मीराबाई के जन्म दिवस पर फेसबुक कवि सम्मेलन
जैमिनी अकादमी द्वारा मीराबाई के जन्म दिवस पर फेसबुक कवि सम्मेलन रखा गया है । कवि सम्मेलन का विषय " मीरा का कृष्ण प्रेम " है ।
मीरा का जन्म मेड़ता के राव रत्नसिंह के घर 23 मार्च, 1498 को हुआ था। जब मीरा तीन साल की थी। तब उनके पिता का और दस साल की होने पर माता का देहान्त हो गया। एक विवाह के अवसर पर उसने अपनी माँ से पूछा लिया कि मेरा पति कौन है ? माता ने हँसी में श्रीकृष्ण की प्रतिमा की ओर इशारा कर कहा कि यही तेरे पति हैं। भोली भाली मीरा ने इसे ही सच मानकर श्रीकृष्ण को अपने सब कुछ मान लिया। उनकी आयु की बालिकाएँ जब खेलती थीं तो तब मीरा श्रीकृष्ण की प्रतिमा के सम्मुख बैठी उनसे बात करती रहती थी। कुछ समय बाद उसके दादा जी भी स्वर्गवासी हो गये। अब राव वीरमदेव गद्दी पर बैठे। उन्होंने मीरा का विवाह चित्तौड़ के प्रतापी राजा राणा साँगा के बड़े पुत्र भोजराज से कर दिया। इस प्रकार मीरा ससुराल आ गयी । अपने साथ वह अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण की प्रतिमा लाना नहीं भूली। मीरा की श्रीकृष्ण भक्ति और वैवाहिक जीवन सुखपूर्वक बीत रहा था। राजा भोज भी प्रसन्न थे। दुर्भाग्यवश विवाह के दस साल बाद राजा भोजराज का देहान्त हो गया। अब तो मीरा पूरी तरह श्रीकृष्ण को समर्पित हो गयीं। उनकी भक्ति की चर्चा सर्वत्र फैल गये । पैरों में घुँघरू बाँध कर नाचते हुए मीरा प्रायः अपनी सुधबुध खो देती थीं। मीरा की सास और राणा विक्रमाजीत को यह पसन्द नहीं था। राज-परिवार की पुत्रवधू इस प्रकार बेसुध होकर आम लोगों के बीच नाचे और गाये । यह उनकी प्रतिष्ठा के विरुद्ध था। उन्होंने मीरा को समझाने का प्रयास किया। वह तो सांसारिक मान-सम्मान से ऊपर उठ चुकी थीं। अन्ततः राणा ने उनके लिए विष का प्याला श्रीकृष्ण का प्रसाद कह कर भेजा। मीरा ने उसे पी लिया । सब हैरान रह गये । जब मीरा पर कुछ असर नहीं हुआ।राणा का क्रोध और बढ़ गया। उन्होंने एक काला नाग पिटारी में रखकर मीरा के पास भेजा । वह नाग भी फूलों की माला बन गया। अब मीरा समझ गयी कि उन्हें मेवाड़ छोड़ देना चाहिए। अतः वह पहले मथुरा-वृन्दावन और फिर द्वारका आ गयीं। इसके बाद चित्तौड़ पर अनेक विपत्तियाँ आयीं। राणा के हाथ से राजपाट निकल गया और युद्ध में उनकी मृत्यु हो गयी। यह देखकर मेवाड़ के लोग उन्हें वापस लाने के लिए द्वारका गये। मीरा आना तो नहीं चाहती थी। जनता का आग्रह को टाल नहीं सकीं। वे विदा लेने के लिए रणछोड़ मन्दिर में गयीं । पूजा में वे इतनी तल्लीन हो गयीं कि वहीं उनका शरीर छूट गया। इस प्रकार 1573 में द्वारका में ही श्रीकृष्ण की दीवानी मीरा ने अपनी देह लीला का त्याग किया ।
विषय अनुकूल रचनाओं को सम्मानित किया जाता है : -
मुझे तेरा सहारा है ।
तू प्राणों से प्यारा है ।।
सब स्वारथ स्वार्थ के , केशव ही हमारा है ।।
जो तेरी शरण गहे , निर्भर हो जाता है ।
जो चार पदार्थ है , सब कुछ पा जाता है ।।
जो सब जग को देता , दाता ही हमारा है
।....................१
द्रोपदी को टेर सुनी , गज को भी छुड़ाया है ।
गिरिवर नख पर धारी , मेरे मन को भाया है ।।
तन मन धन सौप दिया अधिकार तुम्हारा है ।....................२
यदि एक झलक पाऊ , धन्य धन्य मैं हो जाऊ ।
सब समर्थ हो स्वामी , तुम्हें छोड़ कहां जाऊ ।।
मैं पतित हूँ पावन तुम , सौभाग्य हमारा है ।......................३
