फिल्म इंडस्ट्रीज में भी बुढ़ापे का दर्द
अभी हाल में अभिनेत्री गीता कपूर को उन्हीं के बेटा अपनी बिमार मां को हस्पताल में दाखिल कर छोड़ कर चला गया । यह घटना मुंबई के फिल्म इंडस्ट्री की है। मशहूर फिल्म पाकीजा की अभिनेत्री है। मीडिया ने भी प्रमुखता से इस घटना को हाथों हाथ लिया है । परन्तु कोई खास सफलता नहीं मिली है। बेटी भी पुणे में रहती है। उसने भी कोई ख़बर ली है। वैसे भी फिल्म इंडस्ट्री में सफलता तक ही पूछ होती है। कुछ समय के बाद बड़े बड़े नाम भी गुमनाम की जिंदगी जीते हैं।
गीता कपूर की घटना के बाद इंडियन फिल्म एंड टेलीविजन डायरेक्टर्स एसोसिएशन ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर एक प्लाट देने की मांग की है। मुंबई में फिल्म वालों के लिए एक वृद्धाश्रम खुलना ही चाहिए । " मेरी दृष्टि में " इसमें मुफ्त चिकित्सा आदि के साथ साथ मिलने जुलने का अच्छा प्लेटफार्म भी साबित हो सकता है। इस वृद्धाश्रम के लिए मधुर भंडारकर के साथ साथ महेश भट्ट, रोहित शेट्टी, आदि अनेक हस्ती आगे आ रही है।
बहु बेटे के होते बुढापे का दर्द के अनेक किस्से समाज में आजकल आम हो रहे हैं। अमिताभ बच्चन की फिल्म " बागबान " इस का उदाहरण है। फिल्म इंडस्ट्री का एक और उदाहरण बेगम पारा का भी है। जिसने कपड़े सिलकर अपना गुजारा किया।
" मेरी दृष्टि में " छोटे छोटे शहरों में भी बुढ़ापे का दर्द सामने आने लगा है। 41 दिन के बाद अभिनेत्री गीता कपूर को हस्पताल से वृद्धाश्रम भेजा गया है। मीडिया में आने के बाद भी कोई समस्या का समाधान नज़र नहीं आया है। परन्तु इंडियन फिल्म एंड टेलीविजन डायरेक्टर्स एसोसिएशन के प्रयास अच्छे भी है और सार्थकता भी नज़र आती है।
- बीजेन्द्र जैमिनी
( अशेष फीचर )
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