शहीद भगत सिंह के बलिदान दिवस पर फेसबुक कवि सम्मेलन

जैमिनी अकादमी द्वारा शहीद भगत सिंह के बलिदान दिवस पर फेसबुक कवि सम्मेलन रखा गया है । कवि सम्मेलन का विषय इंकलाब है ।
          क्रान्तिवीर भगतसिंह का जन्म 28 सितम्बर, 1907 को ग्राम बंगा, (जिला लायलपुर, पंजाब) में हुआ था। उसके जन्म के कुछ समय पूर्व ही उसके पिता किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह जेल से छूटे थे। अतः उसे भागों वाला अर्थात भाग्यवान माना गया। घर में हर समय स्वाधीनता आन्दोलन की चर्चा होती रहती थी। इसका प्रभाव भगतसिंह  पर पड़ा। 
   13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग में क्रूर  डायर ने गोली चलाकर हजारों नागरिकों को मार डाला। यह सुनकर  भगतसिंह वहाँ गया और खून में सनी मिट्टी को एक बोतल में भर लाया। वह प्रतिदिन उसकी पूजा कर उसे माथे से लगाता था।  धूर्त अंग्रेज अहिंसक आन्दोलन से नहीं भागेंगे। अतः उन्होंने आयरलैण्ड, इटली, रूस आदि के क्रान्तिकारी आन्दोलनों का गहन अध्ययन किया। वे भारत में भी ऐसा ही संगठन खड़ा करना चाहते थे।  कानपुर में स्वतन्त्रता सेनानी गणेशशंकर विद्यार्थी के समाचार पत्र ‘प्रताप’ में काम करने लगे। कुछ समय बाद वे लाहौर पहुँच गये और ‘नौजवान भारत सभा’ बनायी।  उनकी भेंट चन्द्रशेखर आजाद जैसे साथियों से हुई। उन्होंने कोलकत्ता जाकर बम बनाना भी सीखा। 1928 में ब्रिटेन से लार्ड साइमन के नेतृत्व में एक दल स्वतन्त्रता की स्थिति के अध्ययन के लिए भारत आया। लाहौर में लाला लाजपतराय के नेतृत्व में इसके विरुद्ध  प्रदर्शन हुआ। इससे बौखलाकर पुलिस अधिकारी स्काॅट तथा सांडर्स ने लाठीचार्ज करा दिया। वयोवृद्ध लाला जी के सिर पर इससे भारी चोट आयी और वे कुछ दिन बाद चल बसे। उन्होंने कुछ दिन बाद सांडर्स को पुलिस कार्यालय के सामने ही गोलियों से भून दिया। पुलिस ने बहुत प्रयास किया । पर सब क्रान्तिकारी वेश बदलकर लाहौर से बाहर निकल गये। कुछ समय बाद दिल्ली में अधिवेशन होने वाला था। क्रान्तिवीरों ने वहाँ धमाका करने का निश्चय किया। इसके लिए भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त चुने गये। 
निर्धारित दिन ये दोनों बम और पर्चे लेकर दर्शक दीर्घा में जा पहुँचे। भारत विरोधी प्रस्तावों पर चर्चा शुरू होते ही दोनों ने खड़े होकर सदन मे बम फेंक दिया। उन्होंने ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ के नारे लगाते हुए पर्चे फेंक, जिन पर क्रान्तिकारी आन्दोलन का उद्देश्य लिखा था।
पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया। न्यायालय में भगतसिंह ने जो बयान दिये, उससे सारे विश्व में उनकी प्रशंसा हुई। भगतसिंह पर सांडर्स की हत्या का भी आरोप था। उस काण्ड में कई अन्य क्रान्तिकारी भी शामिल थे ।जिनमें से सुखदेव और राजगुरु को पुलिस पकड़ चुकी थी। इन तीनों को 24 मार्च, 1931 को फाँसी देने का आदेश जारी कर दिया गया। भगतसिंह की फाँसी का देश भर में व्यापक विरोध हो रहा था। इससे डरकर धूर्त अंग्रेजों ने एक दिन पूर्व 23 मार्च की शाम को इन्हें फाँसी दे दी और इनके शवों को परिवारजनों की अनुपस्थिति में जला दिया ।  इस बलिदान ने देश में क्रान्ति की ज्वाला को और गति मिली। उनका नारा ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ आज भी सभा-सम्मेलनों में ऊर्जा का संचार करता है।
फेसबुक कवि सम्मेलन में विषय अनुकूल रचनाओं को सम्मानित किया जा रहा है : -

              इंकलाब की त्रिमूर्तियां



केसरिया बाने में निकले थे, 
बलिदानी वीर सपूत! 
भगतसिंह,सुखदेव, राजगुरु-
इंकलाब के अग्रिम दूत!! 
सोया हुआ अंग्रेज़ जगाने-
नाद ब्रह्म उद्घोष सहित,  
किया स्वतंत्रता की बलिवेदी पर-
तन,मन, धन, जीवन आहूत!! 
        कायर अंग्रेज़ों ने समझा, 
        मृत्यु देख डर जाएंगे! 
       अत्याचारों के दावानल-
       में जल कर मर जाएंगे!! 
       नहीं जानते थे अंग्रेज़--ये-
       मार्तण्ड की ज्वाला हैं 
       काले शासन के अंधियारे-
       इक दिन यही मिटाएंगे!! 
इनके तेज पुत्र के आगे, 
शत्रु बड़ा घबराया था! 
न्याय-नीति के नाम पे कोरा, 
बर्बर ढोंग रचाया था!! 
तब इंकलाब इन वीरों ने-
रुकने न दिया-झुकने न दिया, 
सर्वस्व किया अर्पण अपना-
और हमको देश थमाया था!! 

