हिन्दी है तो भारत है
आज " विश्व हिन्दी दिवस " के अवसर पर जैमिनी अकादमी , पानीपत ने " हिन्दी है तो भारत है " परिचर्चा का आयोजन किया है ।
हिन्दी आज दुनिया की भाषा बन गई है परन्तु भारत में आज भी हिन्दी में बात करने वालों को , अनपढ़ की दृष्टि से देखा जाता है । सरकार तो हर रोज नये कदम उठाती है परन्तु सरकारी विभाग अग्रेजों के समय से आज तक वहीं के वहीं है ।
अभी हाल में हरियाणा सरकार के मुख्य सचिव कार्यालय से परिपत्र जारी करके आदेश दिया गया है कि सभी विभागों द्वारा अधिक से अधिक पत्राचार हिन्दी में किया जाऐं । इतना ही नहीं, इससे पूर्व भी वर्ष 1993, 1999, 2006 तथा 2016 में भी मुख्य सचिव कार्यालय द्वारा ऐसे परिपत्र जारी किए गए हैं कि हिन्दी भाषा में अधिक से अधिक पत्राचार करना चाहिए! इससे स्पष्ट हुआ कि सरकारी विभागों की हिन्दी के प्रति क्या स्थिति है ?
परिचर्चा हेतु बहुत बड़ी सख्या में सम्पर्क किया गया है । विचार भी बहुत बड़ी सख्या में आये हैं । परन्तु यहाँ पर कुछ विशेष विचार पेश हैं : -
उज्जैन ( मध्यप्रदेश ) से मीरा जैन लिखती है कि
हिंदी है तो भारत है
अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त व सरल माध्यम है भाषा . विश्व के प्रत्येक
देशों की अपनी निज भाषा है और उसी भाषा का प्रयोग अपनत्व , गर्व,
स्वाभिमान, विकास आदि का कारण बनता है इसी तारतम्य मे यदि हम
अपने देश पर नजर डालें तो यहाँ विविध क्षेत्रिय भाषाओं के प्रचलन के
बावजूद समस्त जनों को एकता के सूत्र मे पिरोने का अति महत्वपूर्ण कार्य
हमारी मातृभाषा हिंदी का ही है देश मे हिंदी जन सामान्य की सर्वमान्य
भाषा है क्योंकि के भारत किसी भी कोने मे किसी भी व्यक्ति को कहीं
कैसा भी कार्य करना अथवा करवाना हो तो वह आसानी से हिंदी का
प्रयोग कर अपने कार्य को सहजता से अंजाम दे सकता है विविध भाषियों
के परस्पर पर वार्तालाप का हिंदी ही एकमात्र माध्यम है . वर्तमान मे
इस हेतु अंग्रेजी का का चलन भी देखा जा रहा है किंतु आयातित भाषा
मे अपनत्व, आत्मीयता का पूर्ण त: अभाव होता है अत: भारत की एकता
व अखंडता को अक्षुण्ण बनाये रखना है तो देश मे केवल और केवल हिंदी
ही समग्र रूप मे विद्यमान होनी चाहिए .