वृन्दावन बरसाना , गोकुल नंद का भवना ।
गोवर्धन गिरि धारी , यमुना तट व्रज गहना ।।
तुम सा ही नही कोई , तेरा नाम सहारा है ।............................४
व्रज रज की महिमा का , कैसे गुणगान करु ।
तन लोट लोट करके , तेरे चरणों में पेंड भरु ।।
मक्खन मन है मेरा , जो तुम्हें प्यारा है ।...............................५
- राजेश तिवारी 'मक्खन'
झांसी - उत्तर प्रदेश
===========
सांवरे ,
तुम्हें तो मैंने
अन्तर में छुपा रखा था
श्वासों में बसा रखा था
मारे न ताना ब्रज में कोई
चुपके से आराध्य बना रखा था
पर
बनकर अविरत आराधिका
राधा नाम धराई
देखन लगी आरसी
देखने जो स्वयं को
तुम ही पड़े दिखलाई
कैसे छुपाए छुपे बात अब
होती जग हंसाई
अन्दर बसी तेरी छवि
आनन पर छलक आई ।।
- कनक हरलालका
धूबरी - असम
=============
प्रेम प्रतीक्षा, बड़ा दर्द दे जाती,
तब जाके मिलन घडिय़ा आती,
किस्मत का सेब खेल दिखाती,
खुशियां मिले फिर लौट जाती।
प्रेम प्रतीक्षा, कड़वा होता बाण,
घटती दृष्टि, घट जाती है घ्राण,
प्रेम मिलन में कभी बसे प्राण,
प्रेम बिना लगता जन निष्प्राण।
प्रेम प्रतीक्षा, सदियों से पुरानी,
कहीं हीर हुई कहीं राजा जानी,
प्रेम प्रतीक्षा नहीं, करे मनमानी,
मिलन होता कभी,नहीं हैरानी।
प्रेम मार्ग बहुत कठिन बताया,
चलकर गया उसने कुछ पाया,
मौत को जिसे गले से लगाया,
वो प्रेम में डुबकी लगा पाया।
प्रेम किया जब शीरी फरियाद,
उन्हें हसीं जमाना याद आया,
प्रेम प्रतीक्षा, मीरा ने किया था,
प्रभु श्रीकृष्ण का, प्यार पाया।
लैला मजनूं की जोड़ी जग आई,
दुनिया हँसी,छवि दिल में बसाई,
पर अपने जब बन जाते हैं कसाई,
नाम रह जाता है,कि प्रीत निभाई।
विष का प्याला, जब पी डाला,
मीर बन गई श्रीकृष्ण की प्यारी,
प्रतीक्षा करके जग में पाया नाम,
देखो फिर मिलन घड़ी की तैयारी।
- डा. होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
===============
नटखट कृष्ण हैं छिप गए, आते देखा मात।
खड़ी गोपियाँ ने बता, वहाँ छिपा है तात।।
मीरा ने है कर लिया, प्रेम मगन विष पान।
प्रभु अमरित हैं बन गए, रखा प्रेम का मान।।
शूल चुभे हैं अनगिनत, नहीं किया परवाह।
तभी आज मंजिल मिली, मिली हमें है राह।।
जीवन कुंदन सा दमक, सबके मन की चाह।
मेहनत होती वह सड़क, दे जाती है राह।।
कुंतल में उलझे रहे, प्रभु का लिया न नाम।
चौथापन जब आ खड़ा, तब जपते हो श्याम।।
- उमा मिश्रा प्रीति
जबलपुर - मध्य प्रदेश
=============
प्रीत के रंग रंगी मीरा बाई
मोहन की मनमोहन प्यारी ।
नाम जपे प्रभु -प्रभु दिन रैना
गिरिधर पर जाए बलिहारी ।।
प्रेम स्वरूपा साधक मीरा
कृष्ण दीवानी रूप निहारी ।
भक्ति में डूबी श्यामल श्यामा
फिरती गलियन में मतवारी ।।
डोर बँधी है नेह की तुमसे
इकतारा धुन गए जाए।
विष को अमृत कर डाला जब
कृष्ण मगन मन गाए- गाए ।।
लोक वा लाज की चिंता करी नहि
संतन संग सत्संगति आए ।
पीर मिटेगी मुरलीधर तब
ये नयनन अब दर्शन पाए ।।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
=============
प्रेम
क्या/कैसा
और क्यों होता है
मैं नहीं जानती साँवरे!
मंदिर में
भक्तों की संगत में
तुम्हारी छवि
हृदय में बसाए
तुम्हारे गीत गाना
नृत्य करना
मन को भाता है
विष भी अमृत
तो सर्प भी हार लगता है
सच कहूँ साँवरे!
लोक-लाज
सब छोड़ है थामा
हाथ में अब इकतारा
गीत तुम्हारे
गाता है ये मन
फिरता मारा-मारा,
तुम मेरे सर्वस्व साँवरे!
तुम संग लागी प्रीत
दिखे न कोई अपना जग में
तुम ही मेरे मीत!