- आचार्य चिर आनन्द
    सैनवाला - हिमाचल प्रदेश
==================

                 इन्कलाब इक नारा



मतवालों का इन्कलाब इक नारा था ।
क्रन्तिकारी बेटों को देश जान से प्यारा था ।

कई मतवालों ने गोरे दमनकारियों के सर फोड़े ।
सेंट्रल हाल में भगत सिंह ने कई बम थे फोड़े ।।

आज हम सब को उनकी कुर्बानी क्यूं भला भूली ।
हमारे लिये ही तो हंस हंस वो चढ गये थे सूली ।।

आज कुर्बानी का मजाक बनाया हमारे नेताओं ने ।
भ्रष्टा चार से अपने घर भर लिये दुष्ट नेताओं ने ।।

अब एक और इन्कलाब फिर देश मे आयेगा ।
सत्ता के लोभियों का सिंघासन तब डोल जायेगा ।।

         - सुरेंद्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
=============

                 इंकलाब जिंदाबाद



मात्र नहीं दो शब्द यह नारा,
जन मन की अभिव्यक्ति रहा।
 इंकलाब जिंदाबाद, यह
दीवानों की शक्ति रहा।।
इस नारे ने नींद उड़ा दी
थी अंग्रेजी शासन की।
उनको चिंता लगी सताने,
तब अपने ही जीवन की।
जोश जगा था हर जन मन में,
सब चाहते थे आजादी।
इंकलाब हो गया देश में,
शासन में हलचल ला दी।
क्रांतिकारियों के जीवन का,
यह नारा ही मंत्र हुआ।
वीर शहीदों के बलिदानों से
यह देश स्वतंत्र हुआ।
इंकलाब की शक्ति अतुलित
हम इसका सम्मान करें।
वीर शहीदों की यादों संग
हम उनका गुणगान करें।।

-  डॉ.अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
===============

      नौजवान के लिए बना एक मिसाल



भारत की भूमि जन्मा था एक लाल। 
नौजवान के लिए बना एक मिसाल।। 
भगतसिंह ने फिरंगियों का किया बुरा हाल। 
वतने आजादी के लिए तोड़ा इनका हर जाल।।
मां ने की नहीं परवाह वतन पे कुर्बान करा लाल ।
 कोख का कर्ज अदा करके भगत ने किया कमाल।। 
इंकलाबी भगत नौजवानों के दिलों में भर दिया भूचाल। 
सुखदेव, राजगुरु ने साथ भगत सिंह हुआ निहाल।। 
तेईस मार्च को हंसते हंसते गले डाल फंदा किया कमाल। 
नौजवानों ने प्ररेणा बनें इंकलाब आ गया भूचाल।। 
बसंती के रंग में रंगी देह देश में क्रांति की मशाल। 
इनके बलिदान को न भूलें भारत का हर लाल।। 

- हीरा सिंह कौशल 
मंडी - हिमाचल प्रदेश 
================

                भारत मां का लाल



जुनून आजादी पाने का सूत्रधार 
बना "इंकलाब जिंदाबाद"।।

याद कर सम्मान में उन शहीदों को
जिसने एक-एक कतरा लहू देकर
तिरंगे को संवारा है।

इन शूरवीर को मेरा शत शत नमन
शहीद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु
यह तीनों हंसते हुए फांसी पर झूल 
कर बनाया इसे आधार।

शहीदों को कभी नहीं भूलेगा
भारत मां, क्योंकि इंकलाब जिंदाबाद 
का नारा देकर अपना जीवन 
निछावर कर दी।।

उस मां को जाकर कौन बताएगा,
मां तेरा लाल भारत मां का लाल बनकर
उनके आंचल मैं सदा के लिए सो गए।
वतन के लिए शहीद सपूत खुद 
को अजर- अमर कर गए।।
"शत शत नमन" "शत शत नमन"
 "शत शत नमन"

- विजयेन्द्र मोहन
   बोकारो - झारखंड
================

          वो आजादी का मतवाला था 



हॅंसते-हॅसते फाॅसी को चूमा , वो अजब निराला था ।
 मर कर मिले स्वतंत्रता,वो आजादी का मतवाला था ।।
तन हमारा माटी में मिल, खूश्बू अपनी फैलायेगा ।
देखना इक दिन, तिरंगा लालकिले पर फहरायेगा ।।
इंकलाब रहेगा जिन्दाबाद ,यही प्रण अब हमारा है ।
जान हमारी कुछ भी नहीं, देश हमें जान से प्यारा है ।।
हम रहें न रहें , हिन्दुस्तान हमारा रह  जायेगा ।
ये दुनिया भी देखेगी,रक्त हमारा रंग अपना दिखायेगा ।।
                      - डॉ. हरेन्द्र हर्ष
                      बुलन्दशहर - उत्तर प्रदेश
===============

            भगत सिंह था उनका नाम



आजादी के परवाने थे ,वतन से था उनको प्यार । 
जोश जवानी का था उनमें ,उठा लिए थे तब हथियार। 
गुलामी की जजीरें तोड़ी ,भगत सिंह था उनका नाम। 
सुखदेव संग राज गुरु थे , एक ही था उनका काम। 

