डॉ. सत्यव्रत शास्त्री स्मृति सम्मान - 2025
झूठ और चोरी दोनों ही अनैतिक कर्म हैं, लेकिन इनका स्वभाव और असर अलग है। झूठ : यह शब्दों या व्यवहार से सच को छुपाने या तोड़-मरोड़ कर पेश करने का कार्य है। झूठ इंसान के विश्वास को तोड़ता है और रिश्तों की नींव को कमजोर करता है। यह सीधे-सीधे मानसिक और सामाजिक नुकसान पहुँचाता है। चोरी : यह किसी की भौतिक वस्तु, धन या अधिकार को बिना अनुमति के छीनने का कार्य है। चोरी से व्यक्ति को प्रत्यक्ष आर्थिक या भौतिक हानि होती है। अंतर यह है कि झूठ से "विश्वास" चोरी होता है और चोरी से "संपत्ति"। दोनों ही गलत हैं और समाज में विश्वास तथा ईमानदारी को कमजोर करते हैं।
- सुनीता गुप्ता
कानपुर - उत्तर प्रदेश
झूठ और चोरी दोनों ही नैतिक दृष्टि से अनुचित हैं, लेकिन दोनों का स्वरूप और प्रभाव भिन्न-भिन्न है। झूठ मनुष्य की वाणी से निकलता है। यह एक असत्य है जो वास्तविकता को ढक देता है। झूठ बोलने से सामने वाले व्यक्ति को भ्रमित किया जाता है, उसका विश्वास टूटता है और समाज में विश्वास की नींव अशक्त होती है। झूठ से अक्सर व्यक्ति की छवि धूमिल होती है और धीरे-धीरे रिश्तों में दरार पड़ जाती है। परन्तु यह वर्तमान समय का अर्ध सत्य है। क्योंकि वर्तमान में सत्य बोलने से भी रिश्ते टूटते हैं और नौकरी भी हाथ से चली जाती है। यह पूर्ण सत्य है। चोरी व्यक्ति के कर्म से जुड़ी होती है। यह किसी की वस्तु, धन या अधिकार को बिना अनुमति हड़प लेने की क्रिया है। चोरी से न केवल दूसरे की हानि होती है, बल्कि यह विधि और धर्म दोनों की दृष्टि में अपराध भी है। झूठ कभी-कभी “छोटी भूल” या “स्थिति बचाने का प्रयास” समझा जा सकता है, लेकिन चोरी प्रत्यक्ष रूप से दूसरों की संपत्ति और अधिकार पर आघात है। अन्ततः दोनों ही चरित्र और आत्मा को कलंकित करते हैं। क्योंकि झूठ से विश्वास की चोरी होती है और चोरी से संपत्ति की। इसलिए कहा जा सकता है कि झूठ अदृश्य चोरी है और चोरी दृश्य झूठ है।
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर
वास्तव में,झूठ चोरी का जनक है। प्रारंभ में,एक बच्चा पहली बार जीवन में झूठ बोलता है,जब उसे कोई नहीं टोकता,वह दुबारा झूठ बोलता है और जब दुबारा कोई प्रतिक्रिया नहीं होती,वह बार-बार झूठ बोलने लगता है।उसके अंदर का भय खत्म होने लगता है,अब वह इस कला में निपुण हो चुका होता है,अब वह इस दिशा में एक कदम और आगे बढ़ता है।अब क्या है,वह चोरी करना प्रारंभ करता है और चोरी कर दूसरों पर मढ़ देना, आसानी से अपनी आदत में शामिल कर लेता है।झूठ झूठा मनुष्य रोज बोलता है और चोरी अवसर पाकर तुरंत करता है,मात्र वह अवसर तलाशता है। यूं तो झूठा मनुष्य रोज ही अपने सम्मान की,अपने स्वाभिमान की,अपने नैतिकता की और अपने पवित्र आत्मा की चोरी कर रहा है।- वर्तिका अग्रवाल 'वरदा'
वाराणसी - उत्तर प्रदेश
चोरी और झूठ दोनों एक दूसरे पर्यायवाची शब्द है। जैसे कि कहावत है, चोरी करा और झूठ बोलना पाप है, हाथी तेरा बाप है। अक्सर खेल-खेल में बच्चे बोला करते थे। झूठ तो हम रोज़-रोज़ बोलते ही है, सबसे ज्यादा झूठ वही बोलता जो अपने आपको ज्ञानचंद कहता है, किसको कैसे अपने जाल में झूठ बोल कर फंसाया जाए। सबसे बड़ा झूठ तो हम देख ही रहे है, उसे हम सिद्ध ही नहीं कर पाए रहे, बिना गवाह के वहां काम भी नहीं चलता, गवाह को भी तो झूठ बुलवाने लाया जाता है। फिर चोरी भी की प्रकार की तरह-तरह की होती