में बड़ी मान्यता है। यह मंदिर भारत के प्रसिद्ध यात्रधाम पावागढ़ के शक्तिपीठ महाकाली मंदिर के साथ इस प्रकार जुड़ा हुआ है कि जहां गोधरा से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित पावागढ़ में महाकाली माता के मस्तक की पूजा होती है, वहीं गोधरा स्थित इस मंदिर में माताजी के धड़ की पूजा होती है।
प्राचीन काल में पावागढ़ से ऋषियों की गाएं चरने के लिए, धरती के अंदर इन दोनों मंदिरों के बीच बनी गुफा में होकर आया करती थीं, ऐसी मान्यता है।
गुजराती अख़बार भास्कर में यह पूरा लेख छपा भी है : -
-प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा (गुजरात)- 389001
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क्रमांक - 11
सैन डिएगो - कैलीफॉर्निया - अमेरिका का श्री मन्दिर
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मैं आजकल सैन डिएगो , कैलीफॉर्निया , अमेरिका में लगभग एक वर्ष से रह रही हूँ ।अपना भारत तो मंदिरों का देश है किन्तु यहाँ भी भव्य मंदिरों का निर्माण किया गया है। प्रवासी भारतीयों के सहयोग व परिश्रम से अनेक भव्य मंदिर हैं।
सैन डिएगो का यह मंदिर " श्री मंदिर " के नाम से प्रचिलित है। इसकी स्थापना लगभग 25 वर्ष पूर्व हुई। यह किसी धनाढ्य के दया दान से नहीं वरन् आम जनता के योगदान से निर्मित है। जैसी मुझे जानकारी प्राप्त हुई।जो नवरात्रि के विशेष पर्व पर मुझे प्राप्त हुई। यहाँ के एक ट्रस्टी श्री महेन्द्र भाई देसाई जी से बात चीत के दौरान पता चला कि वे लगभग 15 वर्षों से मंदिर की गतिविधि के साथ संलग्न हैं और अपनी सेवाएँ दे रहे हैं।
यहाँ के पुजारी जी का नाम है सुदर्शन भट्टर जी
यहाँ सभी देवी - देवता हैं। राम-कृष्ण , गणपति, मॉं अम्बे, जैन तीर्थंकर , तिरुपति बाला जी विविधता में एकता का परिचय देता आस्था का प्रतीक यह मंदिर शांति प्रदान करने वाला मंदिर है। नवरात्रि पर्व पर विशेष व्यवस्था व गरबा का आयोजन बहुत ही विलक्षण था। प्रतिदिन चल रहा है। नवरात्रि पर्व पर सभी रंग-बिरंगी वेश-भूषा में , सज-धज कर गरबा खेलने आए हुए हैं। आनंदानुभूति के पल ।
- डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
सैन डिएगो - कैलिफ़ोर्निया - अमेरिका
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क्रमांक - 12
मां शारदा (मैहर)
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जबलपुर ( मध्यप्रदेश ) से 147 किलोमीटर की दूरी पर मां शारदा का मंदिर मैहर तहसील में है जिसका जिला सतना है यह शक्तिपीठ है यह अत्यंत प्राचीन मंदिर है यहां पर आल्हा रोज सुबह आते हैं ऐसा स्थानीय लोग और मंदिर के पुजारी कहते हैं।
माई का हार
मैहर नाम पड़ा।
मां शारदा के कारण यह जगह बहुत प्रसिद्ध है ,
शक्तिपीठ की बहुत मानता है यहां पर दूर-दूर से लोग दोनों नवरात्रों में दर्शन करने आते हैं ( चैत्र और कुंवार)
बहुत बड़ा मेला लगता है इस मेले को पुलिस प्रशासन द्वारा कंट्रोल किया जाता है और मंदिर की समिति भी बनी हुई है।