स्वतंत्रता की सरहद है हिंदी
भाषाओं की बरगद है हिंदी
डाँ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' लिखते है कि
दो हजार छः से मिला, हिन्दी को उपहार।
आज विश्व हिन्दी दिवस, मना रहा संसार।।
--
हिन्दी है सबसे सरल, मान गया संसार।
वैज्ञानिकता से भरा, हिन्दी का भण्डार।।
--
दुनिया में हिन्दीदिवस, भारत की है शान।
सारे जग में बन गयी, हिन्दी की पहचान।।
--
चारों तरफ मची हुई, अब हिन्दी की धूम।
भारतवासी शान से, रहे खुशी में झूम।।
--
युगों-युगों से चल रहे, काल-खण्ड औ’ कल्प।
देवनागरी का नहीं, दूजा बना विकल्प।।
--
गद्य-पद्य से युक्त है, हिन्दी का साहित्य।
भाषा के परिवेश में, भरा हुआ लालित्य।।
--
अपने प्यारे देश में, समझो तभी सुराज।
अपनी भाषा में करे, जब हम अपने काज।।
--
हिन्दी के अस्तित्व को, जग करता मंजूर।
भारतवासी जा रहे, लेकिन इससे दूर।।
--
जैसा लिक्खा जायगा, वैसा बोला जाय।
भाषाओं में दूसरी, यह गुण नजर न आय।।
--
अंग्रेजी का मित्रवर, छोड़ो अब व्यामोह।
अपनी भाषा के लिए, करो न ऊहा-पोह।।
--
नई दिल्ली से सलिल सरोज लिखते है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 343(1) के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी एवं लिपि देवनागरी है तथा अनुच्छेद 351 के तहत हिंदी भाषा के विकास के लिए एक विशेष निदेश किया गया है।संविधान के अनुसार हिंदी में काम करना हमारा महती दायित्व है। हिंदी सिर्फ भाषा ही नहीं है बल्कि यह भारतीय संस्कृति की वाहक भी है । देश के प्रायः सभी हिस्सों में बोली और समझी जाने वाली हिंदी अब विश्व पटल पर भी छा गई है । आज 140 देशों में हिंदी धड़ल्ले से इस्तेमाल होती है और यह एक अरब 20 करोड़ से अधिक लोगों की समझ में आने वाली भाषा है। हिंदी को महज आमजन की बोलचाल मानना भूल होगी । इसमें अनंत संभावनाएँ छिपी हुई हैं। बस, हमें अपनी आँखों से पट्टी हटाकर आगे चलना है । हिंदी को आगे बढ़ाने का दायित्व सिर्फ सरकार का नहीं है बल्कि सभी नागरिकों का है ।
हालांकि, मौजूदा परिस्थितियों पर गौर करें तो पता चलता है कि हम अंग्रेज़ी के इस तरह पिछलग्गू बन गए हैं कि भारतीय भाषाओं के समक्ष धीरे-धीरे अस्तित्व का संकट पैदा होता जा रहा है । इस दौर की विचित्र विडंबना है कि हिंदी भाषी या अन्य भारतीय भाषा-भाषी क्षेत्र के लोग बड़े गर्व के साथ यह कहते हुए मिल जाते हैं कि उन्हें हिंदी या अन्य भाषा ठीक से नहीं आती है जो कि उनकी मातृभाषा है। अगर समय रहते सचेत नहीं हुए तो भाषा मरणासन्न की स्थिति में आ जाएगी और भारत विघटन के तकलीफ से एक बार फिर रू-ब-रू होगा।
किसी भी भाषा का विकास एकाएक नहीं होता है । यह क्रमिक विकास का परिणाम होता है ।आवश्यकता के मुताबिक शब्द गढ़े जाते हैं। नई परम्पराएँ बनती हैं,जो आगे चलकर हमारी संस्कृति में समाहित हो जाती है ।पर परंपराओं के टूटने और शब्दों की टीस उभर आती है । भारत के अमर रहने के लिए हिन्दी का जिंदा रहना परमावश्यक है ।
