वरिष्ठ पत्रकार राकेश मित्तल की दूसरी पुण्यतिथि के अवसर पर चर्चा - परिचर्चा का आयोजन व डिजिटल सम्मान पत्र



     यह बात उन दिनों की‌ है कि जब आदरणीय‌ राकेश मित्तल जी‌ अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर दुकान - दुकान जा कर अपील‌ करते थे कि अपनी दुकान का बोर्ड हिन्दी भाषा में लगाऐं। ये अपील करते - करते हमारे स्कूल एस डी हाई स्कूल‌‌ में आ‌ गयें। मैं (बीजेन्द्र जैमिनी) उस समय सातवीं या‌‌ आठवीं कक्षा में‌‌ पढ़ता होगा। इन्हें ने  सुबह की प्रार्थना‌ के‌ समय में‌ अपने विचार यानि भाषा दिया था। जो‌ हिन्दी भाषा के‌‌ प्रचार - प्रसार‌ से सम्बन्धित‌ था‌। ‌यह मेरे दृष्टि कोण से राकेश मित्तल जी के साथ पहली झलक कहॅ सकते हैं। इसके बाद इन की परिवारिक खिलौनों की दुकान हलवाई हटृऻ में थी। राकेश जी बाहर की ओर बैठतें थे। अन्दर की ओर पवन जी बैठतें थे। यही से राकेश जी नवभारत टाइम्स के लिए पत्रकारिता करते थे। उस समय मुझे पत्रकारिता की कोई जानकारी नहीं हुआ करतीं थीं। उस समय पानीपत में " हरियाणा मुद्रिका " का बोलबाला था। जो स्थानीय साप्ताहिक पत्र था। जिस में स्थानीय राजनीति की खबरें हुआ करतीं थीं। इसी की तरज़ पर "अपना पक्ष पत्रिका " की स्थापना इन दोनों ( राकेश मित्तल व पवन मित्तल) भाईयों ने की थी । इन्होंने अपना पक्ष पत्रिका‌ के माध्यम से स्काईलाॅक  होटल में परिचर्चा का आयोजन रखा था। जिसके मुख्य अतिथि श्री राजेन्द्र यादव (सम्पादक : हंस पत्रिका)  के रूप में पानीपत आये थे। ये कार्यक्रम 1990 के आस - पास हुआ था। उस समय मैं पत्रकारिता करता था। उस समय मेरा मित्तल जी से कोई विशेष संपर्क नहीं हुआ था। यह अपना पक्ष पत्रिका आज भी चलती है। अब पवन मित्तल के साथ पवन जी की बेटी स्वत्ति मित्तल भी पत्रकारिता क्षेत्र में अपना पक्ष पत्रिका में योगदान दे रहीं है। 2011- 2012 के समय मीडिया क्लब पानीपत की स्थापना हुई थी। जिसमें राकेश मित्तल, विनोद पंचाल, हुक्म चन्द मैहता, बीजेन्द्र जैमिनी, अजय राजपूत, राकेश भंयाना, पवन मित्तल, रमा देवी, सरदार कुलवंत सिंह, राजेन्द्र सैनी‌,  हरिदास शास्त्री, देवेंद्र शर्मा, राजेश ओबराय आदि अनेक पानीपत के पत्रकार शामिल थे। जिसमें राकेश मित्तल मुख्य संरक्षक तथा राकेश भंयाना को अध्यक्ष चुना गया था। मुझे बाद में महासचिव  बनाया  गया था। जिसमें अनेक प्रकार के कार्यक्रम हुए थे। आंचल जादूगर का अभिनन्दन  , कवि कृष्णदत्त तुफान की स्मृति में कवि सम्मेलन, हिन्दी दिवस समारोह, विश्व हिन्दी दिवस पर कवि सम्मेलन, अनेक परिचर्चा का आयोजन, साहित्यकारों का सम्मान आदि तरह के प्रमुख कार्यक्रम हुए। कार्यक्रम स्थल में आर्य पी जी कालेज, एस डी पीजी कालेज, आर्य समाज की रतीराम वाटिका आदि प्रमुख हैं। इन सब में राकेश मित्तल जी की भूमिका को आज भी याद किया जाता है। मैंने 2017 में महासचिव के पद पर रहते हुए मीडिया क्लब पानीपत से दूरी बना ली थी। इसी प्रकार " अग्रवाल युवा क्लब " की स्थापना राकेश मित्तल जी की देख - रेख में हुई थी। जिस का कार्यस्थल शहर के बीचोबीच में किलें पर " अग्रवाल वाटिका " के रूप में आज भी मौजूद है। जो धार्मिक यात्रा के लिए जाना जाता है। कहते हैं कि यात्रा की संख्या हजारों में है। अब अग्रवाल युवा क्लब की देखरेख राकेश मित्तल जी के सपुत्र अखिलेश मित्तल कर रहे है।  इन तीनों ( अपना पक्ष पत्रिका, अग्रवाल युवा क्लब व मीडिया क्लब पानीपत) को देख जाए तो आदरणीय राकेश मित्तल  का व्यक्तित्व व कृतित्व अदृभूत है। जिस पर शोध कार्य किया जाऐ तो अनेक एम. फिल या पी.एच. डी कर सकते हैं। यह संयोग कहें या कुछ ओर......। दस जनवरी 2023 की सुबह जैमिनी अकादमी द्वारा विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर 51 हिन्दी सेवियों को डिजिटल रूप से " हिन्दी सेवी सम्मान - 2023 " प्रदान किये गये। इन 51 में आदरणीय राकेश मित्तल भी शामिल रहें। परन्तु विधाता को क्या मंजूर हुआ कि उसी दिन यानि 10 जनवरी 2023 की रात को लगभग नौ बजें के आसपास राकेश मित्तल जी इस दुनियाँ को छोड़ कर चले गये। ऐसा कभी किसी ने सोचा भी नहीं था कि विश्व हिन्दी दिवस (हर साल 10 जनवरी मनाये जाने वाला दिवस) के अवसर पर ऐसे हिन्दी भाषा के प्रचारक दुनियाँ छोड़ कर चलें जाऐंगे। यह प्रभु की लीला है कि उम्र भर हिन्दी भाषा की सेवा करने वाले महान आत्मा को विश्व हिन्दी दिवस (10 जनवरी) पर  दुनियाँ को छोड़ने का मौका मिला है । प्रभु ऐसी आत्मा को अपने चरणों में जगह दे। 10 जनवरी 2025 को दूसरी पुण्यतिथि है। इस अवसर पर अखिलेश मित्तल ने अग्रवाल युवा क्लब के माध्यम से श्री कैलाशी सेवा सीमित फाॅण्डेशन के साथ सयुंक्त रूप से रक्तदान शिविर का आयोजन आर्य पी जी कालेज में किया है। जिसमें 70 यूनिट रक्त एकत्रित किया गया है। यह कार्य रेड क्रॉस सोसाइटी, पानीपत की देखदेख में सम्पन्न हुआ। इसी पुण्यतिथि तथा विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर जैमिनी अकादमी ने चर्चा - परिचर्चा का आयोजन किया। परिचर्चा में शामिल विचार व राकेश मित्तल स्मृति सम्मान - 2025 पेश हैं। 
तन को भोजन चाहिए और मन को चाहिए विचार।अब ये विचार आंतरिक हों या फिर बाह्य।यदि आंतरिक हैं तो उन्हें व्यक्त करने का सशक्त माध्यम है भाषा।हिंदी क्योंकि हमारी मातृ भाषा है तो इससे अच्छा और उत्कृष्ट कुछ भी नहीं हो सकता है। हिंदी मेरी भक्ति और अभिव्यक्ति है।मेरी पूर्ण परिचय की परिपाटी है।इसके सिवाय कुछ और नहीं जिसके जरिए मैं अपने मन और मस्तिष्क को शांत रख सकूं या अपनी मनःस्थिति को व्यक्त कर सकता हूँ।

         हिंदी केवल भाषा ही नहीं बल्कि मेरी पहचान भी है।जिस वतन से आता हूं हिंदी उसकी आत्मा है।यह मेरे लिए पूज्य भी है।मेरे कर्म कांडों की वाहक और विचारों की पुष्टि भी है।यह मुझसे पहले मेरे संदेशों को पहुंचाने वाली दूत है।मेरी धमनियों में चलती बोलती प्रमाणिका है।हिंदी मेरे लिए मेरी सबकुछ है।साज और श्रृंगार भी है हिंदी। 

          - नरेश सिंह नयाल 

        देहरादून - उत्तराखंड

          अभिमन्यु की कथा बताती है कि माँ के गर्भ  से ही हमारी शिक्षा प्रारंभ हो जाती है। हमारे परिवेश में हिंदी रची- बसी है। हमारे जन्म  के संस्कार हिंदी या संस्कृत के मंत्रोच्चार से पूर्ण  होते हैं। फिर दादी - नानी से हिंदी की कहानियाँ सुनकर और संवाद करके हम बड़े  होते हैं। जीविकोपार्जन हेतु, थोड़े समय के लिए हम दूसरी भाषा का आश्रय  लेते हैं। दूसरी भाषा बोलचाल की हो लेकिन  उसके भाव को हम हिंदी में ही ग्रहण  करते हैं। जन्म से मरण तक सारे संस्कार  हिंदी में। अतः मेरे  जीवन  में हिंदी माँ के समान है। यह हमारी मातृ भाषा है।

         - कमला अग्रवाल 

   गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश

      मेरे जीवन में हिन्दी भाषा का स्थान सर्वोपरी है। मेरी सुबह हिन्दी मेरी रात हिन्दी मेरा जीना मरना सब हिन्दी । हिन्दी मेरी आत्मा में बसती है । हिन्दी मेरी मातृ भाषा है । मेरे अस्तित्व  की मेरे संस्कारों की पहचान है । हमारे सम्पर्क की भाषा है ।हिन्दी भाषा हमे एक दूसरे को जानने समझने में सहायक है , हम सहजता से घुल मिल जाते ,

