पद्मश्री लोक कवि हलधर नाग

            ओड़िशा की कोसली भाषा के प्रसिद्ध कवि हलधर नाग जी ने बीस से अधिक महाकाव्य लिख चुकें हैं । सब के सब ज़ुबानी याद हैं। गरीब दलित परिवार हलधर नाग  के दस साल की आयु में मां बाप के देहांत के बाद तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ दी थी। अनाथ की जिंदगी जीते हुये ढाबा में जूठे बर्तन साफ कर कई साल  गुजारने के बाद एक स्कूल में रसोई की देखरेख का काम मिला गया । कुछ वर्षों बाद बैंक से एक हजार रु कर्ज लेकर पेन-पेंसिल आदि की छोटी सी दुकान उसी स्कूल के सामने खोल ली , जिसमें वे छुट्टी के समय पार्टटाईम बैठ जाते थे।  1995 के आसपास स्थानीय भाषा में ''राम-शबरी '' जैसे कुछ धार्मिक प्रसंगों पर लिख लिख कर लोगों को सुनाना शुरू किया। भावनाओं से पूर्ण कवितायें लिख कर लोगों के बीच प्रस्तुत करते करते वो इतने लोकप्रिय हो गये । कि राष्ट्रपति से उन्हें साहित्य के लिये पद्मश्री प्रदान किया गया। पांच से अधिक शोधार्थी अब तक उनके साहित्य पर पीएचडी कर चुकें हैं जबकि स्वयं हलधर तीसरी कक्षा तक पढ़े हैं। अब संभलपुर विश्वविद्यालय में उनके लेखन के एक संकलन ‘हलधर ग्रन्थावली-2’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है । सादा लिबास, सफेद धोती, गमछा और बनियान पहने, नाग नंगे पैर ही रहते हैं।



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