घर से निकल पड़े वो अपने , दुश्मन पर करने को वार। 
हाथ जोड़ कर नहीं मिलेगी ,आज़ादी पर किया विचार।    
बल से ही तो काम बनेगा , जाएगा भारत से पार। 
सबक सिखाना है अब उनको ,होना होगा अब तैयार। 

खेल रहे थे वो गोली से , भरी जोर से थी हुंकार। 
निडर शेर थे वो भारत के, गोरे का तब किया शिकार। 
हाहाकार मची गोरों में , संकट में भी उनकी जान। 
अलख जगी थी तब भारत में,गोरों को था इसका भान।

बंधन में बंधना नहीं था , लगा दिया था पूरा जोर । 
असेम्बली में घुसे तीनो , वहाँ  मच गया पूरा शोर। 
भरी सभा में बम फेंका था , आग का छाया गया गुबार । 
भगदड़ गोरों बीच हुई थी , सुनता उनकी कौन पुकार। 

भागे नहीं सपूत वहाँ से , अंग्रेजों के आए हाथ। 
बिना डरे ही संग चले वो ,साहस ही थी उनका साथ। 
माफ़ी ना माँगी  वीरों ने ,गोरों ने फिर चल दी चाल। 
हँसते हँसते फाँसी झूले , अमर हो गए भारत लाल।। 

- श्याम मठपाल 
उदयपुर - राजस्थान
==================

                   हे वीर नमन तुम्हें 



कण कण आज सुना रही है, 
गाथा जिनके शौर्य की,
सुखदेव,भगत सिंह, राजगुरू,
भारत के वीर सपूतों की।

हँसते हँसते जिन्होंने चुन ली,
राहें निज क़ुर्बानियों की,
क्या खूब डटे वो तान के सीना,
बन गये मिसाल रवानी की।

अलख जगाकर देशभक्ति की जो, 
रणभूमि में थे चिंहाडे,
राजगुरू,सुखदेव,भगत सिंह,
अंग्रेजों पर सिंहों से थे दहाडे,

हे भारत माँ के अमर शहीदों,
है शत शत नमन तुम्हें,
सदियों गूँजेगी गाथा यहाँ,
सदियाँ याद करेंगी जिन्हें ।

- सुखमिला अग्रवाल ‘भूमिजा’
जयपुर - राजस्थान
================

                  चलें ऐसी हवाएँ



हो चुके हैं पूरे 
लगभग नब्बे वर्ष 
आप तीनों की शहादत को 
पर आपके 
पराक्रम की गाथाएँ
आज भी सबको 
करती हैं रोमांचित,
तेरह अप्रैल को 
घटी थी जो घटना 
जलियाँवाला बाग में 
उसके गहन प्रभाव के वशीभूत 
जा पहुँचे थे अमृतसर भगत सिंह 
स्मृति रूप में 
सुरक्षित रखने का 
संकल्प लेकर 
लाए थे वहाँ से 
रक्त से रंगी मिट्टी को 
एकत्रित कर,
रखा था उसे एक शीशी में 
जिस पर चढ़ाते थे 
नित्य पुष्प 
और देते थे श्रद्धांजलि,
यहीं से निर्धारित 
हो गई थी उनकी जीवनधारा,
लक्ष्य था उनका 
व्यक्ति/वर्ग और राष्ट्र द्वारा 
एक-दूसरे का 
किया जाने वाला शोषण 
समाप्त होना है,
तो आइए 
चलें….अपने शहीदों के 
इस लक्ष्य/स्वप्न/संकल्प को 
कुछ इस तरह पूरा करें 
उनका किया 
कोई भी संकल्प 
अब अधूरा न रहे,
अपने शहीदों के 
स्वप्नों का भारत बनाएँ 
“ इंकलाब जिंदाबाद “ का नारा 
मिलकर लगाएँ
गूँजे चतुर्दिक 
शहीदों की सदाएँ
जन्मे पुनः इस भारत भूमि पर 
भगत सिंह/सुखदेव/राजगुरु 
चलें ऐसी हवाएँ।

- डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
=================

                  बोलो बस इंकलाब



इंकलाब जिंदाबाद, जिंदाबाद इंकलाब।
दुर्भाग्य देखो भूल गए हम सब इंकलाब।।

चारों स्तंभ हैं विमुख करते कहां मंथन।
न्यायालयों में गूंजते थे नारे तब इंकलाब।।

अधिकारों की पुकार हर समाचारपत्र में।
मौलिक कर्तव्यों पर चुप्पी अब इंकलाब।।

सेना के सैनिकों को मिलता नहीं न्याय।
न्यायाधीश जागरूक होंगे कब इंकलाब।।

इंकलाब इंकलाब, इंकलाब ही इंकलाब।
जागो भारत उठकर बोलो बस इंकलाब।।

- इन्दु भूषण बाली
 जम्मू - जम्मू कश्मीर
 ===============

         जो हंसते हुए चढ़ गए फांसी पर



वो वीर हमारे,
देश के प्यारे,
भारत मां के दुलारे,
वतन प्रेमियों के आंख के तारे,
भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु,
जिनके बलिदान से एक नई जंग हुई थी शुरू,
जिनकी कुर्बानी से आया था एक ना रुकने वाला इंकलाब,
जो हमेशा रहेंगे जिंदाबाद,
जो चूम कर फांसी का फंदा,
कर गए वतन को सदा के लिए आबाद,
जो हंसते हुए चढ़ गए फांसी पर,
देश की आंखे नम है उनकी कुर्बानी पर,
गर्व है कुर्बान ऐसी निडर, बेबाक, अनमोल जवानी पर,
हो गए अमर दिलों, धड़कनों, यादों, बलिदानों में,
छोड़ गए है जिक्र अपना सदा के लिए सबकी जुबानी पर।
जो कल तक बढ़ाते थे भारत मां की शोभा रहकर धरती पर, 
आज चमकते है बनकर सितारे आसमान पर ,
जान को कर कुर्बान वतन पर,
सहकर हर दर्द, हर पीड़ा, तन पर,
जिनका भारत मां को छोड़ जाना,
घाव करता है मन पर,
चल देश उन्हे नमन कर,
जो जान लुटा धरती पर,
आज सुशोभित विराजमान है गगन पर,
वो ईश्वर के सबसे प्यारे फूल,
अब शामिल है उसके अपने गुलिस्तान में,
वीरान कर गए, हमारा चमन पर। 

- मनीष तिलोकानी
    दिल्ली
==================

           याद रहेगा बलिदान दिवस



आजादी के  परवानों ने, 
बोल दिया था इंकलाब का नारा
जाग उठा  था गुलामी से भारत देश हमारा। 

अंग्रेजों ने  थे भारत देश में 
लाखों जुल्म कमाये, 
आजादी के परवानों ने
अपनी  कुर्वानी से दूर
फिरंगी भगाए। 

सुभाष चंद्र जी ने दिया था 
खून लेकर आजादी
पाने का नारा, 
लक्ष्मी बाई, मंगल पांडे , तात्यां टोपे 
इत्यादी की बहादुरी को देखकर गूंज उठा था भारत
देश हमारा। 

नेता जी ने आजाद हिन्द फौज से कर दी थी फिरंगी 
की तबाही, भाग उठे यहां से
फिरंगी  मिला न उनको कोई सहारा, 
जाग उठा  था गुलामी से 
भारत देश हमारा। 

भगत सिंह, चन्द्र शेखर, 
तिलक की कुर्वानी को कैसे हम भुलाएं, 
धन्य थे वो सपूत भारत के थन्य थीं उनकी मातांए। 

गांधी जी ने सत्यग्रह का अच्छा तीर चलाया, 
हर भारतीय के मन में आजादी का अलख जगाया, 

सदा ऊंचा  रहेगा तिरंगा हमारा, गूंजेगा इंकलाब का 
नारा, धन्य हैं आजादी के परवाने धन्य देश हमारा। 

याद रहेगा बलिदान दिवस, 
याद रहेगा एक एक बलिदानी
का काम  जो था न्यारा
नहीं भूल सकेगा सुदर्शन
आजाद भारत देश हमारा। 

- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
==================

              चढ़ फाँसी पर झूल गये



राजगुरू सुखदेव भगतसिंह, चढ़ फाँसी पर झूल गये
देश की ख़ातिर प्राण दे दिए, पीडा तन की भूल गये 

ऐसा काम करा जगत मे, मात पिता का मान बढ़ा 
रंग बसंती पहन के चोला, इन्कलाब का मंत्र  पढ़ा
खेलकूद की बाली उम्र मे,  देशभक्ति का रंग चढ़ा 
बड़े बड़ों के लिए सबक़, मान गढा स्वभिमान गढ़ा 
भारत माँ के चरणों पर हँस, न्योछावर हो फूल गये 

टोपी मे रख कर बम ले गये, नमन वीरता धारी को
गोरों को घुटने टिकवा दिए, शासन सत्ता सारी को
नींद छीन बेचैन कर दिया, ना चूके अपनी बारी को
पराधीन सपनेहु सुख नाहि, सीखा गये नर नारी को 
जलियाँवाला बाग़ की घटना, सूद सहित दे मूल गये 

गीदड़ सी हलकार भीड़ की, जीभ जुबानी  नारो पर
खडग ढाल बिना आज़ादी, मिलती कहाँ इशारो पर
आज़ादी की जीत लिखाई, तोपों- बम तलवारों पर 
अपनी जां की बाज़ी लगाके, लाए नाव किनारों पर
आने वाली पीढ़ियो के हित, चुनकर मग के शूल गये 

आज़ाद बोस विस्मिल उधम, आरपार की जंग लड़े 
लाख मुसीबत झेली तन पर, निडर शेर से हुए खड़े 
महा संकल्पी कितने ही जन, विस्मृति के भँवर पड़े 
चाह नही  इतिहास  ग्रंथों मे, स्वर्णाक्षर मे नाम जड़े 
शीश झुकाया मानके चंदन, माथे रगड़ के धूल गये 

नही सोना, ना खाना - पीना, रमा नही  मन मेवा मे 
लक्ष्य पर चल पड़े जिधर पग, बढ़े सदा परसेवा मे 
भाग्य विरोधी ईश्वर पूजा, विस्वास ना देवी देवा मे कर्मशील तुम मर्मशील रहे, तत्पर  देश की सेवा मे
भाव 'अनाडी' स्वर्ग नर्क नही, लेके भव के कूल गये 