हिंदी भाषा देश की एकता का सूत्र  धार है। हमारी अभिव्यक्ती का माध्यम है। पुरे विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रचार करने का श्रेय एक मात्र हिंदी भाषा को  ही जाता है। विश्व की सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा में हिन्दी का स्थान दूसरा आता है। भारत की आत्मा है हिन्दी । भारत में सबसे अधिक जो भाषा बोली जाती है वह हिन्दी है । इसीलिये इसे 14 सितम्बर 1949 को राज्य भाषा का दर्जा दिया गया .14 सितम्बर को पूरे भारत देश में हिन्दी दिवस के रुप मे मनाया जाता है ।

 भाषा की जननी और साहित्य की गरिमा हिंदी भाषा

 हिन्दी भाषा जन-आंदोलनों की भी भाषा रही है। 

हिंदी भाषा में जैसा  लिखा जाता है वैसा ही  पढ़ा  जाता है। इसमें गूँगे अक्षर  नहीं होते। इसीलिये इसके लिखने  और बोलने  में स्पष्टता है। हिंदी भाषा की एक विशेषता यह भी है कि इसमें निर्जीव वस्तुओं (संज्ञाओं) के लिए भी लिंग का निर्धारण होता है ।

 हिंदी  भारत की पहचान के साथ साथ   यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, है अच्छी  परिचायक  है। 

हिन्दी बहुत ही  सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है जिसे दुनिया भर में समझने, और बोलने और प्यार करने वाले लोग काफी बडी तादाद में है । हमारे देश का संचार का यह सर्व प्रथम साधन है .यह हमारी संस्कृति और सामाज को समझने मे और घुलने मिलने मे हमारी बहुत मदद करती है ।

        - डॉ.अलका पांडेय

           मुंबई - महाराष्ट्र

      हिंदी सब भाषाओं की पटरानी है, यह जन जन की भाषा है, यह हमारे मन की भाषा है,हमारे मन में जो भी विचार आते हैं  उनको शब्दों में जब उकेरना होता है तो केवल हिंदी में ही हम शब्द बद्ध करते है , हिंदी से हिंदुस्तान बना है, यह वतन की असल निशानी है, आजकल विदेशों में भी हिंदी का पाठन पठन बड़ रहा है, विदेशियों को भी हिंदी पढ़ना अच्छा लगता है, मैं खुद अमरीका जापान जाती हूँ तो हिंदी लोगों को पढ़ाती हूँ , हमारे बच्चे किसी भी देश में हो लेकिन हिंदी अपने बच्चों को पढ़ाना ज़रूरी समझते हैं,हमारा सारा ज्ञान संस्कृत भाषा में है और हिंदी जानने वाला संस्कृत आसानी से पढ़ लेता है और काफ़ी हद तक समझ भी लेता है, हिंदी विश्व में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है, हिंदी का भविष्य बहुत उज्जवल है। 

     - प्रो.सुदेश मोदगिल नूर 

        पंचकूला - हरियाणा 

      मैं जब इस भारत भूमि पर जन्मी और जब आंखें खोली तो मेरे मुख से मां शब्द का ही उच्चारण हुआ था और यह बड़े गर्व की बात है कि यह शब्द  हमारी मातृभाषा हिंदी का ही है जो यह हमारी देव भूमि भारत की पहचान भी है । मेरा  जीवन ,संस्कृति और संस्कार हिंदी भाषा में ही दर्शनीय हैं। प्रथम तो यह पूजनीय है क्योंकि देवनागरी लिपि की सरलता सहजता ने सबको रिश्तों की डोर में बांध रखा है । सभी देवताओं के नाम अ से ज्ञ तक के वर्णों से बने शब्द दैनिक जीवन में हमारी अर्चना के मूल  आधार हैं । अतः यह मुझे सनातन धर्म ,समाज , राष्ट्र और विश्व से जोड़ती है । मेरे अध्ययन - अध्यापन का मुख्य विषय भी हिंदी ही है। मुझे गर्वानुभूति होती है  कि मैं इसके विशाल साहित्य की अनुरागी होने के कारण  मेरा सारा लेखन कहानी ,कविता, आलेख ,विचार  सब  अपनी मातृभाषा हिंदी में ही करने  का महान सुख ,आनंद  और सौभाग्य प्रदान करता है ।  जयति जय जय हिंदी

         - डॉ. रेखा सक्सेना

       मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश

       हिन्दी बिना तो हम कुछ भी नहीं।हमारे जीवन में हिन्दी भाषा की भूमिका इतनी अहम है कि इसके अभाव में तो हम बेजुबान हो जाएंगे। हमारा जन्म ही हिन्दी भाषी प्रदेश, उत्तर प्रदेश में हुआ है। उसमें भी बिजनौर में, जहां की भाषा ही खड़ी बोली है,जिसे मानक हिन्दी कहा जाता है। हमने बोलना, पढ़ना, लिखना सब हिन्दी में ही सीखा और अब इसी के सहारे जीविकोपार्जन भी चल रहा है। लेखन के क्षेत्र में हमें इसी भाषा से पहचान मिली है।मन की अभिव्यक्ति हम हिन्दी भाषा में ही बखूबी कर पाते हैं। लिखते हैं तो देवनागरी लिपि में और बोलते हैं तो खड़ी बोली हिन्दी। कुल मिलाकर बात यह कि हिन्दी के बिना हम कुछ भी नहीं। अर्थात हिन्दी से ही हमारे जीवन में जीवंतता बनी हुई है।

   - डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'

         धामपुर - उत्तर प्रदेश 

         हिंदी हमारी मातृभाषा ही नही,हमारी विशिष्ट पहचान है । हमारी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम हमारी मातृभाषा हिंदी का मेरे जीवन में विशेष महत्व है। हिंदी के दम पर ही आज भारतीय संस्कृति दुनिया में कायम है ।  अनेकता में एकता, बसुधैव कुटुम्बकम और विश्व बन्धुत्व की भावना ,  जैसे सर्वगुण सम्पन्न  गुण हिन्दी की जननी सस्ंकृत ने पुत्री हिन्दी में कूट कूट कर भरे हैं।जिसके कारण आज भारत का मस्तक ऊचा है। और ये हिन्दुस्तान विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है। वेदवाणी--देववाणी-- संस्कृत भाषा जिसकी जननी है ।ऐसा लगता है कि "संस्कारवान पुत्री हिंदी "हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही है । चाहे विज्ञान का क्षेत्र हो या कम्प्यूटर का क्षेत्र  हो। विवेकानंद ,भारतेंदु जी और अटल जी के बाद आदरणीय मोदी जी ने हिंदी ही नहीं, हिंद- हिंदू -हिंदुस्तान को सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाया  है और सबसे मुख्य बात! अपनी मातृभाषा हिंदी के कारण हीं हम लेख ,लघु कथा ,कविता, संस्मरण चर्चा परिचर्चा के माध्यम से साहित्य जगत में अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सम्मानित और प्रोत्साहन स्वरूप "एक नहीं पहचान" उपलब्धि  के तौर पर भी पाते हैं।

निज भाषा उन्नति अहै,

             सब उन्नति का मूल। 

बिन -निज भाषा ग्यान के, 

             मिटे न हिय का शूल। 

                -  रंजना हरित 

         बिजनौर - उत्तर प्रदेश

      इतिहास गवाह है कि हिन्दी भाषा भारत की एकता, देशभक्ति, संस्कृति और समृद्धि का प्रतीक है, यही नहीं यह हमारे संविधान की अधिकारिक भाषा है और हमारी राष्ट्रीय भाषा के रूप में महत्वपूर्ण है, मेरा मानना है कि यह भाषा राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देती है क्योंकि इस भाषा में जो लिखा जाता है, वही पढ़ा भी जाता है, इसमें गूंगे अक्षर नहीं होते, देखा जाए कई महान लेखकों व कवियों ने इसी भाषा में अपने ज्ञान को प्रचलित किया जिसका प्रत्येक ज्ञानी ने लुप्त उठाया, जिनमें, मुंशी प्रेमचंद, हरिवंश राय बच्चन, कबीर दास, तुलसीदास जी, इत्यादि शामिल हैं, मैं हिन्दी भाषा की महानता को कभी नहीं भूल सकता और अक्सर इसी भाषा का प्रयोग हर रूप में करता हूँ क्योंकि इस भाषा को पढ़ने, लिखने, व सुनने में  किसी को भी कोई मुश्किल नहीं आती, यही नहीं यह दुसरी भाषाओं से आसान भी है और दूनिया में ज्यादा तौर पर बोली जाने वाली भाषा है, यह हमें भारत के सभी प्रांतों से जुड़ाती है, तथा एकता का सुत्र बाँधने में मददगार है, तभी तो कहा है, 

"हिन्दी है हम वतन है, 

हिन्दोस्तान हमारा"। 

        क्योंकि हिन्दी  भाषा ही एक मात्र भाषा है जो  सांस्कृतिक, एकता और राष्ट्र की पहचान बनाये रखने  के लिए अनिवार्य है, यही नहीं इस भाषा से यात्रा के अनुभव बेहतर होते हैं, दोस्ती में बढ़ावा   तथा सांस्कृतिक आदान, प्रदान में सुविधा होती है, यह सत्य है कि हिन्दी विश्व की प्रमुख भाषा ही नहीं है बल्कि भारत की  एक राजभाषा भी है तथा भारत में सबसे अधिक बोली  और समझी जाने वाली भाषा है तथा हिन्द से संबंध रखने वाली भाषा है, इसी भाषा ने हमें नई पहचान दिलाई है, यह भाषा हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है,इसिलिए इसे हिन्दोस्तान की  भाषा भी कहा जाता है , यह हमारी राष्ट्रभाषा का रूप ले चुकी है तथा हमारे देश  का गौरव और पहचान बन चुकी है, इसके प्रति प्रेम और सम्मान प्रकट  करना  हमारा  राष्ट्रीय कर्तव्य है, यह एक ऐसी भाषा है जिसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक साक्षर से निरक्षर तक प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति आसानी से बोल व समझ सकता है तभी यह विश्व की महान बोली जाने वाली भाषाओं में एक है, मैं हिन्दी भाषा में लिखने बोलने , समझने न समझाने में गर्व महसूस करता हूँ और अन्त में यही कहुंगा, 