रुकने के लिए भी बहुत सारे धर्मशाला और होटल है।
मंदिर में ऊपर दर्शन करने को आप सीढ़ी से भी जा सकते हैं यदि किसी को सीढ़ी चढ़ने में दिक्कत है तो मंदिर में रोपवे भी है
इस मंदिर के प्रधान पुजारी महाराज श्री देवी चरण जी हैं और उन्हीं के वंशज पुत्र/ पौत्र मंदिर मैं पूजा पाठ करते हैं । शक्तिपीठ की बहुत ही रोचक कहानी जुड़ी हुई है वहां के स्थानीय लोग कहते हैं कि पुराने समय में एक चरवाहा रोज एक काली गाय को चराता था और उसके मालिक से उसे पैसे नहीं मिलते थे एक दो महीने तो उसने गाय चराई और वह परेशान होकर उसकी मालकिन के पास गया , जब वहां पहुंचा तो वहां उसे एक वृद्ध महिला दिखाई दी उसने कहा कि आपकी गाय को रोज में दिनभर चराता हूं मैं चरवाहा हूं, पर आप इसका मुझे पैसा नहीं देती।उस महिला ने उसे वहां नीचे से मिट्टी और कुछ कंकड़ उठा कर दे दिए उसने अपने गले में टांगे हुए गमछे में बांध लिया। उसे बहुत गुस्सा आया और उसे आधे रास्ते भर गिराते हुए चला आ रहा था कि अब कल से इसकी गाय की देखभाल नहीं करूंगा।
वह अपने घर पहुंचा और उसने अपने पिताजी और घरवालों को बताया कि एक काली गाय एक बुजुर्ग की है वही उसके पास गया था, उसने मुझे मिट्टी के कुछ पत्थर दे दिया। मैं रास्ते पर फेंक आया इसी गमछे में। जब उसने वह गमछा देखा तो उसमें दो हीरे और कुछ जवाहरात और सोने के रूप में दिखे उसे बहुत आश्चर्य हुआ और सुबह वह कुछ लोगों के साथ वहां पर गया तो माता ने मूर्ति का रूप ले लिया था। तब से लोग ऊपर पहाड़ी पर मां के दर्शन करने को जाने लग गए और मां शारदा के नाम से यह मंदिर प्रसिद्ध है। मानता है कि मां के द्वार से कोई खाली नहीं लौटता जिस ने जो मांगा वह पाया है ।
- उमा मिश्रा प्रीति
जबलपुर - मध्य प्रदेश
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क्रमांक - 13
श्री शीतला माता मंदिर
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प्रकृति और पुरुष का योग ही सृजन का कारक बनता है। पराशक्ति के प्राकट्य के बिना सृजन, पालन तथा प्रलय असम्भव है। भारत भूमि पर सती के इक्यावन पावन शक्तिपीठ से इतर भी अनेक देवी सिद्धपीठ अस्तित्व में हैं। जो भक्तों के आस्था के केंद्र हैं। जिनका पौराणिक तथा एतिहासिक महत्व विश्रुत एवं श्लाघनीय है। इसी क्रम में महाभारतकालीन दक्षिण पांचाल अंर्तगत कई देवी मंदिर दर्शनीय हैं। उत्तर प्रदेश राज्य के जिला फर्रुखाबाद (जिसे पुराणों में अपराकाशी, माकंदी, स्वर्गद्वारी, अहिछत्र, पांचाल, काम्पिल्य तथा साक्यांशपुरी आदि नामों से ख्यात)में नगर सहित ग्राम्यांचल में स्थित शीतला माता, पलरा देवी, गुरुगांव देवी , सिंहवाहिनी मंदिर और फूलमती देवी मंदिर प्रमुख हैं।
