देश का तिरंगा - भारत की पहचान


जैमिनी अकादमी , पानीपत ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर " देश का तिरंगा - भारत की पहचान " परिचर्चा का आयोजन किया है । सबसे पहले तिरंगा ध्वज की बनावट तथा इतिहास पर नज़र डालते हैं । ये तीन रंगों से केसरिया, सफेद और हरे रंग से बना है।  झंडे के बीच में नीले रंग का चक्र होता है। तीनों रंगों का अपना अलग महत्व है। केसरिया रंग जहां शक्ति का प्रतीक है। वहीं सफेद रंग शांति का प्रतीक है। जबकि हरा रंग हरियाली और संपन्नता का प्रतीक है। तिरंगे के बीच में बना चक्र राजा अशोक द्वारा सारनाथ में स्थापित सिंह के क्षेत्रफल के आधार पर बनाया गया है। नीले रंग का चक्र जीवन में गतिशीलता और इसकी तीलियां 24 है।  झंडे की लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 2:3 होता है। जबकि चक्र की परिधि सफेद पट्टी के अंदर होती है। 

     राष्ट्रीय ध्वज की रचना में कई बार बदलाव हुए। पहले ध्वज का इस्तेमाल आजादी के प्रति अपनी निष्ठा को दर्शाने के लिए होता था। बाद में ये राजनितिक विकास का भी प्रतीक बना। देश का सबसे पहला राष्ट्रीय ध्वज वर्ष 1906 में बना। इसे कोलकाता के बागान चौक में फहराया गया था। इसमें केसरिया, पीला और हरा रंग था। इसमें आधे खिले कमल के फूल बने थे। साथ ही वंदे मातरम लिखा हुआ था। इससे पहले दो रंगों का ध्वज बना था। इसे पेरिस में मैडम कामा और उनके साथ निर्वासित कुछ क्रांतिकारियों ने फहराया था। बाद में इसे बर्लिन के एक सम्मेलन में भी दिखाया गया था। इसमें तीन रंग थे। जबकि ऊपरी पट्टी पर कमल का फूल बना था। साथ ही सात तारे भी बने थे। इससे पहले 1904 में आजादी के लिए अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए ध्वज का निर्माण किया गया। जिसे स्वामी विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने बनाया था। बंगाल में एक जुलूस के दौरान विरोध जताने के लिए तीन रंगों वाले ध्वज का प्रयोग किया गया था। फिर नया राष्ट्रीय झंडा साल 1917 में सामने आया। इसमें 5 लाल और 4 हरी पट्टियां बनी हुई थी। इसके साथ सप्तऋषि के प्रतीक सितारे भी थे। इस झंडे को डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू आंदोलन के दौरान फहराया था। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का प्रगतिशील और अहम सफर 1921 से तब शुरू हुआ, जब सबसे पहले महात्मा गांधी जी ने भारत देश के लिए झंडे की बात कही थी और उस समय जो ध्वज पिंगली वैंकैया जी ने तैयार किया था उसमें सिर्फ दो रंग लाल और हरे थे। झंडे के बीच में सफेद रंग और चरखा जोड़ने का सुझाव बाद में गांधी जी लाला हंसराज की सलाह पर दिया था। सफेद रंग के शामिल होने से सर्वधर्म समभाव और चरखे से ध्वज के स्वदेशी होने की झलक भी मिलने लगी। इसके बाद भी झंडे में कई परिवर्तन किए गए। यह ध्वज पहले अखिल भारतीय कांग्रेस के लिए बना था। उसके बाद राष्ट्रीय झंडा 1931 बनाया गया। जिस के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। गांधी जी के संशोधन के बाद ध्वज में केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टियों के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र रखा गया। झंडे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया। भारतीय संविधान सभी में इसे 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर स्वीकृति  मिलने के बाद सबसे पहला राष्ट्रीय ध्वज 1947 को लाल किले पर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने फहराया था। पहले राजकीय जगहों के अतिरिक्त किसी और स्थान पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति नहीं थी। बाद में 26 जनवरी 2002 में ध्वज संहिता में संशोधन किया गया। अब भारतीय नागरिक घरों, कार्यालयों और फैक्टरियों में कभी भी राष्ट्रीय ध्वज फहरा सकते हैं।
अब परिचर्चा पर आते है । परिचर्चा में अनेक विचार आये हैं । परन्तु सबसे अधिक काव्य के रूप में आये है । जो सार्थक भी है । फिलहाल कुछ काव्य के रूप में पेश हैं :- 
पानीपत साहित्य अकादमी के वर्तमान अध्यक्ष श्री मदन मोहन ' मोहन ' जी ने तिरंगा नामक कविता में कहतें हैं :-

