वरिष्ठ पत्रकार राकेश मित्तल की दूसरी पुण्यतिथि के अवसर पर चर्चा - परिचर्चा का आयोजन व डिजिटल सम्मान पत्र



तन को भोजन चाहिए और मन को चाहिए विचार।अब ये विचार आंतरिक हों या फिर बाह्य।यदि आंतरिक हैं तो उन्हें व्यक्त करने का सशक्त माध्यम है भाषा।हिंदी क्योंकि हमारी मातृ भाषा है तो इससे अच्छा और उत्कृष्ट कुछ भी नहीं हो सकता है। हिंदी मेरी भक्ति और अभिव्यक्ति है।मेरी पूर्ण परिचय की परिपाटी है।इसके सिवाय कुछ और नहीं जिसके जरिए मैं अपने मन और मस्तिष्क को शांत रख सकूं या अपनी मनःस्थिति को व्यक्त कर सकता हूँ।

         हिंदी केवल भाषा ही नहीं बल्कि मेरी पहचान भी है।जिस वतन से आता हूं हिंदी उसकी आत्मा है।यह मेरे लिए पूज्य भी है।मेरे कर्म कांडों की वाहक और विचारों की पुष्टि भी है।यह मुझसे पहले मेरे संदेशों को पहुंचाने वाली दूत है।मेरी धमनियों में चलती बोलती प्रमाणिका है।हिंदी मेरे लिए मेरी सबकुछ है।साज और श्रृंगार भी है हिंदी। 

          - नरेश सिंह नयाल 

        देहरादून - उत्तराखंड

          अभिमन्यु की कथा बताती है कि माँ के गर्भ  से ही हमारी शिक्षा प्रारंभ हो जाती है। हमारे परिवेश में हिंदी रची- बसी है। हमारे जन्म  के संस्कार हिंदी या संस्कृत के मंत्रोच्चार से पूर्ण  होते हैं। फिर दादी - नानी से हिंदी की कहानियाँ सुनकर और संवाद करके हम बड़े  होते हैं। जीविकोपार्जन हेतु, थोड़े समय के लिए हम दूसरी भाषा का आश्रय  लेते हैं। दूसरी भाषा बोलचाल की हो लेकिन  उसके भाव को हम हिंदी में ही ग्रहण  करते हैं। जन्म से मरण तक सारे संस्कार  हिंदी में। अतः मेरे  जीवन  में हिंदी माँ के समान है। यह हमारी मातृ भाषा है।

         - कमला अग्रवाल 

   गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश

      मेरे जीवन में हिन्दी भाषा का स्थान सर्वोपरी है। मेरी सुबह हिन्दी मेरी रात हिन्दी मेरा जीना मरना सब हिन्दी । हिन्दी मेरी आत्मा में बसती है । हिन्दी मेरी मातृ भाषा है । मेरे अस्तित्व  की मेरे संस्कारों की पहचान है । हमारे सम्पर्क की भाषा है ।हिन्दी भाषा हमे एक दूसरे को जानने समझने में सहायक है , हम सहजता से घुल मिल जाते ,

हिंदी भाषा देश की एकता का सूत्र  धार है। हमारी अभिव्यक्ती का माध्यम है। पुरे विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रचार करने का श्रेय एक मात्र हिंदी भाषा को  ही जाता है। विश्व की सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा में हिन्दी का स्थान दूसरा आता है। भारत की आत्मा है हिन्दी । भारत में सबसे अधिक जो भाषा बोली जाती है वह हिन्दी है । इसीलिये इसे 14 सितम्बर 1949 को राज्य भाषा का दर्जा दिया गया .14 सितम्बर को पूरे भारत देश में हिन्दी दिवस के रुप मे मनाया जाता है ।

 भाषा की जननी और साहित्य की गरिमा हिंदी भाषा

 हिन्दी भाषा जन-आंदोलनों की भी भाषा रही है। 

हिंदी भाषा में जैसा  लिखा जाता है वैसा ही  पढ़ा  जाता है। इसमें गूँगे अक्षर  नहीं होते। इसीलिये इसके लिखने  और बोलने  में स्पष्टता है। हिंदी भाषा की एक विशेषता यह भी है कि इसमें निर्जीव वस्तुओं (संज्ञाओं) के लिए भी लिंग का निर्धारण होता है ।

 हिंदी  भारत की पहचान के साथ साथ   यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, है अच्छी  परिचायक  है। 

हिन्दी बहुत ही  सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है जिसे दुनिया भर में समझने, और बोलने और प्यार करने वाले लोग काफी बडी तादाद में है । हमारे देश का संचार का यह सर्व प्रथम साधन है .यह हमारी संस्कृति और सामाज को समझने मे और घुलने मिलने मे हमारी बहुत मदद करती है ।

