मित्रता दिवस के अवसर पर चर्चा - परिचर्चा का विषय भी मित्रता ही रखा गया है। मित्रता के लिए इतिहास में अनेक पात्र मिलते हैं। जैसे:- कृष्ण - सुदामा । यह मित्रता का बहुत अच्छा उदाहरण है। इन से हम सब कुछ ना कुछ अवश्य सिखना चाहिए। शायद इस से अच्छी मिसाल कहीं और नहीं मिल सकती है। जैमिनी अकादमी की परिचर्चा का विषय भी मित्रता पर ही है। अब आयें विचारों को देखते हैं :- जैसे सभी की अपनी-अपनी, अलग-अलग कहानियाँ होती हैं, वैसे ही कर्ण की अपनी कोई अलग कहानी होती अगर दुर्योधन तत्काल यह निर्णय नहीं कर लेता कि अधिरथ -राधा का जो पुत्र है, बड़ा तेजस्वी है, बड़ा योद्धा है, शस्त्र संचालन में बड़ा निपुण है। और यह भी उसे दिख गया था कि अर्जुन से उसकी ठन गई है। दुर्योधन ने कर्ण को कर्ण बनाया…! और कर्ण ने उस विपरीत परिस्थिति में मित्रता के लिए दुर्योधन के बढ़े हाथ को थाम कर महाभारत में उऋण होने का मौक़ा चुना। दुर्योधन के द्वारा किए गए ग़लत कामों का विरोध नहीं करना उसके द्वारा मित्रता निभाना हो रहा था। मित्र ऐसा होना चाहिए जो मित्र ...