                    तिरंगा 

नर - नारी ने अपनी कथा का 
धरा पर अपना रंग भरा
अणगणित मणियों ने अपनी 
आजादी की आहुति दी ।
      भारत में नव युग का 
      यह संचार हुआ ।
आजाद ने अपनी आजादी
भगत ने अपनी भक्ति 
गुरु ने अपनी शक्ति
महात्मा ने अपनी अहिंसा
राष्ट्र को  सुख का दान दिया ।
         वसुंधरा की जंजीरों को तोड़ कर
         गणतंत्र की प्रभात में
         नभ ने तिरंगे को 
         नतमस्तक किया ।
 देहरादून - उत्तराखंड से डाँ. भारती वर्मा कविता के रूप में लिखती है :-
       

तिरंगा
————-
लहर लहर कर 
फहर फहर कर 
गा रहा मेरा तिरंगा! 
शुभ्र नील गगन 
चले मुक्त पवन 
उड़ रहा मेरा तिरंगा!
हुए दुःख शमन 
करते सब नमन 
देख रहा मेरा तिरंगा!
आज हम स्वतंत्र 
मिला है प्रजातंत्र 
कह रहा मेरा तिरंगा!
सदा सम्मान में रहे 
सदा ये ध्यान में रहे 
स्वाभिमान मेरा तिरंगा!
—————————
महेश गुप्ता जौनपुरी कविता पेश करते है :-

शान तिरंगा हैं 

सजदे में मैं भी आऊ तिरंगे में लिपट कर
मेरा रोम रोम गाये भारत माता की जय
यू खिलता रहे फलता रहें मेरा भारत देश
सर झुके तो मेरा तिरंगे की शान में

नदिया ये पर्वत झरने गुणगान करती हैं 
भारत माँ के चरणों में प्रणाम करती हैं 
तीन रंग के तिरंगे का पहचान हैं अपना
भारत वासी को तिरंगे पर अभिमान हैं

हम भूल नहीं सकते बलिदान नौजवान की
देश के लिए जो मिट गये शान में तिरंगे की
तिरंगे को बचाने के लिए लुहलुहान हो गये
देश को बचाने में ज़िन्दगी कुर्बान कर गये

नव जोश नव किरण नव तरंग हैं तिरंगे में
तिरंगा ही पहचान हैं भारत के वीरो का
झुक नहीं सकता हैं गीदड़ धमकियों से तिरंगा
देश के लिए लहरता रहेगा हमेशा तिरंगा
डाँ. अर्चना दुबे की कविता गणतंत्र पर विशेष है :- 
*गणतंत्र दिवस*

भारत का जीत हुआ
गणतंत्र दिवस विशेष है
जन गण मन का गान हुआ
हिन्दुस्तान के देश में ।

बच्चा बच्चा मतवाला है
झंडा लेकर हाथ में
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
गाते सब एक साथ में ।

मिला सभी को वो अधिकार
जिसका सबको चाह है
एक साथ सब मिलकर बोले
यही हमारा राह है ।

शान तिरंगे का है बढ़ाना
नील गगन में है लहराना
जान की बाजी लगाकरके
अपने तिरंगे को है दिखाना ।

नमन है वीर शहीदों को
जिसने भी कुर्बानी दी
भगतसिंह, आज़ाद व बिस्मिल
जिसने अपनी जवानी दी ।

जलियांवाला बाग बताता
दर्दनाक कहानी को
कितने नाम गिनाऊँ मैं
उस जलती हुई जवानी को ।

आज विश्व के नामों में
भारत देश महान है
करू अर्चना उन वीरो का
जो देश हित दिया जान है ।
पानीपत के कवि धर्मेंद्र अरोड़ा ' मुसाफिर ' ने तिरंगा पर अपने विचार इस प्रकार पेश किये :-

मेरी जान तिरंगा है  
मेरी शान तिरंगा है 
जग में एक अनूठी सी
ये पहचान तिरंगा है 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़ से डाँ माधुरी त्रिपाठी अपनी विशेष कविता पेश कर रही है :- 

भारत की पहचान

देश का तिरंगा भारत की पहचान  
तीन रंगो  से सज़ा तिरंगा 
लगता है सबको प्यारा है 
भारतभूमि सदैव हमे 
शहीदो की शहादत का याद दिलाता है 
तीन रंगो की महिमा न्यारी  
हर एक की गुण है भारी 
केसरिया रंग बलिदानी सूचक 
 सफेद रंग  शान्ति का धोतक 
 हरा रंग हरियाली का पोषक 
इसमें प्रतिभाषित अंतरमन 
कनक अचछर से अंकित है 
शहिदो की बलिदानी   समवत 
अनेकता में एकता 
यह है भारत की विशेषता
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई 
हम सब है भाई भाई 
तिरंगे को फहराकर हम 
शहीदो को नमन करते है  
जय हिन्द जय भारत के जयघोष से
 तिरंगे को नमन करते है
 नागपुर - महाराष्ट्र से जय प्रकाश सूरयवंशी किरण ने  देश प्रेम भक्ति पर एक रचना पेश की है :-

अनेकता मे एकता।

भारत हमारा प्यारा, देश है,
यहाँ अनेकता मे एकता का समावेश है
विश्व मे निराला परिवेश है।
भारत..................