मैं मीरा तुम्हारी
प्रेम अमर करने आ रही हूँ
छोड़ कर संसार
तुम में समाने आ रही हूँ।
- डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
==============
अद्भुत था मीरा का प्रेम
ना मिलन की चाह,
ना बिछुड़न की आह।
आदर, समर्पण का समावेश,
रात दिन बस एक ही आस
मेरे तो गिरधर गोपाल,
दूसरों ना कोई।
सदा इसी में मीरा ने अपनी
सुध- बुध थी खोई।
कृष्ण की भक्ति,
कृष्ण की शक्ति
मीरा की नस-नस
की यही अभिव्यक्ति।
कितने युग बीत गए
आज भी देते लोग मिशाल।
मीरा- कृष्ण के
अद्भुत प्रेम की।
हाँ, मीरा थी
अद्भुत- प्रेम की
कृष्ण -दासी ।
जीवन भी त्यागा,
कृष्ण का ही मन में
लिए अभिलाषा।
विष पी लिया,
कृष्ण को मानो पा लिया हो।
अद्भुत प्रेम की,
मीरा थी परिभाषा।
- डॉ. पूनम देवा
पटना - बिहार
===========
राजा भोज की रानी-
मीराबाई दीवानी,
जहर का पी गई प्याला-
विधि ने रची कहानी.
गहन-प्रेम में हो तल्लीन-
सुध-बुध अपनी बिसराई,
जोगन बन बैठी अलबेली-
रटती रही कृष्ण-कन्हाई.
भक्तों के संग साज बजाकर-
अनुपम राग सुनाए,
तन मन रंगा श्याम के रंग में-
गोविंदा बस मन को भाए.
ऐसा नेह कहीं न देखा-
मीरा और त्रिभंग,
मंदिर में मूरत के आगे-
नाचीं मस्त मलंग।
इतिहास के पन्नों पर-
हो गया अमर यह प्यार,
सदियों तक दोहराएंगे हम-
जब तक है संसार.
- डा.अंजुलता सिंह 'प्रियम'
नई दिल्ली
=============
अद्भुत थी वह कृष्ण की जोगन,
अद्भुत थी उसकी प्रेम आसक्ति।
रोम -रोम में तो चितचोर बसे थे,
अद्भुत थी उसकी भक्ति में शक्ति।
जोधपुर के राजा रत्नसेन की,
इकलौती संतान थी मीरा बाई।
मेवाड़ के राणा कुँवर भोजराज,
की ज्येष्ठ पुत्र वधू थी मीरा बाई।
लोकलाज छोड़ कृष्ण प्रेम में वह,
पल पल भावों में खो सी गई थी।
मेरे गिरधर गोपाल राग रंग में वह,
इसन्द्रधनुषी रंगो में यूं डूब गई थी।
कृष्ण ही सखी कृष्ण ही सखा है,
मीरा के तन मन में करे निवास ।
राणा ने विष का प्याला था दिया,
मृत्यु हार गई नहीं कोई आभास।
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
================
मीरा जैसा हो कान्हा से प्रेम
माना कृष्ण को अपना पति
बचपन में ही ज्ञानी मीरा ने
छोड़ दिया नश्वर राजमहल
रुढियों से जकड़े समाज में
बनी वह अध्यात्म की
क्रांतिकारी नारी
त्यागे सुख वैभव माया
सीमा रेख मर्यादा ,लोकब-लाज की
की थी उसने उस सदी में पार
प्रभु संपदा की प्यास में
उठाया साहसी कदम
अपनों ने उसे दुत्कारा
राणा ने उसे मारने
भेजा विष का प्याला
आए तब कृष्ण मुरारी
करने भक्त की रक्षा
कृष्ण नाम का जाप कर
पी गयी विष अत्याचार का
कान्हा की कृपा से
हो गया जहर तब अमृत
प्रभु आराधिका साधिका
गिरिधर गोपाल संग पहुँची
साधु , संतों की संगत में
सच्चे प्रभुनिष्ठ रैदास को
बनाया अपना आत्मगुरु
प्रभु के में प्रेम में दीवानी
भूल गयी सुधबुध अपनी
नाच -नाच वीणा के संग
पथरीली राहों मंदिर में
गाती विभिन्न रागों में
कान्हा के मधुर पद
'मेरा दर्द जाने न कोई'
कर गयी अपनी भक्ति के गौरव से
मेवाड़ , भारत को स्वर्णाक्षरों से अंकित
दुर्लभ मानव जीवन से ही
केवल प्रभु भक्ति से
सांसारिक इंसान ही
पा सकता है मुक्ति
चले' मंजु ' नश्वर माया का जग
छोड़कर ,मीरा - सी
हरि से एकाकर होने।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
===============
कान्हा की भक्ति में मीरा मगन
झूमे है धरा, झूमे है गगन।।
साँवरिया मन में बसा जब से
मन-प्राण एक हुए तब से
दिन -रात कन्हैया की लागी लगन
झूमे है धरा , झूमे है गगन ।।
कान्हा हर पल मुसकाता है
नयनों से नेह बरसाता है
बन जाता गरल अमृत पावन
झूमे है धरा, झूमे है गगन ।।
जीवन था समर्पित कान्हा पर
मनभावन मधुर मुरलिया पर
नर्तन करती हर पल ऑंगन
झूमे है धरा, झूमे है गगन।।
कान्हा - मीरा का भेद मिटा
समरूप हुए हर पर्दा हटा
कान्हा मीरा- मीरा मोहन
झूमे है धरा, झूमे है गगन ।।
जग रोग सका ना प्रेम प्रखर
हर शूल, फूल बन गया सँवर
बस कृष्ण बसा मीरा के मन
झूमे है धरा, झूमे है गगन ।।
- डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
फरीदाबाद - हरियाणा
================
लोग पूछते हैं
प्रेम का नाम जैसे
वह कोई वस्तु है
जिसे देख सकते हैं
छू सकते हैं
खरीद और बेच सकते हैं
क्या प्रेम ऐसा होता है ?