इन्दौर ( मध्यप्रदेश ) से मनोज सेवलकर लिखते है कि हमारा भारत बहुभाषा और अनेकानेक संस्कृतियों का देश है । इन्हीं भाषाओं और संस्कृतियों ने विभिन्न बोलियों और विविध सम्प्रदायों को पैदा कर आपस में सर्वोच्च की लड़ाई में भारत देश की अखण्डता व एकता को आहत कर रखा हैं ।
ऐसे में आपसी विचारों की अभिव्यक्ति का प्रभावपूर्ण संप्रेष्ण सर्वानुमति से एक राष्ट्रभाषा में होना चाहिये । और प्रत्येक भारतीय में भारतीयता लाने का महत्वपूर्ण कार्य होना चाहिये ।
इस हेतु वही भाषा जो सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में बांध सके वह है एकमात्र भाषा हिंदी ।
मंडला ( मध्यप्रदेश ) से प्रो. शरद नारायण खरे लिखते है कि हिंदी है तो संस्कार हैं ,क्यों कि हिंदी मात्र एक भाषा ही नहीं है वरन् यह संस्कृति की संरक्षिका भी है ।हिंदी से ही सामाजिकता है धर्म व अध्यात्म है ,राष्ट्रीय चेतना है तथा मानवीय मूल्यों का प्रवाहन है ।हिंदी एक ऐसी समृद्ध भाषा है जिसका न केवल उज्जवल अतीत है वरन् संपन्न वर्तमान भी है ।हिंदी का व्यापक व सम्पन्न साहित्य विश्व के सर्वश्रेष्ठ साहित्य में से एक गिना जाता है । हिंदी हमारे स्वाभिमान व आस्था का प्रतीक भी है ।भारत में सर्वाधिक बोली,जानी व समझी जाने वाली भाषा के रूप में हिंदी का सर्वप्रथम महत्व है ।स्वतंत्रता आंदोलन काल में भी हिंदी ने राष्ट्रीय एकता जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है ।हिंदी में एक अनुशासन है, हिंदी में ऊर्जा का वास है । हिंदी पूर्णतः एक वैज्ञानिक भाषा है ,जिसका अपना विशुद्ध व्याकरण है । जिसमें कोमलता व सामाजिक समरसता का भाव है। हिंदी ही केवल राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन होने हेतु सर्वश्रेष्ठ भाषा है और मात्र हिंदी में ही वह शक्ति है जोकि संपूर्ण राष्ट्रवासियों को एकता के सूत्र में आबध्द करके उनमें एक चेतना का संचार करने में सक्षम है ।हिन्दी एक ऐसी भाषा है ,जिसकी गतिशीलता निर्विवाद है । सभी भाषाओं की अपेक्षा हिंदी का समृद्ध अतीत व संपन्न वर्तमान यह सिद्ध करता है की हिंदी विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषाओं में से एक है । हिंदी की विशिष्टता व उत्कृष्टता भारतीय सांस्कृतिक चेतना का पर्याय है। यह सत्य है कि हिन्दी है तो भारत है और भारत है तो हिन्दी है। भारत से हिन्दी को और हिन्दी से भारत को अलग करके कदापि भी नहीं देखा जा सकता, क्योंकि दोनों एक-दूसरे के पूरक ही हैं। वस्तुस्थिति यही है कि हिन्दी भारतीयता का प्रतीक है।
दिल्ली से सुदर्शन खन्ना लिखते है कि मूल रूप से हम हिन्दुस्तान अथवा भारत देश के नागरिक हैं जहाँ हिन्दी प्राकृतिक रूप से मातृभाषा है और इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल है। हमारे देश में हिन्दी भाषा राष्ट्रभाषा/मातृभाषा होने के नाते सबसे अधिक बोले जानी वाली भाषा है । जिस सहजता और सरलता से जो भाव और विचार हम स्वतन्त्र रूप से हिन्दी भाषा में प्रकट कर सकते हैं वे किसी अन्य भाषा में नहीं । इसका अर्थ यह नहीं कि हमारे भारत देश में अन्य भाषाओं को सम्मान नहीं दिया जाता है । हमारे देश की प्रांतीय भाषाओं के अतिरिक्त विदेशी भाषाओं का भी सम्मान होता है जिसमें सर्वोपरि अंग्रेजी भाषा है । ’अनेकता में एकता, यह हिन्द की विशेषता’ से अलंकृत भारत में राष्ट्रभाषा/मातृभाषा होने के नाते हिन्दी पूर्ण सम्मान की अधिकारिणी है । हमारे देश की संस्कृति की पहचान भी हिन्दी भाषा से ही है ।