धर्म जाति,  यहाँ भाषाएं अनेक है।
यहाँ संस्कृति और संयम विवेक है।
अनेक भाषियों का निराला परिवेश है
धर्म संस्कृति सिद्धांत उद्देश्य है।
भारत............

यहाँ की संस्कृति विश्व मे निराली है,
हम सभी को कया, विश्व मे प्यारी है।
विश्व प्रसिद्ध कवि, लेखको की भूमि है,
राम ,कृष्ण, रहिम, पैगंबर की भूमि है।
यहां सभी धरमावलंबियो का समावेश है,
धर्म, संस्कृति अनेक होकर उद्देश्य एक है।
भारत..............

जाति,धर्म कभी भाषा का विवाद आया है,
विवादों को सभी ने एकता से सुलझाया है।
सत्य, और,अहिंसा हमारा परम उद्देश्य है।
यहां की धर्म संस्कृति सभ्यता विशेष है।
भारत...............
भारत..................
अग्निशिखा मंच , मुम्बई से अलका पाण्डेय लिखती है :- 
देश का तिंरगा - भारत की पहचान
तीन रंग से सजा तिरंगा भारत माता की शान है
देश का तिरगां , बलिदानों की शान है।
देश भक्ति की भावन से देते वीर जान है
भारत मां की ह्रदयस्थली हम सब की पहचान है।।
तीन रंग से सजा तिरंगा बलिदानों की शान है।।
एक सूत्र में जोड़े सबको, अमन गीत यह गाता है,
प्रेम एकता हिम्मत साहस पग पग पर बतलाता है।
देशभक्ति में होते जवान शहीद है
अमर शहीदों की गाथा  का,करता यह गुणगान है।
तीन रंग से सजा तिरंगा  बलिदानों की शान है।।
हम सबकी है ज़िम्मेदारी इसका मान बढ़ाने की,
ऊंच नीच और भेदभाव से,इस की लाज बचाने की।
देश भक्तों का होता बडा मान है देश की ख़ातिर जान लड़ा दूं, मेरा यह अरमान है।।
तीन रंग से सजा तिरंगा बलिदानों की शान है।
भारत मां के दिल का टुकड़ा ,हम सब की पहचान है ।
जबलपुर - मध्यप्रदेश से अनन्तराम चौबे अनन्त ने देश भक्ति से परिपूर्ण  कविता :-

        तिरंगा प्यारा

तीन रंग का तिरंगा प्यारा ।
हरा सफेद केशरिया प्यारा ।
पूरव पश्चिम उत्तर दक्षिण 
फहराता है  तिरंगा न्यारा  ।
आजादी के उन वीरो ने
अपनी जान गवाई थी ।
15 अगस्त 1947 को
हमने आजादी पाई थी ।
तीन रंग के तिरंगे ने
सबकी शान बढाई थी ।
लक्ष्मीबाई ने सबसे पहले
आजादी पाने को अग्रेजो
से खूब लड़ी लड़ाई थी ।
खूब लड़ी मर्दानी वह 
तो झाँसी वाली रानी थी ।
आजादी पाने में रानी ने
अपनी जान गवाई थी ।
मशाल फूककर आजादी
की खूब लड़ी लड़ाई थी ।
सुभाषचन्द्र भगतसिंग ने
आगे की राह दिखाई थी ।
चन्द्रशेखर आजाद ने भी
छोटी सी उम्र में आजादी
की विगुल बजाई थी ।
राजगुरू सुखदेव ने 
मिलकर अग्रेजो की
नीद उड़ाई थी ।
ऐसे वीर योद्धाओ ने
फाँँसी पर चढकर
देश और देशवासियो 
को आजादी दिलाई थी ।
तिरंगे को फहराकर
सबने स्वातंत्रता पाई थी ।
जान तिरंगा शान तिरंगा
तिरंगे की शान बढानी है ।
वीर शहीदो की कुर्वानी 
को याद करके दोहरानी है।
शत शत नमन सभी करते है ।
ये गाथा सबको दोहरानी है ।
गणतंत्र दिवस अमर रहे
तिरंगे की शान बढानी है ।
पानीपत के युवा कवि मदन लाल आजाद कहते है :-
 तिरंगा साड़ी आन दा झण्डा 
तिरंगा साड़ी शान दा झण्डा 
दुश्मन वेख के थर थर कमदा 
ऐ है साडै हिन्दुस्तान दा झण्डा 
इसतो कुर्बान है अपनी जान 
देश दा तिरंगा भारत दी शान
 नमन है तिरंगे को जिससे हमारी है शान
कभी झुकने ना देंगे जब तक है जिस्म मे जान 
यही है मेरा अल्लाह और भगवान् 
देश का तिरंगा भारत की शान
 गंगापुर सिटी , राजस्थान से विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' ने अपने भाव कविता के माध्यम से भेजें हैं :- 