कदापि नहीं ना......
प्रेम क्या है
जानना चाहते हो तो
समझो मीरा के प्रेम को
जिसने प्रेम को सिर्फ महसूस किया
ह्रदय की अनंत गहराइयों से
और उसी में डूब गई
उस अनंत अहसास में खो गई
न कुछ लिया न कुछ दिया
सिर्फ और सिर्फ प्रेम और
अंत में प्रेम में विलीन होकर
स्वयं कृष्णमयी हो गई
- बसन्ती पंवार
जोधपुर - राजस्थान
==============
मातु दिखाईं राह को, पकड़ी हंसके डोर।
प्रेम डोर इतनी बढ़ी, मिले न उसका छोर।।१।।
बाल काल की प्रीत है, नींव पड़ी मजबूत।
छोड़े से छूटे नहीं ,गांठ लगी है सूत।।२।।
कान्हा की मूरत बसी,जपती हैं दिन रात।
सांवरिया भूलत नहीं ,थर थर कांपे गात।।३।।
नेह लगाया श्याम से,छोड़ दिया घर द्वार ।
प्रेम दिवानी हो गईं,वृथा लगे संसार ।।४।।
इकतारा लेकर चलीं, मन में रखकर श्याम ।
गली गलि में ढूंढ रहीं, मिल जावें घनश्याम।।५।।
- गायत्री ठाकुर सक्षम
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
====================
कान्हा के प्रेमरस में ,भूली मैं सुध बुध,
जोगन बन गयी एक सुंदर राजकुमारी,
प्रेम दीवानी हुई मीरा, विष भी अमृत बन गया,
राजपाट छोड़ बनी दीवानी,कृष्ण मुरारी |
आँखों मे बसी एक तस्वीर,दूजा ना कोई समाए,
दिल मंदिर में तो वो मोहनी मूरत,
दीप बने आप,बाती बन गयी तुम्हारी,
अब तो पुकार सुन लो मेरी,मेरे गिरधारी |
कृष्णा कृष्णा रटते मैं कृष्णा बन जाऊं,
मोर मुकुट श्याम छबि पर मै वारि जाऊं,
घुँघराले केशो में,मै तो बस उलझी जाऊं,
अब कृपा करो मीरा पर,लीला है तुम्हारी न्यारी |
धन्य हो जाये जीवन मेरा,अँधेरा है मन बसेरा,
बाँसुरी के मधुर स्वर,गूँजे तन मन मे,
व्याकुल मन तलाशे वन ओर नदिया किनारे,
चंहु ओर दिखती मुझे छबि वो प्यारी प्यारी |
मेरे पास नही है कुछ,दिल भी अपना मैं तो हारी,
कहाँ महलों के राजकुमार,मैं तो दासी तुम्हारी,
ना मै राधा रानी,ना हूँ रुक्मणि महारानी,
में आपकी आप हो मेरे,हुई मैं तो अब बावरी |
- इन्दु सिन्हा "इन्दु"
रतलाम - मध्यप्रदेश
==============
मीरा के दिलबर थे कान्हा, मीरा थी उसकी दीवानी
पी गई थी वो ज़हर का प्याला, बन गया था वो मीठा पानी
तेरी मेरी प्रेम कहानी, सुन कान्हा है जन्मों पुरानी
मै हूँ मीरा सी दीवानी, तुझको पाने की है ठानी
पता मुझे अब मिल गया तेरा, दिल में लगा है तेरा डेरा
इतनी बात मैं जान गई हूँ , तू ही कान्हा दिलबर मेरा
जीवन भर तेरी भक्ति करूँगी , ख़ुशियों से दामन मै भरूँगी
दुनिया का कोई फ़िकर नही अब, इस जग से मै नही डरूँगी
- सुदेश मोदगिल नूर
पंचकूला - हरियाणा
=============
मीरा तो कृष्ण की दिवानी थी ।
मीरा तो कृष्ण की दिवानी थी।
दिन भर कृष्ण -कृष्ण पुकारे ,
रात को सपने में कृष्ण को निहारे ,
दिन हो या रैन ,
कृष्ण बिना नहीं उसे चैन ,
वह तो कृष्णा के चरणों का वंदन कर
सुख पाती थी,
नहीं प्रेम चाहा उसने,
वो तो चरणों की दासी थी ।
मीरा तो कृष्ण की दिवानी थी ।
बचपन में राजकुमारी मीरा ने
एक साधु से उपहार में मुर्ति पाई ,
नादान बाला ने , मूर्ति संग करली सगाई
जब। से गिरधर संग जोड़ा प्रेम का नाता ,
कोई रिश्ता उसे न भाता
केसरिया रंग में रंगी मीरा की
हर सांस कृष्ण-कृष्ण पुकारती थी ।
मीरा तो कृष्ण की दिवानी थी ।
दिवानी ने सुख भी छोड़ा
छोड़ा वैभव , छोड़ दिया सम्मान
विमुख हो जग से , लगाया प्रभु में ध्यान
भक्ति भावना इस तरह समायी ,