        - डॉ.अलका पांडेय

           मुंबई - महाराष्ट्र

      हिंदी सब भाषाओं की पटरानी है, यह जन जन की भाषा है, यह हमारे मन की भाषा है,हमारे मन में जो भी विचार आते हैं  उनको शब्दों में जब उकेरना होता है तो केवल हिंदी में ही हम शब्द बद्ध करते है , हिंदी से हिंदुस्तान बना है, यह वतन की असल निशानी है, आजकल विदेशों में भी हिंदी का पाठन पठन बड़ रहा है, विदेशियों को भी हिंदी पढ़ना अच्छा लगता है, मैं खुद अमरीका जापान जाती हूँ तो हिंदी लोगों को पढ़ाती हूँ , हमारे बच्चे किसी भी देश में हो लेकिन हिंदी अपने बच्चों को पढ़ाना ज़रूरी समझते हैं,हमारा सारा ज्ञान संस्कृत भाषा में है और हिंदी जानने वाला संस्कृत आसानी से पढ़ लेता है और काफ़ी हद तक समझ भी लेता है, हिंदी विश्व में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है, हिंदी का भविष्य बहुत उज्जवल है। 

     - प्रो.सुदेश मोदगिल नूर 

        पंचकूला - हरियाणा 

      मैं जब इस भारत भूमि पर जन्मी और जब आंखें खोली तो मेरे मुख से मां शब्द का ही उच्चारण हुआ था और यह बड़े गर्व की बात है कि यह शब्द  हमारी मातृभाषा हिंदी का ही है जो यह हमारी देव भूमि भारत की पहचान भी है । मेरा  जीवन ,संस्कृति और संस्कार हिंदी भाषा में ही दर्शनीय हैं। प्रथम तो यह पूजनीय है क्योंकि देवनागरी लिपि की सरलता सहजता ने सबको रिश्तों की डोर में बांध रखा है । सभी देवताओं के नाम अ से ज्ञ तक के वर्णों से बने शब्द दैनिक जीवन में हमारी अर्चना के मूल  आधार हैं । अतः यह मुझे सनातन धर्म ,समाज , राष्ट्र और विश्व से जोड़ती है । मेरे अध्ययन - अध्यापन का मुख्य विषय भी हिंदी ही है। मुझे गर्वानुभूति होती है  कि मैं इसके विशाल साहित्य की अनुरागी होने के कारण  मेरा सारा लेखन कहानी ,कविता, आलेख ,विचार  सब  अपनी मातृभाषा हिंदी में ही करने  का महान सुख ,आनंद  और सौभाग्य प्रदान करता है ।  जयति जय जय हिंदी

         - डॉ. रेखा सक्सेना

       मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश

       हिन्दी बिना तो हम कुछ भी नहीं।हमारे जीवन में हिन्दी भाषा की भूमिका इतनी अहम है कि इसके अभाव में तो हम बेजुबान हो जाएंगे। हमारा जन्म ही हिन्दी भाषी प्रदेश, उत्तर प्रदेश में हुआ है। उसमें भी बिजनौर में, जहां की भाषा ही खड़ी बोली है,जिसे मानक हिन्दी कहा जाता है। हमने बोलना, पढ़ना, लिखना सब हिन्दी में ही सीखा और अब इसी के सहारे जीविकोपार्जन भी चल रहा है। लेखन के क्षेत्र में हमें इसी भाषा से पहचान मिली है।मन की अभिव्यक्ति हम हिन्दी भाषा में ही बखूबी कर पाते हैं। लिखते हैं तो देवनागरी लिपि में और बोलते हैं तो खड़ी बोली हिन्दी। कुल मिलाकर बात यह कि हिन्दी के बिना हम कुछ भी नहीं। अर्थात हिन्दी से ही हमारे जीवन में जीवंतता बनी हुई है।

   - डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'