    गणतंत्र मनायें

आओ जण गण मन गायें 
आओ हम गणतंत्र मनायें
भगवा शौर्य सिखाता हमको 
श्वेत शान्ति समझाता हमको 
हरा हराता बदहाली को 
हर घर तिरंगा फहरायें 
आओ हम गणतंत्र मनायें ।
नेहरू का गुलाब गाँधी का सपना 
देश तरक्की कर रहा अपना 
भारत माँ की कीर्ति जगत में 
चमके और चमकायें
आओ हम गणतंत्र मनायें ।
बलिदानों को याद करें हम
लड़े नहीं  संवाद करें हम
संविधान हो सबको प्यारा 
द्वेष भाव विसराये 
आओ हम गणतंत्र मनायें ।
शिवपुरी - मध्यप्रदेश से शेख़ शहज़ाद उस्मानी की देशभक्ति की बाल कविता पेश है :-

      देश और तिरंगा 

मन चंगा अपना, तन भी चंगा,
प्रेम- एकता की बहे बस गंगा,
मुंबई, जम्मू हो या दरभंगा,
न तो पंगा, न हो कोई दंगा,
देश-द्रोही हो या फिर लफंगा,
देशभक्तों को पड़े न महंगा,
गंगा-जमुनी सी संस्कृति में,
स्वच्छ भारत में चंगा-मंगा,
कोई रंग न हो बदरंगा,
विकास चहुंमुखी हो बस सतरंगा,
ऊँचा रहे देश और तिरंगा।
       फिलहाल यह परिचर्चा है। जिसमें तिरंगा झण्डा के इतिहास पर व डिजाइन पर प्रकाश डाला गया है । कुछ कविताओं को भी पेश किया गया है ।  तिरंगा झण्डा भारतीयता का प्रतीक है । तिरंगा झण्डा का सम्मान सभी को करना चाहिए । 
                 - बीजेन्द्र जैमिनी
                     (आलेख व सम्पादन)

Comments

  1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय स्थान देने के लिए ......

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  2. This comment has been removed by a blog administrator.

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  3. (27-01-2019)

    मेरा *सिंहावलोकनी दोहा-मुक्तक* --

    सैनिक कितना त्यागता, जान सके परिवार,
    परिवार सतत् भोगता, भूल रहा संसार,
    संसार जानता यही, सैनिक कवच समान,
    समान इच्छा वह रखे, मिले मान-उपकार।

    *शेख़ शहज़ाद उस्मानी*
    शिवपुरी (म.प्र.)
    {रचना तिथि : 16 सितम्बर, 2015}

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  4. राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की ख़ातिर :

    “नव-जागृत भारत अग्रसर अब, सबको है आभास लिखो,
    मेरे भारत पर दुश्मन की, निकले आज भड़ास लिखो,
    थोपी जाती बाधा जो हम पर, पार सहज हमने की,
    कोरे काग़ज़ पर कविवर तुम, भारत का इतिहास लिखो।"

    (मौलिक व स्वरचित)
    शेख़ शहज़ाद उस्मानी
    शिवपुरी (म.प्र.)
    [रचना तिथि :04 अगस्त, 2015]
    shahzad.usmani.writes@gmail.com

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  5. चमकते सूरज से राष्ट्रीय ध्वज संग क़्दम से क़दम बढ़ाए जा :


    "क़दम से क़दम मिलाकर बढ़ता जा,
    चरण-दर-चरण सफल तू होता जा,
    समीप नज़र आये तेरी मंज़िल,
    चमकता सूरज बस चढ़ता जा।"

    (मौलिक व स्वरचित)

    _ शेख़ शहज़ाद उस्मानी
    शिवपुरी (म.प्र.)
    (रचना तिथि : १७/६/२०१५)
    shahzad.usmani.writes@gmail.com

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  6. एतद द्वारा प्रमाणित करता हूं कि मेरी उपरोक्त सभी रचनाएं मेरी मौलिक व स्वरचित रचनायें हैं।

    शेख़ शहज़ाद उस्मानी
    शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
    (27-01-2019)
    shahzad.usmani.writes@gmail.com

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  7. This comment has been removed by the author.

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  8. परिचर्चा में मेरी काव्य रचना-भाव सम्मिलित करने हेतु हार्दिक धन्यवाद।
    - शेख़ शहज़ाद उस्मानी (28-01-2019)

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