गली- गली बावरी बन घूमे
कण-कण में प्रभु को ढूंढें
गिरधर गोपाल-गिरधर गोपाल
गाती फिरती , नहीं तन सुधि रहे ।
मीरा तो कृष्ण की दिवानी थी ।
मीरा और राधा के प्रेम में अन्तर है ।
राधा ने चाहा साथ कृष्ण का
मीरा ने तो प्रेम को मन में समाया
बिन मांगे अमर प्रेम को पाया ।
मीरा तो कृष्ण की दिवानी थी ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
======================
कान्हा दीवानी मीरा हुई
तन-मन, सुध-बुध खो बैठी l
कृष्ण प्रेम सागर भर के
जग से वैरागी हो बैठी ll
बचपन में पति मान कर
लगन गिरधर से लगा बैठी l
चहुँ दिशि कृष्ण प्रेम दिखे
गिरधर की दासी बन बैठी ll
लोक-लाज गेह छोड़ बैठी
वन वीथि गिरधर गोपाल की l
मन प्राण अधीर उर पीर लिए
स्नेह मिलन को मीरा चली ll
जहर का प्याला पीकर वह
भक्ति के रंग में डूब गई l
जल बिन मीन तड़पत ज्यों
श्याम रंग मीरा चूनर रंगी ll
द्वारिका मोहन दर्शन कर
बूंद सागर में है समाय गई l
मंगलमय आनंद सदन खिले
ज्योतिर्मय हुई गति प्राणों की ll
प्रभु ने हाथ बढा है दिया
अध्यात्म मिलन परमानंद घड़ी l
तरल स्नेह की बूंदों से
मीरा प्रेम का आलोक बनी ll
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
================
डूबकर प्रेम सागर में,
भुलाया स्वयंम को,
नाता तोड़ा दुनिया से,
कैसी लगन देखो।
किया खुद को कुर्बान,
कुचले सब अरमान,
मीरा प्रेम दीवानी हुई,
मीरा मस्तानी हुई।
बचायेगा रखवाला,
पिया जहर का प्याला,
मीरा ने किया समर्पण,
किया स्वंयम को अर्पण।
सबकुछ लुटाकर,
स्वंयम को भुलाना,
इसे कहते हैं ,
प्रेम समझाना।
मीरा की गाथा,
युगों तक रहेगी,
कृष्ण प्रेम की कहानी,
स्वंयम ही कहेगी।
- नन्दिता बाली
हिमाचल प्रदेश
=============
मीरा दीवानी थी तो
बस कन्हैया की
दिन रात बस करती
रहती याद प्रियतम को अपने।
कहते हैं पिछले जन्म में
गोपी थी, सखी थी राधा की
इस जन्म में कन्हैया से मिलना था
ध्येय था उसका।
प्रभु प्रेम की अमूल्य निधि थी
मन हर लेती थी सब का
जब गाती थी
भजन 'मोरे तो गिरधर गोपाल'।
क्या नहीं किया लोगों ने
उसके साथ
कहते पगला गयी है।
वह खो चुकी थी
सुधबुध अपनी
ज़हर का प्याला पी
गयी हंसते - हंसते।
कुछ न बोली
डूबी हुई थी भक्ति में
दुनिया को त्यागा
रिश्तों को छोड़ा
बस लीन थी कृष्णा में
रो रो कर करती गुहार
अपने पावन प्रेम की।
न जाने उस दिन क्या हुआ
प्रभु प्रेम में तल्लीन
समा गयी मीरा
कृष्णा की मूर्ति में
उस की अलौकिक भक्ति
को कोटि - कोटि प्रणाम।
- डा. अंजली दीवान
पानीपत - हरियाणा
===============
जब भी मन बेचैन होता,
बैठ जाती कान्हा के आगे,
करती बस एक सवाल हमेशा उनसे,
तुम जैसा स्वार्थी ना और कोई इस जहाँ में।।
करते सबका भला पर नज़र ना आता किसी को कभी,
अपनी लीला के मोह-जाल में फँसाते सभी को,
तेरे नाम भी अनेक और रूप भी अनेक,
ऐसे कान्हा की गाथा करते सब नर-नारी।।
मीरा के मन की व्यथा जानते कान्हा,
पर वो जो ठहरे मन के मस्तमौजी,
कुछ और ना सताएं ऐसा भला कभी हो सकता,
करने लगे मन-मस्तिष्क पर राज उसके हमेशा।।
दिन बीते, महीने बीते, बीते कई साल,
चलता रहा यही सिलसिला निरंतर,
ना इसका कोई आरंभ ना कोई अंत,
मीरा का कृष्ण प्रेम है सबसे अनोखा।।
- नूतन गर्ग
दिल्ली
==============
कृष्ण कृष्ण पुकारे सदा ही मीरा।
प्रेम करती है वह रख मन में धीरा।।
भुला दिया कृष्ण प्रेम में जग सारा।