"हिन्दी से हिन्दोस्तान है, 

तभी हमारा देश महान है, इस भाषा की उन्नति के लिए अपना सब कुछ कुर्बान है"। 

    - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

     जम्मू - जम्मू व कश्मीर

 वैसे तो मैं हिन्दी भाषी क्षेत्र का हूं और हमारे यहाँ हिन्दी भाषा का ही बाहुल्य है। इसीलिए मेरे रोम-रोम में हिन्दी बसी हुई है। महानगरों में रहने वाले मेरे कोई मित्रों या रिश्तेदारों से कभी मिलना होता है तो मैं उनसे मेरी ही यानी हिन्दी में ही बातचीत करता हूं। हाँ, कोई बात उन्हें यदि समझ में नहीं आती है तब अंग्रेजी में   बता देता हूं, वह भी केवल उस शब्द विशेष को। हिन्दी भाषा का विस्तार इतना अधिक है कि हर बात के लिए अलग- अलग शब्द उपलब्ध हैं।जिससे मुझे कोई भी बात कहने और  समझाने - समझने में सहजता और सरलता होती है। यही नहीं हिन्दी भाषा में इतनी लोकोत्तियाँ और  मुहावरे प्रचलित हैं कि अपने दिल की बात अपेक्षाकृत और गहराई से स्पष्टता के साथ बतलाने में सक्षम पाता हूं।। मैं, मेरे हस्ताक्षर भी हिन्दी में ही करता हूं। मेरे लेखन में भी मेरा पूरा प्रयास हिन्दी भाषा पर ही होता है।  संक्षेप में कहूं तो मैं तो हिन्दी में जीता-मरता हूं। इसका मतलब यह भी नहीं कि मुझे अन्य भाषा पसंद नहीं। मैं सभी भाषा का हृदय से आदर करता हूं और अवसर मिलने पर सीखता और समझता भी हूं।आशय यह कि हिन्दी मेरे लिए माँ और अन्य भाषाएं मेरी मौसी। बस, इतना ही।

         - नरेन्द्र श्रीवास्तव

        गाडरवारा - मध्यप्रदेश

        हिन्दी हमारी प्यारी भाषा है, इसका हम सभी के जीवन में बहुत महत्व है। यह केवल संचार के उपयोग तक ही सीमित नहीं है बल्कि भारत जैसे राष्ट्र में जन-जन की भाषा है। भारतीय संस्कृति, शिक्षा, व्यवसाय, सामाजिक एकता अखंडता में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी भाषा जैसे बोली जाती है वैसे लिखी जाती है। यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है इसके अलावा अंग्रेज़ी भाषा की भान्ति इसमें साइलेंट लेटर नहीं होते। यह एक आसान भाषा है। भारत के 80 प्रतिशत लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं अहिन्दी भाषी भी इस भाषा को आसानी से समझ जाते हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि हिन्दी दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। यह देवभाषा संस्कृत का सरलतम रूप मानी जाती रही है। हिन्दी मेरे देश की जान है पहचान है, मुझे हिन्दी भाषी होने पर गर्व है। मेरे जीवन में हिन्दी भाषा का विशेष महत्व है। भले ही आज की पीढ़ी को अंग्रेजी भाषा के प्रति लगाव है लेकिन अपने भावों की अभिव्यक्ति आसान तरीके से हिन्दी भाषा में ही संभव है। मैं अपने परिवार में भी हिन्दी भाषा की महत्ता को बनाये रखने पर सदैव ध्यान देती हूँ। हिन्दी भाषा हम सब की भाषा, इस का विकास अति आवश्यक है। 

        - शीला सिंह

 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश

     मां मातृभूमि मातृभाषा और राष्ट्रभाषा हिन्दी मेरे लिए हिंदी भाषा का महत्व उसकी उपयोगिता व जीवन के हर क्षेत्र में व्यवहारिकता मां से होते हुए राष्ट्रभाषा तक है।जिसके बिना हम गूंगे से हैं।कारण मेरे व मेरे आस पास के लोगों के लगभग सभी कार्य इसी भाषा के माध्यम से सम्पन्न् होते हैं ।इस बात का गर्व है कि देववाणी की पुत्री अपनी स्वीकार्यता के चलते आज भारत में ही नहीं वैश्विक दृष्टि से प्रासंगिकता बढाने में सफल हुई है ।हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ दिए हैं ।भारतेन्दु बाबू जी की पंक्ति निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति का मूल। तीव्रता से सार्थकता की ओर है।जय हिंद जय हिंदी ।

        - शशांक मिश्र भारती 

     शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश

    हिंदी का हमारे जीवन में सर्वाधिक महत्व है। हमारे देश की राजभाषा होने के बावजूद भी आज भी अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है। जो हमारी मानसिक गुलामी का परिचायक है। इसीलिए भारत सरकार द्वारा  हर साल 14 सितंबर को राजभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है और हर कार्यालय में हिंदी में  कार्य करने पर जोर दिया जाता है। इसीलिए हिंदी में ज्यादा काम करने पर पुरस्कृत करने का भी चलन है।   किसी भी भाषा की तरह हिंदी भी हमारी सोच की मौलिक भाषा है वह सिर्फ अनुवाद के लिए ही नहीं आपसी संवाद  के लिए भी पूरी तरह सहजता से घुल- मिल जाने वाली है।

    हिंदी हमारी राजभाषा होने के बावजूद भी ग्यारह राज्यों और  तीन संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। विभिन्न योजनाओं की जानकारी हिंदी में मिलने पर बहुत से कमजोर और गरीब तबके के लोगों को फायदा हुआ है और वह भी देश की मुख्य धारा से जुड़ने लगे हैं। मेरी सारी पढ़ाई हिंदी माध्यम में हुई  है इस पर मुझे  संकोच नहीं गर्व होता है कि मैं अपने देश की भाषा रूपी मिट्टी  की जड़ से आज तक जुड़ी हुई हूँ।  विश्व में भारतीय समुदाय के करोड़ों लोगों की संपर्क भाषा हिंदी  है । इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को एक नहीं पहचान मिली है। अंत में रवीन्द्र नाथ टैगोर के इस कथन को दोहराना चाहती हूं।

   " सारी भारतीय भाषाएं नदियां  हैं और हिंदी महानदी।"

      - अर्चना मिश्र

  भोपाल - मध्य प्रदेश

      परिवेश की दृष्टि से बालक का प्रथम परिचय अपनी ' माँ ' से होता है । वार्तालाप के प्रथम स्वर भी उसके मुख से 'माँ '  के लिए ही निकलते हैं । जब उसके स्वरों में भाषा प्रवेश करती है , स्वयं को व्यक्त करने के प्रयत्न में जब सीखता है तो उसके पास 'माँ ' की ही भाषा होती है क्योंकि 'माँ ' उससे अपनी ही भाषा में वार्तालाप करती है । अचेतन में उसी भाषा में उसका मस्तिष्क और तंद्रा स्वयं उससे , हर पल कोई न कोई वार्तालाप  करता रहता है , हम उसी भाषा में अपनी विचार तंद्रा और दिनचर्या को परिपक्व करते हैं , उसी से आलिंगनबद्ध होकर अपने कार्यकलाप निर्धारित करते हैं । इसीलिए जो 'माँ ' की भाषा है , वही हमारी मातृभाषा बन जाती है । भारत की अधिसंख्य जनसंख्या किसी भी बच्चे का में भाषा की दृष्टि से प्रथम साक्षात्कार 'हिंदी ' से ही होता है और वह जीवन भर इसी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाता है । हिंदी उसके रक्त में रच - बस जाती है । हिंदी में बोलना , हिंदी में अपनी भावनाओं को व्यक्त करना उसके लिए सहज , सरल , स्वाभाविक और अपनत्व से भरपूर होता है । अपने काम की भाषा कोई भी बन जाए परंतु परस्पर लगाव की भाषा तो हिंदी ही रहती है । हिंदी , उसे माता के दूध के साथ प्रथम आहार के रूप में मिलती है और जीवन पर्यन्त उसके व्यक्तित्व का पोषण करती है । देश में तो हिंदी उसकी सामाजिकता को बलिष्ठ करती ही है , विदेश में जाकर या रहकर भी वह हिंदी भाषी व्यक्ति के साथ के लिए लालायित रहता है क्योंकि वह मानता है कि इसी भाषा में उसे कोई वह अपना मिल सकता जिससे वह अपने मन की बात बोल सकता है या उसके मन की सुन सकता है । वहां आत्मीयता प्राप्त करने  का एक ही सूत्र होता है और वह है " हिंदी " ।

 " हिंदी " में जब हम जीवन दर्शन से संबंधित कोई गूढ़ बात जाने - अनजाने कह जाते हैं , तब स्वयं को  गौरवान्वित महसूस करते हैं । इसीलिए हम भारतीयों के लिए  " हिंदी " अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है ।अब तो " हिंदी " विश्व पटल पर भी सर्व - स्वीकार्य होती जा रही है और इसके द्वारा स्वीकृत शब्द भारतीय सनातन संस्कारों के प्रतीक बन गए हैं जैसे " नमस्ते " , शब्द का उच्चारण करते ही हाथ आप से आप जुड़ जाते हैं , जो किसी भी व्यक्ति अभिवादन की सबसे आकर्षक मुद्रा है । इसमें आत्मीयता भी झलकती है ।

     - सुरेंद्र कुमार अरोड़ा 

 साहिबाबाद - उत्तर प्रदेश 

        जननीजन्मभूमिभाषाश्चस्वर्णगादपि गरीयसि,मातृ भाषा सर्वभाषा यां सर्वोपरि l जो शब्द माता के गर्भ से मेरे शरीर की रचना में सहायक रहें वह तो मेरे शरीर के एक एक सैल में गुथे हैं जो चाह कर भी अलग नहीं हो सकते l यही वे शब्द हैं जो मुझमें भारतीय संस्कार क़ा अंकुरण करते है या मुझे भारतीय होने की पहचान प्रदान करते है l हमारा भारत बहु भाषाओं क़ा देश है लेकिन हिंदी अपनी सरलता और सजलता से सभी धर्मों, भषाओ, रीति रिवाजो और परम्पराओं को एक सूत्र में बांधे है l कन्या कुमारी से ले कर कश्मीर तक और गुजरात से लें कर नागालैंड तक हिंदी अपना परचम लहरा रही है l राष्ट्र भाषा न सही लेकिन उससे भी बढ़ कर आज हिंदी पूरे देश की सम्पर्क भाषा बन चुकी हैं l  लेखन के क्षेत्र में भी आज सबसे अधिक लेखन हिंदी में ही हो रहा है l  हिंदी भारत की पहचान बन चुकी है जो निरंतर समृद्धि की ओर अग्रसर है l आज कोरोड़ो प्रवासी भारतीय विश्व में हिंदी क़ा प्रसार कर रहें हैं l उनको हिंदी भाषी होना उन्हें भारतीय विशेषताओ से परिचित करा रही है l उनमे से हिंदी लेखक, कवि, समीक्षक व पाठक विदेशियों में भी हिंदी सीखने की ललक पैदा कर रहीं है l हिंदी के प्रति मेरे कुछ भाव ---