         धामपुर - उत्तर प्रदेश 

         हिंदी हमारी मातृभाषा ही नही,हमारी विशिष्ट पहचान है । हमारी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम हमारी मातृभाषा हिंदी का मेरे जीवन में विशेष महत्व है। हिंदी के दम पर ही आज भारतीय संस्कृति दुनिया में कायम है ।  अनेकता में एकता, बसुधैव कुटुम्बकम और विश्व बन्धुत्व की भावना ,  जैसे सर्वगुण सम्पन्न  गुण हिन्दी की जननी सस्ंकृत ने पुत्री हिन्दी में कूट कूट कर भरे हैं।जिसके कारण आज भारत का मस्तक ऊचा है। और ये हिन्दुस्तान विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है। वेदवाणी--देववाणी-- संस्कृत भाषा जिसकी जननी है ।ऐसा लगता है कि "संस्कारवान पुत्री हिंदी "हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही है । चाहे विज्ञान का क्षेत्र हो या कम्प्यूटर का क्षेत्र  हो। विवेकानंद ,भारतेंदु जी और अटल जी के बाद आदरणीय मोदी जी ने हिंदी ही नहीं, हिंद- हिंदू -हिंदुस्तान को सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाया  है और सबसे मुख्य बात! अपनी मातृभाषा हिंदी के कारण हीं हम लेख ,लघु कथा ,कविता, संस्मरण चर्चा परिचर्चा के माध्यम से साहित्य जगत में अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सम्मानित और प्रोत्साहन स्वरूप "एक नहीं पहचान" उपलब्धि  के तौर पर भी पाते हैं।

निज भाषा उन्नति अहै,

             सब उन्नति का मूल। 

बिन -निज भाषा ग्यान के, 

             मिटे न हिय का शूल। 

                -  रंजना हरित 

         बिजनौर - उत्तर प्रदेश

      इतिहास गवाह है कि हिन्दी भाषा भारत की एकता, देशभक्ति, संस्कृति और समृद्धि का प्रतीक है, यही नहीं यह हमारे संविधान की अधिकारिक भाषा है और हमारी राष्ट्रीय भाषा के रूप में महत्वपूर्ण है, मेरा मानना है कि यह भाषा राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देती है क्योंकि इस भाषा में जो लिखा जाता है, वही पढ़ा भी जाता है, इसमें गूंगे अक्षर नहीं होते, देखा जाए कई महान लेखकों व कवियों ने इसी भाषा में अपने ज्ञान को प्रचलित किया जिसका प्रत्येक ज्ञानी ने लुप्त उठाया, जिनमें, मुंशी प्रेमचंद, हरिवंश राय बच्चन, कबीर दास, तुलसीदास जी, इत्यादि शामिल हैं, मैं हिन्दी भाषा की महानता को कभी नहीं भूल सकता और अक्सर इसी भाषा का प्रयोग हर रूप में करता हूँ क्योंकि इस भाषा को पढ़ने, लिखने, व सुनने में  किसी को भी कोई मुश्किल नहीं आती, यही नहीं यह दुसरी भाषाओं से आसान भी है और दूनिया में ज्यादा तौर पर बोली जाने वाली भाषा है, यह हमें भारत के सभी प्रांतों से जुड़ाती है, तथा एकता का सुत्र बाँधने में मददगार है, तभी तो कहा है, 

"हिन्दी है हम वतन है, 

हिन्दोस्तान हमारा"। 

        क्योंकि हिन्दी  भाषा ही एक मात्र भाषा है जो  सांस्कृतिक, एकता और राष्ट्र की पहचान बनाये रखने  के लिए अनिवार्य है, यही नहीं इस भाषा से यात्रा के अनुभव बेहतर होते हैं, दोस्ती में बढ़ावा   तथा सांस्कृतिक आदान, प्रदान में सुविधा होती है, यह सत्य है कि हिन्दी विश्व की प्रमुख भाषा ही नहीं है बल्कि भारत की  एक राजभाषा भी है तथा भारत में सबसे अधिक बोली  और समझी जाने वाली भाषा है तथा हिन्द से संबंध रखने वाली भाषा है, इसी भाषा ने हमें नई पहचान दिलाई है, यह भाषा हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है,इसिलिए इसे हिन्दोस्तान की  भाषा भी कहा जाता है , यह हमारी राष्ट्रभाषा का रूप ले चुकी है तथा हमारे देश  का गौरव और पहचान बन चुकी है, इसके प्रति प्रेम और सम्मान प्रकट  करना  हमारा  राष्ट्रीय कर्तव्य है, यह एक ऐसी भाषा है जिसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक साक्षर से निरक्षर तक प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति आसानी से बोल व समझ सकता है तभी यह विश्व की महान बोली जाने वाली भाषाओं में एक है, मैं हिन्दी भाषा में लिखने बोलने , समझने न समझाने में गर्व महसूस करता हूँ और अन्त में यही कहुंगा, 