कंटक पथ पर भी प्रेम नहीँ हारा।।
कहेंगे सुनेंगे सभी कृष्ण लीला।
लगता प्यारा कृष्ण उसे छबीला।।
कृष्ण के गीतों से ही पाया प्रसादा।
कृष्ण मिले मिटा मीरा मन विषादा।।
सुध बुध खोकर मीरा हुई तुम्हारी।
अंश नहीं कृष्ण की हो गई सारी।।
रचे कृष्ण भजन सभी को जगाया।
कवित्त में मीरा ने कृष्ण को पाया।।
पति माना कृष्ण को होकर दीवानी।
मीरा के प्रेम की है यह अनुपम कहानी।
गरल भी कृष्ण प्रेम को मिटा न पाया।
मीरा जैसा प्रेमी जग में दूजा न आया।।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग '
देहरादून - उत्तराखंड
===============
कैसे दर्शाऊं मैं कृष्ण प्रेम,
निश्चल निर्मल अगाध प्रेम।
प्रेम दीवानी मैं बन जाऊं,
अंतर्यामी का दर्शन पाऊं।
श्याम तेरे रंग में मैं रंग जाऊं,
अविरल प्रेम में बहती जाऊं।
जहर का प्याला मैं पी जाऊं,
सांवरिया पे समर्पित हो जाऊं।
दुनिया मुझको पागल समझे,
कोई न मेरा प्रेम पीर समझे।
प्रभु जन्म-जन्म का प्रीत मेरा,
मैं चरणों की दासी बनूं तेरा।
लोक लाज सब त्याग दी मैं,
रंगमहल का परित्याग की मैं।
घुंघरू बांध नाच तुम्हें रिझाऊं,
श्याम प्रेम दीवानी मैं बन जाऊं।
सांवरिया के रंग में रंग जाऊं,
निश्चल प्रेम कर उनमें समाऊं।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
=================
रंगी प्रेम के रंग में मीरा
रोम रोम में कान्हा ।
प्रेम रंग के कारण पहना
भगवा रँग का बाना ।
अंतर तक मीरा प्यासी थी
रहती दरस दीवानी ।
गली गली में घूम घूम कर
कहती प्रेम कहानी ।
महल दुमहले छोड़ छाड़ कर
धार जोगिन का रूप ।
महलों की महारानी सहती
कान्हा प्रेम की धूप ।
मन डूबा था कान्हा द्रव में
फिर भी प्यासी प्यासी ।
गाती फिरती कान्हा धुन को
नही भूख नही हाँसी ।
हाथ तम्बूरा थाम हाथ मे
गाती प्रेम की पीर ।
पल पल माधव के दरसन की
लगन धरे नही धीर ।
प्रेम पगी थी प्रेम रंगी थी
कान्ह कन्त रँगराती ।
कान्हा नेह डूब के जलती
दीपक जैसी बाती ।
- सुशीला जोशी विद्योत्तमा
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
==================
कृष्ण दिवानी मीरा रानी,
जपे है शाम का नाम,
रटती निसदिन कान्हां कान्हां,
भूल गयी रे सब काम।
दरस दिवानी अँखियाँ उनींदी,
चैन ना पल भर पाये,
सावन भादौ की सी बरसें ,
अँखियाँ नीर बहायें।
अद्भुत प्रेम में डूबी ऐसे,
सुधबुध सब बिसराई,
विष का प्याला बना निवाला,
तनिक ना वो घबराई।
ऐसी भक्ति जो कोई पा ले,
जनम सुफल हो जाये,
श्याम के धाम बसे रे मनुवा,
भक्त अनन्य कहाये।
- सुखमिला अग्रवाल ” भूमिजा “
जयपुर - राजस्थान
==============
प्रेम की कहानी मीरा
कृष्ण की दीवानी मीरा
युगों-युगों तक ऐसी
प्रीत न दिखाई दी।
राजस्थान की वो राधा
मन सुरों में था बांधा
गिरिधर वंदना में
उमर बिताई थी।
राणा जी ने विष दिया
हँस -हँस के था पीया
पावन लगन लगी
सुध बिसराई थी।
संग मीरा के गोपाला
जोगन के रखवाला
मनमोहना की छवि
उर में बसाई थी।
- डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
राँची - झारखंड
================
प्रेम दिवानी मीरा का जीवन तो,
था अनुपम, पावन व अद्वितीय।
जैसा प्रेम किया था प्रभु से उनने,
नही हुआ कोई फिर वैसा द्वितीय।।
प्रभु को पाने की खातिर उनने,
त्याग दिया था स्वर्णिम संसार।
और त्पस्विनी बन गली गली में,
गुंजा दी अपनी झांझर झनकार।।