                 (1)

हिन्द की भाषा हिंदी है उसकी पहचान हिंदी है ।

उसका सिरमौर हिंदी है उसका सम्मान हिंदी है।

उसकी मिट्टी से जन्मी है फली फूली उसी में  है 

हिन्द में रहने वालों का जगत में मान है हिंदी ।।

                      (2)

कृषक के मन की भाषा है मेरे मजदूर की हिंदी।

गैर अपना बनाने को करती  मजबूर ये हिंदी ।

सिंधु की लहरों से निकली हिन्द के माथ पर बैठी

रवि किरणों-सी यह फ़ैली दूर से दूर तक हिंदी ।।

                     (3)

मैं हिंदुस्तान की बेटी मेरी भाषा भी हिंदी है।

मेरा पढ़ना मेरा लिखना मेरी आशा  हिंदी है।

सिंधु से हिन्द बन करके दिलो में आ समाई है

मेरा गाना मेरा रोना और निराशा भी हिंदी है।।

                      (4)

हम हिंदुस्तान में रहते हमारी भाषा हिंदी है।

हमारी सोच हिंदी है और आशा भी हिंदी है।

भले ही हम बोलते हो कई अन्य जुबानों को

मगर सम्पर्क साधने की परिभाषा तो हिन्दी है।

                      (5)

मेरा शैशव मेरा गौरव मेरा जगमान हिंदी है।

मेरा अरमान हिंदी है मेरा सम्मान हिंदी  है।

यहीं जन्मी  फली फूली यहीं है कर्मभूमि भी 

तभी पहचान है हिंदी और अभिमान हिंदी है ।                 

  - सुशीला जोशी विद्योत्तमा 

  मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश

     सहज, सरल और सुगम यदि कोई भाषा है तो वह है- हिंदी । इसकी सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें सभी रिश्तों के लिए अलग-अलग नाम है जो बालक को जन्म से उन रिश्तों की पहचान करवाते हैं वरना तो मॉम - डैड और अंकल - आंटी में ही सारे रिश्ते सिमट कर रह जाते । जीवन में रिश्ते ही संस्कारों का पाठ पढ़ाते हैं जिसके कारण हमारी सभ्यता और संस्कृति की पूरे विश्व में एक अलग पहचान है । इस प्रकार हिंदी भारतीय विचार और संस्कृति की वाहक है । यह आम आदमी की भाषा जो देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य भी करती है । यह विशाल समुद्र की तरह है  । जैसे सभी स्थानों की नदियां समुद्र ही समाती है, उसी प्रकार हिन्दी अनेक भाषाओं के शब्दों को अपने में समाहित कर लेती है और अनेकता में एकता स्थापित करती है । यह एक वैज्ञानिक भाषा है क्योंकि इसमें बोलना और लिखना समान होता है अर्थात जो बोला जाता है वही लिखा जाता है ।  प्रत्येक अक्षर एक खास ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है । यह अंग्रेजी की तरह भ्रमित करने वाली भाषा नहीं है  । इसका साहित्य बहुत समृद्ध है । यह विश्व में बोली जाने वाली तीसरी सबसे बड़ी भाषा है । हिंदी के कारण ही आप, आप हैं वरना कभी के तुम बन गए होते  ।               

   - बसन्ती पंवार                 

   जोधपुर  - राजस्थान     

    

हिंदी हमारी मातृभाषा है जो की राष्ट्रभाषा भी होनी चाहिए। यदि हिंदी ना हो तो जीवन कैसा होगा, सोच पाना असंभव है।हमारी सोचने की प्रक्रिया, स्वयं को अभिव्यक्त करने  का कौशल, लिखने बोलने, सभी के लिए हिंदी भाषा महत्वपूर्ण है। आज विदेशों में भी इसका प्रचलन बढ़ रहा है। हम किसी भी भाषा में स्वयं को व्यक्त कर रहे हो जैसे अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा परंतु पृष्ठभूमि में हम हिंदी में ही सोचते हैं। मन में उसका अनुवाद करके तब उसे अन्य भाषा में व्यक्त करते हैं। यह महत्व है हमारी हिन्दी भाषा का । यही कारण है कि यदि हमारी सर्जनात्मक, रचनात्मक शक्ति को पूरा आकाश, पूरी आजादी, पूरी उड़ान देनी हो तो अपनी भाषा की, अपनी संस्कृति की पूरी  जानकारी होना उसमें प्रथम और बेबाक़ अभिव्यक्ति होना अत्यंत आवश्यक है। तभी हमारी रचनात्मकता को, हमें स्वयं को संपूर्ण अभिव्यक्ति मिल सकती है। यदि कोई इंग्लिश में गलती करता है चाहे वह लिखने में, बोलने में अंथवा स्पेलिंग में तो उसे हम मूर्ख या अशिक्षित कहते हैं।परंतु मेरा सोचना है कि एक विदेशी भाषा में गलती हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है परंतु जब अपनी ही भाषा में किसी को छोटी-छोटी अनगिनत गलतियां करते देखें तो असहनीय हो जाता है। बाग बगीचों में फूल के स्थान पर फुल लिखा देखकर बहुत कष्ट होता है। इन लोगों को हम अशिक्षित नहीं मानते, मूर्ख नहीं मानते क्योंकि हिंदी तो नहीं आती तो क्या हुआ? जबकि हिंदी में गलती करना जो हमारी मातृभाषा है जिसको हम बोल सुनकर बड़े हो रहे हैं, उसमें हम छोटी-छोटी गलतियां कर अपनी मूर्खता का प्रदर्शन करते हैं।

जब यह सवाल आता है कि हिंदी भाषा की हमारे जीवन में क्या भूमिका है? तो यही कहूंगी कि हिंदी भाषा हमारा जीवन है, जीवन शक्ति है, हमारे सोचने समझने, बोलने हर प्रकार से हमारी अभिव्यक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिसके बिना जीवन

असंभव प्रतीत होता है। हिंदी सब कुछ यानी सब कुछ है हमारे लिए।

                 - रेनू चौहान

                     दिल्ली

मेरे जीवन में हिन्दी भाषा की भूमिका चाय में  शक्कर जैसी है यदि चाय में शक्कर न मिलायी  जाए तो चाय वेस्वाद ही कहलाएगी, ठीक इसी के जैसे हिन्दी भाषा के अभाव में मेरे जीवन की मिठास ही जाती रहेगी । वैसे भी मुझे तो देश के उस भू भाग में जन्म लेने का सौभाग्य मिला है जहां हिन्दी भाषा की देवनागरी लिपि और खड़ी बोली का ही आम जनमानस के द्वारा प्रयोग किया जाता है । मैंने तो बाल्यकाल से ही हिन्दी भाषा को सुना बोला फिर हिन्दी भाषा में ही लिखना पढ़ना सीखा, हिन्दी भाषा की भूमिका मेरे जीवन में क्या है मैं कितना भी लिखूँ तो भी हिन्दी भाषा के महत्व को लिखना कम ही रहेगा । जिस हिन्दी भाषा को साहित्य सिनेमा और भारत ही नहीं बल्कि दुनिया में बोली जाने तीसरी सबसे बड़ी भाषा का दर्जा प्राप्त है मैं उसे समझता बोलता और लिखता हूँ ये मेरे लिए गौरव की बात है हिन्दी मेरी बोली ही नही है ये मेरी अभिव्यक्ति के प्राण है जैसे चाय में शक्कर की भूमिका है शक्कर के बिना चाय वे स्वाद है ठीक वैसे ही मेरा जीवन हिन्दी भाषा के शब्दों को न बोलूँ तो जीवन रस हीन ही हो जाएगा । अतः हिन्दी भाषा मेरे जीवन में एक तरफ़ रामचरितमानस है तो दूसरी तरफ़ महाभारत है या यूँ कहें कि मेरी भाषा ही मेरे जीवन का विस्तार है ।

          - डॉ भूपेन्द्र कुमार 

        धामपुर - उत्तर प्रदेश


हिंदी सिर्फ़ एक भाषा नहीं यह हमारीसामाजिक,संस्कृति व संस्कारों की परिचायक है हमारी पहचान है कि हम कौन हैं कहाँ से हैं । यह सिर्फ भारत में ही नहीं पूरे विश्व में अपना वर्चस्व कायम कर लोहा मनवा चुकी है देश हो या विदेश हर जगह के लोग इसे बहुत सम्मान करते साथ ही सीखने, समझने व बोलने की भी कोशिश करते हैं। हिंदी संस्कृत का ही सरल रूप व इसकी वंशज है। आज हिंदी इंटरनेट पर भी वट बृक्ष की तरह अपनी मजबूत जडें जमा चुकी है।आज आप हिंदी में कहीं से कुछ भी ढूँढ सकते हो। आजकल हर तरफ जहाँ भी देखो हिंदी का बोलबाला है यहाँ तक कि विज्ञान की भाषा भी बहुत जल्द हिंदी हो जाएगी ताकि मध्यम वर्गीय व अनपढ़ लोगों को समझने में भी आसानी हो।यह बहुत सरल व लचीली भाषा है इसीलिए विदेशों में जहाँ जहाँ भारत के लोग गये वहाँ वहाँ हिंदी का वर्चस्व कायम है। हिंदी हमारी मातृभाषा है हमारीपहचान है इसके बगैर हम समस्त भारत वासी अधूरे हैं। ये भारत की आन बान और शान है। हिंदी पढ़ने वाले छात्रों को इसके ज़रिए अपनी संस्कृति लोक गीत , पुरानी प्रथाएँ जो आज लुप्त होने की कगार पर हैं उन्हें समझने में काफी मदद मिलती है।हिंदी संवैधानिक रूप में हमारी मातृभाषा भारत में सबसे ज्यादा बोली व समझी जाने वाली भाषा हिंदी है। हिंदी भाषा में गूँगे शब्द नहीं होते ये जैसे लिखी जाती है वैसे ही बोली जाती है।इसके अलावा इसमे निर्जीव चीजों के लिए भी लिंग निर्धारण की व्यवस्था की गयी है। जो किसी अन्य भाषा में नहीं मिलेगा। हिंदी भाषा के लिए 1233 ई0 में अमीर खुसरो को पहली बार हिंदवी कहने का श्रेय जाता है । शिक्षा की व्यवस्था या व्यवस्था की शिक्षा हर एक स्थिति मेंं भाषा का महत्व पूरी दुनिया जानती है। बिना भाषा को जाने कुछ भी सीखना या समझना नामुमकिन होता है।भारतीय नव जागरण के अग्रदूत के रूप में आधुनिक कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र अपनी भाषा का महत्व बताते हुए लिखा है कि-----

निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मूल।

बिन निज भाषा ज्ञान के,मिटे न हिय को शूल।।

अँग्रेजी भाषा या कोई भी विदेशी भाषा में आप प्रवीण तो हो जाओगे मगर सामाजिकता व व्यवहारिकता में आप जी़रो ही रहोगेइसलिए साँस्कृतिकसामाजिक व बैभव की स्थापना की पहली सीढी़ अपनी मातृभाषा ही होती है इसे कभी नहीं भूलना चाहिए।आज की नयी युवा पीढी़ अँग्रेजी के बोझ तले इस कदर दब रही है कि उसे अपनी भाषा बोलने में शर्म और अधकचरी अँग्रेजीभाषा बोल कर उपहास का पात्र  बनने में फ़क्र महसूस करते हैं यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण व चिंता जनक विषय है।इस पर मंथन होना चहिए वर्कशाप होनी चाहिए ताकि आने वाली पीढी को गुमराह होने से बचाया जा सके। सभी अपनी भाषा को महत्व देकर उस पर गर्व महसूस करें अपनी भाषा बोलने में शर्म कैसी शर्म तो नकल करने में होनी चाहिए हमें अपनी हिंदी की तरक्की के लिए एकजुट होकर काम करना चाहिए ताकि हमारी हिंदी भाषा सर्वोषरि थी है और आगे भी इसका वर्चस्व चारों दिशाओं में हो हिंदी अमर रहे । तभी हम भारत़वासी खुद को भारत की संतान कहलाएँगे यही हमारा सर्वप्रथम कर्तव्य है भाषा बिना इंसान अपाहिज कीडे़ मकोडे़ की भाँति जी़वन बसर करता है।उसका अपना कोई आस्तित्व नहीं होता है।  जय  हिंद जय भारत

        - डॉ.नेहा इलाहाबादी

                   दिल्ली

       हिंदी की बिना हम अधूरे हैं हम भारत के नागरिक हैं और हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा।जाहिर है हिंदी की भूमिका हमारे जीवन में सबसे ज्यादा है। यह हमारे देश में व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा है। इस भाषा के द्वारा ही हम सभी से संपर्क स्थापित करते हैं। अपनी भावनाओं का उद्गार जो हम हिंदी में कर सकते हैं वह किसी और भाषा में उतनी सहजता से नहीं कर पाते।  हिंदी, भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत का प्रतिनिधित्व करती है। हिंदी भाषा का मूल संस्कृत भाषा में मिलता है। संस्कृत से प्राकृत, प्राकृत से अपभ्रंश और फिर अपभ्रंश से हिंदी भाषा का विकास हुआ। हिंदी भाषा का स्वतंत्र अस्तित्व 10वीं शताब्दी के आसपास दिखाई देने लगा। हिंदी भाषा के विकास को मुख्यतः तीन कालों में विभाजित किया जा सकता है:-

आदिकाल (1000 ई. - 1375 ई.): इस काल में हिंदी भाषा की नींव रखी गई। इस काल में धार्मिक साहित्य अधिकतर लिखा गया।

 मध्यकाल (1375 ई. - 1800 ई.): इस काल में हिंदी साहित्य में भक्ति आंदोलन का प्रभाव दिखाई दिया। तुलसीदास, सूरदास जैसे कवियों ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाईयां दीं।

 आधुनिक काल (1800 ई. के बाद) इस काल में हिंदी साहित्य में पश्चिमी प्रभाव दिखाई दिया। भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसे साहित्यकारों ने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी। हिंदी भाषा पर अरबी, फारसी और अंग्रेजी भाषाओं का भी प्रभाव पड़ा। भारत का विस्तृत भूगोल भी हिंदी भाषा के विकास को प्रभावित करता रहा। भारत में हुए सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों ने भी हिंदी भाषा के विकास को प्रभावित किया।फिर भी हिंदी भाषा बहुत ही सरल और सहज है।इसमें लचीलापन है। जो सभी को अपने में समा लेता है और अपने अस्तित्व को बरकार रखता है। हिंदी, भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत का प्रतिनिधित्व करती है। यह हमारी सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और हमें अपनी जड़ों से जोड़ती है। हिंदी साहित्य में ऐसी अनेकानेक उत्कृष्ट कृतियां है जिन्हें पढ़कर पढ़ कर हम अपने ज्ञान की वृद्धि तो करते ही हैं साथ ही साथ इस भाषा में कुछ करने की प्रेरणा भी पाते हैं।

सच कहा जाए तो हिंदी भाषा के बिना हम अधूरे।हैं।

         -  मधुलिका सिन्हा

       गुरुग्राम -  हरियाणा


“मम्मी बोलते-बोलते.. माँ पर क्यों आ गए..!”

आँचलिक शब्द हमें रास नहीं आते हैं

हम इन्हें हिन्दी का दुश्मन तलक बताते हैं।

और अंग्रेजी हेतु सूरदास होते हैं

साँस हिन्दी है, सदा इसके पास होते हैं।

        कौन कितना गलत नहीं हमें बहस करनी है।

        राष्ट्रभाषा हेतु प्रवाहित समर करनी है।

        निर्णीत अपने धर्म का पालन सहर्ष करते हैं,

        साँस हिन्दी है, सदा इसके पास होते हैं।

 हिन्दी भाषी क्षेत्र बिहार में जन्म ली हूँ। तो हिन्दी बोलना, जानना व लिखना सीखना नहीं पड़ा और स्वयं का हिन्दी के प्रति प्रेम का पता तब चला जब अहिन्दी भाषी प्रदेशों में जाना हुआ। वहाँ के निवासियों को हिन्दी बोलने के नाम पर अपने चेहरे का इतिहास-भूगोल बदलते दिखा और सोशल मिडिया पर मेरा लेखन

–आप ये ब्लॉग पर फेसबुक टाइमलाइन पर कहाँ से चुन-चुन कर हिन्दी के तो नहीं लगते शब्दों को पोस्ट करती है.. समझना-समझाना कितना कठिन हो जाता है। ..

–आपकी लिखी रचनाओं को पढ़ने के लिए शब्दकोश लेकर बैठना पड़े तो पढ़ने का उत्साह चला जाता है।

–आप क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग ना करें आपकी रचना केवल शब्दों का जमावड़ा लगता है.... इत्यादि पद्म विभूषणों से जब सुशोभित होने लगा तो मुझे लगा कि अरे ! मुझे तो हिन्दी से दिव्यप्रेम है...। अजीब सा नशे के कैद में हूँ..। देश-विदेश में हिन्दी साहित्य की जितनी संस्था (जो मुझे सदस्य बनाये रख सकती है ) मेरे जानकारी में सहभागिता करने का प्रयास करती हूँ। हिन्दी के लिए कोई कार्यक्रम हो उसमें अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में ना तो जेठ की दोपहरी रोक पाती है ना भादो की बरसात। ना तीन-चार बजे रात में वर्चुअल साहित्यिक गोष्ठी में उपस्थिति दर्ज करने की बात...।

कई गोष्ठियों में युवाओं को शुद्ध हिन्दी में रचना पाठ करते देख बेहद हर्ष होता है। समुन्द्र का जिस तरह ओर-छोर नहीं दिखलाई देता है उसी तरह हिन्दी साहित्य है...। उसमें पड़े हमारे लेखन का अस्तित्व एक बूँद ही है...।

कैलीफोर्निया का १३ सितम्बर २०२०

सुबह आठ बजे चाय के मेज पर...

"कैसा रहा आपका कार्यक्रम? कब सोईं आप? बेटे-बहू ने एक संग पूछा।

"सुबह पाँच बजे...," मेरे कुछ कहने के पहले मेरे पति शिकायत करने के अंदाज़ में कहा।

"आप सारी रात जगी रहीं .. ? हम स्तब्ध हैं और आपके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं..," बच्चों का स्वर ऊँचा हो रहा था...।

"यह कैसा नशा है तुम्हारा... भोर के साढ़े तीन बजे होने वाले कार्यक्रम में भागीदारी लेना..?" पति महोदय प्रज्जवलित हवन में घी डालने का कार्य कर रहे थे।

     ८ मार्च से अक्टूबर तक कैलीफोर्निया भारत से साढ़े बारह घंटे पीछे है समय के मामले में।

हिन्दी-दिवस के अवसर पर भारत की शाम चार बजे होने वाले दो दिवसीय अंतरराष्ट्रिय कवि सम्मेलन में शामिल होने के लिए मुझे कैलिफोर्निया की रात साढ़े तीन बजे जगना ही था।

अभी मेरा चुप रहना ही उचित था...। अमेरिका में बस रहे बच्चों का काम तो अंग्रेजी से ही चल रहा है या भारत में भी अंतरराष्ट्रीय कम्पनियों में नौकरी करने से अंग्रेजी से काम चल जाता.. आपस में दोनों अंग्रेजी में ही गिटपिट कर लेते हैं... सुबह-सुबह हिन्दी में दिया ज्ञान उन्हें ज्यादा क्रोधित करता।