"हिन्दी से हिन्दोस्तान है, 

तभी हमारा देश महान है, इस भाषा की उन्नति के लिए अपना सब कुछ कुर्बान है"। 

    - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

     जम्मू - जम्मू व कश्मीर

 वैसे तो मैं हिन्दी भाषी क्षेत्र का हूं और हमारे यहाँ हिन्दी भाषा का ही बाहुल्य है। इसीलिए मेरे रोम-रोम में हिन्दी बसी हुई है। महानगरों में रहने वाले मेरे कोई मित्रों या रिश्तेदारों से कभी मिलना होता है तो मैं उनसे मेरी ही यानी हिन्दी में ही बातचीत करता हूं। हाँ, कोई बात उन्हें यदि समझ में नहीं आती है तब अंग्रेजी में   बता देता हूं, वह भी केवल उस शब्द विशेष को। हिन्दी भाषा का विस्तार इतना अधिक है कि हर बात के लिए अलग- अलग शब्द उपलब्ध हैं।जिससे मुझे कोई भी बात कहने और  समझाने - समझने में सहजता और सरलता होती है। यही नहीं हिन्दी भाषा में इतनी लोकोत्तियाँ और  मुहावरे प्रचलित हैं कि अपने दिल की बात अपेक्षाकृत और गहराई से स्पष्टता के साथ बतलाने में सक्षम पाता हूं।। मैं, मेरे हस्ताक्षर भी हिन्दी में ही करता हूं। मेरे लेखन में भी मेरा पूरा प्रयास हिन्दी भाषा पर ही होता है।  संक्षेप में कहूं तो मैं तो हिन्दी में जीता-मरता हूं। इसका मतलब यह भी नहीं कि मुझे अन्य भाषा पसंद नहीं। मैं सभी भाषा का हृदय से आदर करता हूं और अवसर मिलने पर सीखता और समझता भी हूं।आशय यह कि हिन्दी मेरे लिए माँ और अन्य भाषाएं मेरी मौसी। बस, इतना ही।

         - नरेन्द्र श्रीवास्तव

        गाडरवारा - मध्यप्रदेश

        हिन्दी हमारी प्यारी भाषा है, इसका हम सभी के जीवन में बहुत महत्व है। यह केवल संचार के उपयोग तक ही सीमित नहीं है बल्कि भारत जैसे राष्ट्र में जन-जन की भाषा है। भारतीय संस्कृति, शिक्षा, व्यवसाय, सामाजिक एकता अखंडता में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी भाषा जैसे बोली जाती है वैसे लिखी जाती है। यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है इसके अलावा अंग्रेज़ी भाषा की भान्ति इसमें साइलेंट लेटर नहीं होते। यह एक आसान भाषा है। भारत के 80 प्रतिशत लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं अहिन्दी भाषी भी इस भाषा को आसानी से समझ जाते हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि हिन्दी दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। यह देवभाषा संस्कृत का सरलतम रूप मानी जाती रही है। हिन्दी मेरे देश की जान है पहचान है, मुझे हिन्दी भाषी होने पर गर्व है। मेरे जीवन में हिन्दी भाषा का विशेष महत्व है। भले ही आज की पीढ़ी को अंग्रेजी भाषा के प्रति लगाव है लेकिन अपने भावों की अभिव्यक्ति आसान तरीके से हिन्दी भाषा में ही संभव है। मैं अपने परिवार में भी हिन्दी भाषा की महत्ता को बनाये रखने पर सदैव ध्यान देती हूँ। हिन्दी भाषा हम सब की भाषा, इस का विकास अति आवश्यक है। 

        - शीला सिंह

 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश

     मां मातृभूमि मातृभाषा और राष्ट्रभाषा हिन्दी मेरे लिए हिंदी भाषा का महत्व उसकी उपयोगिता व जीवन के हर क्षेत्र में व्यवहारिकता मां से होते हुए राष्ट्रभाषा तक है।जिसके बिना हम गूंगे से हैं।कारण मेरे व मेरे आस पास के लोगों के लगभग सभी कार्य इसी भाषा के माध्यम से सम्पन्न् होते हैं ।इस बात का गर्व है कि देववाणी की पुत्री अपनी स्वीकार्यता के चलते आज भारत में ही नहीं वैश्विक दृष्टि से प्रासंगिकता बढाने में सफल हुई है ।हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ दिए हैं ।भारतेन्दु बाबू जी की पंक्ति निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति का मूल। तीव्रता से सार्थकता की ओर है।जय हिंद जय हिंदी ।

        - शशांक मिश्र भारती 

     शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश

    हिंदी का हमारे जीवन में सर्वाधिक महत्व है। हमारे देश की राजभाषा होने के बावजूद भी आज भी अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है। जो हमारी मानसिक गुलामी का परिचायक है। इसीलिए भारत सरकार द्वारा  हर साल 14 सितंबर को राजभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है और हर कार्यालय में हिंदी में  कार्य करने पर जोर दिया जाता है। इसीलिए हिंदी में ज्यादा काम करने पर पुरस्कृत करने का भी चलन है।   किसी भी भाषा की तरह हिंदी भी हमारी सोच की मौलिक भाषा है वह सिर्फ अनुवाद के लिए ही नहीं आपसी संवाद  के लिए भी पूरी तरह सहजता से घुल- मिल जाने वाली है।