इतना प्यार था प्रभु से उनको कि,
जहर भी हो गया अमृत सदृश्य।
पीड़ाहारी पीड़ा दे देकर हार गए,
जब हुई मीरा में प्रभु की मूरत दृश्य।।
जब न हो मन में क्रोध का भाव,
तब ही मिलता है प्रभुवर का प्रेम।
उन्हें नहीं मिल पाएं कभी भी प्रभु ,
जो लौकिक बंधन के बांधे नेम।।
मीरा तो थी मुक्त तन से आत्मा,
जिन्हें न बांध सका था कोई बंधन ।
संत रविदास को बना आत्म गुरु,
पा लिया उन्होंने प्रभु का दर्शन।।
चली लेखनी प्रभु प्रेम में रच तब,
बोली" मेरे तो बस गिरधर गोपाल"
और संतो को दिखलाया पथ कि,
उर में ही जप लो भक्ति की माल।
उर में ही जप लो भक्ति की माल।।
- ममता श्रवण अग्रवाल
सतना - मध्यप्रदेश
================
राजा की बेटी रही, कोमल अरु सुकुमार।
कृष्ण प्रेम से रँग गयी, भक्ति थी बेशुमार।।
बाल सुलभ घटना बनी, जीवन का अब सत्य।
विष का प्याला भी पिया, कहते सभी असत्य।।
सींचा था इस प्रेम को, निज आँसू से डाल।
पुष्पित हो फल भी मिला, दर्शन अंतिम काल।।
घर समाज सब छोड़ कर, चली बिरज की ओर।
भक्ति काल की संत थी, बात चली चहुँओर।।
राधा के कान्हा रहे, मीरा के थे कृष्ण।
मतवाली दोनों रही, भरा प्रेम का उष्ण।।
- पुष्पा पाण्डेय
राँची - झारखंड
=============
हो गई मैं दिवानी तुम्हारे लिए
बन गई मीरा रानी तुम्हारे लिए
तुम कहो तो पियाला ज़ह्र का पियूं
फिर बनूं मैं कहानी तुम्हारे लिए
मांग तारों से अपनी सजा लूं किशन
ओढ़ूं चूनर सुहानी तुम्हारे लिए
तेरी बंसी की सरगम से कान्हा जी मैं
फिर सजा लूं ये बा नी(वाणी) तुम्हारे लिए
चाह शक्ति की है महके चरणों में ये
बनके अब रातरानी तुम्हारे लिए
- बबिता चौबे शक्ति
दमोह - मध्यप्रदेश
=============
राजस्थान मेवाड़ की कन्या
रतन सिंह की पुत्री मीरा
लाडली दुलारी प्यारी
बचपन से कृष्ण की दीवानी
पति के अकाल मृत्यु
बना दिया मीरा को
कृष्ण की भक्ति की दीवानी
मीरा की भक्ति की ऐसी शक्ति मिली
ससुराल का विष भी अमृत बना
गोपियों के समान मीरा भी
कृष्ण को अपना पति मान
कृष्ण के प्रेम की दीवानी बन
रची अनेक भाषाओं में कविताएं
आत्म समर्पण की भावना से
अपने पूरे जीवन को किया समर्पित
मीरा की सादगी मीरा का सितार
भजन गाकर किया प्रेम का इजहार
बृजवासी मीरा रच दी अनेकों कविताएं
गुजराती कवियत्री भी मीरा कहलाए
मीरा से बन गई मीराबाई
मैं तो प्रेम दीवानी कृष्ण की दीवानी
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
===========
मीरा बचपन से ही
कृष्ण भक्ति में लीन हो गयीं थीं,
समय के साथ-साथ,
कृष्ण भक्ति के रंग में रंग गयीं,
मीरा कृष्ण की दीवानी हो गयीं
मीरा कहती हैं-
“हे कृष्ण!
तुमने मेरा मन हर लिया,
मैं घर-बार सब भुला बैठी,
तुम ही मेरे सच्चे प्रियतम,
जहां बिठाओ,
वहीं बैठ जाऊं,
बेंचो तो बिक जाऊं,
जो खाना दोगे वही खा लूंगी,
तुम कब मिलोगे कृष्ण?
तुम बिन रहा न जाता,
आओ कृष्ण!
तुम मुझे दर्शन दे दो,
हे कृष्ण!
तुम अंतर्यामी हो,
क्यों मुझे तरसा रहे?
कृपा करो,
मुझसे मिल लो,
तुम्हारे दर्शन बिना घड़ी भर भी चैन नहीं,
हे कृष्ण!
तुम कब मिलोगे?
मुझे मालूम होता कि,
प्रीत करने से दुख होता भारी,
तो ढिंढोरा पीटती,
कोई भी प्रेम न करना,
विरह की पीड़ा इतनी घनीभूत है,
कि खाना नहीं भाता,
नींद नहीं आती,
वृंदावन में रास रचाने वाले बालमुकुंद!
हे गिरिधर!
तुम ही मेरे सच्चे प्रीतम हो,
हे कृष्ण!