 सुबह *दस बजे* नाश्ते के मेज पर

"हिन्दी को राष्ट्रभाषा क्यों बनाई जाए.. ? तर्क से मुझे बताने की कोशिश करना ...।" मेरे पुत्र ने पूछा।

"क्यों नहीं बनाई जाए उसके पक्ष में एक तर्क तुम ही दो।" अब मैं विमर्श के लिए अपने को तैयार कर ली थी।

"तुम मम्मी बोलते-बोलते.. माँ बोलने पर क्यों आ गए..! क्या तुमलोगों को याद है एक बार निजी वाहन से अहमदाबाद से सोमनाथ जाते समय तेज भूख लग गई थी... वाहन चालक ने एक जगह गाड़ी रोकी और हमें खिचड़ी भोजन कर लेने का सुझाव दिया था। हमलोग राजगढ़ खिचड़ी खाये और उसका स्वाद हमलोगों की आत्मा में बस गया..। मुझे या यों कहो हमारे परिवार में सभी को.. खिचड़ी बेहद पसंद है... चावल दाल वाली चलती है.. तहरी सब्जी वाली दौड़ती है... घी, दही, पापड़, चोखा, आचार के संग वाली... लेकिन खिचड़ी भाषा, धोखा वाली होकर नजरों में चुभती है...।. सभी क्षेत्रीय भाषा का सम्मान करती हूँ। लेकिन आजादी अंग्रेजों से ली गई..! हिन्दुस्तान व हिन्दी लेखन में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग उचित समझने वाले... अंग्रेजी लिखते समय यह दलील क्यों नहीं दे पाते हैं कि अंग्रेजी बोलने व लेखन में हिन्दी शब्दों का प्रयोग भी उचित है..?"

मध्याह्न ‘ढ़ाई बजे’ भोजन के मेज पर,

"साऊथ के चारों राज्यों में ऑटो-गाड़ी चलाने वाले हिन्दी सीख रहे बोल रहे। वहाँ जाने वाले अन्य राज्यों के लोग तमिल कन्नड़ इत्यादि क्यों नहीं सीख रहे ?” मेरी बहू का सवाल था।

"जिन्हें जिस देशज भाषा की आवश्यकता पड़ती है वे उस भाषा को जरुर सीख लेते हैं। मैं बहुत सारे बिहारियों को जानती हूँ जो कन्नड़ तमिल उड़िया मराठी बांगला अच्छे से बोल-समझ लेते हैं...,"

विमर्श का रूप बहस में बदल रहा था.. । घर में तनाव बढ़ रहा था।

 "तुम मेरी बहू कन्नड़ हो, अगर तुम कोंकणी ही बोलने के जिद पर अड़ी रहती तो...?"

रात्री भोजन के बाद सोने जाने के पहले का पटाक्षेप करने वाला मेरा प्रश्न मेरी ओर से था... कैलीफोर्निया में १४ सितम्बर २०२०, रात के बारह बजकर पैतीस मिनट हो रहे थे..

उदाहरण देने का तात्पर्य यह था कि एक राष्ट्र एक भाषा होने के आन्दोलन की आवश्यकता महसूस करती हूँ।  यूनेस्को हिन्दी के ख़िलाफ़ भी बोल रहा है और हिन्दी विश्व में व्याप्त होती जा रही है । अमेरिका के विश्वविद्यालयों में दूसरी भाषा के रूप में पढ़ना अनिवार्य होता जा रहा है । भारत आने वाले हिन्दी सीखते है। क्योंकि हिन्दी हिन्दुस्तान की भाषा मानते हैं : अब उन्हें मलयालम कन्नड़ सीखने पर मजबूर किया जाए क्या कहकर? हिन्दी की सदैव जय हो.. विश्व हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई!

     - विभा रानी श्रीवास्तव

           ‌ पटना - बिहार

      हिन्दी हमारी राष्ट्रीय भाषा है। किसी भी देश की उन्नति के लिए भाषा का विकसित व पल्लवित होना देशहित के लिए बहुत जरूरी है। मेरे लिए हिन्दी उतनी ही आवश्यक है जितनी जिवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता। इसी भाषा में ज्ञान अर्जित करके ही मैंने पुरातन, महान सांस्कृतिक विरासत को खोजा, जाना और समझा है और इसी ज्ञान और भाषा को अब मैं हिन्दूस्तान के साथ साथ पुरी दुनिया के लोगों के साथ बांटना चाहती हूँ। इसी भाषा के माध्यम से मेरे देश में रह रहे सुदूर पूर्व के लोगों को पश्चिम व दक्षिण के लोगों को उत्तर के साथ जोड़कर एक  शांतिमय अखंड भारत के सपने को साकार करना चाहती हूँ। मेरे जीवन का यही उद्देश्य है और यही मंजिल।  साहित्य सृजन के माध्यम से मैं हिन्दी भाषा के प्रचार और प्रसार के लिए विभिन्न संस्थाओं से जुड़ी हुई हूँ और अलग अलग राज्यों में जाकर हिन्दी का प्रचार और प्रसार कर रही हूँ। 

    - एडवोकेट नीलम नारंग

          मोहाली - पंजाब 

     हम सभी भारतीय जनमानस के जीवन में हिन्दी भाषा की भूमिका को यूं तो शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है फिर भी कह सकते हैं कि हिन्दी भाषा हमारे जीवन में प्राण वायु के समान महत्वपूर्ण स्थान रखती है। एक अबोध बच्चे के मुख से पहला उच्चारण "मां"अथवा "अम्मा" का निकलता है जो कि हिन्दी भाषा का ही शब्द है और यह शब्द सुनकर नवप्रसूता को सम्पूर्ण मातृत्व सुख प्राप्त होता है।हमारा चिंतन,मनन सभी कुछ हिंदी भाषा में ही सुगमतापूर्वक होता है। हम भले ही बहुभाषी हों, अनेक भाषाओं के जानकार हों परंतु हमारा मूलचिंतन सदैव ही अचेतन अवस्था में भी हमारी मूलभाषा अर्थात मातृभाषा में ही होता है। आज हिंदी भाषा का प्रयोग किसी पिछड़ेपन का नहीं वरन एक गौरव का प्रतीक है।आज विश्व के एक बड़े भू भाग पर बोली जाने वाली भाषा के रूप में हिंदी की प्रसिद्धि किसी परिचय की मोहताज नहीं है। हिंदी शब्द कोष के समृद्ध भंडार के समक्ष मात्र आदि भाषा संस्कृत ही अपने ऊंचे भाल के साथ खड़ी दिखाई देती है। हमारे जीवन में यदि हिंदी को शून्य समझा जाए तो सार्वजनिक जीवन के चिंतन और मनन का स्तर भी स्वतः ही शून्य हो जायेगा। हिंदी हमारे देश की चारों दिशाओं को जोड़ने के लिए सूत्रधार का कार्य करती है और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण वर्तमान में दक्षिण भारतीय फिल्मों के हिंदी रूपांतरण की बढ़ती लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है।हिंदी भाषा ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसमें कई बोलियों का समावेश पाया जाता है। हिंदी भाषा मेरी दृष्टि में सभी भाषाओं की मेरुदंड है जिसके बिना सभी भाषाएं अपने सुंदर स्वरूप से वंचित हो जाएंगी।

    - पी एस खरे "आकाश" 

     पीलीभीत - उत्तर प्रदेश

       हिन्दी भाषा की उपयोगिता हमारे  जीवन में सदैव से , है, थी, और रहेगी। भारतीय संस्कृति के नस- नस में हिन्दी व्याप्त है। मिडिया, समाचार, सिनेमा सब हिन्दी भाषा से संचालित है जो जन जन तक आसानी से पहुॅऺच जाती है। यूं तो हिन्दी की उपयोगिता हर क्षेत्र में है।मेरी मातृभाषा हिन्दी हीं है। लगभग हर बच्चा  जन्म के बाद से पहला शब्द माॅऺ हीं बोलता है जो हिंदी में हीं होती है।  भारत देश में   सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिन्दी की भूमिका अद्भुत है। भारत  में भाषाई विविधिता के कारण हिन्दी को राष्ट्रभाषा तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन सरकारी कार्यालयों में हिन्दी की प्रमुखता के कारण इसे  राज्य भाषा का दर्जा मिला हुआ है। मुझे भी हिन्दी बोलना, पढ़ना सब बहुत पसंद है इसीलिए मेरे जीवन में हिन्दी की अपनी अति खास भूमिका है। मुझे अपने हिन्दी भाषी  होने  पर अभिमान है । बस जल्द से जल्द हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया जाए यही हम सभी की अपेक्षा है सरकार से।

            - डॉ. पूनम देवा 

             पटना - बिहार

विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक क्षेत्रों के मेल से बने हमारे विशाल भारतवर्ष में प्रत्येक क्षेत्र की अपनी विशिष्ट बोली और भाषा है। वही उस क्षेत्र की पहचान भी है। किंतु एक ऐसी भाषा जो इन सभी क्षेत्रों को जोड़ने का काम करती है वह है हमारी प्यारी हिन्दी भाषा।

         हिन्दी हमारी राजभाषा है, जो हमारे  देश की विविधता में एकता का एक प्रबल प्रतीक है। हिन्दी के माध्यम से ही विभिन्न भाषा भाषी क्षेत्र के लोग आपस में संवाद करने में सफल होते हैं और विचारों का आदान-प्रदान करते हुए अपनी-अपनी संस्कृति का प्रचार प्रसार भी कर सकते हैं। हिन्दी जैसी किसी एक भाषा के अभाव में देश के विभिन्न क्षेत्र एक सीमित दायरे में ही सिमट के रह सकते हैं। क्योंकि क्षेत्रीय भाषा बस उस विशेष क्षेत्र के लोगों के ही समझ में आ सकती है, अन्य क्षेत्र के लोग वहाँ की संस्कृति और परंपराओं से अनभिज्ञ ही रह सकते हैं। लेकिन एक आम भाषा के माध्यम से यह सभी क्षेत्र आपस में जुड़ते हुए एक दूसरे की संस्कृति को समझते हुए स्नेह का आदान-प्रदान करते हैं तथा भाईचारे की भावनाओं को व्यक्त करते हुए एकता की एक मिसाल प्रस्तुत करने में सफल हो सकते हैं। 