    हिंदी हमारी राजभाषा होने के बावजूद भी ग्यारह राज्यों और  तीन संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। विभिन्न योजनाओं की जानकारी हिंदी में मिलने पर बहुत से कमजोर और गरीब तबके के लोगों को फायदा हुआ है और वह भी देश की मुख्य धारा से जुड़ने लगे हैं। मेरी सारी पढ़ाई हिंदी माध्यम में हुई  है इस पर मुझे  संकोच नहीं गर्व होता है कि मैं अपने देश की भाषा रूपी मिट्टी  की जड़ से आज तक जुड़ी हुई हूँ।  विश्व में भारतीय समुदाय के करोड़ों लोगों की संपर्क भाषा हिंदी  है । इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को एक नहीं पहचान मिली है। अंत में रवीन्द्र नाथ टैगोर के इस कथन को दोहराना चाहती हूं।

   " सारी भारतीय भाषाएं नदियां  हैं और हिंदी महानदी।"

      - अर्चना मिश्र

  भोपाल - मध्य प्रदेश

      परिवेश की दृष्टि से बालक का प्रथम परिचय अपनी ' माँ ' से होता है । वार्तालाप के प्रथम स्वर भी उसके मुख से 'माँ '  के लिए ही निकलते हैं । जब उसके स्वरों में भाषा प्रवेश करती है , स्वयं को व्यक्त करने के प्रयत्न में जब सीखता है तो उसके पास 'माँ ' की ही भाषा होती है क्योंकि 'माँ ' उससे अपनी ही भाषा में वार्तालाप करती है । अचेतन में उसी भाषा में उसका मस्तिष्क और तंद्रा स्वयं उससे , हर पल कोई न कोई वार्तालाप  करता रहता है , हम उसी भाषा में अपनी विचार तंद्रा और दिनचर्या को परिपक्व करते हैं , उसी से आलिंगनबद्ध होकर अपने कार्यकलाप निर्धारित करते हैं । इसीलिए जो 'माँ ' की भाषा है , वही हमारी मातृभाषा बन जाती है । भारत की अधिसंख्य जनसंख्या किसी भी बच्चे का में भाषा की दृष्टि से प्रथम साक्षात्कार 'हिंदी ' से ही होता है और वह जीवन भर इसी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाता है । हिंदी उसके रक्त में रच - बस जाती है । हिंदी में बोलना , हिंदी में अपनी भावनाओं को व्यक्त करना उसके लिए सहज , सरल , स्वाभाविक और अपनत्व से भरपूर होता है । अपने काम की भाषा कोई भी बन जाए परंतु परस्पर लगाव की भाषा तो हिंदी ही रहती है । हिंदी , उसे माता के दूध के साथ प्रथम आहार के रूप में मिलती है और जीवन पर्यन्त उसके व्यक्तित्व का पोषण करती है । देश में तो हिंदी उसकी सामाजिकता को बलिष्ठ करती ही है , विदेश में जाकर या रहकर भी वह हिंदी भाषी व्यक्ति के साथ के लिए लालायित रहता है क्योंकि वह मानता है कि इसी भाषा में उसे कोई वह अपना मिल सकता जिससे वह अपने मन की बात बोल सकता है या उसके मन की सुन सकता है । वहां आत्मीयता प्राप्त करने  का एक ही सूत्र होता है और वह है " हिंदी " ।

 " हिंदी " में जब हम जीवन दर्शन से संबंधित कोई गूढ़ बात जाने - अनजाने कह जाते हैं , तब स्वयं को  गौरवान्वित महसूस करते हैं । इसीलिए हम भारतीयों के लिए  " हिंदी " अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है ।अब तो " हिंदी " विश्व पटल पर भी सर्व - स्वीकार्य होती जा रही है और इसके द्वारा स्वीकृत शब्द भारतीय सनातन संस्कारों के प्रतीक बन गए हैं जैसे " नमस्ते " , शब्द का उच्चारण करते ही हाथ आप से आप जुड़ जाते हैं , जो किसी भी व्यक्ति अभिवादन की सबसे आकर्षक मुद्रा है । इसमें आत्मीयता भी झलकती है ।