इतिहास की बात करें तो हिन्दी भाषा ने कई सौ हजारों वर्षों से भारतवासियों के समक्ष सशक्त उपस्थिति दर्ज की है । महान काव्यकारों और साहित्यकारों ने हिन्दी भाषा के उत्थान के लिये सैंकड़ों प्रयत्न किये और अन्ततः उसका वर्चस्व बनाये रखने में उनके भगीरथी प्रयास सफल रहे । अनेक कालों का सफर तय करके आधुनिक काल में पहुँची हिन्दी भाषा को महाकवियों ने सशक्त बनाया जिससे यह जनसाधारण की आवाज़ बन सकी और अपने इन प्रयासों में वे शत प्रतिशत सफल रहे । पद्य और गद्य दोनों ही रूपों में हिन्दी जन साधारण की आवाज़ बन गई ।
हाल ही में हरियाणा प्रदेश के सरकारी विभागों / अदालतों में भी हिन्दी भाषा के प्रयोग को अनिवार्य कर दिया है । यह स्वागत योग्य कदम है । ऐसे ही प्रयास हिन्दी भाषा को देश का मुकुट बनाने में सक्षम होंगे । जब कभी हिन्दी भाषा के लिए ‘हिन्दी पखवाड़ा’ मनाया जाता है तो उस समय यही विचार मन में आता है कि इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी ? क्या यह इस बात का परिचायक है कि हिन्दी भाषा अपना अस्तित्व खो रही है और उसे सुरक्षित रखने के प्रयास किए जा रहे हैं ? और फिर इन पखवाड़ों का परिणाम क्या होता है ? मात्र एक त्योहार बन कर रह जाते हैं । किसी किसी को तो थोपे हुए लगते हैं । वास्तव में एक देश की राष्ट्रभाषा/मातृभाषा ही उस देश की सही अर्थों में आवाज़ है । भारत देश में रहते हुए, जो हिन्दी भाषी लोग अपनी राष्ट्रभाषा/मातृभाषा हिन्दी को मूल्य न देकर अन्य भाषाओं को अपनी वाणी बनाते हैं क्या वे कभी स्वप्न उन अन्य भाषाओं में देख पाते हैं ? कभी नहीं । हिन्दी भाषी लोगों के स्वप्नों की भाषा तो मातृभाषा ही होगी । उन्हें स्वप्न तो हिन्दी में आयेंगे ।
राष्ट्रभाषा/मातृभाषा के सम्मान से ही एक देश का अस्तित्व है, गरिमा है । एक देश की मातृभाषा यदि जीवित रहती है तो वह देश जीवित है । हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा/मातृभाषा है । हिन्दी है तो भारत है ।
रायगढ़ ( छत्तीसगढ़ ) से डाँ. माधुरी त्रिपाठी लिखती है : -
हिन्दी हिन्द की भाषा है, इसका हमें विकास चाहिए तिमिर हर अलौकित कर दे ऐसा हमें प्रकाश चाहिए भाषा का टकराव नहीं है,सुन्दर स्वस्थ विचार बने अगर अवरोध बनता है कहीं पर इसका हमें विकास चाहिए!
लौ
समालखा ( हरियाणा ) से नीरू तनेजा लिखती है कि कोई भी प्रतिभाशाली व्यक्ति जब समाज की नजर में आता है तो लोग उसकी प्रतिभा के साथ साथ उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि में भी अवश्य रूचि लेते हैं ! खासकर उसके माता-पिता के बारे में!
