करवा चौथ की कथा
एक परिवार में सात भाई थे । उनकी चंद्रावती नाम की एक बहन थी। जब वह विवाह योग्य हुई तो भाइयों ने एक अच्छे परिवार में उसकी शादी कर दी। बहन ने शादी के बाद पहला करवाचौथ का व्रत रखा। जब शाम को भाई भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन करने को कहा तो चंद्रावती ने कहा कि जब चांद निकलेगा तो मैं उसके बाद ही भोजन करूंगी।
भाई उसे बहुत प्यार करते थे । उन्होंने एक उपाय सोचा। उन्होंने घर से दूर पेड़ों के पीछे जाकर आग जला कर चांद निकलने जैसा दृश्य उत्पन्न कर दिया। एक भाई छलनी पकड़ कर खड़ा हो गया और बहन को पुकारने लगा कि जल्दी से आकर चांद देख लो। बहन ने चांद निकला जान कर उसे अर्घ्य दे दिया और व्रत खोल लिया । इतनें में उसके ससुराल से खबर आई कि उसके पति की तबीयत बहुत खराब है। चंद्रावती ने सोचा कि मैंने तो ऐसा कोई अपराध नहीं किया है । जिसका मुझे दंड मिल रहा है। आज सारे संसार में पत्नियां अपने पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रख रही हैं परन्तु मेरे सुहाग को क्या हुआ कि वह इतना बीमार हो गया। उसने पंडित जी को बुला कर इसका कारण पूछा तो पंडित जी ने कहा कि पूजा में अवश्य कोई विघ्न आया है। आपके पति के ठीक होने का उपाय यह है कि पूरा वर्ष कृष्ण पक्ष की चौथ को व्रत रखना शुरू करो। चंद्रावती ने वैसा ही करना शुरू किया। चंद्रावती के पति को कांटे वाली बीमारी थी। वह पूरा वर्ष पति के शरीर से कांटे निकालती रही। जब केवल आंखों पर कांटे रह गए तो करवाचौथ का व्रत आ गया। उसने अपनी नौकरानी से कहा कि मैं करवाचौथ के व्रत का सामान लेने जा रही हूं तुम मेरे पति का ध्यान रखना। नौकरानी ने चंद्रावती के पति की आंखों पर रह गए कांटों को निकाल दिया। होश में आते ही चंद्रावती के पति ने नौकरानी से पूछा कि चंद्रावती कहां है ? तब नौकरानी ने कहा कि वह तो घूमने गई है। पति ने समझा कि इसी औरत ने मेरी एक साल से सेवा कर रही है। जब चंद्रावती सामान लेकर वापस आई तो उसकी कोई बात सुने बिना ही उसके पति ने उसे घर से निकाल दिया। अगले वर्ष जब करवाचौथ का व्रत आया तो पूजा के वक्त चंद्रावती अपनी ही कहानी कहने लगी। जब उसके पति ने पूरी कहानी सुनी तो उसे सब समझ में आ गया। अतः उसने चंद्रावती को पुन: अपना लिया। इस प्रकार चंद्रावती के सुहाग की रक्षा होती है।
उसने मां पार्वती से प्रार्थना की हे गौरी माता, जिस तरह आपने मेरे सुहाग की रक्षा की, उसी तरह सभी के सुहाग की रक्षा करना ।
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