किशोरी की समस्या, कारण व निदान पर कार्यशाला का आयोजन
महावारी पर आधारित सत्र में फिल्म, अलग-अलग एक्टिविटी और नाटक मंचन के जरिए महावारी क्यों होती है? कब होती है? इसकी क्या अहमियत है पर विस्तार से चर्चा की गई। इस सत्र की अहम बात ये थी कि इसमें लड़कियों के साथ साथ लड़कों ने भी हिस्सा लिया। हालांकि महावारी लड़कियों में होने वाला अहम शारीरिक बदलाव है लेकिन लड़कों को भी इसके बारे में जागरुक होना बेहद जरुरी है ताकि वो न केवल लड़कियों का सहयोग करें बल्कि इससे जुड़े मिथक बातों को हटाने में सहायक साबित हो। सत्र के आखिर में प्रतिभागियों ने अलग-अलग नाटकों के जरिए महावारी पर बनी अपनी समझ को पेश किया। एक नाटक के दौरान प्रतिभागियों ने दिखाया कि कैसे एक लड़का और लड़की बस में जा रहे हैं और लड़की को पीरियड्स होने लगते हैं ऐसे में लड़का उसका सहयोग करते हुए अगले स्टॉप पर उसके लिए सैनेटरी पैड खरीदकर देता है। वहीं दूसरे नाटक में दिखाया कि पहली बार महावारी होने पर मां अपनी बेटी को पीरियड्स के बारे में खुलकर बताती है।
वहीं दूसरी वर्कशॉप में किशोर-किशोरियों के साथ यौन शिक्षा, सही उम्र, कंसेंट यानि सहमति पर बातचीत की गई। इस दौरान अलग-अलग शॉर्ट फिल्मों के जरिए जहां एक दस साल का बच्चा अपने पिता से कई सवाल पूछता है जैसे बच्चे कैसे पैदा होते हैं? आदि। और उसके पिता बड़ी सरलता के साथ उन सवालों का जवाब देते हैं। किशोर-किशोरियो ने हंसते खेलते बेहद जटिल और ऐसे मुद्दे जिनपर अक्सर समाज में चुप्पी बनी रहती है और गलत समझा जाता है उसपर समझ बनाई। आज की वर्कशॉप को समाप्त करते हुए पूर्वी यादव ने कहा कि ये वर्कशॉप आने वाले दिन में होने वाले सत्र “बाल यौन शोषण” की नींव के तौर पर रखी गई क्योंकि बिना अपने शरीर के जानकारी के बच्चों को कैसे पता चलेगा कि क्या गुड टच है और क्या बैड टच है?
इस कार्यशाला में विभिन्न स्कूलों के किशोर-किशोरियां भाग ले रहे हैं। इस दौरान बाल मनोविज्ञानविद् डॉ. स्वंतत्र जैन और माता सीतारानी सेवा संस्थान द्वारा संचालित परिवार परामर्श केंद्र की परामर्शदात्री सुनिता आंनद एवं दीपक कुमार हाली अपना स्कूल की मुख्य अध्यापिका प्रिया लूथरा, ब्रेकथ्रू से संजय कुमार, एडवोकेट राममोहन राय मौजूद रहे है।
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