- डॉ. भूपेन्द्र कुमार 
धामपुर  - उत्तर प्रदेश
====================

                क्रान्तिवीर भगतसिंह 



लायलपुर के बंगाल में जन्म लेकर 
भगतसिंह का नाम कहाया, 
इंकलाब जिन्दाबाद का नारा दिया
पद शहीद एक आजम का पाया।
संगठन नौजवान भारतसभा बना
मैं नास्तिक क्यों हूं कृति रचडाली, 
जननीविद्यावती जनककिशन सिंह 
कभी नझुकीरूकीक्रान्तिकर डाली।
साण्डर्स हत्या में सहयोगी शिवराम
बटुकेश्वर संग असेम्बली हिला ली,
जतिनदास संग भूख हड़ताल कर
जेल की बिगड़ी व्यवस्था संभाली।
किसी देश के संक्रमण काल गौरव
भगतसिंह से सच्चे सपूत होते हैं,
स्वंय ही मौत को गले लगाकर 
बन क्रान्तिवीर क्रान्ति को बोते हैं।
भले ही देश हमारा स्वतंत्र हुआ है
देशवासी भगतसिंह को न भूले हैं,
कण-कण इनका सदैव ऋणी है
देश के लिए ही प्राण दे झूले हैं।।

- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
==================

                  मातृभूमि के वीर



शहीद हुए ,धरती मां के लाल थे
भारत का सपूत, गौरव  का फूल थे
सीना तान  के चलते थे 
अपने झण्डे को सलाम करते थे
इंकलाब का नारा दिया, 
जो सबसे नियारा था
जिन्दा है ,जो आज भी दिलो में
दीपक की ज्योती की  तरह जलते थे 
वीरो के वीर थे  धरती मां के सिपाही थे
जिये तो गर्व से थे,
फांसी पर हंसते - हंसते कुर्बान हो गये थे 
अंग्रेजो को हाथ तक ना  लगाने दिया था ,
ऐसे वीर सपूत थे  
ऐसे वीर सपूत थे 
 क्रान्तिकारी का तिलक लगाया 
 क्रान्तिकारी का पहना चोला 
 क्रान्तिवीर वो कहलाये ऐसे वीर सपूत थे
झण्डे को हाथ में लिये धरती मां की धूल को मुट्ठी में भरे वो शान से कहते
 यह हमारा गर्व है भारत मां हमारी है
 टुकड़े टुकड़े कर  अंग्रेजो ने भारत मां का सीना चीरा था 
 इस पर हत्याचार करना बन्द करो 
लड़ना है तो हम  से लड़ो छल से बार क्यों करते हो 
हम भी धरती मां के सपूत है 
जब तक  हम है तब तक 
धरती मां पर आंच तक नहीं आने देंगे
झण्डे को कभी गिरने ना देंगे
भारत मां के सपूत है 
भारत को आजाद कर के ही रहेंगे 
सारा जमाना देखेगा और गर्व से कहेगा शहीद हुए
 वो भारत के वीर
सपूत थे  
ऐसे वीर सपूत थे ऐसे वीर सपूत थे
शत शत नमन करती हूं 

- पूजा शर्मा
=================

                 कफन था सर पर



भारत के वीर सपूत थे,
 जन्म से ही,
  अराजकता गुलामी,
    जंजीरों के सांये में रहे,
      शनैः-शनैः युवा अवस्था में पहुंचे,
        तो देखा बेबसी-लाचारी,
          अपने अपनों का वह,
            बलिदान, अबलाओं की,
              शक्तियों का तिरस्कार,
                सरदार भगत सिंह थे,
                  मातृभूमि की रक्षार्थ, 
                    कुद पड़े उस आंधी में,
                      देखते-देखते छा गये, 
                        फिरंगियों की नजरों में,
                          कफन था सर पर,
                            वह कुर्बानी थी,
                              ज्वालामुखीय,
                               जिसने जीवन का
                                विस्तार नहीं देखा 
                                  नि:शस्त्र, 
                                    शहीद थे!

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
==================

                भारत पर क़ुर्बान



मैं अपने बोल में नित ही,वतन का गान रखता हूँ।
वतन के वास्ते नित ही हथेली-जान रखता हूँ।
यही है कामना मेरी वतन मेरा सुरक्षित हो,
वतन के वास्ते नित ही हथेली-जान रखता हूँ।।

फूल से ही भरा नित चमन हो मेरा।
सारी दुनिया में अव्वल वतन हो मेरा।
देश पर मैं मिटूँ,है यही कामना,
तीन रंगों से निर्मित कफ़न हो मेरा।।

भगतसिंह तो हो गये,भारत पर क़ुर्बान।
राजगुरू,सुखदेव ने,गाया भारतगान।
इंकलाब जो बोलकर,रचा गये इतिहास,
युग-युग होगा अब 'शरद',उन वीरों का मान।।

                   - प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे
                             मंडला - मध्यप्रदेश
=============================

                   आजादी हमने 



वतन फरोशों बेचने से पहले वतन को सोच लो
आजादी हमने वतन मुश्किलों से पाई है
खून से सींचा है इसको रणबाकुरों ने  देश के 
माओं ने खोए लाल तो बहनों ने खोए भाई हैं
आजादी हमने -----

आहुतियां प्राणों की दी हैं आजा दे वतन की राह में
चूमकर फांसी के फंदे सीने पे गोली खाई है 
आजादी हमने-----

कितनी जवानी पिस गई जेल की चक्की तले
रौनक गुलशन की खातिर कितनी कली मुरझाई हैं
आजादी हमने -------

सुहाग की सेजों पे बैठी तकती रही थी नारियां
सिंदूर की कुर्बानियों से हमने ये दौलत पाई है 
आजादी हमने -----

अब ये गुलशन फिर ना उजड़े संभालकर रखना कदम
राह मुश्किल है बहुत पहले भी ठोकर खाई है
आजादी हमने -----

- प्रदीप गुप्ता
अजमेर - राजस्थान
================

              इंकलाब. . . इंकलाब . . .