          इसी भाँति किसी के व्यक्तिगत जीवन में भी हिन्दी का उतना ही अधिक महत्व हो जाता है वैसे तो आजकल अंग्रेजी का वर्चस्व माना जाता है किंतु हमारे देश में अभी भी ज्यादातर लोग एक आम भाषा के रूप में हिन्दी का ही प्रयोग करते हैं।  हमारे देश में ही क्यों, हिन्दी तो  सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में संपूर्ण विश्व में भी तीसरा स्थान प्राप्त कर चुकी है।  इसकी मीठी बोली और इसका सरल व्याकरण विश्व भर के भाषा प्रेमियों को स्वतः ही अपनी ओर आकर्षित करता है। विश्व भर के साहित्यकार इसे एक विशुद्ध वैज्ञानिक भाषा के रूप में स्वीकार कर चुके हैं। हमें पूर्ण आशा है कि अपने उत्तरोत्तर प्रचार-प्रसार के साथ ही  हिन्दी विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने में अवश्य ही सफल हो सकेगी। इसके लिए हम भारत वासियों को भी सतत प्रयास करते हुए अपने दैनिक क्रिया-कलापों के साथ ही साथ कार्यालय आदि में भी इसी भाषा के प्रयोग पर बल देना होगा तथा अपने सभी कार्यों का संपादन हिन्दी भाषा के माध्यम से ही करने की प्रतिज्ञा लेनी होगी। साथ ही साथ अपने आसपास के लोगों को भी इसी भाषा के प्रयोग के लिए प्रेरित एवं उत्साहित करना होगा।

           - रूणा रश्मि 'दीप्त'

               रांची - झारखंड

        हिंदी भाषा एक लेखक के जीवन में केवल एक संप्रेषण का माध्यम नहीं है, बल्कि यह उनकी सोच, अभिव्यक्ति और रचनात्मकता की आत्मा है। भाषा केवल शब्दों का संग्रह नहीं है बल्कि यह भावनाओं और अनुभवों को व्यक्त करने का एक जीवंत माध्यम है,यह लेखक के संवेदनाओं को व्यक्त करता है। हिंदी भाषा अपनी सहजता, सरलता और गहराई के कारण भावनाओं को अभिव्यक्त करने में सहायक होती है। एक लेखक के अनुभव, प्रेम, दुःख, संघर्ष और खुशी को हिंदी के माध्यम से सहजता से व्यक्त किया जा सकता है। हिंदी की समृद्ध शब्दावली और भावात्मक क्षमता उनके विचारों को जीवंत बना देती है। हिंदी भाषा हमारी सांस्कृतिक पहचान का माध्यम है। यह भारतीय संस्कृति, परंपराओं और समाज का प्रतिनिधित्व करती है। लेखक अपने लेखन के माध्यम से हिंदी में न केवल अपनी कहानियाँ बुनता है, बल्कि समाज के मूल्यों, रीति-रिवाजों और समस्याओं को उजागर भी करता है। हिंदी उन्हें अपने समाज से जोड़े रखती है और उनकी रचनाएँ लोगों के दिलों तक पहुँचती हैं हिंदी भाषा की कविताएँ, कहानियाँ, नाटक और उपन्यास लेखक को उनके साहित्यिक कौशल को विकसित करने में मदद करती हैं।इससे उसकी रचनात्मकता को प्रोत्साहन मिलता है। हिंदी साहित्य के दिग्गज लेखक और उनकी कृतियाँ, जैसे मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, आदि, एक लेखक को प्रेरणा देते हैं। यह विविधता और समृद्धि का आधार भी है। हिंदी भाषा में क्षेत्रीय बोलियाँ, लोक साहित्य, और कहावतें हैं, जो एक लेखक को अपनी रचनाओं में विविधता और गहराई जोड़ने की क्षमता प्रदान करती हैं। यह भाषा उन्हें अपनी जड़ों से जुड़े रहने और नई पीढ़ी के लिए लोक कथाओं और परंपराओं को संरक्षित करने का अवसर देती है। एक लेखक अपने लेखन के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का प्रयास करता है। हिंदी भाषा उन्हें जनसामान्य तक पहुँचने में मदद करती है, क्योंकि यह भारत में सबसे व्यापक रूप से बोली और समझी जाने वाली भाषा है। सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर लिखा गया उनका साहित्य लोगों को जागरूक और प्रेरित करता है। हिंदी भाषा में लेखन करने से लेखक अपने पाठकों के दिलों तक पहुँच पाता है। उसकी कहानियाँ और कविताएँ पाठकों की भावनाओं से जुड़ती हैं और उन्हें अपने जीवन का हिस्सा महसूस कराती हैं। हिंदी भाषा के माध्यम से लेखक साहित्यिक धरोहर को समृद्ध करता है। वह अपनी कृतियों से हिंदी साहित्य के खजाने में नए विचार, नई कहानियाँ और नए दृष्टिकोण जोड़ता है, जिससे यह भाषा और अधिक जीवंत और प्रासंगिक बनती है। हिंदी भाषा एक लेखक के जीवन में सिर्फ एक संवाद का साधन नहीं, बल्कि उनकी आत्मा की अभिव्यक्ति और उनके समाज और पाठकों से जुड़ाव का आधार है। यह भाषा उन्हें सृजनात्मक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक पहचान, और सामाजिक जिम्मेदारी का एहसास कराती है। एक लेखक के लिए हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि उनकी सोच और रचनात्मकता का अद्भुत माध्यम है।

      - सीमा रानी    

      पटना - बिहार

      जन्मदात्री मां, जननी, संसार में लाती है, उससे परिचय कराती है, वात्सल्य उडेलती है, पालना करती है, बाल्यावस्था में सुरक्षा सुनिश्चित करती है।  वह जो बोलती है वह मातृभाषा कहलाती है। उसके द्वारा वह बच्चों को प्रारंभिक संप्रेषण ही नहीं सिखाती, संस्कार सृजना भी करती है। मेरे लिए मातृभाषा को भाषा मां कहना अधिक श्रेयस्कर है। भाषा मां अभिव्यक्ति के माध्यम से परिवार व समाज से जोड़ती है, ज्ञान का स्वाभाविक माध्यम बनती है, आजीविका कमाना आसान करती है। व्यक्तित्व के विकास में भाषा मां व जन्मदात्री मां दोनों पूरक होती हैं । हम इन दोनों के उपकार को कैसे भूल सकते हैं? इन दोनों का दिल से सम्मान व इनकी यथासंभव सेवा करके ही हम अपना जीवन धन्य कर सकते हैं।  मेरी भाषा मां हिंदी है। मैं अपनी उपलब्धियां के लिए उसे कृतज्ञता भाव से कोटि-कोटि नमन करता हूं।

      भाषाओं के संबंध में मेरी सोच यह है कि ये सभी आपस में बहनों जैसी होती हैं। अपने देश की हो तो सगी बहनें, विदेशी हो तो रिश्ता- बहनें। अर्थात सभी अन्य भाषाएं भाषा-मोसियां बन जाती हैं। इनके प्यार से हम साहित्यिक दृष्टि से मालामाल हो सकते हैं। इसलिए हमें अधिकाधिक मालामाल होने के लिए यथासंभव अधिक से अधिक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। लेकिन इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी भाषा-मौसी से भाषा-मां के सम्मान को लेशमात्र भी ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए। 

       सभी जानते हैं कि भाषा बहने कभी भी आपस में नहीं लड़ती बल्कि साहित्यिक विवर्श में एक दूसरे का सहयोग करके खुश रहती हैं। स्वार्थी लोग ही ओछी मानसिकता व निजी स्वार्थ के हित वर्धन के लिए उनमें टकराव पैदा करने की कोशिश करते हैं। हिंदी व अंग्रेजी के संबंध में तो संकुचित भाषा राजनीति भी एक विलेन के रूप में उभरी है। तमिलनाडु, बंगाल, पंजाब, आदि में तो हिंदी विरोधी आंदोलन कार्य भी हुए हैं।

        मैं उत्तर प्रदेश से हूं। मैंने एम. ए. तक की पढ़ाई हिंदी माध्यम से की है। मेरे एम.ए. वाला लघु-शोध ग्रंथ, यूपी सरकार के वजीफ़े वाला लघु शोध-ग्रंथ व पीएचडी वाला 500-पृष्ठीय शोध-प्रबंध तथा अतिरिक्त 10  शोध-पत्र व आलेख अंग्रेजी में थे लेकिन 1978 के पश्चात लिखे गए लगभग 45 शोध- पत्रों/आलेखों में से मात्र पांच ही अंग्रेजी में रहे। हुआ यूं कि 1978 में पानीपत के वरिष्ठ पत्रकार एवं लोकप्रिय सप्ताहिकी 'अपना पक्ष' पत्रिका के संस्थापक स्व. श्री राकेश मित्तल के सद्प्रयास से स्व. डॉ. वेद प्रताप वैदिक का एक वक्तव्य आर्य कॉलेज में आयोजित हुआ था। उनके जोशीले, तूफानी संबोधन के पश्चात मैं अपनी भाषा-मां हिंदी के प्रति और भी नतमस्तक हो गया था। उन्होंने तो अंग्रेजी तथा उसकी मानसिकता को हिंदी की प्रगति में एक रोड़ा मानते हुए अंग्रेजी की टंकण मशीनों को उठाकर फेंक देने तक का आह्वान कर दिया था। मेरा पूरा अवचेतन हिंदी मां के प्रति कृतज्ञता से भर गया था।

        जब मैं कॉलेज में प्राचार्य बन गया तब एम ए के मेरे छात्रों ने 2001 में मुझसे वैलेंटाइन डे मनाने की अनुमति मांगी।  मैंने उन्हें कुछ शिक्षा देने के लिए इस दिवस को 'सर्व प्रेम दिवस' के रूप में मनाने की स्वीकृति दी, इस शर्त के साथ कि बैनर पर अंग्रेजी में वैलेंटाइन डे लिखकर उसे क्रॉस किया जाएगा तथा हिंदी में 'सर्वप्रेम दिवस' लिखा जाएगा। विद्यार्थियों ने उसे सहर्ष स्वीकार भी किया था।