     - सुरेंद्र कुमार अरोड़ा 

 साहिबाबाद - उत्तर प्रदेश 

        जननीजन्मभूमिभाषाश्चस्वर्णगादपि गरीयसि,मातृ भाषा सर्वभाषा यां सर्वोपरि l जो शब्द माता के गर्भ से मेरे शरीर की रचना में सहायक रहें वह तो मेरे शरीर के एक एक सैल में गुथे हैं जो चाह कर भी अलग नहीं हो सकते l यही वे शब्द हैं जो मुझमें भारतीय संस्कार क़ा अंकुरण करते है या मुझे भारतीय होने की पहचान प्रदान करते है l हमारा भारत बहु भाषाओं क़ा देश है लेकिन हिंदी अपनी सरलता और सजलता से सभी धर्मों, भषाओ, रीति रिवाजो और परम्पराओं को एक सूत्र में बांधे है l कन्या कुमारी से ले कर कश्मीर तक और गुजरात से लें कर नागालैंड तक हिंदी अपना परचम लहरा रही है l राष्ट्र भाषा न सही लेकिन उससे भी बढ़ कर आज हिंदी पूरे देश की सम्पर्क भाषा बन चुकी हैं l  लेखन के क्षेत्र में भी आज सबसे अधिक लेखन हिंदी में ही हो रहा है l  हिंदी भारत की पहचान बन चुकी है जो निरंतर समृद्धि की ओर अग्रसर है l आज कोरोड़ो प्रवासी भारतीय विश्व में हिंदी क़ा प्रसार कर रहें हैं l उनको हिंदी भाषी होना उन्हें भारतीय विशेषताओ से परिचित करा रही है l उनमे से हिंदी लेखक, कवि, समीक्षक व पाठक विदेशियों में भी हिंदी सीखने की ललक पैदा कर रहीं है l हिंदी के प्रति मेरे कुछ भाव ---

                 (1)

हिन्द की भाषा हिंदी है उसकी पहचान हिंदी है ।

उसका सिरमौर हिंदी है उसका सम्मान हिंदी है।

उसकी मिट्टी से जन्मी है फली फूली उसी में  है 

हिन्द में रहने वालों का जगत में मान है हिंदी ।।

                      (2)

कृषक के मन की भाषा है मेरे मजदूर की हिंदी।

गैर अपना बनाने को करती  मजबूर ये हिंदी ।

सिंधु की लहरों से निकली हिन्द के माथ पर बैठी

रवि किरणों-सी यह फ़ैली दूर से दूर तक हिंदी ।।

                     (3)

मैं हिंदुस्तान की बेटी मेरी भाषा भी हिंदी है।

मेरा पढ़ना मेरा लिखना मेरी आशा  हिंदी है।

सिंधु से हिन्द बन करके दिलो में आ समाई है

मेरा गाना मेरा रोना और निराशा भी हिंदी है।।

                      (4)

हम हिंदुस्तान में रहते हमारी भाषा हिंदी है।

हमारी सोच हिंदी है और आशा भी हिंदी है।

भले ही हम बोलते हो कई अन्य जुबानों को

मगर सम्पर्क साधने की परिभाषा तो हिन्दी है।

                      (5)

मेरा शैशव मेरा गौरव मेरा जगमान हिंदी है।

मेरा अरमान हिंदी है मेरा सम्मान हिंदी  है।

यहीं जन्मी  फली फूली यहीं है कर्मभूमि भी 

तभी पहचान है हिंदी और अभिमान हिंदी है ।                 

  - सुशीला जोशो विद्योत्तमा 

  मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश

     सहज, सरल और सुगम यदि कोई भाषा है तो वह है- हिंदी । इसकी सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें सभी रिश्तों के लिए अलग-अलग नाम है जो बालक को जन्म से उन रिश्तों की पहचान करवाते हैं वरना तो मॉम - डैड और अंकल - आंटी में ही सारे रिश्ते सिमट कर रह जाते । जीवन में रिश्ते ही संस्कारों का पाठ पढ़ाते हैं जिसके कारण हमारी सभ्यता और संस्कृति की पूरे विश्व में एक अलग पहचान है । इस प्रकार हिंदी भारतीय विचार और संस्कृति की वाहक है । यह आम आदमी की भाषा जो देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य भी करती है । यह विशाल समुद्र की तरह है  । जैसे सभी स्थानों की नदियां समुद्र ही समाती है, उसी प्रकार हिन्दी अनेक भाषाओं के शब्दों को अपने में समाहित कर लेती है और अनेकता में एकता स्थापित करती है । यह एक वैज्ञानिक भाषा है क्योंकि इसमें बोलना और लिखना समान होता है अर्थात जो बोला जाता है वही लिखा जाता है ।  प्रत्येक अक्षर एक खास ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है । यह अंग्रेजी की तरह भ्रमित करने वाली भाषा नहीं है  । इसका साहित्य बहुत समृद्ध है । यह विश्व में बोली जाने वाली तीसरी सबसे बड़ी भाषा है । हिंदी के कारण ही आप, आप हैं वरना कभी के तुम बन गए होते  ।               