मौत है कुछ कदम पे तो, कुछ गम नही 
हौसला भी हिमालय से, कुछ कम नही
इंकलाब. . . इंकलाब . . .

ए हवा सुन जरा, है ये सबको पता
फूल की खुशबू, हमने बिखेरी नही
इंकलाब . . . इंकलाब . . .

ये गगन भी झुकेगा, है मुझको पता
हम हैं पंछी गगन में, उड़े ही नही
इंकलाब . . . इंकलाब . . .

आँधियों का गुमा तोड़ देंगे यकीं
दीप बनके अभी, हम जले ही नही
इंकलाब . . . इंकलाब . . .

उठ रही हों समंदर में, लहर मगर
डुबकियाँ भरने को हम, कूदे नही
इंकलाब . . . इंकलाब . . .

ए वतन तुझको मेरा हो अंतिम नमन
जान जाये मगर, शान होगी न कम
इंकलाब . . . इंकलाब . . .

- डॉ. विनोद नायक  
नागपुर - महाराष्ट्र 
===========

            नमन-वन्दन करें सब मिलकर



शहीदों को नमन-वन्दन करें सब मिलकर। 
वन्दे मातरम्  का  गान  करें सब मिलकर।।

गीत देशप्रेम के स्वयं से बड़े थे उनके लिए, 
लक्ष्य आजादी का था अपने देश के लिए। 
ऋणी रहेंगे युगों-युगों तक हम भारतवासी, 
नमन शहीदों, सर झुकता है वंदन के लिए। 
इन्कलाब जिंदाबाद किया खुद मिटकर। 
शहीदों को नमन-वन्दन करें सब मिलकर।।

शीश झुका नहीं सर मातृभूमि पर कटा गये, 
भारत की आन के लिए जान मिटा गये। 
नमन-वन्दन भारत के अमर शहीदों को, 
मां भारती के मन में बसकर अमरत्व पा गये।
विजय-गीत गाये दुष्कामनाओं को कुचलकर।
शहीदों को नमन-वन्दन करें सब मिलकर।।

मां भारती के सपूत चले अन्तिम सफर पर, 
लटककर फन्दे से आसमां में छा गये 
बिखरकर गिरे धरा पर, आसमां में छा गये।
गर्वित हुई माटी लिपटकर उनके बदन पर, 
देकर प्राण मातृभूमि को अमरत्व पा गये हैं। 
सजते हैं भारत के भाल पर तिलक बनकर। 
शहीदों को नमन-वन्दन करें सब मिलकर।।

दुश्मनों की मांद में लिखी शौर्य गाथा वीरों ने, 
सर्वस्व देकर जंग लड़ी आजादी की वीरों ने। 
देश के मस्तक पर स्वाभिमान का तिलक कर
आजादी के हवन में आहुति दी अनेक वीरों ने। 
अमर है पराक्रम उनका देश-माटी में बसकर। 
शहीदों को नमन-वन्दन करें सब मिलकर।।

- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखंड
============

              प्यार करता है देश अपार 


मातृभूमि के लाल लाड़ले ,  भगत सिंह सरदार ।
प्यार करता है देश अपार ।

चढ़ा रंग था देश भक्ति का , माँ का राज दुलारा ।
भारत माँ के दु: ख  मिटाने , सौपा जीवन सारा ।।
खुशियाँ कर दीन्ही न्यौछार ।
........................................................१

विद्यावती किसन सिंह इनके मात पिता थे प्यारे ।
मात पिता दोनों को प्यारे  यह  थे आंखों के तारे ।।
प्रेम रस की करते  बौछार ।
........................................................२

जलियांवाला बाग काण्ड से मन इनका थर्राया ।
आजादी लेना है इनके दिल को  बस यह भाया ।।
वंदे मातरम् का करके उच्चार ।
..........................................................३

था अदम्य साहस  शौर्य की महा मूर्ति थे आप ।
राष्ट्र भक्ति है कितनी इसकी  कोई नही थी नाप ।।
सरदार से डरी ब्रिटिश सरकार ।
..........................................................४

मातृभूमि के लाल लाड़ले ,  भगत सिंह सरदार ।
प्यार करता है देश अपार ।

- राजेश तिवारी 'मक्खन'
झांसी - उत्तर प्रदेश
===============

               हर दुश्मन हर काल  हैं



अमर कहानी सच्चे वीरों की
गाता इतिहास है।
देश की खातिर जीते मरते
मन में भर विश्वास है।।

राजगुरू ,सुखदेव ,भगत सिंह
भारत माँ के लाल हैं ।
इनको देख के थर-थर काँपे 
हर दुश्मन हर काल  हैं।।