        2012 में स्व. डॉ. 'कुमार' पानीपती के द्वारा मुझे 'अदबी मरकज़' का एडवाइज़र बनाए जाने के पश्चात मेरे सुझाव पर सारे आयोजनों के निमंत्रण-पत्र त्रिभाषी बनाये गये, उर्दू व अंग्रेजी के साथ हिंदी को  शामिल करते हुए।  

      1978 के पश्चात जहां-जहां स्थितियां मेरे अधिकार में रही मैंने हमेशा सभी निमंत्रण-पत्र आदि हिंदी में ही छपवाए। अपने तीनों बच्चों की शादी के निमंत्रण-पत्र भी हिंदी में ही रखें। जहां मजबूरी नहीं होती, मैं हस्ताक्षर भी हिंदी में ही करता हूं।

      ये ही मेरा अपनी भाषा मां हिंदी के प्रति मुख्य-मुख्य सम्मान संप्रेषण रहा है।  भाषा मां हिंदी को मेरा पुनः कोटिश: नमन।

           - डॉ. ए.पी.जैन

         पानीपत - हरियाणा

       समय बदल रहा है, परिवेश बदल रहा है, लोग और उनका जीवन बदल रहा है, विचार और मान्यताएँ बदल रही हैं…तो जब सब कुछ बदल रहा है तो हिन्दी भाषा का स्वरूप भी तो बदलेगा ही। परिवर्तन प्रकृति का नियम है और इसी से विकास भी होता है। बदले समय और परिवेश में बदलते हिन्दी के स्वरूप से निराश होने की आवश्यकता क्यों और किसलिए है? भाषा तो बहती नदी की तरह है। नदी की तरह ही भाषा भी अपना स्वरूप/आकार बदलती रहती है। भले ही वर्तमान में ऐसा लग रहा हो कि हिंदी उपेक्षित होते-होते हाशिए पर जा रही है। अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों की बढ़ती संख्या, अंग्रेज़ी के माध्यम से विदेशों में नौकरी पाने की चाह नई पीढ़ी में बढ़ती जा रही है, मगर अनेक बातें ऐसी हैं जो हिंदी को एक मज़बूत आधार प्रदान करती जा रही हैं। राजनैतिक क्षेत्र में संसद से सड़क तक हिंदी, हिंदी फ़िल्मों का बढ़ता प्रभाव, साथ ही साथ भोजपुरी आदि आंचालिक बोलियों में बनने वाली फ़िल्में, हिंदी समाचारपत्रों की दिनोंदिन बढ़ती पहुँच अपनी सभ्यता और संस्कृति के प्रति बढ़ती जागरूकता, योग-प्राणायाम आदि का प्रचलन, आयुर्वेद की बढ़ती माँग अनेक ऐसे बिंदु हैं जो हिंदी और भारतीय भाषाओं के उज्जवल भविष्य की ओर इंगित कर रहें हैं। सबसे अधिक आशान्वित करने वाला तथ्य यह है कि आधुनिक तकनीक ही हिंदी की सबसे बड़ी रक्षक बन कर उभरती दिखाई दे रही है।इस प्रकार के सॉफ़्टवेयर, कम्प्यूटर आदि आते जा रहें हैं जो तत्काल अनुवाद कर कोई भी सूचना हिंदी भाषा में उपलब्ध करा सकते हैं। ऐसी सुविधाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं और किसी भाषा पर निर्भर होने की मजबूरी समाप्त होती जा रही है। एक समय ७० एवं ८० के दशक में अंग्रेज़ी के बिना काम नहीं चलेगा ऐसा लगता था, मगर आधुनिक तकनीक ने इस निर्भरता को समाप्त करना प्रारंभ कर दिया है। संविधान के अनुच्छेद ३४३ में इसे भारत संघ की राजभाषा कहा गया है। अनुच्छेद ३५१ इसके विकास के लिए भारत संघ की सरकार को अनेक निर्देश भी देता है। १९७८ से आई ए एस जैसी उच्च परीक्षाओं में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं को परीक्षा का माध्यम मान लिया गया है। विशाल हिंदी भाषी जनसंख्या भी इसके आधार को मज़बूत करती है। सभी भारतीय भाषाओं में हिंदी के स्वर और व्यंजनों की भाँति ही होता है। यदि हिंदी आती है तो बंगला, असमिया, उड़िया आदि भाषाओं को बहुत कम समय में सीखा जा सकता है अर्थात् इन भाषाओं का हिंदी से सीधा संबंध है। ठीक इसी प्रकार कन्नड़, मलयालम और तेलुगु  भाषाएँ भी हिंदी के अति निकट हैं। मराठी, गुजराती, राजस्थानी और पंजाबी भाषाएँ तो और भी अधिक हिंदी के निकट दिखाई देती है। हिंदी और भारतीय भाषाओं की निकटता इसे और सरल बनाती है। तमिल अवश्य हिंदी से दूर दिखती है मगर वहाँ भी आठ सौ शब्द हिंदी के प्रयोग किए जाते हैं।इतना व्यापक प्रभाव और एक अति विशाल संख्या बोलने-समझने वालों की। कोई भी विषय इसके माध्यम से पढ़ा और पढ़ाया जा सकता है। किसी भी कार्यालय का कार्य इस भाषा में हो सकता है। समाचारपत्र, पत्रिकाएँ, सरकारी आदेश सभी कुछ इसमें है और हो रहा है।   हिंदी के प्रति मेरा दृष्टिकोण आशावादी है लेकिन साथ ही इसे अपनाने, इसमें सृजन करने, अनुवाद से इसका भंडार भरने तथा इसे सरल, समृद्ध और सभी को स्वीकार्य हो, विज्ञान, तकनीकी की अंग्रेजी पुस्तकों का विद्यार्थियों के लिए ग्राह्य हिन्दी अनुवाद उपलब्ध हो, हिन्दी रोजगार देने में व्यापार करने में सक्षम हो। ऐसा हो भी रहा है पर यहाँ हमें रुकना नहीं है।हिन्दी को ऐसा बनाने के लिए घोर परिश्रम तो करना ही पड़ेगा। जितना कर रहे है उससे दुगुना-तिगुना करना पड़ेगा। प्रत्येक व्यक्ति को यह सोचना होगा कि वह हिन्दी के लिए क्या और कैसे कर सकता है। जन-जन को, संस्थाओं को, शैक्षिक प्रतिष्ठानों को युद्ध स्तर पर कार्य करना होगा। हम अनुकूल परिस्थितियों के भरोसे तनिक भी शिथिल न पड़ें।

       - डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई 

         देहरादून - उत्तराखंड

      हमारे यहाँ जीवन में  हिन्दी भाषा का स्थान सर्वोपरी है।हिंदी पत्र-लेखन और बाल-पत्रिकाओं से हिंदी पढ़ने का पूर्ण प्रोत्साहन बढ़ता चला गया। हिंदी फिल्मी गीत और हिंदी काव्य-पाठ ने भी विद्यालय में भाग लेने से विशेष रूप से साहित्य के बारे में जानने की रूचि पैदा होती रही । इसीलिए हिंदी मेरा प्रिय विषय बन गया। मैने स्कूल में भी तीस साल विधार्थियो को हिंदी में पढ़ाई करवाई । हिंदी अध्यापन मेरी आजीविका का भी साधन रहा। मेरी कलम   ने  सारा लेखन कहानी ,कविता, आलेख ,विचार  सब  अपनी मातृभाषा हिंदी में ही महान सुख ,आनंद  और सौभाग्य प्रदान किया  ।  तभी मुझे हिंदी भाषा और साहित्य पर गर्व है। 

                - रेखा मोहन 

           पटियाला - पंजाब

     भाषा का उद्देश्य कहो या व्यवहार में भाषा की अनिवार्यता का होना, हमारे विचारों को व्यक्त करना है। पशु-पक्षी भी आपस में अपनी भाषा बोलकर अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करते हैं। हम तो मनुष्य हैं।भारत में अनेक क्षेत्रीय भाषाएं बोली जाती है किंतु हिंदी भाषा एकता लाती है।  भारत ही ऐसा इकलौता देश है  जिसकी राष्ट्रभाषा और राजभाषा एक ही है। हिंदी संस्कृत भाषा से ही निकली है,और संस्कृत काफी जगह प्रचलित है। हिंदी सरल और अपने माधुर्य के गुणों की वजह से सुगमता से लोगों की जबान चढ़ जाती हैं अतः धीरे-धीरे लोग हिंदी बोल अपना काम निकालने लगे। हिंदी हमारी पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेक्षक एवं परिचायक भी है। हिंदी विश्व की संभवतः वैज्ञानिक भाषा है जिसका उदय संस्कृत से हुआ है। दुनिया भर में समझने बोलने और चाहने वाले  बहुत बड़ी संख्या में हैं। आज हिंदी विश्वभर में दूसरी और भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी भाषा नए वैश्विकस्तर पर अधिक चलन में आने के कारण अंग्रेजी भाषा को पीछे छोड़ दिया है। कहना यह है कि आज हिंदी भाषा फैल रही है, सभी लोगों की जुबान पर आसन लगा कर बैठ गई है ।आज हिंदी विश्व भाषा बन गई है। टीवी धारावाहिक मिडिया, सिनेमा, विज्ञापन,विद्यालय, पत्रकारिता,उच्च शिक्षा में हिंदी भाषा के बढ़ते प्रयोग से हिंदी माननीय   भाषा का रुप ले चुकी है। बढ़ती लोकप्रियता की वजह से आज हिंदी भाषा हमारे जीवन में बखूबी हर क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रही हैं। अपनी लोकप्रियता की वजह से आज वैश्विक परिदृश्य में रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ गई है।  आज हमारा भारत देश काफी सशक्त है इसकी एक ही वजह है हमारी सरल ,सुगम हिंदी भाषा।रविन्द्र नाथ जी ने सही कहा था --- भाषा वहीं जीवित रहती है जिसे लोग अधिक बोलते हैं।आज हिंदी भाषा का सम्मान इतना बढ़ गया है कि भारत की यह भाषा विदेशों के पाठ्यक्रम में भी अपना स्थान बना लिया है। आज हिंदी को लेकर चलने वाला भारत देश से विश्व की बड़ी हस्तियां सुझाव लेती है। 

            - चंद्रिका व्यास 

             मुंबई - महाराष्ट्र




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