ज़िन्दगी का पहला वेतन

        कालिया जिन्दगी का पहला वेतन लेकर घर आ रहा था। घर के बाहर भिखारी ने रोक लिया और हाथ आगे कर के बोला - कुछ दे दो ?
        ‎कालिया ने जेब से पर्स निकाल कर, उसमें से एक सौ का नोट देते हुए बोला - कितने दिन तक भीख नहीं मांगेगा ?
        ‎भिखारी ने उत्तर दिया - सिर्फ तीन दिन ।
        ‎कालिया ने कहा - अगर पांच सौ का नोट दे दूं तो ?
        ‎भिखारी ने कहा - कम से कम पंद्रह दिन तक।
        ‎कालिया ने फिर कहा - अगर दस हज़ार दे दूं तो ‌?
        ‎भिखारी का सिर घूम गया और कालिया की ओर घूरते हुए बोला - भिखारी की मज़ाक मत उड़ाओ ।
        ‎कालिया ने कहा- मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूं।
        ‎भिखारी ने तंवर घुमाते हुए बोला - जिन्दगी में कभी भीख नहीं मांगूंगा। इन पैसों से काम करूंगा।
        ‎कालिया ने तुरन्त जिन्दगी का पहला वेतन के पूरे के पूरे दस हजार भिखारी के हाथ पर रख दिए। भिखारी खुशी के मारें रौ पड़ा ।  कालिया तो भिखारी के पांव छू कर घर में घुस गया। यह सब नजारा कालिया के पिता जी देख रहे हैं और सोचने लगें कि मेरे पिता जी ने मेरा जिन्दगी का पहला वेतन को शनि मंदिर के बाहर लंगर लगा कर सबको लंगर खिलाया था। परन्तु कालिया तो मेरे पिता जी से भी आगे निकल गया और कालिया पर गर्व करते हुए घर में घुस गया।


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