तुमने मेरा मन हर लिया,
मैं घर-बार सब भुला बैठी।”
यह कहा जाता कि-
कृष्ण की प्रेम दीवानी,
मीरा जब वृंदावन पहुंची,
मंदिर में दर्शन करने,
तो कृष्ण मूर्ति में ही समा गयीं।
दर्शन के बाद वे बाहर ही नहीं आयीं।
- प्रज्ञा गुप्ता
बांसवाड़ा - राजस्थान
================
थार की धूल में
पावन बयार बन बही
अभिमंत्रित अविरल
अभिसंचित थी जग में
महकी कुडकी की
मोहक मिट्टी में
कान्हा-प्रेम के प्रसून-सी
प्रीत के पालने में पली
मीरा बाई थी वह।
झील के निर्झर किनारे पर
गूँज भक्ति की
अंतरमन को कचोटती
व्याकुल कथा-सी थी वह ।
जेठ की दोपहरी
लू के थपेड़ों में ढलती
खेजड़ी की छाँव को
तलाशती तपिश थी वह ।
सूर्यास्त के इंतज़ार में
जलती धरा-सी
क्षितिज के उस पार
आलोकित लालिमा-सी थी वह।
अकल्पित अयाचित
उत्ताल लहर बन लहरायी
मेवाड़ के चप्पे-चप्पे में
चिर-काल तक चलती
हवाओं में गूँजती
प्रेमल साहित्यिक सदा थी वह।
जग के सटे लिलारों पर लिखी
प्रेम की अमर कहानी
उदासी, वेदना, करुणा की
एकांत संगिनी थी वह ।
करती निस्पंद पीटती लीक
पगडंडियाँ-सी
प्रीत की पतवार से खेती नैया
लेकर आयी मर्म-पुकार
रेतीले तूफ़ान में
स्पंदित आनंदित हो ढली
शीतल अनल-शिखा थी वह।
- अनीता सैनी 'दीप्ति'
जयपुर - राजस्थान
=================
मन वीणा झंकृत हुई, अधरों पर संगीत है ।
मीरा कान्हा में मिली , प्रीत न जाने रीत है ।
परिणय राजा भोज से , गिरधर मन के मीत हैं ।
दिव्यप्रेम मीरा कियो, हार पाईं जीत हैं ।
साक्षी है इतिहास यह , मृदा विलुप्त अतीत हैं ।
सीमा लाँघी प्रेम ने , जरा नहीं भयभीत हैं ।
करता चकित वृतांत यह, चाँद चकोर सप्रीत है ।
मन विभोर नर्तन करे ,होत बंसत प्रतीत है ।।
- सीमा वर्णिका
कानपुर - उत्तर प्रदेश
================
बहुत अलग था कृष्ण से मेरा प्यार
सिर्फ मैंने ही किया था इसका इजहार
मेरे मन में ही बसा था वो बस
पर नहीं किया किसी ने स्वीकार
मेरे प्रभु के साथ जिनपर
मेरी आसक्ति थी अपार
बन जाती पतिव्रता
गर जताते मुझसे अथाह प्यार
रानी की बजाय बना लेते प्रेयसी
पर तुमने तो प्रेम को प्रतिबंधित करना चाहा
दोषारोपण कर मुझपर पहरा लगाना चाहा
मेरी चाहत को कुचलना चाहा
मेरे स्वाभिमान को आहत करना चाहा
मुझे भी अपनी जागीर समझ
मेरी अभिलाषा को मारना चाहा
नहीं मंजूर था मुझे इस तरह से दासी बनना
इसलिए छोड़ दिया जीवन दोराहा
राह चुनी बैराग की
साबित करने स्वयं को पिया जहर प्याला
बिगाड़ सका ना कोई कुछ भी
जब बना हो कृष्ण स्वयं रखवाला
दिन रात भक्ति कर भजन लिख
इक नया इतिहास रच डाला
हो गई अमर कृष्ण की प्रेयसी बनकर
ऐसा है मीरा कृष्ण का प्यार निराला
- नीलम नारंग
मोहाली - पंजाब
==============
गिरिधर की दीवानी मीरा
महल छोड़कर,
सारे सुख त्यागी
अपने मोहन-मुरारी को
साथ ले, गाती रही, गाती रही
मेरे तो गिरिधर गोपाल
दूसरो न कोई।
कितने कष्ट सहे
छोड़ी कुल मरजादा ,
शरण गही गुरु रैदासा
मगन मन गाती रही,गाती रही
जाके सिर मोर मुकुट
मेरो पति सोई।
कृष्ण-प्रेम दीवानी
पी गई विष प्याला
भक्तों के बीच रमी वो
जपती रही कन्हा की माला
हे-री मैं तो प्रेम दीवानी
मेरा दरद न जाने कोई।
गोविंद प्रेम में डूबी मीरा
रोम रोम में श्याम बसे,
हर अक्षर केशव केशव
हर पल माधव माधव,
पूरा जीवन हरि,हरि
प्रिय कन्हा की शरण गहे ।
गाती रही---गाती रही
श्याम,मोहे चाकर राखो जी।
- सुनीता मिश्रा
भोपाल - मध्यप्रदेश
================
साहित्य के लिए अनमोल धरोहर है आपका प्रयास। मीरा बाई में जितना डूबो उतने ही हिलोरे मरता है भाव,उतने ही विचार उमड़ते है...प्रेम का सागर हैं ...। इस सागर की एक बूँद बनकर अत्यंत हर्ष हुआ।
ReplyDeleteहृदय से अनेकानेक आभार आदरणीय सर।
सादर नमस्कार