है, शून्य से लेकर शिखर तक अशिक्षित से वरिष्ठ शिक्षित तक। अशिक्षित चोरी अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु सम्पादित करता है। वरिष्ठ शिक्षित की चोरी का राज कम ही पता चलता है, वही उसका राज उजागर करता जो उसका निकटतम सहयोगी हो, सहयोगी की इच्छा पूर्ति नहीं हुई, तो वह उजागर कर देगा। वहाँ भी हम झूठ और चोरी को वास्तविक रुप में सिद्ध ही नहीं कर पा रहे है, फर्क इतना है दोनों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष से प्रभाव शाली है,- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
झूठ बोलना और चोरी करना - - दोनों ही अपराध हैं। मजबूरी में या आदतन ये अपराध होते हैं। अभाव और लाचारी इंसान को चोरी करने और झूठ बोलने लगाती है। कभी-कभी यह मानसिक विकार भी होता है। झूठ बोलने का आदी व्यक्ति बिना किसी विशेष कारण के ही झूठ बोलते हैं। बचपन यदि अभावों में गुजरा है तो बच्चा बुरी संगत में पडकर झूठ बोलना और चोरी करना तभी सीख लेता है हजब उसे अच्छे बुरे की कोई समझ नहीं होती। उसके परिवेश का अ सर उसे अपराध की ओर अग्रसर कर देता है। आजकल मनोवैज्ञानिक इस दिशा में अच्छा प्रयास कर रहें। जेलों में अपराधियों पर विश्लेषण हो रहे हैं। तात्पर्य यही कि कोई व्यक्ति जानबूझकर कर झूठ बोलना या चोरी करना नहीं चाहते। उनकी मजबूरियां उन्हें मजबूर करती हैं। सामाजिक ढाँचा बदले - - हर हाथ को काम हर पेट को रोटियाँ मिलें बस ।- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
ये बात सत्य है कि हम सभी रोज कुछ न कुछ झूठ बोल ही लेते हैं. चाहे अच्छा के लिए हो या कोई बहाना के लिए हो. किसी प्रकार का बहाना भी झूठ ही होता है. रही बात चोरी और झूठ में अन्तर की तो मेरे ख्याल से इन दोनों में अन्तर नहीं बल्कि सम्बंध है. क्योंकि चोरी करने वाला हमेशा झूठ ही बोलता है. हर चोरी करने वाला कहता है कि मैंने चोरी नहीं की है. इसलिए चोरी और झूठ में गहरा सम्बंध लगता है. कभी-कभी लगता है कि इसमें सम्बंध नहीं है. क्योंकि कोई आदमी हमसे कुछ मांगता है और हम उसे वो सामना नहीं देना चाहते हैं तो हम झूठ बोल देते हैं कि हमारे पास वह समान नहीं है. जिसे बहाना बनाना कहते हैं. यहाँ पर झूठ और चोरी में अन्तर हो जाता है.
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "
कलकत्ता - पं. बंगाल
झूठ और चोरी, दोनों ही इंसान की नैतिकता पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं, लेकिन दोनों का स्वरूप और असर अलग-अलग है।कभी किसी को आहत होने से बचाने के बहाने, तो कभी अपनी गलती छिपाने के बहाने हम झूठ का सहारा लेते है।यही कारण है कि झूठ समाज में अक्सर “सहनीय बुराई” की तरह स्वीकार कर लिया जाता है। इसके विपरीत चोरी का स्वभाव कठोर और सीधा है। किसी और के अधिकार पर अपना हक़ जताना चोरी है। यह सामाजिक विश्वास को तोड़ देती है। जहाँ झूठ कभी-कभी मज़ाक या शिष्टाचार का हिस्सा बनकर क्षम्य हो जाता है, वहीं चोरी हमेशा अपराध की श्रेणी में आती है और व्यक्ति की ईमानदारी पर स्थायी कलंक छोड़ जाती है। चोरी वह गुनाह है जो समाज और आत्मा दोनों के सामने इंसान को कटघरे में खड़ा कर देती है। इसलिए झूठ की कभी-कभी माफ़ी हो सकती है पर चोरी किसी दृष्टि में माफ़ी के काबिल नहीं है।- सीमा रानी
पटना - बिहार