फर्रुखाबाद नगर की युग्म नगर फतेहगढ़ को जोड़ने वाली मुख्य सड़क पर बढ़पुर में दक्षिणी ओर एक प्राचीन तालाब के किनारे भव्य देवी पीठ अवस्थित है। इसका पताका युक्त ऊर्ध्व गोपुरम् नागर शैली में दर्शनीय है। विशाल प्राशाल एवं गर्भगृह मेन विराजमान मां शीतला देवी का विग्रह भक्ति में लीन कर लेता है। जनश्रुति के अनुसार बढ़पुर के सैनी परिवार के एक बुजुर्ग को देवी ने स्वप्न दिया कि मैं गांव के बाहर तालाब में हूं। मुझे तालाब से निकालकर विराजित करो। प्रात:काल श्रद्धालुओं की सहायता से मूर्ति को बाहर निकाला गया। अस्थायी रुप से एक स्थान पर रखा गया। कुछ समय पश्चात अन्य स्थान पर ले जाने का प्रयास विफल हुआ। देवी विग्रह अपने स्थान से टस से मस नहीं हुआ। कालांतर में उसी स्थान पर विधि-विधान से मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर दी गयी। इसकी प्राचीर नागर शैली में है दीवारों पर शाक्त मत के देवों के भित्तिचित्रों सहित फूल पत्ती का मनोरम चित्रण है।
विशेषता :-
बासंतिक एवं शारदीय नवरात्रि के अतिरिक्त प्रति सप्ताह सोमवार, बुधवार एवं शुक्रवार को नवजात शिशुओं का मुण्डन तथा अन्नप्राशन संस्कार कराने के साथ ही विवाह पूर्व कन्या को आशीर्वाद दिलाने की प्राचीन परम्परा है। लोक मान्यतानुसार देवी को गुलगुला, अठौरी और पिटऊआ(मीठी पूड़ी) भोग में प्रिय है।
मां शीतला देवी को नेत्रजनित व्याधियों, चेचक, विसूचिका आदि का उद्धारक कहा गया है। इसी संदर्भ में शीतलाष्टमी को विशेष पूजा अर्चना का विधान है। इस पर्व पर वत्री श्रद्धालु उपवास रख बसौड़ा अर्पण करके स्वजन परिवार की सुख समृद्धि की मंगलकामना करते हैं।
पहुंच मार्ग :- फर्रुखाबाद रेल तथा सड़क मार्ग से दिल्ली, आगरा, कानपुर लखनऊ और बरेली पर्यंत विधिवत जुड़ा है। फर्रुखाबाद जंक्शन तथा राजकीय परिवहन स्टेशन से मात्र 1.5 किमी की दूरी आटो रिक्शा इत्यादि से मंदिर तक सुगमता से पहुंचा जा सकता है।
शीतला माता मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष श्री भीम प्रकाश कटियार जी एवं मंदिर के मुख्य अर्चक अरुण श्रीमाली महाराज हैं।
महाभारतकालीन अपराकाशी नाम ख्यात पांचाल (अब फर्रूखाबाद, कन्नौज ) अंतर्गत फर्रूखाबाद नगर में पंच शक्तिपीठ (यथा - पूर्व में मां शीतला देवी, पश्चिम में मां मंगला गौरी(गुड़गांव देवी), उत्तर में पतित पावनी गंगा तट पर फूलमती देवी , दक्षिणी ओर दक्षिणेश्वरी कालिका माता तथा हृदय स्थल में सड़क के बीच पलरा देवी(हठीली देवी) मंदिर) अवस्थित हैं।
मां मंगला गौरी (गुडगांव देवी) महाभारतकालीन मंदिर प्राचीन है। यह मंदिर मंगला गौरी को समर्पित है। मंदिर में मंगला गौरी की प्रतिमा के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। इस के बारे में एक कथानक प्रसिद्ध है, कि इस मंदिर में विराजमान देवी की प्रतिमा गुरु द्रोणाचार्य ने अपने हाथों से बनायी थी। उन्होंने पांचाल नरेश राजा द्रुपद पर चढ़ाई करने से पूर्व देवी की पूजाअर्चना की थी, जिससे मंगला गौरी देवी जी प्रसन्न हुई थी। यहां पर जो मनोकामना मांगते हैं। वह जरूर पूरी होती है। मंगला गौरी जी भगवान शिव की पत्नी है।