आजादी  की बलिवेदी पे 
न्यौछावर सर्वस्व है ।
हम सबके हृदयों में छाया
इनका ही वर्चस्व है ।।

याद करेंगे सदा शहादत 
वंदेमातरम  बोल है।
भारत माँ के लाल अनोखे
अजर  अमर अनमोल है ।।

इंकलाब का नारा बोला
आजादी अधिकार है ।
नहीं सहेंगे जोर जुल्म अब
ब्रिटिश राज धिक्कार है ।।

हर कीमत को देकर हमने 
रंग तिरंगा पाया है ।
चक्र अशोका नील वर्ण का
भारत मातु लुभाया है ।।

- छाया सक्सेना ' प्रभु '
जबलपुर - मध्यप्रदेश
=============

      रँग बसन्ती फ़िज़ा में उड़ा कर चले



राह आज़ादी की वो सजा कर चले
रँग बसन्ती फ़िज़ा में उड़ा कर चले

मरते मरते सभी को बता कर चले।
अपना ख़ूने जिगर वो दिखा कर चले।

जां से प्यारा  वतन था उन्हें साथियों।
जान हँसते हुए वो लुटा कर चले ।

इस जहां में अनेको हुए वीर पर,
खून कुछ ही तो अपना बहा कर चले।

उनकी आँखो से आंसू  भी बह न सके।
मुस्कुराते वतन को रुला कर चले।

नाज होता रहे सर्वदा देश को ,
फूल ऐसे चमन में खिला कर चले।

- कमल पुरोहित "अपरिचित"
कोलकत्ता - पं. बंगाल
===============

                     अमर सपूत


जब जब धरती पर वसंत नवोउल्लास छा जाता है ,,
जागृत जीवन तो का मन ,,,
कुछ करने को अकुलाता  है।
शिवा और राणा के मन में,,
जब वसंत  उमगया था,,,,
तब मातृभूमि की ममता आगे,,, 
उन्हे ना कुछ भी भाया था,,,,
और भगत सिंह के भीतर एसी,, अकुलाहट जब जागी थी,,, 
फांसी पर हंस-हंसकर झूली ,,,
तब काया बड़भागी थी l 
युग युग तक इतिहास उन्हीं की,
अमर कथा दोहराता 
है ।
जागृत जीवनतो का मन कुछ करने को अकुलाता है  । 

जब वासंती छटा हृदय पर,, दयानंद के छाई थी ,,,
अंबर में पाखंड खंडी की ,,,,
ध्वजा तभी लहराई थी। 
जीवन में उल्हास वसंती ,,
जब स्थान ले लेता है ,,,
  सुखदेव  ,,, 
देश विदेश में जाकर संस्कृति,,,, 
ध्वजा वही लहराता है,,,
जागृत जीवंतो का मन,,, 
कुछ करने को अकुलाता है।
जब जब धरती पर,,, 

जिस दिन वासंती उमंग में,,
 डूबे चंद्रशेखर आजाद ,,,
सबल शत्रु के सन्मुख उसने,,,, अनुपम वीरता दिखाई थीl मातृभूमि की खातिर उसने,,
 ऐसी लड़ी लड़ाई थी,,,
कि दुश्मन के मुंह से भी उसने बहुत प्रशंसा पाई थी,,,
उसके अजीत शौर्य की गाथा,,,,
स्वयं विजेता गाता है,,,,
जागृत जीवन तो का मन ,,
कुछ करने को अकुलाता है,। 

आओ निज मन में ,,,
ऐसा बसंती भाव जगाए हम,,
  माता मानवता संस्कृति पर,, न्योछावर हो जाएं हम,,, 
जिसने मां की अश्रु भरी आंखों की और निहारा है ,,,,
उसने धन साधन श्रम सुविधा, समय उसी पर वारा है ,,,,
मां निज स्वर   कर्तव्यों  की हमको याद दिलाता है,,,, 
जागृत जीवन तो का मन,,
कुछ करने को अकुलाता है। 

- उमा मिश्रा प्रीति 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
=============

             फांसी पर झूलकर बनाया 



इंकलाब जिंदाबाद नारा नहीं था
जुनून,आजादी पाने का बना सुत्रधार।
भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव ने हंसते हुए 
फांसी पर झूलकर बनाया इसे आधार। ।

सुभाषबाबू ने हिंदसेना गठित कर 
आजादी के मतवालों की संभाली कमान।
क्या नर ,क्या नारी इंकलाब जिंदाबाद बोल
न्यौछावर कर दी थी अपनी जान।।

आजादी के मतवालों ने शौर्य बलिदानों
की अमिट इबारत थी लिखी।
जलियांवाला बाग, डटे रहने का ज़ज्बा 
ऐसी इतिहास में दर्ज गाथा लिखी। ।

मंगल पांडे, लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे,प्रताप
जैसों ने आजादी की अलख जगाई।
न झूके ना डरे, बेड़ियों से मुक्त कराने
मां भारती को अपनी जान ग॔वाई।।

भूल न जाएं हम यादें, आत्मोत्सर्ग 
करने वाली ,इंकलाबी रूहों की।
नेस्तनाबूत करें उन्हें, जो बुरी नजर
डाले अस्मत पर भारतमाता की।।
       