   - बसन्ती पंवार                 

   जोधपुर  - राजस्थान     

       

हिंदी हमारी मातृभाषा है जो की राष्ट्रभाषा भी होनी चाहिए। यदि हिंदी ना हो तो जीवन कैसा होगा, सोच पाना असंभव है।हमारी सोचने की प्रक्रिया, स्वयं को अभिव्यक्त करने  का कौशल, लिखने बोलने, सभी के लिए हिंदी भाषा महत्वपूर्ण है। आज विदेशों में भी इसका प्रचलन बढ़ रहा है।हम किसी भी भाषा में स्वयं को व्यक्त कर रहे हो जैसे अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा परंतु पृष्ठभूमि में हम हिंदी में ही सोचते हैं। मन में उसका अनुवाद करके तब उसे अन्य भाषा में व्यक्त करते हैं। यह महत्व है हमारी हिन्दी भाषा का । यही कारण है कि यदि हमारी सर्जनात्मक, रचनात्मक शक्ति को पूरा आकाश, पूरी आजादी, पूरी उड़ान देनी हो तो अपनी भाषा की, अपनी संस्कृति की पूरी  जानकारी होना उसमें प्रथम और बेबाक़ अभिव्यक्ति होना अत्यंत आवश्यक है। तभी हमारी रचनात्मकता को, हमें स्वयं को संपूर्ण अभिव्यक्ति मिल सकती है। यदि कोई इंग्लिश में गलती करता है चाहे वह लिखने में, बोलने में अंथवा स्पेलिंग में तो उसे हम मूर्ख या अशिक्षित कहते हैं।परंतु मेरा सोचना है कि एक विदेशी भाषा में गलती हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है परंतु जब अपनी ही भाषा में किसी को छोटी-छोटी अनगिनत गलतियां करते देखें तो असहनीय हो जाता है। बाग बगीचों में फूल के स्थान पर फुल लिखा देखकर बहुत कष्ट होता है। इन लोगों को हम अशिक्षित नहीं मानते, मूर्ख नहीं मानते क्योंकि हिंदी तो नहीं आती तो क्या हुआ? जबकि हिंदी में गलती करना जो हमारी मातृभाषा है जिसको हम बोल सुनकर बड़े हो रहे हैं, उसमें हम छोटी-छोटी गलतियां कर अपनी मूर्खता का प्रदर्शन करते हैं।जब यह सवाल आता है कि हिंदी भाषा की हमारे जीवन में क्या भूमिका है? तो यही कहूंगी कि हिंदी भाषा हमारा जीवन है, जीवन शक्ति है, हमारे सोचने समझने, बोलने हर प्रकार से हमारी अभिव्यक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिसके बिना जीवन असंभव प्रतीत होता है। हिंदी सब कुछ यानी सब कुछ है हमारे लिए।

               - रेनू चौहान

                    दिल्ली

मेरे जीवन में हिन्दी भाषा की भूमिका चाय में  शक्कर जैसी है यदि चाय में शक्कर न मिलायी  जाए तो चाय वेस्वाद ही कहलाएगी, ठीक इसी के जैसे हिन्दी भाषा के अभाव में मेरे जीवन की मिठास ही जाती रहेगी । वैसे भी मुझे तो देश के उस भू भाग में जन्म लेने का सौभाग्य मिला है जहां हिन्दी भाषा की देवनागरी लिपि और खड़ी बोली का ही आम जनमानस के द्वारा प्रयोग किया जाता है । मैंने तो बाल्यकाल से ही हिन्दी भाषा को सुना बोला फिर हिन्दी भाषा में ही लिखना पढ़ना सीखा, हिन्दी भाषा की भूमिका मेरे जीवन में क्या है मैं कितना भी लिखूँ तो भी हिन्दी भाषा के महत्व को लिखना कम ही रहेगा । जिस हिन्दी भाषा को साहित्य सिनेमा और भारत ही नहीं बल्कि दुनिया में बोली जाने तीसरी सबसे बड़ी भाषा का दर्जा प्राप्त है मैं उसे समझता बोलता और लिखता हूँ ये मेरे लिए गौरव की बात है हिन्दी मेरी बोली ही नही है ये मेरी अभिव्यक्ति के प्राण है जैसे चाय में शक्कर की भूमिका है शक्कर के बिना चाय वे स्वाद है ठीक वैसे ही मेरा जीवन हिन्दी भाषा के शब्दों को न बोलूँ तो जीवन रस हीन ही हो जाएगा । अतः हिन्दी भाषा मेरे जीवन में एक तरफ़ रामचरितमानस है तो दूसरी तरफ़ महाभारत है या यूँ कहें कि मेरी भाषा ही मेरे जीवन का विस्तार है ।