झूठ और चोरी दोनों अलग-अलग चारित्रिक दोष हैं, विकार भी कह सकते हैं और अवगुण भी। झूठ बोला जाता है और चोरी की जाती है , यानी जो झूठ बोलता है वह चोरी भी करता है यह जरूरी नहीं लेकिन जो चोरी करता है, वह झूठ बोलेगा इसकी संभावना अधिक है। इसके अलावा यह भी सच्चाई है कि चोरी जैसा विकार , दोष या अवगुण सामान्यत: बहुत कम लोगों में पाया जाता है, लेकिन झूठ सामान्यत: सभी बोल ही लेते हैं। हमारे सामाजिक, पारिवारिक और व्यवहारिक जीवन में ऐसी स्थितियाँ बनती ही हैं कि संबंधित लोग झूठ बोलकर बचकर निकलना चाहते हैं, या निकल लेते हैं। झूठ हो या चोरी दोनों के अनेक रूप होते हैं। झूठ का सहारा , संभावित दंड से, दिखावे के लिए अथवा अप्रिय स्थिति से बचने- बचाने के लिए भी होता है, जबकि चोरी का मूल आधार लालच या मजबूरी होता है। सार यह कि दोनों ही प्रारंभ में छोटे और मामूली से दिखने वाले अवगुण, विशेषकर चोरी करने वाला कृत्य, जब धीरे-धीरे विकसित होते चलते हैं और एक दिन वे बुरी आदत का रूप ले लेते हैं फिर वे स्वयं को तो क्षति और कष्ट तो पहुंचाते ही हैं, परिजनों की मान-मर्यादा और छबि को भी धूमिल करते हैं। अत: इन अवगुणों पर स्वयं के अलावा और परिवार के सदस्यों की यह जिम्मेदारी है कि वे प्रारंभ में ही इन अवगुणों पर लगाम लगावें।- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
मनुष्य के आचरण में झूठ और चोरी दोनों ही दोष माने गए हैं, परंतु दोनों का स्वरूप अलग है। झूठ का अर्थ है सत्य को छिपाकर असत्य कहना, जिससे किसी का विश्वास टूटता है। यह वाणी और विचार की बेईमानी है। वहीं चोरी का अर्थ है किसी की वस्तु, अधिकार या श्रम को बिना अनुमति छीन लेना। इसमें सामने वाले को प्रत्यक्ष हानि होती है, अतः यह कर्म की बेईमानी है। झूठ से रिश्तों की नींव कमजोर होती है जबकि चोरी से किसी का अधिकार और संपत्ति नष्ट होती है। कभी-कभी ये दोनों जुड़ भी जाते हैं, जैसे चोरी करने के बाद झूठ बोलना। इस प्रकार कहा जा सकता है कि झूठ विश्वास की हत्या है और चोरी अधिकार की हत्या, दोनों ही सामाजिक और नैतिक दृष्टि से अनुचित हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है... आप और मैं ही नहीं हम सभी, रोज दिन भर में कई बार झूठ बोलते हैं। बाल्यावस्था में स्कूल में जब हम रहते हैं तब गृहकार्य न करने पर अनेक कारण बताते हैं कि गृहकार्य क्यों नहीं किया जो तदन झूठ पर आधारित होते हैं। कोई चीज अच्छी लगती है तो चुपचाप दूसरे की बैग से उठा झूठ बोल देते हैं यह मेरी है, परीक्षा में नकल करते हैं यानी चोरी किंतु यह सब कुछ थोड़ी समझदारी आ जाने पर यह आदत अपने आप ठीक हो जाती है। किंतु बड़े होने पर झूठ बोलने का तरीका बदल जाता है । हमारे झूठ बोलने से अगर किसी का भला होता है तो वह झूठ नहीं होता।कभी कभी झूठ संगीन रूप ले लेता है जैसे... झूठ बोलकर किसी से पैसे ऐंठ लेना, दगा देना, झूठ बोलकर दूसरे को फसा देना ,यह भी एक प्रकार की चोरी है। किंतु कलई खुलने पर यानी झूठ पकडे़ जाने पर वह आंखें नहीं मिला पाता और सच उगल ही देता है वहीं चोरी... चोरी करते समय आदमी का ईमान डगमगा जाता है। वह अपनी मंशा पुरी करने के लिए कुछ भी कर सकता है। खून तक! उसमें डर नाम की कोई चीज ही नहीं होती। राजनीति में झूठ ही झूठ होता है। जनता को लूटकर अपना घर भरते हैं। यह भी चोरी है ,तरीका अलग है। झूठ झूठ होता है, चोरी चोरी!चाहे कोई भी कारण हो गलत इरादे से किया गया कोई भी तरीका गुनाह है।- डाॅ.छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