उसी तरह अपने देश का कोई नागरिक यदि दूसरे देश में जाता है तो उसकी पहचान व सम्मान केवल उसी से नहीं बल्कि उसके देश की पृष्ठभूमि से होता है !उसकी बोलचाल की भाषा ही उसके भारतीय होने की पहचान होती है! यहां भाषा भी प्रदेशिय न होकर मातृभाषा होनी आवश्यक है क्योंकि भाषा ही देश की पहचान है! पहचान से ही मान -सम्मान है! इसीलिए हिंदी भाषा भारत की शान और जान है ।
अजमेर ( राजस्थान ) से गोविंद भारद्वाज लिखतें है कि भारत की आत्मा है हिन्दी। यदि भारत रूपी शरीर से हिन्दी रूपी आत्मा निकल जाए तो भारत कभी विश्व के मानचित्र पर जीवित नहीं रह पाएगा। हिंदुस्थान ही हिन्दी का जन्म स्थल है। संस्कृत की बेटी कही जाने वाली हिन्दी को यदि भारत ही नहीं अपनाएगा तो कौन अपनाएगा। हम हिन्दी है हमारी संस्कृति हिन्दी है और हमारी सभ्यता हिन्दी है। विश्व का एक मात्र देश भारत है जिसकी अपनी मूल भाषा है। जिसकी अपनी व्याकरण है। हिन्दी जग में सबसे अधिक बोली -पढी़ व समझी जाने वाली भाषा बनती जा रही है। हमारी पहचान हिन्दी है हमारी शान हिन्दी है और हमारी आन हिन्दी है।
हिन्दी के बिना भारत कभी भारत नहीं रह सकता। भारत का पर्याय हिन्दी है।
भारत का अर्थ है की हिन्दी भाषा में रत रहो।
भारत का भाल हिन्दी
भारत का ताल हिन्दी।
सभ्यता - संस्कृति की
सुरक्षा का ढा़ल हिन्दी।
राजा सिंह लिखतें है कि भारत में हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा प्राप्त है.परन्तु सम्पूर्ण भारत में अधिपत्य अंग्रेजी का ही है.सरकारी कामकाज,न्यायालय,शिक्षा,स्वास्थ,विज्ञान अदि सभी क्षेत्रों में अंग्रेजी का वर्चस्व है.नौकरी व्यवसाय अदि में बिना अंग्रेजी के विकास संभव नहीं है.यहाँ तक कि कुछ सेवाओ में बिना अंग्रेजी के प्रवेश ही संभव नहीं है.भारत में प्रगति माध्यम अंग्रेजी हो गयी है.इस कारण से सभी अपनी भावी पीढ़ी को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दिलवाना चाहते है जिससे उनके भावी पीढ़ी उन्नति की ओर अग्रसर हो सके.आजकल ज्यादा तर उच्च पदों पर अंग्रेजी माध्यम से पढ़े बच्चे ही विराजमान है.
हर देश की एक भाषा होती है और वही उसकी पहचान होती है.वह देश अपनी भाषा में बोलता,लिखता और कार्य करता है.उस देश में उसकी भाषा के बगैर कोई गतिविधि संभव नहीं है.हमारे देश में हिंदी के बगैर सब कुछ चल जाता है सिर्फ अंगेजी जानते हो.भारत में अंग्रेजी को जानना बोलना गर्व की बात मानी जाती है,और अपनी भाषा अनपढ़ों के भाषा बनकर रह गयी है.
आजादी के बहत्तर सालों के बाद भी भारत का नाम इंडिया ही प्रचलन में ज्यादा है और वही अधिकारिक,प्रशासनिक और कार्यरिक रूप में भी.(इंडिया दैट इज कॉल्ड भारत).