          - डॉ भूपेन्द्र कुमार 

        धामपुर - उत्तर प्रदेश


हिंदी सिर्फ़ एक भाषा नहीं यह हमारीसामाजिक,संस्कृति व संस्कारों की परिचायक है हमारी पहचान है कि हम कौन हैं कहाँ से हैं । यह सिर्फ भारत में ही नहीं पूरे विश्व में अपना वर्चस्व कायम कर लोहा मनवा चुकी है देश हो या विदेश हर जगह के लोग इसे बहुत सम्मान करते साथ ही सीखने, समझने व बोलने की भी कोशिश करते हैं। हिंदी संस्कृत का ही सरल रूप व इसकी वंशज है। आज हिंदी इंटरनेट पर भी वट बृक्ष की तरह अपनी मजबूत जडें जमा चुकी है।आज आप हिंदी में कहीं से कुछ भी ढूँढ सकते हो। आजकल हर तरफ जहाँ भी देखो हिंदी का बोलबाला है यहाँ तक कि विज्ञान की भाषा भी बहुत जल्द हिंदी हो जाएगी ताकि मध्यम वर्गीय व अनपढ़ लोगों को समझने में भी आसानी हो।यह बहुत सरल व लचीली भाषा है इसीलिए विदेशों में जहाँ जहाँ भारत के लोग गये वहाँ वहाँ हिंदी का वर्चस्व कायम है। हिंदी हमारी मातृभाषा है हमारीपहचान है इसके बगैर हम समस्त भारत वासी अधूरे हैं। ये भारत की आन बान और शान है। हिंदी पढ़ने वाले छात्रों को इसके ज़रिए अपनी संस्कृति लोक गीत , पुरानी प्रथाएँ जो आज लुप्त होने की कगार पर हैं उन्हें समझने में काफी मदद मिलती है।हिंदी संवैधानिक रूप में हमारी मातृभाषा भारत में सबसे ज्यादा बोली व समझी जाने वाली भाषा हिंदी है। हिंदी भाषा में गूँगे शब्द नहीं होते ये जैसे लिखी जाती है वैसे ही बोली जाती है।इसके अलावा इसमे निर्जीव चीजों के लिए भी लिंग निर्धारण की व्यवस्था की गयी है। जो किसी अन्य भाषा में नहीं मिलेगा। हिंदी भाषा के लिए 1233 ई0 में अमीर खुसरो को पहली बार हिंदवी कहने का श्रेय जाता है । शिक्षा की व्यवस्था या व्यवस्था की शिक्षा हर एक स्थिति मेंं भाषा का महत्व पूरी दुनिया जानती है। बिना भाषा को जाने कुछ भी सीखना या समझना नामुमकिन होता है।भारतीय नव जागरण के अग्रदूत के रूप में आधुनिक कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र अपनी भाषा का महत्व बताते हुए लिखा है कि-----

निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मूल।

बिन निज भाषा ज्ञान के,मिटे न हिय को शूल।।

अँग्रेजी भाषा या कोई भी विदेशी भाषा में आप प्रवीण तो हो जाओगे मगर सामाजिकता व व्यवहारिकता में आप जी़रो ही रहोगेइसलिए साँस्कृतिकसामाजिक व बैभव की स्थापना की पहली सीढी़ अपनी मातृभाषा ही होती है इसे कभी नहीं भूलना चाहिए।आज की नयी युवा पीढी़ अँग्रेजी के बोझ तले इस कदर दब रही है कि उसे अपनी भाषा बोलने में शर्म और अधकचरी अँग्रेजीभाषा बोल कर उपहास का पात्र  बनने में फ़क्र महसूस करते हैं यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण व चिंता जनक विषय है।इस पर मंथन होना चहिए वर्कशाप होनी चाहिए ताकि आने वाली पीढी को गुमराह होने से बचाया जा सके। सभी अपनी भाषा को महत्व देकर उस पर गर्व महसूस करें अपनी भाषा बोलने में शर्म कैसी शर्म तो नकल करने में होनी चाहिए हमें अपनी हिंदी की तरक्की के लिए एकजुट होकर काम करना चाहिए ताकि हमारी हिंदी भाषा सर्वोषरि थी है और आगे भी इसका वर्चस्व चारों दिशाओं में हो हिंदी अमर रहे । तभी हम भारत़वासी खुद को भारत की संतान कहलाएँगे यही हमारा सर्वप्रथम कर्तव्य है भाषा बिना इंसान अपाहिज कीडे़ मकोडे़ की भाँति जी़वन बसर करता है।उसका अपना कोई आस्तित्व नहीं होता है।  जय  हिंद जय भारत

        - डॉ.नेहा इलाहाबादी

                   दिल्ली

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