पत्रकारिता की हत्या नहीं बल्कि लोकतन्त्र की हत्या
कर्नाटक के बेंगलुरु के महिला पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता ग़ौरी लंकेश की हत्या ने पत्रकारिता की हत्या ही नहीं बल्कि लोकतन्त्र की हत्या हुई है। यह पहली बार नहीं है बल्कि बार - बार हो रहा है। पत्रकारों की आवाज को दबाने का एक तरीका बना लिया है। ऐसी हत्या से देश बदनाम होता है। आज पत्रकारिता के लिए कार्य करने वाले कहीं ना कहीं असुरक्षित महसूस करते हैं। ये लोकतन्त्र के लिए कोई अच्छी सोच नहीं कहीं जा सकती है।
जब जब देश में कहीं भी ऐसी घटनाएं घटती हैं तो आक्रोश पैदा होता है। इस के लिए जिम्मेदार कोन है। ऐसी घटनाओं पर बोलने से पत्रकार भी डरते नज़र आते हैं और आम जनता की हालत क्या होगी ।
" मेरी दृष्टि में " ऐसी घटनाएं के लिए सिर्फ सत्ता पक्ष ही जिम्मेदार होता है। क्यों कि जांच को इतना प्रभावित कर दिया जाता है । जिससे जांच लम्बी खिंचती चली जाती है कि न्याय कहा गुम हो जाता है पता ही नहीं चलता है।
अखिल भारतीय पत्रकारिता संगठन के माध्यम से सरकार से अपील करता हूं कि इस की जांच सीबीआई से करवाईं जाएं तथा प्रतिदिन जांच की रिपोर्ट पेश की जाए ताकि न्याय की आगे बढ़ा जा सके। तभी इस में न्याय की उम्मीद कर सकते हैं।
- बीजेन्द्र जैमिनी
(अशेष फीचर)
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