हिंदी को भारत की पहचान बनाने और हिंदी है तो भारत है करने का एक मात्र रास्ता है भारत का नाम सिर्फ भारत ही रहने दिया जाय इंडिया को हर जगह से विस्थापित कर दिया जाये और भारत की सभी भाषायों की लिपि देवनागरी कर दी जानी चाहिए.शिक्षा का माध्यम हिंदी कर देना चाहिए.सभी विधायी,न्यायिक,प्रशासनिक,और शैक्षिक कार्य अनिवार्य रूप से हिंदी में किये जाने चाहिए.और तभी हिंदी संपर्क भाषा के रोप में भी वास्तव में स्थापित हो पायेगी.जब अनिवार्यता होगी तभी अपने आप हिंदी का विकास प्रभाव होगा. हिंदी अपनी खोई गरिमा प्राप्त कर सकेगी.इस तरह ही हिंदी और भारत एक सिक्के के दो पहलू बन पाएंगे.हिंदी और भारत एक दुसरे के पर्याय बन जायेंगे.और हिंदी एक विश्व भाषा का स्थान ग्रहण करेगी
मरेठ ( उत्तर प्रदेश ) से डाँ. रामगोपाल भारतीय लिखते है कि भाषा किसी भी देश की संस्कृति और साहित्य की आत्मा होती है।हिंदी भी भारत की आत्मा है।जिसप्रकार आत्मा के बिना शरीर की कल्पना नहीं की जा सकती उसी प्रकार मातृ भाषा हिंदी के बिना भारत रूपी शरीर की कल्पना नहीं की जा सकती।नागरिकों के मध्य संपर्क, व्यापार का माध्यम,ज्ञान विज्ञान बढ़ाने का माध्यम,सांस्कृतिक,साहित्यिक ,राजनीतिक व भौगोलिक एकता के लिए हिंदी एक अनिवार्य तत्व है।बहुसंख्यक आबादी के हिंदी भाषी होने के कारण राष्ट्रीय विकास में व्यापार का विशेष महत्व है इसलिए विदेशी कंपनियां तक अपने उत्पाद बेचने के लिए हिंदी सीख रहे हैं।अपने इतिहास और अस्मिता को जीवित रखने के लिए अपनी भाषा से अधिक कुछ मूल्यवान नहीं।आज युवा पीढ़ी पाश्चात्य प्रभाव में टूटी फूटी अंग्रेजी के प्रति मोह ग्रस्त अवश्य है परंतु जन्म से लेकर मृत्यु तक की एक भारतवासी की जीवन यात्रा हिंदी के बिना अधूरी है।अतः सिद्ध है हिंदी है तो भारत है और जब तक भारत का अस्तित्व रहेगा हिंदी उसकी धमनियों में न केवल रक्त बनकर दौड़ती रहेगी वरन आत्मा बनकर युगों युगों तक भारत को अक्षुण्य अमर रखेगी।जय हिंदी।
जांलधर ( पंजाब ) से डाँ नीलम अरुण मित्तु लिखती है कि हिन्दी केवल भारत की राजभाषा ही नहीं अपितु भारतीयता की, भारतीय अस्मिता की पहचान है। हमारे चिंतन मनन के सभी पक्ष इस भाषा के रचनात्मक संसार में उपलब्ध हैं। धर्म हो, दर्शन हो, संस्कृति हो, सामाजिक संदर्भ हों अथवा व्यक्तिगत जीवन शैली हो सबका चित्रण हिन्दी के मनीषियों ने , रचनाधर्मी साहित्यकारों व्यापक रूप में किया है। विश्व को भरतियाता की पहचान कराने में यह भाषा कल भी सशक्त माध्यम थी आज भी है और भविष्य में भी रहेगी।भारतीय जीवन का आदर्श रूप दिखाना हो तो तुलसीदास का रामचरितमानस, यथार्थ बताना हो तो प्रेमचंद का गोदान, दर्शन हेतु जयशंकर प्रसाद की कामायनी और वैचारिक ऊदातत्ता हेतु दिनकर की रचना कुरुक्षेत्र बहुत है। यह तो मात्र उधाहरण है ऐसी असंख्य बहुमूल्य रचनाएँ हैं जो हिन्दी साहित्य के भंडार में भरी पड़ी हैं । स्पष्ट है की भारत को जानना है तो हिन्दी भाषा और साहित्य हीविश्वसनीय माध्यम है क्यूँकि हिन्दी के बिना हिंदुस्तान को समझा ही नहीं जा सकता।भारत की बहुआयामी संस्कृति की पहचान है हिन्दी।