- डाॅ. मधुकर राव लारोकर 'मधुर '
   नागपुर - महाराष्ट्र
==============

         बनाया भगत सिंह था वो सपूत



शांत चित्त था देखने में मगर उबलता लावा था
अंग्रेजों पर जो पड़ गया भारी ऐसा तो वो छावा था।
देश करे है गर्व जिस पर ऐसा मनमोहक साया था
अंग्रेजों पर जो पड़ गया भारी ऐसा तो वो छावा था।

     भारत मां की गुलामी पर
      छाती उसकी फटती थी
     आज़ादी के मतवालों से
      खूब ही उसकी पट ती थी
शत्रु के दांत खट्टे कर दे ऐसा वो मतवाला था
अंग्रेजों पर जो पड़ गया भारी ऐसा तो वो मतवाला था।

    किशन सिंह जी का सुपुत्र था
     विद्यावती उनकी माता थीं
    भगत सिंह था वो सपूत
      गुलामी न उसे भाती थी
हो गया कुर्बान देश की खातिर ऐसा वो दिलवाला था
अंग्रेजों पर जो पड़ गया भारी ऐसा तो वो छावा था।
शांत चित्त था देखने में मगर उबलता लावा था
अंग्रेजों पर जो पड़ गया भारी ऐसा तो वो छावा था।

- प्रो. डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा - गुजरात
 ===============

                 ऐसा वीर मतवाला



भगत सिंह याद करो, राष्ट्रभक्त और थे वीर,
अंग्रेजी हुकूमत ने दी, उनको लाखों ही पीर,
नहीं विचलित हुये वो, फांसी फंदा चूमा था,
देख देख भगत की निष्ठा, अंग्रेज हुये अधीर।

नहीं हुआ और नहीं होगा,ऐसा वीर मतवाला,
सुन सुन किस्से वीर के, लगा दुष्ट मुंह ताला,
फांसी का नाम सुनकर, वीर भगत हुंकारा था,
वतन पर मिटा वो वीर,भारत का रखवाला था।

आजादी की खुशी में भूले,वीरों की कुर्बानी,
भगत आजाद,गुरु,सुखदेव,कुर्बानी जग जानी,
राष्ट्र भावना भरी दिलों में, हटे नहीं वो पीछे,
फांसी चढ़ गये पल में,करते नहीं वे मनमानी।

राष्ट्रवाद दिल में बसे,वो इंसान कहाए महान,
देह कुर्बान कर गये,तब बन जाती है पहचान,
आओ आज याद करें, वो कितने थे देशभक्त,
वीरों की कुर्बानी से, बन जाती वो देश शान।

राष्ट्रवाद पहचान है, एकता-भाईचारा मिसाल,
कष्ट सहते देश की खातिर,सहते दुख हर हाल,
साहस से वो भरे हुये,दुश्मन का करते बदहाल
क्रोध वीरों का देख देखकर,दुश्मन बदले चाल।

राष्ट्रवाद जन जन में भरा हो,वो देश मेरा भारत,
अत्याचार खत्म किया, जब छेड़कर महाभारत,
सत्य की जीत निश्चित, आज यह दिल से मान,
राष्ट्रवाद भारत में पलता, भारत की बड़ी शान।।

- डा. होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
============

             देकर नारा इंकलाब का



देश का हित हो निरंतर,
आने न पाए देशभक्ति में,
किसी प्रकार का कोई अंतर,
तरन्नुम में राग देश का,
हो सरहदों पर इंकलाब देश का,
नमन उन शत शत वीरों को,
रणवीरों रणधीरों को,
करते प्रणाम उनके जज्बों,
अडिग बुलंद इरादों को,
देकर नारा इंकलाब का,
राष्ट्रहित में बिछ जाएं,
अमर बलिदानियों की गाथा को,
इंकलाबी स्वरों से दोहराएं।

- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
===============

   इंकलाब  के नारों से गूंजा सारा जहां


 इंकलाब  के नारों से गूंजा सारा जहां,
 इंकलाब जिंदाबाद गूंज उठा आसमां।

 नमन वीर सपूत जो दिलाये आजादी,
 वीर सपूतों की गाथा गाये भारतवासी। 

किन शब्दों से शहादत पंक्तिबद्ध करूं,
किन शब्दों से कुर्बानी को ब्यां करूं ।

शूरवीर पराक्रमी सपूत थे वे जुनूनी,
जान से भी प्यारा था उन्हें मातृभूमि।

अंग्रेजों की दहशत नहीं डिगा पाई,
आजादी के जुनून मन में लहराई।

सूली पर चढ़ गये तीनों हंसते-हंसते,
देश प्रेमियों के लिए दुआ मांगू रब से।

न्योछावर किये जो देश पे तन-मन,
उन बलिदानों को शत-शत नमन।

खुली सांस ले रहे हैं उनके बल पर,
सारा वतन गमगीन उनके नाम पर।

गूंजती रहेगी उनकी यादें जेहन में,
नतमस्तक रहेंगे उनके चरणों में।

 शत शत नमन करूं शत् शत् नमन,
 जो शहीद हुए हमारी हिफाजत में।
 
 - सुनीता रानी राठौर 
 ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
======================


Comments

  1. हृदय तल से आभारी हूं सम्माननीयों
    जय हिन्द

    ReplyDelete
  2. आप समय समय पर हम सबको लेखन की प्रेरणा देकर प्रोत्साहित करते हैं।साथ ही
    विभिन्न विभूतियों की स्मृति को बनाए रखते हैं।आप कार्य अनुकरणीय और प्रणम्य है। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?