गुडगांव देवी मंदिर बंग शैली में बहुत सुंदर बना है। गर्भगृह में मंगला देवी के दर्शन सुलभ हैं। मंगला देवी वस्त्र और गहनों से सुसज्जित है। गुडगांव देवी मंदिर फर्रुखाबाद शहर के पश्चिम दिशा में बाहरी क्षेत्र में फर्रुखाबाद- अलीगढ़ मार्ग पर स्थित है। आप यहां पर आध्यात्मिक शांति के लिए आ सकते हैं। आपके मनोरथ पूर्ण होंगे।
*पलरा देवी (हठीली देवी)*- नगर के हृदय स्थल पर मुख्य मार्ग के मध्य पांडवों द्वारा स्थापित भगवान सदाशिव पाण्डेश्वर महादेव की आदिशक्ति के रुप में विराजित हैं। यह नगर की आराध्य देवी के मां अन्नपूर्णा के रुप में मान्य हैं। रह मंदिर बाबा पाण्डेश्वर नाथ(पंडा़ बाग) देवालय से 200 गज की दूरी है।
सन 1942 के आसपास फर्रुखाबाद के अंग्रेज कलेक्टर ने सड़क बीच में भारी नीम के वृक्ष के मूल मे विराजित देवी विग्रह और नीम वृक्ष को हटाने का स्वयं समक्ष खड़े होकर सख्त आदेश दिया। आदेश की तामील की गयी। तभी यकायक नीम की जड़़ में से हजारों झुण्ड की तादात में बर्र और ततैया का आक्रमण हो गया। वहां मौजूद अधिकारी कर्मचारी बुरी तरह आहत हो गये। उसमें अंग्रेज कलेक्टर भी सम्मिलित था। हताश होकर वह आदेश वापस लेकर उल्टे पांव लौट गया। तभी से इन्हें हठीली देवी भी कहा जाता है।
आज भी देवी स्थान यथावत अक्षुण्ण है। अब पीठ का कायाकल्प कर दिया गया है। आधुनिक शैली की वास्तु का परिचायक यह मंदिर दर्शनीय एवं भव्य है। इसके अर्चक द्वय पं० विष्णु दयाल अग्निहोत्री तथा रमेश मिश्र जी हैं।
फूलमती देवी
नगर के उत्तरी छोर भगवती गंगा के तट के निकट गांव नीवल पुर तथा माधौपुर की कटरी में अवस्थित देवी सिद्धपीठ है। प्राचीन काल में यह मंदिर फूलमती बरकेशव तीर्थ गुप्त क्षेत्र नाम से वीइख्यात था। मुख्य मंदिर पर उत्कीर्ण शिलालेख के अनुसार यहां पर दक्ष प्रजापति की पुत्री का दाहिना हाथ गिरा था , अत:इस स्थान को वरद्हस्त भी कहा जाता है। यह बावनवां शक्तिपीठ है। सन् 1980 में इस मंदिर का भवन अस्तित्व में आया और 1985 में जीर्णोद्धार पश्चात वर्तमान स्वरुप में आया। यहां पर पौराणिक रम्यता प्राकृतिक छटा तथा आध्यात्मिक साधना के लिए नैसर्गिक शांति किसी श्रद्धालु का चित्त आकर्षित करने का सामर्थ्य रखती है।
दक्षिणेश्वरी कालिका मंदिर
भीष्म नगर (फर्रुखाबाद) की दक्षिणी ओर सेंट्रल जेल-श्याम नगर मार्ग पर सातनपुर आलू मंड़ी समिति के निकट दक्षिणेश्वरी मां कालिका सिद्धपीठ है। माता काली की श्याम वर्णी प्रतिमा के दर्शन मात्र से संकट हर जाते हैं। तांत्रिक साधनाएं भी साधी जाती हैं। अकाल मृत्यु को कालग्रास बनाने वाली ममतामयी मां कृपालु हैं। प्रत्येक नवरात्रि सोम बुध और शुक्र को विशेष पूजा अर्चन का विधान है। दूर दूर से भक्त गण दर्शनार्थ अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
इन विचारों संग मंगलकामनाएं......
वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
- डॉ रघुनंदन प्रसाद दीक्षित(प्रखर)
फर्रूखाबाद(उ.प्र.)209601
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