गाजियाबाद ( उत्तर प्रदेश ) से विष्णु सक्सेना लिखते है कि हिन्दी है तो भारत है
हर देश की अपनी भाषा होती है जो उसका गर्व होती है ा आज हमें यह कहते हुए गर्व होता है कि हिन्दी विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में दूसरे स्थान पर है यह विश्व के 126 विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैंं । हमें यदि भारत का सम्मान बढ़ाना है तो हिन्दी के विकास के लिए कार्य करना होगा । हम देश में ऐसा वातावरण बनाए कि लोग अपने बच्चों को कनवेंट स्कूलों में ना पढ़ाकर हिन्दी स्कूलों में पढ़ाए । न्याय पालिका व कार्य पालिका का सारा कार्य हिन्दी में हो ।विज्ञान व मेडिकल में शिक्षा के लिए हिन्दी में आवश्यक पुस्तकें उपलब्ध हों तभी हम हिन्दी पर उचित रूप से गर्व कर देश का नाम ऊँचा कर सकेंगे
परिचर्चा के अन्त में स्पष्ट करता हूँ कि जनता में हिन्दी के प्रति बहुत आदर व सम्मान है और इसके लिए कर्म करने में कभी पीछे नहीं रहते हैं परन्तु सरकारी विभागों की स्थिति बहुत ही खराब है । एक जिक्र और करता हूँ कि बात 1997 की है । पानीपत साहित्य अकादमी ने हिन्दी दिवस समारोह की सूचना देश के कोने - कोने में भेजी गई । जबाब आने भी शुरू हुऐं । परन्तु डांक विभाग ने मेरी डांक पर रोक लगा दी । मैं डांक विभाग के पोस्ट मास्टर से भी मिला और स्पष्ट किया कि मेरे पास वोटर कार्ड व राशन कार्ड ( उस समय इससे ज्यादा कुछ नहीं होता था ) है और दिखाया भी दिया । परन्तु डांक देने से इंकार कर दिया । मैंने आत्महत्या करने की घोषणा कर दी । मैंने डांक विभाग के पोस्ट मास्टर के खिलाफ प्रशासन व प्रधानमंत्री को शिकायत भेजी । प्रधानमंत्री कार्यालय से जबाब भी आया । परन्तु अधिकारियों ने मुझे कोई जबाब नहीं दिया । पता चला कि अधिकारियों ने गुपचुप तरीक़े से अपने स्तर पर जबाब भेजें कर , केस को बन्द कर दिया । हिन्दी के प्रति मेरा यह अनुभव भी है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
आलेख व सम्पादन
सकारात्मक कार्य, विश्व हिन्दी दिवस की। बधाई ह|
ReplyDeleteआदरणीय बिजेंदर जैमिनी जी, सर्वप्रथम मैं आपका आभारी हूं कि आपने मुझे हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित परिचर्चा में आमंत्रित किया। आपने राष्ट्र भाषा के प्रति अप्रतिम प्रयास किया है। मैंने सभी प्रबुद्ध नागरिकों के विचार पढ़े। आपके मंच से हिन्दी को वांछित सम्मान मिला है। हार्दिक नमन।
ReplyDeleteआपका ह्दय से आभार जो आपने मेरे विचारों को सांझा किया। आप जैसे हिन्दी भाषा के सच्चे सेवक भारत में हैं तो हिन्दी उत्तरोत्तर बढती जाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद ।
आप सभी का धन्यवाद । जो परिचर्चा में अपने विचार नहीं दे पाये । वे सभी अपने विचार यहाँ पर दे सकते हैं ।
ReplyDelete