अगर देखा जाए आजकल के जमाने में शायद ही सत्यवादी हरिश्चन्द्र की तरह कोई सच्चा इंसान मिल सके लेकिन असंभव ही लगता है कहने का भाव इंसान कभी न कभी झूठ परोसने का कार्य कर ही देता है,यहां कहीं भी उसको अपना लाभ,तारिफ या अपने आप को बिना कुछ किये बढोतरी नजर आने लगे तो इंसान झूठ बोलने से पीछे नहीं हटता, इसी तरह चोरी करने वाला भी देखता है कि जब भी उसे चान्स मिले वो तरूंत अपना कदम चोरी की तरफ बढाते हुए चंपत हो जाए, कहने का भाव झूठ बोलने की प्रथा तो बहुत आगे बढ़ चुकी है लेकिन अब चोरी की दौड़ भी कम नहीं है ,दोनों आदतें बुराई की जड़ हैं,तो आईये आज का रूख चोरी और झूठ की तरफ ले चलते हैं की दोनों में क्या अंतर है,मेरा मानना है कि झुठ बोलना शब्दों का इस्तेमाल है और चोरी में किसी की संपति को उसकी अनुमति के बगैर चुराना शामिल है,जबकि झूठ को बौदिक अपराध माना जाता है और चोरी को भौतिक वस्तुओं काे गैरकानूनी कब्जे से हतियाना है,यही नहीं झूठ बोलना मुख्य रूप से संवाद से जुड़ा हुआ है यहां तथ्यों को गलत बताते हैं और चोरी को एक भौतिक कार्य कहा गया है यहाँ किसी की संपति पर कब्जा कर लिया जाता है,अन्त में यही कहुंगा कि चोरी और झूठ दोनों कार्य बेईमानी से जुड़े हुए हैं लेकिन झूठ बोलने के मकसद अलग अलग हो सकते हैं जबकि चोरी में हमेशा बेईमानी से मालिक को वंचित कर दिया जाता है जबकि झूठ बोलने से सच्चाई को अपने लाभ हेतु तोड़ा जाता है लेकिन इंसानियत तो यही कहती है कि चोरी हो या झूठ इन दोनों से बचना चाहिए ये दोनों आदतें इंसान को बर्बाद करके रखा देती हैं जिससे व्यक्ति अपना मोल खो देता है।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
ऐसे तो इंसान को झूठ नहीं बोलना चाहिए।जब बहुत ज़रूरी हो तब इसे प्रयोग में लाना चाहिए।झूठ क्षणिक चलेगा, लेकिन चोरी करना बिल्कुल गलत और पाप है।झूठ थोड़ी गलती है एवं चोरी करना महापाप है।दोनों में मूल रूप से यही उपर्युक्त अंतर है।अच्छे इंसान बनना हो तो हमें दोनों अवगुणों को त्यागना होगा।यह मुश्किल है, लेकिन इसे छोड़ने में ही इंसान की भलाई है।- दुर्गेश मोहन
पटना - बिहार
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः॥ अर्थ: मनुष्य को हमेशा सत्य बोलना चाहिए, लेकिन वह सत्य ऐसा हो जो प्रिय (मधुर) भी हो। किसी को अप्रिय लगने वाला कटु सत्य नहीं बोलना चाहिए। किन्तु प्रिय असत्य भी नहीं बोलना चाहिए। जिस देश में राजा हरिश्चन्द्र की कथा सुनाई जाती हो उस देश में असत्य बोलने के लिए किसी को अनुमति नहीं हो सकती है चाहे कोई भी परिस्थिति हो। लेकिन दूसरी तरफ यह भी उदाहरण दिया जाता है : महाभारत की कथा में धर्मराज युधिष्ठिर से एक बार असत्य का सामना हुआ है “अश्वत्थामा हतः इति! नरोवा कुंजरोवा!” आखिर इस मिथ्या से उनकी विजय जो सुनिश्चित होती थी- अर्थात् यह साबित किया गया कि किसी भलाई के लिए बोला गया झूठ सत्य से अच्छा है। चोरी और झूठ में मूल अन्तर यही है कि किसी भी परिस्थिति में की गई चोरी को अच्छा नहीं कहा जा सकता है -झूठ बोलने से ज़्यादा बड़ा अधर्म है चोरी करना- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
" मेरी दृष्टि में " झूठ बोलना पाप है। परन्तु झूठ सभी बोलते हैं। यह सभी जानते हैं। फिर भी झूठ बोलने से परहेज़ कोई नहीं करता है। यही एक सच्चाई है। अत : झूठ को झूठ नहीं मानते है। यह एक कला के रूप में विकसित होता जा रहा है।
Comments
Post a Comment